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Romance बुड्ढा पति ।

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park

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सुबह के ६ बज गए और ठंडी हवा चारो तरफ अपना जाल फैला चुका था। ठंड से मंद मंद कांपती हुई श्वेता उठी। उसी वक्त मुन्ना भीनूथ गया। मुन्ना श्वेता को बिना कुछ बोले उठा दिया। दोनो मन्नू के घर गए। बदल चारो तरफ से घिरा था। बिना कुछ बोले दोनो घर पहुंचे। मनु ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। श्वेता को एक कमरे ले गया। श्वेता खटिया पर लेट गई। मन्नू ने गरम रजाई श्वेता को ओढ़ा दी। श्वेता गहरी नींद में फिर से समा गई। बिना कुछ बोले मन्नू भी अपने कमरे में चला गया और ठंडी से बचने के लिए थोड़ी देर रजाई में लेट गया।

सुबह 11 बजे थे। श्वेता की आंख खुली और वो कमरे से बाहर आई।

"क्या हुआ जानू ? उठ गई ?" मन्नू ने पूछा।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए बोली "हां उठ गई। चलो अब मुझे जाना होगा।"

"दुबारा कब मुलाकात होगी ?"

"अगले शनिवार ?"

"ठीक है श्वेता।"

श्वेता और मन्नू ने एक दूसरे को अलविदा किया। श्वेता घर की तरफ लौटी। रास्ते के बीच अचानक से बारिश हुई। श्वेता दौड़ते दौड़ते घर पहुंची। वो पूरी तरह से भीग चुकी थी। घर के अंदर नटवर काका ने श्वेता को देखा तो अंदर लेकर आए।

श्वेता का पूरा बदन भीग चुका था।

"अरे श्वेता ये क्या हुआ ? तुम भीग चुकी हो। अंदर जाओ और कपड़े बदलकर आओ।"

श्वेता अंदर गई और कपड़े बदलकर अंदर वापिस आई। नटवर ने चाय बनाया और श्वेता को दिया।

"बारिश अचानक से शुरू हो गई।" श्वेता ने थोड़ा सा कांपते हुए कहा।

"हां और आज ठंडी भी कितनी है।" नटवर ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।

"अच्छा आप जरा कुसुम चाची को कहिए न कि आज खाना न बनाए।"

"अरे श्वेता तुम भूल गई ? वो आज से एक हफ्ते छुट्टी पर है। घर में कोई नहीं हम दोनो ने सिवाय।"

"अरे हां काका। मैं तो भूल ही गई।"

"वैसे आप थी कहा ?"

"बाहर गई थी। अच्छा आप मेरे साथ कुछ लकड़ी लेने स्टोर रूम चलिए न। थोड़ा आज लगाकर सेक लेते है। ठंडी सच्ची में बहुत है आज।"

नटवर और श्वेता ने आग लगाई और आंगन में सेक लें लगे। श्वेता को थोड़ी राहत मिली। बारिश भी थम गया लेकिन तब तक शाम हो चुकी थी। सूरज भी आज पूरे दिन न दिखा। श्वेता ने सोचा की गीले कपड़े बाजार को सुखाने रखा था उसे अंदर ले आए। श्वेता जब छत पर गई तो देखा कि उसके साड़ी का ब्लाउज नही है। श्वेता ने सोचा की शायद हवा होने की वजह से उड़ गया होगा।अपने कपड़े लेकर श्वेता ने रास्ते में नटवर का कमरा देखा जो थोड़ा सा खुला हुआ था। श्वेता ने देखा तो नटवर अब गहरी नींद में था और तो और खर्राटे भी मार रहा था। श्वेता ने दरवाजे को बंद कर दिया और खुद अपने कमरे में चली गई। रात हुई और श्वेता थोड़ा सा थकान महसूस कर रही थी। श्वेता ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और सारे कपड़े उतार दिया जिससे शरीर हल्का हो। खुद को चद्दर से लपेट लिया और सोने लगी।

रात के 11 बज चुके थे। श्वेता करीब 4 घंटे से सो रही थी। शरीर को अब अच्छे से आराम मिल गया। श्वेता का पूरा नग्न शरीर चादर से लिपटा हुआ था। बगल में पड़ी किताब उठाई और पढ़ने लगी। पढ़ने में मग्न श्वेता को अचानक से किसी का कॉल आया। श्वेता ने सोचा इतनी रात को कौन है जो उसे कॉल करेगा ? श्वेता ने जब मोबाइल स्क्रीन को देखा
तो चेहरा मुस्कान से भर गया। वो कॉल मुन्ना का था।

"हेलो।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"क्या कर रही हो जानू ?"

"सोकर उठी अभी।"

"तो क्या इरादा है रात भर जागने का ?" मन्नू ने पूछा।

"नही बिलकुल नहीं। कल मुझे स्कूल जाना है समझे ? मुझे कहीं बाहर नही जाना।"

"हां तो मत जाओ बाहर। मैं आ जाता हूं। तुमसे मिलना है मुझे।"

"तुम भी ना अब सो जाओ। और मुझे भी सोने दो।"

"अरे मैं तो सोना चाहता हूं लेकिन जब भी तुम्हे याद करता हूं सोने का मन नहीं करता।"

"मुझे क्यों याद कर रहे हो ?"

"अरे अपनी जान को याद नही कर सकता ?"

"नही बिलकुल भी नहीं।"

"तुम भी ना श्वेता। तुम्हारी याद में पागल हो रहा हूं।"

"वो तुम पहले से हो।"

"देखो मेरा मजाक मत उड़ाओ वरना......"

"वरना क्या ?"

"वरना मैं शादी नहीं करूंगा तुमसे।"

"चलो अच्छा है न। काम से कम एक पागल आदमी से शादी करने से बच जाऊंगी।" श्वेता हंस पड़ी।

"चलो ठीक है। ठीक है। तुम सो जाओ। I love you मेरी श्वेता।"

"I hate you मेरे बूढ़े आशिक।" इतना कहकर श्वेता ने फोन काट दिया। मुस्कुराते हुए खुद से बोली "इस पागल का क्या करूं मैं। मेरे पीछे पड़ गया। हाय तौबा बचा लो इस आशिक से।"


सुबह सुबह 6 बजे श्वेता उठ गई और तैयार होने लगी। जल्द ही तैयार होकर नाश्ता बनाया और नटवर के साथ स्कूल चल दी। सफेद साड़ी और लाल sleveless ब्लाउस में रोज की तरह कमाल की खूबसूरत लग रही थी। ऑफिस दोनो पहुंचे। वहां पर नटवर ने फिर से अपनी डायरी खोली और कुछ लिखा। फिर लग गया काम पर। श्वेता रोज नटवर को देखती। वो देखती की डायरी लिखते समय नटवर का चेहरा अजीब सी मुस्कान देता है। लिया लिखता है इस डायरी में ? आज तो पता करना ही होगा। ये सोचकर श्वेता बैठी थी।

"सुनो श्वेता मुझे कुछ काम है स्कूल का। मैं वापिस आ जाऊंगा। करीब एक घंटा लगेगा।"

"जी नटवर काका।"

नटवर के जाते ही रास्ता साफ। श्वेता ने दौड़ते ही नटवर के टेबल से उसकी डायरी ली और पढ़ना शुरू कर दिया।



Page 1: मेरी दिल की बातें

"आज सुबह मैं निशा और भीमा के साथ रेलवे स्टेशन में गया। वहां निशा की भाभी श्वेता को लेने जाना था। श्वेता जिसे देखते ही मुझे पहली नजर में कुछ कुछ होने लगा। इतनी खूबसूरत और आकर्षित महिला। बेहद सेक्सी। पहली नजर में देखते ही दिल ने मेरे जवाब दे दिया। रोज sleveless साड़ी पहनना और खुले विचारों से बात करना उसका मुझे अच्छा लगता है। निशा जिस तरह भीमा की हुई लाश श्वेता भी मेरी हो जाए। कितनी अजीब बात है। एक समय उसके ससुर के नौकर थे मैं भीमा और मन्नू। आज भीमा ने उस आदमी की बेटी से शादी कर ली। अब हम बराबर हो गए। श्वेता जो बेहद खूबसूरत औरत है बेचारी 20 साल की उमर में विधवा हो गई। 17 सालो से अकेली रहनेवाली श्वेता को ये नहीं पता कि इस गांव में आकर उसने एक अधेड़ उमर के बुड्ढे का दिल चुरा लिया। श्वेता से मुझे प्यार हो गया है।"


ये सब पढ़कर श्वेता अंदर से हिल जाती है और खुद से कहती है "नटवर काका ये सब क्या है ? इस उमर में ? ये सब सोचते है ? मुझसे प्यार हुआ इन्हे ?"

श्वेता को समझ में नहीं आ रहा था कि वो अब क्या करे ? आगे पढ़ने के बजाय वो वापिस अपनी कुर्सी में आ गई। दिल और दिमाग में नटवर की बातें गूंजने लगी। पता नही क्या हो रहा है उसके साथ। कुछ देर बाद नटवर वापिस आया। श्वेता ने सोचा कि अगर वो उससे नजर चुराएगी तो उसे शक हो जाएगा इसीलिए रोज की तरण नॉर्मल behave करेंगी। श्वेता और नटवर दोनो अपने कामों के लग गए। श्वेता का काम में दिल नही लग रहा था। वो बार बार उस diary की तरफ देख रही थी। पता नही क्यों पर श्वेता को आगे पढ़ने का मन कर रहा था। देखते देखते दोपहर हो गई। दोनो वापिस घर को चल दिए। घर पहुंचते ही दोनो ने साथ में खाना खाया।

श्वेता ने सोचा की ठंडी के मौसम में थोड़ा टहल ले। वैसे एक बात बता दूं। ये गांव में ठंडी ज्यादा पड़ती है। चाहे बारिश का मौसम हो या गर्मी का। ३० डिग्री से ज्यादा मौसम कभी नही होता। श्वेता चलते चलते नदी के पास पहुंची। वहां वो अकेली बैठे बैठे कुछ सोच रही थी। श्वेता अपने सोच मे डूबी थी कि अचानक से किसी ने उसके आंखे बंद कर दिया। आंखे बंद होते ही श्वेता जैसे मुस्कुरा दी। श्वेता को पता था कि पीछे खड़ा आदमी मन्नू है।

"मुझे पता है मन्नू तुम ही हो।"

"अरे वाह मुझे पहचान लिया ?" ये कहकर मन्नू श्वेता के बगल बैठ गया।

"तुम्हे तो में बिना आंख खोले पहचान सकती हूं।"

"अरे वाह। इसे कहते है सच्चा प्यार। आखिर मेरे प्यार में पड़ ही गई न मेरी जान।"

इस बार श्वेता हंसने के बजाय शर्माने लगी और बोली "stop it. बड़े बदमाश हो तुम।"

"अभी हमारी बदमाशी दिल्ली कहा तुमने।"

"अच्छा बदमाशी भी करोगे अब मेरे साथ ?"

"बदमाशी और प्यार भी।"

"प्यार ? बड़े बदमाश हो मन्नू। तुम तो मेरे पीछे पड़ गए हो।"

"उसमे पूरी गलती तुम्हारी है।"

"अरे वाह मेरी गलती ? बताओ कैसे ?"

"उसके लिए मेरे साथ चलना होगा कही तुम्हे।"

"कहां चलना होता तुम्हारे साथ मुझे ?"

मन्नू श्वेता का हाथ पकड़ते हुए अपने घर ले गया। वहां एक बड़े से आइने के सामने श्वेता को खड़ा कर दिया और खुद श्वेता के पीछे खड़ा हो गया।

"ये क्या है मन्नू ? तुम तो मुझे मेरी गलती बताने वाले थे।"

"बता तो दिया। इस खुबसूरती की गलती है जिसने मुझे बदमाश बना दिया।"

"चुप रहो। ऐसा क्या है मुझमें जिसने तुम्हे बदमाश बना दिया ?"

"बुरा तो नही मानोगी ?"

"नही मानूंगी।" श्वेता ने कहा।

"खाओ हमारे दोस्ती की कसम।"

"ठीक है हमारी दोस्ती की कसम।"

मन्नू ने पीछे से श्वेता के नाजुक कंधो पे हाथ रखा। दोनो की नजर आएं पर टिकी हुई थी और दोनो एक दूसरे को देख पा रहे थे।

कंधो को हल्के से दबाते हुए श्वेता के कान के पास आकर मन्नू बोला "ये जो चेहरा है न तुम्हारा ये जो लचकदार और गोरा बदन है तुम्हारा ये किसी भी शरीफ आदमी को बिगाड़ दे।"

श्वेता के शरीर में करंट दौड़ने लगा। वो उत्सुकता से बोली "आज तक कोई मेरी खुबसूरती की वजह से बिगड़ा।"

"वो डरते होंगे तुमसे।"

"लेकिन तुम तो नही डरते मुझसे।"

"क्योंकि मैं तुम्हे जान चुका हूं।"

"क्या जान चुके हो मेरे बारे में ?"

"यही की तुम सर्फ बाहर से नही अंदर से भी खूबसूरत हो।"

"हम्मम। लेकिन मुझे अच्छा दोस्त जो मिला है।"

"कौन है वो अच्छा दोस्त ?"

श्वेता ने अपने चेहरे को पीछे किया और मन्नू के काम में कहा "वो मेरे पीछे ही है और उसका नाम मन्नू है।"

"लेकिन तुम तो मुझे बदमाश और शैतान बोलती हो।"

"क्योंकि तुम मुझे छेड़ते हो।"

"तो क्या मैं सिर्फ बदमाश हूं ?"

"नही। मैने ऐसा कब कहा। बदमाश तो तुम हो लेकिन एक अच्छे दोस्त भी हो।"

"अच्छा तो फिर कितना अच्छा दोस्त ?"

"मेरे जिंदगी में सबसे अच्छे दोस्त।"

"ये बूढ़ा आदमी इस हसीन औरत का अच्छा दोस्त क्यों बना और कैसे ?"

"हम्मम तो सबसे पहले इस बुड्ढे ने मुझे बहुत सताया और छेड़ा भी। इतना छेड़ा की अपनी आदत डलवा दी। बार बार मुझे तंग करता। फिर भी मुझे हंसाता, मुझे बार बार अपनी पत्नी कहकर चिढ़ाता। लेकिन आज सच कहूं ? तो ये बूढ़ा मेरे सबसे करीबी हो गया है। अब इससे मुझे अपनी दोस्ती नहीं तोड़ना। इतने कम समय में तुम मेरे दिल के अलग हिस्से ने बस गए। एक सीधी साधी औरत को अपनी तरह पागल बना दिया।"

मन्नू कुछ नही बोला और श्वेता की आंखों में आंखे डालकर देखने लगा। दोनो एक दूसरे को देखने लगे। मन्नू बिना कुछ बोले श्वेता को पीछे से जकड़ लिया और मुलायम कंधे पर सिर रख दिया। श्वेता भी कुछ न बोली और दोस्त की तरह व्यवहार करने लगी।

"लेकिन श्वेता मुझे शैतान बनाने की सजा मिलेगी।"

"कैसी सजा ?"

"अभी बताता हूं।" इतना बोलकर मन्नू ने श्वेता के नाजुक कमर पर चिकोटी भर दी और गाल को चूम लिया।

श्वेता इस हरकत से हक्का बक्का हो गई।

"बदमाश कमीनें बुड्ढे।" श्वेता मन्नू को मारने लगी और पास में पड़े झाड़ू से पीटने लगी।

"बड़ी बदमाशी चढ़ी है तुम्हे आज तो खैर नहीं तुम्हारी।" श्वेता को हंसी भी आ रही थी।

"अरे मारो मत। अरे नही आआह्ह।"

"मुझे छेड़ता हैं अकेली खूबसूरत औरत को छेड़ता है ?"

"हां छेड़ा मैंने और आगे भी करूंगा।" मन्नू भी हंसने लगा।

"ऐसे कैसे मेरी कमर को छुआ ?"

"ऐसे छुआ।" मन्नू ने फिर से नंगी कमर पर चिकोटि भरी।

श्वेता मारते मारते थक गई और फिर हंसने लगी। मन्नू भी मजाक में श्वेता के बगल बैठ गया।

"देखो कितना मारा तुमने मुझे ?"

"मार तो पड़नी ही थी। मुझे छेड़ रहे थे तुम।"

"लेकिन इसका मतलब इतना मरोगी मुझे ?"

"हां।" श्वेता हफ्ते हुए खटिया पर लेट गई। मन्नू भी उसके बगल लेट गया।

श्वेता हंसने लगी और बोली "इसी बदमाशी और शैतान दोस्त ने मुझे बहुत हंसाया। तुम इतने बदमाश हो न कि पूछो मत। पता नही ये शैतान बुड्ढा कैसे मेरे पीछे पड़ गया।"

"चलो श्वेता ये तो मजाक था। लेकिन सच में वादा करो मुझसे दूर नहीं जाओगी।"

"जा भी नही सकती आखिर दोस्ती की आदत पड़ने लगी है मुझे।"

"I love you" इतना कहकर मन्नू ने श्वेता के वमर पर हाथ रख और हल्के से गाल को चूम लिया।"

"But I hate you" श्वेता हंसते हुए मन्नू के गाल पे हल्का सा थप्पड़ मारा।

"कभी तो i love you बोल दो।"

"नही बोलूंगी। मुझे छेड़ने की सजा है ये।"

दोनो कुछ न बोल बस कुछ देर तक आंखे बंद करके लेट गए।
Nice and superb update.....
 

Hills

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श्वेता घर वापिस आई। नटवर और श्वेता ने खाना खाया और रात के 9 बजे हवेली की तमाम लाइट बंद हो गई। नटवर और श्वेता अपने अपने कमरे चला गए। श्वेता को अभी भी उलझन थी। नटवर की डायरी पढ़कर वो अभी भी हैरान थी। खुद को आइने के सामने खड़ी करते हुए श्वेता खुद को निहारने लगी।

"क्या सच में मैं इतनी खुबसूरत हूं ? इतने सालो बाद किसी ने मेरी खुबसूरती को देखा।" श्वेता ने अपने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी श्वेता अपने सेक्सी जिस्म को निहार रही थी।

"पता नही मुझे क्यों इतनी उज्जेतना हो रही है। एक बूढ़े आदमी की डायरी पढ़कर मुझे क्यों अजीब सी बैचेनी हो रही है। क्यों मुझे अच्छा लग रहा है ? 17 सालो से जो शरीर प्यासी थी ए क्यों एक बूढ़े के डायरी पढ़ने से तड़प रही है ? क्यों में इतनी उत्तेजित हो रही हूं ? आखिर मुझे क्यों नटवर पर घुसा नही आ रहा ? क्या इसका कारण उसकी अच्छाई है ? हां हो सकता है। अगर उसका इरादा गलत होता तो वो मेरे साथ अकेले में जबरजस्ती कर सकता था। मुझे बातो मे उलझाता, फसता और अलग अलग मौके का फायदा उठाता। रोज करीब ८ घाटे वो मेरे साथ अकेले रहता है फिर भी मुझसे दूर रहा। इतना तो तय है कि उसका दिल अच्छा है। लेकिन ये अकेली रात जैसे मुझे काट रही है। आज पहली बार ऐसा लगा की 17 सालो से मैं अकेली हूं। 20 साल की उमर में विधवा हुई और आज ऐसा बार बार महसूस हो रहा है। क्यों मैने डायरी पढ़ी ? क्यों नटवर काका आपने मेरे अंदर की आग को भड़काया ? क्यों मुझे इस हालत में ला दिए ? इस तड़प में जान जा रही है मेरी। क्यों मेरे कदम नटवर की तरफ मुड़ना चाहते है। नही श्वेता नही। अब बस बहुत हुआ ये अकेलापन। ऊपरवाले पर छोड़ दे अपना भविष्य। एक तो उलझन हो रही है ऊपर से मन्नू ने भी आज कल नही किया। मन्नू मुझे कॉल करो ना।"

अब उलझन श्वेता को सताए जा रही थी। रात के 11 बज गए लेकिन मन्नू का कॉल न आया। श्वेता बिना सोचे समझे स्कूल की तरफ चल दी और रात के बिया बाण अंधेरे में डर को भुलाकर जंगल के रास्ते से स्कूल चली गई। वहां ऑफिस का दरवाजा खोला और नटवर की डायरी ले ली। वहां पड़े सोफे पर लेट गई। डायरी को आगे पढ़ने लगी।

Page 2: श्वेता मेरे जिस्म की आग।

"हां श्वेता वो आग है। इस आग ने मेरे पूरे जिंदगी के अकेलेपन को मेरे सामने उजागर किया। कभी शादी न हुई मेरी। मैने ये सोचा नहीं था की मैं अकेला हूं। लेकिन उसके कामुक बदन ने मुझको एहसाह दिलाया कि शरीर को भोगने का सुख मुझे सिर्फ एक बार ही मिला। वो सुख मुझे किसने दिया उसपर मुझे नही बात करना। वो सुख मैने 65 साल पहले पाया था। श्वेता तुम क्यों आयो यहां पर ? क्या मकसद है तुम्हारा ? क्यों मुझे जला रही हो ? मुझे उकसाती क्यों हो अपनी जवानी से ? तुम्हारी वो खूबसूरत कमर और उसमे वो गोल नाभी कितनी खूबसूरत है। मुझे उकसाती हैं। जी करता है चूम लूं उसे। और तुम्हारे बड़े बड़े से स्तन प्यार करना है मुझे इससे। ये गला, चाटना है मुझे। तुम्हारे होठ, उसमे अपना होठ जोड़कर अपनी जुबान को तुम्हारी जुबान से मिलना चाहता हूं। इस खूबसूरत पेट पर अपना मुंह रखकर चाटना है मुझे।"

श्वेता ये सब पढ़कर उत्तेजित होने लगी। बिना कुछ सोचे डायरी को अपने मुलायम पेट पर रख दिया और बोली "नटवर काका ये क्या कर रहे हो मेरे साथ ? छोड़ो मुझे और ये तड़प मुझे क्यों दे रहे हो ? ऐसा लग रहा है इस डायरी को नहीं आपके चेहरे को अपने पेट पर रखा है। ओह नटवर काका क्या मिल रहा है मुझे पागल करके ?" श्वेता की सांसे भी ऊपर नीचे होने लगी और फिर अपने होश में वापिस आई और आगे पढ़ने लगी।

Page 3: श्वेता मेरी प्यास हो तुम।

तुम जब भी अपने sleveless साड़ी में आती हो। क्या बताऊं ? कयामत लगती हो तुम। तुम्हारे नंगे कंधे और मुलायम कंधे मुझे रिझाती है। चूमने को बुलाती है मुझे। उस ब्लाउस में तुम्हारे बड़े बड़े स्तन। याद है मुझे जब तुम्हारे हाथ से कलम गिर गया था तब तुम झुकी और बड़े बड़े स्तन मेरे आंखो के सामने आ गए। जी कर रहा था देखता हूं। जब तुम रोज मेरे करीब आती हो हिसाब किताब की फाइल देखने टोंपता है क्यों तुम्हे चोटी कुर्सी कर बिठाया करता हूं ? ताकि रोज इसी तरह तुम्हारे स्तन को देख सकूं। अब तो बस एक ही ख्वाहिश है। एक बार इस स्तन को मुंह से लगा लूं।

श्वेता ने चौथे पन्ने की तरफ बढ़ी तो एक तस्वीर गिरी जो नटवर का था। उस तस्वीर में उसकी काली और सफेद दाढ़ी से भरी शकल थी। उत्तेजना में आकर नहाने श्वेता क्या बोल बैठी। वो बोली "देखो तो सही इस बुड्ढे को। खुद तो आग में जल रहा है और मुझे भी जला रहा है। ठीक है मेरा स्तन चाहिए न तुम्हे ? तो लो मेरा स्तन।"

उस तस्वीर को अपने ब्लाउज के अंदर डाल दी और बोली "अब खुश ? पागल बुड्ढे। मुझे पागल बना रहे हो तुम। अब तुम्हारी तस्वीर अंदर अपने स्तन पर डालकर नजाने क्यों मुझे अच्छा लग रहा है और पागलपन महसूस करवा रहा है।"


Page 4: श्वेता मेरे कमरे में।

श्वेता तुम्हे जब भी रात को याद करता हूं तो अकेलापन काटने को दौड़ता है। इसीलिए मैंने तुम्हारी साड़ी जो सुखाने के लिए तुमने छत पर रखी थी उसे मैने चुराया था, फिर तुम्हारा एक ब्लाउस भी मैने ही चुराया था। रात के अंधेरे में उसे अपने बिस्तर पर रखकर उसे सूंघता हूं। उसपर सोता हूं। सोते हुए ऐसा लगता है की तुम्हारे जिस्म पर लेटा हूं। क्या खुशबू आती है इनमे। तुम्हे तो याद भी नहीं की आज मैने क्या किया। जब ने एक घंटे के लिए बाहर गया था तो स्कूल के काम से नहीं गया था बल्कि अपने काम से। मैं हवेली गया और छत पर पड़ी तुम्हारे ब्रा को लेनेवाला था लेकिन जब पहले मंजिल चढ़ा तो देखा कि तुमने अपने कमरे का दरवाजा ठीक से बांध नही किया। फिर मैं अंदर गया और तुम्हारे बिस्तर पर कुछ देर सो गया। ऐसा लगा की तुम्हे पा लिया मैंने।

श्वेता का हाल बहुत ही ज्यादा बुरा होने लगा। वो अब बैचेन हो गई। इतना सब कुछ हो रहा है उसके साथ लेकिन फिर भी मन्नू ने एक भी कॉल नही किया।

"मुझसे मोहब्बत हुई है न तुम्हे ? अब देखो इस मोहोब्बत का अंजाम। मुझपर ऐसी ऐसी बाते लिखनेवाले काका, अब आपने मेरी तड़प को बढ़ा दिया। अब मै आपको तड़पाऊंगी। अब मुझे 17 साल के अकेलेपन को खत्म करना है। चाहे वो तड़प किसी बुड्ढे इंसाद से ही क्यों न मिटे।"

श्वेता वापिस घर पहुंची। अब से श्वेता का नया रूप आनेवाला है। वो रूप है प्यार की खोज में एक औरत। श्वेता ने खुद के लिए जीने का फैसला कर लिया। घर पहुंचते ही रात के 3 बज चुके थे। श्वेता नटवर काका के कमरे के पास गई। दवाजा बंद था। श्वेता की तड़प बढ़ने लगी। अपने कमरे गई और खुद को आइने में देखा।

"अब से एक नई श्वेता दिखेगी। बहुत अकेले रह लिया। अब वक्त आ गया है अपने लिए जीने का। नटवर अब तुम्हे एक नई श्वेता दिखेगी। ऐसी श्वेता जिसे हासिल करने के लिए लाखो मर्द दौड़ते है। अगर तुमने मुझे पा लिया तो प्यार मै दिल से करूंगी। ये सिर्फ जिस्मानी नही बल्कि भावनाओ से जुड़ी मोहोंबत भी होगी।"

सुबह के 6 बज गए। आज श्वेता ने खुद को अच्छे से सजाया। आज नीले रंग की साड़ी और sleveless ब्लाउस में वो कयामत ढा रही थी।

"अब इस खुबसूरती से बचना नामुमकिन है नटवर काका। अब तुम मुझसे नही बच सकते।" यह कहकर श्वेता गरम हो चुकी थीं।

श्वेता और नटवर साथ में स्कूल चलने लगे। नटवर चोर की तरह श्वेता को घूरने लगा। नटवर मन ही मन बोलने लगा "स्वर्ग जैसे यहां उतर आया हो ऐसा लग रहा है। श्वेता तुम चोर हो लूटेरी हो इस दिल की।"

श्वेता भी मन में बोली "हां मैं तो आई हूं यहां दिल चुराने। लेकिन मुझे कौन चुराएगा यहां ? कौन मुझे जीतकर अपने साथ ले जाएगा ?"

दोनो ऑफिस पहुंचे। श्वेता काम में लग गई। नटवर डायरी में लिखकर काम में लग गया। आज वैसे भी स्कूल में आधा दिन रखा गया था। इसीलिए सभी लोग सुबह 11 बजे छूटकर घर चले गए। श्वेता को ऑफिस में एक लेटर आया। वो लेटर सरकार की तरफ से था। लेटर में बताया गया को श्वेता के लिए घर तैयार हो गया है। स्कूल के प्रिंसिपल के लिए एक घर अलॉट होता है। घर की चाभी भी थी। श्वेता अपने नए सरकारी घर की तरफ गई घर स्कूल से पीछे 100 मीटर दूर था। तीन कमरों का घर, बाहर एक बढ़िया बगीचा, एक बड़ा सा हॉल, फिर किचेन हॉल, एक स्टोर रूम और बड़ा सा छत। श्वेता ने सोचा कि निशा के आने के बाद समान शिफ्ट करके यहां रहने आ जाएगी। वैसे नटवर के लिए भी एक कमरे वाला घर था लेकिन वो रहता नही था। नटवर का घर श्वेता के घर से थोड़े दूरी पर ही है।

श्वेता को घर का नजारा खूबसूरत लगा। अब वो ऑफिस वापिस आ गई। श्वेता सोफे पर आराम से बैठ गई। आज काम करने का मूड नहीं थी। सोफे पर अपने दोनो हाथो को फैलते हुए श्वेता अपने बड़े स्तन के आकार को उजागर कर रही थी। उसके armpit का कुछ हिस्सा भी दिख रहा था। नटवर काका काम करने के लिए ऑफिस में आए तो श्वेता को इस अंदाज में देखते रह गए। वो फिर भी काम करने के लिए अपने टेबल कुर्सी के पास आए।

"अरे नटवर काका। क्या फिर से कामों में लग गए ?"

"हां श्वेता वो काम बहुत है न।"

"छोड़िए काम आज आराम से बैठिए।"

"ऐसा क्यों ?" नटवर ने पूछा।

"आज सबका हाफ डे है तो हमारा क्यों नहीं होना चाहिए ?"

"बात तो सही कही तुमने।"

"हां तो छोड़िए ये काम और आइए बैठिए। थोड़ी बातचीत करते है। एक दूसरे को अच्छे से समझे।"

नटवर मुस्कुराते हुए बोला "तो फिर ठीक है आज कोई काम नहीं।"

"काका ऑफिस का दरवाजा बंद कर दीजिए। वरना कोई आएगा तो हमे काम चोर मानेगा।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ठीक है तो अभी बंद कर देता हूं।" नटवर काका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। उसके बाद खिड़की के परदे लगा दिए।

"पर्दा क्यों लगाया आपने काका ?" श्वेता ने पूछा।

"ताकि हम काम चोर न लगे।" फिर दोनो हंस दिए।

नटवर श्वेता के सामने एक कुर्सी पर बैठा।

"बताओ श्वेता आज क्या बात करनी है ?" नटवर ने पूछा।

"अच्छा नटवर काका आप ये बताइए कि आप पहले ससुरजी के घर कब और कहां तक काम किए ?"

"श्वेता मैं जब 28 साल का था तब तुम्हारे ससुर के पिताजी के लिए काम करता था। फिर 66 साल की उमर में यहां चला आया। फिर भीमा को काम पर लगवा दिया।"

"यहां गांव में आपका कौन कौन है ?"

"देखो मेरा परिवार में भीमा और मन्नू के अलावा उसका पोता है, निशा है और उनके बच्चे है।"

"और आपने शादी नहीं की ?"

"श्वेता करनेवाला था लेकिन अफसोस उस औरत की मौत हो गई।"

दरअसल नटवर सही कह रहा था। नटवर जब जवान था टॉन्यूज एक औरत से प्यार हुआ था। वो भी उससे प्यार करती थी। दोनो एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। दोनो में शारीरिक संबंध भी थे। दोनो ने के परिवार शादी करवाने को राजी हुए लेकिन एक दिन उसकी प्रेमिका की मौत हो गई। दरसल वो पहाड़ी रास्ते से कुछ काम की वजह से जा रही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो नीचे गिर गई। सिर पे चोट लगने की वजह से वो मर गई।

यही कहानी श्वेता को जब सुनाया तो उसे दिल से बुरा लगा।

खुद से मन में कहने लगी "और मैं खुद को अभागा समझती हूं। मुझसे ज्यादा बदनसीब तो नटवर काका है जिन्हे वैवाहिक जीवन जीने का सुख नहीं मिला। किसी इंसान के साथ इतना बेरहम ऊपरवाला कैसे हो सकता है ? काश इनकी जिंदगी को मैं कुछ पल की खुशियों से भर सकूं।"

फिर श्वेता आगे बोली "अच्छा ये बताइए कि आपको इस स्कूल में काम करने में मजा आता है ? अच्छा लगता है यहां काम करने में ?"

"हां बहुत अच्छा लगता है अब। पहले तो ऊब जात था काम करने में।"

"सीधे सीधे ये कहो ना कि मेरे आने से आपको काम करने में मजा आ रहा है।" श्वेता ने छेड़ते हुए कहा।

ये सुनकर नटवर भी अपने खयालों में खो गया और खुद से मन में बोला "पता नही था कि तुम दिल की बात भी पढ़ लेती हो। अगर इतना ही अच्छे से दिल की बात पढ़ लेती हो तो कभिन्ये क्यों नही जानना चाहती कि इस गोरे और जवान बदन के साथ तुम्हे अपनी बाहों में भरने का मन कर रहा है मुझे। कभी प्यार की बात भी समझलो।"

श्वेता मन में कहने लगी "समझती हूं आपके दिल की बात लेकिन ये दिल का मामला है। जरा समझा करो। मुझे अपनी बाहों में लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी। क्योंकि मुझे अपने प्यार में फसाना इतना मुश्किल नहीं। बस थोड़ी सी सच्चाई और जूनून चाहिए।"

फिर दोनो अपने खयालों से बाहर आए और नटवर बोला "सच कहूं तो हां। आपके आने से मुंडे रोज काम करने का मन करता है।"

"अच्छा ऐसा क्या कर दिया मैंने ?" श्वेता ने पूछा।

"जाहिर सी बात है आप अच्छी है और मुझे जो करना चाहिए वो करने देती है।"

"लेकिन मुझे आपके साथ काम करने में जरा भी अच्छा नहीं लगता।" श्वेता ने शिकायत करते हुए कहा।

"मुझसे कुछ गलती हो गई क्या ?" नटवर काका थोड़ा घबराते हुए बोले।

"आप बहुत ही खडूस हो। कभी मुझसे बात नही करते। अपने काम में लगे रहते है। मैं इंसान हूं। शहर में मैंने किसी से बात नही की। इस गांव में आई थी ये सोचकर कि कुछ अलग लोगो के साथ काम करूंगी लेकिन आप है की।"

नटवर कान पकड़ते हुए बोला "अब से ऐसा नहीं होगा। अब तो हमारी पहचान हो गई। अब तो खुलकर बात करेंगे। जैसे अभी कर रहे है।"

"बिलकुल वरना नौकरी से निकाल दूंगी।"

"अरे नही नही मेमसाब। इस गरीब इंसान पर रहम करो। अगर निकल दोगी तो इस खूबसूरत मेमसाब के पास रहूंगा कैसे ?"

"मेरे साथ रहना है आपको ?"

"हां बिलकुल आप ही के पास रहना है।" नटवर अब भावनाओ में आने लगा।

"तो फिर एक दोस्त बनकर रहो। हर वक्त।"

नटवर अब श्वेता के बगल बैठ गया और बोला "अब तो मैं बन गया तुम्हारा दोस्त ?"

"ये हुई न बात।" इतना कहकर श्वेता ने हल्के से नटवर काका का गाल खींचा।

श्वेता ने मोबाइल निकाला और नटवर के करीब आ गई और सेल्फी ले ली। नटवर ने मुस्कुराते हुए सेल्फी लिया।

"ये तस्वीर है मेरे दोस्त नटवर की।" श्वेता ने नटवर को सेल्फी की फोटो दिखाते हुए कहा।

"ये तस्वीर कैसे लेते है इसमें ?" नटवर ने पूछा।

"मैं सिखाती हूं।" श्वेता ने नटवर को अपने फोन से फोटो और वीडियो लेना सिखाया।

"क्या मैं तुम्हारा फोन ले सकता हूं ?" नटवर ने पूछा।

"हां लेकिन क्यों ?"

"ताकि मेरा जब मन करे तब आज मैं हमारी तस्वीर ले सकूं।"

श्वेता ने नटवर को अपने बैग से दूसरा फोन देते हुए कहा "जब तक तुम चाहो इस रख सकते हो।"

नटवर ने मुस्कुराते हुए श्वेता की तस्वीरे लेने लगा।

"अब घर चलते है वैसे भी वक्त हो गया है हमारे जाने का।"

"चलो फिर घर ही चलते है।"

स्कूल के सभी दरवाजे और तले को बंद करके दोनो घर की ओर चल दिए। दोनो साथ में चाय पिया।

"अच्छा सुनो श्वेता। मुझे थोड़ा काम है। मैं कुछ मजदूर लोगो के साथ तुम्हारे और मेरे घर के सफाई के लिए जा रहा हूं। तब तक तुम मन्नू के खेत में घूम आओ।

"ठीक है।" श्वेता ने हामी भरी।

श्वेता का वैसे भी मन्नू से मिलने का बड़ा मन कर रहा था। नटवर और श्वेता दोनो घर से बाहर अपने अपने तय किए जगह की तरफ चल दिए। श्वेता मन्नू के घर के बाहर पहुंची। वहां दरवाजा खटखटाया। मन्नू ने दौड़ते हुए तुरंत दरवाजा खोला।

"मेरी जान आ गई। कितना तरसाया मुझे। मेरी जान आ भी जा।" मन्नू हर बार को तरह मजाक करने के मूड में था।

श्वेता अंदर आई और बोली "क्या तुम्हे पता था कि मैं आनेवाली हूं ?"

"हां बिलकुल पता था।"

"और फिर भी मेरे लिए चाय नही बनाया ?" श्वेता ने हल्की सी नाराजगी दिखाते हुए कहा।

"तो बना दूं चाय ?"

"नही। अब पहले हटो मुझे पहले ये बताओ। लेने क्यों नहीं आए मुझे ?"

"अरे मेरी रानी कभी तुम आ जाओ ना बिना बोले।"

श्वेता बगल में पड़े खटिया पर लेट गई। मन्नू उसका पास आया और नंगे कंधे को दबाते हुए बोला "थोड़ा कम अकड़ा करो। देखो कैसे थकी हुई लग रही हो।"

"मैं ठीक हूं तुम बताओ।"

"मैं भी ठीक हूं। अंदर आओ मेरे कमरे में वहा टेबल फैन चालू है।"

दोनो मन्नू के कमरे में आए। कल रात से श्वेता सोई नहीं थी इसीलिए थकी हुई थी और मन्नू भी आज सुबह अच्छे से खेती में काम किया इसीलिए वो भी थका हुआ था।

"देखो मन्नू में थकी हुई हूं इसीलिए मैं थोड़ी देर सोने जा रही हूं।"

"मैं भी थका हुआ हूं मेरी रानी। साथ में सो जाऊं ?"

"जो करना है करो।" श्वेता थोड़ा किनारे आई और बोली "आओ तुम भी सो जाओ।"

मन्नू बगल में लेट गया और बोला "मेरी रानी आज बहुत महक रही हो।" मन्नू बालो पे हाथ फेरने लगा।

"हम्मम तुम फिर शुरू हो गए ? चलो अब मुझे सोना है।"

"अच्छा तो मेरे घर यहां सोने आई हो ? चलो ना जानेमन मुझे बात करनी है। थका तो मैं भी हूं आज।"

"देखो मुझे परेशान मत करो वरना मैं चली जाऊंगी।"

मन्नू श्वेता के कंधे पर उंगली घुमाते घुमाते बोला "बताओ आज आई हो तो बात नही कर रही हो।"

"कल कर लूंगी। अब तुम भी सो जाओ।"

"अच्छा ठीक है जानेमन।" मन्नू श्वेता के कंधे पर सर रख दिया। श्वेता ने एक हाथ मन्नू के गाल को सहलाया और मुस्कुराते हुए बोली "ये हुई न बात। अब सो जाओ।"

मन्नू श्वेता के कंधे पे सर रखा। एक हाथ कंधे पर तो दूसरा हाथ श्वेता के नरम नरम पेट पर रख दिया। श्वेता ने पेट पर पड़े मन्नू के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। दोनो नींद में थे। मन्नू की गरम सासों को श्वेता महसूस कर रही थी। दोनो नींद में थे। करीब 3 घंटे बीत गए। दोनो की आंखे खुली। श्वेता को अब बहुत आराम मिला। शाम के 5 बज चुके थे।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए उठी और बोली "अब जाकर आराम मिला। हम्मम"

"मेरी जान आज तुमने मुझसे बात नही की।" मन्नू थोड़े नाराज दिखाते हुए बोला।

"Sorry मन्नू वो क्या है न मैं थोड़ा थकी हुई थी।"

मन्नू हाथ पकड़ते हुए श्वेता को अपने पास लाया बेड पर। श्वेता भी मुस्कुराते हुए बोली "कुछ बोलो भी।"

मन्नू श्वेता की गोद में सिर रख दिया। श्वेता उसके गंजे सिर पर उंगली घुमाने लगी।

"मन्नू कुछ बोलो ना। मुझे अच्छा नहीं लग रहा। मुझसे बात करो ना।"

"एक शर्त पर।" मन्नू ने कहा।

"अच्छा बताओ कैसी शर्त ?"

"एक पप्पी चाहिए।" मन्नू ने मन ही मन हंसते हुए बोला।

"अच्छा ठीक है लाओ अपना गाल में दे देती हूं।"

"तुम नहीं। मैं दूंगा।"

"अच्छा ?"

"हां।"

श्वेता अपना गाल दिखाते हुए "लो दे दो पप्पी।"

मन्नू बोला "उधर नही।"

"तो फिर किधर ?"

"तुम्हारे नाभि पर।"

यह बात सुनकर श्वेता थोड़ा घबरा गई और बोली "ये क्या कह रहे हो मन्नू ? ये नहीं हो सकता । "

"नहीं मुझे तुम्हारे नाभि को चूमना है "

हवेत ने समझने का बहुत प्रयास किया लेकिन मन्नू सुनने को तैयार नहीं था। श्वेता देख रही थी कि मन्नू नाराज था और उसे नाराज नहीं देखना चाहती थी। उसे मन्नू के साथ रहना है इसीलिए मान गई।

"अच्छा ठीक है तुम ले लो पप्पी।"

यह सुनकर मन्नू बहुत खुश हुआ। मन्नू ने हल्के से श्वेता के साड़ी का पल्लू हटाया और गोल गोल गोरे गोरे navel को उंगली से घुमाया और फिर चूमना शुरू किया। Navel पर पहला चुम्बन पड़ते ही जोर का करंट लगा श्वेता को। श्वेता की आंखे बन्द हो गई। मन्नू अपनी जुबान बाहर निकाला और पूरे पेट पर घूमने लगा। श्वेता अब अपना नियंत्रण खोने लगी। करीब दस मिनट बाद श्वेता अचानक से उठी और कमरे के किनारे खड़ी हो गई। से मन्नू उसे घूर रहा था। श्वेता ने देखा कि उसका पेट पूरी तरह से मन्नू के थूक से भर गया था। श्वेता ने खुद को ठीक किया और मन्नू को देखी l

मन्नू बोला "आज मेरा दिल खुश हो गया।"

श्वेता बिना कुछ बोले हवेली को तरफ चल दी।
 

Puja35

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श्वेता घर वापिस आई। नटवर और श्वेता ने खाना खाया और रात के 9 बजे हवेली की तमाम लाइट बंद हो गई। नटवर और श्वेता अपने अपने कमरे चला गए। श्वेता को अभी भी उलझन थी। नटवर की डायरी पढ़कर वो अभी भी हैरान थी। खुद को आइने के सामने खड़ी करते हुए श्वेता खुद को निहारने लगी।

"क्या सच में मैं इतनी खुबसूरत हूं ? इतने सालो बाद किसी ने मेरी खुबसूरती को देखा।" श्वेता ने अपने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी श्वेता अपने सेक्सी जिस्म को निहार रही थी।

"पता नही मुझे क्यों इतनी उज्जेतना हो रही है। एक बूढ़े आदमी की डायरी पढ़कर मुझे क्यों अजीब सी बैचेनी हो रही है। क्यों मुझे अच्छा लग रहा है ? 17 सालो से जो शरीर प्यासी थी ए क्यों एक बूढ़े के डायरी पढ़ने से तड़प रही है ? क्यों में इतनी उत्तेजित हो रही हूं ? आखिर मुझे क्यों नटवर पर घुसा नही आ रहा ? क्या इसका कारण उसकी अच्छाई है ? हां हो सकता है। अगर उसका इरादा गलत होता तो वो मेरे साथ अकेले में जबरजस्ती कर सकता था। मुझे बातो मे उलझाता, फसता और अलग अलग मौके का फायदा उठाता। रोज करीब ८ घाटे वो मेरे साथ अकेले रहता है फिर भी मुझसे दूर रहा। इतना तो तय है कि उसका दिल अच्छा है। लेकिन ये अकेली रात जैसे मुझे काट रही है। आज पहली बार ऐसा लगा की 17 सालो से मैं अकेली हूं। 20 साल की उमर में विधवा हुई और आज ऐसा बार बार महसूस हो रहा है। क्यों मैने डायरी पढ़ी ? क्यों नटवर काका आपने मेरे अंदर की आग को भड़काया ? क्यों मुझे इस हालत में ला दिए ? इस तड़प में जान जा रही है मेरी। क्यों मेरे कदम नटवर की तरफ मुड़ना चाहते है। नही श्वेता नही। अब बस बहुत हुआ ये अकेलापन। ऊपरवाले पर छोड़ दे अपना भविष्य। एक तो उलझन हो रही है ऊपर से मन्नू ने भी आज कल नही किया। मन्नू मुझे कॉल करो ना।"

अब उलझन श्वेता को सताए जा रही थी। रात के 11 बज गए लेकिन मन्नू का कॉल न आया। श्वेता बिना सोचे समझे स्कूल की तरफ चल दी और रात के बिया बाण अंधेरे में डर को भुलाकर जंगल के रास्ते से स्कूल चली गई। वहां ऑफिस का दरवाजा खोला और नटवर की डायरी ले ली। वहां पड़े सोफे पर लेट गई। डायरी को आगे पढ़ने लगी।

Page 2: श्वेता मेरे जिस्म की आग।

"हां श्वेता वो आग है। इस आग ने मेरे पूरे जिंदगी के अकेलेपन को मेरे सामने उजागर किया। कभी शादी न हुई मेरी। मैने ये सोचा नहीं था की मैं अकेला हूं। लेकिन उसके कामुक बदन ने मुझको एहसाह दिलाया कि शरीर को भोगने का सुख मुझे सिर्फ एक बार ही मिला। वो सुख मुझे किसने दिया उसपर मुझे नही बात करना। वो सुख मैने 65 साल पहले पाया था। श्वेता तुम क्यों आयो यहां पर ? क्या मकसद है तुम्हारा ? क्यों मुझे जला रही हो ? मुझे उकसाती क्यों हो अपनी जवानी से ? तुम्हारी वो खूबसूरत कमर और उसमे वो गोल नाभी कितनी खूबसूरत है। मुझे उकसाती हैं। जी करता है चूम लूं उसे। और तुम्हारे बड़े बड़े से स्तन प्यार करना है मुझे इससे। ये गला, चाटना है मुझे। तुम्हारे होठ, उसमे अपना होठ जोड़कर अपनी जुबान को तुम्हारी जुबान से मिलना चाहता हूं। इस खूबसूरत पेट पर अपना मुंह रखकर चाटना है मुझे।"

श्वेता ये सब पढ़कर उत्तेजित होने लगी। बिना कुछ सोचे डायरी को अपने मुलायम पेट पर रख दिया और बोली "नटवर काका ये क्या कर रहे हो मेरे साथ ? छोड़ो मुझे और ये तड़प मुझे क्यों दे रहे हो ? ऐसा लग रहा है इस डायरी को नहीं आपके चेहरे को अपने पेट पर रखा है। ओह नटवर काका क्या मिल रहा है मुझे पागल करके ?" श्वेता की सांसे भी ऊपर नीचे होने लगी और फिर अपने होश में वापिस आई और आगे पढ़ने लगी।

Page 3: श्वेता मेरी प्यास हो तुम।

तुम जब भी अपने sleveless साड़ी में आती हो। क्या बताऊं ? कयामत लगती हो तुम। तुम्हारे नंगे कंधे और मुलायम कंधे मुझे रिझाती है। चूमने को बुलाती है मुझे। उस ब्लाउस में तुम्हारे बड़े बड़े स्तन। याद है मुझे जब तुम्हारे हाथ से कलम गिर गया था तब तुम झुकी और बड़े बड़े स्तन मेरे आंखो के सामने आ गए। जी कर रहा था देखता हूं। जब तुम रोज मेरे करीब आती हो हिसाब किताब की फाइल देखने टोंपता है क्यों तुम्हे चोटी कुर्सी कर बिठाया करता हूं ? ताकि रोज इसी तरह तुम्हारे स्तन को देख सकूं। अब तो बस एक ही ख्वाहिश है। एक बार इस स्तन को मुंह से लगा लूं।

श्वेता ने चौथे पन्ने की तरफ बढ़ी तो एक तस्वीर गिरी जो नटवर का था। उस तस्वीर में उसकी काली और सफेद दाढ़ी से भरी शकल थी। उत्तेजना में आकर नहाने श्वेता क्या बोल बैठी। वो बोली "देखो तो सही इस बुड्ढे को। खुद तो आग में जल रहा है और मुझे भी जला रहा है। ठीक है मेरा स्तन चाहिए न तुम्हे ? तो लो मेरा स्तन।"

उस तस्वीर को अपने ब्लाउज के अंदर डाल दी और बोली "अब खुश ? पागल बुड्ढे। मुझे पागल बना रहे हो तुम। अब तुम्हारी तस्वीर अंदर अपने स्तन पर डालकर नजाने क्यों मुझे अच्छा लग रहा है और पागलपन महसूस करवा रहा है।"


Page 4: श्वेता मेरे कमरे में।

श्वेता तुम्हे जब भी रात को याद करता हूं तो अकेलापन काटने को दौड़ता है। इसीलिए मैंने तुम्हारी साड़ी जो सुखाने के लिए तुमने छत पर रखी थी उसे मैने चुराया था, फिर तुम्हारा एक ब्लाउस भी मैने ही चुराया था। रात के अंधेरे में उसे अपने बिस्तर पर रखकर उसे सूंघता हूं। उसपर सोता हूं। सोते हुए ऐसा लगता है की तुम्हारे जिस्म पर लेटा हूं। क्या खुशबू आती है इनमे। तुम्हे तो याद भी नहीं की आज मैने क्या किया। जब ने एक घंटे के लिए बाहर गया था तो स्कूल के काम से नहीं गया था बल्कि अपने काम से। मैं हवेली गया और छत पर पड़ी तुम्हारे ब्रा को लेनेवाला था लेकिन जब पहले मंजिल चढ़ा तो देखा कि तुमने अपने कमरे का दरवाजा ठीक से बांध नही किया। फिर मैं अंदर गया और तुम्हारे बिस्तर पर कुछ देर सो गया। ऐसा लगा की तुम्हे पा लिया मैंने।

श्वेता का हाल बहुत ही ज्यादा बुरा होने लगा। वो अब बैचेन हो गई। इतना सब कुछ हो रहा है उसके साथ लेकिन फिर भी मन्नू ने एक भी कॉल नही किया।

"मुझसे मोहब्बत हुई है न तुम्हे ? अब देखो इस मोहोब्बत का अंजाम। मुझपर ऐसी ऐसी बाते लिखनेवाले काका, अब आपने मेरी तड़प को बढ़ा दिया। अब मै आपको तड़पाऊंगी। अब मुझे 17 साल के अकेलेपन को खत्म करना है। चाहे वो तड़प किसी बुड्ढे इंसाद से ही क्यों न मिटे।"

श्वेता वापिस घर पहुंची। अब से श्वेता का नया रूप आनेवाला है। वो रूप है प्यार की खोज में एक औरत। श्वेता ने खुद के लिए जीने का फैसला कर लिया। घर पहुंचते ही रात के 3 बज चुके थे। श्वेता नटवर काका के कमरे के पास गई। दवाजा बंद था। श्वेता की तड़प बढ़ने लगी। अपने कमरे गई और खुद को आइने में देखा।

"अब से एक नई श्वेता दिखेगी। बहुत अकेले रह लिया। अब वक्त आ गया है अपने लिए जीने का। नटवर अब तुम्हे एक नई श्वेता दिखेगी। ऐसी श्वेता जिसे हासिल करने के लिए लाखो मर्द दौड़ते है। अगर तुमने मुझे पा लिया तो प्यार मै दिल से करूंगी। ये सिर्फ जिस्मानी नही बल्कि भावनाओ से जुड़ी मोहोंबत भी होगी।"

सुबह के 6 बज गए। आज श्वेता ने खुद को अच्छे से सजाया। आज नीले रंग की साड़ी और sleveless ब्लाउस में वो कयामत ढा रही थी।

"अब इस खुबसूरती से बचना नामुमकिन है नटवर काका। अब तुम मुझसे नही बच सकते।" यह कहकर श्वेता गरम हो चुकी थीं।

श्वेता और नटवर साथ में स्कूल चलने लगे। नटवर चोर की तरह श्वेता को घूरने लगा। नटवर मन ही मन बोलने लगा "स्वर्ग जैसे यहां उतर आया हो ऐसा लग रहा है। श्वेता तुम चोर हो लूटेरी हो इस दिल की।"

श्वेता भी मन में बोली "हां मैं तो आई हूं यहां दिल चुराने। लेकिन मुझे कौन चुराएगा यहां ? कौन मुझे जीतकर अपने साथ ले जाएगा ?"

दोनो ऑफिस पहुंचे। श्वेता काम में लग गई। नटवर डायरी में लिखकर काम में लग गया। आज वैसे भी स्कूल में आधा दिन रखा गया था। इसीलिए सभी लोग सुबह 11 बजे छूटकर घर चले गए। श्वेता को ऑफिस में एक लेटर आया। वो लेटर सरकार की तरफ से था। लेटर में बताया गया को श्वेता के लिए घर तैयार हो गया है। स्कूल के प्रिंसिपल के लिए एक घर अलॉट होता है। घर की चाभी भी थी। श्वेता अपने नए सरकारी घर की तरफ गई घर स्कूल से पीछे 100 मीटर दूर था। तीन कमरों का घर, बाहर एक बढ़िया बगीचा, एक बड़ा सा हॉल, फिर किचेन हॉल, एक स्टोर रूम और बड़ा सा छत। श्वेता ने सोचा कि निशा के आने के बाद समान शिफ्ट करके यहां रहने आ जाएगी। वैसे नटवर के लिए भी एक कमरे वाला घर था लेकिन वो रहता नही था। नटवर का घर श्वेता के घर से थोड़े दूरी पर ही है।

श्वेता को घर का नजारा खूबसूरत लगा। अब वो ऑफिस वापिस आ गई। श्वेता सोफे पर आराम से बैठ गई। आज काम करने का मूड नहीं थी। सोफे पर अपने दोनो हाथो को फैलते हुए श्वेता अपने बड़े स्तन के आकार को उजागर कर रही थी। उसके armpit का कुछ हिस्सा भी दिख रहा था। नटवर काका काम करने के लिए ऑफिस में आए तो श्वेता को इस अंदाज में देखते रह गए। वो फिर भी काम करने के लिए अपने टेबल कुर्सी के पास आए।

"अरे नटवर काका। क्या फिर से कामों में लग गए ?"

"हां श्वेता वो काम बहुत है न।"

"छोड़िए काम आज आराम से बैठिए।"

"ऐसा क्यों ?" नटवर ने पूछा।

"आज सबका हाफ डे है तो हमारा क्यों नहीं होना चाहिए ?"

"बात तो सही कही तुमने।"

"हां तो छोड़िए ये काम और आइए बैठिए। थोड़ी बातचीत करते है। एक दूसरे को अच्छे से समझे।"

नटवर मुस्कुराते हुए बोला "तो फिर ठीक है आज कोई काम नहीं।"

"काका ऑफिस का दरवाजा बंद कर दीजिए। वरना कोई आएगा तो हमे काम चोर मानेगा।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ठीक है तो अभी बंद कर देता हूं।" नटवर काका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। उसके बाद खिड़की के परदे लगा दिए।

"पर्दा क्यों लगाया आपने काका ?" श्वेता ने पूछा।

"ताकि हम काम चोर न लगे।" फिर दोनो हंस दिए।

नटवर श्वेता के सामने एक कुर्सी पर बैठा।

"बताओ श्वेता आज क्या बात करनी है ?" नटवर ने पूछा।

"अच्छा नटवर काका आप ये बताइए कि आप पहले ससुरजी के घर कब और कहां तक काम किए ?"

"श्वेता मैं जब 28 साल का था तब तुम्हारे ससुर के पिताजी के लिए काम करता था। फिर 66 साल की उमर में यहां चला आया। फिर भीमा को काम पर लगवा दिया।"

"यहां गांव में आपका कौन कौन है ?"

"देखो मेरा परिवार में भीमा और मन्नू के अलावा उसका पोता है, निशा है और उनके बच्चे है।"

"और आपने शादी नहीं की ?"

"श्वेता करनेवाला था लेकिन अफसोस उस औरत की मौत हो गई।"

दरअसल नटवर सही कह रहा था। नटवर जब जवान था टॉन्यूज एक औरत से प्यार हुआ था। वो भी उससे प्यार करती थी। दोनो एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। दोनो में शारीरिक संबंध भी थे। दोनो ने के परिवार शादी करवाने को राजी हुए लेकिन एक दिन उसकी प्रेमिका की मौत हो गई। दरसल वो पहाड़ी रास्ते से कुछ काम की वजह से जा रही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो नीचे गिर गई। सिर पे चोट लगने की वजह से वो मर गई।

यही कहानी श्वेता को जब सुनाया तो उसे दिल से बुरा लगा।

खुद से मन में कहने लगी "और मैं खुद को अभागा समझती हूं। मुझसे ज्यादा बदनसीब तो नटवर काका है जिन्हे वैवाहिक जीवन जीने का सुख नहीं मिला। किसी इंसान के साथ इतना बेरहम ऊपरवाला कैसे हो सकता है ? काश इनकी जिंदगी को मैं कुछ पल की खुशियों से भर सकूं।"

फिर श्वेता आगे बोली "अच्छा ये बताइए कि आपको इस स्कूल में काम करने में मजा आता है ? अच्छा लगता है यहां काम करने में ?"

"हां बहुत अच्छा लगता है अब। पहले तो ऊब जात था काम करने में।"

"सीधे सीधे ये कहो ना कि मेरे आने से आपको काम करने में मजा आ रहा है।" श्वेता ने छेड़ते हुए कहा।

ये सुनकर नटवर भी अपने खयालों में खो गया और खुद से मन में बोला "पता नही था कि तुम दिल की बात भी पढ़ लेती हो। अगर इतना ही अच्छे से दिल की बात पढ़ लेती हो तो कभिन्ये क्यों नही जानना चाहती कि इस गोरे और जवान बदन के साथ तुम्हे अपनी बाहों में भरने का मन कर रहा है मुझे। कभी प्यार की बात भी समझलो।"

श्वेता मन में कहने लगी "समझती हूं आपके दिल की बात लेकिन ये दिल का मामला है। जरा समझा करो। मुझे अपनी बाहों में लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी। क्योंकि मुझे अपने प्यार में फसाना इतना मुश्किल नहीं। बस थोड़ी सी सच्चाई और जूनून चाहिए।"

फिर दोनो अपने खयालों से बाहर आए और नटवर बोला "सच कहूं तो हां। आपके आने से मुंडे रोज काम करने का मन करता है।"

"अच्छा ऐसा क्या कर दिया मैंने ?" श्वेता ने पूछा।

"जाहिर सी बात है आप अच्छी है और मुझे जो करना चाहिए वो करने देती है।"

"लेकिन मुझे आपके साथ काम करने में जरा भी अच्छा नहीं लगता।" श्वेता ने शिकायत करते हुए कहा।

"मुझसे कुछ गलती हो गई क्या ?" नटवर काका थोड़ा घबराते हुए बोले।

"आप बहुत ही खडूस हो। कभी मुझसे बात नही करते। अपने काम में लगे रहते है। मैं इंसान हूं। शहर में मैंने किसी से बात नही की। इस गांव में आई थी ये सोचकर कि कुछ अलग लोगो के साथ काम करूंगी लेकिन आप है की।"

नटवर कान पकड़ते हुए बोला "अब से ऐसा नहीं होगा। अब तो हमारी पहचान हो गई। अब तो खुलकर बात करेंगे। जैसे अभी कर रहे है।"

"बिलकुल वरना नौकरी से निकाल दूंगी।"

"अरे नही नही मेमसाब। इस गरीब इंसान पर रहम करो। अगर निकल दोगी तो इस खूबसूरत मेमसाब के पास रहूंगा कैसे ?"

"मेरे साथ रहना है आपको ?"

"हां बिलकुल आप ही के पास रहना है।" नटवर अब भावनाओ में आने लगा।

"तो फिर एक दोस्त बनकर रहो। हर वक्त।"

नटवर अब श्वेता के बगल बैठ गया और बोला "अब तो मैं बन गया तुम्हारा दोस्त ?"

"ये हुई न बात।" इतना कहकर श्वेता ने हल्के से नटवर काका का गाल खींचा।

श्वेता ने मोबाइल निकाला और नटवर के करीब आ गई और सेल्फी ले ली। नटवर ने मुस्कुराते हुए सेल्फी लिया।

"ये तस्वीर है मेरे दोस्त नटवर की।" श्वेता ने नटवर को सेल्फी की फोटो दिखाते हुए कहा।

"ये तस्वीर कैसे लेते है इसमें ?" नटवर ने पूछा।

"मैं सिखाती हूं।" श्वेता ने नटवर को अपने फोन से फोटो और वीडियो लेना सिखाया।

"क्या मैं तुम्हारा फोन ले सकता हूं ?" नटवर ने पूछा।

"हां लेकिन क्यों ?"

"ताकि मेरा जब मन करे तब आज मैं हमारी तस्वीर ले सकूं।"

श्वेता ने नटवर को अपने बैग से दूसरा फोन देते हुए कहा "जब तक तुम चाहो इस रख सकते हो।"

नटवर ने मुस्कुराते हुए श्वेता की तस्वीरे लेने लगा।

"अब घर चलते है वैसे भी वक्त हो गया है हमारे जाने का।"

"चलो फिर घर ही चलते है।"

स्कूल के सभी दरवाजे और तले को बंद करके दोनो घर की ओर चल दिए। दोनो साथ में चाय पिया।

"अच्छा सुनो श्वेता। मुझे थोड़ा काम है। मैं कुछ मजदूर लोगो के साथ तुम्हारे और मेरे घर के सफाई के लिए जा रहा हूं। तब तक तुम मन्नू के खेत में घूम आओ।

"ठीक है।" श्वेता ने हामी भरी।

श्वेता का वैसे भी मन्नू से मिलने का बड़ा मन कर रहा था। नटवर और श्वेता दोनो घर से बाहर अपने अपने तय किए जगह की तरफ चल दिए। श्वेता मन्नू के घर के बाहर पहुंची। वहां दरवाजा खटखटाया। मन्नू ने दौड़ते हुए तुरंत दरवाजा खोला।

"मेरी जान आ गई। कितना तरसाया मुझे। मेरी जान आ भी जा।" मन्नू हर बार को तरह मजाक करने के मूड में था।

श्वेता अंदर आई और बोली "क्या तुम्हे पता था कि मैं आनेवाली हूं ?"

"हां बिलकुल पता था।"

"और फिर भी मेरे लिए चाय नही बनाया ?" श्वेता ने हल्की सी नाराजगी दिखाते हुए कहा।

"तो बना दूं चाय ?"

"नही। अब पहले हटो मुझे पहले ये बताओ। लेने क्यों नहीं आए मुझे ?"

"अरे मेरी रानी कभी तुम आ जाओ ना बिना बोले।"

श्वेता बगल में पड़े खटिया पर लेट गई। मन्नू उसका पास आया और नंगे कंधे को दबाते हुए बोला "थोड़ा कम अकड़ा करो। देखो कैसे थकी हुई लग रही हो।"

"मैं ठीक हूं तुम बताओ।"

"मैं भी ठीक हूं। अंदर आओ मेरे कमरे में वहा टेबल फैन चालू है।"

दोनो मन्नू के कमरे में आए। कल रात से श्वेता सोई नहीं थी इसीलिए थकी हुई थी और मन्नू भी आज सुबह अच्छे से खेती में काम किया इसीलिए वो भी थका हुआ था।

"देखो मन्नू में थकी हुई हूं इसीलिए मैं थोड़ी देर सोने जा रही हूं।"

"मैं भी थका हुआ हूं मेरी रानी। साथ में सो जाऊं ?"

"जो करना है करो।" श्वेता थोड़ा किनारे आई और बोली "आओ तुम भी सो जाओ।"

मन्नू बगल में लेट गया और बोला "मेरी रानी आज बहुत महक रही हो।" मन्नू बालो पे हाथ फेरने लगा।

"हम्मम तुम फिर शुरू हो गए ? चलो अब मुझे सोना है।"

"अच्छा तो मेरे घर यहां सोने आई हो ? चलो ना जानेमन मुझे बात करनी है। थका तो मैं भी हूं आज।"

"देखो मुझे परेशान मत करो वरना मैं चली जाऊंगी।"

मन्नू श्वेता के कंधे पर उंगली घुमाते घुमाते बोला "बताओ आज आई हो तो बात नही कर रही हो।"

"कल कर लूंगी। अब तुम भी सो जाओ।"

"अच्छा ठीक है जानेमन।" मन्नू श्वेता के कंधे पर सर रख दिया। श्वेता ने एक हाथ मन्नू के गाल को सहलाया और मुस्कुराते हुए बोली "ये हुई न बात। अब सो जाओ।"

मन्नू श्वेता के कंधे पे सर रखा। एक हाथ कंधे पर तो दूसरा हाथ श्वेता के नरम नरम पेट पर रख दिया। श्वेता ने पेट पर पड़े मन्नू के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। दोनो नींद में थे। मन्नू की गरम सासों को श्वेता महसूस कर रही थी। दोनो नींद में थे। करीब 3 घंटे बीत गए। दोनो की आंखे खुली। श्वेता को अब बहुत आराम मिला। शाम के 5 बज चुके थे।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए उठी और बोली "अब जाकर आराम मिला। हम्मम"

"मेरी जान आज तुमने मुझसे बात नही की।" मन्नू थोड़े नाराज दिखाते हुए बोला।

"Sorry मन्नू वो क्या है न मैं थोड़ा थकी हुई थी।"

मन्नू हाथ पकड़ते हुए श्वेता को अपने पास लाया बेड पर। श्वेता भी मुस्कुराते हुए बोली "कुछ बोलो भी।"

मन्नू श्वेता की गोद में सिर रख दिया। श्वेता उसके गंजे सिर पर उंगली घुमाने लगी।

"मन्नू कुछ बोलो ना। मुझे अच्छा नहीं लग रहा। मुझसे बात करो ना।"

"एक शर्त पर।" मन्नू ने कहा।

"अच्छा बताओ कैसी शर्त ?"

"एक पप्पी चाहिए।" मन्नू ने मन ही मन हंसते हुए बोला।

"अच्छा ठीक है लाओ अपना गाल में दे देती हूं।"

"तुम नहीं। मैं दूंगा।"

"अच्छा ?"

"हां।"

श्वेता अपना गाल दिखाते हुए "लो दे दो पप्पी।"

मन्नू बोला "उधर नही।"

"तो फिर किधर ?"

"तुम्हारे नाभि पर।"

यह बात सुनकर श्वेता थोड़ा घबरा गई और बोली "ये क्या कह रहे हो मन्नू ? ये नहीं हो सकता । "

"नहीं मुझे तुम्हारे नाभि को चूमना है "

हवेत ने समझने का बहुत प्रयास किया लेकिन मन्नू सुनने को तैयार नहीं था। श्वेता देख रही थी कि मन्नू नाराज था और उसे नाराज नहीं देखना चाहती थी। उसे मन्नू के साथ रहना है इसीलिए मान गई।

"अच्छा ठीक है तुम ले लो पप्पी।"

यह सुनकर मन्नू बहुत खुश हुआ। मन्नू ने हल्के से श्वेता के साड़ी का पल्लू हटाया और गोल गोल गोरे गोरे navel को उंगली से घुमाया और फिर चूमना शुरू किया। Navel पर पहला चुम्बन पड़ते ही जोर का करंट लगा श्वेता को। श्वेता की आंखे बन्द हो गई। मन्नू अपनी जुबान बाहर निकाला और पूरे पेट पर घूमने लगा। श्वेता अब अपना नियंत्रण खोने लगी। करीब दस मिनट बाद श्वेता अचानक से उठी और कमरे के किनारे खड़ी हो गई। से मन्नू उसे घूर रहा था। श्वेता ने देखा कि उसका पेट पूरी तरह से मन्नू के थूक से भर गया था। श्वेता ने खुद को ठीक किया और मन्नू को देखी l

मन्नू बोला "आज मेरा दिल खुश हो गया।"

श्वेता बिना कुछ बोले हवेली को तरफ चल दी।
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park

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श्वेता घर वापिस आई। नटवर और श्वेता ने खाना खाया और रात के 9 बजे हवेली की तमाम लाइट बंद हो गई। नटवर और श्वेता अपने अपने कमरे चला गए। श्वेता को अभी भी उलझन थी। नटवर की डायरी पढ़कर वो अभी भी हैरान थी। खुद को आइने के सामने खड़ी करते हुए श्वेता खुद को निहारने लगी।

"क्या सच में मैं इतनी खुबसूरत हूं ? इतने सालो बाद किसी ने मेरी खुबसूरती को देखा।" श्वेता ने अपने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी श्वेता अपने सेक्सी जिस्म को निहार रही थी।

"पता नही मुझे क्यों इतनी उज्जेतना हो रही है। एक बूढ़े आदमी की डायरी पढ़कर मुझे क्यों अजीब सी बैचेनी हो रही है। क्यों मुझे अच्छा लग रहा है ? 17 सालो से जो शरीर प्यासी थी ए क्यों एक बूढ़े के डायरी पढ़ने से तड़प रही है ? क्यों में इतनी उत्तेजित हो रही हूं ? आखिर मुझे क्यों नटवर पर घुसा नही आ रहा ? क्या इसका कारण उसकी अच्छाई है ? हां हो सकता है। अगर उसका इरादा गलत होता तो वो मेरे साथ अकेले में जबरजस्ती कर सकता था। मुझे बातो मे उलझाता, फसता और अलग अलग मौके का फायदा उठाता। रोज करीब ८ घाटे वो मेरे साथ अकेले रहता है फिर भी मुझसे दूर रहा। इतना तो तय है कि उसका दिल अच्छा है। लेकिन ये अकेली रात जैसे मुझे काट रही है। आज पहली बार ऐसा लगा की 17 सालो से मैं अकेली हूं। 20 साल की उमर में विधवा हुई और आज ऐसा बार बार महसूस हो रहा है। क्यों मैने डायरी पढ़ी ? क्यों नटवर काका आपने मेरे अंदर की आग को भड़काया ? क्यों मुझे इस हालत में ला दिए ? इस तड़प में जान जा रही है मेरी। क्यों मेरे कदम नटवर की तरफ मुड़ना चाहते है। नही श्वेता नही। अब बस बहुत हुआ ये अकेलापन। ऊपरवाले पर छोड़ दे अपना भविष्य। एक तो उलझन हो रही है ऊपर से मन्नू ने भी आज कल नही किया। मन्नू मुझे कॉल करो ना।"

अब उलझन श्वेता को सताए जा रही थी। रात के 11 बज गए लेकिन मन्नू का कॉल न आया। श्वेता बिना सोचे समझे स्कूल की तरफ चल दी और रात के बिया बाण अंधेरे में डर को भुलाकर जंगल के रास्ते से स्कूल चली गई। वहां ऑफिस का दरवाजा खोला और नटवर की डायरी ले ली। वहां पड़े सोफे पर लेट गई। डायरी को आगे पढ़ने लगी।

Page 2: श्वेता मेरे जिस्म की आग।

"हां श्वेता वो आग है। इस आग ने मेरे पूरे जिंदगी के अकेलेपन को मेरे सामने उजागर किया। कभी शादी न हुई मेरी। मैने ये सोचा नहीं था की मैं अकेला हूं। लेकिन उसके कामुक बदन ने मुझको एहसाह दिलाया कि शरीर को भोगने का सुख मुझे सिर्फ एक बार ही मिला। वो सुख मुझे किसने दिया उसपर मुझे नही बात करना। वो सुख मैने 65 साल पहले पाया था। श्वेता तुम क्यों आयो यहां पर ? क्या मकसद है तुम्हारा ? क्यों मुझे जला रही हो ? मुझे उकसाती क्यों हो अपनी जवानी से ? तुम्हारी वो खूबसूरत कमर और उसमे वो गोल नाभी कितनी खूबसूरत है। मुझे उकसाती हैं। जी करता है चूम लूं उसे। और तुम्हारे बड़े बड़े से स्तन प्यार करना है मुझे इससे। ये गला, चाटना है मुझे। तुम्हारे होठ, उसमे अपना होठ जोड़कर अपनी जुबान को तुम्हारी जुबान से मिलना चाहता हूं। इस खूबसूरत पेट पर अपना मुंह रखकर चाटना है मुझे।"

श्वेता ये सब पढ़कर उत्तेजित होने लगी। बिना कुछ सोचे डायरी को अपने मुलायम पेट पर रख दिया और बोली "नटवर काका ये क्या कर रहे हो मेरे साथ ? छोड़ो मुझे और ये तड़प मुझे क्यों दे रहे हो ? ऐसा लग रहा है इस डायरी को नहीं आपके चेहरे को अपने पेट पर रखा है। ओह नटवर काका क्या मिल रहा है मुझे पागल करके ?" श्वेता की सांसे भी ऊपर नीचे होने लगी और फिर अपने होश में वापिस आई और आगे पढ़ने लगी।

Page 3: श्वेता मेरी प्यास हो तुम।

तुम जब भी अपने sleveless साड़ी में आती हो। क्या बताऊं ? कयामत लगती हो तुम। तुम्हारे नंगे कंधे और मुलायम कंधे मुझे रिझाती है। चूमने को बुलाती है मुझे। उस ब्लाउस में तुम्हारे बड़े बड़े स्तन। याद है मुझे जब तुम्हारे हाथ से कलम गिर गया था तब तुम झुकी और बड़े बड़े स्तन मेरे आंखो के सामने आ गए। जी कर रहा था देखता हूं। जब तुम रोज मेरे करीब आती हो हिसाब किताब की फाइल देखने टोंपता है क्यों तुम्हे चोटी कुर्सी कर बिठाया करता हूं ? ताकि रोज इसी तरह तुम्हारे स्तन को देख सकूं। अब तो बस एक ही ख्वाहिश है। एक बार इस स्तन को मुंह से लगा लूं।

श्वेता ने चौथे पन्ने की तरफ बढ़ी तो एक तस्वीर गिरी जो नटवर का था। उस तस्वीर में उसकी काली और सफेद दाढ़ी से भरी शकल थी। उत्तेजना में आकर नहाने श्वेता क्या बोल बैठी। वो बोली "देखो तो सही इस बुड्ढे को। खुद तो आग में जल रहा है और मुझे भी जला रहा है। ठीक है मेरा स्तन चाहिए न तुम्हे ? तो लो मेरा स्तन।"

उस तस्वीर को अपने ब्लाउज के अंदर डाल दी और बोली "अब खुश ? पागल बुड्ढे। मुझे पागल बना रहे हो तुम। अब तुम्हारी तस्वीर अंदर अपने स्तन पर डालकर नजाने क्यों मुझे अच्छा लग रहा है और पागलपन महसूस करवा रहा है।"


Page 4: श्वेता मेरे कमरे में।

श्वेता तुम्हे जब भी रात को याद करता हूं तो अकेलापन काटने को दौड़ता है। इसीलिए मैंने तुम्हारी साड़ी जो सुखाने के लिए तुमने छत पर रखी थी उसे मैने चुराया था, फिर तुम्हारा एक ब्लाउस भी मैने ही चुराया था। रात के अंधेरे में उसे अपने बिस्तर पर रखकर उसे सूंघता हूं। उसपर सोता हूं। सोते हुए ऐसा लगता है की तुम्हारे जिस्म पर लेटा हूं। क्या खुशबू आती है इनमे। तुम्हे तो याद भी नहीं की आज मैने क्या किया। जब ने एक घंटे के लिए बाहर गया था तो स्कूल के काम से नहीं गया था बल्कि अपने काम से। मैं हवेली गया और छत पर पड़ी तुम्हारे ब्रा को लेनेवाला था लेकिन जब पहले मंजिल चढ़ा तो देखा कि तुमने अपने कमरे का दरवाजा ठीक से बांध नही किया। फिर मैं अंदर गया और तुम्हारे बिस्तर पर कुछ देर सो गया। ऐसा लगा की तुम्हे पा लिया मैंने।

श्वेता का हाल बहुत ही ज्यादा बुरा होने लगा। वो अब बैचेन हो गई। इतना सब कुछ हो रहा है उसके साथ लेकिन फिर भी मन्नू ने एक भी कॉल नही किया।

"मुझसे मोहब्बत हुई है न तुम्हे ? अब देखो इस मोहोब्बत का अंजाम। मुझपर ऐसी ऐसी बाते लिखनेवाले काका, अब आपने मेरी तड़प को बढ़ा दिया। अब मै आपको तड़पाऊंगी। अब मुझे 17 साल के अकेलेपन को खत्म करना है। चाहे वो तड़प किसी बुड्ढे इंसाद से ही क्यों न मिटे।"

श्वेता वापिस घर पहुंची। अब से श्वेता का नया रूप आनेवाला है। वो रूप है प्यार की खोज में एक औरत। श्वेता ने खुद के लिए जीने का फैसला कर लिया। घर पहुंचते ही रात के 3 बज चुके थे। श्वेता नटवर काका के कमरे के पास गई। दवाजा बंद था। श्वेता की तड़प बढ़ने लगी। अपने कमरे गई और खुद को आइने में देखा।

"अब से एक नई श्वेता दिखेगी। बहुत अकेले रह लिया। अब वक्त आ गया है अपने लिए जीने का। नटवर अब तुम्हे एक नई श्वेता दिखेगी। ऐसी श्वेता जिसे हासिल करने के लिए लाखो मर्द दौड़ते है। अगर तुमने मुझे पा लिया तो प्यार मै दिल से करूंगी। ये सिर्फ जिस्मानी नही बल्कि भावनाओ से जुड़ी मोहोंबत भी होगी।"

सुबह के 6 बज गए। आज श्वेता ने खुद को अच्छे से सजाया। आज नीले रंग की साड़ी और sleveless ब्लाउस में वो कयामत ढा रही थी।

"अब इस खुबसूरती से बचना नामुमकिन है नटवर काका। अब तुम मुझसे नही बच सकते।" यह कहकर श्वेता गरम हो चुकी थीं।

श्वेता और नटवर साथ में स्कूल चलने लगे। नटवर चोर की तरह श्वेता को घूरने लगा। नटवर मन ही मन बोलने लगा "स्वर्ग जैसे यहां उतर आया हो ऐसा लग रहा है। श्वेता तुम चोर हो लूटेरी हो इस दिल की।"

श्वेता भी मन में बोली "हां मैं तो आई हूं यहां दिल चुराने। लेकिन मुझे कौन चुराएगा यहां ? कौन मुझे जीतकर अपने साथ ले जाएगा ?"

दोनो ऑफिस पहुंचे। श्वेता काम में लग गई। नटवर डायरी में लिखकर काम में लग गया। आज वैसे भी स्कूल में आधा दिन रखा गया था। इसीलिए सभी लोग सुबह 11 बजे छूटकर घर चले गए। श्वेता को ऑफिस में एक लेटर आया। वो लेटर सरकार की तरफ से था। लेटर में बताया गया को श्वेता के लिए घर तैयार हो गया है। स्कूल के प्रिंसिपल के लिए एक घर अलॉट होता है। घर की चाभी भी थी। श्वेता अपने नए सरकारी घर की तरफ गई घर स्कूल से पीछे 100 मीटर दूर था। तीन कमरों का घर, बाहर एक बढ़िया बगीचा, एक बड़ा सा हॉल, फिर किचेन हॉल, एक स्टोर रूम और बड़ा सा छत। श्वेता ने सोचा कि निशा के आने के बाद समान शिफ्ट करके यहां रहने आ जाएगी। वैसे नटवर के लिए भी एक कमरे वाला घर था लेकिन वो रहता नही था। नटवर का घर श्वेता के घर से थोड़े दूरी पर ही है।

श्वेता को घर का नजारा खूबसूरत लगा। अब वो ऑफिस वापिस आ गई। श्वेता सोफे पर आराम से बैठ गई। आज काम करने का मूड नहीं थी। सोफे पर अपने दोनो हाथो को फैलते हुए श्वेता अपने बड़े स्तन के आकार को उजागर कर रही थी। उसके armpit का कुछ हिस्सा भी दिख रहा था। नटवर काका काम करने के लिए ऑफिस में आए तो श्वेता को इस अंदाज में देखते रह गए। वो फिर भी काम करने के लिए अपने टेबल कुर्सी के पास आए।

"अरे नटवर काका। क्या फिर से कामों में लग गए ?"

"हां श्वेता वो काम बहुत है न।"

"छोड़िए काम आज आराम से बैठिए।"

"ऐसा क्यों ?" नटवर ने पूछा।

"आज सबका हाफ डे है तो हमारा क्यों नहीं होना चाहिए ?"

"बात तो सही कही तुमने।"

"हां तो छोड़िए ये काम और आइए बैठिए। थोड़ी बातचीत करते है। एक दूसरे को अच्छे से समझे।"

नटवर मुस्कुराते हुए बोला "तो फिर ठीक है आज कोई काम नहीं।"

"काका ऑफिस का दरवाजा बंद कर दीजिए। वरना कोई आएगा तो हमे काम चोर मानेगा।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ठीक है तो अभी बंद कर देता हूं।" नटवर काका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। उसके बाद खिड़की के परदे लगा दिए।

"पर्दा क्यों लगाया आपने काका ?" श्वेता ने पूछा।

"ताकि हम काम चोर न लगे।" फिर दोनो हंस दिए।

नटवर श्वेता के सामने एक कुर्सी पर बैठा।

"बताओ श्वेता आज क्या बात करनी है ?" नटवर ने पूछा।

"अच्छा नटवर काका आप ये बताइए कि आप पहले ससुरजी के घर कब और कहां तक काम किए ?"

"श्वेता मैं जब 28 साल का था तब तुम्हारे ससुर के पिताजी के लिए काम करता था। फिर 66 साल की उमर में यहां चला आया। फिर भीमा को काम पर लगवा दिया।"

"यहां गांव में आपका कौन कौन है ?"

"देखो मेरा परिवार में भीमा और मन्नू के अलावा उसका पोता है, निशा है और उनके बच्चे है।"

"और आपने शादी नहीं की ?"

"श्वेता करनेवाला था लेकिन अफसोस उस औरत की मौत हो गई।"

दरअसल नटवर सही कह रहा था। नटवर जब जवान था टॉन्यूज एक औरत से प्यार हुआ था। वो भी उससे प्यार करती थी। दोनो एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। दोनो में शारीरिक संबंध भी थे। दोनो ने के परिवार शादी करवाने को राजी हुए लेकिन एक दिन उसकी प्रेमिका की मौत हो गई। दरसल वो पहाड़ी रास्ते से कुछ काम की वजह से जा रही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो नीचे गिर गई। सिर पे चोट लगने की वजह से वो मर गई।

यही कहानी श्वेता को जब सुनाया तो उसे दिल से बुरा लगा।

खुद से मन में कहने लगी "और मैं खुद को अभागा समझती हूं। मुझसे ज्यादा बदनसीब तो नटवर काका है जिन्हे वैवाहिक जीवन जीने का सुख नहीं मिला। किसी इंसान के साथ इतना बेरहम ऊपरवाला कैसे हो सकता है ? काश इनकी जिंदगी को मैं कुछ पल की खुशियों से भर सकूं।"

फिर श्वेता आगे बोली "अच्छा ये बताइए कि आपको इस स्कूल में काम करने में मजा आता है ? अच्छा लगता है यहां काम करने में ?"

"हां बहुत अच्छा लगता है अब। पहले तो ऊब जात था काम करने में।"

"सीधे सीधे ये कहो ना कि मेरे आने से आपको काम करने में मजा आ रहा है।" श्वेता ने छेड़ते हुए कहा।

ये सुनकर नटवर भी अपने खयालों में खो गया और खुद से मन में बोला "पता नही था कि तुम दिल की बात भी पढ़ लेती हो। अगर इतना ही अच्छे से दिल की बात पढ़ लेती हो तो कभिन्ये क्यों नही जानना चाहती कि इस गोरे और जवान बदन के साथ तुम्हे अपनी बाहों में भरने का मन कर रहा है मुझे। कभी प्यार की बात भी समझलो।"

श्वेता मन में कहने लगी "समझती हूं आपके दिल की बात लेकिन ये दिल का मामला है। जरा समझा करो। मुझे अपनी बाहों में लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी। क्योंकि मुझे अपने प्यार में फसाना इतना मुश्किल नहीं। बस थोड़ी सी सच्चाई और जूनून चाहिए।"

फिर दोनो अपने खयालों से बाहर आए और नटवर बोला "सच कहूं तो हां। आपके आने से मुंडे रोज काम करने का मन करता है।"

"अच्छा ऐसा क्या कर दिया मैंने ?" श्वेता ने पूछा।

"जाहिर सी बात है आप अच्छी है और मुझे जो करना चाहिए वो करने देती है।"

"लेकिन मुझे आपके साथ काम करने में जरा भी अच्छा नहीं लगता।" श्वेता ने शिकायत करते हुए कहा।

"मुझसे कुछ गलती हो गई क्या ?" नटवर काका थोड़ा घबराते हुए बोले।

"आप बहुत ही खडूस हो। कभी मुझसे बात नही करते। अपने काम में लगे रहते है। मैं इंसान हूं। शहर में मैंने किसी से बात नही की। इस गांव में आई थी ये सोचकर कि कुछ अलग लोगो के साथ काम करूंगी लेकिन आप है की।"

नटवर कान पकड़ते हुए बोला "अब से ऐसा नहीं होगा। अब तो हमारी पहचान हो गई। अब तो खुलकर बात करेंगे। जैसे अभी कर रहे है।"

"बिलकुल वरना नौकरी से निकाल दूंगी।"

"अरे नही नही मेमसाब। इस गरीब इंसान पर रहम करो। अगर निकल दोगी तो इस खूबसूरत मेमसाब के पास रहूंगा कैसे ?"

"मेरे साथ रहना है आपको ?"

"हां बिलकुल आप ही के पास रहना है।" नटवर अब भावनाओ में आने लगा।

"तो फिर एक दोस्त बनकर रहो। हर वक्त।"

नटवर अब श्वेता के बगल बैठ गया और बोला "अब तो मैं बन गया तुम्हारा दोस्त ?"

"ये हुई न बात।" इतना कहकर श्वेता ने हल्के से नटवर काका का गाल खींचा।

श्वेता ने मोबाइल निकाला और नटवर के करीब आ गई और सेल्फी ले ली। नटवर ने मुस्कुराते हुए सेल्फी लिया।

"ये तस्वीर है मेरे दोस्त नटवर की।" श्वेता ने नटवर को सेल्फी की फोटो दिखाते हुए कहा।

"ये तस्वीर कैसे लेते है इसमें ?" नटवर ने पूछा।

"मैं सिखाती हूं।" श्वेता ने नटवर को अपने फोन से फोटो और वीडियो लेना सिखाया।

"क्या मैं तुम्हारा फोन ले सकता हूं ?" नटवर ने पूछा।

"हां लेकिन क्यों ?"

"ताकि मेरा जब मन करे तब आज मैं हमारी तस्वीर ले सकूं।"

श्वेता ने नटवर को अपने बैग से दूसरा फोन देते हुए कहा "जब तक तुम चाहो इस रख सकते हो।"

नटवर ने मुस्कुराते हुए श्वेता की तस्वीरे लेने लगा।

"अब घर चलते है वैसे भी वक्त हो गया है हमारे जाने का।"

"चलो फिर घर ही चलते है।"

स्कूल के सभी दरवाजे और तले को बंद करके दोनो घर की ओर चल दिए। दोनो साथ में चाय पिया।

"अच्छा सुनो श्वेता। मुझे थोड़ा काम है। मैं कुछ मजदूर लोगो के साथ तुम्हारे और मेरे घर के सफाई के लिए जा रहा हूं। तब तक तुम मन्नू के खेत में घूम आओ।

"ठीक है।" श्वेता ने हामी भरी।

श्वेता का वैसे भी मन्नू से मिलने का बड़ा मन कर रहा था। नटवर और श्वेता दोनो घर से बाहर अपने अपने तय किए जगह की तरफ चल दिए। श्वेता मन्नू के घर के बाहर पहुंची। वहां दरवाजा खटखटाया। मन्नू ने दौड़ते हुए तुरंत दरवाजा खोला।

"मेरी जान आ गई। कितना तरसाया मुझे। मेरी जान आ भी जा।" मन्नू हर बार को तरह मजाक करने के मूड में था।

श्वेता अंदर आई और बोली "क्या तुम्हे पता था कि मैं आनेवाली हूं ?"

"हां बिलकुल पता था।"

"और फिर भी मेरे लिए चाय नही बनाया ?" श्वेता ने हल्की सी नाराजगी दिखाते हुए कहा।

"तो बना दूं चाय ?"

"नही। अब पहले हटो मुझे पहले ये बताओ। लेने क्यों नहीं आए मुझे ?"

"अरे मेरी रानी कभी तुम आ जाओ ना बिना बोले।"

श्वेता बगल में पड़े खटिया पर लेट गई। मन्नू उसका पास आया और नंगे कंधे को दबाते हुए बोला "थोड़ा कम अकड़ा करो। देखो कैसे थकी हुई लग रही हो।"

"मैं ठीक हूं तुम बताओ।"

"मैं भी ठीक हूं। अंदर आओ मेरे कमरे में वहा टेबल फैन चालू है।"

दोनो मन्नू के कमरे में आए। कल रात से श्वेता सोई नहीं थी इसीलिए थकी हुई थी और मन्नू भी आज सुबह अच्छे से खेती में काम किया इसीलिए वो भी थका हुआ था।

"देखो मन्नू में थकी हुई हूं इसीलिए मैं थोड़ी देर सोने जा रही हूं।"

"मैं भी थका हुआ हूं मेरी रानी। साथ में सो जाऊं ?"

"जो करना है करो।" श्वेता थोड़ा किनारे आई और बोली "आओ तुम भी सो जाओ।"

मन्नू बगल में लेट गया और बोला "मेरी रानी आज बहुत महक रही हो।" मन्नू बालो पे हाथ फेरने लगा।

"हम्मम तुम फिर शुरू हो गए ? चलो अब मुझे सोना है।"

"अच्छा तो मेरे घर यहां सोने आई हो ? चलो ना जानेमन मुझे बात करनी है। थका तो मैं भी हूं आज।"

"देखो मुझे परेशान मत करो वरना मैं चली जाऊंगी।"

मन्नू श्वेता के कंधे पर उंगली घुमाते घुमाते बोला "बताओ आज आई हो तो बात नही कर रही हो।"

"कल कर लूंगी। अब तुम भी सो जाओ।"

"अच्छा ठीक है जानेमन।" मन्नू श्वेता के कंधे पर सर रख दिया। श्वेता ने एक हाथ मन्नू के गाल को सहलाया और मुस्कुराते हुए बोली "ये हुई न बात। अब सो जाओ।"

मन्नू श्वेता के कंधे पे सर रखा। एक हाथ कंधे पर तो दूसरा हाथ श्वेता के नरम नरम पेट पर रख दिया। श्वेता ने पेट पर पड़े मन्नू के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। दोनो नींद में थे। मन्नू की गरम सासों को श्वेता महसूस कर रही थी। दोनो नींद में थे। करीब 3 घंटे बीत गए। दोनो की आंखे खुली। श्वेता को अब बहुत आराम मिला। शाम के 5 बज चुके थे।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए उठी और बोली "अब जाकर आराम मिला। हम्मम"

"मेरी जान आज तुमने मुझसे बात नही की।" मन्नू थोड़े नाराज दिखाते हुए बोला।

"Sorry मन्नू वो क्या है न मैं थोड़ा थकी हुई थी।"

मन्नू हाथ पकड़ते हुए श्वेता को अपने पास लाया बेड पर। श्वेता भी मुस्कुराते हुए बोली "कुछ बोलो भी।"

मन्नू श्वेता की गोद में सिर रख दिया। श्वेता उसके गंजे सिर पर उंगली घुमाने लगी।

"मन्नू कुछ बोलो ना। मुझे अच्छा नहीं लग रहा। मुझसे बात करो ना।"

"एक शर्त पर।" मन्नू ने कहा।

"अच्छा बताओ कैसी शर्त ?"

"एक पप्पी चाहिए।" मन्नू ने मन ही मन हंसते हुए बोला।

"अच्छा ठीक है लाओ अपना गाल में दे देती हूं।"

"तुम नहीं। मैं दूंगा।"

"अच्छा ?"

"हां।"

श्वेता अपना गाल दिखाते हुए "लो दे दो पप्पी।"

मन्नू बोला "उधर नही।"

"तो फिर किधर ?"

"तुम्हारे नाभि पर।"

यह बात सुनकर श्वेता थोड़ा घबरा गई और बोली "ये क्या कह रहे हो मन्नू ? ये नहीं हो सकता । "

"नहीं मुझे तुम्हारे नाभि को चूमना है "

हवेत ने समझने का बहुत प्रयास किया लेकिन मन्नू सुनने को तैयार नहीं था। श्वेता देख रही थी कि मन्नू नाराज था और उसे नाराज नहीं देखना चाहती थी। उसे मन्नू के साथ रहना है इसीलिए मान गई।

"अच्छा ठीक है तुम ले लो पप्पी।"

यह सुनकर मन्नू बहुत खुश हुआ। मन्नू ने हल्के से श्वेता के साड़ी का पल्लू हटाया और गोल गोल गोरे गोरे navel को उंगली से घुमाया और फिर चूमना शुरू किया। Navel पर पहला चुम्बन पड़ते ही जोर का करंट लगा श्वेता को। श्वेता की आंखे बन्द हो गई। मन्नू अपनी जुबान बाहर निकाला और पूरे पेट पर घूमने लगा। श्वेता अब अपना नियंत्रण खोने लगी। करीब दस मिनट बाद श्वेता अचानक से उठी और कमरे के किनारे खड़ी हो गई। से मन्नू उसे घूर रहा था। श्वेता ने देखा कि उसका पेट पूरी तरह से मन्नू के थूक से भर गया था। श्वेता ने खुद को ठीक किया और मन्नू को देखी l

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Nice and superb update....
 

kas1709

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श्वेता घर वापिस आई। नटवर और श्वेता ने खाना खाया और रात के 9 बजे हवेली की तमाम लाइट बंद हो गई। नटवर और श्वेता अपने अपने कमरे चला गए। श्वेता को अभी भी उलझन थी। नटवर की डायरी पढ़कर वो अभी भी हैरान थी। खुद को आइने के सामने खड़ी करते हुए श्वेता खुद को निहारने लगी।

"क्या सच में मैं इतनी खुबसूरत हूं ? इतने सालो बाद किसी ने मेरी खुबसूरती को देखा।" श्वेता ने अपने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी श्वेता अपने सेक्सी जिस्म को निहार रही थी।

"पता नही मुझे क्यों इतनी उज्जेतना हो रही है। एक बूढ़े आदमी की डायरी पढ़कर मुझे क्यों अजीब सी बैचेनी हो रही है। क्यों मुझे अच्छा लग रहा है ? 17 सालो से जो शरीर प्यासी थी ए क्यों एक बूढ़े के डायरी पढ़ने से तड़प रही है ? क्यों में इतनी उत्तेजित हो रही हूं ? आखिर मुझे क्यों नटवर पर घुसा नही आ रहा ? क्या इसका कारण उसकी अच्छाई है ? हां हो सकता है। अगर उसका इरादा गलत होता तो वो मेरे साथ अकेले में जबरजस्ती कर सकता था। मुझे बातो मे उलझाता, फसता और अलग अलग मौके का फायदा उठाता। रोज करीब ८ घाटे वो मेरे साथ अकेले रहता है फिर भी मुझसे दूर रहा। इतना तो तय है कि उसका दिल अच्छा है। लेकिन ये अकेली रात जैसे मुझे काट रही है। आज पहली बार ऐसा लगा की 17 सालो से मैं अकेली हूं। 20 साल की उमर में विधवा हुई और आज ऐसा बार बार महसूस हो रहा है। क्यों मैने डायरी पढ़ी ? क्यों नटवर काका आपने मेरे अंदर की आग को भड़काया ? क्यों मुझे इस हालत में ला दिए ? इस तड़प में जान जा रही है मेरी। क्यों मेरे कदम नटवर की तरफ मुड़ना चाहते है। नही श्वेता नही। अब बस बहुत हुआ ये अकेलापन। ऊपरवाले पर छोड़ दे अपना भविष्य। एक तो उलझन हो रही है ऊपर से मन्नू ने भी आज कल नही किया। मन्नू मुझे कॉल करो ना।"

अब उलझन श्वेता को सताए जा रही थी। रात के 11 बज गए लेकिन मन्नू का कॉल न आया। श्वेता बिना सोचे समझे स्कूल की तरफ चल दी और रात के बिया बाण अंधेरे में डर को भुलाकर जंगल के रास्ते से स्कूल चली गई। वहां ऑफिस का दरवाजा खोला और नटवर की डायरी ले ली। वहां पड़े सोफे पर लेट गई। डायरी को आगे पढ़ने लगी।

Page 2: श्वेता मेरे जिस्म की आग।

"हां श्वेता वो आग है। इस आग ने मेरे पूरे जिंदगी के अकेलेपन को मेरे सामने उजागर किया। कभी शादी न हुई मेरी। मैने ये सोचा नहीं था की मैं अकेला हूं। लेकिन उसके कामुक बदन ने मुझको एहसाह दिलाया कि शरीर को भोगने का सुख मुझे सिर्फ एक बार ही मिला। वो सुख मुझे किसने दिया उसपर मुझे नही बात करना। वो सुख मैने 65 साल पहले पाया था। श्वेता तुम क्यों आयो यहां पर ? क्या मकसद है तुम्हारा ? क्यों मुझे जला रही हो ? मुझे उकसाती क्यों हो अपनी जवानी से ? तुम्हारी वो खूबसूरत कमर और उसमे वो गोल नाभी कितनी खूबसूरत है। मुझे उकसाती हैं। जी करता है चूम लूं उसे। और तुम्हारे बड़े बड़े से स्तन प्यार करना है मुझे इससे। ये गला, चाटना है मुझे। तुम्हारे होठ, उसमे अपना होठ जोड़कर अपनी जुबान को तुम्हारी जुबान से मिलना चाहता हूं। इस खूबसूरत पेट पर अपना मुंह रखकर चाटना है मुझे।"

श्वेता ये सब पढ़कर उत्तेजित होने लगी। बिना कुछ सोचे डायरी को अपने मुलायम पेट पर रख दिया और बोली "नटवर काका ये क्या कर रहे हो मेरे साथ ? छोड़ो मुझे और ये तड़प मुझे क्यों दे रहे हो ? ऐसा लग रहा है इस डायरी को नहीं आपके चेहरे को अपने पेट पर रखा है। ओह नटवर काका क्या मिल रहा है मुझे पागल करके ?" श्वेता की सांसे भी ऊपर नीचे होने लगी और फिर अपने होश में वापिस आई और आगे पढ़ने लगी।

Page 3: श्वेता मेरी प्यास हो तुम।

तुम जब भी अपने sleveless साड़ी में आती हो। क्या बताऊं ? कयामत लगती हो तुम। तुम्हारे नंगे कंधे और मुलायम कंधे मुझे रिझाती है। चूमने को बुलाती है मुझे। उस ब्लाउस में तुम्हारे बड़े बड़े स्तन। याद है मुझे जब तुम्हारे हाथ से कलम गिर गया था तब तुम झुकी और बड़े बड़े स्तन मेरे आंखो के सामने आ गए। जी कर रहा था देखता हूं। जब तुम रोज मेरे करीब आती हो हिसाब किताब की फाइल देखने टोंपता है क्यों तुम्हे चोटी कुर्सी कर बिठाया करता हूं ? ताकि रोज इसी तरह तुम्हारे स्तन को देख सकूं। अब तो बस एक ही ख्वाहिश है। एक बार इस स्तन को मुंह से लगा लूं।

श्वेता ने चौथे पन्ने की तरफ बढ़ी तो एक तस्वीर गिरी जो नटवर का था। उस तस्वीर में उसकी काली और सफेद दाढ़ी से भरी शकल थी। उत्तेजना में आकर नहाने श्वेता क्या बोल बैठी। वो बोली "देखो तो सही इस बुड्ढे को। खुद तो आग में जल रहा है और मुझे भी जला रहा है। ठीक है मेरा स्तन चाहिए न तुम्हे ? तो लो मेरा स्तन।"

उस तस्वीर को अपने ब्लाउज के अंदर डाल दी और बोली "अब खुश ? पागल बुड्ढे। मुझे पागल बना रहे हो तुम। अब तुम्हारी तस्वीर अंदर अपने स्तन पर डालकर नजाने क्यों मुझे अच्छा लग रहा है और पागलपन महसूस करवा रहा है।"


Page 4: श्वेता मेरे कमरे में।

श्वेता तुम्हे जब भी रात को याद करता हूं तो अकेलापन काटने को दौड़ता है। इसीलिए मैंने तुम्हारी साड़ी जो सुखाने के लिए तुमने छत पर रखी थी उसे मैने चुराया था, फिर तुम्हारा एक ब्लाउस भी मैने ही चुराया था। रात के अंधेरे में उसे अपने बिस्तर पर रखकर उसे सूंघता हूं। उसपर सोता हूं। सोते हुए ऐसा लगता है की तुम्हारे जिस्म पर लेटा हूं। क्या खुशबू आती है इनमे। तुम्हे तो याद भी नहीं की आज मैने क्या किया। जब ने एक घंटे के लिए बाहर गया था तो स्कूल के काम से नहीं गया था बल्कि अपने काम से। मैं हवेली गया और छत पर पड़ी तुम्हारे ब्रा को लेनेवाला था लेकिन जब पहले मंजिल चढ़ा तो देखा कि तुमने अपने कमरे का दरवाजा ठीक से बांध नही किया। फिर मैं अंदर गया और तुम्हारे बिस्तर पर कुछ देर सो गया। ऐसा लगा की तुम्हे पा लिया मैंने।

श्वेता का हाल बहुत ही ज्यादा बुरा होने लगा। वो अब बैचेन हो गई। इतना सब कुछ हो रहा है उसके साथ लेकिन फिर भी मन्नू ने एक भी कॉल नही किया।

"मुझसे मोहब्बत हुई है न तुम्हे ? अब देखो इस मोहोब्बत का अंजाम। मुझपर ऐसी ऐसी बाते लिखनेवाले काका, अब आपने मेरी तड़प को बढ़ा दिया। अब मै आपको तड़पाऊंगी। अब मुझे 17 साल के अकेलेपन को खत्म करना है। चाहे वो तड़प किसी बुड्ढे इंसाद से ही क्यों न मिटे।"

श्वेता वापिस घर पहुंची। अब से श्वेता का नया रूप आनेवाला है। वो रूप है प्यार की खोज में एक औरत। श्वेता ने खुद के लिए जीने का फैसला कर लिया। घर पहुंचते ही रात के 3 बज चुके थे। श्वेता नटवर काका के कमरे के पास गई। दवाजा बंद था। श्वेता की तड़प बढ़ने लगी। अपने कमरे गई और खुद को आइने में देखा।

"अब से एक नई श्वेता दिखेगी। बहुत अकेले रह लिया। अब वक्त आ गया है अपने लिए जीने का। नटवर अब तुम्हे एक नई श्वेता दिखेगी। ऐसी श्वेता जिसे हासिल करने के लिए लाखो मर्द दौड़ते है। अगर तुमने मुझे पा लिया तो प्यार मै दिल से करूंगी। ये सिर्फ जिस्मानी नही बल्कि भावनाओ से जुड़ी मोहोंबत भी होगी।"

सुबह के 6 बज गए। आज श्वेता ने खुद को अच्छे से सजाया। आज नीले रंग की साड़ी और sleveless ब्लाउस में वो कयामत ढा रही थी।

"अब इस खुबसूरती से बचना नामुमकिन है नटवर काका। अब तुम मुझसे नही बच सकते।" यह कहकर श्वेता गरम हो चुकी थीं।

श्वेता और नटवर साथ में स्कूल चलने लगे। नटवर चोर की तरह श्वेता को घूरने लगा। नटवर मन ही मन बोलने लगा "स्वर्ग जैसे यहां उतर आया हो ऐसा लग रहा है। श्वेता तुम चोर हो लूटेरी हो इस दिल की।"

श्वेता भी मन में बोली "हां मैं तो आई हूं यहां दिल चुराने। लेकिन मुझे कौन चुराएगा यहां ? कौन मुझे जीतकर अपने साथ ले जाएगा ?"

दोनो ऑफिस पहुंचे। श्वेता काम में लग गई। नटवर डायरी में लिखकर काम में लग गया। आज वैसे भी स्कूल में आधा दिन रखा गया था। इसीलिए सभी लोग सुबह 11 बजे छूटकर घर चले गए। श्वेता को ऑफिस में एक लेटर आया। वो लेटर सरकार की तरफ से था। लेटर में बताया गया को श्वेता के लिए घर तैयार हो गया है। स्कूल के प्रिंसिपल के लिए एक घर अलॉट होता है। घर की चाभी भी थी। श्वेता अपने नए सरकारी घर की तरफ गई घर स्कूल से पीछे 100 मीटर दूर था। तीन कमरों का घर, बाहर एक बढ़िया बगीचा, एक बड़ा सा हॉल, फिर किचेन हॉल, एक स्टोर रूम और बड़ा सा छत। श्वेता ने सोचा कि निशा के आने के बाद समान शिफ्ट करके यहां रहने आ जाएगी। वैसे नटवर के लिए भी एक कमरे वाला घर था लेकिन वो रहता नही था। नटवर का घर श्वेता के घर से थोड़े दूरी पर ही है।

श्वेता को घर का नजारा खूबसूरत लगा। अब वो ऑफिस वापिस आ गई। श्वेता सोफे पर आराम से बैठ गई। आज काम करने का मूड नहीं थी। सोफे पर अपने दोनो हाथो को फैलते हुए श्वेता अपने बड़े स्तन के आकार को उजागर कर रही थी। उसके armpit का कुछ हिस्सा भी दिख रहा था। नटवर काका काम करने के लिए ऑफिस में आए तो श्वेता को इस अंदाज में देखते रह गए। वो फिर भी काम करने के लिए अपने टेबल कुर्सी के पास आए।

"अरे नटवर काका। क्या फिर से कामों में लग गए ?"

"हां श्वेता वो काम बहुत है न।"

"छोड़िए काम आज आराम से बैठिए।"

"ऐसा क्यों ?" नटवर ने पूछा।

"आज सबका हाफ डे है तो हमारा क्यों नहीं होना चाहिए ?"

"बात तो सही कही तुमने।"

"हां तो छोड़िए ये काम और आइए बैठिए। थोड़ी बातचीत करते है। एक दूसरे को अच्छे से समझे।"

नटवर मुस्कुराते हुए बोला "तो फिर ठीक है आज कोई काम नहीं।"

"काका ऑफिस का दरवाजा बंद कर दीजिए। वरना कोई आएगा तो हमे काम चोर मानेगा।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ठीक है तो अभी बंद कर देता हूं।" नटवर काका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। उसके बाद खिड़की के परदे लगा दिए।

"पर्दा क्यों लगाया आपने काका ?" श्वेता ने पूछा।

"ताकि हम काम चोर न लगे।" फिर दोनो हंस दिए।

नटवर श्वेता के सामने एक कुर्सी पर बैठा।

"बताओ श्वेता आज क्या बात करनी है ?" नटवर ने पूछा।

"अच्छा नटवर काका आप ये बताइए कि आप पहले ससुरजी के घर कब और कहां तक काम किए ?"

"श्वेता मैं जब 28 साल का था तब तुम्हारे ससुर के पिताजी के लिए काम करता था। फिर 66 साल की उमर में यहां चला आया। फिर भीमा को काम पर लगवा दिया।"

"यहां गांव में आपका कौन कौन है ?"

"देखो मेरा परिवार में भीमा और मन्नू के अलावा उसका पोता है, निशा है और उनके बच्चे है।"

"और आपने शादी नहीं की ?"

"श्वेता करनेवाला था लेकिन अफसोस उस औरत की मौत हो गई।"

दरअसल नटवर सही कह रहा था। नटवर जब जवान था टॉन्यूज एक औरत से प्यार हुआ था। वो भी उससे प्यार करती थी। दोनो एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। दोनो में शारीरिक संबंध भी थे। दोनो ने के परिवार शादी करवाने को राजी हुए लेकिन एक दिन उसकी प्रेमिका की मौत हो गई। दरसल वो पहाड़ी रास्ते से कुछ काम की वजह से जा रही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो नीचे गिर गई। सिर पे चोट लगने की वजह से वो मर गई।

यही कहानी श्वेता को जब सुनाया तो उसे दिल से बुरा लगा।

खुद से मन में कहने लगी "और मैं खुद को अभागा समझती हूं। मुझसे ज्यादा बदनसीब तो नटवर काका है जिन्हे वैवाहिक जीवन जीने का सुख नहीं मिला। किसी इंसान के साथ इतना बेरहम ऊपरवाला कैसे हो सकता है ? काश इनकी जिंदगी को मैं कुछ पल की खुशियों से भर सकूं।"

फिर श्वेता आगे बोली "अच्छा ये बताइए कि आपको इस स्कूल में काम करने में मजा आता है ? अच्छा लगता है यहां काम करने में ?"

"हां बहुत अच्छा लगता है अब। पहले तो ऊब जात था काम करने में।"

"सीधे सीधे ये कहो ना कि मेरे आने से आपको काम करने में मजा आ रहा है।" श्वेता ने छेड़ते हुए कहा।

ये सुनकर नटवर भी अपने खयालों में खो गया और खुद से मन में बोला "पता नही था कि तुम दिल की बात भी पढ़ लेती हो। अगर इतना ही अच्छे से दिल की बात पढ़ लेती हो तो कभिन्ये क्यों नही जानना चाहती कि इस गोरे और जवान बदन के साथ तुम्हे अपनी बाहों में भरने का मन कर रहा है मुझे। कभी प्यार की बात भी समझलो।"

श्वेता मन में कहने लगी "समझती हूं आपके दिल की बात लेकिन ये दिल का मामला है। जरा समझा करो। मुझे अपनी बाहों में लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी। क्योंकि मुझे अपने प्यार में फसाना इतना मुश्किल नहीं। बस थोड़ी सी सच्चाई और जूनून चाहिए।"

फिर दोनो अपने खयालों से बाहर आए और नटवर बोला "सच कहूं तो हां। आपके आने से मुंडे रोज काम करने का मन करता है।"

"अच्छा ऐसा क्या कर दिया मैंने ?" श्वेता ने पूछा।

"जाहिर सी बात है आप अच्छी है और मुझे जो करना चाहिए वो करने देती है।"

"लेकिन मुझे आपके साथ काम करने में जरा भी अच्छा नहीं लगता।" श्वेता ने शिकायत करते हुए कहा।

"मुझसे कुछ गलती हो गई क्या ?" नटवर काका थोड़ा घबराते हुए बोले।

"आप बहुत ही खडूस हो। कभी मुझसे बात नही करते। अपने काम में लगे रहते है। मैं इंसान हूं। शहर में मैंने किसी से बात नही की। इस गांव में आई थी ये सोचकर कि कुछ अलग लोगो के साथ काम करूंगी लेकिन आप है की।"

नटवर कान पकड़ते हुए बोला "अब से ऐसा नहीं होगा। अब तो हमारी पहचान हो गई। अब तो खुलकर बात करेंगे। जैसे अभी कर रहे है।"

"बिलकुल वरना नौकरी से निकाल दूंगी।"

"अरे नही नही मेमसाब। इस गरीब इंसान पर रहम करो। अगर निकल दोगी तो इस खूबसूरत मेमसाब के पास रहूंगा कैसे ?"

"मेरे साथ रहना है आपको ?"

"हां बिलकुल आप ही के पास रहना है।" नटवर अब भावनाओ में आने लगा।

"तो फिर एक दोस्त बनकर रहो। हर वक्त।"

नटवर अब श्वेता के बगल बैठ गया और बोला "अब तो मैं बन गया तुम्हारा दोस्त ?"

"ये हुई न बात।" इतना कहकर श्वेता ने हल्के से नटवर काका का गाल खींचा।

श्वेता ने मोबाइल निकाला और नटवर के करीब आ गई और सेल्फी ले ली। नटवर ने मुस्कुराते हुए सेल्फी लिया।

"ये तस्वीर है मेरे दोस्त नटवर की।" श्वेता ने नटवर को सेल्फी की फोटो दिखाते हुए कहा।

"ये तस्वीर कैसे लेते है इसमें ?" नटवर ने पूछा।

"मैं सिखाती हूं।" श्वेता ने नटवर को अपने फोन से फोटो और वीडियो लेना सिखाया।

"क्या मैं तुम्हारा फोन ले सकता हूं ?" नटवर ने पूछा।

"हां लेकिन क्यों ?"

"ताकि मेरा जब मन करे तब आज मैं हमारी तस्वीर ले सकूं।"

श्वेता ने नटवर को अपने बैग से दूसरा फोन देते हुए कहा "जब तक तुम चाहो इस रख सकते हो।"

नटवर ने मुस्कुराते हुए श्वेता की तस्वीरे लेने लगा।

"अब घर चलते है वैसे भी वक्त हो गया है हमारे जाने का।"

"चलो फिर घर ही चलते है।"

स्कूल के सभी दरवाजे और तले को बंद करके दोनो घर की ओर चल दिए। दोनो साथ में चाय पिया।

"अच्छा सुनो श्वेता। मुझे थोड़ा काम है। मैं कुछ मजदूर लोगो के साथ तुम्हारे और मेरे घर के सफाई के लिए जा रहा हूं। तब तक तुम मन्नू के खेत में घूम आओ।

"ठीक है।" श्वेता ने हामी भरी।

श्वेता का वैसे भी मन्नू से मिलने का बड़ा मन कर रहा था। नटवर और श्वेता दोनो घर से बाहर अपने अपने तय किए जगह की तरफ चल दिए। श्वेता मन्नू के घर के बाहर पहुंची। वहां दरवाजा खटखटाया। मन्नू ने दौड़ते हुए तुरंत दरवाजा खोला।

"मेरी जान आ गई। कितना तरसाया मुझे। मेरी जान आ भी जा।" मन्नू हर बार को तरह मजाक करने के मूड में था।

श्वेता अंदर आई और बोली "क्या तुम्हे पता था कि मैं आनेवाली हूं ?"

"हां बिलकुल पता था।"

"और फिर भी मेरे लिए चाय नही बनाया ?" श्वेता ने हल्की सी नाराजगी दिखाते हुए कहा।

"तो बना दूं चाय ?"

"नही। अब पहले हटो मुझे पहले ये बताओ। लेने क्यों नहीं आए मुझे ?"

"अरे मेरी रानी कभी तुम आ जाओ ना बिना बोले।"

श्वेता बगल में पड़े खटिया पर लेट गई। मन्नू उसका पास आया और नंगे कंधे को दबाते हुए बोला "थोड़ा कम अकड़ा करो। देखो कैसे थकी हुई लग रही हो।"

"मैं ठीक हूं तुम बताओ।"

"मैं भी ठीक हूं। अंदर आओ मेरे कमरे में वहा टेबल फैन चालू है।"

दोनो मन्नू के कमरे में आए। कल रात से श्वेता सोई नहीं थी इसीलिए थकी हुई थी और मन्नू भी आज सुबह अच्छे से खेती में काम किया इसीलिए वो भी थका हुआ था।

"देखो मन्नू में थकी हुई हूं इसीलिए मैं थोड़ी देर सोने जा रही हूं।"

"मैं भी थका हुआ हूं मेरी रानी। साथ में सो जाऊं ?"

"जो करना है करो।" श्वेता थोड़ा किनारे आई और बोली "आओ तुम भी सो जाओ।"

मन्नू बगल में लेट गया और बोला "मेरी रानी आज बहुत महक रही हो।" मन्नू बालो पे हाथ फेरने लगा।

"हम्मम तुम फिर शुरू हो गए ? चलो अब मुझे सोना है।"

"अच्छा तो मेरे घर यहां सोने आई हो ? चलो ना जानेमन मुझे बात करनी है। थका तो मैं भी हूं आज।"

"देखो मुझे परेशान मत करो वरना मैं चली जाऊंगी।"

मन्नू श्वेता के कंधे पर उंगली घुमाते घुमाते बोला "बताओ आज आई हो तो बात नही कर रही हो।"

"कल कर लूंगी। अब तुम भी सो जाओ।"

"अच्छा ठीक है जानेमन।" मन्नू श्वेता के कंधे पर सर रख दिया। श्वेता ने एक हाथ मन्नू के गाल को सहलाया और मुस्कुराते हुए बोली "ये हुई न बात। अब सो जाओ।"

मन्नू श्वेता के कंधे पे सर रखा। एक हाथ कंधे पर तो दूसरा हाथ श्वेता के नरम नरम पेट पर रख दिया। श्वेता ने पेट पर पड़े मन्नू के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। दोनो नींद में थे। मन्नू की गरम सासों को श्वेता महसूस कर रही थी। दोनो नींद में थे। करीब 3 घंटे बीत गए। दोनो की आंखे खुली। श्वेता को अब बहुत आराम मिला। शाम के 5 बज चुके थे।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए उठी और बोली "अब जाकर आराम मिला। हम्मम"

"मेरी जान आज तुमने मुझसे बात नही की।" मन्नू थोड़े नाराज दिखाते हुए बोला।

"Sorry मन्नू वो क्या है न मैं थोड़ा थकी हुई थी।"

मन्नू हाथ पकड़ते हुए श्वेता को अपने पास लाया बेड पर। श्वेता भी मुस्कुराते हुए बोली "कुछ बोलो भी।"

मन्नू श्वेता की गोद में सिर रख दिया। श्वेता उसके गंजे सिर पर उंगली घुमाने लगी।

"मन्नू कुछ बोलो ना। मुझे अच्छा नहीं लग रहा। मुझसे बात करो ना।"

"एक शर्त पर।" मन्नू ने कहा।

"अच्छा बताओ कैसी शर्त ?"

"एक पप्पी चाहिए।" मन्नू ने मन ही मन हंसते हुए बोला।

"अच्छा ठीक है लाओ अपना गाल में दे देती हूं।"

"तुम नहीं। मैं दूंगा।"

"अच्छा ?"

"हां।"

श्वेता अपना गाल दिखाते हुए "लो दे दो पप्पी।"

मन्नू बोला "उधर नही।"

"तो फिर किधर ?"

"तुम्हारे नाभि पर।"

यह बात सुनकर श्वेता थोड़ा घबरा गई और बोली "ये क्या कह रहे हो मन्नू ? ये नहीं हो सकता । "

"नहीं मुझे तुम्हारे नाभि को चूमना है "

हवेत ने समझने का बहुत प्रयास किया लेकिन मन्नू सुनने को तैयार नहीं था। श्वेता देख रही थी कि मन्नू नाराज था और उसे नाराज नहीं देखना चाहती थी। उसे मन्नू के साथ रहना है इसीलिए मान गई।

"अच्छा ठीक है तुम ले लो पप्पी।"

यह सुनकर मन्नू बहुत खुश हुआ। मन्नू ने हल्के से श्वेता के साड़ी का पल्लू हटाया और गोल गोल गोरे गोरे navel को उंगली से घुमाया और फिर चूमना शुरू किया। Navel पर पहला चुम्बन पड़ते ही जोर का करंट लगा श्वेता को। श्वेता की आंखे बन्द हो गई। मन्नू अपनी जुबान बाहर निकाला और पूरे पेट पर घूमने लगा। श्वेता अब अपना नियंत्रण खोने लगी। करीब दस मिनट बाद श्वेता अचानक से उठी और कमरे के किनारे खड़ी हो गई। से मन्नू उसे घूर रहा था। श्वेता ने देखा कि उसका पेट पूरी तरह से मन्नू के थूक से भर गया था। श्वेता ने खुद को ठीक किया और मन्नू को देखी l

मन्नू बोला "आज मेरा दिल खुश हो गया।"

श्वेता बिना कुछ बोले हवेली को तरफ चल दी।
Nice update....
 

parkas

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श्वेता घर वापिस आई। नटवर और श्वेता ने खाना खाया और रात के 9 बजे हवेली की तमाम लाइट बंद हो गई। नटवर और श्वेता अपने अपने कमरे चला गए। श्वेता को अभी भी उलझन थी। नटवर की डायरी पढ़कर वो अभी भी हैरान थी। खुद को आइने के सामने खड़ी करते हुए श्वेता खुद को निहारने लगी।

"क्या सच में मैं इतनी खुबसूरत हूं ? इतने सालो बाद किसी ने मेरी खुबसूरती को देखा।" श्वेता ने अपने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी श्वेता अपने सेक्सी जिस्म को निहार रही थी।

"पता नही मुझे क्यों इतनी उज्जेतना हो रही है। एक बूढ़े आदमी की डायरी पढ़कर मुझे क्यों अजीब सी बैचेनी हो रही है। क्यों मुझे अच्छा लग रहा है ? 17 सालो से जो शरीर प्यासी थी ए क्यों एक बूढ़े के डायरी पढ़ने से तड़प रही है ? क्यों में इतनी उत्तेजित हो रही हूं ? आखिर मुझे क्यों नटवर पर घुसा नही आ रहा ? क्या इसका कारण उसकी अच्छाई है ? हां हो सकता है। अगर उसका इरादा गलत होता तो वो मेरे साथ अकेले में जबरजस्ती कर सकता था। मुझे बातो मे उलझाता, फसता और अलग अलग मौके का फायदा उठाता। रोज करीब ८ घाटे वो मेरे साथ अकेले रहता है फिर भी मुझसे दूर रहा। इतना तो तय है कि उसका दिल अच्छा है। लेकिन ये अकेली रात जैसे मुझे काट रही है। आज पहली बार ऐसा लगा की 17 सालो से मैं अकेली हूं। 20 साल की उमर में विधवा हुई और आज ऐसा बार बार महसूस हो रहा है। क्यों मैने डायरी पढ़ी ? क्यों नटवर काका आपने मेरे अंदर की आग को भड़काया ? क्यों मुझे इस हालत में ला दिए ? इस तड़प में जान जा रही है मेरी। क्यों मेरे कदम नटवर की तरफ मुड़ना चाहते है। नही श्वेता नही। अब बस बहुत हुआ ये अकेलापन। ऊपरवाले पर छोड़ दे अपना भविष्य। एक तो उलझन हो रही है ऊपर से मन्नू ने भी आज कल नही किया। मन्नू मुझे कॉल करो ना।"

अब उलझन श्वेता को सताए जा रही थी। रात के 11 बज गए लेकिन मन्नू का कॉल न आया। श्वेता बिना सोचे समझे स्कूल की तरफ चल दी और रात के बिया बाण अंधेरे में डर को भुलाकर जंगल के रास्ते से स्कूल चली गई। वहां ऑफिस का दरवाजा खोला और नटवर की डायरी ले ली। वहां पड़े सोफे पर लेट गई। डायरी को आगे पढ़ने लगी।

Page 2: श्वेता मेरे जिस्म की आग।

"हां श्वेता वो आग है। इस आग ने मेरे पूरे जिंदगी के अकेलेपन को मेरे सामने उजागर किया। कभी शादी न हुई मेरी। मैने ये सोचा नहीं था की मैं अकेला हूं। लेकिन उसके कामुक बदन ने मुझको एहसाह दिलाया कि शरीर को भोगने का सुख मुझे सिर्फ एक बार ही मिला। वो सुख मुझे किसने दिया उसपर मुझे नही बात करना। वो सुख मैने 65 साल पहले पाया था। श्वेता तुम क्यों आयो यहां पर ? क्या मकसद है तुम्हारा ? क्यों मुझे जला रही हो ? मुझे उकसाती क्यों हो अपनी जवानी से ? तुम्हारी वो खूबसूरत कमर और उसमे वो गोल नाभी कितनी खूबसूरत है। मुझे उकसाती हैं। जी करता है चूम लूं उसे। और तुम्हारे बड़े बड़े से स्तन प्यार करना है मुझे इससे। ये गला, चाटना है मुझे। तुम्हारे होठ, उसमे अपना होठ जोड़कर अपनी जुबान को तुम्हारी जुबान से मिलना चाहता हूं। इस खूबसूरत पेट पर अपना मुंह रखकर चाटना है मुझे।"

श्वेता ये सब पढ़कर उत्तेजित होने लगी। बिना कुछ सोचे डायरी को अपने मुलायम पेट पर रख दिया और बोली "नटवर काका ये क्या कर रहे हो मेरे साथ ? छोड़ो मुझे और ये तड़प मुझे क्यों दे रहे हो ? ऐसा लग रहा है इस डायरी को नहीं आपके चेहरे को अपने पेट पर रखा है। ओह नटवर काका क्या मिल रहा है मुझे पागल करके ?" श्वेता की सांसे भी ऊपर नीचे होने लगी और फिर अपने होश में वापिस आई और आगे पढ़ने लगी।

Page 3: श्वेता मेरी प्यास हो तुम।

तुम जब भी अपने sleveless साड़ी में आती हो। क्या बताऊं ? कयामत लगती हो तुम। तुम्हारे नंगे कंधे और मुलायम कंधे मुझे रिझाती है। चूमने को बुलाती है मुझे। उस ब्लाउस में तुम्हारे बड़े बड़े स्तन। याद है मुझे जब तुम्हारे हाथ से कलम गिर गया था तब तुम झुकी और बड़े बड़े स्तन मेरे आंखो के सामने आ गए। जी कर रहा था देखता हूं। जब तुम रोज मेरे करीब आती हो हिसाब किताब की फाइल देखने टोंपता है क्यों तुम्हे चोटी कुर्सी कर बिठाया करता हूं ? ताकि रोज इसी तरह तुम्हारे स्तन को देख सकूं। अब तो बस एक ही ख्वाहिश है। एक बार इस स्तन को मुंह से लगा लूं।

श्वेता ने चौथे पन्ने की तरफ बढ़ी तो एक तस्वीर गिरी जो नटवर का था। उस तस्वीर में उसकी काली और सफेद दाढ़ी से भरी शकल थी। उत्तेजना में आकर नहाने श्वेता क्या बोल बैठी। वो बोली "देखो तो सही इस बुड्ढे को। खुद तो आग में जल रहा है और मुझे भी जला रहा है। ठीक है मेरा स्तन चाहिए न तुम्हे ? तो लो मेरा स्तन।"

उस तस्वीर को अपने ब्लाउज के अंदर डाल दी और बोली "अब खुश ? पागल बुड्ढे। मुझे पागल बना रहे हो तुम। अब तुम्हारी तस्वीर अंदर अपने स्तन पर डालकर नजाने क्यों मुझे अच्छा लग रहा है और पागलपन महसूस करवा रहा है।"


Page 4: श्वेता मेरे कमरे में।

श्वेता तुम्हे जब भी रात को याद करता हूं तो अकेलापन काटने को दौड़ता है। इसीलिए मैंने तुम्हारी साड़ी जो सुखाने के लिए तुमने छत पर रखी थी उसे मैने चुराया था, फिर तुम्हारा एक ब्लाउस भी मैने ही चुराया था। रात के अंधेरे में उसे अपने बिस्तर पर रखकर उसे सूंघता हूं। उसपर सोता हूं। सोते हुए ऐसा लगता है की तुम्हारे जिस्म पर लेटा हूं। क्या खुशबू आती है इनमे। तुम्हे तो याद भी नहीं की आज मैने क्या किया। जब ने एक घंटे के लिए बाहर गया था तो स्कूल के काम से नहीं गया था बल्कि अपने काम से। मैं हवेली गया और छत पर पड़ी तुम्हारे ब्रा को लेनेवाला था लेकिन जब पहले मंजिल चढ़ा तो देखा कि तुमने अपने कमरे का दरवाजा ठीक से बांध नही किया। फिर मैं अंदर गया और तुम्हारे बिस्तर पर कुछ देर सो गया। ऐसा लगा की तुम्हे पा लिया मैंने।

श्वेता का हाल बहुत ही ज्यादा बुरा होने लगा। वो अब बैचेन हो गई। इतना सब कुछ हो रहा है उसके साथ लेकिन फिर भी मन्नू ने एक भी कॉल नही किया।

"मुझसे मोहब्बत हुई है न तुम्हे ? अब देखो इस मोहोब्बत का अंजाम। मुझपर ऐसी ऐसी बाते लिखनेवाले काका, अब आपने मेरी तड़प को बढ़ा दिया। अब मै आपको तड़पाऊंगी। अब मुझे 17 साल के अकेलेपन को खत्म करना है। चाहे वो तड़प किसी बुड्ढे इंसाद से ही क्यों न मिटे।"

श्वेता वापिस घर पहुंची। अब से श्वेता का नया रूप आनेवाला है। वो रूप है प्यार की खोज में एक औरत। श्वेता ने खुद के लिए जीने का फैसला कर लिया। घर पहुंचते ही रात के 3 बज चुके थे। श्वेता नटवर काका के कमरे के पास गई। दवाजा बंद था। श्वेता की तड़प बढ़ने लगी। अपने कमरे गई और खुद को आइने में देखा।

"अब से एक नई श्वेता दिखेगी। बहुत अकेले रह लिया। अब वक्त आ गया है अपने लिए जीने का। नटवर अब तुम्हे एक नई श्वेता दिखेगी। ऐसी श्वेता जिसे हासिल करने के लिए लाखो मर्द दौड़ते है। अगर तुमने मुझे पा लिया तो प्यार मै दिल से करूंगी। ये सिर्फ जिस्मानी नही बल्कि भावनाओ से जुड़ी मोहोंबत भी होगी।"

सुबह के 6 बज गए। आज श्वेता ने खुद को अच्छे से सजाया। आज नीले रंग की साड़ी और sleveless ब्लाउस में वो कयामत ढा रही थी।

"अब इस खुबसूरती से बचना नामुमकिन है नटवर काका। अब तुम मुझसे नही बच सकते।" यह कहकर श्वेता गरम हो चुकी थीं।

श्वेता और नटवर साथ में स्कूल चलने लगे। नटवर चोर की तरह श्वेता को घूरने लगा। नटवर मन ही मन बोलने लगा "स्वर्ग जैसे यहां उतर आया हो ऐसा लग रहा है। श्वेता तुम चोर हो लूटेरी हो इस दिल की।"

श्वेता भी मन में बोली "हां मैं तो आई हूं यहां दिल चुराने। लेकिन मुझे कौन चुराएगा यहां ? कौन मुझे जीतकर अपने साथ ले जाएगा ?"

दोनो ऑफिस पहुंचे। श्वेता काम में लग गई। नटवर डायरी में लिखकर काम में लग गया। आज वैसे भी स्कूल में आधा दिन रखा गया था। इसीलिए सभी लोग सुबह 11 बजे छूटकर घर चले गए। श्वेता को ऑफिस में एक लेटर आया। वो लेटर सरकार की तरफ से था। लेटर में बताया गया को श्वेता के लिए घर तैयार हो गया है। स्कूल के प्रिंसिपल के लिए एक घर अलॉट होता है। घर की चाभी भी थी। श्वेता अपने नए सरकारी घर की तरफ गई घर स्कूल से पीछे 100 मीटर दूर था। तीन कमरों का घर, बाहर एक बढ़िया बगीचा, एक बड़ा सा हॉल, फिर किचेन हॉल, एक स्टोर रूम और बड़ा सा छत। श्वेता ने सोचा कि निशा के आने के बाद समान शिफ्ट करके यहां रहने आ जाएगी। वैसे नटवर के लिए भी एक कमरे वाला घर था लेकिन वो रहता नही था। नटवर का घर श्वेता के घर से थोड़े दूरी पर ही है।

श्वेता को घर का नजारा खूबसूरत लगा। अब वो ऑफिस वापिस आ गई। श्वेता सोफे पर आराम से बैठ गई। आज काम करने का मूड नहीं थी। सोफे पर अपने दोनो हाथो को फैलते हुए श्वेता अपने बड़े स्तन के आकार को उजागर कर रही थी। उसके armpit का कुछ हिस्सा भी दिख रहा था। नटवर काका काम करने के लिए ऑफिस में आए तो श्वेता को इस अंदाज में देखते रह गए। वो फिर भी काम करने के लिए अपने टेबल कुर्सी के पास आए।

"अरे नटवर काका। क्या फिर से कामों में लग गए ?"

"हां श्वेता वो काम बहुत है न।"

"छोड़िए काम आज आराम से बैठिए।"

"ऐसा क्यों ?" नटवर ने पूछा।

"आज सबका हाफ डे है तो हमारा क्यों नहीं होना चाहिए ?"

"बात तो सही कही तुमने।"

"हां तो छोड़िए ये काम और आइए बैठिए। थोड़ी बातचीत करते है। एक दूसरे को अच्छे से समझे।"

नटवर मुस्कुराते हुए बोला "तो फिर ठीक है आज कोई काम नहीं।"

"काका ऑफिस का दरवाजा बंद कर दीजिए। वरना कोई आएगा तो हमे काम चोर मानेगा।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ठीक है तो अभी बंद कर देता हूं।" नटवर काका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। उसके बाद खिड़की के परदे लगा दिए।

"पर्दा क्यों लगाया आपने काका ?" श्वेता ने पूछा।

"ताकि हम काम चोर न लगे।" फिर दोनो हंस दिए।

नटवर श्वेता के सामने एक कुर्सी पर बैठा।

"बताओ श्वेता आज क्या बात करनी है ?" नटवर ने पूछा।

"अच्छा नटवर काका आप ये बताइए कि आप पहले ससुरजी के घर कब और कहां तक काम किए ?"

"श्वेता मैं जब 28 साल का था तब तुम्हारे ससुर के पिताजी के लिए काम करता था। फिर 66 साल की उमर में यहां चला आया। फिर भीमा को काम पर लगवा दिया।"

"यहां गांव में आपका कौन कौन है ?"

"देखो मेरा परिवार में भीमा और मन्नू के अलावा उसका पोता है, निशा है और उनके बच्चे है।"

"और आपने शादी नहीं की ?"

"श्वेता करनेवाला था लेकिन अफसोस उस औरत की मौत हो गई।"

दरअसल नटवर सही कह रहा था। नटवर जब जवान था टॉन्यूज एक औरत से प्यार हुआ था। वो भी उससे प्यार करती थी। दोनो एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। दोनो में शारीरिक संबंध भी थे। दोनो ने के परिवार शादी करवाने को राजी हुए लेकिन एक दिन उसकी प्रेमिका की मौत हो गई। दरसल वो पहाड़ी रास्ते से कुछ काम की वजह से जा रही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो नीचे गिर गई। सिर पे चोट लगने की वजह से वो मर गई।

यही कहानी श्वेता को जब सुनाया तो उसे दिल से बुरा लगा।

खुद से मन में कहने लगी "और मैं खुद को अभागा समझती हूं। मुझसे ज्यादा बदनसीब तो नटवर काका है जिन्हे वैवाहिक जीवन जीने का सुख नहीं मिला। किसी इंसान के साथ इतना बेरहम ऊपरवाला कैसे हो सकता है ? काश इनकी जिंदगी को मैं कुछ पल की खुशियों से भर सकूं।"

फिर श्वेता आगे बोली "अच्छा ये बताइए कि आपको इस स्कूल में काम करने में मजा आता है ? अच्छा लगता है यहां काम करने में ?"

"हां बहुत अच्छा लगता है अब। पहले तो ऊब जात था काम करने में।"

"सीधे सीधे ये कहो ना कि मेरे आने से आपको काम करने में मजा आ रहा है।" श्वेता ने छेड़ते हुए कहा।

ये सुनकर नटवर भी अपने खयालों में खो गया और खुद से मन में बोला "पता नही था कि तुम दिल की बात भी पढ़ लेती हो। अगर इतना ही अच्छे से दिल की बात पढ़ लेती हो तो कभिन्ये क्यों नही जानना चाहती कि इस गोरे और जवान बदन के साथ तुम्हे अपनी बाहों में भरने का मन कर रहा है मुझे। कभी प्यार की बात भी समझलो।"

श्वेता मन में कहने लगी "समझती हूं आपके दिल की बात लेकिन ये दिल का मामला है। जरा समझा करो। मुझे अपनी बाहों में लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी। क्योंकि मुझे अपने प्यार में फसाना इतना मुश्किल नहीं। बस थोड़ी सी सच्चाई और जूनून चाहिए।"

फिर दोनो अपने खयालों से बाहर आए और नटवर बोला "सच कहूं तो हां। आपके आने से मुंडे रोज काम करने का मन करता है।"

"अच्छा ऐसा क्या कर दिया मैंने ?" श्वेता ने पूछा।

"जाहिर सी बात है आप अच्छी है और मुझे जो करना चाहिए वो करने देती है।"

"लेकिन मुझे आपके साथ काम करने में जरा भी अच्छा नहीं लगता।" श्वेता ने शिकायत करते हुए कहा।

"मुझसे कुछ गलती हो गई क्या ?" नटवर काका थोड़ा घबराते हुए बोले।

"आप बहुत ही खडूस हो। कभी मुझसे बात नही करते। अपने काम में लगे रहते है। मैं इंसान हूं। शहर में मैंने किसी से बात नही की। इस गांव में आई थी ये सोचकर कि कुछ अलग लोगो के साथ काम करूंगी लेकिन आप है की।"

नटवर कान पकड़ते हुए बोला "अब से ऐसा नहीं होगा। अब तो हमारी पहचान हो गई। अब तो खुलकर बात करेंगे। जैसे अभी कर रहे है।"

"बिलकुल वरना नौकरी से निकाल दूंगी।"

"अरे नही नही मेमसाब। इस गरीब इंसान पर रहम करो। अगर निकल दोगी तो इस खूबसूरत मेमसाब के पास रहूंगा कैसे ?"

"मेरे साथ रहना है आपको ?"

"हां बिलकुल आप ही के पास रहना है।" नटवर अब भावनाओ में आने लगा।

"तो फिर एक दोस्त बनकर रहो। हर वक्त।"

नटवर अब श्वेता के बगल बैठ गया और बोला "अब तो मैं बन गया तुम्हारा दोस्त ?"

"ये हुई न बात।" इतना कहकर श्वेता ने हल्के से नटवर काका का गाल खींचा।

श्वेता ने मोबाइल निकाला और नटवर के करीब आ गई और सेल्फी ले ली। नटवर ने मुस्कुराते हुए सेल्फी लिया।

"ये तस्वीर है मेरे दोस्त नटवर की।" श्वेता ने नटवर को सेल्फी की फोटो दिखाते हुए कहा।

"ये तस्वीर कैसे लेते है इसमें ?" नटवर ने पूछा।

"मैं सिखाती हूं।" श्वेता ने नटवर को अपने फोन से फोटो और वीडियो लेना सिखाया।

"क्या मैं तुम्हारा फोन ले सकता हूं ?" नटवर ने पूछा।

"हां लेकिन क्यों ?"

"ताकि मेरा जब मन करे तब आज मैं हमारी तस्वीर ले सकूं।"

श्वेता ने नटवर को अपने बैग से दूसरा फोन देते हुए कहा "जब तक तुम चाहो इस रख सकते हो।"

नटवर ने मुस्कुराते हुए श्वेता की तस्वीरे लेने लगा।

"अब घर चलते है वैसे भी वक्त हो गया है हमारे जाने का।"

"चलो फिर घर ही चलते है।"

स्कूल के सभी दरवाजे और तले को बंद करके दोनो घर की ओर चल दिए। दोनो साथ में चाय पिया।

"अच्छा सुनो श्वेता। मुझे थोड़ा काम है। मैं कुछ मजदूर लोगो के साथ तुम्हारे और मेरे घर के सफाई के लिए जा रहा हूं। तब तक तुम मन्नू के खेत में घूम आओ।

"ठीक है।" श्वेता ने हामी भरी।

श्वेता का वैसे भी मन्नू से मिलने का बड़ा मन कर रहा था। नटवर और श्वेता दोनो घर से बाहर अपने अपने तय किए जगह की तरफ चल दिए। श्वेता मन्नू के घर के बाहर पहुंची। वहां दरवाजा खटखटाया। मन्नू ने दौड़ते हुए तुरंत दरवाजा खोला।

"मेरी जान आ गई। कितना तरसाया मुझे। मेरी जान आ भी जा।" मन्नू हर बार को तरह मजाक करने के मूड में था।

श्वेता अंदर आई और बोली "क्या तुम्हे पता था कि मैं आनेवाली हूं ?"

"हां बिलकुल पता था।"

"और फिर भी मेरे लिए चाय नही बनाया ?" श्वेता ने हल्की सी नाराजगी दिखाते हुए कहा।

"तो बना दूं चाय ?"

"नही। अब पहले हटो मुझे पहले ये बताओ। लेने क्यों नहीं आए मुझे ?"

"अरे मेरी रानी कभी तुम आ जाओ ना बिना बोले।"

श्वेता बगल में पड़े खटिया पर लेट गई। मन्नू उसका पास आया और नंगे कंधे को दबाते हुए बोला "थोड़ा कम अकड़ा करो। देखो कैसे थकी हुई लग रही हो।"

"मैं ठीक हूं तुम बताओ।"

"मैं भी ठीक हूं। अंदर आओ मेरे कमरे में वहा टेबल फैन चालू है।"

दोनो मन्नू के कमरे में आए। कल रात से श्वेता सोई नहीं थी इसीलिए थकी हुई थी और मन्नू भी आज सुबह अच्छे से खेती में काम किया इसीलिए वो भी थका हुआ था।

"देखो मन्नू में थकी हुई हूं इसीलिए मैं थोड़ी देर सोने जा रही हूं।"

"मैं भी थका हुआ हूं मेरी रानी। साथ में सो जाऊं ?"

"जो करना है करो।" श्वेता थोड़ा किनारे आई और बोली "आओ तुम भी सो जाओ।"

मन्नू बगल में लेट गया और बोला "मेरी रानी आज बहुत महक रही हो।" मन्नू बालो पे हाथ फेरने लगा।

"हम्मम तुम फिर शुरू हो गए ? चलो अब मुझे सोना है।"

"अच्छा तो मेरे घर यहां सोने आई हो ? चलो ना जानेमन मुझे बात करनी है। थका तो मैं भी हूं आज।"

"देखो मुझे परेशान मत करो वरना मैं चली जाऊंगी।"

मन्नू श्वेता के कंधे पर उंगली घुमाते घुमाते बोला "बताओ आज आई हो तो बात नही कर रही हो।"

"कल कर लूंगी। अब तुम भी सो जाओ।"

"अच्छा ठीक है जानेमन।" मन्नू श्वेता के कंधे पर सर रख दिया। श्वेता ने एक हाथ मन्नू के गाल को सहलाया और मुस्कुराते हुए बोली "ये हुई न बात। अब सो जाओ।"

मन्नू श्वेता के कंधे पे सर रखा। एक हाथ कंधे पर तो दूसरा हाथ श्वेता के नरम नरम पेट पर रख दिया। श्वेता ने पेट पर पड़े मन्नू के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। दोनो नींद में थे। मन्नू की गरम सासों को श्वेता महसूस कर रही थी। दोनो नींद में थे। करीब 3 घंटे बीत गए। दोनो की आंखे खुली। श्वेता को अब बहुत आराम मिला। शाम के 5 बज चुके थे।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए उठी और बोली "अब जाकर आराम मिला। हम्मम"

"मेरी जान आज तुमने मुझसे बात नही की।" मन्नू थोड़े नाराज दिखाते हुए बोला।

"Sorry मन्नू वो क्या है न मैं थोड़ा थकी हुई थी।"

मन्नू हाथ पकड़ते हुए श्वेता को अपने पास लाया बेड पर। श्वेता भी मुस्कुराते हुए बोली "कुछ बोलो भी।"

मन्नू श्वेता की गोद में सिर रख दिया। श्वेता उसके गंजे सिर पर उंगली घुमाने लगी।

"मन्नू कुछ बोलो ना। मुझे अच्छा नहीं लग रहा। मुझसे बात करो ना।"

"एक शर्त पर।" मन्नू ने कहा।

"अच्छा बताओ कैसी शर्त ?"

"एक पप्पी चाहिए।" मन्नू ने मन ही मन हंसते हुए बोला।

"अच्छा ठीक है लाओ अपना गाल में दे देती हूं।"

"तुम नहीं। मैं दूंगा।"

"अच्छा ?"

"हां।"

श्वेता अपना गाल दिखाते हुए "लो दे दो पप्पी।"

मन्नू बोला "उधर नही।"

"तो फिर किधर ?"

"तुम्हारे नाभि पर।"

यह बात सुनकर श्वेता थोड़ा घबरा गई और बोली "ये क्या कह रहे हो मन्नू ? ये नहीं हो सकता । "

"नहीं मुझे तुम्हारे नाभि को चूमना है "

हवेत ने समझने का बहुत प्रयास किया लेकिन मन्नू सुनने को तैयार नहीं था। श्वेता देख रही थी कि मन्नू नाराज था और उसे नाराज नहीं देखना चाहती थी। उसे मन्नू के साथ रहना है इसीलिए मान गई।

"अच्छा ठीक है तुम ले लो पप्पी।"

यह सुनकर मन्नू बहुत खुश हुआ। मन्नू ने हल्के से श्वेता के साड़ी का पल्लू हटाया और गोल गोल गोरे गोरे navel को उंगली से घुमाया और फिर चूमना शुरू किया। Navel पर पहला चुम्बन पड़ते ही जोर का करंट लगा श्वेता को। श्वेता की आंखे बन्द हो गई। मन्नू अपनी जुबान बाहर निकाला और पूरे पेट पर घूमने लगा। श्वेता अब अपना नियंत्रण खोने लगी। करीब दस मिनट बाद श्वेता अचानक से उठी और कमरे के किनारे खड़ी हो गई। से मन्नू उसे घूर रहा था। श्वेता ने देखा कि उसका पेट पूरी तरह से मन्नू के थूक से भर गया था। श्वेता ने खुद को ठीक किया और मन्नू को देखी l

मन्नू बोला "आज मेरा दिल खुश हो गया।"

श्वेता बिना कुछ बोले हवेली को तरफ चल दी।
Bahut hi shaandar update diya hai Hills bhai....
Nice and lovely update....
 

dhparikh

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श्वेता घर वापिस आई। नटवर और श्वेता ने खाना खाया और रात के 9 बजे हवेली की तमाम लाइट बंद हो गई। नटवर और श्वेता अपने अपने कमरे चला गए। श्वेता को अभी भी उलझन थी। नटवर की डायरी पढ़कर वो अभी भी हैरान थी। खुद को आइने के सामने खड़ी करते हुए श्वेता खुद को निहारने लगी।

"क्या सच में मैं इतनी खुबसूरत हूं ? इतने सालो बाद किसी ने मेरी खुबसूरती को देखा।" श्वेता ने अपने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी श्वेता अपने सेक्सी जिस्म को निहार रही थी।

"पता नही मुझे क्यों इतनी उज्जेतना हो रही है। एक बूढ़े आदमी की डायरी पढ़कर मुझे क्यों अजीब सी बैचेनी हो रही है। क्यों मुझे अच्छा लग रहा है ? 17 सालो से जो शरीर प्यासी थी ए क्यों एक बूढ़े के डायरी पढ़ने से तड़प रही है ? क्यों में इतनी उत्तेजित हो रही हूं ? आखिर मुझे क्यों नटवर पर घुसा नही आ रहा ? क्या इसका कारण उसकी अच्छाई है ? हां हो सकता है। अगर उसका इरादा गलत होता तो वो मेरे साथ अकेले में जबरजस्ती कर सकता था। मुझे बातो मे उलझाता, फसता और अलग अलग मौके का फायदा उठाता। रोज करीब ८ घाटे वो मेरे साथ अकेले रहता है फिर भी मुझसे दूर रहा। इतना तो तय है कि उसका दिल अच्छा है। लेकिन ये अकेली रात जैसे मुझे काट रही है। आज पहली बार ऐसा लगा की 17 सालो से मैं अकेली हूं। 20 साल की उमर में विधवा हुई और आज ऐसा बार बार महसूस हो रहा है। क्यों मैने डायरी पढ़ी ? क्यों नटवर काका आपने मेरे अंदर की आग को भड़काया ? क्यों मुझे इस हालत में ला दिए ? इस तड़प में जान जा रही है मेरी। क्यों मेरे कदम नटवर की तरफ मुड़ना चाहते है। नही श्वेता नही। अब बस बहुत हुआ ये अकेलापन। ऊपरवाले पर छोड़ दे अपना भविष्य। एक तो उलझन हो रही है ऊपर से मन्नू ने भी आज कल नही किया। मन्नू मुझे कॉल करो ना।"

अब उलझन श्वेता को सताए जा रही थी। रात के 11 बज गए लेकिन मन्नू का कॉल न आया। श्वेता बिना सोचे समझे स्कूल की तरफ चल दी और रात के बिया बाण अंधेरे में डर को भुलाकर जंगल के रास्ते से स्कूल चली गई। वहां ऑफिस का दरवाजा खोला और नटवर की डायरी ले ली। वहां पड़े सोफे पर लेट गई। डायरी को आगे पढ़ने लगी।

Page 2: श्वेता मेरे जिस्म की आग।

"हां श्वेता वो आग है। इस आग ने मेरे पूरे जिंदगी के अकेलेपन को मेरे सामने उजागर किया। कभी शादी न हुई मेरी। मैने ये सोचा नहीं था की मैं अकेला हूं। लेकिन उसके कामुक बदन ने मुझको एहसाह दिलाया कि शरीर को भोगने का सुख मुझे सिर्फ एक बार ही मिला। वो सुख मुझे किसने दिया उसपर मुझे नही बात करना। वो सुख मैने 65 साल पहले पाया था। श्वेता तुम क्यों आयो यहां पर ? क्या मकसद है तुम्हारा ? क्यों मुझे जला रही हो ? मुझे उकसाती क्यों हो अपनी जवानी से ? तुम्हारी वो खूबसूरत कमर और उसमे वो गोल नाभी कितनी खूबसूरत है। मुझे उकसाती हैं। जी करता है चूम लूं उसे। और तुम्हारे बड़े बड़े से स्तन प्यार करना है मुझे इससे। ये गला, चाटना है मुझे। तुम्हारे होठ, उसमे अपना होठ जोड़कर अपनी जुबान को तुम्हारी जुबान से मिलना चाहता हूं। इस खूबसूरत पेट पर अपना मुंह रखकर चाटना है मुझे।"

श्वेता ये सब पढ़कर उत्तेजित होने लगी। बिना कुछ सोचे डायरी को अपने मुलायम पेट पर रख दिया और बोली "नटवर काका ये क्या कर रहे हो मेरे साथ ? छोड़ो मुझे और ये तड़प मुझे क्यों दे रहे हो ? ऐसा लग रहा है इस डायरी को नहीं आपके चेहरे को अपने पेट पर रखा है। ओह नटवर काका क्या मिल रहा है मुझे पागल करके ?" श्वेता की सांसे भी ऊपर नीचे होने लगी और फिर अपने होश में वापिस आई और आगे पढ़ने लगी।

Page 3: श्वेता मेरी प्यास हो तुम।

तुम जब भी अपने sleveless साड़ी में आती हो। क्या बताऊं ? कयामत लगती हो तुम। तुम्हारे नंगे कंधे और मुलायम कंधे मुझे रिझाती है। चूमने को बुलाती है मुझे। उस ब्लाउस में तुम्हारे बड़े बड़े स्तन। याद है मुझे जब तुम्हारे हाथ से कलम गिर गया था तब तुम झुकी और बड़े बड़े स्तन मेरे आंखो के सामने आ गए। जी कर रहा था देखता हूं। जब तुम रोज मेरे करीब आती हो हिसाब किताब की फाइल देखने टोंपता है क्यों तुम्हे चोटी कुर्सी कर बिठाया करता हूं ? ताकि रोज इसी तरह तुम्हारे स्तन को देख सकूं। अब तो बस एक ही ख्वाहिश है। एक बार इस स्तन को मुंह से लगा लूं।

श्वेता ने चौथे पन्ने की तरफ बढ़ी तो एक तस्वीर गिरी जो नटवर का था। उस तस्वीर में उसकी काली और सफेद दाढ़ी से भरी शकल थी। उत्तेजना में आकर नहाने श्वेता क्या बोल बैठी। वो बोली "देखो तो सही इस बुड्ढे को। खुद तो आग में जल रहा है और मुझे भी जला रहा है। ठीक है मेरा स्तन चाहिए न तुम्हे ? तो लो मेरा स्तन।"

उस तस्वीर को अपने ब्लाउज के अंदर डाल दी और बोली "अब खुश ? पागल बुड्ढे। मुझे पागल बना रहे हो तुम। अब तुम्हारी तस्वीर अंदर अपने स्तन पर डालकर नजाने क्यों मुझे अच्छा लग रहा है और पागलपन महसूस करवा रहा है।"


Page 4: श्वेता मेरे कमरे में।

श्वेता तुम्हे जब भी रात को याद करता हूं तो अकेलापन काटने को दौड़ता है। इसीलिए मैंने तुम्हारी साड़ी जो सुखाने के लिए तुमने छत पर रखी थी उसे मैने चुराया था, फिर तुम्हारा एक ब्लाउस भी मैने ही चुराया था। रात के अंधेरे में उसे अपने बिस्तर पर रखकर उसे सूंघता हूं। उसपर सोता हूं। सोते हुए ऐसा लगता है की तुम्हारे जिस्म पर लेटा हूं। क्या खुशबू आती है इनमे। तुम्हे तो याद भी नहीं की आज मैने क्या किया। जब ने एक घंटे के लिए बाहर गया था तो स्कूल के काम से नहीं गया था बल्कि अपने काम से। मैं हवेली गया और छत पर पड़ी तुम्हारे ब्रा को लेनेवाला था लेकिन जब पहले मंजिल चढ़ा तो देखा कि तुमने अपने कमरे का दरवाजा ठीक से बांध नही किया। फिर मैं अंदर गया और तुम्हारे बिस्तर पर कुछ देर सो गया। ऐसा लगा की तुम्हे पा लिया मैंने।

श्वेता का हाल बहुत ही ज्यादा बुरा होने लगा। वो अब बैचेन हो गई। इतना सब कुछ हो रहा है उसके साथ लेकिन फिर भी मन्नू ने एक भी कॉल नही किया।

"मुझसे मोहब्बत हुई है न तुम्हे ? अब देखो इस मोहोब्बत का अंजाम। मुझपर ऐसी ऐसी बाते लिखनेवाले काका, अब आपने मेरी तड़प को बढ़ा दिया। अब मै आपको तड़पाऊंगी। अब मुझे 17 साल के अकेलेपन को खत्म करना है। चाहे वो तड़प किसी बुड्ढे इंसाद से ही क्यों न मिटे।"

श्वेता वापिस घर पहुंची। अब से श्वेता का नया रूप आनेवाला है। वो रूप है प्यार की खोज में एक औरत। श्वेता ने खुद के लिए जीने का फैसला कर लिया। घर पहुंचते ही रात के 3 बज चुके थे। श्वेता नटवर काका के कमरे के पास गई। दवाजा बंद था। श्वेता की तड़प बढ़ने लगी। अपने कमरे गई और खुद को आइने में देखा।

"अब से एक नई श्वेता दिखेगी। बहुत अकेले रह लिया। अब वक्त आ गया है अपने लिए जीने का। नटवर अब तुम्हे एक नई श्वेता दिखेगी। ऐसी श्वेता जिसे हासिल करने के लिए लाखो मर्द दौड़ते है। अगर तुमने मुझे पा लिया तो प्यार मै दिल से करूंगी। ये सिर्फ जिस्मानी नही बल्कि भावनाओ से जुड़ी मोहोंबत भी होगी।"

सुबह के 6 बज गए। आज श्वेता ने खुद को अच्छे से सजाया। आज नीले रंग की साड़ी और sleveless ब्लाउस में वो कयामत ढा रही थी।

"अब इस खुबसूरती से बचना नामुमकिन है नटवर काका। अब तुम मुझसे नही बच सकते।" यह कहकर श्वेता गरम हो चुकी थीं।

श्वेता और नटवर साथ में स्कूल चलने लगे। नटवर चोर की तरह श्वेता को घूरने लगा। नटवर मन ही मन बोलने लगा "स्वर्ग जैसे यहां उतर आया हो ऐसा लग रहा है। श्वेता तुम चोर हो लूटेरी हो इस दिल की।"

श्वेता भी मन में बोली "हां मैं तो आई हूं यहां दिल चुराने। लेकिन मुझे कौन चुराएगा यहां ? कौन मुझे जीतकर अपने साथ ले जाएगा ?"

दोनो ऑफिस पहुंचे। श्वेता काम में लग गई। नटवर डायरी में लिखकर काम में लग गया। आज वैसे भी स्कूल में आधा दिन रखा गया था। इसीलिए सभी लोग सुबह 11 बजे छूटकर घर चले गए। श्वेता को ऑफिस में एक लेटर आया। वो लेटर सरकार की तरफ से था। लेटर में बताया गया को श्वेता के लिए घर तैयार हो गया है। स्कूल के प्रिंसिपल के लिए एक घर अलॉट होता है। घर की चाभी भी थी। श्वेता अपने नए सरकारी घर की तरफ गई घर स्कूल से पीछे 100 मीटर दूर था। तीन कमरों का घर, बाहर एक बढ़िया बगीचा, एक बड़ा सा हॉल, फिर किचेन हॉल, एक स्टोर रूम और बड़ा सा छत। श्वेता ने सोचा कि निशा के आने के बाद समान शिफ्ट करके यहां रहने आ जाएगी। वैसे नटवर के लिए भी एक कमरे वाला घर था लेकिन वो रहता नही था। नटवर का घर श्वेता के घर से थोड़े दूरी पर ही है।

श्वेता को घर का नजारा खूबसूरत लगा। अब वो ऑफिस वापिस आ गई। श्वेता सोफे पर आराम से बैठ गई। आज काम करने का मूड नहीं थी। सोफे पर अपने दोनो हाथो को फैलते हुए श्वेता अपने बड़े स्तन के आकार को उजागर कर रही थी। उसके armpit का कुछ हिस्सा भी दिख रहा था। नटवर काका काम करने के लिए ऑफिस में आए तो श्वेता को इस अंदाज में देखते रह गए। वो फिर भी काम करने के लिए अपने टेबल कुर्सी के पास आए।

"अरे नटवर काका। क्या फिर से कामों में लग गए ?"

"हां श्वेता वो काम बहुत है न।"

"छोड़िए काम आज आराम से बैठिए।"

"ऐसा क्यों ?" नटवर ने पूछा।

"आज सबका हाफ डे है तो हमारा क्यों नहीं होना चाहिए ?"

"बात तो सही कही तुमने।"

"हां तो छोड़िए ये काम और आइए बैठिए। थोड़ी बातचीत करते है। एक दूसरे को अच्छे से समझे।"

नटवर मुस्कुराते हुए बोला "तो फिर ठीक है आज कोई काम नहीं।"

"काका ऑफिस का दरवाजा बंद कर दीजिए। वरना कोई आएगा तो हमे काम चोर मानेगा।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ठीक है तो अभी बंद कर देता हूं।" नटवर काका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। उसके बाद खिड़की के परदे लगा दिए।

"पर्दा क्यों लगाया आपने काका ?" श्वेता ने पूछा।

"ताकि हम काम चोर न लगे।" फिर दोनो हंस दिए।

नटवर श्वेता के सामने एक कुर्सी पर बैठा।

"बताओ श्वेता आज क्या बात करनी है ?" नटवर ने पूछा।

"अच्छा नटवर काका आप ये बताइए कि आप पहले ससुरजी के घर कब और कहां तक काम किए ?"

"श्वेता मैं जब 28 साल का था तब तुम्हारे ससुर के पिताजी के लिए काम करता था। फिर 66 साल की उमर में यहां चला आया। फिर भीमा को काम पर लगवा दिया।"

"यहां गांव में आपका कौन कौन है ?"

"देखो मेरा परिवार में भीमा और मन्नू के अलावा उसका पोता है, निशा है और उनके बच्चे है।"

"और आपने शादी नहीं की ?"

"श्वेता करनेवाला था लेकिन अफसोस उस औरत की मौत हो गई।"

दरअसल नटवर सही कह रहा था। नटवर जब जवान था टॉन्यूज एक औरत से प्यार हुआ था। वो भी उससे प्यार करती थी। दोनो एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। दोनो में शारीरिक संबंध भी थे। दोनो ने के परिवार शादी करवाने को राजी हुए लेकिन एक दिन उसकी प्रेमिका की मौत हो गई। दरसल वो पहाड़ी रास्ते से कुछ काम की वजह से जा रही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो नीचे गिर गई। सिर पे चोट लगने की वजह से वो मर गई।

यही कहानी श्वेता को जब सुनाया तो उसे दिल से बुरा लगा।

खुद से मन में कहने लगी "और मैं खुद को अभागा समझती हूं। मुझसे ज्यादा बदनसीब तो नटवर काका है जिन्हे वैवाहिक जीवन जीने का सुख नहीं मिला। किसी इंसान के साथ इतना बेरहम ऊपरवाला कैसे हो सकता है ? काश इनकी जिंदगी को मैं कुछ पल की खुशियों से भर सकूं।"

फिर श्वेता आगे बोली "अच्छा ये बताइए कि आपको इस स्कूल में काम करने में मजा आता है ? अच्छा लगता है यहां काम करने में ?"

"हां बहुत अच्छा लगता है अब। पहले तो ऊब जात था काम करने में।"

"सीधे सीधे ये कहो ना कि मेरे आने से आपको काम करने में मजा आ रहा है।" श्वेता ने छेड़ते हुए कहा।

ये सुनकर नटवर भी अपने खयालों में खो गया और खुद से मन में बोला "पता नही था कि तुम दिल की बात भी पढ़ लेती हो। अगर इतना ही अच्छे से दिल की बात पढ़ लेती हो तो कभिन्ये क्यों नही जानना चाहती कि इस गोरे और जवान बदन के साथ तुम्हे अपनी बाहों में भरने का मन कर रहा है मुझे। कभी प्यार की बात भी समझलो।"

श्वेता मन में कहने लगी "समझती हूं आपके दिल की बात लेकिन ये दिल का मामला है। जरा समझा करो। मुझे अपनी बाहों में लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी। क्योंकि मुझे अपने प्यार में फसाना इतना मुश्किल नहीं। बस थोड़ी सी सच्चाई और जूनून चाहिए।"

फिर दोनो अपने खयालों से बाहर आए और नटवर बोला "सच कहूं तो हां। आपके आने से मुंडे रोज काम करने का मन करता है।"

"अच्छा ऐसा क्या कर दिया मैंने ?" श्वेता ने पूछा।

"जाहिर सी बात है आप अच्छी है और मुझे जो करना चाहिए वो करने देती है।"

"लेकिन मुझे आपके साथ काम करने में जरा भी अच्छा नहीं लगता।" श्वेता ने शिकायत करते हुए कहा।

"मुझसे कुछ गलती हो गई क्या ?" नटवर काका थोड़ा घबराते हुए बोले।

"आप बहुत ही खडूस हो। कभी मुझसे बात नही करते। अपने काम में लगे रहते है। मैं इंसान हूं। शहर में मैंने किसी से बात नही की। इस गांव में आई थी ये सोचकर कि कुछ अलग लोगो के साथ काम करूंगी लेकिन आप है की।"

नटवर कान पकड़ते हुए बोला "अब से ऐसा नहीं होगा। अब तो हमारी पहचान हो गई। अब तो खुलकर बात करेंगे। जैसे अभी कर रहे है।"

"बिलकुल वरना नौकरी से निकाल दूंगी।"

"अरे नही नही मेमसाब। इस गरीब इंसान पर रहम करो। अगर निकल दोगी तो इस खूबसूरत मेमसाब के पास रहूंगा कैसे ?"

"मेरे साथ रहना है आपको ?"

"हां बिलकुल आप ही के पास रहना है।" नटवर अब भावनाओ में आने लगा।

"तो फिर एक दोस्त बनकर रहो। हर वक्त।"

नटवर अब श्वेता के बगल बैठ गया और बोला "अब तो मैं बन गया तुम्हारा दोस्त ?"

"ये हुई न बात।" इतना कहकर श्वेता ने हल्के से नटवर काका का गाल खींचा।

श्वेता ने मोबाइल निकाला और नटवर के करीब आ गई और सेल्फी ले ली। नटवर ने मुस्कुराते हुए सेल्फी लिया।

"ये तस्वीर है मेरे दोस्त नटवर की।" श्वेता ने नटवर को सेल्फी की फोटो दिखाते हुए कहा।

"ये तस्वीर कैसे लेते है इसमें ?" नटवर ने पूछा।

"मैं सिखाती हूं।" श्वेता ने नटवर को अपने फोन से फोटो और वीडियो लेना सिखाया।

"क्या मैं तुम्हारा फोन ले सकता हूं ?" नटवर ने पूछा।

"हां लेकिन क्यों ?"

"ताकि मेरा जब मन करे तब आज मैं हमारी तस्वीर ले सकूं।"

श्वेता ने नटवर को अपने बैग से दूसरा फोन देते हुए कहा "जब तक तुम चाहो इस रख सकते हो।"

नटवर ने मुस्कुराते हुए श्वेता की तस्वीरे लेने लगा।

"अब घर चलते है वैसे भी वक्त हो गया है हमारे जाने का।"

"चलो फिर घर ही चलते है।"

स्कूल के सभी दरवाजे और तले को बंद करके दोनो घर की ओर चल दिए। दोनो साथ में चाय पिया।

"अच्छा सुनो श्वेता। मुझे थोड़ा काम है। मैं कुछ मजदूर लोगो के साथ तुम्हारे और मेरे घर के सफाई के लिए जा रहा हूं। तब तक तुम मन्नू के खेत में घूम आओ।

"ठीक है।" श्वेता ने हामी भरी।

श्वेता का वैसे भी मन्नू से मिलने का बड़ा मन कर रहा था। नटवर और श्वेता दोनो घर से बाहर अपने अपने तय किए जगह की तरफ चल दिए। श्वेता मन्नू के घर के बाहर पहुंची। वहां दरवाजा खटखटाया। मन्नू ने दौड़ते हुए तुरंत दरवाजा खोला।

"मेरी जान आ गई। कितना तरसाया मुझे। मेरी जान आ भी जा।" मन्नू हर बार को तरह मजाक करने के मूड में था।

श्वेता अंदर आई और बोली "क्या तुम्हे पता था कि मैं आनेवाली हूं ?"

"हां बिलकुल पता था।"

"और फिर भी मेरे लिए चाय नही बनाया ?" श्वेता ने हल्की सी नाराजगी दिखाते हुए कहा।

"तो बना दूं चाय ?"

"नही। अब पहले हटो मुझे पहले ये बताओ। लेने क्यों नहीं आए मुझे ?"

"अरे मेरी रानी कभी तुम आ जाओ ना बिना बोले।"

श्वेता बगल में पड़े खटिया पर लेट गई। मन्नू उसका पास आया और नंगे कंधे को दबाते हुए बोला "थोड़ा कम अकड़ा करो। देखो कैसे थकी हुई लग रही हो।"

"मैं ठीक हूं तुम बताओ।"

"मैं भी ठीक हूं। अंदर आओ मेरे कमरे में वहा टेबल फैन चालू है।"

दोनो मन्नू के कमरे में आए। कल रात से श्वेता सोई नहीं थी इसीलिए थकी हुई थी और मन्नू भी आज सुबह अच्छे से खेती में काम किया इसीलिए वो भी थका हुआ था।

"देखो मन्नू में थकी हुई हूं इसीलिए मैं थोड़ी देर सोने जा रही हूं।"

"मैं भी थका हुआ हूं मेरी रानी। साथ में सो जाऊं ?"

"जो करना है करो।" श्वेता थोड़ा किनारे आई और बोली "आओ तुम भी सो जाओ।"

मन्नू बगल में लेट गया और बोला "मेरी रानी आज बहुत महक रही हो।" मन्नू बालो पे हाथ फेरने लगा।

"हम्मम तुम फिर शुरू हो गए ? चलो अब मुझे सोना है।"

"अच्छा तो मेरे घर यहां सोने आई हो ? चलो ना जानेमन मुझे बात करनी है। थका तो मैं भी हूं आज।"

"देखो मुझे परेशान मत करो वरना मैं चली जाऊंगी।"

मन्नू श्वेता के कंधे पर उंगली घुमाते घुमाते बोला "बताओ आज आई हो तो बात नही कर रही हो।"

"कल कर लूंगी। अब तुम भी सो जाओ।"

"अच्छा ठीक है जानेमन।" मन्नू श्वेता के कंधे पर सर रख दिया। श्वेता ने एक हाथ मन्नू के गाल को सहलाया और मुस्कुराते हुए बोली "ये हुई न बात। अब सो जाओ।"

मन्नू श्वेता के कंधे पे सर रखा। एक हाथ कंधे पर तो दूसरा हाथ श्वेता के नरम नरम पेट पर रख दिया। श्वेता ने पेट पर पड़े मन्नू के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। दोनो नींद में थे। मन्नू की गरम सासों को श्वेता महसूस कर रही थी। दोनो नींद में थे। करीब 3 घंटे बीत गए। दोनो की आंखे खुली। श्वेता को अब बहुत आराम मिला। शाम के 5 बज चुके थे।

श्वेता अंगड़ाई लेते हुए उठी और बोली "अब जाकर आराम मिला। हम्मम"

"मेरी जान आज तुमने मुझसे बात नही की।" मन्नू थोड़े नाराज दिखाते हुए बोला।

"Sorry मन्नू वो क्या है न मैं थोड़ा थकी हुई थी।"

मन्नू हाथ पकड़ते हुए श्वेता को अपने पास लाया बेड पर। श्वेता भी मुस्कुराते हुए बोली "कुछ बोलो भी।"

मन्नू श्वेता की गोद में सिर रख दिया। श्वेता उसके गंजे सिर पर उंगली घुमाने लगी।

"मन्नू कुछ बोलो ना। मुझे अच्छा नहीं लग रहा। मुझसे बात करो ना।"

"एक शर्त पर।" मन्नू ने कहा।

"अच्छा बताओ कैसी शर्त ?"

"एक पप्पी चाहिए।" मन्नू ने मन ही मन हंसते हुए बोला।

"अच्छा ठीक है लाओ अपना गाल में दे देती हूं।"

"तुम नहीं। मैं दूंगा।"

"अच्छा ?"

"हां।"

श्वेता अपना गाल दिखाते हुए "लो दे दो पप्पी।"

मन्नू बोला "उधर नही।"

"तो फिर किधर ?"

"तुम्हारे नाभि पर।"

यह बात सुनकर श्वेता थोड़ा घबरा गई और बोली "ये क्या कह रहे हो मन्नू ? ये नहीं हो सकता । "

"नहीं मुझे तुम्हारे नाभि को चूमना है "

हवेत ने समझने का बहुत प्रयास किया लेकिन मन्नू सुनने को तैयार नहीं था। श्वेता देख रही थी कि मन्नू नाराज था और उसे नाराज नहीं देखना चाहती थी। उसे मन्नू के साथ रहना है इसीलिए मान गई।

"अच्छा ठीक है तुम ले लो पप्पी।"

यह सुनकर मन्नू बहुत खुश हुआ। मन्नू ने हल्के से श्वेता के साड़ी का पल्लू हटाया और गोल गोल गोरे गोरे navel को उंगली से घुमाया और फिर चूमना शुरू किया। Navel पर पहला चुम्बन पड़ते ही जोर का करंट लगा श्वेता को। श्वेता की आंखे बन्द हो गई। मन्नू अपनी जुबान बाहर निकाला और पूरे पेट पर घूमने लगा। श्वेता अब अपना नियंत्रण खोने लगी। करीब दस मिनट बाद श्वेता अचानक से उठी और कमरे के किनारे खड़ी हो गई। से मन्नू उसे घूर रहा था। श्वेता ने देखा कि उसका पेट पूरी तरह से मन्नू के थूक से भर गया था। श्वेता ने खुद को ठीक किया और मन्नू को देखी l

मन्नू बोला "आज मेरा दिल खुश हो गया।"

श्वेता बिना कुछ बोले हवेली को तरफ चल दी।
Nice update....
 
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