अब मैं इन लोगो से बात क्या करूँ यह तो मेरी भी समझ मे नही आ रही थी लेकिन फिर भी मुझे बात तो करनी ही थी इसलिए मैंने हिम्मत करके बोली
मैं : देखिए मैं यंहा पर जो बात करने के लिए आई हूं उसपर मेरी और आपकी पूरी जिंदगी की बात है इसलिए मेरी आप लोगो से विनय पूर्ण निवेदन है कि पहले मेरी पूरी बात को सुने और समझे इसके बाद आप लोग जो भी निर्णय लेंगे मुझे मंजूर होगा।
सुमन : बोलो बेटी तुम्हे जो भी बोलना है खुल कर बोलो बिना किसी संकोच के ।
मैं : जैसा कि आप लोग जान ही चुके है कि मैं कौन हूं और कंहा से हु तो मुझे नही लगता हैंकि इस बारे में बात करके कोई फायदा नही है और रही बात मेरे यंहा पर आने की तो उसके दो मकसद थे ।पहला ये की कल जय ने जिस तरह एक अनजान लड़की की मदद की उसके लिए मैं कितनी बार भी धन्यवाद करू कम है अगर मैं आज जीवित हु तो वह सिर्फ और सिर्फ जय की वजह से इसलिए मैं उनका सुक्रिया अदा करना चाहती हु।
कमलेश :मैम आपको सुक्रिया करने की कोई जरूरत नही है ।मुसीबत में फसे किसी की मदद करना कोई उपकार नही है लेकिन फिर भी आप सुक्रिया अदा करना चाहती है तो आप उसे अपनी कम्पनी में कोई काम दे दीजिए क्यूंकि कल इसने ठाकुर के लड़के को इतनी बुरी तरह से मारा है कि वह अपने बेटे की ऐसी हालत करने वाले को खोज रहा है हमे डर है कि कही उसे अगर कुछ पता चल गया तो वह इसे कुछ नुकसान ना पहुचा दे इसलिए हम लोग इसे यंहा से लेने के लिए आये हुए थे।
उसकी बात को सुनकर मुझे रूबी की कही गयी बात याद आ गयी हो ना हो इस घटना में अमृता का हाथ हो सकता है और अगर ऐसा है तो वह उसके लिए अच्छा नही होगा।। मैं यह सब सोच कर पूछ लेनें में ही भलाई समझी क्यूंकि मैं नही चाहती थी कि उसे उस गलती की सजा मिले जो उसने की ही ना हो।
मैं :तो तुम्हारे कहने का मतलब भानु के बेटे से है ।
कविता :हा उसी कमीने की वजह से आज गांव की कोई भी लड़की खुद को सुरक्षित महसूस नही करती है आये दिन वो और उसके कुछ लफंगे साथी मिल कर किसी न किसी लड़की को उठा ले जाते है।
मैं :तो तुम लोग पुलिस में शिकायत क्यूं नही करते ।
सुमन : बेटी पुलिस में शिकायत करके क्या फायदा पुलिस भी उनके खिलाफ कुछ नही करती उल्टे जो शिकायत करने जाते है उन्हें उलटा फशा देते है इसलिये कोई नही जाता है और वैसे भी हम गरीब लोगों की सुनता ही कौन है।
मैं :" आंटी जी अब आप चिंता न करे अब वह कुछ भी नही करेगा।
सुमन :बेटी तुम इन सब चक्करों में ना पड़ो तो ही अच्छा है ।कंहा तुम उस कमीने से झगड़ा मोल ले रही हो।
मैं :आंटी जी सायद आप भूल रही है कि कल उसी कमीने ने मुझे भी उठा लिया था अगर जय वक्त पर नही आता तो उस कमीने ने मुझे भी खराब कर ही दिया था।
कविता :वैसे सोनिया जी आप कुछ बात बोल रही थी यंहा पर आने के विषय मे एक बात तो आपकी पूरी हो गयी पर दूसरी अभी भी अधूरी है।
मैं :हा बात तो है पर समझ मे नही आ रहा है कि मैं उस बारे में कैसे बात करूं।
सरिता :अगर आप घर के बड़े लोगो से यह बात बोलने में दिक्कत हो रही है तो आप हमसे इस बारे में बात कर सकती है।।
मैं : नही यह उचित नही होगा हमे जो भी बात करनी है इन सभी लोगो के सामने ही करनी होगी क्यूंकि इसमे सभी की खास तौर पर जय और बाकी के सभी बड़े लोगो की मंजूरी जरूरी है ।
सुमन : बेटी जो भी कहना है खुल कर बोलो ।
मैं थोड़ी देर रुक कर फिर बोली कि
मैं :" देखिए आंटी जी जाने अनजाने में कल रात कुछ ऐसा हो गया जिसकी सायद मैने कल्पना करना भी छोड़ दिया था या यूं कह ले कि मैं कभी भी करना ही नही चाहती थी लेकिन किस्मत में कुछ और ही लिखा हुआ था जो ना चाहते हुए भी हो गया।
मेरी बात सुनकर सुमन आंटी और बाकी के घर वाले जय की तरफ सवालिया नजरो से देखने लगे और जय को भी कुछ समझ मे नही आ रहा था कि उसने ऐसा क्या कर दिया जो सभी इस तरह से उसे घूर कर देख रहे है।तब सुमन आंटी बोली कि
सुमन :बेटी अगर मेरे बेटे ने गलती से कुछ ऐसा कर दिया है जो उसे नही करना चाहिए था तो उसके लिये मैं तुमसे हाथ जोड़ कर माफी मांगती हु।
इतना बोल कर सुमन आंटी ने मेरे सामने हाथ जोड़ लिया तो मैं आगे जा कर उनके हाथों को नीचे करके बोली
मैं :नही आंटी जी आप गलत समझ रही है जय ने ऐसा कुछ नही किया बल्कि उसने तो मेरी इज्जत बचाई और मैं उसके सामने उस हालत में थी कि कोई भी अपना आपा खो सकता है लेकिन तब भी इसने अपनी बहन के हाथों कपडा मंगवा कर मेरी तन को ढका ।वह तो जिस बारे में मैं बात कर रही हु उसमे हम दोनों में से किसी की कोई गलती नही है ।
राजेस्वर :बेटा तुम जो कहना चाहती हो खुल कर बोलो हमे जो भी उचित लगेगा वह जरूर करेंगे।
मैं :अंकल जी बात यह है कि कल जय को जब चोट लगी तो उसके खून का कुछ कतरा मेरी मांग को भी भर दिया और इस तरह से ना चाहते हुए मैं जय की सुहागन हो गयी