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Adultery पत्नी के मित्र की विधवा बहन और मैं

Gentlemanleo

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पत्नी में मित्र की विधवा बहन और मैं

मैं जब करीब 20/21 वर्ष का हो गया था मुझे तभी इसका अनुभव होने लगा था कि मेरे जीवन मे आश्चर्यजनक रूप से लडकिया और स्त्रियां आने लगी है। एक तरफ यह स्वयं में दम्भ को पल्लवित कर रहा था तो दूसरी तरफ यह भी समझ रहा था कि जो भी हो रहा है वह असामान्य है। मैंने तब पहली बार अपने जीवन के कामुक पहलू को और अपनी यौन क्रीड़ा के जीवन पर गंभीरता से विचार किया। मुझे मेरा लड़कियों और स्त्रियों के प्रति आकर्षण तो समझ आता था लेकिन उनसे शारीरिक सम्बंध बनाने के जो अवसर मिल रहे थे उससे डर भी लग रहा था। मुझे लगा यदि मैंने इन सम्बन्धो को लेकर अपने कोई सिद्धांत नही बनाये तो मैं भावहीन, असैद्धान्तिक व मानवीय मूल्यों से दूर एक व्यक्तित्व बन जाऊंगा। मेंरे जीवन की गाड़ी कभी भी उलट सकती है और समाज मे कलंकित हो जाऊंगा। अब क्योंकि मैं एक प्रतिष्ठित परिवार से था, तो मान मर्यादा को लेकर ज्यादा ही सचेत हो गया था। मैंने उस उम्र में पहला सिद्धांत यह बनाया की किसी भी मित्र के परिवार की महिला से संपर्क नही बढ़ाऊंगा, दूसरा यह कि अपने मुहल्ले की कोई भी लड़की या महिला कितना भी संकेत दे, उससे दूर रहना है और तीसरा था कि जब विवाह होगा तो अपनी पत्नी की किसी मित्र या उसकी सहकर्मी से प्रगाढ़ता नही बढ़ाऊंगा। अब मैंने जीवन के 60 से ऊपर बसंत देख लिए है और ज्यादातर मैंने अपने द्वारा खिंची गई लक्ष्मण रेखा को पार नही किया है। लेकिन नियति भी कोई चीज़ होती है जो आपसे बार बार परीक्षा देने को कहती है। ऐसा ही कुछ अपवाद मेरे साथ भी हुये है जिसे यहां वर्णित कर रहा हूँ। अभी तक इस फोरम में उन घटनाओं को कहानी का स्वरूप दिया है जो दूसरों की सत्य घटना थी लेकिन आज पहली बार मैं स्वयं की एक सत्य घटना को कहानी के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह कहानी भी कुछ वर्ष पूर्व मैंने ब्लॉग पर लिखी थी लेकिन तब सत्य से स्वयं का वाचाल होना उद्देश्य न होकर, सत्य पर दुसरो को उत्तेजित करने वाली कहानी लिखना था। मेरी कहानी में सिर्फ नाम कल्पित है बाकी वैसे ही है, जैसा है और जैसे हुआ था।

मै एक शादी शुदा व्यक्ति हूँ और मेरी पत्नी का नाम श्वेता है। मैंने अभी तक वैवाहिक जीवन से बाहर की अपनी कामुक जीवनशैली को गोपनीय रक्खा हुआ है और सिद्धान्तानुसार मैंने, पत्नी के संपर्क में आई किसी भी महिला को अपने करीब नही आने दिया है, लेकिन फिर भी जीवन मे कुछ ऐसा हुआ की मन और तन दोनो ही फिसल गये। यह बात तब की है जब हमारी शादी को लगभग 20 वर्ष हो चुके थे। वैसे मुझे अपने वैवाहिक जीवन से कोई विशेष शिकायत नही थी लेकिन सफल वैवाहिक जीवन मे पति पत्नी के बीच सफल सहवास की जो अनिवार्यता होती है, उस को लेकर जरूर कमी थी। विवाह के बाद हमारे बीच यौन सम्बंध बड़े मधुर व अंतरंग था लेकिन बच्चे हो जाने के बाद उसका यौनिक क्रिया से मन उचाट हो गया और वह तटस्थ होती चली गई। इन्ही परिस्थियों के कारण मेरा मन विचलित रहता था।

एक दिन की बात है की जब मैं आफिस से शाम को लौटा तो पत्नी ने बताया की उसकी एक स्कूल/कॉलेज के ज़माने की मित्र मानसी(मैं उसे जानता था), जो अब अमेरिका में है, उसकी छोटी बहन मालविका दिक्कत में है। मानसी का मेरी पत्नी के पास अमेरिका से फोन आया कि मालविका जिसके पति की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में कुछ वर्ष पूर्व हो चुकी थी, उसे ससुराल वालों के व्यवहार के कारण उनका घर छोड़ना पड़ रहा है। उसके ससुराल वाले कलुषित लोग थे, जो विधवा बहु का ससुराल की पैतृक सम्पत्ति से बेदखल करने के लिए उसे कुछ समय से प्रताड़ित कर रहे थे। मानसी अमेरिका से तुरंत आने की स्थिति में नही है और उसके बूढ़े मां बाप व एक छोटा भाई भी अमेरिका में ही है इसलिये कल मालविका के साथ मार पिटाई हो जाने के बाद, उसका ससुराल का घर छोड़ना आवश्यक हो गया है।

मानसी ने मेरी पत्नी श्वेता से पूछा है कि क्या वह कुछ समय के लिए मालविका को अपने घर रख सकती है? श्वेता ने उसे आश्वासन दिया कि वो मुझसे विमर्श कर उससे बात करेगी। श्वेता ने मुझे मालविका के साथ हो रहे उत्पीड़न के बारे मे बताया और उसको, जब तक कोई और इंतज़ाम नही होता है, उसको अपने घर पर रुकवाने के लिए मुझसे पूछा। मुझे मालविका को अपने घर में कुछ समय के लिए प्रश्रय देने में कोई आपत्ति नहीं थी। 4 कमरों वाले घर मे सिर्फ हम पति पत्नी दो प्राणी के अलावा कोई नही था, हमारे दोनो बच्चे बाहर पढ़ रहे थे। श्वेता ने उसी रात, मानसी और मालविका दोनो से बात कर ली और उनको निश्चिंत रहने को कहा।

घर मे बच्चों के कमरे खाली ही थे इसलिए हम लोगो को कोई चिंता नही थी। श्वेता से बात कर के, मालविका ने अपना रिजर्वेशन करा लिया और अपना सामान एक छोटी लॉरी से हमारे यहां भिजवा दिया। मालविका को जिस दिन आना था उसी के एक रात पहले मेरे ससुर जो भोपाल में रहते है उनकी तबियत खराब हो गई। मेरे विधुर ससुर, भोपाल में मेरे साले के परिवार साथ रहते थे लेकिन जब उनको ह्रदयघात हुआ तब मेरा साला, जो मर्चेंट नेवी में है, वह एक आयल टैंकर पर ओमान के रास्ते मे था। संकट की इस घड़ी में श्वेता बड़ी असमंजस्य में थी। एक तरफ बुजुर्ग पिता आईसीयू में और दूसरी ओर उसकी मित्र की छोटी बहन उसी के निमंत्रण में उसके पास आने के लिए ट्रेन पर बैठ चुकी थी। मैंने श्वेता से कहा कि भोपाल में उसकी भाभी अकेले, अपने ससुर को देख रही है इसलिए उसे रात को मुम्बई जाने वाली किसी गाड़ी से भोपाल निकल जाना चाहिए। दो तीन दिन की बात है तब तक उसका भाई किसी पास के पोर्ट पर उतर, वापस आजायेगा,तब तक मैं मालविका को देखे रहूंगा। मैंने अपने आफिस के ट्रेवल एजेंट से एक 2nd ए सी में एक बर्थ का इंतज़ाम कराया और श्वेता को रात करीब 11 बजे भोपाल रुकने वाली ट्रेन पर बैठा दिया।

अगले दिन सुबह 8 बजे की ट्रेन थी और समय से मालविका को लेने पहुंच गया था। मैं उससे पहले कभी मिला तो नही था लेकिन उसके फोटो देख रक्खी थी, इसलिये उसे पहचानने में कोई दिक्कत नही आने वाली थी। ट्रैन समय से आधे घण्टे देर से आई थी और मैं उसके डब्बे के आस पास ही खड़ा इंतज़ार कर रहा था। ट्रैन रुकने पर कुछ लोगो के उतरने के बाद मैंने मालविका को ट्रेन से उतरता देखा और उसे पहली दृष्टि में ही पहचान लिया था। उसे पहचानने के बाद जो मेरी पहली प्रतिक्रिया थी वह अवाक रह जाने की थी। उसे साक्षात देख कर जाने क्यों मेरा दिल धक से रह गया। फोटो में जो मालविका दिखी थी उससे ज्यादा आकर्षक व्यक्तित्व की लग रही थी। वह अकेले ही आई थी, उसका एक बच्चा था वह देहरादून में किसी स्कूल में होस्टल में पढ़ता था। उसने उतर कर इधर उधर देखा और मेरे से आंख मिलते ही वह पहचान गई। वह मेरी तरफ बढ़ती, उससे पहले मैं ही उसके पास पहुंच गया। मालविका ने कोई श्रंगार नही किया था, उसके बाद भी उसका चेहरा दमक रहा था। उसको हल्की पीली साड़ी में लिपटे बिना बिंदी और सुनी मांग को देख न जाने क्यों मन बैचैन हो गया। मालविका 5'4" की लम्बी गौर वर्ण रंग की थी। तीखी लंबी नाक थी और उसके फिटिंग का ब्लाउस बता रहे थे की वह एक सामर्थ्यवान स्तनों की धारणी है। मेरी वह तुरंतम प्रतिक्रिया एक ऐसे पुरुष की थी जिसने हमेशा सुंदरता को सराहा है और स्त्री से उर्जित होते हुये यौन आकर्षण को सहेजा है। इसके बाद भी मुझे अपनी स्टेशन पर वह प्रतिक्रिया बड़ी अटपटी लगी और मैं अपने पर लानत भेजने लगा। मैने फिर अपने आप को नियंत्रित किया और मालविका को लेकर स्टेशन के बाहर निकल आया। हम पहली बार मिल रहे थे, वह भी बड़ी असाधारण परिस्थितियों में लेकिन फिर भी मालविका मुझे शुरू से ही बड़ी नमनीय लगी थी। उसने मेरे साथ गाड़ी मे बैठते ही गप्पे मारने शुरू कर दिये थे और बात करते करते हम लोग घर पहुंच गए थे। मैंने मालविका से उसके साथ ससुराल में हुई घटनाओं के बारे में कोई बात नही की क्योंकि मैं नही जानता था कि इसका मालविका की मॉनसिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा। श्वेता से उसकी बात हो गई थी और कार में भी बैठने पर दोनो ने बात की थी इसलिए मेरे लिए कुछ विशेष कहने और सुनने को नही रह गया था। मालविका बड़े सहज भाव से हमारे घर मे रम गई और घर में काम करने आने वाले नौकर व नौकरानी से तारतम्य स्थापित कर लिया था। मुझे उन दिनों कुछ ज्यादा काम था इसलिये मैं मालविका पर ज्यादा ध्यान भी नहीं दे पारहा था। वह ज्यादातर समय अकेले ही रहती थी। करीब 1 हफ्ते बाद, जब पत्नी को वापस आना था, तब उसका फ़ोन आया, कि उसके पिता की तबियत अभी ठीक नही है और मेरा साला भी अभी अपने शिप से रिलीव हो कर ओमान के पोर्ट पर नही पहुंचा है। ऐसे में वह अपने भाई के इंतज़ार में कुछ दिन और भोपाल बने रहना चाहती है। मैं उसकी दुविधा समझता था। मैने श्वेता को आश्वस्त किया की यहाँ पर सब ठीक है, पर वह मालविका को भी बता दे और वह हमारी चिंता ना करे।


मेरी हर दूसरे शनिवार को छुट्टी रहती है लेकिन पुरानी फ़ाइल को निपटाने के लिए अक्सर ऑफिस चला जाता था। इस बार जब दूसरा शनिवार आया तो पूरे दिन ऑफिस में न बैठ कर घर जल्दी आ गया था। उस दिन फुर्सत थी इसलिए मालविका से इतने दिनों बाद खुल के बात चीत हुई। उससे जब बात कर रहा था तो मुझे यह समझ आया कि इतने दिनों घर मे बैठी बैठी मालविका ऊब सी गई है। मैने मालविका से कहा, तुम्हे घर मे कैद हुए काफी समय हो गया है इसलिये शाम को तैयार हो जाओ, मुझे कुछ सामान भी ख़रीदना है और इसी बहाने पास के माल में थोड़ा चहलकदमी भी हो जाएगी। मालविका ने पहले तो न नकुर की लेकिन फिर वह तैयार हो गई। हम दोनों माल मे इधर उधर की चीज़ देखते व खरीदते रहे और मैंने पाया कि जैसे जैसे माल में समय गुजर रहा था, मालविका की झिझक भी कम हो रही थी। हम लोग चौथे माले पर थे तब उसने एक फ़िल्म का पोस्टर देखा जो वहां चल रही फ़िल्म की थी। उसकी बातों से लगा कि उसे फ़िल्म का शौक है इसलिए मैंने मालविका से फ़िल्म देखने को कहा, वह पहले तो चौंकी लेकिन मेरे ज्यादा कहने पर, फ़िल्म के लिए तैयार हो गई।

हाल में जब फ़िल्म देखने अंदर गये तो मै मालविका को लेकर थोड़ा सचेत था। मैंने अपनी तरफ से थोड़ी दूरी उससे बना रक्खी थी लेकिन फिर भी अगल बगल की सीट में बैठे मेंरी कोहनी, उसकी कोहनी से रगड़ खा ही जा रही थी। यह बड़ी अजीब बात थी की उसका जरा सा स्पर्श मेरे लंड की धमनियों में रक्त का संचार कर दे रहा था। मुझे अपने पर शर्म भी आरही थी और पत्नी की मित्र की छोटी बहन के साथ कुछ गलत न कर जाऊं इसकी चिंता भी थी। मैंने आज तक जीवन मे अपनी कामुक जीवनशैली में श्वेता के दोस्तो और सहकर्मियों को नही आने दिया था। फ़िल्म के बाद हम लोगो ने वहीँ कुछ बेकरी का सामान खरीदा और घर पास में था तो पैदल ही चल दिये। मालविका ने टहलने जी जिद जी थी इसलिए ड्राइवर से गाड़ी नही मंगाई थी। हम दोनों सड़क के किनारे चल रहे थे और तभी कोई बात ऐसी निकली की वो मुझे अपने ससुराल द्वारा दी गई प्रताड़ना के बारे मे बताने लगी। उसकी बातें सुन कर बड़ा दुख हुआ और थोड़ा विचलित भी हुआ क्योंकि मैं इस विषय पर उससे बात करने को टालता रहा था। वह बात कर रही थी और मैं उसे संतावना दे रहा था। तभी आती हुई एक गाड़ी की रोशनी हमारे ऊपर पड़ी तो देखा उसके आंखे आंसुओ से भरी थी और आंसू की एक लकीर उसके चेहरे पर बिखर रही थी। उसका संतप्त चेहरा देख मैंने अनायास ही उसका हाथ अपने हाथो मे ले लिया। मेरे द्वारा उसका हाथ पकड़ने से मालविका उचक गई और उसने एक दम अपना हाथ, मेरे हाथ से छुड़ा लिया। इस घटना से मैं भी अचकचा गया था और इसके बाद हम दोनों, बिना एक दुसरे से कोई बात करे घर वापस आ गये। घर लौटने पर हम दोनों ही काफी थक चुके थे। एक तो हम लोग पैदल चले थे और दूसरा रास्ते मे हुई घटना का बोझ भी था।

मालविका मुंह हाथ धो कर, हम दोनों का खाना, डाइनिंग टेबल पर ले आई, जिसे हम लोगो ने बिना कोई विशेष बात किये खाया और फिर लिविंग रूम में टीवी देखने लगे। हम दोनों को ही एक दूसरे की तरफ देखने तक झिझक थी और कुछ समझ में भी नहीं आ रहा था। कमरे मे सिर्फ टीवी पर समाचार की आवाज़ आरही थी बाकी सब सन्नाटा था। तभी अचानक से मालविका उठी और बोली,
"मै काफी थक चुकी हूँ और अपने कमरे मै सोने जा रही हूँ।"
और वो ऐसा कहते हुए मेरे पास से गुजरी और मेरे सर के बालो को अपनी उँगलियों से रगड़ते बोली,
,"प्रशांत जीजा जी, सॉरी, मुझे ऐसे नही झटकना चाहिए था।" और उसने अपना मुंह नीचे कर के मेरे सर को चुम लिया।

मै सन्न गन्न सा रह गया! यह अप्रत्याशित था और उसका स्नेहवश किया गया चुम्बन मुझे अंदर तक विचलित व हिला गया था।

मैंने उसकी इस अप्रत्याशित व्यवहार पर, जब चौक के अपना सर ऊपर उठा कर देखा तो मालविका थोड़ा लजा गई और तेजी से अपने कमरे की तरफ चली गई। मैं वैसे तो स्त्री पुरुष के सम्बन्धो को लेकर काफी अनुभवी था लेकिन जो कुछ हुआ था वह बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था। मै सोफे पर जड़वत चिपक गया था। समने टीवी चल रहा था लेकिन मेरे ह्रदय व मस्तिष्क में काम भावना ग्रसित हो चुकी थी। उसका मुझे सॉरी कहना और उसके ओठो का मासूमियत से मेरे सर को स्पर्श करना मुझे कामाग्नि में जला गया था। मेरा लंड जो मेरे ही द्वारा खींची लक्ष्मण रेखा के अधीन अब तक विवश था, वह एक दम से जाग्रत हो गया। मैं उसको अल्हड़ता से अपनी लोअर के भीतर बड़ा होता हुआ अनुभव कर रहा था।

मै कुछ देर वैसे ही बैठा रहा और अपने अंदर हो रहे भूचाल के धमने की प्रतीक्षा करता रहा लेकिन मन विचलित हो रहा था। मैंने फिर टी वी बंद कर किया और बिना कुछ सोचे-समझे, मालविका के कमरे की तरफ चला गया। कमरे में हल्की वाली लाइट जल रही थी और दरवाजा भी पूरी तरह बंद नही थे। मेरा ह्रदय अंजाने परिणामो को लेकर धक धक कर रहा था। मैं पता नही क्यों अपने को वहां से हटा नही पा रहा था। मैं जानता था की मालविका मेरी पत्नी की मित्र की बहन है और मुझ से 14/15 वर्ष छोटी है और यदि उसने मुझे इस हालत में, अपने कमरे के बाहर देख लिया तो घर की लंका में आग लग जायेगी। मुझे तभी अंदर कमरे से कुछ खटका हुआ तो मै वहां से हट जाने की जगह, आगे बढ़ गया और दरवाजे के पल्ले के अंदर से आरही रोशनी में अंदर झांकने लगा।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था, कि मुझे क्या करना चाहिए या क्या नही, मै चुपचाप खड़ा रहा। तभी उसने हल्के खुले दरवाजे की तरफ देखा और उसकी आँखे मेरी आँखों से मिल गयी। मुझे उस वक्त ऐसा लगा जैसे सारा समय ही रुक गया है। मैं न हिल पाया और न ही मालविका ही अपने स्थान से हिली। मै इसकी प्रतीक्षा कर रहा था की वह कुछ मुझसे प्रश्न करेगी या कहेगी और मै कोई खटके की आई आवाज़ पर बहाना बना कर माफ़ी मांग लूंगा, लेकिन इन युग समान सेकेंडो में सिर्फ मौन ही शाश्वत रहा। हम दोनों ही बस जड़ बने रहे।

कुछ पलों के बाद मालविका ने मुझसे अपनी आंखों को फेर ली और सामने ड्रेसिंग टेबल के शीशे से हेयर ब्रश उठा कर अपने बाल सवारने लगी। उसकी इस चुप्पी ने मुझे अदम्य साहस दे दिया और मैं दरवाजे को हल्का धक्का दे कर कमरे के अंदर आगया। जब मैं दरवाजे को खोल अंदर कमरे में खुसा तो वह अब अभी भी अपने बाल सवार रही थी। उसने मुझे अंदर आते हुए, शीशे में देख भी लिया था। मै एक मादकता से अभिभूत उसके पास गया और कांपते हुए अपने शरीर को, उसके शरीर से चिपका दिया। पता नही वह कौन सी वासना का परिधान मेरे विवेक ने ओढ़ लिया था की मैंने अपनी दोनों बाँहों में उसको कमर से घेर कर, अपने से चिपका लिया था। मैंने शीशे में देखा की मालविका के दोनों हाथ, हैंड ब्रश के साथ उसके सर पर ही रुक गए थे। उसकी आँखे बंद थी। मैंने अपने वासना से ज्वलित ओंठो को उसकी गर्दन पर रख दिए और उसे कस के भीच लिया।

उसके मुँह से हल्की सी आवाज निकली,"जीजा जी!!" और उसने अपना चेहरा मेरी तरफ मोड़ दिया। उसकी आँखे अधखुली थी, होठ कांप रहे थे। मै थोड़ी देर उसके चहरे को घूरता रहा और अपने ओंठो को उसके ओंठो की तरफ बढ़ा दिए। हम दोनों के कांपते हुये होठ आपस मे जुड़ चुके थे और हम दोनों की गरम साँसे आपस मे मिलकर उस कमरे को कामुकता का सागर बना रहे थे। उस पल मेरा विवेक, मेरी अपनी स्वयं की बनाई गई, प्रतिबद्धता की दीवार ढह गई थी।

मैने एक व्यग्र प्रेमी की भांति उसकी ओंठो को चूमते, चूसते उसके मुँह के अन्दर अपनी जीभ डाल दी और मेरी जीभ की ऊष्मता में उसकी मुख के सभी स्पंदन चलायमान हो गए। वह अपने जीवन में वासना की पुनर्प्रविष्टि से अद्दाहलित हो चुकी थी और हम दोनों एक दुसरे के जीभ के साथ नूरा कुश्ती खेलना शुरू कर चुके थे। मैं इतना ज्यादा उत्तेजित और आवेग में आचुका था की मैने अपना हाथ, उसकी ठीली टी शर्ट में डाल कर, सीधे उसकी चूचियों को पकड़ लिया था। वो सोने जारही थी, उसने ब्रा नही पहनी हुयी थी। उसकी नग्न चूचियाँ मेरे हाथो पर आकर तेजी से फड़फड़ाने लगी थी। इतने वर्षों के बाद हुये एक पुरुष के स्पर्श से मालविका की चुचियो में गजब का कसाव आगया था। मैंने वैसे ही उसकी टी शर्ट को उसकी कंधे से नीचे की तरफ खीच दिया और मालविका ने भी अपने कंधो को नीचे झटकते हुए, उसे नीचे आने का कोई प्रतिरोध नही किया।अब उसकी दोनों चुंचिया स्वतंत्र थी और मेरी व्यग्र हथेलियों से मसली जा रही थी।

उसकी कई वर्षों से उपेक्षित चुंचियो को सहराते, दबाते, मसलते हुये,अब मैंने मालविका को अपनी तरफ घुमा दिया और उसको कसके अपनी बाहों में फिर से भर लिया। मै उसको ताबड़ तोड़ चूमे जारहा था की तभी उसने मुझे रुकने का इशारा किया और उसकी साथ ही उसने, अपनी कमर में लटकी हुई टी शर्ट को ऊपर से खीच कर, अपने बदन से अलग कर दिया। उसका ऊपरी बदन नग्न मेरे सामने था। जहां मेरे ओंठ अभी भी उसके ओंठो, गालों, आंखों और गर्दन को चूम रहे थे, वही दोनो हाथ उसके उफान लिए हुये चुंचियो को दबा रहे थे। मेरा दूसरा हाथ मेरा उसके लोअर पर चला गया और ऊपर से ही मै उसकी जांघों के बीच, बरसो से बिना चुदी चूत को ऊपर से ही सहलाने को आतुर होगया। मेरी उँगलियाँ जब उसकी टांगो के पास पहुंची तो मुझे पता चला की वह पैंटी भी नही पहने हुयी है। मैंने उसको अपनी छाती से चिपका लिया और उसकी लोवर को नीचे खीचने की कोशिश करने लगा। इधर मेरे लोवर के अंदर बंद मेरा लंड उन्मुक्त हो फड़फड़ा रहा था और मैं उसको, मालविका की जांघो पर कसके रगड़ने लगा था।

मेरा द्वारा उसकी जांघों पर लंड रगड़ने ने आग में घी का काम किया और मालविका छटपटा गयी। उसने उम्म! आह! कहते हुए अपना एक हाथ, मेरे लंड को पूरी तरह से अनुभव करने के लिए मेरे लोवर के अंदर डालने का प्रयास करने लगी। उसकी इस उत्कंठा से मै बिलकुल ही कामातुर होगया था। मैंने अपनी बाहों से उसको अलग कर, तेजी से अपनी लोवर को उतार फेंकी। उसी के साथ ऊपर पहनी हुयी अपर और बनियान को भी उतार डाला। मैंने इधर अपने कपड़े उतारे, उधर मालविका ने खड़े खड़े ही अपनी लोवर को नीचे खिसका दिया। अब हम दोनों बिलकुल नंगे खड़े थे और एक दुसरे की तरफ देख रहे थे। खुले हुये बाल और बोझल होती हुई आंखों को लिए वो मेरे सामने नग्न खड़ी थी। मैं उस के शरीर मे हो रहे कम्पन की अनुभूति को ग्रहण कर रहा था। मैंने आगे बढ़ कर उसके कंधों पर हाथ रख अपने सीने से लगा लिया। मालविका का नँगा बदन जब मेरे नग्न शरीर से चिपका तो ऐसा लगा जैसे कि मेरे लंड से चिंगारियां निकल रही हो। कुछ समय के लिए हम दोनों एक दूसरे को बाहों में लिए, नग्न, चिपके ही खड़े रहे। मैं उसके गालों, गर्दन , माथे आंखों और ओंठों को चूम रहा था और वह हर चुम्बन में सिसक रही थी। मेरे हाथ उसकी पीठ और नितम्बो को बार बार सहला कर, उसके होने को सत्य कर रहा था। उसने अपना चेहरा मेरी गर्दन में घुसा रक्खा था। मैंने एक हाथ उसकी थोड़ी पर रख उसके चेहरे को उठाया तो मुझे सिर्फ उसकी आंखें दिखी। ऐसा लगा जैसे उसकी काम रस से भरी हुई आँखे मुझे बुलावा दे रही है। स्त्रियोचित लज्जा ने मौन पुकार लगाई थी। मालविका का बरसों सहेजा बाँध, बह जाना चाहता था और मेरे द्वारा खींची गई लक्षण रेखा भी आज टूट जाना चाहती थी।

मैने उसको अपने दोनों हाथो मे उठा लिया और उसे बिस्तर पर ले जाकर गिरा दिया। मालविका बिस्तर पर करवट लेकर लेटी थी, उसका घुमा हुआ चेहरा, बालों से ढक गया और उसने अपनी जांघों को मोड़ रक्खा था। मैं भी बिस्तर पर चढ़ कर मालविका के बगल में आगया और उसकी नग्न काया को निहारने लगा था। जीवन मे कभी सोंचा नही था कि मालविका साक्षात आदम रूप में मेरे सामने ऐसे पड़ी होगी। मैने पहले तो उसके पैरों, जांघों, कमर, पेट और चुंचियो को सहलाया, फिर उसके शरीर के एक एक भाग को चुम्बनों की वर्षा से आच्छादित कर दिया। मैं उसकी जांघों के बीच में दबी उसकी चूत का रसास्वादन करना चाहता था लेकिन जब उस तक मेरे ओंठ पहुंचे तो उसके घुंघराली झांटो में वो उलझ कर रह गए। मालविका ने शायद विधवा होने के बाद, अपनी चूत पर ख्याल देना, छोड़ दिया था। मैं उसकी बालो से ढकी चूत पर अपनी नाक रगड़ कर उसकी मादक महक को आत्मसात करना चाहता था। तभी मालविका का हाथ मेरे सर पर आया और उसकी उँगलियान मेरे बालों में घुस गई। वो मेरे बालों को कस के खींचने लगी और जोर लगा मुझे ऊपर की तरफ खींचने की कोशिश करने लगी। मैंने अनमने मन से उसकी चूत से अपना सर उठाया और मालविका के चेहरे की तरफ देखने लगा। मुझे मालविका के चेहरे पर बदहवासी साफ दिख रही थी और शायद उसके तन में जो आग लगी थी वह उसकी तीव्रता में अपने को धुंआ धुंआ होते महसूस कर रही थी। मै, कोहनी के सहारे थोड़ा ऊपर आया और उसकी एक चूची को अपने मुँह मे लेकर चूसने लगा। मेरा दूसरा हाथ, उसकी दूसरी चुंची को दबा रहा था और मेरे उंगलियों के बीच उसके जमुनिया निपल्स, रगड़ खा रहे थे। उसकी चुंचियो से मेरी अठखेलियों ने मालविका को और बेचैन कर दिया। वो अपने हाथ पैर झटकने लगी और उसके मुंह से आआह, आआईईई, सीसीसी, उफ्फ, बससस के अलावा कुछ भी नही निकल रहा था। मालविका के दोनो हाथ मेरी पीठ पर थे और हर आवाज़ पर उसकी हथेलियां मेरी पीठ को रगड़ दे रही थी। उसके निप्पल्स बहुत संवेदनशील थे, जब भी मैं उनको अपने दांतो के बीच लेता या जीभ से छेड़ता, मालविका की उँगलियों के नाख़ून, मेरे शरीर पर धसने लगते थे |


मेरे ओंठ उसके सुदृढ चुंचियो को संभाल रहे तो मेरा एक हाथ एक बार फिर नीचे उसकी चूत पर पहुंच गया था। इस बार, मालविका ने हल्के से अपनी जांघों को फैला कर, मेरे हाथों को उसकी चूत पर अधिकार जमाने के लिए स्वतंत्र कर दिया। मेरी उंगलियां, चूत पर आवरण डाले घुंघराले बालो को हटा, चूत की फलको की बीच पहुंच गए। मैंने उंगलियों से चूत के ऊपर से सहलाते हुये जब अंदर घुसेड़ने का प्रयास किया तो वह उचक गई। मेरी उंगलियां उसकी चूत में हुए रिसाव से चिपचिपा जरूर गई थी लेकिन इतने बरसो से लंड के प्रवेश पर निषेध होने के कारण, चूत के द्वार तंग हो गए थे। मुझे यह अनुभव हो रहा था कि मालविका की चूत पर मेरी चहलकदमी ने उसे बहुत ही ज्यादा उत्तेजित कर दिया है क्योंकि अब उसका शरीर कामपीड़ा से काँप रहा था।

मालविका ने एक बार फिर मुझे मेरे सर के बाल पकड़ के, अपनी चूत से हटा कर ऊपर की तरफ खिंचा और वह स्वयं बिस्तर पर उठ बैठी और मुझे बेतहाशा चूमने लगी। जब उसके चुम्बनों का उफान कम हुआ तो मालविका मेरे सीने और निप्पल्स को चाटने लगी। उसने जिस ढंग से मेरे निप्पल्स पर अपनी जीभ चलाई थी उसने मुझे ही तड़पा दिया था। मालविका मेरे शरीर को चाटते चाटते, नीचे की ओर आने लगी थी और फिर बेधड़क होकर उसने अपने ओंठ मेरे लंड पर रख दिया। मेरा लंड पहले से ही बदहवास खड़ा था और मदन रस टपका रहा था लेकिन जब अचानक मालविका के ओंठों ने उसको चुम्बन दिया तो वो फ़नफना कर विहिल हो उठा। मेरा लंड चूमने के बाद मालविका ने आहिस्ते से मंद मंद मुस्कराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर मेरे लंड को अपनी गुदाज़ हाथो में लेकर सहलाने लगी। मैंने जब मालविका का अपने लंड के प्रति इतना लाड़ देखा तो मैंने एक हाथ उसके सर पर रख, उसे लंड की तरफ और झुका दिया। मालविका ने तुरंत मेरे लंड को अपने मुँह में ले लिया और मेरे लंड को टॉफी की तरह चूसने लगी थी।

मैंने जब कामाग्नि के वशीभूत मालविका को आलिंगनबद्ध किया था तब मुझे यह आभास नही था कि उन क्षणों की कामुकता मेरे लंड को चूत से समागम के साथ चूषण से अनुराग रखने वाला एक रमणीय मुख भी मिलेगा।

मालविका ने जब मेरा लंड पहली बार अपने मुँह में लिया था तभी ही मैं कपकपा गया था। एक तो बहुत दिनों बाद मेरे लंड को किसी ने चूसा था और दूसरा मैं मालविका से इस सहज भाव से अपने लंड के चूसे जाने की अपेक्षा भी नही रखे हुआ था। उसे लंड चूसना पसंद है मुझे यह इससे ही पता चल गया था, जब उसने शुरू में ही मेरे लंड के सुपाडे, जिस पर मदन रस टपक रहा था, उसे जीभ से चाटा था। लंड चूसने में भी मालविका ने कुछ नही छोड़ा था, उसने मेरा पूरा लंड जड़ तक, अंदर लेकर चूसा था। इसी सबका परिणाम था की थोड़ी देर में ही मुझे लगने लगा कि यदि मैंने उसके मुँह से अपना लंड नही निकाला तो मैं उसके मुँह में ही झड़ जाऊंगा।

मैंने अपने को संभालते हुए तेजी से उसके मुँह से अपना लंड निकाल लिया और मालविका को खीचकर अपने ऊपर कर लिटा दिया और उसको ओंठो को चूमने लगा। उसका मुँह मेरे लंड के मदन रस से लिपटा था और अपना ही स्वाद मुझे और कामोत्तेजक कर गया था। पूरे कमरे में अब सिर्फ आआअ…..ऊऊओ….की ही आवाज गुंजायमान थी।

मैंने उसके बाद मालविका को अपने दायें हाथ से जोर लगा कर बिस्तर पर अपने बगल में लेटा दिया। अब मुझसे अपनी ही वासना बर्दाश्त नही हो पारहा थी। मैं उसको लिटा, नीचे की तरफ खिसक कर आगया। मालविका ने, चूत और लंड के होने वाले मिलन की अपेक्षा में अपनी टांगे फैला रक्खी थी। मैं कमरे में हो रही हल्की से रोशनी में फैली हुई टांगो के बीच घुंघराले बालो से घिरी हुई मालविका की चूत को निहारने लगा। उस कामनीय चूत को देख मैं ऐसा आसक्त हुआ कि मैंने उसे चुम लिया। मालविका की चूत पर मैने जैसे ही अपने होठ रक्खे उसने अपनी जांघे और फैला दी और वह तेजी से सांस लेने लगी। उसकी चूत अब निर्विकार भाव से मेरे सामने समर्पित थी और उस समर्पण को स्वीकार कर, मैने अपना मुँह उसकी चूत मे घुसा और उसकी चूत को चाटने लगा। मैंने अपनी अभिलाषी जीभ को उसकी चुत के अन्दर डाल दिया और उसकी गीली, संकरी और गर्म चूत को जीभ से ही चोदने लगा।

मेरी जीभ जहां मालविका की उपेक्षित चूत को आसक्ति भाव से चोद रही थी वहीं मालविका कामोत्तेजना से छटपटा रही थी। उसके हाथ बराबर मेरे सर पर विचर रहे थे और उसके मुख से आआआअ …….ऊऊऊ …..ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह… सिसयाती हुई कामुक आवाजे निकल रही थी। तभी उसके शरीर में एक कंपकपी हुई और एक घुटी हुई चीख निकली। उसने कस के मेरा सर अपनी जांघों के बीच घुसा दिया और उसकी कमर झटके मारने लगी थी। मैं समझ गया था कि मालविका का सब्र टूट चुका है और उसको ओर्गासम हो रहा है। मालविका की चूत से निकले उस रति द्रव्य का मेरी जीभ ने रसास्वादन किया और उसकी चूत को एक बार और चुम्बन दे कर, मैं, मालविका को गले लगा कर लेट गया।

मालविका हांफ रही थी और मैं उसके शरीर के हर धिरकन पर और मदहोश होते जारहा था। मालविका ने मुझे अपनी बांहों में लिया हुआ था और अपना मुँह मेरे अंदर ही घुसाए हुये थी। मैं थोड़ी देर तक अपनी चुदाई की इच्छा को दबाते हुए मालविका को सहलाता रहा और उसे चूमता रहा। मेरा लंड जो थोड़ा पहले शिथिल हो गया था, वह मालविका के शरीर से आरही गर्मी से फिर कड़ा होने लगा था। हम शायद 7/8 मिनिट ऐसे ही पड़े रहे और मैं, इच्छा होने के बाद भी मालविका को आराम का पूरा समय देना चाहता था। पता नही कैसे, मालविका ने मेरे मनोभाव को या तो पढ़ लिया या यह फिर प्रकृतिअनुसार उसने पहल करते हुए मेरे लंड को अपने हाथ मे ले लिया और उसे हिलाने लगी। उसके हाथों का स्पर्श मिलते ही मेरा लंड फिर कड़कड़ा गया। मैंने मालविका की तरफ देखा उसकी आंखें अधखुली थी। उसने जोर से मेरे लंड को झटका दिया और अपनी जांघों को पूरी तरह फैला दिया। मुझे संकेत मिल गया था कि मालविका ने मेरे उसके समागम का मुहूर्त निकाल लिया है।

मै मालविका के बगल से उठ कर, उसके पैरों की तरफ चला गया। उसने अपने पैर फैला और मोड़ रक्खे थे। मैं उन टांगो के बीच बैठ गया और अपने लंड से उसकी चूत पर रगड़ने लगा। मेरे लंड का सुपाड़ा बार बार उसकी क्लिट पर घर्षण कर रहा था और उसकी प्रतिक्रिया में मालविका के मुंह से एक बार फिर, सिसकियां सुनाई देनी लगी थी। मालविका एक बार फिर से कामुकता के सागर में हिचकोले खाने लगी थी और उसके मुंह से बराबर कामोन्मादक स्वर निकलने लगे थे। मैं अपने लंड से उसकी चूत को सहला रहा था और बीच बीच मे अपना सुपाड़ा उसकी चूत के द्वार पर ढेल दे रहा था। अब मालविका भी अपनी कमर को उठा कर खुद भी अपनी चूत को मेरे लंड से रगड़ने लगी थी। आज मैं पहली बार मालविका को चोदने जारहा था इसलिये उसकी चूत को और ऊपर लाने के लिए मैने उसके नितंबो के नीचे तकिया भी लगा दिया था।

मैने अपने लंड पर थोड़ा सा थूक लगाया और उसे मालविका की चूत पर रख कर, एक धक्के में घुसा दिया। उसकी चूत गीली जरूर थी लेकिन बरसो से बिना चुदी हुई चूत, कसी हुई थी। मेरा लंड 5/6 घक्को में पूरा उसकी चूत में समा गया। मेरा पूरा लंड, अपनी चूत के अंदर समाहित कर, मालविका ने मुझे कस के अपनी बाहों में जकड लिया। उसके ओंठो ने मेरे ओंठो को पकड़ लिया और वह उसे चूसने लगी। अपने ओंठो को चूसते हुआ देख मैंने उसकी चूत में अपने लंड की धक्के की गति शिथिल कर दी थी। मेंरी मालविका के साथ चुदाई तो हो रही थी लेकिन इस चुदाई में प्रणय का भाव और उसके जीवन मे इसकी अनुपलब्धता का भाव भारी था। मैं स्वयं भी ज्यादा समय तक उसे चोद पाने के प्रति सशंकित था इसलिये मैं आहिस्ते से चोद रहा था। एक तरफ मेरा लंड मालविका की चूत में एक लय में अंदर बाहर हो रहा था तो दूसरी तरफ मालविका भी अपनी टांगो को और ऊपर तक उठाये मेरे लंड को पूरा अंदर तक संभाल रही थी। मालविका के ओंठो से मुक्त हुये मेरे ओंठ अब उसकी चुंचियो का रसपान कर रहे थे और जब जब उसके निप्पल्स को कस के चूसता, मालविका की कमर नीचे से उपर उछाल मार, लंड को अपने अंदर धंसा लेती। मैं मालविका के निप्पल्स को कस के चूस रहा था कि मालविका ओह! ओह! आआह! आआह! जीजाआ जी!! की आवाज़ निकालने लगी और अपनी कमर उछालने लगी। यह आभास होने पर की उसको ओर्गासम होने वाला है, मै ताबड़तोड़ धक्के मारने लगा। मेरे लंड से कस के पड़ रही उसकी चूत पर चोट से मालविका चीख पड़ी थी और उसी के साथ मेरे लंड ने उबाल लिए वीर्य को, मालविका की चूत में फेंक दिया। मैं झड़ता जा रहा था और साथ मे धक्के भी मार रहा था। तभी मालविका ने मेरी कमर को अपने पैरो से जकड़ लिया और अपने नाखून मेरी पीठ पर गड़ा दिये। उसके मुँह से आई! आई! आई! कि सिसयाती हुई आवाज़ निकल रही थी और उसका शरीर अकड़ गया था। मेरे वीर्य की पिचकारी ने उसको चरम दिला दिया था। हम दोनों ही झड़ने के साथ तृप्त हो चुके थे। उसकी चूत ने बरसो बाद वीर्यपान किया था और मेरा लंड ने महीनों बाद एक सार्थक चूत में वीर्यदान करने का सौभाग्य प्राप्त किया था। हम दोनों ऐसे ही हांफते, अलसाते, थकते एक दूसरे की बांहों में पड़े रहे। हम दोनों को कब नींद आगयी यह पता ही नही चला।

मेरी नींद करीब 4 बजे खुली तो सीधे बाथरूम जाकर अपने को साफ किया और नंगे ही वापस मालविका के बिस्तर पर आकर, उसके बगल में लेट गया था। मेरी हलचल से मालविका की भी नींद खुल गई। वह अपने को नग्न व मुझे बगल में नँगा पड़ा देख पहले तो चौकी लेकिन कुछ पल बाद जब पूरी चेतनता वापस आई तो लजा कर बाथरुम भाग गई। उसने वहां शावर लिया और तौलिया लपेट कर कमरे में वापस आई। वो तौलिए में लिपटी खुजराओ की गणिका लग रही थी। उसके शरीर से हो रहे स्पंदन ने मेरी इंद्रियों को फिर से जाग्रत कर दिया और मेरे लंड की धमनियों में फिर से रक्त बहने लगा। मुझसे रहा नही गया और मैं बिस्तर से उठ कर मालविका को बाहों में ले लिया। मेरा खड़ा हुआ लंड मालविका की जांघों पर अपने प्रणय का संकेत दे रहा था। मालविका मेरे सीने में अपना सर रख खड़ी रही और मैंने जोर से उसको अपने आलिंगन में बांध लिया। मैं उसे चूमने लगा और उसने भी कुछ पलों के बाद अपने ओंठो को मेरे ओंठो के लिए खोल दिये।

हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुये फिर बिस्तर पर आगये और वहां पहुंचते पहुंचते मालविका के शरीर से तौलिया भी अलग हो कर फर्श पर गिर गई थी। मैं उसकी चुंचियो निप्पल्स और चूत से छेड़छाड़ कर रहा था और मालविका भी उत्तेजित हो मेरे शरीर को अपने शरीर से रगड़ रही थी और मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर हिला रही थी। हम दोनों ही कामुकता के ज्वार में बह रहे थे कि तभी, मेरा मोबाइल बजने लगा। इतनी सुबह फोन आता देख मैं चौंका, जब स्क्रीन देखी तो श्वेता का फोन था। मुझे मालविका को कामुकता की हालत में बिस्तर पर छोड़ना ठीक नही लगा तो मैंने मालविका को इशारे से चुप रहने को कहा और मोबाइल उठा लिया।

श्वेता ने घर के हालचाल लिए और अस्पताल में मेरे ससुर की हालत के बारे में बताया। उसने बताया कि उसका भाई 3/4 दिन में ओमान से भोपाल पहुंच जाएगा, वह तभी आएगी। मैंने भी उसे यहां सब ठीक है, चिंता न करने को कहा। अंत मे श्वेता ने पूछा," मालविका का ख्याल रख रहे हो?"
मैंने कहा," हाँ सब ठीक है मालविका का मै पूरा ख्याल रखे हुए हूँ |"

यह कहते हुए मेरा ठीला पड़ गया लंड फिर कड़ा होने लगा और मोबाइल कट गया। मालविका ने भी मेरे खड़े होते हुए लंड का महसूस कर लिया था लेकिन श्वेता की कॉल आने पर अपने को दो राहे पर खड़ी पारही थी। मैंने मालविका को अपनी बाहों में ले लिया और कहा, "कॉल आने से पहले भी हम तुम थे और उसके बाद भी है। हम दोनों वर्तमान है और इतने परिपक्व है कि सामाजिक बंधनो को कैसे सहेज कर रखना है या जानते है।"

उसके बाद मालविका मुझसे चिपट गई और हम लोग बिना कुछ और किये फिर से सो गए।

अगले दिन रविवार था इसलिए घर पर ही रहना था। ब्रेकफास्ट के समय मालविका थोड़ा चुप थी और घर मे नौकर होने के कारण मैं उससे ज्यादा बात करना भी उचित नही लगा। दोपहर को खाना खाने के बाद जब नौकर चले गए तो मैं मालविका के कमरे में गया, वह कमरा बन्द कर लेटी थी। मेरे खटखटाने पर उसने दरवाजा खोल दिया और मैं अंदर चला आया। मालविका मैक्सी पहने थी और मेरा मन उसको बाहों में लेने को हो रहा था लेकिन मालविका की दिन भर की चुप्पी देख कर आगे बढ़ने की हिम्मत नही हई। मालविका ने मुझसे कोई प्रश्न नही पूछा, बस बिस्तर पर बैठ गई और नीचे फर्श को देखने लगी। मुझे उसकी मनोस्थिति को देख कर आत्मग्लानि होने लगी थी लेकिन समझ नही आरहा था कि मालविका को किस तरह संभालूं। थोड़ी देर खड़ा होने के बाद मैं भी मालविका के बगल में बैठ गया। मैंने डरते डरते उसका हाथ छुआ और कहा,"मालविका, जो हुआ उसके लिए मैं शर्मिंदा नही हूँ और न तुम्हे होना चाहिए। यह शायद प्रारब्ध था और मैं इसको हमेशा नियति मान स्वीकारता रहूंगा।" मालविका ने इस बार मेरा हाथ नही झटका बस धीरे से पूछा," बिरजू(नौकर) काम खत्म करके वापस चला गया है क्या?"

मैने आंखों से इशारा किया की वह गया और दरवाज़े बन्द कर दिए है। यह समझा के मैने मालविका के कंधे पर हाथ रक्खा तो उसने अपना सर मेरी गोदी पर लुढ़का दिया।

मैंने और मालविका ने अगले 5 दिन, जब तक श्वेता वापस नही आई, जी भर कर चुदाई की। घर का कोई कोना ऐसा नही बचा था जहां उसने न चुदवाया हो। कोई उसकी ऐसी फैंटेसी नही बची थी जो उसने मेरे साथ पूर्ण न की हो। श्वेता के आने के बाद, मालविका हमारे साथ करीब 4 माह रही लेकिन हम दोनों ने कभी भी शारीरिक सम्बंध बनाने की कोशिश नही की। हम लोगों ने हंसी मज़ाक और जीजा साली के रिश्ते के खुलापन को जरूर आनंद लिया लेकिन कभी एकांत में मिलने के मौके को ढूढने की कोशिश नही की और न ही जब भी एकान्त का अवसर मिला, तो उस अवसर का उपयोग करना चाहा। अब मालविका, नोएडा में स्थापित हो गई है और उसने अपने पति के रेडीमेड गारमेंट्स के बिज़नेस को संभाल लिया है। मैं आज भी जब भी दिल्ली नोएडा जाता हूँ, मालविका से मुलाकात करता है। मेरे वहां पहुंचने पर, मालविका खुद ही एकांत का अवसर निकाल लेती है। वो वहां आज भी मेरी 60 वर्ष की आयु में वैसे ही मिलती है जैसे मालविका, मुझे आज से 14 वर्ष पूर्व, मेरे घर मे, अपने कमरे में मिली थी। मैं समझता हूँ यह उन 4 महीनों के संयम का परिणाम है कि हम दिनों के रिश्तों के बीच अभी भी जीवंतता बनी हुई है।
 
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Gentlemanleo

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Lasjawab. Rochak kahani. Pratiksha agle update ki
मैं जो भी लिख रहा हूँ वो मेरे ही जीवन के भाग है इसलिए कोई धारावाहिक गाथा के रूप में नित्य नए अपडेट नही होंगे, बल्कि हर संस्मरण एक कहानी के रूप में यहां प्रस्तुत करता जाऊंगा। सोचा तो यह था कि इस सबको आत्मकथ्यात्मक रूप से लिख किताब का स्वरूप दूं लेकिन मैं इतना आत्मिक सामर्थ्य नही जुटा पाया है कि इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर सकूं। अपनी इसी इच्छा का कुछ पूर्व एक ब्लॉग के रूप में शुरू किया था लेकिन अब एक नई दृष्टि से, पाठकों को सिर्फ कामातुर व कामोत्तेजित करने से नही, बल्कि अपने सत्य को स्वयं में स्वीकार करने के लिए लिख रहा हूँ। मुझे आशा है कि पाठकों का मुझे समर्थन मिलेगा।
 

SKYESH

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मैं जो भी लिख रहा हूँ वो मेरे ही जीवन के भाग है इसलिए कोई धारावाहिक गाथा के रूप में नित्य नए अपडेट नही होंगे, बल्कि हर संस्मरण एक कहानी के रूप में यहां प्रस्तुत करता जाऊंगा। सोचा तो यह था कि इस सबको आत्मकथ्यात्मक रूप से लिख किताब का स्वरूप दूं लेकिन मैं इतना आत्मिक सामर्थ्य नही जुटा पाया है कि इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर सकूं। अपनी इसी इच्छा का कुछ पूर्व एक ब्लॉग के रूप में शुरू किया था लेकिन अब एक नई दृष्टि से, पाठकों को सिर्फ कामातुर व कामोत्तेजित करने से नही, बल्कि अपने सत्य को स्वयं में स्वीकार करने के लिए लिख रहा हूँ। मुझे आशा है कि पाठकों का मुझे समर्थन मिलेगा।


बहुत खूब .....:rock:

आप की Laxman रेखा की बहार वाली स्टोरी का इंतज़ार रहेगा....😊
 

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बहुत ही सुंदर और चुदाईदार कहानी है भाई मजा आ गया
अगली धमाकेदार और रोमांचकारी कहानी की प्रतिक्षा रहेगी
 
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