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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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(२)


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छुटकी -बंधे हाथ, ट्रेन में


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मैंने ही उन्हें उकसाया ,

" अरे दर्द साली के फ्राक को नहीं फ्राक के अंदर हो रहा है और आप गलत चीज , ,...

मेरी बात पूरी होने के पहले ही उन्होंने उसकी फ्राक खींच कर उतारनी शुरू कर दी , ...

कच्ची उमर की लड़की थी , छटपटाती तो है ही , बस मैंने छुटकी के दोनों हाथ अपनी ओर खींच के कस के पकड़ लिए ,

फ्राक उतारने के लिए मैंने थोड़ी देर को उसके हाथ जैसे ही छोड़े वो फिर हाथ पैर ,...



अब वो सिर्फ सफ़ेद ब्रा और चड्ढी में थी , ३० सी साइज की कॉटन की ब्रा ,

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वो भी न , मैंने उन्हें छुटकी की ब्रा की ओर इशारा किया ,... आखिर हम लोगों के कूपे को छोड़िये ,... उस पूरे कोच में कोई नहीं था ,

और अब छुटकी खिलखिला रही थी उसने कस के अपनी पीठ सीट से चिपका ली थी , ब्रा का हुक तो पीछे था और वो वहां अपने जीजू का हाथ पहुँचने नहीं दे रही थी और मैं भी उसमें कुछ इनकी हेल्प नहीं कर सकती थी , ...


चीररर्र , जैसे लगता है ट्रेन ने अचानक ब्रेक मारा , तेजी से गाड़ी की सीटी सन्नाटे में गूँज उठी ,

और धीरे धीरे ट्रेन रुकने लगी , ... लगता है कोई सिग्नल नहीं था , ...

और उनका हाथ छुटकी के ब्रा के अंदर ,....

चर्रर्र चररर ,.... सच में बहुत ताकत थी इनके अंदर ,... एक हाथ से ही इन्होने छुटकी की ब्रा फाड़ दी थी ,



" देख बहुत जीजू जीजू कर रही थीं न , जीजू ने तेरी ब्रा फाड़ दी ,... "


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मैंने छुटकी को चिढ़ाया , तब तक उन्होंने ब्रा खींच के छुटकी के उभारों से अलग कर दिया ,



मैं छुटकी के दोनों हाथ कस के पकडे थी , बस उसी फटी ब्रा से उन्होंने उस कच्ची कली , कमसिन साली की दोनों ककड़ी ऐसी पतली मुलायम कलाइयां पकड़ के बाँध दी और उसी फटी ब्रा के दूसरे कोने से ट्रेन की खुली खिड़की के सींकचे से बाँध दी अब वो बेचारी लाख कोशिश करे, छुडाना तो दूर हिल भी नहीं सकती थी ,



ट्रेन अभी भी खड़ी थी , सिर्फ घने बाग़ और बँसवाड़ी की बाहर परछाहीं दिख रही थी , चांदनी भी बादलो के पीछे छिप गयी थी ,



लेकिन छुटकी भी न एकदम अपने जीजू की पक्की स्साली , ... खुद चाहे लाख गन्दी से गन्दी गाली अपने जीजा को दे , उनकी ऐसी की तैसी कर दे , लेकिन मैं उसके जिज्जा के खिलाफ एक बात भी कह दूँ तो वो सुन नहीं सकती थी ,

बोली वो ,

" तो क्या हुआ चल रही हूँ न उनके साथ , एक ब्रा फाड़ी है उन्होंने दस ख़रीदवाऊँगी उनसे , ... "



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komaalrani

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जिसने दर्द दिया है वही दवा देगा


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" तो क्या हुआ चल रही हूँ न उनके साथ , एक ब्रा फाड़ी है उन्होंने दस ख़रीदवाऊँगी उनसे , ... "

उस बेचारी को क्या मालूम था ,...


वैसे भी उसके जीजू के मायके में ज्यादा रिवाज चड्ढी बनयाइन पहनने का नहीं था शादी के चार पांच दिन बाद मैंने भी छोड़ दिया था , वो न दिन देखते थे न रात , न की उनकी माँ बहन भौजाई आस पास बैठी हैं ,... और एकाध बार मैंने बोला भी अपनी सास से , ...

तो सास जेठानी तो छोड़िये मेरी छुटकी ननदिया जो अभी छुटकी से भी छह महीने छोटी थी , एकदम खुल के बोली ,

" अरे भाभी तो हम गए थे किस लिए आपको लाने , ... और फिर आपकी मम्मी ने भी तो इसे लिए विदा किया था "

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और सच बोलूं मुझे भी वो सरप्राइज अटैक अच्छा लगता था ,

कभी मैं रसोई में काम कर रही होऊं तो भी ये पीछे से , बस निहुराया , साडी साया कमर पर और पीछे से , गचागच गचागच

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और रसोई में चिकनाई की कोई कमी तो होती नहीं थी , कभी कडुवा तेल तो कभी घी ,

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और ये आधे तीहै काम में यकीन रखते नहीं थे , ...

और मेरे जोबन के तो जबरदस्त दीवाने , बस ब्लाउज के भी बटन खुलते ही थे और चूँची पकड़ के हचक हचक के , ...

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इसलिए ब्रा पैंटी मेरी सब ,... और अभी भी मैंने न ब्रा पहनी थी न पैंटी


और ब्लाउज भी सारे एकदम बैकलेस , बस एक छोटी सी डोरी , जो झट से खुल जाती थी और आगे से भी उभारों को उभारती ज्यादा थी , छुपाती कम थी।


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और यही बात उन्होंने मुझसे अपनी साली के लिए कही थी ,


बस इसलिए जो मैं उसके कपडे चेक करने गयी तो सिवाय एक ब्रा पैंटीके, बाकी की सारी ब्रा पैंटी निकाल के बाहर कर दी, अब इनके मायके में इनकी माँ बहन सब झलकाती फिरती हैं, बिना चड्ढी बनयाईन के तो मैं और में छुटकी बहिन भी उसी तरह ही तो रहेंगी, और फ्राक , टॉप स्कर्ट भी सब पुरानी जिसमें मुश्किल से वो घुस पाती , ... बाकी सब कपडे निकाल के हटा दिए थे



गाड़ी अब चलने लगी थी सिग्नल शायद हो गया था ,

और उनकी निगाह अपनी छोटी साली के छोटे छोटे उभारों पर चिपकी थीं ,

नए नए आते उभार , एकदम असली चूँचियाँ उठान ,

कच्ची अमिया , ... खटमिठ्वा ,...

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और मैं देख रही थी , जैसे तोते कच्चे टिकोरों पर चोंच मार मार कर , कुतुर कुतुर कर निशान बना देते हैं न

एकदम वैसे ही ,... और साली के उभारों पर होली में किसके निशान पड़ते हैं , उसके जीजू ,...के



सच्च में बहुत बेरहमी से काटा था , न सिर्फ उभारों की गोलाई पर बल्कि उसके निप्स पर भी साफ़ साफ़ नजर आ रहे थे ,

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" सही तो कह रही है छुटकी , कित्ता दुःख रहा होगा बेचारी को , ... इत्ते जोर जोर से ,... "

निप्स से थोड़ी दूर पर बने इनके दांत के एक निशान को हलके से छूते, सहलाते मैंने इनसे शिकायत की आवाज में कहा , ....

" अरे तो जिसने दर्द दिया है वही दवा देगा , .... क्यों साली जी , ... " साली के जीजू बोले



साली के तो दोनों हाथ, उसी की फटी ब्रा से ट्रेन के डब्बे की खिड़की के सींकचों से कस के बंधे थे , हिल भी नहीं सकती थी वो , सिर्फ छोटी सफ़ेद पैंटी पहने



झुक के उन्होंने अपनी ऊँगली से पहले तो उन बाइट मार्क्स को सहलाया , और फिर झुक के उन्हें चूम लिया और उस के बाद उनकी जीभ मैदान में आ गयी , बस होतीं से थोड़ी बाहर निकली और उन बाइट मार्क्स को जीभ से सहलाने लगे , दुलराने लगे , ...
 
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komaalrani

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कच्ची अमिया का रस




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झुक के उन्होंने अपनी ऊँगली से पहले तो उन बाइट मार्क्स को सहलाया , और फिर झुक के उन्हें चूम लिया और उस के बाद उनकी जीभ मैदान में आ गयी , बस होतीं से थोड़ी बाहर निकली और उन बाइट मार्क्स को जीभ से सहलाने लगे , दुलराने लगे , ...

फिर उनकी जीभ उस किशोरी , दर्जा नौ वाली के उभार के बेस पर हलके हलके गोल गोल सहलाने लगी और धीरे धीरे ऊपर बढ़ने लगी ,

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एक हाथ के अंगूठे और तर्जनी के बीच छुटकी के निप्स को ,... और निप्स तो उसके बस अभी आ ही रहे थे , जैसे नयी नयी आयी छीमी ( कच्ची मटर की फली ) में मटर के दाने जैसे बनने शुरू होते हैं एकदम वैसे ही छोटे , छोटे

लेकिन उनकी उँगलियों का असर , ... वो छोटे छोटे निप्स भी अब एकदम कड़े हो गए थे , छुटकी की छोटी छोटी चूँचियाँ पथरा रही थी ,

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मस्ती से छुटकी की हालत खराब हो रही थी , वो हलके हलके सिसक रही थी , मचल रही थी , ....

पर उसके जीजू तो ,...
कुछ देर में ही उनकी लालची जीभ स्साली के खुले उरोजों के ठीक बीच सीधे निप्स पर ,...

और फिर मैं समझ गयी क्या होने वाला है , कभी वो जीभ से फ्लिक करते तो कभी अपने दोनों होंठों के बीच लेकर हलके हलके चूसने लगे


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अब तो उनकी साली की , वो कच्ची कली , कमसिन नयी नयी आयी जवानी , ... अपनी दोनों जाँघों को आपस में रगड़ रही थी

बस उन्होंने छुटकी की चुसाई की रफ़्तार बढ़ा दी ,

और मेरी निगाह अब अपनी छोटी बहन की जाँघों में चिपकी कसी चड्ढी पर चिपकी थी ,


एक हल्का सा धब्बा वहां उभरने लगा , छुटकी कस के गीली हो रही थी ,... हलके हलके वो अपने लौंडा मार्का , छोटे छोटे चूतड़ फर्स्ट क्लास की सीट पर पटक रही थी ,

उनकी जीभ और होंठों का असर मुझसे ज्यादा कौन जानता है ,



पहली रात को ही , .. मेरी सहेलियों ने बार बार सिखाया था , ... ' अरे जीजू जी को थोड़ा इंतजार कराना , ... घंटा डेढ़ घंटा तब जाके नाड़ा खोलने देना ,...

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मैंने सोचा था इतना तो नहीं , लेकिन आधा पौन घंटा तो उन्हें तड़पाऊंगी , तभी नाड़े पर उन्हें हाथ लगाने दूंगी , ...

पर एक तो मेरी ननदों की शरारत , मुझे बैकलेस चोली , सिर्फ एक पतली सी डोरी ,...

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बस , पांच दस मिनट में वो डोरी खुल के उनके हाथ में , फिर मेरे जोबन उनके कब्जे में

और चार पांच मिनट जिस तरह से उन्होंने मेरे निप्स को पहले धीरे धीरे हलके हलके फिर कस के चूसना शुरू कर दिया ,....


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मैंने खुद उनका हाथ पकड़ के अपने लहंगे के नाड़े पर ,...



यही हालत छुटकी की भी हो रही थी
छुटकी की हालत खराब होती जा रही थी , वो जोर जोर से अपने छोटे छोटे चूतड़ ट्रेन की बर्थ पर पटक रही थीं , दोनों जाँघे आपस में रगड़ रही थी ,

लेकिन दोनों हाथ उसके , उसी की ब्रा से ट्रेन के डिब्बे से बंधे थे , हिल भी नहीं सकती थी बेचारी , ...

जीजा उसके अब कस कस के उसके उभार को चूस रहे थे , मसल रहे थे ,... उनके चेहरे को देख कर लग रहा था कच्ची अमिया कुतरने में उन्हें कितना मज़ा आ रहा था ,

और मैं अपनी छोटी बहन के दूसरे उभार को देख रही थी , उस कच्चे टिकोरे पर भी कुतरे जाने के ढेर सारे निशान थे

मैं भी ललचायी नजरों से देख रही थी ,

कच्ची अमिया देख के खाली मरदों का मन ललचाता हो ऐसा नहीं है ,

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खूब खटमिठ्वा , ... जस्ट आते हुए ललछौंहा जोबन , ... रुई के फाहे ऐसे मुलायम , मुश्किल से दीखते निपल , ...



हम औरतों का भी मन ललचाता है इन जैसे टिकोरों को कुतरने का ,...

इनसे ज्यादा कौन मेरे मन को पहचानता , इन्होने मेरी ललक और झिझक दोनों को पहचान लिया और मेरी गरदन पकड़कर नीचे की ओर
अब छुटकी का एक जोबन इनके होंठों के कब्जे में था और दूसरा मेरे और दोनों के बीच होड़ लगी थी , कौन उस दर्जा नौ में पढ़ने वाली कच्ची कली की उठती हुयी चूँचियों का रस ज्यादा से ज्यादा चूसता है ,

मेरे होंठ कच्ची कलियों के लिए कम बदमाश नहीं थे ,


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थोड़े ही देर में वो कच्ची कली चलती ट्रेन में , बर्थ पर अपने चूतड़ पटक रही थी , चीख रही थी , सिसक रही थी ,

अच्छा हुआ इन्होने कस के उस कली की कलाइयां ट्रेन की खिड़की से उसी की ब्रा से कस के बांध दी थीं अब वो चूतड़ पटके , चीखे चिल्लाये , लेकिन बर्थ से रत्ती भर भी हिल नहीं सकती थी ,

हम लोग जैसे बद कर छुटकी की छोटी छोटी चूँचियाँ चूस रहे थे ,... कनखियों से मैंने देखा उसकी छोटी सी सफ़ेद चड्ढी अब अच्छी तरह गीली हो गयी थी , इसका मतलब वो पूरी तरह पनिया गयी थी ,



मुझसे नहीं रहा गया , मैंने एक हाथ उसकी चड्ढी के ऊपर से ,... पहले हलके हलके सहलाया फिर कस के दबोच लिया उसकी नन्ही चुनमुनिया को ,
 
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komaalrani

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...की बुरी हालत



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मुझसे नहीं रहा गया , मैंने एक हाथ उसकी चड्ढी के ऊपर से ,... पहले हलके हलके सहलाया फिर कस के दबोच लिया उसकी नन्ही चुनमुनिया को ,

बुदबुदा रही थी , एकदम गीली , और फिर ऐसे मौके पर ऊपर झाँपर से क्या मजा लेना , ...


मैंने ऊँगली अंदर तो नहीं डाली लेकिन मेरी हथेली कस के उसकी गीली गुलाबो को कस कस के दबाने लगी , रगड़ने लगी , ...

और फिर सिर्फ तर्जनी फुद्दी के दोनों पपोटों के बीच हलके हलके रगड़ना शुरू किया और साथ में हम दोनों कभी उसके निप्स को फ्लिक करते जीभ से कभी होंठों से कस कस के चूसते ,
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बेचारी की हालत खराब , ....

और मुझसे भी नहीं रहा गया , मैंने उसकी चड्ढी सरका कर नीचे , ऐसी उम्र वाली की बुर का मजा एकदम खोल कर लेने का अलग ही है ,


ट्रेन अपनी रफतार से चली जा रही थी , बीच बीच में कभी धीमी होती। चारो ओर अँधेरा था बस रुपहली चांदनी कभी कभी छलक कर केबिन में आ जाती , छोटे स्टेशनों पर गाडी को रुकना नहीं था , और कहीं एक दो मिनट के लिए किसी स्टेशन पर रुकी तो हम लोग नहीं रुके छुटकी रगड़ाई करने से ,



छुटकी जोर जोर से चीख रही थी , छोड़िये न , प्लीज थोड़ी देर के लिए छोड़िये न ,.... ओह्ह ओह्ह उफ़ , ... छोडो , छोड़ो ,...

" हे क्या कह रही है , गाडी चल रही है साफ़ सुनाई नहीं दे रहा , ... क्या कह रही है , चोदो , अरे अपने जीजू से बोलो न , अभी चोद देंगे , ... तेरी ऐसी साली को मना करने की हिम्मत है उनकी ,"
अपनी छोटी बहन के उभारों से होंठ हटाते मैंने उसे चिढ़ाया , ....

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और वो गुस्से से अलफ़ ,

" आप भी न , इतना कस कस , ... वहां तो इतना दर्द हो रहा है , जान निकली जा रही है , अब तक चिलख रहा है , जैसे किसी ने मिर्चा कूट दिया हो , ... अभी तो छूने की हिम्मत नहीं पड़ रही है और आप चुदवाने की बात कर रही है ,..... "

और मैंने छुटकी को छोड़ दिया ,



लेकिन उठते हुए , मैंने उनका शार्ट खींच के ट्रेन के डिब्बे के फर्श पर ,... आखिर मेरी बहिनिया की गुलाबो एकदम खुल गयी है तो उन्ही का खूंटा क्यों परदे में रहे , .... पूरा बित्ते भर का मोटा लंड टनटनाया फनफनाया बाहर ,



" अरे चल बुरिया में दर्द हो रहा है तो मुंह से तो चूस सकती है न , ले ज़रा स्वाद ले अपने जीजू का ,... "

और अपने हाथ से उनके मोटे खूंटे को छुटकी के होंठों के बीच , गप्प से सुपाड़ा गप्प कर लिया उस टीनेजर ने ,...

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और मैं छुटकी की दोनों टांगो के बीच उसके छोटे छोटे चूतड़ उठाकर दूसरी बर्थ पर रखी एक तकिया मैंने उसके चूतड़ के नीचे , ... और फिर कस के दोनों जाँघों को फैलाते हुए ,

सच में बुर की बुरी हालत थी , ,

एकदम लाल ,

रगड़ने घिसने का साफ़ साफ़ निशान था और छूते ही , जैसे कोई कच्चे घाव को छू ले , वैसे सिहर पड़ती थी वो ,...



असल में उसकी भाभी , इनकी सलहज , रीतू भाभी ने ,... इनके पहाड़ी आलू ऐसे मोटे सुपाड़े पर बस जैसे कोई बच्चे को नजर बचाने के लिए दिठौना लगा दे बस उतना सा , ... मेरे बहुत कहने पर उसे थोड़ा सा फैला दिया सुपाड़े पर ,


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इनका काम तो हो गया थोड़ी चिकनाई सुपाड़े पर थी ,



लेकिन ऐसे थोड़े ही हुआ , ....

मैंने इस बेचारी किशोरी के होंठों के बीच अपनी मोटी मोटी चूँची ठेल रखी थी

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और ऐसे बैठी थी की उसके दोनों हाथ मेरे पैरों से दबे ,

उसकी रीतू भाभी ने पहले तो अपने दोनों अंगूठों से उसकी बिलिया फैलाई , अपने नन्दोई का सुपाड़ा सटाया और फिर कस के ,... उसकी दोनों जाँघे फैलायीं और उन्होंने भी पूरी ताकत से पेल दिया ,

पूरी गाँव में चीख सुनाई दी ,... और यही तो रीतू भाभी चाहती थीं पूरे गाँव को मालूम हो जाये की छुटकी की फट गयी ,...

तो बुर की बुरी हालत तो होनी ही थी,...
 
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komaalrani

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सच में जिसकी फटती है न


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मुझे अपनी सुहागरात की बात याद आ गयी ,

सेज पर जाने से पहले जेठानी मुझे अपने कमरे में ले गयीं , और लिटाकर , ... मैं पूरी तैयार थी लहंगा , बैकलेस डोरी वाली छोटी सी लो कट लाल चोली ,...

" टांग उठा ,... " वो बोलीं

मैं हँसते हुए बोली 'क्या दी , देवर के पहले आप ही ,...'पर मैंने अपनी लम्बी लम्बी टाँगे उठा दीं

मेरा लहंगा कमर तक उठाते जांघ फैला के बोलीं , ... ' उस समय याद करेगी , जेठानी ने कितना फायदा कराया था , ... "

और मेरी ' वो ' फैला के , सीधे कडुवे तेल की बोतल से ( गाँव में तो वही चलता है ) चार पांच ढक्कन सीधे अंदर ,... और बोला

" ऐसी ही टांग उठाये रखो घडी देख के पांच मिनट तक कस के , और जोर जोर से भींचो , जिससे तेल एकदम अंदर तक रिस जाए , ... ऊपर ऊपर लगाने से कुछ नहीं होता है खाली मरद का फायदा , ...एक बार घुसा देगा फिर तो ,... और फटती तो तब है जब वो अंदर घुसता है , झिल्ली फटती है "

और सेज पर भी ,


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इन्होने,... मैं लजा रही थी , ... लेकिन कनखियों से देख रही थी , ताखे में रखी कडुवे तेल की बोतल , आधी से ज्यादा उन्होंने अपने खूंटे में

रोना चीखना तो होना ही था ,... पर इतना तेल सुखाने पर भी मैं पहली रात पूरा नहीं घोंट पायी ,

तीन बार ,


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लेकिन डेढ़ दो इंच बाहर ही था , ... अगली रात को ही पूरा बित्ता मैंने घोंटा , और मोटा भी कितना मेरी कलाई से भी मोटा , जैसे कोकाकोला की बोतल होती है वैसे ही

और यहाँ इस दर्जा नौ वाली ने सिर्फ ज़रा सा वैसलीन के सहारे , एकदम जड़ तक घोंट लिया पहली बार में ही , ... दर्द तो होना ही था , उस समय तो मारे मस्ती के लड़की, चीख मार मार के , रो पीट के , चूतड़ पटक के घोंट लेती है , लेकिन बाद में जब गरमी ख़तम हो जाती है तब चिलख , दर्द वापस आता है ,



सच में जिसकी फटती है न उसी को मालूम पड़ता है ,

पर उस दर्द का इलाज भी और दर्द है ,

इसीलिए नयी दुल्हिन को तो सेज पर उसकी ननदे ले जाती हैं , छेड़ती हैं चिढ़ातीं हैं , उकसाती हैं



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पर देवर को उसकी भौजाई ले जाती है और काम की दो बातें जरूर बताती हैं

पहली बात छोड़ना मत , ...

दुल्हिन लाख बहाने बनाए , फटनी तो पहली रात को ही चाहिए



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और दूसरी बात कम से कम तीन बार ,...

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और हर बार मलाई एकदम अंदर तक ,...

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तीन बार में दुल्हिन का डर हिचक निकल जायेगी , और पहली दो बार की मलाई , तीसरी बार के लिए चिकनाई का काम करेगी तो दुल्हिन मजा भी लेगी ,...

और यहाँ तो उसके जीजू ने कच्ची कली की फाड़ते हुए , अपना पूरा मूसल बित्ते भर एक बार में ठोंक दिया था , जड़ तक पेल कर ४० -४५ मिनट उन्होंने नौवीं में पढ़ने वाली स्साली को हचक हचक कर चोदा था , तो बुर की बुरी हालत तो होनी ही थी

अभी पांच छह घंटे भी तो नहीं हुआ था , ....

एकदम लाल थी मेरे साजन के धक्के खा खा कर , ... मैंने बड़े प्यार से दुलार से हलके से अपनी छोटी बहन की कच्ची नयी नयी फटी चूत को चूम लिया। बहुत बहुत हलके से ,

फिर मेरी जीभ ने हलके हलके छुटकी की जाँघों के एकदम ऊपरी हिस्से पर लिक करना शुरू कर दिया , कभी चाट लेती कभी हलके से किस कर लेती , थोड़ी देर में मेरे होंठ उस नयी नई जवान हुयी कली तक , और फिर एक बार में ही मेरे ऊपरी होंठों ने छुटकी के निचले होंठों को भींच लिया



और फिर मैं और मेरे साजन की जुगल बंदी शुरू हो गयी ,
 
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jhonmilton

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वह भौजी क्या फाडू अपडेट दिया है... हमारी पिचकारी ने भी होली खेल दिया...
 
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komaalrani

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जुगल बंदी



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और फिर मैं और मेरे साजन की जुगल बंदी शुरू हो गयी ,

मैं उनकी साली की चूत चूस रही थी और वो उसकी चूँची , दूसरा जोबन अब उनके हाथों में था और कस के रगड़ा मसला जा रहा था ,



छुटकी के उछलने कूदने की चिंता न मुझे थी , न उन्हें इतनी कस के उसी की ब्रा से उन्होंने अपनी साली के हाथों को डिब्बे की खिड़की से बाँध रखा था

थोड़ी देर में उसकी बुर एकदम पनिया गयी थी बस , अगर वो अपने जिज्जा के लंड से चुदने से घबड़ा रही थी तो मेरी जीभ थी न ,...

दोनों अंगूठों से मैंने उस कली की कली को फैलाया और मेरी पूरी जीभ अंदर ,

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और जीभ की टिप से चूत की अंदरूनी दीवालों को , क्या कोई मर्द बुर चोदेगा जिस तरह से मेरी जीभ चोद रही थी ,साथ में मेरे होंठ कस कस के निचले होंठ चूस रहे थे ,

खूब खेली पक्की छिनार भी पांच छह मिनट में इस चुसाई में पानी छोड़ देती और ये तो नयी बछेड़ी थी , ...

ऊपर से उसके जिज्जा भी साथ साथ उसके निप्स कभी होंठों से चूसते कभी जीभ से जोर जोर से फ्लिक करते



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चार पांच मिनट में वो कगार पर पहुँच गयी , ... बस मैं थोड़ी देर और चूसती तो वो पानी छोड़ देती , जोर जोर से वो सिसक रही थी चूतड़ पटक रही थी ,


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मैंने ' उनकी ' ओर देखा , और उन्होंने जोर से सर हिला के मना कर दिया

और बस उसने झड़ना शुरू ही किया था की हम दोनों ने उसे छोड़ दिया

और उन्होंने कचकचा के अपनी साली के निप्स काट लिए ,

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झड़ना रुक गया और दर्द के मारे चीख निकल गयी उसकी ,...

हम दोनों ने उसे छोड़ दिया , एक दो मिनट बाद जब वो साँसे लेने के लायक होई तो एक बार मैं फिर से ,


और अबकि जीभ से चपड़ चपड़ चाट रही थी अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर।


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कुछ देर बाद फिर छुटकी की वही हालत होने लगी , मैं उसको तड़पा रही थी बार बार कगार तक ला कर छोड़ रही थी , उसकी क्लीट एकदम कड़ी , ... फूली ,...

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मैं बस अब जीभ की टिप से सीधे क्लिट को सहला रही थी , और जैसे ही उसने झड़ना शुरू किया मैंने कचकचा के क्लिट काट ली , ... और वो एकदम से चीख पड़ी

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पौन घंटे तक , ... छह सात बार वो आलमोस्ट झड़ने के कगार पर पहुंचा के हम दोनों ने उसे रोक दिया ,

मैं उनकी बदमाशी समझ रही थी ,



होली के पहले वाली रात को भी तो उन्होंने मेरे साथ यही किया था ,...



सारी रात चोदा था छह सात घंटे , सच में बड़ी ताकत है इनमें ,...

लेकिन मुझे झड़ने नहीं दिया , खुद ही सिर्फ दो बार झड़े ,... एक बार मेरी बुर में और एक बार सुबह ,... जब ननद दरवाजा खटखटा रही थी , मुझे होली खेलने के लिए निकालने के लिए ,... उस समय वो मेरी गाँड़ में झड़ रहे थे , ....

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उसका मतलब मैं सुबह समझी , होली खेलते , ... बस मन कर रहा था कोई मुझे झाड़ दे , मेरी ननद , नन्दोई , देवर कोई भी ,...


तो बस कल सुबह यही हालत इस गौरेया की भी होगी , जब हम लोग इनके मायके पहुंचेंगे , मेरी छुटकी बहिनिया एकदम गर्मायी होगी ,


वो एकदम थेथर हो चुकी थी अब तो बस दो तीन मिनट मैं उसकी चूत चूसती तो वो झड़ने के कगार पर पहुंच जाती , ...



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जैसे मेरी ऊँगली लगेगी तो भी वो झड़ जाएगी



गाड़ी धीमे हो रही थी , स्टेशन की लाइट दिख रही थी , लग रहा था कोई बड़ा स्टेशन आ रहा है , ... गाड़ी कुछ देर तक यहाँ रूकती , ...

मैंने इनकी ओर देखा छुटकी की ओर इशारा कर के , ... उसकी ब्रा से तो उसके हाथ बंधे थे और चड्ढी नीचे पड़ी थी , ... और खिड़की खूली हुयी थी



उन्होंने आँख से इशारा कर के मना कर दिया , तब भी मैंने चादर से उसे आधा तिहा ढक दिया और खुद उनकी शर्ट पहन ली , ...

इन्होने भी शार्ट अपना ऊपर चढ़ा लिया , गाडी रुक गयी थी ,... कोई बड़ा स्टेशन था ,




चाय चाय की आवाज करता कोई लड़का हमारी खिड़की के पास बार बार चक्कर लगा रहा था ,...
 
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पूर्वाभास - ४
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पेज १२ पोस्ट ११७, ११८


छुटकी के टिकोरे


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बस आँगन में छुटकी बची , और उसके जीजू।

छुटकी छोटी थी लेकिन अब बच्ची नहीं थी , और वो देख रही थी की जीजू के हाथ मझली के साथ कहाँ सैर सपाटा कर रहे थे।

और अगले ही पल उसके किशोर गाल जीजू के हाथ में थे।

छुटकी कुछ रंग से लाल हो रही थी , कुछ लाज से।

लेकिन लालची हाथ जो एक साली का जोबन रस ले चुके , दूसरी को क्यों छोड़ते।

और उन्होंने छोड़ा भी नहीं।

लेकिन गलती छुटकी की थी , बल्कि उसकी पुरानी घिसी हुयी टाइट फ्राक की , जैसे उनका हाथ घुसा ,…


चररररर चरररररर,.... फ्राक का ऊपरी हिस्सा फट गया।

और छुटकी के टिकोरे , … एक टिकोरा आलमोस्ट बाहर
,


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चररररर चरररररर,.... फ्राक का ऊपरी हिस्सा फट गया।

और छुटकी के टिकोरे , … एक टिकोरा आलमोस्ट बाहर ,



इसी के लिए तो वो तड़प रहे थे ,और सिर्फ वही क्यों , मेरे नंदोई भी.

भोर की लालिमा की तरह , ललछौहाँ , बस एक गुलाबी सी आभा।
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लेकिन उभार आ चुके थे , अच्छे खासे , वही चूंचिया उठान के दिलकश उभार जिसके लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते है।

और उठती चूंचियो की घुन्डियाँ भी,



एक पल तो उन्हें लगा की कही छुटकी नाराज न हो जाय , लेकिन फिर सामने एक किशोरी की जवानी के दस्तक दे रहे जोबन दिख जायं तो फिर तो सब डर निकल जाता है।

और वहीँ आंगन में , उन्होंने उन मस्त टिकोरों का रस लेना शुरु कर दिया।

पहले झिझक के हलके हलके सहलाया , दबाया फिर जोर जोर से मसलने रगड़ने लगे।


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छुटकी कुछ सिसकी , कुछ चीखी , कुछ हाथ पैर चलाये ,


लेकिन उनके पकड़ के आगे मैं नहीं बची , मझली नहीं बची , तो उस कि क्या बिसात थी।

उनकी शैतान उँगलियों ने अब उसके छोटे छोटे निपल्स से खेलना शुरू कर दिया और दूसरा हाथ फ्राक उठा के सीधे , उस कच्ची कली के भरते हुए नितम्बो पे मसलने , मजे लेने लगा.

और आगे से जैसे ही हाथ दोनों जांघो के बीच में पहुंचा , छुटकी कि सिसकियाँ तेज हो गयीं।



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और मंझली भी दोनों हाथों में पेंट पोते, अपनी स्कर्ट में रंगो के पाउच लटकाये , फिर से रंग स्थल पे पहुँच गयी थी।

लेकिन जीजू तो छुटकी के साथ ,


उसने मुड़ के मेरी ओर देखा ,
मैं चौखट पे बैठ के अपने 'उन की ' सालियों के साथ होली का नजारा ले रही थी।

मैंने मंझली को उसके जीजू के कमर के नीचे की ओर इशारा किया , उसने हामी में सर हिलाया , मुस्करायी और चालु हो गयी।

" इनके 'दोनों हाथ तो फंसे थे ही , एक छुटकी के टिकोरों पे और दूसरा उसकी रेशमी जाँघों के बीच।


बस मंझली को मौका मिल गया। उसके दोनों हाथ जीजू के पिछवाड़े , पैंट में घुस गए। आखिर थी तो मेरी ही बहन।


उसे कौन सिखाने की जरूरत थी।

थोड़ी देर तक तो उसने नितम्बो पे हाथ रगड़ा ,लगाया और फिर एक ऊँगली , पिछवाड़े के सेंटर में।

अब दोनों सालियाँ आगे पीछे और वो सैंडविच बने ,

छुटकी को भी मौका मिला गया और उसने अपने छोटे छोटे हाथो से उनके हाथों को अपने उरोजों और जांघो के बीच दबोच लिया।


बस। अब वो मंझली के हाथ हटा भी नहीं सकते थे।


मंझली के दोनों हाथ उनके पैंट के अंदर थे। आ

खिर थोड़ी ही देर पहले तो उसकी जीजू पैंटी के अंदर हाथ डाल के उसकी चुनमुनिया रगड़ रहे थे , कच्ची चूत में ऊँगली कर रहे थे , वो भला क्यों मौका छोड़ देती।


बस उसका एक हाथ जीजा के गोल मटोल नितम्बो की हाल ले रहा था तो दूसरे ने आगे खूंटे को रंगना रगड़ना शुरू किया।

खूंटा तो पहले ही तना था , छुटकी के छोटे छोटे चूतड़ो पे रगड़ते हुए ,और अब जब साली का हाथ पड़ा तो एकदम फुंफकारने लगा।



पूरे बित्ते भर का हो गया। मंझली ने एक और शरारत की , आखिर शरारत पे सिर्फ उसके जीजू कि ही मोनोपोली तो थी नही।

उसने एक झटके से चमड़ा पकड़ के खीच दिया और , सुपाड़ा बाहर।






पता नहीं जिपर उन्होंने खोला , छुटकी से खुलवाया या मंझली ने मस्ती की।

रंग पेंट में लीपा पुता चरम दंड बाहर था और मंझली अब खुल के उसके बेस पे पकड़ के रंग लगा रही थी , कभी मुठिया रही थी।

उन्होंने छुटकी का हाथ पकड़ के उसपे लगाया , थोड़ी देर तक वो झिझकती रही , न न करती रही , फिर उसने भी अपने जीजू के लंड को ,
आब आगे से छुटकी हलके सुपाड़े को दबा रही थी अपनी नाजुक उँगलियों से और पीछे से मंझली।




किसी भी जीजा के औजार को होली के दिन उसकी दो किशोर सालियाँ मिल के एक साथ रंग लगाएं तो कैसा लगेगा ?

उनकी तो होली हो गयी , लेकिन टिकोरे का मजा लेना उन्होंने अभी भी नहीं छोड़ा।

पर रंग में भंग पड़ा ,



या कहूं मंझली ने नाटक का दूसरा अंक शुरू कर दिया देह की होली का।
भोर की लालिमा की तरह , ललछौहाँ , बस एक गुलाबी सी आभा।



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