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Update 33
सोनू तुरंत ही बाहर मैदान में आ गई और अपनी माँ व बाकी औरतो के पास जाकर फूट-फूटकर रोने लगी। माधवी भी उसके लिए बेहद चिंतित थी और जब सोनू को अंदर ले जाया गया था तो वह काँस्टेबल्स से लगातार उससे मिलने की विनती करती रही। बाहर आने के बाद सोनू ने मशीन और उससे होनी वाली तकलीफ के बारे में उन्हें बताया और रोते हुए माधवी से कहने लगी -
“आई, मैं वहाँ दोबारा नही जाना चाहती। प्लीज आई, तुम जेलर मैडम से बात करो ना। अभी मुझे दूध नही आता तो मेरी क्या गलती है आई।”
‘हाँ बाड़ा, तू टेंशन मत ले। मैं बात करूँगी ना मैडम से। चल तू अभी सेल में जा और कपड़े ले के आ। हम यही इंतजार करते है तेरा।’ - माधवी ने उसे दिलासा देते हुए कहा।
“बबिता आँटी, आप साथ चलिए ना। मुझे बहुत डर लग रहा है।”
‘हाँ सोनू। मैं चलती हूँ साथ। चलो।’
बबिता और सोनू दोनो अपनी सेल में चली आई और बाकी सभी बाहर उनका इंतजार करने लगी। चूँकि जेल में किसी भी कैदी को अपनी सेल व बैरक के अलावा किसी अन्य सेल व बैरक में जाने की बिल्कुल भी इजाजत नही थी इसलिए माधवी या उनमे से कोई भी सोनू के साथ उसकी सेल में नही जा सकती थी। कुछ ही देर में वे दोनों अपने कपड़े व साबुन लेकर बाहर आ गई और फिर वे सातो नहाने के लिए बाथ एरिया में चली गई।
सज़ायाफ्ता कैदियों के तौर पर जेल में उनका पहला दिन बेहद मुश्किल व बाकी दिनों से काफी अलग रहा। अब वे लोग दिनचर्या के कार्यो के बाद खाली नही रह सकती थी और उन्हें काम करना अनिवार्य था। पहले दिन से ही जानवरो की तरह उनका दूध निकाला जाने लगा और उन्हें जेल के कपड़ो के अलावा अन्य कपड़े पहनने की भी इजाजत नही थी। जेल की चारदीवारी ही अब उनका घर बन चुकी थी और वहाँ से बाहर निकलना उनके लिए लगभग नामुमकिन था। खुली हवा में साँस ना ले पाने की आजादी और कैदी होने के एहसास के साथ जीवन गुजारना उन सातो के लिए नासूर बन चुका था। भला कौन सी औरत ऐसा जीवन जीना चाहेगी जहाँ किसी तरह की कोई आजादी ना हो। जहाँ ना तो परिवार साथ हो और ना ही किसी अपने का सहारा।
उन सातो का जीवन पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था। जेल में जीवन का कोई उद्देश्य ही कहाँ समझ आता हैं। रोजाना एक ऐसी दिनचर्या उबाऊ सी लगने लगती हैं। कैदियों को कभी-कभी तो यकीन ही नही होता कि वे लोग भी कभी उस आजाद दुनिया का हिस्सा थे जहाँ जाने की लालसा हर वक़्त उनके मन मे बनी रहती हैं। जेल में हर पल उन्हें एहसास दिलाया जाता है कि बाहर की दुनिया उनके लिए केवल एक सपना मात्र हैं जहाँ जाना अब उनके लिए संभव नही हैं। बबिता और बाकी औरते आम औरतो की तरह जिंदगी जीना चाहती थी। पहले की तरह आजाद रहना चाहती थी। अच्छे कपड़े और गहने पहनना चाहती थी। बाहर घूमना चाहती थी। अपने घर पर अपने परिवार के साथ रहना चाहती थी। मगर अब यह मुमकिन नही था। अब वे लोग सज़ायाफ्ता कैदी थी और जेल की चारदीवारी ही उनकी दुनिया थी।
अदालत ने अपने फैसले में इस बात का विशेष ज़िक्र किया कि उम्रकैद की सजा का अर्थ चौदह अथवा बीस वर्ष का कारावास नही बल्कि आरोपी का बचा शेष जीवन जेल में बिताने से है। इस बात से यह तो साफ हो गया था कि उन सातो को मरते दम तक जेल में ही रहना है। हालाँकि अदालत ने यह भी कहा कि चौदह वर्षो की सजा भुगतने के बाद सातो आरोपी महिलाएँ पैरोल की पात्र हो जाएगी जबकि बीस वर्ष की जेल काटने के बाद उनके बर्ताव और भविष्य में अपराध न करने की प्रवृत्ति के आधार पर उन्हें रिहा भी किया जा सकेगा।
सजा के तौर पर जेल में बिताये जाने वाले अगले बीस साल उनके भावी जीवन की दशा और दिशा दोनो तय करने वाले थे। बीस साल बाद उन सातो में से कुछ औरते या तो बूढ़ी हो चुकी होगी या अपनी उम्र की मध्यवस्था में पहुँच जाएगी। जैसे बबिता की उम्र वर्तमान में 35 साल की है और वह जेल से रिहा होने के समय 55 साल की हो जाएगी। इसी तरह अंजली 36 साल से 56 साल की उम्र में पहुँच जाएगी। दया 46 वर्ष की उम्र से 66 वर्ष, रोशन 43 वर्ष से 63 वर्ष, कोमल 47 वर्ष से 67 वर्ष तथा माधवी 48 वर्ष से 68 वर्ष की हो जाएगी। इन सबके अलावा उम्र में सबसे छोटी सोनू की आयु 22 साल से 42 साल की हो जाएगी और रिहाई के समय वह एक कॉलेज जाने वाली लड़की से एक परिपक्व महिला बन चुकी होगी।
खैर, उनका पहला दिन तो जैसे-तैसे गुजर गया लेकिन शाम को सेलो में बंद किये जाने के बाद असली मुसीबत उनका इंतजार कर रही थी। कैदी औरतो को सीनियरों की प्रताड़ना सहने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार रखना पड़ता था क्योंकि एक बार सेलो में बंद किये जाने के बाद रात भर बाहर निकल पाने का कोई चारा ही नही होता था। शाम को अपनी-अपनी सेलो में जाने के बाद उन सातो की भी रैगिंग शुरू हो गई।
उसी रात लगभग आठ बजे के आसपास अलग-अलग वार्डो से कुछ कैदी औरतो व लड़कियों को बाहर ले जाया जाने लगा। जिन कैदियों को बाहर ले जाया जा रहा था, उनमे कम उम्र की जवान लड़कियों से लेकर बूढ़ी औरते भी शामिल थी। उन लोगो को उस रात सेक्स के लिए भेजा जा रहा था। किसी को अमीरो के पास तो किसी को नेताओ के पास। किसी को पुरूष जेल के जेलर के लिए तो किसी को पुरुष जेल में बंद कैदियों की प्यास बुझाने के लिए। हालाँकि तीन महीने जेल में बिताने के बाद भी उन सातो को इस बारे में बिल्कुल भी जानकारी नही थी और उस रात भी वे लोग बिल्कुल नही समझ पाई कि उन औरतो को बाहर क्यूँ ले जाया जा रहा है।
खैर, काफी रात तक सीनियर औरते उन सातो की रैगिंग करती रही और लाइट बंद होने के बाद भी उनके साथ सेक्स का दौर चलता रहा। वे सातो अपनी-अपनी सेल की सीनियरों के लिए सेक्स के उस खिलौनों की तरह थी, जिनको वे लोग जब चाहे अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल कर सकती थी।
जेल में उनके कुछ और दिन इसी तरह गुजर गए। रोजाना एक जैसी दिनचर्या थी और सीमित जगह पर सीमित साधनों के साथ जीवन जीने की मजबूरी। रोज सीनियरों की रैगिंग झेलनी पड़ती, मार खानी पड़ती, मालिश करनी पड़ती, उनकी सेक्स की इच्छा की पूर्ति करनी पड़ती, रोज अपना दूध देना पड़ता और अनेको प्रताड़नाएँ सहनी पड़ती। इसी बीच सोनू को पढ़ाई के लिए पुस्तके भी मुहैया करवाई गई ताकि वह अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर सके। हालाँकि जेल में उसे पढ़ने के लिए बहुत ज्यादा समय नही मिल लाता था लेकिन फिर भी वह पढ़ाई करने की पूरी कोशिश करती थी।
जेल में उनके साथ नौकरानियों व गुलामो की तरह बर्ताव किया जाता और उनसे कई ऐसे काम करवाये जाते जो उनके जैसी सभ्य और पढ़ी-लिखी महिलाओ के लिए बहुत ही शर्मिंदगी भरे होते थे। मसलन, शौचालय व बाथरूम की सफाई, नालियों की सफाई और इस तरह के कई ऐसे गंदे काम थे जो उन्हें करने पड़ते थे। इनके अतिरिक्त जेल के अधिकारियों के क्वार्टर के सारे काम भी कैदियों से ही करवाये जाते थे।
उन सातो का जीवन पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था। जेल में जीवन का कोई उद्देश्य ही कहाँ समझ आता हैं। रोजाना एक ऐसी दिनचर्या उबाऊ सी लगने लगती हैं। कैदियों को कभी-कभी तो यकीन ही नही होता कि वे लोग भी कभी उस आजाद दुनिया का हिस्सा थे जहाँ जाने की लालसा हर वक़्त उनके मन मे बनी रहती हैं। जेल में हर पल उन्हें एहसास दिलाया जाता है कि बाहर की दुनिया उनके लिए केवल एक सपना मात्र हैं जहाँ जाना अब उनके लिए संभव नही हैं। बबिता और बाकी औरते आम औरतो की तरह जिंदगी जीना चाहती थी। पहले की तरह आजाद रहना चाहती थी। अच्छे कपड़े और गहने पहनना चाहती थी। बाहर घूमना चाहती थी। अपने घर पर अपने परिवार के साथ रहना चाहती थी। मगर अब यह मुमकिन नही था। अब वे लोग सज़ायाफ्ता कैदी थी और जेल की चारदीवारी ही उनकी दुनिया थी।
अदालत ने अपने फैसले में इस बात का विशेष ज़िक्र किया कि उम्रकैद की सजा का अर्थ चौदह अथवा बीस वर्ष का कारावास नही बल्कि आरोपी का बचा शेष जीवन जेल में बिताने से है। इस बात से यह तो साफ हो गया था कि उन सातो को मरते दम तक जेल में ही रहना है। हालाँकि अदालत ने यह भी कहा कि चौदह वर्षो की सजा भुगतने के बाद सातो आरोपी महिलाएँ पैरोल की पात्र हो जाएगी जबकि बीस वर्ष की जेल काटने के बाद उनके बर्ताव और भविष्य में अपराध न करने की प्रवृत्ति के आधार पर उन्हें रिहा भी किया जा सकेगा।
सजा के तौर पर जेल में बिताये जाने वाले अगले बीस साल उनके भावी जीवन की दशा और दिशा दोनो तय करने वाले थे। बीस साल बाद उन सातो में से कुछ औरते या तो बूढ़ी हो चुकी होगी या अपनी उम्र की मध्यवस्था में पहुँच जाएगी। जैसे बबिता की उम्र वर्तमान में 35 साल की है और वह जेल से रिहा होने के समय 55 साल की हो जाएगी। इसी तरह अंजली 36 साल से 56 साल की उम्र में पहुँच जाएगी। दया 46 वर्ष की उम्र से 66 वर्ष, रोशन 43 वर्ष से 63 वर्ष, कोमल 47 वर्ष से 67 वर्ष तथा माधवी 48 वर्ष से 68 वर्ष की हो जाएगी। इन सबके अलावा उम्र में सबसे छोटी सोनू की आयु 22 साल से 42 साल की हो जाएगी और रिहाई के समय वह एक कॉलेज जाने वाली लड़की से एक परिपक्व महिला बन चुकी होगी।
खैर, उनका पहला दिन तो जैसे-तैसे गुजर गया लेकिन शाम को सेलो में बंद किये जाने के बाद असली मुसीबत उनका इंतजार कर रही थी। कैदी औरतो को सीनियरों की प्रताड़ना सहने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार रखना पड़ता था क्योंकि एक बार सेलो में बंद किये जाने के बाद रात भर बाहर निकल पाने का कोई चारा ही नही होता था। शाम को अपनी-अपनी सेलो में जाने के बाद उन सातो की भी रैगिंग शुरू हो गई।
उसी रात लगभग आठ बजे के आसपास अलग-अलग वार्डो से कुछ कैदी औरतो व लड़कियों को बाहर ले जाया जाने लगा। जिन कैदियों को बाहर ले जाया जा रहा था, उनमे कम उम्र की जवान लड़कियों से लेकर बूढ़ी औरते भी शामिल थी। उन लोगो को उस रात सेक्स के लिए भेजा जा रहा था। किसी को अमीरो के पास तो किसी को नेताओ के पास। किसी को पुरूष जेल के जेलर के लिए तो किसी को पुरुष जेल में बंद कैदियों की प्यास बुझाने के लिए। हालाँकि तीन महीने जेल में बिताने के बाद भी उन सातो को इस बारे में बिल्कुल भी जानकारी नही थी और उस रात भी वे लोग बिल्कुल नही समझ पाई कि उन औरतो को बाहर क्यूँ ले जाया जा रहा है।
खैर, काफी रात तक सीनियर औरते उन सातो की रैगिंग करती रही और लाइट बंद होने के बाद भी उनके साथ सेक्स का दौर चलता रहा। वे सातो अपनी-अपनी सेल की सीनियरों के लिए सेक्स के उस खिलौनों की तरह थी, जिनको वे लोग जब चाहे अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल कर सकती थी।
जेल में उनके कुछ और दिन इसी तरह गुजर गए। रोजाना एक जैसी दिनचर्या थी और सीमित जगह पर सीमित साधनों के साथ जीवन जीने की मजबूरी। रोज सीनियरों की रैगिंग झेलनी पड़ती, मार खानी पड़ती, मालिश करनी पड़ती, उनकी सेक्स की इच्छा की पूर्ति करनी पड़ती, रोज अपना दूध देना पड़ता और अनेको प्रताड़नाएँ सहनी पड़ती। इसी बीच सोनू को पढ़ाई के लिए पुस्तके भी मुहैया करवाई गई ताकि वह अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर सके। हालाँकि जेल में उसे पढ़ने के लिए बहुत ज्यादा समय नही मिल लाता था लेकिन फिर भी वह पढ़ाई करने की पूरी कोशिश करती थी।
जेल में उनके साथ नौकरानियों व गुलामो की तरह बर्ताव किया जाता और उनसे कई ऐसे काम करवाये जाते जो उनके जैसी सभ्य और पढ़ी-लिखी महिलाओ के लिए बहुत ही शर्मिंदगी भरे होते थे। मसलन, शौचालय व बाथरूम की सफाई, नालियों की सफाई और इस तरह के कई ऐसे गंदे काम थे जो उन्हें करने पड़ते थे। इनके अतिरिक्त जेल के अधिकारियों के क्वार्टर के सारे काम भी कैदियों से ही करवाये जाते थे।
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