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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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छुटकी -होली दीदी की ससुराल में

भाग १११ पंडित जी और बुच्ची की लिख गयी किस्मत पृष्ठ ११३८

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भाग १०६ - रीत रस्म और गाने

२६,८०,१७७
सुरजू सिंह की माई

---


सरजू की निगाह बुच्ची की जाँघों के बीच चिपकी थी, बुच्ची छूटने के लिए छटपटा रही थी। एकदम चिपकी हुयी रस से भीगी मखमली फांके, गोरी गुलाबी, फांके फूली फूली,

लेकिन सुरजू को वहां देखते उसे भी न जाने कैसा कैसा लग रहा था।


और इमरतिया ने गीली लसलसी चासनी से डूबी फांको पर अपनी तर्जनी फिराई, उन्हें अलग करने की कोशिश की और सीधे सुरजू के होंठों पे

" अरे चख लो, खूब मीठ स्वाद है " बोल के बुच्ची का हाथ पकड़ के मुड़ गयी, और दरवाजा बंद करने के पहले दोनों से मुस्करा के बोली,

" अरे कोहबर क बात कोहबर में ही रह जाती है,... और वैसे भी छत पे रात में ताला बंद हो जाता है।

और सीढ़ी से धड़धड़ा के नीचे, बुच्ची का हाथ पकडे, बड़की ठकुराइन दो बार हाँक लगा चुकी थी। बहुत काम था आज दिन में,…



दिन शुरू हो गया था, आज से और मेहमान आने थे, रीत रस्म रिवाज भी शुरू होना था।

---

" जा, अपने देवर के ले आवा, आज का काम शुरू होय, बहुत काम बचा है, अभी सुरजू का बूआ भी नहीं आयी " बार बार दरवाजे की ओर देखते,… सुरजू सिंह की माई इमरतिया से बोली।


आँगन में जमावड़ा लगना शुरू हो गया था औरतों, लड़कियों का।



बड़े सैय्यद की दुल्हिन, अभी डेढ़ साल पहले गौने उतरी थीं, सुरजू क असल भौजाई समझिये, ….और उनकी सास, ….

पश्चिम पट्टी क पंडिताइन भौजी, आधे दर्जन से ज्यादा सुरजू की माई की गाँव क देवरानी, जेठानी, गाँव क बहुएं , लड़किया, काम करने वाली,

आज अभी कोहबर लिखा जाना था, उसके पहले मंडप क पूजा, फिर मानर पूजा जाना था, उसके बाद,

और हर काम में इमरतिया और उसकी टोली वाली सब,

" हे चलो, जल्दी माई गुस्सा हो रही हैं, बूआ तोहार आने वाली हैं और ये सब क्या पहने हो, रस्म में ये सब नहीं "
और सुरजू के मना करते करते पैंट खींच के नीचे, और शर्ट खुद सुरजू ने उतार दी,….



" भौजी ये का, ,,,और दरवाजा भी खुला है "बेचारे सूरजु बोलते रह गए

लेकिन ऐसा जवान मर्द उघाड़े खड़ा हो तो जवान भौजाई क निगाह तो जहाँ पड़नी चाहिए वही पड़ी और इमरतिया खुश हो गयी । समझ गयी देवर सच में उसकी बात मानेंगे।

जैसे कल भौजी ने हुकुम दिया था, एकदम उसी तरह, लंड का टोपा एकदम खुला , लाल भभुका और भौजी कौन जो मौके का फायदा न उठाये। इमरतिया झुक के 'उससे ' बोली,


" सबेरे सबेरे दर्शन होगया बुच्ची की बुरिया का, है न एकदम मस्त। बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी उसमे घुसने के लिए, खूब कसी है रसीली लेकिन मजा भी उतना ही आएगा, एकदम कच्ची कोरी में पेलने में, थोड़ी मेहनत, ….थोड़ी जबरदस्ती "

और इमरतिया ने अपनी हथेली में थूक लगा के दस पांच बार उसे आगे पीछे, और वो फनफनाने लगा। लेकिन तभी नीचे से ठकुराइन की आवाज आये, " अरे दूल्हा क लैके जल्दी आओ "

सुरजू को पहनने के लिए एक बिना बांह वाली बनियान और एक छोटी सी थोड़ी ढीली नेकर मिली।



'जल्दी पहनो, अब आज से यही, हर रस्म में, तेल हल्दी चुमावन;" वो बोली और नेकर उसने जान बूझ के ऐसी चुनी थी। अंदर कुछ पहनने का सवाल नहीं, तो जैसे ही टनटनायेगा, साफ़ साफ़ दिखाई देगा और हल्दी लगाते, भौजाई सब जब अंदर तक हल्दी लगाएंगी तो ढीली नेकर में हाथ डालने में आसानी होगी।

और निकलते समय भी दो चार बार कस के नेकर के ऊपर से ही मसल दिया। सीढ़ी से उतरते समय भी बस उसी खूंटे को पकड़ के और नतीजा ये हुआ की जैसे सुरजू आंगन में पहुंचे सब उनकी भौजाइयां सीधे ‘वहीँ’ देख के खुल के मुस्कराने लगी।




और उनकी माई भी मुस्करा रही थीं, अपने दुलारे को देख के,… और बुच्ची को हड़काया,

"हे चलो, अपने भैया को बैठाओ, चौकी पे और साथ में रहना,… छोट बहिन हो,... खाली खाली नेग लेने के लिए।"

इमरतिया और बुच्ची सुरजू के पीछे, एकदम सट के, कई बार भौजाइयां रस्म करते करते लड़के को जोर से धक्का दे देती हैं, नाउन और बहन का काम है सम्हालना।

आज सुरुजू क माई फूले नहीं समा रही थी।

ख़ुशी छलक रही थी, वैसे भी उस जमाने के हिसाब से भी सुरजू सिंह की माई की कम उम्र में शादी होगयी, साल भर में गौना।

सूरजु के बाबू से रहा नहीं जा रहा था, तो पहले रात ही, और नौ महीने में ही सूरजु बाहर आ गए। ३५-३६ की उमर होगी, लगती दो चार साल कम ही थीं। भरी भरी देह, खूब खायी पी, लेकिन न मोटापा न आलस। कोई काम करने वाली न आये तो खुद घर का सारा काम अकेले निपटा लेती थीं , गाय भैंस दूहने से झाड़ू पोंछा, रसोई। इसलिए देह भी काम करने वालियों की तरह खूब गठी, हाथ पकड़ ले तो नयी नयी बहुरिया नहीं छुड़ा पाती।


खूब गोरी, चेहरे पर लुनाई भरी थी, गजब का नमक था। चौड़ा माथा, सुतवा नाक, बड़ी बड़ी आँखे, भरे भरे होंठ, लेकिन जो जान मारते थे उनके देवर, नन्दोई के,…. वो थे उनके जोबन, सबसे गद्दर, और उतने ही कड़े। और उनको भी ये बात मालूम थी, सब ब्लाउज एकदम टाइट, आँचल के अंदर से भी कड़ाव उभार, झलकता रहता और दर्जिन को कहना नहीं पड़ता, उसे मालूम था की गला इतना कटेगा की बस जरा सा आँचल हटे और गोलाई गहराई सब दिख जाए, और छोटा इतना हो की नाभि के ऊपर भी बित्ते भर पेट दिखे।

और मजाक, छेड़ने के मामले में, गाने, गवनही के मामले में, अकेले आठ दस नंदों के पेटीकोट का नाड़ा खोल लेती थीं।



आज खुश होने की बात भी थी, एकलौते लड़के की शादी थी, उसके चौके बैठने जा रही थीं।

और लड़का भी ऐसा, माँ को कहना भी नहीं पड़ता था, बस इशारा काफी था।

कहीं से दंगल जीत के आता तो पहले मंदिर फिर सीधे माई के पास, और कुल इनाम माई के गोड़ में रख के बस उनका मुंह देखता।

बौरहा, एकदम लजाधुर, और काम में भी सब खेत बाड़ी यहाँ का भी, अपने ननिहाल का भी, इसलिए आज जितने गाँव के लोग, नाते रिश्तेदार जुटे थे, उतने ही सूरजु की माई के मायके के भी, और फिर बहु भी, पहली बार गाँव में पढ़ी लिखी बहु आ रही थी, नहीं तो चिट्ठी पत्री पढ़ लेती बहुत से बहुत,

इस रस्म में माँ को लड़के के साथ चौके बैठना होता है और माँ आलमोस्ट गोदी में लेके छोटे बच्चे की तरह,

तो जैसे सूरजु की माई ने उन्हें अपनी गोद में खींचा, वो बेचारे लजा गए और कस के डांट पड़ गयी,

" हे काहें को लजा रहे हो। ससुराल जाओगे तो सास गोदी में दुबका के प्यार दुलार करेगी तो खुद उचक के बैठ जाओगे, अरे हमरे लिए तो बच्चे ही हो, "


और सूरजु की माई का आँचल ढुलक गया, दोनों जबरदस्त गोलाइयाँ, छलक गयी। पता नहीं मारे बदमाशी के या ऐसे ही। लेकिन जोबन थे उनके जान मारु

गाँव की बहुये जोर जोर से हंसने लगी, एक उनको चिढ़ाते हुए बोली, " अरे जरा नीचे देखिये तो पता चल जाएगा की हमारा देवर बच्चा है,… की बड़ा हो गया,:"

वाकई 'बड़ा' था।

कनखियों से सूरजु की माई ने देखा था, लेकिन अब सीधे वहीँ, नेकर पे निगाह थी। अपने बाबू पे गया था बल्कि उनसे भी आगे, बित्ता भर से कम नहीं होगा और मोटा कितना, लेकिन बहुओं को जवाब देती, मुस्करा के बोलीं,

" हे नजर मत लगावा,… थू, “

और इमरतिया से बोलीं,

" आज ही राय नोन से नजर उतारना हमरे बेटवा की " और इमरतिया क्यों मौका छोड़ती वो बुच्चिया की ओर देख के चिढ़ाते बोलीं,

" तनी काजर ले के टीक देना अपने भैया का, …अच्छी तरह से "



शादी ब्याह में, ख़ास तौर से लड़के के सबसे ज्यादा गरियाई जाती हैं, और कौन लड़के की बहिन और महतारी। और लड़के के महतारी के पीछे पड़ती हैं, लड़के की मामी और बूआ, उनकी महतारी की भाभी और ननद।

तो सूरजु की एक मामी जो कल ही आगयी थीं, सूरजु के ननिहाल से, सूरजु की महतारी को चिढ़ाती बोलीं,

" अरे काहें लजा रही हैं, बचपन में तो बहुत पकड़ा होगा। अंदर हाथ डाल के,.. पकड़ के सहला के देख लीजिये "


सूरजु की माई मुस्करा के रह गयी, वो कुछ और सोच रही थीं, मुस्करा रही थीं, उनका दुलरुआ उनके समधन की बिटिया की का हाल करेगा पहली रात।

और करना भी चाहिए… उसकी महतारी की जिम्मेमदारी है समझा बुझा के भेजे अपनी बिटिया को।

रस्म शुरू हो गयी, ढोलक टनकने लगी, बीच बीच में गाँव की बड़ी औरतें, और इमरतिया भी रस्म में मदद कर रही थीं,
सूरजु की माई का आँचल ढुलक गया, दोनों जबरदस्त गोलाइयाँ, छलक गयी। पता नहीं मारे बदमाशी के या ऐसे ही। लेकिन जोबन थे उनके जान मारु

गाँव की बहुये जोर जोर से हंसने लगी, एक उनको चिढ़ाते हुए बोली, " अरे जरा नीचे देखिये तो पता चल जाएगा की हमारा देवर बच्चा है,… की बड़ा हो गया,:"

वाकई 'बड़ा' था।



Uffffff kya likha hai 🔥🔥🔥🔥🔥🔥
 

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भाग १०६ - रीत रस्म और गाने

२६,८०,१७७
सुरजू सिंह की माई

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सरजू की निगाह बुच्ची की जाँघों के बीच चिपकी थी, बुच्ची छूटने के लिए छटपटा रही थी। एकदम चिपकी हुयी रस से भीगी मखमली फांके, गोरी गुलाबी, फांके फूली फूली,

लेकिन सुरजू को वहां देखते उसे भी न जाने कैसा कैसा लग रहा था।


और इमरतिया ने गीली लसलसी चासनी से डूबी फांको पर अपनी तर्जनी फिराई, उन्हें अलग करने की कोशिश की और सीधे सुरजू के होंठों पे

" अरे चख लो, खूब मीठ स्वाद है " बोल के बुच्ची का हाथ पकड़ के मुड़ गयी, और दरवाजा बंद करने के पहले दोनों से मुस्करा के बोली,

" अरे कोहबर क बात कोहबर में ही रह जाती है,... और वैसे भी छत पे रात में ताला बंद हो जाता है।

और सीढ़ी से धड़धड़ा के नीचे, बुच्ची का हाथ पकडे, बड़की ठकुराइन दो बार हाँक लगा चुकी थी। बहुत काम था आज दिन में,…



दिन शुरू हो गया था, आज से और मेहमान आने थे, रीत रस्म रिवाज भी शुरू होना था।

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" जा, अपने देवर के ले आवा, आज का काम शुरू होय, बहुत काम बचा है, अभी सुरजू का बूआ भी नहीं आयी " बार बार दरवाजे की ओर देखते,… सुरजू सिंह की माई इमरतिया से बोली।


आँगन में जमावड़ा लगना शुरू हो गया था औरतों, लड़कियों का।



बड़े सैय्यद की दुल्हिन, अभी डेढ़ साल पहले गौने उतरी थीं, सुरजू क असल भौजाई समझिये, ….और उनकी सास, ….

पश्चिम पट्टी क पंडिताइन भौजी, आधे दर्जन से ज्यादा सुरजू की माई की गाँव क देवरानी, जेठानी, गाँव क बहुएं , लड़किया, काम करने वाली,

आज अभी कोहबर लिखा जाना था, उसके पहले मंडप क पूजा, फिर मानर पूजा जाना था, उसके बाद,

और हर काम में इमरतिया और उसकी टोली वाली सब,

" हे चलो, जल्दी माई गुस्सा हो रही हैं, बूआ तोहार आने वाली हैं और ये सब क्या पहने हो, रस्म में ये सब नहीं "
और सुरजू के मना करते करते पैंट खींच के नीचे, और शर्ट खुद सुरजू ने उतार दी,….



" भौजी ये का, ,,,और दरवाजा भी खुला है "बेचारे सूरजु बोलते रह गए

लेकिन ऐसा जवान मर्द उघाड़े खड़ा हो तो जवान भौजाई क निगाह तो जहाँ पड़नी चाहिए वही पड़ी और इमरतिया खुश हो गयी । समझ गयी देवर सच में उसकी बात मानेंगे।

जैसे कल भौजी ने हुकुम दिया था, एकदम उसी तरह, लंड का टोपा एकदम खुला , लाल भभुका और भौजी कौन जो मौके का फायदा न उठाये। इमरतिया झुक के 'उससे ' बोली,


" सबेरे सबेरे दर्शन होगया बुच्ची की बुरिया का, है न एकदम मस्त। बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी उसमे घुसने के लिए, खूब कसी है रसीली लेकिन मजा भी उतना ही आएगा, एकदम कच्ची कोरी में पेलने में, थोड़ी मेहनत, ….थोड़ी जबरदस्ती "

और इमरतिया ने अपनी हथेली में थूक लगा के दस पांच बार उसे आगे पीछे, और वो फनफनाने लगा। लेकिन तभी नीचे से ठकुराइन की आवाज आये, " अरे दूल्हा क लैके जल्दी आओ "

सुरजू को पहनने के लिए एक बिना बांह वाली बनियान और एक छोटी सी थोड़ी ढीली नेकर मिली।



'जल्दी पहनो, अब आज से यही, हर रस्म में, तेल हल्दी चुमावन;" वो बोली और नेकर उसने जान बूझ के ऐसी चुनी थी। अंदर कुछ पहनने का सवाल नहीं, तो जैसे ही टनटनायेगा, साफ़ साफ़ दिखाई देगा और हल्दी लगाते, भौजाई सब जब अंदर तक हल्दी लगाएंगी तो ढीली नेकर में हाथ डालने में आसानी होगी।

और निकलते समय भी दो चार बार कस के नेकर के ऊपर से ही मसल दिया। सीढ़ी से उतरते समय भी बस उसी खूंटे को पकड़ के और नतीजा ये हुआ की जैसे सुरजू आंगन में पहुंचे सब उनकी भौजाइयां सीधे ‘वहीँ’ देख के खुल के मुस्कराने लगी।




और उनकी माई भी मुस्करा रही थीं, अपने दुलारे को देख के,… और बुच्ची को हड़काया,

"हे चलो, अपने भैया को बैठाओ, चौकी पे और साथ में रहना,… छोट बहिन हो,... खाली खाली नेग लेने के लिए।"

इमरतिया और बुच्ची सुरजू के पीछे, एकदम सट के, कई बार भौजाइयां रस्म करते करते लड़के को जोर से धक्का दे देती हैं, नाउन और बहन का काम है सम्हालना।

आज सुरुजू क माई फूले नहीं समा रही थी।

ख़ुशी छलक रही थी, वैसे भी उस जमाने के हिसाब से भी सुरजू सिंह की माई की कम उम्र में शादी होगयी, साल भर में गौना।

सूरजु के बाबू से रहा नहीं जा रहा था, तो पहले रात ही, और नौ महीने में ही सूरजु बाहर आ गए। ३५-३६ की उमर होगी, लगती दो चार साल कम ही थीं। भरी भरी देह, खूब खायी पी, लेकिन न मोटापा न आलस। कोई काम करने वाली न आये तो खुद घर का सारा काम अकेले निपटा लेती थीं , गाय भैंस दूहने से झाड़ू पोंछा, रसोई। इसलिए देह भी काम करने वालियों की तरह खूब गठी, हाथ पकड़ ले तो नयी नयी बहुरिया नहीं छुड़ा पाती।


खूब गोरी, चेहरे पर लुनाई भरी थी, गजब का नमक था। चौड़ा माथा, सुतवा नाक, बड़ी बड़ी आँखे, भरे भरे होंठ, लेकिन जो जान मारते थे उनके देवर, नन्दोई के,…. वो थे उनके जोबन, सबसे गद्दर, और उतने ही कड़े। और उनको भी ये बात मालूम थी, सब ब्लाउज एकदम टाइट, आँचल के अंदर से भी कड़ाव उभार, झलकता रहता और दर्जिन को कहना नहीं पड़ता, उसे मालूम था की गला इतना कटेगा की बस जरा सा आँचल हटे और गोलाई गहराई सब दिख जाए, और छोटा इतना हो की नाभि के ऊपर भी बित्ते भर पेट दिखे।

और मजाक, छेड़ने के मामले में, गाने, गवनही के मामले में, अकेले आठ दस नंदों के पेटीकोट का नाड़ा खोल लेती थीं।



आज खुश होने की बात भी थी, एकलौते लड़के की शादी थी, उसके चौके बैठने जा रही थीं।

और लड़का भी ऐसा, माँ को कहना भी नहीं पड़ता था, बस इशारा काफी था।

कहीं से दंगल जीत के आता तो पहले मंदिर फिर सीधे माई के पास, और कुल इनाम माई के गोड़ में रख के बस उनका मुंह देखता।

बौरहा, एकदम लजाधुर, और काम में भी सब खेत बाड़ी यहाँ का भी, अपने ननिहाल का भी, इसलिए आज जितने गाँव के लोग, नाते रिश्तेदार जुटे थे, उतने ही सूरजु की माई के मायके के भी, और फिर बहु भी, पहली बार गाँव में पढ़ी लिखी बहु आ रही थी, नहीं तो चिट्ठी पत्री पढ़ लेती बहुत से बहुत,

इस रस्म में माँ को लड़के के साथ चौके बैठना होता है और माँ आलमोस्ट गोदी में लेके छोटे बच्चे की तरह,

तो जैसे सूरजु की माई ने उन्हें अपनी गोद में खींचा, वो बेचारे लजा गए और कस के डांट पड़ गयी,

" हे काहें को लजा रहे हो। ससुराल जाओगे तो सास गोदी में दुबका के प्यार दुलार करेगी तो खुद उचक के बैठ जाओगे, अरे हमरे लिए तो बच्चे ही हो, "


और सूरजु की माई का आँचल ढुलक गया, दोनों जबरदस्त गोलाइयाँ, छलक गयी। पता नहीं मारे बदमाशी के या ऐसे ही। लेकिन जोबन थे उनके जान मारु

गाँव की बहुये जोर जोर से हंसने लगी, एक उनको चिढ़ाते हुए बोली, " अरे जरा नीचे देखिये तो पता चल जाएगा की हमारा देवर बच्चा है,… की बड़ा हो गया,:"

वाकई 'बड़ा' था।

कनखियों से सूरजु की माई ने देखा था, लेकिन अब सीधे वहीँ, नेकर पे निगाह थी। अपने बाबू पे गया था बल्कि उनसे भी आगे, बित्ता भर से कम नहीं होगा और मोटा कितना, लेकिन बहुओं को जवाब देती, मुस्करा के बोलीं,

" हे नजर मत लगावा,… थू, “

और इमरतिया से बोलीं,

" आज ही राय नोन से नजर उतारना हमरे बेटवा की " और इमरतिया क्यों मौका छोड़ती वो बुच्चिया की ओर देख के चिढ़ाते बोलीं,

" तनी काजर ले के टीक देना अपने भैया का, …अच्छी तरह से "



शादी ब्याह में, ख़ास तौर से लड़के के सबसे ज्यादा गरियाई जाती हैं, और कौन लड़के की बहिन और महतारी। और लड़के के महतारी के पीछे पड़ती हैं, लड़के की मामी और बूआ, उनकी महतारी की भाभी और ननद।

तो सूरजु की एक मामी जो कल ही आगयी थीं, सूरजु के ननिहाल से, सूरजु की महतारी को चिढ़ाती बोलीं,

" अरे काहें लजा रही हैं, बचपन में तो बहुत पकड़ा होगा। अंदर हाथ डाल के,.. पकड़ के सहला के देख लीजिये "


सूरजु की माई मुस्करा के रह गयी, वो कुछ और सोच रही थीं, मुस्करा रही थीं, उनका दुलरुआ उनके समधन की बिटिया की का हाल करेगा पहली रात।

और करना भी चाहिए… उसकी महतारी की जिम्मेमदारी है समझा बुझा के भेजे अपनी बिटिया को।

रस्म शुरू हो गयी, ढोलक टनकने लगी, बीच बीच में गाँव की बड़ी औरतें, और इमरतिया भी रस्म में मदद कर रही थीं,


" अरे का लुभा रहे हो, अरे अब लजाने क दिन खतम हो गया। यही पकड़ के हमर भैया,दबाय के मसल के चोदे थे हचक के तो पहली रात के इनके पेट में आ गए थे और तब से वैसे ही टनाटन है, मस्त गदराया, देख लो पकड़ के "

और अपनी भौजी को, माई को चिढ़ाया, " हे हमरे भतीजा का खूंटा देख के पनिया रही हो, ....तो ले लो अंदर तक "


🔥🔥🔥🔥🔥 garam
 

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बुच्ची,...इमरतिया भौजी


ब्याह शादी में दो तरह की औरतें बहुत गर्माती हैं, एक तो वो कुँवारी लड़कियां, कच्ची कलियाँ जिन्होंने कभी लंड घोंटा नहीं होता

और दूसरे वो थोड़ी बड़ी उम्र की औरतें जिन्होंने एक ज़माने में तो बहुत लंड घोंटा होता है लेकिन अब बहुत दिनों से नीचे सूखा पड़ा रहता है। तो वो छनछनाती भी रहती हैं और मजाक भी करने के मौके ढूंढती हैं।

पहली कैटगरी में बुच्ची जिसकी चूँचिया तो आनी शुरू हो गयीं थी लेकिन अभी तक किसी लौंडे का उस पे हाथ नहीं पड़ा था और

दूसरे में थीं सूरजु की माई, जिनके मजाक गाली से शुरू होक तुरंत देह पर आ जात्ते थे और वैसे भी ब्याह शादी में लड़के के घर में सबसे ज्यादा लड़के की बहिनिया और महतारी गरियाई जाती हैं।




गाने और रस्म रिवाज, पहले नीचे आंगन में फिर ऊपर कोहबर में चल रहे थे और बुच्ची लगतार अपने ममेरे भाई सूरजु से चिपकी, कभी कान में कुछ कहने के बहाने उसके कान की लर को जीभ की टिप से छू देती थी, कभी अपनी कच्ची अमिया से सूरजु की पीठ रगड़ देती।

इमरतिया देख रही थी, रस ले रही थी और बुच्ची को उकसा भी रही थी

लड़कियों, औरतों की बदमाशियों को देख देख के, कभी आँचल गिरा के, जुबना दिखा के, कभी जाने अनजाने में धक्के मार के, कभी चिकोटियां काट के, ....

सूरजु बाबू की हालत खराब थी और अब औजार लंगोट की कैद में भी नहीं थ। और इमरतिया भौजी ने जानबूझ के ऐसी नेकर छोटी सी बित्ते भर की पहनाई थी जिसमे से बित्ते भर का तना मोटा खूंटा फाड़ के बाहर सब को ललचा रहा था, कोई औरत या लड़की नहीं बची थी, जिसके ऊपर और नीचे वाले मुंह दोनों में पानी नहीं आ रहा था।

सूरजु पहलवान ने इतने दिनों से अपने को रोक के रखा था, लेकिन कल जब से इमरतिया भौजी ने उसे पिजंडे से बाहर निकाला, खूब मस्ती से उसे रगड़ा और ऊपर से बुच्ची, एक तो इमरतिया भौजी ने जिस तरह से बोला था, '

“हे अब कउनो लौडिया हो या औरत, ....चाहे बुच्ची हों या तोहार महतारी,.... सीधे जोबना पे नजर रखना और सोचना की सीधे मुट्ठी में लेकर दबा रहे हो मसल रहे हो,"


और दूसरे कल जब से मुठिया के झाड़ते हुए बोलीं,

" हे देवर आँख बंद,.... और सोचो की बुच्ची की दोनों कसी कसी फांको के बीच, पूरी ताकत से पेल रहे हो, ....अरे तोहार दुलहिनिया भी तो बुच्ची से थोड़िके बड़ी होगी, उसकी भी वैसी ही कसी कसी, एकदम चिपटी सटी फांक होगी, बुच्ची की तरह। "

और ऊपर से बुच्ची की बदमाशी, फिर सबेरे सबेरे इमरतिया भौजी, बुच्ची की फ्राक उठा के दरशन करा दीं, सच में एकदम चिपकी थी, खूब कसी और गोरी गोरी फूली फूली, देख के मन करने लगा, मिल जाए तो छोड़ू नहीं।

और इमरतिया भौजी कौन कम, जब माई भेजती थी बुलाने तो ऐसे देखती थी ललचा के बस खा जाएंगी, कभी आँचल गिरा के जोबना झलकाती कभी उससे कहती, " देवर गोदी में उठा लो " कभी पीछे से धक्का मार देती,

मन तो बहुत करता था लेकिन अखाड़े की कसम, पर अब एक तो गुरु जी उसके खुदे आजाद कर दिए जब उसकी शादी की बात चली, बोले, खूब खुश हो के, " जाओ अब जिंदगी के अखाड़े में नाम रोशन करो , वो भी तुम्हारी जिम्मेदारी है, एकलौते लड़के हो अब वो सब बंधन नहीं है बस मजे लो "

और माई भी रोज लुहाती थी, और उनकी एक बात टालने को तो वो सपने में भी नहीं सोच सकता, गुरु से भी ज्यादा, और वो खुद कल हंस के बोलीं

" इमरतिया भौजी की बात मानना अब कोहबर में, घरे बहरे तोहरे ऊपर इमरतिया क ही हुकुम चले, जैसे कहे वैसे रहो '।

और सच में मन तो उसका कब से कर रहा था, इमरतिया भौजी के साथ,





लेकिन बस हिम्मत नहीं पड़ रही थी, और अब,



ऊपर से बूआ और माई, उन लोगो का मजाक तो एकदम से ही,.... लेकिन आज तो सीधे उसको लगा के, बूआ माई क चिढ़ा रही थीं,

" हमरे भतीजा को जोबना दिखा के, अंचरा गिरा के ललचा रही हो "


और माई क आँचल एकदम से गिर गया, टाइट चोली, एकदम से नीचे तक कटी, पूरा गोर गोर बड़ा बड़ा, और खूब टाइट


और उनकी निगाह वहीँ अटक गयी, लेकिन बुआ की निगाह से कैसे बचती, खिलखिला के बोलीं,

" अरे का लुभा रहे हो, अरे अब लजाने क दिन खतम हो गया। यही पकड़ के हमर भैया,दबाय के मसल के चोदे थे हचक के तो पहली रात के इनके पेट में आ गए थे और तब से वैसे ही टनाटन है, मस्त गदराया, देख लो पकड़ के "

और अपनी भौजी को, माई को चिढ़ाया, " हे हमरे भतीजा का खूंटा देख के पनिया रही हो, ....तो ले लो अंदर तक "




और माई और, कौन पीछे हटने वाली, बोलीं " अरे हमरे मुन्ना क है , ...ले लुंगी और पूरा लुंगी। तोहार झांट काहें सुलगत है , तोहूँ को दिया दूंगी। ओकर बाप बियाहे के पहले से तोहें, अपनी बहिनिया के, पेलत रहे तो उहो, ….यहाँ का तो रिवाज है "



और पीछे से बुच्ची अपने कच्चे टिकोरे गड़ा रही थी, रगड़ रही थी।



सूरजु की हालत ख़राब थी ये सब सोच सोच के,.... और उसी समय दरवाजा खुला और हंसती बिहँसती इमरती भौजी और पीछे खाने की थाली लिए बुच्ची हाजिर।

" आज ये देंगी तुमको, मन भर के लेना, "

इमरतिया ने आँखे नचाते हुए, थाली पकडे बुच्ची की ओर इशारा करके सुरजू को छेड़ा, लेकिन जवाब झुक के जमीन पर थाली रखते हुए बुच्ची ने ही सीधे अपने ममेरे भाई की आँख में आँख डाल के दिया

" एकदम दूंगी, मन भर के दूंगी, और मेरा भाई है क्यों नहीं लेगा, बोलो भैया, "



लेकिन सुरजू की निगाहें तो उस दर्जा नौ वाली के छोट छोट जोबना पे टिकी थीं, जो टाइट फ्राक फाड़ रहा था।

अब सुरजू की नेकर और टाइट हो गयी। उसने खाने के लिए हाथ बढ़ाया, तो फिर जोर की डांट पड़ गयी, इमरतिया भौजी की

" मना किया था न हम ननद भौजाई के होते हुए अपने हाथ क इस्तेमाल नहीं करोगे, और लेकिन नहीं।। सामने इतने जबरदंग जोबन वाली लौंडिया देने को तैयार बैठी है, लेकिन नहीं "




बुच्ची जोर से मुस्करायी, सुरजू जोर से झेंपे। दोनों समझ रहे थे ' किस बात के लिए हाथ के इस्तेमाल ' की बात हो रही है। इमरतिया से बुच्ची बोली,

" अरे भौजी तोहार देवर ऐसे बुद्धू हैं, आपने उन्हें कुछ समझाया नहीं ठीक से। नयकी भौजी जो आएँगी दस बारह दिन में उनके सामने भी नाक कटायेंगे " और अपने हाथ से सुरजू को खिलाना शुरू किया,

" भैया, बड़ा सा मुंह खोल न "

" जैसा बुच्ची खोलेगी अपना नीचे वाला मुंह, तेरा लौंड़ा घोंटने के लिए, है न बुच्ची। अरे सीधे से नहीं खोलेगी तो मैं हूँ न और मंजू भाभी , बाकी भौजाइयां, जबरदस्ती खोलवाएंगी।" हँसते हुए इमरतिया बोली



बुच्ची और सुरजू थोड़ा झेंप गए लेकिन बुच्ची जो दो दिन पहले ऐसे मजाक का बुरा मान जाती थी अब धीरे धीरे बदल रही थी। बात बदल के सुरजू से बोली

" भैया ठीक से खाओ, थोड़ा ताकत वाकत बढ़ाओ वरना दस बारह दिन में नयकी भौजी आएँगी तो हमें ही बोलेंगी की अपने भैया को तैयार करके नहीं रखी "


" एकदम , देवर जी, नयी कच्ची कली के साथ बहुत ताकत लगती है, एकदम चिपकी फांक और नयी बछेड़ी हाथ पैर भी बहुत फेंकती है। लेकिन ये तोहार छिनार बहिनिया, ...हमरे आनेवाली देवरानी के लिए नहीं, अपने लिए कह रही है। बहुत उसकी चूत में चींटे काट रहे हैं, पनिया रही है। अरे छिनार भाई चोद, ....यह गाँव क तो कुल लड़की भाई चोद होती हैं तो तोहरो मन ललचा रहा है तो कोई नहीं बात नहीं। लेकिन समझ लो, रात में छत क ताला बंद हो जाता है और चाभी तोहरे इमरतिया भौजी के पास, हमार ये देवर अइसन हचक के फाड़ेंगे न , चूत क भोंसड़ा हो जाएगा, बियाहे के पहले।
बोल साफ़ साफ़ चुदवाना है, मुंह खोल के बोल न "


इमरतिया ने गियर आगे बढ़ाया और अब बात एकदम साफ़ साफ़ कह दी।



लेकिन बुच्ची सच में गरमाई थी, थाली लेकर निकलते हुए दरवाजे पे ठिठक गयी, बड़ी अदा से अपनी कजरारी आँखों से सुरजू भैया को देखा जैसे कह उन्ही से रही हो, बात चाहे जिससे कर रही हो और इमरतिया से रस घोलकर मीठे अंदाज में बोली,


" भौजी, आप बड़ी है, पहले आप नंबर लगवाइये, "




इमरतिया ख़ुशी से निहाल, बांछे खिल गयीं, छमिया सच में पेलवाने के लिए तैयार है, वो बुच्ची से बोली,


" अरे हमार ललमुनिया, चलो तो मान गयी न। और हमार बात तो मत करा, हम तो असली भौजी हैं, खड़े खड़े अपने देवर को पेल देंगे , ये तोहार भाई का चोदिहे हम्मे, हम इनको खड़े खड़े पेल देंगे। लेकिन हमरे बाद तोहें चुदवाना होगा, हमरे देवर से। पर भैया के तो सोने क थारी में जोबना परोस दी, खिआय दी , मुहँवा के साफ़ करी। "


" हम करब भौजी, तोहार असली नन्द हैं, सात जन्म क" खिलखिलाती बुच्ची बोली और झट से सूरजु भईया को पकड़ के कस के अपने होंठों को उनके होंठों पे रगड़ दिया।

पीछे से इमरतिया ने सूरजु के नेकर को खींचा, जैसे बटन दबाने से स्प्रिंग वाला चाक़ू बाहर आ जाता है, खूब टनटनाया, फनफनाया, बुच्ची की कलाई से भी मोटा, कड़ा एकदम लोहे की रॉड जैसा,

" पकड़ स्साली कस के, देख कितना मस्त है, हमरे देवर क लंड " इमरतिया हड़काते, फुसफुसाते उस दर्जा नौ वाली टीनेजर के कान में बोली और बुच्ची की मुट्ठी के ऊपर से पकड़ के जबरदस्ती पकड़ा दिया।




बेचारी कल की लौंडी की हालत खराब, कलेजा मुंह को आ गया, मुट्ठी में समा ही नहीं रहा था, वो छुड़ाने की कोशिश करती लेकिन इमरतिया ने कस के उसके हाथ को अपने हाथ से, भैय्या के लंड के ऊपर दबोच रखा था। वो पहले छुड़ाने की कोशिश करती रही, फिर धीरे धीरे भैया के लंड का मजा लेने लगी।

'अबे स्साली ये न सोच की जो मुट्ठी में नहीं समा रहा है, वो उस छेद में जिसमे कोशिश करके भी ऊँगली नहीं जाती, कैसे जाएगा। अरे तुझे बस टाँगे फैलानी है , आगे का काम मेरा देवर करेगा, हाँ चीखना चिल्लाना चाहे जितना, छत का ताला तो बंद ही रहेगा । "


एक बार फिर इमरतिया ने अपनी ननद के कान में बोला।

होंठ उसके अभी भी सूरजु के होंठों से चिपके थे और अब हिम्मत कर के सूरजु ने भी बुच्ची के होंठों को हलके हलके चूसना शुरू कर दिया।


लेकिन तभी नीचे से बुच्ची की सहेलियों की आवाज आयी और वो छुड़ाकर, हँसते खिलखिलाते कमरे से बाहर।



और इमरतिया भी साथ साथ लेकिन निकलने के पहले सूरजु को हिदायत देना नहीं भूली

" स्साले, का लौंडिया की तरह शर्मा रहे थे, सांझ होते ही मैं आउंगी बुकवा लगाने, आज खाना भी जल्दी हो जाएगा। यहीं छत पे नौ बजे से गाना बजाना होगा, तोहरी बहिन महतारी गरियाई जाएंगी। तो खाना आठ बजे और दो बात, पहली अब कउनो कपडा वपडा पहनने की जरूरत नहीं है, इसको तानी हवा लगने दो और ये नहीं की हम आये तो शर्मा के तोप ढांक के, और दूसरे बुच्ची जब खाना खिलाती है तो अपने गोद में बैठाओ, ओकर हाथ तो थाली पकडे में खिलाने रहेगा , बस फ्राक उठा के दोनों कच्चे टिकोरों का स्वाद लो, "



पर बात काट के सूरजु ने मन की बात कह दी, " पर भौजी, हमार मन तो तोहार, लेवे का,….. "

" आज सांझ को, आउंगी न बुकवा लगाने, चला तब तक सोय जा। "

इमरतिया का मन हर्षाय गया, कितने दिन से ये बड़का नाग लेने के चक्कर में थी और आज ये खुद,

अरे हमरे मुन्ना क है , ...ले लुंगी और पूरा लुंगी। तोहार झांट काहें सुलगत है , तोहूँ को दिया दूंगी। ओकर बाप बियाहे के पहले से तोहें, अपनी बहिनिया के, पेलत रहे तो उहो, ….यहाँ का तो रिवाज है "



Ufffff jaldi se inka milaaan kara do naaa … wo bhi bas 1 bar nahi 2-3 baar alag alag scene mei
 
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