Tiwari_baba
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" तू नहीं है .. तेरी क़सक सी है...
यहीं-कहीं है .. तिरी महक सी है ;
.
सुलगते दिल की .. गर्म गलियों में...
ठंडाई सी है .. तू मशक सी है ;
.
सुलगते दिन की .. शाम होती है...
यहीं ज़न्नत है .. तेरी झलक सी है ;
.
परिंदे थक के .. शाख़ पे आ बैठे...
झूलते झूलों की .. तू लचक सी है..."
यहीं-कहीं है .. तिरी महक सी है ;
.
सुलगते दिल की .. गर्म गलियों में...
ठंडाई सी है .. तू मशक सी है ;
.
सुलगते दिन की .. शाम होती है...
यहीं ज़न्नत है .. तेरी झलक सी है ;
.
परिंदे थक के .. शाख़ पे आ बैठे...
झूलते झूलों की .. तू लचक सी है..."