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Adultery ठाकुर ज़ालिम और इच्छाधारी नाग

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Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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चैप्टर -2 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -20

सब कुछ शांत हो चूका था, जैसे कोई तूफान आ के गया हो.
ठाकुर साहेब कि सवारी विषरूप चल पड़ी थी, रंगा गिरफ्तार था, कामवती के गहने और इज़्ज़त दोनों लूटने से बच गई थी परन्तु इस बीच नागेंद्र ना जाने कहाँ गायब था वो ना होता तो कामवती कि कुंवारी खूबसूरत चिकनी चुत सबके सामने उघाडी हो गई होती.
कामवती ठाकुर और असलम के साथ उनकी गाड़ी मे बैठी थी.
डॉ. असलम :- अल्लाह का शुक्र है ठाकुर साहेब आज लूटने से बच गये वरना कोई अनहोनी हो जाती.
ठाकुर :- हाँ असलम देवता गण हम पे मेहरबान है, कल दरोगा वीरप्रताप को बुलावा भेजिएगा आखिर उनकी चालाकी और सजकता से ही हमारी पत्नी बच पाई है.
ऐसा कह वो कामवती कि तरफ देख मुस्कुरा देते है.
वही कामवती लालजोड़े मे आंख झुकाये,घुंघट मे सुंदरता छुपाये सोच रही थी उसे कुछ कुछ धुंधला नजर आ रहा था, लगता था जैसे ये सब पहले भी हुआ हो?
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वो नाग कौन था? मुझे उस से डर क्यों नहीं लग रहा था, जबकि कितना भयानक था वो?
कई सवाल कामवती के जहन मे कोंध रहे थे.
जिसका जवाब या तो नागेंद्र जनता था या फिर वक़्त.
सब कुछ शांत चल रहा था...


शांति तो रूपवती कि हवेली मे भी थी.
गांव घुड़पुर जहाँ वीरा अभी अभी रूपवती कि चुत और गांड को अपनी खुर्दरी जीभ से सहला रहा था, रूपवती जबरदस्त स्सखलन को प्राप्त कर वीरा के नीचे लेटी सांसे भर रही थी उसकी नजरों के सामने काला भयानक वीरा का लंड झूल रहा था.
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रूपवती कि नजर उसी लंड पे जमीं हुई थी इतना बड़ा लंड देख उसकी चुत कि खुजली बढ़ने लगी थी अभी अभी उसकी चुत ने बेतहाशा पानी बहाया था, काली चुत फिर रोने लगी.... जैसे कोई बच्चा अपनी पसंदीदा मिठाई के लिए रोता है आँखों से पानी बहाता है.
धीरे धीरे रूपवती अपने धड को ऊपर उठाती है, उसके स्तन आज़ाद थे, उसके उठने से हिल रहे थे जिनका बोझ उठाना ही मुश्किल था, रूपवती इन पहाड़ो को उठाये वीरा के लंड तक पहुंच गई थी, उसे छू के देखना था कि असली ही है या फिर कोई खिलौना, वो धीरे से अपना हाथ वीरा के बड़े लटके लंड पे रख देती है
वीरा इस मादक और कोमल छुआन से हिनहिना उठता है, हज़ारो साल बाढ़ उसके लंड पे किसी स्त्री का हाथ लगा था... हीहीननननननन....
रूपवती समझ जाती है कि वीरा भी यही चाहता है वो अपनी हथेली मे लंड को पकड़ने कि कोशिश करती है परन्तु घोड़े का लोड़ा इतना मोटा था कि मुट्ठी मे बंद करना मुश्किल था,
वो अपने हाथ से जितना पकड़ सकती थी उतना पकडे ही हाथ ऊपर ले जाने लगी, जब हाथ लंड के जड़ तक पहुंच गया तो उसके हथेली से दो बड़ी बड़ी गेंद कि आकृति कि कोई चीज टकराती है,
"ये क्या है?"
रूपवती जिज्ञासावंश सर नीचे कर के देखती है तो उसके तो होश ही फाकता हो जाते है, आंखे अपने कटोरे से निकलने को होती है... इतने बड़े टट्टे? हे भगवान वीरा के टट्टो मे कितना वीर्य होगा.
कोतुहल से भरी टट्टो पे अपने दोनों हाथ रख देती है जैसे जाँच रही हो कि कितना वीर्य है इनमे.
टट्टे सहलाये जाने से वीरा के पुरे बदन मे सनसनी मच जाती है, उसका लंड अति उत्तेजना मे सीधा खड़ा हो झटके मारने लगता है, रूपवती भी लंड को मचलता देख अपनी चुत सहला देती है आह्हः.... कैसी तड़प है ये, प्यास बुझ क्यों नहीं रही मेरी.
जितना पानी निकलता है उतना ही सहलाने का मन करता है चुत को.
अब रूपवती एक हाथ से चुत सहला रही थी और दूसरे हाथ से वीरा के बड़े टट्टे.
चुत सहलाये जाने से उसकी मादक मोटी काली गांड हिल रही थी, वीरा गर्दन पीछे किये रूपवती के खेल को देख रह था उसकी उत्तेजना कि कोई सीमा नहीं थी.
रूपवती वीरा के चारो पैरो के बीच अपनी मादक गांड को हिलाती बैठ जाती है, उसे लंड का स्वाद चाहिए था अब अपनी नाक को वीरा के लंड कि नोक पे रख देती है और जोर से सांस खिंचती है एक मादक खुशबु बदन मे भरती चली जाती है, इस मादक खुशबू का असर चुत के अंदरूनी हिस्सों पे हो रहा था.. गांड खुल के बाहर आ रही थी.
ये उत्तेजक मादक महक एक मजबूत लंड ही दे सकता था.
रूपवती जीभ से लंड के आगे के चोड़े हिस्से को छू लेती है.
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वीरा के लिए ये अहसास अद्भुत था, बरसो से सुखी बंजर भूमि पे पानी कि पहली बून्द थी.
ऊपर से रूपवती इस कदर हवस और मदकता मे खोई थी कि उसे सिर्फ लंड दिख रहा था बड़ा लंड.
अब इस लंड का मालिक इंसान है या कोई घोड़ा कोई फर्क नहीं पड़ता, प्यासा कुवा, नदी, झरना नहीं सिर्फ पानी देखता है.
रूपवती जितना हो सकता था उतना मुँह खोल लेती है और वीरा के लंड को एक हाथ से पकड़ मुँह पे टिका लेती है लंड धीरे धीरे मुँह मे सरकने लगता है.
रूपवाती पहली बार कोई लंड ले रही थी, अब उसमे ये सब कला तांत्रिक का वीर्य पीने के बाद खुद ही विकसित हो गई थी वैसे भी हवस मे डूबा इंसान अपने आप नये नये तरीके कि खोज कर ही लेता है.
रूपवती धीरे धीरे मुँह को आगे पीछे करने लगती है, उसका एक हाथ अभी भी वीरा के टट्टे सहला रहा था.
ये वीरा कि उतीजना को बड़ा रहे थे,वीरा को अपना लंड किसी गरम गीले लावे मे धस्ता महसूस हो रहा था,. वो आंनद मे हीनहिनाये जा रहा था, नीचे रूपवती बेसुध लंड चूसने मे व्यस्त थी उसके होंठो से रह रह के थूक लार कि शक्ल मे टपक रहा था, रूपवती थोड़ी हिम्मत दिखाती अपना मुँह लंड पे मार रही थी जैसे गन्ना बरसो बाद चूसने को मिला हो, मुँह मे लंड डाले जीभ से अगले हिस्से को कुरेद भी रही थी.... वीरा तो इतने सालो मे सम्भोग का सुख ही भूल गया था, उसकी सम्भोग कला को एक मादक काली हवस मे डूबी स्त्री जगा रही थी.
चूसते चूसते एक समय आया जब वीरा के लंड बिना किसी रोक टोक के गले तक उतर जा रहा था, जब गले से बाहर निकलता तो ढेर सारा थूक साथ ले आता वो थूक होंठो से गिरता स्तन को पूरी तरह भीगा चूका था, स्तन से होता चुत तक पहुंच रहा था.
जैसे कोई झरना स्तन रूपी पहाड़ से गिर के चुत, गांड रूपी खाई मे गिर रहा हो. रूपवती लगातार थूक और कामरस से भीगी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी अब भला ऊँगली लावा रोक सकती है, रूपवती उत्तेजना मे पागल हो गई थी उसे लंड चाहिए था अपनी चुत मे,
वो तुरंत खड़ी होती है और वीरा के मुँह के आगे दिवार पे हाथ रखे अपनी गांड वीरा के सामने खोल के खड़ी हो जाती है.
वीरा बरसो बाद किसी कामुक स्त्री से मिल रहा है वो समझ गया था कि दोनों कि प्यास सिर्फ इस गुफा मे घुसने से ही मिटेगी.
वीरा हिनहिनाता पीछे के दो पैरो पे खड़ा हो आगे के दो पैर सामने दिवार पे रूपवती के ऊपर टिका देता है.
उसका लंड अब गांड पे इधर उधर छटपटा रहा था, रूपवती एक हाथ पीछे ले जा के वीरा के लंड को पकड़ गांड के बीच स्थित काली गहरी खाई मे रख देती है,
वीरा के लंड का टोपा इतना बड़ा था कि उसके घेराव मे चुत और गांड का छेद एक साथ आ रहे थे.
रूपवती तो लंड को अपने दोनों छेदो पे एक साथ महसूस कर रही थी उसके आनंद कि कोई सीमा नहीं थी वो अपनी बड़ी गांड थोड़ा सा हिलाती है जैसे वीरा को बोल रही हो कि मै तैयार हूँ तुम आगे बढ़ो.
वीरा भी समझ जाता है और थोड़ा आगे बढ़ता है परन्तु छेद छोटे लंड बड़ा कैसे घुसता... वीरा का लंड फिसलता हुआ गांड के छेद को रगड़ता कमर पे जा लगता है,
अब मजा तो इस रगड़ाई मे भी था, लेकिन चुत रगड़ाई के लिए नहीं सम्भोग के लिए बनी होती है, मादक हवस से भरी स्त्री अपनी चुत मे कुछ भी समा सकती है.
वीरा वापस पीछे को आ के अपना लंड दरार मे डालता है, फिर आगे होने लगता है लंड वापस फिसलने ही वाला था कि रूपवती तुरंत हाथ पीछे ले जा के गांड के दोनों हिस्सों को को जोर लगा के खिंचती है.
आअह्ह्ह..... एक भयानक चींख गूंज जाती है वातावरण मे. आअह्ह्ह..... वीरा
वीरा के लंड का टोपा फचक से चुत फाड़ता समा गया था अंदर, चुत अत्यंत गीली थी उसके बावजूद रूपवती को लगा कि जैसे वो कुंवारी है आज उसकी चुत फटी है
देखा जाये तो बात सही भी थी, ठाकुर ज़ालिम का 3इंच का लंड क्या खाक खोल पाया होगा रूपवती कि चुत को.
दर्द बर्दाश्त के बाहर था परन्तु आज दर्द पे हवस भारी थी, मदकता सवार थी.
रूपवती दिवार का सहारा लिए सांसे दुरुस्त कर ही रही थी कि... एक जबरदस्त झटका और लगा.
आअह्ह्ह.... मेरी बच्चेदानी आह्हः.... वीरा,

वीरा को आज हज़ारो साल बाद चुत मिली थी वो सहन नहीं कर पाया था और बिना सोचे ही दूसरा झटका भी दे मारा... वीरा का लंड बच्चेदानी को चीर के सीधा अंदर ही प्रवेश कर गया था.
रूपवती कि चुत से खून छलछला उठा था.
आअह्ह्ह.... नहीं वीरा नहीं रुक जा....
उत्तेजना उतरने लगी थी रूपवती कि.
लेकिन आज वीरा नहीं मानने का था और ना ही माना.
धक्के मारने लगा एक के बाद एक... धका धक धका धक रूपवती बेहोशी कि हालत मे आंखे बंद किये दर्द से चीखे जा रही थी ...
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पीछे टप टप टप... करते वीरा के टट्टे रूपवती कि गांड पे पड़ रहे थे गांड थल थला रही थी, रूपवती कि हवस का केंद्र उसकी गांड ही थी,
गांड ले पड़ते टट्टो कि मार से वो होश मे आने लगी उसने नीचे झुक के देखा तो पाया कि लंड जड़ तक उसकी चुत मे जा रहा था, जब वीरा का लंड अंदर जाता तो नाभी तक महसूस होता, और जब वीरा लंड बाहर खिंचता तो लगता जैसे बच्चेदानी भी चुत के रास्ते बाहर आ जाएगी.
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ये सब एक अलग ही अहसास पैदा कर रहे थे रूपवती के बदन मे, उसका शरीर जल उठा, उत्तेजना उठने लगी
उसे इस सम्भोग मे आंनद आ रहा था सही मायनो मे आज उसका कोमर्या भंग हुआ था.
ऊपर से दो बॉल के आकर के टट्टे गांड पे किसी थप्पड़ कि तरह चटा चट पड़ रहे थे.

आह्हः.... वीरा शाबास वीरा ऐसे ही जोर से मार और जोर से.
वीरा हैरान था स्त्री कि ताकत पे कि जब चुत मे लेने पे आ जाये तो दुनिया के सम्पूर्ण लंड अपनी चुत मे डाल ले लेकिन उफ़ तक ना करे...
हिमनन.... हिनननन.... करता वीरा और दम लगा के पेलने लगा पच पच पच कि आवाज़ से हवेली गूंज रही थी...
वीरा और जोर से.. रूपवती इस कदर हवस मे पागल थी कि 15 इंच लंड पूरा उसकी चुत मे था फिर भी उसे और चाहिए था.
वीरा भी उत्तेजना जोश से पागल हो चूका था उसे रोकना खुद कि मौत को दावत देने के बराबर था.
वीरा जोर दार तरीके से गच से पूरा लंड रूपवती कि चुत मे डाल के रुक जाता है, रूपवती बहुत ही आश्चर्य के साथ पीछे देखती है कि रुक क्यों गया वीरा, परन्तु जैसे ही वो पीछे देखती है वीरा पिछली टांगो पे पूरा खड़ा होने लगता है, रूपवती जिसकी चुत मे 15 इंच का खुटा गड़ा हुआ था वो उसके लंड के साथ ही ऊपर उठती चली जाती है.
अब आलम ये था कि वीरा रूपवती को अपने लंड पे बिठाये सीधा खड़ा था,
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रूपवती तो इस तरह के आसन से दोहरी हो गई लंड जितना हो सकता था उतना अंदर तक चला गया, उसकी सांसे टंग गई.
सांस भरती ही कि वीरा ने एक धक्का मार दिया नीचे से.... फिर क्या एक के बाद एक धका धक धका धक... रूपवती को अपने लंड पे उछाले जा रहा था.
ऐसा आंनद ऐसी कामुकता रूपवती पे भारी पड़ रही थी.
उसकी चुत से खून और पानी का मिला जुला रस टपक टपक के जमीन पे गिर रहा था.
वीरा मोटी काली काया को अपने लंड पे उछाल रहा था ऐसा कारनामा और कोई कर ही नहीं सकता था.
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रूपवती के मजे का ठिकाना नहीं था... आह्हः... आह्हः.... वीरा करती अपने मोटे बड़े स्तनो को नोच रही थी, निप्पल मरोड़ रही थी.
नीचे धचा धच लंड चोट मारे जा रहा था,1घंटे तक घिसने के बाद वीरा का धैर्य जवाब देने लगा वो बेचैन होने लगा लगातार हिनहिना रहा था.... रूपवती भी पसीने पसीने हो चुकी थी स्तन रगड़ रगड़ के लाल कर दिए थे.
उसे गर्मी बर्दाश्त नहीं हो रही थी.... वो फट पड़ी
उसकी गांड से तेज़ हवा निकली फॉररर..... और चुत ने गर्म लावा उगलना शुरू कर लिया.
आह्हः.... वीरा वीरा मै गई... सफ़ेद रंग का गाड़ा पानी लंड को भिगोने लगा.
कामरस इतना गरम था कि वीरा भी सहन नहीं कर पाया.
और जोर से हिनहिनाते हुए.... बरसो पुराने वीर्य को निकालने लगा..
आअह्ह्ह....... ये क्या इस बार हिनहिनाया नहीं?
मोटे चिपचिपे गाढ़े वीर्य कि बौछार रूपवती कि चुत मे होने लगी, वीरा का वीर्य सीधा रूपवती कि बच्चेदानी मे ही भरने लगा आअह्ह्ह...।.... वीरा कितना गर्म है तेरा लग रहा है जैसे किसी ने मेरे पेट मे लावा भर दिया है.
वीर्य निकले ही जा रहा था, फच फच फच..... करता वीरा चिल्ला पड़ा आअह्ह्हह्ह्ह्ह..... काआममममवती.
ये क्या इंसानी आवाज़ मे कामवती नाम?
रूपवती कि बच्चेदानी पूरी तरह से वीर्य से भर चुकी थी... अपने उन्माद मे डूबी रूपवती ने वीरा के गले से निकली इंसानी आवाज़ को सुन लिया था..
वीरा अभी भी इन सब से अनजान अपने स्सखालन को महसूस कर रहा था, एक आखरी बार वीर्य कि धार वो रूपवती कि चुत मे छोड़ता है..
आअह्ह्ह.... मेरी कामवती आह्हः...
और नीचे जमीन मे धाराशयी हो जाता है उसका लंड अभी भी रूपवती कि बच्चेदानी मे ही फसा हुआ था.
आह्हः..... करता सांसे भर रहा था रूपवती का भी यही हाल था परन्तु वो वीरा के मुँह से इंसानी आवाज़ सुन के हैरान भी थी.
उसका पेट फूल के बाहर निकल आया उसमे वीरा का वीर्य भरा पड़ा था बाहर आने कि कोई जगह नहीं थी चुत ने लंड को बुरी तरह जकड़ा हुआ था..

वीरा धीरे से आंखे खोलता है तो सामने रूपवती को देख उसकी चुत मे समाया लंड देख उसके होश उड़ जाते है
उन्माद मे वो क्या बोल गया था, इतने सालो से जो राज छुपा के रखा था वो खुल गया था.
रूपवती :- वीरा ये तुम ही हो ना? और ये कामवती कौन है?
वीरा :- चुप चाप पड़ा रहता है.
रूपवती :- बोलो वीरा अब छुपाने का कोई फायदा नहीं मुझे पता है तुम इंसानी भाषा बोल सकते हो, लेकिन कैसे? कौन हो तुम? तुम तो मुझे मरणासन अवस्था मे जंगल मे मिले थे.
वीरा :-मालकिन...... आखिर वीरा बोल ही देता है.
मालिकिन मै वीरा ही हूँ आपने मेरा जीवन बचाया उसके लिये मे जिंदगी भर आपका कर्ज़ादार, वफादार रहूंगा.मुझे माफ़ कर दीजिये मैंने आपके साथ सम्भोग किया.
रूपवती :- वीरा इसमें कर्जदार जैसी कोई बात नहीं है, और तुमने सम्भोग नहीं किया मैंने किया मै हवस मे पागल हो गई थी कई सालो से तड़प रही थी इस आग मे.
तुमने तो मेरी सेवा कि. तुम मुझे मालकिन बोलते हो तो मेरी सेवा करना तो तुम्हारा फर्ज़ है. ऐसा कह रूपवती मुस्कुरा देती है.
अभी तक वीरा का लंड, चुत मे ही फसा पड़ा था.
वीरा लंड को निकालने के लिए बाहर खिंचता है रूपवती को लगता है जैसे बच्चेदानी भी बाहर ही चली आएगी.
रूपवती :- कोई बात नहीं वीरा इसे अंदर ही रहने दो हमें अच्छा लग रहा है तुम्हारा लंड.
लेकिन जल्द ही मेरी जिज्ञासा शांत करो वीरा, तुम बोल कैसे सकते हो? और ये कामवती कौन है? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?
अब वीरा सुनाने जा रहा है कहानी कामवती कि..
बने रहिये कथा जारी है 👍
Aaj ka update mast tha tumne vistar se ek scene ka varnan kiya maza aa gayachudai ka scene aaye to puara dikhaya karo
 

andypndy

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चैप्टर -2, नागवंश और घुड़वंश कि दुश्मनी अपडेट 21

घमासान चुदाई के बाद रूपवती और वीरा सुस्ता रहे थे, दोनों को सांसे दुरुस्त हो चुकी थी, परन्तु रूपवती कि चुत छोटी होने के कारण उसने अभी तक वीरा के लम्बे मोटे भयानक लंड को कस रखा था.
रूपवती :- इसे अंदर ही रहने दो, तुम अपने बारे मे बताओ?
वीरा :- ज़ी मालकिल बोल के आराम से करवट लिए लेटे रहता है रूपवती उसकी लंड पे फसी उसके आगे गांड पीछे किये लेट जाती है.
लंड बाहर निकालने का मन ही नहीं कर रहा था.
रूपवती :- और ये मुझे बार बार मालकिन मत बोलो, मुझे अच्छा नहीं लगता वीरा.
नाम से ही बोलो तुमने तो मेरी बरसो कि प्यास बुझाई है मुझपे तो तुम्हारा अधिकार है.
वीरा :- ज़ी मालकिन.... ना ना... मेरा मतलब रूपवती
आपका अहसान तो जिंदगी भर रहेगा मुझ पे, मै मर जाता तो कामवती को कैसे पाता ये जीवन आपका ही दिया हुआ है.
रूपवती :- अच्छा ठीक है आगे बोलो ये सब शुरू कहाँ से हुआ?
वीरा :- तो सुनिए रूपवती...

चरित्र परिचय
1. ठाकुर जलन सिंह
ठाकुर ज़ालिम सिंह का लकड़दादा
रोबदार मुछे, hight 6फ़ीट, चौड़ी छाती
सारे इलाके मे गजब कि दहशत लेकिन बिस्तर पे मच्छर कि तरह लंड वही खानदानी 3इंच का


2. सर्पटा
नागो का राजा, बहुत ज़ालिम क्रूर भयानक बेहद जहरीला फूँक भी दे तो इंसान फना हो जाये.
लंड 10 इंच काला मोटा जिसको चोदने पे आता उसे मौत देके ही मानता था..
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3. नागकुमार
सर्पटा का बड़ा बेटा, गोरा चिट्टा कोमल नाजुक किस्म का नाग.. लंड 7इंच

4. घुड़वती
घुड़पुर कि राजकुमारी, वीरा कि बहन
खूबसूरत जवान घोड़ी, मानवरूप मे
34 के गोरे स्तन, पतली कमरऊपर से नई नई जवानी
गांड बिल्कुल मजबूत बाहर को निकली.
जो देखे देखता रह जाये
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5. नागेंद्र और वीरा के बारे मे तो जानते ही है आप लोग
बाकि कहानी मे पता चलेगा.

आज से हज़ार साल पहले इस गांव घुड़ पुर मे हम घुड़- मानवो कि बस्ती हुआ करती थी, मै वीरा यहाँ के घुड़नरेश का एकलौता पुत्र हूँ, बड़े प्यार से माता ने मेरा नाम वीरा रखा था. मेरी एक बहन भी थी घुड़वती पुरे घुड़पुर ने सबसे सुंदर मनमोहनी. कोई देखता तो सिर्फ देखता ही रह जाता.
हम लोग समय के साथ जवान हो रहे रहे.. घुड़वती पे जवानी जरा जल्दी आई मुझे युद्ध कला और विद्या लेने के लिए आश्रम भेज दिया गया.
हमारा साम्राज्य बड़ा ही भव्य था,,दूर दूर तक फ़ैला, कही किसी मानव का हस्तक्षेप नहीं था.
हम घुड़ मानव कभी भी मानव रूप, घोड़ा रूप ले सकते थे या फिर सम्मलित रूप मे भी रहते थे.
आधे इंसान आधे घोड़े.
हमारे साम्राज्य से दूर एक और साम्राज्य था "इच्छाधारी नागो" का विष रूप, जहाँ आज के वक़्त आपका ससुराल है.

वो हमारे कट्टर शत्रु है, जहाँ मिल जाये उन्हें मौत के घाट उतार दे हम लोग.
गुस्से मे वीरा गुर्राता है...
गुर्राने से उसका लंड रूपवती कि चुत मे धक्का मार देता है.
रूपवती :- आह्हः.... वीरा
आराम से, दुश्मनी क्यों थी तुम्हारी उन नाग मानवो से?

वीरा :- वहाँ का राजा था सर्पटा ज़ालिम और कुर्र उसके दो बेटे थे बड़ा बेटा नाग कुमार और छोटा बेटा नागेंद्र.
एक बार घुड़वती महल से निकल मौज मस्ती के लिए बिना किसी को बताये जंगल कि और चली गई, नई नई जवान थी दिल सेर सपाटे के लिए मचलता ही था,
अपने घुड़रूप मे सरपट दौड़े चली जा रही थी हवा का झोंका बदन मे रोमांच पैदा कर रहा था.
घुड़वती बिल्कुल सफ़ेद, चमकती चमड़ी कि मालकिन थी.
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दौड़ते दौड़ते वो विष रूप के जंगलो मे पहुंच गई.
आहहहह.... क्या सुन्दर नजारा है हमने घुड़पुर मे ऐसी प्रकृति तो नहीं देखि यहाँ एक अजीब मादक गंध है जो सर चढ़ रही है.
तभी घुड़वती को एक झरना दीखता है,
वाह... क्या मनमोहक दृश्य है, कौनसी जगह है यह
जिज्ञासा वंश घुड़वती अपना घुड़रूप त्याग कर मानव रूप मे आ जाती है, कमाल कि खूबसूरत थी घुड़वती
अभी अभी जवानी फूटी थी परन्तु स्तन बड़े भारी और सुडोल थे लेश मात्र भी लचक नहीं थी.. सुन्दरचेहरा, बड़ी आंखे, सुराहीदार गर्दन.
सपाट चिकना गोरा पेट,पेट के बीच स्थित सुन्दर काली नाभी.
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घुड़वाती झरने को देख खुद को रोक नहीं पाती
और धीरे धीरे पानी मे उतरने लगती है....
 
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andypndy

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Sorry dosto aaj thodi thakan h isliye lamba update nahi de paya,
Aaj raat hi ghudvati ka kissa age bdega air kaamvati kahani me ayegi 👍
बने रहिये... कथा जारी है
 

andypndy

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Aaj ka update mast tha tumne vistar se ek scene ka varnan kiya maza aa gayachudai ka scene aaye to puara dikhaya karo
सब्र रखा करे मित्र इस कहानी मे सब कुछ है, सब मिलेगा बस जैसा कहानी कहेगी वैसा ही मिलेगा
 

Napster

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अती सुंदर और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी और धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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Bohot hi sundar or ramaniya update Bhai
 

Nevil singh

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घमासान चुदाई के बाद रूपवती और वीरा सुस्ता रहे थे, दोनों को सांसे दुरुस्त हो चुकी थी, परन्तु रूपवती कि चुत छोटी होने के कारण उसने अभी तक वीरा के लम्बे मोटे भयानक लंड को कस रखा था.
रूपवती :- इसे अंदर ही रहने दो, तुम अपने बारे मे बताओ?
वीरा :- ज़ी मालकिल बोल के आराम से करवट लिए लेटे रहता है रूपवती उसकी लंड पे फसी उसके आगे गांड पीछे किये लेट जाती है.
लंड बाहर निकालने का मन ही नहीं कर रहा था.
रूपवती :- और ये मुझे बार बार मालकिन मत बोलो, मुझे अच्छा नहीं लगता वीरा.
नाम से ही बोलो तुमने तो मेरी बरसो कि प्यास बुझाई है मुझपे तो तुम्हारा अधिकार है.
वीरा :- ज़ी मालकिन.... ना ना... मेरा मतलब रूपवती
आपका अहसान तो जिंदगी भर रहेगा मुझ पे, मै मर जाता तो कामवती को कैसे पाता ये जीवन आपका ही दिया हुआ है.
रूपवती :- अच्छा ठीक है आगे बोलो ये सब शुरू कहाँ से हुआ?
वीरा :- तो सुनिए रूपवती...

चरित्र परिचय
1. ठाकुर जलन सिंह
ठाकुर ज़ालिम सिंह का लकड़दादा
रोबदार मुछे, hight 6फ़ीट, चौड़ी छाती
सारे इलाके मे गजब कि दहशत लेकिन बिस्तर पे मच्छर कि तरह लंड वही खानदानी 3इंच का


2. सर्पटा
नागो का राजा, बहुत ज़ालिम क्रूर भयानक बेहद जहरीला फूँक भी दे तो इंसान फना हो जाये.
लंड 10 इंच काला मोटा जिसको चोदने पे आता उसे मौत देके ही मानता था..
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3. नागकुमार
सर्पटा का बड़ा बेटा, गोरा चिट्टा कोमल नाजुक किस्म का नाग.. लंड 7इंच

4. घुड़वती
घुड़पुर कि राजकुमारी, वीरा कि बहन
खूबसूरत जवान घोड़ी, मानवरूप मे
34 के गोरे स्तन, पतली कमरऊपर से नई नई जवानी
गांड बिल्कुल मजबूत बाहर को निकली.
जो देखे देखता रह जाये
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5. नागेंद्र और वीरा के बारे मे तो जानते ही है आप लोग
बाकि कहानी मे पता चलेगा.

आज से हज़ार साल पहले इस गांव घुड़ पुर मे हम घुड़- मानवो कि बस्ती हुआ करती थी, मै वीरा यहाँ के घुड़नरेश का एकलौता पुत्र हूँ, बड़े प्यार से माता ने मेरा नाम वीरा रखा था. मेरी एक बहन भी थी घुड़वती पुरे घुड़पुर ने सबसे सुंदर मनमोहनी. कोई देखता तो सिर्फ देखता ही रह जाता.
हम लोग समय के साथ जवान हो रहे रहे.. घुड़वती पे जवानी जरा जल्दी आई मुझे युद्ध कला और विद्या लेने के लिए आश्रम भेज दिया गया.
हमारा साम्राज्य बड़ा ही भव्य था,,दूर दूर तक फ़ैला, कही किसी मानव का हस्तक्षेप नहीं था.
हम घुड़ मानव कभी भी मानव रूप, घोड़ा रूप ले सकते थे या फिर सम्मलित रूप मे भी रहते थे.
आधे इंसान आधे घोड़े.
हमारे साम्राज्य से दूर एक और साम्राज्य था "इच्छाधारी नागो" का विष रूप, जहाँ आज के वक़्त आपका ससुराल है.

वो हमारे कट्टर शत्रु है, जहाँ मिल जाये उन्हें मौत के घाट उतार दे हम लोग.
गुस्से मे वीरा गुर्राता है...
गुर्राने से उसका लंड रूपवती कि चुत मे धक्का मार देता है.
रूपवती :- आह्हः.... वीरा
आराम से, दुश्मनी क्यों थी तुम्हारी उन नाग मानवो से?

वीरा :- वहाँ का राजा था सर्पटा ज़ालिम और कुर्र उसके दो बेटे थे बड़ा बेटा नाग कुमार और छोटा बेटा नागेंद्र.
एक बार घुड़वती महल से निकल मौज मस्ती के लिए बिना किसी को बताये जंगल कि और चली गई, नई नई जवान थी दिल सेर सपाटे के लिए मचलता ही था,
अपने घुड़रूप मे सरपट दौड़े चली जा रही थी हवा का झोंका बदन मे रोमांच पैदा कर रहा था.
घुड़वती बिल्कुल सफ़ेद, चमकती चमड़ी कि मालकिन थी.
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दौड़ते दौड़ते वो विष रूप के जंगलो मे पहुंच गई.
आहहहह.... क्या सुन्दर नजारा है हमने घुड़पुर मे ऐसी प्रकृति तो नहीं देखि यहाँ एक अजीब मादक गंध है जो सर चढ़ रही है.
तभी घुड़वती को एक झरना दीखता है,
वाह... क्या मनमोहक दृश्य है, कौनसी जगह है यह
जिज्ञासा वंश घुड़वती अपना घुड़रूप त्याग कर मानव रूप मे आ जाती है, कमाल कि खूबसूरत थी घुड़वती
अभी अभी जवानी फूटी थी परन्तु स्तन बड़े भारी और सुडोल थे लेश मात्र भी लचक नहीं थी.. सुन्दरचेहरा, बड़ी आंखे, सुराहीदार गर्दन.
सपाट चिकना गोरा पेट,पेट के बीच स्थित सुन्दर काली नाभी.
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घुड़वाती झरने को देख खुद को रोक नहीं पाती
और धीरे धीरे पानी मे उतरने लगती है....
Laajwaab update dost
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Bahut hi behtarin kahani hai….
 
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