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Adultery गुजारिश 2 (Completed)

Naik

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#72

भरी दोपहर में ही मौसम बदलने लगा था , काले बादलो की घटा ने आसमान संग आँख-मिचोली खेलनी शुरू कर दी थी .ऐसा लगता था की रात घिर आई हो. ये घिरता अपने अन्दर आज न जाने किसे सामने वाला था . हवेली से बाहर आकर मैंने मौसम का हाल देख कर अपने दुखते सीने पर हाथ रख लिया. मैं जानता था की रीना कहाँ होगी . मैंने चाची की गाडी ली और सीधा शिवाले पर पहुँच गया .

वहां जाकर जो मेरी आँखों ने देखा , मैं जानता तो था की पृथ्वी ये गुस्ताखी करेगा पर आज ही करेगा ये नहीं सोचा था . पृथ्वी जैसे सपोले को मुझे बहुत पहले कुचल देना चाहिए था . मैंने देखा अपने लठैतो की आड़ में पृथ्वी ने रीना को अगवा कर लिया था. उसके चेहरे की वो हंसी मेरे कलेजे को अन्दर तक चीर गयी .

पृथ्वी- मुझे मालूम था तू जरुर आएगा. न जाने कैसा बंधन है इस से तेरा दर्द इसे होता है चीखता तू है . मैंने बहुत विचार किया सोचा फिर सोचा की इसके लिए तुझे अपनी जान देनी होगी

मैं- रीना के लिए एक तो क्या हजार जान कुर्बान है

पृथ्वी- क़ुरबानी तो तुझे देनी ही है पर अभी के अभी तूने मुझ अम्रृत कुण्ड को देखने का रहस्य नहीं बताया तो मैं रीना को मार दूंगा

मैं- किसका रहस्य , जरा दुबारा तो कहना

पृथ्वी की बात मेरे सर के ऊपर से गयी .

“हरामजादे , मजाक करता है मुझसे ” पृथ्वी ने खींच कर रीना को थप्पड़ मारा

“पृथ्वी , इस से पहले की की अनर्थ हो जाये , छोड़ दे रीना को वर्ना सौगंध है महादेव की मुझे तेरी लाश तक उठाने वाला कोई नहीं बचेगा ” मैंने फड़कती भुजाओ को ऊपर करते हुए कहा .

बीस तीस लठैत तुरंत मेरे सामने आ गए.

मैं- हट जाओ मेरे रस्ते से , आज मैं कुछ नहीं सोचूंगा. चाहे इस दुनिया में आग लग जाए . हटो बहनचोदो

मैंने एक लठैत के पैर पर लात मारी और उसकी लाठी छीन ली .और मारा मारी शुरू हो गयी .

“इस को आज जिन्दा नहीं छोड़ना है ” पृथ्वी चिल्लाया और उसने फिर से रीना को थप्पड़ मारा

पृथ्वी- खोल उस अमृत कुण्ड का दरवाजा हरामजादी .

इधर मैं उन लठैतो से पार पाने की कोशिश कर रहा था पर उनकी संख्या ज्यादा थी इस बार पृथ्वी ने पुरी योजना बनाई हुई थी . एक लठैत की लाठी मेरे सर पर पड़ी और कुछ पलो के लिए मेरे होश घबरा गए और यही पर वो मुझ पर हावी हो गए. लगातार पड़ती लाठिया मुझे मौका नहीं दे रही थी . सर से बहता खून मुझे पागल कर रहा था .

“मनीष ” ये मीता की आवाज थी जो यहाँ आन पहुंची थी .

मीता ने आव देखा न ताव और तुरंत ही उन लठैतो से भीड़ गयी . जैसे तैसे करके उसने मुझे उठाया तब तक संध्या चाची भी वहां पहुँच गयी .

“पृथ्वी ये क्या पागलपन है ” चाची ने गुस्से से कहा

पृथ्वी- ये पागलपन तुम्हे तब नहीं दिखा बुआ जब अर्जुन से मेरे पिता को मार दिया. जब इसने मेरे दोस्तों को मार दिया .

संध्या- उनको अपने कर्मो की सजा मिली . उनकी नियति में यही था .

पृथ्वी- क्या थे उनके कर्म, जिस पर हमारा दिल आया उसके साथ थोड़े मजे ले लिए तो क्या गलती हुई भला. ये तो हमारे शौक है

संध्या- हर किसी की इज्जत उतनी ही है जितना मेरी या तेरी माँ की है या हवेली की किसी और दूसरी औरत की है

पृथ्वी- तुम तो मुझे ये पाठ मत पढाओ बुआ , वो तुम ही थी जो दुश्मनों की गोद में जाकर बैठ गयी थी .

संध्या- अपनी औकात मत भूल पृथ्वी, तू भी मेरा ही बेटा है ये याद रख तू और कोशिश कर की मैं भी न भूल पाऊ इस बात को

पृथ्वी- हमें तो तुम उसी दिन ही भुला गयी थी बुआ, जिस दिन तुम दुस्मानो के घर गयी .

संध्या- तो ठीक है , अब किसी रिश्ते नाते की बात नहीं होगी. किसी नाते की कोई दुहाई नहीं दी जाएगी. जिस लड़की को तूने अगवा किया है , ये लड़का जो घायल है ये मेरी औलादे है और इनके लिए मैं किस हद से गुजर जाऊंगी तू सोच भी नहीं सकता. जब तूने अमृत कुण्ड के बारे में मालूम कर लिया है तो उस सच के बारे में भी मालूम कर लिया होता. अगर तेरी रगों में सच्चा खून होता तो तू ये घ्रणित कार्य कभी नहीं करता .

“मनीष मेरे बेटे, मैं तुझसे कह रही हूँ, इसी समय इस दुष्ट पृथ्वी का सर धड से अलग कर दे. ” चाची ने क्रोध से फुफकारते हुए कहा.

मीता ने तुरंत ही एक लठैत की गर्दन तोड़ दी . पर तभी “धांय ” गोली की जोरदार आवाज गूंजी और ऐसा लगा की किसी ने मेरे कंधे को उखाड़ कर फेंक दिया हो . क्या मालूम वो गोली मुझे छू कर गुजरी थी या फिर कंधे में धंस गयी थी . क्योंकि उसके बाद जो कुछ भी हुआ वो किसी जलजले से कम नहीं था .

“मनीष ...... ” ये रीना की वो चीख थी जिसने वहां मोजूद हर शक्श के कानो की चूले हिला दी.

“दद्दा ठाकुर ” रीना ने गहरी आँखों जो अब पूरी तरह से काली हो चुकी थी नफरत से दद्दा ठाकुर की तरफ देखा जो कंधे पर बन्दूक लिए हमारे बीच आ चूका था . पर वो नहीं जानता था की उसके कदम उसे मौत की दहलीज पर ले आये थे. रीना ने एक लात पृथ्वी की छाती पर मारी . हैरत के मारे पृथ्वी बस देखता रह गया और बिजली की सी तेजी से रीना ददा ठाकुर की तरफ बढ़ी और उसके हाथ को उखाड़ दिया.

“आईईईईईईईईईईइ ” दद्दा की चीखे शिवाले में गूंजने लगी . पर वो मरजानी नहीं रुकी. जब उसका मन भरा तो वहां मोजूद लठैतो को मैंने धोती में मूतते देखा. दादा ठाकुर की लाश के टुकड़े इधर उधर बिखरे हुए थे. उसके गर्दन को रीना ने अपने होंठो से लगाया और ताजे गर्म खून को किसी शरबत की तरफ पीने लगी.

“मेरी जान है वो , मेरे होते हुए कैसे मार देगा तू उसे, ” रीना ने ददा की लाश से सवाल किया वो तमाम लठैत तुरंत ही वहां से भाग लिए. रह गए मैं रीना, मीता , चाची और पृथ्वी.

अचानक से बाज़ी पलट गयी थी . रीना ने अपने क्रोध में सब तहस नहस कर दिया था . सामने बाप की लाश पड़ी थी पर चाची के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी .


“मैं कभी नहीं चाहती थी ये दिन आये पृथ्वी , मैंने जितना चाह इस रण को टालना चाहा . मैंने तुझे कदम कदम पर माफ़ किया पर अब और नहीं ” इतना कह कर रीना जैसे ही पृथ्वी की तरफ बढ़ी, किसी ने उसका रास्ता रोक लिया और अगले ही पल रीना हवा में उड़ते हुए शिवाले की टूटी दिवार पर जा गिरी.....
Zaberdast shaandaar lajawab update bhai
Ab yeh kon beech m aa gaya jisne reena ko rok dia or utha ker fek dia nahi tow aaj pirthvi ka bhi kaam tamam ho jata
Baherhal dekhte h aage kia hota h
 

Sanju@

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#61



ताई- तुझे नहीं मालूम क्या रीना के लिए रिश्ता आया है .

एक पल को मुझे मेरे कानो पर यकीन नहीं हुआ.

मैं- क्या कहा तुमने

ताई- यही की रीना के लिए रिश्ता आया है मैं उसके घर जा रही हूँ, एक मिनट क्या रीना ने तुझे नहीं बताया

मैं- बताया था , बस मेरे दिमाग से निकल गयी थी .

अपने भावो को छुपाते हुए मैं बस इतना ही कह पाया. और कहता भी तो क्या , इस दिन की शुरुआत ऐसे हुई थी तो अंजाम की क्या ही कहे. सर में अचानक से ही दर्द हो गया था . समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करू, क्या कहूँ. इस छोटे से दिल में ज़माने भर का बोझ उठाये मैं पागल ही हो गया था . दिल चाहता था की मैं रोकर इस बोझ को हल्का कर लू . पर वो आशिकी ही क्या जिसका इम्तिहान न हो.

चाहता तो अभी उसका हाथ पकड कर पूछ सकता था की ये सब क्घया है पर उसमे भी मेरी ही रुसवाई थी घर से निकल तो आया था पर रीना की दहलीज पर जाने की हिम्मत नहीं हुई तो उसी नीम के निचे बैठ गया . सीने में आग सी लगी थी मेरे न , न जाने ये दर्द जख्म का था या मोहब्बत का पर जल रहा था मैं. जब दिल दीवाने पर कोई जोर नहीं चला तो मैं गाँव से बाहर आ गया . दिन , दोपहार से शाम , शाम से रात में बदल गया था पर इस मनीष को चैन नहीं था .

अपनी बेचैनी लिए मैं शिवाले में बैठा था . उस देवता से मेरी आँखे न जाने कितने सवाल पूछ रही थी जिसने मेरे भाग को अपनी वीरानियो से जोड़ दिया था .

“क्या लिखा है मेरे नसीब में तुमने ” मैंने सवाल किया उस से और तभी पायल की उस झंकार ने मेरा ध्यान खींच लिया , उस पायल की झंकार जिसे मैं एक हजारो में नहीं लाखो में पहचान सकता था ,एक पल में मेरी सारी बेचैनी, सारी तन्हाई जैसे ख़ाक में मिल गयी .

“रीना ” मैंने अपने आप से कहा . और बस एक पल में ही मैंने उसे अपनी तरफ आते हुए देखा. मेरा दिया हुआ नीला सूट पहने हुए, हाथो में मेहँदी लगाये . जैसे जैसे वो कदम बढ़ाये मेरी तरफ आ रही थी एक के बाद एक शिवाले के दिए जलने लगने लगे थे. पर आज उसकी आँखों में वो दहशत नहीं थी , आज वो जानी पहचानी लग रही थी . मुस्कुराते हुए उसने मेरी पीठ से अपनी पीठ टिकाई और बैठ गयी .

“जानती थी तुम यही मिलोगे ” उसने कहा

मैं- जाये तो कहाँ जाये अब . ये महफिले ये दुनिया सब बेगानी सी लगती है

रीना- ये फितरत है इस दुनिया की

मैं- ऐसा लगता है की मुद्दत हुई तुम्हारे संग यूँ बैठे वो तमाम शामे जो हमने डूबते सूरज को देखते हुए बिताई, वो तमाम लम्हे जो हमने जिए

रीना- ये लम्हा भी तो खास है हम है तुम हो और ये जवान रात है .

मैं- ये लम्हा बस यही थम जाये बैठी रहो तुम आगोश में , देखता रहूँ बस तुम्हे .

रीना- बचपन से जवानी तक का सफ़र कैसे बीत गया ऐसा लगता है जैसे बस कल की ही बात हो .

मैं- मुझे कल से नहीं आने वाले कल से डर लगने लगा है .

रीना -डरना किसलिए भला

मैंने अपना चेहरा रीना की तरफ किया और उसके हाथ को थाम लिया.

मैं- डर लगता है मुझे, तुझसे दूर हो जाने का तुझे खो देने का .

रीना- मैं हमेशा तेरे संग रहूंगी, तेरे दिल में रहूंगी.

मैं- सुना की आज मेहमान आये थे

रीना- तुझे मालूम ही है तो क्यों पूछता है

मैं- तूने बताया भी तो नहीं .

रीना- क्या बताऊ तुझे मेरे सनम , कुछ भी तो नहीं मेरे पास बताने को .

मैं- ऐसा लग रहा है की वक्त रेत के जैसे मेरी मुट्ठी से फिसल रहा है , रीना सच बता तू मुझे छोड़ कर तो नहीं जाएगी न , तेरे बिना कैसे जियूँगा मैं नहीं जी पाउँगा मैं , नहीं जी पाउँगा मैं . बचपन से लेकर आज तक इस दुनिया ने ठुकराया है मुझे, दुत्कारा है मुझे, एक तू ही थी जिसने मुझ गरीब का हाथ थामा. मेरे दुःख में मेरे सुख में , मेरी ख़ुशी में बस तू ही थी . और आज ऐसा लगता है की कोई आ गया है मुझसे मेरी ख़ुशी छीनने के लिए.

जो दर्द मैंने बचपन से पीया हुआ था आज आंसू बन कर इस शिवाले में रीना के सामने बह रहा था , उसकी आँखे भी नाम हो गयी .

मैं- बचपन से मेरा कोई नहीं था सिवाय तेरे. मेरे माँ- बाप मुझे छोड़ गए . वो तू ही तो थी जिसने मुझे थामा मैं कब का टूट कर बिखर गया होता अगर तू नहीं होती . मुझे पराया मत कर अपने से दूर मत कर मेरी जान

रीना- मेरे दिल से पूछ , ये हवाए, ये फिजाए मेरी हर एक सांस गवाह है मेरे सनम मेरी हर सुबह ने बस तेरा दीदार किया मेरी हर शाम ने तेरा इंतज़ार किया मेरा दिल चीर कर देख हर धड़कन पर बस तेरा ही नाम लिखा होगा. मैंने तो अभी सोचा ही नहीं था की जिंदगी मुझे इस मोड़ पर ले आयेगी, मेरे पैरो में बेडिया है मेरे हाथो में तेरा हाथ है बता मैं करू तो क्या करू मेरे सनम. हर घडी, हर लम्हा, मेरा एक एक मिनट मैंने तेरे नाम किया . मैं कोसती हूँ खुद को काश उस दिन मैंने तुझसे जिद न की होती इस मनहूस जगह आने की . सारी दुनिया जान गयी मेरी-तेरी मोहब्बत के बारे में. मैं करू तो क्या तुझसे कहूँ तो क्या कहूँ मेरी माँ ने मेरे पैरो में उसके नाम की बेडिया बान्ध दी है

मैं- मैं बात करूँगा उनसे , माँ है वो औलाद के मन की बात समझेगी .

रीना- काश वो समझ पाती, तुझे क्या लगता है मैंने कहा नहीं उससे. उसे ज़माने की फ़िक्र है मेरी नहीं .

मैं- और तुझे किसकी फ़िक्र है मेरी जान

रीना- मैं तो दोराहे पर खड़ी हूँ , तुझे छोड़ दू तो रुसवाई से मरूंगी माँ को छोड़ दिया तो जलालत से मरूंगी. दोनों तरफ से मरना तो मेरा ही है .

मैं- क्या तूने इस रिश्ते के लिए हाँ कह दी है

रीना- मेरी हां न की किसे परवाह है .

मैं- मैं मर जाऊंगा रीना तेरे बिना

रीना- मैं तो वो भी नहीं कर सकती

मैं- तो ठीक है , तू एक काम कर मुझे अभी इसी वक्त मार दे. इस किस्से को यही पर ख़तम कर दे.जीना का मकसद तू है तो मेरा अंजाम भी तू ही बन

रीना- यही बात अगर मैं तुझसे कहूँ तो तू कर पायेगा ऐसा.

मैं- तो तू ही बता क्या करूँ मैं

रीना- यही तो मैं तुझसे पूछ रही हूँ

रीना ने अपने गले में हाथ डाला और वो हीरे वाला धागा निकाल कर मेरे हाथ में रख दिया बोली- इसकी जरुरत नहीं मुझे. तू ही रख इसे

मैं- मैं भला क्या करूँगा इसका. तू ही रख

मैंने वो धागा वापिस रीना को दे दिया. रीना ने मेरे सीने पर हाथ रखा और बोली- मुझे सदा अफ़सोस रहेगा इस जख्म के लिए

मैं- तू जानती थी , तुझे पता था

रीना- मैं हर दम हर पल अपने होश में थी .

मैं- तो तू सब जानती है

रीना- मैं बस तुझे जानती हूँ , मैंने बस तुझे जाना है

एक एक कर के शिवाले के दिए बुझने लगे.

रीना- मेरे सनम ये दर्द जो तुझे दिया है इसका कोई तोड़ नहीं है , पर मैंने इसे आधा बाँट लिया है दर्द उठेगा तेरे सीने में साथ तडपना मुझे है .

मैं- नहीं , तू ऐसा नहीं कर सकती

रीना- प्रेम की लौ जलाई है सुलगना तो पड़ेगा.

मैं- वो दुनिया , दुनिया नहीं होगी , जिसमे तू नहीं होगी मैं जलाकर ख़ाक कर दूंगा उस दुनिया को .

रीना- उस ख़ाक से धुआ भी मेरे ही प्यार का उठेगा.


मैं कुछ कहता उस से पहले ही रीना ने आगे बढ़ कर मेरे होंठो को चूम लिया और चली गयी शिवाले के अँधेरे ने मुझे लील लिया.
Bahut hi shandaar update hai
ताई ने रीना के लिए रिश्ता आया है बता कर मनीष पर एक बॉम्ब फोड़ दिया है वैसे रीना को शुरू से ही सब पता था कि वो क्या कर रही हैं उसने अपने गले का वो धागा उतारकर मनीष को दे दिया जो इससे पहले जो उतारने पर भी नही उतर रह था
अब सवाल ये है कि इतनी आसानी से कैसे उतर गया और उसका भार मनीष ने उठा लिया
ये वक्त दोनो के लिए असहनीय है लेकिन दोनो ही मजबूर है देखते हैं आगे क्या होता है
 

Naik

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#73

जिस बाज़ी को मैंने अपने हिस्से में पलटते हुए देखा था रीना पर हुए इस हमले ने पल भर में ही हम सबको अहसास करवा दिया की ये बिसात इतनी जल्दी ख़तम नहीं होने वाली. वो काला साया जिसने उस दिन जब्बर की पत्नी को मारा था , जिसने मेरी छाती पर हाथ रख कर मेरी नसों से लहू निचोड़ने की कोशिश की थी अचानक से उसने शिवाले में आकर रीना को दूर पटक दिया था .

आसमान में घुमड़ती काली घटाओ ने रोना शुरू कर दिया था ,आकाश जैसे फटने लगा था . बारिश शुरू हो गयी थी . वो काला साया लहराते हुए मेरी तरफ बढ़ा. मेरे दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था . मैंने उन गहरी काली आँखों के अँधेरे को अपने दिल में उतरते हुए महसूस किया. इस से पहले की वो कुछ अनिष्ट कर देती चाची अचानक से हमारे बीच आ गयी .

“दूर हट मेरे बेटे से ” चाची ने उस साए को जैसे धक्का सा दिया . वो साया फुफकार उठा.

“बीच में मत आ संध्या ” साए ने पहली बार कुछ कहा और हम समझ गए की ये कोई औरत ही थी .

चाची- तो फिर चली जा वापिस

साया- जाने के लिए नहीं लौटी मैं . इस लड़के का लहू चख लिया मैंने अद्भुद है , इसका स्वाद , इसका स्वाद जाना पहचाना है .भा गया है ये इसे लेकर जाउंगी मैं

“मनीष की आन बन कर मैं खड़ी हूँ , देखती हूँ तुझे भी और तेरे जोर को भी ” रीना ने मेरे पास आकार कहा.

रीना ने अपनी आँखों से मुझे आश्वस्त किया .

साया- तू दो कौड़ी की छोकरी तू , तेरी ये हिमाकत की तू मेरे सामने खड़ी हो . पहले मैं तेरे रक्त से ही अपनी तृष्णा शांत करुँगी

बरसती घटाओ के बीच उस टूटे शिवाले में ये जो भी हो रहा था शुक्र है की उसे देखने के लिए कोई कमजोर दिल का प्राणी वहां नहीं था . उस साए ने अपनी जगह खड़े खड़े ही रीना की बाहं मरोड़ी . पर रीना ने भी प्रतिकार किया और उस साए को सामने पत्थरों के फर्श पर पटक दिया. साया जोर से चिंघाड़ करने लगा. उसकी आवाज जैसे धडकनों को खोखला कर रही थी .

पर वो साया बलशाली था , रीना के पीछे सरकते कदम ये बता रहे थे की वो उस से पार नहीं पा पायेगी की तभी मीता ने रीना के हाथ को थाम लिया और आँखों से इशारा किया . दोनों में न जाने क्या बात हुई उन्होंने क्या समझा पर दोनों के होंठ कुछ बुदबुदाने लगे और फिर एक तेज रौशनी का धमाका हुआ और वो साया शिवाले की दिवार से जा टकराया . उसकी चीख फिर से गूंजी.

पर फुर्ती से सँभालते हुए उसने मलबे में पड़ी कड़ी के टुकड़े को उठा कर मीता पर दे मारा . नुकीला टुकड़ा मीता की जांघ को चीर गया वो एक तरफ गिर पड़ी. चाची मीता को सँभालने के उसकी तरफ दौड़ी और उसी पल वो साया रीना के पास पहुंचा गया . उसने रीना के गले को ऐसे पकड़ा की जैसे उसका गला घोंट रही हो . पर फिर मैंने देखा की उसने रीना के गले से वो हीरे वाला धागा निकाल लिया.



“हा हा हा , तभी मैं सोचु की ताकत क्यों मुझे जानी पहचानी लग रही है , मुर्ख लड़की तो ये था तेरी शक्ति का राज ” उस साए ने हँसते हुए वो लाकेट अपने गले में पहन लिया . कुछ देर के लिए सब कुछ थम सा गया . ऐसी ख़ामोशी छा गयी की जरा सी आवाज भी दिल का दौरा ला दे. और फिर वो चीख पड़ी ..

“अर्जुन, अर्जुन,,,,,,,,,,, ” इतनी जोर डर चीख थी वो की मैंने अपने कान से खून बहते हुए महसूस किया. वो जैसे पागल ही हो गई थी . कभी इधर भागे कभी उधर भागे उसकी आँखे और अँधेरी होने लगी . इतनी अँधेरी की जैसे वो सब कुछ निगल जायेगी. उसने रीना के गले को पकड लिया और उसे मारने लगी. रीना की चीखो ने मुझे पागल ही कर दिया था . मैं गुस्से से उसकी तरफ बढ़ा पर बीच में मीता आ गयी उसने एक सुनहरी डोर निकाली और उस साये को बाँधने की कोशिश करने लगी. वैसा ही चाची ने किया.

साए ने फुफकारते हुए कहा- खेल खेलना चाहती हो तुम . चलो ये खेल ही सही .

वो अकेली थी तीन त्रिदेवियो के सामने , तभी मेरी नजर पृथ्वी पर पड़ी जिसे होश आ गया था और वो दद्दा ठाकुर की बन्दूक उठा कर रीना पर निशाना लगा ही रहा था की मैंने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उसके हाथो पर दे मारा. बन्दूक उसके हाथो से गिर गयी और मैंने उसे धर लिया. पृथ्वी से गुथ्तम गुत्था होते हुए मैंने देखा की . शिवाले में वैसा ही धुआ उठा जैसा की तब था जब रीना ने अश्वमानव मारे थे .

पृथ्वी- आज या तो तू नहीं या मैं नहीं .

मैं- मुर्ख, तुझे अंदाजा भी नहीं है की यहाँ पर क्या हो रहा है

पृथ्वी- तेरी वजह से मेरे दादा मारे गए . तुझे नहीं छोडूंगा.

पृथ्वी ने मुझे लात मारी .मेरा ध्यान पृथ्वी से ज्यादा रीना , मीता की तरफ था इसी का फायदा उठाते हुए पृथ्वी ने मुझे दिवार से लगा दिया जिस पर गडी कील मेरे सीने में धंस गयी . मैं दर्द से दोहरा हो गया . वो लगातार मुझे दिवार की तरफ धकेल रहा था ताकि कील और अन्दर घुस जाए. प्रतिकार करते हुए मैंने अपना पैर पीछे किया और उसके पंजे पर मारा जैसे ही वो लडखडाया मैंने उसे धर लिया.

“बहुत फडफडा लिया तू हरामजादे, तेरे पापो को मैंने बहुत कोशिश की माफ़ करने की ये जानते हुए भी की तूने मेरी जान पर हाथ डाला मैं तुझे मारना नहीं चाहता था पर तेरी तक़दीर में ये ही लिखा था ” कहते हुए मैंने पृथ्वी की गर्दन मरोड़ दी. वो चीख भी नहीं पाया. टूटी सहतीर सा लहरा कर गिरा वो .

तभी रौशनी का एक धमाका हुआ और तीन साए शिवाले में इधर उधर जाकर गिरे, रीना मीता और चाची खून से लथपथ धरती पर पड़े अपनी सांसो की डोर को थामने की कोशिश कर रही थी . वो साया मेरी तरफ बढ़ा और मुझे घसीट लिया.

उसने अपने चेहरे को मेरे सीने की तरफ झुकाया और मैंने पहली बार उस को देखा. वो खूबसूरत चेहरा . इस से पहले की वो अपने होंठ मेरे बदन पर लगा कर मेरा खून पी पाती. .उस आवाज ने जैसे मेरे बदन में शक्ति का संचार कर दिया .

“बस मंदा बस बहुत हुआ ”


उस साए ने पलट कर देखा उसके सामने अर्जुन सिंह खड़ा था .............
Bahot zaberdast shaandaar
Lajawab update bhai
 

Jiddiboy1987

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फौजी भाई नमस्कार, आपकी सभी प्रस्तुति में से ये भी बहुत अद्भुत थी, मै आपकी कहानियों का बहुत बड़ा प्रशंशक रहा हूँ,आपकी पहली प्रस्तुति पर आपसे बहुत बार बात भी हो चुकी थी, परन्तु उस समय मेरी id दूसरी थी, आपकी ए दिल है मुश्किल सबसे बेहतरीन प्रस्तुति थी, प्रस्तुति कहना उसका अपमान होगा, क्यों कि आपने उसको महसूस किया है, मैंने आपसे 4 साल पहले ज़ब आपकी ये स्टोरी पढ़ी थी, उस समय आपसे मिलने की इच्छा जताई थी, पर आपके पास समय नहीं था, परन्तु भाई साहब आप अबकी बार छुटटी आये तो मिलना जरूर, आपसे मिलकर हम अपने आपको गौरवान्वित महसूस करेंगे, मै भी आपके पास का ही रहने वाला हूँ भाईसाहब, बुहाना तो आप जानते ही होंगे, ज़ब भी आपके पास समय हो ढोसी के पहाड़ पर मुलाक़ात कर लेंगे, मै पेशे से एक डेंटिस्ट हूँ, 5 साल पहले ज़ब मे भोपाल मे था तब मेरे बारे में आपने पूछा भी था मुझसे परन्तु आपको याद नहीं होगा, उस समय भी आपसे मिलने की विनती की थी। अब भी आपसे विनती कर रहा हूँ, भाई साहब आपके पास मिलने का समय हो तो मिलना जरूर।
 

Naik

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संध्या- मीता तुम वो तस्वीर देख कर चौंक गयी क्योंकि उसमे तुमने खुद को देखा जबकि वो मैं थी इसका कारण ये था की मैंने तुमको अपने गर्भ में पोषित किया था .

बाबा- पर समस्या अभी और थी रीना को कैसे बचाया जाये और तब मैंने किसी ऐसे को तलाश किया और ये काम भी हो गया पर मंदा के अवचेतन मन में मेरे प्रति नफरत बढती जा रही थी ये बात तांत्रिक ने मुझे बता दी थी . पर इस से पहले की हम कुछ उपाय कर पाते मंदा ने प्राण त्याग दिए चूँकि वो प्रतिशोध से पोषित थी तो उसके कहर को रोकने के लिए मैंने किसी खास से मदद मांगी और मंदा की रूह को शिवाले में कैद कर दिया. वो हीरा और धागा चाबी थे तुम्हारी यादो के, तुम्हारे आजाद होने का तुम्हारी आत्मा कमजोर रहे इसलिए हमने उनके तीन टुकड़े किया ताकि तुम शांत रहो पर नसीब देखो मनीष के हाथ वो धागे और वो हीरा लग गया. मेरी चेतावनी को नजरंदाज करके इसने वो लाकेट बनाया दरअसल इसने आत्मा के दो टुकडो को एक कर दिया.ऐसा होते ही मंदा की बेचैनी बढ़ने लगी वो बस आजाद होना चाहती थी . आत्मा के प्यासे टुकडो ने गाँव के लोगो का खून पीना शुरू कर दिया . ये कहानी मुझे यहाँ तक मालूम है पर तुमने सुनार को क्यों मारा ये मैं चाह कर भी पता नहीं कर पाया



मंदा- क्योनी सुनार भी शामिल था मेरी बर्बादी में, बड़े चौधरी के साथ उसने भी मेरी इज्जत लूटी थी .



मंदा के इस खुलासे ने हम सबको हिला कर रख दिया मैंने सोचा साला पहले ही मर गया वर्मैंना मैं उसे मार देता. देखा मंदा की आँखों से बेहिसाब आंसू बह रहे थे , एक प्रेतनी होकर भी ऐसा व्यवहार .वो मीता और रीना के पास गयी उनको अपने सीने से लगा लिया और दहाड़ मार कर रोने लगी. रोती ही रही . फिर वो बाबा के पास आई और अपना सर बाबा के पांवो में रख दिया . उसने गले से वो लाकेट उतरा और बाबा के हाथ में रख दिया. बाबा ने उसके सर पर हाथ रखा और बोले- मुक्त हो जाओ मंदा,मुझे भी इस बोझ से मुक्त करो . तुम जो जिन्दगी नहीं जी पायी इन बच्चो को जीने दो .

मंदा रीना और मीता के पास गयी और बोली- सदा इनके सानिध्य में रहना ,

मंदा के बदन में शोले भड़काने लगे और कुछ ही देर में वहां पर बस राख ही पड़ी थी . दोनों लडकिया भाग कर संध्या चाची के गले लग गयी . बाबा ने संध्या चाची को लडकियों के साथ घर जाने को कहा रह गए हम दोनों.

बाबा- कहानी खतम हुई.

मैं- दुनिया के लिए बाबा मेरे लिए नहीं .

बाबा- क्या मतलब है तेरा

मैं- मुझे वो बाते भी जाननी है जो अधूरी है

बाबा-क्या

मैं- मुझे अमृत कुण्ड में दिलचस्पी नहीं है , मैं ये जानना चाहता हूँ की मेरी माँ को किसने मारा. दूसरी बात मैं जानता हूँ की मेरी माँ ने रीना को अपने गर्भ में रखा था . आपने ये बात छिपा ली थी पर मैं समझ गया था .

बाबा- मीता और रीना की परवरिश ऐसे ही करनी थी .

मैं- मुझे मेरी माँ के कातिल से मतलब है मैं जानना चाहता हूँ की मेरी माँ कौन थी उसने किसने मारा

बाबा- सोलह साल से मैं उसके कातिल को तलाश कर रहा हूँ.

मैंने बाबा की आँखों में अपनी आँखे डाली और बोला- क्या आप सच कह रहे है .

बाबा ने मेरे सर पर अपना हाथ रख दिया .

मैं- ठीक है बस एक सवाल और ताई के साथ ताऊ ने किसको देखा था जो वो ताई से इतनी नफरत करने लगा.

बाबा- तुम्हारे दादा को .

मैं- मैंने भी यही सोचा था .

बाबा- रात बहुत भारी है हमें चलना चाहिए

मैं- अब तो मेरे साथ रहोगे न

बाबा- मैं हमेशा तुम्हारे साथ था हर पल तुम्हारे साथ .

मैं-जब्बर को लगता था की मीता मंदा की लड़की है इसलिए वो तलाश कर रहा था उसे

बाबा- जब्बर जाने

मैं-जब आप रूप बदल कर आये थे खेत में तो मैंने पहचान लिया था आपको . पर वो हांडी राख वाली कैसा इशारा था आपका मैं समझ नहीं पाया

बाबा- वो मेरा नहीं , मंदा के संकेत थे , बावड़ी वाली जगह ही थी जहाँ पर मंदा में प्रतिशोध की भावना आई थी, वो सन्देश था की शिवाले में से मंदा को आजाद किया जाये मंदा को लगा की वहां पर उसकी आत्मा का टुकड़ा था पर चूँकि वहां पर मीता तुम्हारे साथ लगातार थी तो मंदा समझ नहीं पाई.



मैं- मुझे मेरी माँ से मिलना है

बाबा- वो जा चुकी है

मैं- मैंने जिसे देखा था सपने में मेरी माँ ही थी वो , वो ही उसका चेहरा था मैं समझ गया हूँ

बाबा ने कुछ नहीं कहा बस मुझे घर ले आये सुबह जब मैं जागा तो देखा की बाबा हमेशा की तरह नहीं थे. मीता और रीना भी अपने घावो की मरहम पट्टी कर रही थी . अब चूँकि हम तीनो के रिश्ते अजीब से थे तो मुझे कुछ तो कहना ही था .

मैं- मेरी बात सुनो , हालात जो भी रहे हो सच ये है की हम तीनो एक ही डोर है

रीना- तुम्हे कुछ कहने की जरुरत नहीं हम दोनों इस बारे में फैसला कर चुकी है

मैं- क्या भला

वो दोनों कुछ नहीं बोली बस चुपचाप आकार मेरे सीने से लग गयी .धडकनों ने दिल का फैसला सुना दिया था मने उनको अपनी बाँहों में भर लिया. थोड़ी देर बाद मैं निचे गया चाची के पास

मैं- बस एक बात पूछनी है

चाची- क्या

,मैं- तुम अपने मांस का भोग किसे देती थी .

चाची- वो एक समझौता है

मैं- कैसा समझौता

चाची- तुम्हे मालूम ही है की तंत्र-मन्त्र में मेरी गहरी दिलचस्पी थी. मुझसे एक भूल हुई थी . तो महीने में एक बार मुझे वैसा करना पड़ता है

मैं- बाबा जानते है न इस बात को

चाची- उन्होंने की मेरी जान बचाई थी इस समझोते को करवाके

मैं- कैसा समझोता मैं फिर पूछता हूँ

चाची- यही की मेरे प्राण तभी सलामत रहेंगे जब मैं अपना मांस अर्पण करुँगी. चूँकि सृष्टी अपने नियमो से बंधी है तो मैंने ये मान लिया

मैं- तो उस रात तुम वहां क्या मांग रही थी .

चाची-कुछ बातो को राज़ ही रहने दो

मैं- रीना जब नहारविरो से लड़ रही थी तो वो अमृत कुण्ड को ही खोलना चाह रही थी न .

चाचीने एक गहरी साँस ली और बोली- मंदा को अमृत की चाह थी उसने सोचा होगा की उस से वो अपना शरीर पुनह प्राप्त कर लेगी और रीना के गले में लाकेट के रूप में मंदा की आत्मा का एक टुकड़ा था . तो वो रीना से वो काम करवा रही थी .

मैं- क्या तुम्हारी भी इच्छा थी अमृत-कुण्ड देखने की

चाची - नहीं क्योंकि मैंने जीवन के अंतिम सत्य को देख लिया है

उसके बाद मैंने चाची से और कुछ नहीं पूछा. कुछ दिन यूँ ही गुजर गए . मैंने जब्बर को सब बात बता दी. हमने मंदा के लिए पूजा की . दिन एस ही बीत रहे थे अपने वादे के अनुसार हर शाम बाबा मुझसे मिलने आते. हम डूबता सूरज को देखते हुए बाते करते. मीता और रीना के रूप में मेरे पास दुनिया की सबसे बेहतरीन दोस्त और प्रेमिकाए थी पर मुझे चैन नहीं था . ऐसे ही एक बेचैन रात में जब मैं पानी पीने के लिए उठा तो देखा की कम्बल ओढ़े बाबा कही जा रहे है तो मुझे शक सा हुआ

दबे पाँव मैं भी उनके पीछे पीछे हो लिया बाबा के कदम शिवाले पर जाकर थमे . वो ठीक उसी जगह पर थे जहाँ चाची ने अपने मांस का भोग दिया था जहाँ पर रीना ने नहारविरो को मारा था पर आज उस मैदान में खाली जमीन नहीं थी . वहां पर एक काला महल था . जो चाँद की रौशनी में चमक रहा था . महल के ठीक सामने एक पानी की बावड़ी थी जिसके पत्थर के किनारों पर पीठ किये कोई बैठी थी .....

“आ गये तुम ” बाबा की तरफ बिना देखे उसने कहा .

बाबा ने अपने हाथो में पहने चांदी के मोटे कड़ो को एक दुसरे से टकराया . उसने पलट कर बाबा को देखा .... चाँद की रौशनी में मैंने उसकी सूरत देखि ... और देखता रह गया .


“असंभव,,,,,,,,, ये नहीं हो सकता ” मेरे होंठो से बस इतना निकला और आसमान में चाँद को बादलो ने अपने आगोश में भर लिया .अँधेरे ने सब कुछ लील लिया..............
Behad shaandaar bemisaal kahani ka zaberdast lajawab END
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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#72

भरी दोपहर में ही मौसम बदलने लगा था , काले बादलो की घटा ने आसमान संग आँख-मिचोली खेलनी शुरू कर दी थी .ऐसा लगता था की रात घिर आई हो. ये घिरता अपने अन्दर आज न जाने किसे सामने वाला था . हवेली से बाहर आकर मैंने मौसम का हाल देख कर अपने दुखते सीने पर हाथ रख लिया. मैं जानता था की रीना कहाँ होगी . मैंने चाची की गाडी ली और सीधा शिवाले पर पहुँच गया .

वहां जाकर जो मेरी आँखों ने देखा , मैं जानता तो था की पृथ्वी ये गुस्ताखी करेगा पर आज ही करेगा ये नहीं सोचा था . पृथ्वी जैसे सपोले को मुझे बहुत पहले कुचल देना चाहिए था . मैंने देखा अपने लठैतो की आड़ में पृथ्वी ने रीना को अगवा कर लिया था. उसके चेहरे की वो हंसी मेरे कलेजे को अन्दर तक चीर गयी .

पृथ्वी- मुझे मालूम था तू जरुर आएगा. न जाने कैसा बंधन है इस से तेरा दर्द इसे होता है चीखता तू है . मैंने बहुत विचार किया सोचा फिर सोचा की इसके लिए तुझे अपनी जान देनी होगी

मैं- रीना के लिए एक तो क्या हजार जान कुर्बान है

पृथ्वी- क़ुरबानी तो तुझे देनी ही है पर अभी के अभी तूने मुझ अम्रृत कुण्ड को देखने का रहस्य नहीं बताया तो मैं रीना को मार दूंगा

मैं- किसका रहस्य , जरा दुबारा तो कहना

पृथ्वी की बात मेरे सर के ऊपर से गयी .

“हरामजादे , मजाक करता है मुझसे ” पृथ्वी ने खींच कर रीना को थप्पड़ मारा

“पृथ्वी , इस से पहले की की अनर्थ हो जाये , छोड़ दे रीना को वर्ना सौगंध है महादेव की मुझे तेरी लाश तक उठाने वाला कोई नहीं बचेगा ” मैंने फड़कती भुजाओ को ऊपर करते हुए कहा .

बीस तीस लठैत तुरंत मेरे सामने आ गए.

मैं- हट जाओ मेरे रस्ते से , आज मैं कुछ नहीं सोचूंगा. चाहे इस दुनिया में आग लग जाए . हटो बहनचोदो

मैंने एक लठैत के पैर पर लात मारी और उसकी लाठी छीन ली .और मारा मारी शुरू हो गयी .

“इस को आज जिन्दा नहीं छोड़ना है ” पृथ्वी चिल्लाया और उसने फिर से रीना को थप्पड़ मारा

पृथ्वी- खोल उस अमृत कुण्ड का दरवाजा हरामजादी .

इधर मैं उन लठैतो से पार पाने की कोशिश कर रहा था पर उनकी संख्या ज्यादा थी इस बार पृथ्वी ने पुरी योजना बनाई हुई थी . एक लठैत की लाठी मेरे सर पर पड़ी और कुछ पलो के लिए मेरे होश घबरा गए और यही पर वो मुझ पर हावी हो गए. लगातार पड़ती लाठिया मुझे मौका नहीं दे रही थी . सर से बहता खून मुझे पागल कर रहा था .

“मनीष ” ये मीता की आवाज थी जो यहाँ आन पहुंची थी .

मीता ने आव देखा न ताव और तुरंत ही उन लठैतो से भीड़ गयी . जैसे तैसे करके उसने मुझे उठाया तब तक संध्या चाची भी वहां पहुँच गयी .

“पृथ्वी ये क्या पागलपन है ” चाची ने गुस्से से कहा

पृथ्वी- ये पागलपन तुम्हे तब नहीं दिखा बुआ जब अर्जुन से मेरे पिता को मार दिया. जब इसने मेरे दोस्तों को मार दिया .

संध्या- उनको अपने कर्मो की सजा मिली . उनकी नियति में यही था .

पृथ्वी- क्या थे उनके कर्म, जिस पर हमारा दिल आया उसके साथ थोड़े मजे ले लिए तो क्या गलती हुई भला. ये तो हमारे शौक है

संध्या- हर किसी की इज्जत उतनी ही है जितना मेरी या तेरी माँ की है या हवेली की किसी और दूसरी औरत की है

पृथ्वी- तुम तो मुझे ये पाठ मत पढाओ बुआ , वो तुम ही थी जो दुश्मनों की गोद में जाकर बैठ गयी थी .

संध्या- अपनी औकात मत भूल पृथ्वी, तू भी मेरा ही बेटा है ये याद रख तू और कोशिश कर की मैं भी न भूल पाऊ इस बात को

पृथ्वी- हमें तो तुम उसी दिन ही भुला गयी थी बुआ, जिस दिन तुम दुस्मानो के घर गयी .

संध्या- तो ठीक है , अब किसी रिश्ते नाते की बात नहीं होगी. किसी नाते की कोई दुहाई नहीं दी जाएगी. जिस लड़की को तूने अगवा किया है , ये लड़का जो घायल है ये मेरी औलादे है और इनके लिए मैं किस हद से गुजर जाऊंगी तू सोच भी नहीं सकता. जब तूने अमृत कुण्ड के बारे में मालूम कर लिया है तो उस सच के बारे में भी मालूम कर लिया होता. अगर तेरी रगों में सच्चा खून होता तो तू ये घ्रणित कार्य कभी नहीं करता .

“मनीष मेरे बेटे, मैं तुझसे कह रही हूँ, इसी समय इस दुष्ट पृथ्वी का सर धड से अलग कर दे. ” चाची ने क्रोध से फुफकारते हुए कहा.

मीता ने तुरंत ही एक लठैत की गर्दन तोड़ दी . पर तभी “धांय ” गोली की जोरदार आवाज गूंजी और ऐसा लगा की किसी ने मेरे कंधे को उखाड़ कर फेंक दिया हो . क्या मालूम वो गोली मुझे छू कर गुजरी थी या फिर कंधे में धंस गयी थी . क्योंकि उसके बाद जो कुछ भी हुआ वो किसी जलजले से कम नहीं था .

“मनीष ...... ” ये रीना की वो चीख थी जिसने वहां मोजूद हर शक्श के कानो की चूले हिला दी.

“दद्दा ठाकुर ” रीना ने गहरी आँखों जो अब पूरी तरह से काली हो चुकी थी नफरत से दद्दा ठाकुर की तरफ देखा जो कंधे पर बन्दूक लिए हमारे बीच आ चूका था . पर वो नहीं जानता था की उसके कदम उसे मौत की दहलीज पर ले आये थे. रीना ने एक लात पृथ्वी की छाती पर मारी . हैरत के मारे पृथ्वी बस देखता रह गया और बिजली की सी तेजी से रीना ददा ठाकुर की तरफ बढ़ी और उसके हाथ को उखाड़ दिया.

“आईईईईईईईईईईइ ” दद्दा की चीखे शिवाले में गूंजने लगी . पर वो मरजानी नहीं रुकी. जब उसका मन भरा तो वहां मोजूद लठैतो को मैंने धोती में मूतते देखा. दादा ठाकुर की लाश के टुकड़े इधर उधर बिखरे हुए थे. उसके गर्दन को रीना ने अपने होंठो से लगाया और ताजे गर्म खून को किसी शरबत की तरफ पीने लगी.

“मेरी जान है वो , मेरे होते हुए कैसे मार देगा तू उसे, ” रीना ने ददा की लाश से सवाल किया वो तमाम लठैत तुरंत ही वहां से भाग लिए. रह गए मैं रीना, मीता , चाची और पृथ्वी.

अचानक से बाज़ी पलट गयी थी . रीना ने अपने क्रोध में सब तहस नहस कर दिया था . सामने बाप की लाश पड़ी थी पर चाची के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी .


“मैं कभी नहीं चाहती थी ये दिन आये पृथ्वी , मैंने जितना चाह इस रण को टालना चाहा . मैंने तुझे कदम कदम पर माफ़ किया पर अब और नहीं ” इतना कह कर रीना जैसे ही पृथ्वी की तरफ बढ़ी, किसी ने उसका रास्ता रोक लिया और अगले ही पल रीना हवा में उड़ते हुए शिवाले की टूटी दिवार पर जा गिरी.....
Wah bohot Khoob atayant hairat angej.
Ye rina to kuch or hi bala nikli bhai. Or ye beech me kon Aagaya jisne rina ko utha ke shivalay ki diwar per fek diya
 
Last edited:

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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#76



संध्या- मीता तुम वो तस्वीर देख कर चौंक गयी क्योंकि उसमे तुमने खुद को देखा जबकि वो मैं थी इसका कारण ये था की मैंने तुमको अपने गर्भ में पोषित किया था .

बाबा- पर समस्या अभी और थी रीना को कैसे बचाया जाये और तब मैंने किसी ऐसे को तलाश किया और ये काम भी हो गया पर मंदा के अवचेतन मन में मेरे प्रति नफरत बढती जा रही थी ये बात तांत्रिक ने मुझे बता दी थी . पर इस से पहले की हम कुछ उपाय कर पाते मंदा ने प्राण त्याग दिए चूँकि वो प्रतिशोध से पोषित थी तो उसके कहर को रोकने के लिए मैंने किसी खास से मदद मांगी और मंदा की रूह को शिवाले में कैद कर दिया. वो हीरा और धागा चाबी थे तुम्हारी यादो के, तुम्हारे आजाद होने का तुम्हारी आत्मा कमजोर रहे इसलिए हमने उनके तीन टुकड़े किया ताकि तुम शांत रहो पर नसीब देखो मनीष के हाथ वो धागे और वो हीरा लग गया. मेरी चेतावनी को नजरंदाज करके इसने वो लाकेट बनाया दरअसल इसने आत्मा के दो टुकडो को एक कर दिया.ऐसा होते ही मंदा की बेचैनी बढ़ने लगी वो बस आजाद होना चाहती थी . आत्मा के प्यासे टुकडो ने गाँव के लोगो का खून पीना शुरू कर दिया . ये कहानी मुझे यहाँ तक मालूम है पर तुमने सुनार को क्यों मारा ये मैं चाह कर भी पता नहीं कर पाया



मंदा- क्योनी सुनार भी शामिल था मेरी बर्बादी में, बड़े चौधरी के साथ उसने भी मेरी इज्जत लूटी थी .



मंदा के इस खुलासे ने हम सबको हिला कर रख दिया मैंने सोचा साला पहले ही मर गया वर्मैंना मैं उसे मार देता. देखा मंदा की आँखों से बेहिसाब आंसू बह रहे थे , एक प्रेतनी होकर भी ऐसा व्यवहार .वो मीता और रीना के पास गयी उनको अपने सीने से लगा लिया और दहाड़ मार कर रोने लगी. रोती ही रही . फिर वो बाबा के पास आई और अपना सर बाबा के पांवो में रख दिया . उसने गले से वो लाकेट उतरा और बाबा के हाथ में रख दिया. बाबा ने उसके सर पर हाथ रखा और बोले- मुक्त हो जाओ मंदा,मुझे भी इस बोझ से मुक्त करो . तुम जो जिन्दगी नहीं जी पायी इन बच्चो को जीने दो .

मंदा रीना और मीता के पास गयी और बोली- सदा इनके सानिध्य में रहना ,

मंदा के बदन में शोले भड़काने लगे और कुछ ही देर में वहां पर बस राख ही पड़ी थी . दोनों लडकिया भाग कर संध्या चाची के गले लग गयी . बाबा ने संध्या चाची को लडकियों के साथ घर जाने को कहा रह गए हम दोनों.

बाबा- कहानी खतम हुई.

मैं- दुनिया के लिए बाबा मेरे लिए नहीं .

बाबा- क्या मतलब है तेरा

मैं- मुझे वो बाते भी जाननी है जो अधूरी है

बाबा-क्या

मैं- मुझे अमृत कुण्ड में दिलचस्पी नहीं है , मैं ये जानना चाहता हूँ की मेरी माँ को किसने मारा. दूसरी बात मैं जानता हूँ की मेरी माँ ने रीना को अपने गर्भ में रखा था . आपने ये बात छिपा ली थी पर मैं समझ गया था .

बाबा- मीता और रीना की परवरिश ऐसे ही करनी थी .

मैं- मुझे मेरी माँ के कातिल से मतलब है मैं जानना चाहता हूँ की मेरी माँ कौन थी उसने किसने मारा

बाबा- सोलह साल से मैं उसके कातिल को तलाश कर रहा हूँ.

मैंने बाबा की आँखों में अपनी आँखे डाली और बोला- क्या आप सच कह रहे है .

बाबा ने मेरे सर पर अपना हाथ रख दिया .

मैं- ठीक है बस एक सवाल और ताई के साथ ताऊ ने किसको देखा था जो वो ताई से इतनी नफरत करने लगा.

बाबा- तुम्हारे दादा को .

मैं- मैंने भी यही सोचा था .

बाबा- रात बहुत भारी है हमें चलना चाहिए

मैं- अब तो मेरे साथ रहोगे न

बाबा- मैं हमेशा तुम्हारे साथ था हर पल तुम्हारे साथ .

मैं-जब्बर को लगता था की मीता मंदा की लड़की है इसलिए वो तलाश कर रहा था उसे

बाबा- जब्बर जाने

मैं-जब आप रूप बदल कर आये थे खेत में तो मैंने पहचान लिया था आपको . पर वो हांडी राख वाली कैसा इशारा था आपका मैं समझ नहीं पाया

बाबा- वो मेरा नहीं , मंदा के संकेत थे , बावड़ी वाली जगह ही थी जहाँ पर मंदा में प्रतिशोध की भावना आई थी, वो सन्देश था की शिवाले में से मंदा को आजाद किया जाये मंदा को लगा की वहां पर उसकी आत्मा का टुकड़ा था पर चूँकि वहां पर मीता तुम्हारे साथ लगातार थी तो मंदा समझ नहीं पाई.



मैं- मुझे मेरी माँ से मिलना है

बाबा- वो जा चुकी है

मैं- मैंने जिसे देखा था सपने में मेरी माँ ही थी वो , वो ही उसका चेहरा था मैं समझ गया हूँ

बाबा ने कुछ नहीं कहा बस मुझे घर ले आये सुबह जब मैं जागा तो देखा की बाबा हमेशा की तरह नहीं थे. मीता और रीना भी अपने घावो की मरहम पट्टी कर रही थी . अब चूँकि हम तीनो के रिश्ते अजीब से थे तो मुझे कुछ तो कहना ही था .

मैं- मेरी बात सुनो , हालात जो भी रहे हो सच ये है की हम तीनो एक ही डोर है

रीना- तुम्हे कुछ कहने की जरुरत नहीं हम दोनों इस बारे में फैसला कर चुकी है

मैं- क्या भला

वो दोनों कुछ नहीं बोली बस चुपचाप आकार मेरे सीने से लग गयी .धडकनों ने दिल का फैसला सुना दिया था मने उनको अपनी बाँहों में भर लिया. थोड़ी देर बाद मैं निचे गया चाची के पास

मैं- बस एक बात पूछनी है

चाची- क्या

,मैं- तुम अपने मांस का भोग किसे देती थी .

चाची- वो एक समझौता है

मैं- कैसा समझौता

चाची- तुम्हे मालूम ही है की तंत्र-मन्त्र में मेरी गहरी दिलचस्पी थी. मुझसे एक भूल हुई थी . तो महीने में एक बार मुझे वैसा करना पड़ता है

मैं- बाबा जानते है न इस बात को

चाची- उन्होंने की मेरी जान बचाई थी इस समझोते को करवाके

मैं- कैसा समझोता मैं फिर पूछता हूँ

चाची- यही की मेरे प्राण तभी सलामत रहेंगे जब मैं अपना मांस अर्पण करुँगी. चूँकि सृष्टी अपने नियमो से बंधी है तो मैंने ये मान लिया

मैं- तो उस रात तुम वहां क्या मांग रही थी .

चाची-कुछ बातो को राज़ ही रहने दो

मैं- रीना जब नहारविरो से लड़ रही थी तो वो अमृत कुण्ड को ही खोलना चाह रही थी न .

चाचीने एक गहरी साँस ली और बोली- मंदा को अमृत की चाह थी उसने सोचा होगा की उस से वो अपना शरीर पुनह प्राप्त कर लेगी और रीना के गले में लाकेट के रूप में मंदा की आत्मा का एक टुकड़ा था . तो वो रीना से वो काम करवा रही थी .

मैं- क्या तुम्हारी भी इच्छा थी अमृत-कुण्ड देखने की

चाची - नहीं क्योंकि मैंने जीवन के अंतिम सत्य को देख लिया है

उसके बाद मैंने चाची से और कुछ नहीं पूछा. कुछ दिन यूँ ही गुजर गए . मैंने जब्बर को सब बात बता दी. हमने मंदा के लिए पूजा की . दिन एस ही बीत रहे थे अपने वादे के अनुसार हर शाम बाबा मुझसे मिलने आते. हम डूबता सूरज को देखते हुए बाते करते. मीता और रीना के रूप में मेरे पास दुनिया की सबसे बेहतरीन दोस्त और प्रेमिकाए थी पर मुझे चैन नहीं था . ऐसे ही एक बेचैन रात में जब मैं पानी पीने के लिए उठा तो देखा की कम्बल ओढ़े बाबा कही जा रहे है तो मुझे शक सा हुआ

दबे पाँव मैं भी उनके पीछे पीछे हो लिया बाबा के कदम शिवाले पर जाकर थमे . वो ठीक उसी जगह पर थे जहाँ चाची ने अपने मांस का भोग दिया था जहाँ पर रीना ने नहारविरो को मारा था पर आज उस मैदान में खाली जमीन नहीं थी . वहां पर एक काला महल था . जो चाँद की रौशनी में चमक रहा था . महल के ठीक सामने एक पानी की बावड़ी थी जिसके पत्थर के किनारों पर पीठ किये कोई बैठी थी .....

“आ गये तुम ” बाबा की तरफ बिना देखे उसने कहा .

बाबा ने अपने हाथो में पहने चांदी के मोटे कड़ो को एक दुसरे से टकराया . उसने पलट कर बाबा को देखा .... चाँद की रौशनी में मैंने उसकी सूरत देखि ... और देखता रह गया .


“असंभव,,,,,,,,, ये नहीं हो सकता ” मेरे होंठो से बस इतना निकला और आसमान में चाँद को बादलो ने अपने आगोश में भर लिया .अँधेरे ने सब कुछ लील लिया..............
Maine kaha tha na kahani khatam kar doge aap magar koi raaj nahi khologe ....

Bs sakta diye ho is story ko isme koi raaj thodi khula h bhai ....

Sahi kahta hu aapki sabse bekar story h ye....

Aapki purani stories hi achhi thi...
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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जिस बाज़ी को मैंने अपने हिस्से में पलटते हुए देखा था रीना पर हुए इस हमले ने पल भर में ही हम सबको अहसास करवा दिया की ये बिसात इतनी जल्दी ख़तम नहीं होने वाली. वो काला साया जिसने उस दिन जब्बर की पत्नी को मारा था , जिसने मेरी छाती पर हाथ रख कर मेरी नसों से लहू निचोड़ने की कोशिश की थी अचानक से उसने शिवाले में आकर रीना को दूर पटक दिया था .

आसमान में घुमड़ती काली घटाओ ने रोना शुरू कर दिया था ,आकाश जैसे फटने लगा था . बारिश शुरू हो गयी थी . वो काला साया लहराते हुए मेरी तरफ बढ़ा. मेरे दिमाग ने जैसे काम करना बंद कर दिया था . मैंने उन गहरी काली आँखों के अँधेरे को अपने दिल में उतरते हुए महसूस किया. इस से पहले की वो कुछ अनिष्ट कर देती चाची अचानक से हमारे बीच आ गयी .

“दूर हट मेरे बेटे से ” चाची ने उस साए को जैसे धक्का सा दिया . वो साया फुफकार उठा.

“बीच में मत आ संध्या ” साए ने पहली बार कुछ कहा और हम समझ गए की ये कोई औरत ही थी .

चाची- तो फिर चली जा वापिस

साया- जाने के लिए नहीं लौटी मैं . इस लड़के का लहू चख लिया मैंने अद्भुद है , इसका स्वाद , इसका स्वाद जाना पहचाना है .भा गया है ये इसे लेकर जाउंगी मैं

“मनीष की आन बन कर मैं खड़ी हूँ , देखती हूँ तुझे भी और तेरे जोर को भी ” रीना ने मेरे पास आकार कहा.

रीना ने अपनी आँखों से मुझे आश्वस्त किया .

साया- तू दो कौड़ी की छोकरी तू , तेरी ये हिमाकत की तू मेरे सामने खड़ी हो . पहले मैं तेरे रक्त से ही अपनी तृष्णा शांत करुँगी

बरसती घटाओ के बीच उस टूटे शिवाले में ये जो भी हो रहा था शुक्र है की उसे देखने के लिए कोई कमजोर दिल का प्राणी वहां नहीं था . उस साए ने अपनी जगह खड़े खड़े ही रीना की बाहं मरोड़ी . पर रीना ने भी प्रतिकार किया और उस साए को सामने पत्थरों के फर्श पर पटक दिया. साया जोर से चिंघाड़ करने लगा. उसकी आवाज जैसे धडकनों को खोखला कर रही थी .

पर वो साया बलशाली था , रीना के पीछे सरकते कदम ये बता रहे थे की वो उस से पार नहीं पा पायेगी की तभी मीता ने रीना के हाथ को थाम लिया और आँखों से इशारा किया . दोनों में न जाने क्या बात हुई उन्होंने क्या समझा पर दोनों के होंठ कुछ बुदबुदाने लगे और फिर एक तेज रौशनी का धमाका हुआ और वो साया शिवाले की दिवार से जा टकराया . उसकी चीख फिर से गूंजी.

पर फुर्ती से सँभालते हुए उसने मलबे में पड़ी कड़ी के टुकड़े को उठा कर मीता पर दे मारा . नुकीला टुकड़ा मीता की जांघ को चीर गया वो एक तरफ गिर पड़ी. चाची मीता को सँभालने के उसकी तरफ दौड़ी और उसी पल वो साया रीना के पास पहुंचा गया . उसने रीना के गले को ऐसे पकड़ा की जैसे उसका गला घोंट रही हो . पर फिर मैंने देखा की उसने रीना के गले से वो हीरे वाला धागा निकाल लिया.



“हा हा हा , तभी मैं सोचु की ताकत क्यों मुझे जानी पहचानी लग रही है , मुर्ख लड़की तो ये था तेरी शक्ति का राज ” उस साए ने हँसते हुए वो लाकेट अपने गले में पहन लिया . कुछ देर के लिए सब कुछ थम सा गया . ऐसी ख़ामोशी छा गयी की जरा सी आवाज भी दिल का दौरा ला दे. और फिर वो चीख पड़ी ..

“अर्जुन, अर्जुन,,,,,,,,,,, ” इतनी जोर डर चीख थी वो की मैंने अपने कान से खून बहते हुए महसूस किया. वो जैसे पागल ही हो गई थी . कभी इधर भागे कभी उधर भागे उसकी आँखे और अँधेरी होने लगी . इतनी अँधेरी की जैसे वो सब कुछ निगल जायेगी. उसने रीना के गले को पकड लिया और उसे मारने लगी. रीना की चीखो ने मुझे पागल ही कर दिया था . मैं गुस्से से उसकी तरफ बढ़ा पर बीच में मीता आ गयी उसने एक सुनहरी डोर निकाली और उस साये को बाँधने की कोशिश करने लगी. वैसा ही चाची ने किया.

साए ने फुफकारते हुए कहा- खेल खेलना चाहती हो तुम . चलो ये खेल ही सही .

वो अकेली थी तीन त्रिदेवियो के सामने , तभी मेरी नजर पृथ्वी पर पड़ी जिसे होश आ गया था और वो दद्दा ठाकुर की बन्दूक उठा कर रीना पर निशाना लगा ही रहा था की मैंने एक बड़ा सा पत्थर उठा कर उसके हाथो पर दे मारा. बन्दूक उसके हाथो से गिर गयी और मैंने उसे धर लिया. पृथ्वी से गुथ्तम गुत्था होते हुए मैंने देखा की . शिवाले में वैसा ही धुआ उठा जैसा की तब था जब रीना ने अश्वमानव मारे थे .

पृथ्वी- आज या तो तू नहीं या मैं नहीं .

मैं- मुर्ख, तुझे अंदाजा भी नहीं है की यहाँ पर क्या हो रहा है

पृथ्वी- तेरी वजह से मेरे दादा मारे गए . तुझे नहीं छोडूंगा.

पृथ्वी ने मुझे लात मारी .मेरा ध्यान पृथ्वी से ज्यादा रीना , मीता की तरफ था इसी का फायदा उठाते हुए पृथ्वी ने मुझे दिवार से लगा दिया जिस पर गडी कील मेरे सीने में धंस गयी . मैं दर्द से दोहरा हो गया . वो लगातार मुझे दिवार की तरफ धकेल रहा था ताकि कील और अन्दर घुस जाए. प्रतिकार करते हुए मैंने अपना पैर पीछे किया और उसके पंजे पर मारा जैसे ही वो लडखडाया मैंने उसे धर लिया.

“बहुत फडफडा लिया तू हरामजादे, तेरे पापो को मैंने बहुत कोशिश की माफ़ करने की ये जानते हुए भी की तूने मेरी जान पर हाथ डाला मैं तुझे मारना नहीं चाहता था पर तेरी तक़दीर में ये ही लिखा था ” कहते हुए मैंने पृथ्वी की गर्दन मरोड़ दी. वो चीख भी नहीं पाया. टूटी सहतीर सा लहरा कर गिरा वो .

तभी रौशनी का एक धमाका हुआ और तीन साए शिवाले में इधर उधर जाकर गिरे, रीना मीता और चाची खून से लथपथ धरती पर पड़े अपनी सांसो की डोर को थामने की कोशिश कर रही थी . वो साया मेरी तरफ बढ़ा और मुझे घसीट लिया.

उसने अपने चेहरे को मेरे सीने की तरफ झुकाया और मैंने पहली बार उस को देखा. वो खूबसूरत चेहरा . इस से पहले की वो अपने होंठ मेरे बदन पर लगा कर मेरा खून पी पाती. .उस आवाज ने जैसे मेरे बदन में शक्ति का संचार कर दिया .

“बस मंदा बस बहुत हुआ ”


उस साए ने पलट कर देखा उसके सामने अर्जुन सिंह खड़ा था .............
Aapne hamare piche tin review ka jawab nahi diya koi baat nahi hum apna kaam karege kahani dheere dheere bahot hi romachak hote ja rahi hai jaisi hi atim paddav ki or bad rahi hai, alukik ghatnaye ke saath saath ye saaya bhi sab par bhari pad raha hai dekhte hai aage kya hota hai​
 
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