- 6
- 9
- 4
निशा भाभी - मामी का घर
निशा भाभी - मामी का घर
कहानी के पात्र -
निशा - राजू की विधवा भाभी।
राजू - यह छुपकर अपनी विधवा भाभी के करतूतों को देखता था, अपनी मामी का वाफदार गुलाम।
मामी - राजू की मामी और निशा की सास।
रघु - बंगाल का रहने वाला जो निशा के सोसाइटी का वॉचमैन था।
यह कहानी मेरी निशा भाभी की है, निशा भाभी मेरे मामा मामी की इकलौती बहु हैं, लेकिन नसीब कुछ ऐसा बना की शादी के एक साल बाद ही मामी जी के बेटे की मौत सड़क दुर्घटना में हो गई, निशा भाभी विधवा हो चुकी थीं, अब मेरे मामी की कोई औलाद नही थी, मामा जी तो बहुत पहले ही गुज़र चुके थें, मामी ने निशा भाभी को अपनी बहू से अपनी बेटी बना लिया और उन्हें एक बेटी की तरह रखने लगीं, एक बेटी की तरह प्यार करतीं, कोई देखकर नही कह सकता था कि निशा भाभी उस घर की बहू हैं।
अब कहानी शुरू करते हैं।
मेरा नाम राजू है, मैं एक इंजीनियरिंग कॉलेज का स्टूडेंट हूं, मैं गांव में पला बढा, बहुत गरीबी देखी है मैंने, इसलिए बचपन से ही पढ़ाई का शौक था, और मन लगाकर पढ़ाई करता था, मैं कुछ बनना चाहता था बड़ा होकर, लेकिन इंडिया में 80% पढ़ाकू लड़के बड़े होकर इंजीनियर ही बनते हैं, और मैं भी उन 80% की भीड़ में शामिल हूँ।
इंजीनियरिंग की एंट्रेंस एग्जाम में 3 बार फेल होने और कड़े संघर्ष के बाद आखिरकार पास हुआ, और मेरी मां गांव में लड्डू बांट रही थी, लेकिन मैं मायूस था, क्योंकि मुझे एडमिशन तो एक शहरी इंजीनियरिंग कॉलेज में मिल गई लेकिन गांव से काफी दूर शहर में कॉलेज था।
मुझे चिंता थी कि मैं कहां रहूंगा, आज़ से पहले कभी घर से अकेले नहीं निकला, और मेरी उतरी हुई शक्ल देख मेरी मां समझ गई मेरी परेशानी और पुछी "ओए राजू, क्या हुआ, इस तरह मुंह क्यों उतरा हुआ है तेरा"
मैने मायुष होकर कहा "माँ तुझे और पापा को छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा मेरा"
माँ जोर से हंस पड़ी "चल झूठे, मुझे सब पता है, तेरी माँ हूँ मैं, तुझे मेरी नहीं अपनी चिंता है कि तेरा मोटा पेट कौन भरेगा, शहर में तू कहां रहेगा, कैसे रहेगा"
मैं दंग रह गया "माँ आपको कैसे पता चला"
माँ हँसने लगी "सब पता है बच्चु, और तू घबरा मत, तेरी परेशानी भी मैने हल कर दी है"
यह सुनकर मेरे चेहरे पर हज़ार बल्ब की रौशनी चमक उठी "क्या, कैसे माँ"
माँ बोली "तेरी मामी भी तो शहर में ही है न, मैने जब उन्हें बताया कि तेरा उनके शहर में कॉलेज दाखिला हो गया, और तेरे रहने के लिए कोई कमरा चाहिए तो वह बोलीं, अरे दीदी मेरा घर कब काम आएगा, राजू जब तक पढ़ लिखकर कुछ बन नहीं जाता वह मेरी जिम्मेदारी है और 4 साल वह मेरे घर में ही रहेगा"
यह सुनकर मैं खुशी से उछल पड़ा, मुझे भी किसी नई जगह जाने को डर लग रहा था, कि क्या होगा, कैसे होगा, लेकिन मेरे मामी ने तो मेरी चिंता ही दूर कर दी, कुछ ही दिनों में मैं अपना बोरिया बिस्तर बांध कर अपने मामी के शहर के लिए रवाना हो गया, एक नई जिंदगी की ओर, बस अड्डे से मैंने एक रिक्शा किया और मामी के बताए हुए पते की ओर चलने को कहा।
कुछ ही देर में मैं एक तकरीबन 10 साल पुरानी Single Storeyed building के नीचे खड़ा था, अपने मामा-मामी के गांव के घर तो मैं कई बार गया था लेकिन शहर के घर को पहली बार देख रहा था, मैंने फिर से पर्ची पर पता देखा तो बिल्डिंग का नाम सही था, तसल्ली हुआ कि रिक्शावाला सही जगह पर लाया है, नहीं तो अनजान शहर और ऊपर से मैं एक गवाँर लड़का, तो लूटपाट का डर था मुझे।
फिर मैं अपना भारी सा बड़ा सा सूटकेस घसीटते हुआ आगे सीढ़ियों से चलता हुआ तीसरे फ्लोर पर आया, और दरवाजे पर लगी डोरबेल बजा दी।
डोरबेल बजाने के बाद दरवाज़ा खुला, और दरवाजा खुलते ही मेरी आंखें सामने का दृश्य देखकर जमी की जमी रह गई।
मेरा दिल जोर से धड़क उठा और कहीं ना कहीं ना चाहते हुए भी मेरे पैंट में कुछ अकड़न सी महसूस होने लगी, जो नजारा मेरी आंखों के सामने था उस नजारे की मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
मैं तो मंत्रमुग्ध था, अगर वह सामने से मुझे चुटकी बजाकर होश में ना लातीं तो मैं तो पता नहीं कब तक खोया रहता।
आखिर आप लोग ही बताएं मैं अपना होश कैसे ना खोता, मैं ठहरा कुंवारा नौयुवक और मेरे सामने एक बला की खूबसूरत जवान 27 साल की पूरी तरह विकसित लड़की खड़ी थी, जिसने इस समय अपने जवान दूध से गोरे जिश्म पर सिर्फ जाँघों तक कि Short frock पहनी हुई थी।
तभी उस मायावी लड़की ने कहा "हे राजू, ऐसे क्या देख रहे हो, पहचाना नही क्या मुझे, अपनी भाभी को भूल गए क्या"
मैं जैसे होश में आया और हड़बड़ाते हुए बोला "नही निशा भाभी, आपको कैसे भुल सकता हूँ"
मैं इसलिए घबरा गया था क्योंकि मुझे लगा कि निशा भाभी विधवा हैं तो एक सफेद साड़ी में लिपटी किसी कोने में दुबकी हुई मिलेंगी, लेकिन इसके उलट यहां वह एक स्कूल जाने वाली बच्ची की तरह छोटी सी फ्रॉक पहनकर खड़ी थीं, सच मे मामी अपनी बहू को बेटी की तरह रख रही थीं, वरना कौन अपनी विधवा बहु को ऐसे कपड़े पहनने देता।
मेरी बातों को सुनकर निशा भाभी खिलखिलाकर हँस पड़ीं, और मैं उन मोतियों सी दांतों को देखने लगा, बेहद खूबसूरत चेहरा, ऐसा कि बस कोई देखता ही रह जाए, लेकिन इसके बावजूद मेरी नजर उनकी चिकनी जांघों पर फिसल रही थी, हालांकि मैं भाभी के साथ पहले भी कुछ समय गुजर चुका था, लेकिन यह पहली बार था जब मैं निशा भाभी को इतनी छोटी सी फ्रॉक में देखा, आज जो मेरी नजरों के सामने थी वह एक पूरी तरह जवान नव विवाहित विधवा स्त्री थी, जिसका भरा हुआ बदन किसी भी मर्द को पिघला दे।
तो मैं भी था तो एक जवान लड़का, बेशक जो स्त्री सामने थी वो रिश्ते से तो मेरी भाभी थी लेकिन अब मेरे अंदर का जवान मन आखिर खुद को कैसे संभाल पाता, फिर भी मुझे खुद पर हल्की शर्मिंदगी महसूस हुई जो मैंने निशा भाभी को ऐसी नजरों से देखा।
मेरी नजर बार-बार चेहरे से कुछ सेंटीमीटर नीचे की ओर जा रही थी, जहां दो चट्टाने बनी हुई थी, और उन चट्टानों के बींचों-बीच उनका मंगलसूत्र लटक रहा था, यह देखकर मुझे काफी हैरानी हुई कि आखिर निशा भाभी विधवा होकर मंगलसूत्र क्यों पहने हुए हैं, अब तो निशा भाभी को यह मंगलशुत्र उतार देनी चाहिए थी, खैर इसके बारे में बाद में ही पूछना बेहतर था।
इतने में पीछे से मेरी मामी की आवाज आई "अरे राजू बेटा, आ गए तुम, आओ आओ अंदर आओ"
निशा भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझे अंदर आने का रास्ता दिया और मैं अंदर आ ही रहा था कि मामी आगे बढ़कर मुझे आशीर्वाद देने लगी, अब मामी और निशा भाभी एक साथ खड़े थें, मामी की गोद मे उनकी 6 महीने की पोती सो रही थी, मतलब निशा भाभी की इकलौती बेटी।
मैंने आदर से झुक कर मामी के पाँव छुए, मैने पाँव छूने तो मामी के सामने आदर के इरादे से झुका था लेकिन पाँव छूते ही मामी की बगल में खड़ी मेरी निशा भाभी की चिकनी मांसल टाँगों का जो नज़ारा दिखा, तो बस फिर जैसे मामी के चरणों मे ही रहना चाहता था, मामी के पैरों को छोड़ कर उठने की इच्छा ही नहीं हो रही थी, मन कर रहा था कि काश यह समय यहीं पर रुक जाए और मैं बस ऐसे ही मम्मी के चरणों में झुका रहूँ और सामने खड़ी अपनी भाभी की उन मांसल टांगों को निहारता रहूं, पहले मैं सिर्फ एक हाथ नीचे ले जाकर मामी के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया था लेकिन अब अपने दोनों हाथ नीचे कर दी और दोनों हाथों से मामी के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया, ताकि ज्यादा से ज्यादा समय मामी के पैरों में गुजार सकूँ।
मामी अपनी बहू की तरफ देख कर बोली "देखिए बहू मेरा राजू बेटा कितना संस्कारी है, आजकल के लड़के इतने संस्कारी कहां होते हैं, मेरा राजू सबसे अलग है"
अब मेरे उठने का समय हो चुका था, अगर ज्यादा देर तक दोनों हाथों को मामी के पैरों पर रखता तो उन दो औरतों को मेरी हरकत पर शक हो सकती थी, लेकिन फिलहाल में मामी के पैरों से दूर हटना ही नहीं चाहता था, मेरा शैतान दिमाग तुरंत एक उपाय सोच लिया और मुझे मामी से अपनी तारीफ सुनने की इच्छा हुई, अगले ही पल मैं अपनी मामी के सामने साष्टांग प्रणाम करते हुए झुका था, मामी और निशा भाभी दोनों मुझे साष्टांग प्रणाम करते हुए देखकर हंसने लगी, मामी बोली "अरे इसकी क्या जरूरत थी, चल उठ"
मैं फ़र्श पर बिल्कुल सपाट लेटा हुआ था और मेरा सिर मामी के पैरों में झुका था, मेरा माथा उनके पैर के अंगूठे को छू रही थी, इसी के साथ चोर नजरों से तिरछा देखते हुए मेरी नजर सिर्फ निशा भाभी की मांसल टांगों पर ही थी, ऐसा दृश्य तो मैंने पहले कभी देखा ही नहीं था, खुद के किस्मत की तारीफ कर रहा था जो मुझे कॉलेज भी मिला तो इसी शहर में वरना ऐसा दृश्य देखना नसीब नहीं होता।
मेरी नज़र निशा भाभी के पैरों पर थी, मेरा पूरा ध्यान भी उधर ही था, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जिसका अंदाज़ा मुझे बिल्कुल भी नही था, मेरे नाथ में एक ऐसी सुगंध गई जिसने मेरे अंदर आत्मा तक को झकझोर दिया और यह मनमोहक सुगंध कहीं और से नहीं बल्कि यह मेरे मामी के पैरों की खुशबू थी मेरी मामी की उम्र में भले ही 42 साल की थी लेकिन दिखने में वह निशा भाभी की बड़ी बहन लगती, शरीर थोड़ा भारी था, भरे पूरे शरीर की मालकिन थीं मेरी मामी, दिखने में एकदम हुमा कुरैशी की तरह थीं, लम्बाई भी इसी की तरह और शरीर का कद काठी भी ऐसा ही, मेरी मामी का शरीर हूबहू हुमा कुरैशी की तरह था, कभी कभी मैं मामी को देखता तो ऐसा लगता कि सामने हुमा कुरैशी खड़ी हो, सामने की तस्वीर में मेरी मामी को आप खुद देख सकते हैं, की वह कितनी मॉडर्न दिखती हैं।
और जब उनके पैरों से खुश्बू निकलकर मेरे नाक में गई तो ऐसा महसूस हुआ कि खोटा सिक्का काम कर गया, तीर कहीं और लगाया था और निशाना कहीं और जाकर लगा, उनके पैर से आ रही मनमोहकर खुश्बू मुझे अपनी ओर घिंचने लगी और इसी के साथ अब मेरी इच्छा अपनी निशा भाभी के पैरों पर झुककर ऐसे ही आशीर्वाद लेने की हो रही थी।
कुछ देर तक जब मैं खड़ा नही हुआ तो निशा भाभी को कुछ आश्चर्य हुआ और उन्होंने शायद मेरी नजर का चोर पकड़ लिया, और अपनी छोटी फ्रॉक को नीचे घिसकाने लगी, मैं खड़े होते हुए मन ही मन हंसा और आंखों से जैसे उन्हें कहने लगा "अब क्या फायदा निशा भाभी जब चिड़िया चुग गई खेत"
अब बारी हो चुकी थी निशा भाभी के पैरों में झुककर आशीर्वाद लेने की, ऐसा लग रहा था कि वह भी खुद को तैयार कर रही थीं ताकि मुझे अच्छे से आशीर्वाद दे सकें, आखिर मैं उनका देवर जो ठहरा, एक बार मुझे अफसोस भी हुआ कि कुछ देर पहले ही निशा भाभी के दोनों पैरों को छूकर आशीर्वाद ले लेनी चाहिए थी, क्योंकि अब सामने मामी खड़ी थी इसलिए अपनी मनमानी हरकत नहीं कर सकता था, जब मैं भाभी के पैरों के पैरों में झुका और मेरी नज़र उनके ऊपर गई तो वह मुस्कुरा रही थीं, जैसे निशा भाभी को पता हो कि मेरे मन मे क्या चल रहा है।
एक बार फिर मैं मामी की तरफ ही अपनी भाभी के पैरों के सामने साष्टांग प्रणाम करते हुए झुका था, निशा भाभी के पैरों से भी वैसी ही महक आ रही थी जैसे कुछ देर पहले मामी के पैरों से निकल रही थी, तभी निशा भाभी को शैतानी सूझी और वह अपनी एक पैर उठाकर मेरे सिर के रख दीं, मामी के सामने ही उनकी बहू यह हरकत कर रही थीं, मुझे तो काफ़ी अच्छा लगा जब अपनी पैर मेरे सिर के ऊपर रखकर भाभी बोलीं "तथास्तु बालक, अब उठो अपनी भाभी के पैरों से या यहीं फ़र्श पर लेटने का विचार है" और फिर दोनो औरतें हँसने लगीं, मुझे अपनी मामी और निशा भाभी की हंसी में एक डोमिनेन्ट फिलिंग महसूस हो रही थी, मामी कुछ पल हँसकर खुद पर काबू रखीं और फिर अपनी बहू से बोलीं "अरे बहुरानी आप यह क्या कर रही हैं, हटाइये अपनी पैर मेरे लाडले राजू की सिर से" और फिर निशा भाभी अपनी पैर मेरे सिर के ऊपर से हटा लीं।
निशा भाभी मुझे आशीर्वाद दीं और फिर जब मैं उठा तो वह मुझसे नजरें चुराई, जैसे उन्हें मेरा इरादा पता चल चुका हो, और फिर टॉपिक बदलते हुए बोलीं "अरे कब से यहाँ खड़े रहोगे राजू, इतना लंबा सफर करके आए हो, थक गए होगे, आओ अंदर आओ"
मैं एक साथ दो औरतों के साथ अब इस घर मे चार साल रहने वाला था, शुरआत तो मेरी काफ़ी अच्छी गुजरी, अब देखना है आगे क्या होता है।
निशा भाभी - मामी का घर
कहानी के पात्र -
निशा - राजू की विधवा भाभी।
राजू - यह छुपकर अपनी विधवा भाभी के करतूतों को देखता था, अपनी मामी का वाफदार गुलाम।
मामी - राजू की मामी और निशा की सास।
रघु - बंगाल का रहने वाला जो निशा के सोसाइटी का वॉचमैन था।
यह कहानी मेरी निशा भाभी की है, निशा भाभी मेरे मामा मामी की इकलौती बहु हैं, लेकिन नसीब कुछ ऐसा बना की शादी के एक साल बाद ही मामी जी के बेटे की मौत सड़क दुर्घटना में हो गई, निशा भाभी विधवा हो चुकी थीं, अब मेरे मामी की कोई औलाद नही थी, मामा जी तो बहुत पहले ही गुज़र चुके थें, मामी ने निशा भाभी को अपनी बहू से अपनी बेटी बना लिया और उन्हें एक बेटी की तरह रखने लगीं, एक बेटी की तरह प्यार करतीं, कोई देखकर नही कह सकता था कि निशा भाभी उस घर की बहू हैं।
अब कहानी शुरू करते हैं।
मेरा नाम राजू है, मैं एक इंजीनियरिंग कॉलेज का स्टूडेंट हूं, मैं गांव में पला बढा, बहुत गरीबी देखी है मैंने, इसलिए बचपन से ही पढ़ाई का शौक था, और मन लगाकर पढ़ाई करता था, मैं कुछ बनना चाहता था बड़ा होकर, लेकिन इंडिया में 80% पढ़ाकू लड़के बड़े होकर इंजीनियर ही बनते हैं, और मैं भी उन 80% की भीड़ में शामिल हूँ।
इंजीनियरिंग की एंट्रेंस एग्जाम में 3 बार फेल होने और कड़े संघर्ष के बाद आखिरकार पास हुआ, और मेरी मां गांव में लड्डू बांट रही थी, लेकिन मैं मायूस था, क्योंकि मुझे एडमिशन तो एक शहरी इंजीनियरिंग कॉलेज में मिल गई लेकिन गांव से काफी दूर शहर में कॉलेज था।
मुझे चिंता थी कि मैं कहां रहूंगा, आज़ से पहले कभी घर से अकेले नहीं निकला, और मेरी उतरी हुई शक्ल देख मेरी मां समझ गई मेरी परेशानी और पुछी "ओए राजू, क्या हुआ, इस तरह मुंह क्यों उतरा हुआ है तेरा"
मैने मायुष होकर कहा "माँ तुझे और पापा को छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा मेरा"
माँ जोर से हंस पड़ी "चल झूठे, मुझे सब पता है, तेरी माँ हूँ मैं, तुझे मेरी नहीं अपनी चिंता है कि तेरा मोटा पेट कौन भरेगा, शहर में तू कहां रहेगा, कैसे रहेगा"
मैं दंग रह गया "माँ आपको कैसे पता चला"
माँ हँसने लगी "सब पता है बच्चु, और तू घबरा मत, तेरी परेशानी भी मैने हल कर दी है"
यह सुनकर मेरे चेहरे पर हज़ार बल्ब की रौशनी चमक उठी "क्या, कैसे माँ"
माँ बोली "तेरी मामी भी तो शहर में ही है न, मैने जब उन्हें बताया कि तेरा उनके शहर में कॉलेज दाखिला हो गया, और तेरे रहने के लिए कोई कमरा चाहिए तो वह बोलीं, अरे दीदी मेरा घर कब काम आएगा, राजू जब तक पढ़ लिखकर कुछ बन नहीं जाता वह मेरी जिम्मेदारी है और 4 साल वह मेरे घर में ही रहेगा"
यह सुनकर मैं खुशी से उछल पड़ा, मुझे भी किसी नई जगह जाने को डर लग रहा था, कि क्या होगा, कैसे होगा, लेकिन मेरे मामी ने तो मेरी चिंता ही दूर कर दी, कुछ ही दिनों में मैं अपना बोरिया बिस्तर बांध कर अपने मामी के शहर के लिए रवाना हो गया, एक नई जिंदगी की ओर, बस अड्डे से मैंने एक रिक्शा किया और मामी के बताए हुए पते की ओर चलने को कहा।
कुछ ही देर में मैं एक तकरीबन 10 साल पुरानी Single Storeyed building के नीचे खड़ा था, अपने मामा-मामी के गांव के घर तो मैं कई बार गया था लेकिन शहर के घर को पहली बार देख रहा था, मैंने फिर से पर्ची पर पता देखा तो बिल्डिंग का नाम सही था, तसल्ली हुआ कि रिक्शावाला सही जगह पर लाया है, नहीं तो अनजान शहर और ऊपर से मैं एक गवाँर लड़का, तो लूटपाट का डर था मुझे।
फिर मैं अपना भारी सा बड़ा सा सूटकेस घसीटते हुआ आगे सीढ़ियों से चलता हुआ तीसरे फ्लोर पर आया, और दरवाजे पर लगी डोरबेल बजा दी।
डोरबेल बजाने के बाद दरवाज़ा खुला, और दरवाजा खुलते ही मेरी आंखें सामने का दृश्य देखकर जमी की जमी रह गई।
मेरा दिल जोर से धड़क उठा और कहीं ना कहीं ना चाहते हुए भी मेरे पैंट में कुछ अकड़न सी महसूस होने लगी, जो नजारा मेरी आंखों के सामने था उस नजारे की मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
मैं तो मंत्रमुग्ध था, अगर वह सामने से मुझे चुटकी बजाकर होश में ना लातीं तो मैं तो पता नहीं कब तक खोया रहता।
आखिर आप लोग ही बताएं मैं अपना होश कैसे ना खोता, मैं ठहरा कुंवारा नौयुवक और मेरे सामने एक बला की खूबसूरत जवान 27 साल की पूरी तरह विकसित लड़की खड़ी थी, जिसने इस समय अपने जवान दूध से गोरे जिश्म पर सिर्फ जाँघों तक कि Short frock पहनी हुई थी।
तभी उस मायावी लड़की ने कहा "हे राजू, ऐसे क्या देख रहे हो, पहचाना नही क्या मुझे, अपनी भाभी को भूल गए क्या"
मैं जैसे होश में आया और हड़बड़ाते हुए बोला "नही निशा भाभी, आपको कैसे भुल सकता हूँ"
मैं इसलिए घबरा गया था क्योंकि मुझे लगा कि निशा भाभी विधवा हैं तो एक सफेद साड़ी में लिपटी किसी कोने में दुबकी हुई मिलेंगी, लेकिन इसके उलट यहां वह एक स्कूल जाने वाली बच्ची की तरह छोटी सी फ्रॉक पहनकर खड़ी थीं, सच मे मामी अपनी बहू को बेटी की तरह रख रही थीं, वरना कौन अपनी विधवा बहु को ऐसे कपड़े पहनने देता।
मेरी बातों को सुनकर निशा भाभी खिलखिलाकर हँस पड़ीं, और मैं उन मोतियों सी दांतों को देखने लगा, बेहद खूबसूरत चेहरा, ऐसा कि बस कोई देखता ही रह जाए, लेकिन इसके बावजूद मेरी नजर उनकी चिकनी जांघों पर फिसल रही थी, हालांकि मैं भाभी के साथ पहले भी कुछ समय गुजर चुका था, लेकिन यह पहली बार था जब मैं निशा भाभी को इतनी छोटी सी फ्रॉक में देखा, आज जो मेरी नजरों के सामने थी वह एक पूरी तरह जवान नव विवाहित विधवा स्त्री थी, जिसका भरा हुआ बदन किसी भी मर्द को पिघला दे।
तो मैं भी था तो एक जवान लड़का, बेशक जो स्त्री सामने थी वो रिश्ते से तो मेरी भाभी थी लेकिन अब मेरे अंदर का जवान मन आखिर खुद को कैसे संभाल पाता, फिर भी मुझे खुद पर हल्की शर्मिंदगी महसूस हुई जो मैंने निशा भाभी को ऐसी नजरों से देखा।
मेरी नजर बार-बार चेहरे से कुछ सेंटीमीटर नीचे की ओर जा रही थी, जहां दो चट्टाने बनी हुई थी, और उन चट्टानों के बींचों-बीच उनका मंगलसूत्र लटक रहा था, यह देखकर मुझे काफी हैरानी हुई कि आखिर निशा भाभी विधवा होकर मंगलसूत्र क्यों पहने हुए हैं, अब तो निशा भाभी को यह मंगलशुत्र उतार देनी चाहिए थी, खैर इसके बारे में बाद में ही पूछना बेहतर था।
इतने में पीछे से मेरी मामी की आवाज आई "अरे राजू बेटा, आ गए तुम, आओ आओ अंदर आओ"
निशा भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझे अंदर आने का रास्ता दिया और मैं अंदर आ ही रहा था कि मामी आगे बढ़कर मुझे आशीर्वाद देने लगी, अब मामी और निशा भाभी एक साथ खड़े थें, मामी की गोद मे उनकी 6 महीने की पोती सो रही थी, मतलब निशा भाभी की इकलौती बेटी।
मैंने आदर से झुक कर मामी के पाँव छुए, मैने पाँव छूने तो मामी के सामने आदर के इरादे से झुका था लेकिन पाँव छूते ही मामी की बगल में खड़ी मेरी निशा भाभी की चिकनी मांसल टाँगों का जो नज़ारा दिखा, तो बस फिर जैसे मामी के चरणों मे ही रहना चाहता था, मामी के पैरों को छोड़ कर उठने की इच्छा ही नहीं हो रही थी, मन कर रहा था कि काश यह समय यहीं पर रुक जाए और मैं बस ऐसे ही मम्मी के चरणों में झुका रहूँ और सामने खड़ी अपनी भाभी की उन मांसल टांगों को निहारता रहूं, पहले मैं सिर्फ एक हाथ नीचे ले जाकर मामी के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया था लेकिन अब अपने दोनों हाथ नीचे कर दी और दोनों हाथों से मामी के पैरों को छूकर आशीर्वाद लिया, ताकि ज्यादा से ज्यादा समय मामी के पैरों में गुजार सकूँ।
मामी अपनी बहू की तरफ देख कर बोली "देखिए बहू मेरा राजू बेटा कितना संस्कारी है, आजकल के लड़के इतने संस्कारी कहां होते हैं, मेरा राजू सबसे अलग है"
अब मेरे उठने का समय हो चुका था, अगर ज्यादा देर तक दोनों हाथों को मामी के पैरों पर रखता तो उन दो औरतों को मेरी हरकत पर शक हो सकती थी, लेकिन फिलहाल में मामी के पैरों से दूर हटना ही नहीं चाहता था, मेरा शैतान दिमाग तुरंत एक उपाय सोच लिया और मुझे मामी से अपनी तारीफ सुनने की इच्छा हुई, अगले ही पल मैं अपनी मामी के सामने साष्टांग प्रणाम करते हुए झुका था, मामी और निशा भाभी दोनों मुझे साष्टांग प्रणाम करते हुए देखकर हंसने लगी, मामी बोली "अरे इसकी क्या जरूरत थी, चल उठ"
मैं फ़र्श पर बिल्कुल सपाट लेटा हुआ था और मेरा सिर मामी के पैरों में झुका था, मेरा माथा उनके पैर के अंगूठे को छू रही थी, इसी के साथ चोर नजरों से तिरछा देखते हुए मेरी नजर सिर्फ निशा भाभी की मांसल टांगों पर ही थी, ऐसा दृश्य तो मैंने पहले कभी देखा ही नहीं था, खुद के किस्मत की तारीफ कर रहा था जो मुझे कॉलेज भी मिला तो इसी शहर में वरना ऐसा दृश्य देखना नसीब नहीं होता।
मेरी नज़र निशा भाभी के पैरों पर थी, मेरा पूरा ध्यान भी उधर ही था, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ जिसका अंदाज़ा मुझे बिल्कुल भी नही था, मेरे नाथ में एक ऐसी सुगंध गई जिसने मेरे अंदर आत्मा तक को झकझोर दिया और यह मनमोहक सुगंध कहीं और से नहीं बल्कि यह मेरे मामी के पैरों की खुशबू थी मेरी मामी की उम्र में भले ही 42 साल की थी लेकिन दिखने में वह निशा भाभी की बड़ी बहन लगती, शरीर थोड़ा भारी था, भरे पूरे शरीर की मालकिन थीं मेरी मामी, दिखने में एकदम हुमा कुरैशी की तरह थीं, लम्बाई भी इसी की तरह और शरीर का कद काठी भी ऐसा ही, मेरी मामी का शरीर हूबहू हुमा कुरैशी की तरह था, कभी कभी मैं मामी को देखता तो ऐसा लगता कि सामने हुमा कुरैशी खड़ी हो, सामने की तस्वीर में मेरी मामी को आप खुद देख सकते हैं, की वह कितनी मॉडर्न दिखती हैं।
और जब उनके पैरों से खुश्बू निकलकर मेरे नाक में गई तो ऐसा महसूस हुआ कि खोटा सिक्का काम कर गया, तीर कहीं और लगाया था और निशाना कहीं और जाकर लगा, उनके पैर से आ रही मनमोहकर खुश्बू मुझे अपनी ओर घिंचने लगी और इसी के साथ अब मेरी इच्छा अपनी निशा भाभी के पैरों पर झुककर ऐसे ही आशीर्वाद लेने की हो रही थी।
कुछ देर तक जब मैं खड़ा नही हुआ तो निशा भाभी को कुछ आश्चर्य हुआ और उन्होंने शायद मेरी नजर का चोर पकड़ लिया, और अपनी छोटी फ्रॉक को नीचे घिसकाने लगी, मैं खड़े होते हुए मन ही मन हंसा और आंखों से जैसे उन्हें कहने लगा "अब क्या फायदा निशा भाभी जब चिड़िया चुग गई खेत"
अब बारी हो चुकी थी निशा भाभी के पैरों में झुककर आशीर्वाद लेने की, ऐसा लग रहा था कि वह भी खुद को तैयार कर रही थीं ताकि मुझे अच्छे से आशीर्वाद दे सकें, आखिर मैं उनका देवर जो ठहरा, एक बार मुझे अफसोस भी हुआ कि कुछ देर पहले ही निशा भाभी के दोनों पैरों को छूकर आशीर्वाद ले लेनी चाहिए थी, क्योंकि अब सामने मामी खड़ी थी इसलिए अपनी मनमानी हरकत नहीं कर सकता था, जब मैं भाभी के पैरों के पैरों में झुका और मेरी नज़र उनके ऊपर गई तो वह मुस्कुरा रही थीं, जैसे निशा भाभी को पता हो कि मेरे मन मे क्या चल रहा है।
एक बार फिर मैं मामी की तरफ ही अपनी भाभी के पैरों के सामने साष्टांग प्रणाम करते हुए झुका था, निशा भाभी के पैरों से भी वैसी ही महक आ रही थी जैसे कुछ देर पहले मामी के पैरों से निकल रही थी, तभी निशा भाभी को शैतानी सूझी और वह अपनी एक पैर उठाकर मेरे सिर के रख दीं, मामी के सामने ही उनकी बहू यह हरकत कर रही थीं, मुझे तो काफ़ी अच्छा लगा जब अपनी पैर मेरे सिर के ऊपर रखकर भाभी बोलीं "तथास्तु बालक, अब उठो अपनी भाभी के पैरों से या यहीं फ़र्श पर लेटने का विचार है" और फिर दोनो औरतें हँसने लगीं, मुझे अपनी मामी और निशा भाभी की हंसी में एक डोमिनेन्ट फिलिंग महसूस हो रही थी, मामी कुछ पल हँसकर खुद पर काबू रखीं और फिर अपनी बहू से बोलीं "अरे बहुरानी आप यह क्या कर रही हैं, हटाइये अपनी पैर मेरे लाडले राजू की सिर से" और फिर निशा भाभी अपनी पैर मेरे सिर के ऊपर से हटा लीं।
निशा भाभी मुझे आशीर्वाद दीं और फिर जब मैं उठा तो वह मुझसे नजरें चुराई, जैसे उन्हें मेरा इरादा पता चल चुका हो, और फिर टॉपिक बदलते हुए बोलीं "अरे कब से यहाँ खड़े रहोगे राजू, इतना लंबा सफर करके आए हो, थक गए होगे, आओ अंदर आओ"
मैं एक साथ दो औरतों के साथ अब इस घर मे चार साल रहने वाला था, शुरआत तो मेरी काफ़ी अच्छी गुजरी, अब देखना है आगे क्या होता है।
Advertising another Forum or Website is not allowed.
This includes (but is not limited to): threads, user title, username and signatures.
Thanks
The Immortal
Thanks
The Immortal
Last edited by a moderator: