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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

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Update 33

सोनू तुरंत ही बाहर मैदान में आ गई और अपनी माँ व बाकी औरतो के पास जाकर फूट-फूटकर रोने लगी। माधवी भी उसके लिए बेहद चिंतित थी और जब सोनू को अंदर ले जाया गया था तो वह काँस्टेबल्स से लगातार उससे मिलने की विनती करती रही। बाहर आने के बाद सोनू ने मशीन और उससे होनी वाली तकलीफ के बारे में उन्हें बताया और रोते हुए माधवी से कहने लगी -

“आई, मैं वहाँ दोबारा नही जाना चाहती। प्लीज आई, तुम जेलर मैडम से बात करो ना। अभी मुझे दूध नही आता तो मेरी क्या गलती है आई।”

‘हाँ बाड़ा, तू टेंशन मत ले। मैं बात करूँगी ना मैडम से। चल तू अभी सेल में जा और कपड़े ले के आ। हम यही इंतजार करते है तेरा।’ - माधवी ने उसे दिलासा देते हुए कहा।

“बबिता आँटी, आप साथ चलिए ना। मुझे बहुत डर लग रहा है।”

‘हाँ सोनू। मैं चलती हूँ साथ। चलो।’

बबिता और सोनू दोनो अपनी सेल में चली आई और बाकी सभी बाहर उनका इंतजार करने लगी। चूँकि जेल में किसी भी कैदी को अपनी सेल व बैरक के अलावा किसी अन्य सेल व बैरक में जाने की बिल्कुल भी इजाजत नही थी इसलिए माधवी या उनमे से कोई भी सोनू के साथ उसकी सेल में नही जा सकती थी। कुछ ही देर में वे दोनों अपने कपड़े व साबुन लेकर बाहर आ गई और फिर वे सातो नहाने के लिए बाथ एरिया में चली गई।​

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सज़ायाफ्ता कैदियों के तौर पर जेल में उनका पहला दिन बेहद मुश्किल व बाकी दिनों से काफी अलग रहा। अब वे लोग दिनचर्या के कार्यो के बाद खाली नही रह सकती थी और उन्हें काम करना अनिवार्य था। पहले दिन से ही जानवरो की तरह उनका दूध निकाला जाने लगा और उन्हें जेल के कपड़ो के अलावा अन्य कपड़े पहनने की भी इजाजत नही थी। जेल की चारदीवारी ही अब उनका घर बन चुकी थी और वहाँ से बाहर निकलना उनके लिए लगभग नामुमकिन था। खुली हवा में साँस ना ले पाने की आजादी और कैदी होने के एहसास के साथ जीवन गुजारना उन सातो के लिए नासूर बन चुका था। भला कौन सी औरत ऐसा जीवन जीना चाहेगी जहाँ किसी तरह की कोई आजादी ना हो। जहाँ ना तो परिवार साथ हो और ना ही किसी अपने का सहारा।

उन सातो का जीवन पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था। जेल में जीवन का कोई उद्देश्य ही कहाँ समझ आता हैं। रोजाना एक ऐसी दिनचर्या उबाऊ सी लगने लगती हैं। कैदियों को कभी-कभी तो यकीन ही नही होता कि वे लोग भी कभी उस आजाद दुनिया का हिस्सा थे जहाँ जाने की लालसा हर वक़्त उनके मन मे बनी रहती हैं। जेल में हर पल उन्हें एहसास दिलाया जाता है कि बाहर की दुनिया उनके लिए केवल एक सपना मात्र हैं जहाँ जाना अब उनके लिए संभव नही हैं। बबिता और बाकी औरते आम औरतो की तरह जिंदगी जीना चाहती थी। पहले की तरह आजाद रहना चाहती थी। अच्छे कपड़े और गहने पहनना चाहती थी। बाहर घूमना चाहती थी। अपने घर पर अपने परिवार के साथ रहना चाहती थी। मगर अब यह मुमकिन नही था। अब वे लोग सज़ायाफ्ता कैदी थी और जेल की चारदीवारी ही उनकी दुनिया थी।

अदालत ने अपने फैसले में इस बात का विशेष ज़िक्र किया कि उम्रकैद की सजा का अर्थ चौदह अथवा बीस वर्ष का कारावास नही बल्कि आरोपी का बचा शेष जीवन जेल में बिताने से है। इस बात से यह तो साफ हो गया था कि उन सातो को मरते दम तक जेल में ही रहना है। हालाँकि अदालत ने यह भी कहा कि चौदह वर्षो की सजा भुगतने के बाद सातो आरोपी महिलाएँ पैरोल की पात्र हो जाएगी जबकि बीस वर्ष की जेल काटने के बाद उनके बर्ताव और भविष्य में अपराध न करने की प्रवृत्ति के आधार पर उन्हें रिहा भी किया जा सकेगा।

सजा के तौर पर जेल में बिताये जाने वाले अगले बीस साल उनके भावी जीवन की दशा और दिशा दोनो तय करने वाले थे। बीस साल बाद उन सातो में से कुछ औरते या तो बूढ़ी हो चुकी होगी या अपनी उम्र की मध्यवस्था में पहुँच जाएगी। जैसे बबिता की उम्र वर्तमान में 35 साल की है और वह जेल से रिहा होने के समय 55 साल की हो जाएगी। इसी तरह अंजली 36 साल से 56 साल की उम्र में पहुँच जाएगी। दया 46 वर्ष की उम्र से 66 वर्ष, रोशन 43 वर्ष से 63 वर्ष, कोमल 47 वर्ष से 67 वर्ष तथा माधवी 48 वर्ष से 68 वर्ष की हो जाएगी। इन सबके अलावा उम्र में सबसे छोटी सोनू की आयु 22 साल से 42 साल की हो जाएगी और रिहाई के समय वह एक कॉलेज जाने वाली लड़की से एक परिपक्व महिला बन चुकी होगी।

खैर, उनका पहला दिन तो जैसे-तैसे गुजर गया लेकिन शाम को सेलो में बंद किये जाने के बाद असली मुसीबत उनका इंतजार कर रही थी। कैदी औरतो को सीनियरों की प्रताड़ना सहने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार रखना पड़ता था क्योंकि एक बार सेलो में बंद किये जाने के बाद रात भर बाहर निकल पाने का कोई चारा ही नही होता था। शाम को अपनी-अपनी सेलो में जाने के बाद उन सातो की भी रैगिंग शुरू हो गई।

उसी रात लगभग आठ बजे के आसपास अलग-अलग वार्डो से कुछ कैदी औरतो व लड़कियों को बाहर ले जाया जाने लगा। जिन कैदियों को बाहर ले जाया जा रहा था, उनमे कम उम्र की जवान लड़कियों से लेकर बूढ़ी औरते भी शामिल थी। उन लोगो को उस रात सेक्स के लिए भेजा जा रहा था। किसी को अमीरो के पास तो किसी को नेताओ के पास। किसी को पुरूष जेल के जेलर के लिए तो किसी को पुरुष जेल में बंद कैदियों की प्यास बुझाने के लिए। हालाँकि तीन महीने जेल में बिताने के बाद भी उन सातो को इस बारे में बिल्कुल भी जानकारी नही थी और उस रात भी वे लोग बिल्कुल नही समझ पाई कि उन औरतो को बाहर क्यूँ ले जाया जा रहा है।

खैर, काफी रात तक सीनियर औरते उन सातो की रैगिंग करती रही और लाइट बंद होने के बाद भी उनके साथ सेक्स का दौर चलता रहा। वे सातो अपनी-अपनी सेल की सीनियरों के लिए सेक्स के उस खिलौनों की तरह थी, जिनको वे लोग जब चाहे अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल कर सकती थी।

जेल में उनके कुछ और दिन इसी तरह गुजर गए। रोजाना एक जैसी दिनचर्या थी और सीमित जगह पर सीमित साधनों के साथ जीवन जीने की मजबूरी। रोज सीनियरों की रैगिंग झेलनी पड़ती, मार खानी पड़ती, मालिश करनी पड़ती, उनकी सेक्स की इच्छा की पूर्ति करनी पड़ती, रोज अपना दूध देना पड़ता और अनेको प्रताड़नाएँ सहनी पड़ती। इसी बीच सोनू को पढ़ाई के लिए पुस्तके भी मुहैया करवाई गई ताकि वह अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर सके। हालाँकि जेल में उसे पढ़ने के लिए बहुत ज्यादा समय नही मिल लाता था लेकिन फिर भी वह पढ़ाई करने की पूरी कोशिश करती थी।

जेल में उनके साथ नौकरानियों व गुलामो की तरह बर्ताव किया जाता और उनसे कई ऐसे काम करवाये जाते जो उनके जैसी सभ्य और पढ़ी-लिखी महिलाओ के लिए बहुत ही शर्मिंदगी भरे होते थे। मसलन, शौचालय व बाथरूम की सफाई, नालियों की सफाई और इस तरह के कई ऐसे गंदे काम थे जो उन्हें करने पड़ते थे। इनके अतिरिक्त जेल के अधिकारियों के क्वार्टर के सारे काम भी कैदियों से ही करवाये जाते थे।​
 
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Nice update 😍
Waiting for the men's involvemment in ths Gokuldham Society ladies.
जरूर, लेकिन उसके लिए थोड़ा इंतजार कीजिये। आगे की अपडेट में आपको मजेदार कहानी पढ़ने को मिलेगी।
 
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सोनू तुरंत ही बाहर मैदान में आ गई और अपनी माँ व बाकी औरतो के पास जाकर फूट-फूटकर रोने लगी। माधवी भी उसके लिए बेहद चिंतित थी और जब सोनू को अंदर ले जाया गया था तो वह काँस्टेबल्स से लगातार उससे मिलने की विनती करती रही। बाहर आने के बाद सोनू ने मशीन और उससे होनी वाली तकलीफ के बारे में उन्हें बताया और रोते हुए माधवी से कहने लगी -

“आई, मैं वहाँ दोबारा नही जाना चाहती। प्लीज आई, तुम जेलर मैडम से बात करो ना। अभी मुझे दूध नही आता तो मेरी क्या गलती है आई।”

‘हाँ बाड़ा, तू टेंशन मत ले। मैं बात करूँगी ना मैडम से। चल तू अभी सेल में जा और कपड़े ले के आ। हम यही इंतजार करते है तेरा।’ - माधवी ने उसे दिलासा देते हुए कहा।

“बबिता आँटी, आप साथ चलिए ना। मुझे बहुत डर लग रहा है।”

‘हाँ सोनू। मैं चलती हूँ साथ। चलो।’

बबिता और सोनू दोनो अपनी सेल में चली आई और बाकी सभी बाहर उनका इंतजार करने लगी। चूँकि जेल में किसी भी कैदी को अपनी सेल व बैरक के अलावा किसी अन्य सेल व बैरक में जाने की बिल्कुल भी इजाजत नही थी इसलिए माधवी या उनमे से कोई भी सोनू के साथ उसकी सेल में नही जा सकती थी। कुछ ही देर में वे दोनों अपने कपड़े व साबुन लेकर बाहर आ गई और फिर वे सातो नहाने के लिए बाथ एरिया में चली गई।​

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सज़ायाफ्ता कैदियों के तौर पर जेल में उनका पहला दिन बेहद मुश्किल व बाकी दिनों से काफी अलग रहा। अब वे लोग दिनचर्या के कार्यो के बाद खाली नही रह सकती थी और उन्हें काम करना अनिवार्य था। पहले दिन से ही जानवरो की तरह उनका दूध निकाला जाने लगा और उन्हें जेल के कपड़ो के अलावा अन्य कपड़े पहनने की भी इजाजत नही थी। जेल की चारदीवारी ही अब उनका घर बन चुकी थी और वहाँ से बाहर निकलना उनके लिए लगभग नामुमकिन था। खुली हवा में साँस ना ले पाने की आजादी और कैदी होने के एहसास के साथ जीवन गुजारना उन सातो के लिए नासूर बन चुका था। भला कौन सी औरत ऐसा जीवन जीना चाहेगी जहाँ किसी तरह की कोई आजादी ना हो। जहाँ ना तो परिवार साथ हो और ना ही किसी अपने का सहारा।

उन सातो का जीवन पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था। जेल में जीवन का कोई उद्देश्य ही कहाँ समझ आता हैं। रोजाना एक ऐसी दिनचर्या उबाऊ सी लगने लगती हैं। कैदियों को कभी-कभी तो यकीन ही नही होता कि वे लोग भी कभी उस आजाद दुनिया का हिस्सा थे जहाँ जाने की लालसा हर वक़्त उनके मन मे बनी रहती हैं। जेल में हर पल उन्हें एहसास दिलाया जाता है कि बाहर की दुनिया उनके लिए केवल एक सपना मात्र हैं जहाँ जाना अब उनके लिए संभव नही हैं। बबिता और बाकी औरते आम औरतो की तरह जिंदगी जीना चाहती थी। पहले की तरह आजाद रहना चाहती थी। अच्छे कपड़े और गहने पहनना चाहती थी। बाहर घूमना चाहती थी। अपने घर पर अपने परिवार के साथ रहना चाहती थी। मगर अब यह मुमकिन नही था। अब वे लोग सज़ायाफ्ता कैदी थी और जेल की चारदीवारी ही उनकी दुनिया थी।

सजा के तौर पर जेल में बिताये जाने वाले अगले बीस साल उनके भावी जीवन की दशा और दिशा दोनो तय करने वाले थे। बीस साल बाद उन सातो में से कुछ औरते या तो बूढ़ी हो चुकी होगी या अपनी उम्र की मध्यवस्था में पहुँच जाएगी। जैसे बबिता की उम्र वर्तमान में 35 साल की है और वह जेल से रिहा होने के समय 55 साल की हो जाएगी। इसी तरह अंजली 36 साल से 56 साल की उम्र में पहुँच जाएगी। दया 46 वर्ष की उम्र से 66 वर्ष, रोशन 43 वर्ष से 63 वर्ष, कोमल 47 वर्ष से 67 वर्ष तथा माधवी 48 वर्ष से 68 वर्ष की हो जाएगी। इन सबके अलावा उम्र में सबसे छोटी सोनू की आयु 22 साल से 42 साल की हो जाएगी और रिहाई के समय वह एक कॉलेज जाने वाली लड़की से एक परिपक्व महिला बन चुकी होगी।

खैर, उनका पहला दिन तो जैसे-तैसे गुजर गया लेकिन शाम को सेलो में बंद किये जाने के बाद असली मुसीबत उनका इंतजार कर रही थी। कैदी औरतो को सीनियरों की प्रताड़ना सहने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से तैयार रखना पड़ता था क्योंकि एक बार सेलो में बंद किये जाने के बाद रात भर बाहर निकल पाने का कोई चारा ही नही होता था। शाम को अपनी-अपनी सेलो में जाने के बाद उन सातो की भी रैगिंग शुरू हो गई।

उसी रात लगभग आठ बजे के आसपास अलग-अलग वार्डो से कुछ कैदी औरतो व लड़कियों को बाहर ले जाया जाने लगा। जिन कैदियों को बाहर ले जाया जा रहा था, उनमे कम उम्र की जवान लड़कियों से लेकर बूढ़ी औरते भी शामिल थी। उन लोगो को उस रात सेक्स के लिए भेजा जा रहा था। किसी को अमीरो के पास तो किसी को नेताओ के पास। किसी को पुरूष जेल के जेलर के लिए तो किसी को पुरुष जेल में बंद कैदियों की प्यास बुझाने के लिए। हालाँकि तीन महीने जेल में बिताने के बाद भी उन सातो को इस बारे में बिल्कुल भी जानकारी नही थी और उस रात भी वे लोग बिल्कुल नही समझ पाई कि उन औरतो को बाहर क्यूँ ले जाया जा रहा है।

खैर, काफी रात तक सीनियर औरते उन सातो की रैगिंग करती रही और लाइट बंद होने के बाद भी उनके साथ सेक्स का दौर चलता रहा। वे सातो अपनी-अपनी सेल की सीनियरों के लिए सेक्स के उस खिलौनों की तरह थी, जिनको वे लोग जब चाहे अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल कर सकती थी।​
Awesome 👍 👍
Waiting for new update
 

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जेल में बंद औरतो को यूँ ही रंडी नही कहा जाता। जेल की चारदीवारी एक ऐसी जगह थी जो अक्सर रातो को कोठे में बदल जाया करती थी। ऐसा कोठा जहाँ कैदी औरतो और लड़कियों को ना चाहते हुए भी अंजान पुरुषो के साथ हमबिस्तर होना पड़ता था। उन्हें मना करने या नखरे करने का कोई अधिकार नही था। यदि वे लोग ऐसा करती तो उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर से लेकर ऐसी अनेको प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता जो किसी इंसान के लिए पूरी तरह अमानवीय होता था। गोकुलधाम सोसायटी की इन सातों कैदियों को भी अब जेल की इस अकल्पित वास्तविकता का सामना करना अनिवार्य था। उनकी आजादी तो पूरी तरह से छीन ली गई थी लेकिन साथ ही उनके जिस्मो पर भी अब उनका अधिकार नही रह गया था।

5 जुलाई,

सज़ायाफ्ता होने के कुछ दिनों बाद ही एक रात को अचानक उन सातो को उनकी सेलो से बाहर निकाला गया और सर्कल कंपाउंड के मैदान में खड़े करवाया गया। उस वक़्त लाइन में उनके अलावा कुछ और औरते भी मौजूद थी। कुछ देर बाद जेलर भी वहाँ आ पहुँची लेकिन वह अकेली नही थी, उसके साथ एक आदमी भी था। लगभग 50 वर्ष से अधिक उम्र का वह अधेड़ व्यक्ति सत्ताधारी पार्टी का एक बड़ा नेता था जो उस रात अपनी हवस की प्यास बुझाने के लिए जेल की किसी कैदी औरत को लेने आया था। अंदर आते ही जेलर उसे लाइन में खड़ी औरतो को दिखाने लगी।​

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“सर देख लीजिये। आपके लिए हर टाइप का माल खड़ा कर दिया है। आप choose कीजिये।” - जेलर ने कहा।

नेताजी - ‘माल तो बहुत बढ़िया-बढ़िया है अदिति जी आपकी जेल में। मगर आज हमारा मूड किसी शादीशुदा को चखने का हैं।’

जेलर - “सर एक मिनट। आप इन्हें देखिए (उन सातो की ओर इशारा करते हुए)। बिल्कुल नया माल हैं और सारी की सारी decent family से है।”

जेलर के कहने पर उस नेता ने बबिता सहित उन सातो को देखना शुरू किया। वे सातो लाइन में बीच मे खड़ी थी जबकि उनके दायें और बायें कुछ अन्य कैदी औरतो को खड़े करवाया गया था। उन सातो में सबसे बाई तरफ दया थी और उसके बाद क्रमशः बबिता, अंजली, कोमल, माधवी, सोनू और सबसे अंत मे रोशन खड़ी थी। उस नेता ने उन सातो को ध्यान से देखा और फिर बबिता की ओर इशारा करते हुए जेलर से बोला -

“इसको भेज दीजिये अदिति जी। आज तो इसकी ही मारेंगे।”

जेलर - ‘ओके सर। आप घर जाइये। मैं भिजवाती हूँ इसे।’

नेताजी - “लेकिन ध्यान रहे। कोई नखरे नही करनी चाहिए। वैसे भी आप मेरा स्टाइल जानती हैं।”

जेलर - ‘बिल्कुल सर। आप बेफिक्र रहिये। इसने जरा भी नखरे किये तो इसकी खाल उधेड़ कर रख दूँगी।’

“ठीक हैं। आप जल्दी भिजवाईये इसे।” - इतना कहकर वह नेता जेल से तो चला गया लेकिन उस रात उन सातो में से पहली बार किसी औरत का सेक्स के लिए सौदा हुआ था। बदकिस्मती से उस नेता ने बबिता को ही पसंद किया और उसके पास बचने का कोई रास्ता नही था। उन सातो को उस रात पहली बार पता चला कि जेल में औरतो को सेक्स के लिए भी भेजा जाता हैं। बबिता को चुने जाने के बाद तुरंत ही बाकी औरतो को अपनी-अपनी सेलो में वापस भेज दिया गया और जेलर बबिता को अपने साथ अपने ऑफिस में ले आई।​

IMG-20240921-190602

“बबिता अय्यर। दिखने में तो कमाल की है तू। आज तेरी कोई शिकायत नही आनी चाहिए वरना अगर नेताजी खुश नही हुए तो तेरी चमड़ी उधेड़ कर रख दूँगी। समझी। ” - जेलर ने कहा।

बबिता बेहद डरी हुई थी और जेलर के सामने कुछ भी बोलने की उसकी हिम्मत ही नही हुई। उसके चेहरे से साफ नजर आ रहा था कि वह सेक्स के लिए नही जाना चाहती लेकिन वह मजबूर थी। जेल में सीनियर औरतो द्वारा नंगा किया जाना या लेस्बियन सेक्स किया जाना एक अलग बात थी लेकिन किसी पुरूष के साथ सेक्स के लिए भेजा जाना उसके लिए अस्वीकार्य था। हालाँकि जेलर को इस बात से जरा भी फर्क नही पड़ता था कि वह कैसे परिवार से ताल्लुक रखती हैं या जेल में आने से पहले वह कैसे माहौल में रहती थी। उसके लिए तो अमीर, गरीब, पढ़ी-लिखी, अनपढ़, काली, गोरी या किसी बड़े पद पर रह चुकी महिलाओ की औकात भी बिल्कुल एक जैसी थी। बबिता को चेतावनी देने के बाद उसने उसके दोनों हाथों में हथकड़ी पहनाई और वहाँ मौजूद काँस्टेबल रेखा से उसे गाड़ी में बिठाने को कहा। जेलर के आदेशानुसार काँस्टेबल तुरंत ही उसे पकड़कर बाहर खड़ी पुलिस वेन में ले गई और अंदर बिठा दिया। उसी गाड़ी में बबिता के अलावा और भी औरते बैठी हुई थी जिन्हें उसी की तरह सेक्स के लिए अलग-अलग लोगो के पास ले जाया जा रहा था।​

Picsart-24-09-21-19-01-33-285

बबिता गाड़ी में बिल्कुल गुमसुम सी शांत बैठी रही। उसके साथ बैठी अन्य कैदी औरते आपस मे हँसी-ठिठोली और कई सारी बाते कर रही थी लेकिन बबिता का मन बेहद उदास था। वह इसी बात को सोचकर परेशान थी कि आखिर वह कैसे किसी अंजान आदमी के साथ सेक्स कर सकती हैं। वह कोई प्रॉस्टिट्यूट नही थी और ना ही उसने कभी कल्पना की थी कि उसे अपनी जिंदगी में ऐसा दिन भी देखना पड़ सकता हैं। हालाँकि उस वक़्त वह चाहकर भी कुछ नही कर सकती थी और एक सभ्य परिवार की महिला होने के बावजूद एक प्रॉस्टिट्यूट की तरह सेक्स के लिए जाने को मजबूर थी।​
 
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जेल में बंद औरतो को यूँ ही रंडी नही कहा जाता। जेल की चारदीवारी एक ऐसी जगह थी जो अक्सर रातो को कोठे में बदल जाया करती थी। ऐसा कोठा जहाँ कैदी औरतो और लड़कियों को ना चाहते हुए भी अंजान पुरुषो के साथ हमबिस्तर होना पड़ता था। उन्हें मना करने या नखरे करने का कोई अधिकार नही था। यदि वे लोग ऐसा करती तो उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर से लेकर ऐसी अनेको प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता जो किसी इंसान के लिए पूरी तरह अमानवीय होता था। गोकुलधाम सोसायटी की इन सातों कैदियों को भी अब जेल की इस अकल्पित वास्तविकता का सामना करना अनिवार्य था। उनकी आजादी तो पूरी तरह से छीन ली गई थी लेकिन साथ ही उनके जिस्मो पर भी अब उनका अधिकार नही रह गया था।

सज़ायाफ्ता होने के कुछ दिनों बाद ही एक रात को अचानक उन सातो को उनकी सेलो से बाहर निकाला गया और सर्कल कंपाउंड के मैदान में खड़े करवाया गया। उस वक़्त लाइन में उनके अलावा कुछ और औरते भी मौजूद थी। कुछ देर बाद जेलर भी वहाँ आ पहुँची लेकिन वह अकेली नही थी, उसके साथ एक आदमी भी था। लगभग 50 वर्ष से अधिक उम्र का वह अधेड़ व्यक्ति सत्ताधारी पार्टी का एक बड़ा नेता था जो उस रात अपनी हवस की प्यास बुझाने के लिए जेल की किसी कैदी औरत को लेने आया था। अंदर आते ही जेलर उसे लाइन में खड़ी औरतो को दिखाने लगी।​

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“सर देख लीजिये। आपके लिए हर टाइप का माल खड़ा कर दिया है। आप choose कीजिये।” - जेलर ने कहा।

नेताजी - ‘माल तो बहुत बढ़िया-बढ़िया है अदिति जी आपकी जेल में। मगर आज हमारा मूड किसी शादीशुदा को चखने का हैं।’

जेलर - “सर एक मिनट। आप इन्हें देखिए (उन सातो की ओर इशारा करते हुए)। बिल्कुल नया माल हैं और सारी की सारी decent family से है।”

जेलर के कहने पर उस नेता ने बबिता सहित उन सातो को देखना शुरू किया। वे सातो लाइन में बीच मे खड़ी थी जबकि उनके दायें और बायें कुछ अन्य कैदी औरतो को खड़े करवाया गया था। उन सातो में सबसे बाई तरफ दया थी और उसके बाद क्रमशः बबिता, अंजली, कोमल, माधवी, सोनू और सबसे अंत मे रोशन खड़ी थी। उस नेता ने उन सातो को ध्यान से देखा और फिर बबिता की ओर इशारा करते हुए जेलर से बोला -

“इसको भेज दीजिये अदिति जी। आज तो इसकी ही मारेंगे।”

जेलर - ‘ओके सर। आप घर जाइये। मैं भिजवाती हूँ इसे।’

नेताजी - “लेकिन ध्यान रहे। कोई नखरे नही करनी चाहिए। वैसे भी आप मेरा स्टाइल जानती हैं।”

जेलर - ‘बिल्कुल सर। आप बेफिक्र रहिये। इसने जरा भी नखरे किये तो इसकी खाल उधेड़ कर रख दूँगी।’

“ठीक हैं। आप जल्दी भिजवाईये इसे।” - इतना कहकर वह नेता जेल से तो चला गया लेकिन उस रात उन सातो में से पहली बार किसी औरत का सेक्स के लिए सौदा हुआ था। बदकिस्मती से उस नेता ने बबिता को ही पसंद किया और उसके पास बचने का कोई रास्ता नही था। उन सातो को उस रात पहली बार पता चला कि जेल में औरतो को सेक्स के लिए भी भेजा जाता हैं। बबिता को चुने जाने के बाद तुरंत ही बाकी औरतो को अपनी-अपनी सेलो में वापस भेज दिया गया और जेलर बबिता को अपने साथ अपने ऑफिस में ले आई।​

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“बबिता अय्यर। दिखने में तो कमाल की है तू। आज तेरी कोई शिकायत नही आनी चाहिए वरना अगर नेताजी खुश नही हुए तो तेरी चमड़ी उधेड़ कर रख दूँगी। समझी। ” - जेलर ने कहा।

बबिता बेहद डरी हुई थी और जेलर के सामने कुछ भी बोलने की उसकी हिम्मत ही नही हुई। उसके चेहरे से साफ नजर आ रहा था कि वह सेक्स के लिए नही जाना चाहती लेकिन वह मजबूर थी। जेल में सीनियर औरतो द्वारा नंगा किया जाना या लेस्बियन सेक्स किया जाना एक अलग बात थी लेकिन किसी पुरूष के साथ सेक्स के लिए भेजा जाना उसके लिए अस्वीकार्य था। हालाँकि जेलर को इस बात से जरा भी फर्क नही पड़ता था कि वह कैसे परिवार से ताल्लुक रखती हैं या जेल में आने से पहले वह कैसे माहौल में रहती थी। उसके लिए तो अमीर, गरीब, पढ़ी-लिखी, अनपढ़, काली, गोरी या किसी बड़े पद पर रह चुकी महिलाओ की औकात भी बिल्कुल एक जैसी थी। बबिता को चेतावनी देने के बाद उसने उसके दोनों हाथों में हथकड़ी पहनाई और वहाँ मौजूद काँस्टेबल रेखा से उसे गाड़ी में बिठाने को कहा। जेलर के आदेशानुसार काँस्टेबल तुरंत ही उसे पकड़कर बाहर खड़ी पुलिस वेन में ले गई और अंदर बिठा दिया। उसी गाड़ी में बबिता के अलावा और भी औरते बैठी हुई थी जिन्हें उसी की तरह सेक्स के लिए अलग-अलग लोगो के पास ले जाया जा रहा था।​

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बबिता गाड़ी में बिल्कुल गुमसुम सी शांत बैठी रही। उसके साथ बैठी अन्य कैदी औरते आपस मे हँसी-ठिठोली और कई सारी बाते कर रही थी लेकिन बबिता का मन बेहद विचलित था। वह इसी बात को सोचकर परेशान थी कि आखिर वह कैसे किसी अंजान आदमी के साथ सेक्स कर सकती हैं। वह कोई प्रॉस्टिट्यूट नही थी और ना ही उसने कभी कल्पना की थी कि उसे अपनी जिंदगी में ऐसा दिन भी देखना पड़ सकता हैं। हालाँकि उस वक़्त वह चाहकर भी कुछ नही कर सकती थी और एक सभ्य परिवार की महिला होने के बावजूद एक प्रॉस्टिट्यूट की तरह सेक्स के लिए जाने को मजबूर थी।​
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(बबिता की चुदाई)

रात के लगभग नौ बज चुके थे। पुलिस वेन में बैठी सारी औरतो को उनके ग्राहकों के पास पहुँचाने के बाद अंत मे गाड़ी को नेताजी के फार्महाउस पर लाकर खड़ा कर दिया गया।

“ऐ बबिता, चल नीचे उतर…” - काँस्टेबल रेखा ने कहा।

बबिता तुरंत ही अपनी सीट से उठी और गाड़ी से नीचे उतर गई। उसके दोनों हाथों में हथकड़ी थी और बदन पर कैदियों वाले कपड़े। नीचे उतरते ही रेखा ने उसकी बाँह को कसकर पकड़ा और उसे खीचते हुए अंदर लेकर चली आई। जैसे ही वे लोग दरवाजे पर पहुँचे, नेताजी का पी.ए. राकेश उनके इंतजार में खड़ा था। उन्हें देखते ही उसने दोनो को अंदर चलने को कहा और उस लेडी काँस्टेबल को सोफे पर बिठा दिया। चूँकि बबिता एक कैदी थी इसलिए उसे लकड़ी की एक साधारण सी कुर्सी दी गई। बैठने से पहले काँस्टेबल रेखा ने उसकी हथकड़ी खोल दी।

Picsart-24-09-30-12-41-54-961

नेताजी का फार्महाउस आलीशान था। बाहर महँगी-महँगी गाड़ियाँ खड़ी थी तो वही अंदर की चकाचौंध भी कुछ कम नही थी। महँगे टाइल्स, पेंटिग्स और लाखों-करोड़ों के सामानों से सजा नेताजी का फॉर्महाउस देखकर बबिता बिल्कुल दंग रह गई। लगभग चार महिने से अधिक समय से उसने जेल और कोर्ट के अलावा कुछ नही देखा था। उसके लिए तो आजाद जिंदगी जीना ही एक ख्वाब बन चुका था और उस रात जब उसने फॉर्महाउस की चकाचौंध देखी तो कुछ देर के लिए उसके मन मे भी वैसी ही जिंदगी जीने की चाह जाग उठी। वे लोग अभी हॉल में बैठे ही थे कि तभी नेताजी बाहर से अंदर आये और बबिता के करीब आकर उसके बदन को घूरने लगे। उन्होंने उसके गालो को हाथ लगाने की कोशिश की लेकिन उनके ऐसा करने से बबिता थोड़ी असहज हो उठी और अपने चेहरे को दूसरी तरफ कर लिया।

“लेकर आओ इसे।” - नेताजी ने अपने आदमियों से कहा और खुद ऊपर अपने कमरे की ओर चले गए।

उनके कहने के तुरंत बाद ही अंदर से कुछ लड़कियाँ हॉल में आई और बबिता को पकड़कर अपने साथ एक कमरे में लेकर चली गई जबकि काँस्टेबल रेखा के लिए बाहर बने गेस्ट हॉउस में रुकने का इंतजाम किया गया। इधर कमरे में ले जाने के बाद बबिता को नेताजी के लिए तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हुई।

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सबसे पहले उसे नहलाया गया और उसके जेल के कपड़े उतरवा दिए गए। उसे एक मॉडर्न वन पीस ड्रेस दिया गया जिसे पहनकर वह वाकई में पहले की तरह बेहद खूबसूरत लग रही थी। इसके अतिरिक्त उसे अंदरूनी कपड़ो में भी नई ब्रा व पैंटी दी गई और फिर उसे अच्छी तरह से तैयार करके नेताजी के कमरे में भेज दिया गया।

बबिता फॉर्महाउस की चकाचौंध देखकर भले ही कुछ देर के लिए आकर्षित हो गई थी लेकिन वह जानती थी कि नेताजी का उसके साथ सेक्स करना गलत हैं। हालाँकि वह उन्हें मना नही कर सकती थी क्योंकि वह एक सज़ायाफ्ता कैदी थी और उसे वापस जेल में ही लौटना था। ना चाहते हुए भी बबिता को नेताजी के कमरे में जाना पड़ा।

“आओ आओ। बैठो यहाँ पर।” - उसके अंदर जाते ही नेताजी ने कमरे का दरवाजा बंद करते हुए कहा।

बबिता आगे बढ़ी और सोफे पर जाकर बैठ गई। उसे थोड़ा डर भी लग रहा था और अजीब भी। वह पहली बार अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द के साथ एक ही कमरे में मौजूद थी और उसके साथ हमबिस्तर होने वाली थी। सज़ायाफ्ता होने के बाद यह पहला मौका भी था जब उसे जेल के कपड़ो के अलावा रंगीन व फैशनेबल कपड़े पहनने मिले थे। उस नेता के साथ सेक्स करने के लिए उसका मन बिल्कुल भी नही मान रहा था और वह अपने आत्मसम्मान से किसी भी तरह का कोई समझौता नही करना चाहती थी। उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वह क्या करे। वह मन ही मन सोचने लगी…

‘क्या मैं इस आदमी को सेक्स के लिए मना कर दूँ?....नही, नही। अगर मैंने ऐसा किया तो जेलर पता नही मेरे साथ क्या करेगी। तो क्या मैं इसे अपने आपको छूने दूँ? मैं अय्यर के साथ ऐसा कैसे कर सकती हूँ? जब उसे पता चलेगा तो वह क्या सोचेगा मेरे बारे में? हे भगवान, प्लीज मुझे रास्ता दिखाइये…’

उसका मन इन्ही विचारो में डूबा हुआ था कि तभी उसे अपने हाथों पर किसी चीज के छूने का एहसास हुआ। वह एकदम से सिहर उठी। नजर उठा कर देखा तो बगल में नेताजी बैठे हुए थे। उनका एक हाथ उसके हाथों के ऊपर था और उनकी हवस भरी निगाहे मानो उसके बदन को जैसे टटोल रही हो। बबिता असहजता भरी स्थिति में थी और नेताजी के हाथ लगाने पर अपनी जगह से पीछे हटने की कोशिश करने लगी। उसकी शारीरिक भाषा उसकी असहजता को साफ बयाँ कर रही थी लेकिन वह नेताजी के सामने खुलकर अपनी बात रखने में असमर्थ थी। आखिर वह इंकार करती भी कैसे? उसे सेक्स के लिए ही भेजा गया था और जेलर की क्रूरता का ख्याल ही उसके इंकार ना करने की सबसे बड़ी वजह था।

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“शर्मा क्यूँ रही हो मेरी जान। करीब आओ।” - नेताजी ने उसे छेड़ते हुए कहा।

वह कुछ नही बोल पाई और सर झुकाये चुपचाप बैठी रही। नेताजी ने फिर पूछा - “क्या नाम है तुम्हारा?”

‘जी, बबिता…’ - उसने जवाब दिया।

“बहुत खूबसूरत हो तुम। किस केस में जेल में हो?”

‘जी…वो…मर्डर केस।’ - उसने हिचकिचाते हुए कहा।

“वाह भई। तुम तो किसी को नजर उठा के देख लो तो वो वैसे ही मर जाये। सच मे किसी को मारने की क्या जरूरत थी। वैसे कितने साल की सजा हुई है?”

‘बीस साल..’

“अदालतों के सितम भी अजीब है। तुम जैसी हसीनाओ को जेल भेज देती है और हम जैसे लोगो के बिस्तर की रौनक बना देती है।”

बबिता को उसकी बातें काफी बुरी लग रही थी लेकिन वह चुप रहने को मजबूर थी। नेताजी ने उसे सोफे से उठाया और अपने साथ अपने बिस्तर पर ले आये। उन्होंने उसे धक्का देकर तुरंत ही बिस्तर पर लिटा दिया और बिना कोई देर किए सीधे उसके ऊपर चढ़कर उसे चूमने लगे। जाहिर था, बबिता एकदम से स्तब्ध रह गई।

नेताजी लगभग 50 साल से अधिक उम्र के एक हट्टे-कट्टे व हैंडसम आदमी थे। शादीशुदा और तीन बच्चो के बाप थे लेकिन फिर भी अपनी बीवी के अलावा रोज एक नई औरत को चखने की आदत थी। जेल में हजारों महिला कैदी बंद थी जिनमे एक से बढ़कर एक खूबसूरत औरते व लड़कियाँ शामिल थी। अनेको लोगो की तरह ही वह भी ज्यादातर औरते जेल से ही मँगवाया करते थे। कभी 18 साल की जवान लड़की उनके बिस्तर पर होती तो कभी 40 से 50 साल की शादीशुदा महिला। अपनी पसंद के अनुसार वह कैदी औरतो का चयन करते और अपनी बेटी की उम्र की लड़कियों के साथ भी सेक्स करने में जरा भी संकोच नही करते थे।

खैर, बिस्तर पर पड़ते ही बबिता को एकाएक अपने घर की याद आ गई। वही मखमली नरम सा बिस्तर, शानदार बैडरूम और अपने पति के साथ सेक्स करती बबिता। कितने दिनों बाद ऐसे बिस्तर पर सोने मिला। जेल में ऐसा बिस्तर कहाँ नसीब होता था। वहाँ तो बस पत्थर की फर्श पर पतली सी चादर बिछाकर सोना पड़ता था। वह इसी उधेड़बुन में थी कि तभी नेताजी ने उसे पैरो से पकड़कर बिस्तर पर सीधा लिटा दिया और वास्तव में बिना उसकी मर्जी के उसके पूरे बदन को चूमने लगे।

“ऊऊऊ…आँह…ऊम्ह….बबिता…क्या माल है तू…ऊँह…आँह…”

वह लगातार उसके ऊपर चढ़कर उसके चेहरे, होंठो, स्तनों और बाकी अंगों को चूमे जा रहे थे लेकिन बबिता शर्मिंदगी के मारे बिल्कुल जिंदा लाश की तरह गुमसुम सी पड़ी थी। उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे और उसका तकिया भीगने लगा। उसने भले ही अपने शरीर को नेताजी के हवाले कर दिया था लेकिन उसका मन अब भी साफ था। नेताजी कुछ देर तक उसी तरह उसे चूमते रहे लेकिन उन्हें भी इस बात का एहसास हो चला था कि बबिता अपनी ओर से कोई प्रयास नही कर रही है। इस बात से वह एकदम से झन्ना उठे और बबिता के ऊपर से उठकर बिस्तर पर बैठ गए। उन्होंने बबिता को भी खींचकर बिस्तर से उठाया और अपने बगल में बिठा दिया।

“देख, मैं तुझे ये तेरे नाटक देखने नही लाया हूँ। साली तुम कैदी औरतो का यही रोना है। पहले क्राइम करती हो और फिर इधर शरीफ बनने की कोशिश करती हो।”

बबिता चुपचाप उनकी बातें सुनती रही। उन्होंने फिर कहा - ‘मुझे तेरी शराफत से कोई लेना-देना नही हैं। सेक्स के लिए आई है तो रात भर मुझे खुश करना तेरा काम है। अगर नही करेगी तो सीधे बोल। तेरी बकचोदी सुनने नही बैठा हूँ इधर। जेलर से बात करता हूँ मैं।’

इतना कहकर वह अपनी जगह से उठे और फोन को हाथ मे लेकर जेलर को कॉल लगाने लगे। लेकिन तभी अचानक बबिता ने उन्हें रोक लिया और उनसे जेलर को कॉल ना करने की विनती करने लगी। वह जानती थी कि अगर नेताजी ने जेलर को कॉल किया तो वह जेल में उसका जीना मुश्किल कर देगी। मजबूरन उसे नेताजी की बात माननी पड़ी।

“सर, प्लीज मैडम को कॉल मत कीजिये। आप जैसा बोलेंगे मैं वैसा ही करूँगी। प्लीज सर।” 🙏

‘लास्ट चांस दे रहा हूँ तुझे। अगर आज रात मुझे मजा नही आया तो कल से जेल में तेरी जो हालत होगी, तू सोच भी नही सकती। समझी’ - नेताजी ने गुस्से में कहा।

बबिता ने हाँ में अपना सर हिलाया और सेक्स के लिए तैयार हो गई। उसने तुरंत ही उनके हाथ से फोन को टेबल रखा और उनके करीब आकर कुर्ते के बटन खोलने लगी। नेताजी ने सफेद रंग का कुर्ता-पजामा पहन रखा था जबकि बबिता वन पीस ड्रेस में थी। उसने अपने हाथों से नेताजी का कुर्ता उतारा और उनके करीब आकर उन्हें रिझाने लगी। नेताजी अब बनियान व पजामे में थे और बबिता ना चाहते हुए भी उन्हें उत्तेजित करने की कोशिश कर रही थी। वह उनके गालो और सीने पर हाथ फेरने लगी ताकि वह उसके प्रयासो से खुश रहे। उन्होंने एकाएक उसके चेहरे को दबोच लिया और उसको होठो पर अपने होंठ चिपका दिए। बबिता एकदम से सहम गई। उसे ऐसा लग रहा था जैसे मानो वह साँस नही ले पा रही हो।

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नेताजी किस करते हुए ही बबिता के एक हाथ से अपने लिंग को छुआने लगे। बिना पजामा उतारे ही उनका लिंग बिल्कुल तनकर खड़ा था और पजामे से बाहर झाँकने की राह देख रहा था। कुछ देर में ही उन्होंने अपने पजामे का नाड़ा खोल दिया और उसे उतारकर जमीन पर फेंक दिया। नेताजी नीले रंग की चड्डी पहने हुए थे लेकिन पजामा उतारने के साथ ही उन्होंने अपनी बनियान व चड्डी भी उतारकर फेंक दी। वह पूरी तरह से नग्न हो चुके थे और बबिता पहली बार अपने पति के अलावा किसी गैर मर्द को बिना कपड़ो के देख रही थी। वह मॉडर्न ख्यालों वाली लड़की जरूर थी लेकिन उसने शादी से पहले कभी भी सेक्स या कोई अफेयर नही किया था।

नेताजी ने अपने कपड़े उतारने के बाद बबिता को भी नंगा करना शुरू कर दिया। उन्होंने उसकी ड्रेस उतार दी और फिर उसकी ब्रा व पैंटी भी उतारकर नीचे रख दी। दोनो अब पूरी तरह से नग्न खड़े थे और एक-दूसरे को चूम रहे थे। चूमते हुए ही नेताजी ने बबिता के हाथ मे अपना लंड थमा दिया और उसे चूसने को कहा। बबिता ब्लोजॉब करना तो नही चाहती थी लेकिन नेताजी की इच्छा के आगे मजबूर थी। उसने उनके लंड को अपने मुँह के अंदर डाला और चूसने लगी। बबिता का उनका लंड चूसना वाकई में एक बेहद शानदार दृश्य था जिसके गवाह केवल वे दोनों थे। बबिता पूरे जोश के साथ ब्लोजॉब करती जा रही थी और नेताजी आनंद के मारे “आँह आँह” की तेज सिसकियाँ ले रहे थे। आखिरकार कुछ देर बाद उन्होंने अपने लंड को बबिता के मुँह से बाहर निकाला और बबिता को पकड़कर बिस्तर पर लिटा दिया।

बबिता भी अब धीरे-धीरे उत्तेजित होने लगी थी। उसने कई महीनों से किसी पुरुष के साथ सेक्स नही किया था और नेताजी के साथ भले ही वह अपनी मर्जी से सेक्स नही करना चाहती थी लेकिन एक बार कामवासना के सागर में डुबकी लगाने के बाद बबिता भी गीली होने से बच नही पाई। उसके अंदर उत्तेजना पैदा होने लगी और वह असली लंड से चुदाई के लिए आतुर हो उठी। नेताजी ने भी आव देखा ना ताव, उसे बिस्तर पर लिटाते ही अपने लोहे जैसे सख्त और लंबे लंड पर कंडोम पहना और उसकी चूत के द्वार के दर्शन करा ही दिए।

“आँहहहहहहहह……”

लंड के अंदर जाते ही बबिता के मुँह से एक तेज दर्दभरी आवाज निकली जो दर्द के साथ-साथ आनंद के अप्रतिम सुख के आगमन की शुरुआत भर थी। नेताजी का लंबा और मोटा सा लंड बबिता की चूत को फाड़ते हुए पूरी तरह अंदर घुस चुका था और उसके बाद उन्होंने उसे अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया।

“ओह…आँह….ससससससस….आँह…जोर से…और जोर से…”

बबिता के जोश के साथ नेताजी का जोश भी चार गुना बढ़ चुका था और वह अपनी पूरी ताकत से बबिता को चोदने लगे। बबिता बिस्तर पर किसी बिकी हुई गुड़ियाँ की तरह आराम से पड़ी हुई थी और नेताजी का लंड उसे सेक्स के चरम आनंद का अनुभव कराने लगा। दर्द और आनंद के मारे वह जोर-जोर से चिल्लाने लगी जिससे नेताजी भी पूरा जोर लगाने लगे। काफी देर तक वे दोनों एक ही पोजीशन में उसकी चुदाई करते रहे और फिर उन्होंने अपनी स्थिति बदली।

नेताजी ने बबिता की एक टाँग को उठाकर अपने कंधे पर रखा और उसे दाई ओर झुकाकर दोबारा उसकी चूत मारने लगे। इसी तरह थोड़ी-थोड़ी देर में वे दोनों अपनी पोजीशन बदलते रहे और कभी डॉगी स्टाइल तो कभी सीज़र्स व 69 सहित कई सारी पोजीशन में सेक्स के मजे लिए।

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नेताजी कोई दस मिनट में झड़ने वाले आदमी नही थे। उनके अंदर औरतो के प्रति जितनी वासना भरी हुई थी, वह रात भर बबिता को चोद सकते थे। वह काफी देर तक बबिता की चुदाई करते रहे लेकिन उनका मन नही भरा। उन्होंने उसे बिस्तर से नीचे उतारा और दीवार से सटाकर उसकी गांड मारने लगे। बबिता उत्तेजित जरूर थी लेकिन उसे अभी पूरी तरह संतुष्टि नही मिली थी। नेताजी ने भी उसका मंशा भाँप ली और दोबारा पूरे जोश के साथ उसकी चुदाई करने लगे।

बबिता की सिसकियाँ तेज होने लगी थी। वह जोर-जोर से “आँह आँह” चिल्लाने लगी और नेताजी को अपनी गति बढ़ाने के लिए उत्साहित करने लगी। नेताजी भी अब अपने वहशीपन पर उतर आए और अपने लंड की गति तेज कर दी जो बबिता के लिए भी असहनीय होने लगी थी। नेताजी का लंड झड़ने के करीब पहुँच चुका था जबकि बबिता भी चरम सुख की प्राप्ति के बिल्कुल करीब थी। काफी देर की चुदाई के बाद आखिरकार नेताजी के लंड ने कंडोम के भीतर ही अपना पदार्थ छोड़ दिया और बबिता को चरम सुख देने का अद्भुत सौभग्य प्राप्त किया। हालाँकि नेताजी यही नही रुके। उन्होंने कंडोम को उतारा और तुरंत ही अपने लंड को बबिता के मुँह में घुसा दिया। वह चाहते थे कि बबिता उनके लंड पर चिपके पदार्थ को अपने मुँह से चूसकर साफ करे। बबिता मजबूर थी और उसे ऐसा करना पड़ा। उसने उनके लंड को अपने मुँह में लिया और चूसने लगी। लंड पर चिपका सारा पदार्थ बबिता के गले से अंदर जा चुका था और नेताजी का लंड भी पूरी तरह से साफ हो चुका था।

वे दोनों बिस्तर पर पूर्ण नग्न अवस्था मे पड़े हुए थे। नेताजी ने बबिता को अपनी बाहों में समेट लिया और उसके कोमल बदन के स्पर्श को महसूस करने लगे। ज्यादातर मर्द सेक्स के बाद अक्सर थकावट की वजह से दूसरी तरफ मुँह करके सोना पसंद करते है लेकिन नेताजी ने ऐसा नही किया। बबिता के रसभरे बदन, बड़े-बड़े स्तनों और चिकनी गुलाबी चूत को देखकर उनकी वासना कम होने का नाम ही नही ले रही थी। हालाँकि उनमे अब वो शक्ति नही बची थी कि वह फिर से बबिता को चोद सके इसलिए वह बबिता से चिपककर सोने की कोशिश करने लगे। उनका लंड अब भी बबिता के कूल्हों पर स्पर्श कर रहा था और वह बीच-बीच मे उसके स्तनों को भी दबाने लगते। आखिरकार काफी रात होने के बाद उन दोनों को कब नींद आ गई, पता ही नही चला और वे दोनों एक-दूसरे से लिपटकर गहरी नींद में सो गए।

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सुबह 4 बजे…

“सर, सर उठिए।” - बाहर से किसी ने आवाज लगाई।

नेताजी गहरी नींद में थे और इतनी सुबह आवाज सुनकर एकदम से बौखला गए।

‘कौन है बे? इतनी सुबह-सुबह क्या तेरी नानी मर गई है।’ - नेताजी ने गुस्से में कहा।

“सर, वो पुलिसवाली बाहर इंतजार कर रही है। जेल की गाड़ी आने वाली होगी।” - बाहर खड़े आदमी ने जवाब दिया।

उस आदमी की बात सुनकर नेताजी को एहसास हुआ कि उनके साथ सो रही बबिता को वापस जेल भी जाना होगा। उन्होंने तुरंत ही उसे नींद से जगाया और कपड़े पहनने को कहा। बबिता काफी समय बाद इतने अच्छे बिस्तर पर सोई थी और जाहिर था कि उसे बिस्तर छोड़ने का बिल्कुल मन नही कर रहा था। हालाँकि नींद से जागते ही जैसे उसने नेताजी को सामने देखा तो एकदम से सहम गई। रात को भले ही जेलर के डर और कामवासना के लालच में वह नेताजी के साथ हमबिस्तर हो गई थी लेकिन आखिरकार वह एक शरीफ परिवार की महिला ही थी।

खैर, उसने अपने कपड़े पहने और फिर उसे हॉल में मौजूद काँस्टेबल रेखा के हवाले कर दिया गया। रेखा ने उसके दोनों हाथों में हथकड़ी पहनाई और जेल की गाड़ी का इंतजार करने लगी। कुछ देर बाद ही गाड़ी उन्हें लेने आ गई और बाकी कैदियों के साथ बबिता को भी वापस जेल लाया गया। वह अब जेल के भीतर थी और रोजाना की तरह जेल की जिंदगी जीने को मजबूर थी।​
 
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