- 21,441
- 54,067
- 259
(२)
छुटकी -बंधे हाथ, ट्रेन में
मैंने ही उन्हें उकसाया ,
" अरे दर्द साली के फ्राक को नहीं फ्राक के अंदर हो रहा है और आप गलत चीज , ,...
मेरी बात पूरी होने के पहले ही उन्होंने उसकी फ्राक खींच कर उतारनी शुरू कर दी , ...
कच्ची उमर की लड़की थी , छटपटाती तो है ही , बस मैंने छुटकी के दोनों हाथ अपनी ओर खींच के कस के पकड़ लिए ,
फ्राक उतारने के लिए मैंने थोड़ी देर को उसके हाथ जैसे ही छोड़े वो फिर हाथ पैर ,...
अब वो सिर्फ सफ़ेद ब्रा और चड्ढी में थी , ३० सी साइज की कॉटन की ब्रा ,
वो भी न , मैंने उन्हें छुटकी की ब्रा की ओर इशारा किया ,... आखिर हम लोगों के कूपे को छोड़िये ,... उस पूरे कोच में कोई नहीं था ,
और अब छुटकी खिलखिला रही थी उसने कस के अपनी पीठ सीट से चिपका ली थी , ब्रा का हुक तो पीछे था और वो वहां अपने जीजू का हाथ पहुँचने नहीं दे रही थी और मैं भी उसमें कुछ इनकी हेल्प नहीं कर सकती थी , ...
चीररर्र , जैसे लगता है ट्रेन ने अचानक ब्रेक मारा , तेजी से गाड़ी की सीटी सन्नाटे में गूँज उठी ,
और धीरे धीरे ट्रेन रुकने लगी , ... लगता है कोई सिग्नल नहीं था , ...
और उनका हाथ छुटकी के ब्रा के अंदर ,....
चर्रर्र चररर ,.... सच में बहुत ताकत थी इनके अंदर ,... एक हाथ से ही इन्होने छुटकी की ब्रा फाड़ दी थी ,
" देख बहुत जीजू जीजू कर रही थीं न , जीजू ने तेरी ब्रा फाड़ दी ,... "
मैंने छुटकी को चिढ़ाया , तब तक उन्होंने ब्रा खींच के छुटकी के उभारों से अलग कर दिया ,
मैं छुटकी के दोनों हाथ कस के पकडे थी , बस उसी फटी ब्रा से उन्होंने उस कच्ची कली , कमसिन साली की दोनों ककड़ी ऐसी पतली मुलायम कलाइयां पकड़ के बाँध दी और उसी फटी ब्रा के दूसरे कोने से ट्रेन की खुली खिड़की के सींकचे से बाँध दी अब वो बेचारी लाख कोशिश करे, छुडाना तो दूर हिल भी नहीं सकती थी ,
ट्रेन अभी भी खड़ी थी , सिर्फ घने बाग़ और बँसवाड़ी की बाहर परछाहीं दिख रही थी , चांदनी भी बादलो के पीछे छिप गयी थी ,
लेकिन छुटकी भी न एकदम अपने जीजू की पक्की स्साली , ... खुद चाहे लाख गन्दी से गन्दी गाली अपने जीजा को दे , उनकी ऐसी की तैसी कर दे , लेकिन मैं उसके जिज्जा के खिलाफ एक बात भी कह दूँ तो वो सुन नहीं सकती थी ,
बोली वो ,
" तो क्या हुआ चल रही हूँ न उनके साथ , एक ब्रा फाड़ी है उन्होंने दस ख़रीदवाऊँगी उनसे , ... "
Last edited: