हालांकि मैं वंदना के बात को सुनते हुए कार लेने से मना कर दिया होता है। जिस बात के ऊपर वंदना मुस्कुरा देती है क्योंकि वह समझ चुकी होती है कि मैं लेखपाल की नौकरी करता हूं सरकारी नौकरी है ।मेरी कमाई तो अंधाधुंध है लेकिन कहीं ना कहीं लोगों से छुपाना चाहता हूं मेरे इस चालाकी भरी समझदारी से वंदना भी मुस्कुरा रही होती है।
मैं वंदना को बोला होता है की बुलेट मोटरसाइकिल ठीक रहेगी अगर तुम चलना चाहो तो शाम के वक्त चल सकते हो या अभी ही चल सकते हो इधर मैं भी काम कर लूंगा मोटरसाइकिल भी ले लूंगा और तुम भी अपना बाजार का काम कर लेना। ऐसे ही थोड़े देर के बाद हम लोग वहां से उठकर के तैयार हो जाते हैं मैं वंदना के साथ बाजार चले जाताहूं। कुछ ही देर में हम लोग बुलेट मोटरसाइकिल के शोरूम के बाहर पहुंच जाते हैं जहां पर मैं जितने भी डॉक्यूमेंट के काम होते हैं वह सारे कर चुका होता हूं। उसके बाद में मोटरसाइकिल वहां से लेकर के वंदना को पीछे बिठाकर के बाजार की तरफ निकल जाता हूं। वंदना ने इधर-उधर का काम किया होता है और हम लोग आखिरकार में एक कपड़े की दुकान पर आते हैं जहां मैं वंदना को बोला होता है एक साड़ी पसंद करने के लिए और भी इस तरह की चीज पसंद करने के लिए उसके बाद कुछ देर में हम लोग वहां से भी निकल जाते हैं और आखिरकार बाजार से निकलते वक्त हलवाई की दुकान के बाहर जो कि वहां की प्रतिष्ठित मिठाई की दुकान थी वहां पर मैं अपनी बुलेट मोटरसाइकिल लगा करके वंदना को वहां से लेकर के अंदर की तरफ जाते हुए कोने वाले सीट के ऊपर बैठ जाता हूं। कुछ देर वहां पर नाश्ता करने के बाद हम लोग घर की तरफ रवाना हो चुके होते हैं। जहां मैं वंदना को बोला होता है कि यहां तो कोई है नहीं तो तुम तो मेरे घर जैसे ही हो तो गाड़ी की पूजा तुम ही कर दो मोटरसाइकिल के लेकिन उससे पहले जब वंदना जा रही होती हो तो मैं उसके हाथों में वह साड़ी वाला थैला दे दिया होता है। जिसके ऊपर वह मेरे तरफ देखती है तो मैं बोलता हूं अरे तुम्हारे लिए ही लिया है वहां पर नहीं बोला था क्योंकि सोचा सरप्राइज देता हूं तुमको कहते हैं की शुभ काम करने चाहिए तो नए कपड़े पहन करके करना चाहिए हालांकि वंदना मना करती है लेकिन मैं अपनेपन में से समझाता हूं तो वह मान जाती है थोड़े ही देर के बाद वह अच्छे से तैयार होकर के जब आती है तो मैं एक बार उसकी तरफ से देखते रह जाता हूं। विधिवत तरीके से वंदना ने नई मोटरसाइकिल का मेरा पूजा कर दिया होता है। इसी में तकरीबन 8:30 बज चुके होते हैं और मोनू भी अपने ट्यूशन से आ चुका होता है रोज की तरह हम लोगों ने खाना पीना खाया होता है और फिर मैं थोड़े बहुत अपने ऑफिस का काम करने के बाद सो जाता हूं।
मोनू: सुबह में उठकर के फिर वापस तैयार होने के लिए चला जाता हूं अपने स्कूल जाने के लिए मैं घर से निकल चुका होता हूं और स्कूल पहुंच करके दोस्तों से बात होती है पढ़ाई को लेकर के जहां हम लोग आपस में एक दूसरे के नोट्स को लेकर के बातें कर रहे होते हैं ग्रुप स्टडी को लेकर के बातें कर रहे होते हैं। और पिछले कई दिनों से रोज सुबह उठना स्कूल आना पढ़ाई करना फिर ट्यूशन जाना फिर रात को 8:30 बजे घर पहुंचना इन्हीं सब चीजों में वक्त निकल रहा था जिंदगी एकदम बिल्कुल बेरंग जैसी लग रही होती है।
मुझे कोई खबर नहीं थी कि अशोक मामा जैसा कि आप लोग जानते हो कि यह हमारे कोई रिश्तेदार नहीं है बस एक मुंह बोला मामा जैसे है। जो कि अब मम्मी को फसाने में लगे हुए होते हैं और मुझे इस बात की कोई भी जानकारी नहीं होती है। हम सब उनके साथ में पूरी तरीके से घुले मिले हुए होते हैं जो कि पहले भी थे यहां आने से उनके पहले।
मैं कभी स्कूल से आता खाने के लिए आता तो देखता था कि वह और मम्मी आपस में बैठकर बातें कर रहे हैं। जो की एक बहुत ही सामान्य बात थी। मैं अपना खाना पीना खाता और फिर वापस ट्यूशन चल जाता। जब मैं ट्यूशन से लौट करके आता रात तकरीबन 8:00 बजे ही आ गया होता हूं क्योंकि आज थोड़ी जल्दी छुट्टी हो गई होती है। वजह होती है कि आज मैच होता है क्रिकेट का तो सर ने भी थोड़ा जल्दी छुट्टी दे दिया होता है मैं घर पहुंच जाता हूं और गाड़ी अंदर करने के बाद अपनी मोटरसाइकिल से उतर अंदर से मेन दरवाजे को लगा लेता हूं।
और जैसे ही अंदर आता हूं देखता हूं कि मम्मी के कमरे में टीवी चल रहा होता है उसे पर मैच चल रहा है मुझे बड़ा आश्चर्य लगता है की मम्मी आज कैसे मैच देख रही है। मैं अपने बैग को वहीं पर रख करके क्योंकि मुझे पेशाब लगी हुई होती है जोर से मैं जल्दी से जाते हुए अपने बैग को रख करके जैसे ही बाथरूम के दरवाजे पर हाथ रखता है दरवाजा अंदर से लगा नहीं होता है लेकिन जो मैं देखता हूं उसे पर यकीन कर पाना भी मुश्किल था। अशोक मामा जो की अंदर बैठकर के बाथरूम कर रहे होते हैं। मैंने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रख तो दरवाजा तो खुल गया लेकिन अगले ही पल मेन दरवाजे को बंद कर दिया लेकिन कुछ अजब दिखा मुझे । मुझे अशोक मामा का पूरा लौड़ा दिखाई दिया जो कि वाकई में जानवर जैसा था जो की बहुत ही बड़ा मोटा एकदम लटकता हुआ काले रंग का आपस में पूरे गाने बाल होते हैं नीचे और उनके अंडकोष भी किसी बड़े से अमरुद इतने बड़े होते हैं। और चारो बगल घने काले बाल और भी खतरनाक लग रहा होता है। उनकी लंबाई और मोटाई ऐसी थी ऐसी की रंडी के बुर में भी जाए तो रंडी भी एक बार कसमसा जाए। मुझे जोरों की पेशाब लगी थी तो मैं निकाल करके नाले की तरफ चला जाता हूं। और जब मैं वापस आता हूं मम्मी से पूछता हूं आज क्रिकेट मैच कैसे देख रही हो तुम तो बातों ही बातों में मुझे मालूम चलता है की मम्मी नहीं बल्किअशोक मामा क्रिकेट देख रहे होते हैं मैं अंदर आता हूं देखता हूं कमरे में पूरी तरीके से अंधेरा है बस एलसीडी की स्क्रीन लाइट से जो भी रोशनी आ रही होती है वही। मैं मम्मी के कमरे में ही बेड पर कंबल के नीचे लेट जाता है दीवार से तकिया लगा करके अपना पीठ टिका देता हूं। और थोड़ी ही देर के बाद अशोक मामा भी आ जाते हैं। वह मुझसे पूछते हैं कि आगे ट्यूशन से मैंने बोला कि हां और वह फिर मेरे बगल में ही आकर के बिस्तर पर आ जाते हैं और वह भी ठीक उसी तरीके से लेट जाते हैं जैसा कि मैं क्योंकि मम्मी वहां पर थी नहीं अब दीवार की तरफ अशोक मामा लेटे हुए होते हैं और बिस्तर के साइड में मैं होता हूं और मम्मी किचन में कुछ कर रही होती है मैंहालांकि मैच को शुरू हुए ज्यादा देर नहीं हुए थे लेकिन अब टॉस वगैरह हो गया था और पहले ओवर शुरू हो चुका था। लेकिन तभी मम्मी मुझे आवाज देती है कि मोनू चाय ले लो अपने लिए भी मां के लिए भी ना चाहते हुए भी मुझे उठ करके जाना पड़ा और मैं वहां से उठ करके चाय लेने के लिए जाता हूं और जब मैं चाय लेकर के कमरे में आता हूं तो देखता हूं कि अब अशोक मामा बिस्तर के साइड में होते हैं स्वाभाविक सी बात थी कि अब मेरे लिए वहां जगह नहीं थी तो मैं उनको चाय देते हुए कोने में चल जाता हूं और आप अशोक मामा बिस्तर के साइड में होते हैं। हम दोनों के पीठ दीवार से टिके हुए दोनों मैच देख रहे होते हैं। तभी मम्मी भी कमरे में आती है अपने हाथ में कप लेकर के और बिस्तर के साइड में कुर्सी लगा करके बैठ जाती है चाय पीते हुए। जबकि जहां तक मैं जानता था कि मम्मी को मैच बिल्कुल भी पसंद नहीं होता है उनका वही सास बहू वाली सीरियल जितनी पसंद हो जाए वरना जब कभी सीरियल के टाइम पर मैं मैच देखने की कोशिश करता था तो कभी भी मुझे देखने नहीं देती थी। इधर अंधेरे में बैठकर के मैं भी मैच देख रहा होता हूं टीवी के स्क्रीन की तरफ मेरी आंखें होती है और उधर मम्मी अशोक मामा के बगल में एकदम पूरी नजदीक कुर्सी सटा कर बैठी हुई होती है। मैच देखने में मजा तो बहुत आ रहा था लेकिन जब विकेट गिर गया होता है और पारी धीरे-धीरे चल रही होती है सिंगल सिंगल तब मेरा भी मन नहीं लगता है की अच्छा खासा मैच चल रहा था विकेट नहीं गिरना था एक पल के लिए मेरी नज़रें एलसीडी से जब इधर होती है। मैं देखता हूं मम्मी अशोक मामा की तरफ तिरछी नजरों से मुस्कुरा कर देख रही होती है उनका नजर तो सामने है लेकिन उनकी तिरछी नजरे उनके ऊपर ही होती है और चेहरे पर हल्की मुस्कान होती है। अंधेरा होने की वजह से इतना तो नहीं दिखाई दे रहा होता है। लेकिन तभी मेरी नज़रें जब उनको गौर से देखती है तो मैंने ध्यान दिया कि उनका जो साइड वाला हाथ है जो कि बिस्तर के तरफ होता है वह कंबल के अंदर होता है। और कंबल भी जो होता है वह बिस्तर से थोड़ा नीचे की तरफ लटका हुआ होता है जिसमें देखने के बाद यह भी नहीं पता चल रहा होता है कि कंबल के अंदर हाथ है या फिर हाथ बाहर ही है। मुझे यह चीज बहुत ही अजीब लग रहा था लेकिन मैं इतना ध्यान नहीं देता हूं क्योंकि मैंने मम्मी के बारे में आज से पहले ना कभी ऐसा कुछ सोचा था ना समझा था क्योंकि उनकी इमेज बहुत ही अच्छी थी।