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Adultery नॉकरानी और मसाज-वसाज

Maverick_Sam

The DP says it all...Highly Promiscous!
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नमश्कार दोस्तो!

मैने ये कहानी ****** पर लिखना शुरू किया था..श्रोताओ ने सराहना शुरू ही किया था..के बेहेन का लौड़ा वेबसाइट ही बंद हो गया..!

मेरे पोस्ट्स का बैक-अप तो नही है मेरे पास..पर सोच कहानी को एक नए सिरे से वापस शुरू किया जाय..

जिसने भी वो कहानी पढ़ी हो , और कहीं संयोगवश कहानी के पिछले अंश कॉपी किये हो, उससे अनुरोध है कि मुझे नीचे दिए गये ईमेल पर उन्हें भेजे..उनके लौड़े/चूत को मेरा विशेष आभार

धन्यवाद..!
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Thanks
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Maverick_Sam

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सभी ठरकियों को सैम का ठरक भर अभिनंदन! कुछ आपबितियाँ भद्र समाज मे बताने लायक नही होती.. पर इस फोरम में वैसे किस्सो का पाठक उग्र अभिनन्दन करते हुए स्वागत करते हैं..तो सोचा क्यों न में भी अपने 2GB प्रति दिन की सुविधा का उचित उपयोग करू!

उत्तर प्रदेश का मूलतः निवासी, महाराष्ट्र में अपना जीवन यापन कर रहा हु गत 10 वर्षों से। स्वभाव से हसमुख, कद काठी से मजबूत, में एक बेहद ही रसिक एवं चोदू व्यक्ति हु। बड़ी छोटी उर्म में अपने आस पास की कुछ महिलाओ ने अपनी गदराई जवानी से मेरा झुकाव सेक्स की तरफ करवा दिया था। झुके हुए बदनों के भलभलाती चूंचिओं की खाई और मई-जून की गाँड़फटी गर्मी में महिलाओं की कमर से निकलते पसीने ने मेरे मासूम लुल्ली को जल्द ही लन्ड में लबदील कर दिया! बिस्तर पर उल्टे पड़े हुए अपने डैड के छुपाएं रखे कुछ पुराने 'डेबोनैर और फैंटेसी' मैगज़ीनों को पलटते हुए कब अपने स्टोर रूम के एक पर्दे को अपने माल पोंछ पोंछ कर 'कड़ा' कर डाला ये पता ही न लगा!

खैर..कालेज तक तो शरीफ रहा किसी तरह से..पर नौकरी मिलते ही दिमाग सर की बजाए लन्ड में चल दिया! कुछ कलियों की जाँघे जल्द ही चौड़ी करि अपुन ने.. पर उनके रंडी रोने, नखरों के बाद अपने बैंक में मिली एक तजुर्बेदार चूत ने जल्द ही मुझे लाइसेंसी सामानों को ओर अग्रसर कर दिया। न कोई चूतियापा न कोई कसमे वादे .. बस घनघोर चुदाई! और क्या चाहिए था एक गर्म खून वाले बड़े-मोटे लण्डधारी को?

बस ध्यान देना शुरू किया अपने आस पास की भाभियों और आंटियों पे और पाया के ज़माना भरा पड़ा है जनाब आपके इर्द-गिर्द ऐसी प्यासी चुदक्कड़ महिलाओ से जो मौका मिलते ही अपने से आधी उम्र के लौंडो के लन्ड को ऐसा चूस ले के कोई बच्चा लोलिपोप क्या चूसेगा! वो नौकरी के बाद के पहले साल ने अपने शहर से दूर बनारस में अकेले रहने वाले शर्मीले लौंडे को बना दिया महा-चोदू!

ऐसा नही था के अपने उम्र की लड़कियां लाइन नही देती थी.. वो तो बेचारी अपने गठीले जिम में तराशे शरीर को देख कर बस गीली हो कर आहे भर्ती थी! बस एक तकलीफ थी.. चुदाई के वक़्त और चुदने के बाद तक हर लड़की मेरे हलाब्बी लौड़े द्वारा भोसड़ा बनी अपनी कोमल चूत तो सहला सहला कर घंटो रोती रहती और फिर उनका 'तुमसे शादी नही हुई तो जान दे दूंगी' वाला रंडी-रोना अपने को सहन नही होता था भाई!
 

Maverick_Sam

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इंतेज़ार की घड़ियां समाप्त..आ रहा है अगला अपडेट
 

Maverick_Sam

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अपडेट #2

तो भाइयों..बनारस में अपनी एक शादीशुदा सहकर्मी श्रीमती तिवारी और सिगरा में रहने वाली अपनी एक बंगाली पड़ोसन मिसेज़ घोष के साथ एक साल की लगभग रोज़ाना की ज़ोरदार व्यभाचारिक भोग-विलास में लिप्त रहने के पश्चात अपुन ने मायानगरी मुम्बई को अपना अगला ठिकाना बनाया..! (बनारस की कहानियां अगली कहानी में)

मुम्बई में अपने दोस्त के साथ मलाड में स्थित एक फ्लैट में अपन ने अपना घोंसला बनाया। मेरा दोस्त फ़िल्म लाइन में था..तो सुबह भोर मेरे जागने से पहले निकलता था और शाम या रात तक वापस आता था। मैं लगभग 9 बजे निकलता काम पर..और बसों एवं लोकल ट्रेन के धक्के खा कर देर रात वापस आता। शुरू में लगा कि शुरू शुरू का चुतियापा है..बाद में एडजस्ट हो जाएगा..पर लाड़ एडजस्ट हुआ कुछ भी..! बस जिंदगी में एक सन्डे का सहारा था जब मैं और मेरा दोस्त शराब पी कर पड़े रहते थे घर पर..!

बचेलर लाइफ ने गांड मार रखी थी.. सारा घर बिखरा पड़ा रहता था और किसी किसी दिन तो पिछली दिन की पहनी चड्ढी बनियान अलट-पलट कर पहननी पड़ जाती थी..! दोनों दोस्तो को एहसास हुआ कि जीवन की नॉकरानी के बिना वही हालत होती है जो के कॉन्डम की बिना लौड़े के..! तो भाई रख ली गयी नॉकरानी..रमा नाम था उसका..जो सुबह सुबह अपनी बेटी के साथ आ जाती और झाड़ू-पोंछे के बाद खाना पका के चली जाती..!

तो भाई सुधर सी गयी ज़िन्दगी..घर साफ रहने लगा..कच्छे धुले हुए मिलने लगे...खाना टाइम पर नसीब होने लगा..! ज़िन्दगी के 2-3 महीने निकल गए रोज़ की भागदौड़ में..अपने को लगा कि बाबा ऐसे न चलेगा..ये नॉकरी तो चूस लेगी अपुन को..सो अपुन ने तुरंत चेंज मारा..एक ऐसी नॉकरी पकड़ी जिसमे मार्किट का काम था..सुबह देर से भी निकलने में चलता था..और शनिवार - रविवार छुट्टी..!

दीवाली का महीना आ गया था..हमने दीवाली का बोनस रमा और उसकी बेटी को महीने की शुरुवात में ही दे दिया! सुबह निकलने की जल्दी न होने से थोड़ा ज़्यादा टाइम घर पर देने लगा..और रमा से थोड़ा मेलजोल बढ़ गया अपना। रमा को मैने एक अच्छे दिल का व्यक्ति पाया..शरीफ, साफ-सुथरी और ईमानदार..! उसके काम करते वक़्त मैं हंसी-मजाक करता और वो आस-पड़ोस की खबरे सुनाती मुझे और अपने निकम्मे शराबी मराठी पति का दुख दर्द भी साझा करती वो मुझसे। गरीबी की वजह से कपड़े बड़े पुराने और रंग-गए से पहनती थी..पर जो भी था वो बड़े सलीके से पहनती थी..और नॉकरनियो कि तरह बदन की नुमाइश नही करती थी। एक दिन साउथ-मुम्बई में काम से गया था मैं तो वहा के एक लेडिज गारमेंट के होलसेलर से काम के सिलसिले में मिला..उसके पास कम दाम की साड़ियों का अच्छा स्टॉक था..मेरे दिल मे रमा के लिए एक सहानुभूति सी हो गयी थी सो मैन 4-5 अच्छी साड़िया ले ली उसके लिए और उसकी बेटी के लिए कुछ सूट के कपड़े। अगले दिन जब दिया मैंने तो शुरू में लेने से इनकार करने लगी..पर मेरे बार बार कहने पर बड़ी कृतज्ञता से उसने ले ली और बोहोत धन्यवाद दिया मेरा। उसकी बेटी ने बोला "ताई जी से ये सूट और आपके ब्लाउज़ सिलवाने को आज ही देती हूं"..रमा की जेठानी कपड़े सिलने का काम करती थी।

2 दिन बाद जब मां-बेटी आयीं तो नए कपड़ो में बड़ी अच्छी लग रहीं थी..बेटी तो खुशी के मारे चहचहा रही थी जब मैंने तारीफ करि..पर रमा कुछ असहज सी लग रही थी....मैने पूछा "क्यों रमा..पसन्द नही आई साड़ी शायद तुम्हे..कैसी पसन्द है बोलो...में दूसरी ला दूंगा..!"

रमा: "अरे नही साहब..क्या बोल रहे हैं..बोहोत प्यारी पसन्द है आपकी..बोहोत सुंदर है ये तो..!"

मैं: "तो क्या हुआ..ऐसे क्यो गुमसुम सी लग रही हो..?"

रमा: "अरे..वो...वो..क्या है कि....." बेटी ठहाका मार के हंसने लगी...! रमा उसको गुस्से से देखती है और बोली "चुप कर कमीनी.. सब तेरी वजह से है..!"

मैं: "क्या हुआ...बोलोगी..??"

रमा: "अरे क्या बताऊँ..मेरे माप दे आने के बाद पीछे से इस कमीनी चुपके से मनीषा दी को अलग डिज़ाइन का बनाने को बोल आयी..!"

रमा पल्लू को ओढ़ कर साड़ी लपेटी हुई थी..अछि तो लग रही थी..सो मैं बोला "मतलब..?? अच्छी तो दिख रही हो...??"

उसकी बेटी तपाक से बोली "अरे भैया..मॉडर्न ब्लाउज़ बनवा दिया है थोड़ा..कैसे पुराने टाइप के ब्लाउज़ पहनती है माँ..देखो तो किसी हेरोइन से कम नही लग रही है माँ मेरी..!!!" ये बोल कर उसके रमा के कमर में फंसे पल्लू को निकाल दिया...और रमा शर्म के मारे दीवार की ओर घूम गयी..!

पूरी पीठ खुली वाला ब्लाउज़ सील गया था..पीठ पर दोनों तरफ सिर्फ एक इंच का कपड़ा था और नीचे से एक इंच की पट्टी..! अपुन के 'बाबूराव' ने बरमुड़े में एक ठुमका से लगा दिया..!!!

आगे पड़ते रहिये..मसाला ही मसाला आने वाला है..और हां..कमेंट्स ज़रूर से..बाबूराव को आपके उत्साहवर्धन की विशेष आवश्यकता है..!
 
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SKYESH

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उत्तर प्रदेश का मूलतः निवासी, महाराष्ट्र में अपना जीवन यापन कर रहा हु गत 10 वर्षों से। स्वभाव से हसमुख, कद काठी से मजबूत, में एक बेहद ही रसिक एवं चोदू व्यक्ति हु। बड़ी छोटी उर्म में अपने आस पास की कुछ महिलाओ ने अपनी गदराई जवानी से मेरा झुकाव सेक्स की तरफ करवा दिया था। झुके हुए बदनों के भलभलाती चूंचिओं की खाई और मई-जून की गाँड़फटी गर्मी में महिलाओं की कमर से निकलते पसीने ने मेरे मासूम लुल्ली को जल्द ही लन्ड में लबदील कर दिया! बिस्तर पर उल्टे पड़े हुए अपने डैड के छुपाएं रखे कुछ पुराने 'डेबोनैर और फैंटेसी' मैगज़ीनों को पलटते हुए कब अपने स्टोर रूम के एक पर्दे को अपने माल पोंछ पोंछ कर 'कड़ा' कर डाला ये पता ही न लगा!

खैर..कालेज तक तो शरीफ रहा किसी तरह से..पर नौकरी मिलते ही दिमाग सर की बजाए लन्ड में चल दिया! कुछ कलियों की जाँघे जल्द ही चौड़ी करि अपुन ने.. पर उनके रंडी रोने, नखरों के बाद अपने बैंक में मिली एक तजुर्बेदार चूत ने जल्द ही मुझे लाइसेंसी सामानों को ओर अग्रसर कर दिया। न कोई चूतियापा न कोई कसमे वादे .. बस घनघोर चुदाई! और क्या चाहिए था एक गर्म खून वाले बड़े-मोटे लण्डधारी को?

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