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बातें - कुछ अच्छी, कुछ सच्ची

Luvyrus160

The Infinite Tsukuyomi !
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◆◆ INTRODUCTION◆◆

Ye koi stories nahi hai, aur naahi ye kisi tarah se shayari. Ye sirf baatein hai...Kuch sacchi to kuch achhi..
I hope aapko pasand aaye...
Dhanywaad🙏
 
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Luvyrus160

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◆【1】

दूर तलक जाती चिंखें,खौफ लिए दुबक्की, कही झाड़ियों के पीछे या तो कही गुप्त ठिकानो में।
सामने मौत का तांडव ही चल रहा था, बस तनिक धीमा।
हिम्मत ना थी किसीकी, सभी सयाने हो चले थे।
ज़मीन पे बिछी छौने (हिरण का बच्चा) की लाश, और उसके लगभह बारह गज दूरी पे उसकी माँ, बेशुध पड़ी थी। उससे हिला भी न जा रहा था, एक पंजे में ही वो ढेर हो गयी थी।
पर थी माँ हिम्मत वाली, करीब चार सवा चार सौ वजनी दैत्य, क्रूर, सिंह से जा भिड़ी। पर थी वो अकेली, दुर्बल, भला दैत्य के सामने कहा टिक पाती। अब तो झुंड भी साथ न था, धोका मिलना उसे जरा भी न अखरा । जैसे वो मौत की भीख माँग रही थी, उसके छौने के साथ क्रूरता होने से पहले। थी बस एक मात्र यही माँग और कुछ नही।
 
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◆ 【2】

जंग होती है,सत्ता के लिए,अहंकार के लिए या फिर होती है अपनी ही जान के लिए।

जंग जीतनी ही पड़ती है, इसके अलावा कोई विकल्प भी तो नही, हारने वालो को मिलती है, सज़ा, सज़ा-ए-मौत की।

सल्तनत की गद्दी कभी स्थायी नही रहती, उसके सुल्तान नियमित रूप से बदलते रहते है। पर ये बदलाव ऐसे ही इतनी आसानी से थोड़ी हो जाती है। उसके लिए जाबाज़ी, षडयंत्र, कूटनीति,क्रुरता,धूर्तता, और झुंढ़ या परिवार की एकता मायने रखती है।

फिर होती है घोषणा, घोषणा प्रभुत्ता की, नए सुल्तान की, मुहर हुकूमत की, सबको अपने सामने झुकाने की, अनंत भोग-विलास की।

आखिर यही तो होते है, सबके स्वप्न, असल सत्य। बाकी सभी मिथ्या।।
 
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Luvyrus160

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◆ 【3】

धूर्तता, चालाकी, और धैर्यपूर्णता के साथ एकता, पहचान भेड़िये की होती है।

शेर कितना ही बब्बर हो, इनके सामने पावँ डगमगा ही जातें है।

ललकार जंगल मे इनकी प्रभूत्वा को दर्शाती है, किस्मत खुद से लिखने की ये यलगार होती है।

मन पिशाच, नज़रे बांज़, रणनीति बाघ, और लक्ष्य शार्क जैसी होती है।

झुंढ़ में भेदना, दबोचना, और शिकार को आपस मे सहजता से परोशना, इनकी चरित्रता को दर्शाती है।
 
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Luvyrus160

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◆ 【4】

सरीर थुथुल, धड़कने शून्य, और विचार अंधकारों में। अपना ही अस्तित्व मिथ्या सा लगता है, फिर कैसा राजा और कौन रंक।
व्यक्तिगत धन का महत्व अमान्य हो जाता है,रिस्तो की कोई डोर नही।
ना कोई बरसात की भीनी भीनी सी खुसबू, ना बसंत की बहार, नाही गर्मी की तपिश और ना जाड़े की ठीकुरन। अब तो वक़्त का भी कोई पाबंद नही, न किसी तरह का बोझ, आज़ाद।
सभी बेमतलबी बातें ही हो जाती हैं, समय शून्य में होने को चला जो है, आँखें मूंद स्वर्ग ही जाना है, या कही और, किसी को क्या ही पता।
आखिर सभी तो मिथ्या ही है न।
 
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