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Incest पाप ने बचाया

Sweet_Sinner

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Index

~~~~ पाप ने बचाया ~~~~

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Jangali

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Update- 30

उदयराज ने बैलगाडी अपने घर के बाहर कुएं के पास रोकी, काकी और रजनी बैलगाडी से उतरी, उदयराज, काकी और रजनी कुएँ के पास खड़े हो गए , गांव की सबसे उम्र दराज महिला ने लोटे में जल लेकर एक साथ तीनो के सर के किनारे किनारे सात बार गोल गोल घुमाते हुए आरती उतारी और फिर उस जल को नीम के पेड़ पर अर्पित कर दिया।

बिरजू और परशुराम ने बैठने के लिए पहले से ही खाट बिछा रखी थी, उदयराज सबसे मिला और खाट पर बैठ गया, रजनी और काकी भी बगल वाली खाट पर बैठ गए।

गांव वालों का वहाँ जमावड़ा लग गया था, तभी नीलम भीड़ में से निकलकर आयी और खुशी से रजनी और काकी के गले लग के मिली। उसने उदयराज को भी प्रणाम किया।

नीलम- कैसी है मेरी बहन? काकी आप कैसी हो?

काकी- मैं ठीक हूँ मेरी बच्ची।

रजनी- मैं भी ठीक हूँ, मेरी सखी, तू बता कैसी है।

नीलम- मैं तो बिल्कुल ठीक हूँ।

बिरजू- नीलम बिटिया हाल चाल बाद में पूछते रहना पहले जा अपनी सहेली, काकी और मेरे परम मित्र मुखिया जी के लिए पानी ले के आ।

नीलम दौड़ी दौड़ी घर में गयी और सबके लिए अपने हाथ से बनाई मिठाई और पानी लेके आयी।

नीलम ने सबको पानी दिया- सबने नीलम के हाथ की बनी मिठाई खाई और उदयराज ने तो खूब तारीफ कर डाली, रजनी और काकी ने भी नीलम की तारीफ करते हुए मिठाई खाई और पानी पिया।

गांव की सभी स्त्रियां और पुरुष आस पास जमावड़ा लगाए खड़े थे, सामने बिरजू और परशुराम बैठे थे।

उदयराज और रजनी को तो जल्दी से जल्दी महात्मा द्वारा दिये गए कागज खोलकर देखने की पड़ी थी, और गांव वाले घेरकर बैठे थे।

तभी बिरजू उदयराज से बोला- भैया अब बताओ, क्या हुआ? कैसा रहा? क्या वो दिव्य पुरुष मिले? हमारी समस्या का हल मिला?

उदयराज और काकी ने उपाय और कर्म वाली बात छोड़कर बाकी की सारी बातें गांव वालों को बता डाली। इसके हल के लिए उन्होंने यही बोला कि एक यज्ञ कराना पड़ेगा और वो भी एक शिष्या दो महीने बाद आ के कराएगी। ये सब सुनकर गांव वाले हैरान रह गए और कुछ लोगों ने तो अपने उस पूर्वज को ही भला बुरा कहना शुरू कर दिया।

काकी ने उनको समझाया कि जो हुआ सो हुआ पर अब उन्हें भला बुरा कहने से क्या फायदा।

बिरजू उदयराज से- भैया आपको यह कुल भगवान की तरह पूजेगा आपने जो यह अत्यंत कठिन यात्रा परिवार सहित करके अपने कुल की जीवन की रक्षा की है, ऐसा तो आजतक कोई मुखिया न कर पाया, आप ही हमारे मुखिया है और सदा रहेंगे, आज पूरा गांव आपको नतमस्तक कर रहा है, सब युगों युगों तक आपके आभारी रहेंगे।

उदयराज ने बिरजू को गले से लगा लिया और बोला - अरे पगले, तुम सब मेरा परिवार हो, मैं अपने परिवार के लिए नही करूँगा तो और कौन करेगा, ये तो मेरा फ़र्ज़ है, और तुम सबने तो मुझे पहले ही गांव का मुखिया बना कर इतना प्यार और सम्मान दिया है, बल्कि देख मेरा तो सारा काम भी तू ही संभालता है तो क्या मेरा ये फ़र्ज़ नही था कि मैं मुखिया होने के नाते ये सब करूँ, सबकी आंखें नम हो गयी।

उदयराज- वो तो हमारी किस्मत अच्छी थी जो भयानक जंगल में हमे एक माता जी मिली जिनके बारे में मैं बता चुका हूं, वो न होती तो ये असंभव था, हम उस जंगल को पार ही नही कर पाते। पूजा करनी है तो उस देवी की करो और अब वो हमारी माता हैं। मैं उन्हें यहां एक बार सबसे मिलाने जरूर लाऊंगा।

उदयराज ने ये बात नही बताई की उस कागज को वापिस देने जाना है, उसकी जगह पर उसने ये बोला कि मैं सुलोचना को यहां एक बार जरूर लाऊंगा और उनको लेने के लिए जाना पड़ेगा।

बिरजू और परशुराम- हां भैया जरूर, हम भी उस महान देवी से मिलना चाहते हैं, पूरा गांव उनको देखना चाहता है।

उदयराज- हां जरूर दो महीने बाद मैं जाऊंगा उनको और शिष्या को लेने फिर वही लोग यज्ञ कराएंगे।

अब जाके गांव वालों को तसल्ली हुई।

तभी बिरजू और परशुराम गांव वालों से बोले- अच्छा तो हमारे भाइयों अब आप लोग कृपया अपने अपने घर को जाएं बाकी की बातचीत हम बाद में करेंगे, आप लोग समझ सकते हैं हमारे मुखिया और उनका परिवार यात्रा करके काफी थक चुका है तो अब उन्हें आराम करने दें।

सभी उदयराज को प्रणाम कर अपने अपने घर को जाने लगे और घर जाके सबने खुशी के दिये जलाए मानो दीपावली हो आज, पूरा गांव शाम को ही जगमगा उठा। अंधेरा होना शुरू हो गया था।

नीलम और उसकी माँ- आप सब लोगों का खाना आज हमारे घर ही बनेगा, तो आप लोग खाना बनाने के लिए परेशान मत होना, हमारे घर ही खाना है आज।

उदयराज, काकी और रजनी ने मना किया पर नीलम नही मानी और सबका खाना बनाने चली गयी। काकी भी कुछ देर अपने घर का हाल चाल लेने चली गयी।

नीलम की माँ ने रजनी की बिटिया को गोदी में ले कर अपने घर की तरफ घुमाने ले गयी और अब घर में यहां पर बच गए रजनी और उदयराज।

रजनी उठकर घर का ताला खोलने जाने लगी जैसे ही रजनी घर के दरवाजे तक पहुँची उदयराज बोला- रजनी बिटिया रुको पहले मैं दरवाजे की डेहरी पर तीसरी कील गाड़ दूँ।

रजनी- हां बाबू ठीक है।

उदयराज ने तीसरी कील निकाली और एक पत्थर से ठोक कर मुख्य दरवाजे की डेहरी के बीचों बीच कील गाड़ दी।

रजनी ने दरवाजा खोला और अंदर चली गयी घर में अभी कोई दिया या लालटेन नही जल रहा था तो काफी अंधेरा था क्योंकि बाहर भी हल्का अंधेरा हो चुका था तो घर में और अंधेरा था। अभी रजनी घर के अंदर दाखिल हुई ही थी कि उदयराज ने जल्दी से कदम बढ़ा के उसको पीछे से बाहों में कस लिया।

रजनी की aaaaaaaaaahhhhh निकल गयी। उदयराज रजनी की गर्दन, गाल कान के आस पास ताबड़तोड़ चूमने लगा और अपनी बिटिया के गुदाज बदन को मसलने लगा, रजनी ने भी एकांत का फायदा उठाते हुए अपनी बाहें पीछे ले जाकर अपने बाबू के गले में लपेट दी, और अपने गाल आगे बढ़ा बढ़ा के अपने बाबू को चुम्मा देने लगी, उदयराज ने कुछ ही पलों में रजनी का पूरा मुँह चूम चूम के गीला कर दिया, रजनी सिसक उठी और बड़ी मादकता से बोली- बाबू थोड़ा सब्र।

उदयराज पीछे से उसकी चूचीयाँ हथेली में भरकर दबाने लगा और धीरे से बोला- और कितना सब्र मेरी बेटी, अब तो घर आ गए न, कब से तड़प रहा हूँ तेरे लिए। उदयराज कुछ देर तक पीछे से रजनी की चूचीयों को ब्लॉउज के ऊपर से मर्दन करता रहा, कभी पूरा हथेली में भर भर के दबाता तो कभी निप्पल को मसलता, पूरी चूची तनकर सख्त हो गयी थी
रजनी तो हाय... हाय करती हुई बेहाल होने लगी, एकएक उदयराज ने अपने बेटी को अपनी तरफ गुमाया और उसके नर्म बेताब होंठों पर अपने होंठ रख दिये, रजनी की आंखें बंद हो गयी, दोनों एक दूसरे के होंठों को खा जाने की स्थिति तक चूसने लगे, कभी उदयराज रजनी के निचले होंठों को अपने मुँह में भरकर चूसता तो कभी रजनी अपने पिता के होंठों को मुँह में भरकर चूसती, उदयराज के हाँथ रजनी की पीठ, कमर और गांड पर रेंगने लगे, तभी उदयराज ने रजनी की गुदाज उभरी हुई गांड को हथेली में भरकर मीजने लगा, रजनी चिहुँक उठी, और सिसकारियां लेने लगी। साथ ही साथ दोनों एक दूसरे के होंठों का रसपान किये जा रहे थे, कुछ ही देर बाद रजनी ने अपने को बड़ी मुश्किल से अपने बाबू से थोड़ा आजाद करते हुए कहा- बाबू, रुको जरा, थोड़ा सा और सब्र करलो बाबू, बस थोड़ा सा ही।

उदयराज- सब्र तो कर ही रह हूँ मेरी बिटिया रानी, पर अब नही होता (उदयराज की आँखों में वासना साफ झलक रही थी, उसकी आवाज भारी हो गयी थी)

रजनी- सब्र तो मुझसे भी नही हो रहा बाबू, पर रात भर के लिए रुक जाओ, फिर सब दूंगी (रजनी में काम भावना में सिसकते हुए कहा)

उदयराज- सब क्या?

रजनी- वो

उदयराज रजनी को कस के अपनी बाहों में भीचते हुए- वो क्या मेरी बिटिया।

रजनी- वही बाबू, जिसके लिए मेरे पिताजी तड़प रहे हैं। (रजनी धीरे से फुसफुसाके बोली)

उदयराज- किसके लिए तड़प रहा हूँ मेरी बिटिया। बोल न, बोल भी दे, तेरे मुँह से सुनना चाहता हूं उसको क्या बोलते हैं?

रजनी- मुझे शर्म आती है। आप समझ जाइए न बाबू।

उदयराज- मुझे नही समझ आ रहा बता न मेरी बेटी।

रजनी- वही जो दोनों जांघों के बीच में होती है, अब समझें।

उदयराज- नही, क्या बोलते हैं उसको?

रजनी समझ गयी कि उसके बाबू बहुत मस्ती में हैं और उसको भी बहुत मजा आ रहा था ऐसी बातों से

रजनी थोड़ी देर शांत रही फिर धीरे से अपने बाबू के कान के पास अपने होंठ ले जा के बोली- बूबूबूबूरररर, बूर बोलते हैं उसको बाबू, बूर (और ये शब्द बोलते ही और भी कस के अपने बाबू से लिपट गयी उसकी आह निकल गयी), फिर बोली मैं अपने बाबू को रात को अपनी बूर दूंगी खाने को, ठीक, अब खुश।

उदयराज अपनी बेटी के मुंह से ये शब्द सुनकर अवाक रह गया और मदहोश होकर बोला- मुझे अपनी बेटी की बूर खाने को मिलेगी।

रजनी भी ये शब्द बोलने के बाद अंदर ही अंदर गनगना गयी कि आज जीवन में पहली बार वो किस तरह उस खास अंग का नाम अपने बाबू के सामने ही ले रही है और उसे इसमें कितना आनंद आया फिर वो थोड़ा और खुलकर बोली

रजनी (सिसकते हुए) - हाँ और वो भी अपनी शादीशुदा बेटी की, पूरी रात, जी भरके,अब खुश।

उदयराज अत्यंत खुश हुआ और एक बार फिर से उसने रजनी के गालों, होंठों पर ताबड़तोड़ चुम्बन जड़ना शुरू कर दिया। रजनी फिर से सिसकने लगी।

उदयराज- सिर्फ खाने को मिलेगी, पीने को नही।

रजनी- खाना हो खा लेना, पीना हो पी लेना, जो मर्जी कर लेना।

उदयराज- उसमे से जो मूत निकलता है उसको मैं पियूँगा, पिलाओगी न

रजनी- dhaatt,

फिर बोली- जरूर, मेरे बाबू, जरूर, जी भरके पी लेना

उदयराज ने खुश होकर रजनी को अपनी गिरफ्त में से आजाद किया, घर में काफी अंधेरा था, रजनी ने अपने बाबू से एक बात कही- बाबू हमे अभी अपने अपने कागज पढ़ लेना चाहिए, न जाने उसमे क्या लिखा होगा, मैं मंदिर में दिया जला देती हूं और लालटेन भी, इससे पहले की कोई आ जाए हमे वो पढ़ लेना चाहिए कि उसमे क्या कर्म लिखा है दोनों के लिए।

उदयराज- हां मेरी बेटी तू ठीक कहती है।

और रजनी ने मंदिर में दिया जलाया फिर पूरे घर में लालटेन जलाई, उदयराज उसे ये सब करते हुए देखता रहा, जब दोनों को नज़रें मिलती तो दोनों मुस्कुरा देते। फिर रजनी बोली मैं पीछे वाली कोठरी में जा रही हूं पढ़ने और आप बरामदे में बैठ के पढ़ लो।

उदयराज- हां ठीक है

और दोनों ने अलग अलग कमरे में जाके अपना अपना कागज खोला।

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S_Kumar

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Bht hot update lagta he jaldi hi udayraj ko apni beti ki bur ka pani pine ko milne wala he agla update jaldi dena or thoda long be agar chudai wala seen ho to pura ek hi update me ho
जरूर, ऐसा ही होगा, बस जुडे रहें इस कहानी के साथ, comment करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
 

S_Kumar

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बहुत ही बढिया चल रही है कहानी । अगला भाग भी जल्दी देना , कहानी में रोमांच बहुत ही चरम पर है अभी ।।
धन्यवाद जी, कोशिश करूंगा updates जल्दी जल्दी दूँ, वैसे मेरे updates जल्दी ही आ रहे हैं, कभी कभी ही ऐसा हुआ है कि एक दो दिन देर हो गयी हो

धन्यवाद आपका।
 

S_Kumar

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आपके लेखनी में जादू है। लाजवाब
बहुत बहुत शुक्रिया आपका। बस ऐसे ही थोड़ा बहुत लिखने की कोशिश कर रहा हूँ। वरना बड़े बड़े लेखकों के आगे मैं तो कुछ भी नही। बस एक छोटी सी कोशिश है।

धन्यवाद आपका।
 
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S_Kumar

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अद्भुत, अतुलनीय , लग रहा है जैसे कोई मूवी सामने चल रही है। जीवंत
शुक्रिया आपका, कोशिश तो मेरी पूरी है कि कोई भी जब इस कहानी को पढ़ने बैठे तो बोर न हो। उसे लगे कि हाँ मजा आ गया।

आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
 
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S_Kumar

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Update- 31

उदयराज ने अपने किये जाने वाले कर्म को जानने के लिए दिए गए कागज को पढ़ने के लिए खोला, सफेद कागज पर सुनहरे रंग से लिखे अक्षर प्रकट हो गए, उदयराज यह चमत्कार देखकर ही दंग रह गया और पढ़ने से पहले एक बार वो कागज उसने माथे चढ़ा लिया, फिर उसने पढ़ना शुरू किया, उसमे लिखा था-

"उदयराज तुम्हारे पुर्वज द्वारा नियति के नियमों में छेड़छाड़ करने से कुपित नियति द्वारा किये गए अव्यवस्थित संतुलन को दुबारा संतुलित कर सही रास्ते पर लाने के लिये तुम्हे जो कर्म करना होगा वो है "महापाप कर्म"


व्यभिचार के रास्ते पर चलकर तुम्हे एक महापाप करना होगा, और ऐसा कर तुम्हे अपने कुल में पापकर्म को स्थान देकर उसकी स्थापना करनी होगी, इस कर्म की शुरुवात तुमसे होगी जो आनेवाले भविष्य में तुम्हारे कुल के लिए जीवनदायी होगी, तुम्हे यह महापाप अपना कर्म समझकर आनंद लेते हुए करना है।

इसके लिए तुम्हे आने वाली अमावस्या की रात से ठीक सात दिन पहले, अपने घर की किसी ऐसी स्त्री जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता हो और जो बच्चे को स्तनपान कराती हो, मेरे द्वारा दिये गए दिव्य तेल से बिना उसका चेहरा देखे और बिना उसका कोई और अंग छुए सिर्फ उसकी योनि (बूर) को रात के 12 बजे छूना है, हाथ में तेल लगा कर उसकी योनि (बूर) का मर्दन 10 मिनट तक करना है और उससे निकलने वाले रस को उंगली से निकलकर पहले स्वयं चाटकर ग्रहण करना है फिर उसे चटाना है, रस को पांच बार चाटना और चटाना है, ध्यान रहे इस दौरान उसके शरीर के किसी भी और अंग पर तुम्हारी नज़र नही पड़नी चाहिए। वह स्त्री उस रात ठीक 12 बजे घर के किसी एकांत कमरे में तुम्हारा इंतज़ार करेगी, उसका शरीर पूर्ण रूप से चादर से ढका होगा, कमरे में कपूर की खुश्बू फैली होगी और कमरे के दरवाजे पर एक हल्की रोशनी का दिया जलता होगा।

ऐसा तुम्हे तीन रात करना है, फिर चौथी रात तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को खोलकर देखना और सूंघना है तथा कमर से नीचे की नग्नता के दर्शन करना है, फिर पांचवी रात पुनः तुम्हे उस स्त्री को कमर से नीचे निवस्त्र कर उसकी योनि को देखना, सूंघना और चुम्बन करना है और निकलने वाले रस को मुँह लगा के उसका रसपान करना है। ध्यान रहे इस दौरान भूल कर भी उसका चेहरा नही देखना और न ही शरीर का कोई और अंग छूना और देखना है, इतना ही नही इन सात दिनों के अंदर दिन में भी तुम्हे उस स्त्री के सामने नही पड़ना है, सिर्फ रात को ये कर्म करना है।

अगली छठी रात अब तुम्हे उसी कमरे में अपना पूरा शरीर चादर से ढककर लेटना है वह स्त्री तुम्हे कमर से नीचे निवस्त्र कर तुम्हारे लिंग का दर्शन करेगी, उसे छुएगी, सूंघेगी, उसका मर्दन करेगी और उसका चुम्बन लेगी, बाकी सब वैसे ही होगा, कमरे में कपूर की महक होगी और दरवाजे पर एक छोटा सा दिया जलता रहेगा।

छठी रात के बाद सातवें दिन, सुर्यास्त के बाद तुम उस स्त्री को देख सकते हो।
दिन में वह स्त्री घर में किसी जगह, कागज पर अपने मन की इच्छा लिखकर, छुपाकर रखेगी तुम्हे वह ढूंढकर पढ़ना है और उस कागज में लिखे अनुसार उस स्त्री की मन की इच्छा की पूर्ति अमावस्या की रात को करना होगा। ठीक उसी रात को तुम्हे कुलवृक्ष की जड़ में चौथी कील भी ठोकनी होगी और स्त्री से दूध भी अर्पित कराना होगा।

वह स्त्री कोई और नही तुम्हारी पुत्री ही होगी, क्योंकि वही एक स्त्री तुम्हारे परिवार में बची है जिससे तुम्हारा खून का रिश्ता है इसलिए यही सब कर्म विधि मैंने तुम्हारी पुत्री के कागज पर भी लिखा है, जिस दिन से ये कर्म शुरू होगा ठीक उसी दिन से तुम्हे न अपनी पुत्री को देखना है न उसके सामने पड़ना है।

मेरा आशिर्वाद सदा तुम्हारे साथ है, धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा, सदा खुश रहो।"

कर्म पत्र पढ़कर तो उदयराज को ऐसा लग जैसे पृथ्वी और आकाश एक साथ विपरीत दिशा में घूम रहे हैं उसने एक बार नही दो तीन बार अच्छे से पूरा-पूरा कर्म को पढ़ा। विश्वास नही हुआ उसे की नियति ये चाहती है जो उसके मन में थोड़ा थोड़ा पहले से ही है, उसका तो मन मयूर ही झूम उठा। तभी वह भागकर रजनी वाले कमरे में गया तो देखा रजनी भी बेसुध सी खड़ी यही सोच रही थी, उसे भी विश्वास नही हो रहा था, दोनों की नजरें मिली तो उदयराज मुस्कुराया और रजनी ने शर्मा के सर नीचे कर लिया।

उदयराज ने रजनी के चेहरे को ठोड़ी पर हाथ लगा के उठाया तो उसकी आंखें बंद थी, उसने धीरे से बोला- आज अमावस्या की रात से ठीक पहले का आठवाँ दिन है, कल सातवां दिन होगा, कल सुबह से मै तुम्हें नही देखूंगा, न तुम्हारे सामने पडूंगा।

रजनी की आंख बंद थी वो सुन रही थी उसके होंठ कंपन से थरथरा जा रहे थे।

उदयराज- मुझे तो लगा था कि आज रात मुझे मेरी अनमोल चीज़ मिल जाएगी पर नियति ने उसे 7 दिन पीछे धकेल दिया है, पर कोई बात नही मैं बर्दाश्त कर लूंगा।

रजनी ने धीरे से आंखें खोल के उदयराज की आंखों में देखा और बोली- बाबू, कल रात से रोज 5 रात तक मैं घर के पीछे वाली कोठरी में आपका रात के 12 बजे इंतज़ार करूँगी, और छठी रात आप मेरा इंतज़ार करना, इस दिनों हम एक दूसरे को न देखेंगे, न एक दूसरे के सामने पड़ेंगे, जैसा कि उसमे लिखा है। फिर सातवें दिन, मैं एक पर्ची में अपने मन की इच्छा उसमे लिख के घर में कहीं छुपा दूंगी आपको वो ढूंढकर उस पर्ची में लिखे अनुसार आगे का कर्म करना है और उस दिन सूर्यास्त के बाद हम एक दूसरे को देख सकेंगे, वह अमावस्या की रात होगी, उसी रात कुलवृक्ष में कील भी गाड़नी है, अब आपके और मेरे सब्र का इम्तहान है बाबू, हमे इसे बखूबी निभाना है।

उदयराज ने रजनी के चहरे को अपने हाथों में लेकर बोला- हाँ मेरी बच्ची, मेरी बेटी, बस आज की रात ही हम एक दूसरे को देख सकते हैं फिर तो 6 दिन बाद ही देख पाएंगे, और उदयराज गौर से रजनी को देखने लगा, उसके चेहरे को निहारने लगा, रजनी भी एक टक अपने बाबू को निहारने लगी फिर एकएक शर्माकर उनसे लिपट गयी, उदयराज ने उसे बाहों में कस लिया।

उदयराज- बेटी लेकिन हमारे बीच कोई तो ऐसा होना चाहिए जो जरूरत पड़ने पर सब संभालता रहे, मान लो मैं दिनभर बाहर रहूंगा और तुम घर में, परन्तु कभी कोई काम ही पड़ गया या तुम्हे मुझे खाना ही परोसना हो, या रात को बच्ची को ही संभालने वाला कोई तो होना चाहिए, ताकि हमे कर्म करने में कोई अड़चन आ आये।

रजनी- बाबू आप उसकी चिंता छोड़िए, वो मैं काकी को समझा दूंगी अपने तरीके से, उनको कुछ बताऊंगी नही पर फिर भी समझा दूंगी, वो सब संभाल लेंगी।

उदयराज- मेरी बेटी कितनी समझदार है, और कहते हुए वो उसके गालों को चूमने लगा।

रजनी ने आंखें बंद कर ली और अपने बाबू से लिपट गयी।

तभी नीलम की अम्मा आवाज लगाती हुई उनके घर की तरफ आ रही थी, ये सुनते ही उदयराज और रजनी झट से अलग हो गए और रजनी ने वो कागज छुपा दिया, भागकर बाहर आई- हाँ अम्मा क्या हुआ? बच्ची रो रही है क्या?

नीलम की अम्मा- हाँ बिटिया ये रो रही है, ले इसको दूध पिला दे और सब लोग चलो अब, खाना भी बन गया है, सब लोग खाना खा लो, काकी भी वहीं बैठी हैं, बस सब तुम लोगों का ही इतंज़ार कर रहे हैं।


रजनी- हाँ अम्मा चलती हूँ।

उदयराज ने भी अपना कागज छुपा के रख दिया और फिर रजनी और उदयराज दोनों लोग नीलम की अम्मा के साथ उसके घर आ गए।

आज पूरा गांव दिए कि रोशनी से जगमगा रहा था, बिरजू के घर सबने एक साथ खाना खाया, काफी बातें और हंसी मजाक भी हुआ फिर रजनी, काकी और उदयराज उन लोगों का धन्यवाद करके अपने घर आ गए।

उदयराज ने पहले की तरह अपनी खाट कुएं के पास लगाई और सोने के लिए लेट गया।

रजनी और काकी ने भी पहले की तरह अपनी खाट नीम के पेड़ के नीचे लगाई और लेटकर बातें करने लगी।

रजनी ने काकी को अपनी तरह से समझा दिया, उसने असल बात नही बताई, बस अपनी तरह से समझा दिया।

काकी ने भी उसको निश्चिन्त होकर कर्म करने के लिए बोला, काकी को भी लगा कि कोई ऐसा कर्म है जो गुप्त रूप से करना है।

फिर काकी सो गई पर रजनी की आंखों में नींद नही थी, वो बेचैन थी, वही हाल उदयराज का भी था वो भी अपनी खाट पर करवटें बदल रहा था। काफी देर सोचते सोचते फिर न जाने कब दोनों की आंख लग गयी।
 
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