गया आशिका की जबरदस्त खुदाई देख कर....अंशिका
जैसे कोई प्रोप्राइटरी आइटम को पकड़ के ले जाए, उस तरह अंशिका मुंतजिर को लेकर लिफ्ट में दाखिल हुयी और लिफ्ट में घुसते ही लता की तरह लिपट गयी, और उस की एक दो सहेलियां एयरहोस्टेस भी थी उस का फरक नहीं पड़ रहा था
" हे सुना न वो वाला " अंशिका ने लिबराते हुए कहा,
मुंतजिर ने उसे कस के पकड़ रखा था और एक हाथ अब सीधे उभार पे, बस उसे खुल कर और कस कर दबाते हुए सुना दिया
नैनो से तीर मत चला ,मैं बाबा ना कोई पीर,
तू मेरी महारानी और,मै तेरी चुत का फकीर
लेकिन न अंशिका ने बुरा माना न उसकी सहेली एयरहोस्टेस ने, और अंशिका और चिपक के बोली,
सच्चा प्यार वो नहीं जिस में दिल टूट जाये,
सच्चा प्यार वो है जिस में पलंग टूट जाये!
और मुन्तजिर को कमरे की चाभी पकड़ा दी, जवाब मुंतजिर ने कमरे में घुसते घुसते दे दिया,
मांस खाये चर्बी बढ़े,घी खाये खोपड़ा।
दूध पियें, तो लौंड़ा बढ़े,जो फाड़ डाले भोंसड़ा।
और अंशिका ने दो काम किये, एक तो मुन्तजिर को पकड़ के कस के चूम लिया, फिर अपने टॉप से निकाल के वो ड्राइव दे दी, जिसमे से केपटाउन से, और बाथरूम में चेंज के लिए जाते जाते एक टॉवेल उठा के मुंतजिर की ओर मुन्तजिर की ओर उछाल दिया,
और मुंतजिर ने कई काम किये करीब करीब एक साथ, दरवाजे का लॉक चेक किया, अपना लैपटॉप निकाल के वो डिस्क चेक करके लगाया , उस डिस्क की झिल्ली फटी नहीं थी,मतलब अंशिका उस डिस्क को एकदम सेफ्ली ले आयी थी, डाटा कम्प्रोमाइज नहीं हुआ था
और अब अपने उस ख़ास लैपटॉप के सब सॉफ्टेवयर भी उस डिस्क पे चला दिए, और अपने चार सवाल भी जड़ दिए, और सबसे बड़ा सवाल था क्या वो कपल अगले हफ्ते कहीं घर छोड़ के जा रहा है और जारहा है तो कहाँ, कितने दिन के लिए और घर पर कोई रहेगा तो नहीं।
सॉफ्टेवयर सब फोन की रिकार्डिंग सुन के काम की बात निकाल लेता और सारा डाटा उन के कहस बादलों पे रहता जहाँ सात जीन उसके निगहबान थे, बस आधा घंटा से चालीस मिनट लगना था, और हाँ इस बीच ये प्रॉसेस इंटरप्ट नहीं होना था और मुंतजिर को कुछ करना भी नहीं था, और उन चारो सवालों के जावब एन्क्रिप्ट होक उनके मोबाइल पे आ जाते,
और दस मिनट बाद,
अंशिका घोड़ी बनी थी, पलंग टूटने का कोई खतरा नहीं था, क्योंकि वो पलंग पकड़ के फर्श पे निहुरी थी, और मुंतजिर उनपे चढ़े थे
शायरी बंद थी क्योंकि गजल चुद रही थी, शायर चोद रहा था।
तूफ़ान मचा था।
एकदम जिन्नाती चुदाई, लम्बा मोटा तो था ही जनाब मुंतजिर का दीवान लेकिन चोदने ,में वो एकदम गंवार हवाशियाना तरीका इसतमाल कर रहे थे यानी उनके नाख़ून अंशिका की मोटी मोटी कसी कड़ी चूँचियों में धसे थे, नाख़ून नए नए शेर लिख रहे थे, और उनका शेर गुफा में घुसा
और मुंतजिर ऐसे उस्ताद को अंदाज लग गया था की ये ग़ज़ल अभी दर्जन भर मुशायरों में भी नहीं पढ़ी गयी है, चुदी तो है लेकिन अभी तक उन जैसे वहशी चुदककड़ के पल्ले नहीं पड़ी है और शायद दहाई का आंकड़ा भी नहीं पार किया है इस शोख ने,
वो आधा पेल कर के फिर निकाल लेते थे, और फिर दुगनी तेजी से दरेरता,रगड़ता, घिसता उस संकरी गली में घुसता तो चीख निकल जाती उस हसीना के, बस दस पांच मिनट तड़पा के उन्होंने आलमोस्ट सुपाडे तक निकाल के, एक धक्के में जो ठेला तो आधा मूसला अंदर और दूसरे तीसरे धक्के में जो चीखे निकली, लेकिन पांचवे धक्के में मोटा हथोड़ा उस व्योमबाला के बच्चेदानी से टकराया, जिस ऊंचाई तक वो आज तक न उडी होगी वहां मुन्तजिर ने पहुंचा दिया था,
चीखे सिसकियों में बदल गयी थीं, तूफ़ान के पत्ते की तरह वो काँप रही थी और मुन्तजिर समझ रहे थे क्या होरहा है, उन्होएँ अपना घोडा पूरा अंदर घुसा रखा था, उसे पूरी ताकत से दबा रखा था,
अंशिका की आँखे उलट गयी, वो लगभग संज्ञा शून्य हो गयी थी, देह पहले तो खूब कड़ी हो गयी, और पानी से बाहर निकली मच्छी की तरह वो तड़पी,
पहली बार शायद वो झड़ रही थी। उसकी चूत कस कस के सिकुड़ रही थी, लंड को निचोड़ रही थी, जैसे कह रही हो स्साले अब तुझे छोडूंगी नहीं
और मुन्तजिर ने उसे कस के दबोच रखा था, लेकिन दो चार मिनट के इंटरवल के बाद, शायर ने दूसरी ग़ज़ल शुरू की जो जितनी खूबसूरत थी
उतनी ही खतरनाक भी,
होंठों और उँगलियों से लिखी गयी ग़ज़ल, रोमांस की कविता
और एक लड़की के लिए जो अभी कैशोर्य के सपनो से बाहर न हुयी, जिसके लिए रोमांस अभी सेक्स से जायदा दिलकश हो, जिसने कैशोर्य में कदम ही शायरों के शहर लखनऊ में रखा हो,
बिन बोले मुंतजिर बहुत कुछ कह रहे थे, उनके होंठ कभी कान की लर चुम रहे थे कभी कानो में कोई शेर गुनगुना ररहे
अच्छा है दिल के पास रहे, पासबाने -अक्ल,
लेकिन कभी - कभी इसे तन्हा भी छोड़ दें।
( पासबाने-अक्ल --- अक्ल का पहरा )
कभी उँगलियाँ जुल्फों को छेड़ती और उनके होंठ ये शेर गुनगुनाते,
खुला यह राज जब आये वो बाल बिखराये,
कि रौशनी से जियादा हसीन हैं साये।
और गालों को चूम कर,
जुल्फें बिखरी हुई हैं आरिज पर,
बदलियों में चराग जलता है।
( आरिज -गाल )
और धीरे धीरे चूमने की रफ्तार बढ़ने लगी, कभी कंधो पे, कभी बगल में कभी पीठ पे, कभी उँगलियाँ चौड़ी चिकनी पीठ पे कुछ लिखने की कोशिश करते, और अंशिका अब गरम हो रही थी, उन्ह हाँ कर रही थी मचल रही थी, और एक हाथ जो अभी भी उसके जॉबन को कस के दबोचे था, उसने उरोजों को हलके हलके सहला के जवाब दिया, फिर निपल को फ्लिक कर दिया, जुबना से लगी आग वो पिघलती आंच फ़ैल कर अब जाँघों के बीच पहुँच गयी थी, प्रेम गली एक बार फिर से बार बार सिकुड़ रही थी, लेकिन मुंतजिर उसकी शर्म गायब करना चाहते थे
अंत में अंशिका ने धीरे धीरे से जुस्तजू की,
" कर न यार, "
" और झुक के दहकते गुलाबी गुलाबों पे बस भौरे की तरह अपने होठों से छुला के मुंतजिर ने हलके से पूछ लिया,
" क्या करूँ जानम, हुकुम कर "
अंशिका अभी भी कुछ हिचक रही थी फिर भी बोल पड़ी
" अबे स्साले जो अभी तक कर रहे थे, "
और मुंतजिर का जवाब भी जबरदस्त था, उन्होंने बिन बोले अपने अंगूठे से फूलते पचकते क्लिट को दबोच के कस के रगड़ दिया अब तो अंशिका की चूत में आग लग गयी, लंड के लिए वो पागल हो गयी, कस के दबोचने लगी उसे,
" क्या कर रहा था, यार एक बार खुल के बोल दे, स्साली लेने शर्म नहीं घोंटने में शर्म नहीं, सब लाज बोलने में है , कैसी बनारसवाली हो "
और अंशिका समझ गयी, वो क्या सुनना चाहता है बस वो बोल पड़ी,
" चोद स्साले, यहाँ कौन तेरी बहन बैठी, जिसको चोदेगा, चोद स्साले "
और मुन्तजिर ने लंड आलमोस्ट निकाल के क्या धक्का मारा, अंशिका ने पलंग को कस के पकड़ रखा था और मुंतजिर ने भी दोनों हाथों से कमर को जकड़ रखा था, लेकिन उनकी एक आँख लैपटॉप पे लगी थी, करीब आधा डाटा अपलोड हो गया था।
और फिर चुदाई के साथ गाली गलोज सब, और थोड़ी देर में अंशिका पलंग पे लेटी थी, एकदम किनारे चूतड़ बस किनारे लगे और ऊके निचे पलंग के सारे तकिये और मुन्तजिर के कंधे पे वो खुद खड़े,
अंशिका ने कुछ चिढ़ाया, और मुन्तजिर ने लंड पूरा निकाल के जोरदार धक्का मारा और बोले, "स्साली तेरी बहन की चूत मारु "
" मार लेना यार लेकिन कुछ दिन इंतजार करना पड़ेगा, अभी चौदह की है "
मुंतजिर की सब मालूम था, उसका भी इंस्टा उन्होंने चेक कर लिया था, अंशिका की छोटी बहन अनिका सेंट मैरिज में ९वि में थी दो साल से इंस्टा पे थी और रील भी बनाती थी, साइज २८ की लेकिन ३० से कम नहीं लगाती थी, और दोनों बहनों की माँ, जुथिका, एक पक्की सोचलाइट ३७-३८ के आसपास की
लेकिन वो बोले, : स्साली चौदह की है तो पक्की चुदवासी होगी, पर चल पहले तू घोंट "
और कुछ देर बाद जब अंशिका झड़ी तो साथ साथ मुंतजिर भी और हाँ पहले ही उनके कान में अंशिका ने बोल दिया थ। " मैं पिल लेतीं हूँ , अंदर ही झड़ना, सब पानी अंदर "
और झड़ने के बाद भी दस मिनट तक वैसे ही वो पेले रहे,
और दोनों ने एक एक सिगरेट जलाई,अंशिका ने एक पेग बनाया, और थोड़ी देर में सेकंड राउंड भी शुरू हो गया, और अबकी पहले गॉड में लिए लिए फिर खड़े, और अंत में अंशिका खुद उनके ऊपर चढ़ के लिए झड़े जब तो मुन्तजिर ही ऊपर थे
और अबकी दोनों बहुत देर तक पड़े रहे लेकिन तब तब तक फोन बजा, आधे घंटे में नीचे के मीटिंग के लिए बुलाया था
और एक बार फिर वो बाथरूम में लेकिन बोल के गयी, बस पन्दरह मिनट लगेगा मैं तैयार हो के आती हूँ
वो बाथरूम में और मुंतजिर अपने लैप्टॉप पे सारा डाटा अपलोड भी हो गया था और उनके सवालों का जवाब भी आ गया था।
और जो वो सोच रहे थे, वैसा ही था,
। रविवार की शाम को, इसी रविवार की शाम को यानी चार दिन बाद, वो कपल रात भर के लिए जा रहा था, और उनके साथ शायद एक और कपल होंग। वो लोग शाम को पांच बजे के आसपास और किसी भी हालात में छह बजे तक निकल जाएंगे।
२ जिस जगह के लिए वो जा रहे थे ऐ आई ने उस की भी जांच पड़ताल कर के उस का नक्शा, और सब डिटेल दे दिया था। यह रिसार्ट शर से करीब चालीस पचास किलोमीटर दूर, एक जंगल और छोटी पहाड़ियों के बीच था, रिसार्ट में तीन कमरे थे और किचेन और स्टाफ के नाम पर के लेडी कूक थी। यह एक प्राइवेट कम्पनी का था और अक्सर बड़े अधिकारियों की मस्ती के लिए इस्तेमाल होता था, क्योंकि वहां पूरी प्राइवेसी थी, एक छोटा सा स्वीमिंग पूल था और भी बाकी सभी सुद्विधाये थी।
३ फोन काल से भले ही संडे की रात की बात हुयी हो, लेकिन संडे की शाम से अगले ४८ घंटे तक के लिए बुक था, इसका मतलब की पूरे चांस है की वो लोग मंडे की रात भी वहीँ गुजारे।
४ बुकिंग सब्जेक्ट या ए की पत्नी कोमल ने रिसार्ट बुक किया है और नाम दो लोगो के है, कोमल + १ और सुजाता +१, सुजाता उन की सहेली है। उस रिसार्ट में कोई टेलीफोन कनेक्शन नहीं है, नहीं वो किसी मोबाइल टॉवर से कवर होता है, इसलिए किसी भी नेटवर्क से वो बाहर है
मुंतजिर को बात समझ में आ गयी।
यही सब बातें हमलावर को भी मिली होंगी और उसने भी यही फैसला लिया होगा और रविवार की रात को अमावस्या भी है
और जो जादू मंतर वो ए की रक्षा के लिए और उस से भी बढ़ के उस डेस्कटॉप के जरिये उस उस इनवेडर से चिपक के इन बार बार हो रहे हमलों के स्त्रोत का पता चलेगा और एम् का काम हो जायेगा।
लेकिन उसके लिए उसका ए के अड्डे तक कल शाम या रात तक पहुंचना जरूरी है इसके लिए आज रात या कल सुबह तक अगर बनारस पहुँच जाए तो फिर वहां से ७-८ घंटे में उस टाउनशिप में आसानी से, लेकिन बनारस के लिए कोई भी कूरियर २४ से ४८ घंटा लेगा,
और अब यह अगली परेशानी थी, एक डिवाइस डिजाइन करना जो घंटे भर में हो जाएगा, लेकिन उसे जल्दी से जल्दी बनारस पहुँचाना,
और तभी अंशिका तैयार हो के निकली और उस के टैब पे कम्पनी के मेसेज थे मीटिंग के बारे में
" स्साला, बहनचोद गलती लेकिन मेरी ही थी, और तेरी भी पहले क्यों नहीं मिले स्साले " मुंतजिर को दबोचती अंशिका बोली,
: " हुआ क्या यार " मुंतजिर ने पूछा,
" अरे यार, बम्बई केपटाउन करते करते मैं आजिज आ गयी थी, अभी मेरा दो दिन का ब्रेक भी था तो मैंने सोचा था की मीटिंग के बाद बचा खुचा खेल तेरे साथ आज रात को खेल लूंगी, अभी तो मुशायरा शुरू हुआ है तो बस मैंने सोचा ऐसी ही कोई मीटिंग होगी तो बस एक छोटा सा ब्रेक लेके हम लोग रात में मिलते, पर "
दो मिनट दोनों चुप रहे और फिर अंशिका ही बोली, " मैंने ही बोला था बनारस के लिए, बहुत दिन से गयी नहीं थी तो आज जब मैं तेरे पास रहना चाहती थी, स्सालो ने मेरी डुयटी बनारस के लिए लगा दी और दो दिन का जो रेस्ट यहाँ का था वो बनारस में कर दिया, आज शाम ९ बजे की एक फ्लाइट है , ११ बजे पहुंचेगी, उस की एयरहोस्टेस किसी लौंडे के साथ लगता है गायब हो गयी है, पर पहली बार मैं लिड करुँगी , पार स्साला आज का ही दिन "
" तो क्या हुआ दो दिन बाद मिलेंगे हम लोग यही, क्यों परेशान हो, पर मेरा एक काम कर सकती हो, बनारस का, " मुंतजिर बोले
" स्साले क्या वहां भी कोई माल फंसा रखा है उससे कुछ काम है " हसंते हुए अंशिका दूर हो गयी, पर मुन्तीजीर ने माला साफ़ कर दिया और तय हो गया की शाम पांच बजे तक मुन्तजिर वो पैकेट ला के दे देंगे, अगर मौका होगा तो एक क्विकी भी, साढ़े छह तक अंशिका एयरपोर्ट के लिए निकल जायेगी, हाँ बनारस से जैसे आएगी उसी दिन मिलेगी।
और अब एम् को जल्द मुन्तीजीर से महेंद्र पांडेय बनना था और शाम को एक बार फिर से मुंतजिर लेकिन ये बड़ा काम हो गया , एक तो बनारस का काम, दूसरे केपटाउन से कुरियर का रेगुलर काम,
शाम को वो पैकेट ले के आये, लेकिन अंशिका का मेसेज आ गया था, वो नीचे बार में ही मिलेगी, उस के साथ के बाकी लोग भी वही थे लेकिन एक अच्छी खबर भी उसने दी, बनारस में वो सिर्फ एक ही दिन रहेगी, परसों वापस, और उस के बाद दो दिन का ब्रेक है।
उस ट्राजन वायरस को ' जीरो प्वाइंट ' तक पहुँचाने का।
एक बार अगर वो ट्राजन उस कम्प्यूटर में लोड हो जाएगा और संडे की रात को जैसा उन्हें अंदाज है वो कंप्यूटर हैक हुआ तो उस के सहारे सोर्स तक पहुँचाना आसान हो जाएगा। उस कंप्यूटर में पक्का सेंसिटिव डाटा होंगे और वो सीधे वहीँ तक पहुंचेंगे जो कम्पनी सर्वयालेंस करवा रही है।
एकदम और हर करेक्टर के रंग अलग अलगWah kya bahrupia character lekar aai ho Komal ji.
बहुत बहुत शुक्रिया, हुज़ूर की जर्रानवाजी है, थोड़ा बहुत शहरे लखनऊ का असर है, आपको पसंद आया, मेरा नसीब।Wah Komal ji Aap to bade gajab ki Shayra bhi nikli. Bahut khoooooob.
क्या बात कही आपने, जबरदस्त, बहुत बहुत शुक्रिया।Wah kya gajab gajal gai hai Anshika ke sath.
Thanks so much, koshish meri yahi ki kahani reality ke aas paas hi raheKomal ji bahut hi action packed story bana di hai. Corporate world ki puri tasweer utaar di hai.
Thanks so much, I think for a story without incest, in this forum, even 40 Lakh views will be a good target. Thanks again.Great post Madam. Now the view count is 38+ lacs..by the time you complete this story with 25 more posts, it should comfortably cross 50 L. That would be a great achievement for you as well as your story!! Good Luck.
komaalrani
एकदम सही कहा आपने शेर की पूरी कीमत वसूली जायेगी,शेर की पूरी कीमत vasoolki जाएगी......





एकदम सही कहा आपने शेर की पूरी कीमत वसूली जायेगी,
जितने शेर सुनाये गए उतनी बार शेर गुफा ढूंढेगा, और ये बात अंशिका को भी मालूम है
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