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Update 37
बरसात का मौसम आ चुका था। जेल के भीतर यही चार महिने सबसे मुश्किलो भरे होते थे। कई बार नालियों के चोक हो जाने की वजह से किचन, बाथरूम व अन्य जगहों की पानी की निकासी बाधित हो जाती थी। इस कारण कैदियों को गंदगी व बदबू का सामना भी करना पड़ता था। हालाँकि बरसात का मौसम शुरू होते ही रोजाना कैदियों से नालियों की सफाई करवाई जाती रहती थी ताकि जेल में किसी प्रकार की कोई गंदगी ना हो।
इसके अतिरिक्त बेमौसम बरसात की वजह से दिनचर्या के कार्य भी प्रभवित होते थे। चूँकि जेल के ज्यादातर काम बाहर खुले में ही किये जाते थे लेकिन बरसात की वजह से व्यायाम व शौचालय की लाइन में लगने जैसे बाहरी कार्य करने में कैदियों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। जेल में इसके लिए कोई अलग से व्यवस्था नही थी इसलिए जेल में पदस्थ जेलर अपने विवेकानुसार ही बरसात से बचने की व्यवस्था करवाती थी। बरसात होने की स्थिति में सुबह सेलो के ताले नही खोले जाते थे और कैदियों को अपनी सेलो के अंदर ही शौच व मंजन करना पड़ता था। सुबह की प्रार्थना व कैदियों की गिनती भी सेलो व बैरकों के भीतर ही की जाती थी। इसके अतिरिक्त ऐसी स्थिति में कैदियों को व्यायाम से भी राहत मिल जाती थी। किचन के कार्य बदस्तूर जारी रहते थे जबकि नहाने के लिए औरतो को खुले में नही जाना पड़ता था और जेल में बने बड़े से स्नानागार अथवा गुसलखाने में ही कैदियों के नहाने की व्यवस्था करवाई जाती थी। हालाँकि दिनचर्या के बाद होने वाले काम से कैदियों को कोई छूट नही मिलती थी।
जेल के ऐसे काम जो छत वाले कमरों में कराए जाते थे, वहाँ पर तो कैदियों को कोई दिक्कते नही होती थी लेकिन खेत, बागवानी व खुले स्थानों वाले कामो में औरतो को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। ऐसे कामो के दौरान बारिश होने पर भी कैदियों को भीगते हुए ही अपने कार्य पूरे करने पड़ते थे जिस वजह से अक्सर कई औरते बीमार भी पड़ जाती थी। इसके बावजूद किसी भी कैदी को काम से छूट नही दी जाती थी।
बबिता और उन सभी को अपने घर की बहुत याद सताने लगी थी। भला कौन सी कैदी होगी जो अपने घर को याद ना करती हो। उन लोगो के लिए तो गोकुलधाम सोसायटी और वहाँ के लोग परिवार की तरह थे। सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था। अपने परिवार के साथ कितनी खुश थी वे लोग। अच्छे कपड़े पहनती थी, अच्छा खाना खाती थी और अपनी मर्जी से हर काम करती थी। जेल में वे लोग अक्सर अपने घरों की बाते किया करती थी। गोकुलधाम सोसायटी में साथ मिलकर त्यौहार मनाना हो, महिला मंडल की किटी पार्टी हो या कही घूमने जाना हो। आजादी के वो दिन उनके लिए अतीत की यादों में कही गुम हो चुके थे। अब तो बस जेल की चारदीवारी थी, लोहे के बड़े-बड़े तालो और कड़े पहरे के बीच बसी जेल की दुनिया और कैदी के रूप में जीवन गुजारने की मजबूरी थी।
बबिता और उन सभी को अपने घर की बहुत याद सताने लगी थी। भला कौन सी कैदी होगी जो अपने घर को याद ना करती हो। उन लोगो के लिए तो गोकुलधाम सोसायटी और वहाँ के लोग परिवार की तरह थे। सब कुछ कितना अच्छा चल रहा था। अपने परिवार के साथ कितनी खुश थी वे लोग। अच्छे कपड़े पहनती थी, अच्छा खाना खाती थी और अपनी मर्जी से हर काम करती थी। जेल में वे लोग अक्सर अपने घरों की बाते किया करती थी। गोकुलधाम सोसायटी में साथ मिलकर त्यौहार मनाना हो, महिला मंडल की किटी पार्टी हो या कही घूमने जाना हो। आजादी के वो दिन उनके लिए अतीत की यादों में कही गुम हो चुके थे। अब तो बस जेल की चारदीवारी थी, लोहे के बड़े-बड़े तालो और कड़े पहरे के बीच बसी जेल की दुनिया और कैदी के रूप में जीवन गुजारने की मजबूरी थी।
उन लोगो को जेल में रहते हुए लगभग पाँच महीने होने को आये थे। इतने महीनों में पेशी के अलावा एक बार भी जेल से बाहर जाने का मौका नही मिला था। उन सातो में केवल बबिता ही थी जिसे सेक्स के लिए एक बार जेल से बाहर ले जाया गया था लेकिन तब भी वह एक सीमित जगह का ही अनुभव ले पाई थी। जेल में बंद औरते बाहर की दुनिया से पूरी तरह कटी हुई थी और उन्हें बाहरी दुनिया के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नही दी जाती थी। उन सातो की हालत भी बिल्कुल वैसी ही थी। जेल में आने के बाद से ही वे लोग बाहरी दुनिया से पूरी तरह अनभिज्ञ थी।
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