Update-29
सुबह उदयराज की आंख सबसे बाद में खुली, उसने देखा कि सब उठ चुके हैं और तैयारियों में जुटे हैं, वह भी उठ गया फटाफट चलने की तैयारियां करने लगा, नहा धो कर रजनी ने आज गुलाबी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहना था वहीं पुर्वा ने नीला सूट सलवार पहना हुआ था, रजनी तो कयामत लग ही रही थी पर पुर्वा भी किसी से कम नही थी हालांकि वो रजनी से थोड़ा कम गोरी थी पर उसके तीखे नैन नक्श और भरा पूरा यौवन अनायास ही किसी का भी मन अपनी तरफ खींच लेते थे।
उदयराज कभी साइड से तो कभी सामने से दिख रहे रजनी के उन्नत भारी दुधारू उरोज जिसको वो रात को चूस नही पाया था घूरे जा रहा था, रजनी भी अपने बाबू की नजरें भांप कर शर्मा जा रही थी
तैयार होने के बाद सबने नाश्ता किया और फिर चलने की बारी आई तो सुलोचना ने कहा- पुत्र ये ताबीज़ जो मैंने बना कर दिए हैं, तुम लोग हमेशा अपने पास रखना, और हर दीपावली पे अमावस्या की रात इसको पुनः मन्त्र से सुसज्जित कर इसकी शक्ति बरकरार रखनी है।
उदयराज- पर माता हर दीपावली की रात इसको करेगा कौन? हमे तो ये सब आता नहीं।
सुलोचना- अरे तुम्हे किसने कहा करने को पुत्र, तुम्हारी बहन पुर्वा ये सब किसलिए सीख रही है, मैं उसे हर तंत्र मंत्र विद्या में माहिर बना दूंगी, और वो सदैव अपने परिवार और विक्रमपुर की रक्षा में ढाल बनकर खड़ी रहेगी।
पूर्वा ने बगल में खड़ी रजनी का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा- क्यों नही, अभी तो मैं सीख रही हूं, सीखने के बाद देखना, मजाल क्या की मैं अपनी भतीजी और भैया तथा पूरे परिवार पर किसी भी तरह की कोई आंच आने दूंगी।
रजनी - मेरी प्यारी बुआ (और उसका हाथ चूम लिया)
उदयराज ने प्यार से पुर्वा के सर पे हाथ फेरा और माथे को चूमते हुए बोला- मेरी प्यारी बहन, अब तो मेरे पास मेरी बेटी और बहन दोनों हो गयी, कितना भाग्यशाली हूँ मैं, मेरी कलाई पर अभी तक राखी के दिन रजनी ही राखी बांध देती थी ताकि कलाई सूनी न रहे पर अब तो साक्षात बहन ही मिल गयी, कितनी खुशियां दे रहा है ईश्वर मुझे, (ऐसा कहते हुए उदयराज ने रजनी की तरफ देखा तो रजनी नज़रें झुकाकर शर्मा गयी)।
पुर्वा- मैं भी आज बहुत खुश हूं अपने भैया को पाकर, कम से कम मेरा एक भाई तो है जिसको मैं राखी बाँधूँगी।
सुलोचना- हाँ बिल्कुल, क्यों नही। अच्छा! राखी के दिन रजनी बिटिया अपने बाबू की बहन बन जाती थी? (सुलोचना ने आश्चर्य से पूछा)
रजनी- हाँ अम्मा, मैं ही बहन बनकर राखी के दिन बाबू को राखी बांध देती थी, काम चलाऊं बहन हूँ मैं अपने बाबू की (और रजनी खिलखिलाकर हँस देती है), पर लगता है अब ये पद मुझसे छिन जाएगा (रजनी ने मजाक में कहा)
उदयराज भी हसने लगता है- हाँ ये तो मेरी सब कुछ है, बिटिया तो मेरी ये है ही, राखी के दिन बहन भी बन जाती है, बस अब माँ बनना बाकी है
और सब जोर से हंसने लगते हैं।
रजनी- जरूरत पड़ी तो वो भी बन जाउंगी।
सुलोचना - जरूर बन जाना, जो स्त्री पूरा घर संभालती हो वो एक तरह से सब होती है।
पुर्वा- रजनी, मेरी सखी, मेरी भतीजी क्या तुम इस बात से उदास हो गयी कि मैंने तुमसे राखी बांधने का हक़ छीन लिया, मेरे साथ साथ तुम भी पहले की तरह राखी बांधते रहना।
रजनी- अरे नही बुआ मैं तो मजाक कर रही थी, राखी तो मैं अपने बाबू को बाँधूँगी ही, प्यारा प्यारा उपहार जो लेना है (रजनी ने फिर मजाक में कहा और हंसने लगी उसके साथ साथ सब हसने लगे)
उदयराज- क्यों नही, मेरी बिटिया रानी जो तेरा मन करे वो कर।
फिर सुलोचना और पुर्वा ने रजनी की बेटी को गोदी में लेकर काफी प्यार किया और अब सबने निकलने की तैयारी की, उदयराज ने बैलगाडी तैयार की, सबने सुलोचना और पुर्वा से विदाई ली, पुर्वा और रजनी थोड़ा भावुक हो गयी।
रजनी, काकी ने सारा सामान बैलगाडी में रख लिया और बैलगाडी में बैठ गयी फिर उदयराज बैलगाडी लेकर अपने गांव की तरफ चल दिया।
सुबह के आठ बजे रहे थे और 4 बजे से पहले वो गांव पहुचना चाहता था इसलिए अब बिना कहीं रुके उसे बैलगाडी चलाना था, समय बीतता गया, काकी और रजनी एक दूसरे से बातें कर रही थी, एकाएक उदयराज को याद आया कि उसने वो बात तो काकी और रजनी को समझायी ही नही की गांव पहुचने पर क्या करना है। उसने तुरंत बैलगाडी पेड़ की छांव में रोकी तो काकी बोली- क्या हुआ उदय?
उदयराज- काकी मैं एक बात बताना भूल गया।
काकी और रजनी- क्या भूल गए।
उदयराज- अच्छा ये बताओ गांव पहुचकर क्या हमें सारी की सारी बातें जस की तस सबको बतानी चाहिए, कि महात्मा ने ये उपाय बताए हैं और ये कर्म बताया है, जबकि कर्म तो हमे अभी खुद भी नही पता, क्यों काकी? क्या हमें बताने चाहिए?
काकी- हां बात तो सही है, ये सब हमे ही करना है तो हम ही चुपचाप करेंगे, सबको क्यों बताना?
रजनी- पर सब पूछेंगे तो, और आखिर पूछेंगे ही, सबको पता है कि हम किस यात्रा पर निकले हैं?
उदयराज- मैंने सोचा है कि हम गांव वालों को ये बोल देंगे कि एक यज्ञ करना है बस, और दिखावे के लिए सबके सामने एक यज्ञ कर देंगे और वो भी दो महीने बाद जब पुर्वा आ जायेगी तब।
काकी- हां ये ठीक है, गांव वालों को बोल देंगे कि महात्मा ने बोला है उनके यहां से कोई शिष्या आके यहां यज्ञ कराएगी और फिर सब ठीक हो जाएगा वैसे उन्होंने अपनी मंत्र की शक्ति से काफी कुछ ठीक कर दिया है। बस एक यज्ञ करना बाकी है वो दो महीने बाद ही हो पायेगा।
रजनी- पर जब गांव वाले पूछेंगे की इसका कारण क्या था तो क्या बतायेंगे?
उदयराज- वो तो हम सच सच जो भी था बता देंगे।
काकी- हां ये ठीक है
उदयराज- तो फिर तुम लोग भी गांव की स्त्रियों को पूछने पर यही बताना।
रजनी और काकी- हाँ, ठीक है।
फिर उदयराज बैलगाडी चलाने लगा।
करीब 2 बजे के आस पास वो लोग अपने गांव की सरहद पर पहुँचे, सरहद के बाहर ही उदयराज ने बैलगाडी रोक दी।
रजनी ने अपने बाबू को लोटे में पानी पीने को दिया, उदयराज ने पानी पीने के बाद लोटा रजनी को देते हुए कहा- आखिर मेरी बेटी को मेरी प्यास का ध्यान रहता है।
रजनी- रहेगा क्यों नही भला, ये भी कोई कहने की बात है। बेटी हूँ आपकी।
उदयराज- चलो अब यहां पर भी एक कील गाड़ ही देते हैं, उदयराज ने एक कील निकली और सरहद पर बने कुछ दूर एक छोटे से मंदिर के पीछे जाकर गाड़ दी, फिर रजनी बैलगाड़ी से उतरी और उदयराज की तरफ देखकर मुस्कुराती हुए मंदिर तक गयी, उदयराज बैलगाडी के पास आकर खड़ा हो गया, वो उनके गांव की सरहद थी तो वहां किसी भी तरह का कोई डर नही था।
रजनी मंदिर के पीछे गयी जहां कील गाड़ी हुई थी, कील के पास बैठकर उसने अपना ब्लॉउज खोलना शुरू कर दिया, नीचे के तीन बटन खोले, इस बार रजनी ने अपनी दोनों ही दुधारू मोटी मोटी चुचियाँ बाहर निकाल ली और दोनों हथेली में ले ली, धूप सीधी चूचीयों पर पड़ रही थी, रजनी ने एक साथ दोनों चूचीयों को पकड़ा और दोनों ही निप्पल को एक साथ कील पर निशाना लगा के दबा दिया, दूध की दो धार चिरर्रर्रर्रर्रर की आवाज करती हुई कील पर पड़ी, रजनी अपनी ही चूचीयों कि चमक देखके मदमस्त हो गयी, फिर जल्दी से चूचीयों को ब्लॉउज के अंदर डाल दिया और बटन बंद करते हुए बैलगाडी तक आ गयी।
काकी बैलगाडी में छपरी में बैठी थी और उदयराज बाहर खड़ा अपनी बेटी को देख रहा था, रजनी ने अपने बाबू को अपनी तरफ देखते हुए देखकर मुस्कुरा पड़ी और छपरी में काकी के पास जा के बैठ गयी।
उदयराज बैलगाडी चलाने लगा, बैलगाडी अब गांव की सरहद के अंदर प्रवेश कर चुकी थी, कुछ किलोमीटर चलने के बाद उन्हें कुछ लोग आते जाते दिखने लगे। उदयराज को देखकर ही वो जोर जोर से चिल्लाने लगे- उदयराज भैया की जय हो, हमारे मुखिया की जय हो, वो गांव के छोर पर रहने वाले किसान थे, पर जब तक उदयराज गांव के काफी अंदर अपने घर पहुचता पूरे गांव में हल्ला हो गया कि मुखिया जी आ गए।
उदयराज ने सबका प्रणाम स्वीकार किया और बैलगाडी घर की तरफ आगे बढ़ा दी। रजनी और काकी तो बहुत ही प्रसन्न थे। वहां की औरतों ने काकी के पैर छूने शुरू कर दिए, काकी ने सबको बड़ी मुश्किल से समझाया, और सबको आर्शीवाद दिया।
करीब 1 घंटे और चलने के बाद वह अपने घर पहुचा तो देखा कि उसके घर के बाहर गांव वालों की काफी भीड़ पहले से मौजूद थी, और बैलगाडी के पीछे पीछे भी कई लोग आ चुके थे। सबको यही जानना था कि आखिर क्या हुआ? सब दुआ और प्रार्थना करे जा रहे थे कि शुक्र है सब सही सलामत वापिस आ गए।