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Adultery परिवार कैसा है

सबसे गरम किरदार

  • रमा

  • खुशबू

  • राधा

  • सोभा


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mentalslut

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बिहार के एक छोटे से गांव में, जहां खेतों की हरियाली और नदी की लहरें जीवन का हिस्सा हैं, उमेश नाम का एक 50 साल का टीचर रहता था। वो सरकारी स्कूल में पढ़ाता था, सख्त मिजाज लेकिन घर में प्यार करने वाला पिता। उसकी पत्नी रमा, 44 साल की गृहिणी, घर संभालती थी—खाना बनाना, कपड़े धोना, और परिवार की जिम्मेदारी। उनके दो बच्चे थे: खुशबू, 24 साल की कॉलेज स्टूडेंट, जो शहर से पढ़ाई करके लौटी थी, और रवि, 19 साल का स्टूडेंट, जो अभी घर पर ही पढ़ाई करता था। परिवार साधारण था, लेकिन अंदर ही अंदर कुछ छिपी आग सुलग रही थी, जो जल्द ही भड़कने वाली थी।

एक गर्म दोपहर का वक्त था। गर्मी इतनी तेज थी कि पंखा भी हवा को ठंडा नहीं कर पा रहा था। उमेश स्कूल से लौटा तो घर में सन्नाटा था। रमा बाजार गई हुई थी, रवि दोस्तों के साथ खेत में खेलने चला गया था। खुशबू अपने कमरे में थी। उमेश ने थोड़ा आराम करने के लिए पानी पिया और बिना सोचे-समझे खुशबू के कमरे की तरफ बढ़ गया। दरवाजा थोड़ा खुला था—शायद हवा के लिए।

उमेश ने अंदर झांका, तो उसकी सांसें थम गईं। खुशबू अपनी साड़ी उतार रही थी। वो नहाने से पहले तैयार हो रही थी। उसकी पीठ नंगी थी, कंधे चिकने और गोल। साड़ी नीचे सरक गई, और फिर ब्लाउज भी खुला। उमेश की नजरें अपनी बेटी के नंगे बदन पर ठहर गईं। खुशबू की चूचियां—उफ, कितनी भरी-भरी, गुलाबी निप्पल्स तनकर खड़ी थीं। कमर पतली, कूल्हे चौड़े, और जब वो पेटीकोट उतारने लगी, तो उसकी गांड की गोलाई दिखी—नरम, सफेद, जैसे दूध की मलाई। नीचे पैंटी में उसकी चूत की आकृति साफ झलक रही थी, हल्की सी झुर्रियां वाली, गीली लग रही थी गर्मी से।

उमेश का दिल धड़कने लगा। वो पीछे हटना चाहता था, लेकिन पैर जम गए। सालों से रमा के साथ रूटीन सेक्स हो रहा था—बिना जुनून के, बस ड्यूटी की तरह। लेकिन ये... ये उसकी अपनी बेटी थी। खुशबू ने पैंटी भी उतार दी। अब वो पूरी नंगी थी, आईने के सामने खड़ी होकर अपने बाल संवार रही थी। उसकी चूत साफ दिख रही थी—बालों वाली, लेकिन साफ-सुथरी, होंठ मोटे और गुलाबी। उमेश का लंड अचानक जोर से खड़ा हो गया। पैंट में दर्द होने लगा। वो कल्पना करने लगा—अपनी बेटी को छूना, उसके निप्पल्स चूसना, उसकी चूत में उंगली डालना। 'ये क्या हो रहा है?' उसके दिमाग में आवाज आई, लेकिन शरीर गर्म हो चुका था। पसीना बह रहा था, लेकिन आग अलग तरह की थी।

खुशबू ने अचानक मुड़कर दरवाजे की तरफ देखा। उमेश झटके से पीछे हटा, लेकिन देर हो चुकी थी। खुशबू ने हंसते हुए कहा, 'पापा? आप यहां?' वो तौलिए से खुद को ढकने लगी, लेकिन उसकी आंखों में शरारत थी। उमेश का चेहरा लाल हो गया। 'बस... पानी लेने आया था,' वो हकलाया और भागा। लेकिन कमरे में जाकर लेटते ही उसका हाथ पैंट में चला गया। वो खुशबू के बदन को याद करके लंड सहलाने लगा—कितना मोटा हो गया था, रगड़ खा रहा था। पहली बार, बेटी के प्रति वो गंदी, सेक्सुअल फीलिंग जागी थी।

रात हो चुकी थी। गांव में सन्नाटा पसर गया था, सिर्फ झींगुरों की आवाजें और दूर कहीं कुत्तों का भौंकना। उमेश बिस्तर पर करवटें बदल रहा था। रमा उसके बगल में सो रही थी, हल्की खर्राटे लेते हुए। लेकिन उमेश की नींद उड़ी हुई थी। दिन भर का वो दृश्य उसके दिमाग में घूम रहा था—खुशबू का नंगा बदन, वो भरी चूचियां, वो गीली चूत। लंड फिर से सख्त हो गया था, पैंट में दबा हुआ। 'क्या बकवास कर रहा हूं मैं? वो तो मेरी बेटी है, रंडी की औलाद!' उमेश ने मन ही मन गाली दी, लेकिन ये गाली खुद को शांत करने के लिए थी। असल में, ये सोच उसे और उत्तेजित कर रही थी।

वो चुपके से बिस्तर से उतरा। घर अंधेरा था, सिर्फ चांदनी खिड़की से आ रही थी। खुशबू का कमरा पास ही था। दिल धड़क रहा था, जैसे चोर हो। दरवाजा धीरे से खोला। खुशबू सो रही थी, कंबल ओढ़े। उसके कपड़े कमरे के कोने में रखे थे—साड़ी, ब्लाउज, और वो पैंटी। उमेश की सांस तेज हो गई। वो झुका, हाथ बढ़ाया, और पैंटी उठा ली। गुलाबी रंग की, कॉटन वाली, लेकिन गर्मी से हल्की नमी महसूस हुई। 'साली की चूत की महक... उफ्फ!' मन में बड़बड़ाया।

वो अपनी कमरे में लौटा, दरवाजा बंद किया। बिस्तर पर लेटा, रमा अभी भी सो रही। पैंटी नाक से सटा ली। सोंघा—हल्की सी मिट्टी की खुशबू, पसीने की, और नीचे कुछ मीठा, चूत का रस जैसा। लंड अब पूरी तरह खड़ा था, मोटा और लंबा, नसें फूली हुईं। उमेश ने पैंट नीचे सरका दी। लंड बाहर आ गया, सुपारा चमक रहा था। हाथ में पकड़ लिया, ऊपर-नीचे करने लगा। 'खुशबू रंडी, तेरी चूत की खुशबू... तेरी गांड मारूंगा मैं, साली!' मन में गालियां बरसाईं, लेकिन ये गालियां उसे और गर्म कर रही थीं।

वो कल्पना करने लगा—खुशबू को दबोच लिया हो, उसके मुंह में लंड ठूंस दिया हो। पैंटी को मुंह में दबा लिया, चाटने लगा। जीभ पर नमकीन स्वाद आया। लंड सहलाते हुए स्पीड बढ़ा दी। 'आह... खुशबू, तेरी चूचियां दबाऊंगा, तेरी चूत चाटूंगा, बेटी की चूत!' सिसकारियां भर रहा था, लेकिन आवाज दबाकर। khusbu हिली, लेकिन सोती रही। उमेश का शरीर कांपने लगा। आखिरकार, झटके के साथ वीर्य निकल आया—गर्म, चिपचिपा, पेट पर गिर गया। पैंटी अभी भी नाक पर थी, सोंघते हुए वो लेट गया, थकान से।
सुबह की पहली किरणें खिड़की से चुपके से घुस रही थीं, जैसे कोई राज़ खोलने को बेताब। गांव में मुर्गे की बांग गूंज रही थी, और हवा में अभी भी रात की ठंडक बाकी थी—गर्मी के बावजूद। उमेश की आंखें खुलीं, लेकिन नींद पूरी नहीं हुई थी। रात भर का अपराधबोध और उत्तेजना का मिश्रण उसके दिमाग में घूम रहा था। बिस्तर पर लेटा, वो छत को देख रहा था, जहां मकड़ी का जाला हल्का-हल्का हिल रहा था। पेट पर सूखा हुआ वीर्य का दाग अभी भी चिपचिपा लग रहा था—एक गंदी याद, जो उसे शर्म से भर देती, लेकिन साथ ही फिर से लंड में हलचल पैदा कर देती।

रमा अभी भी सो रही थी, उसके चेहरे पर शांति की लकीरें। उमेश चुपके से उठा, पैंट ठीक की, और बाहर निकल गया। घर का आंगन सूना था, सिर्फ कबूतरों की कूक सुनाई दे रही थी। वो पीछे के हिस्से में गया, जहां पुराना हैंडपंप था—नहाने-धोने का। लेकिन मन में कुछ और ही चल रहा था। रात का वो दृश्य, खुशबू की पैंटी की महक, सब कुछ ताजा था। 'बस एक बार और देख लूं... नहीं, ये गलत है,' मन में लड़ाई चल रही थी, लेकिन पैर अपने आप खुशबू के कमरे की तरफ बढ़ रहे थे। दरवाजा बंद था, लेकिन अंदर से हल्की हलचल की आवाज आई—शायद वो जाग गई हो।

उमेश रुक गया। सांसें धीमी कीं। फिर, घर के पीछे की तरफ मुड़ा, जहां एक छोटा-सा शौचालय था—गांव का पुराना स्टाइल, ईंटों का बना, बिना दरवाजे के। सिर्फ एक आधी दीवार, जो थोड़ी प्राइवेसी देती थी, लेकिन सुबह के उजाले में सब कुछ साफ दिख जाता। उमेश को याद आया कि खुशबू सुबह जल्दी उठती है, नहाने-फ्रेश होने के लिए। वो जानबूझकर वहीं छिप गया, एक पुराने नीम के पेड़ के पीछे। दिल धड़क रहा था, जैसे चोर हो। 'क्या कर रहा हूं मैं? अगर किसी ने देख लिया तो?' लेकिन ये खतरा ही उसे और उत्तेजित कर रहा था। पैंट में लंड हल्का सख्त होने लगा, सुबह की ताजगी में।

कुछ मिनट बीते। फिर, वो आ गई। खुशबू, नींद से भरी आंखों के साथ, साड़ी के नीचे सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज पहने—सुबह की जल्दबाजी में। उसके बाल बिखरे हुए, चेहरा ताजा, गुलाबी। वो शौचालय की तरफ बढ़ी, बिना किसी शक के। उमेश की सांस रुक गई। वो नीम के पेड़ से झांका—सही एंगल से, जहां से सब दिख सकता था। खुशबू ने पीठ फेर ली, पेटीकोट को धीरे से ऊपर सरकाया। पहले कूल्हे नजर आए—गोल, नरम, रात के दृश्य की तरह। फिर, वो थोड़ा झुकी, पैंटी को नीचे सरका दिया। अब, उसकी गांड पूरी तरह नंगी थी—सफेद, चिकनी, बीच में गहरी दरार। उमेश का मुंह सूख गया। 'उफ्फ... कितनी सॉफ्ट लग रही है, छूने को जी चाहे।'

खुशबू ने दीवार का सहारा लिया, पैर थोड़े फैलाए। और फिर... वो शुरू हो गया। एक पतली, सुनहरी धार—पेशाब की। हवा में हल्की सी सिसकारी, जैसे पानी की बूंदें जमीन पर गिर रही हों। धार तेज थी, सीधी नीचे गिर रही, लेकिन कुछ बूंदें उसके जांघों पर चली गईं—चमकती हुईं। उमेश की नजरें ठहर गईं। वो चूत को देख रहा था—पिछली रात की तरह, बालों वाली, लेकिन सुबह की रोशनी में और साफ। होंठ थोड़े फैले हुए, गुलाबी, और बीच से वो धार निकल रही थी। 'साली... पेशाब कर रही है मेरी बेटी, और मैं देख रहा हूं। कितनी गंदी बात है ये, लेकिन... आह!' मन में उथल-पुथल मची थी। लंड अब पूरी तरह खड़ा हो गया, पैंट को तनाव दे रहा। उमेश ने हाथ डाला, बाहर निकाला—मोटा, गर्म, सुपारा चमक रहा। धीरे से सहलाने लगा, आंखें खुशबू पर टिकीं।

धार धीमी हो गई, अब बूंद-बूंद गिर रही थी। खुशबू ने हाथ नीचे किया, उंगलियों से साफ किया—हल्की सी मलमल की तरह। वो पैंटी ऊपर खींची, पेटीकोट नीचे किया। लेकिन उमेश को लगा जैसे वो जानबूझकर धीरे कर रही हो। या शायद कल की शरारत की वजह से? खुशबू मुड़ी, और एक पल के लिए उमेश की तरफ देखा—जैसे कुछ महसूस किया हो। लेकिन वो मुस्कुराई नहीं, बस चली गई, नहाने की तरफ। उमेश का हाथ तेज हो गया। 'खुशबू... तेरी चूत से पेशाब की बूंदें... तेरी गांड... मैं तुझे...' कल्पना में वो खुद को वहां पाता, अपनी बेटी को पकड़ते, उसकी चूत पर मुंह लगाते, पेशाब की नमी चखते। शरीर कांप उठा। कुछ सेकंडों में, गर्म वीर्य बाहर आ गया—नीम के पेड़ की जड़ों पर गिर गया, चुपके से।

उमेश हांफ रहा था, पसीना बह रहा। हाथ पोंछा, पैंट ठीक की। लेकिन मन शांत नहीं हुआ। ये सिर्फ देखना था—अगला कदम क्या होगा? घर लौटा, तो रमा जाग चुकी थी, चाय बना रही। 'कहां गए थे?' उसने पूछा। 'बस... ताजी हवा लेने,' उमेश ने हंसकर टाल दिया। लेकिन आंखें खुशबू को ढूंढ रही थीं, जो नहाने से लौट आई थी—गीले बाल, तरोताजा चेहरा। टेबल पर बैठी, चाय पीते हुए। उनकी नजरें मिलीं—एक सेकंड के लिए। खुशबू की आंखों में वही शरारत, जैसे वो जानती हो। उमेश का दिल फिर धड़का।

कुछ दिन बीत गए थे, लेकिन उमेश का मन शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। सुबह का वो दृश्य—खुशबू की चूत से निकलती पेशाब की धार, वो नरम गांड की गोलाई—रात-दिन उसके दिमाग में घूमता रहता। स्कूल में पढ़ाते हुए भी उसकी कल्पना भटक जाती, लंड अचानक सख्त हो जाता, और वो टॉयलेट में जाकर मुठ मार लेता। रमा को शक हो रहा था—उमेश अब रात को भी ज्यादा चिपकता, लेकिन सेक्स में कोई जुनून नहीं, बस जल्दबाजी। 'क्या हुआ है तुम्हें?' रमा ने एक बार पूछा, लेकिन उमेश ने टाल दिया। असल में, वो खुशबू को देखता रहता—चाय पीते हुए उसके होंठों पर, साड़ी में कूल्हों की लहर पर, और रात को चुपके से उसके कमरे के बाहर खड़ा होकर सांसें गिनता। लेकिन ये काफी नहीं था। उमेश को और चाहिए था—अधिक नजदीकी, अधिक राज़।
खुशबू कॉलेज जाती थी, शहर के बाहरी इलाके में एक छोटा-सा सरकारी कॉलेज, जहां लड़कियां कम और लड़के ज्यादा। उमेश ने फैसला किया—जासूसी करेगा। एक दोपहर, वो स्कूल से जल्दी निकला, पुरानी साइकिल पर सवार होकर कॉलेज की तरफ बढ़ चला। रास्ते में मन में उथल-पुथल मची थी। 'क्या कर रहा हूं? अगर पकड़ा गया तो?' लेकिन ये खतरा ही उसे गुदगुदा रहा था। कॉलेज पहुँचकर वो पीछे के गेट से घुसा—वहाँ दीवार टूटी हुई थी, स्टूडेंट्स का शॉर्टकट। अंदर घुसते ही हलचल थी—लड़के-लड़कियां घूम रहे, क्लास की घंटियाँ बज रही। उमेश ने एक पुराने पेड़ के पीछे छिपकर खुशबू को ढूंढना शुरू किया।
कुछ देर बाद, वो दिखी। खुशबू, नीली सलवार-कमीज में, किताबें लिये, दोस्तों के साथ हँसती-खेलती। लेकिन जल्दी ही वो अलग हो गई, एक पुरानी लाइब्रेरी बिल्डिंग की तरफ बढ़ी। उमेश का दिल धड़क उठा। 'कहाँ जा रही है?' वो चुपके से पीछा करने लगा, दीवारों के सहारे। लाइब्रेरी के पीछे एक छोटा-सा रूम था—प्रोफेसरों का स्टोरेज, जहाँ पुरानी किताबें पड़ी रहतीं। दरवाजा आधा खुला था, अंदर से हल्की आवाजें आ रही थीं। उमेश ने सांस रोकी, और झांका। क्या देखा, तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
खुशबू घुटनों पर बैठी थी, उसके सामने एक मोटा-तगड़ा प्रोफेसर—नाम था डॉ. शर्मा, 55 साल का, गंजा सिर, चश्मा, लेकिन शरीर में अभी भी ताकत। वो अपनी पैंट नीचे सरका चुका था, और उसका लंड बाहर था—मोटा, काला, नसों वाला, सुपारा चमकता हुआ। खुशबू का हाथ उस पर था, धीरे-धीरे सहला रही। प्रोफेसर की आँखें बंद थीं, सिर पीछे, मुँह से सिसकारियाँ निकल रही। 'उफ्फ... खुशबू रानी, तेरी जीभ का जादू... आज क्लास में तेरी साड़ी के नीचे से चूत की झलक मिली थी, बस तभी से खड़ा था ये घोड़ा।'
उमेश का शरीर जम गया। 'ये... मेरी बेटी? किसी पुराने के लंड को...?' लेकिन आँखें हट ही नहीं रही। लंड उसके पैंट में जोर से ठोकने लगा, दर्द हो रहा था। वो हाथ डालकर बाहर निकाल लिया, सहलाने लगा—धीरे-धीरे, जैसे खुशबू कर रही हो। अंदर का दृश्य और गर्म हो गया। खुशबू ने प्रोफेसर की तरफ देखा, शरारती मुस्कान के साथ। 'सर, आप तो हमेशा ऐसे ही कहते हो। कल तो मेरी गांड पर हाथ फेरा क्लास में, सबके सामने। डर नहीं लगता आपको?' उसकी आवाज मधुर थी, लेकिन शब्दों में कामुकता भरी। वो लंड को नाक से सुँघने लगी—हल्की सी मर्दाना महक, पसीने की। 'मम्म... कितना मालेदार है आपका लंड, सर। मेरा मुंह पानी भर आया।'
डॉ. शर्मा हँसा, हाथ बढ़ाकर खुशबू के बाल पकड़े। 'डर? अरे रंडी, तेरी चूत की भूख ने तो मुझे बेकाबू कर दिया है। तू जानती है न, तेरी मार्कशीट मेरे हाथ में है। एक चूस ले, और फर्स्ट डिवीजन तेरी।' वो लंड को आगे धकेला, सुपारे को खुशबू के होंठों पर रगड़ा। खुशबू ने जीभ निकाली, चाटा—धीरे से, सर्कुलर मोशन में। 'हाँ सर... चाटूँगी मैं आपका लंड, पूरा मुंह में लूँगी। लेकिन बदले में, आज शाम को मेरी चूत में डालना, गहराई तक। घर पर पापा-मम्मी नहीं होंगे।' उसके शब्दों से उमेश का खून खौल उठा—ईर्ष्या, गुस्सा, लेकिन उत्तेजना भी। 'ये साली... घर पर मेरी कल्पना करती है, और यहाँ किसी और के लंड पर?' लेकिन हाथ की स्पीड बढ़ गई, लंड रगड़ते हुए।
खुशबू ने मुंह खोला, लंड को अंदर ले लिया—आधा हिस्सा, होंठों से कसकर पकड़कर। चूसने लगी, ऊपर-नीचे, जीभ लंड की नसों पर घुमाती। डॉ. शर्मा की सिसकारियाँ तेज हो गईं। 'आह... खुशबू, तेरी चूसाई का तो कोई जवाब नहीं। जैसे कोई वेश्या हो, लेकिन चेहरा इतना मासूम। तेरी चूचियां दबाऊंगा आज, निप्पल्स काटूँगा। और तेरी गांड... उफ्फ, वो तो कस-कस के माल है। कल क्लास में जब तू झुकी थी, ब्लाउज से चूची निकलने को हो रही थी। सब लड़के ताक रहे थे, लेकिन मैं जानता हूँ, तू मेरी है।' वो कमर हिलाने लगा, लंड को गहरा धकेलता। खुशबू गग कर रही थी, लेकिन रुकी नहीं—सलiva टपक रहा था, लंड चमक रहा। 'मम्म... सर, आपका सुपारा इतना मोटा... मेरी चूत फट जाएगी। लेकिन पसंद है मुझे, जोर से चोदिएगा न?'
उमेश बाहर साँसें तेज कर रहा था। दृश्य इतना कच्चा था—उसकी बेटी का मुंह भरा हुआ किसी और के लंड से, वो कामुक बातें। कल्पना में वो खुद को वहाँ पाता—प्रोफेसर की जगह, खुशबू के बाल पकड़कर मुंह में ठोकता। 'खुशबू... रंडी... तेरा मुंह मेरे लिए है!' मन में बड़बड़ाया। लंड अब काँप रहा था, वीर्य आने को बेताब। अंदर, डॉ. शर्मा की सिसकारियाँ चरम पर पहुँच गईं। 'लो... ले ले मेरा रस, साली! आह...!' झटके के साथ, गर्म वीर्य मुंह में निकल आया। खुशबू ने गटक लिया, कुछ टपक भी गया ठोड़ी पर। वो मुस्कुराई, जीभ से साफ किया। 'स्वादिष्ट है सर... अगली बार चूत में डालना।' प्रोफेसर ने सिर थपथपाया, 'चल, अभी क्लास है। शाम को मिलना।'
खुशबू उठी, मुंह पोंछा, और बाहर निकलने लगी। उमेश झटके से पीछे हटा, लेकिन देर हो चुकी—उसका वीर्य बाहर गिर गया, जमीन पर। वो भागा, साइकिल पर सवार होकर घर की तरफ। रास्ते भर मन में आग लगी हुई—ईर्ष्या से, लेकिन नई भूख से भी। शाम को खुशबू लौटी, तरोताजा, लेकिन उमेश की नजरें उसके होंठों पर ठहर गईं। 'कॉलेज कैसा रहा, बेटा?' उसने पूछा, आवाज में हल्की काँप। खुशबू हँसी, 'बहुत अच्छा पापा... प्रोफेसर सर ने तो खूब तारीफ की।' वो शब्द सुनकर उमेश का लंड फिर सख्त हो गया।

गांव की हवा में ठंडक घुली हुई, लेकिन उमेश के शरीर में आग सुलग रही थी। दिन भर की वो जलन—खुशबू के कॉलेज वाले दृश्य की, उसके मुंह में किसी और के लंड की कल्पना—उसे चैन न लेने दे रही। 'वो रंडी किसी बूढ़े के लंड चूसती है, लेकिन उसके ये दूध... ये चेहरा... मेरा हक है।' मन में ये ज़हर घुला, लंड को सख्त कर दिया। रमा गहरी नींद में थी, साड़ी बिखरी हुई, लेकिन उमेश का ध्यान कहीं और। वो बिस्तर से चुपके सरका, नंगे पैरों पर चलते हुए खुशबू के कमरे तक पहुँचा। दरवाजा हल्का धकेला—खुला पड़ा था, गर्मी की वजह से शायद। अंदर घुसा, सांसें दबाकर।

चाँदनी की पतली किरणें बिस्तर पर पड़ रही थीं, खुशबू की छवि उकेर रही। वो पतली नाइटी में लेटी थी, कंबल आधा नीचे, गर्मी से। उसके बूब्स—बड़े-बड़े, भारी भरकम, नाइटी को तानते हुए। निप्पल्स हल्के उभरे, जैसे नींद में कोई सपना उकसा रहा हो। उमेश का गला सूख गया। वो बिस्तर के पास घुटनों पर बैठा, हाथ काँपते हुए नाइटी के ऊपर से छुआ। नरम... इतना नरम और गर्म, जैसे रसीली रोटी। धीरे-धीरे दबाया—हथेलियों में भर लिए, उंगलियाँ फैलाकर मसलने लगा। बूब्स की गोलाई हाथों में लहराने लगी, निप्पल्स कड़े होकर तन गए। 'उफ्फ... खुशबू, तेरे ये बड़े-बड़े दूध... दबाने में कितना सुकून। कितने भरे हुए हैं, जैसे दूध से लबालब।' मन में सिसकी भरी। खुशबू नींद में हल्की सिहर उठी, होंठ हिले—शायद सपना समझा, लेकिन आँखें न खुलीं। उमेश की हिम्मत बंधी। नाइटी को धीरे नीचे सरकाया, बूब्स नंगे हो गए—चाँदनी में चमकते, गुलाबी निप्पल्स चावी की तरह तने। एक बूब को मुंह में भर लिया, जीभ से चाटा, चूसा—हल्का नमकीन स्वाद, जैसे माँ का दूध। दूसरा हाथ से दबाता रहा, निप्पल को उँगली-अंगूठे से मरोड़ता, जैसे निचोड़ रहा हो।

लंड अब पैंट में दर्द कर रहा था, बाहर आने को बेताब। उमेश ने पैंट खोली, मोटा-लंबा लंड बाहर उछला—नसें फूलीं, सुपारा चिपचिपा। एक हाथ से पकड़ा, धीरे सहलाने लगा—ऊपर-नीचे, स्पीड कंट्रोल में। 'आह... बेटी, तेरे दूध दबाते हुए तेरी चूत की कल्पना... तेरी गांड पर थप्पड़ मारूँगा।' सिसकारियाँ दबाईं, साँसें तेज। खुशबू का शरीर हल्का-हल्का हिल रहा, शायद महसूस हो रहा, लेकिन नींद ने बाँध रखा। उमेश ने चेहरा ऊपर किया—उसके गाल नरम, होंठ हल्के खुले। लंड की रगड़ तेज हो गई, हाथ की गति बढ़ी। शरीर में कंपन दौड़ा, कमर झटकने लगी। 'ले ले... पापा का रस, तेरे चेहरे पर!' झटके के साथ वीर्य फूट पड़ा—गर्म, गाढ़ा, चिपचिपा। पहली धार नाक पर गिरी, दूसरी होंठों को गीला किया, तीसरी गालों पर फैल गई। कुछ बूंदें बालों में चिपक गईं, चेहरे को चादर की तरह ढक दिया। उमेश हाँफा, पसीना टपका। नाइटी वापस ठीक की, चुपके से बाहर सरक आया। कमरा वैसा ही छोड़कर—सिर्फ वो गंदा निशान, चाँदनी के नीचे चमकता।

सुबह की पहली किरणें खिड़की से झाँक आईं, मुर्गे की बांग ने घर को जगाया। खुशबू की नींद टूटी, चेहरा भारी-भारी सा लग रहा। हाथ लगाया—चिपचिपा, सूखा हुआ दाग। नाक से महक भरी—तीखी, मर्दाना, वीर्य की। 'ये... क्या?' वो झटके से उठी, आईने के पास दौड़ी। चेहरा देखा: गालों पर सफेद परत, होंठों पर चिपटा हुआ, बालों में उलझा। दिल धड़क गया। 'रात को... कोई आया था? ये तो... किसी ने मुठ मार दी हो चेहरे पर।' याद आई—नींद में वो स्पर्श, बूब्स पर दबाव की गर्माहट, चूसने जैसी सिहरन। लेकिन कौन? घर का ताला लगा था, लेकिन कमरा... शायद अंदर से ही। पापा? रवि? या कोई चोर? मन में उलझन मच गई। 'नहीं, पापा तो इतने सख्त... लेकिन उनकी नजरें कभी-कभी अजीब...' रवि तो भाई है, शरारती, लेकिन इतना हियादिल? या बाहर का कोई? लेकिन दरवाजा बंद था। वो मुंह धोया, साबुन से रगड़ा, लेकिन मन साफ न हुआ। चेहरा लाल हो गया—शर्म से, गुस्से से, और कहीं गहरे में एक अजीब सी सिहरन, जैसे कोई राज़ छिपा हो।

दिन भर खुशबू कन्फ्यूज्ड रही। चाय के टेबल पर बैठी, नजरें नीचीं—रमा की बातें सुन रही, लेकिन मन कहीं और। उमेश की तरफ देखा, वो अखबार पढ़ रहा, लेकिन आँखें चोर। 'पापा... रात को?' सोचा, लेकिन कुछ न कहा। रवि ने चिढ़ाया, 'दीदी, आज चुप क्यों हो?' वो मुस्कुराई, 'बस... कुछ सोच रही हूँ।' लेकिन अंदर आग सुलग रही—कौन था? कॉलेज जाते हुए बस में बैठी, खिड़की से बाहर देखा, लेकिन दिमाग उसी पर अटका। क्लास में प्रोफेसर की बातें सुनते हुए भी, बूब्स पर वो दबाव याद आया—नरम, लेकिन जोरदार। 'क्या कोई मेरा दीवाना है घर में?' दोस्तों से बात की, लेकिन राज़ न खोला। दोपहर को घर लौटी, थकान थी, लेकिन कन्फ्यूजन ज्यादा। बिस्तर पर लेटी, चेहरा छुआ—अभी भी हल्की महक। 'आज रात जागूँगी... देखूँगी कौन आता है।' मन में फैसला हो गया। दिन ढल गया, लेकिन उलझन न गई—

रात का सन्नाटा फिर से घर पर छा गया था, लेकिन इस बार खुशबू की आँखें बंद नहीं थीं—वो जाग रही थी। दिन भर की उलझन ने उसे नींद हर ली थी। 'कौन था रात को? वो स्पर्श... वो गर्माहट... और ये रस चेहरे पर।' मन में सवाल घूमते रहे, लेकिन कहीं गहरे में एक अजीब सी सिहरन भी। बिस्तर पर लेटी, सांसें धीमी रखीं, कंबल आधा नीचे। नाइटी पतली, बूब्स उभरे हुए। दरवाजा हल्का सा खुलने की आवाज आई—चुपके, जैसे कोई चोर। खुशबू का दिल धड़का, लेकिन आँखें बंद रखीं। पैरों की हल्की आहट... पापा। वो जान गई थी, नजरों से, उसकी चुप्पी से। लेकिन बोली नहीं। 'देखूँ... क्या करते हैं।' मन में फैसला।

उमेश अंदर घुसा, सांसें दबाकर। चाँदनी फिर से बिस्तर पर बिखरी। खुशबू की छवि देखी—नाइटी ऊपर चढ़ी, बूब्स की गोलाई साफ। लंड झटके से सख्त हो गया। 'फिर... आज भी।' मन में उत्साह। वो घुटनों पर बैठा, हाथ बढ़ाया—नाइटी के ऊपर से दबाया। बड़े-बड़े बूब्स हाथों में समा गए, नरम, गर्म। धीरे-धीरे मसला, उंगलियाँ फैलाकर। निप्पल्स तन गए, कड़े। 'उफ्फ... खुशबू, तेरे ये दूध... कितने रसीले। दबाने का मन हर रात हो रहा।' सिसकी मन में। खुशबू सिहर उठी, लेकिन चुप रही। आँखें बंद, सांसें तेज, लेकिन कोई हलचल न की। अंदर से... वो चाह रही थी। 'पापा... छुओ ना... और...' मन की गहराई में आवाज। उमेश ने नाइटी सरकाई, बूब्स नंगे। मुंह में एक लिया, चूसा—जीभ घुमाई, दाँत लगाए हल्के। दूसरा मसला, निप्पल मरोड़ा। खुशबू के होंठ काँपे, लेकिन मुंह बंद। चूत में हल्की गीलापन महसूस हुआ, लेकिन वो सहन करती रही—जैसे ये सपना हो, जो टूटना न चाहिए।

उमेश का लंड बाहर आया—मोटा, गर्म। हाथ से रगड़ा, बूब्स दबाते हुए। स्पीड बढ़ी। 'आह... बेटी, तेरे दूध चूसते हुए... तेरी चूत...' कल्पना में चोद रहा। खुशबू महसूस कर रही—उसकी सांसें, हाथ की गति। अंदर उत्तेजना भड़क रही, लेकिन चुप्पी बनाए रखी। जैसे वो भी हिस्सा हो इस राज़ का। उमेश झुक गया, चेहरा ऊपर। झटके आए—वीर्य फूटा, चेहरे पर। गर्म धारें: नाक, होंठ, गाल। बालों में चिपका। खुशबू ने महसूस किया—गर्मी, महक। लेकिन आँखें न खोलीं। उमेश ने नाइटी ठीक की, चुपके बाहर। खुशबू तब खुली आँखें—चेहरा छुआ, चाटा हल्के से जीभ से। 'पापा... तुम... लेकिन... अच्छा लगा।' मन में कबूल लिया। नींद आई, लेकिन मीठी।

अगली सुबह धूप चटकीली थी। खुशबू मुंह धोया, लेकिन मन में रात का राज़—चुप्पी का वादा। उमेश स्कूल से लौटा, चाय पीते हुए बोला, 'खुशबू, आज छत पर चल। मैथ्स के कुछ चैप्टर कवर करेंगे। परीक्षा नजदीक है।' आवाज सख्त, लेकिन आँखों में चमक। खुशबू ने हामी भरी, 'हाँ पापा।' रमा ने मुस्कुराया, 'अच्छा है, बाप-बेटी का समय।' रवि खेलने चला गया। छत पर पुराना टेबल-कुर्सी, किताबें फैलाईं। हवा ठंडी, लेकिन तनाव गर्म। उमेश ने सिखाना शुरू किया—अलजेब्रा के सवाल। खुशबू ध्यान दे रही, लेकिन मन भटक रहा—रात के स्पर्श पर। एक सवाल गलत किया। उमेश का चेहरा सख्त। 'अरे, ये भी नहीं आता? लापरवाही!' हाथ उठा, और... थप्पड़ पड़ा—हल्का, लेकिन चुभने वाला। गाल लाल हो गया।

खुशबू चौंकी, आँखें नम, लेकिन बोली नहीं। उमेश का दिल धड़का—थप्पड़ मारते हुए बूब्स का दृश्य याद आया, चेहरा रात का। लंड सख्त होने लगा, पैंट में। 'सॉरी... लेकिन सुधारना पड़ेगा।' लेकिन अंदर हवस भड़क रही—'इसकी चीख सुनकर... चोदने का मन कर रहा।' खुशबू ने सिर झुकाया, 'सॉरी पापा।' लेकिन अंदर... गाल जल रहा, लेकिन चूत गीली हो गई। थप्पड़ की जलन ने उत्तेजना जगा दी—'पापा का हाथ... रात को दूध दबाने वाला... अब ये। उफ्फ...' घुटने सिकुड़ गए, सांसें तेज। वो सवाल सुलझाने लगी, लेकिन नजरें उमेश की कमर पर। उमेश ने फिर सवाल पूछा, गलती पर दूसरा थप्पड़—जोरदार। 'समझ!' गाल और लाल। खुशबू सिसकी ली, लेकिन आँखों में चमक। 'हाँ पापा... सिखाओ।' अंदर हॉर्नी हो रही—कल्पना में उमेश का लंड चेहरे पर रगड़ता। उमेश की हवस चरम पर—'ये साली... थप्पड़ खाकर भी मुस्कुरा रही।

दिन की धूप घर के आंगन में बिखरी हुई थी, जैसे कोई पुरानी यादें उकेर रही हो। रमा रसोई में काम कर रही थी—सब्जी काटते हुए, मन कहीं और भटक रहा। तभी बाहर से एक परिचित आवाज आई, 'भाभी... रमा दीदी!' रमा का चाकू रुक गया, दिल एक झटके से धड़का। वो झाँका—दरवाजे पर खड़ा था हरि, उसका छोटा भाई, 38 साल का। लंबा-चौड़ा, कंधे चौड़े, चेहरा अभी भी जवानी की चमक से भरा—गाँव से शहर लौटा, नौकरी के सिलसिले में। लेकिन रमा की आँखों में वो पुरानी चिंगारी जाग उठी। 'हरि... तू?' आवाज काँप गई, लेकिन मुस्कान फैल गई। हरि ने झोला नीचे रखा, सीधे रमा को गले लगा लिया—बहन-भाई का बहाना, लेकिन हाथों की पकड़ में वो जवानी की गर्माहट थी। रमा का शरीर सिहर उठा, पुरानी यादें उमड़ आईं—जवानी के वो दिन, जब गाँव के खेतों में, नदी किनारे, उनके बीच वो छिपा रोमांस। 'कितने साल हो गए, दीदी... तू वैसी ही लग रही है।' हरि ने कान में फुसफुसाया, साँसें गर्म। रमा ने धक्का दिया हल्का, लेकिन आँखों में शरम और इच्छा का मिश्रण। 'चुप... उमेश घर पर है। रवि-खुशबू भी।' लेकिन मन में वो पुरानी आग सुलग रही—हरि का स्पर्श, वो चोरी-छिपे किस, जब उमेश शहर में नौकरी की तलाश में था।

हरि ने सामान रखा, चाय माँगी। रमा ने बनाई—हाथ काँपते हुए, चाय में ज्यादा चीनी डाली। दोनों आंगन में बैठे, पुरानी बातें। 'दीदी, याद है नदी किनारे वो रात? तूने कहा था, कभी न भूलूँगी।' हरि की आँखें गहरी, हाथ रमा के हाथ पर रखा—हल्का, लेकिन बिजली की तरह। रमा का चेहरा लाल हो गया, साड़ी के पल्लू से छिपाया। 'हरि... वो जवानी थी। अब परिवार है। लेकिन... हाँ, याद है। तेरा वो स्पर्श...' आवाज धीमी, भावनाओं का सैलाब। अपराधबोध था—उमेश के प्रति, लेकिन हरि की मौजूदगी में शरीर जाग उठा। चूचियाँ तन गईं, कमर में हलचल। हरि ने मुस्कुराया, 'आज रात... पुराने दिनों की तरह?' रमा ने सिर झुकाया, 'नहीं... लेकिन शाम को अकेले में बात करेंगे।' रवि ने देख लिया, 'चाचा!' दौड़कर आया, गले मिला। हरि ने हँसकर टाला, लेकिन रमा की नजरें कह रही थीं—ये रोमांस फिर जागा है, छिपा, लेकिन जिंदा। उमेश स्कूल से लौटा, हरि को देखा—'साला आया? अच्छा।' लेकिन अंदर जलन, रमा की चमक देखकर। दिन बीता, लेकिन हवा में वो पुरानी महक बसी रही।

शाम ढलने लगी, सूरज की लालिमा घर को रंग रही। उमेश छत से उतरा, मन भारी—दोपहर की पढ़ाई में थप्पड़ मारने का अपराधबोध। खुशबू का गाल अभी भी हल्का लाल, लेकिन आँखों में वो चमक। 'खुशबू... बेटा, सॉरी। पापा का गुस्सा फूट गया। चल, आज शाम को मूवी देखने चलें। शहर के सिनेमा हॉल में, नई फिल्म आई है—रोमांस वाली। तेरी पसंद की।' आवाज नरम, लेकिन अंदर हवस की लहर—थप्पड़ मारते हुए बूब्स का दृश्य, रात का स्पर्श। खुशबू ने सिर उठाया, मुस्कुराई—'सच पापा? हाँ, चलूँगी। लेकिन अगली बार थप्पड़ नहीं।' टोन शरारती, आँखों में वही सिहरन। रमा ने सुना, 'अच्छा है, जाओ। हरि तो शाम को घूमने जाएगा।' रवि घर पर रुका। दोनों तैयार हुए—उमेश ने कुर्ता-पायजामा, खुशबू ने सलवार-कमीज, हल्का मेकअप, होंठ गुलाबी। बस में सवार, शहर की तरफ। रास्ते में हाथ छू गए—गलती से, लेकिन दोनों ने महसूस किया। उमेश का लंड हल्का सख्त, खुशबू की सांसें तेज।

सिनेमा हॉल पुराना था, लेकिन भीड़ कम—शहर के बाहरी कोने में। टिकट लिया, अंदर घुसे। अंधेरा, स्क्रीन पर लाइट्स, रोमांस की फिल्म शुरू। सीट्स पर बैठे, कंधे सटे। खुशबू का बूब्स उमेश के बाजू से रगड़ खा रहा—हल्का, लेकिन बिजली की तरह। फिल्म में हीरो-हीरोइन का सीन, किस का। उमेश का हाथ बाजू में सरका, गलती से—लेकिन जानबूझकर?—खुशबू के बूब पर लग गया। नरम, भरा हुआ, ब्लाउज के ऊपर से। खुशबू सिहर उठी, सांस अटकी। 'पापा...' फुसफुसाई, लेकिन हाथ न हटाया। उमेश का दिल धड़का, 'सॉरी बेटा... अंधेरा है।' लेकिन हाथ ठहर गया, हल्का दबाया—निप्पल महसूस हुआ, तना हुआ। खुशबू का चेहरा गर्म हो गया, चूत में गीलापन। 'पापा... छोड़ो ना...' लेकिन टोन में शिकायत कम, इच्छा ज्यादा। वो छोटी सी पहल की—अपना हाथ उमेश के हाथ पर रखा, दबाया हल्का। 'लेकिन... फिल्म अच्छी है न?' आँखें स्क्रीन पर, लेकिन शरीर करीब। उमेश की साँसें तेज, लंड पूरी तरह खड़ा—पैंट में दर्द। 'हाँ बेटा... लेकिन तू... कितनी सॉफ्ट है।' फुसफुसाया, भावनाओं का मिश्रण—प्यार, हवस, अपराध।

फिल्म का अंतराल बीता, लेकिन तनाव बढ़ा। हीरोइन का किस सीन आया—गहरा, लार भरा। उमेश का मन भड़का। वो मुड़ा, खुशबू की तरफ। 'खुशबू... पापा को माफ कर दे।' चेहरा करीब। खुशबू ने आँखें मिलाईं, होंठ काँपे। 'पापा... मैं... मैं चाहती हूँ।' छोटी सी पहल फिर—उसने सिर झुकाया, होंठ उमेश के होंठों से छुए। पहला किस—धीमा, लेकिन गहरा। उमेश चौंका, लेकिन रुका नहीं। होंठ दबाए, जीभ बाहर—खुशबू की जीभ ने स्वागत किया। लार का आदान-प्रदान, गीला, चिपचिपा। 'उम्म... पापा... आपकी जीभ... कितनी गर्म।' खुशबू फुसफुसाई, किस के बीच में, हाथ उमेश की कमर पर। उमेश ने सिसकारी ली, 'बेटी... तेरे होंठ... मीठे जैसे शहद। चूसूँ तुझे पूरा। रात को जो किया... वो गलत था, लेकिन अब... तू मेरी है।' जीभें लिपटीं, सलाइवा टपका—खुशबू के गाल पर, उमेश के ठुड्डी पर। हॉल का अंधेरा ढक गया, सिर्फ उनकी सांसें। 'पापा... थप्पड़ का दर्द... अब ये किस से मिट गया। लेकिन और... छूओ ना मुझे।' खुशबू की आवाज काँपती, कामुक—हवस की लहर। उमेश का हाथ फिर बूब पर, दबाया—किस जारी। 'साली... तेरी चूचियाँ... रात को चूसी थीं, अब असल में। घर जाकर... चोदूँगा तुझे।' फुसफुसाहटें, लार भरी। किस टूटा, लेकिन आग लग चुकी—हॉल से बाहर निकले, हाथों में हाथ। रास्ते में चुप्पी, लेकिन आँखों में वादा। घर लौटे, रमा-हरि की चाय पी, लेकिन मन कहीं और। रात अब नई होने वाली थी।
 

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रात का खाना खत्म हो चुका था, घर में हल्की-हल्की बातें चल रही थीं। रमा ने थाली साफ की, हरि की तरफ चुपके से देखा—उसकी आँखों में वो पुरानी चिंगारी। रवि किताबें लेकर सोने चला गया, थका-हारा। उमेश ने चाय का आखिरी घूँट लिया, मन में उथल-पुथल—शाम का वो किस, सिनेमा हॉल की लार भरी यादें। खुशबू अभी भी टेबल पर बैठी, साड़ी के पल्लू से खेल रही, गालों पर हल्की लाली बाकी। 'बेटा, चल ऊपर छत पर। कुछ बात करनी है।' उमेश ने कहा, आवाज नरम लेकिन आदेश जैसी। खुशबू ने सिर हिलाया, आँखों में शरारत—'हाँ पापा... आ रही हूँ।' रमा ने सुना, मुस्कुराई, लेकिन हरि की तरफ देखा। 'तुम लोग जाओ, हम साफ-सफाई करेंगे।' घर में सन्नाटा पसर गया, सिर्फ झींगुरों की आवाजें।

छत पर चाँदनी बिखरी हुई थी, हवा ठंडी लेकिन गर्माहट भरी। उमेश ने खुशबू को बुलाया, हाथ पकड़कर किनारे पर खड़ा किया। 'खुशबू... शाम का वो किस... पापा को भूल नहीं रहा। तेरे होंठों का स्वाद...' वो झुक गया, गाल पर हल्का किस किया—नरम, रोमांटिक। खुशबू सिहर उठी, हाथ उमेश की कमर पर रखा। 'पापा... आपकी जीभ... अभी भी महसूस हो रही। लेकिन मम्मी-पापा... ये गलत है न?' आवाज काँपती, लेकिन शरीर करीब सरक आया। उमेश ने बालों में उंगलियाँ फिराईं, 'गलत? तू मेरी बेटी है, लेकिन आज से... मेरी रानी।' फिर होंठों पर किस—धीमा, गहरा, जीभें लिपटीं, सलाइवा का हल्का आदान-प्रदान। खुशबू की सांसें तेज, चूचियाँ तन गईं साड़ी में। रोमांस की लहर दौड़ी, लेकिन उमेश का मन कहीं और—ईर्ष्या की ज्वाला। वो पीछे हटा, आँखें सिकुड़ीं। 'लेकिन तू... वो प्रोफेसर? साली, उसके लंड को मुंह देती है तू?'

खुशबू चौंकी, 'पापा... वो तो...' लेकिन उमेश ने बात काटी, हाथ उठाया। 'झूठ मत बोल! मैंने देखा था, कॉलेज में। तेरी वो चूसाई... रंडी बनी हुई!' गुस्सा भरा, लेकिन हवस से लिपटा। खुशबू को घुमाया, साड़ी-पेटीकोट ऊपर सरकाया—गांड नंगी, गोल, सफेद। पहला थप्पड़ पड़ा—जोरदार, चटाक की आवाज। खुशबू चीखी, 'आह... पापा!' लेकिन उमेश रुका नहीं। दूसरा, तीसरा—बारी-बारी दोनों गालों पर। 'ये ले... याद आया? तेरा अफेयर उस बूढ़े के साथ! तेरी चूत उसकी, लेकिन गांड... ये मेरी है!' थप्पड़ों की बौछार—पाँच, छह, सात... गांड लाल हो गई, जलन भरी, लेकिन निशान गहरे। खुशबू रोने लगी, लेकिन कमर झुकाए रखी—आँसू गालों पर, लेकिन चूत गीली। 'सॉरी पापा... वो तो मजा के लिए... आह! मारो ना और... याद दिलाओ!' दर्द, शर्म, लेकिन उत्तेजना। उमेश का लंड सख्त, पैंट में दबा। 'साली रंडी... तेरी गांड मारकर ही सुधरेगी। प्रोफेसर को बोलूँगा, तेरी चूत अब बंद!' आखिरी थप्पड़—सबसे जोरदार, खुशबू का शरीर काँप उठा।

उमेश ने घुटनों पर बैठाया, खुशबू को झुकाया—गांड ऊपर, दरार खुली। चाँदनी में चमकती, लाल निशान। वो झुक गया, जीभ निकाली—पहले दरार पर रगड़ी। नमकीन स्वाद, पसीने का। 'उफ्फ... तेरी गांड की महक... साली, कितनी गंदी है तू। प्रोफेसर को ये चाटता होगा?' जीभ अंदर धकेली, चाटने लगा—गहराई तक, सर्कुलर मोशन में। खुशबू सिसकारी भरने लगी, 'आह... पापा... आपकी जीभ... उफ्फ, गहरा! वो तो नहीं... सिर्फ आप... चाटो ना मेरी गांड, साफ करो!' गंदे संवादों की बाढ़—उमेश: 'तेरी गांड का छेद... कितना कसा हुआ। उंगली डालूँ? या लंड ठूंस दूँ, रंडी बेटी?' जीभ तेज, चाटते हुए थूक टपकाया। खुशबू: 'हाँ पापा... डालो उंगली... प्रोफेसर की तरह नहीं, आप तो मेरा मालिक हो। आह... चूसो मेरी चाटते-चाटते उमेश का हाथ पैंट में—लंड बाहर, सहलाने लगा।

नीचे, घर का अंदरूनी कमरा—रमा और हरि अकेले। खाना साफ करने का बहाना, लेकिन दरवाजा बंद। हरि ने रमा को दीवार से सटा लिया, 'दीदी... दिन भर सहा नहीं गया। तेरी कमर... तेरी चूचियाँ...' रमा सिहर उठी, लेकिन धक्का नहीं दिया। 'हरि... ऊपर उमेश-खुशबू हैं। चुप...' लेकिन हरि ने साड़ी खींची, ब्लाउज खोला—चूचियाँ बाहर, भरी हुई। मुंह में लिया, चूसा जोर से। रमा की सिसकारी, 'आह... हरि... रफ मत... लेकिन... हाँ!' रोमांस नहीं, रफ सेक्स—हरि ने पेटीकोट ऊपर किया, पैंटी फाड़ दी। लंड बाहर—मोटा, काला—सीधा चूत में ठोका। 'दीदी... तेरी चूत... अभी भी कसी हुई! जवानी से चोद रहा हूँ तुझे!' कमर पकड़कर धक्के मारे—जोरदार, बेड हिल उठा। रमा के नाखून हरि की पीठ पर, 'हरि... जोर से... उमेश जैसा नहीं, तू तो जानवर है! आह... फाड़ दे मेरी चूत!' पसीना बहा, थप्पड़ गालों पर, बाल खींचे—रफ, जंगली। हरि के धक्कों से दीवार हिली, लेकिन ऊपर की आवाजें दब गईं। रमा चरम पर, 'हरि... आ... डाल दे अंदर!' हरि ने गटक लिया, लेकिन धक्के न रुके।

फिर, धीमे धीमे, हरि ने रमा को गले लगाया, साँसें तेज। 'दीदी... एक बात कहूँ? खुशबू... तेरी बेटी... वो इतनी हसीन है। दिन में देखा, उसकी कमर... मैं... मैं उसे चाहता हूँ। चोदना चाहता हूँ।' रमा चौंकी, लेकिन हँसी, 'हरि... तू पागल! वो तो उमेश की बेटी... लेकिन... हाँ, वो वैसी ही लगती है जैसी मैं जवानी में। लेकिन सावधान, ये राज़ रहे।' हरि ने सिर हिलाया, लेकिन आँखों में नई भूख। ऊपर से थप्पड़ों की हल्की आवाजें आईं

अगले दिन की सुबह धूप चटकीली थी, लेकिन घर में हवा भारी—रात की आग अभी भी सुलग रही। उमेश स्कूल जाने की बजाय तैयार हो गया, कुर्ता-पायजामा पहने, लेकिन मन में वो फैंटसी घूम रही—खुशबू को चोदने की। नाश्ते पर वो बोला, 'खुशबू बेटा, आज कॉलेज में एक स्पेशल लेक्चर है। पापा छोड़ दूँगा, और शाम तक वेट करूँगा। चल तैयार हो।' खुशबू ने आँखें सिकुड़ीं, लेकिन मुस्कुराई—कल रात के थप्पड़ और चाटने की याद। 'हाँ पापा... लेकिन शाम को जल्दी आना।' रमा ने सुना, 'अच्छा है, हरि तो आज गाँव घूमने गया। रवि घर संभाल लेगा।' रवि ने सिर हिलाया, लेकिन आँखें माँ पर ठहरीं—कल रात की अजीब आवाजें सुनाई दी थीं। उमेश और खुशबू बाहर निकले, पुरानी बाइक पर। रास्ते में उमेश का हाथ कमर पर—हल्का, लेकिन दबाव। 'बेटा... आज पापा तेरी फैंटसी पूरी करेगा। होटल में... तुझे मेरी रानी बनाऊँगा।' खुशबू सिहर उठी, 'पापा... गंदा मत बोलो... लेकिन हाँ, चाहती हूँ।'
शहर पहुँचकर कॉलेज के बहाने उमेश सीधा एक छोटे-से होटल में घुसा—पुराना, लेकिन प्राइवेट रूम्स। रिसेप्शन पर झूठ बोला, 'पत्नी के साथ... मीटिंग।' रूम में घुसे—सादा बेड, कूलर, लेकिन प्राइवेसी। उमेश ने झोला खोला, एक पैकेट निकाला—एक छोटी फ्रॉक, रेड कलर की, नेक डीप, लेंथ घुटनों तक, लेकिन टाइट, गंदी फैंटसी वाली—जैसे कोई स्लट्टी ड्रेस। 'ये पहन बेटा... पापा की फैंटसी। तू मेरी छोटी रंडी लगेगी।' खुशबू ने शरमाते हुए लिया, 'पापा... ये तो बहुत छोटी... लेकिन... ठीक है।' बाथरूम में गई, सलवार-कमीज उतारी, फ्रॉक पहनी—चूचियाँ ऊपर उभरीं, कूल्हे टाइट, गांड की आकृति साफ। बाहर आई, घूमी—'कैसी लग रही हूँ पापा?' उमेश का लंड सख्त, 'उफ्फ... साली, तेरी ये फ्रॉक... चूचियाँ तो बाहर आने को बेताब। आ... पापा को गले लगा।' वो खींच लिया, होंठों पर किस—जोरदार, जीभ अंदर 'मम्म... बेटी, तेरी लार... मीठी रसी। थूक दूँ तुझे।' उमेश ने मुंह से थूक निकाला, खुशबू के होंठों पर गिराया। खुशबू ने चाटा, 'पापा... आपका थूक... गर्म। और दो... मेरी जीभ पर।' किस गहरा, सलाइवा टपकता—उमेश की लार खुशबू के गाल पर, वो चाटती। 'तेरी चूत... फ्रॉक के नीचे गीली हो गई न? पापा की रंडी... चोदूँगा तुझे आज।' हाथ फ्रॉक ऊपर, पैंटी पर दबाया—गीली। 'हाँ पापा... चोदो... लेकिन धीरे... थूक से गीला करो।'
उमेश ने बेड पर पटका, फ्रॉक ऊपर की—पैंटी उतारी, चूत नंगी, बालों वाली, गीली। 'उफ्फ... तेरी चूत... प्रोफेसर को दी थी न? लेकिन आज पापा की।' जीभ निकाली, चूत पर रगड़ी—चाटा, होंठों को चूसा। खुशबू सिसकारी, 'आह... पापा... आपकी जीभ... गहरा! वो तो मुंह में लेती थी, लेकिन आप... चूसो मेरी चूत!' उमेश ने थूक गिराया चूत पर, मला—गीला, चिपचिपा। लंड बाहर निकाला—मोटा, सुपारा चमकता। 'ले... देख तेरे पापा का लंड। थूक दे तू।' खुशबू ने थूक दिया सुपारे पर, हाथ से मला। 'पापा... कितना मोटा... फाड़ देगा मेरी चूत। डालो ना... लार से गीला।' उमेश ने धक्का मारा—आधा अंदर, खुशबू चीखी, 'आह... पापा! धीरे... लेकिन जोर से!' धक्के शुरू—जोरदार, बेड हिला। 'साली रंडी... तेरी चूत कस रही... पापा का लंड चूस रही। थूक... मुंह में ले!' लार टपकती चूचियों पर। 'हाँ पापा... चोदो... आपकी बेटी रंडी है... आह... आ रही हूँ!' उमेश तेज, 'ले... मेरा रस... अंदर डालूँ!' झटके के साथ वीर्य भरा—गर्म, चिपचिपा। दोनों हाँफे, लिपटे। 'पापा... प्यार करते हो न?' 'हाँ बेटी... लेकिन तू सिर्फ मेरी।' फ्रॉक ठीक की, होटल से निकले—कॉलेज के बहाने। शाम तक घर लौटे, चेहरे पर थकान, लेकिन आग बुझी न।
घर पर, रवि अकेला था—माँ रमा बाजार गई, हरि (मामा) अभी लौटा नहीं। लेकिन दोपहर में रमा लौटी, हरि भी साथ—दोनों के चेहरे लाल, साँसें तेज। रवि ने छिपकर देखा—रसोई में, हरि ने रमा को दीवार से सटा लिया, हाथ साड़ी में। 'दीदी... बाजार में तेरी कमर देखकर... खड़ा हो गया।' रमा सिसकी, 'हरि... रवि घर पर... चुप!' लेकिन हरि ने चूचियाँ दबाईं, 'साली... तेरी चूचियाँ... अभी भी जवानी वाली। चूसूँ?' रवि का दिल धड़का—माँ का अफेयर? वो दरवाजे से झाँका, लंड सख्त। रमा ने धक्का दिया, लेकिन हँसी, 'रात को... रफ से चोदना।' हरि ने किस किया, थूक वाला—रवि ने देखा, हाथ पैंट में। दोनों अलग हुए, लेकिन रवि का मन उत्तेजित। शाम को माँ नहाई, ब्रा लटकाई—काली, लेस वाली। रवि चुपके कमरे में घुसा, ब्रा उठाई—माँ की महक, पसीने की। 'मम्मी... आपकी ब्रा... उफ्फ।' लंड बाहर, सहलाया—कल्पना में माँ की चूचियाँ। 'मम्मी... चूसूँगा मैं... चोदूँगा।' स्पीड तेज, वीर्य गिराया ब्रा पर—चिपचिपा, गर्म। ब्रा वापस लटकाई, भागा। रमा ने बाद में देखा, लेकिन सोचा हरि का—मुस्कुराई।
रात गहराई, घर सोया। लेकिन हरि ने चुपके दारू की बोतल निकाली—शहर से लाई। अकेले पी, वो खुशबू के कमरे के बाहर गया, दरवाजा खटखटाया। 'भतीजी... खुशबू... खोल ना। मामू है।' खुशबू जागी, नाइटी में—कल रात पापा की याद। 'मामू? इतनी रात?' दरवाजा खोला, हरि अंदर घुसा, दरवाजा बंद। नशे में लाल चेहरा। 'खुशबू... तू... कितनी हसीन है। दिन से देखा, तेरी कमर... तेरी चूचियाँ। मैं... तुझे चाहता हूँ। प्रपोज कर रहा हूँ—मेरी बन जा। चोदूँगा तुझे हर रात।' खुशबू चौंकी, लेकिन मुस्कुराई'मामू... दारू पी ली? लेकिन... रज़ी हूँ। शर्त ये—तू मेरा गुलाम बनेगा। जो कहूँगा, वो करेगा। मेरी चूत चाटेगा, गांड चाटेगा... बिना सवाल।' हरि नशे में सिर हिलाया, 'हाँ रानी... तेरा गुलाम। आज से।' खुशबू ने बेड पर बिठाया, नाइटी ऊपर—चूत नंगी। 'तो चाट... मेरी चूत। जीभ से साफ कर, गुलाम।' हरि घुटनों पर, झुका—जीभ निकाली, चूत पर रगड़ी। 'उफ्फ... रानी... तेरी चूत... कितनी मीठी। बालों वाली... चूसूँ?' चाटने लगा—गहरा, होंठ चूसे। खुशबू के हाथ उसके बालों में, दबाया। 'हाँ गुलाम... चूस... पापा की तरह नहीं, तू तो कुत्ता है मेरा। लार डाल... गीला कर।' हरि ने थूक गिराया, जीभ अंदर—चट-चट आवाज। 'रानी... तेरी चूत का रस... स्वादिष्ट। गांड भी चाटूँ?' खुशबू सिसकी, 'हाँ... लेकिन आज सिर्फ चूत। जोर से... आ रही हूँ!' चरम पर पहुँची, रस हरि के मुंह पर। हरि चाटता रहा, 'तेरा गुलाम... हमेशा।' खुशबू मुस्कुराई, 'जा सो... कल फिर।' हरि गया, लेकिन राज़ बंध गया—गुलामी का।

अगली सुबह की पहली किरणें खिड़की से चुपके-चुपके घुस रही थीं, जैसे कोई राज़ उजागर करने को बेताब। घर में अभी भी रात की गर्माहट बाकी थी—हवा में हल्की-हल्की पसीने और वीर्य की महक घुली हुई। उमेश की आँखें सबसे पहले खुलीं, बिस्तर पर लेटे हुए वो खुशबू के कमरे की तरफ देख रहा था, जहाँ से हल्की सांसों की आवाज आ रही। रमा अभी सो रही थी, उसके चेहरे पर थकान की लकीरें, हरि के रफ सेक्स की यादें। उमेश का लंड सुबह-सुबह ही हल्का सख्त हो गया—कल होटल की चुदाई की याद, खुशबू की चूत में डाले धक्के, वो फ्रॉक में लिपटी बॉडी। 'साली... आज सुबह ही चखूँगा तुझे।' मन में बड़बड़ाया। वो चुपके से बिस्तर से उतरा, दाँत साफ किये बिना—सुबह की साँसों में वो कड़वापन, जो उसे और गंदा महसूस करा रहा। पैरों पर चलते हुए खुशबू के कमरे में घुसा, दरवाजा धीरे से बंद किया।

खुशबू सो रही थी, नाइटी आधी ऊपर चढ़ी हुई, एक बूब आधा नंगा—गुलाबी निप्पल हल्का तना। उसके बाल बिखरे, चेहरा ताजा लेकिन नींद से भरा। उमेश बिस्तर के पास बैठ गया, हाथ बढ़ाया—गाल पर हल्का स्पर्श। खुशबू की आँखें खुलीं, झपकी ली, फिर मुस्कुराई—'पापा... सुबह-सुबह?' आवाज नींद भरी, लेकिन आँखों में चमक। उमेश झुक गया, चेहरा करीब—'हाँ बेटा... पापा को तेरी याद आ गई। कल रात सोचा तो लंड खड़ा हो गया।' बिना ब्रश के साँसें—कड़वी, सिगरेट और रात के खाने की। खुशबू ने महसूस किया, नाक सिकुड़ी हल्की, लेकिन पीछे न हटी। 'पापा... आपकी साँस... गंदी लग रही। लेकिन... आओ।' वो करीब सरकी, होंठ मिले—धीरे से, लेकिन उमेश ने दबाया। किस गहरा हो गया, जीभ बाहर—खुशबू की जीभ ने जवाब दिया। लार का मेल—उमेश की कड़वी सलाइवा, सुबह की, खुशबू की मीठी, नींद वाली। 'उम्म... बेटी, तेरी जीभ... चूसूँ तुझे। थूक दे... पापा के मुंह में।' उमेश फुसफुसाया, जीभें लिपटीं, चट-चट की आवाज। खुशबू ने थूक दिया—हल्का, गर्म—उमेश ने गटक लिया, फिर अपना थूक उसके मुंह में डाला। 'आह... पापा, आपका थूक... कड़वा लेकिन... उत्तेजक। और... चूसो मेरी जीभ।' किस लंबा चला, लार टपकने लगी—खुशबू के गाल पर, ठुड्डी पर। साँसें तेज, कमरा गर्म हो गया।

उमेश का हाथ नाइटी में घुसा, बूब दबाया—निप्पल मरोड़ा। लेकिन मन कहीं और। 'बेटा... तेरी बगल... सुबह की महक। उठ... पापा चाटेगा।' खुशबू हँसी हल्की, लेकिन उत्साहित—'पापा... गंदा हो आप। लेकिन... हाँ।' वो बाहें ऊपर कीं, नाइटी सरकाई। बगल नंगी—हल्के बाल, पसीने की हल्की महक, सुबह की ताजगी। उमेश झुका, नाक सटा ली—सोंघा। 'उफ्फ... तेरी बगल की खुशबू... पसीने वाली, मीठी। साली, कितनी सेक्सी।' जीभ निकाली, चाटा—धीरे से, त्वचा पर रगड़ा। नमकीन स्वाद, हल्का नम। खुशबू सिहर उठी, 'आह... पापा... आपकी जीभ... गुदगुदा रही। और चाटो... गहरा।' उमेश ने चाटना तेज किया, जीभ अंदर घुमाई—बगल के बालों को भी चूसा। 'तेरी बगल... चूत जैसी गर्म। कल होटल में चोदा था न? आज सुबह ये चाटकर तुझे भेजूँगा।' दूसरी बगल पर मुड़ा, वही—चाटा, थूक गिराया, मला। खुशबू का हाथ उसके बालों में, दबाया। 'पापा... उफ्फ... आपकी लार... मेरी बगल गीली हो गई। कॉलेज में महक आएगी... सब सोचेंगे मैं रंडी हूँ।' दोनों हँसे, लेकिन किस फिर—लार भरा, गंदा। समय बीता, लेकिन उमेश रुका। 'चल... तैयार हो। कॉलेज छोड़ दूँगा।' खुशबू ने मुंह धोया, लेकिन बगलें वैसी ही—गीली, महकती। साड़ी पहनी, बाहर निकले। बाइक पर, रास्ते में उमेश का हाथ कमर पर—'बेटा... शाम को फिर होटल?' खुशबू फुसफुसाई, 'हाँ पापा... लेकिन प्रोफेसर से मिलूँगी पहले।'

कॉलेज में क्लास खत्म होने के बाद, लाइब्रेरी के पीछे वो पुराना रूम। खुशबू पहुँची, साड़ी में थोड़ी सिकुड़ी—बगल की महक अभी बाकी। डॉ. शर्मा इंतजार कर रहे थे, चश्मा ऊपर, लंड पैंट में उभरा। 'खुशबू... आज देर हो गई। क्या बात है?' खुशबू मुस्कुराई, करीब सरकी—'सर... पापा ने छोड़ा। लेकिन आपकी याद में गीली हूँ।' शर्मा ने हाथ बढ़ाया, कमर पकड़ी। 'साली... तेरी साड़ी में आज कुछ अलग। बगल से महक आ रही... क्या किया तूने?' खुशबू हँसी, साड़ी का पल्लू सरकाया—ब्लाउज खुला, चूचियाँ झलकीं। 'सर... सुबह पापा ने... चाटा। लेकिन आप... चूस लो।' शर्मा की साँसें तेज, झुका—बगल पर नाक सटाई। 'उफ्फ... तेरी बगल... लार वाली? तेरे पापा ने चाटा? रंडी, तू घर में भी चुदती है?' जीभ निकाली, चाटा—गहरा, थूक डाला। खुशबू सिसकी, 'हाँ सर... पापा का राज़। लेकिन आपका लंड... आज मुंह में लूँगी।' शर्मा ने पैंट खोली, लंड बाहर—मोटा, सुपारा चमकता। 'ले... चूस रंडी। तेरी बगल चाटते हुए तू चूसेगी।' खुशबू घुटनों पर, मुंह में लिया—चूसाई शुरू, जीभ घुमाई। 'मम्म... सर, आपका लंड... कड़वा स्वाद। थूक दो मेरे मुंह में।' शर्मा ने थूक गिराया, चाटा बगल। 'तेरी चूत... शाम को चोदूँगा। घर जाकर पापा को बोलना, तेरी गांड उनकी।' रोमांस गंदा, लेकिन गहरा—हाथ चूचियों पर, थप्पड़ हल्के। क्लास की घंटी बजी, लेकिन वो रुके नहीं—सर... आ रही हूँ शाम को। लेकिन पापा का इंतजार भी।' शर्मा हँसा, 'दोनों को संभाल रंडी... तू मेरा सामान है।' अलग हुए, लेकिन आग बाकी।

दिन के मध्य, घर सूना था—उमेश स्कूल में, खुशबू कॉलेज में, हरि बाहर। रमा रसोई में काम कर रही, साड़ी में पसीना बह रहा—गर्मी से। रवि अपना कमरा में, किताबें फैलाईं लेकिन मन भटका। कल की ब्रा वाली मुठ की याद, माँ की चूचियाँ हरि के हाथों में। लंड सख्त हो गया। वो बिस्तर पर लेटा, पैंट नीचे—लंड पकड़ा, सहलाने लगा। 'मम्मी... रमा मम्मी... तेरी चूचियाँ... चूसूँगा मैं। तेरी चूत... भाई जैसी। आह... मम्मी!' आवाज हल्की, लेकिन सिसकारियाँ। स्पीड तेज, कल्पना में माँ को नंगा। तभी दरवाजा खुला—रमा अंदर घुसी, पानी का गिलास लिये। 'रवि... बेटा, पढ़ रहे हो न?' वो रुक गई, आँखें फटीं—बेटा लंड सहला रहा, 'मम्मी' नाम लेते हुए। रवि चौंका, चादर खींची, चेहरा लाल। 'म... मम्मी! सॉरी... मैं...'

रमा का दिल बैठ गया—शॉक, लेकिन कहीं गहरे में पुरानी यादें, हरि के साथ जवानी। गिलास नीचे रखा, बिस्तर पर बैठी। 'रवि... क्या कर रहे हो? और... मेरा नाम? बेटा, ये गलत है। तू मेरा बेटा है, ऐसा सोचना भी पाप है।' आवाज नरम, लेकिन सख्त—हाथ उसके कंधे पर। रवि सिर झुकाया, लेकिन लंड अभी भी सख्त, चादर के नीचे उभरा। 'मम्मी... सॉरी। लेकिन कल रात... आपकी आवाजें... मामू के साथ। मैंने देखा... आपकी चूचियाँ... उफ्फ। मैं कंट्रोल नहीं कर पाया। आप इतनी हसीन हो।' आँखें नम, लेकिन इच्छा साफ। रमा का चेहरा गर्म हो गया—अपराध, लेकिन शरीर में सिहरन। 'बेटा... वो... हरि तो मेरा भाई... पुरानी बातें। लेकिन तू... नहीं। पढ़ाई पर ध्यान दे। माँ तेरी है, लेकिन...' रवि न हिला, चादर सरकी हल्की—लंड झलक गया। 'मम्मी... समझाओ मत। मैं जानता हूँ गलत है, लेकिन तुझे सोचकर... मुठ मारता हूँ रोज। तेरी साड़ी में कमर... तेरी गांड। बस एक बार... छू लूँ?' आवाज काँपती, नादान लेकिन भूखी।

रमा ने सिर झुकाया, मन उलझा—उमेश से रूटीन, हरि से रफ, अब बेटा? लेकिन माँ का प्यार, और कहीं हवस की चिंगारी। 'रवि... नहीं। लेकिन... अगर मान जाऊँ तो क्या? तू मेरी चूत देखना चाहता है? चूसना?' आवाज धीमी, लेकिन कामुक। रवि की साँस अटकी, 'हाँ मम्मी... तेरी चूत... बालों वाली? चाटूँगा मैं। तेरी गांड... थप्पड़ मारूँगा।' रमा सिहर उठी, साड़ी का पल्लू सरकाया—ब्लाउज खुला, चूचियाँ आधी नंगी। 'बेटा... ये गंदा है। लेकिन... देख ले। माँ की चूचियाँ... छू।' रवि का हाथ बढ़ा, दबाया—नरम, गर्म। 'उफ्फ मम्मी... कितनी भरी... निप्पल्स कड़े। चूसूँ?' रमा ने सिर हिलाया, 'हाँ... लेकिन सिर्फ चूस।' रवि झुका, मुंह में लिया—चूसा, जीभ घुमाई। रमा सिसकी, 'आह... रवि... तेरी जीभ... हरि जैसी। लेकिन तू मेरा बेटा... उफ्फ।' 'मम्मी... तेरी चूत... गीली है न? उंगली डालूँ?' रमा ने रोका, लेकिन मुस्कुराई, 'नहीं... आज बस चूस। कल... सोचूँगी।' रवि ने चूसा लंबे समय, लार टपकाई।

शाम की लालिमा सड़क पर बिखर रही थी, जैसे कोई पुरानी यादें उकेर रही हो। उमेश की पुरानी बाइक धीरे-धीरे गाँव की ओर बढ़ रही थी, इंजन की गड़गड़ाहट हवा में घुली हुई। खुशबू पीछे बैठी, साड़ी का पल्लू हवा में लहरा रहा, लेकिन उसकी कमर उमेश की पीठ से सटी हुई—हल्का दबाव, जो सुबह के किस और बगल चाटने की याद दिला रहा। कॉलेज से लौटते हुए दोनों चुप थे, लेकिन हवा में वो तनाव भरा रोमांस लटका हुआ था। प्रोफेसर के साथ लाइब्रेरी रूम की वो गंदी चूसाई अभी भी खुशबू के होंठों पर महसूस हो रही—शर्मा सर की लार का नमकीन स्वाद, लेकिन अब पापा की कड़वी साँस की याद ने उसे कवर कर दिया। उमेश ने बाइक थोड़ा धीमा किया, एक सुनसान मोड़ पर, और पीछे मुड़कर फुसफुसाया, 'बेटा... दिन भर क्या किया? प्रोफेसर का लंड फिर मुंह में लिया न? साली, तेरी चूसाई की कल्पना से पापा का लंड खड़ा रहता है।'

खुशबू की सांसें तेज हो गईं, हाथ उमेश की कमर पर कस गया—साड़ी के नीचे चूत में हल्की हलचल। 'पापा... हाँ, लिया। सर ने मेरी बगल चाटी, आपकी लार वाली महक सूंघी। बोले, "रंडी, घर में कौन चाटता है तुझे?" मैंने कहा, "पापा... मेरे पापा।" वो जल उठे, लंड मुंह में ठोंसे और बोले, "आज शाम तेरी चूत फाड़ूँगा।"' आवाज धीमी, लेकिन कामुक—हवा में घुलती हुई, जैसे कोई गुप्त कबूलनामा। उमेश का चेहरा गर्म हो गया, ईर्ष्या की ज्वाला लेकिन साथ ही उत्तेजना की लहर। बाइक और धीमी, एक खेत के किनारे रुकी। 'उफ्फ... साली, तू प्रोफेसर को मेरी बातें बताती है? तेरी चूत... उसकी हो गई? लेकिन पापा की नहीं?' हाथ पीछे बढ़ाया, खुशबू की जांघ पर रखा—साड़ी के ऊपर से दबाया, उंगलियाँ ऊपर सरकाईं। खुशबू सिहर उठी, पैर फैलाए हल्के। 'नहीं पापा... सर तो मजा के लिए। लेकिन आप... आपकी जीभ मेरी बगल में... उफ्फ, वो कड़वापन। आज कॉलेज में हर क्लास में सोचा, शाम को फिर चाटोगे न? मेरी चूत में उंगली डालकर थूक दोगे?' बाइक के इंजन की आवाज दब गई उनकी फुसफुसाहट में।

उमेश ने बाइक साइड में खड़ी की, मुड़कर खुशबू को देखा—आँखें लाल, लंड पैंट में दर्द कर रहा। 'बेटा... तू जानती है पापा कितना पागल हो गया तुझसे। सुबह तेरी बगल चाटी, तो लगा जैसे चूत चाट रहा हूँ। बालों वाली, पसीने वाली... कितनी गंदी महक, लेकिन पापा को दीवाना बना दी। प्रोफेसर को बोल, तेरी गांड अब पापा की। कल होटल में फिर फ्रॉक पहनना, लेकिन इस बार गांड में लंड लूँगा। थूक से गीला करके, धीरे-धीरे फाड़ूँगा। तू चिल्लाएगी, "पापा... दर्द हो रहा, लेकिन जोर से!"' खुशबू का चेहरा लाल, साड़ी के नीचे हाथ सरका लिया—पैंटी पर दबाया खुद। 'हाँ पापा... फाड़ दो मेरी गांड। सर तो गांड पर सिर्फ थप्पड़ मारते हैं, लेकिन आप... अंदर डालोगे। कल्पना करो, मैं घुटनों पर, आप पीछे से... "ले रंडी बेटी, पापा का लंड तेरी गांड में!" और मैं... "हाँ पापा, चोदो अपनी बेटी को, प्रोफेसर को भूल जाऊँगी।"' उमेश का हाथ जांघ पर ऊपर, पेटीकोट में घुसा—चूत पर उंगली रगड़ी। 'आह... गीली हो गई साली। शाम को घर पहुँचकर रमा सो जाए, तो तेरे कमरे में आऊँगा। लेकिन पहले... ये ले।' एक उंगली अंदर धकेली, धीरे-धीरे हिलाई। खुशबू सिसकी, 'पापा... बाइक पर... कोई देख लेगा। लेकिन... और गहरा... थूक दो उंगली पर।' उमेश ने उंगली निकाली, थूक लगाया, फिर अंदर—गीला, चिपचिपा। संवाद चला, बाइक फिर चली—घर पहुँचे, लेकिन आग सुलगती रही।

रात गहरा चुकी थी, घर में सन्नाटा पसर गया। रमा और हरि अपने कमरे में, रवि सो चुका—दिन की घटना की थकान से। खुशबू ने किताबें उठाईं, नाइटी पहने—पतली, बिना ब्रा की, चूचियाँ उभरीं। वो उमेश के कमरे के दरवाजे पर खड़ी, धीरे से खटखटाया। 'पापा... मैथ्स की पढ़ाई... परीक्षा नजदीक है।' आवाज मासूम, लेकिन आँखों में शरारत। उमेश बिस्तर पर लेटा था, किताबें फैलाईं—लेकिन मन पढ़ाई में न था। 'आ जा बेटा... लेकिन आज सख्ती से। गलती हुई तो सजा मिलेगी।' दरवाजा बंद किया, बेड पर बैठे। खुशबू बगल में, किताब खोली—अलजेब्रा के सवाल। पहला सवाल सुलझाया, लेकिन गलत। उमेश का चेहरा सख्त, हाथ उठा—गाल पर थप्पड़, हल्का लेकिन चुभने वाला। 'अरे साली... ये भी नहीं आता? तेरी बुद्धि प्रोफेसर के लंड पर लगी रहती है क्या?' थप्पड़ की जलन गाल पर फैली, लेकिन खुशबू की सांसें तेज—हॉर्नी फीलिंग जागी। 'सॉरी पापा... गलती हो गई। लेकिन... मारो ना, सजा दो।' उमेश ने मुस्कुराया, किताब नीचे की—खुशबू को घुमाया, नाइटी ऊपर। गांड नंगी, गोल। दूसरा थप्पड़—गांड पर, चटाक! 'ये ले रंडी... गलती का फल। तेरी गांड... कितनी सफेद, लेकिन आज लाल कर दूँगा। प्रोफेसर को दिखाएगी न? "देखो सर, पापा ने मारा।"' 'आह... पापा, दर्द हो रहा... लेकिन अच्छा लग रहा। और मारो... बोलो, "तेरी चूत भी मारूँगा थप्पड़ से।"'

दूसरा सवाल—फिर गलत। उमेश ने गाल पर थप्पड़ मारा, जोरदार—लाल निशान। 'साली बेटी... तू जानबूझकर गलत कर रही? पापा का लंड खड़ा करने के लिए?' लेकिन फिर गांड पर दो थप्पड़। 'चटाक! चटाक! ये ले... तेरी गांड फड़क रही। कल होटल में चोदते वक्त ये निशान देखूँगा, और कहूँगा, "गलती की सजा, अब लंड की।"' खुशबू की आँखें नम, लेकिन होंठ काँपते मुस्कान से— 'पापा... हाँ, जानबूझकर। आपका थप्पड़... मेरी चूत को गुदगुदा रहा। मारो और... गाल पर, गांड पर। बोलो, "रंडी बेटी, तेरी फैंटसी क्या है? पापा को बता।"' तीसरा सवाल गलत—थप्पड़ों की बौछार: गाल पर एक, गांड पर तीन—चटाक-चटाक-चटाक! 'उफ्फ... साली, तेरी गांड लाल हो गई। प्रोफेसर को बोलूँगा, "तेरी स्टूडेंट को मैं सिखा रहा, थप्पड़ से।"' उमेश का लंड बाहर—खुशबू की गांड पर रगड़ा। 'बेटा... तू इतनी हॉर्नी हो गई? चूत गीली... पापा की उंगली लेगी?' खुशबू सिसक रही, लेकिन उत्साहित—'हाँ पापा... लेकिन पहले मेरी फैंटसी सुनो।'

खुशबू ने किताब फेंकी, उमेश की गोद में सरका—आँखें बंद, फुसफुसाई। 'पापा... मेरी डर्टी फैंटसी... आप मुझे बाँध लो। कमरे में, रस्सी से हाथ बाँधो। फिर थप्पड़ मारो—गाल, चूचियाँ, गांड, चूत पर। हर थप्पड़ के बाद कहो, "ले रंडी, प्रोफेसर भूल जा।" फिर... आपका लंड मुंह में ठूंस दो, गला तक। थूक से गीला करके, चोदो मुंह को। उसके बाद चूत में, गांड में—एक साथ दो उंगलियाँ डालकर। और अंत में... आपका रस चेहरे पर, बालों में, चूचियों पर। मैं चिल्लाऊँगी, "पापा... और... मैं आपकी गुलाम हूँ!"' खुशबू का चेहरा शर्म से लाल, लेकिन उत्तेजना से चमकता। उमेश का दिल धड़का, आँखें चमकीं—खुशी की लहर, जैसे कोई सपना पूरा। 'बेटा... उफ्फ... तू... मेरी फैंटसी से भी गंदी! पापा बहुत खुश है... तू सच्ची रंडी बेटी है। कल होटल में यही करेंगे—बाँधूँगा तुझे, थप्पड़ बरसाऊँगा। तेरा हर हिस्सा मेरा। प्रोफेसर को भूल, सिर्फ पापा का लंड।' वो खुशबू को गले लगा लिया, किस किया—लंबा, लार भरा। किताबें बिखरीं, लेकिन पढ़ाई भूल उमेश का मन उछल रहा—बेटी की डर्टीनेस ने उसे और दीवाना बना दिया।

रात का सन्नाटा घर पर गहरा था, लेकिन रमा का मन उछल रहा—होली की रात, वो मौका जो साल में एक बार आता है। रसोई में अकेली, वो लड्डू गूंध रही थी—गुड़, बेसन, घी से बने, मोटे-मोटे। हरि बाहर धूम्रपान कर रहा था, उमेश और बच्चे सो चुके। लेकिन रमा के दिमाग में प्लान पक्का था—पुरानी यादें, हरि के साथ जवानी की होली, जब भांग के नशे में दोनों नदी किनारे लिपटे थे। 'इस बार... सबको नशा दूँगी। परिवार की आग भड़काऊँगी।' वो अलमारी से भांग का छोटा पैकेट निकाला—गाँव के पंडित जी से चुपके लिया। लड्डू में मिलाई—हर एक में थोड़ी-थोड़ी, मीठेपन में घुल जाए। उमेश के लिए दो, रवि के लिए एक बड़ा, खुशबू के लिए भी—'बेटा... तू भी मचलेगी आज।' हरि के लिए अलग रखा, लेकिन उसमें ज्यादा—'मेरा भाई... नशे में फिर जानवर बनेगा।' लड्डू ढक दिए, मुस्कुराई—'कल होली... रंगों की होली नहीं, हवस की होली।'

अगले दिन होली की धूम मच गई। गाँव में ढोल-नगाड़े, रंग उड़ रहे—लाल, हरा, नीला। घर का आंगन गीला, सब नहा-धोकर बाहर। रमा ने लड्डू बाँटे—'खाओ सब, होली का प्रसाद।' सबने खाया, मीठा लगे। उमेश ने दो गटक लिए, 'अच्छा है रमा... लेकिन कुछ तीखा सा।' रवि ने चाव से खाया, 'मम्मी... स्वादिष्ट!' खुशबू ने हँसकर, 'मम्मी, इसमें क्या मिलाया? मन उड़ने लगा।' हरि ने आँख मारकर, 'दीदी... तेरा हाथ... जादू है।' भांग धीरे-धीरे चढ़ने लगी—सबके चेहरे लाल, हँसी बेपरवाह। रंग खेलने लगे—उमेश ने खुशबू पर रंग मला, हाथ कमर पर रुका। रवि ने रमा को गीला किया, पानी की बौछार से साड़ी चिपक गई—चूचियाँ उभरीं। हरि ने रमा को गले लगाया, 'होली है दीदी... रंग लगाओ।' लेकिन नशे में हाथ फिसला, गांड पर दबाया। रमा सिसकी हल्की, लेकिन हँसी। खुशबू ने हरि पर रंग फेंका, 'मामू... आज तो मचलोगे!'

खुशी के बीच, रमा का मन रवि पर ठहर गया—बेटा, नशे में चेहरा लाल, आँखें चमकतीं। दिन की वो घटना—बेटे का लंड सहलाना, चूचियाँ चूसना। 'आज... पूरा कर लूँ।' वो रवि को आंगन के कोने में खींच लिया, रंग के बहाने। 'बेटा... मम्मी को रंग लगाओ... गहरा।' रवि का नशा चढ़ा, हाथ काँपते—साड़ी पर रंग मला, लेकिन कमर पकड़ी। 'मम्मी... आपकी कमर... कितनी नरम। कल की तरह... चूचियाँ दबाऊँ?' रमा ने सिर हिलाया, नशे में बिंदास—'हाँ रवि... लेकिन आज... और आगे। मम्मी की चूत... तेरी है आज।' साड़ी ऊपर सरकाई, पेटीकोट नीचे—पैंटी गीली। रवि का लंड सख्त, पैंट फाड़ता। 'मम्मी... आपकी चूत... बालों वाली, गुलाबी। लंड डालूँ?' रमा ने दीवार से सटा लिया, पैर फैलाए—'डाल बेटा... जोर से। मम्मी की चुदाई... तेरे पापा से बेहतर। आह!' रवि ने पैंट नीचे की, लंड बाहर—युवा, मोटा—सीधा चूत में ठोका। धक्के मारे—जोरदार, नशे में बिना रुके। 'उफ्फ मम्मी... तेरी चूत... कस रही, रस टपक रहा। चोदूँगा रोज!' रमा सिसकारियाँ, नाखून पीठ पर—'हाँ रवि... चोद... मम्मी रंडी तेरी। हरि को देखकर जलता था न? अब मैं तेरी। आह... गहरा!' चुदाई तेज, आंगन में रंग उड़ रहे, लेकिन कोने में छिपे—पसीना, रस, थप्पड़ हल्के। 'मम्मी... रस डालूँ अंदर!' रमा ने दबाया, 'हाँ... भर दे!' वीर्य भरा, गर्म।

इधर, खुशबू का नशा चढ़ा—भांग ने शरारत जगाई। हरि को पकड़ा, आंगन में घसीटा—'मामू... आज होली, तू मेरा गुलाम। चल, पीछे।' हरि नशे में हँसा, लेकिन आज्ञाकारी—'हाँ रानी... तेरा क्या कहना।' खुशबू ने उसे नीम के पेड़ के पीछे बिठाया, नाइटी जैसी साड़ी ऊपर—गांड नंगी। 'मामू... तेरी गुलामी याद? हाथ उठाया, थप्पड़ मारा—गांड पर, जोरदार। 'चटाक! ये ले... मेरी चूत चाटने का इनाम।' हरि सिसका, लेकिन लंड सख्त—'आह रानी... मारो... तेरी गांड पर थप्पड़ खाने का मन कर रहा।' खुशबू ने और मारा—पाँच-छह, लाल निशान। 'साली गुलाम... तेरी जीभ मेरी चूत में डाल। लेकिन पहले... चाट मेरी बगल।' हरि ने झुका, बगल चाटी—नमकीन, रंग वाली। खुशबू ने बाल पकड़े, दबाया—'चूस... कुत्ता! तू रमा मम्मी को चोदता है, लेकिन मैं तेरी मालकिन।' हरि सिसक रहा, लेकिन मजा लेता—'रानी... तेरी बगल... स्वादिष्ट। चूत चाटूँ?' खुशबू ने पैर फैलाए, 'हाँ... लेकिन जोर से।' हरि चाटने लगा, लेकिन खुशबू ने उंगली डाली उसके मुंह में—'चूस... गंदा गुलाम। आज तेरी गांड में उंगली डालूँगी।' खुशबू हँस रही, हरि गिड़गिड़ा रहा। 'रानी... और... मैं तेरा कुत्ता।' होली का रंग उनके पसीने में घुला।

होली की धूम में उमेश का नशा भी चढ़ा—खुशबू को देखा, फ्रॉक वाली याद। 'बेटा... चल बाथरूम। रंग धो लें।' खुशबू मुस्कुराई, 'हाँ पापा... लेकिन गंदे से।' बाथरूम में घुसे, दरवाजा बंद—पानी चलाया, लेकिन रंग न धुला। उमेश ने साड़ी खींची, नंगा किया—'साली... तेरी बॉडी रंगों में चमक रही। चूचियाँ... दबाऊँ?' 'हाँ पापा... दबाओ। कल की फैंटसी... बाँधना भूल गए। आज थप्पड़ मारो।' उमेश ने गाल पर थप्पड़ मारा, 'चटाक! रंडी बेटी... प्रोफेसर का लंड सोचा आज?' खुशबू सिहरी, 'हाँ पापा... लेकिन आपका बेहतर। चोदो... जोरदार।' उमेश ने लंड बाहर निकाला, दीवार से सटा दिया—'ले... तेरी चूत में। गंदा बोलूँगा। तेरी चूत... बालों वाली रंडी चूत। थूक!' थूक गिराया चूत पर, धक्का मारा—जोरदार, पानी की बौछार के बीच। 'आह... पापा... फाड़ दो! आपका लंड... मोटा, नसों वाला। प्रोफेसर का पतला है।' चुदाई तेज—धक्के, थप्पड़ गांड पर। 'साली... तेरी गांड... कल फैंटसी में फाड़ूँगा। आज चूत भर दूँगा। बोल, "पापा... रस दो!"' खुशबू चिल्लाई, 'हाँ... रस दो चूत में! आह... आ रही हूँ!' उमेश झटके मारा, वीर्य भरा—गर्म, चिपचिपा। पानी से धुला, लेकिन निशान बाकी। 'बेटा... प्यार है तुझसे।' किस किया, बाहर निकले.

इसी बीच, हरि ने आंगन में रमा-रवि का सीन देख लिया—पीछे से, कोने में चुदाई। नशे में हँसा, लेकिन जलन। 'दीदी... बेटे के साथ? साली... रंडी है तू।' लेकिन लंड सख्त। वो चुपके बाथरूम की तरफ गया, लेकिन रमा ने देख लिया। होली खत्म, शाम ढली—सब थके। रात को रमा ने हरि को कमरे में बुलाया, रवि को भी—'आओ दोनों... मम्मी सब संभालेगी।' दरवाजा बंद। रमा नंगी हो गई, घुटनों पर। 'हरि... तूने देखा न? लेकिन आज... दोनों के लंड चूसूँगी।' हरि ने पैंट खोली, लंड बाहर—'दीदी... रंडी... चूस।' रवि घबरा गया, लेकिन नशा बाकी—'मम्मी... मामू के साथ?' रमा ने दोनों लंड पकड़े—रवि का युवा, हरि का मोटा। 'हाँ बेटा... चूसूँगी दोनों को। ले... मुंह में।' पहले हरि का मुंह में लिया—चूसा, जीभ घुमाई। 'मम्म... भाई... तेरा लंड... जवानी का स्वाद।' फिर रवि का—'बेटा... तेरा... ताजा। चूस मम्मी।' दोनों को बारी-बारी चूसा—लार टपकती, थूक डाला। हरि: 'दीदी... गला तक ले... रंडी!' रवि: 'मम्मी... आह... आपकी जीभ... चोद रही।' रमा ने दोनों को रगड़ा, चूसा—'दोनों का रस... मुंह में लूँगी।' चरम पर दोनों फूटे—वीर्य मुंह में, गटक लिया। रमा मुस्कुराई, 'अब सो जाओ... होली की याद बनेगी।'

अगले दिन की सुबह होली की थकान से भरी हुई थी, घर का आंगन अभी भी रंगों के धब्बों से सजा हुआ, हवा में भांग की हल्की महक बाकी। रमा ने चाय बनाई, चेहरे पर होली की चमक—रात के दोनों लंड चूसने की यादें मन को गुदगुदा रही थीं। हरि कमरे से निकला, थका लेकिन संतुष्ट, रवि अभी सो रहा था। उमेश और खुशबू नाश्ते पर थे, हरि ने चाय का कप लिया, गंभीर हो गया। 'दीदी... उमेश भैया... मैं कल गाँव लौट रहा हूँ। नौकरी का काम है, लेकिन... इच्छा है, तुम्हें और रवि को साथ ले जाऊँ। गाँव में कुछ दिन रुकना, पुरानी यादें ताजा करें। रवि को भी घुमाऊँगा, खेत-खलिहान दिखाऊँगा।' आवाज में लालच—रमा को साथ ले जाने का, रात की गुलामी और चुदाई का। रमा का दिल धड़का, लेकिन मुस्कुराई—'हरि... अचानक? लेकिन हाँ, अच्छा रहेगा। उमेश... क्या कहते हो?' उमेश ने सिर हिलाया, मन में राहत—हरि की मौजूदगी से खुशबू पर नजर कम रहेगी। 'हाँ भाई... जाओ। रमा को आराम मिलेगा, रवि को नया अनुभव।' लेकिन अंदर हवस की चिंगारी—हरि के जाने से खुशबू ज्यादा समय मिलेगा।

खुशबू ने चाय पीते हुए आँखें चमकाईं—'मामू... मम्मी-भाई के साथ जाओ। पापा और मैं घर संभाल लेंगे।' मन में खुशी— उमेश ने उसके पैर के नीचे पैर रगड़ा टेबल के नीचे, फुसफुसाया, 'बेटा... खुश हो न? अब रातें हमारी।' खुशबू सिहर उठी, 'हाँ पापा... फैंटसी पूरी करेंगे।' सब सहमत हो गए, लेकिन हवा में वो तनाव—हरि की नजर रमा पर ठहरी, रवि की नींद टूटने को। दिन बीता पैकिंग में, शाम को बस स्टैंड पर पहुँचे—उमेश ने विदाई दी, 'सावधान रहना।' लेकिन आँखों में चमक—घर अकेला।

शाम की AC बस गाँव की ओर रवाना हुई, सीट्स आरामदायक, लेकिन भीड़ कम—रमा बीच वाली सीट पर, हरि बगल में, रवि दूसरी तरफ। खिड़की से हवा आ रही, लेकिन कमरे की गर्माहट बस में फैल गई। बस चली, लाइट्स धीमी—हरि ने पहले हाथ बढ़ाया, रमा की जांघ पर। 'दीदी... होली की याद... तेरी चूत में रवि का लंड, और मैं देखता रहा। जल गया।' फुसफुसाहट, गंदी। रमा का चेहरा लाल, लेकिन नशा बाकी—'हरि... चुप। बेटा सुन लेगा।' लेकिन रवि ने सुना, हाथ दूसरी तरफ से कमर पर रखा। 'मम्मी... मैं भी... होली में चोदा था न? अब बस में... दूध दबाऊँ?' दोनों तरफ से हाथ—हरि और रवि ने एक साथ साड़ी के ऊपर से चूचियाँ दबाईं। नरम, भरी हुई—रमा सिसकी ली, 'आह... दोनों... एक साथ? साली रंडी बना दिया मुझे।' हरि: 'दीदी... तेरी चूचियाँ... भाई और बेटे के हाथों में। दबाओ रवि... निप्पल मरोड़ो।' रवि ने दबाया, 'मम्मी... कितनी मोटी... चूसूँ? बस में?' रमा ने सिर हिलाया, पल्लू सरकाया—ब्लाउज ऊपर, चूचियाँ आधी नंगी। दोनों झुके, बारी-बारी चूसे—हरि पहले, जीभ घुमाई। 'मम्म... दीदी, तेरा निप्पल... कड़वा होली का रंग। चूसूँ पूरा।' रवि ने दूसरा लिया, 'मम्मी... आपका दूध... मीठा। मामू... देखो, मम्मी की चूची कस रही।' रमा के हाथ दोनों के लंड पर—पैंट में दबाए। 'उफ्फ... दोनों के लंड... मोटे। होली में चूसे थे,

किस शुरू.. हरि ने पहले होंठ दबाए, जीभ अंदर—लार भरा, गंदा। 'दीदी... तेरी लार... रंडी वाली। थूक दे... भाई के मुंह में।' रमा ने थूक दिया, चूसा। रवि ने बारी ली, 'मम्मी... आपकी जीभ... मेरी तरह नरम। चूसूँ गला तक?' किस लंबा, लार टपकती—रमा के गाल पर, हरि ने चाटा। 'साली... तेरी चूत... गीली हो गई न? रवि... छू ले।' रवि का हाथ साड़ी में घुसा, पेटीकोट ऊपर—पैंटी पर दबाया। 'मम्मी... हाँ, गीली... रस टपक रहा। चाटूँ?' रमा ने पैर फैलाए हल्के, 'हाँ बेटा... चाट... लेकिन चुपके से।' रवि झुका, साड़ी के नीचे मुंह—पैंटी सरकाई, जीभ चूत पर। नमकीन रस, बालों वाली। 'उफ्फ मम्मी... तेरा चूत का पानी... स्वादिष्ट। होली का रंग जैसा। चूसूँ होंठ?' चाटने लगा—धीरे, जीभ अंदर। रमा सिसकारी दबाई, 'आह... रवि... तेरी जीभ... गहरा। हरि... तू भी देख। तेरी बहन... बेटे से चटवा रही।' हरि हँसा, लंड सहलाया—'दीदी... रंडी है तू। रवि... चूस जोर से, मम्मी का रस पी।' चुदाई का स्वाद—रवि चाटता रहा, रस गटकता। 'मम्मी... और रस... आ रहा।' रमा काँप उठी, चरम पर—'हाँ... ले ले बेटा!' रस बहा, रवि ने चाट लिया।

बस बीच में रुकी—एक ढाबे पर, रात गहरा चुकी। हरि ने रमा को खींचा, 'दीदी... पेशाब लगी? चल... पीछे।' रमा ने सिर हिलाया, नशा और भूख। ढाबे के पीछे, झाड़ियों में—हरि ने साड़ी ऊपर की, पेटीकोट नीचे। 'हरि... पेशाब... लेकिन तू...' हरि घुटनों पर, 'दीदी... गंदा बोल। तेरी चूत से पेशाब पीऊँगा। रंडी बहन... छोड़ दे।' रमा ने पैर फैलाए, धार शुरू—पेशाब की सुनहरी धार। हरि ने मुंह सटा लिया, पीने लगा—गर्म, नमकीन। 'उफ्फ... दीदी, तेरा पेशाब... मीठा। पीऊँ पूरा?' रमा सिसकी, 'हाँ भाई... पी... तेरी बहन का पेशाब... गुलाम बना दिया।' धार तेज, हरि गटकता—कुछ टपका ठुड्डी पर। पीने के बाद, हरि ने मुंह नहीं हटाया—गांड पर हाथ, दरार खोली। 'अब... तेरी गांड चाटूँ। होली की तरह... गंदी।' जीभ निकाली, दरार पर रगड़ी—नमकीन, पेशाब की बूंदें। 'आह... दीदी, तेरी गांड का छेद... कितना कसा। चाटूँ अंदर?' जीभ धकेली, चाटने लगा—गहरा, सर्कुलर। रमा काँप उठी, 'हरि... तेरी जीभ... गांड में... उफ्फ, गंदा लेकिन मजा। चूस... बहन की गांड का रस। हरि: 'साली... तेरी गांड... पेशाब की महक। उंगली डालूँ? फाड़ दूँ?' रमा: 'हाँ... डाल... लेकिन धीरे। रवि को बता दूँगी, तू बहन की गांड चाट रहा।' हरि ने उंगली डाली, चाटता रहा—पसीना, पेशाब का मिश्रण। 'दीदी... तू रंडी है... गाँव पहुँचकर चोदूँगा।' रमा चरम पर फिर, 'आह... ले... गांड का रस!' हरि चाटता रहा। वापस बस में लौटे, चेहरे गीले

घर में सन्नाटा पसर गया था रमा, रवि और हरि के गाँव चले जाने के बाद, लेकिन उमेश के चेहरे पर एक अजीब सी चमक थी—खुशी की, जैसे कोई लंबे इंतजार का फल मिल गया हो। स्कूल से लौटते हुए वो बाजार घूमा, मन में फैंटसी घूम रही—खुशबू के साथ अकेले दिन, रातें बिना किसी डर के। 'अब तो बेटी पूरी तरह मेरी... कोई हरि नहीं, कोई रवि नहीं।' वो मुस्कुराया, घर पहुँचकर झोला नीचे रखा। खुशबू अभी नहा रही थी, बाथरूम से पानी की आवाज आ रही—उसकी कल्पना में वो नंगी बॉडी, फ्रॉक में लहराती कमर। उमेश ने चाय बनाई, लेकिन मन इधर-उधर। 'पापा... आप आए?' खुशबू बाहर आई, तौलिए से बाल पोंछते हुए, साड़ी लिपटी लेकिन गीली, चूचियाँ ब्लाउज में उभरीं। उमेश ने उसे गले लगा लिया, गाल पर किस किया—'हाँ बेटा... पापा बहुत खुश है। तेरी मम्मी-भाई गए, अब घर हमारा। चल... देख क्या लाया।' झोला खोला, पहले दारू की बोतल निकाली—देशी, मोटी, काली लेबल वाली। फिर फ्रॉक—एक छोटी सी, लाल सिल्की, नेक इतना डीप कि चूचियाँ झलकें, लेंथ जांघों तक, टाइट, जैसे कोई सड़क किनारे रंडी पहनती हो।

खुशबू की आँखें फटीं, बोतल देखकर हाथ काँप गया। 'पापा... ये दारू? हम ब्राह्मण परिवार... मंदिर जाते हैं, व्रत रखते हैं। मम्मी को पता चला तो...' शॉक से चेहरा सफेद, सांसें तेज—गाँव की परंपराएँ, पूजा-अर्चना की यादें उमड़ आईं। लेकिन उमेश हँसा, बोतल खोलकर गंध फैलाई। 'अरे साली... ब्राह्मण होकर क्या? तेरी चूत तो पापा ने चाट ली, प्रोफेसर का लंड मुंह में लिया। दारू से डर? आज नशा करेंगे, तेरी फैंटसी पूरी।' खुशबू ने सिर झुकाया, लेकिन आँखों में हल्की चमक—शॉक मिश्रित उत्तेजना, जैसे कोई नई दुनिया खुल रही हो। 'पापा... लेकिन...' उमेश ने चुप कराया, फ्रॉक थमा दी। 'पहले ये पहन। शाम को पार्टी।' फिर रसोई में घुसा, मटन का पैकेट निकाला—ताजा, लाल। 'और ये... दारू के साथ मटन बनाऊँगा।' खुशबू चौंकी, 'मटन? पापा... हम शाकाहारी... ब्राह्मण... कभी मांस नहीं खाया। ये... अप्रत्याशित!' अपेक्षा से परे, मन में उथल-पुथल—परिवार की पवित्रता टूट रही, लेकिन कहीं गहरे में रोमांच। उमेश ने कढ़ाई चढ़ाई, मटन काटा—मसाले डाले, दारू की कुछ बूंदें मिलाई। 'हाँ बेटा... आज सब तोड़ेंगे। तेरी चूत का रस तो पापा पी चुका, मटन से क्या फर्क? खा, नशा चढ़ेगा तो तू मेरी रंडी बनेगी।'

शाम ढली, रसोई में मटन पक गया—गर्म, मसालेदार, दारू की तेज महक। दोनों ने थाली में परोसा, छोटी मेज पर बैठे—फ्रॉक में खुशबू, चूचियाँ ऊपर उभरीं, जांघें नंगी। उमेश ने गिलास भरे—पहला घूँट लिया, खुशबू को दिया। 'पी रंडी... नशा चढ़े तो तेरी चूत गीली हो जाएगी।' खुशबू ने हिचकिचाते हुए पिया—जलन गले में, कड़वाहट जीभ पर, लेकिन शरीर में गर्माहट फैली, 'पापा... ये दारू... आपकी साँस जैसी कड़वी। कल्पना करो, मैं नंगी लेटी, आप दारू डालकर मेरी चूत चाटते, लंड डालते।' उमेश का चेहरा लाल, लंड पैंट में सख्त—दूसरा घूँट, हाथ जांघ पर। 'उफ्फ बेटा... साली, तू तो कवयित्री हो गई। पापा की डार्क फैंटसी... तुझे दोस्तों के साथ चोदना। स्कूल के चार-पाँच दोस्त बुलाऊँ, तुझे नंगा कर दूँ। एक लंड तेरे मुंह में ठोंसे, "चूस रंडी, उमेश की औलाद!" दूसरा चूत फाड़े, तीसरा गांड में। मैं देखूँगा, दारू पीते हुए, बोलूँगा, "जोर से चोदो मेरी बेटी को, वो वेश्या है।" तू चिल्लाएगी, "पापा... और लंड... भर दो मेरी चूत!" दोस्त हँसेंगे, "उमेश, तेरी बेटी मार्केट में बेच दे, 500 में चूत।"' दारू का तीसरा घूँट, खुशबू की सांसें तेज, फ्रॉक के नीचे हाथ सरका लिया। 'हाँ पापा... लेकिन प्रोफेसर को भी बुलाओ। वो लंड चूसूँगी, आप गांड फाड़ोगे। दारू पीते हुए थूक दोगे मेरी चूचियों पर, चूसोगे। मटन खाते हुए कहोगे, "बेटी, तेरी चूत मटन जैसी रसीली।"' उमेश ने मटन का टुकड़ा खिलाया, उंगली चाटवाई। 'रंडी... तेरी गांड... आज फाड़ूँगा। दारू से गीला करके, धीरे-धीरे अंदर। तू रोएगी, "पापा... दर्द... लेकिन जोर से!" दोस्त देखेंगे, "उमेश, तेरी बेटी की गांड कस है, हम भी लेंगे।"' दोनों के चेहरे पसीने से चिपचिपे, मटन की महक हवा में। 'पापा... नशा चढ़ गया... चोदो ना मुझे।' लेकिन उमेश ने रोका, 'पहले नाच।'

उमेश ने मोबाइल निकाला, भोजपुरी गाना लगाया—'कइसे भुलावलू के...' तेज बीट्स। 'नाच बेटा... कामुक नाच। फ्रॉक में लहरा।' खुशबू उठी, नशे में चक्कर आई, लेकिन कमर लहराई—फ्रॉक ऊपर सरकी, जांघें चमकीं। हाथ चूचियों पर फेरा, गांड हिलाई, आँखें उमेश पर टिकीं। 'पापा... देखो, तेरी रंडी नाच रही। गाना भोजपुरी... लेकिन मेरी चूत तेरे लिए धड़क रही।' उमेश ताली बजाई, दारू पीता—'उफ्फ साली... तेरी कमर... प्रोफेसर को दिखाऊँ तो लंड फूट जाए। घूम... चूचियाँ हिला।' खुशबू घूमी, झुकी—गांड की गोलाई, फ्रॉक सरक गई, पैंटी झलकी। नाच और कामुक—जीभ बाहर, होंठ काटे, उमेश के पास आकर लंड पर रगड़ा। गाना बदला—'लॉलीपॉप लगावलू...' खुशबू ने उमेश की गोद में बैठकर नाच, कमर घुमाई। 'पापा... नाचते हुए चूसूँ आपका लंड?' उमेश ने सिर हिलाया,

दारू की बोतल खत्म, नशा सिर चढ़ा—दोनों के पैर लड़खड़ा रहे। उमेश ने पैंट खोली, लंड बाहर—मोटा, नसें फूलीं, सुपारा चमकता। 'चूस बेटा... गंदे तरीके से। घुटनों पर आ।' खुशबू घुटनी टेक दी, नशे में हँसती—मुंह में लिया, चूसाई शुरू, जीभ सर्कुलर घुमाई। 'मम्म... पापा... आपका लंड... दारू जैसा कड़वा। गला तक लूँ?' उमेश बाल पकड़े, धकेला—'हाँ साली... गंदा चूस। पापा की डार्क फैंटसी सुन... दोस्तों के साथ तुझे चोदना। कल बुलाऊँगा चार दोस्त, तुझे रंडी बना दूँगा। एक मुंह चोदेगा, "चूस उमेश की बेटी, तेरी जीभ कमाल!" दूसरा चूत फाड़ेगा, तीसरा गांड। मैं दारू पीकर देखूँगा, बोलूँगा, "जोर से रंडी को चोदो, उसकी चूत मटन जैसी!" तू गिड़गिड़ाएगी, "पापा... और लंड... दोस्तों का रस दो!" दोस्त हँसेंगे, "उमेश, तेरी बेटी वेश्या है, हम बेच देंगे सड़क पर।"' खुशबू चूसते हुए सिसकी, लार टपकती—'आह पापा... गंदी फैंटसी... लेकिन चूसूँ और। थूक दो मुंह में, गला ठोक दो।' उमेश ने थूक गिराया, 'हाँ रंडी... कल दोस्त आएंगे, तुझे घेर लेंगे। एक-एक करके चोदेंगे, तू चिल्लाएगी।' नशे में उमेश ने फोन निकाला, प्रिंसिपल का नंबर डायल—स्कूल का बॉस, 60 का, लेकिन हवस भरा। 'हैलो सर... उमेश। होली की बधाई।' प्रिंसिपल: 'उमेश... क्या हाल?' उमेश नशे में हँसा, खुशबू को इशारा—चूसाई जारी। 'सर... एक लड़की है, कॉल गर्ल। नाम खुशबू। प्रोफेसर शर्मा को चोदती है, लेकिन आप... आज शाम आ जाओ। फ्री है। 500 में चूत, 1000 में गांड। मैं दूंगा एंट्री, लेकिन रिश्ता मत पूछना।' प्रिंसिपल चौंका, लेकिन लार टपकने लगी आवाज में—'अरे... ऐसी लड़की? ठीक, आता हूँ। कहाँ?' उमेश ने पता बताया, फोन काटा—बिना बताए कि बाप-बेटी। 'पापा... सर को बुलाया? गंदा!' खुशबू मुंह से निकालकर बोली, लेकिन उमेश ने दबाया, 'हाँ साली... थ्रीसम। तू चूस, वो आएगा।'

शाम के 8 बज गए, प्रिंसिपल पहुँचा—कुर्ता-पायजामा में, चेहरा लाल, दारू की बोतल हाथ। घर में घुसा, खुशबू को देखा—फ्रॉक में, चूचियाँ झलकतीं, चेहरा नशे से चमकता। 'उमेश... ये लड़की... उफ्फ, कितनी हसीन! कॉल गर्ल जैसी, लेकिन मासूम चेहरा। लार टपक रही सर... चूसूँ तुझे।' प्रिंसिपल की आँखें लाल, लंड पैंट में उभरा—ऐसी लड़की देखकर भूख जागी। उमेश ने गिलास भरा, 'सर... बैठो। वो तैयार है।' प्रिंसिपल करीब आया, खुशबू को खींचा— 'बेबी... तेरी चूचियाँ... फ्रॉक से बाहर आने को बेताब।' हाथ डाला, दबाया—निप्पल मरोड़ा। खुशबू सिहरी, 'सर... धीरे... लेकिन जोर से।' प्रिंसिपल झुका, किस किया—थूक वाला, जीभ गले तक। 'उम्म... तेरी लार... मीठी रंडी। थूक दे... सर के मुंह में।' खुशबू ने थूक दिया, चूसा—लार टपकती गालों पर। 'सर... आपकी जीभ... बूढ़ी लेकिन गर्म। चूसो मेरी चूचियाँ।' प्रिंसिपल ने फ्रॉक नीचे की, चूचियाँ नंगी—मुंह में लिया, चूसा जोर से। 'आह... बेबी, तेरी चूचियाँ... दूध वाली। काटूँ निप्पल?' दाँत लगाए, थूक गिराया—गीला, चिपचिपा। 'तेरी चूत... गीली? सर का लंड लेगी?' खुशबू ने सिर हिलाया, 'हाँ सर... लेकिन पहले... डीपथ्रोट।' प्रिंसिपल ने पैंट खोली, लंड बाहर—बूढ़ा लेकिन मोटा, सुपारा काला। 'ले रंडी... मुंह खोल।' खुशबू घुटनों पर, मुंह में लिया—धीरे से, लेकिन प्रिंसिपल ने बाल पकड़े, गला तक ठोंसा। 'गैग... ले साली, तेरी जीभ... लंड चूस रही। थूक... गीला कर।' खुशबू गैग कर रही, आँसू आए, लेकिन चूसती—लार टपकती, गला फड़कता। 'मम्म... सर... आपका लंड... गला फाड़ रहा। लेकिन... जोर से!' प्रिंसिपल जोश में, धक्के मारे—'आह... कॉल गर्ल... तेरी चूसाई... कमाल। उमेश, ये कहाँ से लाया?' उमेश हँसा, 'सर... मार्केट से।'

उमेश ने प्रिंसिपल को इशारा किया, 'सर... चूत लो।' खुशबू ने जीभ बाहर की, 'सर... चोदो।' उमेश ने खुशबू को बेड पर लिटाया, प्रिंसिपल चूत में लंड डाला—धक्के मारे, बूढ़ी कमर हिलाई। 'आह... खुशबू... तेरी चूत... कस, गर्म! कॉल गर्ल... फाड़ दूँगा।' उमेश गांड में उंगली डालता, मुंह में लंड ठोंसता—'साली... दो लंड ले। सर... जोर से चोदो मेरी... रंडी को।' इशारे से—उमेश ने प्रिंसिपल को आँख मारी, 'गांड लो सर।' प्रिंसिपल ने गांड में डाला, उमेश चूत में—डबल पेनेट्रेशन। 'उफ्फ... बेटी... दो लंड... तेरी फैंटसी!' खुशबू चीखी, नशे में, 'पापा... सर... फाड़ दो! थ्रीसम... आह... रस दो दोनों!' धक्के तेज—प्रिंसिपल: 'रंडी... तेरी गांड... कस रही। उमेश, ये लड़की... कमाल!' उमेश: 'सर... जोर से... भर दो।' खुशबू ने उंगली से इशारा, 'और गहरा।' दोनों फूटे—वीर्य चूत और गांड में, गर्म, चिपचिपा। प्रिंसिपल हाँफा, 'कल फिर... 1000 में।'
 

mentalslut

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गाँव की पुरानी सड़क पर शाम की धूप लंबी-लंबी परछाइयाँ फेंक रही थी, जैसे कोई पुरानी यादें जाग रही हों। बस रुकी, धूल उड़ाई, और दरवाजा खुला। हरि सबसे पहले उतरा, उसके पीछे रमा (उमा)—साड़ी में पसीने से तरबतर, बाल बिखरे, लेकिन आँखों में वो शरारत भरी चमक। रवि आखिर में, कंधे पर झोला लटकाए, नशे की हल्की थकान चेहरे पर। हवा में मिट्टी और पसीने की महक घुली हुई—गर्मी इतनी कि सांसें भारी। सड़क के किनारे, एक पुराने बरगद के पेड़ के नीचे खड़ी थी राधा—हरि की इकलौती बेटी, 18 साल की, पतली-लंबी, लेकिन किशोरावस्था की वो ताजगी जो आँखें चुरा ले। साड़ी पहने, लेकिन गर्मी से तरबतर—पसीना चेहरे पर चमक रहा, कंघे से टपक रहा, साड़ी का पल्लू गीला, ब्लाउज चूचियों से चिपका। वो हाथ में एक पुरानी घड़ी लिये इंतजार कर रही थी, बाबूजी की बस का। जैसे ही हरि उतरा, राधा की आँखें चमकीं—'बाबूजी!' चिल्लाई, दौड़ पड़ी।

हरि ने झोला नीचे रखा, बाहें फैलाईं। राधा दौड़कर आ गई, कूदकर गले लग गई—हरि के सीने से सट गई, पसीने से गीली बॉडी रगड़ खाई। 'बाबूजी... कितने दिन हो गए! मैं रोज आती, बस का इंतजार।' आवाज में खुशी, लेकिन साँसें तेज, पसीने की बूंदें हरि के कुर्ते पर गिरीं। हरि ने उसे कसकर पकड़ा, कमर में हाथ—हल्का दबाव, जैसे कोई राज़ साझा हो। लेकिन पहले वो रमा की तरफ मुड़ा, कान में फुसफुसाया—आवाज इतनी धीमी कि सिर्फ वो सुन सके। 'दीदी... राधा... मैंने चोद दिया है उसे। गाँव में अकेले रहते हुए... एक रात नशे में। तेरी तरह रंडी बनी, चूत फाड़ी।' रमा का दिल धड़का, आँखें फैलीं— 'हरि... तेरी अपनी बेटी? साला... तू पागल!' लेकिन मन में सिहरन, कल्पना में राधा की चीखें। रवि ने देखा, लेकिन कुछ न कहा—कुज़िन बहन को पहली बार देखा..

राधा अभी भी हरि से चिपकी, गले लगे। पसीने की तेज महक—मिट्टी, गर्मी, लड़की की ताजगी—हरि के नाक में घुस गई। 'राधा... मेरी राजकुमारी... कितनी बड़ी हो गई।' हरि ने सिर सहलाया, वो खुद को रोक न सका—नशे की बाकी चिंगारी, यात्रा की गर्मी। झुक गया, राधा के चेहरे पर जीभ फेरी—पसीने की बूंद चाट ली, गाल से ठुड्डी तक। नमकीन स्वाद, हल्का नम। 'बाबूजी... क्या कर रहे?' राधा शरमा गई, चेहरा लाल, लेकिन पीछे न हटी—आँखें नीची, लेकिन होंठ काँपते। हरि रुका नहीं, हाथ कंधे पर रखा, कंख (बगल) की तरफ झुका—साड़ी का पल्लू हल्का सरका, जीभ अंदर घुसाई। चाटा—पसीने की गहरी महक, बालों वाली नरमी। 'उफ्फ... तेरी कंख का पसीना... कितना मीठा। बाबूजी को भूख लग गई।' राधा सिहर उठी, 'बाबू... यहाँ सड़क पर... कोई देख लेगा।' लेकिन शरीर काँपा, चूचियाँ तन गईं—शर्म, लेकिन कहीं गहरे में वो पुरानी याद, जब बाबूजी ने पहली बार छुआ था।

फिर रमा और रवि आगे आए। राधा ने गले से छुड़ाया, लेकिन आँखें हरि पर। रमा ने मुस्कुराकर कहा, 'राधा बेटी... हम पहुँच गए। वो मुड़ी हरि की तरफ, आँखों में शरारत। सड़क पर ही, बरगद के पीछे हल्का, झुक गई—होंठ हरि के होंठों परजोरदार, जीभ अंदर, थूक सनी हुई। 'मम्म... बाबूजी... तेरी जीभ... कितनी गर्म। थूक दो... बेटी के मुंह में।' हरि ने थूक दिया, चूसा—लार टपकती, गाल पर। 'राधा... साली... तेरी लार... पेशाब जैसी गंदी। लेकिन चूसूँ तुझे।' किस लंबा, सिसकारियाँ—सबके मन में डर, 'कहीं कोई देख न ले... सड़क पर!' रवि ने इधर-उधर देखा, 'दीदी... चलो, गाँव चलें।

गाँव की तरफ पैदल चले—सड़क टेढ़ी-मेढ़ी, धूल भरी, एक किलोमीटर। राधा आगे-आगे, लेकिन बीच में रुक गई, पैर सिकुड़ाए। 'बाबूजी... पेशाब लग गया। बस की वजह से।' चेहरा लाल, पैर आपस में रगड़ते। हरि ने मुस्कुराया, मन में भूख—'चल बेटी... साइड में झाड़ियों में।' रमा और रवि रुक गए, इंतजार। हरि ने राधा को झाड़ियों में ले जाया—गाढ़ी, छिपी हुई। राधा ने साड़ी ऊपर की, पेटीकोट नीचे—पैंटी सरकाई, पैर फैलाए। लेकिन हरि ने रोका, 'रुकी बेटी... बाबूजी पकड़ेंगे।' हाथ बढ़ाया, चूत पर रखा—होंठों को फैलाया, धार पकड़ी। पेशाब की सुनहरी धार बहने लगी—गर्म, तेज, हरि के हाथों में। 'उफ्फ... राधा... तेरी पेशाब की धार... कितनी गर्म। बाबूजी के हाथ गीले हो गए। पी लूँ?' राधा सिहर उठी, धार धीमी लेकिन जारी। 'बाबूजी... इतने दिन दूर रहे... और अब हाथ से पकड़ रहे मेरी पेशाब? गंदा हो आप... लेकिन... हाँ, पी लो। बेटी का पेशाब... आपके लिए।' हरि ने हाथ मुंह से लगाया, चाटा—नमकीन, गर्म। 'आह... तेरी पेशाब... मीठी। याद है न, पहली बार जब चोदा था? तेरी चूत से रस निकला था, आज पेशाब। बोल बेटी... बाबूजी का लंड मिस किया?' धार खत्म, लेकिन हरि हाथ न छोड़ा—उंगलियाँ चूत पर रगड़ी। राधा हॉर्नी हो गई, कमर हिली—'हाँ बाबूजी... मिस किया। आपकी उंगली... चूत में डालो। पेशाब के बाद... गंदा लग रहा।' हरि ने उंगली डाली, हिलाई—'साली... राधा सिसकी, 'हाँ... चोदो... लेकिन पहले थप्पड़ मारो। सजा दो, दूर रहने की।' हरि ने हाथ उठाया, गाल पर थप्पड़—चटाक! लाल निशान। 'ये ले रंडी बेटी... बाबूजी की कमी महसूस की?' राधा —'आह... हाँ बाबूजी... मारो और। चूत में उंगली जोर से।' थप्पड़ दूसरा, गांड पर—चटाक! राधा काँप उठी, रस बहने लगा। 'बाबूजी... आपका हाथ... पेशाब से गीला, लेकिन मजा। गाँव पहुँचकर चोदना, लंड डालना।' हरि ने उंगली निकाली, चाटी—'चल... बाहर। लेकिन रात को तेरी चूत फाड़ूँगा।'

झाड़ियों से निकले, लेकिन रवि ने चुपके से देख लिया—सब। मन में आग—'राधा दीदी... पापा हाथ से पेशाब पकड़ रहा? थप्पड़ मार रहा? उफ्फ... चोदूँगा मैं तुझे, कुज़िन रंडी।' वो रमा के पास पहुँचा, गुस्से और उत्तेजना में। रमा सड़क पर खड़ी, साड़ी में पसीना बह रहा। रवि ने अचानक हाथ बढ़ाया, ब्लाउज के हुक खोले—चूचियाँ बाहर, नंगी। 'मम्मी... देखा न? राधा दीदी... पापा के साथ। अब तुझे मसलूँगा।' हाथों से जोर-जोर से मसलने लगा—चूचियाँ दबाईं, निप्पल मरोड़े। रमा सिसकी, 'रवि... यहाँ सड़क पर? कोई देख लेगा!' लेकिन पीछे न हटी, आँखें झाड़ियों पर। 'हाँ बेटा... मसल... तेरी मां की चूचियाँ... ' रवि ने जोर से दबाया, 'मम्मी... चूचियाँ लाल—रमा की सांसें तेज, लेकिन डर। हरि-राधा निकले, देखा—लेकिन मुस्कुराए।

रात का घना अंधेरा घर को अपनी चादर ओढ़ा चुका था, सिर्फ चाँदनी की पतली किरणें खिड़की से चुपके-चुपके घुस रही थीं, होली की थकान अभी भी हवा में बसी हुई थी, लेकिन उमेश का मन शांत न था—प्रिंसिपल के साथ थ्रीसम की यादें, खुशबू की चीखें, वो दो लंडों से भरी चूत और गांड... सब कुछ उसके दिमाग में घूम रहा था। दारू का नशा उतर चुका था, लेकिन हवस की भूख नई हो गई थी। बिस्तर पर लेटा, वो सांसें गिन रहा था, लंड आधा सख्त, पैंट में दबा। घड़ी में 11 बज चुके थे, रमा-रवि-हरि गाँव चले गए थे, घर सूना—सिर्फ वो और उसकी बेटी। 'साली... आज रात तेरी चूत फिर फाड़ूँगा।' मन में बड़बड़ाया। फोन उठाया, खुशबू को मैसेज किया—'बेटा... पापा के कमरे में आ।

कुछ मिनट बाद, दरवाजा धीरे से खुला। खुशबू अंदर घुसी, पतली नाइटी पहने—गर्मी से तरबतर, पसीना चेहरे पर चमक रहा, बाल बिखरे, लेकिन आँखों में वो शरारत भरी चमक जो उमेश को दीवाना बना देती। नाइटी चिपकी हुई, चूचियाँ उभरीं—बड़े-बड़े, भरे हुए, निप्पल्स हल्के तने। 'पापा... इतनी रात को? राज़ क्या है?' आवाज मधुर, लेकिन टोन में कामुकता—जैसे जानती हो। वो बिस्तर के पास आई, किनारे पर बैठ गई, पैर लटकाए। उमेश उठा, हाथ बढ़ाया, उसकी कमर पकड़ी—नरम, गर्म, पसीने से चिपचिपी। 'बेटा... राज़ ये है कि पापा की हवस तुझ पर मर मिटने को तैयार है। आज प्रिंसिपल सर ने तेरी चूत फाड़ी, लेकिन पापा का लंड अभी भी भूखा है। आ... पास आ।' खुशबू मुस्कुराई, करीब सरकी—उमेश के सीने से सटी, सांसें मिलीं। 'पापा... सर का लंड... मोटा था न? लेकिन आपका... वो कड़वापन, वो गहराई। बताओ, क्या चाहते हो आज? मेरी चूचियाँ दबाओगे? या... चूत में उंगली डालकर थूक दोगे?'

उमेश का हाथ ऊपर सरका, नाइटी के ऊपर से चूचियाँ पकड़ी—बड़े-बड़े, हाथों में न समाने वाले, नरम लेकिन भरे हुए। धीरे-धीरे दबाया, उंगलियाँ फैलाकर मसलने लगा—निप्पल्स को अंगूठे से मरोड़ा। 'उफ्फ... खुशबू... तेरी ये चूचियाँ... कितनी रसीली। प्रिंसिपल सर ने चूसीं न? लेकिन पापा को दूध चाहिए। दबाऊँ जोर से? बोल... "पापा, दबाओ अपनी रंडी बेटी की चूचियाँ, निप्पल्स काट लो।"' खुशबू सिसकारी भर ली, कमर धनुष की तरह मुड़ी—पसीना बहने लगा, नाइटी गीली। 'आह... पापा... हाँ, दबाओ जोर से। सर ने तो हल्के से चूसे, लेकिन आप... काट लो। मेरी चूचियाँ... आपके लिए बनीं। उफ्फ... दर्द हो रहा, लेकिन अच्छा लग रहा। और दबाओ... उमेश की सांसें तेज, दबाव बढ़ाया—चूचियाँ लाल हो गईं, निप्पल्स कड़े, तने हुए। 'हाँ रंडी... दिखाऊँगा। कल दोस्त बुलाऊँगा, तेरी चूचियाँ मसलवाऊँगा। एक-एक करके चूसवाऊँगा। तू चिल्लाएगी, "पापा... और दबाओ, दोस्तों का हाथ लगाओ।" लेकिन पहले... तेरी बॉडी का पसीना चाटूँगा। . कितनी सेक्सी लग रही।'

उमेश ने नाइटी ऊपर सरकाई, खुशबू को लिटाया—बॉडी नंगी, पसीने से चमकती। गर्मी की वजह से हर अंग गीला—गर्दन पर बूंदें, चूचियों के बीच नदी सी, पेट पर, जांघों पर। वो झुका, जीभ निकाली—पहले गर्दन पर चाटा, पसीने की नमकीन बूंदें जीभ पर। 'उम्म... बेटी... तेरा पसीना... कितना स्वादिष्ट। चाटूँ तेरी गर्दन... साफ कर दूँ?' खुशबू काँप उठी, हाथ उसके बालों में—'हाँ पापा... चाटो। गर्मी से तरबतर हूँ, लेकिन आपकी जीभ... ठंडक दे रही। और नीचे... चूचियों के बीच का पसीना। थूक दो पहले, गीला करके चाटो।' उमेश ने थूक गिराया—गर्म, चिपचिपा—फिर चाटा, जीभ चूचियों के बीच घुमाई। 'आह... साली... तेरा पसीना... चूत का रस जैसा। अब ये चूचियाँ... चाटूँ निप्पल्स।' खुशबू सिसकी, 'पापा... उफ्फ... आपकी जीभ... निप्पल पर घूम रही। चूसो जोर से, काट लो। मेरा पसीना... आपका। अब पेट... नाभि में चाटो।' उमेश नीचे सरका, पेट पर जीभ फेरी—नाभि में घुसाई, चाटा। 'तेरी नाभि... पसीने का कुआँ। चूसूँ?' 'बेटी... तेरी जांघों का पसीना... चूत की महक । फैला पैर... चाटूँ वहाँ।' जीभ जांघों के बीच, लेकिन चूत छुई न। खुशबू कराह उठी, 'पापा... हाँ... चाटो। मेरी बॉडी... आपकी। लेकिन चूत... बाद में। पहले... किस करो। गंदा।'

उमेश ऊपर आया, चेहरा करीब—होंठ मिले, लेकिन गंदे तरीके से। जीभ बाहर, खुशबू की जीभ से लिपटी—चूसने लगा, लंबा, गहरा। 'उम्म... बेटी... तेरी जीभ... चूसूँ। थूक दे... पापा के मुंह में।' खुशबू ने थूक दिया—गर्म, चिपचिपा—उमेश ने गटक लिया, फिर अपना थूक उसके मुंह में डाला। 'ले रंडी... पापा का थूक... पी ले। गंदा लग रहा? लेकिन तेरी चूत गीली हो गई न?' लार टपकती—गालों पर, ठुड्डी पर। जीभें लड़ रही, चट-चट की आवाज। 'पापा... आपका थूक... कड़वा, लेकिन मजा। और दो... मेरी जीभ पर। चूसो... गला तक।' उमेश ने जीभ गले तक धकेली, थूक गिराया—लेकिन चूस 'साली... तेरी लार... । किस करते हुए तेरी चूचियाँ दबाऊँ?' 'हाँ पापा... दबाओ... थूक दो चूचियों पर।' उमेश ने थूक गिराया, मला—गीला, चमकता। किस टूटा, लेकिन सांसें तेज।

उमेश नीचे सरका, खुशबू को उल्टा किया—गांड ऊपर, गोल, सफेद, लेकिन पसीने से चमकती। 'अब... तेरी गांड। चाटूँ बेटी... दरार।' हाथों से फैलाई, जीभ रगड़ी—दरार पर, नमकीन पसीना। 'उफ्फ... तेरी गांड... कितनी गर्म। पसीना... चूत का रस जैसा। चाटूँ अंदर?' जीभ धकेली, छेद पर घुमाई—गहरा, चूसा। खुशबू चीखी, कमर हिली—'आह पापा... आपकी जीभ... गांड में! गंदा... लेकिन उफ्फ... चूसो। थूक दो अंदर, गीला करो। प्रोफेसर ने कभी नहीं चाटी।' उमेश ने थूक गिराया, जीभ अंदर—चाटते हुए उंगली डाली। 'साली... तेरी गांड का छेद... कसा हुआ। पापा का लंड कल फाड़ेगा। बोल... "चाटो पापा, मेरी गांड साफ करो।"' खुशबू कराह रही, 'हाँ... चाटो... साफ करो। आपकी जीभ... मजा दे रही। लेकिन अब... मेरी बारी।' वो मुड़ी, थोड़ा डोमिनेंट बिहेवियर—आँखों में चमक। 'पापा... अब मेरे पैर चाटो। गुलाम बनो।' पैर फैलाए, तलवे ऊपर—पसीने से गीले, धूल मिश्रित। 'चाटो... मेरे पैरों का पसीना। जीभ से साफ करो।'

उमेश चौंका, लेकिन उत्तेजना से लंड जोर से सख्त। 'बेटा... तू... हाँ... चाटूँगा।' झुका, तलवा चाटा—नमकीन, गंदा, लेकिन स्वादिष्ट। 'उम्म... तेरे पैर... कितने नरम। पसीना... चूसूँ अंगूठा?' अंगूठा मुंह में लिया, चूसा। खुशबू हँसी, पैर दबाया उसके चेहरे पर। 'हाँ पापा... चूसो। मेरे गुलाम... पैरों की धूल भी चाटो। कल दोस्त बुलाओगे, लेकिन आज... मेरे पैर चाटकर लंड सहलाओ। बोलो, "बेटी... तेरे पैरों का स्वाद... चूत जैसा।"' उमेश चाटता रहा, हाथ लंड पर—'हाँ रानी... तेरे पैर... चूत जैसा। चाटूँ और... उँगलियाँ।' खुशबू: 'पापा... जोर से चूसो। कल फैंटसी में बाँधोगे न? लेकिन आज... पैर चाटकर चोदो मुझे।' उमेश: 'हाँ... चोदूँगा। लेकिन पहले... पूरा पैर साफ।'

गाँव का पुराना घर—ईंटों का बना, आंगन में नीम का पेड़, चारों तरफ खेतों की हरियाली—शाम की धूप में चमक रहा था। सड़क से उतरते ही राधा ने हरि का हाथ पकड़ लिया, कसकर—जैसे सालों का इंतजार खत्म हो गया हो। 'बाबूजी... चलो जल्दी, घर पहुँच गए।' उसकी आवाज में उत्साह, लेकिन पैरों की चाल में वो चिपकाव, जो रवि को तुरंत भा गया। हरि ने मुस्कुराकर दरवाजा खोला, लेकिन जैसे ही अंदर घुसे, राधा ने खुद को हरि से चिपका लिया—सीने से सटा लिया, साड़ी का पल्लू सरक गया, चूचियाँ ब्लाउज में दब गईं। 'बाबूजी... घर आ गए... अब तो...' हरि ने कमर पकड़ी, नरम दबाव से। इधर, रवि ने रमा को पीछे से पकड़ लिया—झोला नीचे रखते ही कमर में हाथ डाला, सीने से सटा। 'मम्मी... गाँव पहुँच गए... लेकिन तुम्हारी कमर... होली की तरह चोदूँगा क्या?' रमा सिहर उठी, लेकिन पीछे मुड़ी न—'रवि... चुप... राधा देख लेगी। लेकिन हाँ... तेरी उँगलियाँ... उफ्फ।' दोनों जोड़ियाँ चिपकी हुईं, आंगन में घुसते हुए—हवा में पसीने और उत्तेजना की महक घुल गई। राधा ने हरि को कोने में धकेला, रवि ने रमा को दीवार से सटा लिया। घर सूना था,

आंगन के बीच में, चाँदनी की हल्की रोशनी पड़ रही थी—नीम के पत्ते हिल रहे। हरि ने राधा को नीचे बिठाया, लेकिन राधा चिपकी रही—साड़ी का आँचल सरक गया। 'बाबूजी... पसीना... गर्मी से तरबतर हूँ। साफ कर दो।' हरि की सांसें तेज हो गईं, 'राधा... मेरी राजकुमारी... बाबूजी साफ करेंगे।' वो झुका, जीभ निकाली—पहले चेहरे पर चाटा, पसीने की बूंदें जीभ पर लीं। नमकीन, गर्म। 'उम्म... तेरी गर्दन... पसीना... कितना मीठा। चाटूँ?' राधा सिहर उठी, लेकिन सिर पीछे किया—'हाँ बाबूजी... चाटो। सड़क पर तो बस चाटा था... अब पूरा शरीर।' हरि ने साड़ी का पल्लू पूरी तरह सरका दिया, ब्लाउज ऊपर—चूचियाँ नंगी, पसीने से चमकती। जीभ चूचियों के बीच घुमाई, चाटा—निप्पल पर रुका, चूसा। 'आह... तेरी चूचियाँ... पसीने वाली, नमकीन। बाबूजी को दूध चाहिए।' राधा कराह उठी, 'बाबू... जोर से चूसो... मामी-भाई देख रहे। लेकिन... चाटो।' हरि नीचे सरका, पेट पर जीभ फेरी—नाभि में घुसाई, चाटा। फिर कमर, जांघें—अंदरूनी, गीली। 'तेरी जांघें... पसीना... फैला पैर बेटी... बाबूजी चाटेंगे।' राधा ने पैर फैलाए, हरि की जीभ जांघों के बीच—चूत के पास, लेकिन छुई न। पूरा शरीर चाटा—पीठ, कंख, पैरों के तलवे। राधा काँप रही, 'बाबूजी... आपकी जीभ... हर जगह... उफ्फ।

इधर, रवि ने रमा को आंगन के कोने में सटा रखा था—ब्लाउज पहले ही खुला, चूचियाँ नंगी। रवि के हाथ उन पर—बड़े-बड़े, भरे हुए, जैसे रबड़ के गोले। 'मम्मी... तेरी चूचियाँ... कितनी मोटी। ' वो दबाने लगा—जोर-जोर से, उंगलियाँ फैलाकर, निप्पल्स मरोड़ते। रमा सिसकी भर रही, लेकिन आँखें हरि-राधा पर। 'रवि... बेटा... धीरे... राधा देख रही। लेकिन... हाँ, मसल। तेरी उँगलियाँ... हरि जैसी। बोल... "मम्मी, तेरी चूचियाँ रबड़ जैसी, दबाऊँ तो उछलेंगी।"' रवि ने जोर से दबाया, चूचियाँ लाल हो गईं—'हाँ मम्मी... रबड़ जैसी। देखो, दबाता हूँ तो फैल जातीं। निप्पल्स... काट लूँ? होली में चूसे थे, अब मसलूँगा घंटों। तेरी चूचियाँ... प्—रमा: 'हाँ बेटा... काट लो। मसलो जोर से... दर्द हो रहा, लेकिन चूत गीली हो गई। राधा को देख... उसके बाबूजी चाट रहे। तू भी चाट... मेरी चूचियाँ।' रवि ने झुका, लेकिन पहले मसला—हाथों में निचोड़ता, जैसे दूध निकाल रहा। 'मम्मी... तेरी चूचियाँ... कितनी भरी। घंटों मसलूँगा, लाल कर दूँगा। बोल, "बेटा... तेरी मम्मी रंडी है, चूचियाँ तेरे लिए।"' रमा कराह रही, 'हाँ... रंडी हूँ तेरी। मसलो... उफ्फ... रवि, तेरी उँगलियाँ... निप्पल पर घुमाओ। राधा की तरह चाटो न बाबूजी।' मसलना घंटों जैसा—रवि थक न रहा, चूचियाँ लाल, निप्पल्स सूजे। 'मम्मी... तेरी चूचियाँ... मटन जैसी मोटी। दबाता हूँ तो हिलतीं। कल गाँव में सबको दिखाऊँगा, "देखो, मेरी मम्मी की चूचियाँ।"' रमा: 'हाँ... दिखाओ। लेकिन पहले... चूस लो।'

रात हो चुकी थी, लेकिन हवा में उत्तेजना। आंगन में चाँदनी, नीम का पेड़ छाया डाल रहा। हरि ने राधा को पटक दिया—आंगन की मिट्टी पर, साड़ी ऊपर। 'राधा... बाबूजी बर्दाश्त न कर पाए। तेरी चूत... फाड़ दूँगा।' पैंट खोली, लंड बाहर—मोटा, काला। राधा ने पैर फैलाए, 'बाबूजी... जोर से... इतने दिन बाद। चोदो अपनी बेटी को।' हरि ने धक्का मारा—जोरदार, चूत में घुसा। 'आह... साली... तेरी चूत... कस रही। ले... धक्के!' कमर पकड़कर ठोका—राधा चीखी, 'आह बाबू... फाड़ दो! तेरी बेटी रंडी है... जोर से!' धक्के तेज, आंगन में आवाजें—पाप-चटाक। राधा की चूचियाँ उछल रही, पसीना बह रहा। 'बाबूजी... गहरा... आ रही हूँ!' हरि ने थप्पड़ मारा गाल पर, 'ले रंडी... चिल्ला मत... मामी-भाई देख रहे।' चुदाई रफ—कमर हिलाई, लंड गले तक। राधा काँप उठी, रस बहा—'हाँ... रस दो बाबूजी!'

इसे देखकर रवि और रमा गरम हो गए—आंगन के कोने में, सांसें तेज। रमा की चूत गीली, 'रवि...राधा चुद रही। तू भी... चोद ना।' रवि का लंड सख्त, गुस्से में—'मम्मी... थप्पड़ मारूँगा तुझे। रंडी बनी हो।' हाथ उठाया, गाल पर थप्पड़—चटाक! लाल निशान। 'ले साली... तेरी चूचियाँ देख राधा को जलन हो रही।' फिर चूचियों पर थप्पड़—चटाक-चटाक! 'ये ले... तेरी मोटी चूचियाँ... रबड़ जैसी, मारता हूँ तो उछलेंगी। रंडी मम्मी... तेरी चूत गीली हो गई न?' रमा सिसकी, 'आह रवि... दर्द... । हाँ, गीली हो गई। थप्पड़ मारो... मा तेरी रंडी है।' रवि खुश, आग भड़की—'हाँ मम्मी... रंडी है तू। ले... गाल पर!' 'साली कुतिया... तेरी चूचियाँ... ले... और!' गालियों के साथ—'रंडी... हरामी... तेरी चूत फाड़ूँगा!' 'हाँ बेटा... मारो... गालियाँ दो। और मारो!' रवि ने मुंह पर थूक दिया—गर्म, चिपचिपा। 'ले रंडी... ... चाट ले। तेरी जीभ पर।' रमा ने चाटा, 'हाँ... चाटूँगी। अब चोदो... लेकिन पहले और थप्पड़।'


सुबह की पहली किरणें खिड़की से धीरे-धीरे घुस रही थीं, जैसे कोई पुरानी दोस्त चुपके से मिलने आई हो। घर में सन्नाटा बसा हुआ था—रमा, रवि और हरि के गाँव चले जाने के बाद, सिर्फ उमेश और खुशबू की सांसें ही हल्की-हल्की गूँज रही थीं। उमेश की आँखें सबसे पहले खुलीं। बिस्तर पर लेटा हुआ वो छत की तरफ देख रहा था, लेकिन मन कहीं और भटक रहा—रात की वो चाटन, थूक वाली किसें, पैरों की धूल चाटना... सब कुछ अभी भी ताजा सा लग रहा था। लंड सुबह-सुबह ही हल्का सख्त हो गया था, पैंट में दबकर हलचल मचा रहा। "साली... आज सुबह ही चख लूँ तुझे," मन ही मन बुदबुदाया। वो करवट बदला, खुशबू की तरफ मुड़ा। वो अभी सो रही थी, चादर आधी नीचे सरकी हुई—चूचियाँ हल्की-हल्की उभरी हुईं, बाल बिखरे हुए, चेहरा नींद से भरा लेकिन तरोताजा। गर्मी की वजह से बॉडी पर हल्का पसीना चमक रहा था, जैसे ओस की बूंदें।

उमेश ने हाथ बढ़ाया, धीरे से गाल पर स्पर्श किया—नरम, गर्म। "बेटा... जाग ना... पापा का मन बेचैन हो रहा है।" खुशबू की पलकें काँपीं, आँखें खुलीं। एक पल को नींद भरी नजरों से देखा, फिर मुस्कान फैल गई—धीरे से। "पापा... सुबह-सुबह ही? रात भर तो चाटा मुझे... पैरों की धूल तक साफ की। अभी भी भूख लगी?" वो करीब सरकी, चादर और नीचे सरक गई—चूचियाँ पूरी तरह नंगी, पेट पर हल्का स्पर्श। उमेश ने कमर पकड़ ली, धीरे से खींच लिया—सीने से सटा लिया। सांसें मिलने लगीं, गर्माहट फैलने लगी। "हाँ रंडी... भूखी ही हूँ। रात को तेरी गांड चाटी, पैर चाटे... लेकिन सुबह तेरी चूत का रस चाहिए। बोल... जागते ही क्या सोचा? पापा का लंड मुंह में लेना है, या पहले चूसूँ तेरी बगल का पसीना?"

खुशबू की सांसें तेज हो गईं, लेकिन वो हँसी हल्की—हाथ उमेश की छाती पर फेरा। "पापा... सोचा तो आपकी सुबह की साँस... कड़वी लगेगी, लेकिन चूसूँगी। रात को पैर चाटे, आज चूत चाटो। लेकिन पहले... गंदा बोलो ना। 'बेटी, तेरी चूत... प्रोफेसर को दी न? लेकिन पापा की है, फाड़ दूँगा।'" उमेश का चेहरा गर्म हो गया, हाथ चूचियों पर सरका—हल्का दबाया, निप्पल्स को अंगूठे से छुआ। "हाँ साली... प्रोफेसर को दी, लेकिन पापा फाड़ेंगे। सुबह की चूत... ताजा, रस वाली। फैला पैर... पापा चाटेंगे। लेकिन पहले... तेरी बगल। रात भर सोई, गर्मी से तरबतर।" वो झुका, नाक सटा ली—हल्की महक, पसीने की। जीभ निकाली, धीरे से चाटा—नरम त्वचा पर रगड़ी। नमकीन स्वाद, हल्का गर्म। "उफ्फ... बेटी... तेरी बगल... कितनी गंदी महक। लेकिन पापा को दीवाना बना देती। चूसूँ बाल भी?" खुशबू सिहर उठी, हाथ उसके सिर पर दबाया—धीरे से। "हाँ पापा... चूसो। गंदा लग रहा? लेकिन आपकी जीभ... ठंडक दे रही। अब दूसरी बगल... थूक दो पहले, गीला करके चाटो।"

उमेश ने थूक गिराया—गर्म, चिपचिपा—फिर जीभ से चाटा, अंदर घुमाई। रोमांस धीरे-धीरे गहरा हो रहा था, सांसें मिल रही। फिर उमेश ने चेहरा ऊपर किया, आँखें मिलाईं—गहरी, प्यार भरी। "खुशबू... पापा तुझसे सच्चा प्यार करता है। तू मेरी जान है, मेरी दुनिया... लेकिन ये हवस... तेरी बॉडी पर मर मिटती। तेरी चूचियाँ... उफ्फ, कितनी सुंदर हैं। बड़े-बड़े, गोल, जैसे दूध से लबालब भरी हुईं। प्रिंसिपल सर ने चूसीं न? लेकिन पापा को पूरा हक।" हाथ चूचियों पर रखा, धीरे-धीरे दबाया "देख... कितनी रसीली। निप्पल्स... गुलाबी, तने हुए, जैसे चावी की तरह। खेलूँ तुझसे? मरोड़ूँ हल्के से?" उंगली से निप्पल घेरा, धीरे-धीरे मरोड़ा—। खुशबू कराह उठी, कमर मुड़ी—आह निकली। "आह पापा... प्यार है न? हाँ... खेलो। मेरी चूचियाँ... आपके लिए बनीं। निप्पल्स मरोड़ो... दर्द दो, लेकिन प्यार से। सर ने तो काटे, लेकिन आप... चूसो। बोलो ना, 'बेटी, तेरी चूचियाँ... पापा की कमजोरी।'"

उमेश झुका, निप्पल मुंह में लिया—धीरे से चूसा, जीभ घुमाई। "उम्म... बेटी... तेरा निप्पल... कितना कड़ा, मीठा। चूसूँ जैसे दूध निकाल रहा हूँ। प्यार करता हूँ तुझसे... मेरी रानी, मेरी शहजादी। लेकिन कामुक भी... तेरी बॉडी देखकर पागल हो जाता। कल दोस्त बुलाऊँगा, तेरी चूचियाँ मसलवाऊँगा, लेकिन रात को सिर्फ पापा के लिए। बोल... 'पापा, मेरी चूचियाँ... आपकी रानी, चूसो जितना चाहो।'" उमेश चूसता रहा, दूसरा निप्पल उंगली से खेलता, मरोड़ता, सहलाता। "हाँ पापा... आपकी रानी। चूसो... दूध निकालो। प्यार है... लेकिन ये खेल... उत्तेजित कर रहा। अब... थूक दो निप्पल पर, गीला करके चूसो।"

खुशबू ने उमेश का चेहरा ऊपर किया, आँखें मिलाईं—गहरी, प्यार से भरी। "पापा... अब मेरी बारी। प्यार से... मेरा थूक पियो।" होंठ करीब लाई, जीभ बाहर—धीरे से थूक निकाला, उमेश के होंठों पर गिराया। गर्म, चिपचिपा, मीठा। "ले पापा... बेटी का थूक... प्यार का। पी लो, धीरे से।" उमेश ने जीभ से चाटा, गटक लिया—आँखें बंद, मजा लेता। "उम्म... बेटी... तेरा थूक... शहद जैसा। और दो... पापा के मुंह में, प्यार से।" खुशबू ने फिर थूक दिया, सीधे मुंह में—उमेश ने चूसा, होंठ दबाए, किस किया। "प्यार करता हूँ तुझसे... मेरी जान। लेकिन अब... चूत चाटूँ।" रोमांस धीरे-धीरे गहरा हो रहा था, सुबह की शुरुआत गंदी लेकिन प्यार भरी

उमेश ने बाइक की चाबी घुमाई, इंजन की गड़गड़ाहट से घर की शांति एकाएक टूट गई, लेकिन उसके मन में वो हल्की सी उत्तेजना बनी रही जो सुबह की चाटन और थूक वाली किसों से जागी थी। खुशबू पीछे बैठी हुई थी, साड़ी का पल्लू हवा में हल्का-हल्का लहरा रहा, लेकिन उसकी कमर उमेश की पीठ से सटी हुई थी—सुबह की वो गर्माहट अभी भी त्वचा पर महसूस हो रही, जब उसके निप्पल्स से खेला था, थूक पिलाया था। "पापा... कॉलेज पहुँचकर जल्दी लौटना। शाम को... वो फैंटसी पूरी करनी है न?" खुशबू ने कान के पास फुसफुसाया, उसका हाथ धीरे से उमेश की कमर पर सरका दिया—हल्का दबाव, लेकिन बिजली की तरह।

उमेश ने बाइक को थोड़ा तेज किया, लेकिन मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। "हाँ बेटा... लेकिन पहले... प्रोफेसर से मिलूँगा। तेरी पढ़ाई का हाल जानना है। तू तो कहती रहती है सब ठीक, लेकिन पापा को विश्वास नहीं आता।" रास्ते में हवा तेज हो गई, लेकिन उमेश का हाथ पीछे सरका—खुशबू की जांघ पर हल्का स्पर्श, साड़ी के ऊपर से। खुशबू सिहर उठी, सांस अटक गई एक पल को, लेकिन फिर हल्की हँसी छूट गई। "पापा... सड़क पर... कोई देख लेगा। लेकिन... शाम को याद रखना। सर से क्या कहोगे? पढ़ाई के बारे में?" उमेश ने बाइक को मोड़ते हुए जवाब दिया, "बस... तूशन का बहाना। तू क्लास में चली जाना, पापा सब संभाल लेंगे।" खुशबू का मन उलझ गया—'प्रोफेसर से? सर को तो मैं... चूसती हूँ। पापा को पता है, लेकिन क्या कहेंगे एक-दूसरे को?' लेकिन वो चुप रही, बस कमर और सटा ली।

कॉलेज का पुराना गेट नजर आया—लोहे का जंग लगा, स्टूडेंट्स की हलचल शुरू हो चुकी थी, लड़कियाँ किताबें लिये हँसती-खेलती। उमेश ने बाइक रोकी, धूल उड़ी हल्की। खुशबू उतरी, साड़ी ठीक की—पल्लू संभाला, किताबें कंधे पर लटकाईं। "पापा... शाम को जल्दी आना। और... सर से कुछ मत कहना मेरे बारे में।" उमेश ने सिर हिलाया, लेकिन करीब आया—गाल पर हल्का चुम्बन, कान में फुसफुसाया। "अरे बेटा... चिंता मत कर। पापा सब जानते हैं। तू क्लास में जा, पापा स्टाफ रूम जाऊँगा।" खुशबू मुस्कुराई, लेकिन मन में हलचल—वो चली गई, कदम तेज लेकिन सोच में डूबी। उमेश बाइक खड़ी की, स्टाफ रूम की तरफ बढ़ा—एक लंबा गलियारा, दीवारों पर पुरानी तस्वीरें, हवा में किताबों और चॉक की महक। प्रोफेसर शर्मा का केबिन आखिर में—छोटा सा कमरा, मेज पर किताबें बिखरीं, कुर्सी पर अखबार फैला।

शर्मा सर कुर्सी पर झुके हुए थे, चश्मा नाक के बीच में, अखबार की लाइनें पढ़ते। उमेश ने दरवाजा खटखटाया, "सर... नमस्ते। उमेश बोल रहा हूँ, खुशबू का पिता।" शर्मा ने सिर उठाया, चश्मा ठीक किया—मुस्कान फैली, लेकिन आँखों में वो चमक जो छिपी न रह सकी। "अरे उमेश जी... आइए, आइए। बैठिए ना। क्या बात है? खुशबू के बारे में ही तो?" उमेश ने कुर्सी खींची, बैठा "हाँ सर... परीक्षा नजदीक आ गई है। वो तो कहती रहती है सब ठीक चल रहा, लेकिन आप बताइए। मार्क्स अच्छे आ रहे न? कोई कमी?" शर्मा ने अखबार मोड़ा, पीछे टिका—शब्दों को सावधानी से चुना, लेकिन डबल मीनिंग घुसा दी। "उमेश जी... खुशबू तो बहुत होशियार बच्ची है। क्लास में हमेशा आगे रहती। ध्यान देती है... लेकिन कभी-कभी एक्स्ट्रा एक्टिविटी में इतना वक्त दे देती कि पढ़ाई पीछे छूट जाती।"

उमेश ने महसूस किया वो इशारा—लाइब्रेरी रूम की वो चूसाई, लेकिन चेहरा संभाला। "सर... एक्स्ट्रा एक्टिविटी? मतलब प्रोजेक्ट्स या कुछ और?" शर्मा ने कंधे उचकाए, चाय का कप उठाया—धीरे से घूँट लिया। "हाँ... प्रोजेक्ट्स, असाइनमेंट्स। वो तो मेरे साथ घंटों बैठती है, डिटेल में समझती। कभी लेट नाइट तक भी... लेकिन रिजल्ट हमेशा अच्छा आता। आपकी बेटी तो फुल एनर्जी वाली है—एक बार लग गई तो रुकती ही नहीं।" शब्दों में वो छिपा अर्थ—उमेश का मन में जलन हुई, लेकिन साथ ही वो उत्तेजना जो कल रात की फैंटसी से जागी। "हम्म... अच्छा है सर। लेकिन अगर समय मिले तो घर आकर तूशन दे दीजिए न? शाम को फ्री होंगे? घर पर ही सब संभाल लेंगे।" शर्मा की आँखें चमक उठीं, मुस्कान गहरी। "घर? क्यों नहीं उमेश जी... खुशबू के लिए तो कुछ भी। शाम को 6 बजे पहुँच जाऊँगा। चाय-नाश्ता भी हो जाएगा।" हाथ मिलाया, लेकिन शर्मा की नजरें—'तूशन... या कुछ और?' उमेश उठा, "धन्यवाद सर। शाम को मिलते हैं।"

उमेश के जाने के बाद, शर्मा का इशारा खुशबू को मिल चुका था। 'लाइब्रेरी रूम।' खुशबू का दिल धड़कने लगा, किताबें कंधे पर लटकाईं, लेकिन कदम तेज। रूम में घुसी, दरवाजा बंद किया—अंधेरा, पुरानी किताबों की महक, धूल के कण हवा में तैरते। शर्मा पहले से वहाँ था, कुर्सी पर झुका, आँखें चमकतीं। "साली... आ गई? तेरे पापा आए थे। पढ़ाई का बहाना, लेकिन मैं जानता... तू रंडी है मेरी।" वो उठा, एक झटके में खींच लिया—दीवार से सटा दिया। होंठ दबाए, किस जोरदार—जीभ अंदर धकेली, चूसने लगा जैसे कोई भूखा जानवर। खुशबू सिसकी भर दी, हाथ उसके बालों में उलझ गए। "सर... पापा से मिले? क्या कहा उन्होंने?" शर्मा ने किस जारी रखा, लेकिन हाथ ब्लाउज के हुक पर—एक-एक करके खोले, चूचियाँ बाहर। "उफ्फ... तेरी चूचियाँ... कितनी मोटी, भरी हुई। दबाता हूँ तो हाथ भर आ जातीं। पापा को बोला, तू होशियार है... लेकिन एक्स्ट्रा एक्टिविटी में लगी रहती।" —जोर-जोर से, उंगलियाँ फैलाकर, निप्पल्स को मरोड़ते हुए। खुशबू की सांसें तेज हो गईं, कमर मुड़ गई। "आह सर... जोर से दबाओ... पापा ने तूशन के लिए बुलाया। शाम को घर। लेकिन अब... चूसो ना। मेरी चूचियाँ... आपके लिए तड़प रही।"

शर्मा ने ब्लाउज पूरी तरह उतार दिया, चूचियाँ नंगी—हवा में काँप उठीं। मुंह झुकाया, एक निप्पल मुंह में भर लिया, जोर से चूसा—दाँत हल्के लगाए। "मम्म... रंडी... तेरी चूचियाँ... दूध वाली लग रही। काटूँ निप्पल? तेरे पापा जानते हैं न, तू मेरी चूत चाटती है? शाम को घर... तेरे पापा के सामने चोदूँगा क्या तुझे?" "देख... गीली हो गई साली। पापा गए, और तू तैयार हो गई। चूसूँ तेरी चूत? या पहले लंड बाहर निकालूँ?" खुशबू ने साड़ी ऊपर की, पैर फैलाए—'हाँ सर... चूसो। लेकिन पहले... आपका लंड। बाहर निकालो, चूसूँगी। पापा का बहाना... शाम को मजा आएगा।' शर्मा ने पैंट की चेन खींची, लंड बाहर उछला—मोटा, नसें फूलीं। खुशबू घुटनों पर झुकी, मुंह में लिया—धीरे से चूसी, जीभ सुपारे पर घुमाई। शर्मा ने चूचियाँ मसलते रहे, जोर से—'आह... तेरी चूसाई... कमाल रंडी। शाम को तेरे पापा देखेंगे, तू मेरे लंड पर। बोल... "सर, पापा को दिखाऊँगी कैसे चूसती हूँ।"' सिसकारियाँ कमरे में गूँजने लगीं—समय बीतता गया, लेकिन आग ठंडी न पड़ी। क्लास की घंटी बजी बाहर, लेकिन वो रुके न—शर्मा का हाथ चूत पर, उंगली अंदर। "रंडी... शाम को घर... तेरी गांड फाड़ूँगा।" खुशबू कराह उठी, 'हाँ सर... फाड़ दो।'

शाम की लाली आसमान पर फैल चुकी थी जब खुशबू घर लौटी—साड़ी सिकुड़ी हुई, चेहरा अभी भी लाल, सांसें थकी लेकिन उत्तेजित। किताबें टेबल पर पटकीं, उमेश चाय बना रहा था रसोई में—मुस्कुराता हुआ बाहर आया। "बेटा... आ गई? सर शाम को तूशन के लिए आ रहे। चाय पी ले।" खुशबू ने चाय का कप लिया, लेकिन आँखें सिकुड़ीं—कुर्सी पर बैठ गई। "पापा... सर को क्यों बुलाया? पढ़ाई तो ठीक चल रही। अचानक तूशन का क्या?" उमेश ने उसके बगल में बैठते हुए हाथ कंधे पर रखा—धीरे से दबाया। "अरे बेटा... पढ़ाई का बहाना। असल में... पापा की एक फैंटसी है। सुन... ककॉल्ड।" खुशबू का दिल धड़का, कप नीचे रखा—'ककॉल्ड? मतलब?' उमेश ने करीब सरका, फुसफुसाया—आवाज धीमी, लेकिन गहरी। "खुशबू... पापा को देखना अच्छा लगता जब तुझे कोई और चोदे। सर का लंड तेरी चूत में घुसता देखूँगा... मैं पास बैठा, लंड सहलाता। तू चिल्लाएगी, 'सर... जोर से चोदो... पापा देख रहे हैं।' पापा का लंड खड़ा हो जाएगा, लेकिन छू न सकूँगा। फिर सर जाएगा, पापा तेरी चूत चाटेगा—सर का रस चखेगा। बोल बेटा... 'पापा, सर का रस... आपका भी मिलेगा।' मजा आएगा न?"

खुशबू की सांसें तेज हो गईं, चेहरा गर्म—गरमाहट नीचे फैल गई। "पापा... गंदा... लेकिन उफ्फ... सोचकर ही चूत गीली हो गई। सर चोदेगा, आप देखोगे... मैं चिल्लाऊँगी, 'पापा... देखो सर का लंड... कितना मोटा।' फिर आप चाटोगे... सर का रस मेरी चूत से। हाँ... शाम को। लेकिन पहले... मेरी गांड चाटो। गरम हो गई हूँ।" उमेश खुश, उठा—'हाँ बेटा... चाटूँगा। लेकिन तलवे भी।' खुशबू नाइटी ऊपर की, गांड ऊपर—उमेश झुका, जीभ दरार में। 'उफ्फ... तेरी गांड... मीठी, गर्म।' फिर तलवे चाटे—नमकीन। 'पापा... चाटो... शाम को सर के साथ शेयर करोगे।' गरमी चरम पर। फिर बाथरूम में घुसे—खुशबू ने उमेश को घुटनों पर बिठाया, पैर फैलाए। 'पापा... देखो... बेटी का पेशाब। खुशी से... तुम्हारे चेहरे पर।' उमेश मुंह खोला, पीने लगा। 'उम्म... बेटी... तेरा पेशाब...
खुशबू हँसी, आँखें चमकतीं—'पापा... पी लो... शाम को सर के साथ भी यही मजा।'
 

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दोपहर की धूप खेतों पर चढ़ रही थी, जैसे कोई लाल आग हरियाली को धीरे-धीरे चाट रही हो, निगलने को बेताब। गाँव के बाहर हरि का पुराना खेत फैला हुआ था—सरसों की फसल पीली लहरें मार रही, हवा में मिट्टी की गंध और दूर कहीं जल रही चूल्हों की लकड़ियों की महक घुली हुई। हरि अकेला बैठा था तंबू के नीचे, जो सालों से फट चुका था लेकिन अभी भी छाया दे रहा—हाथ में चिलम, गाँजा भरा हुआ, गाँव के सेठ से चुपके लिया। नशा धीरे-धीरे चढ़ने लगा, सिर भारी, आँखें लाल हो गईं, लेकिन मन में वो काली भूख जाग उठी—राधा की। "साली राधा... मेरी अपनी लाड़ली... तेरी चूत कितनी रसीली हो गई है। बाबूजी का लंड तुझे रातों में सताता होगा ना?" मन में बुदबुदाया, चिलम मुँह लगाई—धुआँ गले में उतरा, कफ काँप उठा, लेकिन वो मीठी जलन से शरीर में सिहरन दौड़ गई। लंड पैंट में हलचल मचा रहा, नसें फूलने लगीं—हाथ सरका दिया, हल्का सहलाया। "उफ्फ... राधा... तेरी बालों वाली चूत... बाबूजी का लंड चूस लेगी आज। तेरी चूचियाँ दबाऊँगा, निप्पल्स काटूँगा।"

तभी, दूर से कदमों की धीमी आहट सुनाई दी—राधा आ रही थी, थाली हाथ में लटकाए, रोटी-सब्जी से भरी हुई। साड़ी पहने, लेकिन दोपहर की गर्मी ने उसे पूरी तरह तरबतर कर दिया था—पसीना चेहरे पर मोतियों की तरह चमक रहा, कंख से टपकता ब्लाउज को गीला कर चुका, चूचियाँ साफ उभरी हुईं, साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया। बाल लटकाए, सांसें तेज, लेकिन चेहरा तरोताजा—गाँव वाली सादगी में वो शरारत भरी चमक जो हरि को पागल कर देती। "बाबूजी... खाना लाई हूँ। मामी ने बनाया है, ताजा ताजा। गर्मी में भूल गए होंगे, या नशे में डूबे हो।" राधा ने थाली नीचे रखी, लेकिन हरि की लाल आँखें देख लीं—नशे की वो चमक, जो उसे डराती भी और गुदगुदाती भी। "बेटी... आ जा... बाबूजी के पास बैठ। खाना बाद में, पहले तू... कितनी तरबतर लग रही है, साली। पसीना तेरी बॉडी से टपक रहा, जैसे कोई रंडी सड़क पर घूम रही हो।" हरि की आवाज भारी थी, नशे से कँटीली, लेकिन लालच से भरी—हाथ बढ़ाया, राधा की कमर पकड़ी, धीरे से खींच लिया।

राधा हिचकिचाई एक पल, थाली को किनारे सरका दिया, लेकिन करीब आ गई—तंबू के नीचे, हरि के बगल में बैठ गई, घुटनों को मोड़कर। पसीना उसके गाल से टपक रहा था, साड़ी का पल्लू और सरक गया, ब्लाउज चूचियों को कसकर चिपटा हुआ। "बाबूजी... नशा चढ़ गया? चिलम की बू आ रही है। मामी-भाई घर पर हैं, कोई देख लेगा तो क्या कहेंगे? लेकिन... हाँ, गर्मी से पसीना बह रहा। साफ कर दो ना... अपनी जीभ से। लेकिन गंदा बोलो पहले... 'बेटी, तेरी कंख का पसीना... बाबूजी चाटेंगे, जैसे तेरी चूत का रस चूसते हैं।'" हरि की सांसें तेज हो गईं, नशे में लंड जोर से सख्त—हाथ कंख पर सरका दिया, पल्लू पूरी तरह सरका दिया। "हाँ रंडी बेटी... तेरी कंख चूत जैसी गंदी महक रही। चाटूँ... जीभ अंदर घुसाऊँ? तेरी बालों वाली कंख... कितनी नमकीन लग रही। बोल... 'बाबूजी, चूस लो अपनी बेटी की कंख, जैसे गांड चाटते हो रातों में।'" राधा सिहर उठी, हाथ हरि के सिर पर दबा दिया—कमर मुड़ गई, साड़ी ऊपर सरकने लगी। "आह बाबूजी... चूसो। हाँ... बाल चूसो। गंदा लग रहा? लेकिन तेरी जीभ... उफ्फ, गुदगुदा रही है मेरी चूत तक। अब... दूसरी कंख। थूक दो पहले, गीला करके चाटो। और बोलो... 'राधा रंडी, तेरी कंख का पसीना... बाबूजी का नशा। तेरी चूचियाँ भी तरबतर होंगी न? दबाऊँ जोर से, "

हरि ने थूक गिराया—गर्म, चिपचिपा थूक कंख पर फैला, फिर जीभ से चाटा, अंदर घुमाई। "हाँ... दबाऊँ तेरी चूचियाँ। साली... तू जानती है बाबूजी को क्या भाता। ब्लाउज ऊपर कर... देखूँ कितनी मोटी हो गईं तेरी चूचियाँ। गाँव की लड़कियों जैसी नहीं, तेरी तो भरी-भरी, दूध वाली।" राधा ने ब्लाउज ऊपर किया, चूचियाँ बाहर उछल आईं—बड़े-बड़े, पसीने से चमकती, निप्पल्स तने हुए। हरि ने हाथ लगाया, दबाया—जोर से, उंगलियाँ फैलाकर निप्पल्स मरोड़े। "उफ्फ... राधा... तेरी चूचियाँ... कितनी भरी, गोल। निप्पल्स तने हुए... जैसे बाबूजी का लंड चूसने को बेताब। दबाऊँ जोर से? बोल... 'बाबूजी, दबाओ अपनी रंडी बेटी की चूचियाँ, निप्पल्स मरोड़ो जैसे दूध निचोड़ रहे हो। गंदा बोलो... "साली, तेरी चूचियाँ गाँव की रंडी जैसी, बेच दूँगा सेठ को।"' " राधा कराही, चूचियाँ दबते हुए कमर हिलाई—'हाँ बाबूजी... दबाओ जोर से। तेरी बेटी की चूचियाँ... मोटी हैं न? निप्पल्स मरोड़ो... दर्द दो, लेकिन मजा भी। मामी की तरह नहीं, तेरी औलाद की... चूसो। लेकिन गंदा बोलो... 'साली रंडी, तेरी चूचियाँ... गाँव की वेश्या जैसी। बाबूजी चूसेंगे, दाँत लगाएँगे, काट लेंगे। बोल बेटी... "चूसो बाबूजी, बेटी का दूध पी लो, तेरी जीभ निप्पल पर घूम रही, उफ्फ... चूत गीली हो गई।"' हरि ने निप्पल मरोड़ा, फिर मुंह में लिया—चूसा जोर से, दाँत हल्के लगाए। "मम्म... हाँ रंडी... गाँव की वेश्या जैसी। तेरी चूचियाँ... दूध वाली, लेकिन पसीने वाली। चूसूँ पूरा? बोल... 'बाबूजी, चूस लो, बेटी का दूध पी लो। तेरी जीभ... निप्पल पर घूम रही, उफ्फ... चूत टपक रही। लेकिन लंड... बाहर निकालो, देखूँ कितना सख्त हो गया।'"

हरि ने पैंट खोली, लंड बाहर उछला—मोटा, नसें फूलीं, सुपारा चमकता। राधा ने पकड़ा, सहलाया—ऊपर-नीचे हिलाया। "बाबूजी... कितना लंबा, मोटा... चूत फाड़ देगा। लेकिन... गंदा बोलो। 'बेटी, तेरी चूत... बालों वाली रंडी चूत। बाबूजी का लंड चूस लेगी, मुंह में ले ले। थूक दो सुपारे पर, गीला कर।'" राधा ने थूक गिराया, मला—हाथ से रगड़ा। हरि चूचियाँ दबाते हुए, "हाँ... रंडी चूत। चूस ले... मुंह में ले बेटी। तेरी हथेली... गर्म लग रही, लेकिन मुंह... गला तक ले। बोल... 'बाबूजी, आपका लंड... कड़वा स्वाद, लेकिन बेटी चूसेगी। गंदा बोलो... "साली, तेरी जीभ लंड चूस रही, गला ठोक दूँगा।"' " राधा झुकी, मुंह में लिया—चूसी, जीभ सर्कुलर घुमाई, गला तक धकेला। हरि सिसका, 'आह... तेरी जीभ... लंड चूस रही। लेकिन अब... तेरी जांघें चाटूँ। फैला पैर रंडी... बाबूजी चाटेंगे।' राधा ने पैर फैलाए, हरि की जीभ जांघों पर—अंदरूनी, गीली। "तेरी जांघें... पसीना... चूत का रस मिश्रित। चाटूँ चूत? बोल... 'बाबूजी, चाट लो अपनी बेटी की चूत, बालों वाली गंदी चूत। थूक दो पहले, गीला करके होंठ चूसो।'" राधा कराही, 'हाँ... चाटो। थूक दो, तेरी जीभ... चूत के होंठ चूसो। गंदा बोलो... 'राधा रंडी, तेरी चूत... बाबूजी का। जीभ अंदर डालूँ?' हरि ने थूक गिराया, जीभ चूत पर—चाटा, होंठ चूसे। "उफ्फ... तेरी चूत... कितनी गीली, बाल चुभ रहे। रस... मीठा। चूसूँ गहरा? बोल... 'बाबूजी, जीभ अंदर डालो, बेटी का रस पी लो। तेरी चूचियाँ... दबाते रहो, निप्पल्स मरोड़ो।'"

हरि ने जीभ अंदर धकेली, चाटते हुए चूचियाँ दबाईं—जोर से, निप्पल्स मरोड़े। "हाँ... रस पी लूँगा। साली... तेरी चूत कस रही, जीभ चूस रही। लंड डालूँ? चोदूँ यहाँ खेत में, जैसे गाय को चोदते हैं?" राधा ने लंड पकड़ा, रगड़ा चूत पर—'हाँ बाबूजी... डालो। लेकिन गंदा बोलो... 'रंडी बेटी, तेरी चूत फाड़ दूँगा। मामी को बता दूँगी, तू अपनी बेटी चोदता है गाँव के खेत में, पसीने से तरबतर।' हरि धक्का मारा—आधा अंदर। "आह... ले... फाड़ दिया। तेरी चूत... बाबूजी का लंड चूस रही। धक्के दूँगा जोर से। बोल... 'चोदो बाबूजी, तेरी बेटी रंडी बनी तेरे लिए। चूचियाँ दबाते रहो, निप्पल्स काटो।'" धक्के शुरू, चूचियाँ दबाते राधा चिल्लाई, 'हाँ... जोर से चोदो। तेरी लंड... मोटा, नसों वाला। चूत फाड़ेगी। आ रही हूँ बाबूजी... रस दो!' हरि तेज, 'ले... भर दिया रंडी!' फूटा, वीर्य भरा। दोनों हाँफे, लिपटे—

उधर गाँव के पुराने घर में शाम की लाली धीरे-धीरे फैल रही थी, जैसे कोई थकी हुई आग आंगन को रंग रही हो। नीम का पेड़ अपनी लंबी छाया डाल रहा था, रमा (उमा) रसोई से निकली, हाथ में थाली लिये—खाना परोसने को, दाल-चावल की हल्की महक थाली से उठ रही। साड़ी का पल्लू हल्का सा ढीला था, गर्मी से बॉडी पर पसीना चिपक चुका था, ब्लाउज गीला होकर चूचियों को कसकर चिपटा हुआ। चूचियाँ—बड़े-बड़े, भरे हुए, जैसे दो रसीले फल—हल्के से उभरे हुए। रवि आंगन में बैठा था, किताबें फैलाईं लेकिन मन कहीं और भटक रहा—सुबह की वो मसलन, होली की चुदाई, और सड़क पर राधा-हरि का वो सीन जो देखा था। "मम्मी... खाना लाई?" रवि ने सिर उठाया, आवाज में हल्की चिढ़, लेकिन नजरें ठहरीं रमा पर।

रमा ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "हाँ बेटा... आ रही हूँ। थोड़ा झुककर थाली रखूँगी, तू हाथ धो ले।" वो आंगन के कोने में पुरानी मेज की तरफ बढ़ी, थाली नीचे रखने को झुक गई—धीरे से, कमर मुड़ गई। साड़ी का पल्लू सरक गया, ब्लाउज का ऊपरी हुक ढीला—चूचियाँ बाहर झाँक आईं, नंगी, पसीने से चमकती। निप्पल्स हल्के तने हुए, गुलाबी, जैसे कोई न्योता दे रही हों। वो दृश्य—रमा की झुकी कमर, साड़ी नीचे सरकती, चूचियाँ लटकती हुईं—रवि की सांसें अटक गईं। किताब हाथ से गिर गई, धड़ाम की आवाज आई। आँखें फैलीं, चेहरा लाल—वो चूचियाँ, जो होली में चूसी थीं, मसल चुका था, लेकिन अब... इतनी करीब, इतनी नंगी, आंगन की रोशनी में चमकती। "मम्मी... तू... ये क्या कर रही है साली?" रवि की आवाज काँप गई, लेकिन गुस्सा भड़क उठा—ईर्ष्या की ज्वाला, हवस का तूफान। वो उठ खड़ा हुआ, कदम तेज—रमा के पास पहुँचा।

रमा ने सीधा होना चाहा, लेकिन रवि का हाथ पहले पहुँच गया—गाल पर जोरदार थप्पड़, चटाक की तेज आवाज आंगन में गूँजी। रमा का सिर झटके से मुड़ गया, गाल पर लाल निशान उभर आया, जैसे कोई जलता कोयला चिपक गया हो। दर्द की लहर चेहरे से नीचे फैली, लेकिन साथ ही वो सिहरन—चूत में हल्की गुदगुदी, सांसें तेज। "रवि... बेटा... क्या कर रहा तू? मा तेरी है... आह..." लेकिन रवि रुका न—आँखें लाल, लंड पैंट में दर्द कर रहा। "चुप साली रंडी... तेरी ये मोटी चूचियाँ... सबको दिखाती घूमती है? होली में तो मेरे हाथों में चूदी थीं, मसल-मसलकर लाल कर दी थीं, और अब आंगन में झुककर नंगी कर रही? ले हरामी कुतिया... तेरी चूचियाँ दूध वाली रंडी चूचियाँ हैं, ले... दूसरा!" थप्पड़ दूसरा, उसी गाल पर—चटाक! और जोरदार, गाल सूजने लगा, दर्द की आग चेहरे से गर्दन तक फैली। रमा की आँखों में आँसू छलक आए, लेकिन होंठ काँपे—मुस्कान की हल्की रेखा। नीचे चूत गीली हो रही, गरमाहट फैल रही। "आह रवि... दर्द हो रहा बेटा... लेकिन... तेरी गालियाँ... उफ्फ, चूत को छू रही। मारो ना और... मा रंडी है तेरी, सजा दो। बोल... 'कुतिया मम्मी, तेरी चूचियाँ मटन जैसी मोटी, मारूँगा थप्पड़ तक लाल न हो जाएँ।'"

रवि का चेहरा पसीने से तर, लंड अब पूरी तरह सख्त—पैंट फाड़ने को बेताब। "हाँ साली हरामी... तेरी चूचियाँ मोटी, गाँव भर को चुदवाएगी? ले... तीसरा थप्पड़, रंडी की औलाद!" चटाक! तीसरा थप्पड़, दूसरे गाल पर—जोर से, सिर झटका, गाल जलने लगा जैसे कोई लोहे की छड़ मार दी हो। रमा की सिसकी निकली, हाथ मेज पर टिका लिया—दर्द की लहर बॉडी में दौड़ी, लेकिन साथ ही वो मीठी सिहरन, चूत के होंठ फूलने लगे, रस हल्का टपकने लगा। "उफ्फ... बेटा... तेरी मा जल रही... लेकिन मजा आ रहा। गालियाँ और दो... 'हरामी कुतिया, रवि ने हँस दिया, लेकिन आग और भड़की—हाथ फिर उठा। "हाँ कुतिया... ले... चौथा थप्पड़, साली रंडी!" चटाक! चौथा थप्पड़, पहले गाल पर—गाल सूजकर लाल हो गया, दर्द की आग आँखों तक पहुँची। रमा रोने लगी, लेकिन आँखें चमक रही—हॉर्नीनेस चरम पर, साड़ी के नीचे पैर आपस में रगड़ने लगे। "आह... रवि... तेरी मा की सजा... चूत को गुदगुदा रही। और मारो... पाँचवाँ। बोल... 'साली हरामी, तेरी चूचियाँ दूध वाली वेश्या चूचियाँ, मारूँगा थप्पड़ तक कट जाएँ।'"

रवि का हाथ काँप रहा था उत्तेजना से, पसीना माथे से टपक रहा—'हाँ साली... तेरी चूचियाँ दूध वाली वेश्या चूचियाँ, गाँव के सेठ को बेच देगी क्या? ले... पाँचवाँ!' चटाक! पाँचवाँ थप्पड़, दूसरे गाल पर—जोरदार, सिर घूम गया, गाल पर निशान गहरा उभर आया। रमा की सिसकी तेज हो गई, आँसू गाल पर लुढ़क आए, लेकिन नीचे चूत से रस बहने लगा—गरमाहट फैल रही, बॉडी काँप रही। "उफ्फ बेटा... दर्द... लेकिन तेरी गालियाँ... स्वादिष्ट लग रही। मा तेरी गुलाम बनी... छठा मारो। 'कुतिया मम्मी, तेरी चूचियाँ होली में चूसी थीं, अब थप्पड़ खाएँगी।'" रवि ने सिर हिलाया, लंड दर्द कर रहा—'हाँ कुतिया... होली में चूसी थीं, लेकिन अब सजा। ले... छठा!' चटाक! छठा थप्पड़, पहले गाल पर—गाल जल रहा, सूजन आ गई। रमा की कमर झुक गई, लेकिन वो मुस्कुराई—'हाँ... सजा दो... मा रंडी है। सातवाँ... गाली दो। "हरामी रंडी, तेरी चूचियाँ गंदी, ' रवि ने सातवाँ—चटाक! 'हरामी... तेरी चूचियाँ गंदी, प्रोफेसर को चूसा करती, ले... आठवाँ!' चटाक! रमा चीखी, 'आह... हाँ... चूसी करती। नौवाँ मारो... "साली कुतिया, तेरी चूत रस टपका रही थप्पड़ों से।"' नौवाँ—चटाक! रमा काँप उठी, 'हाँ... रस टपक रहा। दसवाँ... बेटा... जोर से। "रंडी मम्मी, तेरी चूचियाँ लाल हो गईं, मारूँगा और।"' दसवाँ थप्पड़—चटाक! गाल जल रहे, लेकिन रमा गरम—'उफ्फ... लाल हो गईं... चोदो अब।'

रवि ने हाथ रोका, लेकिन थूक लिया—गर्म, चिपचिपा—हाथ पर गिराया। 'ले रंडी... बेटा का थूक... तेरे चेहरे पर मलूँगा। गंदा चेहरा बनेगा।' हाथ रमा के गाल पर रगड़ा, थूक फैलाया—गीला, चमकता। रमा ने जीभ निकाली, चाटा—'उम्म... बेटा... तेरा थूक... मीठा। और मलो... मा का चेहरा गंदा कर दो।' रवि मला, ठुड्डी पर, होंठों पर—'हाँ हरामी... तेरा चेहरा थूक से चमकेगा, रंडी जैसा। अब... बेड पर जा, कुतिया बन। गांड ऊपर कर।' रमा उठी, आँखें नम लेकिन गरम—बेडरूम में घुसी, बेड पर झुकी—कुतिया की तरह, साड़ी ऊपर, गांड ऊपर। 'हाँ बेटा... मा कुतिया बनी। अब... गांड पर थप्पड़। सजा दो, जोर से।'

रवि पीछे आया, पैंट खोली—लंड बाहर, सख्त। लेकिन पहले हाथ उठाया—पहला थप्पड़ गांड पर, चटाक! सफेद गांड पर लाल निशान उभरा। 'ले रंडी मम्मी... तेरी गांड... गोल रंडी गांड। मारूँगा थप्पड़, फाड़ दूँगा लंड से।' रमा सिसकी, गांड हिली—दर्द की लहर, लेकिन चूत गीली। 'आह... बेटा... दर्द... लेकिन चूत गुदगुदा रही। बोल... "कुतिया, तेरी गांड बाबूजी जैसी गंदी, चोदूँगा।" और मारो दूसरा।' रवि ने दूसरा—चटाक! गांड का गोला लाल, जलन फैली। 'हाँ कुतिया... तेरी गांड बाबूजी जैसी गंदी, लेकिन मैं फाड़ूँगा। ले... तीसरा!' चटाक! रमा की कमर काँपी, रस टपका—'उफ्फ... रवि... तेरी मामी की गांड... तेरी। गालियाँ दो... "हरामी कुतिया, तेरी गांड खुली पड़ी, थप्पड़ खाएगी।" चौथा मार।' रवि ने चौथा—चटाक! निशान गहरा। 'हरामी... तेरी गांड खुली पड़ी, ले... पाँचवाँ!' चटाक! रमा चीखी, 'हाँ... खुली पड़ी... सजा दो। छठा... "साली रंडी, तेरी गांड फाड़ दूँगा।"' छठा—चटाक! 'हाँ साली... फाड़ दूँगा। ले... सातवाँ!' चटाक! रमा रोने लगी, 'आह... बेटा... जल रही... लेकिन मजा। आठवाँ... "कुतिया मम्मी, तेरी चूत रस टपका रही।"' आठवाँ—चटाक! 'हाँ... रस टपक रहा। नौवाँ मारो... "हरामी, तेरी गांड लाल हो गई।"' नौवाँ—चटाक! 'हरामी... लाल हो गई। ले... दसवाँ!' चटाक! रमा काँप उठी, 'उफ्फ... लाल हो गई... चोदो अब बेटा।' रवि ने लंड डाला, धक्के मारे—'ले रंडी... फाड़ दिया!'

रात का अंधेरा गाँव पर गहरा उतर आया था, जैसे कोई काला साया सब कुछ निगलने को तैयार हो। चाँदनी की पतली किरणें खेतों पर बिखर रही थीं, सरसों की फसल हवा में सरसराती हुई चाँदनी में चमक रही, लेकिन सन्नाटा इतना घना कि सांसें भी सुनाई दे रही। दूर कहीं कुत्तों की भौंकने की आवाजें आ रही थीं, और हवा में मिट्टी की गंध मिश्रित हो रही थी रात के ठंडेपन से। हरि और रवि खेत के बीच में पुराने तंबू के नीचे बैठे थे—तंबू फटा हुआ, लेकिन छाया दे रहा। बीच में दारू की बोतल रखी हुई, देशी, मोटी—गाँव के सेठ के लड़के से चुपके लाई थी। दो गिलास भरे हुए, धुएँ की महक चिलम से उठ रही। नशा धीरे-धीरे चढ़ने लगा था—हरि की आँखें लाल हो रही, चेहरा पसीने से तर, रवि का सिर भारी, लेकिन मन में वो काली भूख जाग रही—उमा की। खाना खत्म हो चुका था घर पर, लेकिन ये भूख बाकी थी, दिन भर की उत्तेजना से भड़की हुई।

हरि ने गिलास उठाया, रवि से टकराया—खनक की आवाज तंबू के नीचे गूँजी। "खट्टा... ले बेटा, पी। तेरी मम्मी... साली उमा... रंडी है ना? होली में देखा था तूने चोदा उसे आंगन में, चूचियाँ मसल दीं, थप्पड़ मारे। लेकिन आज... खेत में बुला लें, नंगी कर दें। तेरी मम्मी की चूत... कितनी कस है, बाबूजी फाड़ देंगे। बोल... प्लान क्या बेटा? फोन कर, बोल 'मम्मी, खेत में आ, मामू इंतजार कर रहे। रात का मजा लेना है।'" रवि हँसा, नशे में आँखें सिकुड़ीं—दारू का गिलास गटक लिया, जलन गले में उतरी, लेकिन बॉडी में गर्माहट फैली। लंड पैंट में हलचल मचा रहा, हाथ सरका दिया—हल्का सहलाया। "हाँ मामू... मम्मी रंडी है। सड़क पर थप्पड़ मारे थे, चूचियाँ मसल-मसलकर लाल कर दीं, दूध निकालने जैसा मजा आया। लेकिन आज... दोनों का लंड मुंह में लेगी। शाम को थप्पड़ मारे थे, गांड फाड़ी थी। बोलो मामू... प्लान ये कि फोन करूँ, बोलूँ 'मम्मी, खेत में आ। मामू के साथ दारू पी रहे, तेरी चूचियाँ दिखा दूँ मामू को।' लेकिन गंदा बोलूँ ना... 'मेरी रंडी मम्मी, तेरी चूत बाबूजी का लंड लेगी, आ जा।'" हरि ने हँस दिया, बोतल उठाई—अपना गिलास भरा, धीरे से घूँटा। "हाँ बेटा... गंदा बोल। बोल 'मम्मी, तेरी चूचियाँ मामू को दिखा दूँगा, चूसने दे दूँगा। तेरी चूत... आज फाड़ेंगे दोनों।' लेकिन सावधान, कोई सुन न ले। गाँव में अफवाह फैल गई तो..." रवि ने सिर हिलाया, फोन निकाला—नशे में उँगलियाँ काँप रही, लेकिन नंबर डायल किया। रिंग गई एक बार, दूसरी—फिर आवाज आई, उमा की, हल्की नींद भरी लेकिन जागती हुई। "हाँ रवि... इतनी रात को बेटा? क्या हुआ?"

रवि की आवाज भारी हो गई, नशे से कँटीली—'मम्मी... खेत में आ जा। मामू के साथ बैठे हैं, दारू पी रहे। तू भी आ... रात का मजा लेना है। तेरी चूचियाँ... मामू को दिखा दूँगा, चूसने दे दूँगा। तेरी चूत... आज मामू का लंड लेगी।' उमा की सांस अटक गई एक पल, फोन पर सन्नाटा—लेकिन फिर हल्की हँसी छूट गई, गरमाहट फैलने लगी। "रवि... बेटा... रात को खेत? ठीक है... आ रही हूँ। लेकिन... गर्म साड़ी पहनूँगी। तेरी मम्मी तेरे लिए तैयार। मामू को बोलना... बहन की चूत इंतजार कर रही।" फोन कटा, रवि ने हँस दिया—हरि को देखा। "मामू... मम्मी आ रही। साली गरम हो गई। बोली 'मामू को बोलना, बहन की चूत इंतजार।' प्लान पक्का।" हरि ने गिलास टकराया, 'हाँ बेटा... तेरी मम्मी रंडी बनेगी आज। दोनों का लंड चूसेगी, गला ठोक लेगी। फिर बाबूजी तेरी मम्मी की चूत फाड़ेंगे, तू चूचियाँ मसलेगा। बोल... 'मम्मी आएगी तो पहले दारू पिलाएँगे, नशा चढ़ेगा तो रंडी बनेगी।'"

कुछ देर बाद, कदमों की आहट सुनाई दी—धीमी, लेकिन उत्साहित। उमा आ गई, गर्म साड़ी में—लाल रंग की पतली साड़ी, जो बॉडी से चिपकी हुई, ब्लाउज डीप नेक वाला, चूचियाँ ऊपर उभरी हुईं, कमर नंगी, पेट की नाभि साफ दिख रही। पसीना चमक रहा चेहरे पर, बाल खुले लहराते। "हरि... रवि... बुलाया? रात को खेत... क्या मजा लेने का इरादा है?" आवाज मधुर, लेकिन टोन में वो शरारत जो दोनों को पागल बना देती। हरि ने खींच लिया, गोद में बिठा दिया—कमर पकड़ी, दबाया। "हाँ रंडी दीदी... तेरी चूत का मजा लेने का। आ... दारू पी। तेरी चूचियाँ... आज दबाएँगे दोनों। बोल... 'भाई, तेरी बहन की चूचियाँ... तेरे और बेटे के लिए।'" उमा हँसी, गिलास लिया—गिलास रवि से भरा। 'हाँ भाई... चूचियाँ दबाओ। लेकिन गंदा बोलो पहले... 'दीदी रंडी, तेरी चूचियाँ मोटी, बेटे के हाथों मसली जाती हैं न? रवि ने गिलास थमाया, अपना हाथ साड़ी में सरका—चूचियाँ पकड़ीं। "मम्मी... पी। तेरी चूचियाँ... मामू को दिखा दूँगा। होली में मसलीं, आज फिर। बोल... 'बेटा, तेरी मम्मी की चूचियाँ... तेरे और मामू के लिए। दबाओ दोनों, जोर से।'" उमा पीया, गिलास नीचे रखा—दारू की जलन गले में उतरी, बॉडी गरम। 'हाँ बेटा... दबाओ। हरि... तेरी बहन की चूचियाँ... जवानी से तेरे हाथों में रही। रवि... बेटे, तेरी मम्मी रंडी बनी। लेकिन प्लान क्या? खेत में... चोदोगे दोनों? बोलो ना... 'मम्मी रंडी, तेरी चूत बालों वाली, दोनों का लंड लेगी।''

हरि ने दारू पिया, उमा की कमर दबाई—हाथ साड़ी में घुसा, पेटीकोट पर। 'हाँ रंडी दीदी... प्लान ये कि तू दोनों का लंड चूसेगी। पहले मुंह में ले, गला तक। फिर तेरी चूचियाँ चूसेंगे, रवि तेरी चूत में उंगली डालेगा। बोल... 'भाई, तेरी बहन का मुंह... रंडी मुंह, चूसूँगी दोनों का लंड। गंदा बोल... "रंडी दीदी, तेरी जीभ लंड चूस लेगी, गला ठोक लेगी।"' उमा गरम हो गई, साड़ी ऊपर सरकाई—पेट नंगी। 'हाँ भाई... चूसूँगी। रवि... तेरी मम्मी का मुंह... तेरे लंड का। लेकिन पहले दारू दो... नशा चढ़े तो मजा। बोल... 'बेटा, तेरी मम्मी की चूत... मामू का लंड लेगी, तू चूचियाँ मसलेगा। गंदा बोल... "रंडी मम्मी, तेरी चूत गीली हो गई दारू से।"' रवि ने गिलास भरा, उमा को पिलाया—'हाँ मम्मी... गीली हो गई। मामू... मम्मी की चूत कस है न? होली में चोदा था, आज फिर। बोल... 'मामू, मम्मी की चूत... बालों वाली, लंड चूस लेगी।' हरि ने साड़ी ऊपर की, पेटीकोट नीचे—चूत नंगी, बालों वाली। 'हाँ बेटा... बालों वाली रंडी चूत। उंगली डालूँ? देख... गीली है। बोल... 'दीदी, तेरी चूत... भाई का लंड याद करती होगी। गंदा बोल... "रंडी, तेरी चूत रस टपका रही, बेटे के सामने चोद दूँगा।"' उमा कराही, 'हाँ... रस टपक रहा। बेटा... देख मम्मी की चूत... मामू की उंगली अंदर। लेकिन पहले... लंड चूसूँ। दोनों का। गंदा बोलो... 'मम्मी, तेरी जीभ लंड चूस लेगी, गला ठोक लेगी।' '

हरि ने पैंट खोली, लंड बाहर—मोटा, काला। 'ले रंडी दीदी... चूस। गला तक।' उमा झुकी, मुंह में लिया—चूसी, जीभ घुमाई। 'मम्म... भाई... तेरा लंड... कड़वा, लेकिन मीठा। गला तक लूँ?' हरि बाल पकड़े, धकेला—'हाँ... गला ठोक। रवि... देख तेरी मम्मी... भाई का लंड चूस रही। बोल... 'मामू, मम्मी का मुंह गंदा हो गया।' रवि ने पैंट खोली, 'मम्मी... मेरा भी।' उमा ने बारी बदली, रवि का लंड मुंह में—चूसा। 'उम्म... बेटा... तेरा ताजा, नसें फूलीं। गंदा बोल... 'मामू, मम्मी का मुंह... दोनों का लंड ले रहा। डीप थ्रोट करूँ?' हरि हँसा, 'हाँ... कर रंडी। गला फाड़।' उमा ने गला तक लिया, —थूक निकला, चिपचिपा, गर्म। 'आह... मम्मी... थूक निकला।' रवि ने थूक पिया—'उम्म... मम्मी का थूक... मीठा। और चूस। बोल... 'बेटा, मम्मी का थूक पी ले, प्यार का।' उमा चूसी, थूक निकला—रवि पीया। 'हाँ... पी ले। हरि... तेरी बहन का थूक... बेटे को पिला रही। गंदा बोल... 'रंडी दीदी, तेरी जीभ लंड चूस रही, थूक टपक रहा।' '

फिर हरि ने उमा को पटक दिया, खेत की मिट्टी पर—साड़ी ऊपर, चूत नंगी। 'दीदी... ले लंड।' धक्का मारा—चूत में घुसा। 'आह... कस रही रंडी... ले धक्के!' कमर हिलाई, जोरदार। उमा चीखी, 'आह भाई... फाड़ दो... तेरी बहन की चूचियाँ दबाओ। रवि... देख... मामू चोद रहा मम्मी को।' रवि ने गाल पर थप्पड़—चटाक! 'ले रंडी मम्मी... चुद रही है मामू से।' उमा सिहरी, गरम—'आह... बेटा... थप्पड़... मजा। और मार। मम्मी गरम हो रही।' रवि ने फिर थप्पड़—चटाक! 'हरामी... तेरी चूत मामू के लंड में। ले!' उमा काँप उठी, 'हाँ... मारो... मम्मी की चूत कस रही थप्पड़ों से। भाई... जोर से चोद... बेटे के थप्पड़ से चूत टपक रही।' हरि तेज धक्के, 'हाँ रंडी... कस रही। रवि... थप्पड़ मार... तेरी मम्मी को सजा। बोल... 'कुतिया मम्मी, तेरी चूचियाँ उछल रही।' रवि ने तीसरा—चटाक! 'कुतिया... चुद रही है मामू से। ले!' , 'आह... रस आ रहा... दोनों का!' हरि फूटा, 'ले... भरा दिया!' रवि ने थूक दिया मुंह पर।

शाम की चाँदनी धीरे-धीरे उतर रही थी, जैसे कोई सफेद रेशमी चादर हवा में लहरा रही हो, लेकिन उमेश के घर के आंगन में हवा में एक अजीब सी उत्तेजना घुली हुई लग रही—जैसे कोई छिपा हुआ तूफान धीरे-धीरे इकट्ठा हो रहा हो, बिना आवाज के। घड़ी की सुई 6 बजी, और उमेश ने रसोई से चाय की ट्रे तैयार की—चाय के कप भाप लिये उड़ रही, बिस्किट की प्लेट सजी हुई, लेकिन उसके मन में वो प्लान घूम रहा था जो सुबह से ही उसे बेचैन कर रहा था। ककॉल्ड फैंटसी—प्रोफेसर शर्मा को बुलाना, खुशबू को उनके साथ चोदते देखना, खुद पास बैठा लंड सहलाते हुए। "बेटा... सर आने वाले हैं। तूशन का बहाना है, लेकिन..." वो खुशबू को धीरे से फुसफुसाया, आँखों में वो चमक जो छिप न सकी। खुशबू ने मुस्कुराकर सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखों में भी शरारत भरी हलचल थी—'पापा... मैं तैयार हूँ। लेकिन सर को मत बताना... आप देखोगे। शाम को मजा आएगा।' उमेश का मन में उत्तेजना की लहर दौड़ी, लेकिन चेहरा संभाला, बस हल्का सिर हिलाया। वो बाहर आया, ट्रे हाथ में, सोफे पर बैठा—हवा में चाय की खुशबू फैल गई, लेकिन उसके दिल की धड़कन तेज थी।

दरवाजे पर धीमी खटखटाहट हुई—उमेश उठा, दरवाजा खोला—प्रोफेसर शर्मा खड़े थे, सफेद कुर्ता-पायजामा पहने, चश्मा चेहरे पर सधा हुआ, हाथ में किताबों का एक छोटा सा बंडल। चेहरा सौम्य, मुस्कान शिक्षक वाली—'नमस्कार उमेश जी... समय पर पहुँच गया। खुशबू के तूशन के लिए ही तो आया हूँ।' उमेश ने मुस्कुराकर दरवाजा चौड़ा किया, 'सर... आइए अंदर। चाय तैयार है। खुशबू अभी आ रही होगी।' शर्मा अंदर आए, कदम धीरे-धीरे सोफे की तरफ बढ़े—घर साफ-सुथरा था, दीवार पर पुरानी तस्वीरें, हवा में हल्की चाय की महक। वो सोफे पर बैठे, किताबें गोद में रखीं, उमेश ने ट्रे मेज पर रखी—चाय का कप थमाया। "सर... पहले चाय लीजिए। दिन भर की थकान मिट जाएगी।" शर्मा ने कप लिया, हल्का घूँट भरा—भाप उठती हुई, चाय की गर्माहट चेहरे पर फैली। 'धन्यवाद उमेश जी... आपकी मेहमाननवाजी तो हमेशा की तरह। खुशबू कैसी है? पढ़ाई में लगी रहती है न?'

उमेश ने खुद का कप लिया, सोफे पर बगल में बैठा—हवा में चाय की खुशबू और वो तनाव जो धीरे-धीरे बढ़ रहा था। "हाँ सर... लगी रहती है। लेकिन परीक्षा नजदीक आ गई है, मार्क्स अच्छे करने हैं। आप ही बताइए, क्लास में कैसी है? कोई कमी तो नहीं?" शर्मा ने कप नीचे रखा, चश्मा ठीक किया—मुस्कान सौम्य, लेकिन आँखों में वो चमक जो शिक्षक की गरिमा के पीछे छिपी हुई लग रही। 'उमेश जी... खुशबू तो बहुत होशियार बच्ची है। क्लास में हमेशा आगे रहती है, सवाल पूछती है। ध्यान देती है... लेकिन कभी-कभी... युवावस्था का असर होता है, थोड़ा भटकाव आ जाता है।' उमेश ने सिर हिलाया, चाय का घूँट लिया—मन में हल्की जलन, लेकिन वो मुस्कान बरकरार। "सर... भटकाव? मतलब दोस्तों में या कुछ और?" शर्मा ने कंधे उचकाए, हल्का हँसा—'अरे... दोस्त-मित्रों में, या प्रोजेक्ट्स में। वो तो मेरे साथ घंटों बैठती है, डिटेल में समझती। कभी लेट क्लास में भी बुलाता हूँ, डाउट क्लियर करने को। लेकिन रिजल्ट हमेशा अच्छा आता है। आप चिंता न करें, थोड़ी मार्गदर्शन की जरूरत है बस।' शब्दों में वो छिपा इशारा—उमेश ने महसूस किया, मन में उत्तेजना की हल्की लहर, लेकिन चेहरा शांत रखा। "हाँ सर... मार्गदर्शन जरूरी है। शाम को तूशन हो जाए। आप समय दें, तो खुशबू और सुधार जाएगी।"

शर्मा ने किताबें खोलीं, पेज पलटे—'उमेश जी... खुशबू को अलजेब्रा में थोड़ी प्रैक्टिस की जरूरत। कभी-कभी सवालों में घबरा जाती है, लेकिन मेरे साथ प्रैक्टिस करेगी तो आसान हो जाएगा।' उमेश ने सिर हिलाया, 'सर... प्रैक्टिस से सब आसान। खुशबू... आ रही होगी।' तभी कदमों की हल्की आहट—खुशबू अंदर आई, टाइट सलवार-कमीज पहने हुए। नीली सलवार, जो बॉडी को चिपककर कमर को लिपट रही, चूचियाँ ऊपर उभरी हुईं, कूल्हे हिलते हुए धीरे-धीरे। बाल खुले लहरा रहे, हल्का मेकअप चेहरे पर—होंठ गुलाबी, आँखें काजल से सजी। "सर... नमस्कार। पापा ने बुलाया।" आवाज मधुर, लेकिन आँखों में वो शरारत जो धीरे-धीरे हवा में घुल गई। शर्मा की नजरें ठहरीं एक पल, मुस्कुराया—'खुशबू... आओ बेटी। बैठो। कितनी अच्छी लग रही हो आज। सलवार-कमीज सूट कर रही।' खुशबू ने शर्मा के बगल में सोफे पर बैठना चुना, करीब—जांघें हल्की छू रही। "सर... पढ़ाई पर चर्चा करेंगे? मैं तैयार हूँ।" उमेश ने मुस्कुराया, 'बेटा... सर के बगल में बैठ। चाय ले लो।'

शर्मा ने चाय का कप थमाया, लेकिन आँखें खुशबू की कमर पर। 'खुशबू... मैथ्स में अच्छी हो, लेकिन कभी-कभी कठिन सवालों में घबरा जाती। लेकिन मेरे साथ प्रैक्टिस करो, तो आसान हो जाएगा। एनर्जी तो तुम्हारी कमाल है।' खुशबू ने हल्का सिर हिलाया, लेकिन मुस्कुराई—'हाँ सर... प्रैक्टिस जरूरी। पापा कहते हैं, आप अच्छा सिखाते हैं।' उमेश ने सिर हिलाया, 'सर... हाँ, प्रैक्टिस से सब।' चर्चा धीरे-धीरे चली—चैप्टर्स, टेस्ट, लेकिन शर्मा के शब्दों में इशारा—'खुशबू... कभी लेट क्लास में बुलाता हूँ, डाउट क्लियर करने को। तुम्हारी एनर्जी... थकने न देती।' उमेश का मन में हल्की जलन, लेकिन वो मुस्कान बरकरार। 15 मिनट बीते, हवा में तनाव धीरे-धीरे बढ़ रहा। "सर... चाय ठंडी हो गई। मैं किचन में गर्म कर लाऊँ?" खुशबू उठी, शर्मा को इशारा किया—आँखों से। शर्मा ने सिर हिलाया, 'हाँ बेटी... मैं भी आता हूँ, मदद करूँ। किताबें रखता हूँ।' उमेश ने मुस्कुराया, 'सर... आप बैठें।' लेकिन शर्मा उठा, किचन की तरफ चला—खुशबू के पीछे।

किचन में घुसे, दरवाजा हल्का बंद—रसोई की हल्की रोशनी, चूल्हा ठंडा। शर्मा ने खुशबू को दीवार से सटा लिया, हाथ कमर पर दबाया—धीरे से, लेकिन जोर से। "साली... तेरे पापा के सामने कितनी होशियार बनी बैठी। लेकिन चूसूँ तेरी चूचियाँ? तेरी सलवार... टाइट, चूचियाँ उभरीं... मसल दूँ?" होंठ धीरे से दबाए, किस जोरदार—जीभ अंदर धकेली, चूसने लगा जैसे कोई भूखा जानवर धीरे-धीरे काट रहा हो। खुशबू की सांसें तेज हो गईं, हाथ उसके बालों में उलझ गए—'सर... पापा बाहर हैं... लेकिन हाँ... चूसो। मेरी चूचियाँ... आपके लिए तड़प रही।' शर्मा ने धीरे से ब्लाउज के हुक खोले, चूचियाँ बाहर—बड़े-बड़े, भरे हुए, निप्पल्स तने। हाथों से मसलने लगा जोर से—उंगलियाँ फैलाकर, निप्पल्स मरोड़े। "उफ्फ... तेरी चूचियाँ... कितनी मोटी, भरी। दबाता हूँ तो हाथ भर आ जातीं। तेरे पापा जानते हैं न, तू मेरी रंडी है? तेरे पापा के सामने चोदूँगा क्या तुझे?" मसलना तेज हो गया, निप्पल्स को मरोड़ते हुए—खुशबू की सांसें भारी, कमर मुड़ गई। "आह सर... जोर से दबाओ... पापा को तूशन का बहाना। चोदोगे ना? मेरी चूचियाँ... आपके हाथों में हिल रही।" शर्मा ने मुंह झुकाया, निप्पल मुंह में भरा—जोर से चूसा, दाँत हल्के लगाए। "मम्म... तेरी चूचियाँ... दूध वाली। काटूँ निप्पल? तेरी सलवार... नीचे गीली हो गई न? हाथ नीचे... पैंटी पर दबाऊँ?" हाथ सलवार में घुसा, पैंटी पर दबाया—गीलापन महसूस हुआ। "हाँ... गीली हो गई साली। पापा के सामने बैठी, लेकिन चूत टपक रही। चूसूँ चूत? या पहले थूक दूँ चूचियों पर?" रोमांस धीरे-धीरे गहरा हो रहा, सिसकारियाँ किचन में गूँजने लगीं—समय धीरे-धीरे बीत रहा, लेकिन आग ठंडी न पड़ रही।

उमेश बाहर सोफे पर बैठा था, लेकिन मन बेचैन—चाय का कप हाथ में ठंडा हो गया। किचन की तरफ नजर गई, दरवाजा हल्का खुला—वो धीरे से उठा, चुपके से झाँका। दृश्य जिंदा हो गया—शर्मा चूचियाँ मसल रहा, जोर-जोर से, निप्पल्स मरोड़ते हुए, खुशबू सिसक रही, सलवार नीचे, शर्मा की जीभ चूत पर। उमेश का दिल धड़का, लंड सख्त हो गया—फोन निकाला, धीरे से फोटो लीं—क्लिक, क्लिक। मन में खुशी की लहर, लेकिन चेहरा संभाला, वापस सोफे पर। शर्मा-खुशबू धीरे से आए, शर्मा का चेहरा लाल, सांसें भारी—'उमेश जी... चाय अच्छी। थोड़ी गर्म हो गई।' उमेश ने मुस्कुराया, लेकिन फोन निकाला—फोटो दिखाई। 'सर... ये क्या? खुशबू पर हाथ? किचन में?' शर्मा का चेहरा सफेद पड़ गया, चश्मा काँप गया—'उमेश जी... गलती... माफ कीजिए। तूशन के बहाने... हाथ फिसल गया।' उमेश गुस्से का चेहरा बनाया, आवाज तेज—'सर... ये क्या? मेरी बेटी पर? लेकिन... ठीक है, माफ। ' शर्मा ने सिर झुकाया, 'हाँ... माफ कीजिए। मैं... कभी नही।' धीरे-धीरे नॉर्मल—चर्चा पढ़ाई पर लौटी, हँसी-मजाक, लेकिन हवा में तनाव। उमेश ने बोतल निकाली, 'सर... दारू? रिलैक्स हो जाइए। शाम की थकान मिट जाएगी।' शर्मा हिचकिचाया, लेकिन हाँ—गिलास भरा। 1 पेग—धारू पी, नशा चढ़ा। 'उमेश जी... खुशबू तो... एनर्जी वाली। कभी-कभी... लेट क्लास में घंटों... डाउट क्लियर करती।' उमेश मिश्रित चेहरा—गुस्सा दिखाया, लेकिन अंदर खुशी। 'सर... हाँ।' 2 पेग बाद, शर्मा गंदा—'उमेश जी... खुशबू की चूचियाँ... कितनी मोटी। डाउट क्लियर करते वक्त... हाथ लग जाता।

खुशबू खाना लेकर आई—ट्रे में रोटी-सब्जी, भाप उड़ रही। शर्मा ने जांघ पर हाथ रगड़ा—'खुशबू... बैठ। तेरी जांघ... कितनी नरम।' खुशबू सिहरी, 'सर... पापा देख रहे।' उमेश खुश, चुप—'बेटा... सर के बगल में।' शर्मा ने जांघ सहलाई, धीरे से ऊपर—'हाँ... नरम।' उमेश खुश देखकर, अनजान बना। खाना खाया, लेकिन शर्मा गरम—'खुशबू... उठ, चूचियाँ दिखा।' सलवार ऊपर, ब्लाउज खोला—चूचियाँ नंगी। शर्मा ने मसला बेदर्दी से—हाथों में भरकर, निप्पल्स मरोड़े। उमेश की तरफ कुटिल नजर—'उमेश जी... देखिए, आपकी बेटी की चूचियाँ। कितनी मोटी।' उमेश लंड सहलाने लगा, धीरे से—'सर... हाँ।' शर्मा जोश में—'खुशबू... रंडी... तेरी चूचियाँ... मसल दूँगा। पापा देख रहे, चिल्ला।' उमेश उतेजित, लंड मसलता। शर्मा ने खींचा, 'उमेश जी... देखिए, आपकी बेटी... किस करूँ।' होंठ दबाए, गंदा—जीभ गले तक, थूक डाला। 'मम्म... रंडी... तेरी जीभ... चूसूँ। पापा देख रहे, बोल 'पापा, सर चोद रहे।'' खुशबू कराही, 'हाँ सर... चोदो। पापा... देखो।' उमेश उतेजित, 'हाँ... देख रहा।' शर्मा खुश, 'उमेश जी... खुशबू नंगी... चूत चाटूँ।' सलवार नीचे, चूत नंगी—शर्मा झुका, किंकी स्टाइल—जीभ गहरा, थूक डाला। 'उफ्फ... तेरी चूत... बालों वाली। चूसूँ गहरा? पापा देख रहे।' उमेश का सब्र जवाब दे गया—उठा, खुशबू के पास—चार झन्नाटेदार थप्पड़। पहला—चटाक! गाल लाल। 'ले रंडी बेटी... सर के सामने रंडी बनी?' दूसरा—चटाक! 'हरामी... तेरी चूचियाँ नंगी।' तीसरा—चटाक! 'साली... चूत चटवा रही।' चौथा—चटाक! 'पापा के सामने... ले!' खुशबू गरम, 'आह पापा... दर्द... लेकिन मजा।' फिर झुकी, शर्मा का लंड मुंह में लिया—चूसी, पापा के सामने। 'मम्म... सर... चूसूँगी। पापा... देखो।' उमेश लंड मसलता, 'हाँ... चूस।' शर्मा हँसा, 'उमेश जी... आपकी बेटी... कमाल।'

शर्मा की हँसी किचन की दीवारों से टकराकर गूँजी, जैसे कोई शैतानी संगीत बज रहा हो—गहरी, गंदी, जो उमेश के कानों में घुसकर उसके लंड को और सख्त कर रही थी। "उमेश जी... देखिए ना, आपकी बेटी का मुंह... कितना गर्म, गीला। लंड की तरह चूस रही है, जैसे कोई प्रोफेशनल रंडी हो। क्लास में तो इतनी शर्मीली लगती है, लेकिन..." शर्मा ने खुशबू के बाल पकड़े, जोर से दबाया—लंड मुंह में गहरा धकेला, गला तक। खुशबू की आँखें पानी से भर आईं, लेकिन मुस्कान बनी रही, सिसकारियाँ निकलीं—'मम्म... सर... गहरा... पापा... देखो, सर का लंड... मेरा गला भर रहा।' उमेश का चेहरा लाल, हाथ पैंट के ऊपर से लंड मसलते हुए, लेकिन आँखें चिपकी हुईं उस दृश्य पर—बेटी का मुंह भरा हुआ, थूक टपकता, शर्मा का चेहरा आनंद से विकृत। "हाँ सर... कमाल है। लेकिन... सावधान, पड़ोसी सुन न लें।" उमेश ने आवाज दबाई, लेकिन अंदर से उत्तेजना की आग सुलग रही—ककॉल्ड का सपना सच हो रहा था, बेटी की रंडीगिरी उसके सामने, और वो खुद बस तमाशबीन।

शर्मा ने लंड बाहर खींचा, चमकता हुआ, थूक से लथपथ—खुशबू की ठोड़ी पर टपकते धागे। "उमेश जी... अब असली तमाशा। आपकी बेटी की चूत... कितनी टाइट, गीली। चोदूँगा क्या? आपके सामने ही, सोफे पर लिटाकर?" वो खुशबू को खींचा, आंगन की तरफ—ट्रे गिर गई, रोटियाँ बिखर गईं, लेकिन किसी को फिक्र न थी। खुशबू हँसी उड़ी, नंगी कमर लहराती—'सर... हाँ, चोदो। पापा... देखना, सर का लंड... मेरी चूत फाड़ेगा।' उमेश ने सिर हिलाया, सोफे पर पीछे हट गया—अपना लंड बाहर निकाला, धीरे-धीरे सहलाने लगा, आँखें फैलीं। शर्मा ने खुशबू को सोफे पर लिटाया, टाँगें चौड़ी—चूत खुली, गुलाबी, बालों से सजी, रस टपकता। "देखिए उमेश जी... आपकी बेटी की चूत... मेरे लिए तड़प रही। लंड डालूँ?" शर्मा का लंड सख्त, नसें फूलीं—टिप चूत पर रगड़ा, धीरे-धीरे अंदर धकेला। खुशबू चीखी—'आह्ह्ह... सर... फाड़ दिया! पापा... देखो, सर चोद रहे... ' शर्मा ने कमर पकड़ी, जोरदार धक्का—चटाक-चटाक की आवाजें आंगन में गूँजीं, पसीना टपकने लगा। "उफ्फ... तेरी चूत... कितनी चूसी हुई। पापा देख रहे, चिल्ला रंडी—'सर, जोर से चोदो! पापा की रंडी हूँ मैं!'"

उमेश का हाथ तेज हो गया, लंड सहलाते हुए—सांसें भारी, लेकिन मुस्कान कुटिल। "हाँ बेटी... चिल्ला। सर... जोर से। ये तेरी परीक्षा है।" शर्मा हँसा, धक्के तेज—खुशबू की चूचियाँ उछल रही, निप्पल्स तने। एक हाथ से चूची मसला, दूसरा कमर पकड़कर—'उमेश जी... आपकी बेटी... कमाल की रंडी। क्लास में डाउट क्लियर करती, लेकिन असल में चूत क्लियर करवाती। अब... अंदर झड़ूँ क्या? कंडोम नही, सीधा?" उमेश ने सिर हिलाया, उतेजित—'हाँ सर... झड़ जाओ। बेटी... ले लो सर का रस।' खुशबू कराही, कमर उभारी—'हाँ सर... झड़ो! पापा... देखो, सर का माल... मेरी चूत में!' शर्मा के धक्के रुके, शरीर काँपा—गहरा धकेलकर, गरम रस छोड़ा, थरथराते हुए। "आह्ह्ह... ले रंडी... भर दिया तेरी चूत!" बाहर निकाला, चूत से रस टपकता—सफेद, गीला।

खुशबू हाँफ रही, लेकिन मुस्कुराई—उठी, उमेश के पास आई, घुटनों पर। "पापा... अब आपका टर्न? सर ने चोदा, लेकिन आप... चूसूँ?" हाथ लंड पर, मुंह झुकाया—चूसी धीरे से, आँखें ऊपर। उमेश का सब्र टूटा—बाल पकड़े, मुंह में धकेला। "हाँ रंडी... चूस। सर देख रहे।" शर्मा सोफे पर बैठा, हँसता—'उमेश जी... फैमिली टाइम!' रात गहरा रही, चाँदनी आंगन में बिखर रही, लेकिन घर में आग सुलग रही—ककॉल्ड का सपना, रंडी बेटी का खेल, प्रोफेसर का जोश। सुबह तक तमाशा चला...
 

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### काली रात का राज़

गाँव की काली रातें हमेशा रहस्यमयी होती हैं—जैसे कोई काला पर्दा सब कुछ ढक लेता हो, सिर्फ तारों की चमक और दूर कहीं भटकते कुत्तों की भौंकने की आवाजें ही सन्नाटे को तोड़ती हों। हवा में मिट्टी की ठंडी सोंधी खुशबू घुली हुई थी, और चाँदनी की पतली किरणें नीम के पेड़ों की छाया में छिपकर खेल रही थीं। रवि का कदम लड़खड़ा रहा था—दोपहर से शाम तक खेत के पास हरि मामू के साथ दारू की बोतल खाली हो चुकी थी। देशी दारू का नशा सिर में चढ़ा हुआ था, दुनिया घूम रही लग रही थी, लेकिन मन में वो आग सुलग रही जो दिन भर की उत्तेजना से भड़की थी। रमा मम्मी की चूचियाँ मसलते हुए वो थप्पड़ों की याद, होली की चुदाई की गर्माहट—सब कुछ मिलकर उसके लंड को पैंट में कैद करके दर्द दे रहा था। "साली मम्मी... आज रात तेरी चूत फाड़ दूँगा," मन ही मन बुदबुदाया, लेकिन कदम तेज कर लिए। घर का पुराना दरवाजा धीरे से खुला, चरमराहट की आवाज रात के सन्नाटे में गूँजी।

घर अंदर अंधेरा था—सिर्फ रसोई की तरफ से हल्की सी लालिमा आ रही थी, जैसे कोई चूल्हा अभी बुझा न हो। रवि ने जूते उतारे, नंगे पैरों पर चलते हुए आंगन पार किया। पसीना उसके माथे से टपक रहा था, दारू की गर्मी से बॉडी जल रही। रसोई के दरवाजे पर रुक गया—वहाँ रमा खड़ी थी, पीठ फेरकर। काली रात में वो चाँदनी सी लग रही थी, लेकिन वो सेक्सी पेटीकोट और ब्लाउज... उफ्फ! पेटीकोट पतला, सफेद कॉटन का, नीचे तक लहराता लेकिन कूल्हों को कसकर चिपका हुआ—गोलाई साफ झलक रही, बीच में वो गहरी दरार। ऊपर ब्लाउज—पतला, लगभग पारदर्शी, बिना ब्रा का, चूचियाँ ऊपर उभरी हुईं, बड़े-बड़े, भरे हुए, जैसे दो रसीले आम लटक रहे हों। निप्पल्स हल्के तने हुए, गुलाबी, ब्लाउज के ऊपर से छनते हुए। बाल खुले लहरा रहे, पीठ नंगी, पसीना चमक रहा—गर्मी से तरबतर, जैसे कोई नहाकर अभी निकली हो। वो चूल्हे के पास खड़ी थी, थाली साफ कर रही, लेकिन कमर हल्की-हल्की लहरा रही, जैसे जानबूझकर।

रवि की सांसें थम गईं। दारू का नशा और ये दृश्य—उसका लंड जोर से खड़ा हो गया, पैंट में दर्द होने लगा। "मम्मी..." आवाज काँपती हुई निकली, लेकिन गहरी, भारी। रमा मुड़ी, आँखें फैलीं—चेहरा तरोताजा, लेकिन होंठों पर वो मुस्कान जो रवि को पागल कर देती। "रवि... बेटा? इतनी रात को? हरि के साथ कहाँ थे? दारू की बू आ रही है... आ जा, बैठ।" वो थाली नीचे रखी, हाथ पोंछा—लेकिन आँखें रवि पर ठहरीं, उसके लाल चेहरे पर, पैंट के उभार पर। रवि कदम बढ़ाया, करीब आया—हाथ बढ़ाकर रमा की कमर पकड़ ली, नरम, गर्म। "मम्मी... दारू पी ली मामू के साथ। लेकिन तू... ये क्या पहने हो साली? पेटीकोट इतना छोटा, ब्लाउज पारदर्शी... चूचियाँ तो बाहर झाँक रही। गाँव में रात को... कोई चोर आ गया तो तेरी चूत फाड़ देगा।" आवाज में गुस्सा था, लेकिन हवस की लहर—नशे से शब्द कटे-कटे, लेकिन गंदे।

रमा सिहर उठी, लेकिन पीछे न हटी—हाथ रवि के कंधे पर रखा, आँखें गहरी। "बेटा... गर्मी है ना? नहाकर आराम कर रही थी। तू दारू पीकर आया, लेकिन नजरें... तेरी आँखें मम्मी की बॉडी पर ठहरीं। चूचियाँ दिख रही हैं? हाँ... बिना ब्रा के। लेकिन तू मेरा बेटा है, रवि... प्यार से देख।" उसकी आवाज नरम थी, माँ वाली, लेकिन टोन में वो कामुकता जो रवि को और भड़का देती। रवि ने कमर कसकर पकड़ी, उँगलियाँ पेटीकोट के ऊपर से रगड़ीं—कूल्हों की गोलाई महसूस करते हुए। "प्यार से? साली मम्मी... तू जानबूझकर ये पहनती है। होली में चूचियाँ मसलने दीं, थप्पड़ मारे, चोदा... और अब रात को ये लुक। दारू पीकर आया हूँ, लेकिन तू... तेरी चूचियाँ देखकर लंड खड़ा हो गया। बोल... 'बेटा, मम्मी की चूचियाँ... तेरे लिए तड़प रही। छू ले, दबा ले।'" नशे में शब्द उलझ रहे थे, लेकिन हवस साफ—हाथ ऊपर सरका, ब्लाउज के ऊपर से चूचियाँ पकड़ीं, हल्का दबाया। नरम, गर्म, भरी हुई—हाथों में लहराने लगीं।

रमा की सांसें तेज हो गईं, लेकिन वो मुस्कुराई—हाथ रवि के गाल पर फेरा, प्यार से। "रवि... मेरा लाड़ला... दारू का नशा चढ़ा है, लेकिन तेरी आँखें... मम्मी को डरा रही। हाँ... चूचियाँ तेरे लिए। होली में तूने मसलीं, थप्पड़ मारे... दर्द हुआ था, लेकिन प्यार भी महसूस हुआ। तू मेरा बेटा है, लेकिन ये हवस... कब से जागी? बोल बेटा... मम्मी की बॉडी देखकर क्या सोचता है? पेटीकोट में मेरी गांड... गोल लग रही न? छू ले... लेकिन प्यार से।" उसने रवि का हाथ नीचे सरकाया, पेटीकोट के ऊपर से कूल्हों पर—नरम, चिकनी त्वचा महसूस हुई। रवि का दिल धड़कने लगा, नशे में साहस आ गया—हाथ कस दिया, गांड दबाई। "मम्मी... तेरी गांड... कितनी गोल, नरम। दारू पीकर सोच रहा था, घर आकर तेरी चूत चाटूँगा। होली में चोदा था, लेकिन आज... रात भर तेरी चूचियाँ चूसूँगा। बोल... 'बेटा, मम्मी की चूचियाँ... तेरे मुंह में भर ले। निप्पल्स चूस, दूध निकाल।'" हवस की लहर में शब्द बह रहे थे, लेकिन प्यार की वो गहराई—जैसे माँ का लाड़, लेकिन गंदा मिश्रित।

रमा ने सिर झुकाया, आँखें बंद—लेकिन हाथ रवि की छाती पर, धीरे से सहलाया। "ओह रवि... तू... मेरा बच्चा... दारू पीकर ये बातें। लेकिन सच्ची हैं न? मम्मी की चूचियाँ... तुझे याद आती हैं? होली में तूने मसलीं, दर्द हुआ था, लेकिन तेरी उँगलियाँ... कितनी गर्म लगीं। तू मेरा बेटा है, लेकिन ये बॉडी... तेरी हो गई लगती है। हाँ... चूस ले। लेकिन प्यार से... मम्मी का दूध पी, जैसे बचपन में पिया था। लेकिन अब... बड़ा हो गया तू, हवस भरा हो गया। तेरी सांसें... गर्म लग रही मम्मी की गर्दन पर। किस कर... मम्मी के होंठों पर। बोल बेटा... 'मम्मी, तेरी लार... पी लूँगा, जीभ चूसूँगा।'" रवि का चेहरा करीब आया, होंठ मिले—धीरे से, लेकिन नशे में जोरदार। जीभ बाहर, रमा की जीभ से लिपटी—चूसने लगा, लंबा, गहरा। "उम्म... मम्मी... तेरी जीभ... मीठी। दारू की कड़वाहट मिटा रही। थूक दे... मम्मी का थूक... बेटे के मुंह में। प्यार का तोहफा।" रमा ने थूक दिया—गर्म, चिपचिपा—रवि ने गटक लिया, फिर अपना थूक उसके मुंह में डाला। "ले बेटा... मम्मी का थूक... पी ले। लेकिन ये हवस... कब से? जब पहली बार मम्मी की साड़ी में कमर देखी, या चूचियाँ उभरीं? बोल... मम्मी सुनना चाहती है।"

रवि ने किस तोड़ा, लेकिन होंठ रमा के गाल पर रगड़े—हाथ चूचियों पर वापस, दबाने लगा। "मम्मी... पहली बार जब तू नहाकर आई थी, पेटीकोट में... तेरी चूचियाँ ब्लाउज से बाहर झाँक रही। मैं छिपकर देखता, लंड सहलाता। सोचता... मम्मी इतनी हसीन, पापा को चोदती होगी। लेकिन होली में जब चूसीं, मसलीं... तब पता चला, मम्मी रंडी है मेरी। लेकिन प्यार भी... तू मेरा संसार है। तेरी चूत... बालों वाली, गीली... चाटना चाहता हूँ। बोल... 'बेटा, मम्मी की चूत... तेरी। चाट ले, जीभ अंदर डाल। लेकिन प्यार से... मम्मी का रस पी।'" रमा की आँखें नम हो गईं, लेकिन गरमाहट फैल गई—हाथ रवि के लंड पर सरका दिया, पैंट के ऊपर से सहलाया। "रवि... मेरा राजकुमार... तू... इतना बड़ा हो गया। मम्मी की चूत... तुझे याद है? होली में तूने चोदा, लेकिन दर्द के साथ प्यार था। तू मेरा बेटा है, लेकिन ये बॉडी... तेरी हवस की भेंट चढ़ गई। हाँ... चाट ले। लेकिन पहले... मम्मी की गांड छू। पेटीकोट ऊपर कर... देख कितनी गोल है। बोल बेटा... 'मम्मी, तेरी गांड... सफेद, नरम। थप्पड़ मारूँ? होली की तरह?'"

रवि ने पेटीकोट ऊपर सरकाया—गांड नंगी, गोल, सफेद, लेकिन पसीने से चमकती। हाथ लगाया, दबाया—नरम, लहराती। "हाँ मम्मी... तेरी गांड... कितनी सॉफ्ट। थप्पड़ मारूँ? दारू पीकर... जोर से। लेकिन प्यार से... सजा दूँगा तेरी रंडीगीरी की। बोल... 'मार बेटा... मम्मी की गांड थप्पड़ खाएगी, तेरी हवस के लिए।'" रमा ने कमर मुड़ी, गांड ऊपर की—'हाँ... मार। लेकिन प्यार से... मम्मी तेरी है।' रवि का हाथ उठा, पहला थप्पड़—चटाक! लाल निशान उभरा। रमा सिसकी, 'आह... बेटा... दर्द... लेकिन तेरी हथेली... गर्म लगी। और मार... दूसरा। बोल... 'मम्मी, तेरी गांड फड़क रही, रंडी गांड। लेकिन मेरा प्यार।'" दूसरा थप्पड़—चटाक! जलन फैली, लेकिन रमा की चूत गीली। "रवि... उफ्फ... तेरी सजा... मम्मी को गरम कर रही। तू... मेरा बेटा, लेकिन प्रेमी जैसा। तेरी दारू वाली सांसें... मम्मी की गर्दन पर। किस कर... पीछे से। बोल... 'मम्मी, तेरी पीठ... चाटूँगा, पसीना चूसूँगा।'"

रवि झुका, जीभ निकाली—रमा की पीठ पर चाटा, पसीने की नमकीन बूंदें जीभ पर। "उम्म... मम्मी... तेरा पसीना... मीठा। चाटूँ कंधे... नीचे तक। लेकिन तेरी चूचियाँ... अभी भी दबा रहा। बोल... 'बेटा, मम्मी की चूचियाँ... तेरे हाथों में लहरा रही। निप्पल्स मरोड़... दूध निकाल।'" रमा ने सिर पीछे किया, आनंद से—'हाँ... मरोड़। मम्मी का दूध... तेरा। लेकिन रवि... ये गलत है न? तू मेरा बेटा... लेकिन ये हवस... कब रुकेगी? प्यार तो हमेशा रहेगा, लेकिन ये आग... जला देगी। बोल बेटा... मम्मी को डर लगता है, लेकिन मजा भी आता। तेरी उँगलियाँ... चूत पर सरका... महसूस कर।' रवि का हाथ नीचे, पेटीकोट में घुसा—चूत पर उँगलियाँ रगड़ीं, गीली। "मम्मी... गीली हो गई... मेरी सजा से। हवस रुकेगी नहीं, क्योंकि तू मेरी हो। प्यार है... तू मेरा संसार। लेकिन चूत... चाटूँगा। बोल... 'चाट बेटा... मम्मी की बालों वाली चूत... तेरी जीभ अंदर। रस पी ले, प्यार का।'"

रमा ने मुड़ी, रवि को गले लगा लिया—होंठ फिर मिले, गहरा किस। "रवि... मेरा प्यारा... तू... मम्मी का राजा। चूत चाट... लेकिन प्यार से। तेरी जीभ... मम्मी को पागल कर देगी। लेकिन याद रख... ये राज़ रहेगा। गाँव में कोई जान गया तो... लेकिन तू... मेरा सब कुछ। बोल... 'मम्मी, तेरी चूत... प्यार और हवस का मेल। चाटूँगा, चोदूँगा।'" रवि ने रमा को बिठाया, पेटीकोट ऊपर—चूत खुली, बालों वाली, गीली। झुका, जीभ रगड़ी—होंठ चूसे। "उम्म... मम्मी... तेरा रस... मीठा। चूसूँ गहरा? बोल... 'हाँ बेटा... जीभ अंदर, मम्मी का रस पी। तेरी हवस... मम्मी की कमजोरी।'" संवाद घंटों चला—प्यार की गहराई, हवस की लहरें, थप्पड़, चाटन, किस। रात गहरी हो गई, लेकिन आग बुझी न

खेत की रात: राधा-हरि की कामुक आग

गाँव के बाहर फैला हुआ सरसों का खेत चाँदनी में सोने जैसा चमक रहा था—पीली फसलें हवा में सरसराती हुईं, जैसे कोई रहस्यमयी लहरें उठा रही हों। रात का अंधेरा गहरा था, लेकिन चाँद की सफेद रोशनी हर पत्ते को चाँदी का बना रही थी। दूर कहीं नदी की लहरें फुसफुसा रही थीं, और हवा में मिट्टी की ठंडी, सोंधी खुशबू घुली हुई थी—मिश्रित होकर वो गर्माहट जो दो बॉडीज की सिसकारियों से फैल रही। हरि और राधा खेत के बीच में लेटे थे, घास पर, तंबू की फटी छाया के नीचे। लेकिन छाया कहाँ थी—खुला आसमान ऊपर, तारे चमकते हुए, जैसे कोई स्वर्गीय साक्षी हो। हरि की लुंगी नीचे सरक चुकी थी, बनियन गीला पसीने से चिपका हुआ—उसकी चौड़ी छाती पर बालों वाली नरमी चमक रही, पसीना टपकता हुआ। राधा का लहंगा ऊपर चढ़ा हुआ था, चोली खुली—चूचियाँ बाहर, बड़े-बड़े, भरे हुए, निप्पल्स तने हुए गुलाबी। पेटीकोट नीचे, लेकिन चूत खुली, बालों वाली, रस से चमकती। दोनों पसीने से तरबतर—गर्मी की रात में, दारू के नशे में, एक-दूसरे के अंग चाटते हुए, सिसकारियाँ भरते।

हरि का चेहरा राधा की चूचियों के बीच दबा हुआ था—जीभ निकली हुई, पसीने की बूंदें चाटता। "उफ्फ... राधा... मेरी राजकुमारी... तेरी चूचियाँ... कितनी भरी, रसीली। पसीना... नमकीन, लेकिन तेरी महक मिश्रित। चूसूँ निप्पल? बोल बेटी... 'बाबूजी, चूस लो अपनी बेटी की चूचियाँ... दूध निकालो, जैसे बचपन में पिया था। लेकिन अब... हवस से।'" राधा की सांसें तेज थीं, हाथ हरि के बालों में उलझे—कमर मुड़ी, चूचियाँ ऊपर उभारीं। "आह बाबूजी... हाँ... चूसो। तेरी जीभ... निप्पल पर घूम रही, उफ्फ... दर्द हो रहा, लेकिन मजा। प्यार है तुझसे... मेरे बाबूजी, मेरी दुनिया। लेकिन ये हवस... खेत में, खुला आसमान ताक रहा। कोई देख लेगा तो... लेकिन चूसो जोर से। थूक दो पहले, गीला करके चूसो। बोल... 'राधा रंडी, तेरी चूचियाँ... बाबूजी का नशा। पसीना चाटूँगा, दूध पीऊँगा।'" हरि ने थूक गिराया—गर्म, चिपचिपा थूक निप्पल पर फैला, फिर मुंह में भरा, चूसा जोर से—दाँत हल्के लगाए, जीभ सर्कुलर घुमाई। "मम्म... हाँ रंडी बेटी... तेरी चूचियाँ... दूध वाली। प्यार करता हूँ तुझसे... मेरी लाड़ली, लेकिन ये बॉडी... तेरी चूत, गांड... सब मेरा। खेत में लेटे, चाँदनी ताक रहा... चूसूँ दूसरी चूची? बोल... 'हाँ बाबूजी... चूसो, काट लो निप्पल। तेरी हवस... बेटी को जलाती है।'"

राधा काँप उठी, चूचियाँ दबते हुए कमर हिलाई—पसीना बहने लगा, चोली पूरी गीली। "बाबूजी... आह... तेरी जीभ... कितनी कुशल। प्यार है... तू मेरा बाबू, मेरा रक्षक। लेकिन ये चाटना... खेत की मिट्टी पर, हवा में तेरी सांसें... उफ्फ, चूत गीली हो गई। अब मेरी बारी... तेरी छाती चाटूँ? तेरे बाल... नमकीन पसीने से चिपके। बोल... 'चाट बेटी... बाबूजी की छाती... जीभ से साफ कर। लेकिन गंदा बोल... "बाबूजी रंडी, तेरी छाती बालों वाली, चूसूँ निप्पल्स?"'" हरि ने सिर पीछे किया, बनियन ऊपर सरका—छाती नंगी, बालों वाली, पसीना चमकता। "हाँ... चाट राधा... मेरी राजकुमारी। तेरी जीभ... बाबूजी को पागल कर देगी। चूस... बाल चूस, पसीना पी। प्यार है तुझसे... लेकिन हवस भी, तेरी चूत का रस चखने को बेताब।" राधा झुकी, जीभ निकाली—हरि की छाती पर रगड़ी, बालों को जीभ से उलझाया, चाटा। नमकीन स्वाद, मर्दाना महक। "उम्म... बाबूजी... तेरा पसीना... कितना तीखा, लेकिन स्वादिष्ट। चूसूँ निप्पल? बोल... 'हाँ बेटी... चूस, काट ले। तेरी जीभ... बाबूजी का लंड सख्त कर रही।'" राधा ने निप्पल मुंह में भरा, चूसा—दाँत लगाए, जीभ घुमाई। हरि सिसका, हाथ राधा की कमर पर—पेटीकोट ऊपर सरका, गांड दबाई। "आह... राधा... तेरी चूसाई... कमाल। प्यार करता हूँ... मेरी बेटी, मेरी जान। लेकिन अब... तेरी पीठ चाटूँ? लहंगे में तेरी पीठ... पसीने से तरबतर।"

राधा ने सिर उठाया, मुस्कुराई—कमर मुड़ी, पीठ ऊपर। "हाँ बाबूजी... चाटो। तेरी जीभ... मेरी पीठ पर। लेकिन गंदा बोल... 'राधा रंडी, तेरी पीठ... चूत जैसी गीली। चाटूँगा, थूक दूँगा। बोल बेटी... "हाँ... थूक दो, गीला करके चाटो। तेरी हवस... बेटी को बेचैन कर रही।"' हरि ने थूक गिराया—पीठ पर, फिर जीभ से चाटा, नीचे तक। पसीना मिश्रित थूक, चिकना। "उफ्फ... तेरी पीठ... कितनी चिकनी। चाटूँ कंख? लहंगे का किनारा... पसीना टपक रहा। बोल... 'चाट बाबूजी... बेटी की कंख... बालों वाली, नमकीन।'" राधा ने बाहें ऊपर कीं, कंख खुली—हरि झुका, नाक सटा ली, सोंघा। "तेरी कंख... उफ्फ... पसीने की महक, मीठी। चाटूँ... जीभ अंदर।" जीभ घुसाई, चाटा—नमकीन, बाल चूसे। राधा सिहर उठी, "आह... बाबूजी... तेरी जीभ... गुदगुदा रही। प्यार है... लेकिन ये चाटना... खुला आसमान ताक रहा, हवा तेरी सिसकारियाँ ले जा रही। अब... मेरी जांघें... चाटो। लहंगे के नीचे... पसीना बह रहा। बोल... 'हाँ राधा... तेरी जांघें... चूत की तरफ। चाटूँ अंदरूनी, गीली।'"

हरि नीचे सरका, लहंगा ऊपर—जांघें नंगी, सफेद, पसीने से चमकती। जीभ रगड़ी, अंदरूनी जांघ पर—मीठा पसीना। "उम्म... तेरी जांघें... कितनी नरम। चाटूँ ऊपर... चूत के पास। लेकिन पहले... तेरी गांड। मुड़ बेटी... कुतिया बन। खेत की घास पर... बाबूजी चाटेंगे।" राधा मुड़ी, कुतिया की तरह—गांड ऊपर, गोल, दरार खुली। हरि ने फैलाई, जीभ रगड़ी—दरार पर, अंदर धकेली। "आह... तेरी गांड... कसी, गर्म। पसीना... नमकीन। चूसूँ छेद? बोल... 'चूस बाबूजी... बेटी की गांड... तेरी जीभ अंदर। गंदा लग रहा, लेकिन प्यार से।'" हरि चाटता रहा, थूक गिराया—गीला, चिकना। राधा कराही, "उफ्फ... बाबूजी... तेरी जीभ... गांड में घूम रही। हवस है... लेकिन तू मेरा बाबू, मेरा सब। अब... मेरी चूत... रस बह रहा। चाटो... होंठ चूसो।" हरि मुड़ा, चूत पर जीभ—होंठ चूसे, जीभ अंदर। रस बहा, मीठा। "तेरी चूत... रस... कितना गाढ़ा। पीऊँगा। बोल... 'पी लो बाबूजी... बेटी का रस... प्यार का। लेकिन अब... लंड डालो। चोदो... खेत में।'"

हरि उठा, लुंगी उतारी—लंड सख्त, मोटा। राधा ने पकड़ा, रगड़ा—'बाबूजी... कितना गर्म। डालो... चूत में।' हरि ने धक्का मारा—गहरा, जोरदार। "आह... राधा... तेरी चूत... कस रही। ले धक्के!" कमर हिलाई, चूचियाँ दबाईं। राधा चीखी, 'आह... बाबूजी... फाड़ दो! प्यार है... हवस भी।' धक्के तेज, घास हिली। राधा चरम पर—रस बहा, चूत से छूटा, हरि के चेहरे पर गिरा। हरि ने चाटा, फिर हाथ से मला—चेहरा चमकता। "उफ्फ... तेरी रस... चेहरे पर। फिर से... लगाऊँ?" राधा हाँफी, 'हाँ... लगाओ बाबूजी... बेटी का रस... तेरे चेहरे पर। प्यार का निशान।' हरि ने उँगलियाँ डाली, रस निकाला—चेहरा मला, चमकता। "हाँ... फिर से। तेरी चूत का रस... बाबूजी का श्रृंगार। प्यार है... हमेशा।"।

प्रोफेसर के जाने के बाद: पिता-बेटी का गहरा प्यार

प्रोफेसर शर्मा की कार की धीमी गड़गड़ाहट रात के सन्नाटे में धीरे-धीरे खो गई—गाँव की पतली सड़क पर धूल उड़ाती हुई, दूर कहीं अंधेरे में विलीन हो गई। घर का आंगन अब शांत हो चुका था, सिर्फ चाँदनी की पतली किरणें दीवारों पर नाच रही थीं, और हवा में हल्की-हल्की वो गर्माहट बाकी थी जो कुछ ही पलों पहले की उत्तेजना से फैली थी। उमेश का चेहरा अभी भी लाल था—नशे की, हवस की, लेकिन अब वो आग धीरे-धीरे इमोशनल लहर में बदल रही थी। प्रोफेसर के जाने के साथ ही वो बंधन टूट गया था जो कुछ देर के लिए उसे तमाशबीन बना देता था। अब सिर्फ वो और उसकी खुशबू—उसकी बेटी, उसकी दुनिया, उसका प्यार। वो सोफे पर बैठा रहा, सांसें धीमी करते हुए, लेकिन आँखें खुशबू पर ठहरीं। खुशबू अभी भी नंगी कमर लहराती हुई खड़ी थी, सलवार नीचे सरकी हुई, चूचियाँ हवा में काँप रही—चेहरा थका लेकिन चमकदार, होंठों पर वो मुस्कान जो उमेश को हमेशा पिघला देती।

"खुशबू... बेटा... आ जा... पापा के पास," उमेश की आवाज काँपती हुई निकली—गहरी, इमोशनल, जैसे सालों का दर्द और प्यार एक साथ बह रहा हो। वो हाथ फैलाया, आँखें नम। खुशबू धीरे से आई, उसके घुटनों पर बैठ गई—सिर उमेश की गोद में रख दिया, जैसे बचपन में रखा करती थी। लेकिन अब ये स्पर्श अलग था—प्यार भरा, लेकिन वो गहराई जो हवस की आग से गुजरकर और मजबूत हो गई थी। "पापा... सर चले गए... लेकिन आप... आपका चेहरा... इतना उदास क्यों? क्या हुआ? मैं... मैंने जो किया... आपको दुख तो नहीं पहुँचा?" खुशबू की आवाज नरम थी, बेटी वाली—आँखें ऊपर उठीं, उमेश के चेहरे को छूने को बेताब। उमेश ने उसके बालों में उँगलियाँ फिराईं, धीरे से सहलाया—पसीना अभी भी चिपचिपा, लेकिन वो स्पर्श... पवित्र लग रहा। "नहीं बेटा... दुख नहीं। पापा को... गर्व है तुझ पर। तू... मेरी खुशबू, मेरी जिंदगी। आज जो हुआ... वो फैंटसी थी, लेकिन असल में... तू मेरी बेटी है। मेरा प्यार... तुझसे शुरू होता है, तुझमें खत्म होता है। जब तू पैदा हुई थी... वो पहली रात... मैंने तुझे गोद में लिया था, तेरी छोटी-छोटी उँगलियाँ... कितनी नाजुक। सोचा था, ये मेरी दुनिया है। लेकिन आज... तू बड़ी हो गई, इतनी हसीन, इतनी मजबूत। पापा को डर लगता है... ये हवस हमें जला न दे। लेकिन प्यार... वो हमेशा रहेगा। तू मेरी जान है, खुशबू। बिना तेरे... पापा अधूरा है।"

खुशबू की आँखें भर आईं—उसने सिर ऊपर किया, उमेश के गाल चूमे—हल्का, प्यार भरा। "पापा... आप... मेरा सब कुछ। जब छोटी थी, आपकी गोद में सोना... वो सपने... आज भी याद हैं। स्कूल में जब डर लगता, आपकी कहानियाँ सुनकर चैन आ जाता। लेकिन अब... ये रिश्ता... इतना गहरा हो गया। सर के साथ जो हुआ... वो मजा था, लेकिन असल प्यार... आपका। आपकी आँखों में वो चमक... जब तुझे देखते हो, वो मेरी ताकत है। पापा... मैं डरती हूँ... दुनिया क्या कहेगी? लेकिन आपके बिना... मैं अधूरी हूँ। आप मेरा पहला प्यार हो, हमेशा रहोगे। जब सर चोद रहा था... मैं सोच रही थी, पापा देख रहे... उनका प्यार महसूस हो रहा। आपकी नजरें... वो दर्द, वो खुशी... मेरा दिल भर आया। पापा... गले लगा लो... बेटी को।" वो उठी, उमेश की गोद में बैठ गई—सीने से सटी, सांसें मिलीं। उमेश ने उसे कसकर गले लगाया, पीठ सहलाई—आँसू उसके कंधे पर गिरे। "खुशबू... मेरी परी... तू जानती है न, पापा तुझसे कितना प्यार करता है? तेरी हँसी... तेरी बातें... सब कुछ। ये बॉडी... ये स्पर्श... वो तो बस एक हिस्सा है। असल में... तेरा दिल मेरा है। जब तू कॉलेज जाती है, पापा इंतजार करता... शाम को लौटे, तेरी मुस्कान देखे। तू मेरी जिंदगी का फूल है, खुशबू। बिना तेरे... ये दुनिया सूनी लगती। आज जो हुआ... वो गलती नहीं, लेकिन पापा को लगता है... मैं तुझे खो न दूँ। तू हमेशा मेरी रहना... पापा की राजकुमारी।"

खुशबू ने सिर ऊपर किया, आँखें उमेश की आँखों में—गहरी, नम। "पापा... मैं हमेशा आपकी हूँ। ये रिश्ता... गलत लगता है दुनिया को, लेकिन हमारे लिए... प्यार का। आपकी गोद... अभी भी वैसी ही सुरक्षित लगती है। जब सर... जोर से चोद रहा था, मैं सोच रही थी... पापा का प्यार... वो मेरी ताकत। आपकी नजरें... वो दर्द... लेकिन प्यार से भरी। पापा... मैं डरती हूँ... क्या ये रुकेगा? लेकिन रुकना नहीं चाहती। आप मेरा पहला, आखिरी प्यार हो। जब छोटी थी, आपकी कहानियाँ सुनकर सोती... अब आपकी बाहों में... वो ही सुकून। पापा... चूम लो... बेटी को। होंठों पर... प्यार का।" वो करीब सरकी, होंठ मिले—धीरे से, रोमांटिक। लेकिन धीरे-धीरे गहरा हो गया—टंग किसिंग। जीभें बाहर, लिपट गईं—धीमी, भावुक। उमेश ने रमा की जीभ चूसी, अपनी जीभ उसके मुंह में धकेली—लार का आदान-प्रदान, मीठा, गर्म। "उम्म... बेटा... तेरी जीभ... कितनी नरम। प्यार का स्वाद... लार में। थूक दे... पापा के मुंह में। हमेशा का वादा।" खुशबू ने थूक दिया—गर्म, चिपचिपा—उमेश ने गटक लिया, फिर अपना थूक उसके मुंह में डाला। "ले बेटा... पापा का प्यार... पी ले। तू मेरी जान है... हमेशा।"

किस गहरा होता गया—जीभें लड़ रही, लार टपक रही गालों पर। उमेश का हाथ खुशबू की पीठ पर—धीरे सहलाता, लेकिन नीचे सरका, कमर दबाई। "खुशबू... मेरी परी... तू जानती है, पापा तुझे कितना चाहता है? तेरी हर सांस... मेरी। जब तू हँसती है, पापा की दुनिया रंगीन हो जाती। ये स्पर्श... ये किस... प्यार का। लेकिन सर के साथ... वो दर्द... पापा को लगा, जैसे तुझे खो दिया। लेकिन तू... वापस आ गई। बोल बेटा... पापा को माफ कर दे... ये फैंटसी। असल में... तू मेरी हो।" खुशबू ने किस तोड़ा, लेकिन जीभ अभी भी होंठों पर रगड़ रही—आँखें बंद। "पापा... माफ करने को कुछ नहीं। आपका प्यार... वो दर्द भी मीठा है। सर... मजा था, लेकिन आप... मेरा दिल। जब आप देख रहे थे... मैं सोच रही थी, पापा का प्यार... कितना गहरा। तू मेरी रानी है, लेकिन मैं... तेरी राजकुमारी। पापा... और चूम... गहरा। जीभ चूस... लार का समंदर। बोल... 'बेटा, तेरी लार... पापा का अमृत। हमेशा साथ रहना... प्यार में।'" किस फिर शुरू—गहरा, भावुक। जीभें घूम रही, लार बह रही—उमेश ने चूसा, गटक लिया।

धीरे-धीरे उमेश का हाथ नीचे—खुशबू की चूत पर सहलाया, लेकिन प्यार से। "बेटा... तू थकी लग रही... लेकिन पापा का प्यार... तुझे तरोताजा कर देगा। सर का रस... अभी भी तेरी चूत में? पापा चाट ले... साफ कर दूँ। लेकिन प्यार से... तेरी चूत... मेरा मंदिर।" खुशबू मुस्कुराई, पैर फैलाए—'हाँ पापा... चाटो। लेकिन पहले... मैं... आपके लंड को। प्यार का।' वो नीचे सरकी, उमेश का लंड बाहर निकाला—सख्त, गर्म। मुंह में लिया, चूसी—धीरे, जीभ सर्कुलर, सुपारे पर। "मम्म... पापा... आपका लंड... कितना प्यारा। चूसूँ... गहरा। थूक दूँ... प्यार का।" थूक गिराया, चूसा—गला तक। उमेश सिसका, "आह बेटा... तेरी जीभ... अमृत। प्यार है... तुझसे। झड़ रहा हूँ... ले... पापा का रस... तेरे मुंह में।" झटके आए, वीर्य फूटा—गर्म, गाढ़ा, खुशबू के मुंह में। वो गटक गई, कुछ होंठों पर—चाट लिया। "उम्म... पापा... आपका रस... प्यार का। मीठा। अब... चूम... मुंह से मुंह। वीर्य का स्वाद... साझा करूँ।"

खुशबू ऊपर आई, होंठ मिले—टंग किसिंग फिर, लेकिन वीर्य मिश्रित। लार और वीर्य का मेल—मीठा, गाढ़ा। उमेश चूसा, गटक लिया। "बेटा... तेरा मुंह... पापा का स्वर्ग। प्यार है... हमेशा। तू मेरी खुशबू... मेरी जिंदगी। कल फिर... लेकिन प्यार से।" संवाद घंटों चला—प्यार की गहराई, आँसू, किस, वीर्य का स्वाद। रात गहरी, लेकिन पिता-बेटी का बंधन... और मजबूत।

सुबह की उदासी: पिता की आंतरिक उथल-पुथल

सुबह की पहली किरणें खिड़की के पर्दों से छनकर कमरे में धीरे-धीरे घुस रही थीं, जैसे कोई पुरानी यादें धुंधला हटाने को बेताब हो। गाँव में मुर्गे की बांग गूँज रही थी, और हवा में अभी भी रात की ठंडक बसी हुई थी—लेकिन उमेश का मन भारी था, जैसे कोई बोझ कंधों पर लदा हो। बिस्तर पर लेटा हुआ वो छत की तरफ देख रहा था, जहाँ मकड़ी का जाला हल्का-हल्का हिल रहा था। रात की सारी घटनाएँ उसके दिमाग में घूम रही थीं—प्रोफेसर शर्मा का लंड खुशबू की चूत में घुसता हुआ, वो चीखें, वो थप्पड़, वो वीर्य का रस जो बेटी के मुंह में बहा था। "क्या कर दिया मैंने? वो तो मेरी बेटी है... एक सभ्य आदमी की तरह जीना चाहिए था। ये हवस... परिवार को बर्बाद कर देगी।" मन में अपराधबोध की लहर उमड़ रही थी, आँखें नम हो गईं—जैसे कोई पिता का कर्तव्य टूट गया हो। वो सभ्य आदमी था न? सरकारी स्कूल का टीचर, जो बच्चों को नैतिकता सिखाता था। लेकिन अंदर ही अंदर... वो रोमांच, वो उत्तेजना... रोंगटे खड़े कर रही थी। "उफ्फ... खुशबू की चीखें... सर का लंड अंदर जाते हुए... मैं देख रहा था, और लंड सख्त हो गया। कितना गंदा... लेकिन कितना मजा।" अपराध और आनंद का मिश्रण, जैसे कोई आग जो बुझने को तैयार न हो।

उमेश ने करवट बदली, खुशबू की तरफ मुड़ा। वो अभी सो रही थी, चादर आधी नीचे सरकी हुई—नंगी कमर चाँदनी में चमक रही, बाल बिखरे हुए, चेहरा शांत लेकिन होंठ हल्के खुले। सुबह की रोशनी उसके नंगे बदन पर पड़ रही थी—चूचियाँ हल्की उभरीं, कमर पतली, कूल्हे गोल। उमेश का दिल पिघल गया—अपराधबोध मिश्रित प्यार। "मेरी खुशबू... मेरी परी... तू इतनी मासूम, और मैं... तुझे इस आग में झोंक दिया।" धीरे से हाथ बढ़ाया, उसके गाल पर स्पर्श किया—नरम, गर्म। "बेटा... जाग ना... पापा के पास आ।" आवाज काँपती हुई, भावुक। खुशबू की पलकें काँपीं, आँखें खुलीं—नींद भरी नजरों से देखा, फिर मुस्कान फैल गई। "पापा... सुबह हो गई? आपकी गोद... रात भर वैसी ही सुरक्षित लगी।" वो करीब सरकी, उमेश के सीने से सटी—सांसें मिलीं, प्यार की गर्माहट।

उमेश ने उसे कसकर गले लगा लिया, पीठ सहलाई—आँसू उसके कंधे पर गिरे। "खुशबू... मेरी जान... रात को जो हुआ... पापा को पछतावा हो रहा। तू मेरी बेटी है... एक सभ्य पिता को ऐसा नहीं करना चाहिए था। सर के सामने... तुझे चोदते देखा, और मैं... उत्तेजित हो गया। लेकिन अंदर से... शर्म आ रही। तू मेरा फूल है, मेरी दुनिया... मैंने तुझे गंदगी में डुबो दिया। माफ कर दे बेटा... पापा का प्यार... गलत रास्ते पर चला गया।" आवाज भारी, लेकिन हाथ प्यार से सहलाते—कमर पर, जांघों पर। खुशबू ने सिर ऊपर किया, आँखें नम—उमेश के गाल चूमे, हल्का, कोमल। "पापा... पछतावा? नहीं... रात का वो पल... हमारा प्यार था। सर... मजा था, लेकिन आपकी नजरें... वो दर्द, वो प्यार... मेरा दिल भर आया। आप सभ्य हैं, पापा... लेकिन ये हवस... हमारा राज़ है। तू मेरी ताकत है, मेरी गोद... हमेशा। माफ करने को कुछ नहीं... चूम लो... बेटी को। प्यार से।"

उमेश का दिल पिघल गया—अपराधबोध अभी भी कचोट रहा था, लेकिन अंदर का रोमांच... बेटी की बॉडी को छूने का, उसके स्पर्श का। वो मुस्कुराया, आँखें बंद—खुशबू को और करीब खींच लिया। "बेटा... तू... मेरी जिंदगी। रात को जो देखा... वो सपना था, लेकिन अब... सिर्फ तू और मैं। तेरी कमर... कितनी नरम, पतली। पापा सहलाए... प्यार से।" हाथ कमर पर सरका, धीरे सहलाया—त्वचा चिकनी, गर्म। फिर नीचे... कूल्हों पर, गांड की गोलाई पर। "खुशबू... तेरी गांड... कितनी सुंदर, गोल। पापा चूम लूँ... प्यार से। मुड़ बेटा... पापा तेरी पीठ सहलाएगा।" खुशबू मुस्कुराई, करवट बदली—गांड ऊपर, गोल, सफेद, लेकिन सुबह की रोशनी में चमकती। उमेश झुका, जीभ निकाली—दरार पर हल्का स्पर्श, धीरे से चाटा। नरम, गर्म त्वचा—नमकीन स्वाद, हल्का पसीना। "उम्म... बेटा... तेरी गांड... कितनी कोमल। चाटूँ... प्यार से, जैसे कोई पूजा। तेरी महक... पापा का सुकून। बोल... 'पापा, चाटो... बेटी की गांड... तेरी जीभ से सिहरन हो रही। लेकिन प्यार है... ये स्पर्श।'"

खुशबू सिहर उठी, कमर हल्की मुड़ी—आह निकली, नरम। "आह पापा... तेरी जीभ... कितनी गर्म, कोमल। रात का अपराध... भूल जाओ। ये पल... हमारा। चाटो गहरा... लेकिन रोमांटिक। तेरी सांसें... मेरी गांड पर... उफ्फ, प्यार महसूस हो रहा।" उमेश ने जीभ धीरे अंदर धकेली—चाटता रहा, थूक गिराया हल्का, गीला करके। "हाँ बेटा... पापा का प्यार... तेरी गांड में। अंदर का रोमांच... रुक न रहा, लेकिन अपराध... कचोट रहा। तू मेरी खुशबू... तेरी हर लाइन... पापा का कविता। चूमूँ... दरार... प्यार से।" चाटना जारी—धीमा, भावुक, सिसकारियाँ हल्की। फिर ऊपर आया, खुशबू को मुड़ा—चेहरा करीब। "बेटा... अब तू... पापा को चूम। कामुक... लार के साथ। तेरी जीभ... पापा के मुंह में।"

खुशबू मुस्कुराई, चेहरा ऊपर—होंठ मिले, धीरे से। लेकिन कामुकता जागी—जीभ बाहर, उमेश की जीभ से लिपटी। किस गहरा हो गया— "उम्म... पापा... तेरी जीभ... कितनी मीठी। थूक दे... बेटी के मुंह में। प्यार का रस।" उमेश ने थूक दिया—गर्म, चिपचिपा—खुशबू ने गटक लिया, फिर अपना थूक उसके मुंह में डाला। "ले पापा... बेटी का प्यार... पी लो। रात का रोमांच... सुबह का अपराध... सब मिट जाएगा। चूस... मेरी जीभ... गला तक।" किस लंबा चला—लार टपक रही गालों पर, सिसकारियाँ मिश्रित। उमेश ने चूदी, गटक लिया। "बेटा... तेरी लार... अमृत। प्यार है... हमेशा। लेकिन अंदर का रोमांच... तुझे छूने का... रुक न रहा। तेरी चूचियाँ... सहलाऊँ? प्यार से।" हाथ चूचियों पर—हल्का दबाया, निप्पल्स सहलाए। रोमांटिक पल... पिता-बेटी का, लेकिन गहरा, भावुक। सुबह की किरणें तेज हो गईं, लेकिन उनका प्यार... अमर।
 

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हरि और राधा खेत से घर लौट रहे थे, हाथों में हाथ डाले, सांसें आपस में मिली हुईं। राधा का चेहरा चमक रहा था, बाल हवा में लहराते, साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया था। हरि की आँखें उस पर ठहरीं, प्यार भरी मुस्कान। "राधा... मेरी राजकुमारी... आज की रात... तेरी आँखों में वो चमक... मुझे हमेशा याद रहेगी। चल, घर चलें... लेकिन ये पल... कभी न भूलूँगा।" राधा ने सिर झुकाया, हाथ कस दिया। "बाबूजी... आपकी बाहों में... ये रात... स्वर्ग जैसी लगी। घर चलें... लेकिन दिल में ये प्यार... हमेशा रहेगा।"

घर का दरवाजा खुला था—आंगन में हल्की रोशनी, रमा और रवि इंतजार कर रहे थे। हरि और राधा अंदर आए, हवा में उनकी सांसें अभी भी तेज। रवि ने राधा को देखा, उसका चेहरा चमक उठा—राधा की मुस्कान, उसके गालों की गुलाबी आभा, होंठों की कोमलता... सब कुछ उसे खींच रही थी। वो उठा, करीब आया, आँखों में वो गहरा प्यार। "राधा दीदी... तू... आज इतनी सुंदर लग रही है। तेरे होंठ... जैसे गुलाब की पंखुड़ियाँ, इतने नरम, इतने मीठे... देखकर मन भर जाता है। तेरा चेहरा... चाँदनी सा चमक रहा, आँखों में वो जादू... जो मुझे बता रहा है, तू मेरी है। और तेरी चूचियाँ... कितनी कोमल, भरी हुईं... जैसे कोई रसीला फल, छूने को जी चाहे। राधा... मैं तुझे प्यार करता हूँ... हमेशा के लिए... तू मेरी हो जाएगी ना?" रवि की आवाज काँप रही थी, प्यार से भरी, आँखें नम।

राधा का दिल धड़क उठा, चेहरा लाल हो गया—रवि की तारीफें उसके कान में घुल रही, शरीर में सिहरन दौड़ गई। "रवि... तू... मेरी आँखों का तारा। तेरी बातें... मेरे दिल को छू रही। मेरे होंठ... तू कह रहा है गुलाब जैसे... तो तू चूम ले... प्यार से। मेरा चेहरा... तेरी नजरों में चाँदनी... तो तू सहला ले। और मेरी चूचियाँ... तू कह रहा है रसीली... तो तू छू... कोमलता से। हाँ रवि... मैं तेरी हूँ... हमेशा के लिए... तेरा प्यार... मेरा संसार।" राधा ने हाथ बढ़ाया, रवि का चेहरा छुआ—धीरे से करीब खींच लिया। आंगन के बीच में, चाँदनी के नीचे, उनके होंठ मिले—धीरे से, रोमांटिक। लेकिन धीरे-धीरे गहरा हो गया—जीभ बाहर, एक-दूसरे की जीभ से लिपट गईं। रवि की जीभ राधा के मुंह में घुसी, लार का आदान-प्रदान—मीठा, गर्म। "उम्म... राधा... तेरी जीभ... कितनी मीठी... चूस रहा हूँ... प्यार से। थूक दे... तेरी लार... मेरे मुंह में।" राधा ने थूक दिया—गर्म, चिपचिपा—रवि ने चूसा, गटक लिया। "रवि... तेरी जीभ... मेरे मुंह में... कितनी गर्म। ले... मेरा थूक... पी ले... प्यार का।" किस लंबा चला—लार टपक रही गालों पर, लेकिन रवि का हाथ राधा की चूचियों पर—धीरे से दबाया, मर्यादित, कोमल। "राधा... तेरी चूचियाँ... कितनी नरम... दबा रहा हूँ... प्यार से। तेरी कोमलता... मेरी है।" राधा सिहर उठी, हाथ रवि की कमर पर। "रवि... तेरी उँगलियाँ... मेरी चूचियों पर... कितना अच्छा लग रहा। दबा... लेकिन कोमलता से... हमारा प्यार।"

ये दृश्य आंगन के कोने में खड़े हरि और रमा देख रहे थे—चाँदनी में चमकते दो प्रेमी, वो किस, वो स्पर्श। हरि की सांसें तेज हो गईं, आँखें रमा पर ठहरीं—उसकी कमर, उसके होंठ। "उमा... देख... रवि और राधा... उनका प्यार... कितना शुद्ध, लेकिन कितना गरम। तेरी आँखों में वो चमक... मुझे खींच रही। आ... पास आ।" रमा का चेहरा लाल हो गया, हवा में वो गर्माहट फैल गई—चूत में हल्की सिहरन। "हरि... हाँ... उनका खेल... हमें भी जगा रहा। तेरी सांसें... मेरी गर्दन पर... कितनी गर्म। आ... गले लगा ले।" हरि ने रमा का चेहरा पकड़ा, धीरे से, लेकिन जोर से—हाथ कस दिया। "उमा... तेरे होंठ... कितने मीठे लग रहे। ले... मेरा लंड... तेरे मुंह में। चूस... गहरा... प्यार से।" रवि ने लुंगी नीचे की, लंड बाहर—मोटा, सख्त। रमा ने मुस्कुराया, झुकी—मुंह खोला, लंड अंदर लिया। "हरि... तेरा लंड... कितना गर्म... चूस रही हूँ... गला तक।" हरि ने सिर दबाया, लंड गहरा धकेला। "उमा... तेरी जीभ... लंड चूस रही... गला ठोक रही। चूस... जोर से।" रमा लेकिन चूसी—लार टपकती, गला फड़कता। "आह... हरि... तेरा लंड... गला भर रहा... लेकिन प्यार से चूस रही। थूक दे... मुंह में... गीला कर।" हरि ने थूक दिया, चूसा। रमा की कामुकता चरम पर—चूसते हुए चूत गीली।

हरि ने रमा को उठाया, ब्लाउज पकड़ा—फाड़ दिया, चूचियाँ बाहर उछलीं। "उमा... तेरी चूचियाँ... कितनी सुंदर... लेकिन अब... तेरी साड़ी... फाड़ दूँ।" पेटीकोट पकड़ा, फाड़ा—नंगी बॉडी। रमा सिहर उठी, "हरि... हाँ... फाड़... मुझे अपनी बना ले।" हरि ने उसे आंगन की मिट्टी पर लिटाया, लंड चूत पर रगड़ा—धीरे से अंदर धकेला। "उमा... तेरी चूत... कितनी गर्म... ले... धकेल रहा हूँ।" धक्के जोरदार, लेकिन वशी तरीके से—कमर पकड़कर, गहरा। "आह... हरि... तेरा लंड... गहरा... चोद... प्यार से।" हरि तेज हुआ, चूचियाँ दबाईं। "उमा... तेरी चूचियाँ... निप्पल्स चूस रहा... चोद रहा हूँ।" रमा कराही, "हरि... जोर से... तेरी कमर... मेरी कमर से सटी... प्यार है।"

ये दृश्य देखकर रवि और राधा का दिल धड़क उठा—हरि का रमा को चोदना, वो धक्के, वो स्पर्श। रवि ने राधा को कसकर गले लगाया, चेहरा करीब। "राधा... देख... उनका खेल... लेकिन हमारा प्यार... जंगली हो रहा। तेरे होंठ... चूमूँ... राधा की सांसें तेज, "रवि... हाँ... चूम... . लेकिन प्यार से।" उनके होंठ मिले— जीभें घूमीं, लार बहने लगी। "उम्म... राधा... तेरी जीभ... कितनी जंगली... चूस रहा हूँ... थूक दे।" राधा ने थूक दिया, चूसा। "रवि... तेरी जीभ... मेरे मुंह में... ले... मेरा थूक।" रवि का हाथ राधा की चूचियों पर—दबाया, जोर से, लेकिन प्यार से। "राधा... तेरी चूचियाँ... कितनी कोमल... दबा रहा हूँ... जुनून से।" राधा सिहर उठी, "रवि... तेरी उँगलियाँ... मेरी चूचियों पर... कितना अच्छा... दबा... प्यार से।" आंगन में दो जोड़े—प्यार का जुनून,

घर की गरमाहट: पिता-बेटी का कामुक खेल

उमेश और खुशबू घर के छोटे से कमरे में थे, जहाँ चाँदनी की किरणें खिड़की से चुपके-चुपके घुस रही थीं, हवा में हल्की ठंडक घुली हुई थी लेकिन उनके बीच की गरमी उसे भूलने पर मजबूर कर देती थी। उमेश सोफे पर लेटा हुआ था, उसकी लुंगी नीचे सरक चुकी थी, लंड आधा सख्त होकर हवा में तन रहा था, और खुशबू उसके बगल में बैठी हुई थी, साड़ी का पल्लू हल्का सा ढीला, चूचियाँ ब्लाउज में हल्की उभरी हुईं, जैसे कोई मीठा फल फूटने को बेताब हो। "खुशबू... मेरी राजकुमारी... तेरी आँखों में वो चमक देखकर पापा का दिल धड़क उठता है, जैसे कोई पुरानी यादें ताजा हो जाती हों, लेकिन अब ये स्पर्श... तेरी कमर की नरमी... पापा को बेचैन कर देती है, बोल बेटा क्या तू भी महसूस कर रही है ये गरमी जो हमारे बीच फैल रही है, या ये सिर्फ पापा की कल्पना है जो तेरी बॉडी को छूने को बेताब हो रही है?" उमेश की आवाज धीमी थी, फुसफुसाहट जैसी, लेकिन कामुकता से भरी, हाथ धीरे से खुशबू की कमर पर सरका, नरम त्वचा महसूस करते हुए, उँगलियाँ हल्की-हल्की रगड़ने लगीं।

खुशबू ने सिर झुकाया, आँखें ऊपर उठाईं, होंठ काँपते हुए मुस्कुराई, उसके हाथ उमेश की छाती पर सरके, बालों वाली नरमी को सहलाते हुए, और साड़ी का पल्लू और ढीला हो गया, चूचियाँ हल्की झलकने लगीं। "पापा... हाँ महसूस कर रही हूँ, आपकी उँगलियाँ मेरी कमर पर घूम रही हैं जैसे कोई संगीत बजा रही हों, और ये स्पर्श... मेरी बॉडी को सिहरा रहा है, लेकिन पापा ये गरमी सिर्फ आपकी कल्पना नहीं है क्योंकि मेरी चूचियाँ भी तन रही हैं आपके छूने से, बोलिए ना पापा क्या आप मेरी चूचियाँ छूना चाहते हैं, धीरे से दबाना चाहते हैं जैसे कोई कोमल फूल को सहला रहे हों, या ये पापा का प्यार है जो मेरी बॉडी को अपना बना लेना चाहता है?" खुशबू की आवाज काँप रही थी, कामुकता से लिपटी, हाथ उमेश की छाती से नीचे सरका, लुंगी के ऊपर से लंड पर हल्का स्पर्श, धीरे से सहलाया, जैसे कोई रहस्य खोल रही हो।

उमेश की सांसें तेज हो गईं, हाथ कमर से ऊपर सरका, ब्लाउज के ऊपर से चूचियाँ पकड़ीं, हल्का दबाया, नरम, भरी हुई त्वचा हाथों में लहराने लगी, निप्पल्स अंगूठे से सहलाए। "हाँ बेटी... पापा की उँगलियाँ तेरी चूचियाँ छू रही हैं, कितनी नरम, कितनी भरी हुईं जैसे दूध से लबालब भरी हुईं, और ये निप्पल्स... तने हुए गुलाबी, पापा को छूने का मन कर रहा है जैसे कोई मीठा रस चखना हो, बोल खुशबू क्या तू महसूस कर रही है ये सिहरन जो पापा के स्पर्श से तेरी बॉडी में दौड़ रही है, या तू चाहती है कि पापा और जोर से दबाए, तेरी चूचियाँ को सहलाए, जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेयसी को प्यार से छूता हो?" उमेश की उँगलियाँ चूचियों पर घूमने लगीं, मरोड़ते हुए हल्का दबाव बढ़ाया, हवा में सिसकारियाँ हल्की गूँजीं।

खुशबू की कमर मुड़ी, सांसें भारी हो गईं, हाथ लुंगी में घुसा, लंड पकड़ा, धीरे से ऊपर-नीचे किया, नसें महसूस करते हुए, सुपारा सहलाया। "आह पापा... हाँ महसूस कर रही हूँ, आपकी उँगलियाँ मेरी चूचियों को दबा रही हैं, निप्पल्स पर घूम रही हैं जैसे कोई जादू चला रही हों, और ये दर्द मिश्रित सुख... मेरी चूत तक पहुँच रहा है, बोलिए ना पापा क्या आपका लंड... जो मेरे हाथ में सख्त हो रहा है, उसे मैं सहलाऊँ, ऊपर-नीचे करूँ जैसे कोई मीठा खेल खेल रही हूँ, या आप चाहते हैं कि मैं मुंह में ले लूँ, चूसूँ धीरे-धीरे जैसे कोई अमृत चख रही हूँ?" खुशबू की उँगलियाँ लंड पर तेज हुईं, सर्कुलर मोशन में सुपारे को सहलाया, हवा में हल्की नमी महसूस हुई।

उमेश की सांसें काँप उठीं, हाथ चूचियों पर दबाव बढ़ाया, निप्पल्स को मरोड़ा, लेकिन कोमलता से, फिर नीचे सरका, साड़ी के ऊपर से जांघों पर सहलाया। "उफ्फ खुशबू... तेरी उँगलियाँ मेरे लंड पर घूम रही हैं, कितना सुख दे रही हैं, सुपारा सहलाते हुए जैसे कोई जादू चला रही हो, और हाँ बेटा पापा चाहता है कि तू मुंह में ले ले, चूस ले धीरे-धीरे, तेरी जीभ का स्पर्श... पापा को पागल कर देगा, लेकिन पहले तेरी जांघें... पापा सहला ले, कितनी चिकनी, नरम, जैसे कोई रेशमी कपड़ा, बोल बेटा क्या तू चाहती है कि पापा तेरी जांघों के बीच पहुँचे, तेरी चूत को छुए, सहलाए जैसे कोई प्यार का स्पर्श हो?" उमेश की उँगलियाँ जांघों पर ऊपर सरकीं, साड़ी के नीचे हल्का स्पर्श, गीलापन महसूस हुआ।

खुशबू की सिसकारियाँ तेज हो गईं, कमर हिली, हाथ लंड पर स्पीड बढ़ाई, ऊपर-नीचे करते हुए नसें महसूस कीं। "आह पापा... हाँ पहुँचिए मेरी जांघों के बीच, आपकी उँगलियाँ मेरी चूत को छू रही हैं, कितना गरम लग रहा, गीला हो गया सब, बोलिए ना पापा क्या आप चाहते हैं कि मैं आपका लंड मुंह में लूँ, जीभ से घुमाऊँ, चूसूँ जैसे कोई मीठा रस चख रही हूँ, या आप पहले मेरी चूत को सहलाएँ, उँगलियाँ अंदर डालें, जैसे कोई प्रेम का संगीत बजा रहे हों?" खुशबू ने झुका, लंड के करीब मुंह लाया, जीभ निकाली, सुपारे पर हल्का रगड़ा, लेकिन लिया ना।

उमेश का शरीर काँप उठा, हाथ साड़ी में घुसा, पेटीकोट नीचे, चूत पर उँगलियाँ रगड़ीं, गीले होंठ महसूस किए। "हाँ बेटी... पापा की उँगलियाँ तेरी चूत पर घूम रही हैं, कितनी गीली, रसीली, होंठ फूले हुए जैसे कोई फूल खिल रहा हो, और हाँ चूस ले पापा का लंड, जीभ से घुमाऊँ, चूस ले धीरे-धीरे, तेरी लार... लंड पर गिरेगी तो पागल हो जाऊँगा, बोल खुशबू क्या तू महसूस कर रही है पापा की उँगली तेरी चूत में घुस रही है, धीरे-धीरे अंदर-बाहर, जैसे कोई लय बजा रहा हो?" उमेश ने उँगली अंदर धकेली, हल्का हिलाया, रस महसूस किया।

खुशबू की आह निकली, मुंह लंड पर, लेकिन पहले जीभ से चाटा, फिर मुंह में लिया, चूसा—धीरे से, जीभ घुमाई। "मम्म... पापा... आपकी उँगली मेरी चूत में घुस रही है, कितना सुख, रस बह रहा, और आपका लंड... मुंह में लिया, चूस रही हूँ, जीभ से घुमा रही, कितना गर्म, नसें महसूस हो रही, बोलिए ना पापा क्या आप चाहते हैं कि मैं और गहरा लूँ, गला तक, जैसे कोई प्यार का गीत गा रही हूँ?" खुशबू का मुंह ऊपर-नीचे होने लगा, लार टपकने लगी, लेकिन कोमलता से।

उमेश की कमर हिली, उँगली चूत में तेज, दूसरी उँगली जोड़ी। "आह बेटी... हाँ गहरा ले, तेरी जीभ लंड पर घूम रही, लार से गीला हो गया, चूस ले जोर से, पापा का रस आने वाला है, लेकिन पहले तेरी चूत... पापा की उँगलियाँ अंदर-बाहर कर रही, रस बहा रही, बोल खुशबू क्या तू चरम पर पहुँच रही है, पापा की उँगलियों से, या तू चाहती है कि पापा का लंड तेरी चूत में घुस जाए, धीरे-धीरे भरे?" उमेश का हाथ तेज, चूत में उँगलियाँ हिलाईं।

खुशबू ने लंड मुंह से निकाला, सिसकी भरी, कमर उभारी। "पापा... हाँ चरम पर हूँ, आपकी उँगलियाँ मेरी चूत को भर रही, रस बह रहा, लेकिन लंड... हाँ घुसा दो, चूत में... प्यार से, धीरे-धीरे, जैसे कोई प्रेम का मिलन हो।" खुशबू की आँखें चमक रही, कामुकता से लिपटी।

उमेश ने उँगली निकाली, खुशबू को लिटाया, लंड चूत पर रगड़ा, धीरे अंदर धकेला। "ले बेटी... पापा का लंड... तेरी चूत में... कितना गर्म, कसा हुआ। धकेल रहा हूँ... प्यार से। बोल... 'पापा... भर दो... चूत तेरी है।'" धक्के शुरू, धीरे, लेकिन गहरे।

खुशबू की सिसकारियाँ तेज, कमर हिली। "आह पापा... भर दिया... धकेलो... प्यार से... चूत तेरी चूस रही।"


सुबह की पहली किरणें खिड़की से चुपके-चुपके घुस रही थीं, जैसे कोई पुरानी यादें ताजा करने को बेताब हो, गाँव में मुर्गे की बांग गूँज रही थी, और हवा में अभी भी रात की ठंडक बसी हुई थी, लेकिन खुशबू का मन उत्तेजित था, रात की यादें अभी भी बॉडी में सिहरन पैदा कर रही थीं। वो बिस्तर से उठी, नींद भरी आँखों से आईने के सामने खड़ी हुई, साड़ी हल्की साड़ी पहनी, लेकिन ब्लाउज ढीला, चूचियाँ ऊपर उभरी हुईं, बड़े-बड़े, भरे हुए, जैसे कोई रसीला फल फूटने को तैयार हो। "पापा अभी सो रहे हैं... दूध ले आऊँ," मन ही मन बुदबुदाई, हवा हल्की ठंडी लग रही, लेकिन बॉडी में वो गरमी बाकी थी, दरवाजा खोला, आंगन पार किया, गेट की तरफ बढ़ी, हवा उसके बालों को लहरा रही थी। गेट पर दूधवाला खड़ा था—एक गंदा सा, बदबूदार आदमी, 45 साल का, पुरानी धोती पहने, कमीज गंदी, पसीने से तरबतर, चेहरे पर दाढ़ी उगी हुई, आँखें लाल, लेकिन काम की वजह से रोज आता, दूध का डिब्बा हाथ में लटकाए।

खुशबू ने गेट खोला, मुस्कुराई, हवा में उसकी साड़ी हल्की लहराई, ब्लाउज का ऊपरी बटन ढीला, चूचियाँ हल्की झलक रही। "अंकल... दूध लाए हो? आज थोड़ा ज्यादा दोना, पापा चाय बनाएँगे।" उसकी आवाज मधुर थी, लेकिन आँखों में शरारत, हल्का झुककर डिब्बा लिया, चूचियाँ हल्की झुकते हुए ऊपर उभरीं। दूधवाले की आँखें ठहरीं, मन में गंदे ख्याल उमड़ पड़े—'उफ्फ... ये लड़की... कितनी हसीन, चूचियाँ तो... जैसे दो बड़े-बड़े दूध के गोले, दबाने को जी चाहे, चूसने को मुंह में पानी आ रहा, लेकिन ये तो टीचर की बेटी, छू न सकूँ, लेकिन कल्पना में... रंडी बना दूँगा, चूचियाँ चाटूँगा, दूध निचोड़ूँगा।' लेकिन चेहरा संभाला, मुस्कुराया। "हाँ बिटिया... दूध ताजा है, गाय का, दूधिया, मलाई से भरा, जैसे तेरी तरह ताजा और रसीला, ले... आज ज्यादा दूँगा, चाय में डालना, गरम-गरम बनेगी।"

खुशबू ने डिब्बा लिया, लेकिन जानबूझकर हल्का झुकी, चूचियाँ और ऊपर उभरीं, ब्लाउज से हल्की झलक, आँखों में चमक। "अंकल... शुक्रिया, आपका दूध हमेशा इतना अच्छा लगता है, मलाई वाली लेयर ऊपर, चाटने को जी चाहता है, लेकिन घर में पापा हैं, अकेले चाट नहीं सकती, बोलिए ना अंकल क्या आपकी गायें इतनी स्वस्थ हैं कि दूध इतना गाढ़ा, भरा-भरा आता है, या कोई राज़ है?" उसकी बातों में डबल मीनिंग, मुस्कुराहट शरारती, हवा में हल्की गरमी फैल गई। दूधवाले का दिल धड़का, मन में उथल-पुथल—'साली... ये बातें... चूचियाँ झलका रही, दूध का बहाना, चाटने को कह रही, उफ्फ... अगर घर में न होती तो दबा देता, चूसता, लेकिन संभाल, गंदा आदमी है तू, लेकिन ये बॉडी... चोदने लायक।' चेहरा संभाला, लेकिन आँखें चूचियों पर। "बिटिया... राज़ तो गायों का ही है, उन्हें अच्छा चारा देता हूँ, दूध गाढ़ा निकलता है, भरा-भरा, पीने पर मीठा लगता है, लेकिन कभी-कभी ज्यादा मलाई हो जाती है, चाटने पर लार टपक जाती है, तू तो जवान है, तेरी तरह ताजा दूध पीती होगी, लेकिन ये दूध... तेरी बॉडी को और मजबूत बना देगा, चूचियाँ... मतलब ताकत देगा।"

खुशबू ने हँसी हल्की, जानबूझकर साड़ी का पल्लू हल्का सरकाया, चूचियाँ और झलकने लगीं, ब्लाउज का गला हल्का खुला। "अंकल... आपकी बातें सुनकर तो लगता है दूध में कोई जादू है, चूचियाँ... मतलब ताकत, हाँ... मेरी बॉडी को मजबूत बनाएगा, लेकिन कभी सोचा है अंकल कि दूध इतना गाढ़ा हो तो पीने में कितना मजा आता है, मुंह में भर लेना, चूस लेना, जैसे कोई मीठा रस हो, बोलिए ना अंकल क्या आप खुद चखते हैं कभी ये दूध, गर्म-गर्म, मलाई वाली लेयर चूसते हुए?" उसकी आँखें चमक रही, डबल मीनिंग साफ, बॉडी हल्की झुककर चूचियाँ और दिखाई। दूधवाले का मुंह सूख गया, मन में आग—'साली... ये क्या बोल रही, चूस लेना, मुंह में भरना... चूचियाँ झलका रही, अगर अकेली होती तो पकड़ लेता, चूसता, दबाता, लेकिन टीचर की बेटी, संभाल... लेकिन कल्पना में... रात भर चोदता रहूँगा, चूचियाँ काटूँगा।' सांसें तेज, लेकिन मुस्कुराया। "हाँ बिटिया... चखता हूँ कभी-कभी, गर्म दूध मुंह में लेता हूँ, चूस लेता हूँ मलाई, मीठा लगता है, लेकिन ज्यादा न चखूँ, वरना लालच बढ़ जाता है, तू जैसी जवान लड़की को पीने दो, तेरी बॉडी... इतनी ताजा, दूध पीकर और निखर जाएगी, चूचियाँ... मतलब ताकत और बढ़ जाएगी, कभी सोचा है बिटिया दूध का फायदा क्या होता है, बॉडी को इतना आकर्षक बना देता है।"

खुशबू ने डिब्बा कसकर पकड़ा, लेकिन जानबूझकर सीधा खड़ी हुई, साड़ी हल्की सरकी, चूचियाँ और झलकने लगीं, आँखों में शरारत। "अंकल... आप सही कह रहे, दूध का फायदा तो बॉडी को आकर्षक बनाता है, मेरी चूचियाँ... मतलब ताकत, हाँ... दूध पीने से निखर जाती हैं, लेकिन कभी सोचा है अंकल कि दूध इतना गाढ़ा हो तो चूसने में कितना समय लगता है, मुंह भर लेना, जीभ घुमाना, मलाई चाट लेना, जैसे कोई मीठा खेल हो, बोलिए ना अंकल क्या आपकी गायें ऐसी दूध देती हैं कि चूसते रहो, थक न जाओ?" बॉडी हल्की हिलाई, चूचियाँ लहराईं। दूधवाले का चेहरा लाल, मन में तूफान—'उफ्फ... ये लड़की... चूसने की बात, जीभ घुमाना... चूचियाँ लहरा रही, अगर पकड़ लूँ तो... लेकिन नहीं, गंदा आदमी हूँ, लेकिन कल्पना में... रात भर चूसता रहूँगा, चूत चाटूँगा।' सांसें तेज, लेकिन हँसा। "बिटिया... हाँ... गायें ऐसी ही दूध देती हैं, चूसते रहो तो थक न जाओ, मलाई इतनी कि जीभ घुमा-घुमा कर चाटो, मीठा लगता है, लेकिन ज्यादा चूसो तो लालच बढ़ जाता है, तू जैसी लड़की को पीने दो, तेरी बॉडी... दूध पीकर इतनी आकर्षक हो गई है, कभी सोचा है बिटिया दूध का असर क्या होता है, बॉधी को इतना मुलायम, इतना भरा-भरा बना देता है।"

खुशबू ने हँसी छोड़ी, जानबूझकर डिब्बा ऊपर उठाया, चूचियाँ और ऊपर उभरीं, ब्लाउज से हल्का झलक। "अंकल... आपकी बातें सुनकर तो लगता है दूध का असर चमत्कारिक है, बॉडी को भरा-भरा बना देता है, मेरी चूचियाँ... मतलब ताकत, हाँ... मुलायम हो जाती हैं, लेकिन कभी सोचा है अंकल कि दूध चूसने में कितना मजा आता है जब वो गाढ़ा हो, मुंह भर लेना, जीभ से घुमाना, मलाई चाट लेना, जैसे कोई स्वादिष्ट रस हो, बोलिए ना अंकल क्या आप कभी ऐसा करते हैं, गर्म दूध मुंह में भरकर चूसते हैं, थक न जाते हों?" डबल मीनिंग और गहरी, आँखों में चमक, बॉडी हल्की झुककर चूचियाँ दिखाई। दूधवाले का गला सूखा, मन में आग—'साली... ये क्या खेल खेल रही, चूसने की बात, मुंह भरना... चूचियाँ दिखा रही, अगर घर में न होती तो... चूस लेता, ' मुस्कुराया, लेकिन सांसें तेज। "हाँ बिटिया... कभी-कभी भर लेता हूँ मुंह में, चूस लेता हूँ, थक न जाऊँ, लेकिन मीठा लगता है, तू जैसी लड़की को पीने दो, तेरी बॉडी... दूध पीकर इतनी आकर्षक, कभी सोचा है बिटिया दूध का जादू क्या है, बॉडी को इतना नरम, इतना रसीला बना देता है, जैसे कोई फल पक जाए।"

खुशबू ने डिब्बा लिया, लेकिन जानबूझकर हल्का मुस्कुराई, चूचियाँ हल्की लहराईं। "अंकल... आप सही कह रहे, दूध का जादू बॉडी को रसीला बना देता है, मेरी बॉडी... हाँ... नरम हो जाती है, लेकिन कभी सोचा है अंकल कि दूध चूसने का मजा तब होता है जब वो गर्म हो, मुंह में भर लेना, जीभ से घुमा लेना, मलाई चाट लेना, जैसे कोई स्वादिष्ट खेल हो, बोलिए ना अंकल क्या आपकी गायें ऐसी दूध देती हैं कि चूसते रहो, कभी खत्म न हो?" डबल मीनिंग चरम पर, हवा गरम। दूधवाले का दिल धड़का, मन में तूफान—'ये लड़की... खत्म न हो, चूसते रहो... चूचियाँ... उफ्फ, अगर मौका मिला तो... लेकिन चला, कल्पना में ही सही।' हँसा। "हाँ बिटिया... कभी खत्म न हो, चूसते रहो तो मजा आता है, तू जैसी लड़की को पीने दो, तेरी बॉडी... दूध पीकर इतनी रसीली। चल... कल फिर लाऊँगा।" दूधवाला चला गया, लेकिन मन में गंदे ख्याल घूमते रहे।

खुशबू ने गेट बंद किया, मुस्कुराई, हवा में गरमी महसूस हुई, अंदर आई, उमेश अभी भी बिस्तर पर लेटा, आँखें खुलीं। "पापा... दूध आ गया। दूधवाले की आँखें... मेरी चूचियों पर ठहरीं, गंदे ख्याल आ रहे थे उसके मन में, मैंने हल्का दिखा दिया, लेकिन मजा आया।" उमेश का चेहरा लाल हो गया, हवा गरम, उठा, खुशबू को खींच लिया, हाथ चूचियों पर—जोर से दबाया, मसलने लगा। "साली बेटी... दूधवाले को चूचियाँ दिखाई? तेरी चूचियाँ... रंडी चूचियाँ, दूधवाला सोच रहा होगा चूसूँगा, दबाऊँगा, लेकिन तू मेरी है,, ले रंडी... तेरी चूचियाँ पापा के हाथों में लहरा रही, दूध निकालूँगा, चूसूँगा, दूधवाले का ख्याल आया तो पापा का लंड सख्त हो गया, बोल साली... 'पापा, दबाओ जोर से, तेरी बेटी रंडी बनी दूधवाले के लिए, लेकिन चूत तेरी।'" उमेश के हाथ तेज, चूचियाँ लाल, लेकिन खुशबू सिसकी भर रही, गरम। "आह पापा... हाँ... दबाओ, तेरी बेटी रंडी है, चूचियाँ तेरी, चूसो... लेकिन गंदा बोलो, 'साली, तेरी चूचियाँ दूधवाले को दिखाई, अब पापा फाड़ेगा।'"



सुबह की धूप अब मद्धम पड़ रही थी, सड़क पर उमेश की पुरानी बाइक धीरे-धीरे चल रही थी, लेकिन उमेश के मन में वो उत्तेजना का तूफान जो रात भर सुलग रहा था। खुशबू पीछे बैठी हुई थी, साड़ी हल्की लहराती, लेकिन कमर उमेश की पीठ से सटी हुई, हाथ हल्का कसकर पकड़े हुए। "पापा... प्रोफेसर सर के घर... ये सही है न? कल का खेल... आज और गहरा हो जाएगा, लेकिन आपकी नजरें... वो चमक... मुझे डरा रही है, या ये प्यार है जो मुझे बेचैन कर रहा है?" खुशबू की आवाज काँप रही थी, हवा में घुलती हुई, लेकिन उत्तेजना से भरी। उमेश ने बाइक थोड़ी धीमी की, पीछे मुड़कर मुस्कुराया, लेकिन आँखों में वो कुटिल चमक। "बेटी... सही है या गलत... अब फर्क नहीं पड़ता, सर का घर पहुँचकर देखेंगे, लेकिन पापा का मन... तेरी चूत को सर के लंड के साथ देखने को बेताब है, बोल खुशबू... तू तैयार है न, सर का क्रूर खेल खेलने को, या तेरी चूत पहले से ही गीली हो रही है इस कल्पना से?" बाइक फिर तेज चली, हवा तेज हो गई, लेकिन उनके बीच का तनाव... और गहरा।

शहर के बाहरी इलाके में प्रोफेसर शर्मा का छोटा-सा घर था—पुराना, लेकिन अकेला, पत्नी की मौत के बाद वो अकेला रहता, हवा में पुरानी किताबों की महक। बाइक रोकी, उमेश ने दरवाजा खटखटाया, शर्मा ने खोला—चश्मा चेहरे पर, लेकिन आँखों में वो चमक जो कल की यादों से जागी थी। "उमेश जी... खुशबू... आ गए? अंदर आओ... शर्मा की आवाज भारी थी, हवा में गरमी फैल गई, वो अंदर ले गया, लिविंग रूम में—सोफा पुराना, लेकिन प्राइवेट। "सर... हाँ... तूशन ही तो है, लेकिन खुशबू की... चूत का," उमेश ने हँसा, लेकिन कामुकता से। शर्मा ने दरवाजा बंद किया, खुशबू को खींच लिया, साड़ी का पल्लू खींचा—चूचियाँ ब्लाउज में उभरीं। "खुशबू... तेरी चूचियाँ... कल देखीं, आज चूसूँगा। उमेश जी... बैठो, देखो... अपनी बेटी को कैसे चोदूँगा।" शर्मा ने ब्लाउज फाड़ा, चूचियाँ बाहर—मोटी, भरी, निप्पल्स तने। हाथों से जोर से मसला, निप्पल्स मरोड़े। "आह... सर... दर्द... लेकिन... पापा देख रहे," खुशबू सिसकी, लेकिन आँखें उमेश पर।

शर्मा ने खुशबू को सोफे पर पटका, साड़ी ऊपर, पेटीकोट फाड़ा—चूत नंगी, गीली। "उमेश जी... देखो... तेरी बेटी की चूत... बालों वाली, रस टपक रही। ले... मेरा लंड... पहले चूस ले रंडी।" शर्मा ने पैंट नीचे की, लंड बाहर—मोटा, काला, नसें फूलीं। खुशबू ने मुंह लिया, चूसी—गहरा, गला तक। "मम्म... सर... आपका लंड... कड़वा... लेकिन चूस रही। पापा... देखो... सर का लंड... मेरे मुंह में।" शर्मा ने बाल पकड़े, गला ठोंका— "ले रंडी... गला फाड़... तेरी जीभ... लंड चूस रही। उमेश जी... देखो... तेरी बेटी... प्रोफेशनल रंडी।" उमेश बैठा, लंड सहलाते हुए, "हाँ सर... चोदो... गहरा।" शर्मा ने लंड निकाला, चूत पर रगड़ा, जोरदार धक्का—चूत में घुसा। "आह्ह्ह... सर... फाड़ दिया! पापा... देखो... सर चोद रहा... !" शर्मा के धक्के बेरहमी से—जोरदार, कमर पकड़कर ठोके, चूचियाँ उछल रही। "ले रंडी... तेरी चूत... कस रही... फाड़ दूँगा... उमेश जी... देखो... तेरी बेटी चीख रही।" खुशबू चीखी, "आह... सर... जोर से... फाड़ दो... पापा... देख रहे हो न?"

उमेश का सब्र टूटा, करीब आया, शर्मा के लंड पर झुका—चूत से बाहर निकलते हुए चाटा, रस महसूस किया। "सर... आपका लंड... रस से चमक रहा... पापा चाट रहा।" फिर खुशबू की चूत पर जीभ—शर्मा का वीर्य मिश्रित रस चाटा। "बेटी... तेरी चूत... सर का रस... पापा पी रहा।" शर्मा हँसा, "उमेश जी... चाटो... अपनी बेटी की चूत... मेरे रस के साथ।" उमेश चाटता रहा, जीभ अंदर, रस चूसता। खुशबू का shock—आँखें फटीं, लेकिन कामुकता जागी, चूत में कंपन। "पापा... आप... सर का लंड चाट रहे? ये... कितना गंदा... लेकिन... उफ्फ... गरम हो रही हूँ... पापा... तू रंडी का बाप है... सर का लंड चाट... मेरी चूत चूस... साला हरामी... तेरी बेटी को रंडी बना दिया, लेकिन चोद... गंदा खेल खेल!" खुशबू की गालियाँ गंदी, लेकिन आँखें चमक रही, कमर हिल रही, कामुकता चरम पर। शर्मा ने फिर धक्का मारा, "ले रंडी... तेरी गालियाँ... चूत कस रही।" उमेश चाटता रहा, "बेटी... तेरी गालियाँ... पापा को और गरम कर रही।"

शर्मा के धक्के तेज, चरम पर—वीर्य चूत में भरा। "ले... भर दिया!" बाहर निकला, उमेश ने लंड चाटा, साफ किया। फिर चूत चाटी, वीर्य चूसा। "बेटी... सर का रस... मीठा।" खुशबू हाँफ रही, "पापा... साला... तेरी जीभ... मेरी चूत में... सर का रस पी... हरामी... लेकिन मजा आ रहा... चोद फिर!"


घर पहुँचते-पहुँचते रात गहरी हो चुकी थी, बाइक रोकी, हवा ठंडी, लेकिन उनके बीच गरमी। उमेश ने खुशबू को अंदर लिया, दरवाजा बंद किया। "बेटी... सर का खेल... कैसा लगा? पापा ने चाटा... सर का लंड, तेरी चूत... गंदा था न?" उमेश की आँखें चमक रही, हवा गरम। खुशबू मुस्कुराई, साड़ी पटकी, नंगी हो गई। "पापा... गंदा... लेकिन मजा... सर का क्रूर चोदना... तेरी जीभ... सर का रस चाटना... साला हरामी पापा... तू रंडी का बाप है, लेकिन तेरी जीभ... मेरी चूत में... उफ्फ, गरम हो गई। बोल पापा... तुझे मजा आया? तेरी बेटी को सर चोदते देखा, लंड सख्त हुआ? ले... चूचियाँ दबा... जोर से... तेरी रंडी बेटी की।" उमेश ने चूचियाँ मसलीं, जोर से। "हाँ बेटी... मजा आया... तेरी चीखें... सर का लंड... पापा चाटता रहा। साली रंडी... तेरी चूत... सर के रस से भरी... पापा पी गया। अब... चोदूँगा तुझे... घर पर... गंदे खेल।" उमेश ने पटका, लंड चूत में धकेला, धक्के मारे। "आह पापा... चोद... साला हरामी... तेरी बेटी रंडी बनी... ले धक्के!" रवि ने थप्पड़ मारा, चूचियाँ मसलीं। "ले रंडी... तेरी चूचियाँ..




अगली सुबह की धूप खेतों पर चढ़ रही थी, जैसे कोई पीली आग हरियाली को चूम रही हो, हवा में सरसों की फसल की सोंधी खुशबू घुली हुई, और दूर कहीं नदी की लहरें फुसफुसा रही थीं। राधा घर से निकली, साड़ी की जगह छोटी सी टैंग चोली पहनकर—चोली टाइट, चूचियाँ ऊपर उभरी हुईं, बड़े-बड़े, भरे हुए, जैसे दो रसीले आम लटक रहे हों, निप्पल्स हल्के तने हुए चोली के ऊपर से छनते हुए, और नीचे लहंगा छोटा, कूल्हे लहराते हुए। "बाबूजी... आज खेत चलें? मुझे भी घुमाना चाहते हो न, या सिर्फ फसल देखोगे?" राधा की आवाज शरारती थी, आँखों में चमक, जानबूझकर चोली हल्की झुककर चूचियाँ झलकाईं। हरि ने मुस्कुराया, लेकिन आँखें चूचियों पर ठहरीं, मन में भूख जागी। "राधा... मेरी राजकुमारी... हाँ चलें, लेकिन ये चोली... कितनी छोटी, तेरी चूचियाँ... ऊपर उभरी हुईं, जैसे कोई फूल खिल रहा हो, लेकिन बाबूजी को देखकर तू शरारत कर रही है न? चल... खेत में अकेले... तेरी ये चूचियाँ... बाबूजी सहलाएंगे, प्यार से। बोल बेटी... तू जानबूझकर ये पहनी है न, बाबूजी को तंग करने के लिए?"

राधा ने हँसी छोड़ी, हाथ हरि का पकड़ा, खेत की ओर चली। "बाबूजी... हाँ शरारत है, लेकिन आपकी आँखें... मेरी चूचियों पर ठहर रही, कितनी गर्म लग रही, चलिए ना, खेत में हवा चलेगी, मेरी चोली हवा में लहराएगी, और आप... मेरी कमर सहलाएंगे, बोलिए ना बाबूजी क्या आपको मेरी चूचियाँ छूने का मन कर रहा है, धीरे से दबाने का, जैसे कोई कोमल फूल को सहला रहे हों?" हवा तेज हो गई, चोली हल्की लहराई, चूचियाँ झलकने लगीं। हरि का दिल धड़का, हाथ राधा की कमर पर—खेत पहुँचे, तंबू के नीचे बैठे। "राधा... हाँ मन कर रहा, तेरी चूचियाँ... कितनी भरी, रसीली, प्यार से छूना चाहता हूँ, लेकिन पहले... ये गंजा... चिलम भरूँ? नशा चढ़ेगा तो तेरी चूचियाँ... और जोर से दबाऊँगा, बोल बेटी... तू तैयार है न, बाबूजी के नशे में तेरी चूचियाँ सहलाने के लिए?" हरि ने चिलम भरी, गंजा जलाया, धुआँ उड़ा—नशा चढ़ने लगा, आँखें लाल।

राधा ने चिलम ली, हल्का खींचा, धुआँ अंदर लिया, सांसें तेज। "बाबूजी... हाँ तैयार हूँ, आपका नशा... मेरी बॉडी को छू ले, चूचियाँ दबा लें, लेकिन गंदा बोलिए ना... 'राधा रंडी... तेरी चूचियाँ मटन मटन मोटी, बाबूजी दबा रहा हूँ, निप्पल्स मरोड़ रहा, दूध निकालूँगा साली, तेरी चूचियाँ दूध वाली वेश्या चूचियाँ, दबा-दबा के लाल कर दूँगा, ले रंडी... बाबूजी का हाथ तुझे रंडी बना रहा।'" राधा की चोली हल्की खींची, चूचियाँ बाहर। हरि ने हाथ लगाया, जोर से दबाया, मसलने लगा—हाथ भर आ गईं, निप्पल्स मरोड़े। "उफ्फ... राधा रंडी... तेरी चूचियाँ... कितनी मोटी, भरी, दबा रहा हूँ जोर से, निप्पल्स मरोड़ रहा, दूध निकल रहा साली, ले रंडी बेटी... बाबूजी तेरी चूचियाँ मसल रहा, तेरी चूत गीली हो गई न, तेरी चूचियाँ दूध वाली कुतिया चूचियाँ, दबा-दबा के फाड़ दूँगा, बोल रंडी... 'बाबूजी... दबाओ जोर से, तेरी बेटी रंडी बनी, चूचियाँ तेरी, मसलो, चूसो, दूध निचोड़ो साला हरामी बाप।'" हरि का नशा चढ़ा, हाथ तेज, चूचियाँ लाल हो गईं।

राधा सिसकी भर रही, कमर हिल रही, चूत गीली। "आह बाबूजी... हाँ... दबाओ जोर से, तेरी बेटी रंडी है, चूचियाँ मसलो, निप्पल्स काटो, दूध निचोड़ो, तेरी हवस... मुझे जलाती है, लेकिन मजा... उफ्फ... बोलो बाबूजी... 'साली रंडी बेटी... तेरी चूचियाँ बेच दूँगा गाँव के सेठ को, 500 में चूसने को, लेकिन पहले बाबूजी चूस लेगा, ले रंडी... मसल रहा हूँ, तेरी चूत का रस बह रहा न?'" हरि ने चूचियाँ चूसी, दाँत लगाए। "हाँ साली... बेच दूँगा, लेकिन पहले चूस रहा, तेरी चूत... रस बह रहा, ले रंडी... चूचियाँ चूस रहा, दूध पी रहा।" खेल लंबा... खेत में सिसकारियाँ गूँजतीं।



घर पर आंगन में धूप मद्धम पड़ रही थी, नीम का पेड़ छाया डाल रहा, लेकिन हवा में वो गरमी बाकी थी जो सुबह से सुलग रही। रमा आंगन में खड़ी थी, पेटीकोट में, साड़ी ऊपर चढ़ी, कमर लहराती—चूचियाँ ब्लाउज में उभरीं। रवि उसके पीछे आया, हवा में नशे की बू। "मम्मी... आंगन में क्या कर रही हो? तेरी कमर... कितनी नरम लग रही, पेटीकोट में... छू लूँ?" रवि ने पीछे से कमर पकड़ी, हल्का दबाया। रमा मुड़ी, मुस्कुराई। "रवि... बेटा... हवा ले रही हूँ, लेकिन तेरी सांसें... गरम लग रही। छू... लेकिन प्यार से।" रवि ने पेटीकोट ऊपर किया, गांड नंगी—गोल, सफेद। झुका, जीभ निकाली, दरार पर रगड़ी, चाटने लगा। "मम्मी... तेरी गांड... कितनी गर्म, नरम... चाट रहा हूँ... जीभ अंदर।" रमा सिहर उठी, सिसकी भरी। "आह... रवि... तेरी जीभ... गांड पर... उफ्फ... गरम हो रही हूँ... चाट... गहरा... मम्मी की गांड... तेरी।" रवि की जीभ अंदर, चाटता रहा, थूक गिराया। "मम्मी... तेरी गांड... मीठी... चूस रहा... प्यार से।" रमा की सिसकारियाँ तेज, चूत गीली। "रवि... आह... तेरी जीभ... गुदगुदा रही... मम्मी गरम हो गई... चाट... जोर से।"

रवि उठा, लुंगी नीचे, लंड सख्त, गांड पर रगड़ा—पीछे से। "मम्मी... मेरा लंड... तेरी गांड पर रगड़ रहा... कितना गर्म लग रहा।" रमा की कमर हिली, सिसकी। "रवि... हाँ... रगड़... मम्मी की गांड... तेरे लंड पर... उफ्फ... गरम हो रही।" रवि ने गर्दन चाटी, थूक गिराया, चूसा। "मम्मी... तेरी गर्दन... चाट रहा... थूक दे रहा मुंह में।" रमा ने मुंह खोला, थूक लिया, चूसा। "आह... रवि... तेरा थूक... गरम... मम्मी पी रही।" रवि का हाथ पीछे से चूचियों पर—दबाया, जोर से, मसलने लगा, निप्पल्स मरोड़े। "मम्मी... तेरी चूचियाँ... मसल रहा... निप्पल्स मरोड़ रहा... लाल कर रहा।" रमा की सिसकारियाँ तेज। "उफ्फ... रवि... चूचियाँ मसल... निप्पल्स दर्द हो रहा... लेकिन गरम... मम्मी की चूचियाँ... तेरी।"

रवि ने रमा को पलटा, नीचे बिठाया—गाल पर थप्पड़, जोरदार। "मम्मी... ले... तेरी सिसकारियाँ... पापा को सुनाई दे रही, ले थप्पड़।" रमा सिहरी, लेकिन आँखें चमक। "आह... रवि... दर्द... लेकिन मजा।" रवि ने फिर थप्पड़—दूसरा। "मम्मी... सालों से तुझे देखकर मुठ मारता था, तेरी साड़ी में कमर लहराती, चूचियाँ उभरीं... छिपकर लंड सहलाता, सोचता तेरी चूचियाँ चूसूँगा, चूत चाटूँगा, लेकिन आज... ले थप्पड़... तेरी सिसकारियाँ... रंडी माँ की सिसकारियाँ।" रमा की आँखें नम, लेकिन गरम। "रवि... तू... सालों से? मम्मी को देखकर? आह... ले मम्मी तेरे लंड को चूस लेगी।" रमा ने लंड पकड़ा, मुंह में लिया, चूसी—गहरा, गला तक। "मम्म... रवि... तेरा लंड... चूस रही... दूध दे... मुंह में।" रवि सिसका, झटके मारा—वीर्य फूटा, मुंह में भरा। रमा ने गटक लिया, बाकी चेहरे पर मला—चिपचिपा, सफेद। रवि ने देखा, जोरदार थप्पड़—चटाक! "ले रंडी माँ... तेरी चूत रस छोड़ रही, चूचियाँ मसलवा रही, ले थप्पड़ कुतिया माँ... तू चीना माँ है, बुरचोदी हरामी रंडी माँ... तेरी चूचियाँ मटन मटन, चूत बालों वाली कुतिया चूत, ले थप्पड़ रंडी माँ... सालों से तेरी गांड देखकर मुठ मारता, अब ले सजा!" रमा सिसकी, लेकिन गरम। "आह रवि... रंडी माँ हूँ तेरी... ले थप्पड़... मसल चूचियाँ... चोद... कुतिया माँ तेरी है।"
 

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रमा और रवि बस स्टैंड पर खड़े थे, झोले कंधे पर लटकाए, लेकिन रवि की आँखें रमा की कमर पर ठहरीं—साड़ी हल्की सिकुड़ी, कूल्हे लहराते, चूचियाँ ब्लाउज में उभरीं। गाँव की यात्रा खत्म हो चुकी थी, लेकिन वो आग... हरि मामू के साथ रात भर की चुदाई, थप्पड़ों की जलन, चूचियाँ मसलने का मजा... अभी भी सुलग रही। "मम्मी... चलो, बस आ गई। पिछली सीट बुक कर लूँ? अकेले में... आराम करेंगे। लेकिन मम्मी, तेरी कमर... साड़ी में लहरा रही है, जैसे कह रही हो 'बेटा, छू ले, दबा ले... गाँव की यादें अभी ताजा हैं, मामू ने जोर से मारी थीं न?'" रवि की आवाज काँप रही थी, नशे की हल्की चिंगारी मिश्रित हवस से, हाथ हल्का रमा की कमर पर सरका दिया—उँगलियाँ नरम त्वचा पर रगड़ते हुए, जैसे आग लगाने को बेताब।

रमा ने सिर झुकाया, चेहरा लाल—गाँव की यादें उमड़ आईं, हरि का लंड चूत में घुसता हुआ, रवि के थप्पड़ों की जलन। "रवि... बेटा... हाँ, पिछली सीट ही अच्छी रहेगी। बस में भीड़ होगी, लेकिन अकेले... तेरी मम्मी थक गई है। गाँव में हरि ने तो तेरी मम्मी की चूत फाड़ दी, थप्पड़ मारे, चूचियाँ काटी... अब बस में तू... उँगली डालने को बेताब लग रहा है न? बोल बेटा... 'मम्मी, तेरी चूत... अभी भी मामू के रस से गीली है? बेटा उँगली से चाट लेगा।'" उसकी आवाज नरम थी, माँ वाली, लेकिन टोन में वो कामुकता जो रवि को और भड़का देती—होंठ काँपते हुए, सांसें गर्म, जैसे गाँव की आग अभी भी सुलग रही हो। टिकट ली, बस में चढ़े—AC वाली, ठंडी हवा, लेकिन पिछली सीट खाली, आखिरी कोना। दोनों बैठे, रवि बगल में, कंबल हल्का ऊपर डाला—बस चल पड़ी, शहर की तरफ। रवि का हाथ धीरे से रमा की जांघ पर—साड़ी के ऊपर से सहलाया। "मम्मी... ठंड लग रही? कंबल ऊपर कर लो... लेकिन साड़ी हल्की ऊपर... तेरी जांघें... कितनी चिकनी, गर्म... जैसे कह रही हों 'बेटा, फैला ले पैर... मम्मी की चूत... तेरी उँगली का इंतजार कर रही।' ले... हाथ सरका रहा... चूत पर पहुँच गया।"

रमा सिहर उठी, लेकिन पैर हल्का फैलाए—AC की ठंडक चूचियों को तनने पर मजबूर कर रही। "रवि... बेटा... हाँ ठंड लग रही... कंबल कस ले। लेकिन हाथ... धीरे... कोई देख लेगा। गाँव में मामू ने तो तेरी मम्मी को पटक दिया था, लंड चूत में ठोंका, ... और तू देखता रहा। अब बस में... तेरी उँगली... आह... छू रही चूत के होंठ... गीली हो गई मम्मी... जोर से रगड़... लेकिन चुपके से। बोल बेटा... 'मम्मी, तेरी चूत... बालों वाली, रस टपक रही... बेटा उँगली डालकर चूस लेगा, जैसे मामू ने चोदा था।'" रवि का हाथ ऊपर सरका, साड़ी के नीचे, पेटीकोट में घुसा—चूत पर उँगलियाँ रगड़ीं। "हाँ मम्मी... तेरी चूत... गर्म, गीली... मामू ने फाड़ी थी न? अब बेटा उँगली डालेगा... ले... दो उँगलियाँ अंदर... 'आह बेटा... गहरा... मम्मी की चूत तेरी उँगली चूस रही... जोर से हिला... मम्मी गरम हो रही, रस बह रहा!'"

रवि की उँगलियाँ तेज, अंदर-बाहर—चूत से चट-चट की आवाज कंबल के नीचे दबी। "मम्मी... तेरी चूत... कितनी रसीली... रस बह रहा... ले... उँगली जोर से... बोल... 'बेटा... जोर से... मम्मी की चूत फाड़... तेरी उँगली... मामू के लंड जैसी... आह... गहरा... मम्मी की चूत... तेरी उँगली से चरम पर पहुँच रही... रस छोड़ दूँगी!' रवि ने तीसरी उँगली जोड़ी, जोर से हिलाई—रमा की कमर उभरी, सिसकारियाँ दबीं। "उफ्फ... रवि... हाँ... फाड़... तेरी मम्मी रंडी बनी... बस में तेरी उँगली से.. आह... रस बह रहा... ले... मम्मी का रस... तेरे हाथ चिपचिपा हो गया!" रवि ने उँगली निकाली, कंबल के नीचे ही मुंह झुकाया—चूत पर जीभ रगड़ी, रस चाटा। "मम्मी... तेरा रस... मीठा... 'चाट बेटा... मम्मी का रस पी... बस में तेरी जीभ... गरम कर रही... जोर से चूस... मम्मी की चूत... तेरी मुंह में!'"

रमा काँप उठी, चरम पर—रस बहा, रवि ने चाट लिया। "आह... रवि... हाँ... चाटो... मम्मी का रस... तेरा... उफ्फ... तेरी जीभ... गहरा... चूसो होंठ... मम्मी फिर गरम हो रही!" AC की ठंडक से रमा काँप उठी, चूचियाँ तनकर ब्लाउज को चीरने को बेताब। "रवि... ठंड लग रही... ब्लाउज... हटा लूँ? दबा ले... जोर से... मसल... होली की तरह। बोल बेटा... 'हाँ मम्मी... ब्लाउज फाड़... तेरी चूचियाँ... मसलूँगा, मोटी चूचियाँ... दबा-दबा के लाल कर दूँगा।'" रवि ने सिर हिलाया, कंबल के नीचे हाथ डाला—ब्लाउज के हुक खोले, चूचियाँ बाहर—बड़े-बड़े, भरे, निप्पल्स कड़े। हाथ से पकड़ा, जोर से मसलने लगा—मसल-मसलकर, निप्पल्स मरोड़े। "मम्मी... तेरी चूचियाँ... कितनी मोटी, भरी... मसल रहा... दूध निकाल रहा... उफ्फ... 'बेटा... दबा जोर से... मम्मी की चूचियाँ... तेरी हथेलियों में लहरा रही... निप्पल्स मरोड़... दर्द हो रहा, होली की तरह थप्पड़ मार!'"

रमा की सिसकारियाँ तेज, लेकिन कंबल दबाया—'हाँ... दबा... मसल... मम्मी की चूचियाँ... होली की तरह लाल कर दे... आह... निप्पल्स मरोड़... दर्द हो रहा, लेकिन चूत टपक रही... ले बेटा... थप्पड़ मार मम्मी की चूचियों पर... जोर से... मसलते हुए!' रवि ने हाथ उठाया, चूचियों पर थप्पड़—चटाक! "ले मम्मी... रंडी चूचियाँ!" रमा सिहरी, ल—'आह... बेटा... थप्पड़... मजा आ रहा... और मार... मम्मी की चूचियाँ... तेरी सजा ले रही... मसल... दबा!'

तभी बस में हलचल—कंडक्टर आया, लाल चेहरा, आँखें शक से भरी। "ए... पिछली सीट... क्या कर रहे हो? कंबल में हाथ-पैर... कुछ गड़बड़ लग रहा। खोलो... चेक करूँ! सिसकारियाँ सुनाई दे रही... क्या माँ-बेटा हो? रवि का दिल बैठ गया, लेकिन रमा ने कंबल कस लिया। कंडक्टर ने झुककर देखा, लेकिन कंबल के नीचे रमा की चूचियाँ मसली जा रही थीं—हल्की सिसकारी सुनाई दी। कंडक्टर की आँखें लाल, मन में शक—'साली... माँ-बेटा लग रहे, लेकिन कंबल में . चूचियाँ मसल रहे ह। उफ्फ... वो चूचियाँ... मोटी लग रही... वो झुक गया, कान में फुसफुसाया—'भाई... क्या कर रहे हो? माँ के साथ? मैंने देख लिया... चूचियाँ मसल रहे हो। चुप रहूँगा... लेकिन 500 दो... वरना रिपोर्ट कर दूँगा। और भाभी... तेरी चूचियाँ... मसल लूँ? लाल हो गईं लग रही।' रवि घबरा गया, लेकिन कंडक्टर ने कंबल के नीचे हाथ सरका दिया—रमा की चूचियों पर पहुँचा, जोर से दबाया। "उफ्फ... भाभी... तेरी चूचियाँ... कितनी मोटी... दबा रहा... निप्पल्स मरोड़ रहा। चुप रहूँगा... लेकिन चूसूँगा। बोल भाभी... 'हाँ... दबा... लेकिन जोर से... तेरी हथेली... गरम लग रही।'"

रमा सिहर उठी, लेकिन चूत गीली—कंडक्टर का हाथ गंदा, लेकिन जोरदार। "आह... क्या... छोड़ो...! रवि... ये...?" लेकिन कंडक्टर ने धमकी दी, "चुप रंडी... 500 दो वरना पुलिस... 'दबा जोर से... मसल... मेरी चूचियाँ... तेरी हथेलियों में लहरा रही।'" मसलने लगा—जोर-जोर से, निप्पल्स मरोड़े, चूचियाँ लाल। रवि देख रहा, लंड सख्त—हाथ पैंट में, मसलने लगा। "मम्मी... ये... देख रहा... कंडक्टर तेरी चूचियाँ मसल रहा... साला हरामी... लेकिन तेरी चूचियाँ... उछल रही। बोल मम्मी... 'रवि... देख... कंडक्टर मसल रहा... तेरी मम्मी की चूचियाँ... गरम हो गई।'"

कंडक्टर हँसा, कंबल के नीचे झुका—रमा के होंठों पर किस किया, जोरदार—जीभ अंदर धकेली, चूसा। "मम्म... भाभी... तेरी लार... मीठी... थूक दे मुंह में। बोल... 'हाँ... चूस... तेरी जीभ... मेरा मुंह भर रही।'" रमा ने थूक दिया, लेकिन गरम। "आह... छोड़ो...! लेकिन... जोर से चूस... मेरा मुंह... तेरी जीभ से भर रहा।" कंडक्टर ने गाल पर थप्पड़—चटाक! "ले रंडी... चुप... ... ले थप्पड़! "उम्म... तेरी जीभ... " चटाक! रमा की सिसकारियाँ, लेकिन चूत टपक रही। "आह...

कंडक्टर ने मसलना जारी, थप्पड़ मारते हुए—तीसरा, चौथा—गाल लाल। "ले रंडी... बोल... 'हाँ... मसल... थप्पड़ मार... मेरी चूचियाँ... तेरी सजा ले रही।'""मम्म... तेरी लार... .. ले थप्पड़!" चटाक! रमा रोने लगी, लेकिन गरम—'आह... दर्द... लेकिन... चूत गीली... थप्पड़ और... चूस... जीभ से भर!' कंडक्टर ने हाथ नीचे—चूत पर उँगली। "उफ्फ... तेरी चूत... गीली रंडी... उँगली डालूँ? बोल... 'हाँ... डाल... मसलते हुए उँगली चूत में... जोर से!'" रवि मसलता रहा, "मम्मी... साला कंडक्टर तेरी चूत छू रहा... लेकिन तू गरम हो गई... ले मेरा रस...!" रवि झटके मारा, वीर्य पैंट में। कंडक्टर ने उँगली डाली, हिलाई—'ले रंडी... तेरी चूत... बोल... 'आह... उँगली... गहरा... मसल चूचियाँ... थप्पड़ मार!' रमा चरम पर, रस बहा। "आह... रस... ले ले!" कंडक्टर ने हाथ पोंछा, 500 लिए, चला गया—

बस पहुँची, दोनों उतरे—रमा की चूचियाँ लाल, गाल जल रहे, लेकिन चूत गीली। "रवि... बेटा... ये... क्या हो गया? लेकिन तेरी नजरें... देखते हुए... मम्मी गरम हो गई। घर आकर... चोद ले... कंडक्टर की तरह थप्पड़ मार... मसल... चूस... मम्मी तेरी रंडी बनेगी।" रवि मुस्कुराया, "हाँ मम्मी... चोदूँगा... कंडक्टर की तरह थप्पड़ मारूँगा... तेरी चूचियाँ मसलूँगा... चूत फाड़ूँगा... साली रंडी माँ...


घर पहुँचते ही रात की ठंडक ने रवि को घेर लिया, लेकिन बस के सफर की वो आग अभी भी उसके अंदर सुलग रही थी—कंबल के नीचे मम्मी की चूचियाँ मसलते हुए कंडक्टर का हाथ, व, और मम्मी की सिसकारियाँ,..रवि का मन उथल-पुथल में था, लंड अभी भी आधा सख्त, पैंट में दबा हुआ। घर का दरवाजा खोला, अंदर अंधेरा था—सिर्फ रसोई की तरफ से हल्की पीली लाइट आ रही, जैसे कोई छोटा सा दीपक जल रहा हो। हवा में मिट्टी और पसीने की हल्की महक घुली हुई थी, गाँव से लौटने की थकान "मम्मी... घर आ गया। बस का सफर... क्या था वो? कंडक्टर ने तो तेरी चूचियाँ मसल-मसलकर लाल कर दिया, 'ले रंडी... तेरी चूचियाँ दबा रहा... थप्पड़ मारूँगा!' बोल रहा था साला हरामी... और तू... गरम हो गई, सिसकारियाँ भर रही। लेकिन मजा आया न मम्मी? घर आकर आराम करेंगे। कल सुबह क्या बनाओगी चाय के साथ? बस की थकान मिट जाएगी।" रवि की आवाज काँप रही थी, लेकिन सामान्य लहजा बनाए रखने की कोशिश कर रहा—जैसे बस की बातें कर रहा हो, लेकिन मन में वो गंदे ख्याल घूम रहे थे।

रमा ने रसोई से जवाब दिया, आवाज थकी लेकिन नरम—माँ वाली। "हाँ बेटा... आ गया? सफर लंबा था न? बस में ठंड लग गई... चूचियाँ अभी भी दर्द कर रही। कंडक्टर ने तो... साला... हाथों से मसल दिया, लेकिन तू देखता रहा, तेरी नजरें... मम्मी की चूत गीली कर देती। आ... पानी पी ले... मैं चाय बना रही हूँ। थक गई हूँ... ब्लाउज भी उतार लिया, पेटीकोट में ही हूँ... गर्मी लग रही थी। कल सुबह चाय के साथ पराठे बनाऊँगी, तू पसंद करता है न? बस की थकान मिट जाएगी... लेकिन तू... स्कूल का होमवर्क किया? कल परीक्षा है न? बता मम्मी को... तू कितना पढ़ा?" रमा की आवाज सामान्य थी, लेकिन हल्की काँप—जैसे बातें करते हुए भी बस की यादें उमड़ रही हों।

रवि ने जूते उतारे, आंगन पार किया—रसोई के दरवाजे पर रुक गया। वहाँ रमा खड़ी थी, पीठ फेरकर—ब्लाउज उतार दिया था, सिर्फ पेटीकोट पहने, कमर नंगी, पीठ चिकनी, पसीने से हल्की चमकती। पेटीकोट सफेद, कूल्हों को कसकर चिपका हुआ—गांड की गोलाई साफ झलक रही, बीच में वो गहरी दरार। बाल खुले लहरा रहे, कंधे नंगे, और पीठ पर वो पुरानी निशान—हरि के थप्पड़ों के हल्के निशान। रवि की सांसें थम गईं—मन में बस की यादें उमड़ आईं, लेकिन ये लुक... पेटीकोट में मम्मी की गांड... उफ्फ! पेटीकोट में अकेली... पीठ नंगी... गांड की गोलाई... साफ दिख रही। जानबूझकर ये लुक? चाय बना रही है, लेकिन कमर लहरा रही... जैसे कह रही हो 'बेटा, देख ले... मम्मी की गांड... तेरी है।

रमा मुड़ी, चेहरा तरोताजा, लेकिन होंठों पर वो मुस्कान—माँ वाली, लेकिन आँखों में शरारत। "अरे बेटा... क्या हुआ? बस की थकान मिट रही है... ब्लाउज गर्म लग रहा था, उतार दिया। पेटीकोट में आराम मिल रहा... तू भी थक गया होगा न? आ... बैठ... चाय बना रही हूँ। कल परीक्षा का टेंशन मत ले... तू तो हमेशा अच्छा करता है... बस रिवाइज कर ले। कल चाय के बाद क्या खाना बनाऊँ? तू पसंद करता है न आलू की सब्जी?

रवि करीब आया, हाथ पीठ पर रखा—नरम, गर्म त्वचा। "मम्मी... आलू की सब्जी पसंद है... लेकिन तेरी पीठ... चिकनी है... पसीना... हल्का नमकीन लग रहा। सहला रहा... लेकिन मन कर रहा... मसल दूँ जोर से। रवि की उँगलियाँ पीठ पर मसलने लगीं—धीरे से, लेकिन नीचे सरकाईं, पेटीकोट के ऊपर से गांड की गोलाई पर। रमा की सांसें तेज हो गईं, लेकिन आवाज सामान्य रखने की कोशिश। "रवि... हाँ... मसल... दर्द मिट रहा। मसल... लेकिन धीरे... तू मेरा बेटा है... लेकिन हाथ... मसल... जोर से... आह... मम्मी की गांड... तेरी हथेली में गर्म हो रही। बोल बेटा... मम्मी की गांड... कितनी नरम लग रही? पेटीकोट के नीचे... पसीना लग रहा? कल सुबह जल्दी उठना पड़ेगा न?"

रवि का मन पागल हो गया—गांड मसलते हुए लंड जोर से सख्त, पैंट में दर्द। "मम्मी... कल सुबह जल्दी उठूँगा... लेकिन तेरी गांड... नरम है... पसीना... गर्म लग रहा। लेकिन मन कर रहा... पेटीकोट नीचे... बोल मम्मी... 'हाँ बेटा... चाट... मम्मी की गांड... तेरी जीभ से... लेकिन धीरे... '" रवि ने पेटीकोट हल्का नीचे सरका दिया—गांड आधी नंगी, सफेद, गोल। झुका, जीभ निकाली—दरार पर हल्का रगड़ा, चाटने लगा। नमकीन स्वाद, गर्म त्वचा। "मम्मी... तेरी गांड... चाट रहा... कितनी गर्म... पसीना... मीठा लग रहा।

रमा काँप उठी, कमर मुड़ी—लेकिन आवाज सामान्य रखने की कोशिश। "आह... रवि... हाँ... चाट... तेरी जीभ... गुदगुदा रही... लेकिन धीरे... मम्मी की गांड... नमकीन लग रही? तेरी जीभ... दरार में घुस रही... आह... गहरा... चाट... मम्मी की गांड... मसल... मम्मी की गांड के गोले... तेरी हथेली में... बोल बेटा... मम्मी की गांड... कितनी गोल लग रही? .. चाटते रहो... लेकिन कल सुबह जल्दी उठना पड़ेगा न? तू तैयार हो?"

रवि की जीभ गहरा चाटने लगी—दरार में घुसाई, चूसने लगा, थूक गिराया। "मम्मी... तेरी गांड... गोल है... पसीना... मीठा... बोल... 'हाँ बेटा... जोर से चाट... मम्मी की गांड... तेरी जीभ से गीली हो रही... रमा की सिसकारियाँ तेज,"रवि...

रवि चाटता रहा, जीभ अंदर-बाहर—मसलते हुए गांड के गोले दबाए। तेरी गांड... कितनी मीठी... चाट रहा... बोल... 'हाँ बेटा... चाट... मम्मी की गांड... तेरी जीभ से... कल दूध ला लूँगी... तू पास हो जाएगा तो मम्मी तुझे गले लगाएगी... लेकिन बात कर... कल कौन-कौन चैप्टर आएंगे? तूने रिवाइज किया? मम्मी चिंता करती है... तेरी पढ़ाई... तू तो हमेशा अच्छा करता है... लेकिन हाथ... मसल... मम्मी की गांड के गोले... तेरी हथेली में... बोल बेटा... मम्मी की गांड... कितनी गर्म लग रही?

सुबह की धूप अब पूरी तरह फैल चुकी थी, गाँव की पतली सड़क पर बच्चे स्कूल की ओर दौड़ रहे थे—स्कूल बैग कंधों पर लटकाए, हँसी-मजाक करते हुए। उमेश पहले ही स्कूल चला गया था, , चश्मा ठीक करते हुए रमा को आवाज दी थी, "रमा... आज बाजार जाना, सब्जी ला लेना। खुशबू भी कॉलेज चली गई, रवि तो दोस्तों के साथ खेलने निकला। घर संभाल लेना।" रमा ने मुस्कुराकर सिर हिलाया, लेकिन मन में हल्की सिहरन दौड़ गई—कल रात की यादें अभी भी बॉडी में बसी हुई थीं, हरि के रफ स्पर्श, रवि की गंदी गालियाँ, और वो थप्पड़ जो दर्द के साथ-साथ चूत को गुदगुदा देते थे। "हाँ उमेश... सब ठीक रहेगा। तू पढ़ा लेना बच्चों को, नैतिकता सिखाना मत भूलना," रमा ने हँसकर कहा, लेकिन अंदर ही अंदर सोच रही थी, 'नैतिकता? घर में तो गंदगी का राज़ चल रहा, बाहर भी थोड़ा मजा ले लूँ।' रवि ने जाते-जाते रमा को गले लगाया था, कान में फुसफुसाकर, "मम्मी... शाम को लौटूँगा, तेरी चूचियाँ फिर मसलूँगा, लेकिन बाजार में सावधान रहना, कोई देख ले तो... ले थप्पड़ मारूँगा।" रमा ने हँसकर धक्का दिया, "जा बेटा... खेल आ, मम्मी सब संभाल लेगी।"

घर सूना हो गया। रमा ने आईना देखा—साड़ी लाल रंग की, पतली कॉटन वाली, जो बॉडी से चिपककर कमर की लहर दिखा रही, ब्लाउज डीप नेक वाला, चूचियाँ ऊपर उभरी हुईं, बड़े-बड़े, भरे हुए, जैसे दो रसीले आम लटक रहे हों। "उफ्फ... आज तो गर्मी लग रही, लेकिन ये साड़ी... बाजार में मर्दों की नजरें खींच लेगी। मजा आएगा," मन ही मन सोचा, हल्का सा मेकअप किया—होंठों पर गुलाबी लिपस्टिक, आँखों में काजल। पल्लू ठीक किया, लेकिन जानबूझकर हल्का ढीला छोड़ा। झोला उठाया, बाजार की ओर चली—गाँव की सड़क पर पैदल, हवा साड़ी को लहरा रही, कूल्हे हिल रहे, जैसे कोई शरारती लहर। बाजार दूर न था—आधा किलोमीटर, लेकिन रास्ते में कुछ किसान, कुछ दुकानदार नजरें ठहरा रहे, "रमा भाभी... आज तो कितनी फ्रेश लग रही हो, बाजार में क्या लेने गई?" एक किसान ने हँसकर पूछा। रमा ने मुस्कुराकर जवाब दिया, "सब्जी लेने चली भैया... तू भी कुछ ला दे, तो अच्छा।" अंदर ही अंदर सोच रही, 'नजरें तो ठहर रही, लेकिन मजा तो बाजार में आएगा।'

बाजार पहुँची—हलचल भरा, सब्जी की दुकानें, मछली बेचने वाले चिल्ला रहे, मर्दों की भीड़। रमा ने टमाटर उठाया, तराजू पर तौलवाया, लेकिन जानबूझकर झुककर—साड़ी का पल्लू हल्का सरका, चूचियाँ झलकने लगीं। दुकानदार की आँखें ठहरीं, "भाभी... आज तो सब्जी ताजा है, लो थोड़ा ज्यादा, फ्री में।" रमा हँसी, "अरे भैया... तू तो अच्छा है, लेकिन ये सब्जी... कितनी मोटी, गोल... चूसने को जी चाहे।" डबल मीनिंग वाली बात पर दुकानदार का चेहरा लाल, लेकिन हँस दिया। रमा ने झोला भरा, लेकिन मन भटक रहा—देखा, बाजार के कोने में दो आवाड़े लड़के खड़े थे। 20-22 साल के, गंदे कपड़े, दाढ़ी नोची हुई, आँखें लाल, लेकिन बॉडी मज़बूत—एक का नाम था बिंदा, दूसरा मिंदा, गाँव के बदमाश, जो बाजार में घूमते, लड़कियों को ताकते। उनकी नजरें रमा पर ठहरीं—उसकी साड़ी की लहर, चूचियों की उभार। "अरे मिंदा... देख तो, वो रमा भाभी... उमेश टीचर की बीवी। कितनी हसीन लग रही, साड़ी चिपकी हुई, चूचियाँ तो बाहर आने को बेताब। चल, बात करते हैं," बिंदा ने फुसफुसाया, हँसते हुए। मिंदा ने सिर हिलाया, "हाँ यार... लेकिन शरीफ बनना पड़ेगा, वरना भाग जाएगी। लेकिन तेरी तरह पकड़ लेंगे।"

दोनों रमा के पीछे लग गए। रमा ने महसूस किया—पीछे दो शैतान छायाएँ। लेकिन अंदर ही अंदर मजा आने लगा, हृदय की धड़कन तेज। "क्या ये दोनों... मेरी ओर आ रहे? उफ्फ... मजा आएगा, लेकिन शरीफ बनूँगी पहले," सोचा। सब्जी का झोला कंधे पर लटकाए, वो बाजार के कोने की ओर बढ़ी—वहाँ सब्जी की आखिरी दुकान, उसके पीछे एक संकरी गली, जहाँ भीड़ कम। बिंदा ने पहले आवाज दी, शरीफ बनकर, "भाभी जी... नमस्ते! रमा भाभी ना? हम गाँव के ही हैं, बिंदा और मिंदा। आज बाजार में तुम्हें देखा, तो सोचा मिल लें। सब्जी अच्छी मिली?" आवाज में मासूमियत, लेकिन आँखें चूचियों पर। रमा मुड़ी, मुस्कुराई—शर्मीली बनकर, लेकिन अंदर हँसी आ रही। "अरे हाँ भाई... सब्जी तो मिल गई, लेकिन ये गर्मी... पसीना बह रहा। तुम दोनों... गाँव के हो? उमेश के स्कूल में पढ़ते हो क्या?" मिंदा ने हँसकर कहा, "नहीं भाभी... हम तो खेतों में काम करते, लेकिन उमेश सर को जानते हैं। आप तो कितनी सुंदर लग रही हो, साड़ी सूट कर रही। लेकिन ये पल्लू... हल्का ढीला लग रहा, ठीक कर लो वरना..." रमा ने जानबूझकर पल्लू ठीक किया, लेकिन चूचियाँ हल्की दबाईं, जैसे हवा से। "अरे... हाँ भाई, गर्मी में ढीला हो जाता है। तुम दोनों तो अच्छे लग रहे, लेकिन बाजार में क्या कर रहे? कोई मदद चाहिए?"

बिंदा ने करीब आया, शरीफ बनकर, "भाभी... मदद तो हम करेंगे। झोला भारी लग रहा, ले लो। लेकिन आपकी कमर... कितनी पतली, साड़ी में लहरा रही। हम तो सोच रहे, भाभी को कुछ फल दे दें, ताजा आम... चूसने लायक।" डबल मीनिंग पर रमा का मन हँस पड़ा, लेकिन चेहरा शर्मीला। "अरे भाई... आम? हाँ... चूसने लायक अच्छा रहेगा। लेकिन तू तो शरारती लग रहा। चलो... कोने में चलें, वहाँ फल की दुकान है।" तीनों कोने की गली में गए—वहाँ भीड़ कम, दीवार के सहारे। मिंदा ने झोला ले लिया, लेकिन हाथ रमा की कमर पर हल्का रगड़ा। "भाभी... कमर कितनी नरम... पसीना चमक रहा।" रमा सिहर उठी, लेकिन हँसी, "भाई... तू तो हाथ फिसला रहा। शरम आ रही।" लेकिन अंदर सोच रही, 'उफ्फ... इनके हाथ... मजबूत लग रहे, चूचियाँ दबा दें तो... मजा आए।'

कोने में पहुँचते ही दोनों की शरीफी उतर गई। बिंदा ने रमा को दीवार से सटा लिया, हाथ चूचियों पर—साड़ी के ऊपर से जोर से दबाया, मसलने लगा। "भाभी... शरीफ बनकर क्या कर रही? तेरी चूचियाँ तो बाहर आने को बेताब, मोटी-मोटी, दबा रहा हूँ, कितनी भरी हुईं, दूध निकल रहा। बोल साली... 'भाई... दबा जोर से, मिंदा पीछे से आया, हाथ कूल्हों पर—साड़ी के ऊपर से गांड मसलने लगा, जोर से दबाया। "भाभी... तेरी गांड... कितनी गोल, रसीली, मसल रहा हूँ, जैसे आटा गूंथ रहा, साड़ी चिपक गई पसीने से। उफ्फ... भाई... ये रमा भाभी तो रंडी लग रही, चूचियाँ मसलते ही सिसक रही।" रमा सिहर उठी, चूचियाँ दबते हुए सिसकी निकली, "आह... भाई... क्या कर रहे हो? बाजार में... कोई देख लेगा। छोड़ो... शरम आ रही।" लेकिन अंदर मजा आ रहा, चूत गीली हो गई, कमर हल्की हिली। "अरे भाभी... शरम क्या? तू तो जानबूझकर चूचियाँ झलका रही थी। ले... जोर से दबा रहा, तेरी चूचियाँ... कितनी मोटी, निप्पल्स साड़ी के ऊपर से कड़े हो गए। बोल... 'भाई... दबा जोर से, मम्मी की चूचियाँ... मसल ले।'" बिंदा ने जोर से दबाया, मसला—साड़ी के ऊपर से ही, लेकिन दबाव इतना कि चूचियाँ लहराने लगीं।

रमा की सांसें तेज, लेकिन हँसी हल्की शर्म। "भाई... तू तो जानवर है, दबा रहा है जैसे आटा गूंथ रहा। लेकिन... उफ्फ... अच्छा लग रहा। मिंदा... तेरी उँगलियाँ... मेरी गांड पर घूम रही, जैसे कोई मालिश कर रहा, लेकिन जोर से दबा... आह... दर्द हो रहा, लेकिन मजा। लेकिन बाजार में... कोई आ गया तो? तू तो शरीफ बन रहा था, अब रंडी बना दिया।" मिंदा हँसा, "भाभी... शरीफ तो हमेशा रहेंगे, लेकिन तेरी गांड... इतनी गोल, मसलते ही हाथ भर आ गई। ले... जोर से दबा रहा, साड़ी के ऊपर से ही, लेकिन महसूस हो रहा न, कितनी नरम। बोल साली... 'भाई... मसल जोर से, मम्मी की गांड... तेरी।'" रमा की कमर हिली, पल्लू सरक गया, चूचियाँ आधी नंगी—बिंदा ने मौका देखा, साड़ी के ऊपर से ही निप्पल्स को मरोड़ा। "भाभी... तेरी निप्पल्स... कड़े हो गए, चूचियाँ दबाते हुए तू सिसक रही, मजा आ रहा न? हम दो भाई... तेरी चूचियाँ मसल रहे, गांड दबा रहे, लेकिन तू तो एंजॉय कर रही। हँस रही है... रंडी जैसे।" रमा ने हँसकर कहा, हाँ, मजा आ रहा। लेकिन छोड़ो... झोला ले लूँ।" लेकिन अंदर सोच रही, 'उफ्फ... इनके हाथ... मजबूत, थप्पड़ मार दें तो... मजा।'

बिंदा ने चूचियाँ जोर से दबाईं, मसला—हाथ भर आ गईं, निप्पल्स मरोड़े। "भाभी... नंबर दे दे... शाम को घर आ जाएँ, तब असली मजा लेंगे। तेरी चूचियाँ... नंगी मसलेंगे, गांड थप्पड़ मारेंगे। बोल... 'हाँ भाई... आ जाओ, मम्मी की चूचियाँ... तेरी।'" मिंदा ने गांड पर थप्पड़ मारा—चटाक! साड़ी के ऊपर से ही, लेकिन जोरदार। "ले भाभी... एक थप्पड़, तेरी गांड फड़क गई। शाम को और मारेंगे। नंबर दे... वरना यहीं फाड़ दूँगा साड़ी।" रमा सिहर उठी, थप्पड़ की जलन गांड से चूत तक गई—गीलापन बढ़ा। "आह... भाई... दर्द... लेकिन... हाँ, नंबर ले लो। शाम को आ जाना, लेकिन शरमाना मत।" नंबर दिया, लेकिन हँसकर, "तुम दोनों तो शरारती हो, लेकिन मजेदार। जा... शाम को मिलेंगे।" दोनों हँसे, "भाभी... शाम को तेरी चूचियाँ नंगी देखेंगे, तैयार रहना।" रमा ने झोला लिया, बाजार से लौटी—मन में उत्तेजना, चूत गीली, हँसी आ रही, 'ये दोनों... शरारती, लेकिन मजा आएगा।'

घर पहुँची, रसोई में सब्जी रखी—मन में बाजार का दृश्य घूम रहा, चूचियाँ दबते हुए वो स्पर्श, गांड पर थप्पड़ की जलन। तभी दरवाजा खुला—रवि आ गया, खेलने से लौटा, चेहरा पसीने से तर। "मम्मी... बाजार गई थी? क्या लाई?" रवि ने झोला देखा, लेकिन नजरें रमा की साड़ी पर ठहरीं—पल्लू हल्का सा सरका हुआ, चूचियाँ उभरीं। रमा मुस्कुराई, रवि को पास खींच लिया, कान में फुसफुसाया, "बेटा... बाजार में मजा आया। दो आवाड़े लड़के... बिंदा-मिंदा... पीछे लगे। पहले शरीफ बने, 'भाभी सब्जी अच्छी मिली?' लेकिन कोने में... पकड़ लिया। एक ने चूचियाँ दबाईं साड़ी के ऊपर से, दूसरा पीछे से गांड मसला, 'फिर थप्पड़ मारा गांड पर—भाभी... शाम को घर आ जाएँ, नंगी मसलेंगे।' मैंने नंबर दे दिया, शाम को आने का वादा कर लिया। सोच बेटा... तेरी मम्मी रंडी बन गई बाजार में, लेकिन मजा... उफ्फ, चूत गीली हो गई।"

रवि की आँखें फैल गईं, चेहरा लाल—लंड जोर से सख्त, पैंट में दर्द। "मम्मी... साली... तू बाजार में? दो आवाड़ों ने चूचियाँ दबाईं? गांड मसला? थप्पड़ मारा? उफ्फ... तेरी चूचियाँ... वो बदमाशों के हाथों में... सोचकर लंड खड़ा हो गया। शाम को आएँगे? साला... तेरी चूत... उनको दोगी? ले रंडी मम्मी... किचन में आ, तेरी चूचियाँ मसलूँगा, गांड पर थप्पड़ मारूँगा। बोल साली... 'हाँ बेटा... मसल ले, तेरी मम्मी रंडी है, बाजार में चूचियाँ दबवाईं, अब तेरी बारी।'" रवि ने रमा को किचन में घसीटा, दीवार से सटा दिया। हाथ चूचियों पर—जोर से दबाया, मसलने लगा, ब्लाउज के ऊपर से ही, लेकिन जोरदार। "आह रवि... बेटा... जोर से... मम्मी की चूचियाँ... तेरे हाथों में लहरा रही। बाजार में वो दोनों... मसल रहे थे, लेकिन तेरी उँगलियाँ... मजबूत। बोल... 'मम्मी रंडी... तेरी चूचियाँ दूध वाली कुतिया साली, बाजार में बदमाशों को दबवाया, अब ले थप्पड़!'" रवि ने निप्पल्स मरोड़े, जोर से—रमा सिसकी भरी।

"आह... हाँ बेटा... मरोड़... दर्द हो रहा, लेकिन चूत गीली। थप्पड़ मार... मम्मी की चूचियाँ... तेरी।" रवि ने चूचियों पर थप्पड़ मारा—चटाक! साड़ी के ऊपर से, लेकिन जोरदार, चूचियाँ लहराईं। "ले रंडी मम्मी... तेरी चूचियाँ बाजार में दबवाने की सजा, ले थप्पड़ कुतिया... साली हरामी रंडी माँ, तेरी चूचियाँ बदमाशों को चूसने देगी? ले... चटाक! रमा की चूचियाँ लाल हो गईं, दर्द की लहर बॉडी में दौड़ी, लेकिन हँसी हल्की—'बेटा... तू तो जानवर है, थप्पड़ मार रहा जैसे आटा पीट रहा, लेकिन मजा... आह... चूत टपक रही। बोल... 'मम्मी कुतिया, तेरी चूचियाँ लाल हो गईं, लेकिन बाजार की याद... गीली कर रही।'" रवि ने फिर थप्पड़—तीसरा, चौथा—चटाक-चटाक! "हाँ कुतिया मम्मी... तेरी चूचियाँ लाल, लेकिन रंडी जैसी चमक रही। साली... बाजार में गांड मसला गया? ले... अब तेरी गांड पर थप्पड़। मुड़ रंडी!" रवि ने रमा को घुमाया, साड़ी ऊपर—गांड नंगी, जोर से थप्पड़ मारा—चटाक! "ले हरामी... तेरी गांड... गोल रंडी गांड, बदमाशों ने मसला, अब ले थप्पड़ कुतिया माँ... साली बुरचोदी रंडी, तेरी गांड फड़क रही, चूत का रस बह रहा थप्पड़ों से। बोल मम्मी... 'हाँ बेटा... मार जोर से, मम्मी रंडी तेरी, बाजार में गांड मसला गया, अब तेरी सजा।'"

रमा की कमर काँपी, थप्पड़ की जलन गांड से चूत तक—हँसी छूट गई, "रवि... तू तो कॉमेडियन है, 'बुरचोदी रंडी' शाम को वो दोनों आएँगे, तो तू भी देख लेना, तेरी मम्मी रंडी बनती कैसे है।" रवि ने फिर थप्पड़—पाँचवाँ, छठा—चटाक-चटाक! "हाँ साली... शाम को देखूँगा, तेरी चूत... उन बदमाशों के लंड में, लेकिन पहले ले... रंडी माँ... तेरी गांड लाल हो गई, लेकिन रस टपक रहा। बोल... 'बेटा... मार जोर से, मम्मी की चूत गीली हो गई थप्पड़ों से, शाम को बदमाशों के साथ तू भी खेल लेना।'" रमा हँसी, लेकिन सिसकी भरी—'हाँ बेटा... खेल लेना, मम्मी रंडी तेरी है। लेकिन अब... चोद ले... किचन में ही।' रवि ने पैंट नीचे की, लंड बाहर—गांड पर रगड़ा, फिर चूत में धकेला। "ले रंडी मम्मी... तेरी चूत... फाड़ रहा, बाजार की सजा।" धक्के जोरदार, किचन में आवाजें गूँजीं। रमा चीखी, "आह रवि... चोद... तेरी मम्मी रंडी है... ले धक्के!" हँसी और सिसक किचन गरम हो गया।



खाना खत्म हो चुका था। थाली में बचे हुए चावल को रमा ने साफ किया, लेकिन रवि अभी भी टेबल पर बैठा था, आँखें माँ पर ठहरीं। बाहर हवा ठंडी हो रही थी, चाँदनी सड़क पर बिखर रही। रवि ने हल्के से हाथ बढ़ाया, रमा की साड़ी के किनारे को छुआ—जैसे अनजाने में। "मम्मी... खाना अच्छा था, लेकिन मन नहीं भर रहा। चल ना, बाहर घूम आएँ? रात का फेरा लगाएँ, हवा खाएँगे। कल से तो फिर स्कूल-कॉलेज का चक्कर शुरू हो जाएगा।"

रमा ने थाली रखी, मुस्कुराई—हाथ माथे से पसीना पोंछते हुए। "अरे रवि... इतनी रात को? ठीक है, चल... हवा तो अच्छी लगेगी। लेकिन ज्यादा दूर मत जाना, कल सुबह उठना है। तू तो खेलने से थका लग रहा, पसीना भी आ गया।" वो उठी, साड़ी ठीक की, लेकिन जानबूझकर पल्लू हल्का ढीला छोड़ दिया—हवा में लहराने के लिए। रवि ने दरवाजा खोला, बाहर निकले। सड़क सुनसान थी, सिर्फ दूर कहीं कुत्ते की हल्की आवाज। रवि ने माँ का हाथ पकड़ा, धीरे से सड़क पर चलने लगे। हवा ठंडी लग रही थी, लेकिन रवि की उँगलियाँ माँ के हाथ पर हल्की रगड़ रही थीं।

मोड़ पर पहुँचे, सड़क और सुनसान—पेड़ की छाया। रवि ने माँ को पेड़ के पीछे खींच लिया, हाथ चूचियों पर—साड़ी के ऊपर से दबाया, हल्का मसलने लगा। "मम्मी... हाँ... कितनी नरम... दबा रहा हूँ, बस हल्का। पसीना महसूस हो रहा, गर्म। तू भी हवा ले रही है न?" रमा सिहरी, लेकिन हँसी, हाथ रवि के कंधे पर रखा। "आह रवि... हल्का? तू तो दबा रहा है जैसे कुछ... लेकिन हाँ, अच्छा लग रहा। बाजार में भी एक-दो ने नजरें ठहराईं, लेकिन तू... अपना बेटा। बोल... तुझे कैसा लग रहा? मम्मी की चूचियाँ... हवा में दबाना।" रवि ने मसलना थोड़ा तेज किया, निप्पल्स को हल्का मरोड़ा—साड़ी के ऊपर से ही। "मम्मी... उफ्फ... कितनी भरी हुईं... निप्पल्स कड़े हो गए। हवा का बहाना अच्छा है, लेकिन मन तो जानता है। हँस... तू कहती है 'हल्का सा', लेकिन तू भी सिहर रही है।"

रमा ने हँसकर धक्का दिया हल्का, लेकिन पास रही। "रवि... तू तो जान गया। हाँ... सिहरन हो रही। लेकिन सड़क पर... चल, अब घर चलें? या थोड़ा और... हवा लें?" रवि ने हँसकर ब्लाउज के हुक पर हाथ रखा—अंधेरे का फायदा, एक हुक खोला। "मम्मी... थोड़ा और हवा... ले ब्लाउज हल्का ढीला। कोई नहीं देखेगा, अंधेरा है। चूचियाँ... नंगी महसूस होंगी हवा में।" रमा की सांस तेज, लेकिन हँसी। "अरे बेटा... तू... हवा का बहाना? ठीक है... खोल ले, लेकिन जल्दी से ठीक करना।" रवि ने दो हुक खोले, ब्लाउज खुला—चूचियाँ आधी नंगी, चाँदनी में चमकती। हाथों से जोर से पकड़ा, मसलने लगा—नंगी त्वचा पर। "मम्मी... उफ्फ... नंगी चूचियाँ... कितनी सफेद, गोल। मसल रहा हूँ... लाल कर दूँगा। बोल... 'हाँ बेटा... मसल... मम्मी की चूचियाँ... तेरी, लेकिन हँस... सड़क पर ब्लाउज खोल दिया तूने,

रमा हँसी, लेकिन सिसकी भरी—चूचियाँ लाल होने लगीं, निप्पल्स सूजे। "आह रवि... हाँ मसल... निप्पल्स मरोड़... दर्द हो रहा, लेकिन... उफ्फ, अच्छा लग रहा। तू बाबा हो गया... हवा में चूचियाँ मसला रहा। लेकिन बोल... तेरे मन में क्या चल रहा? मम्मी की चूचियाँ नंगी देखकर... लंड सख्त हो गया न?" रवि ने जोर से मसला, निप्पल्स मरोड़े—हाथ भर आ गईं। "हाँ मम्मी... सख्त हो गया। तेरी चूचियाँ... लाल हो गईं, लेकिन चमक रही। सड़क पर रंडी माँ की चूचियाँ मसल रहा... बोल... 'मम्मी रंडी... तेरी चूचियाँ कुतिया चूचियाँ, मसल रहा हूँ, निप्पल्स कट जाएँगे, लेकिन रस टपक रहा तेरी चूत से।'" रमा की कमर काँपी, "आह रवि... गंदा बोल रहा तू... लेकिन हाँ, चूत गीली हो गई। कुतिया माँ हूँ तेरी... मसल जोर से। लेकिन अब... ठीक कर ब्लाउज, घर चलें? हँस... वरना सड़क पर ही चोद देगा तू।" रवि ने ब्लाउज ठीक किया, लेकिन हँसकर कहा, "हाँ मम्मी... चल, लेकिन कल फिर फेरा लगाएँगे।" हँसी-हँसी में घर लौटे..
 

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रात गहरा चुकी थी। घर में सन्नाटा पसर गया था—सिर्फ दीवारों के दूसरी तरफ से हल्की-हल्की सांसों की आवाजें आ रही थीं। रमा बिस्तर पर लेटी हुई थी, नींद न आने की वजह से आँखें बंद करके छत को देख रही। कल बाजार की यादें अभी भी मन में घूम रही थीं—दोनों लड़कों के हाथों का स्पर्श, वो थप्पड़ की जलन... 'ये उम्र में क्या हो गया, लेकिन मजा तो आया।' लेकिन हवा में कुछ अजीब सा था—ऊपर छत की ओर हल्की आहट रमा ने कान लगाया, लेकिन सोचा, 'शायद हवा... या उमेश फिर जाग गया।' वो धीरे से उठी, कंबल ओढ़ा, और दरवाजे की ओर बढ़ी। सीढ़ियों की ओर झाँका—हल्की चाँदनी में दो साये दिखे। उमेश और खुशबू... छत पर। रमा का दिल धड़का, लेकिन जिज्ञासा ने कदम बढ़ा दिए। वो चुपके से ऊपर चली गई, सीढ़ियों के आखिरी कदम पर रुक गई—छत का कोना देखा, जहाँ दोनों बैठे थे। पर्दे जैसी छाया में छिपकर देखने लगी।

उमेश छत के किनारे पर बैठा था, पीठ दीवार से सटी, और खुशबू उसके बगल में—नाइटी हल्की ऊपर सरकी हुई, पैर लटकाए। "खुशबू... बेटा... आज दिन भर सोचता रहा, तू मेरी कितनी कीमती है। कल सर के साथ... वो सब... मजा तो आया, तू पास आ... पापा को गले लगा ले।" उमेश की आवाज नरम थी, जैसे कोई पुरानी बात याद कर रहा हो। खुशबू मुस्कुराई, करीब सरकी—उमेश के कंधे पर सिर टिका दिया। "पापा... कल सर ने... जोर से दबाया, लेकिन आपकी नजरें... वो तो मेरी ताकत बनीं।वो थोड़ा और करीब आई, उमेश का हाथ अपनी कमर पर रख दिया—हल्का सहलाने लगा।

उमेश ने सिर झुकाया, खुशबू के गाल पर हल्का चुम्बन किया—धीरे से, लेकिन गर्म। "हाँ बेटा... गले लगा। तेरी कमर... कितनी नरम लग रही। हवा में... ठंड लग रही न? पापा को छू ले... गरमी मिलेगी।" उसका हाथ कमर से ऊपर सरका, नाइटी के ऊपर से चूचियों के पास पहुँचा—हल्का छुआ। खुशबू की सांस थोड़ी तेज हुई, लेकिन वो हँसी हल्की। "पापा... हाँ ठंड लग रही... आपकी सांसें गर्म लग रही गाल पर। छू लो... लेकिन धीरे...उमेश ने हल्का दबाया—चूचियाँ नाइटी के ऊपर से लहराईं। "खुशबू... तेरी चूचियाँ... कितनी भरी हुई... दबा रहा हूँ... हल्का। पसंद है? बोल बेटा... कैसा लग रहा?" खुशबू ने सिर उमेश के सीने पर टिका, हल्की सिसकी। "आह पापा... अच्छा लग रहा... आपका हाथ... गर्म। लेकिन कल सर का... वो दर्द... आज भी याद आ रहा। आप... और दबाओ... हल्का।"

रमा सीढ़ियों पर खड़ी थी, सांसें थम गईं—'ये... क्या हो रहा? उमेश... खुशबू को... छत पर?' शॉक की लहर दौड़ी, लेकिन पैर न हिले। वो चुपके से देखती रही, हृदय धड़क रहा।

उमेश का हाथ नाइटी में घुसा—चूचियाँ नंगी छुईं, हल्का मसला। "बेटा... तेरी चूचियाँ... नंगी... कितनी गर्म। निप्पल्स... तने हुए। मरोड़ लूँ? बोल... 'हाँ पापा... मरोड़... लेकिन धीरे... दर्द हो रहा, '" खुशबू ने कमर हिलाई, "हाँ... मरोड़... पापा... आपकी उँगलियाँ... निप्पल पर... उफ्फ... सिहरन हो रही। लेकिन कल सर ने... काटा था... आप तो... प्यार से।" उमेश ने मरोड़ा—हल्का, "खुशबू... तेरी सिसकी... पापा को बेचैन कर रही। आ... पास आ... होंठ चूम लूँ?" चेहरा करीब, होंठ मिले—धीरे से, लेकिन गहरा। जीभ बाहर, खुशबू की जीभ से लिपटी। "उम्म... बेटा... तेरी जीभ... लार... मीठी। थूक दे... पापा के मुंह में... ।" खुशबू ने थूक दिया—गर्म, चिपचिपा—उमेश चूसा। "पापा... आपकी जीभ... मेरे मुंह में... ले... मेरा थूक... पी लो। लेकिन... हँस... छत पर किस... कोई सुन लेगा।" किस लंबा—लार टपकने लगी।

रमा का चेहरा गर्म, शॉक सिहरन—'ये... मेरी बेटी... उमेश के साथ? कितना गहरा... दर्द हो रहा, लेकिन... उफ्फ... क्यों गरम लग रहा?' वो चुपके नीचे उतरी, बिस्तर पर लेट गई—नींद न आई। रात भर सोचती रही—उमेश का हाथ चूचियों पर, वो किस...... 'गंदा... लेकिन क्यों मन में हलचल? चूत... गीली हो रही। कल... पूछूँगी।'


सुबह की धूप आंगन में फैल चुकी थी। उमेश स्कूल के लिए तैयार, साइकिल उठा रहा। "रमा... आज जल्दी लौटूँगा। खुशबू... तू तैयार हो?" खुशबू नीचे आई, सलवार-कमीज में, किताबें लटकाए। "हाँ पापा... चलो।" रवि भी खेलने निकला। । रमा ने खुशबू को रोक लिया—दरवाजे पर। "खुशबू... बेटी... आज स्कूल मत जा। मम्मी को बात करनी है। कल रात... छत पर... मैं देख रही थी।" खुशबू चौंकी, चेहरा लाल—'मम्मी... देख लिया?' लेकिन सिर झुकाया। "मम्मी... हाँ... मैं... कल रात पापा ने बुलाया था। चल... अंदर आओ, बताती हूँ।"

दोनों अंदर बैठीं—चाय बनाई रमा ने, हल्का घूँट लिया। "खुशबू... बेटी... कल रात... मैंने देखा। पापा... तुझे छत पर... वो स्पर्श... किस। तू... बता ना... क्या चल रहा है? मम्मी को सब पता चले तो... शायद मदद कर सकूँ।" आवाज नरम, खुशबू ने चाय का कप पकड़ा, नजरें नीची—शर्माते हुए। "मम्मी... मैं... कल रात पापा उदास लग रहे थे। बुलाया... बात करने को। मम्मी... शर्म आ रही... लेकिन पापा का प्यार... गहरा है।" रमा सुनती रही, चेहरा गर्म—गुस्सा आया, लेकिन चूत में सिहरन। "बेटी... पापा के साथ? उफ्फ... तू... शर्माती है, लेकिन बताती जा। और... बाकी सब?"

खुशबू ने सिर झुकाया, लेकिन धीरे-धीरे बताया—शर्माते हुए। "

खुशबू ने हँसी हल्की, शर्माते हुए। "मम्मी... सर के साथ... कल घर आए। पापा ने देखा... सर ने चूचियाँ मसलीं... चूत चोदी। पापा... लंड सहलाते देखते रहे। फिर... पापा ने सर का लंड चाटा... चूत से रस चूसा। मैं... चौंकी, लेकिन... गरम हो गई। मम्मी... तू... गुस्सा हो गई?" रमा का चेहरा गर्म, "बेटी... गुस्सा? हाँ... लेकिन तू... इतना खुलकर बताती... मम्मी को... गरमाहट हो रही। आ... पास आ बेटी... मम्मी गले लगा ले।" रमा ने खुशबू को खींच लिया, गले लगा—लेकिन चेहरा करीब। "खुशबू... तू... मेरी बेटी... इतनी हसीन।" होंठ मिले—हल्के से, लेकिन गहरा। जीभ बाहर, खुशबू की जीभ से लिपटी। "मम्मी... आह... तू... किस?" रमा ने चूसा, "बेटी... तू... इतना बताया... रमा का हाथ चूचियों पर—हल्का दबाया। "खुशबू... तेरी चूचियाँ... कितनी नरम... मम्मी छू ले।" हँसी हल्की, लेकिन गरमी फैल गई।




तभी दरवाजे पर हल्की खटखटाहट हुई। रमा उठी, दरवाजा खोला—वहाँ दूधवाला खड़ा था, डिब्बा हाथ में लटकाए, कमीज गंदी पसीने से चिपकी, दाढ़ी पर दूध का दाग, लेकिन आँखों में वो चमक। रमा को देखा, फिर अंदर झाँका—खुशबू भी वहाँ, रसोई के दरवाजे पर खड़ी। दूधवाले का चेहरा चमक उठा—'उफ्फ... माँ-बेटी दोनों... रमा भाभी की चूचियाँ तो कल सोचा था, लेकिन खुशबू... वो भी। आज तो... मजा आएगा।' लेकिन चेहरा शांत रखा। "रमा भाभी... दूध लाया... आज ताजा है, ज्यादा मलाई। खुशबू... तू भी यहाँ? कल तो तूने तारीफ की थी... 'अंकल अच्छा दूध लाता है।'" रमा ने मुस्कुराकर डिब्बा पकड़ा, लेकिन नजरें दूधवाले की कमीज पर—गंदी बदबू, पसीने की। "अरे अंकल... आ गए? हाँ, कल खुशबू ने बताया। अंदर आ... पानी पिला दूँ। खुशबू... तू भी आ, दूध रख दे।" खुशबू मुस्कुराई, लेकिन कल की याद—वो डबल मीनिंग वाली बातें। "हाँ मम्मी... अंकल... अंदर आओ ना। थक गए होंगे... गर्मी में।"

दूधवाला अंदर आया—हवा में उसकी बदबू घुली, लेकिन दोनों को महसूस हुई—। वो आंगन में खड़ा रहा, लेकिन नजरें माँ-बेटी पर घूमीं। "भाभी... खुशबू... तू दोनों... आज घर पर? अच्छा लगा... मैं तो सोच रहा था, अकेली होंगी। दूध रख दो... लेकिन थोड़ा बैठ लूँ? पसीना बह रहा... हवा अच्छी लगेगी।" रमा ने हँसकर कहा, "हाँ अंकल... बैठो। खुशबू... कुर्सी ले आ। तू थक गया होगा... गायों का काम।" खुशबू ने कुर्सी लाई, लेकिन दूधवाले के पास खड़ी रही—हल्की मुस्कुराहट। "अंकल... कल तो बात की थी... आज भी वही दूध? मलाई ज्यादा है?" दूधवाले ने हँसकर सिर हिलाया, लेकिन अंदर हवस जागी—दोनों के चेहरे, चूचियाँ। "हाँ बिटिया... मलाई ज्यादा... चूसने लायक। भाभी... तू भी चख ले... ताजा है।" रमा हँसी हल्की—'ये... कल खुशबू को ताक रहा था, लेकिन आज... दोनों। मजा आएगा।' "

दूधवाला अंदर घुसा ही था कि अचानक हाथ बढ़ाया—खुशबू की स्कर्ट के नीचे से पकड़ा, ऊपर सरका दिया, गांड पर जोर से थप्पड़ मारा—चटाक! "खुशबू... तेरी गांड... कितनी गोल... ले थप्पड़ रंडी!" खुशबू सिहर उठी, चीख हल्की—लेकिन आँखों में चमक। "आह... अंकल... क्या...?" लेकिन रमा भी सिहर गई—थप्पड़ की आवाज सुनकर, मन में हल्की गुदगुदी। "अंकल... तू... ये क्या?" दूधवाले ने हँसकर रमा की आँखों में देखा—चमकती। "भाभी... खुशबू तो शरारती है... लेकिन तू... तेरी आँखें... बोल रही हैं।" फिर खुशबू की टी-शर्ट पकड़ी—जोर से फाड़ दी, चूचियाँ बाहर उछलीं। हाथों से जोर से पकड़ा—मसलने लगा, निप्पल्स मरोड़े। "उफ्फ... खुशबू... तेरी चूचियाँ... कितनी मोटी... दबा रहा... गर्म लग रही। भाभी... देख... तेरी बेटी की चूचियाँ... मसल रहा हूँ।" खुशबू सिसकी भरी, लेकिन मुस्कुराई। "आह अंकल... दर्द... लेकिन... गर्म। मम्मी... देख... अंकल... मसल रहा।" रमा गर्म हो गई

दूधवाले ने मसलना जारी रखा—जोर से, चूचियाँ लाल। "खुशबू... तेरी चूचियाँ... खुशबू सिहरती रही, लेकिन हाथ नीचे—दूधवाले की धोती पर। "अंकल... तेरा... लंड... सख्त हो गया..... गर्म लग रही।" धोती नीचे की —लंड बाहर, बदबूदार, काला, नसें फूलीं हुई खुशबू झुकी, मुंह में लिया—धीरे से चूसी, जीभ घुमाई। "मम्म... अंकल... तेरा लंड... बदबूदार है " दूधवाला सिसका, "आह... खुशबू... तेरी जीभ... मज़ा दे रही छिनाल गला तक ले... रंडी।" रमा देखती रही—अपनी चुत को सहलाते हुए । रमा झुकी, दूसरी तरफ से लंड पकड़ा—चूसी पूरा गले तक लेकर.. पूरा थूक उसकी चूचियों पर गिरने लगा । "मम्मी... तू भी...?" खुशबू हँसी हल्की। दूधवाला पागल हो गया —'उफ्फ... माँ-बेटी... दोनों चूस रही... लंड... आह!' " कुतिया है मेरी तुम दोनों साली रंडियो..

दोनों चूसती रही —दूधवाले ने दोनों को खींचा—रमा की साड़ी फाड़ी, खुसबू की टी-शर्ट पहले ही फटी थी । नंगी—कमर पकड़ी, कुतिया बनाया। "दोनों रंडियाँ... कुतिया बन... ले थप्पड़!" गांड पर थप्पड़ लगाया —चटाक!खुशबू की गांड पर, फिर रमा की—चटाक! "आह... अंकल... दर्द..हो रहा ." दोनों सिहरीं। "भाभी... तेरी गांड... गोल...है ले थप्पड़... रंडी माँ। " थप्पड़ों की बौछार कर दी दोनों की गांड लाल हो गयी "आह... अंकल... जोर से..." दोनों सिसकीं। दूधवाला हँसा, "दोनों मेरी कुतिया हो ... अब ले काला लंड। भाभी... तेरी चूत... बालों वाली रंडी ... ले धक्का!" रमा को कुतिया बनाया, चूत में धकेला—जोरदार। "आह... भैया .. तेरा लंड... बहुत ... गर्म..है . चोद... रंडी हूँ तेरी।" धक्के तेज"साली रंडी .. तेरी चूत कस रही खुशबू... देख... तेरी माँ चुद रही।" खुशबु का कामुक होकर दूध वाले के मुँह मे अपनी जबान डाल दी ।" दोनों चरम पर दूधवाले ने पूरा माल रामा की चुत मे डाल दिया . भर दिया रंडियों को। कल आऊँगा... तैयार रहना।" हँसते हुए चला गया।

दोनों हाँफ रही—नंगी, चूत से रस टपकता। रमा ने खुशबू को देखा—कामुक नजरों से "बेटी... तू... कितनी गरम है ... अंकल के साथ ... मजा आया?" खुशबू मुस्कुराई, नजरें कामुक हो गयी । "मम्मी... हाँ... दोनों मुस्कुराईं—चेहरा करीब हुआ दोनों को होंठ आपस मे मिल गए जैसे बरसो से प्यासे हो...
 

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शाम की धूप अब मद्धम पड़ रही थी, गाँव की सड़क पर स्कूल से लौटते बच्चे हँसी-मजाक करते दिख रहे थे । रवि का बैग कंधे पर लटका था, चेहरा पसीने से चिपचिपा—स्कूल में दोस्तों के साथ खेला था, लेकिन मन कहीं और भटक रहा था । "मम्मी ने कहा था शाम को हवा लेंगे, लेकिन खुशबू दीदी... कल रात मम्मी के साथ कुछ तो था... सोच रहा, दीदी का कमरा देख लूँ।" मन में हल्की शरारत, लेकिन वो गर्माहट जो भाई-बहन के बीच कभी-कभी जाग जाती। घर पहुँचा, दरवाजा धीरे से खोला—माँ रसोई में थी, सब्जी काट रही थी । "मम्मी... आ गया। दीदी...?" रमा ने मुस्कुराकर सिर हिलाया, "खुशबू तो ऊपर कमरे में आराम कर रही... थकी लग रही थी। जा... चाय बना लूँ?" रवि ने बैग नीचे रखा, "हाँ मम्मी... बाद में। पहले दीदी को देख लूँ।" सीढ़ियाँ चढ़ते हुए मन में हल्की उत्तेजना थी —'दीदी की स्कर्ट... कभी-कभी ऊपर सरक जाती, देख लूँ तो मजा आए।'

खुशबू का कमरा दरवाजा हल्का खुला था। रवि ने चुपके से झाँका—खुशबू बिस्तर पर लेटी थी, स्कर्ट ऊपर सरकी हुई, पैर फैले, नींद में हल्की सिसकारियाँ। स्कर्ट इतना ऊपर—चूत की झलक, बालों वाली, हल्की गीली। रवि का दिल धड़का, लंड हल्का सख्त हो गया ये देखकर । "उफ्फ... दीदी... सो रही... स्कर्ट ऊपर... चूत दिख रही। गंदा सोच रहा हूं ... लेकिन... चाट लूँ तो? नींद में... पता न चले।" मन में हल्की झिझक थी बिस्तर के पास बैठा, धीरे से हाथ बढ़ाया—स्कर्ट ऊपर सरका दी, चूत पर नजरें ठहरीं। "दीदी... कितनी गर्म लग रही... बालों वाली... रस चमक रहा कुतिया की चूत का " जीभ निकाली, धीरे से चूत पर रगड़ी—होंठ चूसे, जीभ अंदर किया स्वाद मीठा, गर्म लगा । "उम्म... दीदी... तेरी चूत... " खुशबू नींद में सिहरी, लेकिन जागी नहीं—सिसकी हल्की। रवि ने चाटा बहुत देर तक सारा रस पी लिया, चूत लाल हो गया । "दीदी... तेरी चूत... साली छिनाल.. पापा से चुद गयी रंडी...

खुशबू की नींद टूटी—कामुक सिहरन से। आँखें खुलीं, नीचे देखा—रवि का मुंह चूत पर। "रवि... तू... क्या...कर रहा है ?" लेकिन गुस्सा न आया—उल्टा प्यार की लहर। "भाई... तू... चाट रहा नींद में... लेकिन... अच्छा लग रहा मुझे आ... पास आ।" रवि उठा, चेहरा गर्म—'पकड़ा गया।' "दीदी... मैं... सोच रहा था... तू थकी लग रही... मालिश कर दूँ... लेकिन... उफ्फ... तू जग गई।" खुशबू हँसी हल्की, हाथ बढ़ाया—रवि को पास खींच लिया। "भाई... मालिश? हँ तू तो चूत चाट रहा, लाल कर दिय तूने रवि को अपनी तरफ खिंचा जीभ बाहर, रवि की जीभ से लिपटी। "उम्म... भाई... तेरी जीभ... गर्म... थूक दे... मेरे मुंह में।" रवि सिहरा, थूक दिया—खुशबू चूसी। "दीदी... तेरी जीभ... कितनी नरम... ले... मेरा थूक... पी ले। लेकिन... तू... मुझसे प्यार करती है न? ये... गंदा... लगा लेकिन मजा आया " खुशबू ने चूसा, लंबा—लार टपकने लगी जिसे रवि कुत्ते की तरह चाटने लगा " खुसबू ने उसका मुँह निचे किया और धीरे धीरे उसके मुँह मे अपना थूक डालने लगी

रवि उत्तेजित हो गया —हाथ खुशबू की कमर पर फेरने लगा "दीदी... तू... कितनी गरम है ... लेकिन अब... तुझे... चोदने का दिल कर रहा मेरी प्यारी कुतिया दीदी ?" खुशबू मुस्कुराई, "भाई... हाँ... लेकिन धीरे... प्यार से चोदो।" रवि ने खुशबु को घुमाया—कुत्तिया बना दिया, स्कर्ट ऊपर की "दीदी... तेरी गांड..कितनी . गोल... ले... मेरा लंड साली छिनाल " लंड बाहर—चूत पर रगड़ा, धकेला—जोरदार, लेकिन दर्द भरा। "आह... भाई... दर्द... धीरे... कर . हाँ ऐसे ही तेरी दीदी तेरी ग़ुलाम हो गयी " रवि ने धक्के मारे—जोर से, कमर पकड़कर। "दीदी... तेरी चूत... कस रही... गर्म हो रही ।" धक्के तेज—खुशबू चीखी हल्की, "आह भाई... दर्द हो रहा ... लेकिन... मजा... आ रहा भाई चोद... तेरी दीदी रंडी तेरी है ।" रवि का जोश भरा शॉट —हवस शांत करने को। "दीदी... तेरी चूत.... ले... जोर से!"—वीर्य फूटा, लेकिन बाहर—खुशबू के चेहरे पर गिरा—गर्म, गाढ़ा। नाक पर, होंठों पर, गालों पर। "आह दीदी... ले... मेरा रस... चेहरे पर।" खुशबू सिहरी, लेकिन मुस्कुराई—हाथ से मला। "भाई... तेरा रस... गर्म... चिपचिपा। चाट लूँ?" रवि हाँफा, "हाँ दीदी... चाट... ले मादरचोद "


रात अब पूरी तरह गहरा चुकी थी। गाँव में कहीं कोई हलचल न थी—सिर्फ हवा की हल्की सरसराहट और दूर कहीं उल्लू की आवाज। छत पर चाँदनी की पतली किरणें बिखर रही थीं, लेकिन कोने में दोनों साये—उमेश और खुशबू—हल्की हवा में लिपटे हुए। उमेश का हाथ खुशबू की कमर पर था, नाइटी धीरे-धीरे ऊपर सरक रही। "खुशबू... बेटा... हवा ठंडी लग रही... लेकिन तू. साली गर्म हो रही कुतिया...नाइटी... ऊपर कर.... तेरी बॉडी... चाँदनी में चमक रही।" उमेश की आवाज धीमी थी, लेकिन सांसें भारी। खुशबू मुस्कुराई, हाथ पापा के कंधे पर रखा—नाइटी ऊपर सरकाई, नंगी कमर दिखी। "पापा... हाँ... गर्मी तो लग रही... आपका हाथ... कमर पर घूम रहा... गुदगुदा रहा। देख लो... लेकिन धीरे... कोई सुन लेगा तो?" लेकिन वो पास सरकी, उमेश की लुंगी पर हाथ रखा—हल्का सहलाया।

उमेश ने सिर झुकाया, खुशबू के गाल पर हल्का चुम्बन किया—धीरे से, लेकिन होंठ रुके नहीं। "बेटा... सुन लेगा तो... क्या? तू मेरी है... पास आ। लुंगी... नीचे... पापा भी नंगा हो जाऊँ... हवा लगेगी।" वो लुंगी नीचे सरका दी—लंड आधा सख्त, हवा में तनता। खुशबू की नजरें ठहरीं, लेकिन हँसी हल्की। "पापा... आपका ... नंगा .. लंड... हवा में लहरा रहा।लंड को सूंघ कर खुशबू उत्तेजित हो गयी और जोर जोर से लॉलीपॉप की तरह चूसने लगी । उमेश ने हाथ चूचियों पर—हल्का दबाया। "खुशबू... तेरी चूचियाँ... नंगी... कितनी गोल... है रंडी । कैसा लग रहा... बेटा?" खुशबू सिहरी, हाथ पापा के लंड पर—हल्का सहलाया। "आह पापा... अच्छा... आपका हाथ... निप्पल पर... गुदगुदा रहा। लेकिन... गंदा बोलो ना... मेरी कुतिया प्यारी बेटी " उमेश ने हल्का जोर दिया—चूचियाँ लहराईं। "हाँ... तेरी चूचियाँ..कितनी . गर्म...है.... साली... गर्म हो गई।

खुशबू हँसी, लेकिन हाथ लंड पर तेज—ऊपर-नीचे। "

उमेश ने पूरा लंड उसके मुँह मे डाल दिया और ऐसे चोदने लगा जैसे वो मुँह नहीं चूत हो... ले साली कुतिया मादरचोद रंडी.. खुशबु गाली सुनकर जोर जोर से लंड चूसने लगी...

फिर उमेश उठा—लंड सहलाया। "खुशबू... पापा... झड़ने वाला... तेरे चेहरे पर... ले।" झटके—वीर्य फूटा—चेहरा गर्म, चिपचिपा। नाक पर, होंठों पर। उमेश ने मला—हाथ से। "बेटा... पापा का रस... तेरे चेहरे पर... चमक रहा। चाट ले... जीभ से।" खुशबू ने चाटा—नमकीन। "पापा... गर्म... चिपचिपा... लl।" दोनों हाँफे—नंगे, चाँदनी में। "बेटा... ये मेरा प्यार है... लेकिन ये गंदा खेल... मजा आया ।" र



खाना खत्म हो चुका था। रमा थाली साफ कर रही, लेकिन रवि टेबल पर बैठा, आँखें माँ पर। "मम्मी... खाना अच्छा था, लेकिन मन शांत नहीं। चल ना... बाहर घूम आएँ? रात का फेरा लगाएँ... हवा अच्छी लगेगी।" रमा ने थाली रखी, हँसी। "रवि... इतनी रात? ठीक है... लेकिन ज्यादा दूर न जाना। तू थका लग रहा... खेलने से?" रवि ने हाथ पकड़ा, बाहर निकले—सड़क सुनसान, चाँदनी बिखरी। "हाँ मम्मी... थका, लेकिन तेरे साथ घूमना अच्छा लगेगा। चल... मोड़ तक। तेरी साड़ी... हवा में अच्छी लग रही।" हाथ कमर पर—हल्का। रमा हँसी, "हाँ बेटा... हवा अच्छी है। तू हाथ रखे... लेकिन धीरे।"

मोड़ पर पहुँचे—अंधेरा। रवि ने माँ को पेड़ के पीछे खींचा। "मम्मी... यहाँ कोई नहीं... साड़ी... हल्की ऊपर... हवा लगेगी।" हाथ साड़ी पर—ऊपर सरका। रमा हँसी, "रवि... तू... हवा का बहाना? ठीक... लेकिन ब्लाउज?" रवि ने हुक खोला—ब्लाउज खुला और साड़ी गिर गई। चूचियाँ नंगी हो गयी । "मम्मी... तेरी चूचियाँ... नंगी... हवा में... कितनी गोल है ।" हाथों से पकड़ा—मसलने लगा, हल्का पिया—निप्पल चूसा। "उम्म... मम्मी... तेरी चूचियाँ... गर्म... पि रहा... दूध जैसा।" रमा सिहरी, "आह रवि... सड़क पर..है हमलोग . लेकिन... हाँ... पि ले। तेरी जीभ... निप्पल पर... अच्छा लग रहा।" रवि ने हल्का काटा।

रवि का हाथ नीचे—पेटीकोट में घुसा, चूत पर। "मम्मी... तेरी चूत... गीली... उँगली अंदर... रस निकाल रहा।" उँगली हिलाई—। "आह... रवि... दर्द हो रहा बेटा ... ।" रवि ने रस निकाला—हाथ पर, माँ के सामने चाटा। "मम्मी... तेरा रस... मीठा... पा रहा... देख... तेरी चूत का पानी... चाट रहा।" रमा गर्म हो गयी "रवि... तू... चाट रहा... मेरी चूत का... लेकिन... मजा लग रहा।" रवि ने गांड पर हाथ—थप्पड़—चटाक! "मम्मी... तेरी गांड... .. ले थप्पड़ साली छिनाल ।" रमा सिहरी, "आह... दर्द हो रहा बेटा .. लेकिन... हाँ।" रवि और ज्यादा उत्तेजित हो गया और थप्पड़ों की बौछार कर दी —गांड लाल हो गयी । "मम्मी... तेरी गांड... फड़क रही... ले... और!" रमा हँसी और सिसकी—

अगले दिन
स्कूल का कॉलेज हॉल खाली था—क्लास खत्म, लेकिन प्रोफेसर शर्मा का केबिन बंद। खुशबू अंदर घुसी—सलवार-कमीज टाइट, चूचियाँ ऊपर उभरीं।लाल लिपस्टिक लगाकर "सर... डाउट क्लियर करने आई... कल का चैप्टर।" शर्मा मुस्कुराया, लेकिन आँखें चमक गयी । "खुशबू... आ... बैठ। लेकिन डाउट क्लियर ... या कुछ और क्लियर करने आयी है कुतिया ?" खुशबू हँसी, पास सरकी। "सर... दोनों... लेकिन पहले... चैप्टर।" शर्मा ने किताब खोली, लेकिन हाथ कमर पर। "खुशबू... तेरी कमर... कितनी पतली... सलवार चिपक गई। लेकिन तेरी चूचियाँ... ऊपर उभरी. हुई है " हाथ ऊपर—सलवार के ऊपर से दबाया। "उफ्फ... सर... धीरे... " शर्मा ने जोर से दबाया—मसलने लगा। "खुशबू... तेरी चूचियाँ... कितनी भरी भरी है... निप्पल्स कड़े. हो गए .. गर्म हो गई?" खुशबू सिहरी, "आह सर... हाँ... गर्म... आपका हाथ... मजबूत है । .. 'खुशबू रंडी... '" शर्मा ने मसला जोर से—"हाँ रंडी... तेरी चूचियाँ... दूध वाली... कट जाएँगी। तू... कल घर में... तेरी माँ भी... उफ्फ... लेकिन तू... मेरी रंडी।" खुशबू हँसी हल्की—"सर... माँ के बारे में नहीं बोलो उफ्फ्फ और जोर से दबाओ

शर्मा ने सलवार नीचे सरका—चूत नंगी हो गयी । "खुशबू... तेरी चूत... गीली... ले... लंड।" लंड बाहर—चूत में धकेला, बेरहमी से। "आह... सर... दर्द... हो रहा प्लीज धीरे..." लेकिन शर्मा ने जोर से धक्के मारे—कमर पकड़कर ठोका। "रंडी... तेरी चूत... कस रही... फाड़ दूँगा... ले... जोर से!" खुशबू चीखी—"आह सर... चोद... बेरहमी से... तेरी रंडी हूँ... चूत फाड़... ... 'साली रंडी... तेरी चूत... माँ जैसी रंडी।'" शर्मा तेज—"हाँ साली... माँ जैसी... तेरी चूत... ... ले... झड़ रहा हूं ... भर दूँ!" रस भरा—खुशबू सिहरी। "आह सर... गर्म... भर दिया।" शर्मा हाँफा, "कल फिर... रंडी।" क्लास की घंटी बजी—खुशबू सिसकती रही। शर्मा का खुशबु को जोरदार kiss
 
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