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Horror दहशत

Mr. Unique

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Dosto ek aur kahani post karne ja rha hu...ye kahani bhi meri nahi hai kisi aur writer ki hai.

Maine vaise to search kar liya hai mujhe ye kahani iss forum par nahi mili hai isliye maine socha ki post kar deta hu..phir bhi agar kisi ko pahle se pata ho ki ye story bhi yaha posted hai to jaldi se mujhe reply kar dena.


Original Writer - Priyanshi Jain
 
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king cobra

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Dosto ek aur kahani post karne ja rha hu...ye kahani bhi meri nahi hai kisi aur writer ki hai.

Maine vaise to search kar liya hai mujhe ye kahani iss forum par nahi mili hai isliye maine socha ki post kar deta hu..phir bhi agar kisi ko pahle se pata ho ki ye story bhi yaha posted hai to jaldi se mujhe reply kar dena.


Original Writer - Priyanshi Jain
story post karne se pahle kisi staaf se punch lo bhai warna is par bhi wo tala maar dengen aur tumse punchegen bhi noi
 

Mr. Unique

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#1-



घर के मुख्य दरवाज़े पर ‘ठक ठक ठक ठक’ की आवाज़ हुई ... और इसी के साथ आवाज़ आया....




“हाँ.....



मैडम जी.... दूध ले लीजिए...!!”



अभी ये आवाज़ ठीक से ख़त्म हुई भी नहीं कि घर के ऊपर तल्ले से एक जनानी की खनकती सी आवाज़ गूँज उठी,




“गुड्डू... ए गुड्डू... देख बेटा ... दूधवाला आया है.. जा के दूध ले ले ज़रा...” लेकिन गुड्डू की ओर से कोई आवाज़ नहीं आया...



जब और दो तीन बार आवाज़ देने के बाद भी गुड्डू ने कोई उत्तर नहीं दिया तब उसी जनानी की आवाज़ गूँजी... झुँझलाहट भरी, “ओफ्फ़.. इस लड़के को तो सिर्फ़ खाना और सोना है... और सोना भी ऐसा कि चिल्लाते रह जाओ .... या फ़िर, बगल से रेलगाड़ी ही क्यों न गुज़रे... मजाल इसके कानों में जूँ तक भी रेंग जाए.... |”



इसके एक मिनट बाद ही कमरे से वही खनकती आवाज़ की मालकिन निकली... सुचित्रा...



सुचित्रा चटर्जी नाम है इनका... गौर और गेहूँअन के बीच की वर्ण की है ... सुंदर गोल मुख... भरा बदन ... धनुषाकार भौहें और उतने ही सुंदर बड़ी आँखें ... दोनों हाथों में पाँच पाँच लाल रंग की मोटी चूड़ियाँ जिन पर सोने की अति सुंदर नक्काशी की हुई हैं ... |



सीढ़ियों पर से जल्दी उतरती हुई नीचे सीधे रसोई घर में घुसी और एक बड़ा सा बर्तन लेकर तेज़ कदमों से चलते हुए घर के मुख्य दरवाज़े की ओर बढ़ी... दरवाज़ा खोली...और, बर्तन आगे बढ़ाते हुए बोली,



“लीजिए भैया... जल्दी भर दीजिए... मुझे देर हो रही है.”



दूध वाला बर्तन लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए एक नज़र सुचित्रा की ओर डालता है ... और ऐसा करते ही उसके हाथ और आँखें दोनों जम जाती हैं..


सुचित्रा एक तो है ही रूपवती ... और उसपे भी इस समय दूधवाले के सामने ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी है.उन्नत उभारों के कारण ब्लाउज में बने सुंदर उठाव ध्यान उसका खींच ही रहे हैं...


गोपाल ने सुचित्रा को देखा तो है कई बार... पर कभी इस तरह... ऐसे कपड़ों में नहीं देखा. गोपाल को यूँ अपनी ओर अपलक आश्चर्य और एक अव्यक्त आनंद से देखता हुआ देखी तो सुचित्रा का भी ध्यान अपनी ओर गया .... और खुद की अवस्था का बोध जैसे ही हुआ; तो हड़बड़ी के कारण हुई अपनी इस नादान गलती से वह बुरी तरह अफ़सोस करते हुए लगभग उछल पड़ी..खुद को जल्दी से दरवाज़े के पीछे करती हुई आँखें बड़ी बड़ी करके बोली,



“ए चल... जल्दी कर... कहा न मुझे देर हो रही है.”


गोपाल मुस्कराया... बर्तन लिया और दूध भर कर वापस सुचित्रा की ओर बढ़ाया.. पर जानबूझ कर इतनी दूरी रखा कि सुचित्रा को बर्तन लेने के लिए हाथ तनिक और बढ़ाना पड़े ... अब चाहे इस क्रम में उसे थोड़ा झुक कर आगे बढ़ना पड़े या फ़िर कुछ और करना पड़े.


गोपाल की इस करतूत को सुचित्रा समझ नहीं पाई. एक तो उसे देर हो रही थी और दूजे, जल्दबाजी में ऐसे अर्धनग्न अवस्था में एक पराए लड़के के सामने खड़े रहते हुए शर्म से ज़मीन में गड़ी जा रही थी.



गोपाल को ठीक से हाथ आगे न बढ़ा कर देते हुए देख कर सुचित्रा झुँझलाते हुए अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ाई.. पर बर्तन अभी भी कुछ इंच दूर है.. वो गोपाल को कुछ बोले उससे पहले ही गोपाल बोल पड़ा,



“जल्दी कीजिए मालकिन... मेरे को अभी दस जगह और जाना है.”जो बात वो गोपाल को फ़िर से बोलना चाह रही थी; वही बात गोपाल ने उसे कह दी.. कुछ और सोच समझ न पाई वो..



दरवाज़े के पीछे से थोड़ा आगे आई... एक कदम आगे बढ़ाई, थोड़ा सामने की ओर झुकी और हाथ बढ़ाकर बर्तन पकड़ ली. पर तुरंत ही बर्तन को ले न सकी क्योंकि गोपाल ने छोड़ा ही नहीं... वो फ़िर से आँखें बड़ी कर घोर अविश्वास से सुचित्रा की ओर देखने लगा था.


सुचित्रा की स्त्री सुलभ प्रवृति ने तुरंत ही ताड़ लिया कि गोपाल क्या देख रहा है. गोपाल को डाँटने के लिए मुँह खोली... पर एकदम से कुछ बोल न पाई. उसका कामातुर स्त्री - मन इस दृश्य का ... एक मौन प्रशंसा का आनंद लेने के लिए व्याकुल हो उठा. जवानी में तो बहुत देखे और सुने हैं... पर अब उम्र के इस पड़ाव पर उसकी देहयष्टि किसी पर क्या प्रभाव डाल सकते हैं और कोई प्रभाव डाल भी सकते हैं या नहीं इसी बात को जानने की एक उत्कंठा घर कर गई उसके मन में.



करीब दो मिनट तक ऐसे ही खड़ी रही वह.. केवल ब्लाउज पेटीकोट में... आगे की ओर झुकी हुई... गोपाल की लालसा युक्त तीव्र दृष्टि के तीरों के चुभन अपने वक्षों पर साफ़ महसूस करने लगी और साथ ही उसके खुद के झुके होने के कारण अपने ब्लाउज कप्स पर पड़ते दबाव का भी स्पष्ट अनुभव होने लगा उसे.



इधर गोपाल की भी हालत ख़राब होती जा रही थी. गाँव में बहुत सी छोरियों को देखा है उसने; और सुंदर भाभियों को भी. उनमें से एक है ये सुचित्रा मुख़र्जी.




दूध पहुँचाने के सिलसिले में कई बार सुचित्रा के घर आता जाता रहा है और इसी वजह कई बार भेंट भी हुई है उसकी सुचित्रा से, कई बार बातें भी हुईं, और बातों के दौरान ही कई बार गोपाल ने अच्छे से सुचित्रा को ताड़ा भी; पर साड़ी से अच्छे से ढके होने के कारण उसकी उभार एवं चर्बीयुक्त सुगठित देह के ऐसे कटाव को कभी समझ न सका था. हमेशा अच्छे कपड़ों में रहने वाली सुचित्रा दिखने में हमेशा से ही प्यारी और सुसंस्कृत लगी है उसे; पर वास्तव में वह प्यारी होने के साथ साथ इतनी कामुक हो सकती है ये गोपाल ने कभी नहीं सोचा था |



और फ़िलहाल तो उसकी नज़रें निर्बाध टिकी हुई थी ब्लाउज कप्स से झाँकते सुचित्रा के दूधिया स्तनों के ऊपरी अंशों पर एवं झुके होने के कारण गहरी हो चुकी उस मस्त कर देने वाले क्लीवेज और क्लीवेज के ठीक सामने, गले से लटकता पानी चढ़ा सोने की चेन पर जो कदाचित उसका मंगलसूत्र भी है.



सुचित्रा ने हाथ से बर्तन को ज़रा सा झटका दिया और तब जा कर गोपाल की तंद्रा टूटी. वह बेचारा चोरी पकड़े जाने के डर से शरमा गया. आँखें नीची कर के जल्दी से अपने कैन को बंद किया और झट से उठ गया.



सुचित्रा भी अब तक दुबारा दरवाज़े के पीछे आ गयी थी.


गोपाल अपने दूध के बड़े से कैन को उठा कर जाने के लिए आगे बढ़ा ही था कि सुचित्रा बोली,



“सुनो, कल भी लगभग इसी समय आना... पर थोड़ा जल्दी करना.” गोपाल ने सुचित्रा की ओर देखा नहीं पर सहमति में सिर हिलाया.



सुचित्रा मुस्करा पड़ी.गोपाल तब तक दो कदम आगे बढ़ चुका था.. पर नज़रें उसकी तिरछी ही थीं... सुचित्रा के उस अनुपम रूप को जाते जाते अंतिम बार अपने आँखों में कैद कर लेना चाहता था. और इसलिए सुचित्रा जब मुस्कराई तो वह नज़ारा भी गोपाल की आँखों कैद हो गई.



‘उफ्फ्फ़ क्या मुस्कान है... क्या मुस्कराती है यार! एक तो ऐसी अवस्था में, ऊपर से ऐसी कातिल मुस्कान...’



गोपाल पूरे रास्ते सुचित्रा के बारे में सोचता ही रहा. और सिर्फ़ रास्ता ही क्या, वह पूरा दिन सुचित्रा के बारे में सोचते हुए बीता दिया और रात में सुचित्रा के उस अनुपम सुगठित देह के बारे में सोच सोच कर स्वयं को तीन बार संतुष्ट करके सो गया.
 
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Mr. Unique

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Jaldi se reply karke bataiye ki ye story pahle se posted hai ya nahi...agar posted nahi hai tabhi mai isko aage badane waala hu.

Thanks.
 

Mr. Unique

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story post karne se pahle kisi staaf se punch lo bhai warna is par bhi wo tala maar dengen aur tumse punchegen bhi noi
Pucha tha bhai story suru karne se pahle lekin jab kisi ka jawab hi nahi aaya to maine start kar diya...

Vaise pichli story par maine khud ne taala lagvaya tha.
 
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