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दो भाभियाँ और बेचारा देवर
मेरा नाम मोनिका है और यह मेरी कहानी है, मैं अपने ससुराल की सबसे बड़ी बहू हूँ, मेरे सास-ससुर और मेरा सबसे छोटा देवर प्रकाश गाँव मे रहते थें, प्रकाश गाँव के ही हाई स्कूल में पढ़ता था और मैं अपनी देवरानी शिल्पा के साथ शहर में थी।
शहर में सिर्फ हम दो औरतें ही थीं क्योंकि हम दोनो के पति विदेश में रहकर छोटे मोटे काम किया करते थें, और हमदोनो शहर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए जातीं।
यह कहानी तब शुरू होती है जब मेरा सबसे छोटा देवर प्रकाश अपने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुका था और अब उसे आगे पढ़ने के लिए कॉलेज में दाखिला लेना था, मेरे पति 10वी के बाद नही पढ़ पाए थें लेकिन वह चाहते थें की उनका सबसे छोटा भाई कॉलेज तक कि पढ़ाई पढ़े, इसलिए वह अपने छोटे भाई प्रकाश को शहर के ही किसी कॉलेज में नामांकन लेने के लिए बोलें, यहीं वक्त था जब प्रकाश हमारे साथ शहर में आकर रहने लगा।
प्रकाश को हमारे साथ रहने में कोई परेशानी नही हुई, उसकी दो दो भाभियाँ एकसाथ उसकी खिदमत करने के लिए बैठी थीं, घर मे सबसे छोटा था इसलिए सभी उसे बहुत प्यार करते, लेकिन इसी वजह से प्रकाश की कुछ आदतें बिगड़ गई थी, वह हमदोनो औरतों की कोई बात नही सुनता था और सिर्फ अपनी मनमानी करता था।
मैं तो उसकी सारी गलतियां नज़रंदाज़ कर दिया करती थी लेकिन मेरी देवरानी शिल्पा को गुस्सा आ जाता था, वह मुझसे आकर शिकायत करती की "दीदी, आप अपने इस लाडले देवर को समझा दो, इसकी बदमाशियां बढ़ती ही जा रही है, अब मैं बर्दास्त नही करने वाली"
मैं पुछी "अरे बताओ तो पहले की हुआ क्या"
शिल्पा बोली "कोई एक बात है जो बताऊं, उसके रोज़ रोज़ का यहीं हाल है, अभी मैं एक किताब पढ़ रही थी और वह नास्ता कर रहा था, आप अभी बाथरूम में नहाने गई थीं न उसी वक्त, उसने पानी मांगा और मैं थोड़ी देर बाद ही उठकर उसे पानी की ग्लास दी, तो जानती हैं दीदी उसने क्या किया"
मैं पुछी "क्या किया उसने"
शिल्पा बोली "वह नालायक पानी की ग्लास झटके से फेंक दिया, और बोला कि इतनी देर क्यों हो गई लाने में, आप ही बताइए दीदी की ग्लास से मुझे चोट भी तो लग सकती थी, उसे ज़रा भी परवाह नही की मैं उसकी भाभी हूँ, बस अपनी मनमानी करता है"
मैं शिल्पा को शान्त करते हुए बोली "अच्छा तुम शान्त हो जाओ, मैं उससे बात करती हूँ, मैं भी देख रही हूँ उसकी बदमाशियां, उसके दोनो बड़े भाई और माँ-बाप ने मिलकर उस लड़के का मन बढा दिया है, उसे सही रास्ते पर लेकर आना ही होगा"
शिल्पा बोली "हाँ दीदी, आप कुछ करो वरना मैं अब उसे बर्दास्त नही करने वाली, आगे से मेरे साथ ऐसी हरकतें की तो मार मारकर उसका बुता बना दूँगी"
चुकी सुबह का वक्त था और हम दोनों अपने स्कूल जाने वाली थी इसलिए मैं शिल्पा को शांत रहने के लिए बोली और हम दोनों तैयार होकर स्कूल के लिए निकल गए, हम दोनों छोटे बच्चों के स्कूल में पढ़ाते थे इसलिए हमें सुबह के 8 बजे निकलना होता था और दोपहर के 1 बजे तक हम दोनों वापस आ जाते थे, वही दूसरी तरफ मेरा देवर प्रकाश 10 बजे के करीब निकलता और 3 बजे कॉलेज से वापस आता।
उसी दिन दोपहर में जब हम दोनों स्कूल से वापस आए तो हमेशा की तरह कुछ देर आराम करने लगे, आराम करते हुए हमें 2 बज गए और अब हम दोनों ने मिलकर दोपहर का खाना बनाने की तैयारी में लग गए, प्रकाश रोजाना 3 बजे आया करता था इसलिए हमें लगा कि 1 घंटे में खाना तैयार हो जाएगा लेकिन पता नहीं क्यों वह 2 बजे ही अपनी कॉलेज से वापस आ गया, और आने के साथ ही अपनी बैग एक तरफ फेंक कर चिल्लाते हुए बोला "मेरा खाना लगाओ जल्दी, बहुत भूख लगी है"
हम दोनों औरतें किचन में काम कर रही थी, शिल्पा बोली "देखो दीदी आ गया आपका लाडला देवर, इस लड़के को तो बोलने की भी तमीज नहीं है, कोई बात धीमी आवाज़ में नही बोल सकता, हर बात इसे चिल्ला चिल्लाकर बोलने की आदत है"
मैं सब्जी काट रही थी इसलिए शिल्पा से बोली "अच्छा एक गिलास ठंडा पानी लेकर जाओ और प्रकाश को बता दो कि 1 घंटे में खाना तैयार हो जाएगा, तब तक वह आराम करे"
शिल्पा ने वैसा ही किया जैसा मैंने उससे कहा था, और एक गिलास में ठंडा पानी लेकर किचन से बाहर निकल गई, थोड़ी ही देर में हॉल से दोनों के चिल्लाने की आवाज आई, शिल्पा तेज आवाज में बोली "दीदी, दीदी इधर आओ, देखो इस नालायक ने मेरे साथ क्या किया"
मैं जल्दी से किचन से बाहर निकली और हॉल में गई तो देखी की शिल्पा के बदन का ऊपरी हिस्सा पानी से भीगा हुआ था और दोनों आपस में बहस कर रहे थे, मैं तुरंत दोनों के पास गई और पुछी "क्या हुआ ऐसे क्यों चिल्ला रही थी और तुम्हारे शरीर पर पानी क्यों है"
शिल्पा काफी गुस्से में थी, वह प्रकाश की तरफ देखकर चिल्लाते हुए बोली "इस नालायक ने दीदी, इसी नालायक ने यह सब किया है, आपके लाडले देवर ने, आज मैं इसे नहीं छोड़ने वाली, आज मैं मार मार कर इसका बुता बना दूंगी"
इतना बोल कर शिल्पा इधर-उधर कुछ ढूंढने लगी और जैसे ही उसकी नजर झाड़ू के तरफ गई वह दौड़ते हुए गई और झाड़ू उठा लाई।
शिल्पा बहुत ज्यादा गुस्से में थी, वह झाड़ू लेकर प्रकाश के करीब गई और उसे मारने ही वाली थी कि इतने में मैं शिल्पा का हाथ पकड़कर उसे रोकने की कोशिश में लग गई "क्या कर रही हो शिल्पा, बस करो, मैं इससे बात करती हूँ न"
प्रकाश बेशर्मो की तरह हमारे सामने खड़ा होकर हँस रहा था, फिर अपनी दांत दिखाते हुए बोला "अरे मारने दो भाभी इसे, ज़रा मैं भी देखूं की यह छमिया कैसे मारती है"
प्रकाश के मुँह से यह सुनकर मुझे भी बुरा लगा, मैं शिल्पा के हाथ से पूरी ताक़त के साथ झाड़ू छीनकर फेंक दी और प्रकाश के करीब जाकर उसके गाल पर एक थप्पड़ लगाई "तुझे कुछ भी बोलने की तमीज़ नही है, अपनी भाभी को ऐसे छमिया कहकर बुलाएगा"
मुझे यकीन नही हो रहा था कि मैं अपने देवर को थप्पड़ लगाई, शिल्पा बोली "बहुत अच्छा दीदी, और मारो इस नालायक को"
मैं प्रकाश की तरफ देख रही थी, वह अपना सिर झुकाकर चुपचाप खड़ा था, शायद अपनी भाभी से पहली थप्पड़ खाने के बाद बेचारे को होश आया होगा, मेरे अंदर भी थोड़ी हिम्मत आई और इस बार प्रकाश के दाहिने कान को पकड़कर ज़ोर से मोड़ दी और बोली "मेरी बात ध्यान से सुनो, अगर आगे से ऐसी गलती की तो बहुत मार पड़ेगी, अब जाकर कमरे में आराम करो, जब खाना बन जायेगा तो मैं बुला दूँगी"
इतना बोलकर मैं तुरंत पीछे हटी और शिल्पा के साथ वापस किचन में आ गई, मुझे यकीन नही हो रहा था कि मैं अपने देवर को थप्पड़ लगाई और उसकी कान पकड़ी, वहीं शिल्पा भी हैरान थी, किचन में आते ही वह मुझे अपनी दोनो बाहों में पीछे से पकड़ ली और धीरे से हँसते हुए बोली "वाह दीदी, आपने तो कमाल कर दिया, मज़ा आ गया कसम से"
मैं भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी "अच्छा, अब खाना बनाने की तैयारी करो"
हमदोनो औरतें फिर से अपने काम मे लग गए, मैं बार बार यहीं सोच रही थी कि अपने देवर प्रकाश को कैसे थप्पड़ लगा दी और साथ ही उसके कान को पकड़कर मोड़ भी दी, यह सोंचकर मैं अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी, तभी प्रकाश किचन के दरवाज़े पर आकर खड़ा हो गया।
हमदोनो औरतें उसे देखकर हैरान रह गईं, वह रो रहा था और उसकी आंखें लाल लाल हो चुकी थी, शिल्पा यह देखकर हँसने लगी और बोली "पीटाने के बाद अब रुलाई आ रही है बच्चे को, बेचारा, तू तू तू तू"
शिल्पा की बात सुनकर मुझे भी हँसी आ गई, लेकिन तभी मेरी नज़र उसके हाथ पर गई, वह मोबाइल पकड़े हुए था, मुझे कुछ शक हुआ, तभी मोबाइल से मेरे पति की आवाज़ आई "मोनिका, यह क्या कर रही हो तुम दोनो मेरे भाई के साथ"
यह आवाज़ सुनकर शिल्पा अपने सिर पर घुँघट करके मोबाइल की तरफ पीठ करके खड़ी हो गई, और अब मोबाइल के सामने मैं थी, प्रकाश अपने भाई को वीडियो कॉल लगा चुका था और अब मेरी तरफ देखकर कातिल मुस्कान बिखेर रहा था, मैं समझ गई कि अगर कोई अपने छोटे भाई को इस तरह रोते हुए देखे तो वह क्या समझेगा, मैं कुछ बोलती इससे पहले ही मेरे पति ने कहा "तुमसे ये उम्मीद नही थी मोनिका, तुमदोनो मिलकर मेरे भाई को परेशान कर रही हो, तुम्हारी हिम्मत कैसे की इसपर हाथ उठाने की, दोहपर में कॉलेज से थक हारकर प्रकाश घर आया और तुमने खाना देने की बजाए उसको थप्पड़ से मारने लगी"
मुझे नही पता था कि इस प्रकाश ने मेरे पति से क्या क्या शिकायतें की थी, मैं अपने पति को समझाती रही लेकिन वह एक बात नही सुने और उल्टे हमदोनो औरतों को हिदायतें दे दिए कि प्रकाश के साथ आगे से ऐसा कुछ भी नही होना चाहिए।
इसके बाद मेरे बड़े देवर यानी शिल्पा के पति का भी फ़ोन आया, उन्होंने भी हमदोनो को हिदायतें दी, ऐसा नही था कि मैं अपने पति से डरती थी, बल्कि हमदोनो एक दूसरे से बहुत प्यार करते थें, लेकिन इस वक्त मेरे पति विदेश में थें इसलिए उन्हें ज्यादा परेशान नही करना चाहती थी और साथ ही उनके हर आदेश को मानने के लिए तैयार हो गई।
उस रात मेरे सास ससुर ने भी फ़ोन किया और हमदोनो औरतों को खरी खोटी सुनाई, हमे बहुत बुरा लग रहा था क्योंकि कोई हमारी बात सुनने को तैयार नही था, पता नही प्रकाश ने कितना मक्खन लगाकर शिकायतें की थी कि वे सभी काफ़ी गुस्सा थें।
इस दिन की घटना के बाद प्रकाश की बदमाशियां बढ़ती गई, अब वह मेरे साथ भी छेड़खानी करने लगा, जानबूझकर गलत जगह हाथ फिरा देता और शैतानी मुस्कान बिखेरने लगता, हमदोनो औरतें अपने इस देवर से परेशान हो चुकी थीं, हमदोनो अपने पति को परेशान भी करना नही चाहते थें, इएलिये मैं एक ऐसी योजना बनाई ताकि प्रकाश को सबक सिखाया जा सके, उसे भी पता चले कि मोनिका भाभी से पंगा लेने का अंज़ाम क्या होता है?
मैं जानती थी कि प्रकाश जिस उम्र में है उस उम्र के लड़कों को ताक़त से भी बल्कि जिश्म की लालच से अगर चाहा जाए तो अपना गुलाम भी बनाया जा सकता है।
मै एक ऐसा प्लान बना चुकी थी जिसमे प्रकाश पूरी तरह से फसने वाला था, और एक बार वह मेरी चुंगल में बस आ जाए फिर मैं उसका वो हाल करूँगी की उसे यकीन भी नही होगा कि यहीं औरत कभी उसकी भाभी हुआ करती थी।
स्कूल से दो सप्ताह की छूटी ले ली, अपने प्लान के बारे में शिल्पा को भी नही बताई थी, उसने जब पूछा कि मैने छूटी क्यों ली तो मैं सिर्फ इतना ही बोली कि कुछ दिन आराम करना चाहती हूँ, और इसके बाद से धीरे धीरे मैं प्रकाश को seduce करना शूरु कर दी, उसके सामने अश्लील हरकतें करने लगी, वह किसी भूखे भेड़िए की तरह मुझे देखता, मैं भी यहीं चाहती थी, और दो से तीन दिन बीतने के बाद मैं प्रकाश को लेकर शॉपिंग करने मॉल के लिए निकल गई, अब वह मेरी हर बात किसी पालतू कुत्ते की तरह मानने लगा था, मैं जब भी कुछ कहती तो वह एक पालतू कुत्ते की तरह अपना सिर हिला देता, मॉल में शॉपिंग करते समय मेरे देवर ने मेरी काफ़ी मदद की, हर वक्त मेरा पर्श लेकर मेरे पीछे पीछे चलता रहा।
और कुछ देर शॉपिंग करने के बाद मैं सीधा लेडीज टॉयलेट की तरफ बढ़ गई, मैने प्रकाश से कुछ नही कहा फिर भी वह एक पालतू कुत्ते की तरह लेडीज टॉयलेट तक मेरे पीछे पीछे आता रहा।
इसके बाद मै वो चीज़ कह डाली जिसे सुनकर मेरा देवर प्रकाश हैरानी से मेरी तरफ देखने लगा, मैं जैसे ही टॉयलेट रूम के अंदर गई वैसे ही दरवाज़ा बन्द करके प्रकाश से बोली "चलो अब अपने सभी कपड़े उतारकर नंगे हो जाओ"
जब वह मुझे हैरानी से देखने लगा तो मैं मुस्कुराते हुए बोली "जल्दी करो प्रकाश, देर हो रही है, अब मुझसे बर्दास्त नही होता, जल्दी करो, आज़ हमदोनो काफ़ी मज़े करने वाले हैं"
मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर मेरे देवर को लगा कि मैं यहां मस्ती की मूड में हूं और वह जल्दी जल्दी से अपने कपड़े उतारने लगा, उसे इस बात की कोई परवाह नही थी कि सामने जो औरत खड़ी है वो रिश्ते में उसकी भाभी लगती है, अगले ही पल वह पूरी तरह से नंगा खड़ा था।
मेरा सामने खड़ा मेरा देवर अब पूरी तरह से मेरे काबू में था, बस इसे किसी तरह मैं अपना गुलाम बनाकर अपना बदला पूरा करना चाहती थी, वह मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था, मैं भी धीरे से मुस्कुराई और बोली "तुम्हारे लंड के नीचे जो दो बड़े बड़े बॉल लटक रहे हैं, उसे क्या कहते हैं"
प्रकाश मेरी बात सुनकर हँसने लगा और बोला "वाह भाभी, आप भी बड़ी आसानी से लंड बोल दीं, वैसे इसे दोनो बॉल को आंड़ कहते हैं, आप इसे गोटी भी कह सकती हैं"
मैं फिर धीरे से मुस्कुराकर बोली "नही आंड़ कहना ही सही है, वैसे एक बात बताओ, क्या अपना यह आंड़ मेरे हवाले कर सकते हो, तुम्हे पूरी तरह से अपनी यह दोनो आंड़ मुझे Submit करनी होगी, हमेशा हमेशा के लिए"
प्रकाश मेरी तरफ ऐसे देख रहा था जैसे उसे मेरी बात समझ मे ही नही आई, फिर कुछ सोंचकर बोला "अरे भाभी यह आपका ही है, जो मर्ज़ी आए कीजिए, किसने रोका है"
मैं समझ गई कि प्रकाश मेरे कहने का मतलब नही समझ पाया, मेरे कहने का मतलब था कि वह अपनी दोनो आंड़ मुझे समर्पित कर दे ताकि मेरी जो इच्छा हो वह कर सकूं और साथ ही साथ उसे डोमिनेन्ट करने के लिए अपना पहला कदम आगे बढाऊँ, खैर धीरे धीरे वह खुद समझ जाएगा।
मेरा देवर अपनी निगाहें मेरी चुत पर टिकाए हुए था, मैं अभी भी पूरी तरह कपड़े में थी फिर भी उसकी नज़र मेरी जाँघों के बीच ही टिकी हुई थी।
मैं साड़ी के ऊपर से ही अपनी गाँड़ की तरफ इशारा करते हुए पुछी "बताओ प्रकाश, अपनी भाभी की गाँड़ चूमने का भी इरादा है क्या" प्रकाश हां में सिर हिला दीया, मैं उसे फ़र्श पर घुटने के बल बैठने का आदेश दी और खुद पीछे मुड़कर अपनी गाँड़ की उभार अपने देवर के सामने कर दी, वह बावला हो चुका था, साड़ी के ऊपर से ही मेरी गाँड़ की उभार को देखकर उसके पसीने छूट रहे थें, वह घुटने के बल चलता हुआ मेरे करीब आया और अपना चेहरा मेरी गाँड़ पर दबाने लगा, साड़ी के ऊपर से ही अपनी भाभी की गाँड़ को मेरा देवर महसूस करने की कोशिश में था।
मैं भी अपनी जाँघों को हल्का नीचे झुका दी जिससे मेरी गाँड़ मेरे देवर के चेहरे पर और ज्यादा दबने लगी, प्रकाश को मज़ा तो जरूर आ रहा होगा लेकिन साथ ही साथ मेरी चुत भी गीली हो रही थी।
तभी मेरे देवर प्रकाश ने पूछा "भाभी, क्या एक बार आपकी गाँड़ को चूम सकता हूँ"
मै हां बोली और अपनी साड़ी उसे नीचे से उठाने का आदेश दी, प्रकाश दोनो हाथ से मेरी साड़ी उठाकर मेरी गाँड़ देखने लगा, मैने अंदर सिर्फ एक पेटिकोट पहनी थी, इसके अलावां कोई पैंटी नही थी, मेरा देवर मेरी गाँड़ को बहुत करीब से निहार रहा था, फिर वह अपनी होठों से मेरी गाँड़ को दोनो तरफ से चूमने लगा।
मेरी गाँड़ को चूमते हुए उसे खुद को काबू में रखना मुश्किल लग रहा था, शायद उसने पहली बार किसी औरत की गाँड़ इतने करीब से देखी रही, वह अपने लंड की बढ़ती गर्मी को शांत करना चाहता था, इसलिए साड़ी मुझे पकड़ने के लिए कहा "भाभी प्लीज साड़ी को कुछ देर तक पकड़ लीजिए"
मैं भी देखना चाहती थी कि आखिर मेरा देवर आगे क्या करता है, अपनी साड़ी दोनो हाथ से पकड़कर कमर तक घिंच ली और पीछे मुड़कर देखने लगी, मेरा देवर प्रकाश अपनी एक हाथ से मेरी गाँड़ की दरार को फैला रहा था और फिर अपनी जीभ गाँड़ की दरार में ले जाकर वहाँ चाटने लगा, वहीं दूसरे हाथ से अपने लंड को पकड़कर मुठ मारने लगा, मतलब मेरे देवर को अपनी भाभी की गाँड़ चाटकर काफ़ी मज़ा आ रहा था, मैं भी तो यहीं चाहती थी और अब मेरे बिछाए जाल में प्रकाश के लिए फ़सना और आसान हो गया।
मैं अपनी जाँघों को और नीचे दबा दी जिससे मेरे देवर की जीभ मेरी गाँड़ की छेद में और ज्यादा दब गई, वह जितनी तेजी से मेरा गाँड़ चाटता उतनी ही तेज़ी से अपनी लंड पकड़कर मुठ मारता, मैं चाहती तो इसी वक्त अपनी गाँड़ उसके चेहरे के ऊपर से हटाकर उसके मुठ मारने की लालसा को खत्म कर सकती थी, लेकिन मैं उसकी लालसा को बढ़ाना चाहती थी, इसलिए आराम से अपने देवर को मुठ मारने दी और अगले ही पल टॉयलेट फर्श पर उसके लंड से वीर्य की धार निकलकर गिरने लगी, अब मैं उसके तरफ मुड़कर खड़ी हो गई और अपने देवर को अपनी चुत का दीदार कराने लगी, उसकी निगाहें मेरी चुत पर टिक गई, उसके लंड से वीर्य गिर रही थी और उसी वक्त मैं अपनी एक पैर से अपने देवर की दोनो आंड़ को दबा दी, वह बेचारा फ़र्श पर झुक गया और अपनी दोनो आंड़ को सहलाते हुए मेरी तरफ देखने लगा, बेचारे को हल्की चोट लग आई थी, मैं हंसते हुए बोली "ऐसे क्या देख रहे हो, यह मेरी गाँड़ चाटने की फीस है"
कुछ देर बाद हमदोनो घर वापस आ गए, रात में सोते वक्त मैं अपनी देवरानी शिल्पा के साथ बिस्तर पर लेटी हुई थी और वह मेरी टांगों के बीच में जाकर मेरी चुत चाट रही थी, हां आपने सही सुना, मेरी दीवार बनी शिल्पा मेरी चुत चाट रही थी, क्योंकि हमदोनो सिर्फ देवरानी-जेठानी ही नही बल्कि एक-दूसरे के लेस्बियन पार्टनर थें।
मैं उससे नही बताई की आज़ दोपहर में अपने देवर के साथ क्या की थी, लेकिन जब वह मेरी चुत चाट रही थी उस वक्त शिल्पा को थोड़ा बहुत शक हुआ, क्योंकि मेरी चुत पहले से ही गीली थी, दरअसल मॉल से आने के बाद अपने देवर के साथ बिताए पलों को याद करके काफ़ी गर्म हो चुकी थी, इसलिए सोने से पहले बाथरूम में जाकर कुछ देर तक अपनी चुत मसलती रही, मुठ मारकर ही बाहर आई थी, इसलिए मेरी चुत अभी तक गीली थी।
अगले दिन मंगलवार था और मैं खुद को काफ़ी powerfull महसूस कर रही थी, जानबूझकर साड़ी के बदले एक पतली सी नाइटी निकाली और उसे ही पहन ली जो लम्बाई में मेरे घुटने के पास तक थी, इसके अलावां मेरे जिश्म पर एक भी कपड़ा नही था, जबतक शिल्पा घर पर रही तबतक प्रकाश मेरे बदन को बस देखकर रह जाता, उसकी हिम्मत नही हो रहा थी आगे बढ़कर कुछ करने की, लेकिन शिल्पा के स्कूल जाने के बाद हमदोनो को पता था कि अब आगे बहुत कुछ होने वाला है।
शिल्पा अपने तय समय पर स्कूल के लिए निकल गई, जब वह स्कूल निकल रही थी उस वक्त प्रकाश टेबल के पास बैठकर नास्ता कर रहा था, मैं तुरंत प्रकाश के पास जाकर खड़ी हो गई, वह मेरे कपड़े को देखकर बेचैन हो उठा, आंखें फाड़ फाड़कर मुझे देख रहा था, तभी मैं अचानक से अपनी नाइटी को ऊपर उठा ली और अपनी चुत प्रकाश को दिखाने लगी, वह नाश्ता कर रहा था और मेरी मखमली चुत देखकर इतना बावला हो गया कि नाश्ता करना छोड़ कर मेरी चुत की तरफ देखने लगा, जैसे मेरी चुत चाटने का परमिशन मांग रहा हो।
मैं धीरे से मुस्कुराई और बिना कुछ बोले टॉयलेट रूम की तरफ चल दी, मैं अपनी तरफ से भी जितना हो सकता था उतना गांड मटका कर चल रही थी, मैंने प्रकाश से एक शब्द भी नहीं कहा था, फिर भी मेरा देवर अपना नाश्ता छोड़कर मेरे पीछे पीछे किसी कुत्ते की तरह चलने लगा, एक बार फिर से हम दोनों टॉयलेट रूम में खड़ी थी लेकिन यह टॉयलेट रूम किसी मॉल का नहीं बल्कि हमारे घर का था।
टॉयलेट रूम के अंदर जाने के साथ ही मेरा देवर प्रकाश दरवाजा बंद कर दिया और अपने सारे कपड़े उतार कर मेरे सामने नंगा फर्श पर घुटने के बल बैठ गया, एक ही दिन की ट्रेनिंग में उसने काफी कुछ सीख रखा था, और अब मुझे कुछ बताना जरूरी नहीं लगा, उसने खुद ब खुद नंगा होकर फ़र्श पर बैठे देखकर मुझे भी हँसी आ गई।
अपनी एक पैर उठाई और धीरे से उसके दोनों आंड़ पर किक मारते हुए बोली "गुड बॉय आगे से ऐसे ही बिना बताए मेरे सामने नंगे होकर तैयार रहना"
अचानक मेरे देवर का लंड एकदम टाइट और कड़क हो गया, वह मेरे सामने फर्श पर बैठकर मुठ मारना शुरू कर दिया, मैं एक बार फिर अपनी लात से उसके दोनों आंड़ पर किक मारी, ताकि वह मुठ मारना बंद करे, लेकिन मेरे किक मारने के बाद वह और ज्यादा उत्तेजित हो गया और तेजी से मुठ मरने लगा, मैं उसे रोकना चाहती थी इसलिए एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर मारी और रुकने का आदेश दी।
थप्पड़ खाने के बाद मेरे देवर को होश आया और उसने मुठ मारना बंद किया, मेरी तरफ सवालिए नजरों से देखने लगा कि आखिर मैंने थप्पड़ मारकर रुकने के लिए क्यों कहा, तब मैं बोली "आगे से एक बात का ध्यान रखना, तुम्हें मुठ मारने की इजाजत तभी मिलेगी जब मैं तुम्हें अपनी गाँड़ चूमने-चाटने को दूँगी"
वह मेरे सामने घुटने के बल बैठा था, इसलिए जहां से मैं उसे देख रही थी वहां से वह चोरी चोरी निगाहों से मेरी चुत देखने की कोशिश में था, जो एक छोटी सी और पतली से नाइटी से ढकी हुई थी।
मैं पुछी "क्या तुम सच मे बेशर्म हो प्रकाश, तुम्हें शर्म नहीं आती अपनी भाभी के सामने ऐसे फर्श पर बैठकर मुठ मारते हुए, बिल्कुल बेशर्म ही हो क्या प्रकाश"
मेरी बात सुनकर वह शर्म से अपना सिर झुका लिया, उसे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि मैं अचानक ऐसी बात कहूंगी, वह अपनी सिर शर्म से झुकाया और मैं एक बार फिर उसके दोनों आंड़ पर अपने पैर से किक मारी, इस बार मेरे पैर से मारी गई किक काफी जोर की थी और दर्द से तड़पते हुए प्रकाश फर्श पर लुढ़क गया, अपने दोनों हाथ से अपनी आंड़ को पकड़ कर दर्द से तड़पते हुए मेरी तरफ देख रहा था।
मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मेरे सामने एक जवान मर्द नंगा फर्श पर लेटा हुआ था, मेरी चुत भी गीली हो रही थी, मैं थोड़ा आगे बढ़ी और प्रकाश के शरीर के दोनों तरफ अपनी टांगे करके खड़ी हो गई, वह मेरी दोनों टांगों के बीच में फ़र्श पर लेटा हुआ था और मैं ठीक उसके ऊपर खड़ी होकर अपनी चुत मसलने लगी।
मेरा देवर प्रकाश मेरी तरफ अजीब निगाहों से देख रहा था, तभी मैं अपनी एक पैर उठाकर उसके चेहरे पर धीरे से किक मारी और आदेश दी "चल मेरे पैर चाट"
टॉयलेट रूम की फर्श पर मेरा देवर नंगा बैठकर मेरे पैरों को चूमने-चाटने लगा, कभी एक पैर को चूमता तभी दूसरे पैर को, और साथ ही साथ एक बार फिर मुठ मारना शुरू कर दिया, एक तरफ वह मेरे पैर को चूमते चाटते हुए मुट्ठ मार रहा था और दूसरी तरफ मैं उसके सामने खड़ी होकर अपनी दोनों टांगे फैलाकर अपनी चुत मसल रही थी, लेकिन बस एक बात का मुझे दुख था कि इन सभी चीजों से प्रकाश को कोई कष्ट नहीं हो रही बल्कि वह तो पूरे मजे ले कर मुठ मारने में व्यस्त था।
लेकिन मैं उसे कष्ट देना चाहती थी ताकि अपनी बदनामी का बदला ले सकूँ, पिछले कुछ दिनों में वह हम दोनों देवरानी-जेठानी को जितना परेशान किया था उसका अंजाम तो उसे भुगतना ही था।
इसलिए मैं अपनी चुत मसलते हुए प्रकाश से बोली "अगर एक बार और तुम अपनी दोनों आंड़ पर मुझे पैरों से किक मारने दोगे तो मैं तुम्हें फिर अपनी गांड की छेद चूमने और चाटने का मौका दूंगी"
इतना शानदार ऑफर प्रकाश ठुकरा नहीं पाया और तुरंत अपने घुटने के बल बैठकर अपनी दोनों टांगे फैला दिया ताकि बीच में लटक रही उसकी दोनों आंड़ के लिए इतनी जगह मिल जाए की मैं आसानी से अपनी पैर उठाकर किक मार सकूँ, उसका लंड जितना कठोर था उतनी ही कठोर उसकी दोनों आंड़ दिखाई पड़ रही थी, मैं अपनी एक हाथ से उसके चेहरे को ऊपर उठाई और अपने देवर की आंखों में देखकर पुछी "अगर तुम इसी तरह पूरी जिंदगी खुद को मुझे समर्पित कर दोगे तो मैं हमेशा तुम्हें अपनी गाँड़ छेद चाटने का मौका दूंगी, जो मज़े इस वक्त तुम ले रहे हो वह सारी जिंदगी मिलेगी, लेकिन बदले में तुम्हें खुद को मुझे समर्पित करना होगा"
मुझे लगा कि मेरी बातों को सुनकर मेरा देवर मेरे सामने रोएगा गिड़गिड़ाएगा कि मैं ऐसा कुछ नहीं करूं, लेकिन मेरी बात सुनकर मेरा देवर प्रकाश बिल्कुल शांत रहा, मैं अपने हाथ उसके चेहरे पर से हटा दी और उसके चेहरे के सामने ही अपनी मदमस्त फूली हुई चुत को मसलने लगी, ऐसा पहली बार था जब मैं अपने देवर के सामने अपनी चुत मसल रही थी, प्रकाश अपनी आंखें फाड़ फाड़ कर मेरी चुत को देख रहा था और मुठ भी मार रहा था, इसलिए मैं एक बार फिर से उसकी दोनों आंड़ पर हल्की दबाव के साथ कीक मारी और बोली "तुझे मेरी बात एक बार में समझ में नहीं आई क्या, मैंने कहा था ना कि तुझे मुठ मारने की इजाजत तभी मिलेगी जब मैं तुझसे अपनी गांड की चाटने को कहूंगी, इसके अलावा तू बिना मेरी इजाजत के मुठ नहीं मार सकता"
इतना बोल कर मैं वहां से हटकर टॉयलेट रूम की दीवारों पर जहां शीशा टंगी हुई थी वहां आकर खड़ी हो गई, शीशे में मैं देख सकती थी कि मेरा देवर मेरी गाँड़ को देखते हुए अपने लंड को सहला रहा था।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस लड़के ने कल तक हम दो औरतों का जीना हराम कर रखा था आज वही लड़का मेरे सामने फर्श पर नंगा बैठा हुआ है, और मैं उसकी हालत इतनी खराब कर चुकी हूँ कि वह बिना मेरी इजाजत के मुठ भी नहीं मार सकता, कल तक जो लड़का मेरे सामने शेर बनने की कोशिश कर रहा था आज उसी के घर में टॉयलेट रूम के अंदर मैं उसके दोनों आंड़ पर अपने पैरों से किक मार रही थी, उसे बेइज्जत कर रही थी, फिर भी वह चुपचाप नंगा फर्श पर बैठा हुआ था।
यह ताकत थी एक औरत के जिस्म की, मैं जानती थी कि अगर प्रकाश को घुटने पर लाना है तो मुझे अपने जिस्म की नुमाइश करनी होगी और मेरा निशाना एकदम सटीक लगा था, आज प्रकाश मेरे सामने मेरे कदमों में झुका हुआ था, इस वक्त मैं जैसा कहती वह वैसा ही करता।
मैं शीशे में प्रकाश की तरफ देखी और उसके चेहरे को देख कर मुस्कुरा दी, अपने देवर को नंगा देखकर मेरी चुत भी गीली होने लगी थी, मैं भी अपनी चुत को मसालना शुरू कर दी, एक तरफ मैं खड़ी होकर अपनी चुत मसल रही थी और दूसरी तरफ शीशे में दिखी तो मेरा देवर मेरे पीछे फर्श पर नंगा बैठ कर भीख मांग रहा था ताकि मैं उसे अपनी गांड के छेद चूमने और चाटने की इजाजत दे दुँ, एक ही दिन में कितना कुछ बदल गया था, कल तक जो लड़का मेरे सामने शेर बनने की कोशिश कर रहा था आज वही लड़का मेरे सामने फर्श पर नंगा बैठकर किसी भीगी बिल्ली की तरह भीख मांगने पर विवश था।
मेरा नाम मोनिका है और यह मेरी कहानी है, मैं अपने ससुराल की सबसे बड़ी बहू हूँ, मेरे सास-ससुर और मेरा सबसे छोटा देवर प्रकाश गाँव मे रहते थें, प्रकाश गाँव के ही हाई स्कूल में पढ़ता था और मैं अपनी देवरानी शिल्पा के साथ शहर में थी।
शहर में सिर्फ हम दो औरतें ही थीं क्योंकि हम दोनो के पति विदेश में रहकर छोटे मोटे काम किया करते थें, और हमदोनो शहर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने के लिए जातीं।
यह कहानी तब शुरू होती है जब मेरा सबसे छोटा देवर प्रकाश अपने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी कर चुका था और अब उसे आगे पढ़ने के लिए कॉलेज में दाखिला लेना था, मेरे पति 10वी के बाद नही पढ़ पाए थें लेकिन वह चाहते थें की उनका सबसे छोटा भाई कॉलेज तक कि पढ़ाई पढ़े, इसलिए वह अपने छोटे भाई प्रकाश को शहर के ही किसी कॉलेज में नामांकन लेने के लिए बोलें, यहीं वक्त था जब प्रकाश हमारे साथ शहर में आकर रहने लगा।
प्रकाश को हमारे साथ रहने में कोई परेशानी नही हुई, उसकी दो दो भाभियाँ एकसाथ उसकी खिदमत करने के लिए बैठी थीं, घर मे सबसे छोटा था इसलिए सभी उसे बहुत प्यार करते, लेकिन इसी वजह से प्रकाश की कुछ आदतें बिगड़ गई थी, वह हमदोनो औरतों की कोई बात नही सुनता था और सिर्फ अपनी मनमानी करता था।
मैं तो उसकी सारी गलतियां नज़रंदाज़ कर दिया करती थी लेकिन मेरी देवरानी शिल्पा को गुस्सा आ जाता था, वह मुझसे आकर शिकायत करती की "दीदी, आप अपने इस लाडले देवर को समझा दो, इसकी बदमाशियां बढ़ती ही जा रही है, अब मैं बर्दास्त नही करने वाली"
मैं पुछी "अरे बताओ तो पहले की हुआ क्या"
शिल्पा बोली "कोई एक बात है जो बताऊं, उसके रोज़ रोज़ का यहीं हाल है, अभी मैं एक किताब पढ़ रही थी और वह नास्ता कर रहा था, आप अभी बाथरूम में नहाने गई थीं न उसी वक्त, उसने पानी मांगा और मैं थोड़ी देर बाद ही उठकर उसे पानी की ग्लास दी, तो जानती हैं दीदी उसने क्या किया"
मैं पुछी "क्या किया उसने"
शिल्पा बोली "वह नालायक पानी की ग्लास झटके से फेंक दिया, और बोला कि इतनी देर क्यों हो गई लाने में, आप ही बताइए दीदी की ग्लास से मुझे चोट भी तो लग सकती थी, उसे ज़रा भी परवाह नही की मैं उसकी भाभी हूँ, बस अपनी मनमानी करता है"
मैं शिल्पा को शान्त करते हुए बोली "अच्छा तुम शान्त हो जाओ, मैं उससे बात करती हूँ, मैं भी देख रही हूँ उसकी बदमाशियां, उसके दोनो बड़े भाई और माँ-बाप ने मिलकर उस लड़के का मन बढा दिया है, उसे सही रास्ते पर लेकर आना ही होगा"
शिल्पा बोली "हाँ दीदी, आप कुछ करो वरना मैं अब उसे बर्दास्त नही करने वाली, आगे से मेरे साथ ऐसी हरकतें की तो मार मारकर उसका बुता बना दूँगी"
चुकी सुबह का वक्त था और हम दोनों अपने स्कूल जाने वाली थी इसलिए मैं शिल्पा को शांत रहने के लिए बोली और हम दोनों तैयार होकर स्कूल के लिए निकल गए, हम दोनों छोटे बच्चों के स्कूल में पढ़ाते थे इसलिए हमें सुबह के 8 बजे निकलना होता था और दोपहर के 1 बजे तक हम दोनों वापस आ जाते थे, वही दूसरी तरफ मेरा देवर प्रकाश 10 बजे के करीब निकलता और 3 बजे कॉलेज से वापस आता।
उसी दिन दोपहर में जब हम दोनों स्कूल से वापस आए तो हमेशा की तरह कुछ देर आराम करने लगे, आराम करते हुए हमें 2 बज गए और अब हम दोनों ने मिलकर दोपहर का खाना बनाने की तैयारी में लग गए, प्रकाश रोजाना 3 बजे आया करता था इसलिए हमें लगा कि 1 घंटे में खाना तैयार हो जाएगा लेकिन पता नहीं क्यों वह 2 बजे ही अपनी कॉलेज से वापस आ गया, और आने के साथ ही अपनी बैग एक तरफ फेंक कर चिल्लाते हुए बोला "मेरा खाना लगाओ जल्दी, बहुत भूख लगी है"
हम दोनों औरतें किचन में काम कर रही थी, शिल्पा बोली "देखो दीदी आ गया आपका लाडला देवर, इस लड़के को तो बोलने की भी तमीज नहीं है, कोई बात धीमी आवाज़ में नही बोल सकता, हर बात इसे चिल्ला चिल्लाकर बोलने की आदत है"
मैं सब्जी काट रही थी इसलिए शिल्पा से बोली "अच्छा एक गिलास ठंडा पानी लेकर जाओ और प्रकाश को बता दो कि 1 घंटे में खाना तैयार हो जाएगा, तब तक वह आराम करे"
शिल्पा ने वैसा ही किया जैसा मैंने उससे कहा था, और एक गिलास में ठंडा पानी लेकर किचन से बाहर निकल गई, थोड़ी ही देर में हॉल से दोनों के चिल्लाने की आवाज आई, शिल्पा तेज आवाज में बोली "दीदी, दीदी इधर आओ, देखो इस नालायक ने मेरे साथ क्या किया"
मैं जल्दी से किचन से बाहर निकली और हॉल में गई तो देखी की शिल्पा के बदन का ऊपरी हिस्सा पानी से भीगा हुआ था और दोनों आपस में बहस कर रहे थे, मैं तुरंत दोनों के पास गई और पुछी "क्या हुआ ऐसे क्यों चिल्ला रही थी और तुम्हारे शरीर पर पानी क्यों है"
शिल्पा काफी गुस्से में थी, वह प्रकाश की तरफ देखकर चिल्लाते हुए बोली "इस नालायक ने दीदी, इसी नालायक ने यह सब किया है, आपके लाडले देवर ने, आज मैं इसे नहीं छोड़ने वाली, आज मैं मार मार कर इसका बुता बना दूंगी"
इतना बोल कर शिल्पा इधर-उधर कुछ ढूंढने लगी और जैसे ही उसकी नजर झाड़ू के तरफ गई वह दौड़ते हुए गई और झाड़ू उठा लाई।
शिल्पा बहुत ज्यादा गुस्से में थी, वह झाड़ू लेकर प्रकाश के करीब गई और उसे मारने ही वाली थी कि इतने में मैं शिल्पा का हाथ पकड़कर उसे रोकने की कोशिश में लग गई "क्या कर रही हो शिल्पा, बस करो, मैं इससे बात करती हूँ न"
प्रकाश बेशर्मो की तरह हमारे सामने खड़ा होकर हँस रहा था, फिर अपनी दांत दिखाते हुए बोला "अरे मारने दो भाभी इसे, ज़रा मैं भी देखूं की यह छमिया कैसे मारती है"
प्रकाश के मुँह से यह सुनकर मुझे भी बुरा लगा, मैं शिल्पा के हाथ से पूरी ताक़त के साथ झाड़ू छीनकर फेंक दी और प्रकाश के करीब जाकर उसके गाल पर एक थप्पड़ लगाई "तुझे कुछ भी बोलने की तमीज़ नही है, अपनी भाभी को ऐसे छमिया कहकर बुलाएगा"
मुझे यकीन नही हो रहा था कि मैं अपने देवर को थप्पड़ लगाई, शिल्पा बोली "बहुत अच्छा दीदी, और मारो इस नालायक को"
मैं प्रकाश की तरफ देख रही थी, वह अपना सिर झुकाकर चुपचाप खड़ा था, शायद अपनी भाभी से पहली थप्पड़ खाने के बाद बेचारे को होश आया होगा, मेरे अंदर भी थोड़ी हिम्मत आई और इस बार प्रकाश के दाहिने कान को पकड़कर ज़ोर से मोड़ दी और बोली "मेरी बात ध्यान से सुनो, अगर आगे से ऐसी गलती की तो बहुत मार पड़ेगी, अब जाकर कमरे में आराम करो, जब खाना बन जायेगा तो मैं बुला दूँगी"
इतना बोलकर मैं तुरंत पीछे हटी और शिल्पा के साथ वापस किचन में आ गई, मुझे यकीन नही हो रहा था कि मैं अपने देवर को थप्पड़ लगाई और उसकी कान पकड़ी, वहीं शिल्पा भी हैरान थी, किचन में आते ही वह मुझे अपनी दोनो बाहों में पीछे से पकड़ ली और धीरे से हँसते हुए बोली "वाह दीदी, आपने तो कमाल कर दिया, मज़ा आ गया कसम से"
मैं भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी "अच्छा, अब खाना बनाने की तैयारी करो"
हमदोनो औरतें फिर से अपने काम मे लग गए, मैं बार बार यहीं सोच रही थी कि अपने देवर प्रकाश को कैसे थप्पड़ लगा दी और साथ ही उसके कान को पकड़कर मोड़ भी दी, यह सोंचकर मैं अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी, तभी प्रकाश किचन के दरवाज़े पर आकर खड़ा हो गया।
हमदोनो औरतें उसे देखकर हैरान रह गईं, वह रो रहा था और उसकी आंखें लाल लाल हो चुकी थी, शिल्पा यह देखकर हँसने लगी और बोली "पीटाने के बाद अब रुलाई आ रही है बच्चे को, बेचारा, तू तू तू तू"
शिल्पा की बात सुनकर मुझे भी हँसी आ गई, लेकिन तभी मेरी नज़र उसके हाथ पर गई, वह मोबाइल पकड़े हुए था, मुझे कुछ शक हुआ, तभी मोबाइल से मेरे पति की आवाज़ आई "मोनिका, यह क्या कर रही हो तुम दोनो मेरे भाई के साथ"
यह आवाज़ सुनकर शिल्पा अपने सिर पर घुँघट करके मोबाइल की तरफ पीठ करके खड़ी हो गई, और अब मोबाइल के सामने मैं थी, प्रकाश अपने भाई को वीडियो कॉल लगा चुका था और अब मेरी तरफ देखकर कातिल मुस्कान बिखेर रहा था, मैं समझ गई कि अगर कोई अपने छोटे भाई को इस तरह रोते हुए देखे तो वह क्या समझेगा, मैं कुछ बोलती इससे पहले ही मेरे पति ने कहा "तुमसे ये उम्मीद नही थी मोनिका, तुमदोनो मिलकर मेरे भाई को परेशान कर रही हो, तुम्हारी हिम्मत कैसे की इसपर हाथ उठाने की, दोहपर में कॉलेज से थक हारकर प्रकाश घर आया और तुमने खाना देने की बजाए उसको थप्पड़ से मारने लगी"
मुझे नही पता था कि इस प्रकाश ने मेरे पति से क्या क्या शिकायतें की थी, मैं अपने पति को समझाती रही लेकिन वह एक बात नही सुने और उल्टे हमदोनो औरतों को हिदायतें दे दिए कि प्रकाश के साथ आगे से ऐसा कुछ भी नही होना चाहिए।
इसके बाद मेरे बड़े देवर यानी शिल्पा के पति का भी फ़ोन आया, उन्होंने भी हमदोनो को हिदायतें दी, ऐसा नही था कि मैं अपने पति से डरती थी, बल्कि हमदोनो एक दूसरे से बहुत प्यार करते थें, लेकिन इस वक्त मेरे पति विदेश में थें इसलिए उन्हें ज्यादा परेशान नही करना चाहती थी और साथ ही उनके हर आदेश को मानने के लिए तैयार हो गई।
उस रात मेरे सास ससुर ने भी फ़ोन किया और हमदोनो औरतों को खरी खोटी सुनाई, हमे बहुत बुरा लग रहा था क्योंकि कोई हमारी बात सुनने को तैयार नही था, पता नही प्रकाश ने कितना मक्खन लगाकर शिकायतें की थी कि वे सभी काफ़ी गुस्सा थें।
इस दिन की घटना के बाद प्रकाश की बदमाशियां बढ़ती गई, अब वह मेरे साथ भी छेड़खानी करने लगा, जानबूझकर गलत जगह हाथ फिरा देता और शैतानी मुस्कान बिखेरने लगता, हमदोनो औरतें अपने इस देवर से परेशान हो चुकी थीं, हमदोनो अपने पति को परेशान भी करना नही चाहते थें, इएलिये मैं एक ऐसी योजना बनाई ताकि प्रकाश को सबक सिखाया जा सके, उसे भी पता चले कि मोनिका भाभी से पंगा लेने का अंज़ाम क्या होता है?
मैं जानती थी कि प्रकाश जिस उम्र में है उस उम्र के लड़कों को ताक़त से भी बल्कि जिश्म की लालच से अगर चाहा जाए तो अपना गुलाम भी बनाया जा सकता है।
मै एक ऐसा प्लान बना चुकी थी जिसमे प्रकाश पूरी तरह से फसने वाला था, और एक बार वह मेरी चुंगल में बस आ जाए फिर मैं उसका वो हाल करूँगी की उसे यकीन भी नही होगा कि यहीं औरत कभी उसकी भाभी हुआ करती थी।
स्कूल से दो सप्ताह की छूटी ले ली, अपने प्लान के बारे में शिल्पा को भी नही बताई थी, उसने जब पूछा कि मैने छूटी क्यों ली तो मैं सिर्फ इतना ही बोली कि कुछ दिन आराम करना चाहती हूँ, और इसके बाद से धीरे धीरे मैं प्रकाश को seduce करना शूरु कर दी, उसके सामने अश्लील हरकतें करने लगी, वह किसी भूखे भेड़िए की तरह मुझे देखता, मैं भी यहीं चाहती थी, और दो से तीन दिन बीतने के बाद मैं प्रकाश को लेकर शॉपिंग करने मॉल के लिए निकल गई, अब वह मेरी हर बात किसी पालतू कुत्ते की तरह मानने लगा था, मैं जब भी कुछ कहती तो वह एक पालतू कुत्ते की तरह अपना सिर हिला देता, मॉल में शॉपिंग करते समय मेरे देवर ने मेरी काफ़ी मदद की, हर वक्त मेरा पर्श लेकर मेरे पीछे पीछे चलता रहा।
और कुछ देर शॉपिंग करने के बाद मैं सीधा लेडीज टॉयलेट की तरफ बढ़ गई, मैने प्रकाश से कुछ नही कहा फिर भी वह एक पालतू कुत्ते की तरह लेडीज टॉयलेट तक मेरे पीछे पीछे आता रहा।
इसके बाद मै वो चीज़ कह डाली जिसे सुनकर मेरा देवर प्रकाश हैरानी से मेरी तरफ देखने लगा, मैं जैसे ही टॉयलेट रूम के अंदर गई वैसे ही दरवाज़ा बन्द करके प्रकाश से बोली "चलो अब अपने सभी कपड़े उतारकर नंगे हो जाओ"
जब वह मुझे हैरानी से देखने लगा तो मैं मुस्कुराते हुए बोली "जल्दी करो प्रकाश, देर हो रही है, अब मुझसे बर्दास्त नही होता, जल्दी करो, आज़ हमदोनो काफ़ी मज़े करने वाले हैं"
मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट देखकर मेरे देवर को लगा कि मैं यहां मस्ती की मूड में हूं और वह जल्दी जल्दी से अपने कपड़े उतारने लगा, उसे इस बात की कोई परवाह नही थी कि सामने जो औरत खड़ी है वो रिश्ते में उसकी भाभी लगती है, अगले ही पल वह पूरी तरह से नंगा खड़ा था।
मेरा सामने खड़ा मेरा देवर अब पूरी तरह से मेरे काबू में था, बस इसे किसी तरह मैं अपना गुलाम बनाकर अपना बदला पूरा करना चाहती थी, वह मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था, मैं भी धीरे से मुस्कुराई और बोली "तुम्हारे लंड के नीचे जो दो बड़े बड़े बॉल लटक रहे हैं, उसे क्या कहते हैं"
प्रकाश मेरी बात सुनकर हँसने लगा और बोला "वाह भाभी, आप भी बड़ी आसानी से लंड बोल दीं, वैसे इसे दोनो बॉल को आंड़ कहते हैं, आप इसे गोटी भी कह सकती हैं"
मैं फिर धीरे से मुस्कुराकर बोली "नही आंड़ कहना ही सही है, वैसे एक बात बताओ, क्या अपना यह आंड़ मेरे हवाले कर सकते हो, तुम्हे पूरी तरह से अपनी यह दोनो आंड़ मुझे Submit करनी होगी, हमेशा हमेशा के लिए"
प्रकाश मेरी तरफ ऐसे देख रहा था जैसे उसे मेरी बात समझ मे ही नही आई, फिर कुछ सोंचकर बोला "अरे भाभी यह आपका ही है, जो मर्ज़ी आए कीजिए, किसने रोका है"
मैं समझ गई कि प्रकाश मेरे कहने का मतलब नही समझ पाया, मेरे कहने का मतलब था कि वह अपनी दोनो आंड़ मुझे समर्पित कर दे ताकि मेरी जो इच्छा हो वह कर सकूं और साथ ही साथ उसे डोमिनेन्ट करने के लिए अपना पहला कदम आगे बढाऊँ, खैर धीरे धीरे वह खुद समझ जाएगा।
मेरा देवर अपनी निगाहें मेरी चुत पर टिकाए हुए था, मैं अभी भी पूरी तरह कपड़े में थी फिर भी उसकी नज़र मेरी जाँघों के बीच ही टिकी हुई थी।
मैं साड़ी के ऊपर से ही अपनी गाँड़ की तरफ इशारा करते हुए पुछी "बताओ प्रकाश, अपनी भाभी की गाँड़ चूमने का भी इरादा है क्या" प्रकाश हां में सिर हिला दीया, मैं उसे फ़र्श पर घुटने के बल बैठने का आदेश दी और खुद पीछे मुड़कर अपनी गाँड़ की उभार अपने देवर के सामने कर दी, वह बावला हो चुका था, साड़ी के ऊपर से ही मेरी गाँड़ की उभार को देखकर उसके पसीने छूट रहे थें, वह घुटने के बल चलता हुआ मेरे करीब आया और अपना चेहरा मेरी गाँड़ पर दबाने लगा, साड़ी के ऊपर से ही अपनी भाभी की गाँड़ को मेरा देवर महसूस करने की कोशिश में था।
मैं भी अपनी जाँघों को हल्का नीचे झुका दी जिससे मेरी गाँड़ मेरे देवर के चेहरे पर और ज्यादा दबने लगी, प्रकाश को मज़ा तो जरूर आ रहा होगा लेकिन साथ ही साथ मेरी चुत भी गीली हो रही थी।
तभी मेरे देवर प्रकाश ने पूछा "भाभी, क्या एक बार आपकी गाँड़ को चूम सकता हूँ"
मै हां बोली और अपनी साड़ी उसे नीचे से उठाने का आदेश दी, प्रकाश दोनो हाथ से मेरी साड़ी उठाकर मेरी गाँड़ देखने लगा, मैने अंदर सिर्फ एक पेटिकोट पहनी थी, इसके अलावां कोई पैंटी नही थी, मेरा देवर मेरी गाँड़ को बहुत करीब से निहार रहा था, फिर वह अपनी होठों से मेरी गाँड़ को दोनो तरफ से चूमने लगा।
मेरी गाँड़ को चूमते हुए उसे खुद को काबू में रखना मुश्किल लग रहा था, शायद उसने पहली बार किसी औरत की गाँड़ इतने करीब से देखी रही, वह अपने लंड की बढ़ती गर्मी को शांत करना चाहता था, इसलिए साड़ी मुझे पकड़ने के लिए कहा "भाभी प्लीज साड़ी को कुछ देर तक पकड़ लीजिए"
मैं भी देखना चाहती थी कि आखिर मेरा देवर आगे क्या करता है, अपनी साड़ी दोनो हाथ से पकड़कर कमर तक घिंच ली और पीछे मुड़कर देखने लगी, मेरा देवर प्रकाश अपनी एक हाथ से मेरी गाँड़ की दरार को फैला रहा था और फिर अपनी जीभ गाँड़ की दरार में ले जाकर वहाँ चाटने लगा, वहीं दूसरे हाथ से अपने लंड को पकड़कर मुठ मारने लगा, मतलब मेरे देवर को अपनी भाभी की गाँड़ चाटकर काफ़ी मज़ा आ रहा था, मैं भी तो यहीं चाहती थी और अब मेरे बिछाए जाल में प्रकाश के लिए फ़सना और आसान हो गया।
मैं अपनी जाँघों को और नीचे दबा दी जिससे मेरे देवर की जीभ मेरी गाँड़ की छेद में और ज्यादा दब गई, वह जितनी तेजी से मेरा गाँड़ चाटता उतनी ही तेज़ी से अपनी लंड पकड़कर मुठ मारता, मैं चाहती तो इसी वक्त अपनी गाँड़ उसके चेहरे के ऊपर से हटाकर उसके मुठ मारने की लालसा को खत्म कर सकती थी, लेकिन मैं उसकी लालसा को बढ़ाना चाहती थी, इसलिए आराम से अपने देवर को मुठ मारने दी और अगले ही पल टॉयलेट फर्श पर उसके लंड से वीर्य की धार निकलकर गिरने लगी, अब मैं उसके तरफ मुड़कर खड़ी हो गई और अपने देवर को अपनी चुत का दीदार कराने लगी, उसकी निगाहें मेरी चुत पर टिक गई, उसके लंड से वीर्य गिर रही थी और उसी वक्त मैं अपनी एक पैर से अपने देवर की दोनो आंड़ को दबा दी, वह बेचारा फ़र्श पर झुक गया और अपनी दोनो आंड़ को सहलाते हुए मेरी तरफ देखने लगा, बेचारे को हल्की चोट लग आई थी, मैं हंसते हुए बोली "ऐसे क्या देख रहे हो, यह मेरी गाँड़ चाटने की फीस है"
कुछ देर बाद हमदोनो घर वापस आ गए, रात में सोते वक्त मैं अपनी देवरानी शिल्पा के साथ बिस्तर पर लेटी हुई थी और वह मेरी टांगों के बीच में जाकर मेरी चुत चाट रही थी, हां आपने सही सुना, मेरी दीवार बनी शिल्पा मेरी चुत चाट रही थी, क्योंकि हमदोनो सिर्फ देवरानी-जेठानी ही नही बल्कि एक-दूसरे के लेस्बियन पार्टनर थें।
मैं उससे नही बताई की आज़ दोपहर में अपने देवर के साथ क्या की थी, लेकिन जब वह मेरी चुत चाट रही थी उस वक्त शिल्पा को थोड़ा बहुत शक हुआ, क्योंकि मेरी चुत पहले से ही गीली थी, दरअसल मॉल से आने के बाद अपने देवर के साथ बिताए पलों को याद करके काफ़ी गर्म हो चुकी थी, इसलिए सोने से पहले बाथरूम में जाकर कुछ देर तक अपनी चुत मसलती रही, मुठ मारकर ही बाहर आई थी, इसलिए मेरी चुत अभी तक गीली थी।
अगले दिन मंगलवार था और मैं खुद को काफ़ी powerfull महसूस कर रही थी, जानबूझकर साड़ी के बदले एक पतली सी नाइटी निकाली और उसे ही पहन ली जो लम्बाई में मेरे घुटने के पास तक थी, इसके अलावां मेरे जिश्म पर एक भी कपड़ा नही था, जबतक शिल्पा घर पर रही तबतक प्रकाश मेरे बदन को बस देखकर रह जाता, उसकी हिम्मत नही हो रहा थी आगे बढ़कर कुछ करने की, लेकिन शिल्पा के स्कूल जाने के बाद हमदोनो को पता था कि अब आगे बहुत कुछ होने वाला है।
शिल्पा अपने तय समय पर स्कूल के लिए निकल गई, जब वह स्कूल निकल रही थी उस वक्त प्रकाश टेबल के पास बैठकर नास्ता कर रहा था, मैं तुरंत प्रकाश के पास जाकर खड़ी हो गई, वह मेरे कपड़े को देखकर बेचैन हो उठा, आंखें फाड़ फाड़कर मुझे देख रहा था, तभी मैं अचानक से अपनी नाइटी को ऊपर उठा ली और अपनी चुत प्रकाश को दिखाने लगी, वह नाश्ता कर रहा था और मेरी मखमली चुत देखकर इतना बावला हो गया कि नाश्ता करना छोड़ कर मेरी चुत की तरफ देखने लगा, जैसे मेरी चुत चाटने का परमिशन मांग रहा हो।
मैं धीरे से मुस्कुराई और बिना कुछ बोले टॉयलेट रूम की तरफ चल दी, मैं अपनी तरफ से भी जितना हो सकता था उतना गांड मटका कर चल रही थी, मैंने प्रकाश से एक शब्द भी नहीं कहा था, फिर भी मेरा देवर अपना नाश्ता छोड़कर मेरे पीछे पीछे किसी कुत्ते की तरह चलने लगा, एक बार फिर से हम दोनों टॉयलेट रूम में खड़ी थी लेकिन यह टॉयलेट रूम किसी मॉल का नहीं बल्कि हमारे घर का था।
टॉयलेट रूम के अंदर जाने के साथ ही मेरा देवर प्रकाश दरवाजा बंद कर दिया और अपने सारे कपड़े उतार कर मेरे सामने नंगा फर्श पर घुटने के बल बैठ गया, एक ही दिन की ट्रेनिंग में उसने काफी कुछ सीख रखा था, और अब मुझे कुछ बताना जरूरी नहीं लगा, उसने खुद ब खुद नंगा होकर फ़र्श पर बैठे देखकर मुझे भी हँसी आ गई।
अपनी एक पैर उठाई और धीरे से उसके दोनों आंड़ पर किक मारते हुए बोली "गुड बॉय आगे से ऐसे ही बिना बताए मेरे सामने नंगे होकर तैयार रहना"
अचानक मेरे देवर का लंड एकदम टाइट और कड़क हो गया, वह मेरे सामने फर्श पर बैठकर मुठ मारना शुरू कर दिया, मैं एक बार फिर अपनी लात से उसके दोनों आंड़ पर किक मारी, ताकि वह मुठ मारना बंद करे, लेकिन मेरे किक मारने के बाद वह और ज्यादा उत्तेजित हो गया और तेजी से मुठ मरने लगा, मैं उसे रोकना चाहती थी इसलिए एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर मारी और रुकने का आदेश दी।
थप्पड़ खाने के बाद मेरे देवर को होश आया और उसने मुठ मारना बंद किया, मेरी तरफ सवालिए नजरों से देखने लगा कि आखिर मैंने थप्पड़ मारकर रुकने के लिए क्यों कहा, तब मैं बोली "आगे से एक बात का ध्यान रखना, तुम्हें मुठ मारने की इजाजत तभी मिलेगी जब मैं तुम्हें अपनी गाँड़ चूमने-चाटने को दूँगी"
वह मेरे सामने घुटने के बल बैठा था, इसलिए जहां से मैं उसे देख रही थी वहां से वह चोरी चोरी निगाहों से मेरी चुत देखने की कोशिश में था, जो एक छोटी सी और पतली से नाइटी से ढकी हुई थी।
मैं पुछी "क्या तुम सच मे बेशर्म हो प्रकाश, तुम्हें शर्म नहीं आती अपनी भाभी के सामने ऐसे फर्श पर बैठकर मुठ मारते हुए, बिल्कुल बेशर्म ही हो क्या प्रकाश"
मेरी बात सुनकर वह शर्म से अपना सिर झुका लिया, उसे बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि मैं अचानक ऐसी बात कहूंगी, वह अपनी सिर शर्म से झुकाया और मैं एक बार फिर उसके दोनों आंड़ पर अपने पैर से किक मारी, इस बार मेरे पैर से मारी गई किक काफी जोर की थी और दर्द से तड़पते हुए प्रकाश फर्श पर लुढ़क गया, अपने दोनों हाथ से अपनी आंड़ को पकड़ कर दर्द से तड़पते हुए मेरी तरफ देख रहा था।
मुझसे भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मेरे सामने एक जवान मर्द नंगा फर्श पर लेटा हुआ था, मेरी चुत भी गीली हो रही थी, मैं थोड़ा आगे बढ़ी और प्रकाश के शरीर के दोनों तरफ अपनी टांगे करके खड़ी हो गई, वह मेरी दोनों टांगों के बीच में फ़र्श पर लेटा हुआ था और मैं ठीक उसके ऊपर खड़ी होकर अपनी चुत मसलने लगी।
मेरा देवर प्रकाश मेरी तरफ अजीब निगाहों से देख रहा था, तभी मैं अपनी एक पैर उठाकर उसके चेहरे पर धीरे से किक मारी और आदेश दी "चल मेरे पैर चाट"
टॉयलेट रूम की फर्श पर मेरा देवर नंगा बैठकर मेरे पैरों को चूमने-चाटने लगा, कभी एक पैर को चूमता तभी दूसरे पैर को, और साथ ही साथ एक बार फिर मुठ मारना शुरू कर दिया, एक तरफ वह मेरे पैर को चूमते चाटते हुए मुट्ठ मार रहा था और दूसरी तरफ मैं उसके सामने खड़ी होकर अपनी दोनों टांगे फैलाकर अपनी चुत मसल रही थी, लेकिन बस एक बात का मुझे दुख था कि इन सभी चीजों से प्रकाश को कोई कष्ट नहीं हो रही बल्कि वह तो पूरे मजे ले कर मुठ मारने में व्यस्त था।
लेकिन मैं उसे कष्ट देना चाहती थी ताकि अपनी बदनामी का बदला ले सकूँ, पिछले कुछ दिनों में वह हम दोनों देवरानी-जेठानी को जितना परेशान किया था उसका अंजाम तो उसे भुगतना ही था।
इसलिए मैं अपनी चुत मसलते हुए प्रकाश से बोली "अगर एक बार और तुम अपनी दोनों आंड़ पर मुझे पैरों से किक मारने दोगे तो मैं तुम्हें फिर अपनी गांड की छेद चूमने और चाटने का मौका दूंगी"
इतना शानदार ऑफर प्रकाश ठुकरा नहीं पाया और तुरंत अपने घुटने के बल बैठकर अपनी दोनों टांगे फैला दिया ताकि बीच में लटक रही उसकी दोनों आंड़ के लिए इतनी जगह मिल जाए की मैं आसानी से अपनी पैर उठाकर किक मार सकूँ, उसका लंड जितना कठोर था उतनी ही कठोर उसकी दोनों आंड़ दिखाई पड़ रही थी, मैं अपनी एक हाथ से उसके चेहरे को ऊपर उठाई और अपने देवर की आंखों में देखकर पुछी "अगर तुम इसी तरह पूरी जिंदगी खुद को मुझे समर्पित कर दोगे तो मैं हमेशा तुम्हें अपनी गाँड़ छेद चाटने का मौका दूंगी, जो मज़े इस वक्त तुम ले रहे हो वह सारी जिंदगी मिलेगी, लेकिन बदले में तुम्हें खुद को मुझे समर्पित करना होगा"
मुझे लगा कि मेरी बातों को सुनकर मेरा देवर मेरे सामने रोएगा गिड़गिड़ाएगा कि मैं ऐसा कुछ नहीं करूं, लेकिन मेरी बात सुनकर मेरा देवर प्रकाश बिल्कुल शांत रहा, मैं अपने हाथ उसके चेहरे पर से हटा दी और उसके चेहरे के सामने ही अपनी मदमस्त फूली हुई चुत को मसलने लगी, ऐसा पहली बार था जब मैं अपने देवर के सामने अपनी चुत मसल रही थी, प्रकाश अपनी आंखें फाड़ फाड़ कर मेरी चुत को देख रहा था और मुठ भी मार रहा था, इसलिए मैं एक बार फिर से उसकी दोनों आंड़ पर हल्की दबाव के साथ कीक मारी और बोली "तुझे मेरी बात एक बार में समझ में नहीं आई क्या, मैंने कहा था ना कि तुझे मुठ मारने की इजाजत तभी मिलेगी जब मैं तुझसे अपनी गांड की चाटने को कहूंगी, इसके अलावा तू बिना मेरी इजाजत के मुठ नहीं मार सकता"
इतना बोल कर मैं वहां से हटकर टॉयलेट रूम की दीवारों पर जहां शीशा टंगी हुई थी वहां आकर खड़ी हो गई, शीशे में मैं देख सकती थी कि मेरा देवर मेरी गाँड़ को देखते हुए अपने लंड को सहला रहा था।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस लड़के ने कल तक हम दो औरतों का जीना हराम कर रखा था आज वही लड़का मेरे सामने फर्श पर नंगा बैठा हुआ है, और मैं उसकी हालत इतनी खराब कर चुकी हूँ कि वह बिना मेरी इजाजत के मुठ भी नहीं मार सकता, कल तक जो लड़का मेरे सामने शेर बनने की कोशिश कर रहा था आज उसी के घर में टॉयलेट रूम के अंदर मैं उसके दोनों आंड़ पर अपने पैरों से किक मार रही थी, उसे बेइज्जत कर रही थी, फिर भी वह चुपचाप नंगा फर्श पर बैठा हुआ था।
यह ताकत थी एक औरत के जिस्म की, मैं जानती थी कि अगर प्रकाश को घुटने पर लाना है तो मुझे अपने जिस्म की नुमाइश करनी होगी और मेरा निशाना एकदम सटीक लगा था, आज प्रकाश मेरे सामने मेरे कदमों में झुका हुआ था, इस वक्त मैं जैसा कहती वह वैसा ही करता।
मैं शीशे में प्रकाश की तरफ देखी और उसके चेहरे को देख कर मुस्कुरा दी, अपने देवर को नंगा देखकर मेरी चुत भी गीली होने लगी थी, मैं भी अपनी चुत को मसालना शुरू कर दी, एक तरफ मैं खड़ी होकर अपनी चुत मसल रही थी और दूसरी तरफ शीशे में दिखी तो मेरा देवर मेरे पीछे फर्श पर नंगा बैठ कर भीख मांग रहा था ताकि मैं उसे अपनी गांड के छेद चूमने और चाटने की इजाजत दे दुँ, एक ही दिन में कितना कुछ बदल गया था, कल तक जो लड़का मेरे सामने शेर बनने की कोशिश कर रहा था आज वही लड़का मेरे सामने फर्श पर नंगा बैठकर किसी भीगी बिल्ली की तरह भीख मांगने पर विवश था।
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