“मदद तो मैं तुम्हारी कर दूँगा. पर बदले में मुझे क्या मिलेगा?”
“अगर तुम किसी मैकेनिक को ले आए तो मैं तुम्हें पाँच सो रुपए दूँगी...”
“पैसे नहीं चाहिए मुझे... कुछ और दे सकती है तो बात कर.”
“कुछ और क्या चाहिए तुम्हें?” मैंने पूछा. दरअसल मैं समझ नहीं पाई थी उसकी बात. लेकिन अगले ही पल मैं समझ गई और मेरा चेहरा ग़ुस्से से लाल हो गया. “शर्म नहीं आती तुम्हें ऐसी बात करते हुए. मैं तुमसे मदद माँग रही हूँ और तुम ऐसी औछी बात कर रहे हो.”
“क्या बुरा है इसमें... तू मुझसे कुछ माँग रही है. सब काम छोड़ कर मुझे तेरे काम में लगना पड़ेगा. बदले में मुझे भी तो कुछ चाहिए.”
“ज़रूरत में किसी की मदद करना पुण्य का काम होता है.”
“मेरे बदन की आग बुझा कर जो तू मेरी मदद करेगी वो भी तो पुण्य का काम ही होगा.”
“छी... शर्म करो... कैसी बातें करते हो. दफ़ा हो जाओ यहाँ से.”
“सोच ले. मैं शरीफ़ लड़का हूँ. कोई बदमाश आ गया यहाँ तो तेरी ऐसी तैसी कर देगा.”
“चल भाग यहाँ से. बेवक़ूफ़ कहीं का...” मैंने चिल्ला कर दरवाज़ा बंद कर लिया. मगर उसकी ये बात कि कोई बदमाश आ गया यहाँ तो मेरी ऐसी तैसी कर देगा... मेरे मन में घूमती रही. जो वो कह रहा था वैसा होना कोई असंभव नहीं था. अकेली महिला को देखकर कोई भी इंसान से शैतान बन सकता था.
मैंने डरी सहमी आँखों से सड़क के दोनो तरफ़ नज़र दौड़ायी. अभी तो कोई नज़र नहीं आ रहा था. तभी मैंने ग़ौर किया कि वो बदतमीज़ लड़का अभी गया नहीं था. वो अपनी साइकिल को सड़क किनारे खड़ी करके एक पेड़ के सहारे खड़ा मेरी कार की तरफ़ देख रहा था. बड़ा अजीब लड़का था वो. अभी तो कह रहा था कि उसे कोई काम था और अब वहां खड़ा वक़्त बरबाद कर रहा था. खड़ा रहने दो...मुझे क्या... मैं उसकी बात मानने वाली नहीं थी.
वक़्त बितता गया. मैं कार में बैठी रही और वो लड़का भी पेड़ से सटे खड़ा रहा. कोई तीस मिनट बाद उसने अंगड़ाई ली और अपनी साइकिल की तरफ़ बढ़ा. शायद वो अब जाने की तैयारी कर रहा था.
जैसे ही वो साइकिल पर चढ़ा मैं सिहर उठी और मुझे अहसास हुआ की उसके वहाँ होने से मैं थोड़ा कम भयभीत थी. वो चला गया तो उस अंधेरी सुनसान सड़क पर एक पल भी बिताना मुश्किल हो जाएगा. लेकिन मैं कर क्या सकती थी? मैं उसे रुकने को तो बोल नहीं सकती थी.
जब वो पैडल मार कर आगे बढ़ने लगा तो मुझे ख़्याल आया कि क्यों ना मैं उसकी बात मानने के लिए राज़ी हो जाऊँ. सच में नहीं. झूट मूठ में. मैं उसे बोलूँगी कि पहले कार ठीक करवाओ और फिर जो उसका मन है वो हो जाएगा. एक बार कार ठीक हो गई तो मैं अपने रास्ते और वो अपने रास्ते.
मुसीबत से निकलने का ये ख़्याल सही तो मालूम हो रहा था मगर क्या ऐसा करना ठीक होगा? बात उल्टी पड़ गई तो?
पर ये सब सोचने का वक़्त नहीं था. लड़का दूर जाता जा रहा था. मुमकिन था कि कोई और उस रास्ते पर ना आए
उस रास्ते पर ना आए और आए भी तो वो वैसा बदमाश हो जैसा ये लड़का कह रहा था.
मैं सिहर उठी और दरवाज़ा खोल कर कार से बाहर निकली तुरंत. “हे रुको,” मैं ज़ोर से चिल्लायी. सुनसान सड़क पर मेरी आवाज़ हर तरफ़ गूंज गई.
वो रुक गया. “क्या है?” वो चिल्लाया.
“मुझे तुम्हारी बात मंज़ूर है,” मैं बोली.
“सच?” वो झूमती आवाज़ में बोला और साइकिल घुमा कर वापिस आने लगा. मैं कार में घूस गई और दरवाज़ा थोड़ा खुला रखा ताकि जब वो पास आए तो मैं उस से ठीक से बात कर सकूँ.
जब वो मेरी कार से लगभग पंद्रह कदम की दूरी पर आ गया तो मैं बोली, “वहीं रुक जाओ.”
वो रुक गया और साइकिल को खड़ी करके बोला, “जब तुझे मेरी बात मंज़ूर है तो दूर क्यों रख रही है तू मुझे?”
“पहले तुम मेरी कार ठीक करवाओगे उसके बाद जो तुम चाहोगे वो होगा,” मैंने कहा.
“तू जानती है ना कि मैं क्या चाहता हूँ?”
“हाँ-हाँ जानती हूँ,” मैंने बात को टालते हुए कहा.
मगर वो इसे टालने के मूड में नहीं था. उसने बाएँ हाथ के अंगूठे और तर्जनी उँगली को जोड़ कर एक बड़ा गोल छेद बनाया और उसमें दूसरे हाथ की तर्जनी उँगली अंदर बाहर करने लगा. “मैं ये चाहता हूँ,” वो हंसते हुए बोला.
मेरे गाल शरम से लाल हो गए. “शरम करो... ये क्या कर रहे हो?”
“वही जो मैंने तेरे साथ करना है,” वो हंसते हुए बोला. बड़ी गंदी सी हंसी थी उसकी. और इस से भी ज़्यादा गंदी उसकी ये हरकत थी जो वो लगातार किए जा रहा था. बार बार अपने दाएँ हाथ की तर्जनी उँगली को उस गोल छेद में अंदर बाहर कर रहा था जो कि उसने बाएँ हाथ से बना रखा था.
“ये सब बंद करो और किसी मैकेनिक को ले आओ जल्दी से,” मैं बोली. उसकी गंदी हरकत मुझे असहज कर रही थी.
“तू भी चल मेरे साथ,” वो बोला.
“नहीं तुम जाओ मैं यहीं कार में ही इंतजार करूँगी.”
“यहाँ अकेले रुकना ठीक नहीं तेरा. चल मेरे साथ. मैकेनिक से मोल भाव भी कर लेना.”
“वो जो माँगेगा दे दूँगी... उसकी चिंता नहीं है.”
“लगता है बहुत पैसे वाली है तू.”
“फ़ालतू की बातें मत करो और जल्दी लेकर आओ किसी मैकेनिक को.”
“मेरी बात मान...” वो आगे बढ़ता हुआ बोला.
“वहीं रुको... आगे मत आओ...”
“डर क्यों रही है. पास आकर खा नहीं जाऊँगा तुझे...”