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Shayari नामी क़वाली और गजल के उस्ताद, शायरी, नए और पुराने (हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी और फारसी)

Dungeon Master

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तुम आज ह्ज़ारों मील यहाँ से दूर कहीं तनहाई में
या बज़्मे-तरब आराई में
मेरे सपने बुनती होगी बैठी आग़ोश पराई में।

और मैं सीने में ग़म लेकर दिन-रात मशक्कत करता हूँ,
जीने की खातिर मरता हूँ,
अपने फ़न को रुसवा करके अग़ियार का दामन भरता हूँ।

मजबूर हूँ मैं, मजबूर हो तुम, मजबूर यह दुनिया सारी है,
तन का दुख मन पर भारी है,
इस दौरे में जीने की कीमत या दारो-रसन या ख्वारी है।
 
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Maharaja ji

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गजल
हम तेरे शहर में आए हैं मुसाफ़िर की तरह।
सिर्फ़ इक बार मुलाक़ात का मौका दे दे।।

मेरी मंज़िल है कहाॅ, मेरा ठिकाना है कहाॅ,
सबहो तक तुझसे बिछड़ कर मुझे जाना है कहाॅ।
सोचने के लिए इक रात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में.....

अपनी आखों में छुपा रखे हैं जुगनूॅ मैंने,
अपनी पलकों पे सजा रखे हैं आॅसू मैंने।
मेरी आखों को भी बरसात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में.....

आज की रात मेरा दर्दे-मोहब्बत सुन ले,
कॅपकपाते हुए होठों की शिकायत सुन ले।
आज इज़हारे-ख़यालात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में.....

भूलना था तो ये इक़रार किया ही क्यों था?
बेवफ़ा तूने मुझे प्यार किया ही क्यों था ?
सिर्फ़ दो चार सवालात का मौका दे दे।। हम तेरे शहर में......
 

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Now I am become Death, the destroyer of worlds
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तुम आज ह्ज़ारों मील यहाँ से दूर कहीं तनहाई में
या बज़्मे-तरब आराई में
मेरे सपने बुनती होगी बैठी आग़ोश पराई में।

और मैं सीने में ग़म लेकर दिन-रात मशक्कत करता हूँ,
जीने की खातिर मरता हूँ,
अपने फ़न को रुसवा करके अग़ियार का दामन भरता हूँ।

मजबूर हूँ मैं, मजबूर हो तुम, मजबूर यह दुनिया सारी है,
तन का दुख मन पर भारी है,
इस दौरे में जीने की कीमत या दारो-रसन या ख्वारी है।
ye sunni nahi syad kabhi... lemme try this one :cool:
 

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ye sunni nahi syad kabhi... lemme try this one :cool:
परछाइयाँ, साहिर लुधियानवी
पीछे share भी करी है इसी thread में, कुछ पंगतिया है उसमें जो जावेद साब ने बोली है
 

mavaheed

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Ek bar main ek shaher me thi ki
Nagah utha shumal ki janib se ek ghubar
Pamal siyah surkh nazar aaye sheer khwar
Mud kar jo dekha maine ki kuch rang aur hai
Boli hawa ki wo insano ke jalne ka shor hai .
 
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अश्को को आरजू-ए-रिहाई है,रोइए
आँखो की अब इसी में भलाई है,रोइए
खुश है तो फिर मुसाफिर-ए-दुनिया नही है आप
इस दश्त मे बस आबला-पाई* है,रोइए
हम है असीर*-ए-जब्त इजाजत नही हमे
रो पा रहे है आप बधाई है रोइए
 

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by Qawwal king of era- Ustad Nusrat fateh ali khaan ji.

उनकी नजरों ने ऐसा जादू किया लूट गए हम तो पहली मुलाकात मे
साथ अपना वफ़ा मे ना छूटे कभी प्यार की डोर बंधकर ना टूटे कभी
छूट जाए ज़माना कोई गम नहीं, हाथ तेरा रहे बस मेरे हाथ मे

रुत है बरसात की देखो जिद मत करो, रात अंधेरी है बादल है छाए हुए
रुक भी जो सनम तुमको मेरी कसम अब कहा जाओगी ऐसी बरसात मे
है तेरी याद इस दिल से लिपटी हुई, हर घड़ी है तससवूर है तेरे हूसन का
तेरी उलफ़त का पहरा लगा है कोन आएगा मेरे खयालात मे
 
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