भाग ८८
इन्सेस्ट कथा - मेरा मरद, मेरी ननद
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मैंने ननद को उकसाया,
" अरे भैया का पिछवाड़ा तो बहुत चाटा चूसा, तनी अपने गोल गोल लौंडा छाप चूतड़ का, पिछवाड़े की गली का भी तो रस चखाओ अपने भैया को "
बस ननद ने मेरी बात मान ली, पहले थोड़ा सा उठी,
अपने दोनों हाथों से पिछवाड़े के छेद को फैला कर, चौड़ा कर, भैया को दरसन करवाया और फिर उनके खुले मुंह पे पिछवाड़े का छेद,
उनका मुंह अब सील बंद और हम दोनों, भौजाई ननद मस्ती कर रहे थे , लेकिन ननद छिनार ने अपने भैया से क्या कहा, समझाया,
उन्होने पलटी मार ली
और मेरी गाँड़ के अंदर।
उईईईईई - जोर से मेरी चीख निकली,... गप्पांक से मोटा सुपाड़ा इनका मेरी गाँड़ में घुसा, पूरी ताकत से,
एक तो दस सांड की तरह इनकी कमर का जोर, फिर लगता है दूबे भाभी के चूरन का असर,... एकदम लोहे का रॉड लग रहा रहा था, जैसे रगड़ते दरेरते घुसा, पक्का चमड़ी छिल गयी थी. परपरा रहा था जोर से, ...
गौने के तीसरे दिन ही मेरी गाँड़ मारी गयी थी,
दिन दहाड़े, सुबह से ही मैं खूब टाइट शलवार कुरता पहन के टहल रही थी, मेरे दोनों चूतड़ कसर मसर,..
मेरी छोटी वाली ने ननद ने छेड़ा,... " भौजी, बहुत टाइट शलवार पहने हो, पिछवाड़ा खूब मस्त दिख रहा है। आज आपका पिछवाड़ा बचेगा नहीं। " "
" न बचे न ननद रानी, ... जब से गौने उतरी हूँ, दिन रात कभी तो नागा नहीं जाता, तेरे भैया चढ़े रहते है अगवाड़े तो पिछवाड़ा भी आज नहीं तो कल,..
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