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मैं आज जिस दास्तां को कलमबंद कर रहा हूं, वो एक मोहतरमा की जिंदगी का एक हिस्सा है। मेरी उस मोहतरमा से मुलाकात, ऑनलाइन, एक ज़नाये मेहराम (इंसेस्ट) साइट के प्राइवेट रूम में हुई थी। वो करीब 50 साल की बड़ी सुलझी हुई औरत थी, जो फातिमा (यकीनन सही नाम नही होगा) के नाम से वहां थी और वो मुझसे इंसेस्ट के मोजू पर तामुल के साथ बात करती थी। मेरी उससे ऑनलाइन कई बार बात हुई और इससे बात करते हुए मुझे यह इदराक हो रहा था जैसे की वो कुछ और भी कहना या बताना चाहती है लेकिन हिचकिचा रही है। ऐसे ही एक मौके पर, वो कुछ बेधड़क हो गई और उसने जो अपनी दास्तां बताई, उसने मुझे न सिर्फ चौंका दिया बल्कि बेचैन भी कर दिया। मैं अब यहां, उसी ने जो कुछ बताया था, उसी को यहां बयां कर रहा हूं। उसकी दास्तां में जो किरदार और उनके बीच रिश्ते है, वो वही है जिसका फातिमा ने इकरार किया था। मैं फातिमा की दास्तां जो बयां कर रहा हूं उसमे सिर्फ किरदारों के बीच हुई गुफ्तगू के कुछ अल्फाजों में, मेरी अपनी समझ और जिंदगी से मिला तजुर्बा शामिल है।
फातिमा, पाकिस्तान के मियावली शहर के चकराला के पास एक गांव की रहने वाली थी। उसकी मां का उस समय ही इंतकाल हो गया था, जब वह कच्ची उम्र की थी। उसके कोई भाई बहन नही थे इसलिए फातिमा अपने अब्बू, इरशाद मतीन की बड़ी दुलारी बिटिया थी। इरशाद, उन शाइस्ता लोगो में से थे जिन्हे छोटी बच्ची के लिए नई सौतेली मां लाना काबुल न था और तमाम दबाव के बाद भी कभी भी दूसरा निकाह नही किया था। एक ही औलाद होने के कारण, फातिमा छोटी उम्र से ही अपने अब्बा के साथ सोती थी। इरशाद गांव में एक दूध की कम्पनी के डिपो इंचार्ज और एक बेहद शरीफ शख्स थे, अपनी बेटी फातिमा, जो अब दसवें दर्जे में पढ़ रही थी, उससे बहुत प्यार करते थे।
जवान हो रही अपनी बेटी को लेकर उन्हें कभी भी कोई बुरा ख्याल नहीं था, सब ठीक से ही चल रहा था। इरशाद बेटियों को पढ़ाने के हामी थे और इसीलिए फातिमा अपने गांव की लड़कियों के साथ पास तहसील के अच्छे स्कूल में पढ़ने जाया करती थी। वो स्कूल से जब लौटती तो घर के काम निपटाती और अब तो वो अपने अब्बू से ही खाना पकाना सीखने में लगी हुई थी। जब वो छोटी थी, तब से ही वो घर के सभी काम अच्छी तरह से करना सीख गई थी। अपनी मां के इंतकाल के बाद, फातिमा अपने घर की मानो मालकिन बन और अपने अब्बू का खूब ख्याल रखती थी।
उसकी जिंदगी और घर सब इत्मीनान से चल रहा था कि एक वाक्यें ने फातिमा की जिंदगी का रुख ही मोड दिया। हुआ ये की एक शाम को, स्कूल से लौट रही लड़कियों ने फातिमा के बारे में कुछ अनाप शनाप बका, जिसे गांव के दूसरे लोगों ने सुन लिया। वो बात एक कान से दूसरे कान होते हुए फातिमा के अब्बू के कानों तक पहुंच गई। बात यह थी कि स्कूल के किसी एक लड़की ने स्कूल में दीनी इल्म देने वाले मौलवी मकसूद, जो करीब 30 साल के थे, उसको फातिमा के साथ अकेले देख लिया था। उससे फातिमा और उस मौलवी, जो की बड़ा दीनी शख्स था, को लेकर लड़किया कानाफूसी करने लगी और यही बात फातिमा के अब्बू, इरशाद तक पहुंच गई थी।
फातिमा, गांव की कादामत पसंद माहौल में भी अब्बू की आजाद ख्याली के साए में परवरिश पाई हुई, खुले रंग की एक खूबसूरत लड़की थी जिसे अल्लाह ताला ने नूरानी जिस्म भी बक्शा था। मियावली, पाकिस्तान के सदूर छोटे से गाँव में फातिमा जैसे कीचड़ में शादाब हुआ एक कमल थी। इस कानाफूसी के बाद गांव के हर गबरू जवां होते हुए मर्दों की नज़र, जवान होती फातिमा पर पड़ने लगी थी और फातिमा के अब्बू को इस बात का इल्म होने लगा था।
फातिमा के अब्बू को अपनी बेटी पर बहुत यकीन था, इसलिए उसे लोगो की कानाफूसी पर यकीन नही हो रहा था। उसकी फूल से बच्ची, ऐसा कुछ करेगी, इरशाद को एतबार नही हो रहा था। कई दिनों की उलझन के बाद आखिर एक दिन जब वो शाम को घर पहुंचे तो फातिमा के अब्बू ने बहुत झिझकते हुए उसको अपने पास, प्यार से पूछने के लिए बुलाया। फातिमा अपने अब्बू के बुलाने पर, अब्बू के पास आई, तो उसने देखा उसके अब्बू कुछ परेशान से है। दरअसल लोगो से अब्बू ने खुद सुना था की एक मौलवी के साथ फातिमा अकेली थी तो उन्हें इस बात का इनकान था की किस लिए फातिमा के साथ मौलवी अकेला रहा होगा और इस तसव्वुर में वे खुद को फातिमा को घूर के देखने से नही रोक पाराहे थे।
फातिमा के पहुंचने के बाद, उसके अब्बू ने ध्यान से उसको देखा तो उन्हें एहसास किया कि बिटिया फातिमा बड़ी हो गई है। अब्बू ने फातिमा को जब गौर से देखा तो देखते ही देखते, उसके अब्बू का किरदार, एक मर्द की शख्सियत से दब गया। उसे सामने खड़ी उसकी बिटिया, आदम की हव्वा दिखने लगी जिसकी चूचियां और चूतड़ों के गोलें, भारभराये और जिस्म गुले गुलजार हो रक्खा था।
इरशाद को शुरू से ही आदत रही थी की जब भी उसको अपनी बेटी फातिमा पर बहुत लाड आता था तो उसे अपनी गोद में बैठा लेते थे और यही आदत उसकी अभी भी, जबकि फातिमा एक छोटी बच्ची से जवां हो रही लड़की बन चुकी थी, बनी हुई थी। जब फातिमा उसके सामने आई तो उसके अब्बू ने उसे बुलाकर अपने गोद में बिठा लिया।
अब्बू ने उसके कंधो को सहलाते हुए प्यार से पूछा- बिटिया यह सब बातें जो तेरे बारे में हो रही हैं, क्या सच हैं?
फातिमा सहमी हुई बोली- कौन सी बातें अब्बू?
अब्बू जब फातिमा के कंधो को सहलाते हुए उससे पूछ रहे थे तब उसे महसूस हुआ कि फातिमा की जांघों के बीच उनका लंड खड़ा हो रहा है। अपनी बेटी के जिस्म की तपिश से जिंदा हो रहे लंड ने अब्बू को हिला दिया।
अब्बू ने जब गोदी में बैठी अपनी बेटी फातिमा के जिस्म से बेदार हुए, लम्हा लम्हा उरूज पाते अपने लंड को अपनी पतलून के अंदर सीधा करने की कोशिश की तो उनके हाथ फातिमा की जांघों को छू गए और उन्हें लगा जैसे सारा मंजर ही ठहर गया है। उधर फातिमा को यह महसूस हुआ की उसके अब्बू का हाथ, हटने की जगह, अब उसकी जांघो को ही सहला रहे है। फातिमा को अब अच्छी तरह से पता चल गया था कि उसके अब्बू, उसके साथ क्या कर रहे है। वो अब्बू के हाथो की हरकत पर, सर झुकाए अपने होंठों को दांतों में दबाए शर्म से लबरेज हो गई।
अब्बू ने फिर उससे बड़े प्यार से पूछा- बोल फातिमा बिटिया, मैं तेरे बारे में क्या बातें सुन रहा हूँ?
फातिमा ने मासूम बनते हुए कहा - क्या बातें अब्बू, क्या कह रहे हो आप? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है?
अब्बू, फातिमा की आवाज में शरारत की झलक पाकर थोड़ा बहक गए और उन्होंने अपने हाथों को हल्के से फातिमा की जांघों के ऊपर फेरा और उसकी स्कर्ट के नीचे अपना हाथ डालने की लिए तड़प गए। मगर उनकी हिम्मत नही हुई क्योंकि अभी तक उनके अंदर के अब्बू के किरदार पर मर्द का किरदार पूरी तरह हावी नहीं हुआ था। अब्बू ने अपने को रोकते हुए फातिमा से कहा- देख, मुझे अच्छी तरह से पता है कि तू खूब समझ रही है कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं। ज्यादा भोली न बन। मुझसे शरमाने के बजाए, मेरी प्यारी बिटिया को मुझ से खुल कर सारी बातें बता देनी चाहिए।
फातिमा ने बचपना सा किया और झट से अपने अब्बू की गोद से उतर कर रसोई की तरफ, उसको चाय बनाना है, कहते हुए चली गई।
अब्बू को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वो कैसे उससे उस बारे में बात करे। वो फातिमा के पीछे रसोई तक गए और दरवाज़े पर खड़े होकर, यह सोचने लगे कि क्या उसकी बेटी उस मौलवी से चुदवाती है? इस ख्याल से की मौलवी मकसूद शायद फातिमा को चोद रहा है, अब्बू डगमगा गए और वो अपनी बेटी को हसरतों से देखने लगे।
फातिमा ने जब नज़र तिरछी करके देखा तो उसने देखा की उसके अब्बू उसको दरवाज़े के पास खड़े होकर, उसे घूर रहे है। उस वक़्त वह ब्लाउज और स्कर्ट में थी, जैसे हमेशा से घर पर पहना करती रही थी। उसके अब्बू ने गौर से उसकी चूचियों पर अपनी नज़र दौड़ाईं और फिर उन्होंने अपनी वासना से बोझल नज़रों को फातिमा के चूतड़ों पर टिका दिया। फिर जब एक नफस परस्त बाप की अपनी बेटी फातिमा की गोरी गोरी उभरी हुई जांघों पर नज़र पड़ी तो वो अपने होंठो पर जीभ फेरते हुए, अपने खड़े हो गए लंड को अपनी पतलून में सीधा करने में लग गए।
फातिमा ने जब अपने अब्बू को अपने लंड को पतलून में सीधा करते हुए देखा तो उसने होंठों को दांतों में दबाते हुए अपनी नजरें नीचे कर लीं। अब्बू जब उसे घूर रहे थे तब फातिमा पीठ किए किचन के टेबल के पास खड़ी थी। उसे वहां खड़ी देख, अब्बू से नही रहा गया और वो धीरे धीरे फातिमा के पास पहुँच कर, अपनी बांहों को पीछे से ही, फातिमा के कंधों पर डालते हुए उसके आगे रख दिया। फिर अपने जिस्म को उसके पीछे के जिस्म से चिपकाते हुए, अपने गालों को फातिमा के गालों से रगड़ते हुए कहा- तुम बिल्कुल अपनी अम्मी की तरह दिख रही हो बिटिया। जब तेरी मां जवान थी तो बिल्कुल ऐसी ही दिखती थी। आज उसकी याद आ गयी।
अब्बू जब यह कह रहे थे तब फातिमा ने खूब अच्छी तरह से महसूस किया कि उसके अब्बू का लंड उसके चूतड़ों पर दब रहा है। तभी उसके अब्बू ने उसके चूतड़ों पर हल्के से अपने लंड से रगड़ दिया जिसे फातिमा ने अपनी गांड पर खूब अच्छी तरह से महसूस किया।
जब से उसकी अम्मी का इंतकाल हुआ था, यह पहली बार था, जब उसके अब्बू उसके साथ ऐसा पेश आ रहे थे, वर्ना हमेशा से उसके अब्बू उसको एक छोटी बच्ची की नज़र से से ही देखते रहे थे।
अपनी अम्मी के इंतकाल के बाद से ही वो रात को अपने अब्बू के साथ सोती थी, मगर कभी भी उसके अब्बू ने उसको बुरी नज़र से नहीं देखा था। अब फातिमा को समझ में आ रहा था कि उसके बचपन की रूखसती के बाद उसकी चढ़ती जवानी, उसके अब्बू को भी गरम कर रही है। फातिमा को यह भी बिल्कुल पता हो चला था कि उस मौलवी से रिश्ते वाली बात को लेकर, उसके अब्बू उसको इन बदली नज़रों से देख रहे है। मगर फातिमा को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कुछ तो उम्र का तक़ाज़ा था और कुछ जिस्म की गर्मी भी थी। वैसे भी उसका जवान जिस्म, मर्दों को खूब उकसाती तो है ही, मगर उसने ये कभी नहीं सोचा था कि खुद उसके अब्बू भी उन मर्दों में से एक हो जायेंगे।
अब्बू ने फातिमा को वैसे ही पीछे से जकड़े हुए कहा- तू अचानक से कितनी लम्बी हो गयी है, ज़रा देखूँ तो, तेरा कद कहाँ तक पहुँचता है? क्या मेरे बराबर की हो गई है तू?
अब्बू ने फातिमा को अपने तरफ मोड़ते हुए उसको अपने सीने से लगाकर उसका कद देखना चाहा, तो फातिमा की उभरती चूचियां बिल्कुल अपने अब्बू के पेट से रगड़ खाने लगी जिससे फातिमा को खुद हैरानी के साथ, एक शोख सा मजा भी आ रहा था।
अब्बू ने उसको अपने से सटाते हुए कहा- देख तो तेरा सर मेरे बिल्कुल कंधों के ऊपर आ गया है, अभी कुछ दिन पहले तो तू मेरे छाती तक थी, अब तक़रीबन मेरे जितना ऊंची हो गयी है। इतनी जल्दी तू अचानक कैसे बढ़ गयी बिटिया रानी? हम्म तेरा जिस्म भी कितना बदल गया। हर रोज़ मेरे सामने ही तो रहती है तू, मगर मुझको क्यों नहीं दिखा?
फातिमा ने मुस्काते हुए अपने अब्बू की कमर के दोनों तरफ अपने बाँहों को लपेटे हुए जवाब दिया- ओफ्फो अब्बू! लड़कियां जल्दी बड़ी होती हैं, क्या ये आपको मालूम नहीं है?
यह कहते वक़्त फातिमा ने नटखट अंदाज में अपने दोनों पैरों को ज़मीन पर पटका और अब्बू ने उसको ज़ोर से अपने बांहों में जकड़ कर और उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके गालों पर चुंबन दे दिया।
इस बार फातिमा ने अपने अब्बू का लंड अपने पेट के थोड़ा नीचे चूत के नज़दीक महसूस किया। वह अब बहुत मोटा और तगड़ा रगड़ता हुआ महसूस हो रहा था। अपनी चूत जैसी कोमल जगह पर अपने अब्बू का लंड का अहसास पा कर फातिमा ने आँख मूँद लीं और उसने अपने अब्बू को ज़ोर से बाँहों में जकड़ लिया।
फातिमा के अब्बू की समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे शुरूआत करे। उसको डर भी था कि कहीं फातिमा नाराज़ न हो जाए और उससे बात करना छोड़ दे या पुलिस को खबर कर दे या फिर यह फातिमा को कही जारही बाते अफवाह हो और वह अपने स्कूल में कह दे? गांव के मौलवी से कह दे? यह सब सोच सोच कर वह कुछ घबरा रहे थे। मगर तब भी वो फातिमा को अब छोड़ना नहीं चाहते थे। उसके लिए फातिमा अब एक बीवी से कम नहीं लग रही थी और वह सच में उसकी बीवी की तरह दिख रही थी। फातिमा उम्र में छोटी जरूर थी, मगर उसने बिल्कुल अपनी मां का रूप धारण कर लिया था।
इरशाद ने तमाम् ख्याल करने के बाद फातिमा से कहा- चल अगर तुम अभी मौलवी वाली बात नहीं बताना चाहतीं, तो कोई बात नहीं। रात को जब हम सोएंगे तब आहिस्ते आहिस्ते मुझको सब बता देना। देखो मैं गुस्सा नहीं करूँगा और मेरा वादा है कि मैं तुमसे फिर भी बहुत प्यार करूँगा। अगर तुमने ग़लती भी की होगी, तो भी माफ़ कर दूंगा, ठीक है?
फातिमा ने यह सुनकर ख़ुशी से कहा- चलिए कुरान की कसम खाए कि आप मुझको मारेंगे नहीं और कुछ ऐसी वैसी बात या गालियां वग़ैरह नहीं देंगे?
अब्बू ने कहा- क्या मैंने कभी तुमको मारा या गालियां दी है मेरी बिटिया? हम्म..! तुम तो मेरे दिल का टुकड़ा हो, मेरी जान हो। जितना प्यार मैं तुमको करता हूँ, शायद ही दुनिया में कोई अब्बू अपनी बेटी को करता होगा।
यह सब कहते वक़्त उसने अपने लंड को ज़्यादा ज़ोर से फातिमा की तरफ दबा, पेट के नीचे उसे थोड़ा रगड़ा भी दिया। इसी वजह से फातिमा को अब्बू के गले लगते हुए अपने दोनों पैरों के अँगूठों पर खड़ा होना पड़ा। उसने आखें बंद करके अब्बू के गले लगते हुए उसको हल्के से चूमा और गहरी सांस लेते हुए एक छोटी सी सिसकारी छोड़ दी।
उसके बाद अब्बू ने कहा- मुझे आज पीने का मन है, मैं बाहर जा रहा हूँ। थोड़ा सा पी कर वापस आऊँगा, तब तक रात हो जाएगी, फिर बातें करेंगे ठीक है?
वह हफ्ते में दो दिन पीता था और जब पीता था तो जैसे उसकी बीवी उसको पहले डाँटा करती थी वैसे ही फातिमा भी अपनी मां की तरह उसको डाँटती थी और जब इरशाद अपनी बेटी फातिमा से डांट खाता है, तो बस हँसता रहता है।
आज जब वह पीने की कह कर जाने लगा तो फातिमा ने डांटने के अंदाज में कहा- ख़बरदार अगर ज़्यादा पी कर आए तो! अगर आप नशे में होंगे तो मैं आपसे बात नहीं करूँगी, कहे देती हूँ।
अब्बू ने मुस्कराते हुए जवाब दिया- हाँ ज़्यादा नहीं पियूँगा, मगर याद रहे तुमने आज रात को बिस्तर पर सोने के वक़्त कुछ वादे किए हैं। मुझे उस वक़्त का इंतज़ार रहेगा।
फातिमा ने सर झुका कर “हूँ” कहा कर जवाब दिया।
इरशाद जब निकले, तो फातिमा को ऐसा लगा, जैसे उसके अब्बू ने इशारों में अभी अभी उसको रात में हमबिस्तर होने का इजहार किया है। उसे खुद भी अजीब सा लगने लगा था और उसने उंगलियों से अपने चुत को जब छुआ तो देखा कि उसकी चूत भीगी हुई है। उसने चूत को सहलाते हुए खुद से कहा- लो अब्बू से भी बात करके, यह मुई भीग रही है। ऐसा मेरे साथ क्यों हो रहा है? उधर मौलवी मकसूद भी मेरी चूत को भिगो देते है, अब अब्बू के साथ भी! ये क्या हो रहा है मुझे?
इरशाद जब ठेके में पीने बैठे तो फातिमा की तस्वीर उसके आँखों के सामने डोल रही थी। वह उसकी मस्त कंटीले जिस्म, उसकी मुस्कराहट, उसकी नाज़ुक गाल और मुस्कान, उसकी गोरी कोमल जांघ, उसकी उभरी हुई चूचियों को सोच कर उनका लंड पतलून के अन्दर एकदम मस्त हो, खड़ा हो गया था। फातिमा के साथ हुई बेतकलूफियों ने, इरशाद के अंदर के अब्बू के किरदार को दफन कर, उसके अंदर का मर्द हावी हो चुका था। वो अपनी बेटी को चोदने को बिल्कुल तैयार हो चुका था। मगर वह यह भी सोच रहा था कि क्या वह फातिमा को चोद पाएगा? क्या फातिमा चोदने देगी? क्या वह इन्कार नहीं करेगी? अगर उसने इन्कार किया और शोर मचाया तो क्या होगा?
इरशाद को ठेके पर खबर हुई की उसके एक दोस्त की मां के इंतकाल हो गया है तो वह पीने से पहले अपने दोस्त के घर चले गए। वहां जाने से पहले वो अपने घर फातिमा को यह बताने गए कि वह देर से घर वापस आएगा, वो उसका इंतज़ार न करे और समय पर सो जाए।
उसके अब्बू देर से आएगा, यह जान कर खाना खाने के बाद फातिमा सभी बातों को भूलकर सो गई।
फातिमा गांव के एक साधारण परिवार की लड़की थी, इसलिए वो रात को नाइटी नहीं पहनती थी बल्कि वैसी ही सो जाती थी। जो कपड़े घर में पहने रहती थी, यानि वही स्कर्ट और कुर्ती में सो जाती थी। वह जब सुबह हर रोज़ को उठकर नहाती थी, तभी कपड़े बदलती थी। चूंकि वो अपने अब्बू के पास सोती थी, तो फातिमा आज भी अब्बू के बिस्तर के बगल में सो गयी।
उधर उसके अब्बू अपने दोस्त के घर से वापस आकर ठेके में बैठ कर पीना शुरू कर दिया।
जब वो दारू पी रहे थे तो उसने सुना कि कुछ लोग फातिमा की बातें कर रहे थे। कुछ लोग फुसफुसा रहे थे। इरशाद ने सोचा कि अगर लोग मौलवी को लेकर बिना सबूत यह सब सोचते है, तो उसको चोदना ही चाहिए। उसने अपने आप से कहा कि उसने आज फातिमा को चोदने का बिल्कुल सही इरादा किया है, आज घर जाकर फातिमा को ज़रूर चोदेगा। पता नहीं उस मौलवी ने चोदा है की नही? उसकी सील तोड़ी है या मुझको ही काम तमाम करना पड़ेगा? देखूंगा, पता नहीं अगर सील तोड़नी पड़ी तो चिल्लाएगी या हल्ला करेगी।
फातिमा के अब्बू आज पीते वक़्त, खुद में बड़बड़ा रहे थे। आखिर में वह पीने के बाद ठेके से निकले और अपने घर वापस जाते वक़्त वो फातिमा के बारे में ही सोच रहे थे।
जब वह घर पहुँचे तो देखा कि इस वक्त तक फातिमा गहरी नींद में सो गई थी। वह सीधे अपने कमरे में गए और फातिमा के पास बैठ कर अपने कपड़े उतारने लगे। वो बिस्तर पर ही बैठ कर, आँखें मूँद ही रहे थे, तब धीरे से, आधी नींद में फातिमा ने आँख मुंदे हुए ही कहा- आप खाना खा लेना अब्बू।
वह यह कहकर वह फिर सो गयी। इरशाद ने लड़खड़ाते जुबान से धीरे से कहा- खा चुका हूं, अब तो तुझको खाना है।
फातिमा ने अपने अब्बू की कही हुई कोई भी बात नही सुनी क्योंकि वह उस वक़्त गहरी नींद में सो रही थी।
फातिमा के अब्बू अपना पतलून उतार सिर्फ कच्छे में बिस्तर पर बैठ गए और उसे बिस्तर के बगल में फातिमा गहरी नींद में सोयी हुई थी। फातिमा के अब्बू ने धीरे से बिल्कुल आहिस्ते आहिस्ते, उस के ऊपर पड़े चादर को हटाया तो देखा फातिमा करवट लिए, अपने पैरों को मोड़ कर सो रही थी।
उसके पैर मोड़ने की वजह से तो उसकी स्कर्ट और भी ऊपर उठ गयी थी। इस वक्त दारु के नशे में अब्बू को अपनी बेटी फातिमा की खूबसूरत जवान जांघों का मस्त नज़ारा दिख रहा था। उसकी आंखे लाल हो गई, फातिमा के इस तरह सोने से उसकी गांड भी अच्छे से दिख रही थी। इस नजारे को देख फातिमा के अब्बू का लंड कच्छे से बाहर निकलने के लिए मचल पड़ा।
इरशाद ने हल्के से अपने हाथों को अपनी बेटी फातिमा के गांड पर फेरते हुए, अपने एक हाथ को ऊपर की तरफ ले गए। वो फातिमा की अधनंगी बाज़ुओं के ऊपर पहुँच, उसने अपने हाथ को फातिमा की बांहों के नीचे फेरा। वहां छोटे छोटे बाल उगे हुए थे। फातिमा के उन बालों ने कुछ ऐसा असर किया उसके अब्बू ने वहां अपनी नाक को रगड़, उसे सूंघना शुरू कर दिया।
फातिमा के पसीने की खुशबू या बदबू कह लो, पर फातिमा के अब्बू को फातिमा की बांहों तले वाली महक बहुत पसंद आ रही थी। उस महक ने उसको और भी गरम कर दिया था।
अब्बू ने हल्के से अपनी जीभ को उस नाज़ुक जगह पर फेरा और उस नमकीन लज्ज़त वाले हिस्से को चाटा। तभी फातिमा ने नींद में ही एक छोटी सी अँगड़ाई ली, जिससे अब्बू ने फातिमा को ठीक अपने सामने पाया। पहले तो अब्बू उसकी पीठ की तरफ थे लेकिन अब वो सामने आ गए थे। उन्हे सोयी हुई फातिमा की चूचियां, ऊपर नीचे उठक बैठक करते दिख रही थी। जब फातिमा सोते वक्त सांसें ले रही थी, उसकी तंग कुर्ती में फातिमा, उसके अब्बू को एकदम जबरदस्त हसीन, जन्नत से उतरी हूर दिख रही थी।
अब अब्बू से बिल्कुल सब्र नहीं हुआ। अब्बू ने अपना कच्छा उतार फेंका और बिस्तर पर ऊपर आ गए। उन्होंने पहले तो अपनी जीभ से फातिमा के होंठों पर फेर कर चाटा, फिर वो नीचे फातिमा की जांघों की तरफ आ पहुँचे। अब्बू का लंड एकदम तना हुआ खड़ा हो चुका था। जब वह घुटनों के बल बिस्तर पर फातिमा के पैरों के पास गये, तो उनके लंड ने फातिमा की कमर को छुआ तो उनको एक अजीब सी कशिश हुई और उसकी हलक से ‘इश…’ निकल पड़ा। अब फातिमा की जांघों के पास बैठ कर इरशाद ने हल्के से अपना हाथ उसकी कोमल, मुलायम नाज़ुक जांघों पर फेरने लगे और वो साथ में ऊपर, फातिमा के चेहरे की ओर भी देखते जारहे थे। वो उसके चेहरे से पढ़ना चाह रहे थे कि उनकी हरकतों का फातिमा पर क्या असर पड़ रहा है? मगर वह तो नींद में थी, उसको उस वक़्त कुछ भी पता नहीं चल रहा था।
अब इरशाद ने वासना में चूर, आहिस्ते से अपनी बेटी फातिमा की स्कर्ट को ऊपर उठाया। स्कर्ट के ऊपर जाते ही उसको फातिमा की छोटी सी चढ्ढी नज़र आने लगी। ये देख कर इरशाद की आंखों में वहशत छा गई। अब्बू ने देर न करते हुए अपनी उंगलियों को, उसकी चढ्ढी पर ठीक चूत के पास फेराने लगे। फिर अपनी जीभ से उसकी दोनों जांघों के दरमियान वाले नाज़ुक हिस्से को हल्के हल्के चाटना शुरू कर दिया। वो एक तरफ फातिमा की जाँघ चाट रहे थे तो दूसरी तरफ, उंगली से फातिमा की चूत पर, चढ्ढी के ऊपर से ही धीरे धीरे रगड़ने लगे थे।
अब्बू का लंड तो कब से फातिमा की चूत में घुसने को तैयार था लेकिन उसके मन में अब भी एक डर सा था। उनको अभी तक फातिमा की रज़ामंदी नहीं मिली थी और वह नींद में घोड़े बेचकर सो रही थी। अब्बू वासना की गिरफ्त में जरूर थे लेकिन वह यह जानते थे की आखिर में वो फातिमा के बाप भी है और वो जो अपनी बेटी के जिस्म के साथ कर रहे थे वो करना एक बाप लिए गुनाह है। लेकिन अब तक उनकी सारी खुदा खुदाई उनके लंड पर सवार हो चुकी थी। अब अब्बू से जब और बर्दाश्त नहीं हुआ तो वो आगे बढ़ गए।
वो आहिस्ते से फातिमा के बगल में उसके जिस्म से सट कर, करीब लेट गए। अब उनका लंड फातिमा की जांघों के बीचों बीच था। उन्होंने खुद उसकी दोनों जांघों को थोड़ा उठाकर अपने लंड को उसके बीच में डाला और ऊपर, फातिमा की कुर्ती ढीला करके उसकी कड़ी कड़ी चूचियों को सहलाने लगे।
अब्बू की उंगलियों से फातिमा की चूंचियों में जो हरकत हुई और उससे उसकी नींद टूट गई, लेकिन डर और उलझन में उसने सोने का नाटक करना ही बेहतर समझा। फातिमा मन में ही बोल पड़ी - हाय अल्लाह! अब्बू तो शुरू हो गए! मैं क्या करूँ? अब देखती हूँ अब्बू कहाँ तक जाते है, मैं अभी सोने का नाटक करती हूँ।
अब फातिमा को सब पता था मगर वह जानबूझ कर सोने का नाटक कर रही थी। वो अपने आपको बड़ी मुश्किल से सँभाल रही थी क्योंकि जिस तरह से उसके अब्बू, उसकी तनी हुई चूंचियों को चूस रहे थे, उससे वो खुद भी गर्म हो रही थी।
अपने अब्बू के लंड को अपनी जांघों के बीच पाकर, फातिमा की चुत भीग गई और वह कसमसाने लगी थी। अब इरशाद ने अपनी बेटी को उसकी पीठ के बल औंधा लिटा दिया और फातिमा की गांड पर ही अपना लंड रगड़ना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में अब्बू को इस तरह लंड रगड़ना अच्छा नहीं लगा क्योंकि फातिमा की चढ्ढी पर रगड़ खाने से उनके लंड में
दर्द और छरछराहट होने लगी थी। इस परेशानी से निजाद पाने के लिए अब्बू धीरे से फातिमा की चढ्ढी को आहिस्ते से उतारने लगे। साथ में ही वो दबी नज़र से फातिमा का चेहरा देखते जा रहे थे कि कहीं फातिमा जग न जाए। फातिमा के अब्बू को इसका इल्म नहीं था कि फातिमा पहले से ही जागी हुई है और उसे सब पता है कि वह उसके साथ क्या कर रहा है।
उधर फातिमा बहुत मुश्किल से अपनी दोनों मुठ्ठियों को बंद करके, अपनी छाती के नीचे दबाए, ज़ोरों से दांतों को जबरन दबाए, अपने अब्बू के लंड, उंगलियों और जीभ की हरकतों को सह रही थी। अपने अब्बू के साथ हो रही इस अनोखी रगड़न के कारण उसको अंदर ही अंदर ही बड़ा मज़ा आ रहा था मगर एक दहशत भी थी क्योंकि उसके साथ यह उसके अब्बू कर रहे थे। वैसे तो छोटी उम्र से ही वो हर रात, अब्बू के साथ सोती आई थी, मगर ऐसा पहली बार हो रहा था।
अब्बू ने फातिमा की चढ्ढी उतार दी और वो उसकी चूत पर झुक गए। उन्होंने जब फातिमा की चूत चाटी तो यह देख कर हैरान रह गये कि चूत एकदम भीगी हुई थी। अब्बू सोच में पड़ गए कि क्या फातिमा को नींद में अब महसूस हो रहा है, जो उसकी चूत इतनी गीली गयी है?
अब्बू ने पहले ऐसा ही सोचा, फिर अपने आप से कहा कि चलो देखता हूँ कि उस मौलवी मकसूद ने इसकी सील को तोड़ा है या नहीं? अगर सील बंद होगी, तो ऊपर ऊपर ही चोद लेंगे और अगर सील टूटी हुई निकली तो अपना पूरा लंड घुसेड़ देंगे।
फातिमा की गीली चूत से सरगरम अब्बू, अब अपनी बेटी की चूत के अंदर की दीवारों को अपनी जीभ की जद में लाने के लिए मचल रहे थे। अब्बू ने अपनी बेटी की गीली हो चुकी चुत में पहले जब जीभ घुसेडने की कोशिश की तो वे नाकामयाब रहे। उनकी जीभ, फातिमा की तंग चूत में अपना रास्ता तलाशने से महरूम रह गई। अब अब्बू ने अपनी उंगली उसकी चूत की फलकों पर चलाने लगे और धीरे से एक उंगली को चूत के छेद में घुसेड़ना लगे। अब्बू बड़े एहतराम से फातिमा की चूत में अपनी उंगली कर रहे थे लेकिन उसका जोरदार असर फातिमा पर हो रहा था। वो बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभाल पा रही थी। उसको ज़ोर से चिल्लाने को मन कर रहा था, लेकिन वह तो नींद का बहाना बनाए हुई थी, इसलिए उसे अब्बू की खुदरी उंगली को अपनी नाजुक चूत में बर्दाश्त किए पड़ा रहना पड़ रहा था। फातिमा बड़ी ज़ोरों से अपने दांतों को मुँह में दबाए, अपने अब्बू की उंगली को अपने अन्दर लेते हुए सह रही थी। शुरू में अब्बू की उंगली फातिमा की चूत में थोड़े ही अंदर थी मगर जब अब्बू ने उससे थोड़ा और ज़्यादा घिसेड़ने की कोशिश की तो फातिमा न चाहते हुए भी चिल्ला उठी। लेकिन वो ऐसे चिल्लाई, जैसे उसने कोई सपना देखा लिया है, वो नही चाहती थी की उसके अब्बू को पता चले कि वह अबतक जागी हुई थी।
अब्बू, फातिमा की अचानक चिल्लाहट से चौंक गए लेकिन इसके चिल्लाने से उन्हे पता चल चुका था की उनकी बिटिया अभी तक कुँवारी है। यह वाकिफ होने पर की मौलवी मकसूद उसे अभी तक नही चोद पाया है, अब्बू बड़े दिलशाद हो गए।
अपनी बेटी को कुंवारा पाकर उसके अब्बू वासना और हवस में इस कदर बहके की वो फातिमा के सोने या जागने से मुतासिफ, बेधड़क उसकी चूत को चाटने और चूसने लगे। अब्बू इस बात से बहुत मसरूर थे की उनकी बेटी फातिमा की चूत अभी कुंवारी बची हुई थी, उसमे मौलवी मकसूद का लंड अभी तक दफन हुआ था।
अपनी इस जनूनी चूमाचाटी के बाद, अब्बू से रहा न गया और वो फातिमा के ऊपर चढ़ गए। अब्बू को अपने ऊपर पाकर फातिमा की गहरी सांसे चलने लगी थी और उसके अंदर तमाम सवाल उठने लगे, उफ़! अब्बू अब क्या करेंगे? ओह खुदा! कहीं अन्दर तो नहीं? अगर डाला मैं क्या करूँगी?
फातिमा का डर इस वक्त फरूर हो गया जब उसके अब्बू ने उसकी चूत में अपना लंड डालने की कोई अजमाइश नही की। अब्बू ने फातिमा के अंदाज के बरक उसके गुदाज़ चूतड़ों के बीच अपने लंड के टोपे को लगा दिया। अब्बू ने ढेर सारा थूक अपने लंड के टोपे पर लगाया और फातिमा के चूतड़ों के बीच, बिना लंड को अंदर घुसेडे, रगड़ने लगे। फातिमा को मर्द औरत के बीच के जिस्मानी रिश्ते और चूत के लिए लंड के दस्तूर का खूब अच्छी तरह पता था लेकिन जो अब्बू आज उसके साथ कर रहे थे, वो बिल्कुल नया तजुर्बा था। उसकी गुदाज़ चूतड़ों के बीच अब्बू के गर्म लंड की मालिश उसकी चूत तक को कपकपा दे रही थी।
अब्बू अब अपने लंड को फातिमा के चूतड़ों और दोनो फांकों के बीच अपने दस्तखत छोड़ने के जनून में इस तरह गाफिल हो गए की उनके लंड रगड़ने की जहां रफ्तार बढ़ गई वही उनके मुंह से करहाते हुए घिघियाने की आवाज़ निकलने लगी थी। तभी अचानक अब्बू के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने कस के फातिमा को जोर से अपनी बाहों में जकड़ किया और उसके चूतड़ों पर फारिग हो गए।
अब्बू का एक तरफ मॉल निकल रहा था तो दूसरी ओर वे मुँह को फातिमा की गर्दन पर धसातें हुए, अपनी जीभ को उसके गाल पर पर फेरते हुए चाटे जा रहे थे। उनका लंड वहीं चूतड़ों की फांक में काफी देर तक वैसे ही फंसा रहा। अब्बू, काफी देर तक अपनी बेटी फातिमा पर हांफते हुए पड़े रहे और अपना बहते, गीले लंड को फातिमा की भीगे चूतड़ों पर रखे रहे। उनके लंड ने इतना उसका सारा मॉल फेका की वह फातिमा के चूतड़ों के बीच बह कर बिस्तर तक में लग गया था।
फातिमा अपने चूतड़ों पर गिरे अपने अब्बू के गर्म बहते हुए मॉल से अचकचा गई थी। अपने अब्बू के शांत होने और उनके जिस्म के भार से दबे होने के एहसास से खबर फातिमा, झूठमूठ के नींद में करवट बदलने का नाटक कर, दूसरी तरफ पलट गई। फातिमा के करवट लेने से, अब्बू को होश आया और वे उस पर से हट कर, एक तरफ हो गए। अब्बू ने जल्दी से एक कपड़े से अपनी बेटी के चूतड़ों को पौंछा और फिर उसको वापस चढ्ढी पहना कर, उसे अपनी बाँहों में लेकर वही सो गए।
फातिमा अपने अब्बू को सोता देख कर मुस्कुरा रही थी। आज जो उसके साथ, उसके अब्बू ने किया वो कभी ख्वाब में भी ख्याल नही बना था। उसे खुद अपने पर बेयकीन हो रहा था की जो अब्बू ने उसके साथ किया था, उसके लिए उसको अब्बू से नफरत की जगह उनके लिए चाहत ने उसे अपने आगोश में ले लिया था।
यूँ तो हर रोज़ सुबह अब्बू ही पहले उठ कर, चाय बनाते और फिर फातिमा को जगा कर चाय देकर, तब ही घर से खेत की लिए निकलते थे। फातिमा भी उसके बाद नहाती और स्कूल के लिए तैयार होकर घर से निकलती थी। वो जाते वक़्त वो अब्बू के डिपो के पास से गुज़रती और घर की चाभी उसको देकर ही जाती थी। इरशाद मतीन का घर हर रोज़ ऐसा ही चलता था।
मगर अगली सुबह जब फातिमा की आखें खुली तो देखा कि आज अब्बू ने उसको नही उठाया था। आज वो खुद भी रात की गुज़री हुई हरकतों की लज्जत को सोचकर अब्बू से आँख मिलाने को शरमा रही थी। वो मन ही मन सोच रही थी कि कहीं अब्बू भी शायद उससे इसी लिए आँख नहीं मिला पाये है और चुपचाप डिपो चले गए।
फातिमा उठ कर कमरे से निकली, तो गुसलखाने मे जाते वक़्त, रसोई के पास से गुजरते देखा कि अब्बू रसोई में बैठे रेडियो सुन रहे है। जब अब्बू ने देखा कि फातिमा गुसलखाने में जा रही है, तो वो जल्दी से उठकर उसकी तरफ आए और कहा- अरे जाग गयी मेरी बिटिया रानी? कैसी रही रात?
फातिमा आँख मसलते हुई बोली- अब्बू आज आप अभी तक यहीं हो, डिपो नहीं गए और अभी तक तहमद में हो? तैयार नहीं होना डिपो जाने के लिए क्या?
इस पर अब्बू ने कहा - आज थोड़ी देर से खेत जाऊंगा, आज मैं अपनी बिटिया रानी को स्कूल जाने के लिए तैयार होते हुए देखना चाहता हूँ।
फातिमा, अब्बू की बात सुन, एक अंगड़ाई लेते हुए गुसलखाने में नहाने के लिए चली गयी। इरशाद से तो अब बचपने से जवान होते फातिमा के जिस्म को नहीं देखा जा रहा था। ये याद करके की कैसे रात को उसके चूतड़ों पर अपने लंड को रगड़ कर अपना माल छोड़ा था, उसका लंड फिर से एकदम से खड़ा होने लगा था। उसने अचकचा कर अपनी तहमद के अंदर खड़े हो रहे लंड को सीधा किया।
गुसलखाने के पास खड़े होकर अब्बू ने फातिमा को आवाज़ दी- तू जब तक तैयार होती है मैं तब तक तेरे कपड़ो को इस्तरी कर देता हूँ बिटिया।
फातिमा ने जवाब दिया- मैं इस्तरी कर चुकी हूँ अब्बू. कल रात आप कितने बजे वापस आए थे, मुझको नींद लग गयी थी। आपने मुझको जगाया क्यों नहीं?
उसने नहाते हुए कुछ ऊंची आवाज़ में नादान बनते हुए अपने अब्बू से पूछा। तो बाहर गुसलखाने के दरवाज़े के पास खड़े अब्बू ने जवाब दिया- क्या तुझको कुछ नहीं पता रात के बारे में?
फातिमा ने भोली बनने की कोशिश करते हुए बोली- क्या अब्बू? क्या हुआ था रात को? कुछ हुआ था क्या?
अब्बू ने कहा- नहीं कुछ नहीं बस ऐसे ही।
अब्बू, फातिमा का कमरे में इंतज़ार करने के लिए चले गए। वह देखना चाहते थे कि फातिमा कैसे गुसलखाने से बाहर निकलेगी, क्या पहनकर आएगी और कौन सा हिस्सा उसके जिस्म का दिखेगा। कुछ दस मिनट इंतज़ार के बाद फातिमा कमरे में आयी, तो सर के बालों को एक तौलिया में लपेटा हुआ था और एक कुर्ता जैसा पहना हुआ था। ये कुर्ता ठीक उसके घुटनों पर तक ही आता था, मगर ये कुर्ता स्लीवलैस था और फातिमा पर काफी बड़ा लग रहा था। इस वजह से उसकी चूचियां साफ़ दिख रही थीं। एकदम गोल गोल नरम मुलायम, जैसे कि दो संतरे हों या ऐसा लगता था कि छोटे छोटे से गुब्बारे हों, जिसमें थोड़ा पानी भर दिया गया हों। अब्बू ये नजारे खूब आखें फाड़ फाड़ कर देख रहे थे।
वैसे हर रोज़ तो फातिमा उसी ड्रेस को गुसलखाने से पहन कर निकलती थी, मगर उस वक़्त कभी भी उसके अब्बू घर पर नहीं हुआ करते थे तो वो बेफिक्र रहती थी और वो इस वक्त अन्दर ब्रा भी नहीं पहनती थी। वो सिर्फ बाहर जाने के लिए कपड़े पहनने के वक़्त ही ब्रा पहनती थी।
अब्बू बिस्तर पर बैठ कर अपनी बेटी को निहार रहे थे। उनको लग रहा था कि जैसे वो अपनी जन्नतनशीन बीवी को जवान देख रहे हो। वैसे ही वह भी उसी कमरे में अलमारी के आइने के सामने खड़े सजती संवरती थी। आज यहां यहाँ फातिमा ने अपनी अम्मी की जगह ली हुई थी, जवान, कुंआरी, खूबसूरत।
अब्बू उसे देख कर रह नही पाए और कहा- तू कब इतनी खूबसूरत और जवान हो गयी, मुझको पता ही नहीं चला! इतने सालों से मेरे बगल में सोती रही है और मैं आज तुझको ऐसे देख रहा हूँ। तू बिल्कुल अपनी अम्मी पर गयी है मेरी बिटिया रानी, तुझपे बहुत प्यार आ रहा है। ज़रा मेरी बाँहों में तो आजा मेरी प्यारी बिटिया।
यह सुनकर फातिमा को अपने अब्बू पे बहुत प्यार आया। उसने जल्दी से अपनी कोमल बांहों का हार अब्बू के गले में डाल दिया और उसके सीने से चिपक गयी। इरशाद खड़े खड़े उसको बहुत ज़ोर से सीने से लगाते हुए उसके सर को चूम कर, आहिस्ते आहिस्ते उसके गालों को चूमने लगे। जब फातिमा ने अब्बू के गरम होंठ अपने गले पर महसूस किए तो उसने सर को पीछे की तरफ करते हुए आँखों को बंद कर लिया। इस हालत में अब्बू अपनी तहमद के नीचे से अपने लंड को संभाल नहीं पा रहे थे। उनका लंड फातिमा की जांघों के बीच, कपड़े के ऊपर से ही रगड़ खा रहा था। फातिमा को भी अब्बू का लंड अच्छी तरह से मालूम हो रहा था।
फातिमा सच में अपने अब्बू को बहुत प्यार करती थी, ख़ास कर के जब से उसकी अम्मी चल बसी थी। वो पूरा उसका ख्याल रखती थी, अब्बू के लिए वह वो सब करती थी, जो उसकी अम्मी किया करती थी।
फातिमा छोटी उम्र से ही अपने अब्बू के लिए सिवाए चुदाई के, अम्मी के सब काम करती चली आ रही थी। अब्बू के कपड़े धोना, खाना पकाना, खाना परोसना और सब वह काम जो उसकी अम्मी करती थी। अब घर में और कोई तो था ही नहीं, न भाई, न बहन, तो सारा प्यार सिर्फ अब्बू और फातिमा में ही बंटता जाता था। अब्बू भी फातिमा से बचपन से ही बेहद प्यार करता था, उसको कभी भी बुरी नज़र से नहीं देखा था। हमेशा ही उसे एक छोटी बच्ची समझता था।
मगर जब से अब्बू ने मौलवी वाली अफवाह सुनी तो वो गौर से फातिमा को देखने लगे थे और उनके अब्बू वाले किरदार पर उनका मर्द हावी हो गया था। उनके प्यार ने किसी और चाहत की तरह रुख कर लिया था। अब्बू का अपनी बिटिया फातिमा के लिए जज्बा तो था ही बहुत मगर वह वालिद का जज्बा एक मर्द और औरत के बीच उठे जिस्मानी जज्बे में तब्दील हो चुका था। अब अब्बू का प्यार, मर्द की एक औरत के लिए हवस में बदल गया था।
अब्बू के दिल में यह सोच के एक खलिश हो रही थी कि कोई और मर्द, उसकी इतनी खूबसूरत जवान कुंवारी बेटी को छुएगा। उसने सोचा यह मेरी बेटी है, मेरी अपनी है, किसी और की नहीं हो सकती है। मैंने पाल पोस कर बड़ा किया है, मेरे घर में रहती है, मेरी अपनी है, तो मेरे सिवाए कोई और क्यों इसके करीब हो?
अब्बू, फातिमा के गालों को चूमते हुए नीचे पहुँच गए और उनका चेहरा जब फातिमा की मुलायम छाती पर पड़ा तो फातिमा ने ज़ोर से अपने अब्बू को जकड़ लिया और उसकी सिसकारी निकल गई। खुद फातिमा ने जब अपनी कमर को थोड़ा सा ज़्यादा अब्बू के जिस्म से दबाया तो उसने अब्बू लंड को, अपने पेट के नीचे मोटा और तना हुआ महसूस किया। इस पर अब्बू ने अपनी कमर को हिलाया और अपने लंड से फातिमा के जांघों के बीच दो छोटे छोटे धक्के लगा दिए। फातिमा ने आँख खोल कर अब्बू की आँखों में देखना चाहा तो देखा कि अब्बू की दोनों आँखें बंद थीं और वह फातिमा के जिस्म का लुत्फ ले रहे थे। फातिमा को इसका भी इल्म हो चला था की अब्बू के हाथ फातिमा के बाज़ुओं के नीचे से उसकी चूचियों को छूने की कोशिश कर रहे है।
तभी अचानक फातिमा ने कहा- अब्बू बस, मुझे देर हो जाएगी और अपने अब्बू की बांहों से रिहा होते ही अलमारी के पास से एक कँघी से अपने बालों में फेरने लगी।
फातिमा- आज आपने मुझको चाय नहीं दी। मेरे लिए एक कप चाय ला दीजिये, तब तक मैं तैयार होती हूँ।
अब्बू चाय लेने रसोई में चले गए और जल्दी जल्दी फातिमा ने स्कूल जाने वाले कपड़े पहन लिए। उसने अपनी छोटी साइज की ब्रा पहनी थी। अब्बू के सामने ब्रा पहनने में उसको शर्म आ रही थी। उसने अपनी सफ़ेद रंग की चढ्ढी भी पहन ली और हरी ब्लाउज और नीली स्कर्ट भी पहन लिए।
अब्बू चाय लेकर आए तो फातिमा आइने के सामने खड़ी आँखों में काजल लगा रही थी। अब्बू अपनी बिटिया फातिमा को तैयार देख कर दीवाने हो गए। वह उसको रोकना चाहते थे, उसका दिल कर रहा था कि आज वो उसको नहीं जाने दे और पूरा दिन उसके साथ कमरे में बिस्तर पर बिताए। अब्बू के दिल ओ दिमाग में अपनी बेटी फातिमा को पाने का ख्याल चल रहा था। वो बावरा हो रहे थे। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो कैसे फातिमा से वह सब इजहार करे, जो उसके दिल में चल रहा है।.
क्या समझेगी फातिमा? क्या अपने अब्बू का प्यार काबुल करेगी? क्या एक पढ़ने जाने वाली लड़की पढ़ी लिखी ऐसे बेहूदा बात को मानेगी? बग़ावत कर बैठी तो?? क्या करेगा उसका अब्बू तब? उसको हमेशा के लिए खो देगा। अब्बू के समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी बात की शुरूआत कैसे करे। इधर फातिमा आइने में से ही अब्बू को देख कर शुक्रिया कहने के लिए मुस्कुरा रही थी भी उधर अब्बू पीछे से फातिमा के पीछे वाली जाँघ का हिस्सा देख और उसकी चूंचियां आइने में नाप रहे थे।
जब फातिमा मुड़कर टेबल पर से चाय लेने जा रही थी तो अब्बू ने उसको फिर से बांहों में जकड़ कर चूम लिया और बिस्तर पर फातिमा को थामे हुए बैठने को कहा। जब बैठ गई तो फातिमा ने कहा- ओफ्फो अब्बू, मुझको देर हो जाएगी, मैं चाय तो पी लूँ?
फातिमा ने ये कहते हुए अपने आपको अपने अब्बू की बाँहों से खुद को छुड़ा कर चाय की तरफ गयी और जल्दी से चाय का घूँट लेने लगी। फिर वो अपने स्कूल बैग को उठाने वाली थी, तब अब्बू ने इशारे से उसको अपने गोद में बैठने का इशारा किया।
फातिमा ने आसमान की तरफ अपनी आँखों को उठाकर कहा- उफ़ अब्बू, आप आज मुझको देर करवा ही छोड़ोगे आप, अब क्या है अब्बू आती हूँ, बस थोड़ा सा ठीक?
तब फातिमा ने अपने अब्बू की गोद में बैठी और अब्बू ने एक हाथ को उसकी कंधों पर रखा और एक हाथ को उसकी जाँघ पर। अब्बू ने हौले से अपने एक हाथ को फातिमा की जाँघ पर फेरते हुए सहलाया तो उसने एक छोटी सी सिसकारी छोड़ दी। सिसकारी सुनकर उसके अब्बू धीरे धीरे अपने हाथ को उसके स्कर्ट के नीचे डालते चले गए।
अब्बू तक़रीबन अपनी बेटी की चढ्ढी को छूने ही वाले थे की तभी फातिमा यह कहकर उठ खड़ी हुई- अब मुझको जाना चाहिए, आज क्या आप खेत में नहीं जाओगे?
उसके एकदम से उठने के कारण अब्बू, फातिमा के आगे घुटनों पर आ गए। उन्होंने जल्दी से फातिमा की कमर को दोनों बाँहों में लपेटा तो उनकी बाहों का कुछ हिस्सा कमर पर और कुछ हिस्सा फातिमा के चूतड़ों पर आ गया। अब्बू का मुँह ठीक फातिमा की चूत पर, मगर कपड़े के ऊपर से आ गया था।
फातिमा पीठ पर स्कूल बैग लिए हुए अपने अब्बू की उस अदा से अचानक झुक गयी और उनके कंधों को पकड़ कर मीठी आवाज़ में बोली- आज क्या हो गया आपको अब्बू, मुझे नहीं जाने दोगे क्या? छोड़िये मुझे, बस करो प्यार करना। कितना दुलार करेंगे आज आप मेरे साथ?
उसके अब्बू ने एक आशिक की तरह कहा- मैं तुमको बहुत चाहता हूँ मेरी गुड़िया, क्या तू अपने अब्बू को खुश करेगी?
फातिमा एक मुस्कान के साथ बोली- ओफ्फो अब्बू! जब मुझे जल्दी है जाने की, तभी आप को यह सब बातें करनी है क्या? हमेशा तो आप को खुश करती ही हूँ। तो अब क्या?
उसके अब्बू घुटनों पर ही थे और उसने सर ऊपर उठाकर फातिमा से कहा- बस अपना यह स्कर्ट ऊपर उठाकर अब्बू को अन्दर की जाँघ और अपनी चढ्ढी दिखा दे, मैं बहुत खुश हो जाऊँगा।
फातिमा शरम और हल्के से गुस्से से लाल पीली होते हुए बोली- क्या??
तब तक अब्बू उसकी स्कर्ट को उठाने की कोशिश करने लगे और फातिमा झुक कर अपनी स्कर्ट को दोनों हाथों से नीचे करते बोली - आज आप क्यों मौलवी साहब की तरह हरकत कर रहे हो अब्बू?
फातिमा की बात पर अब्बू को झटका लगा और कहा- अरे हाँ, तुमने तो अभी तक मुझको बताया ही नहीं? लोग जो तेरे और मौलवी ले कर कर रहे है?
फातिमा ने कहा- आपको आज सब कुछ आने के बाद आज पक्का बताऊँगी, ठीक है अब्बू?
उसके अब्बा ने उसकी जांघों को छूते हुए कहा- मगर जाने से पहले मेरी गुड़िया यह तो दिखा दे, क्या तू अपने अब्बू को प्यार नहीं करती?
तब फातिमा को जैसे अब्बू पर कुछ तरस आया और कहा- अच्छा सिर्फ एक बार ठीक है? फिर मैं निकालती हूँ।
अब्बू ने ख़ुशी से अपने लंड को तहमद के नीचे हाथ से पकड़ते हुए कहा- हाँ ठीक है मगर हौले हौले स्कर्ट को उठाना और मेरे हाथों को थोड़ा सा छूने भी देना।
फातिमा ने मुस्कुराते हुए सर को हाँ में हिलाया और अपने दोनों हाथों की उंगलियों से अपनी स्कर्ट की नीचे वाले हिस्से को थाम कर उठाना शुरू कर दिया।
उसके अब्बू वहीं ठीक, उसके सामने घुटनों पर पड़े थे। ज्यूँ ज्यूँ स्कर्ट उठती जारही थी, त्यों त्यों अब्बू की आँखों को फातिमा की गोरी जाँघें और भी गोरी होती दिखाई देने लग रही थी। स्कर्ट के नीचे वाले हिस्से को देखते हुए अब्बू अपने लंड को एक हाथ में थामे हुए कुछ कुछ उसको हिलाने लगे थे। फातिमा को तहमद के नीचे लंड नज़र तो नहीं आ रहा था मगर उसको खूब पता था कि अब्बू उसकी जांघों को देखकर मुट्ठ मार रहे है।
फातिमा अपने अब्बू को खुश करने के लिए स्कर्ट उठाती गयी और उसके अब्बू ज़ोरों से अपना हाथ लूंगी के नीचे अपने लंड पर चलाने लगे। जैसे ही फातिमा की सफ़ेद चढ्ढी थोड़ा सा नज़र आयी, उसके अब्बू ने अपना मुँह जल्दी से उसकी मुलायम चढ्ढी पर रख दिया और उसे चाटने लगे। अब्बू अपने एक हाथ से मुट्ठ मार रहे थे और दूसरे हाथ से फातिमा की चूतड़ों को थाम कर अपने लंड को अंजाम तक पहुंचाने की शगल में लगे थे।
जब उसने अपने अब्बू की जीभ को अपनी चढ्ढी पर महसूस किया तो फातिमा की ‘आह इस्स्स्स… उह्ह्सस…’ की धीमी सी आवाज़ निकल पड़ी। जब अब्बू की जीभ वहां से हट कर उसकी जांघों को चाटने लगी तो फातिमा ने एक लंबी से सिसकारी छोड़ी और तभी उसके अब्बू ने कराहना शुरू कर दिया और उनके मुंह से- आह… आआअह् की आवाज निकलने लगी थी।
फातिमा ने देखा कि उसके अब्बू की तहमद गीली हो गयी है। अब्बू, फातिमा की सिर्फ जाँघ और चढ्ढी देख कर और उसे छूकर ही, लंड को मुट्ठ मार कर खुश हो गए थे।
फातिमा ने अपने होंठों को दांतों में दबाते हुए धीरे से अब्बू के कानों में झुक कर कहा- अब मैं चलती हूँ। आपको तो इत्मीनान आ गया ना अब्बू?
यह कह फातिमा अपने अब्बू के दोनों गालों पर ज़ोर से चूम कर घर से दौड़ते हुए निकल गयी।
अब्बू ने ज़ोर से चिल्ला कर कहा- भूलना मत कि आज शाम को तुम मुझको मौलवी के बारे में सब बताओगी!
फातिमा ने जाते हुए बाहर से चिल्ला कर जवाब दिया- हाँ अब्बू आज वापस आने के बाद ज़रूर बताऊँगी, खुदहाफिज!
उसको जाता देख इरशाद ने आसमान को देखते हुए कहा- हे जारा (उसकी मरी बीवी), तुमने फातिमा की सूरत में फिर से जन्म ले लिया, उसमें तुम रूबरू बसी हो।
फातिमा के जाने के बाद उसके अब्बू अपनी मरी बीवी जारा, की तस्वीरों को निकाल कर देखने लगे और उसकी और फातिमा की तस्वीरों को मिलाकर वो दोनों के बीच का फर्क देख रहे थे। फर्क था ही नही, बिल्कुल जैसे कि जारा जब जवान थी तब का अक्स फातिमा थी। यह सब सोच सोच कर कि उसको चोदने के लिए दुबारा से एक कुँवारी चूत मिल गई, अब्बू को एक अजीब सा मज़ा आ रहा था. उसको इतनी खूबसूरत जवान लड़की मिलेगी, ये उसने सपने में भी नहीं सोचा था। उसके लिए फातिमा बेटी से निकल कर सिर्फ एक जवान लड़की रह गई थी।
स्कूल में फातिमा दिन भर अब्बू के बारे में सोचती रही और मुस्कराये जा रही थी। दोस्तों ने कई बार उसको टोका भी कि क्या पागल हो गयी है, किसके ख्यालों में इतना खोई हुई है?
अपने चेहरे पर लाली लिए फातिमा अपने अब्बू को दिमाग़ में सोचती हुई दोस्तो से बोली- पागल हो!
फातिमा अपने अब्बू पर आसक्त हो गई थी और उसे एहसास था की वह अपने अब्बू से प्यार करने लगी है। अब यह कैसा प्यार था, किसको पता? जब से उसकी अम्मी गुज़री है, तब से वो अपने अब्बू के बहुत ज़्यादा क़रीब हो गयी थी और उस के साथ सोने से और ज़्यादा करीब हो गयी थी। जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती गयी और जिस्म में अलग किस्म की चाह बढ़ती गयी, तो कोई और लड़का के न होते हुए उसकी ज़िन्दगी में उसने अपना सारा प्यार अब्बू पर ही न्यौछावर कर दिया था।
क्लास में फातिमा, अब्बू के साथ सुबह हुई हरकतों को एक फिल्म की तरह अपने दिमाग में देख रही थी। वो सोचने लगी कि किस तरह उसने बिना झिझक के अब्बू को अपनी जाँघ और चढ्ढी दिखाने के लिए अपनी स्कर्ट को धीरे धीरे ऊपर उठाया था और किस जोश से उसके अब्बू ने उसको पकड़ के चूमा और चाटा था और किस तरह उसने अपने अब्बू को उसके सामने मुठ मारते देखा था। तहमद के नीचे कितने ज़ोरों से अब्बू हाथ चला रहा था और अचानक उनकी तहमद भीग गयी थी! यह सब नज़ारे फातिमा के आँखों के सामने नाच रहे थे। यह सब सोचते हुए क्लास में ही फातिमा की चढ्ढी भीग गयी और वह जल्दी से अपने आप को साफ़ करने गुसल में चली गयी। फातिमा पर इन सब बातो का इतना असर हुआ की वहां गुसल में फातिमा अपनी चूत में उंगली करने से, अपने को खुद को नही रोक पाई।
आखिर शाम को फातिमा वापस घर आयी, उसको पता था कि उसके अब्बू बड़ी बेताबी से उसका इंतज़ार कर रहे होंगे। वो जैसे ही अन्दर दाखिल हुई, अब्बू ने उसको बेसब्री से उसको अपनी बांहों में ज़ोर से जकड़ लिया और उसे चूमने लगे। वो फातिमा के गालों पर, मुँह पर, गले पर, उसके पूरे जिस्म को चूमते हुए सहलाने लगे।
फातिमा ने थोड़ा बहुत नखरे दिखलाते हुए कहा- ओफ्फो अब्बू, क्या हो गया! मुझे चाय पीनी है, खाना पकाना है, सब घर के काम करने हैं. छोड़ो न!
अब्बू तो जैसे दीवाने हो गए थे, उसे कुछ नहीं समझ आ रहा था। जहां भी उनका मुंह पड़ता वो फातिमा को चूमते जा रहे थे। आखिर में उनका हाथ फातिमा की स्कर्ट के नीचे पहुँचा और उसने उसकी गर्दन को चूमते हुए उसकी जाँघ को सहलाना शुरू कर दिया।
फातिमा अपने अब्बू की इस जबरदस्त चूमा चाटी से हड़बड़ा गई और वो दोनों हाथ से अपने अब्बू को अपने आप से अलग करने लगी। पर जब उसने अपने अब्बू के हाथ को अपने स्कर्ट के नीचे चढ्ढी पर महसूस किया, तो उसका पूरा जिस्म काँपने लगा। फातिमा के पैर कमजोर पड़ने लगे और उसने खुद अपने बदन को अपने अब्बू के जिस्म से चिपका लिया। उसके हाथ, उसके अब्बू के गले का हार बन गए और बेसाख्ता फातिमा ने अपने अब्बू के गाल को एक चुम्बन दे दिया।
अब्बू, अपनी बेटी के ओंठो को अपने गाल पर महसूस कर तड़प गए और तड़पते हुए कहा- और और चूमो बिटिया, मेरी गुड़िया रानी! देख मैं कितना चूम रहा हूँ तुझको, अपने हाथों से मेरी पीठ को सहलाती जा और इधर चूमती जा।
फातिमा अपने अब्बू को उस तरह से एक छोटे बच्चे की तरह इसरार करते हुए देख कर थोड़ा शर्मा और मुस्कुरा रही थी। फिर उसने अपने अब्बू की फरियाद सुन, बहुत प्यार से उसके गालों पर, फिर गले पर, फिर मुँह पर अपने ओंठो से चूमा और अपने कोमल हाथों से अपने अब्बू की पीठ पर फेरती रही। अब उसके अब्बू का एकदम खड़ा लंड फातिमा की स्कर्ट के नीचे रगड़ खारहा था। उस रगड़ से बेचैन फातिमा ने अपने बाँहों से अब्बू के गले को ज़ोर से जकड़ते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने अब्बू को वह सब करने दिया, जो वह कर रहे थे। वो बस धीमी आवाज़ में छोटी छोटी सिसकारियां छोड़ रही थी।
फातिमा के अब्बू ने अब अपने लंड को पतलून की ज़िप खोल कर बाहर निकाला तो उसे देख कर फातिमा का जिस्म काँप उठा। वो अब्बू के गले को चूमते हुए, अपनी चूचियों को अब्बू की छाती पर दबाते हुए चिपक गयी।
फातिमा के चिपकने पर उसके अब्बू ने उसके ब्लाउज के सभी बटन खोल दिए और फातिमा की ब्रा पर अपनी जीभ चलाने लगा, जिससे फातिमा कसमसा उठी।
अचानक फातिमा ने अब्बू को धीरे करने के लिए कहा और बोली- तो क्या अब आप मौलवी वाली बात को नहीं सुनना चाहते अब्बू?
यह सुनकर अब्बू रुक गए और फातिमा के मस्त चूतड़ों पर अपने हाथों को फेरते हुए कहा- हम्म मैं तो भूल गया था, अच्छा चल बिस्तर पर, वहां पूरा किस्सा बयान करना।
फिर अब्बू ने अपनी बिटिया फातिमा को गोद में ऐसे उठाया, जैसे किसी छोटे बच्चे को उठा लेते हैं। वो उसको लेकर बिस्तर पर पहुंचे और फातिमा बिस्तर पर लिटा दिया। फातिमा लेटाने कर बाद, उसके पैरों के तरफ बैठ कर उसके अब्बू ने उसकी स्कर्ट को उठाते हुए, जाँघ पर अपना जीभ को फेर कर कहा- अब बता क्या मामला है तेरा मौलवी के साथ?
फातिमा ने देखा कि उसके अब्बू की नजर उसकी स्कर्ट के नीचे उसकी चढ्ढी पर ही टिकी है, तो उसने हाथों से अपनी स्कर्ट को नीचे करके जांघों को ढक दिया।
इस पर उसके अब्बू ने कहा- अरी पगली, इतनी खूबसूरत जाँघें हैं तेरी, तेरी अम्मी से भी ज़्यादा खूबसूरत हैं, देखने दे न मुझको!
फातिमा बोली- पहले मुझे सुन लीजिए अब्बू जो मुझे मौलवी के बारे में कहना है, फिर जो मन में आए कर लेना.
अब्बू ने कहा- ठीक है बोल.
फातिमा ने कहा- अब्बू, मौलवी साहब के साथ कुछ ख़ास नहीं है। वह दीनी इल्म देने आते थे और मुझको क्लास में बहुत देखते रहते थे। फिर एक दिन मेरी सहेली नहीं आयी थी, तो मेरे पास वाली जगह खाली थी। इस वजह से मौलवी मेरे पास बगल आ गए। मुझसे थोड़ी देर बात करने के बाद उन्होंने अपने हाथों को मेरी जाँघों पर रख दिया। मैंने उनका हाथ हटाते हुए कहा कि आप क्या कर रहे हैं? तो उसने धीरे से मेरे कानों में कहा कि तुम बहुत जहीन और खूबसूरत हो, क्या तुम्हारा कोई दोस्त है?
अब्बू बीच में उचक पड़ा- तो तूने क्या कहा?
फातिमा - मैंने उससे कह दिया कि नहीं मौलवी साहब, मेरा कोई दोस्त नहीं है। तो मौलवी साहब ने जवाब दिया कि जब कोई नहीं है, तो फिर मैं तुम्हारा दोस्त बन जाता हूँ।
अब्बू की उसकी बातें सुनकर आँखें फैल गई।
फातिमा- मौलवी साहब की बात सुनकर मैं बहुत शर्मायी और मैं अभी चारों तरफ देख ही रही थी कि मैंने देखा कि दूसरी लड़किया हम दोनों की बातें नही सुन रहे थे।
अब्बू - फिर?
फातिमा - बस फिर कुछ नहीं. उस दिन के बाद हर रोज़ उसकी नज़र सिर्फ मुझ पर और मेरे स्कर्ट पर रहती थी और जब भी मैं खाली होती तो वह मुझसे बातें करने लगते। फिर धीरे धीरे मौका देख कर वह मुझको छूने लगे। मैं इन्कार करती लेकिन वह बहुत ज़िद्दी थे और मुझको बिल्कुल अकेली नहीं छोड़ते थे। मुझसे इतना बड़ा होने के बाद भी वह सच में ये मौलवी जैसे मेरा दोस्त बन गए थे वो दोपहर को खाने की छुट्टी में जब क्लास में सभी लोग बाहर होते, तो मुझको अपने पास बुला लेते।
अब्बू - फिर?
फातिमा - फिर एक दिन वैसे ही मैं उसके साथ क्लास में बिल्कुल अकेली थी, तो उसने मुझको चूमा और मेरे जिस्म पर अपने हाथों को फेरा। मैं डर रही थी, मगर पता नहीं क्यों वह सब मुझे अच्छा लगा था। उस दिन के बाद जब भी उसे मौका मिलता वह मुझको चूमते। अक्सर मुझको अपने गोद में बिठा लेते और नीचे से धक्का देते। एक दिन मौलवी साहब ने मेरे ब्लाउज खोल कर मेरी चूचियों को दबाया और चूसा भी। मैं डर भी रही थी और अच्छा लग रहा था, मैं मौलवी साहब को मना नहीं कर पाई।
अब्बू ने अपनी बेटी फातिमा के चुचों को घूर कर देखा और पूछा- फिर?
फिर दो महीने तक वो मेरे साथ वैसे ही करते रहे। फिर दूसरी लड़कियों को शक हो गया और आपस में कानाफूसी करने लगी इस दौरान एक बार मौलवी साहब मुझको अपने साथ उस जंगल वाले रास्ते में ले गए और वहां मेरे साथ उसने वही किया, जैसे आप करते हो। बस मौलवी साहब के साथ यही हुआ है, इससे कुछ ज़्यादा नहीं हुआ अब्बू.”
फातिमा जब अपने अब्बू को मौलवी के बारे में यह सब बोल रही थी तो उसके अब्बू, इसके कभी चूतड़ों पर मसलते, कभी उसको चूमते हुए उसकी चूचियां दबाते, तो कभी उसकी छातियों पर अपने चुम्बानो की बौछार करते जा रहा थे।
अब्बू, मौलवी के साथ फातिमा के वाकए को सुन कर गर्म हो गए थे, उन्होंने गहरी सांस लेते हुए पूछा - मौलवी ने जंगल में कुछ और नहीं किया बिटिया?
फातिमा समझ गई थी की अब्बू को जंगल के रास्ते की बात पर अभी भी कोई शक है लेकिन वो पूरी हकीकत बता, अपने अब्बू को और नही तड़पाना चाहती थी। आखिर फातिमा अपने अब्बू से कैसे कहे की जंगल जाने वाले रास्ते पर मौलवी उसे चोदने ले गया था और वो खुद भी चुदना चाहती थी। वो कैसे अब्बू को बताए की मौलवी ने उसे अपना लंड थमाया था और उससे चुसवाया था। कैसे अब्बू को बताए की मौलवी ने उसे चौधरी बरकत की चौकी में चोदने की लिए नंगा कर दिया था लेकिन चौधरी के कुछ लोग आगाए तो उसे और मौलवी को कपड़े उठा भागना पड़ा था! यही सोच फातिमा ने अब्बू को कस के जकड़ कर कहा - अब्बू अल्लाह कसम, मौलवी कुछ करते उससे पहले खटका हो गया तो वहां से निकल आए। उसके बाद से मैं कभी मौलवी के साथ कही नही गई।
जिस वक्त अब्बू, फातिमा को लेटाकर उसकी स्कर्ट ऊपर कर रहे थे, उस वक्त अब्बू अपनी पतलून की ज़िप खोल कर अपना लंड निकाल रहे थे की तभी फातिमा मौलवी के साथ हुए जो हुआ वह बताने लगी, जिससे अब्बू के हाथ जिप पर ही रुक गए थे। फिर जब फातिमा ने मौलवी के साथ जो हुआ बताने लगी तो अब्बू ने आहिस्ते से अपना लंड पतलून से बाहर निकाल लिया और मौलवी की हरकतों को सुन, फातिमा की जांघों पर छुआने लगे थे। मौलवी की बाते बताते हुए, फातिमा को इस बात का एहसास हो रहा था की अब्बू इतने मसरूर हो गए थे की जब भी मौलवी का जिक्र होता, अब्बू उसकी जांघों पर अपना मोटा लंड रगड़ दे रहे थे। मगर वह नादान बन रही, जैसे उसे कुछ समझ ही नही आ रहा, यह हो क्या रहा है।
जब फातिमा ने सारी बातें कह डालीं और अब्बू, जंगल के रास्ते हुए वाकये से इत्मीनान में हो गए तो अब्बू ने उसको चूमते हुए कहा- बस यही हुआ है तो कोई ख़ास बात नहीं है, मैं उस मौलवी को भगवा दूँगा क्योंकि तू सिर्फ मेरी है।
यह कह कर अब्बू अचानक दरिंदे बन गए और उसने फातिमा के ब्लाउज को इतनी ज़ोर से खींचा कि ब्लाउज फट गया। फातिमा ने जब यह होते हुए देखा तो घबरा गयी और मोटी मोटी आँखों से अब्बू को हैरानी से देखने लगी।
उसने धीरे से कहा- क्यों मेरे ब्लाउज को फाड़ डाला आपने अब्बू? ये मेरी यूनिफार्म का ब्लाउज है।
उसके अब्बू ने उसे कोई जवाब नही दिया। वह अब अपनी छोटी साइज की ब्रा में थी और अब्बू उस ब्रा को, अपने हाथों को फातिमा के पीठ पर ले जाकर खोलने की कोशिश करने में लगे हुए थे। फातिमा, इस कोशिश की वजह से अपने अब्बू की छाती पर झुक गई थी। उसकी जैसे ही ब्रा खुली, अब्बू ने ब्रा को ज़मीन पर फेंकते हुए फातिमा की चूचियों को अपने मुँह में भर लिया। फातिमा की पूरी चुची उसके अब्बू के मुँह में समा गई थी। अब्बू उसकी एक चूंची को मुँह में लिए चुसक रहे थे और दूसरी चूंची को अपने हाथों से मसल रहे थे। जहां अब्बू की शिद्दत फातिमा की चूंचियों पर बढ़ती जा रही थी वहीं फातिमा अपने अब्बू के हर एहसास पर, धीमी आवाज़ में मादक सिसकारियां लेने लगी थी।
अब अब्बू, फातिमा को अपने गोद में लेकर, बिस्तर पर बैठ गए। अब वो एक तरफ उसकी बहुत ही नाज़ुक चूचियों को चूस रहे थे और दूसरी तरफ उनका एक हाथ फातिमा की स्कर्ट के नीचे उसकी चढ्ढी की तरफ रेंग रहा था। इस पर फातिमा ने जल्दी से अपने हाथों को अब्बू के हाथ पर रखा कर, अपने अब्बू को ज़्यादा आगे बढ़ने से रोक दिया। लेकिन वासना से भरे हुए अब्बू कहां रुकने वाले थे, उन्होंने चुची को छोड़ कर अपना मुँह, फातिमा की जांघों पर फेरना शुरू कर दिया, वो जीभ से उसकी जांघो को चाटने लगे थे।
अब्बू के चाटने से फातिमा भी टूट सी गई और वासना से भरीवो सिसियाने लगी- उफ, आई! खुदारा बस करो अब्बू! मुझे कुछ हो रहा है अब्बू!
अब्बू को कहां कुछ सुनाई दे रहा था, उन्होने फातिमा को बिस्तर पर पूरी तरह लेटा दिया। अब अधनंगी फातिमा उनके सामने बिस्तर पर पड़ी थी, जो अपने लम्बे बालों को सर के नीचे से फैलाने की कोशिश कर रही थी। अब्बू ने एक मिनट अपनी बिटिया फातिमा को उसके गले से छाती पर देखते हुए घूरा और फिर अपनी नजरे नीचे की तरफ ले गए। फिर जल्दी से फातिमा की स्कर्ट को ऊपर उठा कर, अब्बू ने अपना मुँह चढ्ढी के ऊपर ही लगा दिया। यह करने पर फातिमा की एक छोटी सी चीख़ निकल गई लेकिन अब्बू ने उसे अनसुनी कर दी।
फातिमा ने अपने हाथों को अपनी चढ्ढी को दबाया हुआ था और वो अब्बू को वहां छूने नही दे रही थी। अब्बू ने जब देखा की फातिमा उन्हे रोक रही है तो अपने मज़बूत हाथों से, फातिमा के हाथों को वहां से हटाने लगे। लेकिन फातिमा पूरा ज़ोर लगा कर, अपनी दोनों जांघों को एक दूसरे के ऊपर रख कर, अपनी चढ्ढी को छुपाने की कोशिश कर, अपने अब्बू को अपने पर हावी होने से रोक रही थी।
वो थोड़ा बहुत चिल्लाने के साथ में हंस भी रही थी. फातिमा ने कहा- अब्बू बस करो! मुझको गुदगुदी हो रही है! हाहाहा … हाही.. हेहेहे.. हटाओ न अपना हाथ वहां से, मुझे बहुत गुदगुदी हो रही है।
अब्बू अब भी उसकी चढ्ढी उतारने की कोशिश में लगे हुए थे। पर फातिमा ने तो अपने पैरों को मोड़ लिए और पैरों को पेट पर दबा कर, ज़ोरों से हंसे जा रही थी।
उसको हँसते हुए देख कर अब्बू को भी हंसी आ गयी और हँसते हँसते उसने बोला- हटाओ अपना हाथ बिटिया रानी, उतारने दो ना, ज़रा देखूँ तो यह जगह कितनी मुलायम और गद्देदार है।
खूब हंसने के बाद फातिमा उठ कर बिस्तर पर बैठ गई और अपने अब्बू को चूमते हुए उनके सीने से लग गई। अब्बू उसकी चूचियों को अपने छाती पर महसूस करके बहुत नादिर महसूस कर रहे थे और फातिमा अपने अब्बू की छाती के बालों को अपनी चुचियों पर रगड़ते हुए कसमसा रही थी।
उसके बाद कुछ लम्हों के बाद अब्बू ने प्यार से फातिमा के चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसकी आँखों में अपनी में देखते हुए बोला- तू अपने अब्बू से बहुत प्यार करती है ना?
फातिमा ने बहुत ही नर्म धीमी आवाज़ में जवाब दिया- इसमें कोई शक है क्या अब्बू, दुनिया में सबसे ज़्यादा आपसे ही तो प्यार करती हूं. और कौन है मेरा आप के सिवा?
तब अब्बू ने कहा- आज अगर तेरी माँ ज़िंदा होती तो क्या मुझे तुझसे इस प्यार के लिए तरसना पड़ता? तो क्या तू अब्बू की इस प्यास को ऐसे ही रहने देगी? तुमने तो मेरी ज़िन्दगी में हर तरह से अपनी अम्मी की जगह ले ली है, तो अब क्यों मुझको तड़पा रही है मेरी गुड़िया?
इस वक़्त दोनों फिर से बिस्तर पर लेट गए और फातिमा, अपने अब्बू के बाँहों में समा गई। वो ऊपर नंगी थी मगर नीचे जिस्म पर उसकी स्कर्ट और चढ्ढी अभी भी थी। अब्बू का हाथ अब भी उसकी जांघों के ऊपर चढ्ढी के पास ही घूम रहा था। फातिमा अपने अब्बू की उन बातों को सुनकर अब खामोश हो गयी थी।
फिर भी उसने बहुत ही प्यार से कहा- अब्बू, मैं तो उस दिन से आप से प्यार करती हूँ, जिस दिन से आपके बिस्तर पर आप के पास सोने को आयी थी और आपने मुझको अपने बाँहों में लेकर सुलाया था।
यह सुनकर अब्बू चौंक गए और बिना देरी किए अपना हाथ एक बार फिर, फातिमा की स्कर्ट के नीचे डाला और अपने हाथों से उसकी चढ्ढी को आहिस्ते आहिस्ते खींचने लगे।
फातिमा अब तक अपने तन में लगी आग और मन में भड़के हुए वासना के शोलो से दहक चुकी थी, उसने ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ कहते हुए एक अँगड़ाई ली और अपने अब्बू को अपना काम करने दिया लेकिन शर्म के मारे, उसने नंगी हुई चूत को अपने हाथों से ढक दिया। अब्बू, फातिमा की इस आखरी हया की कोशिश पर रीझ गए और आहिस्ते से उसके हाथों को चूत के ऊपर से अलग कर दिया। फातिमा ने भी अब्बू से कोई जबर नही दिखाया और अपनी नंगी चूत को अपने अब्बू के सामने पेश कर दी। अब्बू ने उसके हाथों के हटते उसकी कुँवारी चूत देखी तो एक लम्हे के लिए जड़ हो गए और उन्होंने पाया कि चूत गुलाबी और एकदम साफ़ थी। झांट का एक बाल भी उसकी चूत पर दस्तखत नही दे रहा था।
उसकी नंगी मक्खन सी चूत देख कर अब्बू की कैफियत न काबिले यकीन वाली हो रही थी। वो इस चिकनी चूत को देख कर नजरबंद हो गए। कुछ लम्हे होश ओ हवास खोने के बाद जब होश संभाले तो अगले लम्हे ही, उस बेनजीर चूत पर झुक गए और उस पर अपनी जीभ चला दिया। अपने अब्बू की जीभ को अपनी चूत पर महसूस कर फातिमा सिसकारियों से कराह पड़ी। अब अब्बू अपने जज्बे में डूबे हुए धीरे धीरे अपनी कुंवारी बेटी की फूली हुई चूत को चाटना शुरू कर दिया।
जब अब्बू चूत चाट रहे थे तो फातिमा अपने दोनों हाथों से अपने अब्बू के सर को ज़ोर से पकड़े हुए थी और ‘उफ.. आह्ह्ह ओह्ह..’ करते हुए लम्बी लम्बी गर्म साँसें ले रही थी।
अब्बू आहिस्ते आहिस्ते अपनी बेटी फातिमा की जवान कुंवारी चुत की पंखुड़ियों को, अपनी उंगलियों से एहतराम से खोलते हुए, अपनी जीभ को चूत के उन मुलायम हिस्सों तक पहुंचने के लिए घुसेड़ने लगे। फातिमा की चूत अब बिल्कुल गीली हो चुकी थी। अब्बू उसकी चूत चाटते चले गए और फातिमा भी अपने अब्बू की जीभ को अपनी चूत पर सजदा करते, महसूस कर, सिसकारियों में डूबती चली गयी।
फातिमा की चुत चटने से उसकी आँखें जैसे नशीली हो गई थीं। उसकी आंखें चुदास के नशे में ऐसे लग रही थीं, जैसे उसने पूरी बोतल शराब पी ली हो। वो अब अपने अब्बू के सर को अपनी मक्खन जैसी नर्म चूत पर दबाए, घुटी आवाज में कराह रही थी। उसने अपनी दोनों जांघों को दोनों तरफ फैला दिया और अपने अब्बू से खुल कर अपनी चूत चटवा रही थी।
उसके अब्बू सारे जहान से बेजार, उसकी चूत को चाटते हुए, जन्नत के मंजर में डूब गए थे। अब्बू, समय को भूल वैसे ही सर घुसाए फातिमा की चूत को चाटते रहे और अपनी बेटी फातिमा को बेहाल करते रहे। फातिमा कभी सर उठाकर अब्बू को देखती, तो कभी झटपटा कर, सर बिस्तर पर पटकती और कभी उठ बैठ रही थी।
इस नए तजरीबा से बेसुध फातिमा ने एक मादक आवाज़ निकाली - अब्बू बस भी करो अब!!!
यह कहकर, फातिमा ने खुद अपनी चूचियों को दबाते हुए, अपने हाथों से अपनी जीभ को अपने होंठों पर फेरते हुए, मखमूर ऑखों से अब्बू को देखने लगी।
कुछ देर बाद अब्बू ने उसकी चूत को चूसना, चाटना छोड़ दिया। उन्होंने उठ कर, उसकी स्कर्ट को निकाल कर बाहर फेंक दिया और अब वो फातिमा को बांहों में लेकर उसके ऊपर चढ़ गए।
फातिमा ने धीमी आवाज़ में अब्बू को चूमते हुए कहा- आप पतलून नहीं उतारेंगे क्या?
तब अब्बू ने कहा- तुम्हीं उतार दो ना, बहुत लुत्फ आएगा।
फातिमा ने कहा - ठीक, आप लेटे और हिलना मत, उतारती हूँ।
अब्बू पीठ के बल अपने हाथों को सर के नीचे किए लेटे और नंगी फातिमा, अब्बू के पैरों के बीच, घुटनों पर आ गई। वो अपने अब्बू की पतलून, झुक कर आहिस्ते आहिस्ते खोलने लगी उसके अब्बू उसे निहारने लगे थे। वो उसकी तनी हुई, चूचियों को देख रहे थे। उसके अब्बू कभी उसके सपाट पेट को देखते, तो कभी उसकी पतली कमर पर उसकी नज़र पड़ती। फातिमा की कमर के नीचे वाला हिस्सा उभरा हुआ था, वहां से लेकर जांघों तक तो एकदम खिंची लग रही थी।
अब्बू जैसे एक एक करके अपनी बिटिया फातिमा की नंगी जवानी को निहारते गए और वैसे वैसे उनका लंड पतलून के अन्दर और कड़क होकर तना जा रहा था। फातिमा को अपने अब्बू के कड़े लंड के कारण उनकी पतलून उतारने में दिक्कत हो रही थी। इस कोशिश में एकाध बार उसके मुलायम हाथ से, अब्बू का मोटा तना लंड भी दब गया था। अब्बू को फातिमा के हाथ का उनके लंड को छू जाना, एक अलग ही मौज दे गया था। फातिमा को अब्बू की पतलून उतारने में जितनी देर लगा रही थी, उसके अब्बू को उतना ही ज्यादा मज़ा आ रहा था। आखिर में जब फातिमा को पतलून को जोर से नीचे से खींच कर निकलने में दिक्कत हुई तो उसने अब्बू से कहा- अरे आप ऊपर उठाइये तो!
अब्बू ने मुस्कुराते हुए पूछा- क्या ऊपर उठाऊं?
फातिमा भी मुस्कुरायी और आसमान की तरफ देखते हुए कहा- अब्बू आप उठाईए ऊपर! उसको पतलून निकलने के लिए अब्बू की गांड को ऊपर उठवाना था मगर फातिमा गांड उठाने को कह नही पारही थी। तब उसके अब्बू ने हँसते हुए अपनी गांड को ऊपर उठाया और फातिमा ने उनके पतलून को निकाल कर ज़मीन पर फेंक दिया। अब अब्बू के कच्छे में उनका लंड, उसे तंबू बनाए हुए था।
अब्बू ने कहा- अब इसको कौन उतारेगा बिटिया?
अब्बू का इशारा उसका कच्छे पर था। शरमाती हुई फातिमा बोली- वह मैं नहीं उतारने वाली, उसे आप ही उतारो।
अब्बू ने कहा- अरे, मैंने जैसे तेरी चढ्ढी उतारी थी, वैसे ही तू भी उतार ना बेटी।
यह कह अब्बू ने उसके हाथों को खींच कर अपने लंड पर रख दिया और उससे, कच्छाउतारने की जिद करने लगे थे।
अब्बू के बहुत कहने के बाद फातिमा ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और कच्छे को खींचना शुरू कर दिया। वह सिर्फ आधा ही निकला, क्योंकि ऊपर वाला हिस्सा तने हुए लंड पर अटका हुआ था।
फिर अपने होंठों को दांतों में दबाते हुए एक छोटी सी मुस्कान के साथ फातिमा ने अपनी उंगलियों से लंड को उस जगह से हटाया, जहाँ कच्छे में अटका हुआ था। फिर उसको खींचकर निकाल कर नीचे ज़मीन पर फेंक दिया।
फातिमा ने मुस्कुराते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं। अब्बू ने फातिमा के सर को थाम कर अपने लंड के तरफ खींचा और फिर रुक गए। फातिमा की आंखे जरूर बंद थी मगर उसे समझ में आ रहा था कि अब्बू क्या चाहते है। उसे बेहद शर्म आरही थी और आगे बढ़ने के लिए हिचकिचा भी रही थी।
अब्बू ने फातिमा के हाथों को अपने खड़े हुए लंड पर रखा और भर्राई आवाज़ में कहा- इसको सहला, इसको सहलाती जा मेरी गुड़िया। आह! आह!! मेरी गुड़िया करती जा! ऐसे ही करती जा!
अब्बू के लंड को अपने हाथो में महसूस कर फातिमा के जिस्म में एक कंपकंपी सी दौड़ गई और उसकी रूह भी काँप उठी। उसने अपनी ज़िन्दगी में मौलवी के लंड को देखा और महसूस जरूर किया था लेकिन आज से पहले कभी भी लंड को अपने हाथों में थामा नही था। फिर उसने अपनी आँखों को बंद करते हुए अपने मुलायम हाथों में पहली बार अब्बू के मोटे लंड को पकड़ा और उसको सहलाना शुरू दिया।
अब्बू अपने पूरे जिस्म को ढीला छोड़ कर लेट गए और ज़ोर से चुदास से भरी आवाजें निकालने लगे- आहहहह! इसिश!! बहुत मज़ा आ रहा है मेरी गुड़िया! और ज़ोर से! और ज़ोर से अपना हाथ चला मेरी गुड़िया रानी! ऐसे ही! आह!!! ठहर जरा,अभी बताता हूं! यह देख, अपनी मुठ्ठी से मेरे लंड को ज़रा सा बंद करके, ऐसे अब हाथ को चला! ज़ोर से चलाती जाना!!!
अब्बू ने गहरी साँस लेते हुए फातिमा को सिखाया कि कैसे वह अपने हाथ को उसके लंड पर चलाए। जब फातिमा ने ठीक से वैसे ही करना शुरू किया तो अब्बू फिर से लेट गए और मजा लेते हुए, वासना में तड़पते हुए, आह आह की आवाज़ निकालने लगे।
अब्बू की आवाज में लगातार तड़प महसूस कर आखिर में फातिमा को अपनी आँखों को खोलना पड़ गया। उसके मुलायम हाथो में फिसलते लंड जहां उसके अब्बू को तड़प दे रही थी वहीं फातिमा को यह भी एहसास हो रहा था की उसके हाथो में अब्बू के लंड की गर्मी ने उसकी चूत को पनिया दिया है।
आखिर में अब्बू ने फातिमा को अपने मुँह में लंड को लेने का इशारा किया तो उसने इन्कार कर दिया। उसके इनकार कर देने के बाद, अब्बू ने फातिमा को समझाया कि जैसे उसने उसकी चूत को चाटा और चूसा था, वैसे ही उसको भी लंड को चाटना चूसना चाहिए। यह सब प्यार करने का एक तरीका होता है और इससे दोनों जनों को बहुत मज़ा और इत्मीनान मिलता है।
अब्बू के बहुत समझाने पर, झिझकते हुए फातिमा, अपने अब्बू के लंड पर झुक गयी। उसने पहले अब्बू के कहने पर अपनी जीभ से लंड के ऊपर वाले हिस्से पर फेरा, फिर धीरे धीरे वो अपने अब्बू का लंड चाटने लगी। थोड़ी देर बाद, अब्बू ने उसका सर पकड़ा और अपने लंड से उसके होंठो को रगड़ने लगे और फिर जोर देकर उसके होंठो को खोलते हुए, उसके मुंह में अपना लंड घुसेड़ दिया। फातिमा के मुंह के अंदर अपना लंड पाकर अब्बू ने फातिमा को उसे चूसने का इशारा किया और कुछ देर की आना कानी के बाद फातिमा अपने मुंह में घुसे अपने अब्बू के आधे लंड को चूसने लगी थी।
अब्बू ख़ुशी और मौज के मारे आवांजे निकलने लगे थे, उनके मुंह से लगातार- आआआअह! आह और ज्यादा और अन्दर ले ले! अपने मुँह में!!!! आह,! मेरी बिटिया रानी और चूस! निकल रहा था।
अब्बू को उस तरह से मज़ा लेते हुए फातिमा ने कभी नहीं देखा था, उसने अपने अब्बू के लंड को बहुत चूसा। जब फातिमा को अपने जीभ पर नमकीन स्वाद महसूस होने लगा तो वह समझ गयी थी कि यह उसके अब्बू का माल है और इसी के साथ वो अपने अब्बू के लंड के छेद पर अपनी जीभ रगड़ने लगी।
उधर अब्बू उस रगड़ से बेहाल हो रहे थे। वो चिचिया रहे थे। कुछ देर अब्बू के लंड को चूसने के बाद फातिमा बोली- अब्बू अब बस, मेरा मुँह दुःख गया। और यह कहते हुए उसने अपने मुंह से अब्बू के लंड को निकाल दिया।
इसपर फातिमा के अब्बू ने उसे अपने गोद में बैठा लिया। उसने फातिमा की दोनों जांघों को अपनी जांघों के दोनों तरफ बाहर किया और नंगी फातिमा को अपने लंड पर बैठाया। फातिमा अपने अब्बू के बड़े लंड को अपनी छोटी सी चूत पर महसूस करके वह सिहर कर, सिमट गई। उसके गाल अपने बापू के गालों से रगड़ खा रहे थे, उसकी आंखे बंद थी और वो अपने अब्बू के लंड को अपनी चूत पर नीचे की तरफ रगड़ते हुए महसूस कर, कांप रही थी।
थोड़ी देर बाद अब्बू ने उसे खड़ा किया और अपने लंड पर थोड़ा थूक सा लगा, कुछ थूक फातिमा की चूत पर भी लगा दिया। फिर फातिमा को थोड़ा सा ऊपर उठाकर अब्बू ने अपने लंड के टोपे को फातिमा की चुत पर थोड़ा सा लगा, हल्के से धक्का दिया। उस धक्के से फातिमा की चीख़ निकल गई और उचक गई, जिससे अब्बू का लंड एक तरफ को हट गया।
फातिमा के अब्बू अपनी बेटी की कुंवारी चूत चोदने के लिए बदहवास हो चुके थे, उन्होंने उसे सीधे लिटा दिया। अब अब्बू उसको चूमने लगे, उसकी चूचियों को चुसने और उसके पूरे जिस्म को चाटने लगे। वो हर तरफ से फातिमा को मस्त कर के, उसकी छोटी चूत में अपना बड़ा लंड घुसाने के लिए उसको तैयार कर रहे थे।
फातिमा अपनी आँख मूंदे, वासना से सराबोर सिसकारियां ले रही थी। आखिर में अब्बू, फातिमा के दोनों पैरों को फैला कर, खुद उसके बीच में आगए। उन्होंने अपने अपने लंड को फातिमा की चुत पर रगड़ा और फिर से थूक से गीला करके, उसकी चूत में में डालने की कोशिश करने लगे। हर बार जब लंड घुसने वाला होता, तो फातिमा अपनी कमर हिला देती और अब्बू का लंड एक तरफ खिसक जाता था।
फातिमा के अब्बू अब इस नाकामी से झुंझला रहे थे। लेकिन उन्होंने अपना जबर बनाए रक्खा। अब उन्होंने अपने दोनों हाथों से फातिमा की दोनों जांघों को दबाया और अपने लंड को चूत के छेद में डालने के लिए उस पर जोर मारा। इससे उसके लंड का टोपे वाला हिस्सा थोड़ा सा अन्दर चूत में घुसा और लंड के अन्दर जाते ही फातिमा ज़ोर से चिल्ला दी- न न अब्बू! खुदा की कसम, मुझको डर लग रहा है! दुखता!, मत डालो अन्दर!
अब्बू फातिमा का डर और दर्द दोनो समझते थे, उन्होंने फातिमा को प्यार से सहलाया, उसे चूमा और उसको तसल्ली दी। थोड़ी देर यह सब करने के बाद, अब्बू ने फातिमा की चूचियाँ सहलाते हुए, उसकी चूत में एक कस के धक्का मारा और उसका आधा लंड फातिमा के कुंवारेपन की झिल्ली को तोड़ते हुए अन्दर घुस गया। फातिमा दर्द से तड़प उठी। उसके अब्बू ने अपने लंड को वही फंसे रहने दिया और वो फातिमा के होंठो और चूचियों का चूमने और दबाने लगे जब फातिमा का दर्द कम हुआ और वह अब्बू को देखने लगी, तब अब्बू प्यार से बोला- बिटिया दर्द कम हुआ?
फातिमा के आंखो में अभी भी आंसू थे लेकिन फिर भी उसने हाँ में सर हिला दिया।
अब अब्बू ने और ज़ोर से धक्का मारा और उसका पूरा लंड फातिमा की नन्ही सी चूत के अंदर धँस गया।
फातिमा को यूं लगा कि जैसे उसके अन्दर किसी ने कील ठोक दी है। वह दर्द से बिलबिला उठी और रोने लगी। अब्बू ने रोने को दरकिनार रख फातिमा के आँसू पोंछते हुए उसकी चूचियाँ दबाते रहे और होंठ चूसते रहे। थोड़ी देर में फातिमा ने महसूस किया कि अब दर्द कम हो गया और अब्बू का लंड भी अंदर हरकत कर रहा है। उसे वह एहसास दर्द के साथ मजा देने लगा था।
अब्बू उसके चेहरे की रंगत देख समझ गए थे कि बिटिया रानी फातिमा अब इत्मीनान में है। अब अब्बू ने अपनी कमर को उठाकर अपना आधा लंड बाहर किया और फिर ज़ोर से अन्दर जड़ तक उसे पेल दिया। फातिमा की दर्द के साथ मस्ती से आह निकल गई और वह ‘आह आह उफ़्फ़, अब्बू! बोल उठी। अब्बू ने उसकी आह सुनकर बोला - अब मजा आया? इस पर जब फातिमा ने कुछ नही बोला तो अब्बू ने वैसे ही उसकी चूत में अपना लंड घुसेड़ हुए, उस पर हिलते हुए पूछा -बोल बिटिया, अब्बू चोदे?
इस पर फातिमा के मुंह से निकल गया - अब्बू आपकी हूं, चोद लो.
यह सुन अब्बू ने ख़ुश होकर बोले- वाह बिटिया, चार धक्कों में चुदाई सीख ली और बोलने भी लगी! शाबाश, बस ऐसे ही चूदाई किया करेंगे।
यह कहते हुए उसने फातिमा को चोदना शुरू कर दिया अब्बू ने फातिमा के मस्ती से भरे अंगों को दबाते हुए, उसे ज़ोरदार चुदाई से मस्त कर दिया। फातिमा भी दर्द में सराबोर मज़े में सिसकारियाँ लेने लगी थी। फिर उसका शरीर अकड़ने लगा और वो चिल्लायी- अब्बू कुछ निकल रहा है! मैं गयी!
वो अपने जिस्म को थिरकाते हुए झड़ने लगी थी। उसी समय अब्बू भी अपनी बिटिया के झड़ने से गरमाए हुए, लगातार धक्के मारते हुए, आह! आह! करते हुए झड़ गए।
कुछ देर बाद, फातिमा के अब्बू ने उसकी चूत से अपना लंड बाहर निकाला और बिस्तर से उठ गए। उनके लंड से अभी भी माल टपक रहा था। अब्बू ने इसकी परवाह किए बिना फातिमा को बांहों में भर लिया और कुछ देर बाद बोला- चलो, गुसलखाने चलते हैं।
फातिमा उठकर अपनी चूत देखने लगी जिसमे अभी भी जलन सी हो रही थी। जब उसकी नज़र चादर पर पड़ी, तो उसमे लाल ख़ून का दाग़ लगा हुआ था। तभी अब्बू ने मुस्कारते हुए अपने लटके हुए लंड को उसे दिखाया, जिसमें लाल ख़ून लगा हुआ दिख रहा था।
अब्बू ने बोला- जब लड़की पहली बार चुदती है, तो उसकी चूत से थोड़ा सा ख़ून निकलता है, बेटी, ये कोई खास बात नही है।
फातिमा बोली- अब्बू यहाँ नीचे थोड़ा दर्द और जलन भी हो रही है।
उस पर अब्बू बोला- बिटिया, पहली बार में ये सब होगा, कल तक सब ठीक हो जाएगा।
फिर वो दोनों उठे और अब्बू ने फातिमा को गोद में उठाकर उसे चूमते हुए गुसलखाने में ले गए। दोनो ने पेशाब की तब अब्बू ने बोला- चलो गुड़िया तुम्हें नहला दूँ, पसीने से भीग गयी हो और मेरे मालं से भी सनी हो।
फिर अब्बू ने फातिमा को नल से पानी डाल कर नहलाने लगे और अपने शरीर पर भी पानी डालने लगे। अब्बू ने पहले फातिमा की चूत और जाँघों में साबुन लगाया और फिर उसे घुमा कर उसके चूतड़ों पर साबुन लगाने लगे। फातिमा ने गुसलखाने के शीशे में देखा कि जब अब्बू उसके चूतड़ों पर साबुन लगा रहे थे तो उसके अब्बू का लंड अब फिर से खड़ा होने लगा है।
अब्बू ने साबुन लगाते हुए फातिमा के चूतड़ों की दरार में हाथ डाल दिया और अब उनका हाथ फातिमा के चूतड़ोंसे हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। फिर थोड़ी देर बाद, अब्बू ने नहाया और बाद में तौलिए से अपना और फातिमा का बदन पोंछा। फातिमा का बदन पूछते हुए, अब्बू ने नीचे बैठ कर उस की चूत को कसके चूम लिया।
फिर फातिमा को घुमाकर उसके अब्बू उसके चूतड़ों को चूमने लगे। फातिमा ने शीशे में देखा कि उसके अब्बू ने उसके चूतड़ों को फैला कर, अपना मुँह उसकी दरार में डालने जारहे है। तभी उसे अपने अब्बू की जीभ अपनी गांड के छेद पर महसूस हुई और वो चहुंक उठी। अब्बू ने क़रीब 5 मिनट तक उसकी गांड चाटी तो फातिमा के पाँव उत्तेजना से काँपने लगी और बोली- छी: अब्बू! क्या गंदी जगह को चाट रहे हो!
अब्बू ने गहरी सांस लेते हुए बोला- गुड़िया रानी, तुम्हारी कुँवारी गांड बहुत मस्त है, बहुत जल्दी मैं तेरी गांड भी मारूँगा।
फातिमा बोली- अब्बू, अम्मी की भी गांड मारते थे?
अब्बू - हाँ बिटिया, वो मुझे गांड़ मारने देती थी और बाद में तो उसे बहुत मजा आने लगा था।
फातिमा अपनी अम्मी की गांड़ मरवाने की आदत सुनकर हैरान ही रह गयी।
जिस्म सुखाने के बाद अब्बू, फातिमा को लेकर जब कमरे में आगए, तो उनका लंड फिर से खड़ा हो चुका था। उन्होंने फातिमा को अपने गोद ले लिया और उसको चूमते हुए, उसकी चूचियाँ दबाने लगे। फातिमा, अब्बू की गोदी में बड़े इत्मीनान से बैठ गई और अपने अब्बू की हरकतों का पूरा मजा लेने लग रही थी।
अब्बू ने फातिमा की चूत पर आहिस्ते से हाथ फेरते हुए बोला- बेटी, तेरी चूत अभी भी दर्द कर रही है क्या?
फातिमा बोली- अब्बू, अभी भी हल्का दर्द है.
अब्बू- मेरा तो फिर खड़ा हो गया है। गांड मारने की तबीयत है मगर तू झेल नहीं पाएगी। तू अपने अब्बू का लंड चूसे गी? चूस कर मेरे लंड का ताव उतार दो, बिटिया।
फातिमा ने अपने अब्बू के हुक्म पर सर हिला कर रजामंदी दी तो अब्बू ने कहा- तुम बैठ जाओ, मैं खड़े होकर, तुम्हारे मुँह में अपना लंड डालता हूँ।
फातिमा के अब्बू ने उसे बैठाकर, अपना लंड उसके सामने किया तो फातिमा उसे चूमने और चाटने लग गई। उसके बाद, फातिमा ने अपने अब्बू के बिना इशारे के ही उनके लंड को अपने मुंह में ले लिया और उसकी चूसने लगी। अपनी बिटिया के चुसने से गरमाये अब्बू अब उसके मुंह में धक्के मारने लगे। पहले तो हल्के से मारे, फिर तेजी अब्बू उसके मुंह को चोदने लगे।
अब्बू अपनी बिटिया के मुंह में अपने लंड के हर धक्के पर आह आह कर रहे थे और उससे कहने लगे- आह आज तो तुम्हारी अम्मी की याद आ गयी, वो भी ऐसे ही चूसती थी।
फिर वो लंड से बहुत ज़ोर से धक्के मारने लगे और बोले- मैं अब झड़ने वाला हूं बिटिया, तुम लंड का मॉल पियोगी? कोशिश करो, अच्छा लगेगा.
फातिमा ने लंड चूसते हुए, अब्बू की तरफ़ देखा और अपना सर हिलाकर हाँ का इशारा कर दिया
उसकी हां देख, अब्बू मस्त हो अपने धक्कों की तेजी बढ़ा, बड़ाबड़ा ने लगे- उफ्फ गुड़िया! मैं मैं मैं गया!!!
यह कहते हुए अब्बू ने अपना मॉल को फातिमा के मुँह में छोड़ना शुरू कर दिया। फातिमा को अब्बू का गर्म मॉल बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा लेकिन फिर भी वो उसे गटक गई। अब्बू ने जब देखा की फातिमा नापसंदिगी के बाद भी मॉल को पी रही है, तो उन्हें फातिमा पर बड़ा प्यार आगया। अब्बू ने अपना लंड, फातिमा के मुंह से बाहर खींच के बाहर किया और बचे मॉल को फर्श पर ही गिर जाने दिया। उसके बाद अब्बू ने फातिमा के मुँह में लगे हुए अपने मॉल को साफ़ करके उसे बहुत प्यार किया और फिर उसे बांहों में लेकर, धक के नंगे ही उसके साथ सो गए।
मुझसे उस रात फातिमा ने अपने अब्बू के साथ शुरू हुए जिस्मानी रिश्ते के कारणों और जो हुआ वह एक ही सेशन में बिना रुके बता डाला था। जब उसने अपनी आप बीती समाप्त की तो मैं बहुत देर तक, अपने लैप टॉप के स्क्रीन पर स्तब्ध देखता रहा। मेरी समझ नही आराहा था की फातिमा की यह हकीकत है या उसकी यौन फैंटेसी का उदगार? फातिमा एक स्त्री थी यह बात तो मैं जानता था क्योंकि पूर्व में दो बार वी पी एन के माध्यम से बात हो चुकी थी लेकिन फिर भी उसकी स्वीकारोक्ति ने मुझे झझकोर दिया था। मैंने जब बहुत देर तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने प्रश्न किया की मैं चुप क्यों हूं? मैने कहा, कई बार हम जो सोचते है या जिस विषय पर जिज्ञासु हो, काम पिपासा से भर जाते है, वो जब प्रत्यक्ष सामने आजाता है, तो हतप्रभ बिना हुए नही रहा जाता है। मेरे उत्तर को सुनकर उसने स्माइली भेज दी और तब मैं भी मुस्कराए बिना नहीं रह सका।
फातिमा से मेरा संपर्क कुछ वर्ष रहा और उसने अपने जीवन के बारे में और भी बहुत कुछ बताया। जैसे की उसके अब्बू के साथ उसके शारीरिक संबंध अगले 6 वर्ष तक और चले। उसके अब्बू उस पर इतना आसक्त हो गए थे की उसकी निकाह के लिए कोई अच्छा रिश्ता आता तो वो उसे टाल देते थे। एक दिन फातिमा को लगा की जो अब तक हुआ वह उसका भूत और वर्तमान तो हो सकता है लेकिन भविष्य नही हो सकता है, अब्बू उसके भविष्य नही हो सकते है। फातिमा पढ़ने में अच्छी थी इसलिए उसे जब यूनाइटेड नेशन की एक एनजीओ में काम करने का मौका मिला तो वो अपने गांव, शहर को छोड़ फैसलाबाद में काम करने चली गई। अब्बू ने बहुत रोकना चाहा लेकिन अब्बू को दिलासा देकर और यह भरोसा दे कर की वह उन्हे नही छोड़ेगी, निकल गई। फातिमा एक बार घर से निकली तो अब्बू ने भी हालात को समझ के, मन मार कर समझौता कर लिया। थोड़े समय बाद फातिमा का निकाह हो गया और अपनी नई जिंदगी की ओर निकल गई। मैन उससे पूछा था कि क्या शादी के बाद, अब्बू ने कभी उसकी चुदाई की? क्या जो हुआ उनको लेकर अफसोस हुआ और अब्बू से नफरत हुई? फातिमा ने बताया कि शुरू में शादी के बाद जब गांव जाती थी तो अकेले में अब्बू उसको चोदने का मौका ढूंढते थे और वह भी ज्यादा समय अब्बू को नही रोक पाती थी। बाद में उसने गांव जाना ही छोड़ दिया और अपने शौहर की बनाई ज़िंदगी मे रम गई। उसे अपने अब्बू के साथ बने शारीरिक सम्बंध पर थोड़ा अफसोस था लेकिन उसे कोई ग्लानि नही थी। उसे लगता था कि जो हुआ वो हालात के कारण हुआ और इसी लिए उसके दिल मे अब्बू के लिए कोई नफ़रत भी नही पनपी। फातिमा को एक बात बड़ी अजीब लगती थी कि वह इस उम्र में भी अपने अब्बू के साथ बिताए गए दिनों के की याद कर के उसकी चूत अब भी गीली हो जाती है। हमारे बीच जब इन्सेस्ट को लेकर, वह सही है या गलत पर बात होती तो वो अक्सर एक डायलॉग मारती थी, "डिअर प्रशांत, इन्सेस्ट इस अल्टीमेट थ्रिल एंड लव बट वन शुड भी लकी टू सर्वाइव इट"!
फिर एक दिन कोरोना की विभीषिका के आने के बाद से मेरा संपर्क फातिमा से टूट गया। वो है या नही, मैं नही जानता लेकिन फातिमा को अपने बहुत करीब पाता हूं। मैने यह कहानी इस उम्मीद से लिखी है की शायद फातिमा के आंखो से उसकी ही कहानी गुजरे तो शायद मुझे याद कर ले।
फातिमा, पाकिस्तान के मियावली शहर के चकराला के पास एक गांव की रहने वाली थी। उसकी मां का उस समय ही इंतकाल हो गया था, जब वह कच्ची उम्र की थी। उसके कोई भाई बहन नही थे इसलिए फातिमा अपने अब्बू, इरशाद मतीन की बड़ी दुलारी बिटिया थी। इरशाद, उन शाइस्ता लोगो में से थे जिन्हे छोटी बच्ची के लिए नई सौतेली मां लाना काबुल न था और तमाम दबाव के बाद भी कभी भी दूसरा निकाह नही किया था। एक ही औलाद होने के कारण, फातिमा छोटी उम्र से ही अपने अब्बा के साथ सोती थी। इरशाद गांव में एक दूध की कम्पनी के डिपो इंचार्ज और एक बेहद शरीफ शख्स थे, अपनी बेटी फातिमा, जो अब दसवें दर्जे में पढ़ रही थी, उससे बहुत प्यार करते थे।
जवान हो रही अपनी बेटी को लेकर उन्हें कभी भी कोई बुरा ख्याल नहीं था, सब ठीक से ही चल रहा था। इरशाद बेटियों को पढ़ाने के हामी थे और इसीलिए फातिमा अपने गांव की लड़कियों के साथ पास तहसील के अच्छे स्कूल में पढ़ने जाया करती थी। वो स्कूल से जब लौटती तो घर के काम निपटाती और अब तो वो अपने अब्बू से ही खाना पकाना सीखने में लगी हुई थी। जब वो छोटी थी, तब से ही वो घर के सभी काम अच्छी तरह से करना सीख गई थी। अपनी मां के इंतकाल के बाद, फातिमा अपने घर की मानो मालकिन बन और अपने अब्बू का खूब ख्याल रखती थी।
उसकी जिंदगी और घर सब इत्मीनान से चल रहा था कि एक वाक्यें ने फातिमा की जिंदगी का रुख ही मोड दिया। हुआ ये की एक शाम को, स्कूल से लौट रही लड़कियों ने फातिमा के बारे में कुछ अनाप शनाप बका, जिसे गांव के दूसरे लोगों ने सुन लिया। वो बात एक कान से दूसरे कान होते हुए फातिमा के अब्बू के कानों तक पहुंच गई। बात यह थी कि स्कूल के किसी एक लड़की ने स्कूल में दीनी इल्म देने वाले मौलवी मकसूद, जो करीब 30 साल के थे, उसको फातिमा के साथ अकेले देख लिया था। उससे फातिमा और उस मौलवी, जो की बड़ा दीनी शख्स था, को लेकर लड़किया कानाफूसी करने लगी और यही बात फातिमा के अब्बू, इरशाद तक पहुंच गई थी।
फातिमा, गांव की कादामत पसंद माहौल में भी अब्बू की आजाद ख्याली के साए में परवरिश पाई हुई, खुले रंग की एक खूबसूरत लड़की थी जिसे अल्लाह ताला ने नूरानी जिस्म भी बक्शा था। मियावली, पाकिस्तान के सदूर छोटे से गाँव में फातिमा जैसे कीचड़ में शादाब हुआ एक कमल थी। इस कानाफूसी के बाद गांव के हर गबरू जवां होते हुए मर्दों की नज़र, जवान होती फातिमा पर पड़ने लगी थी और फातिमा के अब्बू को इस बात का इल्म होने लगा था।
फातिमा के अब्बू को अपनी बेटी पर बहुत यकीन था, इसलिए उसे लोगो की कानाफूसी पर यकीन नही हो रहा था। उसकी फूल से बच्ची, ऐसा कुछ करेगी, इरशाद को एतबार नही हो रहा था। कई दिनों की उलझन के बाद आखिर एक दिन जब वो शाम को घर पहुंचे तो फातिमा के अब्बू ने बहुत झिझकते हुए उसको अपने पास, प्यार से पूछने के लिए बुलाया। फातिमा अपने अब्बू के बुलाने पर, अब्बू के पास आई, तो उसने देखा उसके अब्बू कुछ परेशान से है। दरअसल लोगो से अब्बू ने खुद सुना था की एक मौलवी के साथ फातिमा अकेली थी तो उन्हें इस बात का इनकान था की किस लिए फातिमा के साथ मौलवी अकेला रहा होगा और इस तसव्वुर में वे खुद को फातिमा को घूर के देखने से नही रोक पाराहे थे।
फातिमा के पहुंचने के बाद, उसके अब्बू ने ध्यान से उसको देखा तो उन्हें एहसास किया कि बिटिया फातिमा बड़ी हो गई है। अब्बू ने फातिमा को जब गौर से देखा तो देखते ही देखते, उसके अब्बू का किरदार, एक मर्द की शख्सियत से दब गया। उसे सामने खड़ी उसकी बिटिया, आदम की हव्वा दिखने लगी जिसकी चूचियां और चूतड़ों के गोलें, भारभराये और जिस्म गुले गुलजार हो रक्खा था।
इरशाद को शुरू से ही आदत रही थी की जब भी उसको अपनी बेटी फातिमा पर बहुत लाड आता था तो उसे अपनी गोद में बैठा लेते थे और यही आदत उसकी अभी भी, जबकि फातिमा एक छोटी बच्ची से जवां हो रही लड़की बन चुकी थी, बनी हुई थी। जब फातिमा उसके सामने आई तो उसके अब्बू ने उसे बुलाकर अपने गोद में बिठा लिया।
अब्बू ने उसके कंधो को सहलाते हुए प्यार से पूछा- बिटिया यह सब बातें जो तेरे बारे में हो रही हैं, क्या सच हैं?
फातिमा सहमी हुई बोली- कौन सी बातें अब्बू?
अब्बू जब फातिमा के कंधो को सहलाते हुए उससे पूछ रहे थे तब उसे महसूस हुआ कि फातिमा की जांघों के बीच उनका लंड खड़ा हो रहा है। अपनी बेटी के जिस्म की तपिश से जिंदा हो रहे लंड ने अब्बू को हिला दिया।
अब्बू ने जब गोदी में बैठी अपनी बेटी फातिमा के जिस्म से बेदार हुए, लम्हा लम्हा उरूज पाते अपने लंड को अपनी पतलून के अंदर सीधा करने की कोशिश की तो उनके हाथ फातिमा की जांघों को छू गए और उन्हें लगा जैसे सारा मंजर ही ठहर गया है। उधर फातिमा को यह महसूस हुआ की उसके अब्बू का हाथ, हटने की जगह, अब उसकी जांघो को ही सहला रहे है। फातिमा को अब अच्छी तरह से पता चल गया था कि उसके अब्बू, उसके साथ क्या कर रहे है। वो अब्बू के हाथो की हरकत पर, सर झुकाए अपने होंठों को दांतों में दबाए शर्म से लबरेज हो गई।
अब्बू ने फिर उससे बड़े प्यार से पूछा- बोल फातिमा बिटिया, मैं तेरे बारे में क्या बातें सुन रहा हूँ?
फातिमा ने मासूम बनते हुए कहा - क्या बातें अब्बू, क्या कह रहे हो आप? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है?
अब्बू, फातिमा की आवाज में शरारत की झलक पाकर थोड़ा बहक गए और उन्होंने अपने हाथों को हल्के से फातिमा की जांघों के ऊपर फेरा और उसकी स्कर्ट के नीचे अपना हाथ डालने की लिए तड़प गए। मगर उनकी हिम्मत नही हुई क्योंकि अभी तक उनके अंदर के अब्बू के किरदार पर मर्द का किरदार पूरी तरह हावी नहीं हुआ था। अब्बू ने अपने को रोकते हुए फातिमा से कहा- देख, मुझे अच्छी तरह से पता है कि तू खूब समझ रही है कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं। ज्यादा भोली न बन। मुझसे शरमाने के बजाए, मेरी प्यारी बिटिया को मुझ से खुल कर सारी बातें बता देनी चाहिए।
फातिमा ने बचपना सा किया और झट से अपने अब्बू की गोद से उतर कर रसोई की तरफ, उसको चाय बनाना है, कहते हुए चली गई।
अब्बू को समझ में नहीं आ रहा था कि अब वो कैसे उससे उस बारे में बात करे। वो फातिमा के पीछे रसोई तक गए और दरवाज़े पर खड़े होकर, यह सोचने लगे कि क्या उसकी बेटी उस मौलवी से चुदवाती है? इस ख्याल से की मौलवी मकसूद शायद फातिमा को चोद रहा है, अब्बू डगमगा गए और वो अपनी बेटी को हसरतों से देखने लगे।
फातिमा ने जब नज़र तिरछी करके देखा तो उसने देखा की उसके अब्बू उसको दरवाज़े के पास खड़े होकर, उसे घूर रहे है। उस वक़्त वह ब्लाउज और स्कर्ट में थी, जैसे हमेशा से घर पर पहना करती रही थी। उसके अब्बू ने गौर से उसकी चूचियों पर अपनी नज़र दौड़ाईं और फिर उन्होंने अपनी वासना से बोझल नज़रों को फातिमा के चूतड़ों पर टिका दिया। फिर जब एक नफस परस्त बाप की अपनी बेटी फातिमा की गोरी गोरी उभरी हुई जांघों पर नज़र पड़ी तो वो अपने होंठो पर जीभ फेरते हुए, अपने खड़े हो गए लंड को अपनी पतलून में सीधा करने में लग गए।
फातिमा ने जब अपने अब्बू को अपने लंड को पतलून में सीधा करते हुए देखा तो उसने होंठों को दांतों में दबाते हुए अपनी नजरें नीचे कर लीं। अब्बू जब उसे घूर रहे थे तब फातिमा पीठ किए किचन के टेबल के पास खड़ी थी। उसे वहां खड़ी देख, अब्बू से नही रहा गया और वो धीरे धीरे फातिमा के पास पहुँच कर, अपनी बांहों को पीछे से ही, फातिमा के कंधों पर डालते हुए उसके आगे रख दिया। फिर अपने जिस्म को उसके पीछे के जिस्म से चिपकाते हुए, अपने गालों को फातिमा के गालों से रगड़ते हुए कहा- तुम बिल्कुल अपनी अम्मी की तरह दिख रही हो बिटिया। जब तेरी मां जवान थी तो बिल्कुल ऐसी ही दिखती थी। आज उसकी याद आ गयी।
अब्बू जब यह कह रहे थे तब फातिमा ने खूब अच्छी तरह से महसूस किया कि उसके अब्बू का लंड उसके चूतड़ों पर दब रहा है। तभी उसके अब्बू ने उसके चूतड़ों पर हल्के से अपने लंड से रगड़ दिया जिसे फातिमा ने अपनी गांड पर खूब अच्छी तरह से महसूस किया।
जब से उसकी अम्मी का इंतकाल हुआ था, यह पहली बार था, जब उसके अब्बू उसके साथ ऐसा पेश आ रहे थे, वर्ना हमेशा से उसके अब्बू उसको एक छोटी बच्ची की नज़र से से ही देखते रहे थे।
अपनी अम्मी के इंतकाल के बाद से ही वो रात को अपने अब्बू के साथ सोती थी, मगर कभी भी उसके अब्बू ने उसको बुरी नज़र से नहीं देखा था। अब फातिमा को समझ में आ रहा था कि उसके बचपन की रूखसती के बाद उसकी चढ़ती जवानी, उसके अब्बू को भी गरम कर रही है। फातिमा को यह भी बिल्कुल पता हो चला था कि उस मौलवी से रिश्ते वाली बात को लेकर, उसके अब्बू उसको इन बदली नज़रों से देख रहे है। मगर फातिमा को समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, कुछ तो उम्र का तक़ाज़ा था और कुछ जिस्म की गर्मी भी थी। वैसे भी उसका जवान जिस्म, मर्दों को खूब उकसाती तो है ही, मगर उसने ये कभी नहीं सोचा था कि खुद उसके अब्बू भी उन मर्दों में से एक हो जायेंगे।
अब्बू ने फातिमा को वैसे ही पीछे से जकड़े हुए कहा- तू अचानक से कितनी लम्बी हो गयी है, ज़रा देखूँ तो, तेरा कद कहाँ तक पहुँचता है? क्या मेरे बराबर की हो गई है तू?
अब्बू ने फातिमा को अपने तरफ मोड़ते हुए उसको अपने सीने से लगाकर उसका कद देखना चाहा, तो फातिमा की उभरती चूचियां बिल्कुल अपने अब्बू के पेट से रगड़ खाने लगी जिससे फातिमा को खुद हैरानी के साथ, एक शोख सा मजा भी आ रहा था।
अब्बू ने उसको अपने से सटाते हुए कहा- देख तो तेरा सर मेरे बिल्कुल कंधों के ऊपर आ गया है, अभी कुछ दिन पहले तो तू मेरे छाती तक थी, अब तक़रीबन मेरे जितना ऊंची हो गयी है। इतनी जल्दी तू अचानक कैसे बढ़ गयी बिटिया रानी? हम्म तेरा जिस्म भी कितना बदल गया। हर रोज़ मेरे सामने ही तो रहती है तू, मगर मुझको क्यों नहीं दिखा?
फातिमा ने मुस्काते हुए अपने अब्बू की कमर के दोनों तरफ अपने बाँहों को लपेटे हुए जवाब दिया- ओफ्फो अब्बू! लड़कियां जल्दी बड़ी होती हैं, क्या ये आपको मालूम नहीं है?
यह कहते वक़्त फातिमा ने नटखट अंदाज में अपने दोनों पैरों को ज़मीन पर पटका और अब्बू ने उसको ज़ोर से अपने बांहों में जकड़ कर और उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके गालों पर चुंबन दे दिया।
इस बार फातिमा ने अपने अब्बू का लंड अपने पेट के थोड़ा नीचे चूत के नज़दीक महसूस किया। वह अब बहुत मोटा और तगड़ा रगड़ता हुआ महसूस हो रहा था। अपनी चूत जैसी कोमल जगह पर अपने अब्बू का लंड का अहसास पा कर फातिमा ने आँख मूँद लीं और उसने अपने अब्बू को ज़ोर से बाँहों में जकड़ लिया।
फातिमा के अब्बू की समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे शुरूआत करे। उसको डर भी था कि कहीं फातिमा नाराज़ न हो जाए और उससे बात करना छोड़ दे या पुलिस को खबर कर दे या फिर यह फातिमा को कही जारही बाते अफवाह हो और वह अपने स्कूल में कह दे? गांव के मौलवी से कह दे? यह सब सोच सोच कर वह कुछ घबरा रहे थे। मगर तब भी वो फातिमा को अब छोड़ना नहीं चाहते थे। उसके लिए फातिमा अब एक बीवी से कम नहीं लग रही थी और वह सच में उसकी बीवी की तरह दिख रही थी। फातिमा उम्र में छोटी जरूर थी, मगर उसने बिल्कुल अपनी मां का रूप धारण कर लिया था।
इरशाद ने तमाम् ख्याल करने के बाद फातिमा से कहा- चल अगर तुम अभी मौलवी वाली बात नहीं बताना चाहतीं, तो कोई बात नहीं। रात को जब हम सोएंगे तब आहिस्ते आहिस्ते मुझको सब बता देना। देखो मैं गुस्सा नहीं करूँगा और मेरा वादा है कि मैं तुमसे फिर भी बहुत प्यार करूँगा। अगर तुमने ग़लती भी की होगी, तो भी माफ़ कर दूंगा, ठीक है?
फातिमा ने यह सुनकर ख़ुशी से कहा- चलिए कुरान की कसम खाए कि आप मुझको मारेंगे नहीं और कुछ ऐसी वैसी बात या गालियां वग़ैरह नहीं देंगे?
अब्बू ने कहा- क्या मैंने कभी तुमको मारा या गालियां दी है मेरी बिटिया? हम्म..! तुम तो मेरे दिल का टुकड़ा हो, मेरी जान हो। जितना प्यार मैं तुमको करता हूँ, शायद ही दुनिया में कोई अब्बू अपनी बेटी को करता होगा।
यह सब कहते वक़्त उसने अपने लंड को ज़्यादा ज़ोर से फातिमा की तरफ दबा, पेट के नीचे उसे थोड़ा रगड़ा भी दिया। इसी वजह से फातिमा को अब्बू के गले लगते हुए अपने दोनों पैरों के अँगूठों पर खड़ा होना पड़ा। उसने आखें बंद करके अब्बू के गले लगते हुए उसको हल्के से चूमा और गहरी सांस लेते हुए एक छोटी सी सिसकारी छोड़ दी।
उसके बाद अब्बू ने कहा- मुझे आज पीने का मन है, मैं बाहर जा रहा हूँ। थोड़ा सा पी कर वापस आऊँगा, तब तक रात हो जाएगी, फिर बातें करेंगे ठीक है?
वह हफ्ते में दो दिन पीता था और जब पीता था तो जैसे उसकी बीवी उसको पहले डाँटा करती थी वैसे ही फातिमा भी अपनी मां की तरह उसको डाँटती थी और जब इरशाद अपनी बेटी फातिमा से डांट खाता है, तो बस हँसता रहता है।
आज जब वह पीने की कह कर जाने लगा तो फातिमा ने डांटने के अंदाज में कहा- ख़बरदार अगर ज़्यादा पी कर आए तो! अगर आप नशे में होंगे तो मैं आपसे बात नहीं करूँगी, कहे देती हूँ।
अब्बू ने मुस्कराते हुए जवाब दिया- हाँ ज़्यादा नहीं पियूँगा, मगर याद रहे तुमने आज रात को बिस्तर पर सोने के वक़्त कुछ वादे किए हैं। मुझे उस वक़्त का इंतज़ार रहेगा।
फातिमा ने सर झुका कर “हूँ” कहा कर जवाब दिया।
इरशाद जब निकले, तो फातिमा को ऐसा लगा, जैसे उसके अब्बू ने इशारों में अभी अभी उसको रात में हमबिस्तर होने का इजहार किया है। उसे खुद भी अजीब सा लगने लगा था और उसने उंगलियों से अपने चुत को जब छुआ तो देखा कि उसकी चूत भीगी हुई है। उसने चूत को सहलाते हुए खुद से कहा- लो अब्बू से भी बात करके, यह मुई भीग रही है। ऐसा मेरे साथ क्यों हो रहा है? उधर मौलवी मकसूद भी मेरी चूत को भिगो देते है, अब अब्बू के साथ भी! ये क्या हो रहा है मुझे?
इरशाद जब ठेके में पीने बैठे तो फातिमा की तस्वीर उसके आँखों के सामने डोल रही थी। वह उसकी मस्त कंटीले जिस्म, उसकी मुस्कराहट, उसकी नाज़ुक गाल और मुस्कान, उसकी गोरी कोमल जांघ, उसकी उभरी हुई चूचियों को सोच कर उनका लंड पतलून के अन्दर एकदम मस्त हो, खड़ा हो गया था। फातिमा के साथ हुई बेतकलूफियों ने, इरशाद के अंदर के अब्बू के किरदार को दफन कर, उसके अंदर का मर्द हावी हो चुका था। वो अपनी बेटी को चोदने को बिल्कुल तैयार हो चुका था। मगर वह यह भी सोच रहा था कि क्या वह फातिमा को चोद पाएगा? क्या फातिमा चोदने देगी? क्या वह इन्कार नहीं करेगी? अगर उसने इन्कार किया और शोर मचाया तो क्या होगा?
इरशाद को ठेके पर खबर हुई की उसके एक दोस्त की मां के इंतकाल हो गया है तो वह पीने से पहले अपने दोस्त के घर चले गए। वहां जाने से पहले वो अपने घर फातिमा को यह बताने गए कि वह देर से घर वापस आएगा, वो उसका इंतज़ार न करे और समय पर सो जाए।
उसके अब्बू देर से आएगा, यह जान कर खाना खाने के बाद फातिमा सभी बातों को भूलकर सो गई।
फातिमा गांव के एक साधारण परिवार की लड़की थी, इसलिए वो रात को नाइटी नहीं पहनती थी बल्कि वैसी ही सो जाती थी। जो कपड़े घर में पहने रहती थी, यानि वही स्कर्ट और कुर्ती में सो जाती थी। वह जब सुबह हर रोज़ को उठकर नहाती थी, तभी कपड़े बदलती थी। चूंकि वो अपने अब्बू के पास सोती थी, तो फातिमा आज भी अब्बू के बिस्तर के बगल में सो गयी।
उधर उसके अब्बू अपने दोस्त के घर से वापस आकर ठेके में बैठ कर पीना शुरू कर दिया।
जब वो दारू पी रहे थे तो उसने सुना कि कुछ लोग फातिमा की बातें कर रहे थे। कुछ लोग फुसफुसा रहे थे। इरशाद ने सोचा कि अगर लोग मौलवी को लेकर बिना सबूत यह सब सोचते है, तो उसको चोदना ही चाहिए। उसने अपने आप से कहा कि उसने आज फातिमा को चोदने का बिल्कुल सही इरादा किया है, आज घर जाकर फातिमा को ज़रूर चोदेगा। पता नहीं उस मौलवी ने चोदा है की नही? उसकी सील तोड़ी है या मुझको ही काम तमाम करना पड़ेगा? देखूंगा, पता नहीं अगर सील तोड़नी पड़ी तो चिल्लाएगी या हल्ला करेगी।
फातिमा के अब्बू आज पीते वक़्त, खुद में बड़बड़ा रहे थे। आखिर में वह पीने के बाद ठेके से निकले और अपने घर वापस जाते वक़्त वो फातिमा के बारे में ही सोच रहे थे।
जब वह घर पहुँचे तो देखा कि इस वक्त तक फातिमा गहरी नींद में सो गई थी। वह सीधे अपने कमरे में गए और फातिमा के पास बैठ कर अपने कपड़े उतारने लगे। वो बिस्तर पर ही बैठ कर, आँखें मूँद ही रहे थे, तब धीरे से, आधी नींद में फातिमा ने आँख मुंदे हुए ही कहा- आप खाना खा लेना अब्बू।
वह यह कहकर वह फिर सो गयी। इरशाद ने लड़खड़ाते जुबान से धीरे से कहा- खा चुका हूं, अब तो तुझको खाना है।
फातिमा ने अपने अब्बू की कही हुई कोई भी बात नही सुनी क्योंकि वह उस वक़्त गहरी नींद में सो रही थी।
फातिमा के अब्बू अपना पतलून उतार सिर्फ कच्छे में बिस्तर पर बैठ गए और उसे बिस्तर के बगल में फातिमा गहरी नींद में सोयी हुई थी। फातिमा के अब्बू ने धीरे से बिल्कुल आहिस्ते आहिस्ते, उस के ऊपर पड़े चादर को हटाया तो देखा फातिमा करवट लिए, अपने पैरों को मोड़ कर सो रही थी।
उसके पैर मोड़ने की वजह से तो उसकी स्कर्ट और भी ऊपर उठ गयी थी। इस वक्त दारु के नशे में अब्बू को अपनी बेटी फातिमा की खूबसूरत जवान जांघों का मस्त नज़ारा दिख रहा था। उसकी आंखे लाल हो गई, फातिमा के इस तरह सोने से उसकी गांड भी अच्छे से दिख रही थी। इस नजारे को देख फातिमा के अब्बू का लंड कच्छे से बाहर निकलने के लिए मचल पड़ा।
इरशाद ने हल्के से अपने हाथों को अपनी बेटी फातिमा के गांड पर फेरते हुए, अपने एक हाथ को ऊपर की तरफ ले गए। वो फातिमा की अधनंगी बाज़ुओं के ऊपर पहुँच, उसने अपने हाथ को फातिमा की बांहों के नीचे फेरा। वहां छोटे छोटे बाल उगे हुए थे। फातिमा के उन बालों ने कुछ ऐसा असर किया उसके अब्बू ने वहां अपनी नाक को रगड़, उसे सूंघना शुरू कर दिया।
फातिमा के पसीने की खुशबू या बदबू कह लो, पर फातिमा के अब्बू को फातिमा की बांहों तले वाली महक बहुत पसंद आ रही थी। उस महक ने उसको और भी गरम कर दिया था।
अब्बू ने हल्के से अपनी जीभ को उस नाज़ुक जगह पर फेरा और उस नमकीन लज्ज़त वाले हिस्से को चाटा। तभी फातिमा ने नींद में ही एक छोटी सी अँगड़ाई ली, जिससे अब्बू ने फातिमा को ठीक अपने सामने पाया। पहले तो अब्बू उसकी पीठ की तरफ थे लेकिन अब वो सामने आ गए थे। उन्हे सोयी हुई फातिमा की चूचियां, ऊपर नीचे उठक बैठक करते दिख रही थी। जब फातिमा सोते वक्त सांसें ले रही थी, उसकी तंग कुर्ती में फातिमा, उसके अब्बू को एकदम जबरदस्त हसीन, जन्नत से उतरी हूर दिख रही थी।
अब अब्बू से बिल्कुल सब्र नहीं हुआ। अब्बू ने अपना कच्छा उतार फेंका और बिस्तर पर ऊपर आ गए। उन्होंने पहले तो अपनी जीभ से फातिमा के होंठों पर फेर कर चाटा, फिर वो नीचे फातिमा की जांघों की तरफ आ पहुँचे। अब्बू का लंड एकदम तना हुआ खड़ा हो चुका था। जब वह घुटनों के बल बिस्तर पर फातिमा के पैरों के पास गये, तो उनके लंड ने फातिमा की कमर को छुआ तो उनको एक अजीब सी कशिश हुई और उसकी हलक से ‘इश…’ निकल पड़ा। अब फातिमा की जांघों के पास बैठ कर इरशाद ने हल्के से अपना हाथ उसकी कोमल, मुलायम नाज़ुक जांघों पर फेरने लगे और वो साथ में ऊपर, फातिमा के चेहरे की ओर भी देखते जारहे थे। वो उसके चेहरे से पढ़ना चाह रहे थे कि उनकी हरकतों का फातिमा पर क्या असर पड़ रहा है? मगर वह तो नींद में थी, उसको उस वक़्त कुछ भी पता नहीं चल रहा था।
अब इरशाद ने वासना में चूर, आहिस्ते से अपनी बेटी फातिमा की स्कर्ट को ऊपर उठाया। स्कर्ट के ऊपर जाते ही उसको फातिमा की छोटी सी चढ्ढी नज़र आने लगी। ये देख कर इरशाद की आंखों में वहशत छा गई। अब्बू ने देर न करते हुए अपनी उंगलियों को, उसकी चढ्ढी पर ठीक चूत के पास फेराने लगे। फिर अपनी जीभ से उसकी दोनों जांघों के दरमियान वाले नाज़ुक हिस्से को हल्के हल्के चाटना शुरू कर दिया। वो एक तरफ फातिमा की जाँघ चाट रहे थे तो दूसरी तरफ, उंगली से फातिमा की चूत पर, चढ्ढी के ऊपर से ही धीरे धीरे रगड़ने लगे थे।
अब्बू का लंड तो कब से फातिमा की चूत में घुसने को तैयार था लेकिन उसके मन में अब भी एक डर सा था। उनको अभी तक फातिमा की रज़ामंदी नहीं मिली थी और वह नींद में घोड़े बेचकर सो रही थी। अब्बू वासना की गिरफ्त में जरूर थे लेकिन वह यह जानते थे की आखिर में वो फातिमा के बाप भी है और वो जो अपनी बेटी के जिस्म के साथ कर रहे थे वो करना एक बाप लिए गुनाह है। लेकिन अब तक उनकी सारी खुदा खुदाई उनके लंड पर सवार हो चुकी थी। अब अब्बू से जब और बर्दाश्त नहीं हुआ तो वो आगे बढ़ गए।
वो आहिस्ते से फातिमा के बगल में उसके जिस्म से सट कर, करीब लेट गए। अब उनका लंड फातिमा की जांघों के बीचों बीच था। उन्होंने खुद उसकी दोनों जांघों को थोड़ा उठाकर अपने लंड को उसके बीच में डाला और ऊपर, फातिमा की कुर्ती ढीला करके उसकी कड़ी कड़ी चूचियों को सहलाने लगे।
अब्बू की उंगलियों से फातिमा की चूंचियों में जो हरकत हुई और उससे उसकी नींद टूट गई, लेकिन डर और उलझन में उसने सोने का नाटक करना ही बेहतर समझा। फातिमा मन में ही बोल पड़ी - हाय अल्लाह! अब्बू तो शुरू हो गए! मैं क्या करूँ? अब देखती हूँ अब्बू कहाँ तक जाते है, मैं अभी सोने का नाटक करती हूँ।
अब फातिमा को सब पता था मगर वह जानबूझ कर सोने का नाटक कर रही थी। वो अपने आपको बड़ी मुश्किल से सँभाल रही थी क्योंकि जिस तरह से उसके अब्बू, उसकी तनी हुई चूंचियों को चूस रहे थे, उससे वो खुद भी गर्म हो रही थी।
अपने अब्बू के लंड को अपनी जांघों के बीच पाकर, फातिमा की चुत भीग गई और वह कसमसाने लगी थी। अब इरशाद ने अपनी बेटी को उसकी पीठ के बल औंधा लिटा दिया और फातिमा की गांड पर ही अपना लंड रगड़ना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में अब्बू को इस तरह लंड रगड़ना अच्छा नहीं लगा क्योंकि फातिमा की चढ्ढी पर रगड़ खाने से उनके लंड में
दर्द और छरछराहट होने लगी थी। इस परेशानी से निजाद पाने के लिए अब्बू धीरे से फातिमा की चढ्ढी को आहिस्ते से उतारने लगे। साथ में ही वो दबी नज़र से फातिमा का चेहरा देखते जा रहे थे कि कहीं फातिमा जग न जाए। फातिमा के अब्बू को इसका इल्म नहीं था कि फातिमा पहले से ही जागी हुई है और उसे सब पता है कि वह उसके साथ क्या कर रहा है।
उधर फातिमा बहुत मुश्किल से अपनी दोनों मुठ्ठियों को बंद करके, अपनी छाती के नीचे दबाए, ज़ोरों से दांतों को जबरन दबाए, अपने अब्बू के लंड, उंगलियों और जीभ की हरकतों को सह रही थी। अपने अब्बू के साथ हो रही इस अनोखी रगड़न के कारण उसको अंदर ही अंदर ही बड़ा मज़ा आ रहा था मगर एक दहशत भी थी क्योंकि उसके साथ यह उसके अब्बू कर रहे थे। वैसे तो छोटी उम्र से ही वो हर रात, अब्बू के साथ सोती आई थी, मगर ऐसा पहली बार हो रहा था।
अब्बू ने फातिमा की चढ्ढी उतार दी और वो उसकी चूत पर झुक गए। उन्होंने जब फातिमा की चूत चाटी तो यह देख कर हैरान रह गये कि चूत एकदम भीगी हुई थी। अब्बू सोच में पड़ गए कि क्या फातिमा को नींद में अब महसूस हो रहा है, जो उसकी चूत इतनी गीली गयी है?
अब्बू ने पहले ऐसा ही सोचा, फिर अपने आप से कहा कि चलो देखता हूँ कि उस मौलवी मकसूद ने इसकी सील को तोड़ा है या नहीं? अगर सील बंद होगी, तो ऊपर ऊपर ही चोद लेंगे और अगर सील टूटी हुई निकली तो अपना पूरा लंड घुसेड़ देंगे।
फातिमा की गीली चूत से सरगरम अब्बू, अब अपनी बेटी की चूत के अंदर की दीवारों को अपनी जीभ की जद में लाने के लिए मचल रहे थे। अब्बू ने अपनी बेटी की गीली हो चुकी चुत में पहले जब जीभ घुसेडने की कोशिश की तो वे नाकामयाब रहे। उनकी जीभ, फातिमा की तंग चूत में अपना रास्ता तलाशने से महरूम रह गई। अब अब्बू ने अपनी उंगली उसकी चूत की फलकों पर चलाने लगे और धीरे से एक उंगली को चूत के छेद में घुसेड़ना लगे। अब्बू बड़े एहतराम से फातिमा की चूत में अपनी उंगली कर रहे थे लेकिन उसका जोरदार असर फातिमा पर हो रहा था। वो बड़ी मुश्किल से अपने आपको संभाल पा रही थी। उसको ज़ोर से चिल्लाने को मन कर रहा था, लेकिन वह तो नींद का बहाना बनाए हुई थी, इसलिए उसे अब्बू की खुदरी उंगली को अपनी नाजुक चूत में बर्दाश्त किए पड़ा रहना पड़ रहा था। फातिमा बड़ी ज़ोरों से अपने दांतों को मुँह में दबाए, अपने अब्बू की उंगली को अपने अन्दर लेते हुए सह रही थी। शुरू में अब्बू की उंगली फातिमा की चूत में थोड़े ही अंदर थी मगर जब अब्बू ने उससे थोड़ा और ज़्यादा घिसेड़ने की कोशिश की तो फातिमा न चाहते हुए भी चिल्ला उठी। लेकिन वो ऐसे चिल्लाई, जैसे उसने कोई सपना देखा लिया है, वो नही चाहती थी की उसके अब्बू को पता चले कि वह अबतक जागी हुई थी।
अब्बू, फातिमा की अचानक चिल्लाहट से चौंक गए लेकिन इसके चिल्लाने से उन्हे पता चल चुका था की उनकी बिटिया अभी तक कुँवारी है। यह वाकिफ होने पर की मौलवी मकसूद उसे अभी तक नही चोद पाया है, अब्बू बड़े दिलशाद हो गए।
अपनी बेटी को कुंवारा पाकर उसके अब्बू वासना और हवस में इस कदर बहके की वो फातिमा के सोने या जागने से मुतासिफ, बेधड़क उसकी चूत को चाटने और चूसने लगे। अब्बू इस बात से बहुत मसरूर थे की उनकी बेटी फातिमा की चूत अभी कुंवारी बची हुई थी, उसमे मौलवी मकसूद का लंड अभी तक दफन हुआ था।
अपनी इस जनूनी चूमाचाटी के बाद, अब्बू से रहा न गया और वो फातिमा के ऊपर चढ़ गए। अब्बू को अपने ऊपर पाकर फातिमा की गहरी सांसे चलने लगी थी और उसके अंदर तमाम सवाल उठने लगे, उफ़! अब्बू अब क्या करेंगे? ओह खुदा! कहीं अन्दर तो नहीं? अगर डाला मैं क्या करूँगी?
फातिमा का डर इस वक्त फरूर हो गया जब उसके अब्बू ने उसकी चूत में अपना लंड डालने की कोई अजमाइश नही की। अब्बू ने फातिमा के अंदाज के बरक उसके गुदाज़ चूतड़ों के बीच अपने लंड के टोपे को लगा दिया। अब्बू ने ढेर सारा थूक अपने लंड के टोपे पर लगाया और फातिमा के चूतड़ों के बीच, बिना लंड को अंदर घुसेडे, रगड़ने लगे। फातिमा को मर्द औरत के बीच के जिस्मानी रिश्ते और चूत के लिए लंड के दस्तूर का खूब अच्छी तरह पता था लेकिन जो अब्बू आज उसके साथ कर रहे थे, वो बिल्कुल नया तजुर्बा था। उसकी गुदाज़ चूतड़ों के बीच अब्बू के गर्म लंड की मालिश उसकी चूत तक को कपकपा दे रही थी।
अब्बू अब अपने लंड को फातिमा के चूतड़ों और दोनो फांकों के बीच अपने दस्तखत छोड़ने के जनून में इस तरह गाफिल हो गए की उनके लंड रगड़ने की जहां रफ्तार बढ़ गई वही उनके मुंह से करहाते हुए घिघियाने की आवाज़ निकलने लगी थी। तभी अचानक अब्बू के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने कस के फातिमा को जोर से अपनी बाहों में जकड़ किया और उसके चूतड़ों पर फारिग हो गए।
अब्बू का एक तरफ मॉल निकल रहा था तो दूसरी ओर वे मुँह को फातिमा की गर्दन पर धसातें हुए, अपनी जीभ को उसके गाल पर पर फेरते हुए चाटे जा रहे थे। उनका लंड वहीं चूतड़ों की फांक में काफी देर तक वैसे ही फंसा रहा। अब्बू, काफी देर तक अपनी बेटी फातिमा पर हांफते हुए पड़े रहे और अपना बहते, गीले लंड को फातिमा की भीगे चूतड़ों पर रखे रहे। उनके लंड ने इतना उसका सारा मॉल फेका की वह फातिमा के चूतड़ों के बीच बह कर बिस्तर तक में लग गया था।
फातिमा अपने चूतड़ों पर गिरे अपने अब्बू के गर्म बहते हुए मॉल से अचकचा गई थी। अपने अब्बू के शांत होने और उनके जिस्म के भार से दबे होने के एहसास से खबर फातिमा, झूठमूठ के नींद में करवट बदलने का नाटक कर, दूसरी तरफ पलट गई। फातिमा के करवट लेने से, अब्बू को होश आया और वे उस पर से हट कर, एक तरफ हो गए। अब्बू ने जल्दी से एक कपड़े से अपनी बेटी के चूतड़ों को पौंछा और फिर उसको वापस चढ्ढी पहना कर, उसे अपनी बाँहों में लेकर वही सो गए।
फातिमा अपने अब्बू को सोता देख कर मुस्कुरा रही थी। आज जो उसके साथ, उसके अब्बू ने किया वो कभी ख्वाब में भी ख्याल नही बना था। उसे खुद अपने पर बेयकीन हो रहा था की जो अब्बू ने उसके साथ किया था, उसके लिए उसको अब्बू से नफरत की जगह उनके लिए चाहत ने उसे अपने आगोश में ले लिया था।
यूँ तो हर रोज़ सुबह अब्बू ही पहले उठ कर, चाय बनाते और फिर फातिमा को जगा कर चाय देकर, तब ही घर से खेत की लिए निकलते थे। फातिमा भी उसके बाद नहाती और स्कूल के लिए तैयार होकर घर से निकलती थी। वो जाते वक़्त वो अब्बू के डिपो के पास से गुज़रती और घर की चाभी उसको देकर ही जाती थी। इरशाद मतीन का घर हर रोज़ ऐसा ही चलता था।
मगर अगली सुबह जब फातिमा की आखें खुली तो देखा कि आज अब्बू ने उसको नही उठाया था। आज वो खुद भी रात की गुज़री हुई हरकतों की लज्जत को सोचकर अब्बू से आँख मिलाने को शरमा रही थी। वो मन ही मन सोच रही थी कि कहीं अब्बू भी शायद उससे इसी लिए आँख नहीं मिला पाये है और चुपचाप डिपो चले गए।
फातिमा उठ कर कमरे से निकली, तो गुसलखाने मे जाते वक़्त, रसोई के पास से गुजरते देखा कि अब्बू रसोई में बैठे रेडियो सुन रहे है। जब अब्बू ने देखा कि फातिमा गुसलखाने में जा रही है, तो वो जल्दी से उठकर उसकी तरफ आए और कहा- अरे जाग गयी मेरी बिटिया रानी? कैसी रही रात?
फातिमा आँख मसलते हुई बोली- अब्बू आज आप अभी तक यहीं हो, डिपो नहीं गए और अभी तक तहमद में हो? तैयार नहीं होना डिपो जाने के लिए क्या?
इस पर अब्बू ने कहा - आज थोड़ी देर से खेत जाऊंगा, आज मैं अपनी बिटिया रानी को स्कूल जाने के लिए तैयार होते हुए देखना चाहता हूँ।
फातिमा, अब्बू की बात सुन, एक अंगड़ाई लेते हुए गुसलखाने में नहाने के लिए चली गयी। इरशाद से तो अब बचपने से जवान होते फातिमा के जिस्म को नहीं देखा जा रहा था। ये याद करके की कैसे रात को उसके चूतड़ों पर अपने लंड को रगड़ कर अपना माल छोड़ा था, उसका लंड फिर से एकदम से खड़ा होने लगा था। उसने अचकचा कर अपनी तहमद के अंदर खड़े हो रहे लंड को सीधा किया।
गुसलखाने के पास खड़े होकर अब्बू ने फातिमा को आवाज़ दी- तू जब तक तैयार होती है मैं तब तक तेरे कपड़ो को इस्तरी कर देता हूँ बिटिया।
फातिमा ने जवाब दिया- मैं इस्तरी कर चुकी हूँ अब्बू. कल रात आप कितने बजे वापस आए थे, मुझको नींद लग गयी थी। आपने मुझको जगाया क्यों नहीं?
उसने नहाते हुए कुछ ऊंची आवाज़ में नादान बनते हुए अपने अब्बू से पूछा। तो बाहर गुसलखाने के दरवाज़े के पास खड़े अब्बू ने जवाब दिया- क्या तुझको कुछ नहीं पता रात के बारे में?
फातिमा ने भोली बनने की कोशिश करते हुए बोली- क्या अब्बू? क्या हुआ था रात को? कुछ हुआ था क्या?
अब्बू ने कहा- नहीं कुछ नहीं बस ऐसे ही।
अब्बू, फातिमा का कमरे में इंतज़ार करने के लिए चले गए। वह देखना चाहते थे कि फातिमा कैसे गुसलखाने से बाहर निकलेगी, क्या पहनकर आएगी और कौन सा हिस्सा उसके जिस्म का दिखेगा। कुछ दस मिनट इंतज़ार के बाद फातिमा कमरे में आयी, तो सर के बालों को एक तौलिया में लपेटा हुआ था और एक कुर्ता जैसा पहना हुआ था। ये कुर्ता ठीक उसके घुटनों पर तक ही आता था, मगर ये कुर्ता स्लीवलैस था और फातिमा पर काफी बड़ा लग रहा था। इस वजह से उसकी चूचियां साफ़ दिख रही थीं। एकदम गोल गोल नरम मुलायम, जैसे कि दो संतरे हों या ऐसा लगता था कि छोटे छोटे से गुब्बारे हों, जिसमें थोड़ा पानी भर दिया गया हों। अब्बू ये नजारे खूब आखें फाड़ फाड़ कर देख रहे थे।
वैसे हर रोज़ तो फातिमा उसी ड्रेस को गुसलखाने से पहन कर निकलती थी, मगर उस वक़्त कभी भी उसके अब्बू घर पर नहीं हुआ करते थे तो वो बेफिक्र रहती थी और वो इस वक्त अन्दर ब्रा भी नहीं पहनती थी। वो सिर्फ बाहर जाने के लिए कपड़े पहनने के वक़्त ही ब्रा पहनती थी।
अब्बू बिस्तर पर बैठ कर अपनी बेटी को निहार रहे थे। उनको लग रहा था कि जैसे वो अपनी जन्नतनशीन बीवी को जवान देख रहे हो। वैसे ही वह भी उसी कमरे में अलमारी के आइने के सामने खड़े सजती संवरती थी। आज यहां यहाँ फातिमा ने अपनी अम्मी की जगह ली हुई थी, जवान, कुंआरी, खूबसूरत।
अब्बू उसे देख कर रह नही पाए और कहा- तू कब इतनी खूबसूरत और जवान हो गयी, मुझको पता ही नहीं चला! इतने सालों से मेरे बगल में सोती रही है और मैं आज तुझको ऐसे देख रहा हूँ। तू बिल्कुल अपनी अम्मी पर गयी है मेरी बिटिया रानी, तुझपे बहुत प्यार आ रहा है। ज़रा मेरी बाँहों में तो आजा मेरी प्यारी बिटिया।
यह सुनकर फातिमा को अपने अब्बू पे बहुत प्यार आया। उसने जल्दी से अपनी कोमल बांहों का हार अब्बू के गले में डाल दिया और उसके सीने से चिपक गयी। इरशाद खड़े खड़े उसको बहुत ज़ोर से सीने से लगाते हुए उसके सर को चूम कर, आहिस्ते आहिस्ते उसके गालों को चूमने लगे। जब फातिमा ने अब्बू के गरम होंठ अपने गले पर महसूस किए तो उसने सर को पीछे की तरफ करते हुए आँखों को बंद कर लिया। इस हालत में अब्बू अपनी तहमद के नीचे से अपने लंड को संभाल नहीं पा रहे थे। उनका लंड फातिमा की जांघों के बीच, कपड़े के ऊपर से ही रगड़ खा रहा था। फातिमा को भी अब्बू का लंड अच्छी तरह से मालूम हो रहा था।
फातिमा सच में अपने अब्बू को बहुत प्यार करती थी, ख़ास कर के जब से उसकी अम्मी चल बसी थी। वो पूरा उसका ख्याल रखती थी, अब्बू के लिए वह वो सब करती थी, जो उसकी अम्मी किया करती थी।
फातिमा छोटी उम्र से ही अपने अब्बू के लिए सिवाए चुदाई के, अम्मी के सब काम करती चली आ रही थी। अब्बू के कपड़े धोना, खाना पकाना, खाना परोसना और सब वह काम जो उसकी अम्मी करती थी। अब घर में और कोई तो था ही नहीं, न भाई, न बहन, तो सारा प्यार सिर्फ अब्बू और फातिमा में ही बंटता जाता था। अब्बू भी फातिमा से बचपन से ही बेहद प्यार करता था, उसको कभी भी बुरी नज़र से नहीं देखा था। हमेशा ही उसे एक छोटी बच्ची समझता था।
मगर जब से अब्बू ने मौलवी वाली अफवाह सुनी तो वो गौर से फातिमा को देखने लगे थे और उनके अब्बू वाले किरदार पर उनका मर्द हावी हो गया था। उनके प्यार ने किसी और चाहत की तरह रुख कर लिया था। अब्बू का अपनी बिटिया फातिमा के लिए जज्बा तो था ही बहुत मगर वह वालिद का जज्बा एक मर्द और औरत के बीच उठे जिस्मानी जज्बे में तब्दील हो चुका था। अब अब्बू का प्यार, मर्द की एक औरत के लिए हवस में बदल गया था।
अब्बू के दिल में यह सोच के एक खलिश हो रही थी कि कोई और मर्द, उसकी इतनी खूबसूरत जवान कुंवारी बेटी को छुएगा। उसने सोचा यह मेरी बेटी है, मेरी अपनी है, किसी और की नहीं हो सकती है। मैंने पाल पोस कर बड़ा किया है, मेरे घर में रहती है, मेरी अपनी है, तो मेरे सिवाए कोई और क्यों इसके करीब हो?
अब्बू, फातिमा के गालों को चूमते हुए नीचे पहुँच गए और उनका चेहरा जब फातिमा की मुलायम छाती पर पड़ा तो फातिमा ने ज़ोर से अपने अब्बू को जकड़ लिया और उसकी सिसकारी निकल गई। खुद फातिमा ने जब अपनी कमर को थोड़ा सा ज़्यादा अब्बू के जिस्म से दबाया तो उसने अब्बू लंड को, अपने पेट के नीचे मोटा और तना हुआ महसूस किया। इस पर अब्बू ने अपनी कमर को हिलाया और अपने लंड से फातिमा के जांघों के बीच दो छोटे छोटे धक्के लगा दिए। फातिमा ने आँख खोल कर अब्बू की आँखों में देखना चाहा तो देखा कि अब्बू की दोनों आँखें बंद थीं और वह फातिमा के जिस्म का लुत्फ ले रहे थे। फातिमा को इसका भी इल्म हो चला था की अब्बू के हाथ फातिमा के बाज़ुओं के नीचे से उसकी चूचियों को छूने की कोशिश कर रहे है।
तभी अचानक फातिमा ने कहा- अब्बू बस, मुझे देर हो जाएगी और अपने अब्बू की बांहों से रिहा होते ही अलमारी के पास से एक कँघी से अपने बालों में फेरने लगी।
फातिमा- आज आपने मुझको चाय नहीं दी। मेरे लिए एक कप चाय ला दीजिये, तब तक मैं तैयार होती हूँ।
अब्बू चाय लेने रसोई में चले गए और जल्दी जल्दी फातिमा ने स्कूल जाने वाले कपड़े पहन लिए। उसने अपनी छोटी साइज की ब्रा पहनी थी। अब्बू के सामने ब्रा पहनने में उसको शर्म आ रही थी। उसने अपनी सफ़ेद रंग की चढ्ढी भी पहन ली और हरी ब्लाउज और नीली स्कर्ट भी पहन लिए।
अब्बू चाय लेकर आए तो फातिमा आइने के सामने खड़ी आँखों में काजल लगा रही थी। अब्बू अपनी बिटिया फातिमा को तैयार देख कर दीवाने हो गए। वह उसको रोकना चाहते थे, उसका दिल कर रहा था कि आज वो उसको नहीं जाने दे और पूरा दिन उसके साथ कमरे में बिस्तर पर बिताए। अब्बू के दिल ओ दिमाग में अपनी बेटी फातिमा को पाने का ख्याल चल रहा था। वो बावरा हो रहे थे। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वो कैसे फातिमा से वह सब इजहार करे, जो उसके दिल में चल रहा है।.
क्या समझेगी फातिमा? क्या अपने अब्बू का प्यार काबुल करेगी? क्या एक पढ़ने जाने वाली लड़की पढ़ी लिखी ऐसे बेहूदा बात को मानेगी? बग़ावत कर बैठी तो?? क्या करेगा उसका अब्बू तब? उसको हमेशा के लिए खो देगा। अब्बू के समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी बात की शुरूआत कैसे करे। इधर फातिमा आइने में से ही अब्बू को देख कर शुक्रिया कहने के लिए मुस्कुरा रही थी भी उधर अब्बू पीछे से फातिमा के पीछे वाली जाँघ का हिस्सा देख और उसकी चूंचियां आइने में नाप रहे थे।
जब फातिमा मुड़कर टेबल पर से चाय लेने जा रही थी तो अब्बू ने उसको फिर से बांहों में जकड़ कर चूम लिया और बिस्तर पर फातिमा को थामे हुए बैठने को कहा। जब बैठ गई तो फातिमा ने कहा- ओफ्फो अब्बू, मुझको देर हो जाएगी, मैं चाय तो पी लूँ?
फातिमा ने ये कहते हुए अपने आपको अपने अब्बू की बाँहों से खुद को छुड़ा कर चाय की तरफ गयी और जल्दी से चाय का घूँट लेने लगी। फिर वो अपने स्कूल बैग को उठाने वाली थी, तब अब्बू ने इशारे से उसको अपने गोद में बैठने का इशारा किया।
फातिमा ने आसमान की तरफ अपनी आँखों को उठाकर कहा- उफ़ अब्बू, आप आज मुझको देर करवा ही छोड़ोगे आप, अब क्या है अब्बू आती हूँ, बस थोड़ा सा ठीक?
तब फातिमा ने अपने अब्बू की गोद में बैठी और अब्बू ने एक हाथ को उसकी कंधों पर रखा और एक हाथ को उसकी जाँघ पर। अब्बू ने हौले से अपने एक हाथ को फातिमा की जाँघ पर फेरते हुए सहलाया तो उसने एक छोटी सी सिसकारी छोड़ दी। सिसकारी सुनकर उसके अब्बू धीरे धीरे अपने हाथ को उसके स्कर्ट के नीचे डालते चले गए।
अब्बू तक़रीबन अपनी बेटी की चढ्ढी को छूने ही वाले थे की तभी फातिमा यह कहकर उठ खड़ी हुई- अब मुझको जाना चाहिए, आज क्या आप खेत में नहीं जाओगे?
उसके एकदम से उठने के कारण अब्बू, फातिमा के आगे घुटनों पर आ गए। उन्होंने जल्दी से फातिमा की कमर को दोनों बाँहों में लपेटा तो उनकी बाहों का कुछ हिस्सा कमर पर और कुछ हिस्सा फातिमा के चूतड़ों पर आ गया। अब्बू का मुँह ठीक फातिमा की चूत पर, मगर कपड़े के ऊपर से आ गया था।
फातिमा पीठ पर स्कूल बैग लिए हुए अपने अब्बू की उस अदा से अचानक झुक गयी और उनके कंधों को पकड़ कर मीठी आवाज़ में बोली- आज क्या हो गया आपको अब्बू, मुझे नहीं जाने दोगे क्या? छोड़िये मुझे, बस करो प्यार करना। कितना दुलार करेंगे आज आप मेरे साथ?
उसके अब्बू ने एक आशिक की तरह कहा- मैं तुमको बहुत चाहता हूँ मेरी गुड़िया, क्या तू अपने अब्बू को खुश करेगी?
फातिमा एक मुस्कान के साथ बोली- ओफ्फो अब्बू! जब मुझे जल्दी है जाने की, तभी आप को यह सब बातें करनी है क्या? हमेशा तो आप को खुश करती ही हूँ। तो अब क्या?
उसके अब्बू घुटनों पर ही थे और उसने सर ऊपर उठाकर फातिमा से कहा- बस अपना यह स्कर्ट ऊपर उठाकर अब्बू को अन्दर की जाँघ और अपनी चढ्ढी दिखा दे, मैं बहुत खुश हो जाऊँगा।
फातिमा शरम और हल्के से गुस्से से लाल पीली होते हुए बोली- क्या??
तब तक अब्बू उसकी स्कर्ट को उठाने की कोशिश करने लगे और फातिमा झुक कर अपनी स्कर्ट को दोनों हाथों से नीचे करते बोली - आज आप क्यों मौलवी साहब की तरह हरकत कर रहे हो अब्बू?
फातिमा की बात पर अब्बू को झटका लगा और कहा- अरे हाँ, तुमने तो अभी तक मुझको बताया ही नहीं? लोग जो तेरे और मौलवी ले कर कर रहे है?
फातिमा ने कहा- आपको आज सब कुछ आने के बाद आज पक्का बताऊँगी, ठीक है अब्बू?
उसके अब्बा ने उसकी जांघों को छूते हुए कहा- मगर जाने से पहले मेरी गुड़िया यह तो दिखा दे, क्या तू अपने अब्बू को प्यार नहीं करती?
तब फातिमा को जैसे अब्बू पर कुछ तरस आया और कहा- अच्छा सिर्फ एक बार ठीक है? फिर मैं निकालती हूँ।
अब्बू ने ख़ुशी से अपने लंड को तहमद के नीचे हाथ से पकड़ते हुए कहा- हाँ ठीक है मगर हौले हौले स्कर्ट को उठाना और मेरे हाथों को थोड़ा सा छूने भी देना।
फातिमा ने मुस्कुराते हुए सर को हाँ में हिलाया और अपने दोनों हाथों की उंगलियों से अपनी स्कर्ट की नीचे वाले हिस्से को थाम कर उठाना शुरू कर दिया।
उसके अब्बू वहीं ठीक, उसके सामने घुटनों पर पड़े थे। ज्यूँ ज्यूँ स्कर्ट उठती जारही थी, त्यों त्यों अब्बू की आँखों को फातिमा की गोरी जाँघें और भी गोरी होती दिखाई देने लग रही थी। स्कर्ट के नीचे वाले हिस्से को देखते हुए अब्बू अपने लंड को एक हाथ में थामे हुए कुछ कुछ उसको हिलाने लगे थे। फातिमा को तहमद के नीचे लंड नज़र तो नहीं आ रहा था मगर उसको खूब पता था कि अब्बू उसकी जांघों को देखकर मुट्ठ मार रहे है।
फातिमा अपने अब्बू को खुश करने के लिए स्कर्ट उठाती गयी और उसके अब्बू ज़ोरों से अपना हाथ लूंगी के नीचे अपने लंड पर चलाने लगे। जैसे ही फातिमा की सफ़ेद चढ्ढी थोड़ा सा नज़र आयी, उसके अब्बू ने अपना मुँह जल्दी से उसकी मुलायम चढ्ढी पर रख दिया और उसे चाटने लगे। अब्बू अपने एक हाथ से मुट्ठ मार रहे थे और दूसरे हाथ से फातिमा की चूतड़ों को थाम कर अपने लंड को अंजाम तक पहुंचाने की शगल में लगे थे।
जब उसने अपने अब्बू की जीभ को अपनी चढ्ढी पर महसूस किया तो फातिमा की ‘आह इस्स्स्स… उह्ह्सस…’ की धीमी सी आवाज़ निकल पड़ी। जब अब्बू की जीभ वहां से हट कर उसकी जांघों को चाटने लगी तो फातिमा ने एक लंबी से सिसकारी छोड़ी और तभी उसके अब्बू ने कराहना शुरू कर दिया और उनके मुंह से- आह… आआअह् की आवाज निकलने लगी थी।
फातिमा ने देखा कि उसके अब्बू की तहमद गीली हो गयी है। अब्बू, फातिमा की सिर्फ जाँघ और चढ्ढी देख कर और उसे छूकर ही, लंड को मुट्ठ मार कर खुश हो गए थे।
फातिमा ने अपने होंठों को दांतों में दबाते हुए धीरे से अब्बू के कानों में झुक कर कहा- अब मैं चलती हूँ। आपको तो इत्मीनान आ गया ना अब्बू?
यह कह फातिमा अपने अब्बू के दोनों गालों पर ज़ोर से चूम कर घर से दौड़ते हुए निकल गयी।
अब्बू ने ज़ोर से चिल्ला कर कहा- भूलना मत कि आज शाम को तुम मुझको मौलवी के बारे में सब बताओगी!
फातिमा ने जाते हुए बाहर से चिल्ला कर जवाब दिया- हाँ अब्बू आज वापस आने के बाद ज़रूर बताऊँगी, खुदहाफिज!
उसको जाता देख इरशाद ने आसमान को देखते हुए कहा- हे जारा (उसकी मरी बीवी), तुमने फातिमा की सूरत में फिर से जन्म ले लिया, उसमें तुम रूबरू बसी हो।
फातिमा के जाने के बाद उसके अब्बू अपनी मरी बीवी जारा, की तस्वीरों को निकाल कर देखने लगे और उसकी और फातिमा की तस्वीरों को मिलाकर वो दोनों के बीच का फर्क देख रहे थे। फर्क था ही नही, बिल्कुल जैसे कि जारा जब जवान थी तब का अक्स फातिमा थी। यह सब सोच सोच कर कि उसको चोदने के लिए दुबारा से एक कुँवारी चूत मिल गई, अब्बू को एक अजीब सा मज़ा आ रहा था. उसको इतनी खूबसूरत जवान लड़की मिलेगी, ये उसने सपने में भी नहीं सोचा था। उसके लिए फातिमा बेटी से निकल कर सिर्फ एक जवान लड़की रह गई थी।
स्कूल में फातिमा दिन भर अब्बू के बारे में सोचती रही और मुस्कराये जा रही थी। दोस्तों ने कई बार उसको टोका भी कि क्या पागल हो गयी है, किसके ख्यालों में इतना खोई हुई है?
अपने चेहरे पर लाली लिए फातिमा अपने अब्बू को दिमाग़ में सोचती हुई दोस्तो से बोली- पागल हो!
फातिमा अपने अब्बू पर आसक्त हो गई थी और उसे एहसास था की वह अपने अब्बू से प्यार करने लगी है। अब यह कैसा प्यार था, किसको पता? जब से उसकी अम्मी गुज़री है, तब से वो अपने अब्बू के बहुत ज़्यादा क़रीब हो गयी थी और उस के साथ सोने से और ज़्यादा करीब हो गयी थी। जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ती गयी और जिस्म में अलग किस्म की चाह बढ़ती गयी, तो कोई और लड़का के न होते हुए उसकी ज़िन्दगी में उसने अपना सारा प्यार अब्बू पर ही न्यौछावर कर दिया था।
क्लास में फातिमा, अब्बू के साथ सुबह हुई हरकतों को एक फिल्म की तरह अपने दिमाग में देख रही थी। वो सोचने लगी कि किस तरह उसने बिना झिझक के अब्बू को अपनी जाँघ और चढ्ढी दिखाने के लिए अपनी स्कर्ट को धीरे धीरे ऊपर उठाया था और किस जोश से उसके अब्बू ने उसको पकड़ के चूमा और चाटा था और किस तरह उसने अपने अब्बू को उसके सामने मुठ मारते देखा था। तहमद के नीचे कितने ज़ोरों से अब्बू हाथ चला रहा था और अचानक उनकी तहमद भीग गयी थी! यह सब नज़ारे फातिमा के आँखों के सामने नाच रहे थे। यह सब सोचते हुए क्लास में ही फातिमा की चढ्ढी भीग गयी और वह जल्दी से अपने आप को साफ़ करने गुसल में चली गयी। फातिमा पर इन सब बातो का इतना असर हुआ की वहां गुसल में फातिमा अपनी चूत में उंगली करने से, अपने को खुद को नही रोक पाई।
आखिर शाम को फातिमा वापस घर आयी, उसको पता था कि उसके अब्बू बड़ी बेताबी से उसका इंतज़ार कर रहे होंगे। वो जैसे ही अन्दर दाखिल हुई, अब्बू ने उसको बेसब्री से उसको अपनी बांहों में ज़ोर से जकड़ लिया और उसे चूमने लगे। वो फातिमा के गालों पर, मुँह पर, गले पर, उसके पूरे जिस्म को चूमते हुए सहलाने लगे।
फातिमा ने थोड़ा बहुत नखरे दिखलाते हुए कहा- ओफ्फो अब्बू, क्या हो गया! मुझे चाय पीनी है, खाना पकाना है, सब घर के काम करने हैं. छोड़ो न!
अब्बू तो जैसे दीवाने हो गए थे, उसे कुछ नहीं समझ आ रहा था। जहां भी उनका मुंह पड़ता वो फातिमा को चूमते जा रहे थे। आखिर में उनका हाथ फातिमा की स्कर्ट के नीचे पहुँचा और उसने उसकी गर्दन को चूमते हुए उसकी जाँघ को सहलाना शुरू कर दिया।
फातिमा अपने अब्बू की इस जबरदस्त चूमा चाटी से हड़बड़ा गई और वो दोनों हाथ से अपने अब्बू को अपने आप से अलग करने लगी। पर जब उसने अपने अब्बू के हाथ को अपने स्कर्ट के नीचे चढ्ढी पर महसूस किया, तो उसका पूरा जिस्म काँपने लगा। फातिमा के पैर कमजोर पड़ने लगे और उसने खुद अपने बदन को अपने अब्बू के जिस्म से चिपका लिया। उसके हाथ, उसके अब्बू के गले का हार बन गए और बेसाख्ता फातिमा ने अपने अब्बू के गाल को एक चुम्बन दे दिया।
अब्बू, अपनी बेटी के ओंठो को अपने गाल पर महसूस कर तड़प गए और तड़पते हुए कहा- और और चूमो बिटिया, मेरी गुड़िया रानी! देख मैं कितना चूम रहा हूँ तुझको, अपने हाथों से मेरी पीठ को सहलाती जा और इधर चूमती जा।
फातिमा अपने अब्बू को उस तरह से एक छोटे बच्चे की तरह इसरार करते हुए देख कर थोड़ा शर्मा और मुस्कुरा रही थी। फिर उसने अपने अब्बू की फरियाद सुन, बहुत प्यार से उसके गालों पर, फिर गले पर, फिर मुँह पर अपने ओंठो से चूमा और अपने कोमल हाथों से अपने अब्बू की पीठ पर फेरती रही। अब उसके अब्बू का एकदम खड़ा लंड फातिमा की स्कर्ट के नीचे रगड़ खारहा था। उस रगड़ से बेचैन फातिमा ने अपने बाँहों से अब्बू के गले को ज़ोर से जकड़ते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने अब्बू को वह सब करने दिया, जो वह कर रहे थे। वो बस धीमी आवाज़ में छोटी छोटी सिसकारियां छोड़ रही थी।
फातिमा के अब्बू ने अब अपने लंड को पतलून की ज़िप खोल कर बाहर निकाला तो उसे देख कर फातिमा का जिस्म काँप उठा। वो अब्बू के गले को चूमते हुए, अपनी चूचियों को अब्बू की छाती पर दबाते हुए चिपक गयी।
फातिमा के चिपकने पर उसके अब्बू ने उसके ब्लाउज के सभी बटन खोल दिए और फातिमा की ब्रा पर अपनी जीभ चलाने लगा, जिससे फातिमा कसमसा उठी।
अचानक फातिमा ने अब्बू को धीरे करने के लिए कहा और बोली- तो क्या अब आप मौलवी वाली बात को नहीं सुनना चाहते अब्बू?
यह सुनकर अब्बू रुक गए और फातिमा के मस्त चूतड़ों पर अपने हाथों को फेरते हुए कहा- हम्म मैं तो भूल गया था, अच्छा चल बिस्तर पर, वहां पूरा किस्सा बयान करना।
फिर अब्बू ने अपनी बिटिया फातिमा को गोद में ऐसे उठाया, जैसे किसी छोटे बच्चे को उठा लेते हैं। वो उसको लेकर बिस्तर पर पहुंचे और फातिमा बिस्तर पर लिटा दिया। फातिमा लेटाने कर बाद, उसके पैरों के तरफ बैठ कर उसके अब्बू ने उसकी स्कर्ट को उठाते हुए, जाँघ पर अपना जीभ को फेर कर कहा- अब बता क्या मामला है तेरा मौलवी के साथ?
फातिमा ने देखा कि उसके अब्बू की नजर उसकी स्कर्ट के नीचे उसकी चढ्ढी पर ही टिकी है, तो उसने हाथों से अपनी स्कर्ट को नीचे करके जांघों को ढक दिया।
इस पर उसके अब्बू ने कहा- अरी पगली, इतनी खूबसूरत जाँघें हैं तेरी, तेरी अम्मी से भी ज़्यादा खूबसूरत हैं, देखने दे न मुझको!
फातिमा बोली- पहले मुझे सुन लीजिए अब्बू जो मुझे मौलवी के बारे में कहना है, फिर जो मन में आए कर लेना.
अब्बू ने कहा- ठीक है बोल.
फातिमा ने कहा- अब्बू, मौलवी साहब के साथ कुछ ख़ास नहीं है। वह दीनी इल्म देने आते थे और मुझको क्लास में बहुत देखते रहते थे। फिर एक दिन मेरी सहेली नहीं आयी थी, तो मेरे पास वाली जगह खाली थी। इस वजह से मौलवी मेरे पास बगल आ गए। मुझसे थोड़ी देर बात करने के बाद उन्होंने अपने हाथों को मेरी जाँघों पर रख दिया। मैंने उनका हाथ हटाते हुए कहा कि आप क्या कर रहे हैं? तो उसने धीरे से मेरे कानों में कहा कि तुम बहुत जहीन और खूबसूरत हो, क्या तुम्हारा कोई दोस्त है?
अब्बू बीच में उचक पड़ा- तो तूने क्या कहा?
फातिमा - मैंने उससे कह दिया कि नहीं मौलवी साहब, मेरा कोई दोस्त नहीं है। तो मौलवी साहब ने जवाब दिया कि जब कोई नहीं है, तो फिर मैं तुम्हारा दोस्त बन जाता हूँ।
अब्बू की उसकी बातें सुनकर आँखें फैल गई।
फातिमा- मौलवी साहब की बात सुनकर मैं बहुत शर्मायी और मैं अभी चारों तरफ देख ही रही थी कि मैंने देखा कि दूसरी लड़किया हम दोनों की बातें नही सुन रहे थे।
अब्बू - फिर?
फातिमा - बस फिर कुछ नहीं. उस दिन के बाद हर रोज़ उसकी नज़र सिर्फ मुझ पर और मेरे स्कर्ट पर रहती थी और जब भी मैं खाली होती तो वह मुझसे बातें करने लगते। फिर धीरे धीरे मौका देख कर वह मुझको छूने लगे। मैं इन्कार करती लेकिन वह बहुत ज़िद्दी थे और मुझको बिल्कुल अकेली नहीं छोड़ते थे। मुझसे इतना बड़ा होने के बाद भी वह सच में ये मौलवी जैसे मेरा दोस्त बन गए थे वो दोपहर को खाने की छुट्टी में जब क्लास में सभी लोग बाहर होते, तो मुझको अपने पास बुला लेते।
अब्बू - फिर?
फातिमा - फिर एक दिन वैसे ही मैं उसके साथ क्लास में बिल्कुल अकेली थी, तो उसने मुझको चूमा और मेरे जिस्म पर अपने हाथों को फेरा। मैं डर रही थी, मगर पता नहीं क्यों वह सब मुझे अच्छा लगा था। उस दिन के बाद जब भी उसे मौका मिलता वह मुझको चूमते। अक्सर मुझको अपने गोद में बिठा लेते और नीचे से धक्का देते। एक दिन मौलवी साहब ने मेरे ब्लाउज खोल कर मेरी चूचियों को दबाया और चूसा भी। मैं डर भी रही थी और अच्छा लग रहा था, मैं मौलवी साहब को मना नहीं कर पाई।
अब्बू ने अपनी बेटी फातिमा के चुचों को घूर कर देखा और पूछा- फिर?
फिर दो महीने तक वो मेरे साथ वैसे ही करते रहे। फिर दूसरी लड़कियों को शक हो गया और आपस में कानाफूसी करने लगी इस दौरान एक बार मौलवी साहब मुझको अपने साथ उस जंगल वाले रास्ते में ले गए और वहां मेरे साथ उसने वही किया, जैसे आप करते हो। बस मौलवी साहब के साथ यही हुआ है, इससे कुछ ज़्यादा नहीं हुआ अब्बू.”
फातिमा जब अपने अब्बू को मौलवी के बारे में यह सब बोल रही थी तो उसके अब्बू, इसके कभी चूतड़ों पर मसलते, कभी उसको चूमते हुए उसकी चूचियां दबाते, तो कभी उसकी छातियों पर अपने चुम्बानो की बौछार करते जा रहा थे।
अब्बू, मौलवी के साथ फातिमा के वाकए को सुन कर गर्म हो गए थे, उन्होंने गहरी सांस लेते हुए पूछा - मौलवी ने जंगल में कुछ और नहीं किया बिटिया?
फातिमा समझ गई थी की अब्बू को जंगल के रास्ते की बात पर अभी भी कोई शक है लेकिन वो पूरी हकीकत बता, अपने अब्बू को और नही तड़पाना चाहती थी। आखिर फातिमा अपने अब्बू से कैसे कहे की जंगल जाने वाले रास्ते पर मौलवी उसे चोदने ले गया था और वो खुद भी चुदना चाहती थी। वो कैसे अब्बू को बताए की मौलवी ने उसे अपना लंड थमाया था और उससे चुसवाया था। कैसे अब्बू को बताए की मौलवी ने उसे चौधरी बरकत की चौकी में चोदने की लिए नंगा कर दिया था लेकिन चौधरी के कुछ लोग आगाए तो उसे और मौलवी को कपड़े उठा भागना पड़ा था! यही सोच फातिमा ने अब्बू को कस के जकड़ कर कहा - अब्बू अल्लाह कसम, मौलवी कुछ करते उससे पहले खटका हो गया तो वहां से निकल आए। उसके बाद से मैं कभी मौलवी के साथ कही नही गई।
जिस वक्त अब्बू, फातिमा को लेटाकर उसकी स्कर्ट ऊपर कर रहे थे, उस वक्त अब्बू अपनी पतलून की ज़िप खोल कर अपना लंड निकाल रहे थे की तभी फातिमा मौलवी के साथ हुए जो हुआ वह बताने लगी, जिससे अब्बू के हाथ जिप पर ही रुक गए थे। फिर जब फातिमा ने मौलवी के साथ जो हुआ बताने लगी तो अब्बू ने आहिस्ते से अपना लंड पतलून से बाहर निकाल लिया और मौलवी की हरकतों को सुन, फातिमा की जांघों पर छुआने लगे थे। मौलवी की बाते बताते हुए, फातिमा को इस बात का एहसास हो रहा था की अब्बू इतने मसरूर हो गए थे की जब भी मौलवी का जिक्र होता, अब्बू उसकी जांघों पर अपना मोटा लंड रगड़ दे रहे थे। मगर वह नादान बन रही, जैसे उसे कुछ समझ ही नही आ रहा, यह हो क्या रहा है।
जब फातिमा ने सारी बातें कह डालीं और अब्बू, जंगल के रास्ते हुए वाकये से इत्मीनान में हो गए तो अब्बू ने उसको चूमते हुए कहा- बस यही हुआ है तो कोई ख़ास बात नहीं है, मैं उस मौलवी को भगवा दूँगा क्योंकि तू सिर्फ मेरी है।
यह कह कर अब्बू अचानक दरिंदे बन गए और उसने फातिमा के ब्लाउज को इतनी ज़ोर से खींचा कि ब्लाउज फट गया। फातिमा ने जब यह होते हुए देखा तो घबरा गयी और मोटी मोटी आँखों से अब्बू को हैरानी से देखने लगी।
उसने धीरे से कहा- क्यों मेरे ब्लाउज को फाड़ डाला आपने अब्बू? ये मेरी यूनिफार्म का ब्लाउज है।
उसके अब्बू ने उसे कोई जवाब नही दिया। वह अब अपनी छोटी साइज की ब्रा में थी और अब्बू उस ब्रा को, अपने हाथों को फातिमा के पीठ पर ले जाकर खोलने की कोशिश करने में लगे हुए थे। फातिमा, इस कोशिश की वजह से अपने अब्बू की छाती पर झुक गई थी। उसकी जैसे ही ब्रा खुली, अब्बू ने ब्रा को ज़मीन पर फेंकते हुए फातिमा की चूचियों को अपने मुँह में भर लिया। फातिमा की पूरी चुची उसके अब्बू के मुँह में समा गई थी। अब्बू उसकी एक चूंची को मुँह में लिए चुसक रहे थे और दूसरी चूंची को अपने हाथों से मसल रहे थे। जहां अब्बू की शिद्दत फातिमा की चूंचियों पर बढ़ती जा रही थी वहीं फातिमा अपने अब्बू के हर एहसास पर, धीमी आवाज़ में मादक सिसकारियां लेने लगी थी।
अब अब्बू, फातिमा को अपने गोद में लेकर, बिस्तर पर बैठ गए। अब वो एक तरफ उसकी बहुत ही नाज़ुक चूचियों को चूस रहे थे और दूसरी तरफ उनका एक हाथ फातिमा की स्कर्ट के नीचे उसकी चढ्ढी की तरफ रेंग रहा था। इस पर फातिमा ने जल्दी से अपने हाथों को अब्बू के हाथ पर रखा कर, अपने अब्बू को ज़्यादा आगे बढ़ने से रोक दिया। लेकिन वासना से भरे हुए अब्बू कहां रुकने वाले थे, उन्होंने चुची को छोड़ कर अपना मुँह, फातिमा की जांघों पर फेरना शुरू कर दिया, वो जीभ से उसकी जांघो को चाटने लगे थे।
अब्बू के चाटने से फातिमा भी टूट सी गई और वासना से भरीवो सिसियाने लगी- उफ, आई! खुदारा बस करो अब्बू! मुझे कुछ हो रहा है अब्बू!
अब्बू को कहां कुछ सुनाई दे रहा था, उन्होने फातिमा को बिस्तर पर पूरी तरह लेटा दिया। अब अधनंगी फातिमा उनके सामने बिस्तर पर पड़ी थी, जो अपने लम्बे बालों को सर के नीचे से फैलाने की कोशिश कर रही थी। अब्बू ने एक मिनट अपनी बिटिया फातिमा को उसके गले से छाती पर देखते हुए घूरा और फिर अपनी नजरे नीचे की तरफ ले गए। फिर जल्दी से फातिमा की स्कर्ट को ऊपर उठा कर, अब्बू ने अपना मुँह चढ्ढी के ऊपर ही लगा दिया। यह करने पर फातिमा की एक छोटी सी चीख़ निकल गई लेकिन अब्बू ने उसे अनसुनी कर दी।
फातिमा ने अपने हाथों को अपनी चढ्ढी को दबाया हुआ था और वो अब्बू को वहां छूने नही दे रही थी। अब्बू ने जब देखा की फातिमा उन्हे रोक रही है तो अपने मज़बूत हाथों से, फातिमा के हाथों को वहां से हटाने लगे। लेकिन फातिमा पूरा ज़ोर लगा कर, अपनी दोनों जांघों को एक दूसरे के ऊपर रख कर, अपनी चढ्ढी को छुपाने की कोशिश कर, अपने अब्बू को अपने पर हावी होने से रोक रही थी।
वो थोड़ा बहुत चिल्लाने के साथ में हंस भी रही थी. फातिमा ने कहा- अब्बू बस करो! मुझको गुदगुदी हो रही है! हाहाहा … हाही.. हेहेहे.. हटाओ न अपना हाथ वहां से, मुझे बहुत गुदगुदी हो रही है।
अब्बू अब भी उसकी चढ्ढी उतारने की कोशिश में लगे हुए थे। पर फातिमा ने तो अपने पैरों को मोड़ लिए और पैरों को पेट पर दबा कर, ज़ोरों से हंसे जा रही थी।
उसको हँसते हुए देख कर अब्बू को भी हंसी आ गयी और हँसते हँसते उसने बोला- हटाओ अपना हाथ बिटिया रानी, उतारने दो ना, ज़रा देखूँ तो यह जगह कितनी मुलायम और गद्देदार है।
खूब हंसने के बाद फातिमा उठ कर बिस्तर पर बैठ गई और अपने अब्बू को चूमते हुए उनके सीने से लग गई। अब्बू उसकी चूचियों को अपने छाती पर महसूस करके बहुत नादिर महसूस कर रहे थे और फातिमा अपने अब्बू की छाती के बालों को अपनी चुचियों पर रगड़ते हुए कसमसा रही थी।
उसके बाद कुछ लम्हों के बाद अब्बू ने प्यार से फातिमा के चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसकी आँखों में अपनी में देखते हुए बोला- तू अपने अब्बू से बहुत प्यार करती है ना?
फातिमा ने बहुत ही नर्म धीमी आवाज़ में जवाब दिया- इसमें कोई शक है क्या अब्बू, दुनिया में सबसे ज़्यादा आपसे ही तो प्यार करती हूं. और कौन है मेरा आप के सिवा?
तब अब्बू ने कहा- आज अगर तेरी माँ ज़िंदा होती तो क्या मुझे तुझसे इस प्यार के लिए तरसना पड़ता? तो क्या तू अब्बू की इस प्यास को ऐसे ही रहने देगी? तुमने तो मेरी ज़िन्दगी में हर तरह से अपनी अम्मी की जगह ले ली है, तो अब क्यों मुझको तड़पा रही है मेरी गुड़िया?
इस वक़्त दोनों फिर से बिस्तर पर लेट गए और फातिमा, अपने अब्बू के बाँहों में समा गई। वो ऊपर नंगी थी मगर नीचे जिस्म पर उसकी स्कर्ट और चढ्ढी अभी भी थी। अब्बू का हाथ अब भी उसकी जांघों के ऊपर चढ्ढी के पास ही घूम रहा था। फातिमा अपने अब्बू की उन बातों को सुनकर अब खामोश हो गयी थी।
फिर भी उसने बहुत ही प्यार से कहा- अब्बू, मैं तो उस दिन से आप से प्यार करती हूँ, जिस दिन से आपके बिस्तर पर आप के पास सोने को आयी थी और आपने मुझको अपने बाँहों में लेकर सुलाया था।
यह सुनकर अब्बू चौंक गए और बिना देरी किए अपना हाथ एक बार फिर, फातिमा की स्कर्ट के नीचे डाला और अपने हाथों से उसकी चढ्ढी को आहिस्ते आहिस्ते खींचने लगे।
फातिमा अब तक अपने तन में लगी आग और मन में भड़के हुए वासना के शोलो से दहक चुकी थी, उसने ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ कहते हुए एक अँगड़ाई ली और अपने अब्बू को अपना काम करने दिया लेकिन शर्म के मारे, उसने नंगी हुई चूत को अपने हाथों से ढक दिया। अब्बू, फातिमा की इस आखरी हया की कोशिश पर रीझ गए और आहिस्ते से उसके हाथों को चूत के ऊपर से अलग कर दिया। फातिमा ने भी अब्बू से कोई जबर नही दिखाया और अपनी नंगी चूत को अपने अब्बू के सामने पेश कर दी। अब्बू ने उसके हाथों के हटते उसकी कुँवारी चूत देखी तो एक लम्हे के लिए जड़ हो गए और उन्होंने पाया कि चूत गुलाबी और एकदम साफ़ थी। झांट का एक बाल भी उसकी चूत पर दस्तखत नही दे रहा था।
उसकी नंगी मक्खन सी चूत देख कर अब्बू की कैफियत न काबिले यकीन वाली हो रही थी। वो इस चिकनी चूत को देख कर नजरबंद हो गए। कुछ लम्हे होश ओ हवास खोने के बाद जब होश संभाले तो अगले लम्हे ही, उस बेनजीर चूत पर झुक गए और उस पर अपनी जीभ चला दिया। अपने अब्बू की जीभ को अपनी चूत पर महसूस कर फातिमा सिसकारियों से कराह पड़ी। अब अब्बू अपने जज्बे में डूबे हुए धीरे धीरे अपनी कुंवारी बेटी की फूली हुई चूत को चाटना शुरू कर दिया।
जब अब्बू चूत चाट रहे थे तो फातिमा अपने दोनों हाथों से अपने अब्बू के सर को ज़ोर से पकड़े हुए थी और ‘उफ.. आह्ह्ह ओह्ह..’ करते हुए लम्बी लम्बी गर्म साँसें ले रही थी।
अब्बू आहिस्ते आहिस्ते अपनी बेटी फातिमा की जवान कुंवारी चुत की पंखुड़ियों को, अपनी उंगलियों से एहतराम से खोलते हुए, अपनी जीभ को चूत के उन मुलायम हिस्सों तक पहुंचने के लिए घुसेड़ने लगे। फातिमा की चूत अब बिल्कुल गीली हो चुकी थी। अब्बू उसकी चूत चाटते चले गए और फातिमा भी अपने अब्बू की जीभ को अपनी चूत पर सजदा करते, महसूस कर, सिसकारियों में डूबती चली गयी।
फातिमा की चुत चटने से उसकी आँखें जैसे नशीली हो गई थीं। उसकी आंखें चुदास के नशे में ऐसे लग रही थीं, जैसे उसने पूरी बोतल शराब पी ली हो। वो अब अपने अब्बू के सर को अपनी मक्खन जैसी नर्म चूत पर दबाए, घुटी आवाज में कराह रही थी। उसने अपनी दोनों जांघों को दोनों तरफ फैला दिया और अपने अब्बू से खुल कर अपनी चूत चटवा रही थी।
उसके अब्बू सारे जहान से बेजार, उसकी चूत को चाटते हुए, जन्नत के मंजर में डूब गए थे। अब्बू, समय को भूल वैसे ही सर घुसाए फातिमा की चूत को चाटते रहे और अपनी बेटी फातिमा को बेहाल करते रहे। फातिमा कभी सर उठाकर अब्बू को देखती, तो कभी झटपटा कर, सर बिस्तर पर पटकती और कभी उठ बैठ रही थी।
इस नए तजरीबा से बेसुध फातिमा ने एक मादक आवाज़ निकाली - अब्बू बस भी करो अब!!!
यह कहकर, फातिमा ने खुद अपनी चूचियों को दबाते हुए, अपने हाथों से अपनी जीभ को अपने होंठों पर फेरते हुए, मखमूर ऑखों से अब्बू को देखने लगी।
कुछ देर बाद अब्बू ने उसकी चूत को चूसना, चाटना छोड़ दिया। उन्होंने उठ कर, उसकी स्कर्ट को निकाल कर बाहर फेंक दिया और अब वो फातिमा को बांहों में लेकर उसके ऊपर चढ़ गए।
फातिमा ने धीमी आवाज़ में अब्बू को चूमते हुए कहा- आप पतलून नहीं उतारेंगे क्या?
तब अब्बू ने कहा- तुम्हीं उतार दो ना, बहुत लुत्फ आएगा।
फातिमा ने कहा - ठीक, आप लेटे और हिलना मत, उतारती हूँ।
अब्बू पीठ के बल अपने हाथों को सर के नीचे किए लेटे और नंगी फातिमा, अब्बू के पैरों के बीच, घुटनों पर आ गई। वो अपने अब्बू की पतलून, झुक कर आहिस्ते आहिस्ते खोलने लगी उसके अब्बू उसे निहारने लगे थे। वो उसकी तनी हुई, चूचियों को देख रहे थे। उसके अब्बू कभी उसके सपाट पेट को देखते, तो कभी उसकी पतली कमर पर उसकी नज़र पड़ती। फातिमा की कमर के नीचे वाला हिस्सा उभरा हुआ था, वहां से लेकर जांघों तक तो एकदम खिंची लग रही थी।
अब्बू जैसे एक एक करके अपनी बिटिया फातिमा की नंगी जवानी को निहारते गए और वैसे वैसे उनका लंड पतलून के अन्दर और कड़क होकर तना जा रहा था। फातिमा को अपने अब्बू के कड़े लंड के कारण उनकी पतलून उतारने में दिक्कत हो रही थी। इस कोशिश में एकाध बार उसके मुलायम हाथ से, अब्बू का मोटा तना लंड भी दब गया था। अब्बू को फातिमा के हाथ का उनके लंड को छू जाना, एक अलग ही मौज दे गया था। फातिमा को अब्बू की पतलून उतारने में जितनी देर लगा रही थी, उसके अब्बू को उतना ही ज्यादा मज़ा आ रहा था। आखिर में जब फातिमा को पतलून को जोर से नीचे से खींच कर निकलने में दिक्कत हुई तो उसने अब्बू से कहा- अरे आप ऊपर उठाइये तो!
अब्बू ने मुस्कुराते हुए पूछा- क्या ऊपर उठाऊं?
फातिमा भी मुस्कुरायी और आसमान की तरफ देखते हुए कहा- अब्बू आप उठाईए ऊपर! उसको पतलून निकलने के लिए अब्बू की गांड को ऊपर उठवाना था मगर फातिमा गांड उठाने को कह नही पारही थी। तब उसके अब्बू ने हँसते हुए अपनी गांड को ऊपर उठाया और फातिमा ने उनके पतलून को निकाल कर ज़मीन पर फेंक दिया। अब अब्बू के कच्छे में उनका लंड, उसे तंबू बनाए हुए था।
अब्बू ने कहा- अब इसको कौन उतारेगा बिटिया?
अब्बू का इशारा उसका कच्छे पर था। शरमाती हुई फातिमा बोली- वह मैं नहीं उतारने वाली, उसे आप ही उतारो।
अब्बू ने कहा- अरे, मैंने जैसे तेरी चढ्ढी उतारी थी, वैसे ही तू भी उतार ना बेटी।
यह कह अब्बू ने उसके हाथों को खींच कर अपने लंड पर रख दिया और उससे, कच्छाउतारने की जिद करने लगे थे।
अब्बू के बहुत कहने के बाद फातिमा ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और कच्छे को खींचना शुरू कर दिया। वह सिर्फ आधा ही निकला, क्योंकि ऊपर वाला हिस्सा तने हुए लंड पर अटका हुआ था।
फिर अपने होंठों को दांतों में दबाते हुए एक छोटी सी मुस्कान के साथ फातिमा ने अपनी उंगलियों से लंड को उस जगह से हटाया, जहाँ कच्छे में अटका हुआ था। फिर उसको खींचकर निकाल कर नीचे ज़मीन पर फेंक दिया।
फातिमा ने मुस्कुराते हुए अपनी आँखें बंद कर लीं। अब्बू ने फातिमा के सर को थाम कर अपने लंड के तरफ खींचा और फिर रुक गए। फातिमा की आंखे जरूर बंद थी मगर उसे समझ में आ रहा था कि अब्बू क्या चाहते है। उसे बेहद शर्म आरही थी और आगे बढ़ने के लिए हिचकिचा भी रही थी।
अब्बू ने फातिमा के हाथों को अपने खड़े हुए लंड पर रखा और भर्राई आवाज़ में कहा- इसको सहला, इसको सहलाती जा मेरी गुड़िया। आह! आह!! मेरी गुड़िया करती जा! ऐसे ही करती जा!
अब्बू के लंड को अपने हाथो में महसूस कर फातिमा के जिस्म में एक कंपकंपी सी दौड़ गई और उसकी रूह भी काँप उठी। उसने अपनी ज़िन्दगी में मौलवी के लंड को देखा और महसूस जरूर किया था लेकिन आज से पहले कभी भी लंड को अपने हाथों में थामा नही था। फिर उसने अपनी आँखों को बंद करते हुए अपने मुलायम हाथों में पहली बार अब्बू के मोटे लंड को पकड़ा और उसको सहलाना शुरू दिया।
अब्बू अपने पूरे जिस्म को ढीला छोड़ कर लेट गए और ज़ोर से चुदास से भरी आवाजें निकालने लगे- आहहहह! इसिश!! बहुत मज़ा आ रहा है मेरी गुड़िया! और ज़ोर से! और ज़ोर से अपना हाथ चला मेरी गुड़िया रानी! ऐसे ही! आह!!! ठहर जरा,अभी बताता हूं! यह देख, अपनी मुठ्ठी से मेरे लंड को ज़रा सा बंद करके, ऐसे अब हाथ को चला! ज़ोर से चलाती जाना!!!
अब्बू ने गहरी साँस लेते हुए फातिमा को सिखाया कि कैसे वह अपने हाथ को उसके लंड पर चलाए। जब फातिमा ने ठीक से वैसे ही करना शुरू किया तो अब्बू फिर से लेट गए और मजा लेते हुए, वासना में तड़पते हुए, आह आह की आवाज़ निकालने लगे।
अब्बू की आवाज में लगातार तड़प महसूस कर आखिर में फातिमा को अपनी आँखों को खोलना पड़ गया। उसके मुलायम हाथो में फिसलते लंड जहां उसके अब्बू को तड़प दे रही थी वहीं फातिमा को यह भी एहसास हो रहा था की उसके हाथो में अब्बू के लंड की गर्मी ने उसकी चूत को पनिया दिया है।
आखिर में अब्बू ने फातिमा को अपने मुँह में लंड को लेने का इशारा किया तो उसने इन्कार कर दिया। उसके इनकार कर देने के बाद, अब्बू ने फातिमा को समझाया कि जैसे उसने उसकी चूत को चाटा और चूसा था, वैसे ही उसको भी लंड को चाटना चूसना चाहिए। यह सब प्यार करने का एक तरीका होता है और इससे दोनों जनों को बहुत मज़ा और इत्मीनान मिलता है।
अब्बू के बहुत समझाने पर, झिझकते हुए फातिमा, अपने अब्बू के लंड पर झुक गयी। उसने पहले अब्बू के कहने पर अपनी जीभ से लंड के ऊपर वाले हिस्से पर फेरा, फिर धीरे धीरे वो अपने अब्बू का लंड चाटने लगी। थोड़ी देर बाद, अब्बू ने उसका सर पकड़ा और अपने लंड से उसके होंठो को रगड़ने लगे और फिर जोर देकर उसके होंठो को खोलते हुए, उसके मुंह में अपना लंड घुसेड़ दिया। फातिमा के मुंह के अंदर अपना लंड पाकर अब्बू ने फातिमा को उसे चूसने का इशारा किया और कुछ देर की आना कानी के बाद फातिमा अपने मुंह में घुसे अपने अब्बू के आधे लंड को चूसने लगी थी।
अब्बू ख़ुशी और मौज के मारे आवांजे निकलने लगे थे, उनके मुंह से लगातार- आआआअह! आह और ज्यादा और अन्दर ले ले! अपने मुँह में!!!! आह,! मेरी बिटिया रानी और चूस! निकल रहा था।
अब्बू को उस तरह से मज़ा लेते हुए फातिमा ने कभी नहीं देखा था, उसने अपने अब्बू के लंड को बहुत चूसा। जब फातिमा को अपने जीभ पर नमकीन स्वाद महसूस होने लगा तो वह समझ गयी थी कि यह उसके अब्बू का माल है और इसी के साथ वो अपने अब्बू के लंड के छेद पर अपनी जीभ रगड़ने लगी।
उधर अब्बू उस रगड़ से बेहाल हो रहे थे। वो चिचिया रहे थे। कुछ देर अब्बू के लंड को चूसने के बाद फातिमा बोली- अब्बू अब बस, मेरा मुँह दुःख गया। और यह कहते हुए उसने अपने मुंह से अब्बू के लंड को निकाल दिया।
इसपर फातिमा के अब्बू ने उसे अपने गोद में बैठा लिया। उसने फातिमा की दोनों जांघों को अपनी जांघों के दोनों तरफ बाहर किया और नंगी फातिमा को अपने लंड पर बैठाया। फातिमा अपने अब्बू के बड़े लंड को अपनी छोटी सी चूत पर महसूस करके वह सिहर कर, सिमट गई। उसके गाल अपने बापू के गालों से रगड़ खा रहे थे, उसकी आंखे बंद थी और वो अपने अब्बू के लंड को अपनी चूत पर नीचे की तरफ रगड़ते हुए महसूस कर, कांप रही थी।
थोड़ी देर बाद अब्बू ने उसे खड़ा किया और अपने लंड पर थोड़ा थूक सा लगा, कुछ थूक फातिमा की चूत पर भी लगा दिया। फिर फातिमा को थोड़ा सा ऊपर उठाकर अब्बू ने अपने लंड के टोपे को फातिमा की चुत पर थोड़ा सा लगा, हल्के से धक्का दिया। उस धक्के से फातिमा की चीख़ निकल गई और उचक गई, जिससे अब्बू का लंड एक तरफ को हट गया।
फातिमा के अब्बू अपनी बेटी की कुंवारी चूत चोदने के लिए बदहवास हो चुके थे, उन्होंने उसे सीधे लिटा दिया। अब अब्बू उसको चूमने लगे, उसकी चूचियों को चुसने और उसके पूरे जिस्म को चाटने लगे। वो हर तरफ से फातिमा को मस्त कर के, उसकी छोटी चूत में अपना बड़ा लंड घुसाने के लिए उसको तैयार कर रहे थे।
फातिमा अपनी आँख मूंदे, वासना से सराबोर सिसकारियां ले रही थी। आखिर में अब्बू, फातिमा के दोनों पैरों को फैला कर, खुद उसके बीच में आगए। उन्होंने अपने अपने लंड को फातिमा की चुत पर रगड़ा और फिर से थूक से गीला करके, उसकी चूत में में डालने की कोशिश करने लगे। हर बार जब लंड घुसने वाला होता, तो फातिमा अपनी कमर हिला देती और अब्बू का लंड एक तरफ खिसक जाता था।
फातिमा के अब्बू अब इस नाकामी से झुंझला रहे थे। लेकिन उन्होंने अपना जबर बनाए रक्खा। अब उन्होंने अपने दोनों हाथों से फातिमा की दोनों जांघों को दबाया और अपने लंड को चूत के छेद में डालने के लिए उस पर जोर मारा। इससे उसके लंड का टोपे वाला हिस्सा थोड़ा सा अन्दर चूत में घुसा और लंड के अन्दर जाते ही फातिमा ज़ोर से चिल्ला दी- न न अब्बू! खुदा की कसम, मुझको डर लग रहा है! दुखता!, मत डालो अन्दर!
अब्बू फातिमा का डर और दर्द दोनो समझते थे, उन्होंने फातिमा को प्यार से सहलाया, उसे चूमा और उसको तसल्ली दी। थोड़ी देर यह सब करने के बाद, अब्बू ने फातिमा की चूचियाँ सहलाते हुए, उसकी चूत में एक कस के धक्का मारा और उसका आधा लंड फातिमा के कुंवारेपन की झिल्ली को तोड़ते हुए अन्दर घुस गया। फातिमा दर्द से तड़प उठी। उसके अब्बू ने अपने लंड को वही फंसे रहने दिया और वो फातिमा के होंठो और चूचियों का चूमने और दबाने लगे जब फातिमा का दर्द कम हुआ और वह अब्बू को देखने लगी, तब अब्बू प्यार से बोला- बिटिया दर्द कम हुआ?
फातिमा के आंखो में अभी भी आंसू थे लेकिन फिर भी उसने हाँ में सर हिला दिया।
अब अब्बू ने और ज़ोर से धक्का मारा और उसका पूरा लंड फातिमा की नन्ही सी चूत के अंदर धँस गया।
फातिमा को यूं लगा कि जैसे उसके अन्दर किसी ने कील ठोक दी है। वह दर्द से बिलबिला उठी और रोने लगी। अब्बू ने रोने को दरकिनार रख फातिमा के आँसू पोंछते हुए उसकी चूचियाँ दबाते रहे और होंठ चूसते रहे। थोड़ी देर में फातिमा ने महसूस किया कि अब दर्द कम हो गया और अब्बू का लंड भी अंदर हरकत कर रहा है। उसे वह एहसास दर्द के साथ मजा देने लगा था।
अब्बू उसके चेहरे की रंगत देख समझ गए थे कि बिटिया रानी फातिमा अब इत्मीनान में है। अब अब्बू ने अपनी कमर को उठाकर अपना आधा लंड बाहर किया और फिर ज़ोर से अन्दर जड़ तक उसे पेल दिया। फातिमा की दर्द के साथ मस्ती से आह निकल गई और वह ‘आह आह उफ़्फ़, अब्बू! बोल उठी। अब्बू ने उसकी आह सुनकर बोला - अब मजा आया? इस पर जब फातिमा ने कुछ नही बोला तो अब्बू ने वैसे ही उसकी चूत में अपना लंड घुसेड़ हुए, उस पर हिलते हुए पूछा -बोल बिटिया, अब्बू चोदे?
इस पर फातिमा के मुंह से निकल गया - अब्बू आपकी हूं, चोद लो.
यह सुन अब्बू ने ख़ुश होकर बोले- वाह बिटिया, चार धक्कों में चुदाई सीख ली और बोलने भी लगी! शाबाश, बस ऐसे ही चूदाई किया करेंगे।
यह कहते हुए उसने फातिमा को चोदना शुरू कर दिया अब्बू ने फातिमा के मस्ती से भरे अंगों को दबाते हुए, उसे ज़ोरदार चुदाई से मस्त कर दिया। फातिमा भी दर्द में सराबोर मज़े में सिसकारियाँ लेने लगी थी। फिर उसका शरीर अकड़ने लगा और वो चिल्लायी- अब्बू कुछ निकल रहा है! मैं गयी!
वो अपने जिस्म को थिरकाते हुए झड़ने लगी थी। उसी समय अब्बू भी अपनी बिटिया के झड़ने से गरमाए हुए, लगातार धक्के मारते हुए, आह! आह! करते हुए झड़ गए।
कुछ देर बाद, फातिमा के अब्बू ने उसकी चूत से अपना लंड बाहर निकाला और बिस्तर से उठ गए। उनके लंड से अभी भी माल टपक रहा था। अब्बू ने इसकी परवाह किए बिना फातिमा को बांहों में भर लिया और कुछ देर बाद बोला- चलो, गुसलखाने चलते हैं।
फातिमा उठकर अपनी चूत देखने लगी जिसमे अभी भी जलन सी हो रही थी। जब उसकी नज़र चादर पर पड़ी, तो उसमे लाल ख़ून का दाग़ लगा हुआ था। तभी अब्बू ने मुस्कारते हुए अपने लटके हुए लंड को उसे दिखाया, जिसमें लाल ख़ून लगा हुआ दिख रहा था।
अब्बू ने बोला- जब लड़की पहली बार चुदती है, तो उसकी चूत से थोड़ा सा ख़ून निकलता है, बेटी, ये कोई खास बात नही है।
फातिमा बोली- अब्बू यहाँ नीचे थोड़ा दर्द और जलन भी हो रही है।
उस पर अब्बू बोला- बिटिया, पहली बार में ये सब होगा, कल तक सब ठीक हो जाएगा।
फिर वो दोनों उठे और अब्बू ने फातिमा को गोद में उठाकर उसे चूमते हुए गुसलखाने में ले गए। दोनो ने पेशाब की तब अब्बू ने बोला- चलो गुड़िया तुम्हें नहला दूँ, पसीने से भीग गयी हो और मेरे मालं से भी सनी हो।
फिर अब्बू ने फातिमा को नल से पानी डाल कर नहलाने लगे और अपने शरीर पर भी पानी डालने लगे। अब्बू ने पहले फातिमा की चूत और जाँघों में साबुन लगाया और फिर उसे घुमा कर उसके चूतड़ों पर साबुन लगाने लगे। फातिमा ने गुसलखाने के शीशे में देखा कि जब अब्बू उसके चूतड़ों पर साबुन लगा रहे थे तो उसके अब्बू का लंड अब फिर से खड़ा होने लगा है।
अब्बू ने साबुन लगाते हुए फातिमा के चूतड़ों की दरार में हाथ डाल दिया और अब उनका हाथ फातिमा के चूतड़ोंसे हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। फिर थोड़ी देर बाद, अब्बू ने नहाया और बाद में तौलिए से अपना और फातिमा का बदन पोंछा। फातिमा का बदन पूछते हुए, अब्बू ने नीचे बैठ कर उस की चूत को कसके चूम लिया।
फिर फातिमा को घुमाकर उसके अब्बू उसके चूतड़ों को चूमने लगे। फातिमा ने शीशे में देखा कि उसके अब्बू ने उसके चूतड़ों को फैला कर, अपना मुँह उसकी दरार में डालने जारहे है। तभी उसे अपने अब्बू की जीभ अपनी गांड के छेद पर महसूस हुई और वो चहुंक उठी। अब्बू ने क़रीब 5 मिनट तक उसकी गांड चाटी तो फातिमा के पाँव उत्तेजना से काँपने लगी और बोली- छी: अब्बू! क्या गंदी जगह को चाट रहे हो!
अब्बू ने गहरी सांस लेते हुए बोला- गुड़िया रानी, तुम्हारी कुँवारी गांड बहुत मस्त है, बहुत जल्दी मैं तेरी गांड भी मारूँगा।
फातिमा बोली- अब्बू, अम्मी की भी गांड मारते थे?
अब्बू - हाँ बिटिया, वो मुझे गांड़ मारने देती थी और बाद में तो उसे बहुत मजा आने लगा था।
फातिमा अपनी अम्मी की गांड़ मरवाने की आदत सुनकर हैरान ही रह गयी।
जिस्म सुखाने के बाद अब्बू, फातिमा को लेकर जब कमरे में आगए, तो उनका लंड फिर से खड़ा हो चुका था। उन्होंने फातिमा को अपने गोद ले लिया और उसको चूमते हुए, उसकी चूचियाँ दबाने लगे। फातिमा, अब्बू की गोदी में बड़े इत्मीनान से बैठ गई और अपने अब्बू की हरकतों का पूरा मजा लेने लग रही थी।
अब्बू ने फातिमा की चूत पर आहिस्ते से हाथ फेरते हुए बोला- बेटी, तेरी चूत अभी भी दर्द कर रही है क्या?
फातिमा बोली- अब्बू, अभी भी हल्का दर्द है.
अब्बू- मेरा तो फिर खड़ा हो गया है। गांड मारने की तबीयत है मगर तू झेल नहीं पाएगी। तू अपने अब्बू का लंड चूसे गी? चूस कर मेरे लंड का ताव उतार दो, बिटिया।
फातिमा ने अपने अब्बू के हुक्म पर सर हिला कर रजामंदी दी तो अब्बू ने कहा- तुम बैठ जाओ, मैं खड़े होकर, तुम्हारे मुँह में अपना लंड डालता हूँ।
फातिमा के अब्बू ने उसे बैठाकर, अपना लंड उसके सामने किया तो फातिमा उसे चूमने और चाटने लग गई। उसके बाद, फातिमा ने अपने अब्बू के बिना इशारे के ही उनके लंड को अपने मुंह में ले लिया और उसकी चूसने लगी। अपनी बिटिया के चुसने से गरमाये अब्बू अब उसके मुंह में धक्के मारने लगे। पहले तो हल्के से मारे, फिर तेजी अब्बू उसके मुंह को चोदने लगे।
अब्बू अपनी बिटिया के मुंह में अपने लंड के हर धक्के पर आह आह कर रहे थे और उससे कहने लगे- आह आज तो तुम्हारी अम्मी की याद आ गयी, वो भी ऐसे ही चूसती थी।
फिर वो लंड से बहुत ज़ोर से धक्के मारने लगे और बोले- मैं अब झड़ने वाला हूं बिटिया, तुम लंड का मॉल पियोगी? कोशिश करो, अच्छा लगेगा.
फातिमा ने लंड चूसते हुए, अब्बू की तरफ़ देखा और अपना सर हिलाकर हाँ का इशारा कर दिया
उसकी हां देख, अब्बू मस्त हो अपने धक्कों की तेजी बढ़ा, बड़ाबड़ा ने लगे- उफ्फ गुड़िया! मैं मैं मैं गया!!!
यह कहते हुए अब्बू ने अपना मॉल को फातिमा के मुँह में छोड़ना शुरू कर दिया। फातिमा को अब्बू का गर्म मॉल बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा लेकिन फिर भी वो उसे गटक गई। अब्बू ने जब देखा की फातिमा नापसंदिगी के बाद भी मॉल को पी रही है, तो उन्हें फातिमा पर बड़ा प्यार आगया। अब्बू ने अपना लंड, फातिमा के मुंह से बाहर खींच के बाहर किया और बचे मॉल को फर्श पर ही गिर जाने दिया। उसके बाद अब्बू ने फातिमा के मुँह में लगे हुए अपने मॉल को साफ़ करके उसे बहुत प्यार किया और फिर उसे बांहों में लेकर, धक के नंगे ही उसके साथ सो गए।
मुझसे उस रात फातिमा ने अपने अब्बू के साथ शुरू हुए जिस्मानी रिश्ते के कारणों और जो हुआ वह एक ही सेशन में बिना रुके बता डाला था। जब उसने अपनी आप बीती समाप्त की तो मैं बहुत देर तक, अपने लैप टॉप के स्क्रीन पर स्तब्ध देखता रहा। मेरी समझ नही आराहा था की फातिमा की यह हकीकत है या उसकी यौन फैंटेसी का उदगार? फातिमा एक स्त्री थी यह बात तो मैं जानता था क्योंकि पूर्व में दो बार वी पी एन के माध्यम से बात हो चुकी थी लेकिन फिर भी उसकी स्वीकारोक्ति ने मुझे झझकोर दिया था। मैंने जब बहुत देर तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने प्रश्न किया की मैं चुप क्यों हूं? मैने कहा, कई बार हम जो सोचते है या जिस विषय पर जिज्ञासु हो, काम पिपासा से भर जाते है, वो जब प्रत्यक्ष सामने आजाता है, तो हतप्रभ बिना हुए नही रहा जाता है। मेरे उत्तर को सुनकर उसने स्माइली भेज दी और तब मैं भी मुस्कराए बिना नहीं रह सका।
फातिमा से मेरा संपर्क कुछ वर्ष रहा और उसने अपने जीवन के बारे में और भी बहुत कुछ बताया। जैसे की उसके अब्बू के साथ उसके शारीरिक संबंध अगले 6 वर्ष तक और चले। उसके अब्बू उस पर इतना आसक्त हो गए थे की उसकी निकाह के लिए कोई अच्छा रिश्ता आता तो वो उसे टाल देते थे। एक दिन फातिमा को लगा की जो अब तक हुआ वह उसका भूत और वर्तमान तो हो सकता है लेकिन भविष्य नही हो सकता है, अब्बू उसके भविष्य नही हो सकते है। फातिमा पढ़ने में अच्छी थी इसलिए उसे जब यूनाइटेड नेशन की एक एनजीओ में काम करने का मौका मिला तो वो अपने गांव, शहर को छोड़ फैसलाबाद में काम करने चली गई। अब्बू ने बहुत रोकना चाहा लेकिन अब्बू को दिलासा देकर और यह भरोसा दे कर की वह उन्हे नही छोड़ेगी, निकल गई। फातिमा एक बार घर से निकली तो अब्बू ने भी हालात को समझ के, मन मार कर समझौता कर लिया। थोड़े समय बाद फातिमा का निकाह हो गया और अपनी नई जिंदगी की ओर निकल गई। मैन उससे पूछा था कि क्या शादी के बाद, अब्बू ने कभी उसकी चुदाई की? क्या जो हुआ उनको लेकर अफसोस हुआ और अब्बू से नफरत हुई? फातिमा ने बताया कि शुरू में शादी के बाद जब गांव जाती थी तो अकेले में अब्बू उसको चोदने का मौका ढूंढते थे और वह भी ज्यादा समय अब्बू को नही रोक पाती थी। बाद में उसने गांव जाना ही छोड़ दिया और अपने शौहर की बनाई ज़िंदगी मे रम गई। उसे अपने अब्बू के साथ बने शारीरिक सम्बंध पर थोड़ा अफसोस था लेकिन उसे कोई ग्लानि नही थी। उसे लगता था कि जो हुआ वो हालात के कारण हुआ और इसी लिए उसके दिल मे अब्बू के लिए कोई नफ़रत भी नही पनपी। फातिमा को एक बात बड़ी अजीब लगती थी कि वह इस उम्र में भी अपने अब्बू के साथ बिताए गए दिनों के की याद कर के उसकी चूत अब भी गीली हो जाती है। हमारे बीच जब इन्सेस्ट को लेकर, वह सही है या गलत पर बात होती तो वो अक्सर एक डायलॉग मारती थी, "डिअर प्रशांत, इन्सेस्ट इस अल्टीमेट थ्रिल एंड लव बट वन शुड भी लकी टू सर्वाइव इट"!
फिर एक दिन कोरोना की विभीषिका के आने के बाद से मेरा संपर्क फातिमा से टूट गया। वो है या नही, मैं नही जानता लेकिन फातिमा को अपने बहुत करीब पाता हूं। मैने यह कहानी इस उम्मीद से लिखी है की शायद फातिमा के आंखो से उसकी ही कहानी गुजरे तो शायद मुझे याद कर ले।