Update 12
“अरे देखो देखो। नई कैदी लोग आ रही हैं…” वार्ड में वापस जाते ही एक सीनियर कैदी ने उन्हें देखकर कहा।
‘अबे क्या माल है रे साली सब की सब…’
“दिखने में तो सब शरीफ लग रही है साली...”
‘अबे दिखने में तो हम भी शरीफ ही लगती है पर हमसे बड़ी हरामी कोई है क्या इधर
…’
“अरे वो सब छोड़ो। ऐ संध्या। जा उन्हें लेकर आ।” - एक अन्य कैदी कमला ने उससे कहा।
‘हाँ दीदी।’
संध्या तुरंत ही उन सातो के पास गई और उन्हें अपने साथ चलने को कहा। उन लोगो का उसके साथ जाने का मन तो नही कर रहा था लेकिन जेल के नियमो व जेलर की चेतावनी की वजह से उन्हें उसके साथ जाना पड़ा। संध्या उन्हें सीधे वार्ड नंबर 19 के सामने बने चबुतरे के पास ले गई जहाँ कमला, गुलरेज व कई अन्य खतरनाक कैदी औरते उनका इंतजार कर रही थी। उन सातो को उनके सामने खड़े करवाया गया और लगभग 25 से 30 औरते उन्हें घेरकर खड़ी हो गई।
“क्या रे कमिनियो। क्या करके आई हो।” - कमला ने पूछा।
‘हमने कुछ नही किया है बेन।’ - दया ने जवाब दिया।
“अच्छा। कुछ नही किया तूने। तो इधर क्या अपनी माँ चुदाने आई है साली।” - उसने दया पर चिल्लाते हुए कहा।
दया आगे कुछ नही बोल पाई और चुपचाप सर झुकाकर खड़ी रही। कमला ने उन सभी को घूरती नजरो से देखा और फिर दया को अपने पास बुलाकर बोली - ‘नाम क्या है तेरा?’
‘दया जेठालाल गढ़ा’ - दया ने कहा।
‘साली तू दिखने में तो बड़ी घरेलू लगती हैं। पर तु है बड़ी हराम की जनी। कही तेरी माँ भी तो रंडियापा नही करती थी जवानी में…
। - उसने दया का मजाक उड़ाते हुए कहा।
दया को अपनी माँ के बारे में उसकी बाते बुरी तो बहुत लगी लेकिन उसकी मजबूरी थी कि वह उसे कुछ बोल नही सकती थी। कमला ने दया के बाद अंजली से भी उसका नाम पूछा और फिर बारी-बारी से उन सभी का परिचय लिया।
“चलो, कान पकड़ो और मुर्गा बनो सब।” - कमला ने उन्हें आदेश दिया।
‘जी?’ - बबिता के मुँह से सहसा ही निकल पड़ा।
“अबे सुनाई नही दिया क्या लौड़ी? कान पकड़ो और मुर्गा बनो।”
उन सातो के पास कोई रास्ता नही था। जेल में उनका पहला दिन था और वे लोग सीनियर कैदी औरतो से घिरी हुई थी। यदि वे लोग उनकी बात नही मानती तो जाहिर था कि उन्हें खूब मार पड़ती। मजबूरन उन्हें उन सबके सामने मुर्गा बनना पड़ा। वे लोग आगे की ओर झुकी और अपने दोनों पैरों को फैलाकर उनके बीच मे से अपने हाथों को अंदर डाला और अपने कान पकड़कर उसी अवस्था मे स्थिर हो गई। उनका सर नीचे की ओर था और उनके कूल्हे जमीन से कुछ ऊँचाई पर उठे हुए थे। उन सबके लिए मुर्गा बनना आसान नही था। चूँकि माधवी और दया ने साड़ी पहनी हुई थी इसलिए उन दोनों को सबसे ज्यादा दिक्कत हुई। उन्होंने अपनी साड़ी घुटनों तक ऊपर उठाई और मुर्गा बनी।
उन लोगो को काफी देर तक उसी अवस्था मे रखा गया। यदि वे लोग अपने कूल्हों को नीचे करती या जरा सी भी लड़खड़ाती तो सीनियर औरते उन्हें लाते मारने लगती। यहाँ तक कि उन्होंने सोनू को भी नही बख्शा और उसके साथ भी वैसा ही बर्ताव किया। वे लोग कोई छोटी बच्ची नही थी जो मजाक-मजाक में ऐसा कर लेती। सोनू को छोड़कर वे सभी 35 साल से अधिक उम्र की वयस्क औरते थी और उनके लिए यह सब बेहद अपमानजनक था।
“चलो खड़ी हो और कपड़े उतारो फटाफट।” - कमला ने फिर कहा।
वे लोग खड़ी हुई और अपने कपड़े उतारने लगी। कुछ ही देर में वे लोग पूरी तरह से नंगी हो गई और सीनियर कैदियों के लिए मनोरंजन का साधन बन गई। उनके बड़े-बड़े बूब्स वाकई में बेहद आकर्षक थे और उनके कूल्हों पर जमें वसा की वजह से वे लोग और भी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। वे सातो गोरी-चिट्टी और खूबसूरत थी जिस वजह से सीनियरों कैदियों को उन्हें परेशान करने में और भी ज्यादा मजा आ रहा था। हालाँकि कोमल बहुत मोटी थी लेकिन दिखने में ठीक थी। उनके पीछे खड़ी औरते उनके कूल्हों पर हाथ मारने लगी और उन्हें दबाने लगी। तभी कमला भी अपनी जगह से उठी और बबिता के सामने जाकर खड़ी हो गई। उसने बबिता के चेहरे को जोर से पकड़ा और अपने होंठ उसके होंठो पर टिका दिए। एकदम से कमला का आना और किस करना बबिता के लिए असहजतापूर्ण था। वह स्तब्ध रह गई और आनन-फानन में कमला को धक्का दे दिया।
‘साली हरामजादी। मेरे को धक्का दिया तूने। कमला को धक्का दिया।’
कमला गुस्से से आग बबूला हो चुकी थी और बबिता की ओर घूरकर देखने लगी। उसने वहाँ मौजूद कैदियों से बबिता को नीचे लिटाने को कहा जिसके बाद उन लोगो ने पूर्ण नग्न अवस्था मे खड़ी बबिता को हाथों व पैरों से पकड़ा और उसे नीचे जमीन पर लिटा दिया।
उसके बाद वे लोग एक-एक करके बबिता के ऊपर चढ़ने लगी और उसके साथ लेस्बियन होने लगी। जो औरते उसके ऊपर चढ़ती जाती, वे उसे चूमती, उसके बूब्स दबाती और उसकी चूत में अपनी ऊँगली से गुदगुदी करती। बबिता असहाय थी और उस खिलौने की तरह बेबस पड़ी हुई थी जिसका इस्तेमाल सीनियर औरते अपनी मर्जी से कर रही थी। एक तरह से उसका बला….र ही हो रहा था। बस फर्क इतना ही था कि उसके साथ ऐसा करने वाले कोई पुरुष नही बल्कि उसी की तरह महिलायें थी।
कमला सहित बहुत सारी औरतो ने उसके साथ लेस्बियन सेक्स किया। हालाँकि उनके पास उसकी योनि में डालने के लिए डिल्डो या अन्य किसी तरह की कोई भी वस्तु नही थी जिस वजह से ज्यादातर औरतो ने अपनी ऊँगली और हाथ का इस्तेमाल किया। काफी देर तक उसके साथ सेक्स करने के बाद उन लोगो ने उसे छोड़ तो दिया लेकिन उसे जाने नही दिया। उसे अंजली और बाकी सभी के साथ ही दोबारा खड़े करवाया गया और फिर से उनकी रैगिंग शुरू हो गई।
सीनियर कैदियों ने उनसे ऊठक-बैठक लगवाई, एक पैर पर खड़े करवाया, जानवरो की नकल उतरवाई और कई तरह से उनकी रैगिंग ली। उन्हें एक-दूसरे के स्तनों पर मुँह लगाकर दूध पीने को कहा गया जिसे उन्हें मानना पड़ा। कुछ देर बाद उन्हें हाथो और घुटनों के बल जमीन पर गाय की तरह बिठाया गया और एक कतार में एक-दूसरे की गांड में मुँह लगाने को मजबूर किया गया।
सबसे आगे दया थी। उसके पीछे माधवी और माधवी के पूछे क्रमशः सोनू, अंजली, बबिता, रोशन और कोमल थी। दया की गाँड़ में माधवी का मुँह घुसा हुआ था और माधवी की गाँड़ में सोनू का। इसी तरह आगे भी श्रंखला बनी हुई थी और उन्हें इसी अवस्था मे घुटनो और हाथो के बल पर चलना पड़ रहा था। सीनियर औरते लगातार उनका मजाक उड़ा रही थी और उनके मजे ले रही थी। उन सातो की बेबसी, अपमान और दर्द केवल वे सातो ही समझ सकती थी और उस वक़्त उनकी मनोस्थिति का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था। जेल में आने के बाद से ही लगातार उन्हें रैगिंग, प्रताड़ना और शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ रहा था।
जेल एक ऐसी जगह होती है जहाँ एक माँ अपनी बेटी को अपनी आँखों के सामने पिटता देखकर भी कुछ नही कर सकती। यही स्थिति माधवी की भी थी। अपनी आँखों के सामने ही अपनी बेटी के साथ गंदी-गंदी हरकते होती देख भी उसे चुप रहना पड़ रहा था। एक माँ अपने बच्चे को दुनिया की हर खुशी देना चाहती हैं लेकिन माधवी वह लाचार माँ बन चुकी थी जो अपनी बेटी के साथ गलत होता देख भी उसे रोकने में असमर्थ थी।
खैर, उन सातो को नचवाया गया, उनसे गाना गवायाँ गया, पुशअप्स लगवाए गए और उनके साथ मारपीट तक की गई। सबसे अंत मे उन्होंने उन लोगो को कुर्सी में बैठने वाली स्थिति में खड़े करवाया और काफी देर तक उसी अवस्था मे रखा। उनके लिए यह स्थिति बहुत ही तकलीफदेय थी क्योंकि उन्हें अपने कूल्हों को हवा में और हाथो को आगे की ओर रखना पड़ रहा था। पीछे खड़ी कैदी औरते अपनी पूरी ताकत से उनकी पीठ और कूल्हों पर लाते मारती जा रही थी ताकि वे आगे की ओर गिर पड़े। दिलचस्प बात यह थी कि उन सातो को पीछे से लाते पड़ने के बावजूद अपनी जगह से हिलना या आगे गिरना मना था। यदि वे लोग अपनी जगह से जरा भी हिलती या आगे जाती तो उन्हें और ज्यादा मार पड़ती। आखिरकार घंटो तक उनकी रैगिंग करने के बाद सीनियर कैदियों ने उन्हें जाने दिया जिसके बाद उन्होंने अपने कपड़े अपने और सीधे अपनी सेल में चली गई।