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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

क्या आपको ग़ज़लें पसंद हैं..???

  • हाॅ, बेहद पसंद हैं।

    Votes: 12 85.7%
  • हाॅ, लेकिन ज़्यादा नहीं।

    Votes: 2 14.3%

  • Total voters
    14

Tiwari_baba

Active Member
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3,786
159
" तू नहीं है .. तेरी क़सक सी है...
यहीं-कहीं है .. तिरी महक सी है ;
.
सुलगते दिल की .. गर्म गलियों में...
ठंडाई सी है .. तू मशक सी है ;
.
सुलगते दिन की .. शाम होती है...
यहीं ज़न्नत है .. तेरी झलक सी है ;
.
परिंदे थक के .. शाख़ पे आ बैठे...
झूलते झूलों की .. तू लचक सी है..."
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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115,929
354
Greattt bro. Such a beautiful song :applause::applause::applause:
बहुत बहुत शुक्रिया विक्रान्त भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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बहुत अच्छे भाई क्या खूब लिखा है

ये रात ये दिल की धड़कन .. ये बढ़ती हुई बेताबी..
.
एक जाम के खातिर जैसे ..बेचैन हो कोई शराबी...
बहुत बहुत शुक्रिया तिवारी बाबा भाई आपकी इस खूबसूरत प्रतिक्रिया के लिए,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
" तू नहीं है .. तेरी क़सक सी है...
यहीं-कहीं है .. तिरी महक सी है ;
.
सुलगते दिल की .. गर्म गलियों में...
ठंडाई सी है .. तू मशक सी है ;
.
सुलगते दिन की .. शाम होती है...
यहीं ज़न्नत है .. तेरी झलक सी है ;
.
परिंदे थक के .. शाख़ पे आ बैठे...
झूलते झूलों की .. तू लचक सी है..."
वाह! बहुत ही उम्दा,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अजीब होता है मंज़र, शराब पी पी कर।
के हॅसते रोते हैं अक्सर, शराब पी पी कर।।

हमेशा फूल से देंगे, जवाब दुश्मन को,
ज़माना मार ले पत्थर, शराब पी पी कर।।

ज़ुबां है साफ क़दम लड़खड़ा नहीं सकते,
रहेगा होश बराबर, शराब पी पी कर।।

अगर किसी में हो हिम्मत, तो रोंक लो तूफां,
बहक रहा है समंदर, शराब पी पी कर।।

चलो बुझा के चराग़ों को, हम भी सो जाएॅ,
ग़मों ने ओढ़ ली चादर, शराब पी पी कर।।

अजीब होता है मंज़र, शराब पी पी कर।
के हॅसते रोते हैं अक्सर, शराब पी पी कर।।

गीतकार: पण्डित के. राज़दान
गायक: कुमार सानू
 

Tiwari_baba

Active Member
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सितारे नोच कर .. ले जाऊंगा...
मैं खाली हाथ .. घर जाने का नई.. !
.
वबा फैली हुई है .. हर तरफ़...
अभी माहौल .. मर जाने का नई.. !!
.
वो गरदनें नापता है ... नाप ले...
मगर ज़ालिम से .. डर जाने का नई.. !!!
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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सितारे नोच कर .. ले जाऊंगा...
मैं खाली हाथ .. घर जाने का नई.. !
.
वबा फैली हुई है .. हर तरफ़...
अभी माहौल .. मर जाने का नई.. !!
.
वो गरदनें नापता है ... नाप ले...
मगर ज़ालिम से .. डर जाने का नई.. !!!
Waah bahut khoob,,,,,
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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यक़ीन का अगर कोई भी सिलसिला नहीं रहा।
तो शुक्र कीजिए, कि अब कोई गिला नहीं रहा।।


न हिज्र है न वस्ल है अब इसको कोई क्या कहे,
कि फूल शाख़ पर तो है मगर खिला नहीं रहा।।


ख़ज़ाने तुमने पाए तो ग़रीब जैसे हो गए,
पलक पे अब कोई भी मोती झिलमिला नहीं रहा।।


बदल गई है ज़िंदगी, बदल गये हैं लोग भी,
ख़ुलूस का जो था कभी वो अब सिला नहीं रहा।।


जो दुश्मनी ब॰खील से हुई तो इतनी ख़ैर है,
कि ज़हर उस के पास है मगर पिला नहीं रहा।।


लहू में जज़्ब हो सका न इल्म तो ये हाल है,
कोई सवाल ज़हन को जो दे जिला, नहीं रहा।।

शायर: जावेद अख़्तर
 

Kratos

Anger can be a weapon if you can control it use it
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4,226
159
था मैं नींद में और.
मुझे
सजाया जा रहा था….

बड़े प्यार से
मुझे नहलाया जा रहा
था….

ना जाने
था वो कौन सा अजब खेल
मेरे घर
में….

बच्चो की तरह मुझे
कंधे पर उठाया जा रहा
था….

था पास मेरा हर अपना
उस
वक़्त….

फिर भी मैं हर किसी के
मन
से
भुलाया जा रहा था…

जो कभी देखते
भी न थे प्यार की
नज़रों
से….

उनके दिल से भी प्यार मुझ
पर
लुटाया जा रहा था…

मालूम नही क्यों
हैरान था हर कोई मुझे
सोते
हुए
देख कर….

जोर-जोर से रोकर मुझे
जगाया जा रहा था…

काँप उठी
मेरी रूह वो मंज़र
देख
कर….
.
जहाँ मुझे हमेशा के
लिए
सुलाया जा रहा था….
.
मोहब्बत की
इन्तहा थी जिन दिलों में
मेरे
लिए….
.
उन्हीं दिलों के हाथों,
आज मैं जलाया जा रहा था!!!
 

Kratos

Anger can be a weapon if you can control it use it
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अंजाम जो भी हो
आग़ाज़ तुम करोगी
मौत भी नहीं रोकेगी तुम्हें
इस दरिंदगी का अन्त तुम करोगी
बेजान है ये समाज
बेजान है इसकी मर्यादा
नहीं रोक पाती खुद में छुपे वहशी को
हर बार सूली चढ़ती है एक सीता
हर बार चीर हरन होता है एक द्रौपदी का
पर कोई कृष्णा नहीं आता
कहते है कलयुग है
कोई भगवान नहीं यहाँ
तुम हो आज की सीता
तुम हो आज द्रौपदी
नहीं सहोगी ये पुरुष राज
उतार फेंको ये ढोंग में डूबी मर्यादा
मिटाओ दुर्योधन का अहंकार
फिर जलेगी लंका
हाहाकार मचेगा फिर
बन के दुर्गा
एक नई सुबह का
वो आग़ाज़ तुम करोगी
 
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