पहला अध्याय !
कहानी का समय है आज से 100 साल पहले का और वर्त्तमान का कहानी दोनो समय में एक साथ चलेगी !
यह कहानी है मेरी मैं राजकुमार "सागर प्रताप", हमारे पिताजी महान सम्राट सूर्य प्रताप जी का साम्राज्य पुरे आर्यावर्त आज के भारत, पाकिस्तान ,बांग्लादेश के साथ अफगानिस्तान तक था और पिताजी के तेज और शौर्य के सामने कोई भी सर उठाने का साहस नहीं करता था सिर्फ मेरे सिवा क्यूंकि मैं उनका बहुत लाडला हूँ !
आज मुझे गुरुकुल मैं भजने की तयारी महल में चल रही है !
मेरी माता महारानी इन्द्राणी देवी ने मुझे अपनी गोद में बैठा रखा है और आँखों में आँशु भर कर बार बार मेर सर पर हाथ फेर रही है, और कह रही है बेटा मैं तुम्हरे बिना कैसे रहूंगी इतने दिन और मैं कह रहा हूँ माता कुछ दिन की ही बात है उसके बाद मैं आपके साथ ही रहूँगा, पिताजी कहते है इसको राज काज चलने के लिए इसका विद्यावान और शस्त्र और शाश्रत दोनों मैं परांगत होने बहुत आवश्यक है और इसके साथ ही माता ने मुझे अपनी गोद से उठा कर महल के मंदिर में लेकर गयीं और हमारी कुलदेवी के चरणों में से एक लाकेट जैसे ॐ चक्र को उठा कर मेरे गले में पहना दिया और कहा जब भी मुझे किसी बुरे समय में मदद की आवशयकता हो उस लॉकेट को हाथ में कर ५ बार ॐ का जाप करूँगा और अगर उस लॉकेट ने मुझे अपना लिए तोह उसमे से एक रौशनी निकलेगी और लाकेट मेरे अंदर समाहित हो जायेगा और फिर मुझमे कुछ अध्भुत शक्तियां आ जाएगी और उनका ज्ञान मुझे समय के साथ ही होगा !
इतना कहने के बाद मेरा हाथ पिताजी के हाथ में देकर कहा मैं अपने जिगर का टुकड़ा आपको सौंप रही हूँ और मुझे समयंतर पर एक विवान योद्धा के रूप में वापस देने का वचन दें महाराज, पिताजी ने कहा मैं वचन देता हूँ गुरुदेव अनुजानन्द इसको जैसा हम चाहते हैं वैसे ही बना कर भेजेंगे और इसके साथ ही पिताजी मुझे लेकर राजभवन के द्वार की और चल दिए जंहा हमारे कुछ अंगरक्षक और रथ थे ! रथ बहुत विशाल और उसके ऊपर लगे धवज पर हमारे राज्य का चिन्ह भगवान् सूर्य अंकित है और रथ में ४ घोड़े लगे हुए थे और कोचवान राजपाल पूरी तरह से सतर्क और चौकस थे हमें गुरुदेव के आश्रम ले जाने के लिए !
हमारे रथ पर सवार होते ही रथ चलने लगे, और सब महल के लोग और हमारी माता जी हमें अश्रुपूर्ण नेत्रों से हाथ हिलाते हुए विदा कर रहे थे !
महल से निकल कर हम कुलदेवी के मंदिर की और जाए रहे थे उनका आशीवार्द लेकर मुझे अपनी गुरुकुल के समय की शुरआत जो करनी थी !
हम मंदिन में गए वंहा के पुजारी को सब कुछ पहले ही ज्ञात था उसने सब वयस्था पहले से ही की हुई थी और हम जैसे हे पहुंचे हमने बहुत काम समय में माँ का आशीर्वाद लेकर मंदिर बहार आये, तभी वंहा एक सन्यासी बाबा आये और पिताजी महाराज से कहा की आप आज एक बहुत ही बड़ा काम करने जा रहे हैं और आपका यह पुत्र अब इस सारे संसार को एक नयी राह दिखायेगा और आपके वंश के नाम को सूर्य की तरह से चमकदार और तेजवान बनाएगा, और यह गुरुकुल का समय इसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है यही इसको बना भी सकता है और इसको समाप्त भी कर सकता है, यह सब इसके अथक परिश्रम और लगन पर निर्भर होगा।
अब देखतें है क्या होने वाला मेरे आपने वाले समय में , दूसरा अपडेट जल्द ही आएगा ! आप सब की राय की प्रतीक्षा रहेगी !