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मुझे अभी तक, सक्रिय रूप से चल रही अपनी इस 45 वर्षीय यौनक्रीड़ा की यात्रा में कई सहयात्री मिलते रहे है। कुछ का साथ, कुछ घण्टों से लेकर कुछ दिनों तक का रहा है तो कुछ के साथ यात्रा कुछ लम्बी भी रही है। ऐसे ही एक लम्बे समय तक मेरी यौनमित्र बनी रही, अर्पिता। वो एक 38 वर्षीय विवाहिता थी जो एक सरकारी विभाग में सेक्शन ऑफिसर पर कार्यरत थी। एक बार मैं अर्पिता को लेकर कतर्नियाघाट के जंगल मे वीकेंड मनाने गया तो वहां के एकांत में हम दोनों काफी खुल गए थे। हम दोनों ने जी भरकर, प्रकृति की गोद में सहवास का आनंद लिया और साथ मे जीवन मे मिले अब तक के अनुभवों को भी साझा किया। एक शाम, मुझे अर्पिता ने गेस्ट हाउस की नीरवता में बिताए जारहे अंतरंग पलों में, अपनी पहली चुदाई और अपने कौमौर्य भंग होने की घटना को बड़ा विस्तार से सुनाई थी। मैं आज उसी घटना को एक कहानी के रूप में, अर्पिता के शब्दों में, यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ।
प्रशांत सर, आज से 21 वर्ष पहले की बात है, मैं अपने पिता जी और माँ के साथ, कानपूर से दूर, एक कस्बे घाटमपुर में रहती थी। मेरे माता पिता, दोनों ही तहसील में काम करते थे, में उनके साथ अकेली, घाटमपुर में ही रह कर पढ़ती थी। मेरे एक बड़े भाई भी थे लेकिन उनका एक वर्ष पहले ही रुड़की इंजीयरिंग कॉलेज में सिलेक्शन हो गया था, तो वे रुड़की में पढ़ रहे थे। प्रशांत सर, आज से 20 वर्ष पहले, 1980 का घाटमपुर, आज का घाटमपुर नही था, एक छोटा कस्बा था। उस समय मैं भी दुनियादारी से दूर, छल कपट, सेक्स इत्यादि से बिल्कुल ही अंजान थी। मेरे परिवार में ऐसा कोई वातावरण ही नही था कि बाहर की दुनिया का मुझे कोई संज्ञान हो। घर मे पढ़ाई का मौहोल था, फ़िल्म देखना या इधर उधर की मैगजीन या किताबे पढ़ना तो भैया के कारण बंद था।
मेरे माता पिता का 2 पूर्व ही, कानपुर सदर तहसील से तबादला, घाटमपुर तहसील में हुआ था और कोई सरकारी आवास न होने के कारण, घाटमपुर के एक गर्ल्स इंटर कॉलेज के मैनेजर साहब के घर में, हम लोग करायदारी में रहते थे। मैं दसवीं पास कर के घाटमपुर आयी थी और मैंने इसी कॉलेज में ग्यारवी में एडमिशन लिया था। मैनेजर साहब करीब 40 साल के रहे होंगे और उनकी पत्नी करीब 35 साल की थी और वे उसी स्कुल की प्रिन्सिपल थी। मैनेजर साहब और प्रिंसिपल साहिबा के कोई बच्चा नही था तो पूरे बड़े से मकान में हम 5 प्राणी ही रहते थे। इसीलिए हम दोनों परिवार आपस मे काफी घुल मिल गए थे। हमारे परिवार में इतना अपनापन था कि मै उनको चाचा और चाची कह कर पुकारती थी। वहां मेरे कॉलेज का समय इस तरह से था की मै जब अपने कॉलेज से लौटती थी तब अक्सर माँ और पिता जी दफ्तर में ही होते थे और इस लिए मेरी ज्यादा समय उनके साथ ही गुजरता था।
अब जो घटना बताने जारही हूँ वो तब हुआ जब मैं बारहवीं में थी। एक दिन जब मेरे छमाई के इम्तहान चल रहे थे, उसी बीच मेरे पिता जी को आदेश आया की रेवेन्यु बोर्ड, लखनऊ में एक पांच दिवसीय वर्कशॉप लगी है जिसमे मेरे माँ और पिता जी की उपस्थिति अनिवार्य है। यह जान कर मेरे पिता जी परेशान हो गए और उन्होंने काफी प्रयत्न किया कि मां को छुट्टी मिल जाये लेकिन शासन के कठोर निर्देश के कारण यह संभव नही हुआ। मेरे पिता जी चिंतित हो गए की वे कैसे इम्तिहान के बीच मुझे यहाँ अकेला छोड़ कर चले जाए।
मां की छुट्टी अस्वीकार हो जाने के बाद जब पिता जी देर शाम तहसील से वापस घर लौटे तो उन्होंने मैनेजर चाचा और उनकी पत्नी को अपनी समस्या बताई। इस पर प्रिंसिपल चाची ने पिता जी से कहा, "भाई साहब चिंता की कोई बात नहीं, आप और दीदी(मेरी माँ को दीदी कहती थी) जाये, अर्पिता बिटिया की देखभाल हम लोग कर लेंगे, बोर्ड का मामला है, इसका साल खराब नही होने देंगे।"
प्रिंसिपल चाची बात सुन कर मेरे माता पिता को चैन पड़ा और वे आश्वस्त होकर पांच दिवसीय वर्कशॉप में, माँ के साथ लखनऊ चले गये।
माता पिता के जाने के दूसरे दिन मेरा आखरी पेपर था, उस दिन पेपर देने जाने से पहले प्रिंसिपल चाची ने मुझसे कहा, "अर्पिता आज आखरी पेपर है, भगवान का नाम लेकर पर्चा लिख आओ, सब ठीक रहेगा। घर आने के बाद हम बाहर खाने जायेंगे।"
मेरा उस दिन का पेपर अच्छा हो गया था, बीच बीच में प्रिंसिपल चाची भी आकर मुझे देख जाती थी। मैं कॉलेज से लौटी तो मैंने अपने कपड़े बदले और घोड़ा बेच कर सो गयी। थोड़ी देर बाद चाची भी कॉलेज से लौट आई और आते ही उन्होंने मुझे आवाज दी, "अर्पिता मेरे कमरे में आजाओ मै आगयी हूँ।"
मैं उनके कमरे में गई तो चाची पलँग पर लेटी हुई थी। मैं उनके बगल में ही लेट गई तो चाची ने पूछा, "पेपर कैसा रहा?"
मैंने कहा, "बहुत बढ़िया!"
तभी चाची ने कहा, "यह तो सिर्फ कागजी इम्तिहान था, तुम्हें जिंदगी के इम्तिहान के बारे में पता है?"
मैंने कहा, "चाची मतलब? मुझे तो नहीं पता!"
चाची ने कहा, "दीदी ने तुम्हें कुछ नहीं बताया?"
मैंने कहा-, "नही!"
इस पर प्रिंसिपल चाची ने पूछा, "माहवारी के बारे में माँ ने कुछ बताया?"
मैं उनकी इस बात पर हड़बड़ा गई, चाची ने इससे पहले इस तरह की कोई बात मुझसे नही की थी। मैंने शर्माते हुए उनसे कहा, "हर महीने में मुझे बहुत तकलीफ होती है, लेकिन माँ ने इसके लिये कुछ भी नहीं बताया।"
तब चाची ने कहा, "तुम्हारी माँ बहुत व्यस्त रहती हैं, घर के साथ आफिस भी संभालना पड़ता है। उन्हें इसीलिए पता ही नहीं कि उनकी बेटी कब जी जवान हो गई है! बिटिया, लड़की को जीवन में बहुत सारी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, उसे अगर ठीक से पता न हो तो उसे पूरे जीवन में बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है।"
उनकी बात सुनकर मैं जब चुप होगई तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, "अगर तुम चाहोगी तो मैं तुम्हें इसके बारे में आने वाले दो तीन दिन में सब कुछ सिखा दूंगी और कोई फ़ीस भी नही लूँगी।"
प्रशांत सर, मैं भले ही 18 कि होने को थी लेकिन जैसे पहले बताया मैं पढ़ाई के अलावा हर चीज़ में बौड़म थी। मै प्रिंसिपल चाची की बातों को बिना पूरा समझे, यह सोच कर की कुछ नया सीखने को मिलेगा, झट से उनकी बात मान गई और हां कह दिया। उसके बाद मैं, चाची के साथ वही पर सो गई।
मैनेजर चाचा, शाम को जब घर आये तो प्रिंसिपल चाची ने मेरे सामने ही चाचा से कहा, "सुनिए, अर्पिता सब कुछ सीखना चाहती है, क्यों जी सीखा दे इसको?"
चाची की बात पर मैनेजर चाचा थोड़ा चौकें और फिर उन्होंने आँखों ही आँखों में प्रिंसिपल चाची से कुछ कहा तो वो बोली,"अरे! तुम अर्पिता बिटिया से ही पूछ लो! क्यों अर्पिता, बताओ अपने चाचा को?"
चाची के ऐसा कहने पर मैं थोड़ा असमंजस्य पड़ गई क्योंकि जहां चाची बड़ी उत्साहित लग रही थी वही पर मुझे मैनेजर चाचा में कुछ हिचकिचाहट सी दिख रही थी। मुझे लगा जैसे चाचा कुछ सोंच में पड़ गए है, तो मैंने निश्छलता में उनसे कहा, "चाचा हाँ ! आप दोनों मुझे सिखा दीजिए!"
मेरी बात सुनकर चाचा थोड़ा गंभीर हो गए और उन्होंने चाची की तरफ देखते हुये, मुझसे कहा, "अर्पिता मुझे सिखाने में कोई हर्ज नही है लेकिन शर्त यह है कि तुम अपने माता पिता को इसके बारे में कुछ नहीं बताओगी?"
उनकी यह बात मुझे अजीब तो जरूर लगी लेकिन कौतूहलता में, मैं उनकी बात मान गई।
चाची शाम को पाँच बजे मुझे बाज़ार ले गई, वहाँ पर उन्होंने मेरे लिये खरीदारी की। उन्होंने मेरे लिए वह सब खरीदा जो कभी मां ने मेरे लिए कभी नहीं की थी। चाची ने मेरे लिये लाल रंग की सुंदर सी ब्रा और पैंटी खरीदी जो मेरे लिए सपना सा था। मैं तो अब तक सफेद रंग की साधारण सी ब्रा पैंटी पहनती आई थी। चाची ने एनी प्रेंच क्रीम खरीदी तो मेरे गाल शर्म से सुर्ख हो गए क्योंकि मैंने अभी तक उसे बाल साफ करने में कभी उपयोग नही किया था। इसी के साथ चाची ने मेरे लिए कुछ सौंदर्य प्रसाधन खरीदे, जो हर जवान लड़की की पसंद होती है लेकिन मेरे घर मे इसे महंगा शौक समझा जाता था। सच कहूं प्रशांत सर, उस दिन मैं बहुत खुश थी।
हम लोग करीब छः बजे घर पहुँचे तो चाची ने कहा, "सुनो अर्पिता, बाहर धूप से हम लोग आए है, चलो नहा लेते है। मैं आज तुम्हे नहलाती हूँ।"
चाची की बात सुन मैं सन्न रह गई, मैंने हकलाते हुए चाची से कहा, "अरे चाची, मैं इतनी छोटी थोड़े ही हूँ! मैं नहा लुंगी।"
इस पर चाची ने कहा, "हां मालूम है कि छोटी नही है लेकिन तुझे अभी बड़ी होना भी नही आया है। तुमने तो आज तक अंदर के बाल ही साफ़ नही किये है, आज पहली बार तुझे साफ करना सीखा दूंगी, फिर तुम खुद ही कर लोगी।"
चाची ने बाथरूम में मेरे साथ ही नहाया। मैं कपड़े पहने ही पहने नहा रही थी लेकिन चाची पेटीकोट पहने नहाने अंदर आगई थी। उन्होंने मुझे घूरा और एक झटके में उन्हीने अपना ब्लाउज और ब्रा उतार कर, अपनी नंगी चुंचिया खोले खड़ी हो गई। उनको बिना शर्म के नंगा होता देख मेरी तो सांस ही अटक गई। चाची की बड़ी बड़ी चुंचिया थी और उन्हें देख कर मुझे अपने पर ही, अपनी छोटी छोटी चुंचियों को लेकर शर्म आने लगी थी। चाची मुझे घबड़ाया देख कर मेरे पास आई और बोली, "बेवकूफ मुझे तेरे से क्या शर्म? अभी तेरे देह में मांस नही लगा है इसलिए अभी तेरी अमिया है, आज गुठली पड़ जाएगी तो मेरी तरह दशहरी आम हो जायेगे।"
यह कहते हुए चाची ने गीले कुर्ते के ऊपर से ही मेरे चुंचियों को दबा दिया। उनके दबाते ही मेरे शरीर मे करंट दौड़ गया और मैं वही बाथरूम में बैठ गई। चाची ने मुझे बैठा देख, मेरी पीठ सहलाई और ऐनी फ्रेंच कैसे इस्तमाल करना है बताने लगी। मैं, तो उनकी बार सुन कर जहां शर्म से गड़ी जारही थी वही पर, मेरे शरीर मे अजीब से सरसराहट होने लगी थी। मैंने जीवन मे इससे पहले ऐसा कभी अनुभव नही किया था। चाची अब बेशर्म हो कर, मुझे दिखलाते हुते, क्रीम को, पेटीकोट के अंदर ही अपनी चूत में लगाने लगी और बताती रही कि कितनी देर लगाए रखना है और कैसे बालो को हटाना है। उनको देख और उनकी बात सुन कर तो मेरे दिमाग के सारे फ्यूज उड़ गए थे। मेरे सामने ही चाची ने मेरी तरफ पीठ करके अपनी चूत से बाल हटाये और फिर नहा कर, गीला पेटीकोट वही उतार कर, नया पेटीकोट सीने पर लगाये, "आगे जाकर तुम्हे लड़की के सारे काम सीखने पड़ेंगे।" कहते हुए निकल गई।
उनके जाने के बाद मैंने कांपते हाथों से अपनी चूत पर बाल साफ करने के लिए क्रीम लगाया तो मेरी चूत फुदक पड़ी। आज तक मेरी चूत में इस तरह का संचार नही हुआ था। नहा कर मैंने नई ब्रा और पेंटी पहनी जो चाची बाथरूम की खूंटी में टांग गई थी। उसको पहन कर मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा था क्योंकि इससे पहले मैंने कभी इस तरह की ब्रा पहनी ही नहीं थी और नीचे पैंटी भी नयापन दे रही थी क्योंकि मेरी चूत बिल्कुल सपाट हो चुकी थी और बाल हटने के कारण थोड़ी खुजली भी हो रही थी।
मैं तैयार हो कर, चाची के बैठकखाने में बैठी तब लगभग साढ़े सात बजे चाची मेरे पास आई और कहा, "मैं तुम्हें आज जीवन का सबसे बड़ा और मधुर पाठ सिखाऊँगी।"
मैं चाची की बात सुनकर उनकी तरफ उत्सुकता से देखने लगी तो उन्होंने कहा, "मैंने आज तुम्हारे लिए सुंदर तैयारी कर रक्खी है।"
फिर उन्होंने अपने शादी का एल्बम निकाला और अपनी शादी के खूबसूरत फोटो को मुझे दिखाते हुए कहा, "आज मैं तुम्हें दुल्हन बनाऊँगी।"
मुझे उनकी इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ था लेकिन मन में गुदगुदी भी हुयी थी। आखिर कौन ऐसी जवान होती लड़की होगी जिसे दुलहन का श्रंगार करना अच्छा नही लगता होगा? मेरे मन मे भी फुलझड़ियां जलने लगी थी और मैं चाची की बात मान गई।
चाची मुझे अपने बेडरूम में ले गई और वहां मुझे, उनकी शादी का अपना जोड़ा पहनाया। उन्होंने ड्रेसिंग टेबल पर बैठा कर दुल्हन वाला श्रंगार किया। वो मुझे तैयार करती जारही थी और साथ मे यह कहती जारही थी कि मैं कितनी सुंदर लग रही हूँ। यह सब एक सपने की तरह होता जारहा था। एक तरफ यह सब बड़ा अजीब लग रहा था तो दूसरी तरफ चाची की बाते और दुल्हन की परिकल्पना से दिल धक धक भी कर रहा था। सच तो यह प्रशांत सर, इस सब मे मुझे बड़ा मजा आ रहा था।
चाची ने मुझे तैयार करने के बाद कहा "मेरी बन्नो रानी, शादी की पहली रात यानि ‘सुहागरात’ सबसे प्यारी होती है। दुनिया मे हर लड़की इस रात के लिये तड़पती है, जिंदगी का सबसे बड़ा सुख इस दिन ही मिलता है।"
मुझे चाची की पूरी बात तो नही समझ में आई लेकिन मेरे अंदर एक खलबली जरूर मची हुयी थी।
उन्होंने फिर धीरे से फुसफुसाते हुए कहा, "अर्पिता क्या तुम वो मजा लेना चाहोगी? इसमें थोड़ा दर्द होता है, पर मजा भी बहुत आता है। मैंने तो तुम्हारी उम्र के आते आते यह मजा कई बार चखा था और आज भी हर रात चखती हूँ। क्यों बन्नो, मज़ा लोगी?"
चाची की बात में इतनी कशिश थी और एक जादू से था कि मैंने तुरंत हाँ कर दी।
मेरी हां सुनते ही उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और माथा चुम लिया। फिर वो मुझे, सुहागरात में दुल्हन किस तरह बैठती है, कैसे अपने पति को बादाम का दूध पिलाती है, फिर कैसे शर्माती है, ये सब बताने लगी और साथ मे यह भी कहा, "आज तुमसे, इसका प्रैक्टीकल भी करवाऊँगी।"
मुझे उनकी बातों में रस तो आरहा था लेकिन कुछ समझ भी नहीं आ रहा था।
चाची ने फिर कमरे को सजाया, कमरे में गुलाबजल छिड़का और बिस्तर पर इत्तर लगाया। उधर चाची यह सब कर रही थी और इधर शादी के जोड़े में मुझे बड़ी गर्मी लग रही थी लेकिन मैं फिर भी चुप रही क्योंकि मुझे कुछ नया सीखना था। उन्होंने बाद में मुझे बेडरूम में पलंग पर घूंघट लेकर बिठा दिया।
थोडी देर में वहाँ बैडरूम में मैनेजर चाचा आ गये, उन्होंने भी नया कुरता पैजामा पहना हुआ था। आज वो बिल्कुल ही अलग लग रहे थे। उन्हें आया देख मैं विचलित हो गई थी। मैं वहां एक नकली दुल्हन बनी किसी नाटक की पात्र बनी बैठी थी लेकिन मैनेजर चाचा के आने से एक अनजाने से डर में कांप उठी थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझ पर कोई सम्मोहन हो गया है, जो हो रहा है वह सब सपना है लेकिन फिर भी वास्तविकता चेतना में बसी हुई थी। आगे क्या होगा उसका भय मुझमे समाये जा रहा था लेकिन एक अनजाने सुख की अभिलाषा और उसको जानने की उत्कंठा में, मैं समय के साथ बही जारही थी। तभी पीछे से एक सुंदर सी नाइटी पहने हुए, हाथ में कैमरा थामे चाची भी कमरे में आगई और मुझ से बोली, "हर लड़की के जीवन का सबसे स्वर्णिम पल यही है, वह तुम्हे अर्पिता आज निछावर है। आज का दिन उसके जीवन का सबसे बड़ा इम्तिहान होता है। तुम मेरी तरह भाग्यशाली हो जिसे इस रात की प्रैक्टिस करने का मौका मिल रहा है और ये तुमको अपनी सुहागरात ही नही बल्कि उसके बाद कि हर रात को सुहागरात ही बनाने का सौभाग्य देगा।"
यह कहते हुए चाची मेरे पास आगई और उन्होंने मेरा घूंघट उठा कर मुझे चूम लिया। फिर मेरे हाथ में तीन गोलियाँ रख कर कहा, "यह लाल गोली तुम को बड़ा रिलैक्स करेगी और साथ मे तुम्हारे अंदर उमंग पैदा करेगी और जो बाकी दो गोली है वो तुम्हें दर्द महसूस नहीं होने देगी।"
चाची ने मुझे जो दो गोली दी थी उससे मेरी धड़कन बढ़ गई थी लेकिन मैंने चाची की दी हुई गोलियाँ, बिना कुछ कहे दूध के साथ ले ली और आगे क्या होगा की प्रत्याक्षा में पलंग पर घूंघट लेकर बैठ गई।
तभी अचनाक से चाचा जी का हाथ मेरे कंधे पर पड़ा और वो मुझे प्यार से सहलाने लगे। चाचा के सहलाने से जैसे मेरे बदन में मानो बिजली दौड़ गई। मुझे घूंघट के कारण कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन सुनाई सब पड़ रहा था। चाचा चाची से कुछ फुसफुसा रहे थे और चाची हंस रही थी। उन्होंने हंसते हुए चाचा से कहा, "सुनो जी, फ़ूल सी गुड़िया है मेरी अर्पिता बिटिया, धीरे से करना, वैसे मैंने इसे गर्भ निरोधक गोली और पेन किलर भी दे दी है।"
चाची ने जब गर्भ निरोधक गोली की बात कही तो मेरे अंदर एक तूफान सा उठ खड़ा हुआ। मुझे भले ही स्त्री पुरुष के बीच गर्भ धारण की व्यवहारिक जानकारी नही थी लेकिन उसकी व्यवहारिक जानकारी चाची कराने जा रही है, यह समझ आने लगा था।
थोड़ी देर कमरे में शांति रही फिर ऐसा लगा जैसे चाचा अपने कपड़े उतार रहे है। मैं डर और आकांशा में कांपने लगी थी। तभी चाचा ने धीरे से उन्होंने मेरा घूँघट खोला और वो बोल पड़े, "बहुत सुंदर, अर्पिता बिलकुल परी हो!"
उनकी आवाज़ सुन कर मैंने जो अपना चेहरा ऊपर किया तो देखा चाचा अंडरवियर में सामने बैठे है। मैं सहम गई और डर के आंखें बंद कर ली। मैनेजर चाचा ने मुझे बड़े प्यार से मेरे माथे को और फिर गालों को चूमा और उनके होंठो की गर्मी से मेरा शरीर झनझना गया था। आज से पहले मुझे इस तरह की कोई भी अनुभूति नही हुई थी। मैं बिल्कुल सन्नगन, वैसे ही बैठी रही, जैसे मुझे किसी अदृश्य शक्ति ने जकड़ लिया है। फिर चाचा ने मेरी मांग बिंदी हटा दी, कान के बूंदे और गले का मंगल सूत्र भी निकाल कर हटा दिया।
उसके बाद उन्होंने चाची को मेरी नथ निकालने को कहा, जिस पर वे हंसी और उन्होंने बड़े प्यार से मेरी नथ निकाल दी।
अब चाचा धीरे धीरे मेरे पूरे बदन को छू रहे थे, उनके स्पर्श से मुझे जहां बेचैनी हो रही थी वही पर मुझे गुदगुदी भी हो रही थी। मेरे बदन को सहलाते सहलाते अचानक चाचा ने अपना हाथ, ब्लाउज के ऊपर से ही मेरी चुंचियों पर रख कर दबा दिया। चाचा के हाथ से मेरी चुंचियों के दबते ही मेरी रीढ़ की हड्डी में सिहरन होने लगी। चाचा ने, मेरी चुंचियों को सहलाते हुए चाची से कहा, "इसकी चुंचियाँ तो बड़ी कड़ी है, लगता है अभी तक किसी ने दबाई नही है"
चाची ने हंसते हुए कहा, "बन्नो रानी की चुंचियाँ क्या बिल्कुल ताज़ा नीबू है, आप के लिए छोड़ रक्खा है, इसे संतरा आप को बनाना है।"
एक तो चाचा चाची की बाते और दूसरा चाचा की हथेली से मसलती हुई चुंचियों ने मेरे कान गर्म कर दिए थे। मेरे अंतरंग अंग आज से पहले किसी ने नही छुए थे, इसलिए मेरे शरीर मे उससे उठ रही अनुभूतियों से मैं बिल्कुल बेहाल हो रक्खी थी। मैं जानती थी कि यह सब ठीक नही है लेकिन चुंचियों के दबने से जो मेरी चुंचियों में कड़ापन आया, उससे जो सुख मिल रहा था, वो कही न कही मुझे अच्छा भी लग रहा था। तभी चाची ने चाचा से कहा, "सुनो, क्यों अर्पिता को परेशान कर रहे हो, लाओ उसे मैं आराम दे दूं।"
यह कहते हुए, चाची ने मेरे ब्लाउज का पीछे से हुक खोल दिया। मैं चाची से, "क्या? क्या?" कहती रह गई और चाची ने मेरा ब्लाउज झट से खींच कर अलग कर दिया। मैं बिना ब्लाउज के अपने मे सीमिट गई और चुनरी को कस के अपने बदन से लपेट लिया। मुझे ऐसा करते देख, चाची ने मुझे बाहों में ले लिया और मेरे माथे को चूमती हुई बोली, "बन्नो रानी, बहुत सुंदर लग रही हो।"
मैं अंदर से बुरी तरह घबड़ाई हुई थी लेकिन चाची को मुझे इस तरह बाहों में लेना और चूमना मुझे हिम्मत दे गया था। चाची ने फिर चाचा की तरफ इशारा किया तो मैनेजर चाचा ने मेरे दोनो हाथ पकड़ कर मुझे खड़ा दिया और मेरा घाघरा खोल दिया। चाची का घाघरा भारी था, इसलिए खुलेते ही नीचे सरक गया। यह सब इतने अचानक हुआ कि जब मैंने उसे पकड़ने की कोशिश की तो चाची ने तुरन्त मेरे हाथ को पकड़ लिया। मैंने घबड़ा कर चाची की ओर देखा तो वो मुस्करा रही थी। मैं जब तक कुछ और समझती चाची ने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और उसके खुलते ही मैं चिल्ला पड़ी, "चाची ये क्या!"
इस पर चाची ने तीखी आवाज़ में कहा ,"चुप रहो, सुहागरात में ऐसा ही होता है।"
मैं अब केवल ब्रा और पेंटी में खड़ी थी और मैने शर्म से अपना मुँह हाथ से ढक लिया। मुझे इस तरह अधनंगी होने पर शर्म तो आ रही थी लेकिन चाची ने जो मुझे गोली दी थी उससे मेरे शरीर मे उत्तेजना हिलोरे भी खा रही थी।
चाचा, पहले मुझे ऐसे ही बिना पलक झपकाए देखते रहे फिर उन्होंने मुझे बाहों में अपनी भर लिया और जोर से अपने सीने से जकड लिया। मेरी ब्रा में बंद चुंचियाँ, चाचा के नंगे सीने में घुस गई और चाचा अपना सीना ऊपर नीचे करते हुए मेरी चुंचियों को रगड़ने लगे। चाचा के ऐसा करने से मुझे अपने निप्पल्स कड़े और फूलते हुए लगने लगे और मेरे शरीर मे सिहरन बढ़ने लगी थी। चाचा मुझे अपनी छाती से चिपकाए हुए मेरे शरीर को अपने हाथों से सहलाते जारहे थे कि तभी चाची बीच मे आगई और हाथ मे पकड़ी हुई कटोरी से एक रसगुल्ला निकाल कर मेरे मुँह में डाल दिया। मुझे बड़ा यह अजीब लगा कि अभी चाचा तो मुझे चिपकाए मेरे शरीर को सहला रहे और अब चाची ये रसगुल्ला खिला रही है? मैं इसी उधेड़बुन में रसगुल्ला खा रही थी कि चाचा ने मुझे कंधे से पकड़ कर, सजे हुए पलँग पर लिटा दिया। चाचा भी पलंग पर मेरे बगल में आगये और फिर मुझे निहारते हुए मेरे पैर की तरफ बैठ गए और एक झटके में उन्होंने मेरी पैंटी को मेरी टांगो से खींच के निकाल दिया।
मैं पैंटी उतारे जाने से बिल्कुल डर गई थी।
चाची ने मेरा चेहरा पढ़ लिया थी कि मैं डर गई हूं तो वो मुझे बाहों में लेकर, मेरे बगल में लेट गई और पुचकारते हुए, मेरे कंधे, पीठ को थपथपाने लगी। चाची के ऐसे करने से मैं थोड़ी सहज हुई तो चाची ने मेरी ब्रा निकाल के फेंक दी। मुझे पता चल रहा था कि चाची मेरी ब्रा उतार रही है लेकिन पता नही मेरा दिमाग सुन्न हो गया था कि मैं उनको रोक भी नही पा रही थी।
मै नंगी हो चुकी थी। मैंने कस के अपनी आंखें बंद कर ली थी, मेरा शरीर काँप रहा था और मेरा गला सूखा जारहा था। तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ की जैसे मेरी चूत पर कुछ रेंग रहा है। मैंने अचकचा के अपनी आँखे खोल दी तो सामने देखा की चाचा मेरी टांगों के बीच झुके है और मेरी चूत पर अपनी जीभ रखे हुए है। ऐसा कुछ, मेरी चूत पर पहली बार हो रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे सैकड़ो कीड़े मेरी चूत पर रेंग रहे हों। मै बेहद घबड़ा गई थी लेकिन न जाने क्यों अपनी चूत पर चाचा की रेंगती जीभ से मेरे अंदर जो एहसास पैदा हो रहा था वो मुझे अच्छा लग रहा था। तभी मैं चौंक गई जब चाची मेरे ऊपर झुक गई और उन्होंने मेरी चुंची को अपने मुंह मे भर लिया और उसे चूसने लगी।
मै, अपनी दो अंतरंग जगहों पर हुए इस दोतरफा आक्रमण और उससे मेरे शरीर मे हो रहे अंजाने एहसास को लेकर परेशान हो गई और कुनमुनाने लगी थी। मुझे हाथ पांव हिलाते हुए देख, चाची मेरी चुंची को चूमते हुए बोली, "ऐसा ही होता है सुहागरात में! चुप रहो और मजे लो।"
चाची के झिड़कने से मैं थोड़ा सहम गई थी लेकिन समझ ही नही आरहा था कि चाची के होंठो से चूसी जारही चुंची से उठ रहे उबाल को संभालू या फिर अपनी चूत में चल रही चाचा की जीभ से उमड़ रही मजे की तरंगों को अपने अंदर समेट लूं। मैं तड़प उठी थी। चाची मेरे निप्पल्स से खेल रही थी और चाचा, मेरी कुंवारी सपाट चूत के छेद में अपनी जीभ से घुमा रहे थे। मेरे शरीर को चाचा चाची छेड़ रहे थे और मैं उनकी इस छेड़छाड़ से बेसुध हो रही थी। थोड़ी देर बाद, चाचा ने अपनी जीभ मेरी चूत से हटा ली और मेरे दोनों पैरों को ऊपर उठा दिया। मुझे समझ नही आया कि ये क्या हो रहा कि तभी चाची ने फिर एक अजीब हरकत की और एक रसगुल्ले के रस को मेरी चूत में निचोड़ दिया।
रसगुल्ले का शीरा जब मेरी चूत में पड़ा तो मुझे बहुत गुदगुदी हुई। अब चाचा फिर मेरी टांगों के बीच घुस गए और अपनी जीभ से, मेरी चूत में पड़े उस शीरे को चाटने लगे। वो मेरी चूत से रसगुल्ले का शीरा चाट भी रहे थे और बीच बीच मे मेरी चूत को चूसने भी लगते थे। मैं छटपटाये जा रही थी और अपने पैर इधर उधर फेंक रही थी। एक अजीब तरह का तूफान मेरी टांगों के बीच उमड़ रहा था। मैं चाचा की जीभ हटाना भी चाहती थी और जो कोहराम मेरे अंदर मच रहा था, वह अंजाना होते हुए भी मुझे अच्छा लग रहा था। इसी बीच चाची को न जाने क्या सूझी की उन्होंने मेरी चुंचियों पर रसगुल्ला रगड़ दिया। उन्होंने जब रसगुल्ला मेरे निप्पल्स पर रगड़ा तो मुझे ऐसी सनसनी हुई कि मेरे मुंह से "आईईई" की आवाज निकल पड़ी। चाचा ने मेरी आवाज सुनकर, अपना मुंह मेरी चूत से हटा लिया और सीधे आकर मेरी छोटी सी चुंचियों पर पिल पड़े। मैनेजर चाचा पूरी उत्तेजना में मेरी चुंचियों को चाटने लगे और मेरे निप्पल्स को चुसने लगे। चाचा इतनी उत्तेजना में मेरी चुंचियों को चाट और चूस रहे थे कि मेरे मुंह से सिसकिया निकलने लगी थी। चाचा मेरी सिसकियों से न जाने इतने उत्तेजित क्यों हो गए कि उन्होंने मेरे नाजुक निप्पल्स को अपने होंठो में दबोच कर कस के चुसने लगे। वो बड़े वहशी हो गए थे और उन्होंने अपने दांत भी मेरी नाजुक चुंचियों पर गड़ाने लगे थे। मैं दर्द कराह पड़ी।
मेरी कराहट सुन कर चाची ने कहा, "बन्नो रानी, गोली खाई है, दर्द ठीक हो जाएगा।"
फिर चाची ने मुझे, पलंग से उतार कर जमीन पर बैठ दिया लेकिन चाचा, पैर नीचे किये हुए, पलंग पर ही बैठे रहे।
फिर चाची ने मुझे चूमते हुए कहा, "आज मैं तुम्हे लंड चूसना सिखाती हूँ।"
उनकी इस बात पर, मैंने चौक कर चाची की तरफ देखा लेकिन चाची ने मेरी तरफ कोई ध्यान नही दिया और उन्होंने, चाचा का अंडरवियर नीचे खीच दिया। जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, चाचा का बड़ा सा लंड फ़ुफ़कारता हुआ बाहर निकल आया। मै तो उसको देख कर ही हड़बड़ा गयी। मैंने लड़को के लंड, इधर उधर, सड़क पर पेशाब करते हुए देखे थे लेकिन ये तो बिलकुल ही उनसे अलग था। मै लंड देख कर बुरी तरह घबड़ा गयी थी। अजीब से दहशत मेरे दिल में भर गयी थी लेकिन उसी के साथ मेरी सांस भी भारी चलने लगी थी।
चाचा का लंड बाहर निकाल कर, चाची भी मेरे बगल जमीन पर बैठ गई और उन्होंने चाचा का लंड अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगी। वो उसको ऐसे चूस रही थी जैसे वो कोन आइसक्रीम खा रही हों। मुझे यह देख कर हैरत भी हो रही थी और उबकाई भी आ रही थी। थोड़ी देर बाद चाची ने, चाचा का लंड अपने मुंह से निकाल दिया और उन्होंने मुझसे वैसे ही करने को कहा तो मैंने सर हिला कर मना कर दिया।
मैंने जब उनके बार बार कहने पर भी चाचा का लंड मुंह मे लेने से मना कर दिया तो, चाचा ने चाची से कहा, "तुम भी बड़ी जल्दबाजी करती हो! अर्पिता बिटिया के लिए नया है, जब चॉकलेट खिलाओ तब मानेगी।"
चाचा की बात सुन कर, चाची ने बगल की ड्रावर से कैडबरी की मिल्क चॉकलेट निकाली, जो फ्रिज के बाहर रक्खे रक्खे थोड़ा मुलायम हो गई थी, उसे उन्होंन चाचा के लंड पर ढेर सारा लगा दिया और मुझसे कहा, "बन्नो रानी, इसे चॉकलेट समझ कर चूसो! तुम्हे बड़ा मजा आयेगा।"
मेरा सर भन्ना रहा था लेकिन चाचा के लंड से लिपटे चॉकलेट ने मेरे अंदर एक अलग तरह की उत्सुकता जगा दी थी क्योंकि मुझे चॉकलेट बहुत पसंद थी और बहुत कम बार, खाने को मिलती थी। मैं चाची के बार बार कहने पर भी वहीं दुविधा में बैठी ही रही लेकिन मैंने न न करने वाला सर हिलाना बंद कर दिया था।
यह देख कर, चाची ने चाचा का लंड अपने हाथ से पकड़ कर, मेरे होंठो पर लगा दिया। चाचा का लंड मेरे होंठो पर लग गया था लेकिन चाची की तरह उसे मुंह मे लेने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी। अपनी आंखों और मुंह के सामने इतनी नजदीक से चाचा के काले भुजंग लंड को देख कर मुझे दहशत हो गई थी। मैं ठीक से सांस भी नही ले पा रही थी। जब मैंने कुछ नही किया तो चाचा मेरे होंठो पर अपने लंड का सुपाड़ा रगड़ कर, मेरा मुंह खोलने की कोशिश करने लगे। उनके ऐसा करने से, मुझे चाचा के लंड पर लगे चॉकलेट का स्वाद आने लगा। लंड पर लगा चॉकलेट मेरे होंठो पर लगा तो अनायास ही मेरी जीभ उसको चाटने निकल पड़ी और मेरा हल्के से मुंह खुल गया। चाचा ने मौका देखा और जोर लगा कर लंड को मेरे मुँह ने डाल दिया। उनके लंड पर चॉकलेट लगा था जिससे, उनका लंड सटाक से मेरे मुंह के अंदर फिसल गया। मेरे मुंह मे जैसे ही लंड घुसा मेरा मुंह ही भर गया, मुझे लगा जैसे मेरे मुंह मे कोई खम्बा घुसेड़ कर बंद कर दिया गया है। मेरी आँखें चौड़ा गई थी और आंसू भी आगये थे। मेरा यह हाल देख कर चाची, मेरा सर सहलाने लगी और मैनेजर चाचा से बनावटी गुस्से में बोली, "अजी क्या करते हो? प्यार से! ये मेरी तरह खेली खाई थोड़ी है जो सुहागरात में गप्प से लंड मुंह मे ले ले! प्यार से बन्नो को दो, पहली बार लंड चख रही है।"
चाची की बात सुनकर, चाचा ने एक हाथ से मेरे चेहरे को और दूसरे से मेरे सर को सहलाने लगे और थोड़ी देर ऐसे ही मेरे मुंह मे लंड डाले बैठे रहे। मुझे अब उनके लंड पर लगे चॉकलेट का स्वाद आने लगा और अनायास ही मेरी जीभ उस चॉकलेट को चाटने लगी थी। यह देख कर चाचा अपने लंड को मेरे मुँह में धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगे। मुझे उस चॉकलेट को चूसते चूसते ही उसके स्वाद में बदलाव महसूस होने लगा था। अब चॉकलेट कम हो गयी थी और वो लंड मेरे मुंह बहुत बड़ा हो गया था। इसी के साथ चाचा ने मेरे सर को सहलाना छोड़ दिया और मेरे बाल को पकड़ कर उपने लंड को मेरे मुंह मे अंदर गले तक डालने लगे थे। मेरी घिघि बंधी हुई थी और मुझे सांस लेना मुश्किल हो रहा था।
चाचा जब तेज़ी से मेरे मुंह मे अपना लंड डाल कर अंदर बाहर करने लगे और उससे मेरी आँखें जब निकलने लगी तो चाची ने अपने हाथों में मेरी चुंचिया ले ली और उसे दबाने और चुसने लगी थी। चाची के ऐसा करने से, मुझे अंदर कुछ कुछ होने लगा था। चाची मेरी चुंचियों से ज्यादा मेरे निप्पल्स चूस रही थी जिससे मेरा शरीर झनझनाने लगा था और मेरी चूत में सिहरन उठने लगी थी।
तभी चाचा ने कहा, "मैं झड़ने वाला हूँ!"
इस पर चाची ने मेरी चुंची चूसते हुए, लहराते हुए कहा, "अंदर ही झड़ जाओ न।"
और उसके कुछ ही पल बाद मेरे मुंह मे कुछ गरमा गरम गाढ़ी मलाई ऐसी चीज तेज़ी से मेरे मुँह में भर गई, जो मेरे गले तक पहुँच गई। मुझ को ऐसा लगा जैसे मेरे मुंह मे बाढ़ का पानी भर आया और उसे संभाल नही पाऊंगी। मुझे तो उल्टी आने लगी थी। मुझे लगा कि मैं उलटी कर दूंगी लेकिन चाची जी ने मेरा मुंह पकड़ लिया और मुंह से चाचा का लंड नही निकालने दिया। मैं उगलना चाहती थी लेकिन चाची मेरा मुंह पकड़े हुए मुझसे बोली, "यह अमृत है पगली! गिरा मत! पी ले!"
इतनी देर से मेरा मुंह बंद रहा था की मैं अब उसे मुंह मे भरा नही रख पा रही थी तो मैंने मजबूरी में उसे गटक लिया। वो गाढ़ा सा जो चाचा के लंड से निकला था वो अजीब सा नमकीन सा था। उसको, जिसे मैं तब नही जानती थी कि वो लंड से निकलने वाला वीर्य होता है, अपने गले के नीचे उतारते हुए मुझे बड़ी घिन्न आयी थी। जब मैं वीर्य को गटकने लगी तो चाची ने, चाचा के लंड के साथ मेरे मुंह को चूमते हुए मुझसे कहा, " इसके बाद अब तुम्हारा आखिरी इम्तिहान होगा। इसमें तुम्हे पास होना ही है, नहीं तो लड़की की जिंदगी बरबाद हो जाती है।"
चाची की बात सुनकर, अब चाचा हंसते हुए खड़े हो गए और उन्होंने मेरे मुंह से अपना लंड निकाल लिया। फिर उन्होंने अपने हाथों में मेरा चेहरा लिया और मेरे होंठो पर अपने होंठ रख कर उन्हें चुसने लगे। चाचा ने फिर गज़ब किया और अपनी जीभ मेरे मुंह के अंदर डाल कर, अपने ही लगे हुए वीर्य को चाटने लगे। चाचा ने जब थोड़ी देर में मुझे छोड़ा तो चाची ने एक रुमाल से मेरे होंठो को साफ किया और हाथ पकड़ कर जमीन से उठा कर खड़ा कर दिया।
उसके बाद चाची मुझे बाहों में भर कर पलंग पर ले गई और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। वो खुद भी मेरे साथ मेरे बगल में लेट गई और मुझे चिपटाये हुए करीब 15/20 मिनिट लेटी रही। फिर चाची ने अपनी नाइटी फ़ौरन उतार दी। चाची पूरी मादर जात नंगी हो गई। चाची का सब कुछ बड़ा बड़ा था, बड़ी चुंचियाँ, मोटी कमर, भारी जाँघे, उन्हें देख कर पता नही क्यों मुझे बड़ा इत्मीनान हुआ। चाची ने पहले तो मेरी चुंचिया दबाते हुए, मेरे बदन को सहलाया और फिर अपना हाथ नीचे ले गई और मेरी चूत पर हाथ रख कर उसे सहला दिया। चाची के सहलाने से मेरी चूत में जैसे आग लग गई। मैंने बेचैन हो कर, अपनी टांगो को आपस मे जकड़ लिया। चाची का हाथ अभी भी मेरी चूत पर था और मेरी टांगो के बीच उनका हाथ फंस गया। चाची ने तब मेरी बांयी चुंची को अपने मुंह मे ले लिया और उनके चूसते ही मुझे सिहरन होने लगी। प्रशांत सर, मेरे साथ जो हो रहा था उससे मैं जहां घबड़ा रही थी वही पर मेरे अंदर वो सब तरंगे जो उठ रही थी, उसके साथ बहने से मैं नही रोक पा रही थी। मेरे साथ जो चाची जो कर रही थी वो मुझे अच्छा लग रहा था। वो जिस तरह से मेरी निप्पल्स को होंठो में लेकर चूसने लगी थी उससे मेरी सिसकारी निकलने लगी थी। चाची ने मेरी सिसकारी सुनकर, अपने हाथ की उंगलियों से मेरी क्लिट को दबा दिया। उन्होंने मेरी क्लिट को जैसे ही छुआ, मैं बुरी तरह कुनमुना गई। मुझे ऐसा लगा जैसे चाची ने मेरे किसी बटन को दबा दिया जिससे मुझे वो अनुभूति मिली जो आज तक नही हुई थी। चाची मेरे निप्पल्स को चूसते हुए मेरी क्लिट को रगड़ने लगी थी जिससे मेरे पैर सुन्न होने लगे और टांगे ढीली हो गई थी। चाची ने जब देखा कि मेरी टांगे ढीली हो गई है तो उन्होने अपने हाथ से मेरे दोनों पैरों को दूर-दूर कर फैला दिया।
चाची ने मेरी जाँघे सहलाते हुए मुझसे कहा, "बन्नो रानी, तुम मेरे निप्पल्स चूसो, जैसे मैं तुम्हारी चूस रही हूँ। सुनो, अब तुम्हारा आखिरी इम्तिहान है, उसे जरूर पास करना अर्पिता।"
यह कह कर, चाची ने अपनी बड़ी सी चुंची मेरे मुंह से लगा दी। चाची का निपल जैसे ही मेरे होंठो से छुआ, मेरे होंठ अपने आप खुल गए और उसको अपने मुंह मे ले लिया। मेरे मुंह मे जैसे ही निपल आया, मैं अपने आप उसे चुसने लगी और मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि मुझे चाची की चुंची चूसना अच्छा लग रहा था। मैंने जब चाची का निपल चूसना शुरू किया तो वो कोहनी के सहारे थोड़ा सा उठी और अपनी दोनों चुंची लिए मेरे मुंह पर झुक गई। चाची मेरी चुंचियों को चूसने लगी और मैं भी एक बच्ची की तरह उनकी चुंचियों को चुसने में लग गई। मैं चाची के साथ इतना व्यस्त हो गई कि मुझे पता ही नही चला कि कब चाचा मेरे पैरों की तरफ आगये थे। चाची मेरे ऊपर झुकी हुई थी इसलिए मुझे सिर्फ उनकी चुंचिया दिख रही थी और अपने पैरों की तरफ नही देख पा रही थी। तभी चाचा ने मेरी कमर के नीचे हाथ डाल कर उसके नीचे तकिया लगा दी। मैंने चौंक के चाची की तरफ देखा तो वो मुस्कराई और कस के मेरी चुंचियों को चुसने लगी। तभी मुझे महसूस हुआ कि चाचा ने मेरे पैरों को, और फैला कर उठा लिया है। मुझे उस वक्त एक अनजाने डर से घबड़ाहट होने लगी थी। मेरे साथ बहुत कुछ अजीब सा हो रहा था जो न मुझे समझ आरहा था और न ही उसको रोकने की हालत हो रही थी। तभी मुझे मेरी चूत पर एक गर्मा गरम दबाव महसूस हुआ, मुझे लगा कि चाचा ने अपना लंड मेरी चूत पर रक्ख दिया है। मैं उससे हड़बड़ा कर उठने लगी तो चाची ने मुझे जकड़ लिया और उठने नही दिया। तभी मुझे अपनी चूत पर चाचा की उंगली घूमती लगी और कुछ गीला सा लगा। वो मुझे बाद में पता चला कि चाचा ने उंगलियों से मेरी चूत में ग्लेसरिन लगाई थी। मैं जब तक अपनी चूत में नए गीलेपन को समझती, मैनेजर चाचा ने अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया और मै दर्द से बिलबिला पड़ी। मुझे अपनी चूत में गर्म रॉड के घुसने की जैसी अनुभूति से इतनी स्तंभित हुई कि मेरे मुंह के अंदर भरी हुई चाची की चुंची को काट लिया।
चाची के मुंह से कराह निकल गयी और उन्होंने चाचा से कहा, "क्या करते हो! धीरे से बच्ची है!"
यह कह कर चाची ने भी प्यार से, हल्के से मेरे निलप्स को काट लिया। चाची की बात पर चाचा रुक गए और मेरी चूत में घुसेड़े गए लंड को डाले हांफने लगे। तब चाची ने अपना हाथ मेरी चूत पर रख कर उसे सहलाया और फिर हंस कर, चाचा को कुछ इशारा किया और मेरे होंठों को उन्होंने अपने होंठों से चिपका दिया।
चाची ने जैसे मेरे होंठो को दबोचा, चाचा ने एक जोर का धक्का दिया तो उनका बड़ा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर चला गया। मैं दर्द से झटपटा पड़ी लेकिन चाचा ने 4/5 धक्के मार कर मेरी छोटी सी चूत में अपना लंड पूरा डाल दिया और मुझे पुचकारने लगे।
मैं जोर से चिल्लाई पर चाची ने अपने मुँह में मेरी आवाज दबा दी, मैं दर्द से तड़प रही थी।
तभी चाची मेरी चुंचियों को सहलाने लगी और मुझे समझाते हुए कहा, "अर्पिता बिटिया, तुम्हें माहवारी में जो हर महीने जो तकलीफ होती थी वो चाचा ने आज दूर कर दिया है, अब तुम्हें कभी तकलीफ नहीं होगी।"
फिर उन्होंने अपनी उंगली से मेरी चूत से निकले खून को मुझे दिखाते हुए, बेवकूफ बनाते हुए कहा, "यही वो गंदा खून है जो हर महीने तुम्हें तकलीफ देता था, बन्नो रानी अब थोड़ा और सह लो, सब ठीक हो जायेगा।"
उस वक्त तो चाची जो मुझे उल्लू बना रही थी, वह सब
सही लग रहा था, लेकिन आँख से आंसू निकल रहे थे और मैं दर्द से बेहाल हो रक्खी थी। उसके बाद चाची ने चाचा के लंड पर ढेर सारी ग्लेसरिन लगाई और मेरे आंसू पोछते और मेरे गाल को चूमते हुई कहा, "यह मलहम है, तेरे मैनेजर चाचा, इस को तुम्हारे अन्दर लगा कर, तुम्हारा इलाज कर देंगे, घबड़ा मत।"
इसके बाद चाचा मेरी चूत में बड़े धीमे धीमे, अपना लंड अंदर बाहर करने लगे। चाचा, रुक रुक के धक्के, धीमे से लगा रहे थे लेकिन मुझे तकलीफ हो रही थी। चाचा चाची दोनो ही मुझ पर जुटे हुए थे। चाची मेरे होंठ और चुंचियों को कस कस के चूस रही थी और चाचा बहुत आहिस्ते से अपना लंड मेरे चूत में अंदर बाहर कर रहे थे। कुछ देर बाद मुझे दर्द के साथ अपनी चूत में अजीब सी तरंग उठती हुई महसूस होने लगी। मुझे चाचा के लंड से मिल रहे दर्द के साथ अपनी चूत में अजीब सी आग लगी हुई, लगने लगी थी। चाचा ने करीब 5/6 मिनिट इसी तरह से किया और फिर उन्होंने अपना लंड निकाल लिया।
अब चाचा ने मुझे पलट कर, घोड़ी बनने को कहा ताकि वो मेरी चूत में अपने लंड से मलहम ठीक से लगा ले।
चाचा ने मुझे घोड़ी की पोज में किया और मेरे पीछे आगये। इस वक्त तक चाची की दी गई गोलियां मुझ पर पूरा असर दिखाने लगी थी। मेरे बदन में आग सी लगी हुई थी और जो चाचा चाची कर रहे थे वो मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था। चाचा ने पहले मेरी चूत को अपने हाथ से सहलाया और फिर अपने लंड का सुपाड़ा रगड़ने लगे। मुझे सुपाड़े का मेरी चूत पर रगड़ना बहुत भाया और मेरे अंदर पहली बार उसको अंदर लेने की इच्छा होने लगी थी। चाचा बडे अनुभवी थे, उन्हें मेरे मनोभाव समझ आगये थे। उन्होंने मेरी चूत को आहिस्ता आहिस्ता रगड़ा और फिर धीरे धीरे, अपना लंड, उसके अंदर डालना शुरू कर दिया। चाचा उधर मेरी चूत में अपना लंड घुसेड़ रहे थे और इधर मेरी नीचे लटकी चूचियों को, चाची ने फिर से सहलाना शुरू कर दिया था। अब मुझे दर्द तो हो रहा था लेकिन लंड का चूत के अंदर आहिस्ते से आना जाना मुझे मजा देने लग गया था। चाचा ने ऐसे ही धीरे धीरे मेरी चूत में 5/6 मिनट तक लंड को अंदर बाहर किया और साथ मे मेरी पीठ भी सहलाते रहे। इतना सब पर भी मेरे मुंह से सिसकी निकलना बंद ही नही हो रही थी। मुझे मजा तो आने लगा था लेकिन चाचा का लंड मुझे अभी भी दर्द दे रहा था।
फिर चाचा ने अपना लंड मेरी चूत से निकाल लिया और बिस्तर पर लेट गए। उन्होंने चाची से कहा, "सुनो, अर्पिता अब थक गयी होगी, उसकी टांगे भी मेरा वजन नही बर्दाश्त कर पा रही होगी, तुम इसको मेरे ऊपर ही आने दो।"
चाची ने मेरी चूंचियां छोड़ दी और मुझे चाचा के ऊपर आने को बोला। मुझे कुछ समझ में नही आया की चाची क्या कह रही है। चाचा ने मुझे कुछ न करते हुए देखा तो उन्होंने मेरी कमर को पकड़ के अपने ऊपर खीच कर लिटा लिया और मुझे चूमने लगे। फिर चाची ने चाचा का लंड पकड़ा और मुझे उनके लंड पर बैठने का इशारा किया। मैं जब चाची की बात नही समझ पायी तब चाचा मेरे नितंबो को पकड़ कर अपने लंड पर मेरी चूत को रगड़ने लगे जो मुझे अच्छा लग रहा था। फिर चाची ने बीच अपना हाथ घुसेड़ कर चाचा का लंड पकड़ लिया और वो मेरी चूत के ऊपर रगड़ने लगी।
थोड़ी देर बाद चाचा ने मुझ से एक बार फिर उनका लंड चूसने को कहा तो मैं इस बार खुद ही मान गई। मैं उनके ऊपर से उठ गई और उनका लंड मुंह मे लेकर आइसक्रीम की तरह चूसने लगी। मैं इधर चाचा का लंड चूस रही थी और उधर चाची प्यार से मेरे बालो को सहलाते हुए, अपने पैर से मेरी चूत को भी सहलाने लगी।
चाचा अपनी कमर उठा उठा के मेरे मुंह में लंड अंदर बाहर कर रहे थे और साथ मे बोलते भी जा रहे थे, "अर्पिता तू बड़ी मस्त है!"
"इतनी जल्दी लंड चूसना सीख गयी।"
"तुझे तो दिन रात चोदूंगा!"
चाचा मेरे लंड चूसने से सिसियाने लगे थे। मेरी भी हालत खराब हो रही थी क्योंकि चाची के पैर का अगूंठा, मेरी चूत के अंदर खलबली कर रहा था और उस खलबलाहट मे, मैं अनजाने में अपना कमर हिलाने लगी थी।
चाची ने जब यह देखा तो वो बोली, "सुनो, अर्पिता को मस्ती चढ़ने लगी है, अब चोद दो इसको।"
जैसे ही चाची ने ऐसा कहा, चाचा ने अपना लंड मेरे मुँह से निकल लिया और एक करवट लेकर मुझे बिस्तर पर गिरा दिया। वो तेजी से मेरे पैरों की तरफ आगये और उन्होंने मेरे पैरों को पहली की तरह फैला दिया। चाची ने तभी कहा, "अरे रुको! बन्नो रानी के नीचे पहले तकिया तो लगा दो, तभी तो अर्पिता बिटिया की चूत उभर के सामने आएगी और अपने पहले लंड का मजा ले पाएगी।"
फिर खुद ही चाची ने मेरे नितंबो के नीचे तकिया लगा दी और चाचा का लंड पकड़ के मेरी चूत के उपर रख दिया।
अब चाचा ने अपने लंड पर ढेर सारा ग्लिसरीन लगाया और मेरी चूत में एक जोर से धक्का लगाया और उस धक्के में, उनका पूरा लंड, मेरी चूत में समा गया। मेरे मुँह से "आईईई मम्मी! मर गयी!' की चीख निकल पड़ी। मेरे आंसू निकल आये थे और मैं चाचा को "न न! चाचा छोड़ दो! रोक दो!" कहते हुए चाचा को रोकने लगी लेकिन चाचा रुके नही, वो मेरी चूत में धक्के मारते रहे। उनका लंड इतनी जोर से मेरी चूत में घुस रहा था कि वो मुझे अंदर तक हिला दे रहा था। मैं मना कर रही थी और चाची मुझसे नंगी चिपटी जारही थी। वो मेरे बदन को चूमते और सहलाते हुए बड़बड़ा रही थी,
"चोद कसके इसको!"
"बहुत दिनों से परेशान था इसे चोदने को, कर ले इच्छा पूरी!"
"क्या कोरी निकली!"
चाचा केवल "हाँ हाँ" बोलते जारहे थे और साथ मे मुझे चोदते जा रहे थे। थोड़ी देर में, मुझे भी चुदवाने में मजा आने लगा था और मै हल्के से कमर उचका कर, चाचा के लंड का साथ देने लगी थी।
मेरी चूंचियां बेहद कड़क हो गई थी, निपल्स फूल गये थे। मेरे मुँह से "आह!! आह!! आई!!आई!!" की आवाजे भी निकलने लगी थी। तभी मुझे को लगा जैसे की मुझे पेशाब हो जायेगी और मेरे रोकते रोकते भी मुझे हो गयी। वह जैसे ही हुआ और मेरी चूत से कुछ निकला, मुझे नशा सा चढ़ गया। मेरी चूत से जो बहा उसके साथ मेरा सारा शरीर कांपने लगा और एक बिल्कुल ही नई तरह के सुख में डूब गई। मै पस्त हो गयी थी, एक धकान सी मेरे शरीर छा गयी और मेरा शरीर ढीला होगया। लेकिन इसका चाचा पर कोई फर्क नही पड़ा, वो तो चाचा रुकने वाले नहीं थे। उन्होंने उसके बाद मुझे चोदने की अपनी रफ्तार बढ़ा दी। मुझे कस कस के चोदने लगे। 15/20 धक्के के बाद उन्होंने चाची से कहा, "मेरा निकलने वाला है! क्या करूँ?"
चाची ने कहा, "अंदर गिरा दो, मैंने गोली दे दी है।"
चाचा का तभी चेहरा तन गया और "आआआआआआह!" कहते हुए मुझसे चिपट कर मेरे ही ऊपर गिर गए। उनके लंड ने गरम गरम वीर्य जोर से मेरे अंदर छोड़ दिया था। उनके वीर्य की गर्मी जैसे मेरी चूत के अंदर महसूस हुयी मैं एकदम से अकड़ गई और मुझे एक और अंजाना सा सुख मिलने लगा।
हम तीनो इस बुरी तरह से थक गए थे कि उसी हालत में हम तीनों उसी बिस्तर पर सो गए।
मैं रात भर सोती रही और सवेरे 8 बजे मेरी आँख खुली। मैने देखा की चाची मेरे बगल में दूध का ग्लास लेकर बैठी हुई हैं और वो ही मेरा चेहरा सहला रही थी। उन्होंने मुझे पुचकारते हुए उठाया और दूध का गिलास देते हुए बोली, "अर्पिता बिटिया कैसी हो? अच्छा लगा?"
मै चाची की तरफ देख के शर्मा गयी। मैं ठीक तो थी लेकिन मुझे अपने पैरों के बीच अभी दर्द सा महसूस हो रहा था तो मैंने चाची से कहा, "चाची वहां दर्द है।"
उन्होंने मेरा सर सहलाते हुए कहाँ, "पगली, पहली बार मे ऐसा ही होता है, आज रात तेरे सामने तेरे चाचा, मेरे साथ करेंगे और फिर तुम्हरी चूत मारेंगे, तब तुमको ज्यादा मजा आएगा."
मै उनकी बात सुन कर अंदर ही अंदर बहुत रोमांचित हो गयी और रात का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी। उस दिन, मैनेजर चाचा जब भी मेरे पास आते वो मुझे चिपका लेते और मुझे चूम लेते थे। प्रिंसिपल चाची भी मुझे बार बार गले लगा लेती थी। उस रात जल्दी ही सोने के लिए बैडरूम में आगये और फिर पूरी रात हमलोग नही सोये। मैं कितनी बार उस रात झड़ी मुझे याद भी नही है।
पूरे 3 दिनों तक मैनेजर चाचा प्रिंसिपल चाची मुझे दिन दोपहर रात चोदते रहे और चुदाई का सुख देते रहे। उसके बाद तो मेरे पिता जी और माँ, लखनऊ से वापस आगये तो चुदाई बंद हो गई। उनके आने के बाद तो मुझे इतनी खुली छूट नही मिली लेकिन जब भी मौका मिलता था चाची मुझे किसी बहाने से अकेले में बुलवा लेती और चाचा मुझे चोद देते थे। एक साल बाद ही मेरे माँ बाप का तबादला, वापस कानपुर सदर हो गया तो फिर मै मैनेजर चाचा और प्रिंसिपल चाची से कभी भी अकेले में नही मिल पाई। मैंने जो उनके साथ जो समय गुजारा उससे मुझे चुदाई की दुनिया का काफी पता चल गया था। प्रशांत सर, मुझे स्विनगिंग, पति पत्नी की अदला बदली के बारे में उन्ही से पता चला, वो यह सब भी करते रहे थे। साथ मे, चाची को नई लड़कियों को पटा कर, चाचा से अपने सामने चुदवाने में मजा आता था। मुझे उन्ही से पता चला कि मुझसे पहले 5 लड़कियों को चुदवा चुकी थी। अब पता नही वो लोग है या नही लेकिन मुझे आज भी उनकी याद आती है। उनसे मुझे कभी कोई नाराज़गी नही रही।
प्रशांत सर, आज से 21 वर्ष पहले की बात है, मैं अपने पिता जी और माँ के साथ, कानपूर से दूर, एक कस्बे घाटमपुर में रहती थी। मेरे माता पिता, दोनों ही तहसील में काम करते थे, में उनके साथ अकेली, घाटमपुर में ही रह कर पढ़ती थी। मेरे एक बड़े भाई भी थे लेकिन उनका एक वर्ष पहले ही रुड़की इंजीयरिंग कॉलेज में सिलेक्शन हो गया था, तो वे रुड़की में पढ़ रहे थे। प्रशांत सर, आज से 20 वर्ष पहले, 1980 का घाटमपुर, आज का घाटमपुर नही था, एक छोटा कस्बा था। उस समय मैं भी दुनियादारी से दूर, छल कपट, सेक्स इत्यादि से बिल्कुल ही अंजान थी। मेरे परिवार में ऐसा कोई वातावरण ही नही था कि बाहर की दुनिया का मुझे कोई संज्ञान हो। घर मे पढ़ाई का मौहोल था, फ़िल्म देखना या इधर उधर की मैगजीन या किताबे पढ़ना तो भैया के कारण बंद था।
मेरे माता पिता का 2 पूर्व ही, कानपुर सदर तहसील से तबादला, घाटमपुर तहसील में हुआ था और कोई सरकारी आवास न होने के कारण, घाटमपुर के एक गर्ल्स इंटर कॉलेज के मैनेजर साहब के घर में, हम लोग करायदारी में रहते थे। मैं दसवीं पास कर के घाटमपुर आयी थी और मैंने इसी कॉलेज में ग्यारवी में एडमिशन लिया था। मैनेजर साहब करीब 40 साल के रहे होंगे और उनकी पत्नी करीब 35 साल की थी और वे उसी स्कुल की प्रिन्सिपल थी। मैनेजर साहब और प्रिंसिपल साहिबा के कोई बच्चा नही था तो पूरे बड़े से मकान में हम 5 प्राणी ही रहते थे। इसीलिए हम दोनों परिवार आपस मे काफी घुल मिल गए थे। हमारे परिवार में इतना अपनापन था कि मै उनको चाचा और चाची कह कर पुकारती थी। वहां मेरे कॉलेज का समय इस तरह से था की मै जब अपने कॉलेज से लौटती थी तब अक्सर माँ और पिता जी दफ्तर में ही होते थे और इस लिए मेरी ज्यादा समय उनके साथ ही गुजरता था।
अब जो घटना बताने जारही हूँ वो तब हुआ जब मैं बारहवीं में थी। एक दिन जब मेरे छमाई के इम्तहान चल रहे थे, उसी बीच मेरे पिता जी को आदेश आया की रेवेन्यु बोर्ड, लखनऊ में एक पांच दिवसीय वर्कशॉप लगी है जिसमे मेरे माँ और पिता जी की उपस्थिति अनिवार्य है। यह जान कर मेरे पिता जी परेशान हो गए और उन्होंने काफी प्रयत्न किया कि मां को छुट्टी मिल जाये लेकिन शासन के कठोर निर्देश के कारण यह संभव नही हुआ। मेरे पिता जी चिंतित हो गए की वे कैसे इम्तिहान के बीच मुझे यहाँ अकेला छोड़ कर चले जाए।
मां की छुट्टी अस्वीकार हो जाने के बाद जब पिता जी देर शाम तहसील से वापस घर लौटे तो उन्होंने मैनेजर चाचा और उनकी पत्नी को अपनी समस्या बताई। इस पर प्रिंसिपल चाची ने पिता जी से कहा, "भाई साहब चिंता की कोई बात नहीं, आप और दीदी(मेरी माँ को दीदी कहती थी) जाये, अर्पिता बिटिया की देखभाल हम लोग कर लेंगे, बोर्ड का मामला है, इसका साल खराब नही होने देंगे।"
प्रिंसिपल चाची बात सुन कर मेरे माता पिता को चैन पड़ा और वे आश्वस्त होकर पांच दिवसीय वर्कशॉप में, माँ के साथ लखनऊ चले गये।
माता पिता के जाने के दूसरे दिन मेरा आखरी पेपर था, उस दिन पेपर देने जाने से पहले प्रिंसिपल चाची ने मुझसे कहा, "अर्पिता आज आखरी पेपर है, भगवान का नाम लेकर पर्चा लिख आओ, सब ठीक रहेगा। घर आने के बाद हम बाहर खाने जायेंगे।"
मेरा उस दिन का पेपर अच्छा हो गया था, बीच बीच में प्रिंसिपल चाची भी आकर मुझे देख जाती थी। मैं कॉलेज से लौटी तो मैंने अपने कपड़े बदले और घोड़ा बेच कर सो गयी। थोड़ी देर बाद चाची भी कॉलेज से लौट आई और आते ही उन्होंने मुझे आवाज दी, "अर्पिता मेरे कमरे में आजाओ मै आगयी हूँ।"
मैं उनके कमरे में गई तो चाची पलँग पर लेटी हुई थी। मैं उनके बगल में ही लेट गई तो चाची ने पूछा, "पेपर कैसा रहा?"
मैंने कहा, "बहुत बढ़िया!"
तभी चाची ने कहा, "यह तो सिर्फ कागजी इम्तिहान था, तुम्हें जिंदगी के इम्तिहान के बारे में पता है?"
मैंने कहा, "चाची मतलब? मुझे तो नहीं पता!"
चाची ने कहा, "दीदी ने तुम्हें कुछ नहीं बताया?"
मैंने कहा-, "नही!"
इस पर प्रिंसिपल चाची ने पूछा, "माहवारी के बारे में माँ ने कुछ बताया?"
मैं उनकी इस बात पर हड़बड़ा गई, चाची ने इससे पहले इस तरह की कोई बात मुझसे नही की थी। मैंने शर्माते हुए उनसे कहा, "हर महीने में मुझे बहुत तकलीफ होती है, लेकिन माँ ने इसके लिये कुछ भी नहीं बताया।"
तब चाची ने कहा, "तुम्हारी माँ बहुत व्यस्त रहती हैं, घर के साथ आफिस भी संभालना पड़ता है। उन्हें इसीलिए पता ही नहीं कि उनकी बेटी कब जी जवान हो गई है! बिटिया, लड़की को जीवन में बहुत सारी कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है, उसे अगर ठीक से पता न हो तो उसे पूरे जीवन में बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है।"
उनकी बात सुनकर मैं जब चुप होगई तो उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, "अगर तुम चाहोगी तो मैं तुम्हें इसके बारे में आने वाले दो तीन दिन में सब कुछ सिखा दूंगी और कोई फ़ीस भी नही लूँगी।"
प्रशांत सर, मैं भले ही 18 कि होने को थी लेकिन जैसे पहले बताया मैं पढ़ाई के अलावा हर चीज़ में बौड़म थी। मै प्रिंसिपल चाची की बातों को बिना पूरा समझे, यह सोच कर की कुछ नया सीखने को मिलेगा, झट से उनकी बात मान गई और हां कह दिया। उसके बाद मैं, चाची के साथ वही पर सो गई।
मैनेजर चाचा, शाम को जब घर आये तो प्रिंसिपल चाची ने मेरे सामने ही चाचा से कहा, "सुनिए, अर्पिता सब कुछ सीखना चाहती है, क्यों जी सीखा दे इसको?"
चाची की बात पर मैनेजर चाचा थोड़ा चौकें और फिर उन्होंने आँखों ही आँखों में प्रिंसिपल चाची से कुछ कहा तो वो बोली,"अरे! तुम अर्पिता बिटिया से ही पूछ लो! क्यों अर्पिता, बताओ अपने चाचा को?"
चाची के ऐसा कहने पर मैं थोड़ा असमंजस्य पड़ गई क्योंकि जहां चाची बड़ी उत्साहित लग रही थी वही पर मुझे मैनेजर चाचा में कुछ हिचकिचाहट सी दिख रही थी। मुझे लगा जैसे चाचा कुछ सोंच में पड़ गए है, तो मैंने निश्छलता में उनसे कहा, "चाचा हाँ ! आप दोनों मुझे सिखा दीजिए!"
मेरी बात सुनकर चाचा थोड़ा गंभीर हो गए और उन्होंने चाची की तरफ देखते हुये, मुझसे कहा, "अर्पिता मुझे सिखाने में कोई हर्ज नही है लेकिन शर्त यह है कि तुम अपने माता पिता को इसके बारे में कुछ नहीं बताओगी?"
उनकी यह बात मुझे अजीब तो जरूर लगी लेकिन कौतूहलता में, मैं उनकी बात मान गई।
चाची शाम को पाँच बजे मुझे बाज़ार ले गई, वहाँ पर उन्होंने मेरे लिये खरीदारी की। उन्होंने मेरे लिए वह सब खरीदा जो कभी मां ने मेरे लिए कभी नहीं की थी। चाची ने मेरे लिये लाल रंग की सुंदर सी ब्रा और पैंटी खरीदी जो मेरे लिए सपना सा था। मैं तो अब तक सफेद रंग की साधारण सी ब्रा पैंटी पहनती आई थी। चाची ने एनी प्रेंच क्रीम खरीदी तो मेरे गाल शर्म से सुर्ख हो गए क्योंकि मैंने अभी तक उसे बाल साफ करने में कभी उपयोग नही किया था। इसी के साथ चाची ने मेरे लिए कुछ सौंदर्य प्रसाधन खरीदे, जो हर जवान लड़की की पसंद होती है लेकिन मेरे घर मे इसे महंगा शौक समझा जाता था। सच कहूं प्रशांत सर, उस दिन मैं बहुत खुश थी।
हम लोग करीब छः बजे घर पहुँचे तो चाची ने कहा, "सुनो अर्पिता, बाहर धूप से हम लोग आए है, चलो नहा लेते है। मैं आज तुम्हे नहलाती हूँ।"
चाची की बात सुन मैं सन्न रह गई, मैंने हकलाते हुए चाची से कहा, "अरे चाची, मैं इतनी छोटी थोड़े ही हूँ! मैं नहा लुंगी।"
इस पर चाची ने कहा, "हां मालूम है कि छोटी नही है लेकिन तुझे अभी बड़ी होना भी नही आया है। तुमने तो आज तक अंदर के बाल ही साफ़ नही किये है, आज पहली बार तुझे साफ करना सीखा दूंगी, फिर तुम खुद ही कर लोगी।"
चाची ने बाथरूम में मेरे साथ ही नहाया। मैं कपड़े पहने ही पहने नहा रही थी लेकिन चाची पेटीकोट पहने नहाने अंदर आगई थी। उन्होंने मुझे घूरा और एक झटके में उन्हीने अपना ब्लाउज और ब्रा उतार कर, अपनी नंगी चुंचिया खोले खड़ी हो गई। उनको बिना शर्म के नंगा होता देख मेरी तो सांस ही अटक गई। चाची की बड़ी बड़ी चुंचिया थी और उन्हें देख कर मुझे अपने पर ही, अपनी छोटी छोटी चुंचियों को लेकर शर्म आने लगी थी। चाची मुझे घबड़ाया देख कर मेरे पास आई और बोली, "बेवकूफ मुझे तेरे से क्या शर्म? अभी तेरे देह में मांस नही लगा है इसलिए अभी तेरी अमिया है, आज गुठली पड़ जाएगी तो मेरी तरह दशहरी आम हो जायेगे।"
यह कहते हुए चाची ने गीले कुर्ते के ऊपर से ही मेरे चुंचियों को दबा दिया। उनके दबाते ही मेरे शरीर मे करंट दौड़ गया और मैं वही बाथरूम में बैठ गई। चाची ने मुझे बैठा देख, मेरी पीठ सहलाई और ऐनी फ्रेंच कैसे इस्तमाल करना है बताने लगी। मैं, तो उनकी बार सुन कर जहां शर्म से गड़ी जारही थी वही पर, मेरे शरीर मे अजीब से सरसराहट होने लगी थी। मैंने जीवन मे इससे पहले ऐसा कभी अनुभव नही किया था। चाची अब बेशर्म हो कर, मुझे दिखलाते हुते, क्रीम को, पेटीकोट के अंदर ही अपनी चूत में लगाने लगी और बताती रही कि कितनी देर लगाए रखना है और कैसे बालो को हटाना है। उनको देख और उनकी बात सुन कर तो मेरे दिमाग के सारे फ्यूज उड़ गए थे। मेरे सामने ही चाची ने मेरी तरफ पीठ करके अपनी चूत से बाल हटाये और फिर नहा कर, गीला पेटीकोट वही उतार कर, नया पेटीकोट सीने पर लगाये, "आगे जाकर तुम्हे लड़की के सारे काम सीखने पड़ेंगे।" कहते हुए निकल गई।
उनके जाने के बाद मैंने कांपते हाथों से अपनी चूत पर बाल साफ करने के लिए क्रीम लगाया तो मेरी चूत फुदक पड़ी। आज तक मेरी चूत में इस तरह का संचार नही हुआ था। नहा कर मैंने नई ब्रा और पेंटी पहनी जो चाची बाथरूम की खूंटी में टांग गई थी। उसको पहन कर मुझे थोड़ा अटपटा लग रहा था क्योंकि इससे पहले मैंने कभी इस तरह की ब्रा पहनी ही नहीं थी और नीचे पैंटी भी नयापन दे रही थी क्योंकि मेरी चूत बिल्कुल सपाट हो चुकी थी और बाल हटने के कारण थोड़ी खुजली भी हो रही थी।
मैं तैयार हो कर, चाची के बैठकखाने में बैठी तब लगभग साढ़े सात बजे चाची मेरे पास आई और कहा, "मैं तुम्हें आज जीवन का सबसे बड़ा और मधुर पाठ सिखाऊँगी।"
मैं चाची की बात सुनकर उनकी तरफ उत्सुकता से देखने लगी तो उन्होंने कहा, "मैंने आज तुम्हारे लिए सुंदर तैयारी कर रक्खी है।"
फिर उन्होंने अपने शादी का एल्बम निकाला और अपनी शादी के खूबसूरत फोटो को मुझे दिखाते हुए कहा, "आज मैं तुम्हें दुल्हन बनाऊँगी।"
मुझे उनकी इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ था लेकिन मन में गुदगुदी भी हुयी थी। आखिर कौन ऐसी जवान होती लड़की होगी जिसे दुलहन का श्रंगार करना अच्छा नही लगता होगा? मेरे मन मे भी फुलझड़ियां जलने लगी थी और मैं चाची की बात मान गई।
चाची मुझे अपने बेडरूम में ले गई और वहां मुझे, उनकी शादी का अपना जोड़ा पहनाया। उन्होंने ड्रेसिंग टेबल पर बैठा कर दुल्हन वाला श्रंगार किया। वो मुझे तैयार करती जारही थी और साथ मे यह कहती जारही थी कि मैं कितनी सुंदर लग रही हूँ। यह सब एक सपने की तरह होता जारहा था। एक तरफ यह सब बड़ा अजीब लग रहा था तो दूसरी तरफ चाची की बाते और दुल्हन की परिकल्पना से दिल धक धक भी कर रहा था। सच तो यह प्रशांत सर, इस सब मे मुझे बड़ा मजा आ रहा था।
चाची ने मुझे तैयार करने के बाद कहा "मेरी बन्नो रानी, शादी की पहली रात यानि ‘सुहागरात’ सबसे प्यारी होती है। दुनिया मे हर लड़की इस रात के लिये तड़पती है, जिंदगी का सबसे बड़ा सुख इस दिन ही मिलता है।"
मुझे चाची की पूरी बात तो नही समझ में आई लेकिन मेरे अंदर एक खलबली जरूर मची हुयी थी।
उन्होंने फिर धीरे से फुसफुसाते हुए कहा, "अर्पिता क्या तुम वो मजा लेना चाहोगी? इसमें थोड़ा दर्द होता है, पर मजा भी बहुत आता है। मैंने तो तुम्हारी उम्र के आते आते यह मजा कई बार चखा था और आज भी हर रात चखती हूँ। क्यों बन्नो, मज़ा लोगी?"
चाची की बात में इतनी कशिश थी और एक जादू से था कि मैंने तुरंत हाँ कर दी।
मेरी हां सुनते ही उन्होंने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और माथा चुम लिया। फिर वो मुझे, सुहागरात में दुल्हन किस तरह बैठती है, कैसे अपने पति को बादाम का दूध पिलाती है, फिर कैसे शर्माती है, ये सब बताने लगी और साथ मे यह भी कहा, "आज तुमसे, इसका प्रैक्टीकल भी करवाऊँगी।"
मुझे उनकी बातों में रस तो आरहा था लेकिन कुछ समझ भी नहीं आ रहा था।
चाची ने फिर कमरे को सजाया, कमरे में गुलाबजल छिड़का और बिस्तर पर इत्तर लगाया। उधर चाची यह सब कर रही थी और इधर शादी के जोड़े में मुझे बड़ी गर्मी लग रही थी लेकिन मैं फिर भी चुप रही क्योंकि मुझे कुछ नया सीखना था। उन्होंने बाद में मुझे बेडरूम में पलंग पर घूंघट लेकर बिठा दिया।
थोडी देर में वहाँ बैडरूम में मैनेजर चाचा आ गये, उन्होंने भी नया कुरता पैजामा पहना हुआ था। आज वो बिल्कुल ही अलग लग रहे थे। उन्हें आया देख मैं विचलित हो गई थी। मैं वहां एक नकली दुल्हन बनी किसी नाटक की पात्र बनी बैठी थी लेकिन मैनेजर चाचा के आने से एक अनजाने से डर में कांप उठी थी। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझ पर कोई सम्मोहन हो गया है, जो हो रहा है वह सब सपना है लेकिन फिर भी वास्तविकता चेतना में बसी हुई थी। आगे क्या होगा उसका भय मुझमे समाये जा रहा था लेकिन एक अनजाने सुख की अभिलाषा और उसको जानने की उत्कंठा में, मैं समय के साथ बही जारही थी। तभी पीछे से एक सुंदर सी नाइटी पहने हुए, हाथ में कैमरा थामे चाची भी कमरे में आगई और मुझ से बोली, "हर लड़की के जीवन का सबसे स्वर्णिम पल यही है, वह तुम्हे अर्पिता आज निछावर है। आज का दिन उसके जीवन का सबसे बड़ा इम्तिहान होता है। तुम मेरी तरह भाग्यशाली हो जिसे इस रात की प्रैक्टिस करने का मौका मिल रहा है और ये तुमको अपनी सुहागरात ही नही बल्कि उसके बाद कि हर रात को सुहागरात ही बनाने का सौभाग्य देगा।"
यह कहते हुए चाची मेरे पास आगई और उन्होंने मेरा घूंघट उठा कर मुझे चूम लिया। फिर मेरे हाथ में तीन गोलियाँ रख कर कहा, "यह लाल गोली तुम को बड़ा रिलैक्स करेगी और साथ मे तुम्हारे अंदर उमंग पैदा करेगी और जो बाकी दो गोली है वो तुम्हें दर्द महसूस नहीं होने देगी।"
चाची ने मुझे जो दो गोली दी थी उससे मेरी धड़कन बढ़ गई थी लेकिन मैंने चाची की दी हुई गोलियाँ, बिना कुछ कहे दूध के साथ ले ली और आगे क्या होगा की प्रत्याक्षा में पलंग पर घूंघट लेकर बैठ गई।
तभी अचनाक से चाचा जी का हाथ मेरे कंधे पर पड़ा और वो मुझे प्यार से सहलाने लगे। चाचा के सहलाने से जैसे मेरे बदन में मानो बिजली दौड़ गई। मुझे घूंघट के कारण कुछ दिख नहीं रहा था लेकिन सुनाई सब पड़ रहा था। चाचा चाची से कुछ फुसफुसा रहे थे और चाची हंस रही थी। उन्होंने हंसते हुए चाचा से कहा, "सुनो जी, फ़ूल सी गुड़िया है मेरी अर्पिता बिटिया, धीरे से करना, वैसे मैंने इसे गर्भ निरोधक गोली और पेन किलर भी दे दी है।"
चाची ने जब गर्भ निरोधक गोली की बात कही तो मेरे अंदर एक तूफान सा उठ खड़ा हुआ। मुझे भले ही स्त्री पुरुष के बीच गर्भ धारण की व्यवहारिक जानकारी नही थी लेकिन उसकी व्यवहारिक जानकारी चाची कराने जा रही है, यह समझ आने लगा था।
थोड़ी देर कमरे में शांति रही फिर ऐसा लगा जैसे चाचा अपने कपड़े उतार रहे है। मैं डर और आकांशा में कांपने लगी थी। तभी चाचा ने धीरे से उन्होंने मेरा घूँघट खोला और वो बोल पड़े, "बहुत सुंदर, अर्पिता बिलकुल परी हो!"
उनकी आवाज़ सुन कर मैंने जो अपना चेहरा ऊपर किया तो देखा चाचा अंडरवियर में सामने बैठे है। मैं सहम गई और डर के आंखें बंद कर ली। मैनेजर चाचा ने मुझे बड़े प्यार से मेरे माथे को और फिर गालों को चूमा और उनके होंठो की गर्मी से मेरा शरीर झनझना गया था। आज से पहले मुझे इस तरह की कोई भी अनुभूति नही हुई थी। मैं बिल्कुल सन्नगन, वैसे ही बैठी रही, जैसे मुझे किसी अदृश्य शक्ति ने जकड़ लिया है। फिर चाचा ने मेरी मांग बिंदी हटा दी, कान के बूंदे और गले का मंगल सूत्र भी निकाल कर हटा दिया।
उसके बाद उन्होंने चाची को मेरी नथ निकालने को कहा, जिस पर वे हंसी और उन्होंने बड़े प्यार से मेरी नथ निकाल दी।
अब चाचा धीरे धीरे मेरे पूरे बदन को छू रहे थे, उनके स्पर्श से मुझे जहां बेचैनी हो रही थी वही पर मुझे गुदगुदी भी हो रही थी। मेरे बदन को सहलाते सहलाते अचानक चाचा ने अपना हाथ, ब्लाउज के ऊपर से ही मेरी चुंचियों पर रख कर दबा दिया। चाचा के हाथ से मेरी चुंचियों के दबते ही मेरी रीढ़ की हड्डी में सिहरन होने लगी। चाचा ने, मेरी चुंचियों को सहलाते हुए चाची से कहा, "इसकी चुंचियाँ तो बड़ी कड़ी है, लगता है अभी तक किसी ने दबाई नही है"
चाची ने हंसते हुए कहा, "बन्नो रानी की चुंचियाँ क्या बिल्कुल ताज़ा नीबू है, आप के लिए छोड़ रक्खा है, इसे संतरा आप को बनाना है।"
एक तो चाचा चाची की बाते और दूसरा चाचा की हथेली से मसलती हुई चुंचियों ने मेरे कान गर्म कर दिए थे। मेरे अंतरंग अंग आज से पहले किसी ने नही छुए थे, इसलिए मेरे शरीर मे उससे उठ रही अनुभूतियों से मैं बिल्कुल बेहाल हो रक्खी थी। मैं जानती थी कि यह सब ठीक नही है लेकिन चुंचियों के दबने से जो मेरी चुंचियों में कड़ापन आया, उससे जो सुख मिल रहा था, वो कही न कही मुझे अच्छा भी लग रहा था। तभी चाची ने चाचा से कहा, "सुनो, क्यों अर्पिता को परेशान कर रहे हो, लाओ उसे मैं आराम दे दूं।"
यह कहते हुए, चाची ने मेरे ब्लाउज का पीछे से हुक खोल दिया। मैं चाची से, "क्या? क्या?" कहती रह गई और चाची ने मेरा ब्लाउज झट से खींच कर अलग कर दिया। मैं बिना ब्लाउज के अपने मे सीमिट गई और चुनरी को कस के अपने बदन से लपेट लिया। मुझे ऐसा करते देख, चाची ने मुझे बाहों में ले लिया और मेरे माथे को चूमती हुई बोली, "बन्नो रानी, बहुत सुंदर लग रही हो।"
मैं अंदर से बुरी तरह घबड़ाई हुई थी लेकिन चाची को मुझे इस तरह बाहों में लेना और चूमना मुझे हिम्मत दे गया था। चाची ने फिर चाचा की तरफ इशारा किया तो मैनेजर चाचा ने मेरे दोनो हाथ पकड़ कर मुझे खड़ा दिया और मेरा घाघरा खोल दिया। चाची का घाघरा भारी था, इसलिए खुलेते ही नीचे सरक गया। यह सब इतने अचानक हुआ कि जब मैंने उसे पकड़ने की कोशिश की तो चाची ने तुरन्त मेरे हाथ को पकड़ लिया। मैंने घबड़ा कर चाची की ओर देखा तो वो मुस्करा रही थी। मैं जब तक कुछ और समझती चाची ने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और उसके खुलते ही मैं चिल्ला पड़ी, "चाची ये क्या!"
इस पर चाची ने तीखी आवाज़ में कहा ,"चुप रहो, सुहागरात में ऐसा ही होता है।"
मैं अब केवल ब्रा और पेंटी में खड़ी थी और मैने शर्म से अपना मुँह हाथ से ढक लिया। मुझे इस तरह अधनंगी होने पर शर्म तो आ रही थी लेकिन चाची ने जो मुझे गोली दी थी उससे मेरे शरीर मे उत्तेजना हिलोरे भी खा रही थी।
चाचा, पहले मुझे ऐसे ही बिना पलक झपकाए देखते रहे फिर उन्होंने मुझे बाहों में अपनी भर लिया और जोर से अपने सीने से जकड लिया। मेरी ब्रा में बंद चुंचियाँ, चाचा के नंगे सीने में घुस गई और चाचा अपना सीना ऊपर नीचे करते हुए मेरी चुंचियों को रगड़ने लगे। चाचा के ऐसा करने से मुझे अपने निप्पल्स कड़े और फूलते हुए लगने लगे और मेरे शरीर मे सिहरन बढ़ने लगी थी। चाचा मुझे अपनी छाती से चिपकाए हुए मेरे शरीर को अपने हाथों से सहलाते जारहे थे कि तभी चाची बीच मे आगई और हाथ मे पकड़ी हुई कटोरी से एक रसगुल्ला निकाल कर मेरे मुँह में डाल दिया। मुझे बड़ा यह अजीब लगा कि अभी चाचा तो मुझे चिपकाए मेरे शरीर को सहला रहे और अब चाची ये रसगुल्ला खिला रही है? मैं इसी उधेड़बुन में रसगुल्ला खा रही थी कि चाचा ने मुझे कंधे से पकड़ कर, सजे हुए पलँग पर लिटा दिया। चाचा भी पलंग पर मेरे बगल में आगये और फिर मुझे निहारते हुए मेरे पैर की तरफ बैठ गए और एक झटके में उन्होंने मेरी पैंटी को मेरी टांगो से खींच के निकाल दिया।
मैं पैंटी उतारे जाने से बिल्कुल डर गई थी।
चाची ने मेरा चेहरा पढ़ लिया थी कि मैं डर गई हूं तो वो मुझे बाहों में लेकर, मेरे बगल में लेट गई और पुचकारते हुए, मेरे कंधे, पीठ को थपथपाने लगी। चाची के ऐसे करने से मैं थोड़ी सहज हुई तो चाची ने मेरी ब्रा निकाल के फेंक दी। मुझे पता चल रहा था कि चाची मेरी ब्रा उतार रही है लेकिन पता नही मेरा दिमाग सुन्न हो गया था कि मैं उनको रोक भी नही पा रही थी।
मै नंगी हो चुकी थी। मैंने कस के अपनी आंखें बंद कर ली थी, मेरा शरीर काँप रहा था और मेरा गला सूखा जारहा था। तभी मुझे ऐसा महसूस हुआ की जैसे मेरी चूत पर कुछ रेंग रहा है। मैंने अचकचा के अपनी आँखे खोल दी तो सामने देखा की चाचा मेरी टांगों के बीच झुके है और मेरी चूत पर अपनी जीभ रखे हुए है। ऐसा कुछ, मेरी चूत पर पहली बार हो रहा था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे सैकड़ो कीड़े मेरी चूत पर रेंग रहे हों। मै बेहद घबड़ा गई थी लेकिन न जाने क्यों अपनी चूत पर चाचा की रेंगती जीभ से मेरे अंदर जो एहसास पैदा हो रहा था वो मुझे अच्छा लग रहा था। तभी मैं चौंक गई जब चाची मेरे ऊपर झुक गई और उन्होंने मेरी चुंची को अपने मुंह मे भर लिया और उसे चूसने लगी।
मै, अपनी दो अंतरंग जगहों पर हुए इस दोतरफा आक्रमण और उससे मेरे शरीर मे हो रहे अंजाने एहसास को लेकर परेशान हो गई और कुनमुनाने लगी थी। मुझे हाथ पांव हिलाते हुए देख, चाची मेरी चुंची को चूमते हुए बोली, "ऐसा ही होता है सुहागरात में! चुप रहो और मजे लो।"
चाची के झिड़कने से मैं थोड़ा सहम गई थी लेकिन समझ ही नही आरहा था कि चाची के होंठो से चूसी जारही चुंची से उठ रहे उबाल को संभालू या फिर अपनी चूत में चल रही चाचा की जीभ से उमड़ रही मजे की तरंगों को अपने अंदर समेट लूं। मैं तड़प उठी थी। चाची मेरे निप्पल्स से खेल रही थी और चाचा, मेरी कुंवारी सपाट चूत के छेद में अपनी जीभ से घुमा रहे थे। मेरे शरीर को चाचा चाची छेड़ रहे थे और मैं उनकी इस छेड़छाड़ से बेसुध हो रही थी। थोड़ी देर बाद, चाचा ने अपनी जीभ मेरी चूत से हटा ली और मेरे दोनों पैरों को ऊपर उठा दिया। मुझे समझ नही आया कि ये क्या हो रहा कि तभी चाची ने फिर एक अजीब हरकत की और एक रसगुल्ले के रस को मेरी चूत में निचोड़ दिया।
रसगुल्ले का शीरा जब मेरी चूत में पड़ा तो मुझे बहुत गुदगुदी हुई। अब चाचा फिर मेरी टांगों के बीच घुस गए और अपनी जीभ से, मेरी चूत में पड़े उस शीरे को चाटने लगे। वो मेरी चूत से रसगुल्ले का शीरा चाट भी रहे थे और बीच बीच मे मेरी चूत को चूसने भी लगते थे। मैं छटपटाये जा रही थी और अपने पैर इधर उधर फेंक रही थी। एक अजीब तरह का तूफान मेरी टांगों के बीच उमड़ रहा था। मैं चाचा की जीभ हटाना भी चाहती थी और जो कोहराम मेरे अंदर मच रहा था, वह अंजाना होते हुए भी मुझे अच्छा लग रहा था। इसी बीच चाची को न जाने क्या सूझी की उन्होंने मेरी चुंचियों पर रसगुल्ला रगड़ दिया। उन्होंने जब रसगुल्ला मेरे निप्पल्स पर रगड़ा तो मुझे ऐसी सनसनी हुई कि मेरे मुंह से "आईईई" की आवाज निकल पड़ी। चाचा ने मेरी आवाज सुनकर, अपना मुंह मेरी चूत से हटा लिया और सीधे आकर मेरी छोटी सी चुंचियों पर पिल पड़े। मैनेजर चाचा पूरी उत्तेजना में मेरी चुंचियों को चाटने लगे और मेरे निप्पल्स को चुसने लगे। चाचा इतनी उत्तेजना में मेरी चुंचियों को चाट और चूस रहे थे कि मेरे मुंह से सिसकिया निकलने लगी थी। चाचा मेरी सिसकियों से न जाने इतने उत्तेजित क्यों हो गए कि उन्होंने मेरे नाजुक निप्पल्स को अपने होंठो में दबोच कर कस के चुसने लगे। वो बड़े वहशी हो गए थे और उन्होंने अपने दांत भी मेरी नाजुक चुंचियों पर गड़ाने लगे थे। मैं दर्द कराह पड़ी।
मेरी कराहट सुन कर चाची ने कहा, "बन्नो रानी, गोली खाई है, दर्द ठीक हो जाएगा।"
फिर चाची ने मुझे, पलंग से उतार कर जमीन पर बैठ दिया लेकिन चाचा, पैर नीचे किये हुए, पलंग पर ही बैठे रहे।
फिर चाची ने मुझे चूमते हुए कहा, "आज मैं तुम्हे लंड चूसना सिखाती हूँ।"
उनकी इस बात पर, मैंने चौक कर चाची की तरफ देखा लेकिन चाची ने मेरी तरफ कोई ध्यान नही दिया और उन्होंने, चाचा का अंडरवियर नीचे खीच दिया। जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, चाचा का बड़ा सा लंड फ़ुफ़कारता हुआ बाहर निकल आया। मै तो उसको देख कर ही हड़बड़ा गयी। मैंने लड़को के लंड, इधर उधर, सड़क पर पेशाब करते हुए देखे थे लेकिन ये तो बिलकुल ही उनसे अलग था। मै लंड देख कर बुरी तरह घबड़ा गयी थी। अजीब से दहशत मेरे दिल में भर गयी थी लेकिन उसी के साथ मेरी सांस भी भारी चलने लगी थी।
चाचा का लंड बाहर निकाल कर, चाची भी मेरे बगल जमीन पर बैठ गई और उन्होंने चाचा का लंड अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगी। वो उसको ऐसे चूस रही थी जैसे वो कोन आइसक्रीम खा रही हों। मुझे यह देख कर हैरत भी हो रही थी और उबकाई भी आ रही थी। थोड़ी देर बाद चाची ने, चाचा का लंड अपने मुंह से निकाल दिया और उन्होंने मुझसे वैसे ही करने को कहा तो मैंने सर हिला कर मना कर दिया।
मैंने जब उनके बार बार कहने पर भी चाचा का लंड मुंह मे लेने से मना कर दिया तो, चाचा ने चाची से कहा, "तुम भी बड़ी जल्दबाजी करती हो! अर्पिता बिटिया के लिए नया है, जब चॉकलेट खिलाओ तब मानेगी।"
चाचा की बात सुन कर, चाची ने बगल की ड्रावर से कैडबरी की मिल्क चॉकलेट निकाली, जो फ्रिज के बाहर रक्खे रक्खे थोड़ा मुलायम हो गई थी, उसे उन्होंन चाचा के लंड पर ढेर सारा लगा दिया और मुझसे कहा, "बन्नो रानी, इसे चॉकलेट समझ कर चूसो! तुम्हे बड़ा मजा आयेगा।"
मेरा सर भन्ना रहा था लेकिन चाचा के लंड से लिपटे चॉकलेट ने मेरे अंदर एक अलग तरह की उत्सुकता जगा दी थी क्योंकि मुझे चॉकलेट बहुत पसंद थी और बहुत कम बार, खाने को मिलती थी। मैं चाची के बार बार कहने पर भी वहीं दुविधा में बैठी ही रही लेकिन मैंने न न करने वाला सर हिलाना बंद कर दिया था।
यह देख कर, चाची ने चाचा का लंड अपने हाथ से पकड़ कर, मेरे होंठो पर लगा दिया। चाचा का लंड मेरे होंठो पर लग गया था लेकिन चाची की तरह उसे मुंह मे लेने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी। अपनी आंखों और मुंह के सामने इतनी नजदीक से चाचा के काले भुजंग लंड को देख कर मुझे दहशत हो गई थी। मैं ठीक से सांस भी नही ले पा रही थी। जब मैंने कुछ नही किया तो चाचा मेरे होंठो पर अपने लंड का सुपाड़ा रगड़ कर, मेरा मुंह खोलने की कोशिश करने लगे। उनके ऐसा करने से, मुझे चाचा के लंड पर लगे चॉकलेट का स्वाद आने लगा। लंड पर लगा चॉकलेट मेरे होंठो पर लगा तो अनायास ही मेरी जीभ उसको चाटने निकल पड़ी और मेरा हल्के से मुंह खुल गया। चाचा ने मौका देखा और जोर लगा कर लंड को मेरे मुँह ने डाल दिया। उनके लंड पर चॉकलेट लगा था जिससे, उनका लंड सटाक से मेरे मुंह के अंदर फिसल गया। मेरे मुंह मे जैसे ही लंड घुसा मेरा मुंह ही भर गया, मुझे लगा जैसे मेरे मुंह मे कोई खम्बा घुसेड़ कर बंद कर दिया गया है। मेरी आँखें चौड़ा गई थी और आंसू भी आगये थे। मेरा यह हाल देख कर चाची, मेरा सर सहलाने लगी और मैनेजर चाचा से बनावटी गुस्से में बोली, "अजी क्या करते हो? प्यार से! ये मेरी तरह खेली खाई थोड़ी है जो सुहागरात में गप्प से लंड मुंह मे ले ले! प्यार से बन्नो को दो, पहली बार लंड चख रही है।"
चाची की बात सुनकर, चाचा ने एक हाथ से मेरे चेहरे को और दूसरे से मेरे सर को सहलाने लगे और थोड़ी देर ऐसे ही मेरे मुंह मे लंड डाले बैठे रहे। मुझे अब उनके लंड पर लगे चॉकलेट का स्वाद आने लगा और अनायास ही मेरी जीभ उस चॉकलेट को चाटने लगी थी। यह देख कर चाचा अपने लंड को मेरे मुँह में धीरे धीरे अंदर बाहर करने लगे। मुझे उस चॉकलेट को चूसते चूसते ही उसके स्वाद में बदलाव महसूस होने लगा था। अब चॉकलेट कम हो गयी थी और वो लंड मेरे मुंह बहुत बड़ा हो गया था। इसी के साथ चाचा ने मेरे सर को सहलाना छोड़ दिया और मेरे बाल को पकड़ कर उपने लंड को मेरे मुंह मे अंदर गले तक डालने लगे थे। मेरी घिघि बंधी हुई थी और मुझे सांस लेना मुश्किल हो रहा था।
चाचा जब तेज़ी से मेरे मुंह मे अपना लंड डाल कर अंदर बाहर करने लगे और उससे मेरी आँखें जब निकलने लगी तो चाची ने अपने हाथों में मेरी चुंचिया ले ली और उसे दबाने और चुसने लगी थी। चाची के ऐसा करने से, मुझे अंदर कुछ कुछ होने लगा था। चाची मेरी चुंचियों से ज्यादा मेरे निप्पल्स चूस रही थी जिससे मेरा शरीर झनझनाने लगा था और मेरी चूत में सिहरन उठने लगी थी।
तभी चाचा ने कहा, "मैं झड़ने वाला हूँ!"
इस पर चाची ने मेरी चुंची चूसते हुए, लहराते हुए कहा, "अंदर ही झड़ जाओ न।"
और उसके कुछ ही पल बाद मेरे मुंह मे कुछ गरमा गरम गाढ़ी मलाई ऐसी चीज तेज़ी से मेरे मुँह में भर गई, जो मेरे गले तक पहुँच गई। मुझ को ऐसा लगा जैसे मेरे मुंह मे बाढ़ का पानी भर आया और उसे संभाल नही पाऊंगी। मुझे तो उल्टी आने लगी थी। मुझे लगा कि मैं उलटी कर दूंगी लेकिन चाची जी ने मेरा मुंह पकड़ लिया और मुंह से चाचा का लंड नही निकालने दिया। मैं उगलना चाहती थी लेकिन चाची मेरा मुंह पकड़े हुए मुझसे बोली, "यह अमृत है पगली! गिरा मत! पी ले!"
इतनी देर से मेरा मुंह बंद रहा था की मैं अब उसे मुंह मे भरा नही रख पा रही थी तो मैंने मजबूरी में उसे गटक लिया। वो गाढ़ा सा जो चाचा के लंड से निकला था वो अजीब सा नमकीन सा था। उसको, जिसे मैं तब नही जानती थी कि वो लंड से निकलने वाला वीर्य होता है, अपने गले के नीचे उतारते हुए मुझे बड़ी घिन्न आयी थी। जब मैं वीर्य को गटकने लगी तो चाची ने, चाचा के लंड के साथ मेरे मुंह को चूमते हुए मुझसे कहा, " इसके बाद अब तुम्हारा आखिरी इम्तिहान होगा। इसमें तुम्हे पास होना ही है, नहीं तो लड़की की जिंदगी बरबाद हो जाती है।"
चाची की बात सुनकर, अब चाचा हंसते हुए खड़े हो गए और उन्होंने मेरे मुंह से अपना लंड निकाल लिया। फिर उन्होंने अपने हाथों में मेरा चेहरा लिया और मेरे होंठो पर अपने होंठ रख कर उन्हें चुसने लगे। चाचा ने फिर गज़ब किया और अपनी जीभ मेरे मुंह के अंदर डाल कर, अपने ही लगे हुए वीर्य को चाटने लगे। चाचा ने जब थोड़ी देर में मुझे छोड़ा तो चाची ने एक रुमाल से मेरे होंठो को साफ किया और हाथ पकड़ कर जमीन से उठा कर खड़ा कर दिया।
उसके बाद चाची मुझे बाहों में भर कर पलंग पर ले गई और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। वो खुद भी मेरे साथ मेरे बगल में लेट गई और मुझे चिपटाये हुए करीब 15/20 मिनिट लेटी रही। फिर चाची ने अपनी नाइटी फ़ौरन उतार दी। चाची पूरी मादर जात नंगी हो गई। चाची का सब कुछ बड़ा बड़ा था, बड़ी चुंचियाँ, मोटी कमर, भारी जाँघे, उन्हें देख कर पता नही क्यों मुझे बड़ा इत्मीनान हुआ। चाची ने पहले तो मेरी चुंचिया दबाते हुए, मेरे बदन को सहलाया और फिर अपना हाथ नीचे ले गई और मेरी चूत पर हाथ रख कर उसे सहला दिया। चाची के सहलाने से मेरी चूत में जैसे आग लग गई। मैंने बेचैन हो कर, अपनी टांगो को आपस मे जकड़ लिया। चाची का हाथ अभी भी मेरी चूत पर था और मेरी टांगो के बीच उनका हाथ फंस गया। चाची ने तब मेरी बांयी चुंची को अपने मुंह मे ले लिया और उनके चूसते ही मुझे सिहरन होने लगी। प्रशांत सर, मेरे साथ जो हो रहा था उससे मैं जहां घबड़ा रही थी वही पर मेरे अंदर वो सब तरंगे जो उठ रही थी, उसके साथ बहने से मैं नही रोक पा रही थी। मेरे साथ जो चाची जो कर रही थी वो मुझे अच्छा लग रहा था। वो जिस तरह से मेरी निप्पल्स को होंठो में लेकर चूसने लगी थी उससे मेरी सिसकारी निकलने लगी थी। चाची ने मेरी सिसकारी सुनकर, अपने हाथ की उंगलियों से मेरी क्लिट को दबा दिया। उन्होंने मेरी क्लिट को जैसे ही छुआ, मैं बुरी तरह कुनमुना गई। मुझे ऐसा लगा जैसे चाची ने मेरे किसी बटन को दबा दिया जिससे मुझे वो अनुभूति मिली जो आज तक नही हुई थी। चाची मेरे निप्पल्स को चूसते हुए मेरी क्लिट को रगड़ने लगी थी जिससे मेरे पैर सुन्न होने लगे और टांगे ढीली हो गई थी। चाची ने जब देखा कि मेरी टांगे ढीली हो गई है तो उन्होने अपने हाथ से मेरे दोनों पैरों को दूर-दूर कर फैला दिया।
चाची ने मेरी जाँघे सहलाते हुए मुझसे कहा, "बन्नो रानी, तुम मेरे निप्पल्स चूसो, जैसे मैं तुम्हारी चूस रही हूँ। सुनो, अब तुम्हारा आखिरी इम्तिहान है, उसे जरूर पास करना अर्पिता।"
यह कह कर, चाची ने अपनी बड़ी सी चुंची मेरे मुंह से लगा दी। चाची का निपल जैसे ही मेरे होंठो से छुआ, मेरे होंठ अपने आप खुल गए और उसको अपने मुंह मे ले लिया। मेरे मुंह मे जैसे ही निपल आया, मैं अपने आप उसे चुसने लगी और मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि मुझे चाची की चुंची चूसना अच्छा लग रहा था। मैंने जब चाची का निपल चूसना शुरू किया तो वो कोहनी के सहारे थोड़ा सा उठी और अपनी दोनों चुंची लिए मेरे मुंह पर झुक गई। चाची मेरी चुंचियों को चूसने लगी और मैं भी एक बच्ची की तरह उनकी चुंचियों को चुसने में लग गई। मैं चाची के साथ इतना व्यस्त हो गई कि मुझे पता ही नही चला कि कब चाचा मेरे पैरों की तरफ आगये थे। चाची मेरे ऊपर झुकी हुई थी इसलिए मुझे सिर्फ उनकी चुंचिया दिख रही थी और अपने पैरों की तरफ नही देख पा रही थी। तभी चाचा ने मेरी कमर के नीचे हाथ डाल कर उसके नीचे तकिया लगा दी। मैंने चौंक के चाची की तरफ देखा तो वो मुस्कराई और कस के मेरी चुंचियों को चुसने लगी। तभी मुझे महसूस हुआ कि चाचा ने मेरे पैरों को, और फैला कर उठा लिया है। मुझे उस वक्त एक अनजाने डर से घबड़ाहट होने लगी थी। मेरे साथ बहुत कुछ अजीब सा हो रहा था जो न मुझे समझ आरहा था और न ही उसको रोकने की हालत हो रही थी। तभी मुझे मेरी चूत पर एक गर्मा गरम दबाव महसूस हुआ, मुझे लगा कि चाचा ने अपना लंड मेरी चूत पर रक्ख दिया है। मैं उससे हड़बड़ा कर उठने लगी तो चाची ने मुझे जकड़ लिया और उठने नही दिया। तभी मुझे अपनी चूत पर चाचा की उंगली घूमती लगी और कुछ गीला सा लगा। वो मुझे बाद में पता चला कि चाचा ने उंगलियों से मेरी चूत में ग्लेसरिन लगाई थी। मैं जब तक अपनी चूत में नए गीलेपन को समझती, मैनेजर चाचा ने अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ दिया और मै दर्द से बिलबिला पड़ी। मुझे अपनी चूत में गर्म रॉड के घुसने की जैसी अनुभूति से इतनी स्तंभित हुई कि मेरे मुंह के अंदर भरी हुई चाची की चुंची को काट लिया।
चाची के मुंह से कराह निकल गयी और उन्होंने चाचा से कहा, "क्या करते हो! धीरे से बच्ची है!"
यह कह कर चाची ने भी प्यार से, हल्के से मेरे निलप्स को काट लिया। चाची की बात पर चाचा रुक गए और मेरी चूत में घुसेड़े गए लंड को डाले हांफने लगे। तब चाची ने अपना हाथ मेरी चूत पर रख कर उसे सहलाया और फिर हंस कर, चाचा को कुछ इशारा किया और मेरे होंठों को उन्होंने अपने होंठों से चिपका दिया।
चाची ने जैसे मेरे होंठो को दबोचा, चाचा ने एक जोर का धक्का दिया तो उनका बड़ा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर चला गया। मैं दर्द से झटपटा पड़ी लेकिन चाचा ने 4/5 धक्के मार कर मेरी छोटी सी चूत में अपना लंड पूरा डाल दिया और मुझे पुचकारने लगे।
मैं जोर से चिल्लाई पर चाची ने अपने मुँह में मेरी आवाज दबा दी, मैं दर्द से तड़प रही थी।
तभी चाची मेरी चुंचियों को सहलाने लगी और मुझे समझाते हुए कहा, "अर्पिता बिटिया, तुम्हें माहवारी में जो हर महीने जो तकलीफ होती थी वो चाचा ने आज दूर कर दिया है, अब तुम्हें कभी तकलीफ नहीं होगी।"
फिर उन्होंने अपनी उंगली से मेरी चूत से निकले खून को मुझे दिखाते हुए, बेवकूफ बनाते हुए कहा, "यही वो गंदा खून है जो हर महीने तुम्हें तकलीफ देता था, बन्नो रानी अब थोड़ा और सह लो, सब ठीक हो जायेगा।"
उस वक्त तो चाची जो मुझे उल्लू बना रही थी, वह सब
सही लग रहा था, लेकिन आँख से आंसू निकल रहे थे और मैं दर्द से बेहाल हो रक्खी थी। उसके बाद चाची ने चाचा के लंड पर ढेर सारी ग्लेसरिन लगाई और मेरे आंसू पोछते और मेरे गाल को चूमते हुई कहा, "यह मलहम है, तेरे मैनेजर चाचा, इस को तुम्हारे अन्दर लगा कर, तुम्हारा इलाज कर देंगे, घबड़ा मत।"
इसके बाद चाचा मेरी चूत में बड़े धीमे धीमे, अपना लंड अंदर बाहर करने लगे। चाचा, रुक रुक के धक्के, धीमे से लगा रहे थे लेकिन मुझे तकलीफ हो रही थी। चाचा चाची दोनो ही मुझ पर जुटे हुए थे। चाची मेरे होंठ और चुंचियों को कस कस के चूस रही थी और चाचा बहुत आहिस्ते से अपना लंड मेरे चूत में अंदर बाहर कर रहे थे। कुछ देर बाद मुझे दर्द के साथ अपनी चूत में अजीब सी तरंग उठती हुई महसूस होने लगी। मुझे चाचा के लंड से मिल रहे दर्द के साथ अपनी चूत में अजीब सी आग लगी हुई, लगने लगी थी। चाचा ने करीब 5/6 मिनिट इसी तरह से किया और फिर उन्होंने अपना लंड निकाल लिया।
अब चाचा ने मुझे पलट कर, घोड़ी बनने को कहा ताकि वो मेरी चूत में अपने लंड से मलहम ठीक से लगा ले।
चाचा ने मुझे घोड़ी की पोज में किया और मेरे पीछे आगये। इस वक्त तक चाची की दी गई गोलियां मुझ पर पूरा असर दिखाने लगी थी। मेरे बदन में आग सी लगी हुई थी और जो चाचा चाची कर रहे थे वो मुझे बहुत अच्छा लगने लगा था। चाचा ने पहले मेरी चूत को अपने हाथ से सहलाया और फिर अपने लंड का सुपाड़ा रगड़ने लगे। मुझे सुपाड़े का मेरी चूत पर रगड़ना बहुत भाया और मेरे अंदर पहली बार उसको अंदर लेने की इच्छा होने लगी थी। चाचा बडे अनुभवी थे, उन्हें मेरे मनोभाव समझ आगये थे। उन्होंने मेरी चूत को आहिस्ता आहिस्ता रगड़ा और फिर धीरे धीरे, अपना लंड, उसके अंदर डालना शुरू कर दिया। चाचा उधर मेरी चूत में अपना लंड घुसेड़ रहे थे और इधर मेरी नीचे लटकी चूचियों को, चाची ने फिर से सहलाना शुरू कर दिया था। अब मुझे दर्द तो हो रहा था लेकिन लंड का चूत के अंदर आहिस्ते से आना जाना मुझे मजा देने लग गया था। चाचा ने ऐसे ही धीरे धीरे मेरी चूत में 5/6 मिनट तक लंड को अंदर बाहर किया और साथ मे मेरी पीठ भी सहलाते रहे। इतना सब पर भी मेरे मुंह से सिसकी निकलना बंद ही नही हो रही थी। मुझे मजा तो आने लगा था लेकिन चाचा का लंड मुझे अभी भी दर्द दे रहा था।
फिर चाचा ने अपना लंड मेरी चूत से निकाल लिया और बिस्तर पर लेट गए। उन्होंने चाची से कहा, "सुनो, अर्पिता अब थक गयी होगी, उसकी टांगे भी मेरा वजन नही बर्दाश्त कर पा रही होगी, तुम इसको मेरे ऊपर ही आने दो।"
चाची ने मेरी चूंचियां छोड़ दी और मुझे चाचा के ऊपर आने को बोला। मुझे कुछ समझ में नही आया की चाची क्या कह रही है। चाचा ने मुझे कुछ न करते हुए देखा तो उन्होंने मेरी कमर को पकड़ के अपने ऊपर खीच कर लिटा लिया और मुझे चूमने लगे। फिर चाची ने चाचा का लंड पकड़ा और मुझे उनके लंड पर बैठने का इशारा किया। मैं जब चाची की बात नही समझ पायी तब चाचा मेरे नितंबो को पकड़ कर अपने लंड पर मेरी चूत को रगड़ने लगे जो मुझे अच्छा लग रहा था। फिर चाची ने बीच अपना हाथ घुसेड़ कर चाचा का लंड पकड़ लिया और वो मेरी चूत के ऊपर रगड़ने लगी।
थोड़ी देर बाद चाचा ने मुझ से एक बार फिर उनका लंड चूसने को कहा तो मैं इस बार खुद ही मान गई। मैं उनके ऊपर से उठ गई और उनका लंड मुंह मे लेकर आइसक्रीम की तरह चूसने लगी। मैं इधर चाचा का लंड चूस रही थी और उधर चाची प्यार से मेरे बालो को सहलाते हुए, अपने पैर से मेरी चूत को भी सहलाने लगी।
चाचा अपनी कमर उठा उठा के मेरे मुंह में लंड अंदर बाहर कर रहे थे और साथ मे बोलते भी जा रहे थे, "अर्पिता तू बड़ी मस्त है!"
"इतनी जल्दी लंड चूसना सीख गयी।"
"तुझे तो दिन रात चोदूंगा!"
चाचा मेरे लंड चूसने से सिसियाने लगे थे। मेरी भी हालत खराब हो रही थी क्योंकि चाची के पैर का अगूंठा, मेरी चूत के अंदर खलबली कर रहा था और उस खलबलाहट मे, मैं अनजाने में अपना कमर हिलाने लगी थी।
चाची ने जब यह देखा तो वो बोली, "सुनो, अर्पिता को मस्ती चढ़ने लगी है, अब चोद दो इसको।"
जैसे ही चाची ने ऐसा कहा, चाचा ने अपना लंड मेरे मुँह से निकल लिया और एक करवट लेकर मुझे बिस्तर पर गिरा दिया। वो तेजी से मेरे पैरों की तरफ आगये और उन्होंने मेरे पैरों को पहली की तरह फैला दिया। चाची ने तभी कहा, "अरे रुको! बन्नो रानी के नीचे पहले तकिया तो लगा दो, तभी तो अर्पिता बिटिया की चूत उभर के सामने आएगी और अपने पहले लंड का मजा ले पाएगी।"
फिर खुद ही चाची ने मेरे नितंबो के नीचे तकिया लगा दी और चाचा का लंड पकड़ के मेरी चूत के उपर रख दिया।
अब चाचा ने अपने लंड पर ढेर सारा ग्लिसरीन लगाया और मेरी चूत में एक जोर से धक्का लगाया और उस धक्के में, उनका पूरा लंड, मेरी चूत में समा गया। मेरे मुँह से "आईईई मम्मी! मर गयी!' की चीख निकल पड़ी। मेरे आंसू निकल आये थे और मैं चाचा को "न न! चाचा छोड़ दो! रोक दो!" कहते हुए चाचा को रोकने लगी लेकिन चाचा रुके नही, वो मेरी चूत में धक्के मारते रहे। उनका लंड इतनी जोर से मेरी चूत में घुस रहा था कि वो मुझे अंदर तक हिला दे रहा था। मैं मना कर रही थी और चाची मुझसे नंगी चिपटी जारही थी। वो मेरे बदन को चूमते और सहलाते हुए बड़बड़ा रही थी,
"चोद कसके इसको!"
"बहुत दिनों से परेशान था इसे चोदने को, कर ले इच्छा पूरी!"
"क्या कोरी निकली!"
चाचा केवल "हाँ हाँ" बोलते जारहे थे और साथ मे मुझे चोदते जा रहे थे। थोड़ी देर में, मुझे भी चुदवाने में मजा आने लगा था और मै हल्के से कमर उचका कर, चाचा के लंड का साथ देने लगी थी।
मेरी चूंचियां बेहद कड़क हो गई थी, निपल्स फूल गये थे। मेरे मुँह से "आह!! आह!! आई!!आई!!" की आवाजे भी निकलने लगी थी। तभी मुझे को लगा जैसे की मुझे पेशाब हो जायेगी और मेरे रोकते रोकते भी मुझे हो गयी। वह जैसे ही हुआ और मेरी चूत से कुछ निकला, मुझे नशा सा चढ़ गया। मेरी चूत से जो बहा उसके साथ मेरा सारा शरीर कांपने लगा और एक बिल्कुल ही नई तरह के सुख में डूब गई। मै पस्त हो गयी थी, एक धकान सी मेरे शरीर छा गयी और मेरा शरीर ढीला होगया। लेकिन इसका चाचा पर कोई फर्क नही पड़ा, वो तो चाचा रुकने वाले नहीं थे। उन्होंने उसके बाद मुझे चोदने की अपनी रफ्तार बढ़ा दी। मुझे कस कस के चोदने लगे। 15/20 धक्के के बाद उन्होंने चाची से कहा, "मेरा निकलने वाला है! क्या करूँ?"
चाची ने कहा, "अंदर गिरा दो, मैंने गोली दे दी है।"
चाचा का तभी चेहरा तन गया और "आआआआआआह!" कहते हुए मुझसे चिपट कर मेरे ही ऊपर गिर गए। उनके लंड ने गरम गरम वीर्य जोर से मेरे अंदर छोड़ दिया था। उनके वीर्य की गर्मी जैसे मेरी चूत के अंदर महसूस हुयी मैं एकदम से अकड़ गई और मुझे एक और अंजाना सा सुख मिलने लगा।
हम तीनो इस बुरी तरह से थक गए थे कि उसी हालत में हम तीनों उसी बिस्तर पर सो गए।
मैं रात भर सोती रही और सवेरे 8 बजे मेरी आँख खुली। मैने देखा की चाची मेरे बगल में दूध का ग्लास लेकर बैठी हुई हैं और वो ही मेरा चेहरा सहला रही थी। उन्होंने मुझे पुचकारते हुए उठाया और दूध का गिलास देते हुए बोली, "अर्पिता बिटिया कैसी हो? अच्छा लगा?"
मै चाची की तरफ देख के शर्मा गयी। मैं ठीक तो थी लेकिन मुझे अपने पैरों के बीच अभी दर्द सा महसूस हो रहा था तो मैंने चाची से कहा, "चाची वहां दर्द है।"
उन्होंने मेरा सर सहलाते हुए कहाँ, "पगली, पहली बार मे ऐसा ही होता है, आज रात तेरे सामने तेरे चाचा, मेरे साथ करेंगे और फिर तुम्हरी चूत मारेंगे, तब तुमको ज्यादा मजा आएगा."
मै उनकी बात सुन कर अंदर ही अंदर बहुत रोमांचित हो गयी और रात का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी। उस दिन, मैनेजर चाचा जब भी मेरे पास आते वो मुझे चिपका लेते और मुझे चूम लेते थे। प्रिंसिपल चाची भी मुझे बार बार गले लगा लेती थी। उस रात जल्दी ही सोने के लिए बैडरूम में आगये और फिर पूरी रात हमलोग नही सोये। मैं कितनी बार उस रात झड़ी मुझे याद भी नही है।
पूरे 3 दिनों तक मैनेजर चाचा प्रिंसिपल चाची मुझे दिन दोपहर रात चोदते रहे और चुदाई का सुख देते रहे। उसके बाद तो मेरे पिता जी और माँ, लखनऊ से वापस आगये तो चुदाई बंद हो गई। उनके आने के बाद तो मुझे इतनी खुली छूट नही मिली लेकिन जब भी मौका मिलता था चाची मुझे किसी बहाने से अकेले में बुलवा लेती और चाचा मुझे चोद देते थे। एक साल बाद ही मेरे माँ बाप का तबादला, वापस कानपुर सदर हो गया तो फिर मै मैनेजर चाचा और प्रिंसिपल चाची से कभी भी अकेले में नही मिल पाई। मैंने जो उनके साथ जो समय गुजारा उससे मुझे चुदाई की दुनिया का काफी पता चल गया था। प्रशांत सर, मुझे स्विनगिंग, पति पत्नी की अदला बदली के बारे में उन्ही से पता चला, वो यह सब भी करते रहे थे। साथ मे, चाची को नई लड़कियों को पटा कर, चाचा से अपने सामने चुदवाने में मजा आता था। मुझे उन्ही से पता चला कि मुझसे पहले 5 लड़कियों को चुदवा चुकी थी। अब पता नही वो लोग है या नही लेकिन मुझे आज भी उनकी याद आती है। उनसे मुझे कभी कोई नाराज़गी नही रही।