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सुनी का अतितावलोकन
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ससुरजी ने अपनी बलशाली बाँहों में मुझे हवा में उठा लिया और मैंने अपनी बाहें उनकी गर्दन के इर्द-गिर्द कस कर डाल दीं और उनके कंधे में मुंह छुपा कर सबक सबक कर रो पड़ी।
काफी सारे लोगों ने समझा कि पिता-बेटी का मिलन बहुत समय बाद हो रहा है इसी लिए बेटी इतनी भावुक हो गयी है।
ससुरजी ने मुझे अपने से चिपका कर हवा में उठाये हुए पास के कैफ़े में ले गए और मुझे अपनी गोद में बच्चे की तरह बिठा कर चिपका लिया।
जब मैं बड़ी देर बाद अपने पर संयम रख पायी तब मैंने अपने आसुओं को ससुरजी के पहले से ही गीले कुर्ते से पोंछ कर असुओं से गीली मुस्काराहट के साथ बोली, " पापाजी मुझे माफ़ कर दीजिये। मैं आपको देख कर अपना आपा खो बैठी। मुझे अचानक अपने अनाथ, पितृहीन होने का दर्द सहा नहीं गया। मैं वायदा करती हूँ कि मैं रोने धोने वाली लड़की नहीं हूँ। "
मेरे ससुरजी ने मुझे बाँहों में जकड कर मेरे गीले चहरे को कई बार चूमा , " बेटा मैं तुम्हारे जन्म देने वाले पिता को तो नहीं वापस ला सकता पर जब तक मैं जिन्दा हूँ तुम पितृहीन नहीं हो। तुम जिस दिन से तुमने निर्मल से विवाह किया हमारे परिवार की शोभा और हमारी बेटी बन गयी हो। बेटी और वायदा करो अपने पिता के साथ की यदि कोई दुविधा होगी तुम्हें तो रोने से पहले तुम हमें बताओगी। हम पूरी कोशिश करेंगें कि हमारी इतनी सूंदर बहु के चेहरे पर कभी भी आंसुओं की धार न बहे।"
मुझे जीवन में पहली बार अपने नाना नानी को खोने बार फिर सर के ऊपर साया होने का आभास होने लगा।
ससुरजी ने मुझे ढृढ़ आग्रह कर लम्बा सा मिल्कशेक पिलाया और खुद तीखी काली कॉफी पी।
मेरा सामान उठा कर ससुरजी कार पार्क की ओर चल दिए। मैं सिर्फ पांच फुट चार इंच लम्बी थी पर ससुरजी के साथ चलते हुए मेरा कद के बारे में ' लम्बी ' शब्द के जगह ' नन्ही या छोटी ' ज़्यादा उचित लग रहा था।
ससुरजी की कार वाकई एक ट्रक जैसी थी। उन्होंने वॉक्सवैगन [ VOLKSWAGEN ] का ट्रक ऍमरॉक [AMROCK ] था।
"बेटी गाँव के लिए शहरी कारें नहीं काम करतीं इसलिए हमारे लिए ऐसे ट्रक ही काम के हैं " ससुरजी ने शरमाते हुए मुझसे कहा।
"पापाजी आप भी वायदा कीजिये कि मुझे शहरी इतराई बेटी नहीं पर अपने घर में बढ़ी -पोसी बेटी की तरह मुझे जब मैं गलत हूँ तो डाट कर ठीक कर देंगें ," मैंने अपने नन्हे हाथों से ससुरजी के विशाल नहों को सहलाते हुए भावुक सी आवाज़ में कहा।
" चलो बेटा अब हम दोनों एक दूसरे के साथ पिता-बेटी के वायदों से जुड़ गएँ हैं। अबसे तुम हमारी बेटी पहले और बहु बाद में ," ससुरजी ने मुझे ट्रक का दरवाज़ा खोल कर अंदर बैठने में मदद की, " चलो अब घर पहुँच कर तुम्हें तुम्हारे शैतान देवरों से मिलवाएं।”
" और हाँ बेटा हमारे घर की देखभाल चंपा करती है। चंपा अपनी दोनों बेटियों, नंदी और रूपा के साथ कुछ दिनों के लिए अपने मायके गयी हुई है," ससुरजी ने बताया।
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मेरे ससुराल का घर घर नहीं था। पूरा महल था। शहर से दूर और गाँव के बहुत बाहर नदी के पास बीस कमरों की हवेली कहना चाहे तो शायद हवेली थी। घर के चारों ओर ऊँचे पेड़ों की प्राकर्तिक सीमा थी। ससुरजी ने कई एकड़ का बगीचा घर के चारों ओर बनाया हुआ था। बगीचे में फल के अनगिनत पेड़ और फूलों की झाड़ियां थी। सब कुछ नैसर्गिक और प्रकर्ति के समर्थन से प्रभावित था।
ट्रक के रुकते ही दो लम्बे सुंदर मोहक चेहरे वाले जुड़वां लड़के दौड़ कर आये। दरवाज़ा खोल कर उन्होंने हँसते हुए 'भाभी भाभी ' चिल्लाते हुए मुझे बाँहों में भर लिया।
" बेटे यह तुम्हारे सबसे छोटे शैतान देवर हैं। बबलू और टीटू ," मैं उन दोनों किशोरों के बीच में दबी खिलखिला कर हंस दी। बबलू यानि विवेक और टीटू यानि विकास जुड़वाँ भाई थे। उनके जन्म के बाद ही कुछ बुरी बीमारी होने से मेरी सासूमाँ स्वर्ग सिधार गयीं थी।
मेरे सबसे छोटे देवर जिन्होंने मुश्किल से किशोरावस्था का दूसरा साल पूरा भी नहीं किया था मुझसे पूरे एक हाथ से भी लम्बे थे। दोनों लगभग छह फुट के होने चले थे और अभी उन्हें पन्द्रहवां मुश्किल से लगा था। मेरे निर्मल का शहर की अप्राकृतिक कृत्रिम जीवनचर्या और पढ़ाई के बोझ से शायद पूरा विकास नहीं हो पाया था।
तब ही एक और नवयुवक उतना ही लम्बा और चौड़ा जल्दी से बाहर निकला , "भाभी यह राजू है। " टीटू और बबलू ने मुझे अभी भी अपनी बाँहों में घेर रखा था। दोनों ने मेरा मुंह चूम चूम कर गीला कर दिया था। मेरा ह्रदय इतने प्यार को सम्भाल पाने में असमर्थ था। मैं प्रसन्नता से रोना चाह रही थी। लड़कियों की कमज़ोरी - दुःख में, ख़ुशी में रोने की आदत।
" यदि तुम दोनों खरगोशों ने मेरी भाभी को नहीं मुक्त किया तो मैं तुम दोनों को घोड़े के पीछे दस मील तक दौड़ाऊंगा ," राजेश यानि राजू ने हँसते हुए अपने छोटे भाइयों को प्यार भरी धमकी दी। टीटू और बबलू ने मुझे तीन चार बार और चूमा और फिर मैंने अपने आप को छह फुट तीन इंच लम्बे तीसरे देवर की बाँहों में अपने आप को पाया। राजू कुछ महीनो पहले ही उन्नीस साल का हुआ था।
" चलो बेटे अब अपनी भाभी का सामान उनके कमरे में ले जाओ , " ससुरजी ने वात्सल्य भरी शब्दों में अपने हीरे जैसे बेटों को आदेश दिया।
मैं तीनो देवरों के प्रेम भरे शब्दों में डूब गयी। काश मैं ऐसे भाइयों के साथ बड़ी हुई होती , मैंने फिर से कल्पना में गोते लगाना शुरू कर दिया।
मैं अचानक जाग गयी जब मैंने सुना , " पापा पहली बार भाभी घर में घुस रहीं हैं। यदि भैया होते तो वो इन्हें चला कर घर में थोड़े ही ले कर जाते। " हम सब ससुरजी जैसे भारी मीठी आवाज़ की तरफ मुड़ गए।