- 1
- 3
- 3
तुफ़ानी रात थी.....आसमान भी इस तरह गरज़ रहा था मानो फट कर जमीन पर गीर जायेगा|
हंवाये तुफ़ान बनकर इस कदर बह रही थी की मज़बूत पेड़ की साखायें भी टुट जाती थी.....ये तुफानी रात में आज बादल भी रो रहा था....
अरे....कहा गयी वो....बचकर जानी नही चाहीए नही तो ठाकुर साहब हमारी ज़ान ले लेगें|
.....अरे मुनीम जी...इस अधेरीं तुफ़ानी रात में कुछ दीखायी ही नही दे रहा है....
जंगल के बीच में.....कुछ आदमी अपने हाथो में टॉर्च लीये कीसी की तलाश कर रहे थे| उन सभी आदमीयों के हाथो मेँ खतरनाक खंज़र थे....
वो उन्ही खंज़रो से.....जंगल के झांड़ीयों को छांटते हुए आगे बढ़ रहे थे, की तभी अचानक उन सभी ने अपनी ओर टॉर्च की बहुत सारी रौशनीयों को अपनी ओर आते हुए देखा...-
अरे.....मुनीम जी....लगता है कोयी आ रहा है??
मुनीम ने टॉर्च की रौशनीयों की तरफ़ अपनी नज़र करते हुए बोला--
...अरे लट्ठमारो...कोयी नही, बल्की पूरा गांव आ रहा है....चलो भागो यंहा से
इतना कहकर.....वो सब लोग जंगल के बीच रास्ते से होते हुए तेज कदमो से भागने लगते है||
गांव वाले भी अपने हाथो में लाठीयां लीये....तेजी के साथ बढ़े आ रहे थे और कुछ लोग चील्ला भी रहे थे....
वो भाग रहे है.....पीछा करो उनका.....
आसमान में जब बीजलीयां चमकती तो....मुनीम और उसके लट्ठबाज भागते हुए नज़र आ जाते थे....लेकीन वो गांव वालो की नज़रो से काफी दूर थे| और कुछ ही पल में वो लोग जंगल को पार करते हुए...सड़क पर आ गये....
गांव वाले भी तेजी से भागते हुए....उन लोगो के नज़दीक आ पहुचें थे लेकीन तब तक वो सब लोग एक जीप में बैठकर भाग खड़े होते है|
गांव वाले सड़क पर पहुचं कर लाठी पीट कर रह जाते है......|
मुनीम......जीप में बैठा हाफ़ते हुए बोला-
......जान छुटी....नही तो गांव वाले आज इस तुफ़ानी रात में जीदां गाड़ देते....
कुछ दूर जाकर मुनीम ने ज़ीप रुकवाते हुए कहा-
सुनो रे सब लोग.....ठाकुर साहब से कहना की काम हो गया है......समझे की नही सब लोग....!!
उसके बाद जीप एक बार फीर सड़क पर तेजी से बढ़ते हुए आगे नीकल जाती है....
*/* 18 साल............... बाद********/*
चीड़ीयों की चहचहाहट.....से पूरे गांव के लोग खाट पर से उठ गये थे| ओस की बूदें ज़मीन की छोटी-छोटी घासो पर लटकी कीसी मोती की तरह चमक रही थी.....गांव के सब लोग अपने - अपने काम में लग गये थे।
तभी पायल की आवाज़ छन छन करते हुए गांव के रास्तो से गुज़रने लगी.....
वो पायल की आवाज जीस कीसी के भी कानो में पड़ती उसका दील जोर-जोर से धड़कने लगता| गांव के लोग अपना दील थामे उस पायल की आवाज़ की तरफ़ अपना नज़र घुमाते है तो....उन्हे वो पायल एक सुदरं से पावं में बधी मीली....और वो पांव जब भी ज़मीन पर पड़ती छन - छन की आवाज़ से सब का मन मोह लेती....
एक पल के लीये तो गांव के लोग अपना काम भूल कर अपनी नज़र उस औरत पर गड़ाये बैठे थे......वो औरत हरे रंग की साड़ी पहने हुए थी....हरे रंग की साड़ी में उस औरत का दुधीया बदन ऐसे चमक रहा था की, गांव के लोगो की नज़रे उस औरत पे ठहरना जायज था.....उस औरत के शरीर का बनावट ऐसा था की मानो भगवान वो ठाचां उसे बनाने के बाद तोड़ ही दीया हो....उसका रुप तो चद्रमां के समान उज्वल था....होठो पे लालीमा ऐसे बीखरी थी की मानो फूलों के रंग उसके होठो पे चढ़ गये हो....
वो औरत अपने खुबसुरत पैर ज़मीन पर रखते हुए आगे बढ़ी जा रही थी....तभी गांव के दुसरे रास्ते से एक लड़की नीकल कर उस औरत की तरफ़ चली आ रही थी|
वो लड़की भी उसी औरत के समान ही खुबसुरत थी.....मानो एक परी दुसरी परी के पास आ रही हो.....
......अरे यार रामू.....उपरवाले ने क्या बनाया है इन दोनो को.....जो भी एक बार देख ले बस मर ही जाये....
हां ......सही कहा तूने उमेश.....गांव के बूढ़े भी इस खुबसुरती के दर्शन के लीये , सुबह-सुबह उठ जाते है|
सही कहा.......इन दोनो का जैसा नाम है....वैसे ही इनका काम है....दोनो का इतना साफ दील है की कभी कभी कीसी पर गुस्सा नही करती....रोज सुबह उठ कर मदीरं जाना कसम से यार....ऐसी औरत का सपना हर मर्द देखता है....
गांव के दो जवान मर्द उन दो खुबसुरत बला के बारे में बाते कर रहे थे....उन दोनो का नाम था.....महक और मोहीनी.....
दोनो के हाथो में पूजा की थाली थी और दोनो गांव के मदींर की तरफ़ अपने कदम बढ़ा देती है.....
वो दोनो जैसे ही गांव वालो के नज़रो से ओझल होती है.....गांव वाले अपने काम में फीर से लग जाते है|
रामू और उमेश गांव की कच्ची सड़क पकड़े....चलते हुए बाते कर रहे थे|
रामू-- अरे......मोहीनी को पाने की चाहत गांव के जीस कीसी भी मर्दो के मन में आया....उसे ठाकुर प्रेम सीहं ने मौत की नीदं सुला दीया....इस लीये गांव के सारे मर्द मोहीनी को पाने का बस सपना ही देखते है|
उमेश रास्ते पर चलते हुए दो बीड़ी सुलगाता है....और रामू की तरफ़ बढ़ाते हुए बोला-
उमेश-- सही कहा.....मैने सुना है की...मोहीनी भी ठाकुर से बाते-वाते करने लगी है.....
रामू बीड़ी का एक कश लेते हुए....धुवां को हवां में छोड़ते हुए बोला-
रामू-- करती है.....इसी लीये तो मोहीनी का बेटा राकेश उस दीन ठाकुर के बेटे के हाथो पीटने से बच गया....
उमेश और रमेश चलते-चलते गांव के तालाब के कीनारे पहूचं जाते है....वंही एक पुलीया पर बैठते हुए उमेश ने कहा--
उमेश- मै कुछ समझा नही.....
रामू-- अरे.....मतलब ये की, ठाकुर साहब का बेटा अपने अजय बाबू रजनी की बीटीया महक से प्यार करते है.....और ये राकेश दीन रात महक के पीछे घुमते रहते है'" इसी बात पर दोनो का झगड़ा हुआ था.....वो तो ठाकुर साहब की जान मोहीनी में बसी है....इसीलीये राकेश अभी तक बचा है.....समझा| अच्छा चल मैं जाता हूं मुझे हवेली भी जाना है....
इतना कहकर.....वो दोनो वंहा से चले जाते है|
***************************
कहानी के कीरदार.......
1. राजपाल - उम्र 68.....(गांव के मुखीया)
2. अवधेश -उम्र -50.....मुखीया के बेटे
3. कमला- उम्र- 45......अवधेश की औरत
4. सीमा- उम्र-23.....अवधेश की बेटी|
5. सुमन - उम्र- 39.....कमला की देवरानी)
6. ममता- उम्र -19.....सुमन की बेटी)
*मोहीनी- उम्र- 39.....मुखीया की बेटी)
*राकेश- उम्र-19......मोहिनी का बेटा
----------------ठाकुर का परीवार....
ठाकुर प्रेम सीहं..-उम्र- 47.....
उर्मीला सीहं- उम्र - 42.....पत्नी॥
नीतू सीहं - उम्र- 22......बेटी|
अजय सीहं- उम्र- 19.....बेटा |
--------------------------------
रजनी - उम्र 40- मोहीनी की सहेली)
*महेक - उम्र 19- रजनी की बेटी)
रानू- उम्र 19- रज़नी का बेटा...)
--------कहानी के बाकी कीरेदार....कहानी के साथ- साथ नज़र आयेगें.------
मंदीर सै लौटकर मोहिनी.....घर में सब को प्रसाद देती है और फीर आगनं में आकर....
मोहीनी-- हे भगवान.....सूरज़ सर पर चढ़ आया और ये महाराज अभी तक सो ही रहे है...!!
'इतना कहकर.....मोहिनी राकेश के उपर से चादर पकड़ते हुए खीचं देती है....
राकेश की नीदं टुट जाती है.....लेकीन उसे गुस्सा आ जाता है.....
मोहिनी-- चल उठ जा.....बहुत सो लीया। जा हाथ मुह धो और बाबू जी को लेकर तहसील जाना है.....
राकेश.....खाट पर उठ कर खड़ा हो जाता है....और अपनी मां को गुस्से से भरी नज़रो से देखने लगता है|| और फीर आगंन से बाहर चला जाता है......
ये देख मोहिनी को अज़ीब सा लगा.....और वो सोच में पड़ गयी की ये मुझे ऐसे गुस्से में क्यूं देख रहा था.....शायद मैने उसे कच्ची नीदं से जगा दीया इसीलीये.....
तभी वंहा कमला आ जाती है......
कमला- अरे मोहिनी.....ये राकेश को क्या हो गया.....बीना कुछ नाश्ता कीये ही बाबू जी के साथ तहसील चला गया.....
मोहिनी- अरे......भाभी.....वो मुझ पर भी गुस्सा हो गया.... मैने उसे कच्ची नीदं से जगा दीया था ना इस लीये.....
कमला- ठीक है वो आयेगा तो याद से खीला देना......
to be continewd
हंवाये तुफ़ान बनकर इस कदर बह रही थी की मज़बूत पेड़ की साखायें भी टुट जाती थी.....ये तुफानी रात में आज बादल भी रो रहा था....
अरे....कहा गयी वो....बचकर जानी नही चाहीए नही तो ठाकुर साहब हमारी ज़ान ले लेगें|
.....अरे मुनीम जी...इस अधेरीं तुफ़ानी रात में कुछ दीखायी ही नही दे रहा है....
जंगल के बीच में.....कुछ आदमी अपने हाथो में टॉर्च लीये कीसी की तलाश कर रहे थे| उन सभी आदमीयों के हाथो मेँ खतरनाक खंज़र थे....
वो उन्ही खंज़रो से.....जंगल के झांड़ीयों को छांटते हुए आगे बढ़ रहे थे, की तभी अचानक उन सभी ने अपनी ओर टॉर्च की बहुत सारी रौशनीयों को अपनी ओर आते हुए देखा...-
अरे.....मुनीम जी....लगता है कोयी आ रहा है??
मुनीम ने टॉर्च की रौशनीयों की तरफ़ अपनी नज़र करते हुए बोला--
...अरे लट्ठमारो...कोयी नही, बल्की पूरा गांव आ रहा है....चलो भागो यंहा से
इतना कहकर.....वो सब लोग जंगल के बीच रास्ते से होते हुए तेज कदमो से भागने लगते है||
गांव वाले भी अपने हाथो में लाठीयां लीये....तेजी के साथ बढ़े आ रहे थे और कुछ लोग चील्ला भी रहे थे....
वो भाग रहे है.....पीछा करो उनका.....
आसमान में जब बीजलीयां चमकती तो....मुनीम और उसके लट्ठबाज भागते हुए नज़र आ जाते थे....लेकीन वो गांव वालो की नज़रो से काफी दूर थे| और कुछ ही पल में वो लोग जंगल को पार करते हुए...सड़क पर आ गये....
गांव वाले भी तेजी से भागते हुए....उन लोगो के नज़दीक आ पहुचें थे लेकीन तब तक वो सब लोग एक जीप में बैठकर भाग खड़े होते है|
गांव वाले सड़क पर पहुचं कर लाठी पीट कर रह जाते है......|
मुनीम......जीप में बैठा हाफ़ते हुए बोला-
......जान छुटी....नही तो गांव वाले आज इस तुफ़ानी रात में जीदां गाड़ देते....
कुछ दूर जाकर मुनीम ने ज़ीप रुकवाते हुए कहा-
सुनो रे सब लोग.....ठाकुर साहब से कहना की काम हो गया है......समझे की नही सब लोग....!!
उसके बाद जीप एक बार फीर सड़क पर तेजी से बढ़ते हुए आगे नीकल जाती है....
*/* 18 साल............... बाद********/*
चीड़ीयों की चहचहाहट.....से पूरे गांव के लोग खाट पर से उठ गये थे| ओस की बूदें ज़मीन की छोटी-छोटी घासो पर लटकी कीसी मोती की तरह चमक रही थी.....गांव के सब लोग अपने - अपने काम में लग गये थे।
तभी पायल की आवाज़ छन छन करते हुए गांव के रास्तो से गुज़रने लगी.....
वो पायल की आवाज जीस कीसी के भी कानो में पड़ती उसका दील जोर-जोर से धड़कने लगता| गांव के लोग अपना दील थामे उस पायल की आवाज़ की तरफ़ अपना नज़र घुमाते है तो....उन्हे वो पायल एक सुदरं से पावं में बधी मीली....और वो पांव जब भी ज़मीन पर पड़ती छन - छन की आवाज़ से सब का मन मोह लेती....
एक पल के लीये तो गांव के लोग अपना काम भूल कर अपनी नज़र उस औरत पर गड़ाये बैठे थे......वो औरत हरे रंग की साड़ी पहने हुए थी....हरे रंग की साड़ी में उस औरत का दुधीया बदन ऐसे चमक रहा था की, गांव के लोगो की नज़रे उस औरत पे ठहरना जायज था.....उस औरत के शरीर का बनावट ऐसा था की मानो भगवान वो ठाचां उसे बनाने के बाद तोड़ ही दीया हो....उसका रुप तो चद्रमां के समान उज्वल था....होठो पे लालीमा ऐसे बीखरी थी की मानो फूलों के रंग उसके होठो पे चढ़ गये हो....
वो औरत अपने खुबसुरत पैर ज़मीन पर रखते हुए आगे बढ़ी जा रही थी....तभी गांव के दुसरे रास्ते से एक लड़की नीकल कर उस औरत की तरफ़ चली आ रही थी|
वो लड़की भी उसी औरत के समान ही खुबसुरत थी.....मानो एक परी दुसरी परी के पास आ रही हो.....
......अरे यार रामू.....उपरवाले ने क्या बनाया है इन दोनो को.....जो भी एक बार देख ले बस मर ही जाये....
हां ......सही कहा तूने उमेश.....गांव के बूढ़े भी इस खुबसुरती के दर्शन के लीये , सुबह-सुबह उठ जाते है|
सही कहा.......इन दोनो का जैसा नाम है....वैसे ही इनका काम है....दोनो का इतना साफ दील है की कभी कभी कीसी पर गुस्सा नही करती....रोज सुबह उठ कर मदीरं जाना कसम से यार....ऐसी औरत का सपना हर मर्द देखता है....
गांव के दो जवान मर्द उन दो खुबसुरत बला के बारे में बाते कर रहे थे....उन दोनो का नाम था.....महक और मोहीनी.....
दोनो के हाथो में पूजा की थाली थी और दोनो गांव के मदींर की तरफ़ अपने कदम बढ़ा देती है.....
वो दोनो जैसे ही गांव वालो के नज़रो से ओझल होती है.....गांव वाले अपने काम में फीर से लग जाते है|
रामू और उमेश गांव की कच्ची सड़क पकड़े....चलते हुए बाते कर रहे थे|
रामू-- अरे......मोहीनी को पाने की चाहत गांव के जीस कीसी भी मर्दो के मन में आया....उसे ठाकुर प्रेम सीहं ने मौत की नीदं सुला दीया....इस लीये गांव के सारे मर्द मोहीनी को पाने का बस सपना ही देखते है|
उमेश रास्ते पर चलते हुए दो बीड़ी सुलगाता है....और रामू की तरफ़ बढ़ाते हुए बोला-
उमेश-- सही कहा.....मैने सुना है की...मोहीनी भी ठाकुर से बाते-वाते करने लगी है.....
रामू बीड़ी का एक कश लेते हुए....धुवां को हवां में छोड़ते हुए बोला-
रामू-- करती है.....इसी लीये तो मोहीनी का बेटा राकेश उस दीन ठाकुर के बेटे के हाथो पीटने से बच गया....
उमेश और रमेश चलते-चलते गांव के तालाब के कीनारे पहूचं जाते है....वंही एक पुलीया पर बैठते हुए उमेश ने कहा--
उमेश- मै कुछ समझा नही.....
रामू-- अरे.....मतलब ये की, ठाकुर साहब का बेटा अपने अजय बाबू रजनी की बीटीया महक से प्यार करते है.....और ये राकेश दीन रात महक के पीछे घुमते रहते है'" इसी बात पर दोनो का झगड़ा हुआ था.....वो तो ठाकुर साहब की जान मोहीनी में बसी है....इसीलीये राकेश अभी तक बचा है.....समझा| अच्छा चल मैं जाता हूं मुझे हवेली भी जाना है....
इतना कहकर.....वो दोनो वंहा से चले जाते है|
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कहानी के कीरदार.......
1. राजपाल - उम्र 68.....(गांव के मुखीया)
2. अवधेश -उम्र -50.....मुखीया के बेटे
3. कमला- उम्र- 45......अवधेश की औरत
4. सीमा- उम्र-23.....अवधेश की बेटी|
5. सुमन - उम्र- 39.....कमला की देवरानी)
6. ममता- उम्र -19.....सुमन की बेटी)
*मोहीनी- उम्र- 39.....मुखीया की बेटी)
*राकेश- उम्र-19......मोहिनी का बेटा
----------------ठाकुर का परीवार....
ठाकुर प्रेम सीहं..-उम्र- 47.....
उर्मीला सीहं- उम्र - 42.....पत्नी॥
नीतू सीहं - उम्र- 22......बेटी|
अजय सीहं- उम्र- 19.....बेटा |
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रजनी - उम्र 40- मोहीनी की सहेली)
*महेक - उम्र 19- रजनी की बेटी)
रानू- उम्र 19- रज़नी का बेटा...)
--------कहानी के बाकी कीरेदार....कहानी के साथ- साथ नज़र आयेगें.------
मंदीर सै लौटकर मोहिनी.....घर में सब को प्रसाद देती है और फीर आगनं में आकर....
मोहीनी-- हे भगवान.....सूरज़ सर पर चढ़ आया और ये महाराज अभी तक सो ही रहे है...!!
'इतना कहकर.....मोहिनी राकेश के उपर से चादर पकड़ते हुए खीचं देती है....
राकेश की नीदं टुट जाती है.....लेकीन उसे गुस्सा आ जाता है.....
मोहिनी-- चल उठ जा.....बहुत सो लीया। जा हाथ मुह धो और बाबू जी को लेकर तहसील जाना है.....
राकेश.....खाट पर उठ कर खड़ा हो जाता है....और अपनी मां को गुस्से से भरी नज़रो से देखने लगता है|| और फीर आगंन से बाहर चला जाता है......
ये देख मोहिनी को अज़ीब सा लगा.....और वो सोच में पड़ गयी की ये मुझे ऐसे गुस्से में क्यूं देख रहा था.....शायद मैने उसे कच्ची नीदं से जगा दीया इसीलीये.....
तभी वंहा कमला आ जाती है......
कमला- अरे मोहिनी.....ये राकेश को क्या हो गया.....बीना कुछ नाश्ता कीये ही बाबू जी के साथ तहसील चला गया.....
मोहिनी- अरे......भाभी.....वो मुझ पर भी गुस्सा हो गया.... मैने उसे कच्ची नीदं से जगा दीया था ना इस लीये.....
कमला- ठीक है वो आयेगा तो याद से खीला देना......
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