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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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तो अब शुरू होती है,


छुटकी - होली, दीदी की ससुराल में

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komaalrani

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बहुत बढ़िया शुरुआत.... अब देखते है होली के रंग और भंग के तरंग में कैसी पिचकारी चलती है ।
एकदम, बस थोड़ी देर में और मैंने मोहे रंग दे में, मज़ा बनारस का, के ट्रेलर का अगला भाग भी पोस्ट कर दिया है, वह भी आपके कमेंट का इन्तजार कर रहा है।
 

Lutgaya

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एकदम, बस थोड़ी देर में और मैंने मोहे रंग दे में, मज़ा बनारस का, के ट्रेलर का अगला भाग भी पोस्ट कर दिया है, वह भी आपके कमेंट का इन्तजार कर रहा है।
komaalrani tussi great ho.
Kya mast likhti h aap.
Wah wah wah
 

komaalrani

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komaalrani

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छुटकी - होली, दीदी की ससुराल में

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छुटकी,


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स्टेशन पर सब लोग छोड़ने आये थे , उनकी सलहज , रीतू भाभी , ... उनकी मंझली साली , दसवीं वाली ... बेचारी अभी भी सम्हल सम्हल कर चल रही थी , पिछवाड़े तेज चिलख उठ रही थी उसको , और रीतू भाभी अपनी ननद की ये हालत देख कर , मुश्किल से अपनी हंसी दबा पा रही थीं , पता उन्हें भी था और मुझे भी , मैं तो जब छत पर के कमरे से छुटकी का सामान लाने गयी थी तो मैंने हल्के से देखा भी था , मंझली निहुरी हुयी थी , कुतिया बनी दुछत्ती पर , और ये पीछे से चढ़े हुए ,

" नहीं जीजू उधर नहीं , पीछे नहीं , प्लीज आगे कर लीजिये न बहुत दर्द हो रहा है "

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मैं समझ गयी , अगर लड़के दर्द का ख्याल करें न तो न तो किसी लड़की की गाँड़ मारी जाय न किसी चिकने लौंडे की गाँड़ ,... और ऊपर से वहां न तो कडुआ तेल था न वैसलीन , सिर्फ थूक लगा के ये अपनी मंझली साली की गाँड़ मारने के चक्कर में पड़े थे , दसवें में पढ़ने वाली लड़की ,कितनी कसी होगी आप सोच सकते हैं , ...

बस मैं दबे पाँव बिना कुछ भी आवाज किये नीचे छुटकी का समान ले कर आ गयी ,



मिश्राइन भाभी ने बल्कि पूछा भी पाहुन नहीं दिख रहे हैं मैंने बहाना बना दिया , बस तैयार हो रहे हैं , आ ही रहे हैं।

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हम लोगो के एकदम चलने का टाइम हो गया तब पहले सहारा लेकर धीरे धीरे मंझली ऊपर से उतरी , और पीछे पीछे वो ,...

और मंझली के चलने के अंदाज से सभी समझ गए पिछवाड़े कुदाल कस के चली है।


छुटकी बहुत खुश थी ,



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आखिर उसे अपने जीजू के साथ चलने का मौका मिल गया , और फिर उससे बढ़कर उसे आठ दस दिन के बाद आना नहीं पड़ेगा , मिश्राइन भाभी ने अपने सलहज होने का हक पूरी तरह अदा कर दिया , नन्दोई का फायदा करा कर ,... इनका मुंह उतरा था छुटकी चल तो रही थी , लेकिन उसे आठ दस दिन बाद आना पड़ता , नौवीं का सालाना का इम्तहान बाकी था ,

बस उन्होंने अपने नन्दोई की परेशानी समझ भी ली , सुलझा भी दी। वो छुटकी के स्कूल की वाइसप्रिंसिपल थी और मिश्राजी मैनेजर , बस। उन्होंने फैसला सुना दिया , छुटकी को।

" ... तो मत आओ न , अरे ऐसे जीजू के पास जाने का मौक़ा थोड़े मिलता है , अरे तेरा छमाही में अच्छे नंबर थे बस उसी के ऊपर , ... कम्पार्टमेंटल ,... अब जुलाई में स्कूल खुलेगा तभी , तीन चार महीने दीदी जीजा के पास रहो ,... "

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ये बताना मुश्किल था की छुटकी ज्यादा खुश थी या छुटकी के जीजू।



और अब वो अपने जीजू के पास चिपकी लिबरा रही थी,इतरा रही थी , मंझली को चिढ़ा रही थी , एकदम भूल कर की अभी चार पांच घंटे पहले इन्ही इसके जीजू ने कितनी बेरहमी से फाड़ी थी ,... और कितना जोर जोर से वो चीख चिल्ला रही थी।



" जीजू आपने आज बहुत तंग किया अभी तक ,... " वो अपने जीजू से शिकायत कर रही थी की उसके जीजू की सलहज ने अपनी ननद का छुटकी का गाल कस के चिकोटी काटी ,



" अरे जीजू ने तंग किया की ढीली किया , अभी तो जा रही हो न आज रात में ट्रेन में तेरी बची खुची भी ढीली कर देंगे , ... प्यार से करवाना , ... "


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स्टेशन पर ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी , अभी तो होली की छुट्टिया हीं चल रही थी , कौन होली के बीच में जाता , और जब ट्रेन आयी तो वो भी आलमोस्ट खाली , फर्स्ट क्लास के चार बर्थ वाले में हम लोगों का रिजर्वेशन था , हम लोगों का स्टेशन छोटा सा था तो दो मिनट में ही ट्रेन चलने लगी।

लेकिन तभी उसके पहले टीटी आया , वही जो हम लोगों के आते समय था और जिसको उन्होंने १०० रुपये की टिप दी थी

उनको देखते ही जोर से मुस्कराया , बोला लगता है होली जबरदस्त हुयी है।

सच में १० -१२ कोट तक तो मैंने गिना था उसके बाद मैंने भी छोड़ दिया , सबसे तगड़ी तो मोहल्ले की भाभियाँ , इनकी सलहजें , ... महीने भर की कालिख इकट्ठा की थी और एक इंच भी इनके देह की बची नहीं होगी , जहाँ वो कालिख नहीं पोती गयी होगी , बल्कि मिश्राइन औरदूबे भाभी ने पिछवाड़े दो पोर तक अंदर ऊँगली कर के भी , उसके बाद आज उनकी सालियों ने लीला , रीमा छुटकी और रीतू भाभी ने ,... पिछवाड़े के गड़हे में , वार्निश पेण्ट , पके रंग लाल नीला बैगनी और रीतू भाभी ने तो इनकी सालियों से , छुटकी की दोनों सहेलियों से , सीधे उनके चर्म दंड पर सुनहला पेण्ट ,...


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" अरे ससुराल में आये थे ऐसे बच के चले जाते , ... महीने भर तक तो लगेगा रंग छुड़ाने में , " उनके बगल में बैठी हंसती खिलखलाती छुटकी बोली।

उसका भी तो चेहरा क्या पूरी देह पर अभी भी रंगों के निशान,.... जीजा के साथ भौजाइयों ने भी

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लेकिन ये तो सीधे मुद्दे पर आये ,

" रास्ते में कोई और पैंसेजर तो नहीं आएगा ,... " उन्होंने पूछा।

" नहीं नहीं अभी तो होली की ,... आप के कोच में आप ही लोग है और आप का स्टेशन भी सुबह आठ बजे आएगा , और आज ट्रेन में कोई और टीटी नहीं है , मुझे ही सारे डिब्बे चेक करने है , एक ओर का डिब्बा मैंने बंद कर दिया है , आप दूसरी ओर का बंद कर दें "

इतनी जोर से इनकी मुस्कराहट फैली और बाहर निकलने के साथ ही अबकी २०० का नोट इनके हाथ से टीटी के जेब में चला गया।

मुझे मंझली और छुटकी का स्टेशन पर , एक दूसरे को चिढ़ाना याद आ रहा था, पहले तो छुटकी खूब मंझली को चिढ़ा रही थी,

"देख जीजू मुझे ज्यादा चाहते हैं तभी तो मुझे अपने साथ ले जा रहे हैं, तू यहाँ बैठ के किताबों से कुश्ती लड़ना और मैं वाहन जीजा के साथ गाँव में खूब मस्ती,... और अब तो इम्तहान देने भी नहीं लौटना है, मुझे बस वहीँ दीदी के गाँव, जीजू के साथ रोज मस्ती,... "

लेकिन मंझली भी तो मेरी बहन थी, वो चढ़ गयी, बोली,...

" अरे जीजू ने तो तेरे सिर्फ आगे, मेरे तो आगे पीछे दोनों ओर, अभी शाम को खूब दर्द हुआ लेकिन साली कौन जो जीजू के लिए थोड़ा बहुत दर्द न बर्दास्त करे, ...तो सोच ले,... मैं बड़ी हूँ , इसलिए मेरे आगे पीछे दोनों , और तेरे तो सिर्फ एक ओर "

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गनीमत था उसी समय ट्रेन के आने की सीटी सुनाई दी लेकिन मैं जानती थी छुटकी को , अब उसके मन में भी,....



और उसे क्या मालूम था, उसके पिछवाड़े पर तो उसके जीजू के जीजू का नाम लिखा था, जो पिछवाड़े के मामले में अपने साले से भी दो हाथ आगे थे, और किंकी भी नम्बरी, मैं भूल नहीं सकती की होली के दिन दहाड़े कैसे उन्होंने मेरे पिछवाड़े चढ़ाई की, वो भी अपनी पत्नी और मेरी ननद के सामने, साथ में उनका एक दोस्त भी था,



ये अभी भी केबिन के बाहर थे , सब दरवाजे कोच के अच्छी तरह बंद करने, और कपडे चेंज करने, और मैं एक बार फिर से यादों में खो गयी, नन्दोई जी ने रगड़ाई तो मेरी बहुत की पर मजा भी बहुत आया,



फ्लैश बैक
 

komaalrani

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फ्लैश बैक -----नंदोई दो सलहज एक




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मैं, बड़ी ननद और नंदोई जी बचे|

कसरती देह, लंबा तगड़ा शरीर और सबसे बढ़ के लंबा और खूब मोटा लंड, जो अभी भी हल्का हल्का तन्नाया था|


तब तक एक और आदमी आया...ननद ने बताया कि ये उनके जीजा लगते हैं इसलिए वो भी मेरे नंदोई लगेंगे| हँस के मैंने चिढ़ाया,
“अरे ननद एक और नंदोई दो...बड़ी नाइंसाफी है|”

“अरे भाभी, आप हैं ना मुकाबला करने के लिए मेरी ओर से...” वो बोली|


“आज तो होली हमलोग अपनी सलहज से खेलने आए हैं|” दोनों एक साथ बोले|

मैंने रंग से जवाब दिया, पास रखी रंग की बाल्टी उठा के सीधे दोनों पर एक साथ और दोनों नंदोई रंग से सराबोर हो गये|
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दूसरी बाल्टी का निशाना मैंने सीधे उनके खूंटे पे...पर तब तक वो दोनों भी संभल गए थे| एक ने मुझे पीछे से पकड़ा और दूसरे ने पहले गालों पे, फिर मेरी लपेटी, देह से चिपकी साड़ी के ऊपर से हीं मेरे जोबन पे रंग लगाना शुरू कर दिया|

“अरे एक साथ दोनों डालियेगा क्या?” मैंने हँस के पूछा|


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“मन मन भावे...अरे भाभी मन की बात जुबान पे आ गई| साफ साफ क्यों नहीं कहती कि एक साथ आगे पीछे दोनों ओर का मजा लेना चाहती हैं|”

ननद ने हँस के चिढ़ाया|




“हम दोनों तैयार हैं|” दोनों साथ साथ बोले|

“आगे वाली तेरी, पीछे वाली मेरी..”

नंदोई ने टुकड़ा लगाया|

तब तक गिरे हुए रंग पे फिसल के मेरे छोटे (जो बाद में आये थे और जिसे ननद ने जीजा कहा था) नंदोई गिरे और उन्हें पकड़े पकड़े उनके ऊपर मैं गिरी| रंग से सराबोर|

नंदोई ने मेरी साड़ी खींच के मुझे वस्त्रहीन कर दिया| लेकिन अबकी ननद ने मेरा साथ दिया| मेरे नीचे दबे छोटे नंदोई का पजामा खींच के उनको भी मेरी हालत में ला दिया| (कुरता बनियान तो दोनों का हमलोग पहले हीं फाड़ के टॉपलेस कर चुके थे और नंदोई ने मेरी ननद को भी... तो अब हम चारो एक हालत में थे|)

क्या लंड था, खूब मोटा, एक बालिश्त सा लंबा और एकदम खड़ा|


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ननद ने अपने हाथों में लगा रंग सीधे उनके लंड पे कस-कस के पोत दिया|

मैं क्यों पीछे रहती, मेरे मुँह के पास नंदोई जी का मोटा लंड था|

मैंने दोनों हाथों से कस-कस के लाल पक्का रंग पोत दिया| खड़ा तो वो पहले से हीं था, मेरा हाथ लग के वो लोहे का रॉड हो गया, लाल रंग का| मेरे नीचे दबे नंदोई मेरी चूत और चूचि दोनों पे रंग लगा रहे थे|

“अरे चूत के बाहर तो बहुत लगा चुके, जरा अंदर भी तो लगा दो मेरी प्यारी भाभी जान को|” ननद ने ललकारा|


“अरे चूत क्या, मैं तो सीधे बच्चेदानी तक रंग दूंगा, याद रहेगी ये पहली होली गाँव की|” वो बोले|


जब तक मैं संभलूं संभलूं, उन्होंने मेरी पतली कमर को पकड़ के उठा लिया और मेरी चूत सीधे उनके सुपाड़े से रगड़ खा रही थी|

ननद ने झुक के पुत्तियों को फैलाया और नंदोई ने ऊपर से कन्धों को पकड़ के कस के धक्का दिया और एक बार में हीं गचाक से आधे से ज्यादा लंड अंदर|
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मैंने भी कमर का जोर से लगाया और जब मेरी कसी गुलाबी चूत में वो मोटा हलब्बी लंड घुसा तो होली का असली मजा आ गया|


मेरे हाथ का रंग तो खत्म हो गया था...जमीन पे गिरे लाल रंग को मैंने हाथ में लिया और कस-कस के पक्के लाल रंग को नंदोई के लंड पे पोत के बोलने लगी,


“अरे नंदोई राजा, ये रंग इतना पक्का है जब अपने मायके जाके मेरी इस छिनाल ननद की दर छिनाल हरामजादी, गदहा चोदी ननदों से, अपनी रंडी बहनों से चुसवाओगे ना हफ्ते भर तब भी ये लाल का लाल रहेगा| चाहे अपनी बहनों के बुर में डालना या अम्मा के भोंसड़े में|”






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तब तक जमीन पे लेटे मुझे चोद रहे नंदोई ने कस के मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया और अब एकदम उनकी छाती पे लेटी मैं कस के चिपकी हुई थी| मेरी टाँगे उनकी कमर के दोनों ओर फैली, चूतड़ भी कस के फैले हुए|

अचानक पीछे से नंदोई ने मेरी गांड़ के छेद पे सुपाड़ा लगा दिया|

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नीचे से नंदोई ने कस के बाँहों में जकड़ रखा था और ननद भी कस के अपनी उँगलियों से मेरी गांड़ का छेद फैला के उनका सुपाड़ा सेंटर कर दिया|

नंदोई ने कस के जो मेरे चूतड़ पकड़ के पेला तो झटाक से मेरी कसी गांड़ फाड़ता, फैलाता सुपाड़ा अंदर| मैं तिलमिलाती रही, छटपटाती रही लेकिन,

“अरे भाभी आप कह रही थीं ना दोनों ओर से मजा लेने का, तो ले लो ना एक साथ दो दो लंड|”



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ननद ने मुझे छेड़ा|


“अरे तेरी सास ने गदहे से चुदवाया था या घोड़े से जो तुझे ऐसे लंड वाला मर्द मिला| ओह लगता है, अरे एक मिनट रुक न नंदोई राजा, अरे तेरी सलहज की कसी गांड़ है, तेरी अम्मा की ४ बच्चों जनी भोंसड़ा नहीं जो इस तरह पेल रहे हो...रुक रुक फट गई, ओह|”


मैं दर्द में गालियाँ दे रही थी|

पर रुकने वाला कौन था?

एक चूचि मेरी गांड़ मारते नंदोई ने पकड़ी और दूसरी चूत चोदते छोटे नंदोई ने, इतने कस-कस के मींजना शुरू किया कि मैं गांड़ का दर्द भूल गई|

थोड़ी हीं देर में जब लंड गांड़ में पूरी तरह घुस चुका था तो उसे अंदर का नेचुरल लुब्रिकेंट भी मिल गया, फिर तो गपागप गपागप...मेरी चूत और गांड़ दोनों हीं लंड लील रही थी|

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कभी एक निकालता दूसरा डालता और दूसरा निकालता तो पहला डालता, और कभी दोनों एक साथ निकाल के एक साथ सुपाड़े से पूरे जड़ तक एक धक्के में पेल देते|


एक बार में जड़ तक लंड गांड़ में उतर जाता, गांड़ भी लंड को कस के दबोच रही थी|

खूब घर्षण भी हो रहा था, कोई चिकनाई भी नहीं थी सिवाय गांड़ के अंदर के मसाले के| मैं सिसक रही थी, तड़प रही थी, मजे ले रही थी| साथ में मेरी साल्ली छिनाल ननद भी मौके का फायदा उठा के मेरी खड़ी मस्त क्लिट को फड़का रही थी, नोच रही थी|



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खूब हचक के गांड़ मारने के बाद नंदोई एक पल के लिए रुके|

मूसल अभी भी आधे से ज्यादा अंदर हीं था|

उन्होंने लंड के बेस को पकड़ के कस-कस के उसे मथानी की तरह घुमाना शुरू कर दिया|


थोड़ी हीं देर में मेरे पेट में हलचल सी शुरू हो गई| (रात में खूब कस के सास ननद ने खिलाया था और सुबह से 'फ्रेश' भी नहीं हुई थी|) उमड़ घुमड़...और लंड भी अब फचाक फचाक की आवाज के साथ गांड़ के अंदर बाहर...तीन तरफा हमले से मैं दो तीन बार झड़ गई, उसके बाद मेरे नीचे लेटे नंदोई मेरी बुर में झड़े|


उनका लंड निकलते हीं मेरी ननद की उंगलियाँ मेरी चूत में...

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और उनके सफेद मक्खन को ले के सीधे मेरे मुँह में, चेहरे पे अच्छी तरह फेसियल कर दिया| लेकिन नंदोई अभी भी कस-कस के गांड़ मार रहे थे...बल्कि साथ साथ मथ रहे थे|

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और जब उन्होंने झड़ना शुरू किया तो पलट के मुझे पीठ के बल लिटा के लंड, गांड़ से निकाल के 'सीधे' मेरे मुँह पे|


मैंने जबरन मुँह भींच लिया लेकिन दोनों नंदोइयों ने एक साथ कस के मेरा गाल जो दबाया तो मुँह खुल गया|


फिर तो उन्होंने सीधे मुँह में लंड ठेल दिया|

मुझे बड़ा ऐसा...ऐसा लग रहा था लेकिन उन्होंने कस के मेरा सिर पकड़ रखा था और दूसरे नंदोई ने मुँह भींच रखा था| धीरे धीरे कर के पूरा लंड घुसेड़ दिया मेरे मुँह में...उनके लंड में...लिथड़ा...लिथड़ा..

वो बोले,
“अरे सलहज रानी गांड़ में तो गपाक गपाक ले रही थी तो मुँह में लेने में क्यों झिझक रही हो?”


“भाभी एक नंदोई ने तो जो बुर में सफेद मक्खन डाला वो तो आपने मजे ले के गटक लिया तो इस मक्खन में क्या खराबी है? अरे एक बार स्वाद लग गया न तो फिर ढूंढती फिरियेगा, फिर आपके हीं तो गांड़ का माल है| जरा चख के तो देखिए|”

ननद ने छेड़ा और फिर नंदोइयों को ललकारा,

“अरे आज होली के दिन सलहज को नया स्वाद लगा देना, छोड़ना मत चाहे जितना ये चूतड़ पटके...”

मैं आँख बंद कर के चाट चूट रही थी|


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कोई रास्ता भी नहीं था| लेकिन अब धीरे धीरे मेरे मुँह को भी और एक...| नए ढंग की वासना मेरे ऊपर सवार हो रही थी| लेकिन मेरी ननद को मेरी बंद आँख भी नहीं कबूल थी|

उसने कस के मेरे निप्पल पिंच किये और साथ में नंदोई ने बाल खींचे,

“अरे बोल रही थी ना कि मेरे लंड को लाल रंग का कर दिया कि मेरी बहनें चूसेंगी तब भी इसका रंग लाल हीं रहेगा ना, तो देख छिनाल, तेरी गांड़ से निकल के किस रंग का हो गया है?”

वास्तव में लाल रंग तो कहीं दिख हीं नहीं रहा था| वो पूरी तरह मेरी गांड़ के रस से लिपटा...

“चल जब तक चाट चूट के इसे साफ नहीं कर देती, फिर से लाल रंग का ये तेरे मुँह से नहीं निकलेगा| चल चाट चूस कस-कस के..ले ले गांड़ का मजा|”



वो कस के ठेलते बोले|
 
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फ्लैश बैक नए मजे होली के





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“चल जब तक चाट चूट के इसे साफ नहीं कर देती, फिर से लाल रंग का ये तेरे मुँह से नहीं निकलेगा| चल चाट चूस कस-कस के..ले ले गांड़ का मजा|”

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वो कस के ठेलते बोले|

तब तक छोटे नंदोई का लंड भी फिर से खड़ा हो गया था| मेरी ननद ने कुछ बोलना चाहा तो उन्होंने उसे पकड़ के निहुरा दिया और बोले,

“चल अब तू भी गांड़ मरा, बहुत बोल रही है ना..”

और मुझसे कहा कि मैं उसकी गांड़ फैलाने में मदद करूँ|



मुझे तो मौका मिल गया| पूरी ताकत से जो मैंने उसकी चियारी तो...क्या होल था? गांड़ का छेद पूरा खुला खुला| तब तक नंदोई ने मेरे मुँह से लंड निकाल लिया था|

उनका इशारा पाके मैंने मुँह में थूक का गोला बना के ननद की खुली गांड़ में कस के थूक के बोला,


“क्यों मुझे बहुत बोल रही थी ना छिनाल, ले अब अपनी गांड़ में लंड घोंट| नंदोई जी एक बार में हीं पूरा पेल देना इसकी गांड़ में|”



उन्होंने वही किया|

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हचाक हचाक...और थोड़ी देर में उसकी गांड़ से भी गांड़ का...




अब मुझे कोई...घिन नहीं लग रही थी| बल्कि मैं मजे से देख रही थी| लेकिन एक बात मुझे समझ में नहीं आ रही थी कि ननद बजाय चीखने के अभी भी क्यों मुस्कुरा रही थीं|

वो मुझे थोड़ी देर में हीं समझ में आ गया, जब उन्होंने उनकी गांड़ से अपना...लिथड़ा लंड निकाल के सीधे...जब तक मैं समझूं संभलूं मेरे मुँह में घुसेड़ दिया|

मैं मुँह भले बना रही थी...लेकिन अब थोड़ा बहुत मुझे भी...और मैं ये समझ भी गई थी कि बिना चाटे चूटे छुटकारा भी नहीं मिलने वाला| ओं ओं मैं करती रही लेकिन उन्होंने पूरे जड़ तक लंड पेल दिया|


“अरे भाभी अपनी गांड़ के मसाले का बहुत मजा ले लिया, अब जरा मेरी गांड़ के...का भी तो मजा चखो, बोलो कौन ज्यादा मसालेदार है? जरा प्यार से चख के बताना|”



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ननद ने छेड़ा|

तब तक नंदोई ने बोला,


“अरे ज्यादा मत बोल, अभी तेरी गांड़ को मैं मजा चखाता हूँ| सलहज जी जरा फैलाना तो कस के अपनी ननद की गांड़|”

मैं ये मौका क्यों चूकती|


वैसे मेरी ननद के चूतड़ थे भी बड़े मस्त, गोल गोल गुदाज और बड़े बड़े|

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मैंने दोनों हाथों से पूरे ताकत से उसे फैलाया| पूरा छेद और उसके का माल...सब दिख रहा था|

नंदोई ने दो उंगली एक साथ घुसेड़ी कि ननद की चीख निकल गई| लेकिन वो इतनी आसानी से थोड़ी हीं रुकने वाले थे|

उसके बाद तीन उंगली, सिर्फ अंगूठा और छोटी उंगली बाहर थी और तीनों उंगली सटासट सटासट...

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अंदर बाहर,

मैंने चूत की फिस्टिंग की बात सुनी थी लेकिन इस तरह गांड़ में तीन उंगली एक साथ...

मैं सोच भी नहीं सकती थी| एक पल के लिए तो गांड़ से निकले मेरे मुँह में जड़ तक घुसे लंड को भी भूल कर मैं देखती रही| वो कराह रही थी, उनके आँखों से दर्द साफ साफ झलक रहा था|

पल भर के लिए जब मेरे मुँह से लंड बाहर निकला तो मुझसे रहा नहीं गया,


“अरे चूत मरानो, मेरे बहन चोद सैंया की रखैल, पंच भतारी, बहुत बोल रही थी ना मेरी गांड़ के बारे में...क्या हाल है तेरी गांड़ का? अगर अभी मजा ना आ रहा हो तो तेरे भैया को बुला लूं| जरा कुहनी तक हाथ डाल के इसकी गांड़ का मजा दो इसे| इस कुत्ता चोद को इससे कम में मजा हीं नहीं आता|”

मैं बोले जा रही थी और उंगलियाँ क्या लगभग पूरा हाथ उनकी गांड़ में...तब तक वो लसलसा हाथ गांड़ से निकाल के...उन्होंने एक झटके में पूरा मेरे मुँह में डाल दिया और बोले,

“अरे बहुत बोलती है, ले चूस गांड़ का रस...अरे कुहनी तक तो तुम दोनों की गांड़ और भोंसड़े में डालूँगा तब आयेगा ना होली का मजा| लेकिन इसके पहले मजा दूं जरा चूस चाट के मेरा हाथ साफ तो कर सटासट|”

मैं गों गों करती रही लेकिन पूरा हाथ अंदर डाल के उन्होंने चटवा के हीं दम लिया|

“अरे चटनी चटाने से मेरी प्यारी भाभी की भूख थोड़े हीं मिटेगी| ले भाभी सीधे गांड़ से हीं|”

वो मेरे ऊपर आ गयी और बड़ी अदा से मुझे अपनी गांड़ का छेद फैला के दिखाते हुए बोलीं|


“अरे तू क्या चटाएगी...? सुबह तेरी छोटी बहन को मैं सीधे अपनी बुर से होली का...गरमा गरम खारा शरबत पिला चुकी हूँ| सारी की सारी सुनहली धार एक एक बूंद घोंट गई तेरी बहना|”

खीज के मैंने भी सुना दिया|

“अरे तो जो भाभी रानी आपको सुबह से हमलोग शरबत पिला रहे थे उसमें आप क्या समझती हैं...क्या था? आपकी सास से लेके...ननद तक, लेकिन मैंने तय कर लिया था कि मैं तो अपनी प्यारी भाभी को होली के मौके पे, सीधे बुर और गांड़ से हीं...तो लीजिए ना|”


और वो मेरे मुँह के ठीक उपर अपनी गांड़ का छेद कर के बैठ गईं|

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लेकिन मैंने तय कर लिया था कि लाख कुछ हो जाय अबकी मैं मुँह नहीं खोलूंगी| पहले तो उसने मेरे होंठों पे अपनी गांड़ का छेद रगड़ा, फिर कहती रही कि सिर्फ जरा सा, बस होली के नाम के लिए, लेकिन मैं टस से मस ना हुई|

फिर तो उस छिनाल ने कस के मेरी नाक दबा दी| मेरे दोनों हाथ दोनों नंदोइयों के कब्जे में थे और मैं हिल डुल नहीं पा रही थी| यहाँ तक की मेरी नथ भी चुभने लगी|

थोड़ी देर में मेरी साँस फूलने लगी, चेहरा लाल होने लगा, आँखें बाहर की ओर|

“क्यों आ रहा है मजा, मत खोल मुँह...”

वो चिढ़ा के बोली और सच में इतना कस के उसने अपनी गांड़ से मेरे होंठों को दबा रखा था कि मैं चाह के भी मुँह नहीं खोल पा रही थी|

“ले भाभी देती हूँ तुझे एक मौका, तू भी क्या याद करेगी...किसी ननद से पाला पड़ा था|”

और उसने चूतड़ ऊपर उठा के अपनी गांड़ का छेद दोनों हाथों से पूरा फैला दिया|

“ऊईई उईईईई...|”

मैं कस के चीखी| नंदोई ने दोनों निप्पल्स को कस के पिंच करते हुए मोड़ दिया था| मेरे खुले होंठों पे अपनी फैली गांड़ का छेद रख के फिर वो कस के बैठ गई और एक बार फिर से मेरी नाक उसकी उँगलियों के बीच| अब गांड़ का छेद सीधे मेरे मुँह में| वो हँस के बोली,

“भाभी बस अब अगर तुम्हारी जीभ रुकी तो...अरे खुल के इस नए स्वाद का मजा लो|

अरे पहले आपकी चूत को जब तक लंड का मजा नहीं मिला था, चुदाई के नाम से बिदकती थीं, लेकिन जब सुहागरात को मेरे भैया ने हचक हचक के चोद चोद के चूत फाड़ दी तो एक मिनट इस साली चूत को लंड के बिना नहीं रहा जाता|

पहले गांड़ मरवाने के नाम से भाभी तेरी गांड़ फटती थी, अब तेरी गांड़ में हरदम चींटी काटती रहती है, अब गांड़ को ऐसा लंड का स्वाद लगा कि...तो जैसे वो स्वाद भैया ने लगाए तो ये स्वाद आज उनकी बहना लगा रही है| सच भाभी ससुराल की ये पहली होली और ये स्वाद आप कभी नहीं भूलेंगी|”







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तब तक मेरी दोनों चूचियाँ, मेरे नंदोइयों के कब्जे में थी|

वो रंग लगा रहे थे, चूचि की रगड़ाई मसलाई भी कर रहे थे| दोनों चूचियों के बाद दोनों छेद पे भी...नंदोई ने तो गांड़ का मजा पहले हीं ले लिया था तो वो अब बुर में और छोटे नंदोई गांड़ में...मैं फिर सैंडविच बन गई थी|

लेकिन सबसे ज्यादा तो मेरी ननद मेरे मुँह में...झड़ने के साथ दोनों ने फिर मेरा फेसियल किया मेरी चूचियों पे...


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और ननद ने पता नहीं क्या लगाया था कि अब 'जो भी' मेरी देह से लगता था...वो बस चिपक जाता था| घंटे भर मेरी दुरगत कर के हीं उन तीनों ने छोड़ा|
 
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ट्रेन में मस्ती


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वो वापस केबिन में आये और मैं अपनी ससुराल की होली की यादों के झुरमुट से

जब तक वो कोच का दरवाजा बंद कर के आये , ... मैंने दोनों नीचे की बर्थ पर बिस्तर लगा दिया था , पर छुटकी बोली

" दी , मैं ऊपर लेटूंगी ,... "

उसे चिढ़ाते मैं बोली ,


" किसके ऊपर ,... "

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भले वो नौवीं में पढ़ती थी पर थी तो मेरी बहन , रीतू भाभी की ननद , डबल मीनिंग में एक्सपर्ट हो गयी थी , ...

' दी जीजू के ऊपर ,... " हँसते हुए वो बोली।

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तब तक वो आ गए थे और टी शर्ट पेंट उतार के टांगते बोले , सिर्फ बनयायन और शार्ट में

" सही तो कह रही है मेरी साली , ... " और छुटकी को खींच कर अपनी गोद में बैठा लिया ,...

आने के पहले तो वो मंझली के साथ लगे थे उसके पिछवाड़े का उद्घाटन करने में , खाने के लिए टाइम बचा नहीं था , तो मम्मी ने गुझिया , मिठाई और बहुत सी चीजें रख दी थी ,

मैं भी अपनी साडी उतार के तहियाने में लगी थी , तब तक उन्होंने पूछा ,

" कुछ खाने को है क्या ,... "

" जीजू आप भी न , ... मैं हूँ न देती हूँ आप को अभी ,... " छुटकी बोली और गुझिया के एक डब्बे से गुझिया निकाल के अपने मुंह में रख के अपने जीजू को ललचाने लगी।



मैं भी ब्लाउज पेटीकोट में उनके दूसरी ओर बैठ गयी और छुटकी को चिढ़ाते बोली ,

" एकदम याद रखना , मेरे साथ चल रही हो ,... आज भी देना , ...और वहां भी पहुँच कर देना , कुछ दिन मैं आराम से सोऊंगी। "


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उन्हें तो मौका मिल गया गोद में बैठी साली के होंठ से होंठ सटाने का चुम्मा लेने का और साली भी शातिर
वो सारी गुझिया खुद गड़प कर गयी

और मैं उसे मना भी नहीं कर पायी , ये गुझिया इनके सलहज की रीतू भाभी की बनाई थी , डबल भांग वाली , ..गुझिया अंदर शरम लिहाज बाहर ,...

लेकिन दूसरी गुझिया छुटकी ने ईमानदारी से उन्हें खिला दी , हाँ खिलाई अपने होंठों से ही पकड़ के ,...

और डीप किस चालू ,


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उसके जीजा की जीभ उसके मुंह के अंदर और वो ऐसे चूस रहे थी जैसे अपने जीजू का मोटा औजार ,... और जीजू का एक हाथ कस के उसके सर को और दूसरा हलके से उसके उभार को सहलाते

जान बूझ के मैंने उसके लिए ऐसी फ्राक चुनी थी जो उसको दो साल पहले ही टाइट होती थी ,

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मेरी तरह से मेरी बहनों का भी जोबन ज्यादा ही गदराया , अपनी उम्र की लड़कियों से २२ नहीं २४-२६ होता है ,... और पतली कमर पर तो वो और ,... छुटकी की कच्ची अमिया साफ़ साफ़ ,


जीजू का हाथ हटाते वो बोली ,

" जीजू आप बहुत गंदे हो मैं आपसे नहीं बोलती , अभी तक दर्द कर रहा है ,... " बड़े नखड़े से उनकी छोटी साली बोली ,

" सही कह रही है तू सच में तेरे जीजू बहुत गंदे है ,... " मैंने उसे छेड़ा तो अब वो एकदम पलट गयी

" हे ये जीजू साली के बीच की बात है दी , ... मेरे जीजू हैं गंदे है या अच्छे , हैं तो मेरे जीजू ,... " और छुटकी एकदम उनकी गोद में बैठी चिपक गयी।

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वो एक हाथ से उस के गोरे मखन से मुलायम गालों को सहला रहे थे अब गाल चूमते बोले ," क्यों यहाँ दर्द हो रहा है क्या , अभी मैं चूम लेता हूँ सब दर्द चला जाएगा " और अब एकदम खुल के वो गाल चूम चूस रहे थे ,



गाडी चली जा रही थी ,...


खुली खिड़की से हलकी हलकी फगुनाई बयार आ रही थी, रात हो गयी थी पर परसों ही तो पूनो थी , चांदनी छिटकी हुयी खुली खुली खिड़की से , और बाहर बस परछाईं सी आम के बाग़ , गन्ने के खेत , और बीच बीच में कोई कस्बा गुजरता या कोई छोटा स्टेशन जहाँ गाडी को रुकना नहीं होता था तो तेजी से एक रौशनी गुजर जाती
 
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कच्ची अमिया




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गाडी चली जा रही थी ,...

खुली खिड़की से हलकी हलकी फगुनाई बयार आ रही थी, रात हो गयी थी पर परसों ही तो पूनो थी , चांदनी छिटकी हुयी खुली खुली खिड़की से , और बाहर बस परछाईं सी आम के बाग़ , गन्ने के खेत , और बीच बीच में कोई कस्बा गुजरता या कोई छोटा स्टेशन जहाँ गाडी को रुकना नहीं होता था तो तेजी से एक रौशनी गुजर जाती ,

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पर जीजा और उनकी उस कच्ची कली , साली पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था , छुटकी अब बर्थ पर लेटी हुयी थी उसका सर मेरी गोद में और वो झुके हुए बार बार कभी उस के गाल चूम के तो कभी होंठ चूस के बोलते ,... क्यों यहाँ दर्द हो रहा है ,


और उनकी साली भी एकदम उन्ही की तरह गरमाई ,... खुद अपना हाथ खींच के कच्ची अमिया पर रख के इशारे से बोली ,

' यहाँ '

सच में उन्होंने मसला भी तो कितना कस के था , लेकिन मैं इनको नहीं दोष देती , दोष मैं अपनी बहन को भी नहीं देती दोष था उसके नए नए आ रहे जोबन का
कौन जीजा होली में इस कच्ची उम्र की साली के जोबन के रस लेने का मौका छोड़ देता और वहां तो ससुराल में बजाय मना करने के सब लोग उनको उकसाने पर तुले थे उनकी सलहज , और सलहज से बढ़ कर सास , ...

सारे जीजा , देवर नन्दोई जानते है होली में रंग तो बहाना है , असली बात तो चोली के अंदर हाथ घुसाने की है और बिना चोली में हाथ डाले न जीजा की होली पूरी होती है और बिना डलवाये न साली की पूरी होती है , उसी का तो इन्तजार रहता है जीजा को

और सच बताएं तो जीजा से ज्यादा साली को ,...

और जान बूझ के मैंने उसकी पुरानी फ्राकें रखी थीं थोड़ी घिसी एकदम टाइट , जिससे कच्चे टिकोरे एकदम छलक कर बाहर आएं ,


और वो , उस फ्रॉक को फाड़ते उभारों को , ऊपर से ,... और मन तो उनका कर रहा था , उनसे ज्यादा उनके मन को मैं जानती थी , ....

मैंने ही उन्हें उकसाया ,

" अरे दर्द साली के फ्राक को नहीं फ्राक अंदर हो रहा है और आप गलत चीज , ,...


मेरी बात पूरी होने के पहले ही उन्होंने उसकी फ्राक खींच कर उतारनी शुरू कर दी , ...

कच्ची उमर की लड़की थी , छटपटाती तो है ही , बस मैंने छुटकी के दोनों हाथ अपनी ओर खींच के कस के पकड़ लिए ,

फ्राक उतारने के लिए मैंने थोड़ी देर को उसके हाथ जैसे ही छोड़े वो फिर हाथ पैर ,...


अब वो सिर्फ सफ़ेद ब्रा और चड्ढी में थी , ३० सी साइज की कॉटन की ब्रा ,


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वो भी न , मैंने उन्हें छुटकी की ब्रा की ओर इशारा किया ,... आखिर हम लोगों के कूपे को छोड़िये ,... उस पूरे कोच में कोई नहीं था ,

और अब छुटकी खिलखिला रही थी उसने कस के अपनी पीठ सीट से चिपका ली थी , ब्रा का हुक तो पीछे था और वो वहां अपने जीजू का हाथ पहुँचने नहीं दे रही थी और मैं भी उसमें कुछ इनकी हेल्प नहीं कर सकती थी , ...


चीररर्र , जैसे लगता है ट्रेन ने अचानक ब्रेक मारा , तेजी से गाड़ी की सीटी सन्नाटे में गूँज उठी ,

और धीरे धीरे ट्रेन रुकने लगी , ... लगता है कोई सिग्नल नहीं था , ...
और उनका हाथ छुटकी के ब्रा के अंदर ,....

चर्रर्र चररर ,.... सच में बहुत ताकत थी इनके अंदर ,... एक हाथ से ही इन्होने छुटकी की ब्रा फाड़ दी थी ,

" देख बहुत जीजू जीजू कर रही थीं न , जीजू ने तेरी ब्रा फाड़ दी ,... "



मैंने छुटकी को चिढ़ाया , तब तक उन्होंने ब्रा खींच के छुटकी के उभारों से अलग कर दिया ,



अभी भी मैंने छुटकी के दोनों हाथ कस के पकडे थी , बस उसी फटी ब्रा से उन्होंने उस कच्ची कली की कमसिन साली की दोनों ककड़ी ऐसी पतली मुलायम कलाइयां पकड़ के बाँध दी और उसी फटी ब्रा के दूसरे कोने से ट्रेन की खुली खिड़की के सींकचे से बाँध दी अब वो बेचारी लाख कोशिश करे छुडाना तो दूर हिल भी नहीं सकती थी ,



ट्रेन अभी भी खड़ी थी , सिर्फ घने बाग़ और बँसवाड़ी की बाहर परछाहीं दिख रही थी , चांदनी भी बादलो के पीछे छिप गयी थी ,





लेकिन छुटकी भी न एकदम अपने जीजू की पक्की स्साली , ... खुद चाहे लाख गन्दी से गन्दी गाली अपने जीजा को दे , उनकी ऐसी की तैसी कर दे , लेकिन मैं उसके जिज्जा के खिलाफ एक बात भी कह दूँ तो वो सुन नहीं सकती थी ,



बोली वो ,



" तो क्या हुआ चल रही हूँ न उनके साथ , एक ब्रा फाड़ी है उन्होंने दस ख़रीदवाऊँगी उनसे , ... "
 
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