श्वेता घर वापिस आई। नटवर और श्वेता ने खाना खाया और रात के 9 बजे हवेली की तमाम लाइट बंद हो गई। नटवर और श्वेता अपने अपने कमरे चला गए। श्वेता को अभी भी उलझन थी। नटवर की डायरी पढ़कर वो अभी भी हैरान थी। खुद को आइने के सामने खड़ी करते हुए श्वेता खुद को निहारने लगी।
"क्या सच में मैं इतनी खुबसूरत हूं ? इतने सालो बाद किसी ने मेरी खुबसूरती को देखा।" श्वेता ने अपने साड़ी का पल्लू गिरा दिया। ब्लाउस और पेटीकोट में खड़ी श्वेता अपने सेक्सी जिस्म को निहार रही थी।
"पता नही मुझे क्यों इतनी उज्जेतना हो रही है। एक बूढ़े आदमी की डायरी पढ़कर मुझे क्यों अजीब सी बैचेनी हो रही है। क्यों मुझे अच्छा लग रहा है ? 17 सालो से जो शरीर प्यासी थी ए क्यों एक बूढ़े के डायरी पढ़ने से तड़प रही है ? क्यों में इतनी उत्तेजित हो रही हूं ? आखिर मुझे क्यों नटवर पर घुसा नही आ रहा ? क्या इसका कारण उसकी अच्छाई है ? हां हो सकता है। अगर उसका इरादा गलत होता तो वो मेरे साथ अकेले में जबरजस्ती कर सकता था। मुझे बातो मे उलझाता, फसता और अलग अलग मौके का फायदा उठाता। रोज करीब ८ घाटे वो मेरे साथ अकेले रहता है फिर भी मुझसे दूर रहा। इतना तो तय है कि उसका दिल अच्छा है। लेकिन ये अकेली रात जैसे मुझे काट रही है। आज पहली बार ऐसा लगा की 17 सालो से मैं अकेली हूं। 20 साल की उमर में विधवा हुई और आज ऐसा बार बार महसूस हो रहा है। क्यों मैने डायरी पढ़ी ? क्यों नटवर काका आपने मेरे अंदर की आग को भड़काया ? क्यों मुझे इस हालत में ला दिए ? इस तड़प में जान जा रही है मेरी। क्यों मेरे कदम नटवर की तरफ मुड़ना चाहते है। नही श्वेता नही। अब बस बहुत हुआ ये अकेलापन। ऊपरवाले पर छोड़ दे अपना भविष्य। एक तो उलझन हो रही है ऊपर से मन्नू ने भी आज कल नही किया। मन्नू मुझे कॉल करो ना।"
अब उलझन श्वेता को सताए जा रही थी। रात के 11 बज गए लेकिन मन्नू का कॉल न आया। श्वेता बिना सोचे समझे स्कूल की तरफ चल दी और रात के बिया बाण अंधेरे में डर को भुलाकर जंगल के रास्ते से स्कूल चली गई। वहां ऑफिस का दरवाजा खोला और नटवर की डायरी ले ली। वहां पड़े सोफे पर लेट गई। डायरी को आगे पढ़ने लगी।
Page 2: श्वेता मेरे जिस्म की आग।
"हां श्वेता वो आग है। इस आग ने मेरे पूरे जिंदगी के अकेलेपन को मेरे सामने उजागर किया। कभी शादी न हुई मेरी। मैने ये सोचा नहीं था की मैं अकेला हूं। लेकिन उसके कामुक बदन ने मुझको एहसाह दिलाया कि शरीर को भोगने का सुख मुझे सिर्फ एक बार ही मिला। वो सुख मुझे किसने दिया उसपर मुझे नही बात करना। वो सुख मैने 65 साल पहले पाया था। श्वेता तुम क्यों आयो यहां पर ? क्या मकसद है तुम्हारा ? क्यों मुझे जला रही हो ? मुझे उकसाती क्यों हो अपनी जवानी से ? तुम्हारी वो खूबसूरत कमर और उसमे वो गोल नाभी कितनी खूबसूरत है। मुझे उकसाती हैं। जी करता है चूम लूं उसे। और तुम्हारे बड़े बड़े से स्तन प्यार करना है मुझे इससे। ये गला, चाटना है मुझे। तुम्हारे होठ, उसमे अपना होठ जोड़कर अपनी जुबान को तुम्हारी जुबान से मिलना चाहता हूं। इस खूबसूरत पेट पर अपना मुंह रखकर चाटना है मुझे।"
श्वेता ये सब पढ़कर उत्तेजित होने लगी। बिना कुछ सोचे डायरी को अपने मुलायम पेट पर रख दिया और बोली "नटवर काका ये क्या कर रहे हो मेरे साथ ? छोड़ो मुझे और ये तड़प मुझे क्यों दे रहे हो ? ऐसा लग रहा है इस डायरी को नहीं आपके चेहरे को अपने पेट पर रखा है। ओह नटवर काका क्या मिल रहा है मुझे पागल करके ?" श्वेता की सांसे भी ऊपर नीचे होने लगी और फिर अपने होश में वापिस आई और आगे पढ़ने लगी।
Page 3: श्वेता मेरी प्यास हो तुम।
तुम जब भी अपने sleveless साड़ी में आती हो। क्या बताऊं ? कयामत लगती हो तुम। तुम्हारे नंगे कंधे और मुलायम कंधे मुझे रिझाती है। चूमने को बुलाती है मुझे। उस ब्लाउस में तुम्हारे बड़े बड़े स्तन। याद है मुझे जब तुम्हारे हाथ से कलम गिर गया था तब तुम झुकी और बड़े बड़े स्तन मेरे आंखो के सामने आ गए। जी कर रहा था देखता हूं। जब तुम रोज मेरे करीब आती हो हिसाब किताब की फाइल देखने टोंपता है क्यों तुम्हे चोटी कुर्सी कर बिठाया करता हूं ? ताकि रोज इसी तरह तुम्हारे स्तन को देख सकूं। अब तो बस एक ही ख्वाहिश है। एक बार इस स्तन को मुंह से लगा लूं।
श्वेता ने चौथे पन्ने की तरफ बढ़ी तो एक तस्वीर गिरी जो नटवर का था। उस तस्वीर में उसकी काली और सफेद दाढ़ी से भरी शकल थी। उत्तेजना में आकर नहाने श्वेता क्या बोल बैठी। वो बोली "देखो तो सही इस बुड्ढे को। खुद तो आग में जल रहा है और मुझे भी जला रहा है। ठीक है मेरा स्तन चाहिए न तुम्हे ? तो लो मेरा स्तन।"
उस तस्वीर को अपने ब्लाउज के अंदर डाल दी और बोली "अब खुश ? पागल बुड्ढे। मुझे पागल बना रहे हो तुम। अब तुम्हारी तस्वीर अंदर अपने स्तन पर डालकर नजाने क्यों मुझे अच्छा लग रहा है और पागलपन महसूस करवा रहा है।"
Page 4: श्वेता मेरे कमरे में।
श्वेता तुम्हे जब भी रात को याद करता हूं तो अकेलापन काटने को दौड़ता है। इसीलिए मैंने तुम्हारी साड़ी जो सुखाने के लिए तुमने छत पर रखी थी उसे मैने चुराया था, फिर तुम्हारा एक ब्लाउस भी मैने ही चुराया था। रात के अंधेरे में उसे अपने बिस्तर पर रखकर उसे सूंघता हूं। उसपर सोता हूं। सोते हुए ऐसा लगता है की तुम्हारे जिस्म पर लेटा हूं। क्या खुशबू आती है इनमे। तुम्हे तो याद भी नहीं की आज मैने क्या किया। जब ने एक घंटे के लिए बाहर गया था तो स्कूल के काम से नहीं गया था बल्कि अपने काम से। मैं हवेली गया और छत पर पड़ी तुम्हारे ब्रा को लेनेवाला था लेकिन जब पहले मंजिल चढ़ा तो देखा कि तुमने अपने कमरे का दरवाजा ठीक से बांध नही किया। फिर मैं अंदर गया और तुम्हारे बिस्तर पर कुछ देर सो गया। ऐसा लगा की तुम्हे पा लिया मैंने।
श्वेता का हाल बहुत ही ज्यादा बुरा होने लगा। वो अब बैचेन हो गई। इतना सब कुछ हो रहा है उसके साथ लेकिन फिर भी मन्नू ने एक भी कॉल नही किया।
"मुझसे मोहब्बत हुई है न तुम्हे ? अब देखो इस मोहोब्बत का अंजाम। मुझपर ऐसी ऐसी बाते लिखनेवाले काका, अब आपने मेरी तड़प को बढ़ा दिया। अब मै आपको तड़पाऊंगी। अब मुझे 17 साल के अकेलेपन को खत्म करना है। चाहे वो तड़प किसी बुड्ढे इंसाद से ही क्यों न मिटे।"
श्वेता वापिस घर पहुंची। अब से श्वेता का नया रूप आनेवाला है। वो रूप है प्यार की खोज में एक औरत। श्वेता ने खुद के लिए जीने का फैसला कर लिया। घर पहुंचते ही रात के 3 बज चुके थे। श्वेता नटवर काका के कमरे के पास गई। दवाजा बंद था। श्वेता की तड़प बढ़ने लगी। अपने कमरे गई और खुद को आइने में देखा।
"अब से एक नई श्वेता दिखेगी। बहुत अकेले रह लिया। अब वक्त आ गया है अपने लिए जीने का। नटवर अब तुम्हे एक नई श्वेता दिखेगी। ऐसी श्वेता जिसे हासिल करने के लिए लाखो मर्द दौड़ते है। अगर तुमने मुझे पा लिया तो प्यार मै दिल से करूंगी। ये सिर्फ जिस्मानी नही बल्कि भावनाओ से जुड़ी मोहोंबत भी होगी।"
सुबह के 6 बज गए। आज श्वेता ने खुद को अच्छे से सजाया। आज नीले रंग की साड़ी और sleveless ब्लाउस में वो कयामत ढा रही थी।
"अब इस खुबसूरती से बचना नामुमकिन है नटवर काका। अब तुम मुझसे नही बच सकते।" यह कहकर श्वेता गरम हो चुकी थीं।
श्वेता और नटवर साथ में स्कूल चलने लगे। नटवर चोर की तरह श्वेता को घूरने लगा। नटवर मन ही मन बोलने लगा "स्वर्ग जैसे यहां उतर आया हो ऐसा लग रहा है। श्वेता तुम चोर हो लूटेरी हो इस दिल की।"
श्वेता भी मन में बोली "हां मैं तो आई हूं यहां दिल चुराने। लेकिन मुझे कौन चुराएगा यहां ? कौन मुझे जीतकर अपने साथ ले जाएगा ?"
दोनो ऑफिस पहुंचे। श्वेता काम में लग गई। नटवर डायरी में लिखकर काम में लग गया। आज वैसे भी स्कूल में आधा दिन रखा गया था। इसीलिए सभी लोग सुबह 11 बजे छूटकर घर चले गए। श्वेता को ऑफिस में एक लेटर आया। वो लेटर सरकार की तरफ से था। लेटर में बताया गया को श्वेता के लिए घर तैयार हो गया है। स्कूल के प्रिंसिपल के लिए एक घर अलॉट होता है। घर की चाभी भी थी। श्वेता अपने नए सरकारी घर की तरफ गई घर स्कूल से पीछे 100 मीटर दूर था। तीन कमरों का घर, बाहर एक बढ़िया बगीचा, एक बड़ा सा हॉल, फिर किचेन हॉल, एक स्टोर रूम और बड़ा सा छत। श्वेता ने सोचा कि निशा के आने के बाद समान शिफ्ट करके यहां रहने आ जाएगी। वैसे नटवर के लिए भी एक कमरे वाला घर था लेकिन वो रहता नही था। नटवर का घर श्वेता के घर से थोड़े दूरी पर ही है।
श्वेता को घर का नजारा खूबसूरत लगा। अब वो ऑफिस वापिस आ गई। श्वेता सोफे पर आराम से बैठ गई। आज काम करने का मूड नहीं थी। सोफे पर अपने दोनो हाथो को फैलते हुए श्वेता अपने बड़े स्तन के आकार को उजागर कर रही थी। उसके armpit का कुछ हिस्सा भी दिख रहा था। नटवर काका काम करने के लिए ऑफिस में आए तो श्वेता को इस अंदाज में देखते रह गए। वो फिर भी काम करने के लिए अपने टेबल कुर्सी के पास आए।
"अरे नटवर काका। क्या फिर से कामों में लग गए ?"
"हां श्वेता वो काम बहुत है न।"
"छोड़िए काम आज आराम से बैठिए।"
"ऐसा क्यों ?" नटवर ने पूछा।
"आज सबका हाफ डे है तो हमारा क्यों नहीं होना चाहिए ?"
"बात तो सही कही तुमने।"
"हां तो छोड़िए ये काम और आइए बैठिए। थोड़ी बातचीत करते है। एक दूसरे को अच्छे से समझे।"
नटवर मुस्कुराते हुए बोला "तो फिर ठीक है आज कोई काम नहीं।"
"काका ऑफिस का दरवाजा बंद कर दीजिए। वरना कोई आएगा तो हमे काम चोर मानेगा।" श्वेता ने मुस्कुराते हुए कहा।
"ठीक है तो अभी बंद कर देता हूं।" नटवर काका ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। उसके बाद खिड़की के परदे लगा दिए।
"पर्दा क्यों लगाया आपने काका ?" श्वेता ने पूछा।
"ताकि हम काम चोर न लगे।" फिर दोनो हंस दिए।
नटवर श्वेता के सामने एक कुर्सी पर बैठा।
"बताओ श्वेता आज क्या बात करनी है ?" नटवर ने पूछा।
"अच्छा नटवर काका आप ये बताइए कि आप पहले ससुरजी के घर कब और कहां तक काम किए ?"
"श्वेता मैं जब 28 साल का था तब तुम्हारे ससुर के पिताजी के लिए काम करता था। फिर 66 साल की उमर में यहां चला आया। फिर भीमा को काम पर लगवा दिया।"
"यहां गांव में आपका कौन कौन है ?"
"देखो मेरा परिवार में भीमा और मन्नू के अलावा उसका पोता है, निशा है और उनके बच्चे है।"
"और आपने शादी नहीं की ?"
"श्वेता करनेवाला था लेकिन अफसोस उस औरत की मौत हो गई।"
दरअसल नटवर सही कह रहा था। नटवर जब जवान था टॉन्यूज एक औरत से प्यार हुआ था। वो भी उससे प्यार करती थी। दोनो एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे। दोनो में शारीरिक संबंध भी थे। दोनो ने के परिवार शादी करवाने को राजी हुए लेकिन एक दिन उसकी प्रेमिका की मौत हो गई। दरसल वो पहाड़ी रास्ते से कुछ काम की वजह से जा रही थी की तभी उसका पैर फिसला और वो नीचे गिर गई। सिर पे चोट लगने की वजह से वो मर गई।
यही कहानी श्वेता को जब सुनाया तो उसे दिल से बुरा लगा।
खुद से मन में कहने लगी "और मैं खुद को अभागा समझती हूं। मुझसे ज्यादा बदनसीब तो नटवर काका है जिन्हे वैवाहिक जीवन जीने का सुख नहीं मिला। किसी इंसान के साथ इतना बेरहम ऊपरवाला कैसे हो सकता है ? काश इनकी जिंदगी को मैं कुछ पल की खुशियों से भर सकूं।"
फिर श्वेता आगे बोली "अच्छा ये बताइए कि आपको इस स्कूल में काम करने में मजा आता है ? अच्छा लगता है यहां काम करने में ?"
"हां बहुत अच्छा लगता है अब। पहले तो ऊब जात था काम करने में।"
"सीधे सीधे ये कहो ना कि मेरे आने से आपको काम करने में मजा आ रहा है।" श्वेता ने छेड़ते हुए कहा।
ये सुनकर नटवर भी अपने खयालों में खो गया और खुद से मन में बोला "पता नही था कि तुम दिल की बात भी पढ़ लेती हो। अगर इतना ही अच्छे से दिल की बात पढ़ लेती हो तो कभिन्ये क्यों नही जानना चाहती कि इस गोरे और जवान बदन के साथ तुम्हे अपनी बाहों में भरने का मन कर रहा है मुझे। कभी प्यार की बात भी समझलो।"
श्वेता मन में कहने लगी "समझती हूं आपके दिल की बात लेकिन ये दिल का मामला है। जरा समझा करो। मुझे अपनी बाहों में लाने के लिए आपको मेहनत करनी होगी। क्योंकि मुझे अपने प्यार में फसाना इतना मुश्किल नहीं। बस थोड़ी सी सच्चाई और जूनून चाहिए।"
फिर दोनो अपने खयालों से बाहर आए और नटवर बोला "सच कहूं तो हां। आपके आने से मुंडे रोज काम करने का मन करता है।"
"अच्छा ऐसा क्या कर दिया मैंने ?" श्वेता ने पूछा।
"जाहिर सी बात है आप अच्छी है और मुझे जो करना चाहिए वो करने देती है।"
"लेकिन मुझे आपके साथ काम करने में जरा भी अच्छा नहीं लगता।" श्वेता ने शिकायत करते हुए कहा।
"मुझसे कुछ गलती हो गई क्या ?" नटवर काका थोड़ा घबराते हुए बोले।
"आप बहुत ही खडूस हो। कभी मुझसे बात नही करते। अपने काम में लगे रहते है। मैं इंसान हूं। शहर में मैंने किसी से बात नही की। इस गांव में आई थी ये सोचकर कि कुछ अलग लोगो के साथ काम करूंगी लेकिन आप है की।"
नटवर कान पकड़ते हुए बोला "अब से ऐसा नहीं होगा। अब तो हमारी पहचान हो गई। अब तो खुलकर बात करेंगे। जैसे अभी कर रहे है।"
"बिलकुल वरना नौकरी से निकाल दूंगी।"
"अरे नही नही मेमसाब। इस गरीब इंसान पर रहम करो। अगर निकल दोगी तो इस खूबसूरत मेमसाब के पास रहूंगा कैसे ?"
"मेरे साथ रहना है आपको ?"
"हां बिलकुल आप ही के पास रहना है।" नटवर अब भावनाओ में आने लगा।
"तो फिर एक दोस्त बनकर रहो। हर वक्त।"
नटवर अब श्वेता के बगल बैठ गया और बोला "अब तो मैं बन गया तुम्हारा दोस्त ?"
"ये हुई न बात।" इतना कहकर श्वेता ने हल्के से नटवर काका का गाल खींचा।
श्वेता ने मोबाइल निकाला और नटवर के करीब आ गई और सेल्फी ले ली। नटवर ने मुस्कुराते हुए सेल्फी लिया।
"ये तस्वीर है मेरे दोस्त नटवर की।" श्वेता ने नटवर को सेल्फी की फोटो दिखाते हुए कहा।
"ये तस्वीर कैसे लेते है इसमें ?" नटवर ने पूछा।
"मैं सिखाती हूं।" श्वेता ने नटवर को अपने फोन से फोटो और वीडियो लेना सिखाया।
"क्या मैं तुम्हारा फोन ले सकता हूं ?" नटवर ने पूछा।
"हां लेकिन क्यों ?"
"ताकि मेरा जब मन करे तब आज मैं हमारी तस्वीर ले सकूं।"
श्वेता ने नटवर को अपने बैग से दूसरा फोन देते हुए कहा "जब तक तुम चाहो इस रख सकते हो।"
नटवर ने मुस्कुराते हुए श्वेता की तस्वीरे लेने लगा।
"अब घर चलते है वैसे भी वक्त हो गया है हमारे जाने का।"
"चलो फिर घर ही चलते है।"
स्कूल के सभी दरवाजे और तले को बंद करके दोनो घर की ओर चल दिए। दोनो साथ में चाय पिया।
"अच्छा सुनो श्वेता। मुझे थोड़ा काम है। मैं कुछ मजदूर लोगो के साथ तुम्हारे और मेरे घर के सफाई के लिए जा रहा हूं। तब तक तुम मन्नू के खेत में घूम आओ।
"ठीक है।" श्वेता ने हामी भरी।
श्वेता का वैसे भी मन्नू से मिलने का बड़ा मन कर रहा था। नटवर और श्वेता दोनो घर से बाहर अपने अपने तय किए जगह की तरफ चल दिए। श्वेता मन्नू के घर के बाहर पहुंची। वहां दरवाजा खटखटाया। मन्नू ने दौड़ते हुए तुरंत दरवाजा खोला।
"मेरी जान आ गई। कितना तरसाया मुझे। मेरी जान आ भी जा।" मन्नू हर बार को तरह मजाक करने के मूड में था।
श्वेता अंदर आई और बोली "क्या तुम्हे पता था कि मैं आनेवाली हूं ?"
"हां बिलकुल पता था।"
"और फिर भी मेरे लिए चाय नही बनाया ?" श्वेता ने हल्की सी नाराजगी दिखाते हुए कहा।
"तो बना दूं चाय ?"
"नही। अब पहले हटो मुझे पहले ये बताओ। लेने क्यों नहीं आए मुझे ?"
"अरे मेरी रानी कभी तुम आ जाओ ना बिना बोले।"
श्वेता बगल में पड़े खटिया पर लेट गई। मन्नू उसका पास आया और नंगे कंधे को दबाते हुए बोला "थोड़ा कम अकड़ा करो। देखो कैसे थकी हुई लग रही हो।"
"मैं ठीक हूं तुम बताओ।"
"मैं भी ठीक हूं। अंदर आओ मेरे कमरे में वहा टेबल फैन चालू है।"
दोनो मन्नू के कमरे में आए। कल रात से श्वेता सोई नहीं थी इसीलिए थकी हुई थी और मन्नू भी आज सुबह अच्छे से खेती में काम किया इसीलिए वो भी थका हुआ था।
"देखो मन्नू में थकी हुई हूं इसीलिए मैं थोड़ी देर सोने जा रही हूं।"
"मैं भी थका हुआ हूं मेरी रानी। साथ में सो जाऊं ?"
"जो करना है करो।" श्वेता थोड़ा किनारे आई और बोली "आओ तुम भी सो जाओ।"
मन्नू बगल में लेट गया और बोला "मेरी रानी आज बहुत महक रही हो।" मन्नू बालो पे हाथ फेरने लगा।
"हम्मम तुम फिर शुरू हो गए ? चलो अब मुझे सोना है।"
"अच्छा तो मेरे घर यहां सोने आई हो ? चलो ना जानेमन मुझे बात करनी है। थका तो मैं भी हूं आज।"
"देखो मुझे परेशान मत करो वरना मैं चली जाऊंगी।"
मन्नू श्वेता के कंधे पर उंगली घुमाते घुमाते बोला "बताओ आज आई हो तो बात नही कर रही हो।"
"कल कर लूंगी। अब तुम भी सो जाओ।"
"अच्छा ठीक है जानेमन।" मन्नू श्वेता के कंधे पर सर रख दिया। श्वेता ने एक हाथ मन्नू के गाल को सहलाया और मुस्कुराते हुए बोली "ये हुई न बात। अब सो जाओ।"
मन्नू श्वेता के कंधे पे सर रखा। एक हाथ कंधे पर तो दूसरा हाथ श्वेता के नरम नरम पेट पर रख दिया। श्वेता ने पेट पर पड़े मन्नू के हाथ पर अपना हाथ रख दिया। दोनो नींद में थे। मन्नू की गरम सासों को श्वेता महसूस कर रही थी। दोनो नींद में थे। करीब 3 घंटे बीत गए। दोनो की आंखे खुली। श्वेता को अब बहुत आराम मिला। शाम के 5 बज चुके थे।
श्वेता अंगड़ाई लेते हुए उठी और बोली "अब जाकर आराम मिला। हम्मम"
"मेरी जान आज तुमने मुझसे बात नही की।" मन्नू थोड़े नाराज दिखाते हुए बोला।
"Sorry मन्नू वो क्या है न मैं थोड़ा थकी हुई थी।"
मन्नू हाथ पकड़ते हुए श्वेता को अपने पास लाया बेड पर। श्वेता भी मुस्कुराते हुए बोली "कुछ बोलो भी।"
मन्नू श्वेता की गोद में सिर रख दिया। श्वेता उसके गंजे सिर पर उंगली घुमाने लगी।
"मन्नू कुछ बोलो ना। मुझे अच्छा नहीं लग रहा। मुझसे बात करो ना।"
"एक शर्त पर।" मन्नू ने कहा।
"अच्छा बताओ कैसी शर्त ?"
"एक पप्पी चाहिए।" मन्नू ने मन ही मन हंसते हुए बोला।
"अच्छा ठीक है लाओ अपना गाल में दे देती हूं।"
"तुम नहीं। मैं दूंगा।"
"अच्छा ?"
"हां।"
श्वेता अपना गाल दिखाते हुए "लो दे दो पप्पी।"
मन्नू बोला "उधर नही।"
"तो फिर किधर ?"
"तुम्हारे नाभि पर।"
यह बात सुनकर श्वेता थोड़ा घबरा गई और बोली "ये क्या कह रहे हो मन्नू ? ये नहीं हो सकता । "
"नहीं मुझे तुम्हारे नाभि को चूमना है "
हवेत ने समझने का बहुत प्रयास किया लेकिन मन्नू सुनने को तैयार नहीं था। श्वेता देख रही थी कि मन्नू नाराज था और उसे नाराज नहीं देखना चाहती थी। उसे मन्नू के साथ रहना है इसीलिए मान गई।
"अच्छा ठीक है तुम ले लो पप्पी।"
यह सुनकर मन्नू बहुत खुश हुआ। मन्नू ने हल्के से श्वेता के साड़ी का पल्लू हटाया और गोल गोल गोरे गोरे navel को उंगली से घुमाया और फिर चूमना शुरू किया। Navel पर पहला चुम्बन पड़ते ही जोर का करंट लगा श्वेता को। श्वेता की आंखे बन्द हो गई। मन्नू अपनी जुबान बाहर निकाला और पूरे पेट पर घूमने लगा। श्वेता अब अपना नियंत्रण खोने लगी। करीब दस मिनट बाद श्वेता अचानक से उठी और कमरे के किनारे खड़ी हो गई। से मन्नू उसे घूर रहा था। श्वेता ने देखा कि उसका पेट पूरी तरह से मन्नू के थूक से भर गया था। श्वेता ने खुद को ठीक किया और मन्नू को देखी l
मन्नू बोला "आज मेरा दिल खुश हो गया।"
श्वेता बिना कुछ बोले हवेली को तरफ चल दी।