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Adultery बहुरानी,,,,एक तड़प

rohnny4545

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संध्या का समय था मौसम भी बड़ा सुहाना था,,,, हरे भरे बगीचे में लोग टहल रहे थे कुछ लोग कसरत कर रहे थे कुछ परिवार के साथ आए थे जो बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे और जाने की तैयारी में भी थे,,, ऐसे में शेठ मनोहर लाल से रूपलाल की मुलाकात हो गई सेठ मनोहर लाल एक बड़े से पेड़ के नीचे रखे हुए सरकारी कुर्सी पर बैठकर आराम कर रहे थे,,,, रूपलाल की नजर जैसे ही मनोहर लाल पर पड़ी रूपलाल के चेहरे की रंगत एकदम से बदलने लगी रूपलाल एकदम से प्रसन्न हो गए क्योंकि बहुत दिनों बाद दोनों की मुलाकात हो रही थी आज रूपलाल के पास बहुत अच्छा मौका था अपनी बेटी के लिए बात करने की और इस मौके को रूप लाल अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था,,,,।



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अरे मनोहर तु यहां संध्या के समय,,,,।
(रूपलाल को देखकर एकदम से प्रसन्न होते हुए मनोहर लाल भी बोले,,,)

अरे रूपलाल तु भी तो यही है,,, यह सवाल मैं भी तुझसे पूछ सकता हूं,,,,।


अरे क्यों नहीं क्यों नहीं जरुर पूछ सकता है आखिरकार हम दोनों का याराना बहुत पुराना है हम दोनों का एक दूसरे पर इतना तो हक होना ही चाहिए,,,,(सेठ मनोहर लाल की बगल में बैठते हुए रूप लाल बोला,,,)


क्यों नहीं दोस्त आखिरकार दोस्ती होती किस लिए है एक दूसरे पर हक जताने के लिए होती है,,, वैसे पार्टी के बाद से तू आज मिल रहा है बगीचे में भी नहीं मिलता आना-जाना बंद कर दिया है क्या,,,?

हां कुछ दिनों से काम बहुत था इसलिए मैं आ नहीं सकता था,,, आज मौका मिला तो सोचा चलो बगीचे में कुछ देर तक टहल लिया जाए तो आज इतना अच्छा मौका था कि तू मुझे यहीं मिल गया,,,। अब तुझसे थोड़ी बहुत बात भी हो जाएगी,,,,।


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चल अच्छा हुआ,,,, तुझसे बात करके मुझे भी अच्छा लगता है वैसे भी हम दोनों का याराना बहुत पुराना है,,,,,, एक तू ही तो है जिससे मैं अपने दिल की बात बताता हूं,,,,,।

(सेठ मनोहर लाल की बात सुनते ही रूपलाल एकदम से हंसने लगा,,,, और वह भी जोर जोर से,,, यह देखकर मनोहर लाल को थोड़ा अजीब लगा तो वह हैरान होते हुए बोला,,,, क्योंकि बगीचे में जो इधर-उधर टहल रहे थे वह लोग उन दोनों की तरफ ही देखने लगे थे,,,, जिससे मनोहर लाल को अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए वह बोले,,,,)

क्या हुआ तुझे और ये जोर-जोर से क्यों हंस रहा है,,,,?

क्या बताऊं यार मनोहर मुझे कुछ याद आ गया तो सुनेगा तो तुझे भी हंसी आ जाएगी,,,,।

अरे बताएगा भी,,,,


अरे हां बताता हूं सांस तो लेने दे,,,अब तो बहुत कम मौका होता है जब इस तरह से हंसी आती है,,,,,,,,(अपनी हंसी को रोकने की कोशिश करते हुए रूप लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,)




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तुझे याद है जब हम दोनों कॉलेज में नया नया एडमिशन लिए थे,,,।


हां,,,,,तो,,,,(मनोहर लाल कुछ याद करने की कोशिश करते हुए बोले लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि रूपलाल किस बारे में बात करने वाला है उसे क्या याद आ गया है जो इस तरह से हंस रहा है,,,,,)

अरे यार तुझे कुछ भी याद नहीं,,,,!(रूपलाल आश्चर्य जताते हुए बोला )

नहीं मुझे तो कुछ भी याद नहीं है,,,।

चिंता मत कर यार अभी सब कुछ याद आ जाएगा थोड़ा आगे तो बढ़ने दे,,,,,।

हां तो जल्दी बताना पहेलियां क्यों बुझा रहा है,,,, देख नहीं रहा है अंधेरा हो रहा है,,,,।

अरे यार तू तो ऐसा कह रहा है कि घर जाकर हमें ही खाना बनाना है,,,,।

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अरे रूपलाल ऐसा नहीं है लेकिन फिर भी घर पर तो जाना ही है ना,,,,।

हां वह तो जाना ही है,,,, अच्छा सुन,,,, हम लोग पिकनिक मनाने के लिए पहाड़ियों पर गए थे जिसमें क्लास की कुछ लड़कियां भी थी,,,,।

हां,,,,(कुछ याद करने की कोशिश करते हुए धीरे से मनोहर लाल बोले,,,)


उन लड़कियों में एक लड़की का नाम सुनीता था,,,,(मनोहर लाल के चेहरे को एकदम से गौर से देखते हुए,,, और मनोहर लाल ने एकदम साफ तौर पर देखा कि सुनीता का नाम सुनते ही मनोहर लाल के चेहरे की रंगत बदलने लगी थी वह एकदम से जैसे कुछ याद आ गया हो वह बोले ,)


बस बस बस बस कर,,,, रूपलाल बस कर मुझे सब याद आ गया,,,(इतना कहते हुए मनोहर लाल के चेहरे पर भी मुस्कान तैरने लगी,,,,,)

अरे क्या बस कर जब बात निकली है तो हो जाने दे,,,,




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अरे यार वह सब पुरानी बातें हैं अब वह उम्र नहीं रही,,,।

पता है मनोहर उमर नहीं रही लेकिन यादें तो अभी भी जवान है,,,,, तुझे बताने में शर्म आ रही है लेकिन मैं सब जानता था सबको अपना अलग-अलग तंबू मिला था,,,, मैं अपने तंबू में था,,,, पहाड़ियों पर हम लोग रुके थे सब लोग अपने-अपने तंबू में आराम कर रहे थे लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए मोमबत्ती जलाकर उसके उजाले में नोबेल पड़ रहा था और तभी मुझे कुछ हल्के सी आवाज आई और में धीरे से तंबू में से बाहर झांकने की कोशिश किया तो सुनीता को देखा उसे देख कर सच में मैं एक पल के लिए घबरा गया था क्योंकि मैं शुरू में उसे पहचान नहीं पाया और मुझे लगा कि पहाड़ी कोई चुड़ैल होगी क्योंकि तू तो जानता ही,,,, है,,, मुझे इन सब से बहुत डर लगता है और पहाड़ी इलाका होने की वजह से मुझे तो एकदम पक्का यकीन हो गया कि वह चुड़ैल ही है,,,,

Rakesh or aarti ki ma

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(रूपलाल की बातों को सुनकर मनोहर लाल मंद मंद मुस्कुरा रहे थे,,,,, और मनोहर को मुस्कुराता हुआ देखकर रूप लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)


मैं तंबू में था मैं अपने आप को एकदम से सिमटा लिया,,, मैं देखना चाहता था कि वह कहां जाती है और जब मैंने देखा कि वह तेरे तंबू में घुस रही है तब तुम एकदम से परेशान हो गया,,,, मेरे तो होश उड़ गए मैं जोर से चिल्लाना चाहता था लेकिन डर के बारे में मेरी आवाज नहीं निकल रही थी पर सबको जगा देना चाहता था लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि तंबू से बाहर जाकर किसी को जगाऊं मुझे तो पूरा यकीन हो चला था कि पहाड़ों पर रहने वाली कोई चुड़ैल तेरे तंबू के अंदर जा रही थी अब तो मैं भगवान से प्रार्थना करने लगा कि तुझे बचा ले,,,,,, सच में यार मैं बहुत डर गया था और मुझे बहुत शर्मिंदगी भी हो रही थी कि मैं तुझे बचा नहीं पा रहा था,,,,। लेकिन थोड़ी देर बाद हुआ तेरे तंबू में से बाहर निकल गई और जब वह बाहर निकाल कर मेरे सामने से गुजरी तब मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया और जो मुझे एहसास हुआ कोई चुड़ैल नहीं बाकी सुनीता है तो मेरी जान में जान आई लेकिन अगले ही पल फिर मेरे होश एकदम से उड़ गए,,,,,।

क्यों,,,,?(सेठ मनोहर लाल मुस्कुराते हुए पुछे,,,)



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अरे यार तब मुझे होश आया कि कॉलेज की सबसे सेक्सी लड़की तेरे तंबू में आधी रात को गई थी,,,, जिस लड़की को पूरा कॉलेज भाव देता था और वह किसी को भाव नहीं देती थी लेकिन वह लड़की तेरे पीछे पागल थी जो आधी रात को तेरे तंबू में गई थी बताना उसे दिन क्या हुआ था,,, सुनीता और तेरे बीच क्या हुआ था रात को,,,,।

अरे कुछ भी तो नहीं हुआ था,,,,,,,।

नहीं नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता एक जवान खूबसूरत लड़की आधी रात को किसी के पास जाए तो जरूर कुछ करने के लिए ही जाती है बताना उसने तेरे साथ क्या की थी,,,,।

कुछ भी तो नहीं की थी,,,,।(सेठ मनोहर लाल एकदम सहज होते हुए बोले,,,)



Arti ki ma or Rakesh

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नहीं मैं मान ही नहीं सकता,,, अब मुझसे क्यों छुपा रहा है तूने आज तक को नहीं बताया कि उसे दिन क्या हुआ था चल आज बता दे,,,,,,, मैं इतना तो जानता ही हूं कि कॉलेज में बहुत सी लड़कियां तेरी दीवानी थी उनमें से सुनीता भी थी,,,, अब बता दे सुनीता ने रात को तेरे साथ क्या की थी,,,, ?

(रूपलाल बार-बार मनोहर लाल से उसे रात को क्या हुआ था यह बताने के लिए बोल रहा था इंकार कर दे रहा था,,,, लेकिन लाख समझाने के बाद कसम देने के बाद मनोहर लाल बस इतना ही बोले,,,)

जैसा तू समझ रहा है रूपलाल सुनीता वैसा ही करने आई थी,,,, मेरे भी तंबू में मोमबत्ती चल रही थी क्योंकि मैं भी उपन्यास पढ़ रहा था और पढ़ते-पढ़ते मेरी आंख लगी हुई थी कि मैंने देखा कि तंबू में एक खूबसूरत लड़की घुस आई है और वह आते ही एकदम से मेरे पास बैठ गई और मैं कुछ समझ पाता,,,, इससे पहले ही बाहर मुझे चुप रहने का इशारा किया धीरे-धीरे बोली,,,,।

Rakesh or arti kk ma

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क्या बोली धीरे-धीरे,,,,?


अब जाने दे समझ गया ना कि वह मेरे साथ गलत काम करवाने के लिए आई थी बस वही बोली,,,,,।

लेकिन बता तो सही क्या बोली थी,,,।

वह मुझसे गंदा काम करवाना चाहती थी,,,।

मतलब वह तुझसे चुदवाना चाहती थी,,,(एकदम प्रसन्न होता हुआ रूपलाल बोला उसकी इस भाषा को सुनकर मनोहर लाल बोले,,,)


हां यार लेकिन इतना खुलकर बोलने की क्या जरूरत है,,,,,।


यार हम दोनों में कैसी शर्म यादें हम दोनों इसी तरह की बातें किया करते थे,,,,।



Rakesh or arti ki ma

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मुझे सब कुछ याद है लेकिन मैं नहीं सिर्फ तु इस तरह की बातें किया करता था,,।

हां यार वही,,,, क्या मस्त दीन थे यार,,,, काश कोई वह दिन लौटा देता तो कितना मजा आ जाता,,,।

ऐसा कभी नहीं हो सकता रुपलाल,,,,, समय मुट्ठी मिली है रेत की तरह होता है कब हथेली से फिसल जाता है पता ही नहीं चलता ,,,।

(मनोहर लाल को भी रूप लाल से बात करके बहुत अच्छा लग रहा था लेकिन पिकनिक वाली बात को वह पूरा सच रूप लाल से कभी नहीं बताया था उस दिन जो कुछ भी हुआ था उसे बहुत अच्छे से याद था,,,,,, रूपलाल कुछ देर के लिए उस दृश्य को याद करने लगा,,, जब वह रूप लाल के साथ कॉलेज के दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने गया था पहाड़ियों पर सब अपना अपना तंबू बनाए हुए थे सब दिन भर की थकान से चुर होकर अपने तंबू में जाते ही सो गए थे,,, लेकिन मनोहर लाल को उपन्यास पढ़ने की आदत थी इसलिए वह मोमबत्ती जलाकर उपन्यास पढ़ रहा था उसे नींद बिल्कुल भी नहीं आ रही थी कि तभी उसे अपने तंबू के बाहर परछाई नजर आई और वह उसे देखने के लिए बाहर आता है इससे पहले ही वह परछाई उसके तंबू में आ गई थी और अपनी आंखों के सामने मोमबत्ती के उजाले में अपनी ही कॉलेज की सबसे सेक्सी और खूबसूरत लड़की को देखकर उसके होश उड़ गए थे,,,,,।

तुम यहां क्या करने आई हो और वह भी आधीरात को,,,।

Rakesh or arti ki ma


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मैं तुमसे मिलने आई हूं मनोहर,,,


मुझसे मिलने अरे मिलना होता तो कल मिली होती इतनी रात को कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा,,,,।


में ईसकी परवाह नहीं करती,,,,(इतना कहते हुए वह मुस्कुराने लगी उसे मुस्कुराता हुआ देखकर मनोहर लाल की हालत खराब हो रही थी,,,,,, उसकी बात सुनकर मनोहर लाल उपन्यास को बंद करके बगल में रख दिया और घुटनों के बाल टीका लेकर अपने चेहरे को उठाते हुए सुनीता से बोले,,,)

देखो इस वक्त तुम्हारा यहां रुकना ठीक नहीं है तुम अपने तंबू में चले जाओ सुबह मिलना मैं तुमसे बात कर लूंगा,,,,।


अरे बेवकूफ मैं यहां पर बात करके समय बर्बाद करने नहीं आई हूं,,,,।

तो यहां क्या करने आई हो,,,,,।
Rakesh or rooplaal ki bibi

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मैं इस समय का,,,,(सुनीता लंबा फ्रॉक पहनी हुई थी और फ्रॉक को दोनों हाथों से पकड़ कर धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठा रही थी यह देखकर मनोहर की सांस अटक रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,) सदुपयोग करने आई है जिसमें मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है मैं तुम्हारे लिए तोहफा लाई हूं,,,(और इतना कहने के साथ ही सुनीता अपने फ्रॉक को एकदम से कमर तक उठा दे और अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार को मनोहर के सामने उजागर कर दी वह मनोहर को अपनी बुर दिखा रही थी अपनी बर दिखा कर उसे उकसा रही थी उसके साथ संबंध बनाने के लिए,,,।

मनोहर जिस दिन से कॉलेज में एडमिशन लिया था उसे दिन से ही सुनीता उससे आकर्षित हो गई थी,,, और इस समय तंबू में इस आकर्षण के चलते हुए मनोहर के साथ संबंध बनाकर अपनी प्यास में जाना चाहती थी मनोहर तो उसकी दोनों टांगों के बीच देखता ही रह गया,,,, क्योंकि मनोहर जिंदगी में पहली बार किसी खूबसूरत लड़की की बुर को अपनी आंखों से देख रहे थे इससे पहले मनोहर लाल ने कभी कल्पना भी नहीं किया था,,,, मोमबत्ती के उजाले में इतना साफ तो नहीं लेकिन फिर भी मनोहर लाल को सुनीता की दोनों टांगों के बीच की पतली दरार हल्की-हल्की नजर आ रही थी और इस बात से मनोहर लाल इनकार भी नहीं करते थे कि सुनीता की बुर को देखकर खुद मनोहर लाल का लंड खड़ा हो गया था,,,, मनोहर की तो सिट्टी पीट्टी गुम हो गई थी,,,, मनोहर की नजर सुनीता की दोनों टांगों के बीच से हट ही नहीं रही थी,,, यह देखकर सुनीता मन ही मन बहुत खुश हो रही थी और मुस्कुराते हुए बोली,,,,।)
Rakesh or rooplaal ki bibi

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देख क्या रहे हो मनोहर बिल्कुल भी मत सोचो मेरी बर तुम्हारे लिए है इसमें अपना लंड डालकर चोदो,,,।

(मनोहर लाल को सुनीता इसी शब्दों में एकदम गंदे और खुले शब्दों में ही आमंत्रण दे रही थी खुले शब्दों में मनोहर को चोदने के लिए बोल रही थी,,, मनोहर लाल जिंदगी में पहली बार किसी लड़की की बुर को देख रहा था और उसके मुंह से इतनी अश्लील भाषा को सुन रहा था जो उसे चोदने के लिए बोल रही थी लेकिन मनोहर लाल,,, पतलून का बिल्कुल भी ढीला नहीं था हां इतना जरूर था कि कुछ पल के लिए मनोहर लाल के होश एकदम से खो गए थे उसकी जगह कोई और होता तो शायद पूरी तरह से फेक जाता क्योंकि जिंदगी में पहली बार मनोहर लाल ने किसी औरत की बुर के दर्शन किए थे जिसके लिए दुनिया का हर मर्द उसे पाना चाहता है,,,, लेकिन बहुत ही जल्द मनोहर लाल होश में आ गया और तुरंत सुनीता के गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया,,, इसके बाद मनोहर लाल को कुछ बोलने की जरूरत नहीं पड़ी और सुनीता गुस्से में उसके तंबू से बाहर निकल कर अपने तंबू में चली गई,,,,।
Rooplaal ki bibi or Rakesh

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अभी मनोहर लाल इस तरह के ख्यालों में डूबा ही था कि रूपलाल एकदम से बोला,,,,।

अरे हां मनोहर,,,, कहीं बहू देखा कि नहीं,,,,,।

यार रूपलाल तुझे क्या बताऊं फोटो तो बहुत मैंने देखे और अपने बेटे को दिखाएं लेकिन वह देखने को तैयारी नहीं है,,,।

क्यों ऐसा क्या हो गया,,,,?(रूपलाल आश्चर्य जताते हुए बोला,,,)


अब क्या बताऊं रूपलाल,,,,(फिर मनोहर लाल ने सब कुछ रूपलाल से बता दिया रूप लाल जी इसी बात सुनकर अंदर ही अंदर घबरा गया था क्योंकि मनोहर लाल का बेटा इस लड़की से शादी करने की जिद पर एड गया था जिसे वहां रेस्टोरेंट में मिला था और मनोहर लाल भी अपने बेटे का ही साथ दे रहे थे इसलिए रूपलाल मन ही मन उदास हो गया उसे लगने लगा कि उसकी दाल गलने वाली नहीं है,,,,. फिर भी वह औपचारिकता निभाते हुए बोला,,,।)


Rakesh or rooplaal ki bibi

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यार मैं तो भगवान से दुआ करूंगा कि तुम दोनों की मनोकामना जल्दी पूरी हो जाए,,,,।

देखो कब भगवान पूरी करते हैं,,,,,(इतना कहते हुए अचानक मनोहर लाल को कुछ याद आया और वह तुरंत रूपलाल से बोले)

अरे हां रूपलाल अपनी बिटिया के लिए कोई मिला कि नहीं,,,,।

कहां यार ढूंढ ढूंढ के परेशान हो गया लेकिन कहीं सही रिश्ता ही नहीं मिल रहा है,,,,,(इतना कहने के साथ ही रूपलाल अपना पैसा फेंकते हुए तुरंत अपने जेब में हाथ डाले और अपनी बेटी आरती का फोटो बाहर निकाल दिए और मनोहर लाल की आंखों के सामने उसे अपने हाथ में लेकर देखते हुए बोले,,,) मैं तो अपनी बेटी आरती का फोटो अपने हाथ में लेकर चलता हूं कि कहीं कोई अच्छा रिश्ता मिल जाए तो लगे हाथों से फोटो भी दिखा दुं,,,,।

(रूपलाल के हाथों में फोटो को देखकर मनोहर लाल उसे बड़ी गौर से देखने लगे और उसे फोटो को अपने हाथ में ले लिए और देखते हुए बोले,,,)

रूपलाल बिटिया तो बहुत सुंदर है मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि इतनी अच्छी लड़की के लिए अभी तक रिश्ता क्यों नहीं मिल रहा है,,,,।

रिश्ता तो बहुत मिल रहा है मनोहर लाल लेकिन अच्छा नहीं मिल रहा है,,,,।

तो यह बात है,,,,, अच्छा तो चिंता मत कर कुछ दिनों के लिए फोटो मेरे पास रहने दे मैं भी कोशिश करके देख लेता हूं अगर अच्छा मिल रिश्ता मिल गया तो अपनी बिटिया राज करेगी,,,,।


यह तो बहुत अच्छा है मनोहर लाल तुम अगर ढूंढोगे तो मिल ही जाएगी,,,,।

अब बिल्कुल भी चिंता मत कर,,,,(अपनी घड़ी की तरफ देखते हुए) लेकिन समय बहुत हो गया है अब हमें चलना चाहिए,,,,.

हां चलना तो चाहिए बगीचे में लोग भी बहुत कम हो गए हैं,,,,।
(इतना कहने के साथ ही दोनों उठकर खड़े हो गए और बगीचे से बाहर जाने लगे रूप लाल मन ही मन बहुत खुश हो रहा था उसे न जाने क्यों अंदर से विश्वास हो रहा था कि मनोहर लाल को लड़की पसंद आ गई है लेकिन इस बात की चिंता भी थी कि उनका बेटा तो रेस्टोरेंट में जिस लड़की से मिला था उसी से शादी करने की जीद ठान कर बैठा है,,,, कुछ भी हो भगवान अच्छा ही करेंगे,,,, और ऐसा मन में सोच कर दोनों अपने-अपने घर की तरफ चले गए,,,,।)
Rooplaal ki bibi or Rakesh

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sunoanuj

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संध्या का समय था मौसम भी बड़ा सुहाना था,,,, हरे भरे बगीचे में लोग टहल रहे थे कुछ लोग कसरत कर रहे थे कुछ परिवार के साथ आए थे जो बैठकर गप्पे लड़ा रहे थे और जाने की तैयारी में भी थे,,, ऐसे में शेठ मनोहर लाल से रूपलाल की मुलाकात हो गई सेठ मनोहर लाल एक बड़े से पेड़ के नीचे रखे हुए सरकारी कुर्सी पर बैठकर आराम कर रहे थे,,,, रूपलाल की नजर जैसे ही मनोहर लाल पर पड़ी रूपलाल के चेहरे की रंगत एकदम से बदलने लगी रूपलाल एकदम से प्रसन्न हो गए क्योंकि बहुत दिनों बाद दोनों की मुलाकात हो रही थी आज रूपलाल के पास बहुत अच्छा मौका था अपनी बेटी के लिए बात करने की और इस मौके को रूप लाल अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था,,,,।

अरे मनोहर तु यहां संध्या के समय,,,,।
(रूपलाल को देखकर एकदम से प्रसन्न होते हुए मनोहर लाल भी बोले,,,)

अरे रूपलाल तु भी तो यही है,,, यह सवाल मैं भी तुझसे पूछ सकता हूं,,,,।


अरे क्यों नहीं क्यों नहीं जरुर पूछ सकता है आखिरकार हम दोनों का याराना बहुत पुराना है हम दोनों का एक दूसरे पर इतना तो हक होना ही चाहिए,,,,(सेठ मनोहर लाल की बगल में बैठते हुए रूप लाल बोला,,,)


क्यों नहीं दोस्त आखिरकार दोस्ती होती किस लिए है एक दूसरे पर हक जताने के लिए होती है,,, वैसे पार्टी के बाद से तू आज मिल रहा है बगीचे में भी नहीं मिलता आना-जाना बंद कर दिया है क्या,,,?

हां कुछ दिनों से काम बहुत था इसलिए मैं आ नहीं सकता था,,, आज मौका मिला तो सोचा चलो बगीचे में कुछ देर तक टहल लिया जाए तो आज इतना अच्छा मौका था कि तू मुझे यहीं मिल गया,,,। अब तुझसे थोड़ी बहुत बात भी हो जाएगी,,,,।


चल अच्छा हुआ,,,, तुझसे बात करके मुझे भी अच्छा लगता है वैसे भी हम दोनों का याराना बहुत पुराना है,,,,,, एक तू ही तो है जिससे मैं अपने दिल की बात बताता हूं,,,,,।

(सेठ मनोहर लाल की बात सुनते ही रूपलाल एकदम से हंसने लगा,,,, और वह भी जोर जोर से,,, यह देखकर मनोहर लाल को थोड़ा अजीब लगा तो वह हैरान होते हुए बोला,,,, क्योंकि बगीचे में जो इधर-उधर टहल रहे थे वह लोग उन दोनों की तरफ ही देखने लगे थे,,,, जिससे मनोहर लाल को अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए वह बोले,,,,)

क्या हुआ तुझे और ये जोर-जोर से क्यों हंस रहा है,,,,?

क्या बताऊं यार मनोहर मुझे कुछ याद आ गया तो सुनेगा तो तुझे भी हंसी आ जाएगी,,,,।

अरे बताएगा भी,,,,


अरे हां बताता हूं सांस तो लेने दे,,,अब तो बहुत कम मौका होता है जब इस तरह से हंसी आती है,,,,,,,,(अपनी हंसी को रोकने की कोशिश करते हुए रूप लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,)

तुझे याद है जब हम दोनों कॉलेज में नया नया एडमिशन लिए थे,,,।


हां,,,,,तो,,,,(मनोहर लाल कुछ याद करने की कोशिश करते हुए बोले लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि रूपलाल किस बारे में बात करने वाला है उसे क्या याद आ गया है जो इस तरह से हंस रहा है,,,,,)

अरे यार तुझे कुछ भी याद नहीं,,,,!(रूपलाल आश्चर्य जताते हुए बोला )

नहीं मुझे तो कुछ भी याद नहीं है,,,।

चिंता मत कर यार अभी सब कुछ याद आ जाएगा थोड़ा आगे तो बढ़ने दे,,,,,।

हां तो जल्दी बताना पहेलियां क्यों बुझा रहा है,,,, देख नहीं रहा है अंधेरा हो रहा है,,,,।

अरे यार तू तो ऐसा कह रहा है कि घर जाकर हमें ही खाना बनाना है,,,,।

अरे रूपलाल ऐसा नहीं है लेकिन फिर भी घर पर तो जाना ही है ना,,,,।

हां वह तो जाना ही है,,,, अच्छा सुन,,,, हम लोग पिकनिक मनाने के लिए पहाड़ियों पर गए थे जिसमें क्लास की कुछ लड़कियां भी थी,,,,।

हां,,,,(कुछ याद करने की कोशिश करते हुए धीरे से मनोहर लाल बोले,,,)


उन लड़कियों में एक लड़की का नाम सुनीता था,,,,(मनोहर लाल के चेहरे को एकदम से गौर से देखते हुए,,, और मनोहर लाल ने एकदम साफ तौर पर देखा कि सुनीता का नाम सुनते ही मनोहर लाल के चेहरे की रंगत बदलने लगी थी वह एकदम से जैसे कुछ याद आ गया हो वह बोले ,)


बस बस बस बस कर,,,, रूपलाल बस कर मुझे सब याद आ गया,,,(इतना कहते हुए मनोहर लाल के चेहरे पर भी मुस्कान तैरने लगी,,,,,)

अरे क्या बस कर जब बात निकली है तो हो जाने दे,,,,


अरे यार वह सब पुरानी बातें हैं अब वह उम्र नहीं रही,,,।

पता है मनोहर उमर नहीं रही लेकिन यादें तो अभी भी जवान है,,,,, तुझे बताने में शर्म आ रही है लेकिन मैं सब जानता था सबको अपना अलग-अलग तंबू मिला था,,,, मैं अपने तंबू में था,,,, पहाड़ियों पर हम लोग रुके थे सब लोग अपने-अपने तंबू में आराम कर रहे थे लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए मोमबत्ती जलाकर उसके उजाले में नोबेल पड़ रहा था और तभी मुझे कुछ हल्के सी आवाज आई और में धीरे से तंबू में से बाहर झांकने की कोशिश किया तो सुनीता को देखा उसे देख कर सच में मैं एक पल के लिए घबरा गया था क्योंकि मैं शुरू में उसे पहचान नहीं पाया और मुझे लगा कि पहाड़ी कोई चुड़ैल होगी क्योंकि तू तो जानता ही,,,, है,,, मुझे इन सब से बहुत डर लगता है और पहाड़ी इलाका होने की वजह से मुझे तो एकदम पक्का यकीन हो गया कि वह चुड़ैल ही है,,,,

(रूपलाल की बातों को सुनकर मनोहर लाल मंद मंद मुस्कुरा रहे थे,,,,, और मनोहर को मुस्कुराता हुआ देखकर रूप लाल अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)


मैं तंबू में था मैं अपने आप को एकदम से सिमटा लिया,,, मैं देखना चाहता था कि वह कहां जाती है और जब मैंने देखा कि वह तेरे तंबू में घुस रही है तब तुम एकदम से परेशान हो गया,,,, मेरे तो होश उड़ गए मैं जोर से चिल्लाना चाहता था लेकिन डर के बारे में मेरी आवाज नहीं निकल रही थी पर सबको जगा देना चाहता था लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि तंबू से बाहर जाकर किसी को जगाऊं मुझे तो पूरा यकीन हो चला था कि पहाड़ों पर रहने वाली कोई चुड़ैल तेरे तंबू के अंदर जा रही थी अब तो मैं भगवान से प्रार्थना करने लगा कि तुझे बचा ले,,,,,, सच में यार मैं बहुत डर गया था और मुझे बहुत शर्मिंदगी भी हो रही थी कि मैं तुझे बचा नहीं पा रहा था,,,,। लेकिन थोड़ी देर बाद हुआ तेरे तंबू में से बाहर निकल गई और जब वह बाहर निकाल कर मेरे सामने से गुजरी तब मुझे उसका चेहरा दिखाई दिया और जो मुझे एहसास हुआ कोई चुड़ैल नहीं बाकी सुनीता है तो मेरी जान में जान आई लेकिन अगले ही पल फिर मेरे होश एकदम से उड़ गए,,,,,।

क्यों,,,,?(सेठ मनोहर लाल मुस्कुराते हुए पुछे,,,)


अरे यार तब मुझे होश आया कि कॉलेज की सबसे सेक्सी लड़की तेरे तंबू में आधी रात को गई थी,,,, जिस लड़की को पूरा कॉलेज भाव देता था और वह किसी को भाव नहीं देती थी लेकिन वह लड़की तेरे पीछे पागल थी जो आधी रात को तेरे तंबू में गई थी बताना उसे दिन क्या हुआ था,,, सुनीता और तेरे बीच क्या हुआ था रात को,,,,।

अरे कुछ भी तो नहीं हुआ था,,,,,,,।

नहीं नहीं ऐसा हो ही नहीं सकता एक जवान खूबसूरत लड़की आधी रात को किसी के पास जाए तो जरूर कुछ करने के लिए ही जाती है बताना उसने तेरे साथ क्या की थी,,,,।

कुछ भी तो नहीं की थी,,,,।(सेठ मनोहर लाल एकदम सहज होते हुए बोले,,,)

नहीं मैं मान ही नहीं सकता,,, अब मुझसे क्यों छुपा रहा है तूने आज तक को नहीं बताया कि उसे दिन क्या हुआ था चल आज बता दे,,,,,,, मैं इतना तो जानता ही हूं कि कॉलेज में बहुत सी लड़कियां तेरी दीवानी थी उनमें से सुनीता भी थी,,,, अब बता दे सुनीता ने रात को तेरे साथ क्या की थी,,,, ?

(रूपलाल बार-बार मनोहर लाल से उसे रात को क्या हुआ था यह बताने के लिए बोल रहा था इंकार कर दे रहा था,,,, लेकिन लाख समझाने के बाद कसम देने के बाद मनोहर लाल बस इतना ही बोले,,,)

जैसा तू समझ रहा है रूपलाल सुनीता वैसा ही करने आई थी,,,, मेरे भी तंबू में मोमबत्ती चल रही थी क्योंकि मैं भी उपन्यास पढ़ रहा था और पढ़ते-पढ़ते मेरी आंख लगी हुई थी कि मैंने देखा कि तंबू में एक खूबसूरत लड़की घुस आई है और वह आते ही एकदम से मेरे पास बैठ गई और मैं कुछ समझ पाता,,,, इससे पहले ही बाहर मुझे चुप रहने का इशारा किया धीरे-धीरे बोली,,,,।


क्या बोली धीरे-धीरे,,,,?


अब जाने दे समझ गया ना कि वह मेरे साथ गलत काम करवाने के लिए आई थी बस वही बोली,,,,,।

लेकिन बता तो सही क्या बोली थी,,,।

वह मुझसे गंदा काम करवाना चाहती थी,,,।

मतलब वह तुझसे चुदवाना चाहती थी,,,(एकदम प्रसन्न होता हुआ रूपलाल बोला उसकी इस भाषा को सुनकर मनोहर लाल बोले,,,)


हां यार लेकिन इतना खुलकर बोलने की क्या जरूरत है,,,,,।


यार हम दोनों में कैसी शर्म यादें हम दोनों इसी तरह की बातें किया करते थे,,,,।

मुझे सब कुछ याद है लेकिन मैं नहीं सिर्फ तु इस तरह की बातें किया करता था,,।

हां यार वही,,,, क्या मस्त दीन थे यार,,,, काश कोई वह दिन लौटा देता तो कितना मजा आ जाता,,,।

ऐसा कभी नहीं हो सकता रुपलाल,,,,, समय मुट्ठी मिली है रेत की तरह होता है कब हथेली से फिसल जाता है पता ही नहीं चलता ,,,।

(मनोहर लाल को भी रूप लाल से बात करके बहुत अच्छा लग रहा था लेकिन पिकनिक वाली बात को वह पूरा सच रूप लाल से कभी नहीं बताया था उस दिन जो कुछ भी हुआ था उसे बहुत अच्छे से याद था,,,,,, रूपलाल कुछ देर के लिए उस दृश्य को याद करने लगा,,, जब वह रूप लाल के साथ कॉलेज के दोस्तों के साथ पिकनिक मनाने गया था पहाड़ियों पर सब अपना अपना तंबू बनाए हुए थे सब दिन भर की थकान से चुर होकर अपने तंबू में जाते ही सो गए थे,,, लेकिन मनोहर लाल को उपन्यास पढ़ने की आदत थी इसलिए वह मोमबत्ती जलाकर उपन्यास पढ़ रहा था उसे नींद बिल्कुल भी नहीं आ रही थी कि तभी उसे अपने तंबू के बाहर परछाई नजर आई और वह उसे देखने के लिए बाहर आता है इससे पहले ही वह परछाई उसके तंबू में आ गई थी और अपनी आंखों के सामने मोमबत्ती के उजाले में अपनी ही कॉलेज की सबसे सेक्सी और खूबसूरत लड़की को देखकर उसके होश उड़ गए थे,,,,,।

तुम यहां क्या करने आई हो और वह भी आधीरात को,,,।

मैं तुमसे मिलने आई हूं मनोहर,,,


मुझसे मिलने अरे मिलना होता तो कल मिली होती इतनी रात को कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा,,,,।


में ईसकी परवाह नहीं करती,,,,(इतना कहते हुए वह मुस्कुराने लगी उसे मुस्कुराता हुआ देखकर मनोहर लाल की हालत खराब हो रही थी,,,,,, उसकी बात सुनकर मनोहर लाल उपन्यास को बंद करके बगल में रख दिया और घुटनों के बाल टीका लेकर अपने चेहरे को उठाते हुए सुनीता से बोले,,,)

देखो इस वक्त तुम्हारा यहां रुकना ठीक नहीं है तुम अपने तंबू में चले जाओ सुबह मिलना मैं तुमसे बात कर लूंगा,,,,।


अरे बेवकूफ मैं यहां पर बात करके समय बर्बाद करने नहीं आई हूं,,,,।

तो यहां क्या करने आई हो,,,,,।


मैं इस समय का,,,,(सुनीता लंबा फ्रॉक पहनी हुई थी और फ्रॉक को दोनों हाथों से पकड़ कर धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठा रही थी यह देखकर मनोहर की सांस अटक रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,) सदुपयोग करने आई है जिसमें मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है मैं तुम्हारे लिए तोहफा लाई हूं,,,(और इतना कहने के साथ ही सुनीता अपने फ्रॉक को एकदम से कमर तक उठा दे और अपनी दोनों टांगों के बीच की पतली दरार को मनोहर के सामने उजागर कर दी वह मनोहर को अपनी बुर दिखा रही थी अपनी बर दिखा कर उसे उकसा रही थी उसके साथ संबंध बनाने के लिए,,,।

मनोहर जिस दिन से कॉलेज में एडमिशन लिया था उसे दिन से ही सुनीता उससे आकर्षित हो गई थी,,, और इस समय तंबू में इस आकर्षण के चलते हुए मनोहर के साथ संबंध बनाकर अपनी प्यास में जाना चाहती थी मनोहर तो उसकी दोनों टांगों के बीच देखता ही रह गया,,,, क्योंकि मनोहर जिंदगी में पहली बार किसी खूबसूरत लड़की की बुर को अपनी आंखों से देख रहे थे इससे पहले मनोहर लाल ने कभी कल्पना भी नहीं किया था,,,, मोमबत्ती के उजाले में इतना साफ तो नहीं लेकिन फिर भी मनोहर लाल को सुनीता की दोनों टांगों के बीच की पतली दरार हल्की-हल्की नजर आ रही थी और इस बात से मनोहर लाल इनकार भी नहीं करते थे कि सुनीता की बुर को देखकर खुद मनोहर लाल का लंड खड़ा हो गया था,,,, मनोहर की तो सिट्टी पीट्टी गुम हो गई थी,,,, मनोहर की नजर सुनीता की दोनों टांगों के बीच से हट ही नहीं रही थी,,, यह देखकर सुनीता मन ही मन बहुत खुश हो रही थी और मुस्कुराते हुए बोली,,,,।)

देख क्या रहे हो मनोहर बिल्कुल भी मत सोचो मेरी बर तुम्हारे लिए है इसमें अपना लंड डालकर चोदो,,,।

(मनोहर लाल को सुनीता इसी शब्दों में एकदम गंदे और खुले शब्दों में ही आमंत्रण दे रही थी खुले शब्दों में मनोहर को चोदने के लिए बोल रही थी,,, मनोहर लाल जिंदगी में पहली बार किसी लड़की की बुर को देख रहा था और उसके मुंह से इतनी अश्लील भाषा को सुन रहा था जो उसे चोदने के लिए बोल रही थी लेकिन मनोहर लाल,,, पतलून का बिल्कुल भी ढीला नहीं था हां इतना जरूर था कि कुछ पल के लिए मनोहर लाल के होश एकदम से खो गए थे उसकी जगह कोई और होता तो शायद पूरी तरह से फेक जाता क्योंकि जिंदगी में पहली बार मनोहर लाल ने किसी औरत की बुर के दर्शन किए थे जिसके लिए दुनिया का हर मर्द उसे पाना चाहता है,,,, लेकिन बहुत ही जल्द मनोहर लाल होश में आ गया और तुरंत सुनीता के गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया,,, इसके बाद मनोहर लाल को कुछ बोलने की जरूरत नहीं पड़ी और सुनीता गुस्से में उसके तंबू से बाहर निकल कर अपने तंबू में चली गई,,,,।

अभी मनोहर लाल इस तरह के ख्यालों में डूबा ही था कि रूपलाल एकदम से बोला,,,,।

अरे हां मनोहर,,,, कहीं बहू देखा कि नहीं,,,,,।

यार रूपलाल तुझे क्या बताऊं फोटो तो बहुत मैंने देखे और अपने बेटे को दिखाएं लेकिन वह देखने को तैयारी नहीं है,,,।

क्यों ऐसा क्या हो गया,,,,?(रूपलाल आश्चर्य जताते हुए बोला,,,)


अब क्या बताऊं रूपलाल,,,,(फिर मनोहर लाल ने सब कुछ रूपलाल से बता दिया रूप लाल जी इसी बात सुनकर अंदर ही अंदर घबरा गया था क्योंकि मनोहर लाल का बेटा इस लड़की से शादी करने की जिद पर एड गया था जिसे वहां रेस्टोरेंट में मिला था और मनोहर लाल भी अपने बेटे का ही साथ दे रहे थे इसलिए रूपलाल मन ही मन उदास हो गया उसे लगने लगा कि उसकी दाल गलने वाली नहीं है,,,,. फिर भी वह औपचारिकता निभाते हुए बोला,,,।)

यार मैं तो भगवान से दुआ करूंगा कि तुम दोनों की मनोकामना जल्दी पूरी हो जाए,,,,।

देखो कब भगवान पूरी करते हैं,,,,,(इतना कहते हुए अचानक मनोहर लाल को कुछ याद आया और वह तुरंत रूपलाल से बोले)

अरे हां रूपलाल अपनी बिटिया के लिए कोई मिला कि नहीं,,,,।

कहां यार ढूंढ ढूंढ के परेशान हो गया लेकिन कहीं सही रिश्ता ही नहीं मिल रहा है,,,,,(इतना कहने के साथ ही रूपलाल अपना पैसा फेंकते हुए तुरंत अपने जेब में हाथ डाले और अपनी बेटी आरती का फोटो बाहर निकाल दिए और मनोहर लाल की आंखों के सामने उसे अपने हाथ में लेकर देखते हुए बोले,,,) मैं तो अपनी बेटी आरती का फोटो अपने हाथ में लेकर चलता हूं कि कहीं कोई अच्छा रिश्ता मिल जाए तो लगे हाथों से फोटो भी दिखा दुं,,,,।

(रूपलाल के हाथों में फोटो को देखकर मनोहर लाल उसे बड़ी गौर से देखने लगे और उसे फोटो को अपने हाथ में ले लिए और देखते हुए बोले,,,)

रूपलाल बिटिया तो बहुत सुंदर है मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि इतनी अच्छी लड़की के लिए अभी तक रिश्ता क्यों नहीं मिल रहा है,,,,।

रिश्ता तो बहुत मिल रहा है मनोहर लाल लेकिन अच्छा नहीं मिल रहा है,,,,।

तो यह बात है,,,,, अच्छा तो चिंता मत कर कुछ दिनों के लिए फोटो मेरे पास रहने दे मैं भी कोशिश करके देख लेता हूं अगर अच्छा मिल रिश्ता मिल गया तो अपनी बिटिया राज करेगी,,,,।


यह तो बहुत अच्छा है मनोहर लाल तुम अगर ढूंढोगे तो मिल ही जाएगी,,,,।

अब बिल्कुल भी चिंता मत कर,,,,(अपनी घड़ी की तरफ देखते हुए) लेकिन समय बहुत हो गया है अब हमें चलना चाहिए,,,,.

हां चलना तो चाहिए बगीचे में लोग भी बहुत कम हो गए हैं,,,,।
(इतना कहने के साथ ही दोनों उठकर खड़े हो गए और बगीचे से बाहर जाने लगे रूप लाल मन ही मन बहुत खुश हो रहा था उसे न जाने क्यों अंदर से विश्वास हो रहा था कि मनोहर लाल को लड़की पसंद आ गई है लेकिन इस बात की चिंता भी थी कि उनका बेटा तो रेस्टोरेंट में जिस लड़की से मिला था उसी से शादी करने की जीद ठान कर बैठा है,,,, कुछ भी हो भगवान अच्छा ही करेंगे,,,, और ऐसा मन में सोच कर दोनों अपने-अपने घर की तरफ चले गए,,,,।)

Bahut hi behtarin updates….
 

Premkumar65

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अपनी मम्मी पापा की गरमा गरम चुदाई देखकर आरती दबे पांव अपने कमरे में वापस आ चुकी थी,,, अभी भी उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था क्योंकि आज तक आरती ने अपनी मम्मी पापा के बारे में इस तरह की हरकत करने के बारे में सोची ही नहीं थी,,, आरती आज पूरी तरह से जवान हो चुकी थी शादी लायक हो चुकी थी लेकिन आज तक उसने कभी अपनी मम्मी पापा को अश्लील हरकत करते देखी नहीं थी इसीलिए वह आज अपनी मम्मी पापा को एक नए रूप में देखकर पूरी तरह से हैरान हो चुकी थी,,,,।



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अपने कमरे में आने के बावजूद भी दूध का गिलास अभी भी उसके हाथ में था,,,, वह अपनी बिस्तर पर बैठी हुई थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था जो कुछ भी उसके मम्मी पापा के कमरे में हो रहा था वह सब कुछ उसकी आंखों के सामने किसी फिल्म की तरह घूम रहा था उसे खुद पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी कि आज उसने अपनी आंखों से क्या देख ली,,, आज तक वह अपनी मम्मी को पुरे वस्त्र में और धार्मिकता के साथ-साथ पूजा पाठ करते हुए देखते आ रही थी आज तक अपनी मम्मी के मुंह से कभी भी एक अश्लील शब्द नहीं सुनी थी लेकिन आज पूरे जज्बात बदल चुके थे पूरा नजारा बदल चुका था आरती अपनी मम्मी को एकदम संस्कारी और धार्मिक समझती थी लेकिन आज उसका यह भरम तुट चुका था,,,। आज तक उसने अपनी मां को ना तो बाथरूम में ना ही उसके खुद के कमरे में कभी अर्धनग्न अवस्था में भी नहीं देखी थी की नाच अपनी मां को वह संपूर्ण रूप से नग्न अवस्था में देखकर आ रही थी इसलिए वह पूरी तरह से आश्चर्य में थी,,,,।




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जहां एक तरफ वह अपनी मम्मी पापा के बीच इस तरह के रिश्ते को देखकर हैरान थी वहीं दूसरी तरफ उसके बदन में अजीब सी हलचल भी हो रही थी मदहोशी उसके बदन को अपनी आगोश में ले रही थी,,,, उसे अपने पापा पर दया आ रही थी वह अपने पापा की हालत पर शर्मिंदा भी थी क्योंकि वह इतनी तो समझदार हो गई थी कि वह अपनी मां की कहानी गई बात को और अपने बाप की लाचारी को समझ सकती थी ,,,। अपनी मां की बात को सुनकर वह समझ गई थी उसके पापा उसकी मां को खुश करने मैं अब बिल्कुल भी समर्थ नहीं है अपनी मां की बात सुनकर क्या उनके द्वारा लाया गया तेल की शीशी और दवा को देखकर वह समझ गई थी कि वह दवा मर्दों के अंग में मर्दाना ताकत वापस लाने की औषधि है,,,।




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लेकिन आरती एक बात से हैरान थी कि इस उम्र में भी उसकी मां चुदवाने के लिए क्यों तड़प रही है,,,,। जबकि उम्र के इस पड़ाव पर तो औरतों और भी ज्यादा धार्मिक हो जाती हैं और पूजा पाठ में ही मन लगाते हैं उसकी सहेलियों की मां लोग भी तो धार्मिक और पूजा पाठ वाली है उन्हें वह खुद अपनी आंखों से देखी थी ऐसा वह अपने मन में सोच रही थी,,, उसके मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे आज उसे ऐसा लग रहा था कि उसकी मां उनकी सहेलियों की मां जैसी क्यों नहीं है उसके पापा उसके सहेलियों के पापा जैसे क्यों नहीं है सीधे-साधे अपने काम से कम रखने वाले हो पूजा पाठ और समाज में उठने बैठने वाले उन्हें देखकर लगता नहीं है कि वह लोग कमरे में इस तरह की हरकत करते होंगे,,,, आरती यह सब अपने मन में सोच ही रही थी कि तभी उसे एहसास हुआ कि उसके मम्मी पापा भी थे आज की रात से पहले दूसरों के मां-बाप की तरह ही सीधे शादी और धार्मिक विचारों वाले ही थे,,,, क्या सभी मर्द और औरत समाज के सामने कुछ और और बंद कमरे के अंदर कुछ और व्यवहार करते हैं,,,, जैसा कि वह खुद अपनी मम्मी पापा को देख चुकी थी,,,,।



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अपने मन में ही काफी विचार विमर्श करने के बाद उसे एहसास होने लगा कि वाकई में उसके मम्मी पापा की तरह दूसरे की मम्मी पापा भी इसी तरह का व्यवहार करते होंगे कमरे के अंदर बस समाज को नहीं पता चलता कि उनके अंदर भी एक प्यासा इंसान छुपा हुआ है,,,, जो रात को ही कमरे के अंदर ही बाहर आता है,,,, आरती की सांस अभी भी भारी चल रही थी उसे जब एहसास हुआ कि उसके हाथ में तो उसका ग्लास है तो वह धीरे से अपनी बिस्तर पर से उठी और चलते हुए खिड़की तक गई जहां पर टेबल पड़ा हुआ था टेबल के ऊपर ही हुआ दूध का ग्लास रख दी ,,, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें आखिरकार वह भी थी तो एक औरत और वह भी पूरी तरह से जवान जिसकी जवानी अभी तो शुरू हुई थी जिसके मन में इस तरह के ख्याल आना लाजमी था,,।

जब उसे गर्मी का एहसास हुआ तो वह छत की तरफ देखी पंखा बंद था,,, तो वह खिड़की के पास ही पंखे के स्विच को दबाकर चालू कर दो और पंखा अपनी रफ्तार में घूमने चला लेकिन फिर भी बर्दाश्त नहीं हुआ तो बाकी को खोल दी और रात को चल रही ठंडी हवा को अपने कमरे में आने के लिए आमंत्रण दे दी ठंडी हवा का झोंका उसके विभिन्न को थोड़ी बहुत राहत दे रहा था लेकिन,,, वह अपने आप को सहज नहीं महसूस कर पा रही थी,,,, खिड़की के खुलते ही मुख्य सड़क पर आवागमन कर रहे वाहन को वह बड़ी गौर से देखने लगी और अपने मन में सोचने लगी,,,,।



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इन सभी गाड़ियों में कुछ मर्द बैठे होंगे कुछ औरत बैठी होगी जो अपनी-अपने घर की तरफ जाने के लिए उतावले हो रहे हैं और यह लोग घर पर जाकर क्या करेंगे,,, समाज की नजरों से दूर बंद कमरे के अंदर औरत और मर्द एक दूसरे की प्यास बुझाने में पूरी तरह से जुट जाएंगे,,, चार दीवारी के अंदर इंसान का एक अलग ही चेहरा सामने आता है,,, यह सब सोच कर उसके मन को राहत नहीं बल्कि वह और भी उलझन में फसती चली जा रही थी,,, आखिरकार उसने कौन सा कयामत ला देने वाला नजारा देख ली थी औरत और मर्द के बीच होने वाली औपचारिक संबंध जिसे संभोग कहते हैं वही तो देखी थी,,,, लेकिन यह विचार केवल महापुरुषों के मन में आ सकता है एक साधारण इंसान के मन में बिल्कुल भी नहीं और आरती तो अभी-अभी जवानी पर कदम रखी थी उसकी तो शुरुआत थी,,, उसके लिए तो यह सब कुछ नया था भले ही इन सब के बारे में सोच कर उसका आकर्षण इन बातों की ओर कभी-कभी हो जाता था लेकिन आज जो कोई भी उसने अपनी आंखों से देखी थी वह उसके दिलों दिमाग पर पूरी तरह से छप गया था,,,,।




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कुछ देर खुली हुई खिड़की के पास खड़ी होकर सड़क देखने के बाद आरती धीरे से अपने बिस्तर के पास आई और बैठ गई,,,,,, और अपने मन में सोचने लगी कि उसकी मां को क्या चाहिए जिसके लिए वह अपने ही पति को भला बुरा कह कर उसे अपमानित कर दी ,, और इस सवाल का जवाब वह अपने मन में ही अपने आप को देते हुए बोली इन सब के पीछे जवाबदार है लंड,,,, लंड शब्द अपने मन में ही बोलने पर ही उसके बदन में उत्तेजना का तूफान उठने लगा,,, वह अपने आप को ही जवाब देते हुए पति उसकी मां को लंड चाहिए मोटा तगड़ा लंबा जो उसकी बुर की प्यास बुझा सके यही तो चाहती है उसकी मां,,, सब खेल लंड का ही है,,, और उसके पापा का खेल बिगाड़ा भी है तो सिर्फ लंड ने ,, पापा का लंड कमजोर हो गया है उसमें अब बुरे के अंदर घुसने की शक्ति नहीं रह गई देखी तो थी वह अपनी आंखों से पापा का लंड कैसा ढीला सा और झूल सा गया था,,, फिर वह अपने मन में सोचने लगी की ढीला लंड वाकई में बर के छेद में बिल्कुल भी प्रवेश नहीं कर सकता,,,, इस बात को अच्छी तरह से जानती थी क्योंकि कपड़े बदलते समय बाथरूम में नहाते समय वह अपनी बर को अपनी आंखों से देखी थी उसके छोटे से छेद को अच्छे से पहचानती थी और वह अपने मन में यही सोच रही थी की औरत के छोटे से छेद में मोटा लंड घुसने के लिए उसमें ताकत होना वाकई में बेहद जरूरी है उसका टन टना कर खड़ा होना बेहद जरूरी है,,, जोकि उसके पापा का बिल्कुल भी नहीं हो रहा था,,,।



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आरती अपने मन में यही सब सो रही थी कि तभी उसे ख्याल आया कि तेल की मालिश करने के बावजूद भी उसके पापा का लंड एकदम ढीला था ,, और इस बारे में उसकी मां ने भी उसके पापा से बोली थी तो उसके पापा ने यही कहा था कि मुंह में लेकर इसे खड़ा कर दो,,, अपने पापा की यह बात उसे याद आती है उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर उठने लगी उसकी दोनों टांगों के बीच सुरसुराहट बढ़ने लगी और उसे महसूस होने लगा कि जैसे वह पेशाब करती है उसे अपनी पेंटिंग पूरी तरह से गली और चिपचिपी महसूस होने लगी,,, उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आया वह देखना चाहती थी कि आखिर वह कह रहा है इसलिए तुरंत अपने बिस्तर पर से खड़ी हुई और अपनी सलवार की डोरी खोलने लगी और देखते ही देखते अपने हाथों से अपनी सलवार उतार कर नीचे जमीन पर फेंक दी वह केवल कुर्ती और पेटी में थी,,,,, उसे साफ दिखाई दे रहा था की पेंटिं का आगे वाला हिस्सा पूरी तरह से गिला हो चुका था वह धीरे से हाथ अपनी पैंटी पर लेकर गई तो उसकी उंगलियों में चिपचिपाहट महसूस होने लगी और वहां हाथ को दूर करके अपनी उंगली आपस में रगड़ने लगी तो ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी उंगलियों में गोंद लाग गया हो,,,, उसे इस चिपचिपाहट भर पानी के बारे में कुछ समझ में नहीं आ रहा था,,,,,।



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आरती की ना समझी उसके संस्कारों की छवि थी वह कभी भी इस तरह की हरकत की नहीं थी कि इन सब के बारे में उसे ज्ञान हो हां कभी कबार कोई लड़का उसे बड़े अच्छा लग जाता था लेकिन वह इस हद तक ना तो उसे लड़के को लेकर कभी सोचती थी और नहीं कभी अपने कदम डगमगाने देती थी,,,, वह धीरे से अपनी पेंटिं को आगे की तरफ खींचकर अपनी पैंटी में झांकने लगी,,, उसे अपनी बुर पर हल्के हल्के बाल दिखाई दे रहे थे,,, और तभी उसे अपनी मां की बुरी आदत नहीं जो कि एकदम मक्खन की तरह चिकनी थी उसे इस बात का एहसास हुआ कि सफाई के मामले में उसकी मां एक कदम आगे है,,,, सफाई के मामले में ही खूबसूरती के मामले में भी वह एक कदम आगे हैं आरती को तुरंत अपनी मां की बड़ी-बड़ी चूचियां याद आ गई उसकी बड़ी-बड़ी गांड याद आ गई और उसे इस बात का एहसास हुआ कि वाकई में साड़ी पहनने पर औरतों की चूची और गांड बड़ी होनी चाहिए तभी उनकी खूबसूरती में चार चांद लगते हैं,,वह अपने मन मे सोचने लगी कि अगर वाकई में उसे कभी मौका मिला तो अगर वह अपनी मम्मी के साथ कपड़े उतार कर अगर नंगी हो जाए तो मां बेटी दोनों में उसकी मां ही अव्वल नंबर आएगी खूबसूरती के मामले में जवान और खूबसूरत होने के बावजूद भी वह खुद अपनी मां से पिछड़ जाएगी,,,।
Rooplaal ki bibi


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चूचियों की बात आते ही उसकी नजर अपने आप ही उसकी छाती पर चली गई,,, और उसे अपनी चूची देखकर एहसास हुआ कि वाकई में जहां एक तरफ उसकी मां के छाती की शोभा उसकी पपैया जैसी बड़ी-बड़ी चूची बढ़ा रही थी वही उसके खुद के पास अभी केवल संतरा ही था,,,, गहरी सांस लेते हुए वह वापस अपनी चड्डी में देखने लगी जो की पूरी तरह से भीग चुकी थी,,,। उसे बड़ा अजीब लग रहा था उसकी चिपचिपाहट उसे अच्छी नहीं लग रही थी इसलिए वह धीरे से अपनी पैंटी को उतार कर उसे भी फर्श पर फेंक दी,,, और कमर के नीचे वह नंगी हो गई,,,,,, दूसरी पैंटी पहनने की जल्दबाजी उसमें बिल्कुल भी नहीं थी,,, वह उसी तरह से बिस्तर पर बैठ गई,,, और उसे ख्याल आया कि कैसे उसके पापा उसकी मां को लंड मुंह में लेने के लिए बोल रहे थे अपने पापा की बात सुनकर उसे मन में ऐसा ही लग रहा था कि उसकी मांग कर देगी ऐसा गंदा काम नहीं करेगी क्योंकि लंड से तो सुसु किया जाता है,,, और जिस लंड से पेशाब किया जाता है उसे एक औरत कैसे मुंह में लेकर चुस सकती है,,, लेकिन उसकी आंखें तब आश्चर्य से फटी की फटी हो गई जब उसकी मां बिल्कुल भी इनकार किए बिना ही बेझिझक उसके पापा के लंड को मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दी,,, यह देख करके तो उसकी हालत खराब हो गई थी,,, पल भर के लिए उसे लगा कि उसकी मां बहुत गंदी औरत है लेकिन जब उसकी मां थोड़ी देर बाद लंड को मुंह में से बाहर निकले तो वाकई में उसके पापा का लंड थोड़ा सा बड़ा हो गया था,,, इस बात से वह हैरान भी थी,,, लेकिन इस हरकत के लिए आरती के मन में अपनी मां के लिए इज्जत थोड़ी कम हो गई थी क्योंकि वह नहीं जानती थी कि उसकी मां इतनी गंदी हरकत भी कर सकती है,,,,।
Rooplaal ki bibi panty utar k phenkti huyi

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अपनी मम्मी पापा के कमरे में जो कुछ भी उसने देखी थी उसके बारे में सोचकर वह पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी और वह धीरे से अपनी बिस्तर पर लेट गई थी जो कुछ भी हो रहा था वह अन्जाने में हो रहा था वह अपनी मम्मी पापा के बारे में सोचते हुए अपनी दोनों टांगों को खोल चुकी थी और अपने आप ही उसकी हथेली उसकी बुर पर आ चुकी थी जो की उत्तेजना के मारे कचोरी की तरह फुल चुकी थी,,,, अपनी हथेली को अपनी बुर पर रखते ही उसके बदन में झनझनाहट होने लगी लेकिन यह झनझनाहट उसे बहुत अच्छी लग रही थी वह धीरे-धीरे अपनी आंखों को बंद करके हथेली से अपनी गुलाबी बुर को रगड़ने लगी मसलने लगी और ऐसा करने में उसे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी,,,‌

अपनी बुर को मसलते हुए यही सोच रही थी कि वाकई में बुर की छोटे से छेद में जाने के लिए लंड का कड़क होना बेहद जरूरी है जो कि उसके पापा का बिल्कुल भी नहीं हो रहा था,,, इस बारे में सोच कर वहां अपनी सोच को अपने ऊपर ही आजमाना चाहती थी और धीरे से अपनी एक उंगली को अपनी बुर में डालना शुरू कर दी,,, यह उसकी पहली कोशिश थी अपनी बुर में अपनी उंगली को डालने की वरना आज तक वह इस बारे में कभी सोची भी नहीं रही लेकिन आज हालात कुछ और थे,,,, वह मजबूर हो चुकी थी वह धीरे-धीरे अपनी उंगली को अपनी बर के छोटे से छेद में डाल रही थी और उसे एहसास हो रहा था कि वाकई में उसकी पतली सी उंगली उसके छोटे से छेद में बड़ी मुश्किल से जा रही थी तो मोटा तगड़ा लंड भला बुरे के छेद में आराम से और वह भी ढीला होने पर कैसे चला जाएगा,,,।
Rooplaal ki bibi madhosh hoti huyi

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अपनी उंगली को अपनी बुर में डालते हुए उसे अपनी मां की बात याद आ गई जब उसके पापा उसकी मां को चोदने के लिए तैयार से तभी उसकी मां ने कही थी कि पहले उंगली से मेरी प्यास बुझा दो तभी अंदर डालना,,,, और उसके पापा भी उसकी मां की बात को मान गए थे और बुर में उंगली अंदर बाहर कर रहे थे,,, अपनी मां की इस बात को बस समझ नहीं पाई थी लेकिन उसे अपनी बुर में उंगली डालने में बहुत मजा आ रहा था धीरे-धीरे अंदर बाहर कर रही थी और उसकी तरह से वह मदहोश हो जा रही थी उसकी आंखें बंद थी और वह बिस्तर पर मचल रही थी जिसकी वजह से बिस्तर पर बीछी चादर पर सिलवटें पड़ रही थी,,,।

देखते देखते वह अपने चरम सुख के करीब पहुंचने लगी जैसे-जैसे चरम सुख के करीब पहुंच रही थी वह पूरी तरह से मदहोश में जा रही थी उसके चेहरे का रंग टमाटर की तरह लाल हो गया था वह मजबूत हो चुकी थी उसके बदन में ऐंठन हो रही थी और देखते ही देखते हो अपनी उंगली को बड़े जोरों से अपनी बुर के अंदर बाहर करने लगी और से इस बात का भी एहसास हो रहा था कि जितनी देर से हो अपनी बुर में उंगली कर रही थी उसके आगे समय में ही उसके पापा देर हो गए थे,,,, देखते देखते उसकी कमर एकदम से ऊपर की तरफ हवा में उछली और उसकी बुर से नमकीन रस का फवारा फुट पड़ा उसे ऐसा लगा कि जैसे वह पेशाब कर दी,, लेकिन उसे एहसास हुआ कि वह पेशाब नहीं कुछ और था वह मत हो चुकी थी जीवन का पहला चरण सुख वह अपनी उंगली से प्राप्त ली थी,,, फिर फिर वह इस अवस्था में नीद की आगोश में चली गई,,।
Rooplaal ki bibi

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दूसरे दिन सुबह उठने पर वह अपनी मां से नजर नहीं मिल पा रही थी अपनी मां से नजर मिलाने में उसे शर्म का एहसास हो रहा था क्योंकि जो कुछ भी उसने रात को देखी थी अपनी मां की हरकत को देखी थी उसके चलते न जाने क्यों उसके मन में अपनी मां के लिए इज्जत थोड़ी कम हो गई थी शायद इसलिए कि वह एक औरत के मन को नहीं जानती थी औरत होने के बावजूद भी औरत की चाहत को वह नहीं समझती थी,,।

धीरे-धीरे इसी तरह से 10 15 दिन गुजर गए वह फिर से अपनी मां को पहले की तरह ही इज्जत देने लगी,,, लेकिन अभी तक उसके पापा उसके बारे में मनोहर लाल से बात नहीं किए थे,,,, हां लेकिन इस बीच वह अपने लंड की मालिश करना नहीं भुलते थे,,, वैसे तो रूप लाल भी मनोहर लाल से मिलना चाहता था लेकिन दोनों की मुलाकात ही नहीं हो रही थी लेकिन एक दिन शाम को बगीचे में दोनों की मुलाकात हो गई और आज रूपलाल अपने मन में ठंड लिया था कि आज वह अपनी बेटी की बात मनोहर लाल से करके रहेगा,,।

Rooplaal ki bibi ki mast

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superb update.
 
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