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Adultery भाभी के साथ विवाह...

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UPDATE 01

मेरा नाम महेश है, मेरी उम्र 26 साल की है। मेरे बड़े भाई जो मेरे से दो साल बड़े थे। उन की शादी एक साल पहले ही हुई थी। कुछ समय पहले उन की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो गयी। हमारे सारे परिवार पर दूखों का पहाड़ टूट पड़ा। मेरी भाभी जी की तो मानो सारी दूनिया ही तहस-नहस हो गयी थी। हम सब उन के दूख से बहुत दूखी थे लेकिन कोई भी इस दूख की घड़ी में उन की सहायता नहीं कर पा रहा था।

मैं भी इस स्थिति में अपने आप को बहुत असहाय पाता था। हमेशा चहकने वाली भाभी जी अचानक खामोश हो गयी थी। मेरे माता-पिता भी अपने पुत्र के जाने के दूख को भुल कर अपनी बहु के दूख के कारण दूखी रहने लग गये। ऐसा लगता था कि हमारे हँसते-खेलते परिवार को मानो किसी की नजर लग गयी थी। खुशियाँ शायद हमारे घर का पता भुल गयी थी।

इसी सब के बीच मेरी नियुक्ति भी उच्च सरकारी पद पर हो गयी थी। इस बात की परिवार में किसी को कोई खुशी नहीं थी। सब भाई के निधन के दूख में डुबें थे और उस के जाने के बाद उस की विधवा के दूख के कारण और अधिक दूखी हो रहे थे। इसी माहौल में, मैं अपने पद के लिये ट्रेनिग लेने चला गया। मेरा जाना जरुरी था।

तीन महीने बाद जब ट्रेनिग से वापस घर आया तो माहौल उतना ही गमगीन था। किसी को इस गम से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। मेरी नियुक्ति मेरे शहर में ही हुई थी इस लिये मुझे ज्यादा परेशानी नहीं हो रही थी। लेकिन भाई के इस तरह अचानक चले जाने का दूख दूर नहीं हो रहा था। समय के साथ यह दूख कम होगा यह तो हम सब जानते थे लेकिन उस के जाने के दूख में समय काटना भी मुश्किल हो रहा था हम सब के लिये।

मैं और माता-पिता पुरी कोशिश करते थे कि भाभी जी अपने दूख को भुल जाये लेकिन उन के चेहरे पर छाई उदासी दूर नहीं हो पा रही थी। हमारी कई कोशिशें बेकार हो चुकी थी। ऐसे में भाभी जी के माता-पिता जी हमारे घर आये और भाभी जी को साथ लेकर चले गये। भाभी जी जाना नहीं चाहती थी लेकिन माँ ने जोर दिया कि शायद जगह बदलने से उस का मन बहल जाये। माँ की बात मान कर वह अपने मायके चली गयी। लेकिन वहाँ भी उन का दिल नहीं लगा और वह कुछ ही दिनों में वापस आ गयी। उन को छोड़ने उन के माता-पिता ही आये थे।

शाम को मैं जब ऑफिस से वापस आया तो भाभी जी के माता-पिता जी से मेरी मुलाकात हुई। रात को खाना खाने के बाद सारा परिवार, माँ, पिता जी, भाभी जी, उनकी माता जी और पिता जी एक साथ बैठे थे। मैं भी सब के साथ ही बैठा था। तभी माँ नें मुझ से पुछा कि महेश तुम से कुछ बात करनी है। मैंने कहा कि आप कुछ भी पुछ सकती है,आप को किस ने रोका है? माँ कुछ हिचकी और फिर बोली कि बहुत जरुरी बात है।

मैंने कहा कि आप को अधिकार है कुछ भी पुछने का। अब पिता जी ने बात पकड़ी और वह बोले कि हम चाहते थे कि तेरे भाई के जाने के बाद घर में उदासी छा गयी है, लगता है की घर में कोई रौनक ही नहीं है। तुम्हारी नौकरी भी लग गयी है इस लिये हम दोनों की इच्छा है कि अब तुम शादी कर लो। मैंने कहा कि जैसी आप की इच्छा, जैसा आप को सही लगे। माँ बोली कि वैसे हमें पता है कि तुम्हारी कोई लड़की दोस्त नहीं है लेकिन फिर भी अगर तुम कुछ कहना चाहते हो तो बताओ?

मेरी कोई महिला मित्र नहीं है, आप लड़की पसन्द कर लो। मेरी बात सुन कर माँ के चेहरे पर संतोष छा गया। कमरे में शांति छा गयी। कुछ देर बात माँ बोली कि मेरी, तेरे पिता जी की इच्छा है कि तेरी शादी माधवी के साथ कर दी जाये। यह सुन कर मैं हैरान रह गया। माधवी मेरी भाभी जी का नाम है। मेरे चेहरे पर छाई हैरानी को देख कर माँ बोली कि हम सब ने बहुत सोच-समझ कर यह फैसला किया है कि माधवी का विवाह तुम्हारे साथ कर दिया जाये।

वह हमारी बहुत सेवा करती है, इसी घर का हिस्सा है, उस के सामने सारा जीवन पड़ा है। विधवा का जीवन उस के लिये नहीं है। इतनी बढ़िया लड़की तुम्हारे लिये ढुढ़ने पर भी नहीं मिलेगी। जाने वाला चला गया है, लेकिन जो यहाँ है उन को पुरा जीवन जीना है। यह कह कर माँ चुप हो गयी।

मैंने कुछ देर चुप रह कर कहा कि भाभी जी की जिम्मेदारी मेरी है। किसी को इस संबंध में कोई शक नहीं होना चाहिये। भाभी जी को मैं सारे जीवन अपने साथ ही रखुँगा। वह मेरा ही हिस्सा है। मेरा परिवार है। हम आप सब में से एक है।

मेरी बात सुन कर भाभी जी के पिता जी बोले कि तुम्हारी बात पर हम सब को विश्वास है कोई शंका नहीं है लेकिन माधवी अभी जवान है, सारा जीवन उस के सामने है, तुम जो सब कुछ उस के लिये करोगें, वह सब उस से विवाह करने के बाद अपने आप हो जायेगा। उस का जीवन सुधर जायेगा। परिवार में खुशियां फिर से वापस आ जायेगी। हम भी उस की तरफ से निश्चित हो जायेगें।

मुझे चुप देख कर भाभी जी की माँ बोली कि बेटा तुम्हारे विचार बहुत उच्च है लेकिन हमारा समाज ऐसा नही है, विधवा भाभी के साथ जीवन बिताना आसान नही है। बहुत सी समस्याओं का सामना तुम को और माधवी को करना पड़ेगा। यही सब सोच-विचार करके हम सब ने यह फैसला किया है कि तुम्हारा विवाह माधवी के साथ कर दिया जाये।

मैंने माँ से पुछा कि आप ने इस संबंध में भाभी जी से बात कर ली है। मेरी बात पर माँ भाभी जी की तरफ देख कर बोली कि हमने पहले उस से बात की है उसे समझाया है। उस को समझा पाना बहुत कठिन था, लेकिन हम सब ने तुम दोनों से अधिक दुनिया देखी है और जो कुछ कर रहे है उस में ही तुम सब का सुख है। तेरी भाभी ने बहुत सी बातें हमें बतायी है, जो उस के दष्टिकोण से सही थी, लेकिन जब हम ने व्यवाहारिक पक्ष उसे समझाया तो वह इस विवाह के लिये राजी हो गयी है। अब तेरी बारी है।

मेरे मन में विचारों का झंझावात चल रहा था, कल तक जिस भाभी जी को में आदर की दृष्टि से देखता था, उस से विवाह करना, उस के साथ रहना, मन को समझ नहीं आ रहा था, मन कुछ भी समझने को तैयार नहीं हो रहा था।

लेकिन मन के एक कोने में अपने बड़ों की बात की वास्तविकता भी समझ आ रही थी। विधवा की देखभाल करना सारे जीवन की जिम्मेदारी लेना, कहना बहुत आसान है लेकिन वास्तविकता में बहुत कठिन कार्य है। भविष्य में क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है। मेरी ही हम उम्र होने के कारण शादी में कोई बाधा तो नहीं थी। मन की परेशानी की बात अलग थी।

मुझे चुप देख कर माँ और पिता जी बोले कि तुम बताओ तुम्हें क्या परेशानी है?

कोई परेशानी नहीं है, अगर आप सब और भाभी जी तैयार है तो मैं भी तैयार हूँ

मेरी इस बात पर माँ बोली कि अगर तुझे कुछ समय चाहिये तो समय ले ले, सोच समझ कर अपना जबाव देना। मैंने माँ से कहा कि आप सब भी तो हम बच्चों के हित में ही सोच रहे है तो फिर इस संबंध में और क्या सोचना। जो आप सब ने सोचा है वह हम दोनों के हित में है ऐसा मेरा मानना है।

मेरी बात सुन कर माँ ने भाभी जी की माँ को गले लगा लिया। पिता जी ने भाभी जी के पिता को गले लगा लिया और भाभी जी और मैं अकेले खड़े रहे।

मैंने भाभी जी को संबोधित करके पुछा कि आप की सहमति भी मुझे पता चलनी चाहिये, भाभी जी ने कहा कि आप सब ने जो सोचा है वह मेरे लिये भी सही है। मैं भी आप के विचारों का समर्थन करती हूँ कि हमारे बड़े जो कुछ हमारे लिये सोचते है उसी में हमारा हित है।

भाभी जी ने भी अपनी सहमति दर्शा दी थी। अब यह संबंध पक्का हो गया था। लेकिन मैं मन ही मन में जानता था कि अभी आगे इस संबंध में बहुत बाधायें आने वाली है।

मैं सोने के लिये अपने कमरे में चला गया क्योंकि बहुत रात हो चुकी थी, मुझे सुबह ऑफिस भी जाना था। सोते समय मन में इस बात का संतोष था कि परिवार में छाये उदासी के बादल छँटने वाले है।

सुबह उठ कर मैं ऑफिस के लिये तैयार होने लगा तभी भाभी जी मेरे पास आयी और बोली कि आप के कुछ बात करनी है?

पुछिये?

आप ने कल जो बात कही थी, उस पर सोच-विचार कर लिया है या किसी तरह की दीनता के कारण तो हाँ नहीं की है

आप को क्या लगा?

मुझे लगा कि आपके मन में शंका है, इसी लिये आप से अब पुछ रही हूँ?

आप की जिम्मेदारी अब मेरी है, मेरा जीवन अब आप का है, इसे आप किसी भी अर्थ में ले सकती है। मन में झिझक है, लेकिन विचार बिल्कुल स्पष्ट है कि आप की जिम्मेदारी मेरी है।

किसी तरह की जबरदस्ती तो नही हो रही आप के साथ?

आप तो मुझे जानती है, कोई मेरे से जबरदस्ती कर सकता है?

मुझे पता है आप पर कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता

फिर अपने मन से किसी भी शंका को निकाल दिजिये

मुझे जो पुछना था मैंने पुछ लिया, आप को मुझ से कुछ पुछना है तो निसंकोच पुछ सकते है

आप से क्या पुछु?

क्यों

आप बड़ी है

बड़ी नहीं हूँ, उम्र में आप के बराबर हूँ

बातों में आप से नहीं जीत सकता, लेकिन हम दोनों के लिये आगे आने वाला समय मुश्किल होने वाला है

यह तो मैं जानती हूँ, लेकिन हम दोनों मिल कर उस का सामना कर सकते है

यही मैं अपने लिये भी कह सकता हूँ

भाभी जी मेरा नाश्ता लेने चली गयी। उन के जाने के बाद मैंने देखा कि माँ दरवाजे के पीछे से हमारी बातें सुन रही थी। उन के चेहरे पर संतोष झलक रहा था। मैं ऑफिस के लिये निकल गया। काम में आज ज्यादा मन नही लगा। मन में यही विचार घुमड़ता रहा कि हम दोनों अपने इस नये रिश्ते को कैसे निभायेगें? आगे क्या होगा? यह मुझे नहीं पता था लेकिन यह पता था कि भाभी जी अब मेरे जीवन का अभिन्न अंग बनने वाली है।

शाम को ऑफिस से घर वापस आया तो पता चला कि भाभी जी के माता-पिता दोनों अपने घर लौटने के लिये तैयार थे। रात के खाने पर सारा परिवार एक साथ था, सब के चेहरे पर खुशी झलक रही थी। माँ ने मुझे बताया कि शुभ मुहर्त निकलवा कर जल्दी ही विवाह करवाना है।

आप बता देना कि कितने दिन की छुट्टी लेनी है

सारे काम तुझे ही करने पड़ेगें, छुट्टी तो लेनी ही पड़ेगी

कैसी शादी करवानी है?

जैसी तुम चाहते हो

मुझे तो सादगी पसंद है, लेकिन पहचान के लोगों का दायरा बड़ा है तो शादी के बाद रिशेप्शन बड़ा दे देगे।

जैसा तुझे सही लगे वैसा ही करो

शादी के मुद्दे पर मेरी बात यही पर खत्म हो गयी। सब बड़ें आपस में शादी के विषय में बात करते रहें।

समय बीत रहा था। शादी का समय निकट आ रहा था। सारी खरीदारी माँ-पिता जी और भाभी जी ने साथ जा कर करी थी। मैं केवल एक बार अपने कपड़ें खरीदने गया।

शादी घर में ही रिश्तेदारों के मध्य सादगी से हो गयी। शादी में ज्यादा हर्षोल्लास नहीं मना क्योंकि यह कोई आम शादी नहीं थी। खास परिस्थिती में हुई खास शादी थी।

शादी के दो दिन बाद शहर के बडे़ होटल में रिशेप्शन भी दिया गया। मेरे ऑफिस के लोग भी आये थे। मैं सभी कामों में निर्लिप्त भाव से भाग ले रहा था। एक जिम्मेदारी निभाने का भाव मेरे पर हावी था। इस भाव में उत्साह का भाव शामिल नही था, जिम्मेदारी की भावना अधिक थी। भाभी जी भी शायद इसे महसुस कर रही थी। लेकिन वह कुछ कह नहीं रही थी। हम दोनों विवाह के सारे रिति-रिवाजों को पुरा करने में लगे हुये थे। जब यह सब खत्म हो गया तो मैंने चैन की साँस ली।

जिस दिन हमारी सुहाग रात नियत की गयी थी उस दिन मैंने कमरे की सजावट के लिये मना कर दिया था। मेरे मना करने पर माँ ने कोई विरोध नहीं किया। वह भी शायद मेरी मनोस्थिति को समझती थी। रात को सोने के समय जब मैं कमरे में पहुँचा तो वहाँ माधवी लाल साड़ी पहने बेड पर बैठी थी। मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और बेड के पास जा कर खड़ा हो गया।

बेड पर माधवी के साथ बैठने में मुझे संकोच हो रहा था। वह भी शायद मेरे संकोच को समझ रही थी। वह उठ कर खड़ी हो गयी। हम दोनों एक-दूसरे के साथ बेड के किनारे खड़े थे। कुछ देर बाद मैंने उन से कहा कि आप क्यों खड़ी हो गयी, आप बैठिये मैं भी बैठता हूँ। यह कह कर मैंने एक कुर्सी बेड के पास खिसका ली और उस पर बैठ गया। यह देख कर माधवी भी बेड पर बैठ गयी।

माधवी बोली कि आप को मेरे साथ और मुझे आप के साथ घुलने में समय लगेगा। मैंने उन की बात से सहमति जताते हुये कहा कि आप सही कह रही है हमें इस नये संबंध में पुरी तरह से आने में समय लगेगा। हमें अपने आप को कुछ समय देना चाहिये। बाहर तो सब बदल गया है लेकिन इस कमरे में बदलाव अभी नहीं आया है। आप और मैं अब पति-पत्नी बन गये है, समाज के सामने हमारा रिश्ता बदल गया है, लेकिन हमारे मन में अभी पुराना रिश्ता ही जिन्दा है, उसे खत्म होने और नये रिश्ते को पनपने में समय लगेगा। मैंने आप को अपने मन की बात बता दी है।

माधवी बोली कि आप सही कह रहे हो, खाली शादी होने से एकदम सब कुछ नहीं बदल सकता है। हमें अपने इस रिश्ते को बदलने में समय लगेगा। लेकिन हम दोनों के सिवा और किसी को ऐसा नहीं लगना चाहिये, नहीं तो सब बड़ों को दूख होगा और ऐसा लगेगा कि हम ने जबरदस्ती यह रिश्ता अपनाया है।

आप बेड पर सोये मैं नीचे सो जाता हूँ

ऐसा सही रहेगा?

अभी तो यही सही लग रहा है

मैं नीचे फर्श पर चद्दर बिछा कर तकिया लगा कर लेट गया। काफी थका हुआ था इस कारण से जल्दी ही नींद आ गयी। सुबह किसी के झकझौरने से मेरी नींद खुली तो देखा कि माधवी मुझे जगा रही थी। उन्हें देख कर मैं उठ कर बैठ गया।

उठ कर बेड पर लेट जाईये, कोई आने वाला होगा

मैं उन की बात सुन कर नीचे से चद्दर उठा कर तकिया लगा कर बेड पर लेट गया। माधवी ने जा कर दरवाजा खोल दिया और कमरे से बाहर चली गयी। मैं भी कुछ देर बाद बेड से उठ गया और कमरे से बाहर आ गया। घर से सारे रिश्तेदार जा चुके थे। हम घर वाले ही घर में थे इस लिये मुझे ज्यादा चिन्ता नहीं थी लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता था कि हमारे इस तरह अलग-अलग सोने की बात माँ को पता चले। नहीं तो वह यह जान का दूखी होगी, जो मैं नहीं चाहता था।

माँ और पिता के पास जा कर उन को प्रणाम किया और उन के पास बैठ गया। माँ कुछ बोली नहीं, तभी माधवी चाय ले कर आ गयी और हम सब चाय पीने लग गये। माँ ने मुझ से पुछा कि आज ऑफिस जाना है तो मैंने उन्हें बताया कि नहीं अभी कुछ दिन की छुट्टी बची हुई है। यह जान कर माँ प्रसन्न हो कर बोली की हम सोच रहे थे कि तुम दोनों कहीं बाहर घुम आयो।

माँ अभी कहीं बाहर जाने का मन नहीं है। कुछ दिनों के बाद बाहर जाने का प्रोग्राम बनाऊँगा। अभी तो काफी थकान है, घर पर रह कर कुछ दिन आराम करने का मन है।

माँ ने माधवी के तरफ देखा तो उस ने भी मेरी बात से सहमति जताई। माँ बोली कि तुम दोनों बड़ें हो जैसा सही लगे करो।

माँ की बात के तंज को समझ कर मैंने माँ से कहा कि आप जल्दीबाजी क्यों कर रही है। हर काम को होने में समय लगता है। शादी के काम से आप दोनों भी थक गये है, हम दोनों भी बहुत थके हुये है। ऐसे में घुमने जाना सही नहीं रहेगा। जब मन करेगा तब घुमने भी जायेगे। मेरी इस बात से उन के चेहरे पर छायी उदासी कुछ कम हुई।

दिन में मैंने तय किया कि मैं और माधवी कहीं बाहर घुमने चलते है। दोपहर के खाने के बाद हम दोनों तैयार होकर घुमने निकल गये। इस वजह से माँ का चेहरा खिल गया।

रास्ते में माधवी ने मुझ से पुछा कि अचानक घुमने का मन कैसे बन गया आपका?

तुमने माँ का चेहरा देखा था, वह सब समझ रही थी, इसी वजह से उदास सी थी, उन्हें देख कर लगा कि उन के सामने हम दोनों एक साथ कहीं जायेगें तो उन्हें अच्छा लगेगा यही सोच कर घुमने का प्रोग्राम बना लिया।

आप पहले से काफी बदल गये हो, तेज हो गये है

मैं तो पहले से ही ऐसा हूँ

मुझे क्यों लगा कि आप बदल गये है?

आप के लिये तो बदल ही गया हूँ

नहीं वह बदलाव नहीं, अब लगता है कि आप अपने से ज्यादा दूसरों की चिन्ता करते हैं

दूसरा कौन है, सब तो मेरे है उन की चिन्ता मैं नहीं करुँगा तो और कौन करेगा?

मुझे आप के इस रुप का पता नहीं था

मुझे कभी दिखाने का मौका ही नहीं मिला था

मेरे लिये नया अनुभव है

अब जो कुछ होगा वह नया अनुभव ही होगा

रहस्यमयी बातें क्यों कर रहे है

हम दोनों के बीच और दोनों के साथ जो हो रहा है वह नया ही तो है

हाँ यह तो है

कहाँ चले?

आप लाये हो, जहाँ मर्जी हो ले चले

मैंने कार शहर के बाहर के लिये मोड़ दी। शहर के बाहर एक बढिया एंकात जगह थी। जहाँ पर बहुत बढ़िया खाना मिलता था। हम दोनों वहाँ जाने से पहले एक मॉल में चले आये। ऐसे ही मॉल की दुकानों में विंडो शॉपिग करते रहे। जब घुम कर थक गये तो शहर के बाहर स्थित रेस्तरा के लिये चल दिये। जब वहाँ पहुँचे तो शाम घिर आयी थी। दोनों एंकात में एक मेज पर जा कर बैठ गये।

आप को ऐसी जगह कैसे पता है, पहले किसी को ले कर आये है?

ये कैसा सवाल है?

सवाल है जबाव चाहिये?

अब आप नये रोल में आ गयी है

मैं जो पुछ रही हुँ उस का जबाव क्यों नहीं दे रहे है?

मैं माधवी के शक का मजा ले रहा था। मेरी पत्नी, अपने पति पर शक कर रही थी। जो हमारें संबंधों के बदलने का द्योतक था। मुझे मुस्कराते देख कर माधवी ने मेरा हाथ कस कर पकड़ा और पुछा कि आप जबाव क्यों नहीं दे रहे है

दोस्तों के साथ एक-दो बार आया था, किसी लड़की के साथ नहीं आया इस लिये निश्चित रहे

यहाँ दोस्तों के साथ कौन आता है?

मैं आता था

मुझे विश्वास नहीं हो रहा है

अभी से शक करना शुरु कर दिया, आप को तो सब बताता था, फिर भी

हाँ, लेकिन मन नहीं मान रहा है

पति की बात पर विश्वास करना सीखे

पुरा विश्वास है लेकिन मुझे तो पहले कभी नहीं लाये

कभी मौका ही नही मिला था

वेटर ऑडर लेने आ गया। उसे ऑडर करके मैंने माधवी से कहा कि आप को मेरे बारे में सब कुछ पता है फिर भी शक कर रही है।

पहले मैं भाभी थी, अब पत्नी हुँ, शक करना तो बनता है।

शक छोड़ों, मैं आप के सिवा किसी को नहीं जानता

मक्खनबाजी

सही बात कह रहा हूँ विश्वास करें, आप को सब पता है मेरे पास किसी और के लिये समय था?

मजाक कर रही थी, आज बहुत दिनों बाद लगा कि मजाक करुँ

मुझे अच्छा लगा कि कोई मेरे से पुछताछ करने वाला तो है

तुम इतने रोमान्टिक भी हो

नहीं हो सकता

मुझे पता नहीं था

मैंने आपको पता लगने नही दिया

वेटर खाना लगा गया और हम अपनी बहस को अधुरा छोड़ कर खाना खाने लग गये। माधवी ने मुझ से कहा कि खाना बहुत स्वादिस्ट है। हम दोनों खाना खा कर घर के लिये निकल गये। घर पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। माँ हम दोनों को देख कर बहुत खुश नजर आ रही थी।

रात को सोते समय जब मैं नीचे सोने लगा तो माधवी बोली कि नीचे मत सोओ, कमर में दर्द हो जायेगा। उस की बात सही थी, कमर में दर्द तो मेरे हो रहा था, लेकिन मैंने किसी से कहा नहीं था। माधवी ने मेरे बिना कहे ही यह समझ लिया था।

वह बेड के एक किनारे पर सो गयी और मैं दूसरे किनारे पर लेट गया। दोनों के एक बेड पर सोने के बावजूद मेरे मन में माधवी के लिये कोई भाव नहीं आ रहे थे। यही असली समस्या थी। इस ने कब सही होना था यह मैं नहीं जानता था।

रात को नींद अच्छी आयी और सुबह जब उठा तो देखा कि माधवी उठ कर चली गयी थी। वह जब नहा कर आयी तो मैं लेटा हुआ था। वह मुझे लेटा देख कर बोली कि आप अभी तो सो रहे है, उठ जाईये। बाहर माँ पिता जी के साथ बैठिये मैं चाय बना कर लाती हूँ। मैंने उस की आज्ञा का पालन किया और बाहर माता-पिता जी के पास जा कर बैठ गया। कुछ देर बाद माधवी चाय ले कर आ गयी और मैं अखबार पढ़ते हुये चाय पीने लगा।

माँ ने मुझ से पुछा कि कल तुम दोनों कहाँ गये थे? मैंने उन्हें बताया कि पहले मॉल गये थे फिर मैं आपकी बहु को खाना खिलाने के लिये शहर के बाहर बने रेस्तरा में ले कर गया था। यह सुन कर माँ बहुत प्रसन्न दिखायी दी।

मैंने माँ को बताया कि तुम्हारी बहु नें वहाँ मेरी क्लास लगा दी कि पहले किस के साथ यहाँ आये थे। बड़ी मुश्किल से उसे विश्वास दिलाया कि दोस्तों के साथ आया था। यह सुन कर माँ मुस्कराई और माधवी की तरफ देखने लगी। माधवी ने शर्मा कर चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।

दोपहर में कोई रिश्तेदार मिलने आ गये, इस कारण से उन के आवभगत में समय बीत गया। रात को फिर से वही हुआ और हम दोनों सो गये। सुबह माधवी ने मुझे जगा कर कहा कि आप उठ कर बाहर जाओ, मैं नहा कर आती हूँ। उस की बात मान कर मैं बाहर पिता जी के साथ बैठ गया। माँ अभी अंदर ही थी। पिता जी नें मुझ से पुछा कि

बेटा कैसा चल रहा है।

सब सही चल रहा है, आप को क्या लग रहा है?

मेरा बेटा जैसा नहीं है वैसा बनने की कोशिश कर रहा है

आप सब जानते है तो पुछते क्यों है?

चिन्ता तो होती ही है

आप चिन्ता मत करिये, धीरे धीरे सब सही हो जायेगा

हम यही चाहते है

ऐसा ही होगा, लेकिन थोड़ा समय लगेगा

तब तक माँ भी आ गयी, कुछ देर बाद माधवी चाय के साथ हाजिर हो गयी। मैं माँ के साथ बात करने लगा। वह बाजार से कुछ लाने को कह रही थी। मैंने कहा कि माँ आप दोनों बाजार जा कर जो लेना है ले आयो। मेरी बात सुन कर माधवी ने भी कहा कि हम दोनों घर पर है आप दोनों आज बाहर घुम कर आयो। यह सुन कर माँ बोली कि अब यह बच्चें हमें चलाने लगे है। उन की बात सुन कर हम सब हँस दिये।

दिन ऐसे ही बीत रहे थे। हम दोनों नदी के किनारों की तरह एक साथ रह रहे थे जो साथ होते हुये भी मिलते नहीं है। माँ शायद सब कुछ समझती थी लेकिन कुछ कह नहीं पाती थी। मेरी मजबुरी यह थी की मैं माधवी को देख कर कुछ सोच ही नहीं पा रहा था।

यह बात मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रही थी कि मैंने माधवी से शादी तो कर ली है लेकिन अगर उसे मन से चाह ही नहीं पाऊँगा तो यह रिश्ता आगे कैसे बढ़ेगा? क्या ऐसा करके मैं माधवी के साथ अन्नाय तो नहीं कर रहा हूँ। मुझे कोई समाधान या रास्ता नहीं सुझ रहा था। संतोष की बात यह थी कि माधवी अपनी तरफ से कोई असंतोष या गुस्सा नहीं दिखा रही थी। लेकिन इस संबंध का आगे बढ़ाना ही हम सब के लिये हितकारी था।

एक दिन किसी की शादी में जाने का प्रोग्राम बना। मैं, माधवी, माँ और पिता जी चारों लोग शादी में गये। जैसे किसी भी समारोह में जाते है इसी तरह से हम दोनों पति-पत्नी तैयार हो कर गये। समारोह में माधवी लोगों से मिलने में लग गयी और मैं एक कोने में बैठ कर उसे देखने लग गया।

माधवी साड़ी में इतनी सुंदर लग रही थी कि उस दिन पहली बार मेरे दिल में उसे लेकर कोई हलचल हुई। उसे साड़ी में लिपटी देख लगा कि जैसे खजुराहो के किसी मंदिर की कोई मुर्ति सजीव हो कर बाहर आ गयी है। उन्नत स्तन, भरे कुल्हें, पतली कमर, लंबें बाल, उसे देख कर लगा कि इतनी सुंदर स्त्री मेरी पत्नी है और मैं उसे भाव नहीं दे रहा हूँ, यह तो उस के सौन्दर्य की अवमानना है।

पहली बार मेरे दिल में उस के लिये भाव पैदा हुये। मुझे लगा कि माधवी को पत्नी के रुप में पा कर मैं ही धन्य हुया हूँ। उस के चेहरे, भाव और शरीर को मैं अब एक पुरुष की तरह देख रहा था। इस नजर में प्रेम का भाव था, सेक्स की भावना थी, लगाव था, एक पति का पत्नी के प्रति प्रेम था। मैं इन्ही भावों में डुबा उसे ही सारे समय देखता रहा।

जब वह मुझे खाना खाने के लिये बुलाने आयी तब भी मैं उसे ही एकटक देख रहा था। उस ने यह महसुस कर लिया था सो बोली कि ऐसे सारे समय घुरते रहोगे तो लोगों को लगेगा कि हम दोनों के बीच में जरुर कुछ गड़बड़ है। कोई पति अपनी पत्नी को ऐसे थोड़ी ना घुरता है। उस की इस बात को सुन कर मैं झेंप गया और उठ कर उस के साथ चल दिया। रास्ते में माता जी और पिता जी भी मिल गये। वह भी अपनी उम्र के लोगों के साथ बातचीत में व्यस्त थे। हम दोनों को आते देख कर उन्होंने कहा कि चलो खाना खाते है।

हम चारों लोग खाना खाने की जगह पर चल दिये। खाना खाते में हम दोनों फिर से अकेले रह गये तो आपस में बात करने लगे। माधवी ने मुझ से पुछा कि क्या मेरे सर पर सींग उग आये है, जो आप मुझे इतनी देर से घुरे जा रहे है?

अब मैं उसे क्या बताता, कि आज मेरे साथ क्या हुआ है? अगर बताता तो शायद वह इस पर विश्वास ही ना करती। मैंने कहा कि तुम आज बहुत सुंदर लग रही हो इस लिये देख रहा था। अपनी बीवी को देखना कोई गुनाह थोड़ी है। मेरी यह बात सुन कर वह मुस्करा दी और बोली कि आप बदलते जा रहे हो। आप इतने रोमांटिक भी होगे मैंने कभी सोचा नहीं था।

अपनी बीवी के साथ रोमांटिक होना हर पति का हक है

सो तो है लेकिन आप जैसा गंभीर आदमी अचानक रोमांस में डुब जाये तो हैरानी और डर दोनों लगता है

डर किस बात का, मैं कहीं नही जा रहा तुम्हें छोड़ के

ऐसा सोचना भी मत

आप भी अपने सही रोल में आती जा रही है
 
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UPDATE 02

मेरी बात पर वह हँस पड़ी। उस की हँसी दूर से माँ ने देख ली और मुझे उन के चेहरे पर संतोष दिखाई दिया। हम बच्चें अपनी माँ से कुछ छिपा नहीं सकते है। माँ आखिर माँ ही होती है, वह अपने बच्चों की रग-रग पहचानती है।

देर रात हम सब शादी से घर लौटे। हम दोनों जब कपड़ें बदलने के लिये अपने कमरे में आये तो दरवाजा बंद करने के बाद मुझ से रुका नहीं गया और मैंने माधवी को आलिंगन में ले कर उस के माथे को चुम लिया। वह मेरी इस हरकत से सुन्न सी हो गयी और उस ने कोई रियेक्शन नही दिया।

मैंने उसे चुम कर छोड़ दिया। वह अलग हो कर कपड़ें बदलने के लिये अलमारी से कपड़ें निकालने लगी। मैंने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया तो माधवी की आवाज मेरे कानों में पड़ी कि अब मुँह क्यों घुमा रहे हो?

मेरे पास उस के सवाल का कोई जबाव नहीं था। मुझे चुप देख कर वह बोली कि अब मुझे क्यों नहीं देख रहे हो?

मैंने अपना चेहरा उस की तरफ कर लिया। वह कपड़ें बदलने बाथरुम में चली गयी। मैं बेड पर चुपचाप बैठा रहा। वह जब कपड़ें बदल कर वापस आयी तो मुझे देख कर मुस्कराई और बोली कि आप आज कल क्या कर रहे हो? सब के सामने तो मुझे देखते रहते हो, और अकेले में चेहरा दूसरी तरफ कर लेते हो। यह क्या है। तुम्हारा शादी में मुझे देखते रहना क्या लोगों को दिखाने के लिये था?

मैं उठा और उस के सामने खड़ा हो गया। उसे देखता रहा और जब रुका नहीं गया तो उसे अपनी बाँहों में भर लिया। माधवी भी शायद यही चाहती थी। चुपचाप मेरी बाँहों में समा गयी। हम दोनों काफी देर तक ऐसे ही खड़े रहे।

शादी के इतने दिनों बाद हम दोनों का यह पहला आलिंगन था। दोनों के बीच का संकोच आज खत्म हो गया था। दोनों पहली बार एक-दूसरे को इतना करीब से महसुस कर रहे थे। ना जाने कब तक ऐसे ही खड़े रहते, अगर माधवी मुझे टोकती नही कि कपड़ें तो बदल लो।

उसकी यह बात सुन कर मैं चौक गया और उसे आलिंगन से मुक्त कर दिया। वह दूर नहीं हटी और मेरे साथ ही खड़ी रही। मैंने उसे बेड पर बिठाया और कपड़ें बदलने चला गया। सुट उतार कर नाइटसूट पहन कर आया तो मुझे देख कर माधवी बोली कि कुछ पीना तो नहीं है?

अब क्या पिलाना है?

दूध

इतनी रात को अब कुछ नहीं पीना, सोते है

आज कुछ हुआ है?

नहीं तो कुछ नहीं हुआ है

आप बदले से लग रहे हो

सही बदल रहा हूँ या गलत

मेरे लिये तो सही ही है

फिर चिन्ता क्यों कर रही हो

आज तक आप को ऐसे देखा नही है

कभी तो बदलना ही है, तो अभी क्यों नहीं

सब कुछ सही है?

ऐसा क्यों पुछ रही हो?

शादी में ऐसा क्या हुआ है कि आप एकदम बदल गये हो

आज मैंने तुम्हें दूसरे रुप में देखा है जो आज तक मैं देख नहीं पा रहा था, यह हुआ है

तभी आज मुझ पर मेहरबान हो

आज ना जाने तुम्हें देख कर मन के किसी कोने में दबी इच्छायें मन पर छा गयी है, मैं अतीत से बाहर आ गया हूँ

मुझे तो आप रोज देखते हो, आज क्या अलग था?

तुम जानना चाहती हो तो सुनों, तुम्हें सुनना भी चाहिये, आज मैंने तुम्हें एक सम्पुर्ण नारी के रुप में देखा है जो नारी सुलभ सौन्दर्य से परिपुर्ण है, उस की सेक्स अपील को मैंने आज देखा है या कहो महसुस किया है, आज अपने को धन्य माना है कि तुम मेरी पत्नी हो, अपने भाग्यवान होने पर गर्व महसुस किया है।

क्या हो गया है आप को, कविता कर रहे हो या दार्शनिक हो गये हो, मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा है।

तुम कुछ मत समझों

सब कुछ मेरे लिये हो रहा है फिर भी कह रहे हो कि मैं कुछ ना समझुँ

मैंने माधवी को उठाया और उसे बाँहों में भर कर उस के होंठों पर चुम्बन ले लिया, हम पति पत्नी का पहला चुम्बन। माधवी के होंठ भी मेरे होंठों से चिपक से गये। हम दोनों एक-दूसरे को बेतहासा बुरी तरह से चुमने लग गये। काफी देर तो दोनों एक-दूसरे को चुमते रहे। मन ही नहीं भर रहा था। जब दोनों की साँसें फुल गयी तब जा कर चुमना बंद हुआ। आलिंगन अभी भी छुटा नहीं था। माधवी की बाँहें मेरी पीठ पर कसी हुई थी। उस ने मेरे कान में फुसफुसाया, सोने चले?

मैंने उसे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया। मैं भी उस के साथ लेट गया। हम पति पत्नी पहली बार एक-दूसरे के इतने समीप लेटे थे। अब रुकने का कोई कारण नहीं था ना कोई बाधा थी, इस लिये मैंने माधवी को अपने आगोश में ले लिया और वह भी मुझ में सिमट गयी।

हम दोनों एक दूसरे के शरीर की सुगंध का आनंद उठा रहे थे। एक दूसरे के शरीर की गर्मी को अनुभव कर रहे थे। फिर काम के आवेग के वश हो कर हम दोनों ने एक-दूसरे को चुमना शुरु कर दिया दोनों ने एक-दूसरे के चेहरे गरदन पर चुम्बनों की बरसात सी कर दी।

अब दोनों आगे बढ़ने के लिये तैयार थे। मैंने माधवी के नाइटसूट की शर्ट के बटन खोल दिये, अंदर उसने ब्रा नहीं पहनी थी। शर्ट खुलते ही उस के सफेद कठोर उन्नत उरोज मेरे सामने थे। मैंने झुक कर एक के निप्पल पर अपने होंठ लगा दिये। माधवी ने आहहहहहहहहह की लेकिन मैं उस के उरोज को मुँह में लेकर चुसता रहा फिर दूसरे उरोज को मुँह में भर लिया। दूसरे उरोज को मैं हाथ से सहला रहा था। मेरे इस काम से माधवी के शरीर में उत्तेजना भरती जा रही थी।

माधवी के हाथ मेरी छाती पर घुम रहे थे। उस ने मेरी शर्ट भी बटन खोल कर उतार दी थी, दोनों कमर से ऊपर नंगे थे। दोनों फिर से आलिंगन में कस गये। माधवी के कठोर उरोज मेरी छाती में गड़ रहे थे। मेरा हाथ उस के कमर को सहला कर नीचे जाँघों के बीच पहुँच गया वहाँ पर पेंटी की बाधा थी।

मैं हाथ से पेंटी के ऊपर से उस की फुली योनि को सहलाने लग गया। फिर मेरा हाथ उस की पेंटी में घुस गया। उँगलियाँ योनि के फलकों के ऊपर से नीचे होने लगी। कुछ देर बाद मेरी उँगली उस की योनि में घुस गयी।

माधवी की योनि की नमी को मेरी उँगली महसुस कर रही थी। मेरी उँगली के योनि के अंदर बाहर होने के कारण उत्तेजना वश माधवी ने मेरे होंठों को अपने दांतों से काट लिया।

मैंने उस का पायजामा उतार दिया और उसकी पेंटी भी उतार कर बेड पर रख दी। अपने कपड़ें भी उतार दिये। हम दोनों एक-दूसरे से चिपक गये। फिर वही हुआ जो ऐसे में होता है। मैं माधवी में समा गया।

आहहहहहहहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहहहहह

मेरे उस में समा जाने के बाद मेरे कुल्हों ने उठ कर प्रहार करने शुरु कर दिये। माधवी ने भी अपने कुल्हों उठा कर मेरा साथ देना शुरु कर दिया। हम दोनों एक रफ्तार से दौड़ने लगे। यह दौड़ लम्बी चलनी थी। कुछ देर बाद हम दोनों ने बेड पर करवट ली और अब की बार माधवी मेरे ऊपर आ गयी, वह अपने कुल्हें उठा कर मेरे लिंग को अपने अंदर समा रही थी। मैं उस के उरोजों को चुम रहा था। हम दोनों ऐसे ही एक-दूसरे में समाते रहें। जब थक गये तो अगल-बगल लेट गये। लेकिन दोनों के शरीर में लगी आग अभी भी भड़क रही थी।

मैं माधवी के ऊपर आ गया और मेरा लिंग उसकी योनि में अंदर बाहर होने लगा। माधवी भी मेरा साथ दे रही थी। हमारा संभोग बहुत लंबा चला। लगभग 20 मिनट तक हम संभोगरत रहे। फिर अचानक मेरी आँखों के सामने तारे झिलमिला गये और मैं स्खलित हो गया। मेरे लिंग का मुँह मेरे ही गर्म वीर्य से जल सा रहा था। माधवी भी उसी समय स्खलित हुई और उस का योनि द्रव्य भी मेरे लिंग को भिगोने लगा।

मैं पस्त हो कर उस के ऊपर लेट गया। कुछ देर बाद उस के ऊपर से उठ कर बगल में लेट गया। दोनों की साँस धौंकनी की तरह चल रही थी। कुछ देर बाद हम दोनों की साँसें सही हुई। माधवी का हाथ मेरी छाती पर पड़ा था। उस ने करवट ले कर मुझे चुमा और मुझ से लिपट गयी उस की गरम साँसें मेरी छाती को गर्माने लगी। मेरी बाँहें उस की पीठ पर कस गयी। हम दोनों एक-दूसरें से कस कर चिपक गये।

मैंने माधवी के माथे पर चुम कर कहा, मुँह तो ऊपर करो

मुझे शर्म आती है

मुझ से कैसी शर्म?

माधवी ने अधखुली आँखों से चेहरा ऊपर उठाया तो मैंने उस के लब चुम लिये।

मैं उड़ रही हूँ मुझे पकड़ कर रखो, कही उड़ ना जाऊँ

तुम यही मेरे पास हो, मैं तुम्हें कही नहीं जाने दुँगा

माधवी ने मेरे गले में हाथ डाल कर कहा कि आप बहुत बदमाश हो

अब क्या बदमाशी करी है तुम्हारें साथ

इतने दिन तक मुझे तड़पाया है

मैं भी तो तड़पा हूँ, मुझे माफ कर दो

अब मुझे मत तड़पाना

हम दोनों ऐसे ही बातचीत करते रहे। कुछ समय बाद हम दोनों के शरीर में काम की आग फिर से भड़क गयी और हम दोनों उसे बुझाने में लग गये। इस बार आग को बुझने में काफी लंबा समय लगा। जब तुफान खत्म हुआ तो दोनों बुरी तरह से थक गये थे। इस लिये जल्द ही गहरी नींद में डुब गये।

सुबह मेरी नींद माधवी के उठाने से खुली। मैं भी उठ कर कपड़ें पहनने लग गया। इस के बाद माधवी कमरे से बाहर चली गयी। कुछ देर बाद वह कमरे में आयी तो बोली कि चाय पीने बाहर आ जाओ।

मैं कमरे से बाहर आ कर बरामदे में माता-पिता जी के पास जा कर बैठ गया। माधवी जब चाय ले कर आयी तो उस की चाल देख कर माँ के चेहरे पर मुस्कराहट छा गयी। मैंने उन के चेहरे की मुस्कराहट देख ली थी। माँ ने सब कुछ माधवी की चाल को देख कर समझ लिया था। माधवी भी पास में बैठ कर चाय पीने लगी।

चाय पीने के बाद मैं ऑफिस जाने के लिये तैयार होने लग गया। नहा कर आया तो बेड पर मेरे कपड़ें रखे हुये थे। माधवी वही पर खड़ी मेरा इंतजार कर ही थी। मुझ से उस ने पुछा कि देख लो कपड़ें सही रखे है? मैंने कहा सही ही रखे होगे। मेरी बात सुन कर वह रहस्मयी मुस्कान के साथ वहाँ से चली गयी।

सारा दिन में काम में व्यस्त रहा। शाम को जब घर पहुँचा तो माँ बोली कि तुम दोनों कोई फिल्म देखने क्यों नहीं चले जाते? मुझे उन की यह सलाह सही लगी। चाय पीने के बाद हम दोनों तैयार हो कर फिल्म देखने निकल गये। माँ शायद यह चाहती थी कि हम दोनों को एकान्त मिले। फिल्म तो क्या देखी हम ने, एक दूसरे के हाथ पकड़ कर बैठे रहे। फिल्म खत्म होने के बाद मैंने माधवी से पुछा की खाना खाना है तो वह बोली कि नेकी और पुछ पुछ।

हॉल के पास ही बढ़िया रेस्टोरेंट था। वहाँ जा कर एक अंधेरे कोने में बैठ गये। माधवी बोली कि आप बिल्कुल बदल गये हो। मैंने कहा कि शादी के बाद दोनों को बदलना पड़ता है, मैं बदला हुँ तो क्या खास बात है।

आप बाहर खाना खाने नहीं जाते थे, आप फिल्म नहीं देखते थे। अब क्या हूआ है?

पहले मेरे साथ कोई जाने वाली नहीं थी, अब है इस लिये खाना खाने, और फिल्म देखने का मन करता है।

मेरी इस बात पर माधवी मुस्कराने लगी।

आप वो नहीं हो जो सामने दिखाई देते हो।

आप से शादी करने के बाद मैं बदल गया हूँ।

मुझे आपके गंभीर स्वभाव से डर लगता था। फिर इतना बड़ा पद आदमी का दिमाग घुम जाता है।

मेरा तो नहीं घुमा है और तुम्हारे लिये तो मैं तुम्हारा पति हूँ, ऑफिसर तो ऑफिस में हूँ, घर में तो बेटा हूँ, पति हूँ।

आप से बातों में नहीं जीत सकती लेकिन मैं बहुत खुश हूँ। लेकिन इतने दिन तक तुम ने मुझे हाथ ही नहीं लगाया और ना ही अपने पास आने दिया तो लगा कि शायद शादी तुम ने जिम्मेदारी निभाने की मजबुरी में कर ली है। लेकिन अब मेरे सारे डर दूर हो गये है।

मैं उहापोह में था इसे तो मैं मानता हूँ लेकिन वह होना स्वाभाविक था लेकिन अब मैंने अपने उहापोह को सुलझा लिया है।

आप मुझे नहीं बता सकते थे, मुझे अपना नहीं मानते है

हाँ मेरी गल्ती है, तुम्हें सब कुछ बताना चाहिये था, लेकिन तुम से बात करने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। इसी उहापोह पर तो काबु पाया है। अब से अपनी हर परेशानी को तुम से बाँटुगा। तुम तो मेरी अर्धागनी हो, तुम्हें तो पता होना चाहिये कि मैं खुश हूँ या परेशान हूँ।

मुझे से अपनी परेशानी बाँटते तो आप को इतनी परेशानी ना झेलनी पड़ती।

मुझे माफ कर दो, आगे से ऐसी गल्ती नहीं होगी

माफी किस बात की मैं भी तो आप की हर खुशी और गम में बराबर की हिस्सेदार हूँ

हाँ, आगे से तुम से सब कुछ बाँटुगा

माँ हमे बाहर जाने के लिये कुछ ज्यादा नहीं कहती है?

वह चाहती है कि हमें एकांत मिले और हम दोनों में सामंजस्य बने

माँ को पता चल गया है कि कल क्या हूआ था

तुम्हारी चाल देख कर वह मुस्करा रही थी

मेरी चाल में अतंर था?

तुम लड़खड़ा रही थी, माँ ने यह बात नोटिस कर ली थी

मुझे तो पता ही नहीं चला

चलो इस बहाने उन की परेशानी भी दूर हो गयी

सब को सब कुछ पता है, मेरे को ही कुछ पता नहीं है

अब खुश हो जाओ, अब तो सब कुछ पता है

आप से तो नाराज हूँ, आप नें मुझे अपना नहीं समझा

तुम तो मेरी सब कुछ हो, अब गुस्सा थुक दो

तुम मुझे आप कहना बंद करो

क्या कहुँ?

तुम

कोशिश करुँगी, आप भी मुझे आप कहना बंद कर दो

मैंने तो बंद कर दिया है, इतनी देर से आप की जगह तुम ही तो कह रहा हूँ

तुम इतनी प्यारी बातें करते हो मुझे अब तक पता ही नहीं था

ऐसा मत कहो, तुम ही तो हो जिस से मैं बातें किया करता था

मेरे से ऐसी बातें तुम ने कब की थी?

तब रिश्तें की मर्यादा का ध्यान रखता था

तुम ऐसे निकलोगे मुझे पता नहीं था, मेरी तो मानो लॉटरी निकल आई है

मुझे क्या मिला है?

मेरी जैसी प्यारी सी बीवी मिली है

यह तो तुम सही बोल कह रही हो

बातें करके पेट भरने का इरादा है

मैंने वेटर को बुलाया और खाने का ऑडर कर दिया। कुछ देर बाद वेटर खाना लगा गया। हम दोनों खाना खाने लग गये। खाना खाने के बाद हम दोनों घर के लिये वापस चल दिये। रास्ते में मेरे बाये हाथ पर माधवी का हाथ पड़ा रहा या ऐसा कहे कि माधवी के हाथों में मेरा बाया हाथ था। मैं एक हाथ से ही ड्राइव करता हुआ घर पहुँच गया। हम दोनों को देख कर माँ और पिता जी के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी।

जब सोने के लिये बेडरुम में गये तो माधवी बोली कि आज तो दूध पीना पड़ेगा। मैंने हँस कर कहा कि जैसा तुम्हारा आदेश तो मेरी बात सुन कर मेरी पीठ पर माधवी के मुक्कों की बरसात होने लगी। मैंने उसे आगोश में भर लिया। उस की बाँहें भी मेरी पीठ पर कस गयी। फिर हम दोनों चुम्बन में डुब गये। जब साँस फुल गयी तभी चुम्बन खत्म हुया। आज की रात जोरदार होनी थी यह मुझे पता था।

माधवी दूध लेने चली गयी। कुछ देर बाद आयी तो उस के हाथ में दो दूध से भरे गिलास थे और उस के आँखों में शरारत झलक रही थी। मैंने उस के हाथ से गिलास ले कर कुछ देर में ही उसे खाली करके मेज पर रख दिया। माधवी भी धीरे-धीरे गिलास से दूध पी रही थी और मुझे मुस्करा कर देख रही थी। आज वह बिल्कुल बदली हुई लग रही थी। हम दोनों ही बदल गये थे। इस लिये यह रात भी खास होनी थी।

जब उस ने अपना गिलास मेज पर रखा और मेरे पास आयी तो मैंने उसे पकड़ कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिये। उस के दूध से सने होंठों का स्वाद मेरे होंठो ने भी उठा लिया। इस के बाद मेरी होंठ उस की गरदन पर आये और गरदन को चुमने लगे।

मेरे चुमने में इतनी ताकत थी कि माधवी की गरदन पर लवबाइट बन गये लेकिन हम दोनों को अब किसी बात का ध्यान नही था। दोनों प्रेम का आनंद उठाने में लगे हुये थे। माधवी ने साड़ी उतारी नहीं थी और ना ही आज उस का कोई ऐसा इरादा था।

उस के हाथ मेरी पीठ पर कसे हुये थे और वह भी मेरे गरदन पर चुम्बन ले रही थी। दोनों एक दूसरे के शरीर पर निशान छोड़ रहे थे। यह भी प्रेम की पराकाष्ठा ही है। मैंने उस का चेहरा हाथों में ले कर उस के होंठों को चुमना शुरु कर दिया। मेरी जीभ उस के मुँह में घुस गयी और माधवी की जीभ से अठखेलियां करने लगी।

उस की जीभ भी मेरी जीभ को चाट रही थी। हमारी यह जीभ लीला हम दोनों के शरीर में काम की अग्नि को और बढ़ा रही थी। मेरे हाथ उस के कुल्हों को अपने शरीर से सटा रहे थे। उसे भी मेरे उभरे लिंग का अनुभव अपनी कमर पर हो रहा था।

फिर मैंने अपने हाथ से माधवी के वक्ष को सहलाना शुरु कर दिया। वह भी मेरी पीठ को सहला रही थी। मेरे होंठो ने उस की वक्ष रेखा के मघ्य चुम्बन लेना शुरु कर दिया। उस के स्तन ब्रा में तनाव के कारण भर से गये थे। मेरे हाथ उन्हें ब्लाउज के ऊपर से ही दबा और सहला रहे थे। माधवी ने उत्तेजना के कारण अपनी आँखे बंद कर ली थी।

मैने उस के ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उतार दिया, इसके बाद उस की भुरे रंग की ब्रा को भी उसके शरीर से अलग कर दिया। उस के सफेद कठोर उरोजों के भुरे रंग के तन कर आधा इंच के हुये निप्पल पीये जाने के लिये ललचा रहे थे। मैंने उनमें से एक निप्पलको होंठो में ले कर चुसना शुरु किया और दूसरे को हाथ से मसलना

आहहहहहह उहहहहहहहहहहहहहहह उहहहहहहहहहहहह

मैं एक एक करके दोनों उरोजों का रस पीले लगा। माधवी जो अभी खडी थी उत्तेजना के कारण कांप सी रही थी। मैंने उस की साड़ी भी उतार कर बेड पर रख दी। और उस के पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया। पेटीकोट उस के पैरों में गिर गया।

मैंने उसे गोद में उठाया और बेड पर लिटा दिया, और उस के साथ लेट गया। माधवी की मादक आवाज मेरे कान में पड़ी की तुम्हारें कपड़ें खराब हो जायेगे इन्हें उतार दो तो मुझे ध्यान आया कि मैं अभी भी पेंट और शर्ट में था मैंने बेड के नीचे आ कर कपड़ें उतार दिये और मैं भी ब्रीफ में आ गया।

मैं माधवी पर झुका और उस की पेंटी पर चुम्बन ले लिया। फिर उँगलियों की सहायता से उस की पेंटी भी उस के शरीर से अलग कर दी। अपनी ब्रीफ भी उतार दी। हम दोनों मादरजात नंगे थे। मैंने झुक कर माधवी की योनि को चुमा और उसके बाद उस की केले के तने के समान भरी पिड़लियों को चुमता हुआ उस के पंजों तक पहुँच गया।

दोनों पैरों की सभी उँगलियों को होंठो में ले कर चुसा और फिर उस की पिंडलियों को चुमता हुआ उस की पीठ पर पहुँचा और उस की रीढ़ की हड्डी को चाटता हुआ उस की गरदन तक पहुँच कर गरदन को चुमना शुरु कर दिया। माधवी पलट गयी और उस का चेहरा मेरे सामने आ गया।

मैं उस की जाँघों में मध्य में झुक गया और उस की योनि को चुमने चाटने लगा। मेरे होंठो नें योनि द्वव के कड़वे स्वाद का मजा लिया और मेरी जीभ उस की योनि में घुस गयी। माधवी ने उत्तेजित हो कर अपने हाथों से मेरा सर पकड़ कर अपनी जाँघों के बीच दबा लिया।

मैं उस की योनि का रसपान करता रहा। माधवी ने मेरे लिंग को हाथ से सहलाया जो तनाव के कारण तन कर पुरा छ इंच का हो गया था। उस फुले लिंगको वह कुछ देर तक सहलाती रही। इस के बाद वह मेरे नीचे से निकल गयी और उस ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया।

मैंने अपने लिंग को उस की योनि पर रख कर दबाया तो लिंग नमी होने की वजह से योनि में चला गया।

आहहहहहहहह उहहहहहहहहह आहहहहहहहहहह

मैंने कुल्हों को हिलाया तो आधा लिंग माधवी की योनि में समा गया। तीसरे वार में पुरा लिंग माधवी की योनि में समा गया। माधवी के मुँह से आहहहह निकली मुझे लगा कि लिंग बच्चेंदानी के मुँह पर जा कर लगा था।

मैं धीरे धीरे अपने लिंग को अंदर बाहर करने लगा। कुछ देर बाद माधवी में अपने कुल्हों को उठा कर मेरा साथ देने लग गयी। हम दोनों एक साथ दौड़ने लग गये। हम दोनों की गति बढ़ती ही जा रही थी। वासना का जोश पुरे उभान पर था। हम दोनों ने करवट बदली और माधवी मेरे ऊपर आ गयी। कुछ देर तक वह अपने कुल्हों को हिला कर लिंग को अंदर बाहर करती रही। फिर मैं उठ कर बैठ गया और माधवी को अपनी गोद मे बिठा लिया।

उस की टाँगे मेरे कुल्हों पर आ गयी। हम दोनों एक दूसरे के आमने-सामने थे मैं उस के होंठों को चुम रहा था। वह कुल्हों को उठा कर लिंग का मजा ले रही थी। इस के बाद मैं उस के उरोजों को चाटने लगा। माधवी बुरी तरह से उत्तेजित थी। उस ने मेरे कंधे में अपने दांत गढ़ा लिये। मैं दर्द से बिलबिला गया। मैं भी उस के कुल्हों के नीचे हाथ लगा कर उन्हें उछाल-उछाल कर अपने लिंग को अंदर बाहर करता रहा। जब इस आसन में थक गये तो मैंने माधवी को पीठ के बल लिटा दिया।

मैंने उस की दोनों टाँगें अपने कंधों पर रखी और अपना लिंग उस की योनि में डाल दिया। योनि कसी होने के कारण उस के मुँह से आहहहहहहहह आहहहहहहहह निकलने लगी। मैं धक्कें लगाता रहा। कुछ देर बाद माधवी ने कहा कि मेरी टाँगें दर्द कर रही है तो मैंने उस की एक टाँग नीचे कर दी और एक टाँग ऊपर कर के धक्कें लगाने शुरु कर दिये।

आहहहहहह उहहहहहहह आहहहहहह एहहहहहहहह

मैंने उस की दूसरी टाँग भी नीचे कर दी। अब में उस के ऊपर लेट कर धक्कें लगा रहा था कोई पाँच मिनट बाद मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और मैं स्खलित हो कर माधवी के ऊपर लेट गया। माधवी की टाँगें भी मेरी कमर पर कस गयी। शायद वह भी स्खलित हो गयी थी।

कुछ देर बाद होश आने पर मैं उस के ऊपर से उतर कर बगल में लेट गया। हम दोनों ही लंबें संभोग के कारण पसीने से नहा गये थे। मैंने करवट बदलीऔर माधवी को अपने से चुपका लिया। माधवी बोली कि आज क्या हो रहा है। मैंने कहा कुछ नहीं मैं अपनी पत्नी से प्यार कर रहा हूँ वह बोली कि आज मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम ने अगली पिछली सारी कसर निकाल ली है।

सो तो होना ही है मैंने तुम्हें बहुत तड़पाया है तो उस का बदला तो चुकाना पड़ेगा।

कल सुबह मेरी हालत बहुत खराब होने वाली है

घर में सब को पता है

क्या पता है?

कि दोनों बच्चों नें अब अपनी विवाहित जिन्दगी शुरु कर दी है इस लिये इस से कोई नाराज नहीं होने वाला

तुम्हारें पास हर बात का जवाब है

शायद तुम्हारें हर सवाल को जवाब तो है ही

आज क्या हो गया है तुम्हें?

तुम मुझे और ज्यादा सेक्सी लग रही थी

मैं तो वैसी ही हूँ

मेरी नजर बदल गयी है

या यह बात है कि हम दोनों ज्यादा बातें करने लगे है

यह भी हो सकता है कि हम पति पत्नी ज्यादा एक दूसरे को समझ रहे है और हम में प्यार बढ़ रहा है

कहाँ जा कर रुकेगा

यह अब रुकेगा थोडी ना दिन पर दिन बढ़ता जायेगा

मुझे नही पता था कि मेरा पति अंदर से इतना रोमान्टिक है

मैं क्या हूँ तुम्हें धीरे धीरे पता चलेगा या कहुँ कि तुम उसे धीरे धीरे बाहर लाओगी

अच्छा इस सब के पीछे मैं हूँ

हाँ, इस सब के पीछे तुम यानी मेरी पत्नी ही है

माधवी ने अपने होंठों से मेरा मुँह बंद कर दिया। यह इस बात का संकेत था कि अब हमें सोना चाहिये। वही हम दोनों ने किया।

सुबह उठा तो देखा कि माधवी मेरे पेट पर टाँगें रखे सो रही थी। बालों से घिरा उस का चेहरा बहुत सुंदर लग रहा था। हम दोनों के शरीर नीचे से यौन द्ववों से सने थे और उन के सुख जाने से चिपक से रहे थे। तभी माधवी ने भी आँखें खोल दी मुझे अपने को देखते हुये बोली कि क्या देख रहे हो। मैंने शरारत से कहा कि देख रहा था कि रात को क्या मेहनत की थी। वह बोली कि अच्छी तरह से देख लो और जा कर साफ करो, उठने का समय हो गया है।

मैं उठ कर बाथरुम में चला गया। जब बाहर आया तो देखा कि माधवी भी कपड़ें पहन चुकी थी। वह भी बाथरुम में चली गयी। कुछ देर बाद आयी तो उसने बेड की चद्दर को देखा और मुझ से कहा कि इस को भी बदलना पड़ेगा।

मेरी नजर में शरारत भाँप कर वह बोली कि लगता है हर दिन नयी चद्दर बदलनी पड़ेगी तो मैं बोला कि अब तो हर दिन ऐसा ही हाल होगा इस का। माधवी ने मेरे सर पर चपत लगायी और अलमारी से नयी चद्दर निकालने लगी। मैं बेड से सामान हटाने लगा। फिर हम दोनों ने मिल कर बेड की चद्दर बदल दी। बेड की चद्दर हमारे शरीर के यौन द्ववों से सन कर दागदार हो गयी थी।

इस के बाद हम दोनों बेडरुम से बाहर निकल गये। माधवी किचन की तरफ और मैं आंगन की तरफ निकल गया।

हम दोनों के मध्य प्रेम प्रगाड़ हो रहा था। मैं माधवी से अब अपनी हर बात शेयर करने लगा था। हम दोनों को लगा कि हमें कुछ दिनों के लिये एंकात में अवकाश पर जाना चाहिये। माँ तो इस के लिये काफी समय से कह रही थी। मैं इस के लिये 15 दिन की छुट्टियों के लिये आवेदन कर दिया। छुट्टियाँ स्वीकृत हो गयी। मैंने जब यह बात माधवी को बताई तो वह बहुत खुश हुई। माँ को जब यह बताया तो वह बोली कि मैं तो इस के लिये काफी दिनों से कह रही थी।

हम दोनों छुट्टियों के लिये तैयारी करने लग गये। पहाड़ों पर एंकात में छुट्टी बिताने को लेकर मैं भी बहुत उत्सुक था। माधवी की भी कुछ ऐसी ही हालत थी। हम दोनों अपनी छुट्टियों को लेकर रोज तैयारी करने लगे। फिर वह दिन भी आ गया जब हम दोनों घर से पहाड़ों के लिये निकल गये। यह छुट्टियां हम दोनों मिया बीवी को और पास लाने वाली थी। जो कुछ हम दोनों के बीच दूरी बची थी या कहे की शर्म थी अब वह खत्म होने वाली थी।

हम दोनों अपने हनीमून के लिये पहाड़ों पर एकान्त जगह के लिये निकल गये। मेरे किसी सहयोगी नें इस स्थान के बारें में बतलाया था। नये शादी शुदा लोगों के लिये यह बहुत बढ़िया जगह थी ऐसा उस का कहना था। जब हम अपने गन्तव्य पर पहुँचें तो सहयोगी कि बात सही निकली यह छोटा सा पर्वतीय हिल स्टेशन भीड़-भड़क्कें से बहुत दूर था। अपने रिसार्ट में नदी किनारें काफी समय बिताया जा सकता था।
 
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FINAL UPDATE

रोमान्टिक होने के लिये भी जगह सही थी। हम दोनों नें शाम नदी के किनारें पानी में पांव डाल कर काटी और रात को दोनों गहरे प्रेमालाप में डुब गये। सुबह जल्दी उठे तो फिर से संभोगरत हुये।

इस के बाद पहाड़ों पर होने वाले सूर्योदय के दर्शन किये। रेस्तोरेंट में नाश्ता करके पास के पहाड़ी पर पैदल ही घुमने निकल गये। रास्ते में माधवी बोली कि मुझे अभी तक यकीन नही हो रहा है कि हम दोनों एक साथ बाहर आये हुए है।

अब कैसे यकीन करोगी

पता नही, लेकिन लगता है कि मैं एक सपना देख रही हूँ और चाहती हूँ कि यह सपना कभी ना खत्म हो

अपने मन के डर को निकाल दो, जैसे मैंने निकाल दिया है

कह तो सही रहे हो, लेकिन मन के किसी कोने में डर लगता रहता है

उस कोने में रोशनी आने दो डर अपने आप भाग जायेगा

तुम हर समय कविता करने लगते हो

जब से तुम मिली हो, मैं कवि हो गया हूँ

और क्या क्या हो गये हो

पति हो गया हूँ, प्रेमी हो गया हूँ

अच्छा जी

हाँ जी

तुम्हारें धीर गम्भीर रुप के पीछे ऐसा चेहरा होगा मैंने कभी सोचा नहीं था

यह सिर्फ तुम्हारें लिये है औरों के लिये तो मैं वही धीर-गम्भीर हूँ

मेरे लिये क्यो?

क्योंकि तुम्हारें साथ मैंने अपना जीवन बिताना है

सच बताओं तुम नें पहले कभी प्रेम नहीं किया?

किया है माँ बाप से, भाई से भाभी से

मजाक मत करो

नहीं मजाक नहीं है तुम्हारें प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ, यह पुछो कि किसी लड़की से प्रेम किया है या नहीं

हाँ

इतना समय ही नहीं मिला कि किसी से प्रेम कर पाता, पढाई और फिर यह सब, इतनी जल्दी हो गया कि कुछ किया ही नहीं

बहुत शरीफ हो

शरीफ तो नहीं हूँ

क्या मतलब?

भई तुम से प्रेम किया है, इस लिये

मेरे से तो करना ही पड़ता, नही को काम नहीं चलता

क्या पता इतना समय इसी उहापोह में बीत गया कि तुम्हें कैसे प्रेम करुँ?

अब जो बीत गया है उसे भुल जाओ

वही तो करने की कोशिश कर रहा हूँ

हम दोनों एक दूसरे को पति-पत्नी के रुप में अपना रहे थे। एक-दूसरे के करीब आ रहे थे। एंकात में गुजारे दिनों ने हमें एक-दूसरे के बहुत करीब ला दिया और मन के किसी कोने में जो कुछ शर्म या शंका बची थी वह खत्म हो गयी।

छुट्टियाँ मना कर जब हम घर लौटे तो बिल्कुल प्रेमी-प्रेमिका बन गये थे। हमारा यह नया रुप देख कर माता-पिता दोनों के चेहरे पर चमक आ गयी थी। खुशियों नें हमारे घर का रास्ता ढुढ़ लिया था।

।। समाप्त ।।
 

kamdev99008

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Interesting
 

Enjoywuth

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Bahut hi sadaran se kahni ke theeme thi par likhne se isko bahut utkrast bana diya...vedy good naration

Agel post ka intjar hai.

Sabse acchi baat kahani samap ho rahi hai
 
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