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Adultery गोकुलधाम सोसायटी की औरतें जेल में

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आपको सातो कैदियों में से कौन सी कैदी सबसे ज्यादा पसंद हैं?
1. बबिता अय्यर
2.अंजली मेहता
3.दया गढ़ा
4.माधवी भिड़े
5.सोनालिका (सोनू) भिड़े
6.रोशन कौर सोढ़ी
7.कोमल हाथी
 
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Puja35

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आपको सातो कैदियों में से कौन सी कैदी सबसे ज्यादा पसंद हैं?
1. बबिता अय्यर
2.अंजली मेहता
3.दया गढ़ा
4.माधवी भिड़े
5.सोनालिका (सोनू) भिड़े
6.रोशन कौर सोढ़ी
7.कोमल हाथी
These prisoners i liked
1. बबिता अय्यर
2.अंजली मेहता
4.माधवी भिड़े
5.सोनालिका (सोनू) भिड़े
6.रोशन कौर सोढ़ी
....
And most I liked is
1. बबिता अय्यर

2.अंजली मेहता

5.सोनालिका (सोनू) भिड़े
 

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Update 17

पहली जोड़ी में माधवी को लिंग पहनाया गया और उसे दया को चोदना था। दूसरी जोड़ी में बबिता मर्द बनी जबकि अंजली औरत रही। तीसरी जोड़ी में कोमल ने लिंग पहना और रोशन औरत बनी। सोनू को जेलर ने अपने ही पास कुतिया बनाकर रखा और फिर उन लोगो ने आपस मे सेक्स करना शुरू किया।

दया, अंजली और रोशन अपने दोनो घुटनो और पैरों के बल डॉग पोजीशन में खड़ी हो गई और उनके पीछे उनकी तीनो जोड़ीदार क्रमशः माधवी, बबिता और कोमल लिंग पहनकर उन्हें चोदने की तैयारी करने लगी। उन तीनों के लिए लिंग पहनना बड़ा अजीब सा एहसास था जिसका अनुभव उन्होंने पहले कभी नही किया था। हालाँकि जेल में आने के बाद ऐसी कई चीजें थी जो उन लोगो के साथ जिंदगी में पहली बार हुई थी। माधवी, बबिता और कोमल ने कभी सोचा भी नही होगा कि वे लोग कभी किसी औरत को पुरुष की तरह चोदेगी और ना ही दया, अंजली और रोशन ने कल्पना की होगी कि वे लोग किसी औरत से चूदेगी।

खैर, माधवी, बबिता और कोमल ने चुदाई शुरू की। उन्होंने अपने रबर के लिंग को दया, अंजली और रोशन की चूत में पूरा घुसा दिया और उसे अंदर-बाहर करने लगी। लिंग के अंदर जाते ही उन तीनों को पहले तो थोड़ा दर्द हुआ लेकिन जब उन्होंने थोड़ा जोर लगाना शुरू किया तो उन्हें मजा आने लगा। वे लोग अनुभवी महिलाये थी। जेल में आने के बाद उन्हें पहली बार लिंग जैसी कोई वस्तु नसीब हुई थी वरना इतने दिनों से तो बस लेस्बियन सेक्स करना उनकी मजबूरी बन चुकी थी। हालाँकि रबर के लिंग से उन्हें वह ओर्गास्म तो नही मिल सकते थे जो उन्हें किसी पुरुष के द्वारा मिलते लेकिन जेल में किसी पुरुष के साथ सेक्स करने की कल्पना करना भी उनके लिए लगभग असम्भव था।​

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माधवी, दया और कोमल जेलर के कहे अनुसार अपनी पोजीशन बदल रही थी। पहले उन्होंने उन तीनों को पीछे से चोदा और फिर उन्हें जमीन पर नीचे लिटाकर उनके ऊपर चढ़कर उन्हें चोदने लगी। उनका कृत्रिम लंड उन तीनों की चूत में अंदर तक घुस चुका था और लंड के झटको की वजह से उनके मुँह से “आँह आँह” की तेज सिसकियाँ निकलने लगी। भले ही उन तीनों ने कमर पर कृत्रिम लंड पहना हुआ था लेकिन वे तीनों मर्दो की तरह चुदाई करने में असमर्थ थी। वजह साफ थी। वे औरते थी और उन्हें ऐसा करने का कोई अनुभव नही था। उनका काम चुदवाना था, चोदना नही।

इधर जेलर ने सोनू को अपनी गोदी में उल्टा लिटा लिया और उसके साथ स्पैकिंग करने लगी। जेलर सोफे पर अर्धनग्न बैठी हुई थी और सोनू की गाँड़ उसके दोनों पैरों के ऊपर थी। वह लगातार उसके हिप्स पर थपेड़े मारती जा रही थी और सोनू “आँह आँह” की हल्की सिसकियाँ ले रही थी। स्पैकिंग करते हुए ही जेलर ने सोनू की चूत में ऊँगली घुसाई और अंदर ही हिलाने लगी। उसके ऐसा करते ही सोनू के अंदर भी उत्तेजना पैदा होने लगी। उसकी आँखें चढ़ने लगी और उसका खुद को काबू में रखना मुश्किल होने लगा।

जेलर ने सोनू को सोफे पर लिटा दिया और उसकी गाँड़ चाटने लगी। सोनू अब पूरी तरह मदहोश हो चुकी थी। उसे याद ही नही रहा कि उसकी माँ और बाकी औरते भी उसी कमरे में मौजूद हैं। सेक्स की उत्तेजना में अब वह अपनी ओर से भी प्रयास करने लगी और जेलर की ब्रा को हटाकर उसके बूब्स चूसने लगी। जेलर भी अब धीरे-धीरे जोश में आने लगी थी। वह अपने एक हाथ से सोनू के निप्पल्स को चूसने लगी और दूसरे हाथ से उसकी चूत सहलाने लगी। कुछ देर तक एक-दूसरे के बूब्स चूसने के बाद जेलर ने सोनू को सोफे से उठाया और नीचे जमीन पर पीठ के बल लिटा दिया।​

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सोनू जमीन पर लेटी हुई थी। जेलर उसके ऊपर चढ़ी और अपने दोनों पैरों के घुटनो को मोड़कर उसके मुँह पर अपनी चूत रख दी। उधर बाकी औरतो की लेस्बियन चुदाई भी चालू ही थी और वे लोग जेलर के डर की वजह से रुकने का नाम नही ले रही थी। सोनू के मुँह पर बैठते ही जेलर ने उससे कहा -

‘चल बे लौंडिया। चूत चाट मेरी।’

जेलर के कहते ही सोनू ने पहले तो उसकी चूत को अपने होठों से चूमा और फिर जीभ को बाहर निकालकर उसे चाटने लगी। सोनू भले ही उत्तेजना के सागर में डूब चुकी थी लेकिन उसे जेलर की चूत चाटना बहुत ही गंदा लग रहा था। सोनू उसकी चूत चाट रही तो वही जेलर बीच-बीच मे उसकी चूचियो को सहलाती और दबाती जा रही थी। जेलर को इस पोजीशन में अपनी चूत चटवाने में बेहद मजा आ रहा था और वह कमर को हिला-हिलाकर चूत चटवा रही थी।​

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कुछ देर तक के बाद वह सोनू के मुँह के ऊपर से हट गई और खुद नीचे लेट गई। सोनू समझ गई थी कि अब वह उसकी चूत चाटना चाहती हैं इसलिए उसने अपने दोनों घुटनो को मोड़कर अपनी चूत को उसके मुँह पर रख दिया। जेलर ने भी पहले उसकी चूत को चूमा और फिर अपनी जीभ को बाहर निकालकर उसे चाटने लगी।

वे दोनो वासना के सागर में पूरी तरह डूब चुकी थी। जेलर को अब एक मर्द की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी जो उसकी सेक्स की प्यास को पूरी तरह मिटा सकें। हालाँकि उस वक़्त वहाँ कोई मर्द नही था इसलिए उसने बबिता, माधवी और कोमल को अपने पास बुलाया और उन्हें उनके कृत्रिम लंड से उसे चोदने को कहा। शुरू में तो वे लोग थोड़ा डर रही थी लेकिन जेलर के कहने के बाद उन्होंने बारी-बारी से उसे चोदना शुरू किया। सबसे पहले बबिता, फिर माधवी और अंत मे कोमल ने अपने कृत्रिम लंड से उसे लगातार शॉट पे शॉट दिए।

जेलर को चुदते हुए देखना वाकई में बेहद शानदार दृश्य था। वह एक सख्त और क्रूर महिला थी लेकिन आखिर थी तो एक औरत ही। वह जेल में बंद सभी कैदी औरतो पर राज करती थी और उसका व्यक्तित्व भी किसी पुरुष की तरह था लेकिन चुदाई के समय उसे भी नीचे ही आना पड़ता था।

दया, अंजली और रोशन अभी भी नीचे जमीन पर पड़ी हुई थी जबकि सोनू जेलर के बगल में ही खड़ी रही। उसने सोनू को गरम करके ठंडा ही छोड़ दिया और खुद सेक्स के मजे लेने लगी। उसके मुँह से “आँह आँह” की तेज सिसकियाँ निकल रही थी और वह उन तीनों को और तेजी से चोदने के लिए उत्साहित करने लगी। बबिता, माधवी और कोमल जितनी तेजी से हो सके, उतनी तेजी से लंड को अंदर-बाहर कर रही थी। पहले बारी-बारी से उसे चोदने के बाद माधवी उसके मुँह के पास आ गई और उसके मुँह में लंड डाल दिया। एक ओर बबिता और कोमल उसकी चूत में लंड डालकर उसे चोद रही थी तो वही दूसरी ओर वह माधवी के लंड को मुँह में लेकर चूस रही थी।

काफी देर तक चुदाई करने के बाद जेलर को झड़ने का एहसास होने लगा और कुछ ही देर में उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। वह झड़ चुकी थी और सोफे पर ही लेट गई। उसके बाद बबिता, माधवी और कोमल की कमर पर बँधा लंड खोल दिया गया और उन सातो को दोबारा एक साथ खड़ा करवाया गया। हालाँकि जेलर ने उन्हें जाने नही दिया और उन्हें हाथो को ऊपर कर खड़ा करवाये रखा। जेलर ने बाहर से सात महिला काँस्टेबल्स को अंदर बुलवाया और उन सातो के पीछे एक-एक काँस्टेबल को खड़ा करवा दिया। उसने सातो काँस्टेबल्स से कहा कि यदि वे लोग अपने हाथों की एक सेकंड के लिए भी नीचे करे तो पीछे खड़ी काँस्टेबल अपनी पूरी ताकत से उनकी गाँड़ पर डंडा मारे। बबीता और वे सभी बहुत देर तक हाथो को ऊपर रखने की कोशिश करती रही लेकिन आखिरकार दर्द के मारे बीच-बीच मे उनके हाथ थोड़े नीचे होने लगे।

“थपाक्क्क्कक्क….”

‘आँहहहहहहहह…आई…’

पहला डंडा सोनू को पड़ा। उसके पीछे खड़ी काँस्टेबल ने उसकी गाँड़ पर इतनी जोर से डंडा मारा कि उसका पूरा शरीर हिल गया। वह दर्द के मारे चिल्ला उठी और उनकी आँख से आँसू निकल पड़े लेकिन उसने दोबारा अपने हाथों को ऊपर कर लिया। हाथो में दर्द होने के बादजूद भी मजबूरन उन लोगो ने अपने हाथो को नीचे नही किया।

उसके बाद जेलर ने उन लोगो से बिना रुके दो सौ ऊठक-बैठक लगवाई, उनके कुत्तो की तरह भौकने को कहा और जीभ से चटवाकर पूरा फर्श साफ करवाया। किसी भी इंसान के लिए ऐसा करना बहुत ही शर्मिंदगी भरा कार्य होता है लेकिन वे लोग अब आजाद नागरिक नही बल्कि कैदी थी। उनके लिए अब ऐसा करना कोई आश्चर्य की बात नही थी। किसी भी कैदी के लिए जेल उस नर्क के समान होती हैं जिसकी कल्पना एक आम इंसान हमेशा करता हैं। कहा जाता है कि जिस इंसान के कर्म बुरे होते है, उसे मरने के बाद नर्क नसीब होता हैं लेकिन जेल जीवित इंसानो के लिए उसी नर्क का दूसरा नाम हैं।

खैर, रात के लगभग डेढ़ बजे जेलर ने उन्हें छोड़ा और उन्हें उनकी सेल में भेज दिया गया। लगातार शारीरिक प्रताड़ना की वजह से वे लोग बहुत ज्यादा थक गई थी और सेल में जाते ही उन्हें गहरी नींद आ गई।​
 
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Update 18

(परिवार से मुलाकात)

10 मार्च,

अगले दिन पहली बार जेल में उनकी मुलाकात आई। सातो के परिवार वाले उनसे मिलने आये और वे सभी लोग बेहद भावुक थे। जेल में कैदियों को मुलाकात के लिए बहुत ज्यादा समय नही दिया जाता था। प्रत्येक कैदी को केवल दस मिनट ही मुलाकात की अनुमति होती थी। मुलाकात कक्ष में कैदी और उससे मिलने आये व्यक्ति के बीच मे लोहे की जाली लगी होती थी जिस वजह से वे लोग एक-दूसरे को छू भी नही सकते थे। उन सातो को भी केवल दस मिनट का समय दिया गया लेकिन उनके साथ दिक्कत ये थी कि मुलाकात कक्ष में उन सातो के अलावा भी बहुत सारी कैदी मौजूद थी जिस वजह से वहाँ पर काफी भीड़ और शोर-शराबा था।

इतनी भीड़ के बीच मे कैदी औरते भेड़-बकरियों की तरह अपने परिवार से मिलने की कोशिशें करती रही लेकिन शोर की वजह से वहाँ पर बात करना भी बेहद मुश्किल था। वे सातो भी बड़ी मुश्किल से अपने परिवार से थोड़ी बहुत बातचीत कर पाई।​

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“सोनू…सोनू बेटा…” - सोनू के पिता आत्माराम ने उसे आवाज लगाई।

‘आई, देखो बाबा इधर हैं।’ - सोनू ने माधवी से कहा।

आत्माराम - “कैसी हो तुम दोनों?”

सोनू - ‘हम ठीक है बाबा। आप कैसे है?”

आत्माराम - “मैं भी ठीक हूँ बेटा। माधवी मुझे माफ़ कर दो। मैं तुम दोनों को यहाँ से निकाल नही पाया।”

माधवी - ‘आप क्यूँ माफी माँग रहे हो। आप कोशिश तो पूरी कर रहे है ना। देखिए जी, मैं पूरी जिंदगी जेल में रहने को तैयार हूँ पर आप बस कुछ भी करके सोनू को यहाँ से बाहर निकालिये।’

आत्माराम - “हाँ माधवी, हम सब पूरी कोशिश कर रहे हैं। तुम हिम्मत रखो। तुम्हे ही एक-दूसरे का ध्यान रखना है।’

दूसरी ओर बाकी औरते भी अपने पति और बच्चो से बाते कर रही थी। दया से मिलने के लिए उसके ससुर चंपकलाल, पति जेठालाल और बेटा टपू आया था तो वही अंजली से मिलने उसके पति तारक मेहता आये थे। बबिता से मिलने के लिए उसके पति कृष्णन अय्यर और रोशन से मिलने उसके पति रोशन सिंह सोढ़ी व बेटा गोगी आये थे जबकि कोमल से मुलाकात के लिए उसके पति हंसराज हाथी व बेटा गोली आया था।

वे लोग बातचीत कर ही रहे थे कि तभी पीछे खड़ी काँस्टेबल्स ने कुछ कैदियों सहित उन सातो पर चिल्लाते हुए कहा -

‘‘ऐ चलो। मिलने का टाइम खत्म हो गया हैं। वापस अपने सर्कल में चलो।’’

‘मैडम, इतनी जल्दी। सिर्फ दस मिनट ही तो हुए हैं।’ - अंजली ने बेबसी भरे लहजे में उनसे विनती की।

“तो तुझे क्या दस घंटे चाहिए मिलने के लिए…” - काँस्टेबल उसे डाँटते हुए बोली।

‘मैडम, बस थोड़ी देर और मिलने दीजिये। जब से जेल आये है, तब से पहली बार मिल रहे है हम लोग।’ - बबिता ने कहा।

“ये जेल हैं। तुम्हारा घर नही हैं। यहाँ इतना ही टाइम मिलता हैं। अब ज्यादा नाटक नही। चुपचाप अंदर चलो।” - काँस्टेबल ने उन्हें अंतिम चेतावनी दी।

उनके पास काँस्टेबल्स की बातों को मानने के अलावा कोई रास्ता नही था। मजबूरन कुछ मिनटो की मुलाकात के बाद उन्हें वापस अंदर जाना पड़ा। वापस जाते हुए उनकी नजरे अपने परिवार पर ही टिकी हुई थी और उनके परिवार के सदस्य भी लगातार उन्हें देखे जा रहे थे। वे लोग तब तक उन्हें देखते रहे, जब तक वे लोग उनकी आँखों से पूरी तरह ओझल नही हो गई। आखिरकार पंद्रह दिनों के लंबे इंतजार के बाद उन सातो को अपने परिवार से मिलने का मौका मिला था लेकिन उन्हें ठीक से मिलने तक नही दिया गया।​
 
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Alfiya

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“नाम बोल…”

‘बबिता अय्यर..’

“पति का नाम?”

‘कृष्णन अय्यर…’

“उमर कितनी हैं?”

‘थर्टी फाइव..’

बबिता के इतना कहते ही उसने घूरती नजरो से उसकी ओर देखा और चिल्लाते हुए बोली - “हिंदी बोलने में शर्म आ रही हैं तुझे? हाँ।”

बबिता कुछ बोल नही पाई और चुपचाप सर झुकाए खड़ी रही। काँस्टेबल ने उससे इसी तरह के कुछ और सवाल पूछे और उसकी पूरी जानकारी रजिस्टर में दर्ज कर उस पर उसके साइन करवाये। उसके बाद उसे अगली टेबल पर बैठी काँस्टेबल के पास भेज दिया गया।

अगली टेबल पर जाने के बाद बबिता की हथकड़ी खोल दी गई और उसे उसके सारे गहने व सामान टेबल पर रखने को कहा गया। उसने अपने कान के बूंदे और अंगूठियाँ उतारकर टेबल पर रख दी जिसके बाद उसे आगे खड़ी दो लेडी काँस्टेबल्स के पास जाने को कहा गया। उनमे से एक काँस्टेबल ने बबिता को खींचकर दीवार से सटा दिया और उसकी ऊँचाई की जाँच करने लगी। इसके बाद उसका वजन देखा गया और फिर उसे तलाशी व शारीरिक जाँच के लिए दूसरी काँस्टेबल के सामने खड़ा करवाया गया।

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“चल कपड़े उतार..” - काँस्टेबल ने कहा।

कपड़े उतारने की बात सुनकर बबिता एक पल के लिए तो बिल्कुल स्तब्ध रह गई लेकिन उसके पास कोई रास्ता नही था। वह एक कैदी के तौर पर जेल के जाँच कक्ष में खड़ी थी और वहाँ का माहौल उसके लिए डर से भरा हुआ था। कमरे में किसी प्रकार की कोई गोपनीयता नही थी। वह जिस जगह पर खड़ी थी, वहाँ पर कमरे में मौजूद सभी महिला पुलिसकर्मी व कैदी औरते उसे सीधे देख सकती थी। उसने थोड़ी हिम्मत की और काँस्टेबल से बोली -

‘मैडम, यहाँ सबके सामने कपड़े कैसे…’

तभी उस काँस्टेबल ने उसे बीच मे टोकते हुए कहा - “ए, क्या रे। सबके सामने कपड़े नही उतार सकती तू। हरामी साली। तेरे पास ऐसा क्या स्पेशल हैं जो हमारे पास नही हैं..😡।”

‘अबे बूब्स देख ना साली के। पूरा पहाड़ है पहाड़।’ - पीछे से एक अन्य काँस्टेबल बोली।

वे लोग उसका मजाक उड़ाने लगी और उस पर हँसने लगी। बबिता मजबूर थी। ना चाहते हुए भी उसे चुप रहना पड़ा और काँस्टेबल के कहने पर अपने कपड़े उतारने पड़े। उसने सबसे पहले अपना टॉप उतारा और फिर एक-एक करके अपना जीन्स, ब्रा और पेंटी भी उतार दी। अब वह पूरी तरह से नग्न थी। बदन पर एक भी कपड़े नही थे। उसका बदन भरा-भूरा व आकर्षक था और उसके बड़े-बड़े सुडौल स्तन गुब्बारो की तरह उसके सीने से लटक रहे थे। उसके कूल्हे उभरे हुए थे और कमर भी बहुत ज्यादा पतली नही थी। शरीर पर वसा का जमाव अधिक था जिसकी वजह से वह और भी ज्यादा सेक्सी लगती थी। काँस्टेबल ने उसे नग्न करवाने के बाद उसकी तलाशी व जाँच शुरू की।

जाँच की शुरुआत उसके बालो से हुई। उसने उसके बालो पर हाथ फेरा और उन्हें बिखेर दिया। उसके बाद उसके मुँह, कान, नाक, गले व गर्दन की जाँच की और फिर उसे दोनों हाथों को ऊपर करने को कहा। बबिता ने जैसे ही अपने दोनों हाथ ऊपर किये, वह काँस्टेबल उसके करीब आई और उसके स्तनों को दबाने लगी।

“ये क्या कर रही है आप?” - बबिता ने झट से उसके हाथों को दूर करते हुए कहा।

‘ऐ, चुपचाप खड़ी रह और हमे अपना काम करने दे।’ - काँस्टेबल ने उसे डाँट लगाई।

बबिता आगे कुछ न बोल सकी और शांत खड़ी रही। उस काँस्टेबल ने उसके स्तनों को अपने हाथो से ऊपर उठाया और उन्हें दबाकर अच्छी तरह से चेक करने लगी। इसके बाद उसने उसे दोनो टाँगे फैलाने को कहा। उसके कहने पर बबिता को अपनी दोनों टाँगे फैलानी पड़ी और वह टाँगे फैलाकर खड़ी हो गई। फिर काँस्टेबल ने अपने हाथों में दस्ताने पहने और उसकी योनि में अपनी ऊँगली डालकर चेक करने लगी कि उसने अपनी योनि में कुछ छुपाया तो नही हैं। बबिता के लिए वह क्षण बहुत ही शर्मिंदगी भरा था और उसे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने उसकी इज्जत ही लूट ली हो। काँस्टेबल यही नही रुकी। योनि की जाँच करने के बाद उसने उसे दीवार पर हाथ टिकाकर खड़े करवाया और उसके पीछे के छेद में ऊँगली घुसा दी। उसके लिए अब सब कुछ असहनीय होने लगा था और सहसा ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। इस तरह का व्यवहार किसी भी इंसान को अंदर तक झकझोर देता हैं। उस वक़्त बबिता का वही हाल था। वह एक अच्छे परिवार की पढ़ी-लिखी महिला थी। पति वैज्ञनिक थे जबकि वह खुद एक हाउसवाइफ थी। उसका रहन-रहन, पहनावा और बोलचाल का तरीका पूरी तरह से मॉडर्न था।

खैर, शारीरिक जाँच और तलाशी के बाद उसे एक स्लेट दी गई जिस पर उसका नाम, उम्र, अपराध व कैदी नंबर लिखा हुआ था। उसे 2392 कैदी नंबर दिया गया। जाँच के बाद उसने अपने कपड़े पहने और फिर उसका मगशॉट (जेल के रिकॉर्ड के लिए कैदी की तस्वीर) लिया गया। चूँकि वह एक अंडरट्रायल कैदी थी इसलिए उसे जेल के कपड़े नही दिए गए। उसकी तस्वीर लेने के बाद उसे कुछ सामान दिया गया जिसमें एक थाली, मग, कंबल, टॉवेल व एक बाल्टी शामिल थी। जाँच प्रक्रिया पूरी होने के बाद उसे एक तरफ दीवार से सटाकर खड़ा करवाया गया और तब तक खड़ा रखा गया जब तक उसके साथ लाई गई सभी कैदियों की जाँच पूरी नही हो गई।

बबिता के साथ उसी की सोसायटी की छः अन्य महिलाओ को भी जेल लाया गया था। इन आरोपी महिलाओं में अंजली मेहता, दया गढ़ा, रोशन कौर सोढ़ी, कोमल हाथी, माधवी भिड़े और उसकी बेटी सोनालिका भिड़े शामिल थी। इन सभी पर उन्ही की सोसायटी में हुई एक व्यक्ति की हत्या का आरोप था। एक दिन पहले ही सभी को उनके घरों से गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद अदालत ने किसी को भी जमानत ना देते हुए सभी को 14 दिनों की ज्यूडिशियल कस्टडी में जेल भेजने के आदेश दिए।​
Nice update
 
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