Haaaay daaaaya.....Update 7
गौतम ने बाइक उसी बरगद के नीचे लगा दी औऱ सुमन से बोला..
गौतम - चलो माँ.. चढ़ो वापस सीढ़िया..
सुमन - चलो.. चढ़नी तो मेरे ग़ुगु को भी पड़ेगी..
गौतम ने जैसे ही पहला कदम बढ़ाया उसके बगल से होते हुए करीम का रिक्शा आगे जाकर एक किनारे रुक गया जिसे गौतम ने पहचान लिया था.. रिक्शे से रूपा उतरकर एक नज़र गौतम पर डालती है औऱ फिर उसका हाथ पकडे खड़ी सुमन को देखती है..
रूपा को पहली बार किसी औरत से जलन हो रही थी मगर वो कुछ नहीं कर सकती थी.. रूपा के मन में जलन से ज्यादा इर्षा भरी हुई थी वो बनना चाहती थी उसके सामने था..
गौतम ने रूपा को देखकर भी अनदेखा कर दिया औऱ सुमन का हाथ थामे सीढ़ियों की औऱ बढ़ने लगा तभी रूपा सुमन से बोली..
रूपा - दीदी सुनिए..
सुमन रुककर - ज़ी.. बोलिये..
रूपा - वो आपका पर्स बाइक पर ही रखा हुआ है..
सुमन - अरे मैं भी कितनी भुल्लककड़ हो गई हूँ. जा ग़ुगु पर्स ले आ. आपका शुक्रिया बताने के लिए..
रूपा - शुक्रिया केसा दीदी.. छोटी सी तो बात है.. ये आपका बेटा है..
सुमन - हाँ.. ये मेरा ग़ुगु है..
रूपा - बहुत खूबसूरत है.. बिलकुल आपकी तरह.
सुमन - ज़ी शुक्रिया.. आप भी बाबाजी के पास आई है?
रूपा - हाँ वो कुछ मन्नत थी सोचा शायद यहां आकर पूरी हो जाए..
सुमन - चलिए चलते हुए बात करते है.
रूपा - ज़ी चलिए.. मेरा नाम रूपा है..
सुमन - ज़ी मेरा नाम सुमन..
रूपा - बड़ा ही प्यारा नाम है आपका.. सचमुच में आप सुमन जैसी खिली हुई खुश्बू से भरी हुई हो..
सुमन मुस्कुराते हुए - नाम तो आपका भी आप पर बहुत जचता है.. जैसा रूप वैसा नाम..
रूपा - आप इसी शहर में रहती है?
सुमन - हाँ.. ग़ुगु के पापा पुलिस में तो पुलिस क्वाटर में ही रहते है.. और आप?
रूपा - ज़ी वो मेरा तलाक़ हो चूका है.. कोई बच्चा तो है नहीं, इसलिए अकेली ही शहर के बीच एक फ्लेट में रहती हूँ..
सुमन - तलाक़ क्यों?
रूपा - अब मर्द जात क्या भरोसा दीदी, कोई और मिल गई तो छोड़ गए. मैंने भी नहीं रोका और तलाक़ ले लिया..
सुमन हमदर्दी से - बहुत गलत हुआ है आपके साथ..
रूपा - छोड़िये दीदी ये सब.. आपने ये साडी कहा से ली? बहुत खूबसूरत है..
सुमन - ये तो मुझे तोहफ़े में मिली थी. मेरी ननद ने दी थी..
रूपा - आप के ऊपर बहुत खिल रही है दीदी..
सुमन - शुक्रिया.. वैसे इस सूट में आप का मुक़बला करना भी बहुत मुश्किल है.. साधारण सूट को भी आपके इस रूप ने ख़ास बना दिया..
रूपा हस्ती हुई - क्या दीदी आप भी मज़ाक़ करती हो..
गौतम रूपा औऱ सुमन के बीच खड़ा था औऱ दोनों की बात सुन रहा था. रूपा अनजान बनने का नाटक बखूबी निभा रही थी औऱ गौतम समझ चूका था की रूपा सुमन से दोस्ती करना चाहती है मगर उसने भी अनजाने बनते हुए दोनों के बीच से किनारा ले लिया औऱ चुपचाप सीढ़िया चढने लगा..
रूपा सुमन से कई बातें उगलवा चुकी थी औऱ बहुत सी सही गलत बातें अपने बारे में भी बता चुकी थी.. सीढ़िया चढ़ते चढ़ते दोनों में अच्छी बनने लगी थी औऱ बाबा के दरवाजे पर पहुंचते पहुंचते दोनों आपसमे बात करते हुए खिल खिलाकर हसने लगी थी..
गौतम हमेशा की तरह बाहर ही रुक गया औऱ रूपा को आज साधारण लिबास में देखने लगा आज रूपा उसे बहुत आकर्षक लग रही थी..
रूपा का मकसद सुमन से दोस्ती करने का था औऱ वो उसी के साथ कतार में बैठ गई.. भीड़ ज्यादा थी मगर दोनों की बातचीत से समय का पता ही नहीं लगा.. सुबह ग्यारह बजे कतार में बैठी सुमन औऱ रूपा की बारी आते आते 2 बज गए थे तब तक दोनों पक्की सहेलियों की तरह बात करने लग गई थी..
सुमन की बारी आई तो वो बाबाजी को प्रणाम करके सामने बैठ गयी..
सुमन - बाबाजी आपने काम बताया था वो मैंने शुरु कर दिया है, बस अब जल्दी से अपना घर बनवा दो..
बाबाजी - बिटिया जो कहा था करते जा औऱ बाबा के सामने हाज़िरी लगाते जा.. सब हो जाएगा.. और याद रख तुझे घर से बढ़कर मिलेगा लेकिन उसके लिए तुझे एक कार्य करना होगा..
सुमन - बताइये बाबाजी..
बाबाजी - वक़्त आने पर तुझे पता चल जाएगा.. अभी उचित समय नहीं है..
सुमन - ज़ी बाबा ज़ी.. कहते हुए सुमन सामने से हट गयी औऱ रूपा बाबाजी के सामने बैठ गई..
बाबाजी - बोल बिटिया क्या चाहिए तुझे?
रूपा - मुझे जो चाहिए मैं कहकर नहीं बता सकती बाबाज़ी आप मेरे मन की बात समझो औऱ कोई उपाय बताओ उसे हासिल करने का..
बाबाजी - तुझे जो चाहिए वो तुझे जरूर मिलेगा लेकिन बटाइ में.. मैं पर्चा लिख देता हूँ तू अगर वैसा कर देगी तो जो तू मांग रही है तुझे जरूर मिल जाएगा..
रूपा - अगर ऐसा है तो बाबाजी.. मैं अपना सबकुछ आपको देने के लिए त्यार हूँ..
बाबाजी - मुझे तो खाने के लिए अन्न चाहिए बिटिया बाकी सब तू अपने पास रख.. ले पढ़कर आग में जला दे बाहर ये पर्चा.. जा..
रूपा ने पर्चा पढ़ा तो उसमें लिखा था की गौतम को अपने बेटे के रूप में हासिल करने के लिए उसे महीने में सिर्फ बार ही उसके साथ सम्भोग करना होगा उससे ज्यादा नही. रूपा ने पर्चा पढ़कर जला दिया..
गौतम हमेशा की तरह वही पेड़ के नीचे जाकर बैठ गया औऱ वापस उसे नज़ारे को देखने लगा जिसे वो बहुत बार देख चूका था.. आज फिरसे उसे नीचे कोई आता हुआ दिखा औऱ वो समझा गया की ये वही पागल है जिसे उसने पिछली बार जामुन तोड़कर दिए थे औऱ जिसे वो आदमी बड़े बाबा कहकर बुला रहा था..
बूढ़ा ऊपर आकर वापस गौतम से पानी माँगने लगा औऱ गौतम ने उसपर तरस खाकर वापस पानी दे दिया, बूढ़े ने उसी तरह कुछ बून्द हथेली में लेकर अपने सर पर दाल दी औऱ पानी पीकर बोतल वापस गौतम के पास रख दी..
बड़े बाबाज़ी - वापस आ गया तू?
गौतम - देख बुड्ढे मैं तेरे साथ बकचोदी करने के मूंड में नहीं हूँ.. तुझे चाहिए तो जामुन तोड़कर ला देता हूँ तू चला जा लेकर वापस नीचे चुपचाप..
बड़े बाबाज़ी - गुस्सा क्यू करता है बेटा.. मैं कुछ देने ही आया था तुझे पिछली बार की तरह..
गौतम - अबे ओ ढोंगी.. क्या लिया था मैंने तुझसे पिछली बार?
बड़े बाबाज़ी- अरे तूने ही तो बोला था ऐसा लिंग चाहिए जिसकी दीवानी हर औरत बन जाए.. भूल गया? वो तवयाफ जो अभी मठ के अंदर तेरी माँ के साथ बैठी है तेरी दीवानी बनी या नहीं.. बता? कहता है तो वापस ले लेता हूँ जो तुझे दिया है..
इस बार बाबाज़ी की बात सुनकर गौतम का सर चकरा गया औऱ वो बड़ी बड़ी आँखों से बाबाजी को देखने लगा, उसे अपने कानो पर यक़ीन नहीं आ रहा था..
बड़े बाबाजी - ऐसे क्या देख रहा है?
गौतम सकपका कर - आप कौन हो और ये सब कैसे जानते हो?
बड़े बाबाजी - मैं वीरेंद्र सिंह हूँ, और तेरे बारे में सब जानता हूँ.. बता कुछ चाहिए तो वरना मैं नीचे जाऊ?
इस गौतम हाथ जोड़कर - मुझे माफ़ कर दो..
बड़े बाबाजी - मैं तो तुझसे नाराज़ ही नहीं हूँ बेटा.. माफ़ क्यू मांगता है.. मुझे तो ये भी पता है वो तवायफ अभी तेरी माँ के साथ अंदर बैठी हुई तुझे होने बेटे के रूम में मांग रही है..
गौतम - मैं अपने किये पर शर्मिंदा हूँ बाबाजी.. आप सच में बहुत अन्तर्यामी हो.. मैं अगर आपके कोई काम आ सकता हूँ तो बता दो मैं जरूर काम आऊंगा..
बड़े बाबाजी - काम तो बहुत बड़ा है और बहुत मुश्किल है क्या तू कर पायेगा?
गौतम - आप कहकर देखिये बाबाजी मैं कुछ भी कर जाऊँगा..
बड़े बाबाजी - अभी तू मेरा काम करने को त्यार नहीं है.. जब होगा तब कह दूंगा.. अब तू अपनी जवानी का सुख भोग.. कुछ चाहिए तो मुझे बता.. मैं दे देता हूँ तुझे..
गौतम - मुझे कुछ नहीं चाहिए बाबाजी..
बड़े बाबाजी - अच्छा ठीक है फिर में चलता हूँ.. जब तू काम करने लायक़ हो जाएगा तब जरूर बताऊंगा..
ले धागा कलाई पर पहन ले जब ये काले से सफ़ेद हो जाए तब यहां आ जाना.. तब बताऊंगा मुझे क्या चाहिए.. औऱ हाँ जिस औरत का भी तेरे साथ सम्भोग करने का मन होगा, उसके सामने आते ही ये धागा लाल रंग का हो जाएगा..
गौतम - ठीक है बाबाजी..
बाबाजी ज़ी ये कहते हुए वापस नीचे चले गए औऱ गौतम उठकर वापस वही आ गया जहा से उसने रूपा औऱ सुमन को छोड़ा था.. उसने देखा कि रूपा सुमन के साथ खड़ी हुई आपस में हाथ पकडे हंसकर बातें कर रही थी..
गौतम - माँ चलना नहीं है?
सुमन - हाँ ग़ुगु.. चलते है, पर तू पहले आंटी का नम्बर फ़ोन में सेव कर ले.. बहुत पटेगी हमारी..
गौतम - ठीक है करता हूँ अब चलो.. आपके लिए एक सरप्राइज भी है..
सुमन - क्या?
गौतम - वो तो घर चलकर पता चलेगा..
रूपा - बुरा ना मानो नीचे साथ में एक एक कप चाय पीकर चले?
सुमन - हाँ हाँ क्यू नहीं..
सीढ़िया उतर कर सब वही पास में बनी एक चाय कि स्टाल पर आ गए.. औऱ चाय पिने लगे..
रूपा - कल आप क्या कर रही है?
सुमन - कुछ नहीं क्यू?
रूपा - तो फिर दीदी घर आइये ना ग़ुगु के साथ.. हम मिलकर खूब सारी बात करेंगे, एक साथ डिनर भी करेंगे और कोई अच्छी सी मूवी भी साथ बैठकर देखेंगे..
सुमन - ठीक है रूपा.. जैसा तुम कहो.. क्यू ग़ुगु.. चलोगे आंटी के घर मेरे साथ?
गौतम - हाँ हाँ क्यू नहीं.. ये भी तो घर की ही है..
सुमन - अच्छा अब इज़ाज़त दीजिये.. घर पर बहुत सा काम पड़ा है..
रूपा - हाँ बिलकुल.. पर याद रहे दीदी संडे को ग़ुगु के साथ घर आना होगा.. मैं कोई बहाना नहीं सुनूंगी..
सुमन - ज़ी पक्का..
गौतम औऱ सुमन रूपा से विदा लेकर घर की तरफ आ गए औऱ रूपा करीम की रिक्शा में बैठके वापस कोठे के लिए निकल पड़ी..
करीम - क्या हुआ बाजी.. पहली बार में ही मिल गया क्या जो चाहिए था?
रूपा - नहीं करीम.. पर लगता है मिल जाएगा.. अच्छा वो शहर वाला फ्लेट कब से बंद है जो कांति सेठ ने मेरे नाम किया था?
करीम - बाजी.. पहले तो किसी को किराए पर दिया था पर 3 साल से कोई औऱ आया नहीं वहा रहने.. तभी से बंद है..
रूपा पैसे देते हुए - अभी वहा की सारी साफ सफाई करवा दे.. मैं कल से अब वही रहूंगी..
करीम - जैसा आप बोले बाजी..
रूपा अपना फ़ोन देखती है तो गौतम का massage आया होता है..
गौतम - सूट में तुम बहुत प्यारी लग थी मम्मी.. अगर साथ में माँ नहीं होती तो इतना प्यार करता की याद रखती..
रूपा मुस्कुराते हुए मैसेज पढ़कर रिक्शा से बाहर देखने लगी.. और एक सिगरेट सुलगा कर गौतम को याद करते हुए मंद मंद मुस्कान अपने चेहरे पर सजा कर गौतम को याद करने लगती है..
Mast Update tha....
Kas asa Baba ji mujha vi mil jata, to ma vi Gugu jasa bar mang leta yaaaar....
Gugu na to lund sa ek Slut Rupa ka Andar vi Mamta jagha diya....
Humna to kisso kahini ma kisi ladki ya aurat ko apni premi ka liya asa desperate ya premi ka liya mannat mangta dekha ha....
Par pahali bar kisi tabayat ko kisi ki Mummy ban na ka liya asa dekh raha hu.....
Aa to Kahini ko orvi jada majadar kar rahi ha....
Pahala to sirf ek Mummy Suman thi, or aab Or ek Mummy Rupa.....
Haaaay dodo Mummy.....
Bada kismat bala ha Gugu....
Jabardas Update.....
❤❤❤❤❤❤