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न सफ़र रहा न क़याम है ....

Indian Princess

The BDSM Queen
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है अजीब शहर की ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है

कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है।

कहाँ अब दुआओं की बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें

ये मुतालबों का ख़ुलूस है, ये ज़रूरतों का सलाम है।

यूँही रोज़ मिलने की आरज़ू, बड़ी रख-रखाव की गुफ़्तुगू

ये शराफ़तें नहीं बे-ग़रज़, इसे आप से कोई काम है।

वो दिलों में आग लगाएगा, मैं दिलों की आग बुझाऊंगा

उसे अपने काम से काम है, मुझे अपने काम से काम है।

न उदास हो, न मलाल कर, किसी बात का न ख़याल कर

कई साल बा'द मिले हैं हम, तेरे नाम आज की शाम है।

कोई नग़्मा धूप के गाँव सा, कोई नग़्मा शाम की छाँव सा

ज़रा इन परिंदों से पूछना, ये कलाम किस का कलाम है।


 
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है अजीब शहर की ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है

कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है।

कहाँ अब दुआओं की बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें

ये मुतालबों का ख़ुलूस है, ये ज़रूरतों का सलाम है।

यूँही रोज़ मिलने की आरज़ू, बड़ी रख-रखाव की गुफ़्तुगू

ये शराफ़तें नहीं बे-ग़रज़, इसे आप से कोई काम है।

वो दिलों में आग लगाएगा, मैं दिलों की आग बुझाऊंगा

उसे अपने काम से काम है, मुझे अपने काम से काम है।

न उदास हो, न मलाल कर, किसी बात का न ख़याल कर

कई साल बा'द मिले हैं हम, तेरे नाम आज की शाम है।

कोई नग़्मा धूप के गाँव सा, कोई नग़्मा शाम की छाँव सा

ज़रा इन परिंदों से पूछना, ये कलाम किस का कलाम है।




सफ़र मे ये कैसा मकाम आ गया
मंज़िल से पहले ही क़याम आ गया

हम तो इस रस्ते से कभी गुज़रे भी नही
कैसे इस रस्ते पे हमारा नाम आ गया

सौगात-ए-इश्क़ इससे बड़ी सौगात क्या
हुस्न-ए-यार पे लिखना क़लाम आ गया

मैदान-ए-जंग दुश्मनों से जीत भी जाता
जंग मे सब अपने थे सो नाकाम आ गया

यूँ तो मयकदों से हमारा कोई रिश्ता ना था
मगर गम-ए-हिज़्र हाथों मे जाम आ गया

जब किसी जरुरी मसले पे बात किया मैने
उसे याद एक बहुत जरुरी काम आ गया

इरादा-ए-इज़हार-ए-इश्क़ जैसे ही निकले हम
शहर से उसके रुख्सती का पैगाम आ गया

तफ़तीश हमारे ही क़त्ल की हो रही थी
और हमारे ही सर यह इल्ज़ाम आ गया

यह तोहमत तूने मुझ पे लगा तो दिया है
अब यह बता कहाँ तू मेरे काम आ गया.
 
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