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Adultery घर में दफन राज(इंसेस्ट; एडल्टरी ; कॉकोल्ड)

क्या आप लोग मोनी दीदी के फ्लैशबैक जानना चाहोगे किसने पहली बार मोनी को कली से फूल बनाया


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Praveen84

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मैं चुपचाप वहां से निकाल कर के अपने कमरे में आ जाता हूं भले ही हमारी इतनी पुरानी जान पहचान तालुकात होते हैं लेकिन कहीं ना कहीं वंदना एक औरत होती है और मैं एक मर्द होता हूं।


मेरे नजरों के सामने में वंदना की पाव रोटी की तरफ फूली हुई बालों वाली बुर सामने घूम रही होती है। और पजामे के अंदर में मेरा पूरा लौड़ा खड़ा हो गया होता है। और कहीं ना कहीं मेरी नजर अब वंदना के लिए बदल चुकी होती है मैं वंदना को एक औरत की नजरों से देखने लग जाता हूं उसके लिए हवस आने लग जाती है। आधे घंटे तक सोने के बाद मैं सोच लिया होता है वंदना को लेकर के आगे बढ़ने का क्योंकि मुझे लग रहा होता है कि वह भी औरत है उसका पति हमेशा बाहर रहता है उसको भी जरूरत होगी किसी भरोसे की मर्द की ऐसे ही सोचते हुए आधे घंटे के बाद मैं अपने कमरे से बाहर निकलता हूं।

वंदना के दरवाजे के पास जब मैं जाता हूं तो जानबूझकर के आवाज देता हूं ताकि उसे मालूम नहीं चले कि मैं पहले ही आ गया था यहां। और जब वंदना मुझसे पूछती है कि कब आए तो मैं झूठ बोल दिया कि अभी तुरंत ही आया हूं।


वंदना तैयार हो चुकी होती है और पूरी तरीके से सुंदर लग रही होती है थोड़े ही देर में वंदना ने हम दोनों के लिए खाना निकाला। खाना खाते हुए मैं और वंदना बातें कर रहे होते हैं घर परिवार के इधर-उधर के बारे में जहां मेरी बातचीत होते हुए मैं वंदना से बोलता भी हूं



जैसे मानो कि मैं उसके जिंदगी की तनहाई को परखना चाहता हूं उसके अकेलेपन को जांचना चाहता हूं मैं बातों ही बातों में बोलता हूं कि तुम हमेशा घर में ही रहती हो कभी बाहर नहीं जाती हो मन कैसे लग जाता है तुम्हारा जिस पर वंदना का जवाब आता है कि बस घरेलू कामों में बच्चों में इन्हीं सब चीजों में वक्त निकल जाता है खुद के लिए अब वक्त कहां


मैं भी एक अच्छे और परिपक्व इंसान की तरह उसके शुभचिंतक की तरह उसके पारिवारिक सदस्य की तरह बोलता हूं फिर भी तुम्हें कम से कम कभी बाहर भी जाना चाहिए इससे मूड बढ़िया होता है। बच्चे काम यह तो जिंदगी भर चलता रहेगा इंसान को अपने लिए भी समय निकालना चाहिए जिस पर वंदना बोलती है बात तो ठीक है तुम्हारी लेकिन अकेले कहां जाएं

जिस बात को मैंने एक मौके की तरह झट से लपक करके बोलता हूं अरे अकेले की कहां बात है मैं भी यहां पर रहता हूं। हम लोगों ने साथ में पढ़ा है लिखा एक दूसरे के सोच से अवगत है एक दूसरे को जानते हैं।


कभी मार्केट हो जाया करो रोज कम से कम शाम के वक्त में इसी बहाने काम भी हो जाएगा रोज हरी सब्जियां भी खरीदना हो जाएगा और थोड़ा बहुत मन भी लग जाएगा


और ऐसा क्यों बोलती हो कि कोई है नहीं आदमी घर में मैं हूं ना यहां पर अब यह भी तो मेरे परिवार जैसा ही है तुम तो एकदम बेगाना ही कर रही हो मुझे



कहीं जाना हो या कोई दिक्कत हो कोई परेशानी हो मुझे तो कम से कम बोल सकती हो।


मैं वंदना की दुखती हुई नसों को पकड़ लिया था और मैं ठीक उसी तरीके से काम कर रहा था। बातचीत करते हुए बातों का सिलसिला बढ़ रहा वंदना और मैं काफी सालों से अच्छे दोस्त होते हैं तो जहां मुझे दोस्त की तरह हर तरह की पारिवारिक बातें वह मुझे। साझा करती है।।



मैं भी एकदम पारिवारिक होते हुए बोलता हूं कि मोनू के ऊपर थोड़ा ध्यान दिया करो गाड़ी दे दिया है मोटरसाइकिल अच्छी बात है लेकिन थोड़ा नया लड़का है ध्यान दिया करो बाकी मैं यहां पर रहने आया हूं रहता हूं तो अब कहीं ना कहीं वह भी मेरे बच्चे जैसा ही है तो मेरी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है कहीं कुछ गलत लगेगा तो मैं तुमको बोलूंगा।

जिस पर वंदना मुझे बोलती है कि बोलना नहीं है सीधा दो थप्पड़ लगा देना है और एक पल भी नहीं सोचना है। मैं भी मुस्कुराते में बोलता हूं हां हां ऐसा ही होगा खैर कोई बात नहीं अच्छा लड़का है बस थोड़ी ध्यान देने की जरूरत है। दिमाग से तो काफी तेज है मैं बात किया है लेकिन थोड़ा चंचल है मन इधर-उधर भागता है आजकल देखता हूं मिलता ही नहीं है रात में ही कभी-कभी मिलता है।


शायद आजकल वह काफी पढ़ाई को लेकर के सीरियस हो गया है वैसे तुम भी तो अकेले ही रहती हो भी दिन भर मैं भी यहां ऑफिस से आने के बाद अकेले ही रहता हूं मन नहीं लगता है वही सोच रहा था कहीं जाता घूमने की लेकिन फिर अकेले कहां जाना इस अनजान शहर में


वैसे तुम भी खाली ही होती हो अकेले ही होती हो शाम को हम लोग कभी-कभी थोड़ा बाहर घूम लिया करेंगे तो सही रहेगा क्योंकि मुझे भी कोई कोई काम होता है और तुम भी इसी बहाने सब्जियां वगैरा लेना



बातें करते हुए वंदना मुझे बोल रही होती है किसके पापा यहां नहीं होते हैं तो थोड़ी दिक्कत तो होती है क्योंकि घर के आदमी के होने की एक अलग बात होती है वह होते तो मोनू के ऊपर थोड़ा बढ़िया तरीके से गाइडेंस रखते बहुत तरह की दिक्कत होती है उनके नहीं होने से



मैं भी इस बात को समझते हुए वंदना को बोलता हूं बात तो तुम्हारी सही है लेकिन कर भी क्या सकते हो कहीं ना कहीं आदमी घर परिवार से दूर रहता है अपने बच्चों के लिए ही ना अब मुझे ही देख लो



अब दूसरी जगह मेरी जॉइनिंग होती वहां पर तो और भी मुश्किल से समय निकलता लेकिन कम से कम यहां अपने लोगों के बीच में यहां आ गया हूं तो इसी बहाने तुमसे थोड़ी बातचीत हंसी मजाक चाय साथ में पीना तो एक वक्त निकल जाया करेगा तुम्हारा भी मेरा भी


बातों का दौर बढ़ रहा होता है जहां मैं यह तो समझ चुका होता हूं की वंदना पूरी तरीके से खालीपन महसूस करती है और उसे भी जरूरत है जिस चीज की मैं समझ रहा होता हूं क्योंकि अब मैं पूरी तरीके से घुमा फिरा करके उसके मन की स्थिति को जान लिया होता है।।



बातों ही बातों में वंदना मुझसे पूछती है मेरे काम के बारे में जहां मैं उससे बोलता हूं कि थोड़ी दिक्कत होती है अब बिना मोटरसाइकिल के बनेगा नहीं मैंने उसे बोला होता है कि अगर शाम को आज होगा तो चलना साथ में तो मार्केट भी कर लेना और मैं उधर से मोटरसाइकिल भी ले लूंगा अपने लिए


हालांकि वंदना ने मुझे कार के लिए बोला होता है
Tumari likhne ki kla shandar h maja aa jate h padke ....or jo Vandana ko discription diya wo to kamal ka ta .....aage jo kand hoga wo monu ke shabdon me likhna
 
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Rsingh

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अगर कोई रीडर कोई दर्शन की अपनी जिंदगी से जुड़ी हुई कोई घटना है। या कोई अन्य घटना उसने देखा हो नजदीक से या जानता हो। तुम मुझे सजा कर सकते हैं मैं उसके ऊपर कहानी तैयार कर दूंगा मेरे इनबॉक्स में सीधे संपर्क करें।
 

Rsingh

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हालांकि मैं वंदना के बात को सुनते हुए कार लेने से मना कर दिया होता है। जिस बात के ऊपर वंदना मुस्कुरा देती है क्योंकि वह समझ चुकी होती है कि मैं लेखपाल की नौकरी करता हूं सरकारी नौकरी है ।मेरी कमाई तो अंधाधुंध है लेकिन कहीं ना कहीं लोगों से छुपाना चाहता हूं मेरे इस चालाकी भरी समझदारी से वंदना भी मुस्कुरा रही होती है।
मैं वंदना को बोला होता है की बुलेट मोटरसाइकिल ठीक रहेगी अगर तुम चलना चाहो तो शाम के वक्त चल सकते हो या अभी ही चल सकते हो इधर मैं भी काम कर लूंगा मोटरसाइकिल भी ले लूंगा और तुम भी अपना बाजार का काम कर लेना। ऐसे ही थोड़े देर के बाद हम लोग वहां से उठकर के तैयार हो जाते हैं मैं वंदना के साथ बाजार चले जाताहूं। कुछ ही देर में हम लोग बुलेट मोटरसाइकिल के शोरूम के बाहर पहुंच जाते हैं जहां पर मैं जितने भी डॉक्यूमेंट के काम होते हैं वह सारे कर चुका होता हूं। उसके बाद में मोटरसाइकिल वहां से लेकर के वंदना को पीछे बिठाकर के बाजार की तरफ निकल जाता हूं। वंदना ने इधर-उधर का काम किया होता है और हम लोग आखिरकार में एक कपड़े की दुकान पर आते हैं जहां मैं वंदना को बोला होता है एक साड़ी पसंद करने के लिए और भी इस तरह की चीज पसंद करने के लिए उसके बाद कुछ देर में हम लोग वहां से भी निकल जाते हैं और आखिरकार बाजार से निकलते वक्त हलवाई की दुकान के बाहर जो कि वहां की प्रतिष्ठित मिठाई की दुकान थी वहां पर मैं अपनी बुलेट मोटरसाइकिल लगा करके वंदना को वहां से लेकर के अंदर की तरफ जाते हुए कोने वाले सीट के ऊपर बैठ जाता हूं। कुछ देर वहां पर नाश्ता करने के बाद हम लोग घर की तरफ रवाना हो चुके होते हैं। जहां मैं वंदना को बोला होता है कि यहां तो कोई है नहीं तो तुम तो मेरे घर जैसे ही हो तो गाड़ी की पूजा तुम ही कर दो मोटरसाइकिल के लेकिन उससे पहले जब वंदना जा रही होती हो तो मैं उसके हाथों में वह साड़ी वाला थैला दे दिया होता है। जिसके ऊपर वह मेरे तरफ देखती है तो मैं बोलता हूं अरे तुम्हारे लिए ही लिया है वहां पर नहीं बोला था क्योंकि सोचा सरप्राइज देता हूं तुमको कहते हैं की शुभ काम करने चाहिए तो नए कपड़े पहन करके करना चाहिए हालांकि वंदना मना करती है लेकिन मैं अपनेपन में से समझाता हूं तो वह मान जाती है थोड़े ही देर के बाद वह अच्छे से तैयार होकर के जब आती है तो मैं एक बार उसकी तरफ से देखते रह जाता हूं। विधिवत तरीके से वंदना ने नई मोटरसाइकिल का मेरा पूजा कर दिया होता है। इसी में तकरीबन 8:30 बज चुके होते हैं और मोनू भी अपने ट्यूशन से आ चुका होता है रोज की तरह हम लोगों ने खाना पीना खाया होता है और फिर मैं थोड़े बहुत अपने ऑफिस का काम करने के बाद सो जाता हूं।

मोनू: सुबह में उठकर के फिर वापस तैयार होने के लिए चला जाता हूं अपने स्कूल जाने के लिए मैं घर से निकल चुका होता हूं और स्कूल पहुंच करके दोस्तों से बात होती है पढ़ाई को लेकर के जहां हम लोग आपस में एक दूसरे के नोट्स को लेकर के बातें कर रहे होते हैं ग्रुप स्टडी को लेकर के बातें कर रहे होते हैं। और पिछले कई दिनों से रोज सुबह उठना स्कूल आना पढ़ाई करना फिर ट्यूशन जाना फिर रात को 8:30 बजे घर पहुंचना इन्हीं सब चीजों में वक्त निकल रहा था जिंदगी एकदम बिल्कुल बेरंग जैसी लग रही होती है।


मुझे कोई खबर नहीं थी कि अशोक मामा जैसा कि आप लोग जानते हो कि यह हमारे कोई रिश्तेदार नहीं है बस एक मुंह बोला मामा जैसे है। जो कि अब मम्मी को फसाने में लगे हुए होते हैं और मुझे इस बात की कोई भी जानकारी नहीं होती है। हम सब उनके साथ में पूरी तरीके से घुले मिले हुए होते हैं जो कि पहले भी थे यहां आने से उनके पहले।

मैं कभी स्कूल से आता खाने के लिए आता तो देखता था कि वह और मम्मी आपस में बैठकर बातें कर रहे हैं। जो की एक बहुत ही सामान्य बात थी। मैं अपना खाना पीना खाता और फिर वापस ट्यूशन चल जाता। जब मैं ट्यूशन से लौट करके आता रात तकरीबन 8:00 बजे ही आ गया होता हूं क्योंकि आज थोड़ी जल्दी छुट्टी हो गई होती है। वजह होती है कि आज मैच होता है क्रिकेट का तो सर ने भी थोड़ा जल्दी छुट्टी दे दिया होता है मैं घर पहुंच जाता हूं और गाड़ी अंदर करने के बाद अपनी मोटरसाइकिल से उतर अंदर से मेन दरवाजे को लगा लेता हूं।

और जैसे ही अंदर आता हूं देखता हूं कि मम्मी के कमरे में टीवी चल रहा होता है उसे पर मैच चल रहा है मुझे बड़ा आश्चर्य लगता है की मम्मी आज कैसे मैच देख रही है। मैं अपने बैग को वहीं पर रख करके क्योंकि मुझे पेशाब लगी हुई होती है जोर से मैं जल्दी से जाते हुए अपने बैग को रख करके जैसे ही बाथरूम के दरवाजे पर हाथ रखता है दरवाजा अंदर से लगा नहीं होता है लेकिन जो मैं देखता हूं उसे पर यकीन कर पाना भी मुश्किल था। अशोक मामा जो की अंदर बैठकर के बाथरूम कर रहे होते हैं। मैंने जैसे ही दरवाजे पर हाथ रख तो दरवाजा तो खुल गया लेकिन अगले ही पल मेन दरवाजे को बंद कर दिया लेकिन कुछ अजब दिखा मुझे । मुझे अशोक मामा का पूरा लौड़ा दिखाई दिया जो कि वाकई में जानवर जैसा था जो की बहुत ही बड़ा मोटा एकदम लटकता हुआ काले रंग का आपस में पूरे गाने बाल होते हैं नीचे और उनके अंडकोष भी किसी बड़े से अमरुद इतने बड़े होते हैं। और चारो बगल घने काले बाल और भी खतरनाक लग रहा होता है। उनकी लंबाई और मोटाई ऐसी थी ऐसी की रंडी के बुर में भी जाए तो रंडी भी एक बार कसमसा जाए। मुझे जोरों की पेशाब लगी थी तो मैं निकाल करके नाले की तरफ चला जाता हूं। और जब मैं वापस आता हूं मम्मी से पूछता हूं आज क्रिकेट मैच कैसे देख रही हो तुम तो बातों ही बातों में मुझे मालूम चलता है की मम्मी नहीं बल्किअशोक मामा क्रिकेट देख रहे होते हैं मैं अंदर आता हूं देखता हूं कमरे में पूरी तरीके से अंधेरा है बस एलसीडी की स्क्रीन लाइट से जो भी रोशनी आ रही होती है वही। मैं मम्मी के कमरे में ही बेड पर कंबल के नीचे लेट जाता है दीवार से तकिया लगा करके अपना पीठ टिका देता हूं। और थोड़ी ही देर के बाद अशोक मामा भी आ जाते हैं। वह मुझसे पूछते हैं कि आगे ट्यूशन से मैंने बोला कि हां और वह फिर मेरे बगल में ही आकर के बिस्तर पर आ जाते हैं और वह भी ठीक उसी तरीके से लेट जाते हैं जैसा कि मैं क्योंकि मम्मी वहां पर थी नहीं अब दीवार की तरफ अशोक मामा लेटे हुए होते हैं और बिस्तर के साइड में मैं होता हूं और मम्मी किचन में कुछ कर रही होती है मैंहालांकि मैच को शुरू हुए ज्यादा देर नहीं हुए थे लेकिन अब टॉस वगैरह हो गया था और पहले ओवर शुरू हो चुका था। लेकिन तभी मम्मी मुझे आवाज देती है कि मोनू चाय ले लो अपने लिए भी मां के लिए भी ना चाहते हुए भी मुझे उठ करके जाना पड़ा और मैं वहां से उठ करके चाय लेने के लिए जाता हूं और जब मैं चाय लेकर के कमरे में आता हूं तो देखता हूं कि अब अशोक मामा बिस्तर के साइड में होते हैं स्वाभाविक सी बात थी कि अब मेरे लिए वहां जगह नहीं थी तो मैं उनको चाय देते हुए कोने में चल जाता हूं और आप अशोक मामा बिस्तर के साइड में होते हैं। हम दोनों के पीठ दीवार से टिके हुए दोनों मैच देख रहे होते हैं। तभी मम्मी भी कमरे में आती है अपने हाथ में कप लेकर के और बिस्तर के साइड में कुर्सी लगा करके बैठ जाती है चाय पीते हुए। जबकि जहां तक मैं जानता था कि मम्मी को मैच बिल्कुल भी पसंद नहीं होता है उनका वही सास बहू वाली सीरियल जितनी पसंद हो जाए वरना जब कभी सीरियल के टाइम पर मैं मैच देखने की कोशिश करता था तो कभी भी मुझे देखने नहीं देती थी। इधर अंधेरे में बैठकर के मैं भी मैच देख रहा होता हूं टीवी के स्क्रीन की तरफ मेरी आंखें होती है और उधर मम्मी अशोक मामा के बगल में एकदम पूरी नजदीक कुर्सी सटा कर बैठी हुई होती है। मैच देखने में मजा तो बहुत आ रहा था लेकिन जब विकेट गिर गया होता है और पारी धीरे-धीरे चल रही होती है सिंगल सिंगल तब मेरा भी मन नहीं लगता है की अच्छा खासा मैच चल रहा था विकेट नहीं गिरना था एक पल के लिए मेरी नज़रें एलसीडी से जब इधर होती है। मैं देखता हूं मम्मी अशोक मामा की तरफ तिरछी नजरों से मुस्कुरा कर देख रही होती है उनका नजर तो सामने है लेकिन उनकी तिरछी नजरे उनके ऊपर ही होती है और चेहरे पर हल्की मुस्कान होती है। अंधेरा होने की वजह से इतना तो नहीं दिखाई दे रहा होता है। लेकिन तभी मेरी नज़रें जब उनको गौर से देखती है तो मैंने ध्यान दिया कि उनका जो साइड वाला हाथ है जो कि बिस्तर के तरफ होता है वह कंबल के अंदर होता है। और कंबल भी जो होता है वह बिस्तर से थोड़ा नीचे की तरफ लटका हुआ होता है जिसमें देखने के बाद यह भी नहीं पता चल रहा होता है कि कंबल के अंदर हाथ है या फिर हाथ बाहर ही है। मुझे यह चीज बहुत ही अजीब लग रहा था लेकिन मैं इतना ध्यान नहीं देता हूं क्योंकि मैंने मम्मी के बारे में आज से पहले ना कभी ऐसा कुछ सोचा था ना समझा था क्योंकि उनकी इमेज बहुत ही अच्छी थी।
 
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Rsingh

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उम्मीद करता हूं दोस्तों कि यह रिप्लाई आप सब को पसंद आया होगा
 
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Rsingh

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इधर बीच-बीच में मम्मी उठकर रसोई भी जाती है शायद वह खाना बना रही होती है और जैसे ही उधर का काम होता है बीच-बीच में वह यहां आते ही रहती है। अंधेरे होने की वजह से कमरे में मैं उनके चेहरे को ठीक से देखा नहीं पाता हूं कभी भी और जब मैं ट्यूशन से आया होता हूं तभी मैंने उनको पीछे से ही देखा होता है लेकिन पूरी तरीके से नहीं देखा होता मैच देखते हुए जब ब्रेक हो जाती है। इसी बीच में मम्मी रसोई से आवाज लगती है कि खाना लग गया है तुम्हारा मैं उठ कर जाता हूं वहां से और खाने के लिए बैठ जाता हूं। और जब मैं खाना खाने के लिए आया होता हूं जहां पर पूरी तरीके से रोशनी होती है तब मैं देखता हूं आज मम्मी को पूरी तरीके से एकदम जैसे मानो की तैयार है एकदम नई मेक्सी पहनी हुई होती है। ऐसा लग रहा था उन्होंने बालों में शैंपू किया है कंडीशनर किया है वह पूरी तरीके से तरोताजा लग रही होती है यहां तक की उन्होंने अपने होठों के ऊपर लिपस्टिक भी लगाया होता है मैं भी उतना ध्यान नहीं देता हूं शायद हो सकता है मार्केट गई होगी जब मम्मी से अशोक मामा के बारे में पूछता हूं तो वह बोलती है कि वह भी नहीं खाएंगे। मुझे खाना वगैरा देने के बाद मम्मी बोलती है कुछ लेना होगा तो उठ करके ले लेना और मम्मी उठ करके वापस कमरे में चले जाती है। मैं इधर खाना खाने लग जाता हूं । खाना खाने के बाद थोड़ी देर के बाद मम्मी दूध लेकर के आती है। और मुझे दूध देती है मैं दूध वगैरा पी लेता हूं और ऐसे ही मैच देखते हो कब मुझे नींद आ जाती है पता ही नहीं चलता है। अगले सुबह मेरी आंख खुलती है तो पता चलता है कि आज हमारा स्कूल किसी वजह से बंद है। लेकिन मेरा सर कुछ भारी जैसा लग रहा होता है पता नहीं क्यों पिछले कुछ दिनों से मैं रात में जब भी खाना खाने के बाद बिस्तर पर ज्यादा था दूध पीने के बाद मुझे इतनी गहरी नींद आती थी किसुबह ही आंख खुलती थी मैं फ्रेश हो जाता और घर में मन भी नहीं लग रहा होता है तो उधर अशोक मामा ने प्लान बनाया होता है मूवी देखने जाने का। हम लोग आपस में बातें ही कर रहे हो कहीं की कहां चलना चाहिए मूवी देखने के लिए चलना चाहिए या फिर किसी अच्छे पार्क चलना चाहिए सब लोगों ने डिसाइड किया कि चिड़ियाघर चलना चाहिए वहां पर पार्क वाला मजा भी मिल जाएगा बोट पर घूमने का तालाब में इस तरह के सारे मजे मिल जाएंगे। थोड़ी ही देर में हम लोग सभी तैयार हो जाते हैं । वैसे हम लोग पापा के कार से चल सकते थे। लेकिन मम्मी ने बोला कि नहीं हम लोग ऐसे ही चलते हैं थोड़ी देर में मम्मी तैयार हो जाती है। और जब वह तैयार होकर के आती है तो एकदम देखने में बहुत ही गजब लग रही होती क्योंकि वह पूरे टाइट लेगिंस पहनी होती है। जब वह तैयार हुई होती है तो मैं उन्हें बड़े ही ध्यान से देखता हूं तब मुझे मालूम चलता है कि कल शायद यह ब्यूटी पार्लर गई थी उनके चेहरे की चमक और बालों की कटिंग से मालूम चल रहा था उनकी आइब्रो वगैरा पूरी तरीके से बनी हुई थी। लेकिन जैसे ही मैं बाहर निकलता हूं वहां से अपनी बाइक निकलता हूं अशोक मामा भी अपनी बाइक निकलते हैं मैं अपने बाइक को स्टार्ट जैसे ही करता हूं। और मम्मी को बैठने के लिए बोलता हूं तो वह मना कर देती है यह बोलते भी उधर रास्ते में भीड़ भार बहुत होती है जाम वगैरह बहुत लगती है तो तुमको दिक्कत हो जाएगी मैं अशोक मामा के साथ बैठ जाती हूं। मेरे आगे में अशोक मामा की मोटरसाइकिल होती है जिसके ऊपर मैं देखता हूं मम्मी उनके कंधे पर हाथ रखते हुए अपनी मोटी गांड उठाकर के रख लेती है सीट के ऊपर उनकी गांड इतनी बड़ी होती है की पूरी सीट फुल हो जाती है पूरी सीट से बाहर गांड आ जाती है। लेगिंग्स पहने होने की वजह से उनके पूरे घुटने के नीचे से लेकर के ऊपर तक के मांस मालूम चल रहे होते हैं। हम लोग वहां से निकल जाते हैं और तकरीबन आधे घंटे के बाद चिड़ियाघर के पास जब पहुंचते हैं तो हम लोग अपनी बाइक को वहां पर लगा देते हैं अशोक मामा टिकट लेकर के आते हैं फिर थोड़े ही देर में हम लोग अंदर चले जाते हैं। काफी खूबसूरत नजारा होता है हम लोग इधर-उधर हर तरफ घूम रहे होते हैं घूमते घूमते कब मैं आगे आ गया होता हूं मालूम भी नहीं चलती है और जब मैं देखता हूं तो मम्मी और अशोक मामा कहीं दिखाई नहीं देते हैं। ठंड के मौसम होने की वजह से मुझे थोड़ी जगह देखने के बाद पेशाब लग जाती है। मैं इधर-उधर देखता हूं तो एक रेस्टोरेंट टाइप का होता है जहां पर खाने-पीने की चीज होती है मैं वहीं पर बढ़ता हूं और उसके बाथरूम की तरफ जब जाता हूं। मुझे अशोक मामा आते हुए दिखाई देते हैं मैं उनसे पूछता हूं आप लोग कहां चले गए थे तो वह मुझसे पूछते हैं कि वह मुझे ही खोज रहे थे। घर में यहां पर पेशाब करने के लिए आ जाता हूं और ठीक मेरे ही बगल में अशोक मामा भी आ चुके होते हैं और जो पेशाब करने वाली जगह होती है जैसे मर्द लोगों के पेशाब करने की होती है कुछ ऐसे ही बनी होती है। जब मैं पेशाब करते हो उनको पूछता हूं कि मम्मी कहां है तब वह मेरी तरफ देखते हुए अपना सर ऊंचा करते हुए बोलते हैं अभी-अभी हम लोग यहीं पर आए हैं तुमको ही खोज रहे थे तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा था तो हम लोग नाश्ता करने के लिए आए हुए। तभी मैं पेशाब करते हुए जैसे ही अशोक मामा की तरफ देखता हूं वह अपने पेट को खोल रहे होते हैं और जैसे ही अपने लोड़े को बाहर निकलते हैं मैं जो देखता हूं मेरा सर घूम जाता है लोड़े के आगे में लिपस्टिक लगी हुई होती है। मैं तुरंत अपनी नज़रें घूम लेता हूं। लेकिन मैं चोरी चुपके अच्छे तरीके से देख लेता हूं और मेरे मन में यही बात घूमने लग जाती है क्या मम्मी मुझे यकीन नहीं हो रहा होता है। मेरे दिमाग में सारी घटना याद आने लग जाती है की क्यों उसे दिन अंधेरे में मम्मी का क्रिकेट मैच बैठ करके देखना मम्मी का अचानक अपने आप को ब्यूटी पार्लर लेकर जाना लेगिंग्स पहनना मेरे साथ नहीं आ करके अशोक मामा के मोटरसाइकिल पर बैठना। मेरे मन में तरह-तरह के सवाल चल रहे होते हैं लेकिन यकीन नहीं हो रहा होता है। लेकिन कहीं ना कहीं एक शक मेरे मन में पैदा हो गया होता है एक सस्पेंस मेरे मन में आ चुका होता है। मैं पेशाब करने के बाद वहां से अशोक मामा के साथ चलता हूं । जब मैं वहां से उनके साथ आता हूं अंदर रेस्टोरेंट की तरफ देखता हूं मम्मी बैठी हुई होती है। मैं वापस उनके चेहरे की तरफ देखता हूं तो वह अपने पर्स के आईने में देखते हुए उनके होठों पर लिपस्टिक लगा रही हुई होती है और लिपस्टिक इस रंग का होता है जो रंग मैं अशोक मामा के लोड़े के ऊपर देखा था मेरा शक एकदम पक्का होने लग जाता है। मैं समझ चुका होता हूं कि कुछ तो दाल में काला है। लेकिन यह कब से चल रहा है थोड़ी देर में नाश्ता आ जाता है लेकिन मेरा ध्यान खाने पर नहीं होता है मैं हर पल उन्हीं लोगों के बारे में सोच रहा होता हूं। दिन भर हम लोग ऐसे ही घूम रहे होते हैं और शाम ढलने से पहले तकरीबन 5:00 बजे हम लोग वहां से निकलते हैं। जब हम लोग वहां से निकल रहे होते हैं तो मैं देखता हूं कि अशोक मामा अपने मोटरसाइकिल को किसी मटन की दुकान के ऊपर लगा देते हैं। मम्मी उनके मोटरसाइकिल से उतरकर के खड़ी हो जाती है और मैं भी अपनी मोटरसाइकिल लगा देता हूं और वहां पर खड़े हो जाता हूं और बड़े गौर से मम्मी को देखने की कोशिश कर रहा होता हूं उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक होती है। मटन वाला कसाई मटन काट के हमारे लिए तराजू के ऊपर नाप रहा होता है और अशोक मामा मम्मी से बोल रहे होते हैं जल्दी बना लेना आज क्रिकेट मैच सेमीफाइनल थोड़ी ही देर में वहां से हम लोग निकल चुके होते हैं। हम लोगों ने अपनी अपनी बाइक अंडर लगा दी होती है और घर का दरवाजा बंद कर लेते हैं मम्मी उतारते हुए किचन की तरफ जाती है अशोक मामा से यह बोलते हुए की थोड़ी देर में चाय बन जाएगा आ जाना। मैं भी अंदर आता हूं और इधर अशोक मामा अपने कमरे में चले जाते हैं। मैं भी बाथरुम जाता हूं पेशाब वगैरह करके निकल जाता हूं कपड़े बदल करके लेकिन जैसे ही मैं मम्मी के कमरे की तरफ जाता हूं अंदर में बल्ब की रोशनी होती है। तभी मैं देखता हूं कि मम्मी अपने कपड़े को उतार रही होती है तो उनके अंडर आर्म पूरे क्लीन होते हैं। ऐसा लग रहा होता है कि नया-नया ही बाल निकला है वहां से अब वह नीचे लेगिंग्स में होती है और ऊपर ब्रा में होती है और अगले ही पल वो लेगिंग्स को खोलती है अब वह मेरे सामने में सिर्फ बराबर पेंटिंग होती है उनका भरा हुआ बदन ऐसा लग रहा होता है की ब्रा पैंटी छोटी पड़ जाएगी। लेकिन जो चीज मैं देखता हूं मुझे एक पल के लिए और भी आश्चर्य लगता है की मम्मी ने जो पैंटी पहने हुआ होता है वह कोई सामान्य नहीं होता है बल्कि पीछे की तरफ उनके गांड की तरफ जो पट्टी होती है। वह एकदम जालीदार वाली होती है जो की देखने से ही बहुत महंगा लग रहा होता है और ऐसा होता है जो की पूरी पेंटिंग गांड में घुसी हुई होती है मानव की 80 परसेंट गांड k बस क्रैक ही छुप जाते होंगे वरना पेटी के पीछे की पट्टी भी क्रैक में घुस जाती होगी ऐसा था। तभी वह अपने गोदरेज खोल करके एक मैक्सी निकलती है जो कि देखता हूं फिर एक नया मैक्सी होता है। लेकिन जिस तरीके की मम्मी पहनती थी पहले सामान्य जैसी वैसी नहीं थी कुछ महंगी लग रही थी। अगले पल वह होता है जिसकी मैं कल्पना नहीं की थी अगले पल मम्मी अपने ब्रा को निकाल लेती है और पूरे पेंटिं को भी निकाल लेती है। अब वह पूरी तरीके से नंगी होती है मैं वहीं पर रुक कर देखने लग जाता हूं।


और उनके कपड़े बदल के आने से पहले ही मैं वहां से हट जाता हूं अपने कमरे की तरह बढ़ जाता हूं और मैं ऐसे रिएक्शन देता हूं जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं है।


थोड़ी देर के बाद अशोक मामा भी आ जाते हैं एक शर्ट और ट्राउजर पहन करके
 
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Rsingh

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मैं उनको देखते हुए अपने कमरे की तरफ जाता हूं। और जब मैं अपने कमरे से लौट रहा होता हूं। मैं जब रसोई के पास में पहुंचता हूं देखता हूं अशोक मामा रसोई में मम्मी के पीछे हैं। और उनसे बोल रहे हैं कि ला दिए हैं काम किया था ना मुझे समझ में नहीं आ रहा होता है वह क्या बातें कर रहे लेकिन तभी मम्मी बोलती है कि हां काम तो बहुत अच्छा किया था लेकिन कोई दिक्कत नहीं होगी ना उसको मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि यह लोग क्या बातें कर रहे हैं तभी अशोक मामा बोलते हैं टेंशन मत लो कोई दिक्कत नहीं होगा एक बार दे दोगी ना तो सुबह ही उठेगा सीधा लेकिन सदा दूध में मिलाकर मत दिया करो टेस्ट बदल जाएगा कुछ इस तरह का होता है उसमें मिला करके दे दिया करो नींद नहीं खुलेगा फिर उसका तभी मैं देखता हूं कि मम्मी एकदम मुस्कुरा देती है यह बोलते हुए कि तुम एक नंबर का कामिना आदमी हो लेकिन पर मुस्कुराते हुए बोलती है ठीक है। और अशोक मामा आपने पॉकेट से निकाल कर के कोई टेबलेट की पेट उनके हाथों में देते हैं। मेरे दिमाग में यह बातें घूम रही होती है कि दूध में मिलाकर दे देना सो जाएगा तो उठेगा नहीं मुझे शक हो रहा होता है तो यह लोग मेरे दूध में कुछ तो नहीं मिला कर देते हैं क्योंकि पिछले कुछ दिनों से सुबह जब मैं सो करके उठता था मेरा सर कुछ भारी-भारी जैसा लगता था। जैसे ही अशोक मामा वहां से चले जाते हैं। और जब मैं मम्मी के कमरे में आता हूं तो देखता हूं मैच शुरू होने में थोड़ी ही देर बची हुई है और मैं देखता हूं अशोक मामा फिर से कल के जैसे ही बिस्तर के साइड में लेते हुए होते हैं तो मैं कोने की तरफ चला जाता हूं । और थोड़े ही देर के बाद देखता हूं कि मम्मी भी वहां पर आ जाती है जैसे ही मम्मी वहां पर आती है मैं वहां से उठ जाता हूं पेशाब करने के बहाने और मैं किचन की तरफ जाता हूं इधर-उधर देखता हूं तो इत्तेफाक से वह टैबलेट वाली पत्ता वहीं पर पड़ा हुआ होता है मैं अपने मोबाइल फोन में उसकी फोटो खींच करके चुपचाप आ जाता हूं और उसके बारे में जब मैं इंटरनेट पर सर्च करता हूं तो पता चलता है कि यह एक नींद की गोली है। तब मुझे समझ में आ जाता है कि यह लोग मुझे सुलाते हैं नींद की गोली देकर के मेरा दिमाग घूम जाता है कि मेरे पीठ पीछे इतना कुछ चल रहा होता है तब मैं मम्मी के सारे बर्ताव आजकल वह जो इतने तैयार होकर के रहना सारा कुछ मेरे दिमाग में घूमने लग जाता है ऊपर से चिड़िया घर वाला वह सीन जब अशोक मामा को पेशाब करते हुए देखा था और उनके लौड़े में पूरा लिपस्टिक लगा हुआ आगे की तरफ अब मेरे दिमाग में सब कुछ क्लियर होना शुरू हो गया होता है। मैं वहां से उठकर कमरे में तो आ चुका होता हूं और कंबल में चला जाता हूं। मुझे यह तो पता चल गया था कि यह दोनों बहुत तेज है लेकिन मुझे भनक तक नहीं लगी इन दोनों के कारनामे की थोड़े ही देर में प्रेशर कुकर की सीट जैसे ही बसती है मम्मी वहां से उठकर चले जाती है। और आज मम्मी ने बहुत जल्दी ही खाना बना लिया होता है वह जब खाना बना करके आती है मम्मी बोलती है मैच शुरू होने में थोड़ा ही देर है क्या वह अशोक मामा से पूछता है अशोक मामा बोलते हैं हां थोड़ा देर है अभी तो मम्मी मुझे बोलती है मोनू तुम खाना खा लो तब तक। जब मैं मम्मी को बोलता हूं कि नहीं अभी मैं नहीं खाऊंगा तो मम्मी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोलते खा लो क्योंकि मैं थकी हुई हूं फिर अपने से नहीं दूंगी उठ करके तो मम्मी ने मेरे लिए खाना लगा दिया होता है बाहर में मैं खाना खाने के लिए चले जाता हूं खाना खाने के बाद मैं थोड़ी ही देर में खाना खाकर वापस आता हूं बिस्तर पर जब मैं बिस्तर पर आता हूं तो मम्मी बोलती है अभी तो नॉनवेज खाए हुए हो थोड़ी देर में दूध पी लेना मैं देखता हूं कि मम्मी थोड़ी देर में में दूध लेकर के आती है। और मुझे पीने के लिए दे देती है और वहीं पर बैठी हुई होती है कमरे में मुझे समझ में नहीं आ रहा होता है क्या करूं तभी मैं मम्मी को बोलता हूं कि बॉर्नविटा इतना काम क्यों मिलाया है थोड़ा और नहीं मिल सकती थी मैं इसी बहाने और बॉर्नविटा लेने के बहाने उठकर के किचन की तरफ जाता हूं और पीछे जो नाला होता है जंगल की तरफ उधर वह वाला दूध फेंक देता हूं और दूसरा दूध लेकर के उसमें बॉर्न विटा मिला करके कमरे की तरफ अंदर आता हूं और वहीं पर मम्मी जो कुर्सी पर बैठी हुई होती है वहीं पर बगल में खड़े होकर के पीना शुरू कर देता हूं मम्मी मुझे बार-बार देख रही होती है मैं समझ रहा होता हूं और तभी मैं दूध पीने के बाद जानबूझकर के जो खाली क्लास होता है वह नीचे जमीन पर रखता हूं जिसकी आवाज से उन्हें शायद मालूम चल सके कि मैं पूरा पी लिया है। मैं मम्मी को जानबूझकर बोलता हूं किचन जाने लगोगे ना तो गिलास लेकर के चले जाना। मैं देखता हूं कि एक बार मम्मी गिलास की तरफ देखती है। लेकिन उन लोगों को नहीं मालूम होता है कि मैं दूध वह वाला बाहर फेंक दिया होता है मैं दूसरा दूध लेकर के पी रहा होता हूं। थोड़ी देर के बाद मैं जानबूझकर उन लोगों को बोलता हूं कि मुझे नींद आ रही है बहुत । तो मैं इस कमरे में सो जाता हूं थोड़ी देर के बाद मैं देखता हूं कि मम्मी मुझे उठाने की कोशिश करती है जैसे मानो कि चेक कर रही हो मैं कुछ भी नहीं बोलता हूं अशोक मामा से वह बोलती है कि सो गया है। फिर वह दोनों आपस में बात करते हैं । मैं पूरी तरीके से सोने की एक्टिंग कर रहा होता हूं । जब वह लोग पूरी तरीके से कंफर्म हो जाते हैं । मम्मी अशोक मामा से बोलता है कि खाना निकाल देता हूं तभी अशोक मामा बोलते हैं कभी नहीं थोड़ा देर में खाएंगे तभी अशोक मामा बोलते हैं कि सो गया है यह अब क्या नीचे में बैठी हुई है ऊपर ही आओ ना रजाई में तभी मैं महसूस करता हूं कि अशोक मामा मेरी तरफ हो जाते हैं और वह साइड में मम्मी को पूरी जगह दे देते हैं अंधेरे होने की वजह से कमरे में पता नहीं चलता है लेकिन टीवी के हल्की-हल्की जो लाइट आ रही होती है उसे वह लोग तो नहीं देख सकते हैं कि मैं सोया हूं क्योंकि मैं हल्की सी आंख खोल दिया होता हूं आधा आंख और मैं देख रहा होता हूं कि मम्मी मैक्सी पहने हुए अशोक मामा के साथ उनके बगल में रजाई के अंदर आ जाती है। अब अशोक मामा के दाहिने तरफ में होता हूं लेटा हुआ और उनके बाएं तरफ मम्मी होती है और वह हम दोनों के बीच में होते हैं। मैं मम्मी को तो नहीं देख पा रहा हूं और ना ही मुझे पता चल रहा होता है कि क्या हो रहा है उनके बीच में लेकिन इस बात का तो अंदाजा था कि कुछ ना कुछ तो उनके बीच में हो ही रहा होगा भले ही मुझे मालूम ना चले। कभी मुझे चुम्मा चाती की आवाज सुनाई देने लगते हैं मैं समझ जाता हूं कि खेल शुरू हो गया है। तभी मुझे मम्मी की एक सिसकी सुनाई देती है। जिसमें वह बोलती है कि बाल नहीं खींचे दुखती हैं। अशोक मामा भारी मर्द वाले में आवाज में बोलते हैं। मम्मी को पैर खोलने के लिए। मैं समझ जाता हूं कि कहां के बाल के बारे में बात हो रही है। तभी अचानक से अशोक मामा मम्मी को पूरा बाहों में लेकर एकदम से करवट बदल केमम्मी को अपने ऊपर ले लेते हैं और अगले ही पल जब वह करवट बदलते हैं तो अब मम्मी अशोक मामा के ऊपर से होते हुए हम दोनों के बीच में आ गई होती है यानी कि अशोक मामा के दाहिने तरफ जिससे उनको अच्छे से ग्रिप में लेने में आसानी अब हो रही थी दाहिने तरफ से बाहों में भरने से।
 
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