दो हफ्ते बाद
आज निशा बहुत खुश है। खुशी का कारण है उसकी भाभी श्वेता। अपनी भाभी श्वेता को लेने वो भीमा के साथ रेलवे स्टेशन आईं। स्टेशन बहुत ही छोटा है और गांव के पास ही आया है। सुबह 10 बजे ठीक समय गाड़ी पहुंची। गाड़ी में से एक सुंदर सी महिला बाहर आई। आंखो पर sunglass और साड़ी में वो जैसे रुपसुंदर लग रही थी। वो श्वेता ही थी। श्वेता को देख निशा दौड़ते हुए पास और गले लग गई।
"भाभी मेरी प्यारी भाभी कैसी हो तुम ?"
श्वेता मुस्कुराते हुए बोली "में ठीक हूं। तुम कैसी हो ?"
"अब तक तो ठीक थी लेकिन आपके आने से और भी अच्छी हो गई। आखिर में आपने हमेशा के लिए यहां रहने का फैसला कर ही लिया।"
"हां लेकिन ये बताओ की स्कूल कहां पर है ?"
"ओह हो भाभी आते ही काम ? अभी नही। अभी मेरी प्यारी भाभी मेरे साथ रहेगी समझी ?"
इतने में भीमा श्वेता के पास आया और हाथ जोड़ते हुए बोला "नमस्ते मालकिन।"
श्वेता मुस्कुराते हुए भीमा का हाथ पकड़ते हुए बोली "नंदोई साहब अब आप नौकर नही हमारे नदोई है। दुबारा मेमसाब या मालकीन बोला तो खैर नहीं।"
"जी भाभी।" भीमा बोला।
तीनों गाड़ी में बैठे और हवेली आ पहुंचे। हवेली पहुंचते ही बच्चे सीधा श्वेता के गले लग गए। श्वेता ने बच्चो को चॉकलेट दिया और तोहफे भी। श्वेता ने देखा तो नटवर चाचा साथ में थे। निशा ने दोनो का एक दूसरे से परिचय करवा।
"भाभी ये है नटवर चाचा। आप जिस स्कूल में प्रीसिपल बनी है वो उसी स्कूल में आपके साथ काम करेंगे और आपकी मदद करेंगे।"
श्वेता ने हाथ जोड़ते हुए नटवर से कहा "नमस्ते नटवर्जी कैसे है आप ?"
नटवर बोला "मैं ठीक हूं। आप काफी थक गई होंगी आप आराम कर लीजिए।"
निशा और श्वेता दोनो साथ कमरे में गए।
"तो बताओ निशा बच्चो के साथ जिंदगी कैसे चल रही है ?"
"बहुत अच्छी। भाभी मेरा तो ठीक है लेकिन अनामिका कैसी है ?"
(वैसे अनामिका श्वेता को चोटी बहन है।)
"वो ठीक है। अभी तो फिलहाल वो एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है।"
"भाभी उसे भी लाती। कुछ दिनों यहां रहती और गांव की सुंदरता और शांति को महसूस करती।"
"तू तो जानती है। तुझसे मिलने का उसका कितना मन था लेकिन काम बहुत आ गया। अच्छा ये बता भीमा का क्या कहना है ? बड़े मजे लेती होगी उससे।" श्वेता ने छेड़ते हुए कहा।
"भाभी आप भी ना। हां मजा तो लेती हूं। लेकिन सच कहूं। उनके साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है।"
"अच्छा निशा ये बता कि स्कूल में कितने बच्चे है और समय क्या है ?"
"भाभी बुरा न मानना लेकिन आपको काम बहुत रहेगा।"
"अगले पगली मै आई हूं तेरी मदद के लिए। अब बता आगे।"
"स्कूल का समय सुबह 9 से 1 बजे है। लेकिन आप प्रिंसिपल हो तो दोपहर 3 बजे तक आपका कुछ न कुछ फाइल या पेपर वर्क होगा। आप 3 बजे छूट सकती है। करीब 250 बच्चे पढ़ते है। सरकार इस स्कूल को चलती है। आपकी सैलरी 1,25,000 रहेगा। आपको काम बहुत रहेगा। लेकिन चिंता न करे। नटवर चाचा हमेशा आपके साथ रहेंगे। आपकी मदद करेंगे।"
"तो कब से स्कूल जाना होगा ?"
"भाभी कल से। आपके साथ नटवर चाचा स्कूल चलेंगे।"
"ठीक है निशा चल अब मैं थोड़ा आराम कर लूं। कल से काम बहुत है।"
अगले दिन।
सुबह 8 बजे सभी लोग तैयार हो गए थे। भीमा, निशा तीन बच्चे, नटवर चाचा और श्वेता। सभी ने नाश्ता किया। निशा भीमा ऑफिस के लिए निकल गए। बच्चे ड्राइवर नौकर के साथ स्कूल चले गए। नटवर चाचा और श्वेता साथ में पैदल स्कूल को चल दिए। श्वेता और नटवर चाचा एक दूसरे से बात करने लगे।
"वैसे श्वेताजी आपको थोड़ा अलग लगेगा स्कूल का माहोल लेकिन कुछ ही दिनों में आप सभी कार्यों को समझ जाएंगी।"
श्वेता हल्के से मुस्कान देते हुए बोली "हां थोड़ा तो अलग लगेगा ही। लेकिन आप यहां के माहोल से वाकिफ है तो आप मेरी मदद करेंगे ही।"
"अजी मदद को करूंगा ही न। इसी की तनख़ा मिलती है।"
"अच्छा ये बताइए इससे पहले कौन था यहां पर प्रिंसिपल ?"
"दरसल श्वेतजी पिछले 2 साल से यहां प्रिंसिपल की भर्ती नही हुई। कोई यहां आने को तैयार नहीं था। आपसे पहले द्विवेदी साहब थे लेकिन वो रिटायर हो गए। आपकी पढ़ाई और qualification को निशा ने सरकारी ऑफिसर को बताया। वैसे भी कोई न आने को तैयार था इसीलिए आपका इंटरव्यू भी लेना उन्होंने जरूरी नहीं समझा।"
"दो साल बिना प्रिंसिपल के ?" श्वेता ने हैरान होकर पूछा।
"हां श्वेतजी। इसीलिए कई सारे हिसाब किताब फाइल्स का काम आप ही को निपटना है। इसीलिए तो आप एक भी विषय में बच्चो को पढ़ा नहीं सकती।"
"लेकिन मैने बच्चो को ही पढ़ाया। पूरे दिन ऑफिस में बैठकर काम कैसे करूं ?" श्वेता ने हताश होकर कहा।
"लेकिन श्वेतजी काम भी तो ये जरूरी है।"
फिर दोनो स्कूल पहुंचे। श्वेता ने सभी स्टाफ वालो से मुलाकात की। ज्यादातर सभी महिलाएं ही थी वो भी 40 पर उमरवाली। श्वेता ने ऑफिस में बैठने से पहले स्कूल को अच्छे से देखा। घने बगीचों के बीच ये सरकारी स्कूल। बच्चो के लिए टूटी फूटी कुर्सी और टेबल। टीचर्स की भी हालत थोड़ी नाजुक थी। कुछ टीचर्स के पास टेबल चेयर भी नही था क्लास में। फिर भी वह बड़े मेहनत से बच्चो को पढ़ा रही थी। श्वेता ने सोचा की सबसे पहले स्कूल में जरूरी सुविधा को वापिस लाना होगा।
नटवर चाचा आते ही काम में लग गए। हिसाब किताब का जायज़ा लेना शुरू किया। टेबल पर चाय का ग्लास और फाइल्स को देखने का काम किया। अब आप शायद से सोच रहे होंगे कि इतना बुढ़ा आदमी स्कूल में काम कैसे कर रहा है ? लेकिन काम करे नही तो क्या करे। सालो से ज्यादा भर्ती नही हुई क्लर्क और चपरासियों की इसीलिए इनको काम करना पड़ रहा है। शुक्र है निशा ने स्कूल को जरूरी सामान जैसे टेबल चेयर पंखा और साफ सफाई जैसी सुविधा और शौचालय बनवाया नही तो स्कूल के बच्चे पहले बाजार पेड़ के नीचे पढ़ते थे। अब निशा अकेले स्कूल तो नही देख सकती इसीलिए तो श्वेता को बुलाया। श्वेता जो वैसे भी मेहनती और ईमानदार महिला है उनके नेतृत्व में स्कूल का चलना सही होगा।
नटवर श्वेता के साथ ही ऑफिस में रहेगा और काम करेगा। श्वेता को कुछ फाइल्स देकर दस्तखत लिया।
"अच्छा नटवर चाचा। आप वो बच्चो के भोजन बनने का रसोईघर दिखाइए। वहां खाना कैसे और किस किस क्वालिटी का बनता है वो मुझे देखना है।"
"हां शिवाजी चलिए मैं आपको रसोईघर ले चलता हूं। वैसे आपको बता दूं कि दोपहर 12:45 स्कूल खत्म होता है और बच्चे खाना खाकर 1:30 बजे घरचले जाते है।"
श्वेता ने रसोईघर देखा जो काफी साफ था। आते और दाल को क्वालिटी को भी देखा। सब सही था। श्वेता और नटवर वापिस ऑफिस में चले गए। नटवर थोड़ा आराम करने के लिए बैठा। अपने डायरी में कुछ लिखा और उसे टेबल पर रखकर वापिस काम में लग गया। श्वेता ने देखा कि स्कूल के बच्चे मेहनती है। टीचर्स भी अच्छे से बात करती है और मन लगाकर काम करती है। आज स्कूल का पहला दिन अच्छा रहा। दोपहर के 2 बज गए और स्कूल में सिर्फ नेटियर चाचा और श्वेता ही थे। दोनो दोपहर के सन्नाटे में काम कर रहे थे। नटवर और श्वेता दोनो 4 बजे वापिस घर आए। दोनो ने रास्ते में खूब बाते की। स्कूल से घर के बीच एक छोटा सा जंगल आता है। वहीं से दोनो घर आ रहे थे। निशा ने बच्चो को लेने भीमा हो आता है। श्वेता को पहले दिन ही स्कूल और गांव का माहोल पसंद आ गया। अब देखना ये है कि वो स्कूल और गांव के लिए आगे क्या क्या करेगी।
आज निशा बहुत खुश है। खुशी का कारण है उसकी भाभी श्वेता। अपनी भाभी श्वेता को लेने वो भीमा के साथ रेलवे स्टेशन आईं। स्टेशन बहुत ही छोटा है और गांव के पास ही आया है। सुबह 10 बजे ठीक समय गाड़ी पहुंची। गाड़ी में से एक सुंदर सी महिला बाहर आई। आंखो पर sunglass और साड़ी में वो जैसे रुपसुंदर लग रही थी। वो श्वेता ही थी। श्वेता को देख निशा दौड़ते हुए पास और गले लग गई।
"भाभी मेरी प्यारी भाभी कैसी हो तुम ?"
श्वेता मुस्कुराते हुए बोली "में ठीक हूं। तुम कैसी हो ?"
"अब तक तो ठीक थी लेकिन आपके आने से और भी अच्छी हो गई। आखिर में आपने हमेशा के लिए यहां रहने का फैसला कर ही लिया।"
"हां लेकिन ये बताओ की स्कूल कहां पर है ?"
"ओह हो भाभी आते ही काम ? अभी नही। अभी मेरी प्यारी भाभी मेरे साथ रहेगी समझी ?"
इतने में भीमा श्वेता के पास आया और हाथ जोड़ते हुए बोला "नमस्ते मालकिन।"
श्वेता मुस्कुराते हुए भीमा का हाथ पकड़ते हुए बोली "नंदोई साहब अब आप नौकर नही हमारे नदोई है। दुबारा मेमसाब या मालकीन बोला तो खैर नहीं।"
"जी भाभी।" भीमा बोला।
तीनों गाड़ी में बैठे और हवेली आ पहुंचे। हवेली पहुंचते ही बच्चे सीधा श्वेता के गले लग गए। श्वेता ने बच्चो को चॉकलेट दिया और तोहफे भी। श्वेता ने देखा तो नटवर चाचा साथ में थे। निशा ने दोनो का एक दूसरे से परिचय करवा।
"भाभी ये है नटवर चाचा। आप जिस स्कूल में प्रीसिपल बनी है वो उसी स्कूल में आपके साथ काम करेंगे और आपकी मदद करेंगे।"
श्वेता ने हाथ जोड़ते हुए नटवर से कहा "नमस्ते नटवर्जी कैसे है आप ?"
नटवर बोला "मैं ठीक हूं। आप काफी थक गई होंगी आप आराम कर लीजिए।"
निशा और श्वेता दोनो साथ कमरे में गए।
"तो बताओ निशा बच्चो के साथ जिंदगी कैसे चल रही है ?"
"बहुत अच्छी। भाभी मेरा तो ठीक है लेकिन अनामिका कैसी है ?"
(वैसे अनामिका श्वेता को चोटी बहन है।)
"वो ठीक है। अभी तो फिलहाल वो एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है।"
"भाभी उसे भी लाती। कुछ दिनों यहां रहती और गांव की सुंदरता और शांति को महसूस करती।"
"तू तो जानती है। तुझसे मिलने का उसका कितना मन था लेकिन काम बहुत आ गया। अच्छा ये बता भीमा का क्या कहना है ? बड़े मजे लेती होगी उससे।" श्वेता ने छेड़ते हुए कहा।
"भाभी आप भी ना। हां मजा तो लेती हूं। लेकिन सच कहूं। उनके साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है।"
"अच्छा निशा ये बता कि स्कूल में कितने बच्चे है और समय क्या है ?"
"भाभी बुरा न मानना लेकिन आपको काम बहुत रहेगा।"
"अगले पगली मै आई हूं तेरी मदद के लिए। अब बता आगे।"
"स्कूल का समय सुबह 9 से 1 बजे है। लेकिन आप प्रिंसिपल हो तो दोपहर 3 बजे तक आपका कुछ न कुछ फाइल या पेपर वर्क होगा। आप 3 बजे छूट सकती है। करीब 250 बच्चे पढ़ते है। सरकार इस स्कूल को चलती है। आपकी सैलरी 1,25,000 रहेगा। आपको काम बहुत रहेगा। लेकिन चिंता न करे। नटवर चाचा हमेशा आपके साथ रहेंगे। आपकी मदद करेंगे।"
"तो कब से स्कूल जाना होगा ?"
"भाभी कल से। आपके साथ नटवर चाचा स्कूल चलेंगे।"
"ठीक है निशा चल अब मैं थोड़ा आराम कर लूं। कल से काम बहुत है।"
अगले दिन।
सुबह 8 बजे सभी लोग तैयार हो गए थे। भीमा, निशा तीन बच्चे, नटवर चाचा और श्वेता। सभी ने नाश्ता किया। निशा भीमा ऑफिस के लिए निकल गए। बच्चे ड्राइवर नौकर के साथ स्कूल चले गए। नटवर चाचा और श्वेता साथ में पैदल स्कूल को चल दिए। श्वेता और नटवर चाचा एक दूसरे से बात करने लगे।
"वैसे श्वेताजी आपको थोड़ा अलग लगेगा स्कूल का माहोल लेकिन कुछ ही दिनों में आप सभी कार्यों को समझ जाएंगी।"
श्वेता हल्के से मुस्कान देते हुए बोली "हां थोड़ा तो अलग लगेगा ही। लेकिन आप यहां के माहोल से वाकिफ है तो आप मेरी मदद करेंगे ही।"
"अजी मदद को करूंगा ही न। इसी की तनख़ा मिलती है।"
"अच्छा ये बताइए इससे पहले कौन था यहां पर प्रिंसिपल ?"
"दरसल श्वेतजी पिछले 2 साल से यहां प्रिंसिपल की भर्ती नही हुई। कोई यहां आने को तैयार नहीं था। आपसे पहले द्विवेदी साहब थे लेकिन वो रिटायर हो गए। आपकी पढ़ाई और qualification को निशा ने सरकारी ऑफिसर को बताया। वैसे भी कोई न आने को तैयार था इसीलिए आपका इंटरव्यू भी लेना उन्होंने जरूरी नहीं समझा।"
"दो साल बिना प्रिंसिपल के ?" श्वेता ने हैरान होकर पूछा।
"हां श्वेतजी। इसीलिए कई सारे हिसाब किताब फाइल्स का काम आप ही को निपटना है। इसीलिए तो आप एक भी विषय में बच्चो को पढ़ा नहीं सकती।"
"लेकिन मैने बच्चो को ही पढ़ाया। पूरे दिन ऑफिस में बैठकर काम कैसे करूं ?" श्वेता ने हताश होकर कहा।
"लेकिन श्वेतजी काम भी तो ये जरूरी है।"
फिर दोनो स्कूल पहुंचे। श्वेता ने सभी स्टाफ वालो से मुलाकात की। ज्यादातर सभी महिलाएं ही थी वो भी 40 पर उमरवाली। श्वेता ने ऑफिस में बैठने से पहले स्कूल को अच्छे से देखा। घने बगीचों के बीच ये सरकारी स्कूल। बच्चो के लिए टूटी फूटी कुर्सी और टेबल। टीचर्स की भी हालत थोड़ी नाजुक थी। कुछ टीचर्स के पास टेबल चेयर भी नही था क्लास में। फिर भी वह बड़े मेहनत से बच्चो को पढ़ा रही थी। श्वेता ने सोचा की सबसे पहले स्कूल में जरूरी सुविधा को वापिस लाना होगा।
नटवर चाचा आते ही काम में लग गए। हिसाब किताब का जायज़ा लेना शुरू किया। टेबल पर चाय का ग्लास और फाइल्स को देखने का काम किया। अब आप शायद से सोच रहे होंगे कि इतना बुढ़ा आदमी स्कूल में काम कैसे कर रहा है ? लेकिन काम करे नही तो क्या करे। सालो से ज्यादा भर्ती नही हुई क्लर्क और चपरासियों की इसीलिए इनको काम करना पड़ रहा है। शुक्र है निशा ने स्कूल को जरूरी सामान जैसे टेबल चेयर पंखा और साफ सफाई जैसी सुविधा और शौचालय बनवाया नही तो स्कूल के बच्चे पहले बाजार पेड़ के नीचे पढ़ते थे। अब निशा अकेले स्कूल तो नही देख सकती इसीलिए तो श्वेता को बुलाया। श्वेता जो वैसे भी मेहनती और ईमानदार महिला है उनके नेतृत्व में स्कूल का चलना सही होगा।
नटवर श्वेता के साथ ही ऑफिस में रहेगा और काम करेगा। श्वेता को कुछ फाइल्स देकर दस्तखत लिया।
"अच्छा नटवर चाचा। आप वो बच्चो के भोजन बनने का रसोईघर दिखाइए। वहां खाना कैसे और किस किस क्वालिटी का बनता है वो मुझे देखना है।"
"हां शिवाजी चलिए मैं आपको रसोईघर ले चलता हूं। वैसे आपको बता दूं कि दोपहर 12:45 स्कूल खत्म होता है और बच्चे खाना खाकर 1:30 बजे घरचले जाते है।"
श्वेता ने रसोईघर देखा जो काफी साफ था। आते और दाल को क्वालिटी को भी देखा। सब सही था। श्वेता और नटवर वापिस ऑफिस में चले गए। नटवर थोड़ा आराम करने के लिए बैठा। अपने डायरी में कुछ लिखा और उसे टेबल पर रखकर वापिस काम में लग गया। श्वेता ने देखा कि स्कूल के बच्चे मेहनती है। टीचर्स भी अच्छे से बात करती है और मन लगाकर काम करती है। आज स्कूल का पहला दिन अच्छा रहा। दोपहर के 2 बज गए और स्कूल में सिर्फ नेटियर चाचा और श्वेता ही थे। दोनो दोपहर के सन्नाटे में काम कर रहे थे। नटवर और श्वेता दोनो 4 बजे वापिस घर आए। दोनो ने रास्ते में खूब बाते की। स्कूल से घर के बीच एक छोटा सा जंगल आता है। वहीं से दोनो घर आ रहे थे। निशा ने बच्चो को लेने भीमा हो आता है। श्वेता को पहले दिन ही स्कूल और गांव का माहोल पसंद आ गया। अब देखना ये है कि वो स्कूल और गांव के लिए आगे क्या क्या करेगी।