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Fantasy जादूगर जंकाल और सोनपरी (Completed)

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बहुत पुरानी बात है। जब इस देश में जादूगर और परी, बहुत सारे राजा और उनके छोटे छोटे राज, हुआ करते थे।

शिवपुर गांव के शिवमंदिर के आसपास बहुत मधुर धुन में वंशी की धुन गूंज रही थी जिसे सुनकर गाय भैंस भी खुश होकर वंशी बजाने वाले उस लड़के को देखने लगी थीं जो कि बरगद के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठकर वंशी बजा रहा था।

आइये हम इसी वंशी वाले लड़के शिवपाल की कहानी सुनते हैं।

उस दिन शिवपुर गांव के सब लोगो के ढोर चराने वाला युवक शिवपाल रोज की तरह दोपहर होते ही गांव के पास की टेकरी पर बने पुराने मन्दिर के पास लगे बरगद की छांव में सारे जानवरों को ले आया था। शिवपाल ने गुरूकुल में पढ़ाई करते समय वंशी बजाने का यह कमाल हासिल कर लिया था। जब ढोर पानी पी लेते और छांव में बिश्राम की इच्छा करते थे तो दोपहर को ही ऐसा समय होता था जबकि शिवपाल अपना बंशी बजाने का शौक पूरा किया करता था।

जब जानवर नीचे बैठ कर आराम करने लगे तो वह बरगद की नीचे वाली डगाल पर चढ़ने लगा। सहसा उसे किसी लड़की के रोने की आवाज आई। दूसरों के दुख में दुखी होजाने वाले शिवपाल का माथा ठनका। रोने वाली युवती की खोज में उसने शिवमंदिर की तरफ निगाहें फेंकी तो कोई लड़की नहीं दिखाई दी।

फिर उसने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस समय लड़की की आवाज में कोई पक्षी तो रो रहा हो , क्योंकि बहुत से पक्षियों में ऐसा गुण होता है कि वे आदमी की बोली सीख जाते हैं। शिवपाल को बहुत कोशिश करने पर भी आस पास के किसी भी पेड़ पर जब कोई ऐसा पक्षी नही दिखाई दिया तो शिवपाल ने खुद अपने मुंह से ही तोता की बोली निकाली। जिसका जवाब पाने के लिए वह बहुत उत्सुकता से चारों ओर देखने लगा।

उसे किसी भी पक्षी का जवाब नही मिला तो वह संशय में पड़ गया।

शिवपाल ने गुरूकुल जाकर बारह बरस तक गुरूजी से सब तरह के शास्त्रों की शिक्षा और सब शस्त्र चलाने का कौशल तथा जानवरों व पक्षियो की बोली जानने का हुनर सीखा था। गुरू जी ने कहा कि वह अब सब विधाओं में प्रवीण है तो उनकी आज्ञा से वह दो महीने पहले ही गांव में वापस आया था । उचित रोजगार की तलाश में वह राजदरबार में राजा के पास गया था और कहा था कि वह गुरूकुल से सब तरह के शस्त्र और शास़्त्रों की शिक्षा प्राप्त कर के आया है यदि उसे दरबार में कोई मिल जाये तो राजा की बड़ी मेहरबानी होगी। राजा ने मंत्री से सलाह ली तो मंत्री ने बताया कि राज दरबार में जितने पद पहले से स्वीकृत किये गये हैं उतनी ही संख्या में पहले से ही सारे कर्मचारी काम कर रहे हैं, सो नये आदमी के लिए कोई पद खाली नहीं है, तो राजा ने शिवपाल को निराश कर वापस लौटा दिया था।

शिवपाल अपनी मां पार्वती के साथ रहता था। उन मां बेटे के पास कोई काम ही नही था, जिससे उनका भरण पोषण हो सके। उनके पास न कोई खेत थे न दूसरा काम धंधा। व्यापार और बंज करने के लिए उनके पास कोई पूंजी भी नहीं थी । सो शिवपाल ने हाल फिलहाल गांव के लोगों ने कह कर गांव भर के ढोर चराने की मजदूरी का काम ले लिया था,जिसमें वह दिन भर व्यस्त रहा करता था और इसमें शिवपाल का मन लगा रहता था। इसी ढोर चराने की मजदूरी से मां बेटे रूखी सूखी खा कर अपना गुजारा करते थे।

रोने की आवाज को अपने मन का वहम मान कर शिवपाल ने अभी बंशी को होंठों पर रखा ही था कि सहसा चौंक गया। उसके चेहरे पर ऊपर से गर्म पानी की दो बूंदे आकर गिरी थी। उसने ऊपर नजर फेंकी तो मूर्ति सा जड़ होगया। ऊपरी डगाल पर चांदी के जेवरों से लदी , गुलाबी कपड़ों पहने एक बहुत संदर युवती बैठी थी, जिसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे।

शिवपाल ने उस से पूछा कि आप कौन हैं और क्यों रो रही है ? तो युवती ने रोना कम किया और सिसकियां भरती हुई शिवपाल से बोली कि मैं परीलोक से आयी हुई चन्द्रपरी हूं और इसलिये रो रही हूं कि मेरी बहन सोनपरी को इस मंदिर के पीछे बने तालाब मे नहाते हुए अभी अभी एक जादूगर दानव पकड़ के ले गया है। अगर बहन नहीं लौटी तो मैं परीलोक कैसे जाऊंगी क्योंकि मेरी बहन के पास ही वह मुद्रिका है जिसे दिखा के हम परियां परीलोक के दरवाजे से भीतर प्रवेश करती है। किसी तरह परीलोक में प्रवेश भी कर जाऊंगी तो मेरी माँ मुझे घर से निकाल देंगी।

शिवपाल बोला ‘हे परी, तुम मुझे बताओ कि मैं आपका क्या सहयोग कर सकता हूं?’ परी बोली कि हम परियां उस जादूगर दानव के आगे बहुत कमजोर है उसको तो कोई मनुष्य ही मार सकता है। अगर तुम मदद करों तो मेरी बहन उस जादूगर की कैद से मुक्त हो सकती है। क्योंकि उसका जादू हम लोगों पर रात और दिन हमेशा चल जाता है जबकि मनुष्यों पर उसका जादू केवल रात में ही असर करता है।

‘‘बताओ परी कि वो जादूगर किस जगह रहता है ? मैं तुम्हारी बहन को छुड़ाने के लिए इसी वक्त चलने को तैयार हूं। ’’ शिवपाल ने पूछा तो परी बोली कि ‘‘मुझे उसके महल का पूरा पता तो नही, बस इतनी जानकारी है कि सात समुंदर पार एक टापू है जिस पर खतरनाक घने जंगलों में बनाये एक महल में वो जादूगर रहता है। मैं आपकी इतनी मदद कर सकती हूं कि तुम्हे समुंदर पार करा के उस टापू के किनारे छोड़ सकती हूं । इसके बाद अगर तुममे हिम्मत है तो उन मायावी जंगलो पहाड़ों को में से रास्ते खोजकर उस के महल में पहुंच सकते हो और दानव की कैद से किसी तरह मेरी बहन को छुड़ा सकते हो। लेकिन तुम अपनी जान जोखिम में क्यों डालोगे और क्यों मेरी बहन को छुड़ाओगे।’’

इतना कह कर परी रोने लगी।

शिवपाल ने उसे चुप कराते हुए बोला कि वह गांव वालों के जानवरों को उनके मालिक को सोंप दे फिर तुरंत ही उसके साथ चल सकता है।

सांझ होने पर शिवपाल ने सारे ढोर गांव की तरफ हांकना शुरू किया और एक एक घर मे ढोर सम्हलवाते हुए यह भी बताता चला गया कि अब कई दिनों तक वह किसी के ढोर नही चरा पायेगा। शिवपाल के साथ उससे कुछ ऊपर हवा में उड़ते हुये जा रही परी देख रही थी कि शिवपाल बहुत विनम्र युवक है वह जिससे भी बात करता है पूरा आदर देकर बात करता है। इस वजह से सब लोग उसका सम्मान करते हैं।

घर पहुंच कर शिवपाल ने अपनी मां को सारा किस्सा कह सुनाया । मां ने शिवपाल की हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि उसे जरूर ही परी की मदद करना चाहिये क्येांकि जो आदमी दूसरों के काम करता है वह हमेशा ही बड़ा आदमी बनता है।
 

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ठीक तभी परी भी प्रकट हो गयी और शिवपाल की मां से बोली कि आप बहुत अच्छी महिला है जो अपने बेटे को दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरणा देती है।

मां ने बड़ी रूचि से अपने बेटे को खाना बनाकर प्रेम से पंखा झलते हुए सामने बैठा कर खिलाया। परी से खाने के लिए पूछा तो परी कहने लगी कि हम तो फूलों की पराग और फलों की सुगंध से पेट भर लेती है।

अगली सुबह जब तारे नही डूबे थे मां उठी और उसने बेटा को दिन भर के लिए खाना बना कर एक पोटली में बांध दिया। पानी की छोटी से मशक और खाने की पोटली अपनी लाठी पर लटका कर शिवपाल अपने घर से निकल कर शिव मंदिर के पीछे बने तालाब पर पहुंचा जहां चंद्र परी उसका इंतजार कर रही थी।

चंद्र परी ने शिवपाल को देख कर बहुत खुशी प्रकट की और उसने अपने हाथ में लिया हुआ परीदण्ड घुमा दिया। तुरंत ही सामने एक जादुई चटाई पैदा हो गयी। परी उस चटाई पर जा बैठी तो शिवपाल भी पीछे पीदे उस चटाई पर चढ़ गया। जब वे दो बैठ गये तो चंद्र परी बोली ‘ हे मेरी चटाई मां, मुझे सातों समंदर पार कराके जादूगर जंकाल के टापू तक पहुंचा दो। ’

शिवपाल चौंक गया जब उसने सुना कि चटाई ने परी को जवाब दिया कि सात में से छह समंदर तो वह पार करा देगी लेकिन खारे पानी का समंदर उन को खुद पार करना होगा।

परी ने चटाई के जवाब से सहमति प्रकट दी तो चटाई जमीन से उठी और फरफराती हुई आसमान में उड़ने लगी।

चंद्रपरी ने बताया कि आसमान में बादलों के पास परीलोक है जिसमें हम परियां रहती है। सब परियां जादू जानती है और अपने जादू से जहां चाहे वहां जा सकती है और जो चाहें वो कर सकती है। लेकिन परियों की जब मर्जी होती है तभी किसी को दिखती हैं हरेक को न तो दिखती है न किसी पर अपना जादू करती हैं। ये परियां धरती लोक के जादूगरों से बहुत डरती है क्योंकि परियों को वश में करके जादूगर बहुत सारी शक्तियां प्राप्त कर सकता है। इनके वश में आके परियों का सारा जादू समाप्त हो जाता है।

पहला समंदर पार करने के बाद शिवपाल ने चंद्र परी से कहा कि वह नीचे उतर कर समुद्र के जल को अपने ऊपर छिड़कना चाहता है क्यों कि शास्त्रों में कहा गया है कि जिस नदी और समुद्र को पार करों उसके पार करने के बाद बिना अनुमति लांघ लेने के लिए उसके प्रणाम करना चाहिये ।

परी ने चटाई को नीचे उतारा तो समुद्र तट पर खड़े होकर शिवपाल ने समुद्र में से जल लिया और बोला कि ‘‘हे समुद्र देवता! हमने आपको बिना अनुमति के पार किया है इस गलती के लिए हम आपसे माफी चाहते हैं।’’

वह हाथ जोड़कर प्रणाम कर रहा था कि उसे ऐसा लगा मानो आसपास कोई रो रहा है, उसने चौंक कर आसपास देखा तो कोई न दिखा। बस पास में घनी झांड़िया दिख रही थीं। शिवपाल ने झाड़ी में झांका तो पाया कि एक विशाल मगरमच्छ झाड़ियो और बेलों के जाल में फंसा हुआ रो रहा है । शिवपाल ने मगरमच्छ की बोली में उससे पूछा कि ‘‘ हे मगर भाई, क्या आपको ज्यादा तकलीफ हो रही है?’’

तो मगर मच्छ ने बोला कि ‘‘ मुझें बहुत ज्यादा तकलीफ हो गयी है या तो आप मुझे मार डालो या फिर इस पीड़ा से बचाओ।’’

शिवपाल ने अपनी लाठी उठाई और झाड़ियां व बेले तोड़ना आरंभ कर दिया। थोड़े से प्रयत्न के बाद मगरमच्छ मुक्त हो गया और शिवपाल से बोला कि ‘‘आओे भाई कुछ दिन हमारे यहां मेहमानी करों। मैं तुम्हारे क्या काम आ सकता हूं। ’’

शिवपाल बोला कि ‘‘मै तो इस च्रदंपरी की बहन को मुंक्त कराने जा रहा हू फिर कभी आऊंगा तो मगरमच्छ बोला कि अगर हो सके तो मुझे साथ ले चलो शायद तुम्हारे किसी काम आ सकूं। शिवपाल ने परी से पूछा तो परी ने सहमति दे दी। चटाई थोड़ी और बड़ी हो गयी तो अपने चारों पांव से चलता पूंछ फटकारता मगरमच्छ चटाई पर चढ़ आया। चटाई फिर उड़ चली।

दूसरा समंदर पार करने के बाद फिर से शिवपाल ने तट पर उतर के क्षमा मांगी और वापस लौट कर उनकी चटाई आसमान में उठी ही थी कि सबने देखा आसमान में उड़ने वाला एक विशाल एक बाज पक्षी लहराता हुआ नीचे जा रहा है, बाज के बदन से खून बह रहा था।

यह देख शिवपाल ने परी को इशारा किया तो परी ने चटाई को उधर ही कर दिया और शिवपाल ने हाथ बढ़ा कर बाज को थाम लिया और अपनी गोदी में बिठा लिया।

बाज के पंखों के नीचे एक बाण बिंधा हुआ था और उसके बदन से खून का फौबारा निकल रहा था। शिवपाल ने बहुत सम्हल कर बाज का बाण निकाल दिया जिसे निकालने के बाद शिवपाल के इशारे पर चटाई फिर जमीन पर उतारी गयी तो शिवपाल ने नीचे उतर कर समुद्र तट के पास की एक झांड़ी खोज के उसके पत्तों को लेकर मसलना आरंभ कर किया । फिर मसले हुए पत्ते हाथ में ले कर शिवपाल ने बाज के घाव में भर दिया तो बड़ा चमत्कार हुआ, एकाएक बाज का खून का बहना रूक गया और बाज होश में आ गया ।

वह शिवपाल से बोला कि हे भले आदमी तुम्हारा बहुत धन्यवाद।उसने भी शिवपाल से कुछ दिन अपने पेड़ पर मेहमानी करने का अनुरोध किया लेकिन शिवपाल के अपनी यात्रा का उददेश्य बताया तो ऐसा परोपकारी उददेश्य जानकर वह भी शिवपाल के साथ जादूगर की तलाश में निकल पडा। शिवपाल

तीसरे समंदर को पार कर चटाई नीचे उतरी तो समंदर के किनारे शिवपाल को बहुत सारे मोती बिखरे दिखाई दिये तो उसने अपनी झोली मे भर लिये ।

चौथे समंदर को पार कर शिवपाल उतरा तो समुद्र के तट पर उसे दर्द में हिनहिनाता एक घोड़ा दिखा जिसे मगरमच्छ ने पकड़ रखा था। दयालु ने शिवपाल ने उस मगरमच्छ के जबड़े से बचा कर घोड़े की जान बचाई तो बदले में वह घोड़ा भी शिवपाल के साथ जादूगर की तलाश में चल पड़ा।
 

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पांचवे समुद्र को पार करते समय शिवपाल ने देखा कि समुद्र में तूफान आया हुआ है और बीच समुद्र में दो लोग एक छोटी सी नाव में खड़े हुए बिलख बिलख कर रो रहे हैं। शिवपाल ने चटाई रोककर बाज को उन्हे उठा लाने का इशारा किया तो बाज ने पंख फड़फड़ाकर एक जोरदार कुलांच भरी और अपने एक एक पंजे से एक एक आदमी को पकड़ कर उठा लिया। दोनों लोग चटाई पर बैठे तो बचाने के लिए उन्होंने शिवपाल को धन्यवाद दिया । शिवपाल ने उनके घर का पता पूछा तो उनमें से एक ने कहा- भैया मैं मछुआरा हूं समंदर में मछली पकड़ता हूं। यह मेरा दोस्त है जो गांव में लोहार है। समुद्र में तूफान आने से हम लोग फंसे हुये हैं ज्योंही समंदर के तट की तरफ जाते हैं, समंदर की लहरें हमको वापस खींच लेती हैं और बीस बार कोशिश करने के बाद भी हम तट तक नही जा पा रहे। समुद्र के किनारे मेरे इस लोहार दोस्त के बूढ़े पिता हमारे इंतजार में खड़े हैं।

शिवपाल ने जब उन्हें छोड़ने के लिए चटाई को नीचे उतारा तो देखा कि समुद्र किनारे खड़ा एक बूढ़ा आदमी जार जार रो रहा है। वह आदमी लोहार का पिता था।

अपने बेटे को देख बूढ़े लोहार का खुशी का ठिकाना नही रहा। उसने अपने आंसू पोंछकर शिवपाल को बहुत सारे धन्यवाद दिये। जब उसे पता लगा कि शिवपाल एक परोपकारी यात्रा पर जा रहा है तो उसने अपने पास से इस्पात से बनी एक कम वजन की चमचमाती तलवार भेंट की और उसके गुण बताते हुए बोला कि ‘‘ यह किलकारी नाम की तलवार आपकी कमर में बंधते ही दूसरों की आंख से दिखना बंद हो जायेगी। वैसे तो यह हमेशा गायब रहेगी यानि कि छिपी रहेगी, लेकिन जब उसे याद करोगे और कहोगे कि ‘‘ आओ किलकारी’’ तो किलकारी नाम की यह तलवार तुरंत प्रकट हो जायेगी। इस तलवार के हाथ में लेते ही जिसके हाथ में यह होगी उस तलवारधारी को किसी भी तरह का जादू मंतर असर नही करेगा।

लोहार ने अपने बेटे को बचाने का उपकार करने के बदले तलवार देकर इसतरह से अपना धन्यवाद प्रकट किया तो मछुआरे ने भी सोचा कि वह कैसे धन्यवाद दे सकता है फिर उसने अपनी ओर से शिवपाल को एक ऐसा रस्सा दिया जो दिखने में तो बहुत पतला था, लेकिन वह ऐसा मजबूत था कि उसे न तो किसी धारदार हथियार से काटा जा सकता था न जलाया जा सकता था।

उन दोनों को धन्यवाद देकर शिवपाल ने चटाई को उड़ने का इशारा किया तो सरसराती चटाई आसमान में यह जा और वह जा कहावत की तरह उठती चली गयी।

पांचवें और छठवें समुद्र के बीच में एक घने जंगल के ऊपर से उड़ते हुए उन्होंने सुना कि किसी शेर के दुख से दहाड़ने की आवाज आ रही है। शिवपाल ने ध्यान से नीचे देखा तो पाया कि बहुत सारे शिकारियों ने मिल कर एक शेर को घेर रखा है और उसे अपने वाण के निशाने पर ले रहे हैं।

शिवपाल के इशारे पर चटाई नीचे उतरी तो शिवपाल ने जोर से पुकार लगाई-‘आओ किलकारी ’

शिवपाल ने हाथ में चमचमाती तलवार लेकर उन शिकारियों को ललकारते हुए शर्मिन्दा किया और बोला कि ‘‘ आप इतने लोग मिल कर एक निहत्थे जानवर को क्या हथियार दिखा रहे हो? क्या दस लोग मिल कर एक को मार रहे हो? हिम्मत है तो इस शेर से एक एक करके लड़ो !

शिवपाल की बातों से उन सब शिकारियों ने गुस्सा हो कर अपने धनुष घुमा लिये और अब शेर की बजाय शिवपाल निशाने पर लेने लगे । यह देखकर परी बीच में आगई और उस ने अपना परीदण्ड हाथ मे लेकर जादू चला दिया । पलक झपकते ही उन सबके हाथों से उनके धनुष उछल कर शिवपाल के पास आ गिरे।

यह चमत्कार देखा तो वे सारे शिकारी डर गये और एकही क्षण में वहां से पीठ दिखा कर भाग निकले।

शेर ने तो अब तक यही समझ लिया था कि अब किसी भी क्षण उसकी मृत्यू होना तय है लेकिन उसने देखा कि आसमान से उतर कर एक देवता जैसे व्यक्ति ने उसने बचाया है तो अपनी पूछ मटकाता हुआ वह शिवपाल के सामने आ पहुंचा और बोला कि ‘‘ हे दयालु मानव, आपने बिना कहे ही दया भाव के कारण मेरी जान बचाई है। मैं एक जानवर हूं, ज्यादा कुछ तो नही कर सकता। फिर भी बताओ, मुझ से क्या चाहते हो। ’’

शिवपाल ने एक पल को सोच कर शेर से कहा कि मैं इन परी के काम से इस परोपकारी यात्रा में जादूगर जंकाल से इनकी बहन को छुड़ाने जा रहा हूं अगर आप इसमें मेरा साथ दोगे तो मुझे बड़ी खुशी होगी।

और शेर खुशीखुशी उनके साथ आगे की यात्रा पर चल पड़ा।



छठें समुद्र को पार करने के बाद नीचे उतर कर सदा की तरह शिवपाल हाथ में पानी लेकर समंदर से बिना पूछे पार करने के लिए क्षमायाचना कर के पास आरहा था कि चटाई कहने लगी कि - हे भले आदमी शिवपाल, मुझे यह आन है कि मैं सातवां समुद्र पार नही कर पाऊंगी। इसलिए अब हम लोग साथ साथ आगे नही जा पायेंगे । खारे पानी का यह सातवां समुद्र आपको अपनी हिम्मत से पार करना होगा।

शिवपाल ने कहा कि आप इस छठवें समुद्रं से सातवें समुद्र तक की धरती और पहाड़ों को पार करा दो ज्योही सातवां समुद्र आये आप सातवें समुद्र के तट पर हम सबको उतार देना।

चटाई ने कहा कि आ जाओ समुद्र तट पर हम आपको छोड़ देते हैं।

चटाई फिर आसमान में उड़ गयी और उन सबको थोड़ी ही देर मे सातवें खारे समुद्र के तट पर उतार दिया।

गोपाल अपने साथियों और परी के साथ सातवें समुद्र तट पर पहुंच कर उसे पार करने के लिए उचित साधन खोज रहा था कि सहसा मगर मच्छ बोला कि ‘‘हे दोस्त तुम क्यों परेशान होते हो ? तुम सब मेरी पीठ पर बैठो । मैं आप लोगों को तेज गति से यह खारे पानी का समुद्र पार करा दूंगा । ’’

फिर क्या था, परी और बाज ने कहा कि हम तो उड़कर ही समद्र पार कर लेंगे । उन दोंनों ने अपने पंख फैलाये और वे दोनों आसमान से उड़ते हुए समुद्र पार करने लगे जबकि शिवपाल अपने घोड़े और शेर के साथ उस विशाल मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया।

जमीन पर कछुये की चाल से चलने वाला मगरमच्छ ज्यों ही समुद्र के पानी में उतरा उसकी गति बहुत तेज हो गयी। परी की चटाई की तरह वह तेज गति से तैरता हुआ समुद्र के दूसरे किनारे की ओर चल दिया।

कुछ ही देर में वे समुद्र को पार कर चुके थे और मगरमच्छ गहरे पानी से जमीन की तरफ बढ़ गया।
 

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कुछ ही देर में वे समुद्र को पार कर चुके थे और मगरमच्छ गहरे पानी से जमीन की तरफ बढ़ रहा था।

इस तरह सबसे कठिन लगने वाली इस यात्रा में एक एक करके इस तरह सातों समुद्र पार करने के बाद वे लोग उस टापू पर जा कर उतर गये थे जिस पर जादूगर ने अपना किला बना रखा था।

मगरमच्छ की पीठ से टापू की जमीन पर उतरते शिवपाल को देख कर परी शिवपाल के पास आयी और उसके हाथ जोड़ बोली कि यहां तक तो आपको लाने में मैंने सहयोग दे दिया है क्येांकि यहां तक मेरा जादू चलता था अब जादूगर के इस पूरे टापू पर हमारा कोई जादू नही चलता है। इसलिये अब आगे के जंगल और मैदान की यात्रा आपको सोच विचार कर मेरी सहायता के बिना अपने हिसाब से करना होगी । मैं सिर्फ इतनी मदद कर सकती हूं कि आप मेरा यह परीदण्ड ले जाइये । जब इसे आप इस परीदण्ड को अपने हाथ में लेकर मुंह के सामने करके कहेंगे कि ‘आग पैदा हो’ तो आग पैदा हो जायेगी और जब आप कहेंगे कि ‘पानी बरसने लगे’ तो तुरंत ही पानी बरसने लगेगा। आप जब वापस लौटेंगे तो मैं आपको समुद्र के इसी तट पर मिलूंगी। आपकी यात्रा शुभ हो।’’

गोपाल ने टापू पर चढ़ने से पहले अपने मित्रों को बुला करा कहा ‘‘ मैं अकेला ही घोड़े पर बैठ कर जादूगर की तलाश में निकलूंगा । उसने शेर से कहा कि तुम मेरे दांये बांये तरफ की झाड़ी में छिपकर चलोगें और जब जरूरत होगी तुम मेरे पास आकर प्रकट हो कर सहायता करोगे। फिर उसने बाज से कहा कि बाज तुम आसमान में उड़ते रहोगे और चारों ओर का नजारा देखते हुये मेरी मदद करोगे। फिर वह मगरमच्छ से बोला कि तुम तब तक इसी जगह रूकर मेरा इंतजार समुद्रतट पर करोगे।’’

घोड़े के कंधे को थपथपा कर वह घोड़े पर सवार हुआ ।

शिवपाल टापू पर घोड़े को आगे बढ़ाया तो देखा कि कुछ दूर तक रेत और खाली मैदान है इसके बाद सामने बहुत घना जंगल खड़ा है । मैदान पार करके घोड़े ने यहां वहां बहुत चक्कर लगाये लेकिन मैदान से जंगल के भीतर जाने के लिए कोई रास्ता तक नही दिख रहा था।

शिवपाल ने बाज को इशारा किया तो बाज ने आसमान में एक कुलांच भरी और चारों ओर की हालत देख कर वह नीचे आया तथा उसने शिवपाल को अपने पीछे आने का इशारा किया। बाज दांये हाथ तरफ बढ़ रहा था शिवपाल ने उसके बताये अनुसार समुद्र किनारे किनारे दो सौ कदम चलने पर पाया कि घने पेड़ों की कतारों में से एकजगह कुछ खुला सा भाग दिख रहा है , पास जाने पर उसने पाया कि यही जंगल में जाने का रास्ता था ।

शिवपाल का घोड़ा उस रास्ते से आगे बढ़ा।

वे लोग जंगल मे प्रवेश कर के दो सौ कदम ही चले थे कि अचानक जंगल चीख पुकार से गूंज उठा। सहसा चारों ओर से बहुत से लोगों के रोने की आवाज आने लगी थी।

घोड़े को रोक कर शिवपाल ने ध्यान से देखा कि जंगल के सब के सब पेड़ों में से पानी सा बह रहा है और हर पेड़ में से ही रोने की आवाज आ रही है।

शिवपाल ने याद किया कि गुरूकुल में पढ़ते वक्त गुरू से ऐसे पेड़ों के बारे मे सुना था, जो हवा की आवाज को अपने पत्तों में मिला कर ऐसी आवाज निकालते हैं कि दूसरों को लगता है कि कोई बहुत दुखी स्वर में रो रहा है।

गुरू की याद आने से शिवपाल को उस समय न तो डर लगा, न ही उसने अपनी यात्रा रोकी ।

घोड़े के कंधों पर उसने हल्की सी थपकी लगाई तो घोड़ा आगे बढ़ चला।

अब वह सौ कदम ही बढ़ पाया था कि एकाएक उसने सुना कि जंगल में घोड़े की टापें बहुत तेज गूंज रहीं हैं। पहले उसे लगा कि उसी के घोड़े की टाप सुनाई दे रही है बाद में ध्यान दिया तो महूसस हुआ कि उसके घोड़े की टापों के अलावा भी बहुत सारे घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई दे रही है ।

शिवपाल ने अपना घोड़ा रोका और उसकी पीठ पर खड़े होकर जंगल में चारों ओर नजर दौड़ाई कि कहीं से वे बहुत से घोड़े कहीं दिख जायें जो जंगल में इस तरह दौड़ रहे हैं। लेकिन उसे दूर दूर तक कहीं कुछ नही दिखाई दिया और आवाज अचानक बन्द हो गयी थी तो उसने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया ।

उनके घोड़े के चलते ही बहुत सारे घोड़ों की टापें फिर से जंगल में गूंजने लगी थी।

शिवपाल मन ही मन सोच रहा था कि इतने घोड़े इस जंगल में कहां दौड़ रहे थे। वह सतर्क हो गया कि कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा था। पीछे दूर तक कोई भी नही दिखाई दिया। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर क्या माया थी इस जंगल में?

अब चलते हैं, जो होगा देखा जायेगा, यह सोच कर उसने घोड़ा फिर आगे बढ़ाया।

वह चारों तरफ के पेड़ों और आसमान पर नजर फेंकने लगा तो अचानक ही उसकी नजर अपने सिर के उपर से दांये हाथ की दिशा से उड़कर बांये हाथ की तरफ जाते एक उल्लू पर पड़ी तो वह चौंका, क्योंकि उस उल्लू के मुंह से ही घोड़ों के टापों की आवाज गूंज रही थी- अरे बाप रे !

शिवपाल ने एक लम्बी सांस ली और वह मुस्करा उठा।

उसको गुरूकुल में बताई एक दूसरी बात याद आई कि जंगल में रहने वाले उल्लुओं में भी बात याद आई कि जंगल में रहने वाले उल्लुओं में भी तोतों की तरह आस पास से आने वाली आवाज की नकल करने का गुण होता है। शिवपाल समझ गया कि आवाज आने की घटना उल्लुओं की करामात थी। रहस्य जानकर राहत की सांस ली शिवपाल ने।

जंगल के इस रास्ते से आगे जाकर एक चौराहा सा था जहां से चारो ओर चार रास्ते गये थे। जाने किस रास्ते से होकर जादूगर जंकाल का किला बनाया गया है? शिवपाल ने दो पल रूककर सोचा।

सहसा उसे सूझा कि इस जंगल से होकर कोई सीधा ही किले तक पहुंच जाये इसके लिऐ रास्तों में भी भरम और भूल भुलैया पैदा की गयी होगी। अब उसने सामने के तीनों रास्तो पर नजर मारी। बांया रास्ता दूर तक जाता हुआ दिख रहा था और दांये तरफ का भी, जबकि सामने वाले रास्ते पर आगे धुंआ सा जमा हुआ था और आगे का कुछ भी नही दिखाई दे रहा था। शिवपाल को लगा जरूर इसी रास्ते पर महल होगा। उसने सामने की ओर घोड़ा बढ़ा दिया।

धुंये जैसा भ्रम जो चौराहे से दिख रहा था वो धुंआ अपनी जगह रूका हुआ था न तो उड़ कर आसमान में जा रहा था न ही शिवपाल के पास आ रहा था बल्कि वह लगातार आगे खिसकता जारहा था।
 

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आगे बढ़ने पर और ज्यादा गाढ़ा धुंआ दिखने लग गया था।

अभी वह दो सौ कदम ही आगे बढ़ा होगा कि उसके घोड़े के पांव थम गये। शिवपाल ने घोड़े के रूकने का कारण जानने के लिए रास्ते पर आगे नजरें गढ़ाई तो डर की वजह से उसे पसीना आ गया, उसके सारे बदन में एक बार भय की लकीर सी फैल गयी। सामने पच्चीस तीस खूंख्वार भेड़िए रास्ता रोके खड़े हुए अपनी लम्बी जीभ लपलपा रहे थे।

शिवपाल ने सोचा कि बस अब गयी जान, दोनों ही मारे जायेंगे। भेड़ियों के लिए तो आदमी और घोड़ा एक ही तरह की मिठाई के समान जायकेदार खाना होता है। अगर भेड़िये उन दोनों पर टूट पड़े तो घोड़ा समेत शिवपाल को चट कर जायंगे।

शिवपाल ने एक पल सोचा कि अपनी चमत्कारी तलवार निकालने के लिए बोले -आओ किलकारी!

फिर वह रूक गया और उसे यकायक याद आया कि जंगली जानवरों से लड़ने के लिए जंगल के राजा अपने साथी शेर को याद किया जाये , यह सोच कर उसने अपने दांये बायें और पीछे की तरफ देखा तो पाया कि पास के एक पेड़ के पीछे दोस्त शेर खड़ा हुआ है, शिवपाल ने शेर को इशारा किया कि सामने भेड़ियों का झुण्ड है टूट पड़ो ।

तुरंत ही शेर ने एक दहाड़ भारी और उछल कर बाहर आ गया। शिवपाल के पास से होता हुआ वह आगे बढ़ा और उसने खतरनाक आवाज में दहाड़ते हुए भेड़ियों की तरफ छलांग लगादी । सहसा एक खूंख्वार शेर को सामने देख भेड़ियों में तो डर के मारे चीख पुकार मच गयी। भेड़ियों के झुण्ड में काई सी फट गयी थी और सारे भेड़िये सिर पर पांव रखकर ऐसे भागे कि यह जा और वह जा। दूर दूर तक भेड़ियों का पता नही था।

शिवपाल प्रसन्न होते हुए आगे बढ़ा।

एक बार फिर चौराहा सामने था। अब की बार एक रास्ते में तो दूर तक सूना रास्ता और दोनों तरफ जंगल दिख रहा था, लेकिन दो रास्तां पर धुंध छाई थी। जो रास्ता दूर तक दिख रहा था ,शिवपाल ने वही रास्ता अपनाया। उसने अपना घोड़ा उधर ही दौड़ा दिया।

चलते हुए घण्टा भर हुआ होगा कि घोड़ा फिर रूक गया।

शिवपाल ने फिर कारण जानने का प्रयास किया तो उसे फिर से पसीना आ गया। सामने एक काला और खतरनाक बहुत लम्बा मोटा सांप पूरे रास्ते पर लेटा सामने की ओर फन फैलाये बैठा था।

शिवपाल को बार बार तलवार याद आजाती थी, वह तलवार निकालने का ही सोचरहा था कि अचानक उसे तलवार के साथ सांप का भयानक दुश्मन बाज याद आगया। शिवपाल ने आसमान में देखा तो पाया कि उसका देास्त बाज पास में ही मड़रा रहा था। बाज ने शिवपाल का इशारा पाया तो मामला समझा और आसमान से नीचे की तरफ एक जोरदार गोता लगाके जमीन के ठीक पास आया और एक ही झटके में रास्ते पर पसरे उस बड़े सर्प को अपने नुकीले पंजों में दबाकर आसमान में उड़ता चला गया।

सांप की बाधा खत्म हुई तो घोड़ा और सवार दोनों निश्चिंत हो कर आगे बढ़े।

आगे जाकर एक खुला मैदान दिखा, जिसके एक कोने पर तालाब दिख रहा था। चारों ओर दीवार सी खड़ी थी। शिवपाल ने चारों ओर घूम कर देखा तो ऐसा लगा कि वह दीवार लगातार हरकत में आ रही है और फैलती जा रही है।

ज्यों ही पीछे मु़ड़कर देखा तो शिवपाल का ऊपर का दम ऊपर और नीचे का दम नीचे रह गया। दीवार चारोंओर फैलती हुई पीछे से आ रहे रास्ते को भी बंद कर चुकी थी। अब वह शिवपाल दीवार के घेरे में था। शिवपाल के पास न आने का रास्ता था न जाने का ।

शिवपाल ने आधा घड़ी विचार किया फिर घोड़े को इशारा किया और उसे तालाब की तरफ दौड़ा दिया। सामने तालाब था वहां खड़े होने पर साफ साफ तालाब के उस पार रास्ता दिखाई दे रहा था।

शिवपाल के इशारे पर उसका घोड़ा सीधा तालाब में छलांग लगा गया और पानी में तैरने लगा। वैसे तो तालाब ज्यादा गहरा न था, बस शिवपाल को यह डर लग रहा था कि नीचे जमीन में कीचड़ जमा न हो गया हो कि घोड़ा उसमें फंस कर रह जाये।

लेकिन शिवपाल की आशंका गलत सिद्ध हुई। पानी में तैरता हुआ घोड़ा तालाब के उस पार जा पहुंचा और उछल कर जमीन पर खड़ा हुआ फिर सामने दिख रहे रास्ते पर आगे बढ़ गया था। शिवपाल ने पीछे देखा अब वो घेरे बनाने वाली दीवार गायब थी और उसकी पीछे दौड़ता हुआ शेर चला आ रहा था।

अब जंगल फिर शुरू हो गया था जो पहले की तुलना में ज्यादा घना था। वे जिस रास्ते पर बढ़ रहे थे वह रास्ता बहुत छोटा था यानि कि पेड़ों के बीच खाली जगह पर बहुत छोटी सी पगडण्डी थी। घोड़ा भी आहिस्ता अहिस्ता कदम रखता जा रहा था। यकायक घोड़ा फिर रूक गया।

शिवपाल ने सतर्क हो चारों ओर नजर फेरी । उसे कुछ नहीं दिखा, तो उसने जमीन पर निगाहंे गड़ायी।

ध्यान से देखने पर पता लगा कि रास्ते की जमीन अब ठोस नही रह गयी थी, बल्कि आगे खूब सारा कीचड़ जमा था।

आगे चलेंगे तो घोड़े का चलना भी दुश्वार हो जायेगा यह सोचते हुए शिवपाल ने विचार किया कि वापस लौट कर जंगल में से दूसरा रास्ता देखते हैं।

उसने पीछे मुड़कर देखा तो वह हैरान था कि पीछे का रास्ता भी गायब था उसे कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। पेड़ों की घनी कतार में सेवह पगडण्डी भी नही दिख रही थी जहां से वे आगे बढ़े थे।

सहसा उसे विचार आया कि क्यों न बाज के पंजे पकड़कर वह आसमान के रास्ते से जादूगर के किले की तलाश करे।

वह घोड़े से उतरा।

शिवपाल को आगे का कोई उपाय समझ में नही आ रहा था कि सहसा उसे अपने साथी शेर की दहाड़ सुनाई दी। मुड़ कर देखा तो देखा कि कुछ पीछे ही एक पेड़ के पीछे खड़ा हुआ शेर उसे ही बुला रहा था।

शिवपाल सतर्कता से चलता हुआ शेर के पास पहुंचा। शेर ने अपना पंजा उठाकर एक तरफ इशारा किया तो शिवपाल ने देखा कि पेड़ के पास से ही सामने की जमीन में जाता हुआ एक रास्ता दिख रहा था।

हां वह एक खूब बड़ी गुफा थी सामने जिसमें बाकायदा सीड़ियां दिख रहीं थीं।

शिवपाल ने आव देखा न ताव अपने घेाड़े को इशारा किया और आगे आगे वह व पीछे पीछे घोड़ा और शेर उस गुफा की सीड़ियां उतरते चले गये।

आसमान में उड़ते बाज ने भी एक झपट्टा मारा और वह शिवपाल के कंधे पर आकर बैठ गया था।

सीड़ियां बहुत संख्या में थी और अचरज तो यह था कि ज्यों ज्यों नीचे उतरते जा रहे थे न तो हवा में कोई दुर्गंध थी न ही उजाले में कोई कमी आयी थी।
 

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कुछ देर बाद सामने खूब सारी रोशनी दिखी तो वह दौड़कर उधर ही पहुंचा। शिवपाल फिर चकित था- क्या रहस्यमय जंगल था।

जहां रोशनी थी वहां गुफा का बाहर को खुलता एक दरवाजा था जिसके पार एक खूब चौड़ा मैदान था। जिसके चारों ओर खूब ऊंचे पहाड़ दीख रहे थे। शिवपाल सोच रहा था कि वे लोग अभी एक जंगल की सीड़ियां उतर कर वे यहां तक आये थे तो किसी गुफा का अंधेरा मिलना था लेकिन यहां तो बहुत उजालेदार माहौल था।

खैर, हरी भरी घाटियां और मस्त मौसम देख कर शिवपाल ने जमीन पर बैठना उचित समझा।

उसके कहे बिना ही बाज ने आसमान में कुलांच लगादी थी और चारों ओर का जायजा लेने लगा था।

जमीन पर बैठे हुये शिवपाल ने पहाड़ों पर नजर फेंकी तो उसे अजीब सा लगा कि चारों ओर के पहाड़ रंग बिरंगे थे हर पहाड़ अलग अलग रंग का था । कोई लाल तो कोई पीला, कोई सफेद तो कोई स्याह काले रंग का था।

ध्यान से देखने पर पता लगा कि लाल पहाड़ में भी ठीक वैसी ही सुरंग दिख रही है, जिससे होकर वे अभी यहां तक पहुंचे थे।

गोपाल की थकान दूर हो गयी उसने उठ कर घोड़े की रास थामी और उस पहाड की ओर चल पड़ा।

पहाड़ में जिस जगह सुरंग बनी थी उसके दरवाजे से शिवपाल ने अपने घोड़े, शेर और बाज के साथ प्रवेश किया।

पहाड़ में बने दरवाजे से अंदर जाने पर ऊपर उठती हुई सीड़ियां नजर आ रही थी। शिवपाल बेहिचक सीड़ियां चढ़ता चला गया। जहां सीड़ियां खत्म हुई थी वहां एक दरवाजा दिख रहा था।

दरवाजा पार करके शिवपाल बाहर आया तो फिर अचरज में था अब वह फिर से एक एक दूसरे पहाड की तलहटी में थे और उसके चारों ओर ऐसे ही रंगीन पहाड़ दिख रहे थे। दूर दूर तक ऐसे ही पहाड़ दिख रहे थे।

वह समझ ही नही पा रहा था कि क्या करें ,कहां जाये, कि जादूगर जंकाल का किला दिखाई दे कि अचानक वह चौंक गया । फड़फड़ की तेज आवाज के साथ पीछे ऐसा लगा कि पंखे फड़फड़ाती हुई कोई बड़ी सी छाया आसमान से उसके पास आयी है और किसी ने उसके कंधों को नुकीले पंजो से पकड़कर टांग लिया है, वह कुछ समझता तब तक तो उसके पांव जमीन से उठने लगे। यह देख कर घोड़ा हिनहिनाया तथा शेर दहाड़ने लगा।

अब उसने गौर किया कि उसे अपने पंजो से जमीन से उठाने वाला एक विशाल पक्षी था, जो हाथी के आकार का पक्षी है, जिसके मजबूत से पंजों ने उसे चिड़िया के बच्चे की तरह से टांग रखा था।

शिवपाल को विचार आया कि अब वह तलवार का स्मरण कर लेता है और इस पक्षी के पांव काट कर मुक्त्त हो जाता है। खुद ही उसने यह विचार छोड़ दिया क्योंकि उसने देखा था कि काफी पीछे उसका बाज उड़ता चला आ रहा था जिसने कि शेर को आपने पंजों में टांग रखा था। चलो उसके साथी अब साथ में हैं, एक राहत उसके मन में आयी।

उसे लग रहा था कि यह विशाल पक्षी उसे सीधा जंकाल के किले मे ले जायेगा यह बहुत अच्छा रहेगा। क्येांकि वह भी तो उसी किले को तलाश रहा था।

वह पक्षी बहुत ऊंचाई पर पहुंच गया था जहां से चारों ओर देखना संभव था। शिवपाल ने चारों ओर नजरें पसारी तो उसे दूर एक पुराना सा किला नजर आया जहां हल्का सा धुंआ था और जिसे ठीक पास सफेद रंग का पहाड़ खड़ा था। लेकिन उसे अचरज हो रहा था कि वह पक्षी उसे उस किले तरफ न ले जाकर दूसरी तरफ ले जा रहा था जहां कि समंदर दिखाई दे रहा था।

वह पहले चौंका फिर मुस्कराने लगा। शिवपाल समझ गया कि उसका नुकसान नहीं किया जा रहा बल्कि किले से दूर रखने के लिए ही उसे उठा कर वापस पहुंचाया जा रहा है।

कुछ ही देर में पक्षी समुदर के तट पर आ पहुंचा था और उसने यकायक अपने पंजे ढीले कर दिये थे जिनमे से खिसक कर शिवपाल तेजी से नीचे गिरने लगा था।

पक्षी उसे छोड़कर जाने कहां गायब हो गया था और वह समुद्र के पानी तक पहुंचने ही वाला था कि अचानक उसे हल्कापन महसूस हुआ। उसने देखा कि समुद्र तट पर मौजूद चंद्रपरी ने उसे अपने हाथों पर झेल लिया था।

पीछे आ रहे बाज ने शेर को भी सुरक्षित जमीन पर उतार दिया और वह उधर ही चला गया था जिधर से आया था संभवतः वह शिवपाल के घेाड़े को लेने गया था।

सांसे सामान्य हुई तो शिवपाल ने चंद्रपरी को बताया कि इतनी मेहनत बेकार हो गयी। वापस उसी जंगल, तालाब और सांप व भेड़ियों वाले रास्ते से टापू पर जाना होगा।

परी ने एक नयी बात की, उसने बताया कि कल से वह लगातार समुद्र के ऊपर उड़ते हुए टापू के चारों ओर घूमती रही है और उसने देखा है कि पुराने रास्ते के अलावा टापू का एक रास्ता और है जो टापू के चक्कर लगा कर उस तरफ पहुंचने से मिलेगा, इस बार उधर से जाना ठीक रहेगा।

शिवपाल ने क्षण भर की देरी नही की और अपने दोस्त मगरमच्छ को याद किया जो समुद्रतट के नीचे आराम कर रहा था।मगरमच्छ समुद्र की गहराई से बाहर आया और तैरने लगा।

शिवपाल मगरमच्छ की पीठ पर जा खड़ा हुआ तो उसी क्षण बाज भी आता दिखा जिसके पंजो में घोड़ा दिखाई दे रहा था। शिवपाल बाज और शेर के साथ मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया तो मगर शिवपाल के कहे अनुसार तेजी से उसी दिशा में बढ़ चला जिधर परी ने इशारा किया था। थोड़ी दूर जाने पर पता लगा कि समुंदर खूब गहरा है और पानी पर यहां वहां आदमियों द्वारा छोड़ी गयी चीजें तैर रही हैं। लगता है जादूगर और उसके सेवक गण वही रास्ता काम में लाते थे जो कि चंद परी ने बताया था

उस तरफ टापू का आधा चक्कर लगाने पर शिवपाल ने देखा कि समुद्र तट के ठीक पास की धरती पर एक बड़ा सा दरवाजा बना हुआ था, जिसमें से उस पार एक सीधा रास्ता हरे भरे उद्यान में से होता हुआ भीतर जाता दिख रहा था। ऐसा लगता है कि यहां से जादूगर जंकाल की जादूनगरी शुरू होती है।

तट पर उतर कर शिवपाल कुछ देर एकजगह खड़ा रहा और उसने चारों तरफ का जायजा लिया फिर अपने दुर्लभ सामान यानि थैली में रखे असली मोती, अपनी तलवार और साथियों बाज,शेर और घोड़ा पर एक नजर मारी फिर बाज को इशार कर कहा किया वह देखे कि इस दरवाजे के आसपास कोई रखवाला तो नहीं खड़ा है।

बाज ने आसमान में एक उड़ान भर कर देखा तो पता लगा कि पूरे रास्ते पर कोई रखवाला नहीं दिख रहा था।

फिर भी शिवपाल ने सोचा कि बिना किसी जांच पड़ताल के यूं खाली पड़े दरवाजे से प्रवेश करना ठीक नहीं होगा।

शिवपाल को एक तरीका सूझा उसने समुद्र तट पर वापस आकर समुद्र के पानी में से एक मछली पकड़ी और हाथ में लेकर बहुत सावधानी से दूर खड़े हो कर दरवाजे के भीतर फेंकी।

वह चौंक गया, खुले दरवाजे से किसी अजनबी के भीतर जाने का नतीजा सामने आ गया था, दरवाजे से भीतर पहुंचते वह मछली धू धू करके जल उठी थी।
 

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शिवपाल समझ गया कि दरवाजा ऐसे तो सूना दिख रहा है कि लेकिन जादूगर जंकाल ने बिना किसी रखवाले का खड़ा करे जादू के दम पर इस दरवाजे में घुसने वाले बाहर के घुसपैठियांे से रक्षा करने के लिए ऐसा इंतजाम किया है।

शिवपाल ने देखा कि दरवाजे के दांये और बांये दोनों तरफ दूर तक लगभग पच्चीस पच्चीस फुट ऊंचाई की दीवार है जो बहुत दूर तक चली गयी है। शिवपाल ने दूरसे दीवार का अवलोकन किया और दीवार के किनारे किनारे कुछ दूर तक चलता रहा। फिर उसने रूककर जमीन में पड़े एक पत्थर को उठाया और पूरी ताकत से दीवार के उस पार फेंक दिया।

वह पत्थर उस पार जाकर गिरा था और उसके गिरने आवाज भी आयी थी तो शिवपाल ने अंदाज लगा लिया कि जो जादू बड़े दरवाजे में है वह दीवार में नही है। कोई दीवार पार कर के उस पार जायेगा तो उसे कोई नुकसान नही होगा।

शिवपाल ने दीवार पार करने के लिए बाज की सहायता का विचार कर उसे इशारा किया तो बाज ने पहले घोड़ा को अपने पंजों से पकड़ कर उठाया और चहार दीवारी के भीतर जाकर उतार दिया । जब घोड़ा ठीक से भीतर पहुंच गया तो बाज ने एक एक कर के शेर और शिवपाल को भी भीतर पहुंचा दिया।

शिवपाल ने देखा कि बड़े दरवाजे के ठीक सामने एक बड़ी और साफ रास्ता बना हुआ है, शिवपाल ने सोचा कि इस रास्ते पर कोई निगरानी करता होगा इसलिए मुख्य रास्ते को छोड़ते हुए शिवपाल जहां उतरा था वहीं से सीधा बढ़ने लगा।

उसने देखा कि जैसा दरवाजा समुद्र तट पर था वैसे कई दरवाजे बनाये गये थे। लगता था कि उन सबमें जादू ही किया गया होगा।

उसके चलते हुए दो घण्टे हो चुके थे और कुछ ही देर में सूर्य अस्त होने जा रहा था कि सहसा शिवपाल को याद आया कि जादूगर की ताकत रात को हजार गुना बढ़ जाती है। इसलिये उसने अपने घोड़ा और शेर को एक तरफ बैठ कर आराम करने का इशारा किया और बाज को संकेत किया कि वह उसे रात भर के लिए इस जादूनगर की दीवार से बाहर ले जाये जहां कि जादूगर का जादू नही चलता हो।

जादूनगर से बाहर आ कर समुद्रतट पर शिवपाल ने एक ओर बैठ कर रात बिताने का विचार किया और एक चट्टान की ओट में खुद को छिपाकर आंख मूद ली। उसने अनुभव किया कि जादूनगरी से रात भर खूब ढोल ढमाके और हंसने ठहाके लगाने की आवाजें आती रही थी। सुबह सूर्य के उगने के काफी पहले वहां आ गयी चंद्र परी ने उसे जगाया और कुछ अजीब से फल खाने का दिये जिन्हें खाकर शिवपाल फिर से उत्साह से भर उठा और बाज की सहायता से फिर उसी जगह जा पहुंचा जहां घोड़ा और शेर उसका इंतजार कर रहे थे।

शिवपाल ने जहां रोका था वहां से आगे का सफर शुरू किया तो आगे जाकर पता लगा कि फिर से सामने एक बहुत ऊंची दीवार खड़ी है जिसमें कोई दरवाजा लगी है।

पास जाकर देखा कि दीवार में पत्थर और ईंटो की जगह आदमियों की मूर्तियां चुन दी गयी हैं। वे मूर्तियां ऐसी कलाकारी से बनी थी कि लगता था वे आपको घूर के देख रही है और हर मूर्ति ऐसी लगती थी कि अभी बोल पड़ेगी।

शिवपाल कुछदूर दांये तरफ गया फिर बांये तरफ लेकिन बड़े अचरज की बात थी कि वे लोग जिधर जाते मूर्ति की आंखें उधर ही उठ जाती।

शिवपाल ने दीवार के ऊपर और दूर दूर तक नजर फेंकी तो देखा कि आगे जाकर एक विशाल बरगद खड़ा है ,जिसकी एक डगाल भीतर तक गयी है। शिवपाल बरगद पर चढ़ गया और उस पर उसकी भीतर जा रही डाल पर चलकर कर दीवार के जा पहुंचा ।

नीचे उतरने के पहले उसने देखा कि भीतर एक बहुत बड़ा आंगन बना हुआ था, जिसके बीचों बीच एक सफेद रंग का विशाल महल बना हुआ था।

एक अजीब बात थी कि महल को घेरते हुए चारों ओर एक कतार बना कर यहां से वहां तक बहुत सारी वैसी ही मूर्तियां खड़ी थी जैसी कि बाहर खड़ी की गयी थी। हरेक मूर्ति की आंखें हिल रहीथीं। शिवपाल एक मूर्ति की तरफ बढ़ा तो मूर्ति हरकत में आई और उसका हाथ हिलने लगा जिसमें तलवार बनी हुई थी। शिवपाल पीछे हट गया।शिवपाल समझ गया कि ये सब मूर्तियां जादू के पहरे दार है । आगे बढ़ना है तो इनसे बचना होगा। एक बार फिर से बाज का सहारा लिया गया। बाज ने उन मूर्तियों से बहुत ऊंचा उड़कर शिवपाल को उठा कर सफेद किले के ठीक पास ले जाकर खड़ा कर दिया।

अब बाज ने एक एक कर घोड़ा ओर शेर भी वहीं जे लाया।

अब शिवपाल के सामने वह मंजिल थी जिसकी तलाश में उसने इतनी लम्बी यात्रा की थी। महल में कोई दरवाजा नही दिखा तो शिवपाल के इशारे पर बाज ने महल के ऊपर उड़कर चारों ओर दो चक्कर लगाए और शिवपाल को संकेत किया कि इसमें कहीं से भी कोई दरवाजा नहीं है ।

शिवपाल ने अनुमान लगाया कि सामने से दरवाजा और सीड़ियां न होने का मतलब है कि कहीं किसी सुरंग से इस किले में जाते हांेगे।

फिर क्या था शेर और घोड़े ने खोजना शुरू किया तो जल्दी ही पता लगा गया कि सच में एक खम्भे केे नीचे एक सुरंग है। सुरंग में पहले शेर उतरा, बाद में शिवपाल और आखरी में घोड़ा।

सुरंग के रास्ते ने आगे जाकर एक बड़े से कमरे तक पहुंचा दिया । इसमें चारों ओर ऊंची दीवारे बनी हुई थी। दीवारों के सहारे ऊची कुंर्सियां लगी थी मानो कि यह जादूगर का राज दरबार हो।

जादूगर की सबसे बड़ी सिंहासन थी उसके पास जाकर शिवपाल ने चारों ओर का जायजा लिया तो पता लगा कि इस सिंहासन के ठीक पीछे एक रास्ता अंदर जा रहा है , शिवपाल ने उस रास्ते पर अपने कदम बढ़ाये। वह एक लम्बा बरामदा जैसा गलियारा था जो कि आगे जाकर फिर से एक बड़े कमरे में खुलता था।

यहां जादू की काई चीज नही दिख रही थी, ऐसा लगता था यहां जादूगर खुद रहता था इसलिये उसने इस जगह को जादू से मुक्त कर रखा था।

सहसा वातावरण में किसी लड़की के चीखने की आवाज सुनाई दी ।

शिवपाल ने चौंक कर उस आवाज की दिखा में देखा।

बरामदे के दूसरे कोने पर एक आंगन खुलता दिखाई दे रहा था जिसके चारों ओर बहुत सारे महल बने हुऐ थे। शिवपाल ने अंदाज लगाया कि आंगन के चारोंओर बने महलों में से में से किसी एक में से यह आवाज आ रही थी।

आंगन में पहुंच कर शिवपाल ने खुद को दीवार से सटा लिया और धीमे धीमे आगे बढ़ने लगा। उसने देखा कि इन महलों में भी कोई दरवाजा नही है।

लड़की की आवाज फिर से गूंजी। अब शिवपाल ने यह आवाज जिस खिड़की से आ रही थी वह पहचान ली थी। खिसकते हुए वहां पहुंच कर शिवपाल ने खिड़की के भीतर झांका तो पता लगा कि रस्सीयों से बंधी हुई एक लड़की खडी है , जिसके सामने काला विकराल सा एक आदमी खड़ा हुआ है।

शिवपाल ने अंदाज लगाया कि लगता है यही जादूगर जंकाल था।

शिवपाल वहां से भीतर जाने का तरीका सोच रहा था कि किसी ने उसे पीछे से छुआ तो वह चौंक कर मुड़ गया।

उसे छूने वाला एक गोरिल्ला जाति का बंदर था। अब देर करना मुनासिब नही था इसलिये शिवपाल ने अपनी तलवार को याद किया -आजा किलकारी।

पल भर में उसके हाथ में चमकदार तलवार लहराने लगी थी।
 

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शिवपाल ने आव देखा न ताव एक ही वार में गोरिल्ला का सिर काट दिया।

जमीन पर गिर रहे गोरिल्ला के बदन से अचानक एक देवता जैसा बहुंत गोरा और राजसी वस्त्रों से सजा हुआ व्यक्ति प्रकट हुआ और हाथ जोड़ कर शिवपाल से बोला- हे महापुरूष आपको धन्यवाद। मेरा नाम अश्विनकुमार है! मैं परीलोक का पहरेदार हूं यह जादूगर मुझे पकड़ कर यहां ले आया है और यहां गोरिल्ला बना कर पहरेदार बना कर रख दिया है यहां इस जादूगर की करामात से मुझ जैसे दस और परीलोक के पहरेदार इस जगह गोरिल्ला बन कर इन महलों की रक्षा में लगे हुए हैं। अगर आप उन दसों लोगों को गोरिल्ला के बदन से मुक्त करा देंगे तो हम सब आपकी सहायता करेंगे।

अश्विनकुमार को साथ लेकर शिवपाल ने सारे महलों में चक्कर लगाया और कुछ ही देर में उन दसों गोरिल्लाओं को मार कर परीलाक के पहरेदारों को मुक्त कर दिया ।

अब उन सब परीलोग के वाशिदों से शिवपाल ने पूछा कि अंदर महल मे जाने का क्या रास्ता है तो वे बोले कि रस्सी के सहारे आप इस महल मे जा सकते है लेकिन रस्सी कहां से आयेगी?

शिवपाल ने कहा कि चिन्ता नही करों मेरे पास बहुत मजबूत रस्सी है जिसके सहारे आप दसों साथ मैं भी अंदर जा सकता हूं ।



फिर क्या था रस्सी फेंक कर शिवपाल ने महल के ऊपर के बुंर्ज से बांधी और महल की दीवार के सहारे उपर चढ़ने लगा। वह चढ़ गया तो बाकी के दस लोग भी चढ़ आये।

अश्विन के इशारे पर वे सब बिना आवाज किये उस कमरे तक पहुंचे जहां वह सुंदरी बंद थी। अश्विन ने बताया कि यही सोन परी है । इन सारे महलों में ऐसी बहुत सारी सुंदरियां बंद की गयी है। जबकि वो कोने वाला लाल महल जादूगर का निजी महल है।

अंदर से कोई आवाज न आती देख शिवपाल भीतर जा पहुंचा तो उसे यकायक देख सोनपरी की आंखे खुली की खुली रही गयी । जबकि सोनपरी ने उसे देखा तो वह भौंचक्का रह गयी कि इस रहस्यमय किले में ये कौन अजनबी आ गया है।

शिवपाल ने सोन परी के बंधन अपनी तलवार से काटे और उसे सारा किस्सा सुनाया फिर उसे कहा कि वह यहां से बाहर निकलने के लिए जादूगर से महल से कोई साधन लेकर आता है इसके बाद उसे लेकर यहां से जायेगा।

अब वे ग्यारह लोग जादूगर के महल की तरफ बढ़े।

इस महल की सुरक्षा गजब की थी । खूब सारे पुतले यहां वहां खड़े हुये थे जिनकी आंखें घूम रही थी। उपर महल के बुर्जा पर जादुई पक्षियों की मूर्तियां कतार में बैठी हुई थी । शिवपाल को लगा कि जरूर ही इन महलों को आपस मे जो़ड़ने वाला कोई तहखाना और सुरंग होगी, उसी से जादूगर उस महल से सोनपरी के महल में आता जाता होगा ।वह सोनपरी के महल में वापस आया और ध्यान से सुरंग की तलाश करने लगा। उसे थोड़े से प्रयत्न से एक सुरंग मिल गयी। बरामदे का एक खम्भा खूब बड़ा था जिसमें एक मूर्ति लगी थी जिसका हाथ पेट पर और अंगुली उसकी नाभि पर रखी थी, शिवपाल ने मूर्ति की नाभि का धीरे से दबाया तो मूर्ति अपनी जगह से खिसकने लगी और खम्भे में दरवाजा बनने लगा।

फिर क्या था! शिवपाल ने उस दरवाजे में घुसने के पहले हाथ में अपनी तलवार किलकारी का आव्हान किया और बेधड़क हो कर भीतर घुस गया। दरवाजे में घुसते ही नीचे सीड़ियों से होकर रास्ता था। उन सबको वहीं छोड़के शिवपाल बिना आवाज किये उस सुरंग में आगे बढ़ा।

एक लम्बे बरामदे की तरह बनी हुई वह सुरंग खाली पड़ी थी जिसमें जगह जगह मशाल जला कर रोशनी का बंदोबस्त किया गया था। सुरंग में से एक दरवाजा दांये तरफ जाता हुआ दिखा तो शिवपाल उधर ही बढ़ गया। उसके अनुमान से यही रास्ता जादूगर के लाल महल को जाने वाला था।

उसका अंदाज सही था ।

आगे जाकर उसी रास्ते वे सीड़ियां उपर को चढ़ती दिखाई दे रही थी। एक एक सीड़ी पूरी सावधानी से चढ़ता हुआ वह आगे बढ़ा और कुछ ही देर में उसने अपने आपको एक बड़े से कमरे मे पाया। जहां कि ढेर सारी मूर्तियां खड़ी हुई थी जिनकी आंख इस समय बंद थी। शिवपाल ने ध्यान दिया कि इस महल तक आने में समुद्र तट से यहां तक अब तक मिली सारी मूर्तियों से इस कमरे की मूर्तियो का यही फर्क था कि वे सारी मूर्तियां आंख खोले खड़ी थी और इन सबकी आंख बन्द थी।

शिवपाल फुर्ती दिखाते हुए एक मर्ति के पीछे पहुंचा और उसने अपनी तलवार मूर्ति की गरदन पर टिका दी, लेकिन मूर्ति में कोई हरकत नही हुई।

शिवपाल समझ गया कि इन मूर्तियों में अभी जादू नही किया गया है। इन्हे बना कर केवल बाद की जरूरत के लिए रख दिया गया है।

उसने देखा कि उन मूर्तियों ने सैनिकों जैसी जो पोशाक धारण कर रखी है, वैसी ही पोशाक एक खूंटी पर टंगी है-पांव में कत्थई रंग का पैजामा, सुनहरे रंग का कोट और माथे पर एक बड़ा सा कनटोप जिससे आधा चेहरा ढंक जाता है।

शिवपाल ने बिना सोचे तुरंत ही वह पोशाक उतारी और फुर्ती से पहनने लगा। पल भर में वह भी मूर्तियों की तरह दिख रहा था मूर्ति और खुद में अंतर देखने के लिए वह मूर्तियों की कतार में खड़ा हो गया। अब वह भी उन मूर्तियों में से एक लग रहा था।

सहसा पिछले दरवाजे से आवाज आई तो वह मूर्तियों की कतार में एक मूर्ति की तरह खड़ा हो गया। पिछले दरवाजे से शिवपाल जैसी ही पोशाक पहने दो सैनिक आ रहे थे जो आपस में बात कर रहे थे।

शिवपाल चौंका-‘बाप रे, ये तो मनुष्य हैं।’

पहले ने कहा ‘जंकाल के खाने का समय हो रहा है, वे महल में आने ही वाले होंगे।’

दूसरा कह रहा था -‘ उनके महल में आते ही उनके महल के सारे दरवाजे जादू से बंद कर देना जिससे कि कोई उनके भोजन में व्यवधान न डाले।’

वे लोग पहले मनुष्य थे ,जो इस टापू पर आने के बाद दिखे थे। मजे की बात यह थी कि इन जीवित मनुष्यों ने भी ठीक वही पोशाक पहन रखी थी, जो इन मूर्तियों ने पहनी थी और शिवपाल ने पहन रखी थी ।

शिवपाल सोच रहा था कि ज्यों ही जादूगर आये उस पर हमला कर दिया जाये। फिर खुद ही सोचा कि जादूगर अकेला नही होगा जाने कितने सैनिक उसके साथ होंगे इसलिये बिना विचारे हमला करना ठीक न होगा।

जब तक जादूगर आये तब तक क्यों न उसके महल की तलाशी ले ली जाये, यही सोच कर शिवपाल अपनी जगह से हटा और उस पिछले दरवाजे तरफ चल पड़ा जहां से अभी अभी सैनिक आये थे।पिछला दरवाजा एक दूसरे बड़े दरवाजे में खुलता था जिसमें बहुत सारी पालकियां रखी हुई थी। शिवपाल ने ध्यान से देखा तो पता लगा कि इन पालकियों के नीचे की तरफ बहुत सारी चरखी लगी थी और ऊपर की तरफ बहुत मुलायम से पंख भी लगे थे। शिवपाल ने अंदाजा लगा लिया कि यह तो आसमान मे उड़ने वाले विमान होंगे। जिनसे जादूगर कही बाहर आता जाता होगा।

तीसरे कमरे की तरफ बढ़ते हुए शिवपाल को लग रहा था कि इन विमानों को चलाने के तरीके सीखना जरूरी है जिससे कि लौटते वक्त इन्ही में से एक का उपयोग किया जा सके।

तीसरे कमरे में जादूगर के हथियार रखे थे। कई तरह की तलवारें, भाले, ढाल, धनुष बाण आदि इस कमरे में सजा कर रखे हुऐ थे।
 
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इसके बाद आंगन था और आंगन के बीचोंबीच एक अजीब सा चमकदार कमरा बना था जिसमें कही से दरवाजा नहीं था। शिवपाल हैरान था कि इस किले में में ज्यादातर महल और कमरे ऐसे क्यों है, जिनमें कोई दरवाजा ही नही है।

यह सोच ही रहा था कि सहसा उसने देखा कि आने हाथ में एक थाली सी लिये एक सैनिक उस चमकदार कमरे की दीवार के सामने आ खड़ा हुआ है। वह सैनिक जाने किस भाषा में कोई मंत्र सा बोल रहा था उसके मंत्र बोलने के साथ चमत्कार हुआ कि दीवार में एक दरवाजा दिखने लगा था। वह सैनिक कमरे में प्रवेश कर गया । किवाड़ अब भी खुला हुआ था और सैनिक सीधा बढ़ता चला गया था।

शिवपाल ने आव देखा न ताव वह तेज गति से कमरे में घुस गया उसने देखा कि सैनिक के सामने एक बड़े से खम्भे पर एक पिंजरा रखा है, जिसमें एक तोता है, सैनिक ने वह तोता अपने हाथ में उठा लिया है और उसे थाली में से खाना खिला रहा है।

शिवपाल को लगा कि यह तोता निश्चित जादूगर के लिए बहुत महत्वपूर्ण प्राणी है, इसे अपने कब्जे में कर लिया तो तुरूप का एक पत्ता अपने हाथ होगा।

अगले ही पल छलांग लगा कर शिवपाल सैनिक के पास था और उसने अपनी चमत्कारी तलवार किलकारी का आव्हान कर लिया था। सैनिक की गरदन पर तलवार रखकर शिवपाल बोला ‘चुपचाप तोता मेरे हवाले कर दो।’

सैनिक को मानो विश्वास ही ना था कि उनका कोई साथी इस तरह दगाबाजी करेगा वह मिमियाते हुए बोला ‘जादूगर तुम्हें पत्थर की मूर्ति बना देगे साथी, ऐसी दगाबाजी मत करो। इस तोते का महत्व तुम जानते हो। हमारे जादूगर की जड़ इसी तोते में है, इसलिये चुपचाप बाहर चले जाओ।’

गोपाल उछल पड़ा । अरे अनजाने में यह बहुत जरूरी चीज हाथ लग गयी उसने एक जोरदार प्रहार किया और सैनिक की गरदन एक ओर को लुड़क गयी।

अब उसने तोता को अपने हाथ से पकड़ लिया था ओर उसे अपनी झोली मे छिपा लिया था।

वह पुनः उसी कमरे में आ गया था जहां कि मूर्तियां खड़ी थी।

कुछ देर बाद ऐसी आवाज आई मानो कई लोग आ रहे हैं।

शिवपाल मूर्तियों की कतार में तन कर खड़ा हो गया। शिवपाल का दिल धड़क रहा था क्यों कि कुछ ही देर बाद उसका सामना उससे होने जा रहा था था जिसकी तलाश में उसने इतनी लम्बी यात्रा की थी।

उसने देखा कि सामने से उड़ते हुए सुनहरे चोगे में लिपटा हुआ अपने रेशमी बाल लहराता लगभग पांच हाथ ऊंचा जादूगर जंकाल चला आ रहा था, जिसके पीछे आठ दस सैनिक नंगी तलवार लिये चल रहेथे।

यह जुलूस ज्यों ही शिवपाल के सामने से निकला आखिरी सैनिक के पीछे शिवपाल भी हाथ में तलवार लेकर चलने लगा।

वे लोग विशाल भोजनालय में जा पहुंचे थे जहां सारे सैनिक दीवार से लग कर खड़े हो गये थे और बीच में पड़ी विशाल मेज के एक कोने में रखी कुर्सी पर जादूगर बैठ गया था। ताज्जुब था कि मेज पर पहले से पांच पुतले ऐसे बैठे थे मानों वे भी केाई भोजन करने वाले होंगे।एकाएक जादूगर ने अपने हाथ की छड़ी को घुमाया और एक झटके से पांचो पुतले जीवित हो उठे।

शिवपाल ने ध्यान से देखा कि जीवित हुए पुतलों में दो लोग बुजुर्ग से खूब उम्र के बूढे़ बूढ़िया बन गये थे ,जबकि तीसरे व चौथे पुतले बच्चे बन गये थे और पांचवा पुतला एक युवा महिला के रूप में बदल गया था।

जादूगर ने उन सबसे खूब कड़क भाषा में बात करना शुरू की- तुम लोग मना करते थे न, कि मैं उस परी से ब्याह न करूं। अब आज की रात बाकी है, कल अमावस्या की रात मैं उस परी से ब्याह कर लूंगा और तुम लोग हमेशा के लिए यो ही पत्थर के बने रहोगे। परसो से इस टेबल पर मेरी सोन परी बैठेगी। आप लोगों न जीवित करूंगा न यहां से हटाऊंगा।

बूढ़े व्यक्ति ने बहुत दर्द भरी आवाज में कहा कि ‘हमने बहुत बड़ी गल्ती की है जो तुमको जादू सीखने को बंगाल भेजा था। वैसे तो तुमने बचपन से ही हम लोगों को तकलीफ दी है। तुम जैसा राक्षस बेटा किसी का नही होगा, जिसने अपने मां बाप और बच्चांे के साथ अपनी बीबी को भी पत्थर का बना दिया है। जल्दी ही तुम्हारा जादू टूटने वाला है , उस दिन तुम्हारा ये जादू का महल और सारा साम्राज्य खत्म हो जायेगा। तुम खुद पत्थर के हो जाओगे और तुमने इस महल में अपने जिन दुश्मनों को पत्थर का बनाया है, वे सब जीवित होकर तुम पर हमला कर देंगे।’

इतना सुनते ही जादूगर ने आपा खो दिया उसने अपनी जादुई छडी़ उठा कर बूढ़े तरफ घुमाई और मंत्र पढ़ के अपने बूढ़े पिता को फिर से पत्थर का बना दिया। फिर गुस्से में अपनी मां से बोला कि मेरे पिता को क्या पता कि मेरी पूरी जादुई ताकत कभी खत्म नहीं होगी। मेरी जादुई ताकतों की रक्षा यहां से बहुत दूर जिस रत्नदीप की स्वर्ण गुफा में एक विशाल सर्प कर रहा है उस तक पहुंच पाना कितना कठिन है।

बूढ़ी महिला जो कि जादूगर की मां थी उससे बोली ‘ देखो बेटा हमारा आशीर्वाद है कि तुम खूब बढ़ो! लेकिन अपने मां बाप और बच्चों को तुमने जो इतनी तमलीफ दी है, उसकी वजह से तुम्हे केसे सुख मिलेगा ? जरा सोचो कि दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार तुम्हे घर के लोग करते हैं और तुमने घर के लोगों को ही पत्थर का बना दिया है।’

जादूगर पर फिर से गुस्सा हावी होने लगा था और इस बार गुस्से का शिकार होने की बारी उसकी मां की थी। उसने मां को भी फिर से ज्यों का त्यों पत्थर का बना दिया।

अब जादूगर ने अपनी पत्नी को टोका ‘ तुम बोलो, क्या मेरी दूसरी शादी करने से तुम्हे कोई आपत्ति है?’

उसकी पत्नी बोली ‘ हमारे टोकने से क्या होने वाला है ?लेकिन यह विचार करो कि कितनी महिलाओं से विवाह करोगे ? आपने मुझ से भी प्रेम विवाह किया था और जब से जादूगर बन कर अपने गुरू के इस आश्रम पर कब्जा किया है तबसे आप पूरे बदल गये हो । आपने अपने महल मे कितनी सारी लड़कियों को उठा कर कैद कर रखा है । इसकी क्या गांरटी कि तुम सोनपरी के बाद किसी और से ब्याह नही करेंगे।’

यह सुन कर जादूगर खूब जोर से हंसा और बोला कि तुम्हे कोई आपत्ति नही है तो आज तुम हमारे साथ भोजन करोगी ।’

शिवपाल को लगा कि यहां रूकना अब बेकार है क्योंकि इस जादूगर की सारी जादूभरी ताकत के आगे उसकी क्या बिसात ? इसलिये अब जल्दी सी जल्दी मुझे रत्नदीप चलना होगा।

शिवपाल तुरंत ही वापस पलटा और सुरंग तथा सोनपरी के महल में से होता हुआ उस बगीचे में आ गया जहां कि बाज उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।

उसने बाज से कहा कि वह जल्दी से जल्दी समुद्र तट तक ले चले । बाज ने उसे अपने पंजो से उठाया और बात की बात में समुद्र तट पर ला उतारा।

समुद्र तट पर चंद्र परी उसके इंतजार में थी । शिवपाल ने सुनाया कि वह सोनपरी को देख आया है वह सुरक्षित है लेकिन कल ही जादूगर उससे जबर्दस्ती विवाह कर लेगा इसलिए अब हमको यह पता लगाना है कि रत्नदीप कहां है और वहां कैसे जा सकते हैं।

शिवपाल की बात सुन कर उसने अपने हाथ की अंगूठी को देखते हुए कुछ बुदबुदाया और सहसा उसकी अंगूठी के बड़े से नग में कुछ दिखने लगा तो वह शिवपाल को बताने लगी कि रत्नदीप छठवें और सातवें समुद्र के बीच पानी में आधा डूबा एक सुनसान द्वीप है जहां वह एक बार जा चुकी है, क्योंकि वहां परियों की करामात खत्म नहीं होती।

शिवपाल प्रसन्न हो उठा।

एक बार फिर मगरमच्छ की सहायता से उन्होंने सातवां समुद्र वापस पार किया और वापस दूसरे तट पर आ गये। वहां परी ने अपनी चटाई बुलाई और उस पर बैठ कर वे लोग समंदर के बीचोंबीच मौजूद उस सुनसान से टापू रत्नदीप के किनारे जा पहुंचे।
 

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रत्नदीप भी जादुई द्वीप था । दीप पर उतरते समय चंद्र परी साथ थी।

शिवपाल ने अपने बाज को इशारा किया तो उसने एक लम्बी उड़ान भरी जिससे कि वह द्वीप के भीतर तक की खोज खबर लाकर बता सके। इधर शिवपाल ने अपने घोड़े के साथ रत्नदीप के रेतीले इलाके में चल पड़ने की तैयारी की। उसे लगा रहा था कि यहां बहुत गर्मी लगने वाली है इस लिए उसने जमीन पर फैली हुई धूल को अपने बदन पर रगड़ना शुरू किया कि उसे सूरज की तेज गर्मी न लग पाये।

दो घड़ी बाद ही बाज वापस आ गया था। उसने बताया कि द्वीप में बहुत से बाज रहते हैं, उनसे वह दोस्ती भी कर आया है। दूसरे बाजों ने बताया है कि द्वीप के सबसे ऊंचे पहाड़ में एक गुफा है, उसमें कोई बड़ा भारी अजगर रहता है। यह अजगर हर दो तीन दिन में अपना पेट भरने के लिए गुफा से निकल कर किनारे पर आता है।

अपने घोड़े पर सवार हो बाज के दिखाये अनुसार शिवपाल उस ऊंचें पहाड़ की तरफ बढ़ लिया। गर्म हवा, रेत के अंधड़ उसके चेहरे को जला और झुलसा रहे थे, लेकिन कपड़े से अपना चेहरा ढके शिवपाल निरंतर बढ़ा जा रहा था।

आखिर उस पहाड़ तक पहुंच कर बाज रूक गया, उसने इशारा किया तो शिवपाल भी रूक गया। बाज ने एक उड़ान भर कर पहाड़ की चोटी पर बनी वह गुफा बताई जहां कि अजगर रहता था।

शिवपाल ने सोचा कि गुफा के अंदर अजगर ने पता नहीं कैसे अपना जाल फैला रखा होगा इसलिए सीधा गुफा में घुस जाना ठीक नहीं होगा। तो शिवपाल एक पेड़ के नीचे रूक गया और गुफा की तरफ नजर टिका दी।

अब शिवपाल को यह इंतजार था कि अजगर कब बाहर निकलता है। मन नही मन शिवपाल उस अजगर से निपटने का उपाय भी खोज रहा था।

शिवपाल ने देखा कि पहाड़ की चोटी के ऊंपर बड़ी-बड़ी चटटान रखी हैं जिन्हें जरा सा हिला दिया जाये तो वे लुड़कने लगेंगी।

एकाएक उसने बाज को पास बुलाया और उससे पूछा कि अगर चाहं तो तुम्हारी विरादरी के बाज लोग मिल कर उस अजगर को उठा कर नही ले जा सकते क्या?

बाज ने कहा कि पक्षी लोग बिना किसी हित अनहित के किसी को परेशान नहीं करते।

यकायक शिवपाल को लगा कि किसी तरह ये सब बाज इस अजगर से परेशान हो जायें तो पक्का है कि उसे उठा ले जायेंगे। उसने तुरंत ही चंद्र परी से कहा कि वह समुद्र तट पर जाकर कुछ मछलियां ले आये, जिससे इन बाज लोगांे की दावत करा दी जाये।

फिर क्या था, परी तुरंत ही समुद्र तट तक गयी और बहुत सी मछलियां लेकर आगई ।

शिवपाल ने मछलियों की पोटली को कंधे पर लादा और पैदल पहाड़ी की चोटी की ओर चढ़ना शुरू कर दिया ।

पहाड़ की ऊंचाई पर पहुंच कर उसने वह गफा ढूढ निकाली जिसमें अजगर रहता था। उसने छिपते हुए गुफा में झांक कर देखा तो पाया कि गुफा के भीतर हल्का सा अंधेरा है, लेकिन ऐसी कोई तेज चीज रखी है जिसमें से सूरज की तरह उजाला निकल रहा है।

शिवपाल ने अपने हाथ से मछलियां निकाल कर गुफा के बाहर नीचे जाने वाले रास्ते पर फेंकना आरंभ कर दिया और खुद धीरे-धीरे चोटी के शिखर की तरफ बढ़ने लगा।

कुछ ही देर में यहां वहां बैठे बाज, गिद्ध और कौओं का दल उन मछलियां पर टूट पड़ा था, जिसे देख कर शिवपाल बहुत खुश हो गया। वह यही तो चाहता कि सारे पक्षी यह जान जायें कि उनको मछलियों की दावत कराने वाला शिवपाल है।

इधर पक्षियों की दावत चल रही थी अचानक गुफा में से तेज तेज फुसकारी के स्वर गूंजने लगे और एक चट्टान पर छिप गये शिवपाल ने देखा कि गुफा में सहसा वह अजगर बाहर निकल कर आया। शिवपाल ने अजगर को देखा तो उसकी सांस रूक सी गयी उसने इतना बड़ा अजगर कभी न देखा था।खूब बड़े मोटे घोड़े की कमर बराबर मोटा और सौ एक हाथ लम्बे इस अजगर देखते ही चट्टानों पर बैठ कर आराम से मछली खा रहे पक्षियों में हलचल मच गयी।

शिवपाल ने कल्पना की कि अगर यह अजगर उस पर गुस्सा हो गया और इस ने अगर सांस खींच ली तो वह खुद ही पूरा का पूरा समा जायेगा।

अजगर ने बाहर निकल कर यहां वहां बैठे पक्षियों की इतनी बड़ी भीड़ देखी तो खुश हो गया उसने अपना विशाल मुंह खोला और सांस खींचने लगा। उसकी सांस के साथ आसपास की झाड़ियां और छोटे पक्षी उसके खुले मुंह की ओर खिंचने लगे। फिर अजगर ने और तेज सांस ली तो शिवपाल ने देखा कि तेज उड़ती हवा के साथ खिंचते मोटे पक्षी अजगर के मुंह की तरफ खिंचे जा रहे हैं।अब पक्षी थोड़ा जागे और अपनी सुरक्षा की चिंता करने लगे। वे मछलियों का लालच छोड़कर वहां से उड़ने लगे लेकिन इस बीच इतनी देर हो गयी थी कि कुछ पक्षी तो अजगर के मुंह में खिंचते ही चले गये थे।

कुछ साथियों को इस तरह अपना ग्रास बनाता देख बाजों को अजगर पर भारी गुस्सा आ गया । वे तेज स्वर मे चिल्लाने लगे और अजगर की पूंछ तरफ से आकर उसके मुंह के पीछे पहुंच कर अपने नुकीले पंजों और चोंच से उस पर हमले करने लगे ।

ठीक इस समय शिवपाल तेजी सी पहाड़ के शिखर पर पहुंच गया और उसने मौका देख कर ऊपर जमी उन चटटानों को नीचे की तरफ ढड़काना शुरू कर दिया। पक्षियों से परेशान अजगर ने देखा ही नही कि ऊंपर से बड़ी विपदा उसकी ओर खिंची चली आ रही है।

बात की बात में उन चट्टानों की चोट से अजगर लुहूलुहान होने लगा । कुछ देर बाद तो वह इतना घायल हो गया था कि करवटे लेता हुआ पहाड़ी के नीचे की ओर फिसल चला था। उसका सारा जोश ठण्डा पड़ गया था।

उसे लुड़कता देख पक्षियों का साहस बढ़ गया और उन सबने एक साथ अजगर पर हमला कर दिया। अजगर के पूरे बदन से खून निकलने लगा था। उसको तड़पता देख कर पक्षियों का जोश बढ़ता जा रहा था।

चट्टानों से कुचलता और कुलांटी खाते हुए फिसलता हुआ वह अजगर नीचे तलहटी में पहुंच गया तो सारे पक्षियों ने फिर एक साथ उस पर हमला किया और फिर शिवपाल के बाज के सुझाव पर उन सबने एक राय होकर उसे उठा ही लिया तथा उड़ कर वे सबके साथ उसे लटकाये हुए समुद्र तट की ओर बढ़ गये थे।
 
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