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मां के हाथ के छाले
Part : 1
शनिवार का दिन था यानी की मेरी जोब की छुट्टी, सुबह जब नींद खुली खिड़की से बाहर देखा तो थोड़ी थोड़ी बारिश आ रही थी। मैं अंगड़ाई लेता उठा कमरे से बाहर निकला तो मां किचन में आटा गूंध रही थी और जब उनसे पूछा के पापा कहां है? तो वो बोली के वो तो ड्यूटी पर गए और बोलके गए हैं के 4-5 दिन बाद आएंगे और सोनू से कहना के कार का बिगड़ा हुआ एसी ठीक करवा ले याद से। मैं बोला : ठीक है मां करवा दूंगा। और फिर मोसम देखकर मैनें मां से कहा, मां आज बारिश का मौसम है और मेरा पकोड़े खाने का मन है, तो मां बोली जा दुकान से बेसन ले आ, मैं बना देती हूं पकोड़े इसमें कोनसी बड़ी बात है।
मैं थोड़ी देर बाद बेसन लेकर आया और मां को देकर नहाने चला गया, बाथरूम से जैसे ही नहा कर बाहर आया तो मां के चीखने की आवाज आई, मैं दौड़कर किचन में गया और देखा तो तेल की कढ़ाई नीचे गिरी पड़ी थी और मां अपने हाथों को देख देख कर रो रही थी, क्योंकि गर्म गर्म तेल मां के हाथों पर गिर गया था और उंगलियों और हथेली पर लाल हो गया था। मैंने तुरंत फ्रीज से बर्फ निकाली और उन्हें बाहर रखे सोफे पर बैठाकर उनके हाथों पर लगाई, कुछ देर बाद मां को थोड़ा आराम आया और उनका दर्द कम हुआ। कढ़ाई नीचे गिरने से कुछ छीटे मां की पजामी और कमीज पर भी पड़े और वहां वहां से उसमे छेद हो गए और शरीर पर जहां जहां तेल गिरा था वहां वहां पर थोड़ी देर बाद छाले पड़ने लगे। मैं मां को हमारी फैमिली डॉक्टर के पास गाड़ी में ले गया और छाले सूखने की दवाई लेकर उन्हें घर लाया। थोड़ी देर बाद मैंने मां को खाने की टैबलेट दी और उन्हें उनके छालों पर ट्यूप लगाने लगा, जब मैनें उनके हाथों पर ट्यूप लगा कर बंद की तो मां बोली, रुक बेटा।
मैं बोला : हां मां क्या हुआ।
मां : वो वो वो....
बोलकर चुप हो गई
मैंने फिर उनसे पूछा क्या हुआ मां बोलो ना
मां : वो बेटा मेरे पैरों पर और शरीर पर भी छाले हैं, मैं खुद लगा लेती वहां पर, पर मेरे हाथों पर दुखेगा अगर मैं ऐसा करूंगी, क्या तू वहां भी लगा देगा?
मैं: अरे इसमें हिचकिचाने वाली क्या बात है मां, दिखाओ मैं लगा देता हूं।
मैं और मां उसवक्त बड़े वाले सोफे पर बैठे थे। मां ने सोफे पर मुझसे तीसरी वाली सीट पर सरक के अपने दोनों पैर ऊपर बीच वाली सीट पर रख लिए और अपने घुटनो को मोड़कर मुझे पैर दिखाने के लिए बैठी के मेरी इक नज़र एक पल के लिए मां की पजामी में से बनी चूत और थोड़ी सी गांड़ पर पड़ी और दूसरे ही पल मैं खुदको संभाल कर उनके गोरे गोरे पैरों पर वो छोटे छोटे छाले देखने लगा जो चमक से रहे थे। मैं जैसे ही उनके छालों पर ट्यूब लगाने लगा वो सिसक उठी
मां : आह, बेटा।
मैं: सॉरी मां, मैं धीरे धीरे से लगाता हूं।
मां थोड़ा दर्द से सिसकते हुए बोली : हां , बेटा।
जब उनके पैरों पर ट्यूब लग गई तो मैं बोला : मां यहां भी लगा दी है, और कहीं तो नहीं हैं न छाले?
वो बोली : बेटा वो मेरे पेट के पास भी 4-5 तेल की बूंदे गिरी थी, मैंने वहां देखा तो नहीं पर मुझे जलन सी हो रही है, तु देख तो सही जरा।
मैं : ठीक है मां, दिखाओ
मेरे कहते ही मां सोफे पर लेट गई पेट की ओर इशारा करती बोली : थोड़ा सा कमीज ऊपर करके देख तो सही कितने हैं?
मैंने कांपते हाथों से उनकी कमीज को थोड़ा सा ऊपर उठाया तो उनका गोरा पेट और उसमे बनी गोल गहरी नाभी नजर आई और उसके थोड़ा सा ऊपर उनकी वो गाड़ेदार रैड कलर की ब्रा जिसे देखकर मुझे अच्छा सा लगा। वहां पेट के पास भी 2-3 छाले थे, मैनें उनपर भी ट्यूब लगाई और बोला : मां 2-3 ही थे बस, लगा दी है यहां भी, बस और तो कहीं नहीं है ना?
मां : बेटा ये थोड़ा सा लेफ्ट में नीचे तो देख
मैं: कहां पर मां?
मां थोड़ा सा मुड़ी और अपने पेट के थोड़ा सा लैफ्ट साइड पर नीचे की ओर इशारा करने लगी और बोली : बेटा ये चुभ सा रहा है , थोड़ा इसको एडजस्ट करदे बस।
मैनें देखा के उनकी पेंटी ऊपर से थोड़ी मुड़ कर इक्ट्ठी हो रखी थी जिसकी वजह से शायद उन्हें कम्फर्ट महसूस नहीं हो रहा था, उनकी पैंटी ब्राउन कलर की थी, अक्सर शादी शुदा हाउसवाइफ ब्रा पेंटी की मैचिंग पर ध्यान नहीं देती और मां भी उनमें से एक थी
मैं बोला : क्या मां?
मां : बेटा वो थोड़ा सा मेरी पैंटी मुड़ी हुई है , मुझे चुभ सी रही थी , थोड़ा सही करदे बस।
मैं: ओके मां
ये बोलकर मैनें मां के लैफ्ट चूतड पर से एक हल्के हाथ से उनकी पजामी को ऊपर की तरफ खींचा और दूसरे हाथ से उस पैंटी को ठीक करने लगा, ऐसे करते हुए मेरी नजर उस मुड़ी हुई गांड़ पर पड़ी और मैं सोचने लगा के पापा कितने लक्की हैं यार, जो उन्हे मां जैसी बीवी मिली, फिर मैंने दोबारा मां से पूछा : और तो कुछ नहीं है मां?
वो बोली : नहीं बेटा, थैंक्यू बस।
फिर मैं बोला : अरे इसमें थैंक्यू की क्या बात है मां, भला बेटे से भी कोई मां थैंक्यू बोलती है, आप अब सोफे पर ही थोड़ा आराम करो और मैं नाश्ता बाहर से ले आता हूं।
मां : ठीक है बेटा।
तो अब मैं आप सबको अपनी परिवार के बारे में थोड़ा बता दूं, मेरी मां निशा, जो थोड़ी मजाकिया और फिल्मी टाइप की थी, उन्हें हमेशा पुरानी फिल्मों के डायलॉग ही सूझते रहते थे । वह एक हाउसवाइफ थी और पापा रेलवे कर्मचारी और वो 3-4 और कभी कभी हफ्ते बाद ही घर आया करते थे। मैं सोनू, उम्र 22, अभी फिलहाल ही में मैनें एक नोकरी ज्वाइन की थी जिसमे मुझे वर्क फ्रोम होम ही मिल गया था जिसमे वीकेंड पर छुट्टी रहती थी। हमारा छोटा सा परिवार खुश था अपनी जिंदगी से।
तो अब चलते हैं कहानी की ओर
मैं बाहर से कुछ देर बाद ब्रैड पकोड़े लेकर आया और साथ में चाय बनाकर मां के पास गया तो मां देखकर खुश हो गई और मैनें उन्हें एक कप पास किया तो वो बोली : ठाकुर ये हाथ मुझे दे दे।
ये सुनकर मैं हंस पड़ा और बोला : लो जी, मां आपका फिल्मी रूप शुरू।
फिर हम दोनों हंस पड़े और मां बोली : अरे सच में ही अब तुझे अपने हाथ कुछ दिनों के लिए मुझे देने पड़ेंगे जब तक ये छाले ठीक नहीं हो जाते।
फिर मैं बोला : आप फिक्र ना करो मां, मैं आपका हूं तो ये हाथ भी तो आपके हुए ना।
और फिर मां मेरी तरफ मुड़ी और मुस्कुरा कर बोली : लव यू बेटा।
मैं: लव यू मां।
फिर मैंने अपने हाथों से उन्हें एक एक घूंट कर चाय पिलाने लगा और साथ में अपने कप से पीने लगा और फिर एक ब्रैड का टुकड़ा तोड़कर उन्हें खिलाता और फिर एक टुकड़ा अपने ब्रैड से तोड़कर खुद खाता। दो तीन चुस्की भरने के बाद मां बोली : अरे सोनू, ये बार बार तु मेरा कप उठाएगा और फिर अपना कप उठाएगा , इस से अच्छा हम एक ही कप में ना चाय पी लें।
फिर मैने दोनों कप की चाय एक ही में कर कर उन्हें पिलाने लगा और खुद भी पीने लगा। फिर मैनें उनसे पूछा : मां, चाय कैसी बनी है?
मां : पहले तो फीकी थी पर अब...
में : पर अब क्या?
मां फिर फिल्मी अंदाज में आकर बोली : पर अब मेरे बेटे के लबों से लगकर मीठी लगने लगी है
इस पर हम दोनों मुस्कुराने लगे, फिर वो बोली : ब्रैड तो खिला बेटा, भूख लगी है मुझे।
मैं: अरे हां, सॉरी सॉरी।
ये बोलकर मैंने ब्रैड चटनी में डूबा कर उन्हें खिलाने लगा के चटनी की कुछ बूंदे उनके क्लीवेज पर गिरी। जिसे देखकर मां बोली : अरे बेटा, ये चटनी से दाग पड़ जाएगा मेरी कमीज पर, जा जाकर एक कपड़ा गिला कर कर लेकर आ। मैं उठा और एक कपड़ा गिला कर के लाया और उन्हें पकड़ाने लगा के वो बोली : थोड़ा सा ऊपर से ये कपड़ा पकड़ और इसे ये गीले कपड़े से घिस।
मैं जैसे ही सूट पकड़ने लगा के मेरी उंगलियां मां के सूट के अंदर घुसकर उनके क्लीवेज पर लगी और वो बोली : आ, पागल इतने ठंडे ठंडे गीले हाथ लगा रहा है, मुझे गुद गुदी हो रही है।
मैंने फिर कपड़ा घिसना शुरू किया और मेरी नजर उनके क्लीवेज के अंदर गई और मां को लेकर मेरा मन डोलने लगा। सूट साफ करके हमने ब्रैड खत्म किए और मैं बर्तन रखकर जैसे ही किचन से बाहर आया के वो बोली : बेटा मुझे सुसु लगी है।
में : तो कर लो मां, इसमें बताने वाली क्या बात है
मां : अरे पागल, वो मेरे कपड़े अड़ेंगे ना बीच तो
मैं समझ गया के अब तो जब तक छाले ठीक नहीं होते तब तक मुझे बहुत कुछ दिखेगा जिंदगी में जो पहले कभी देखने को नहीं मिला। मैनें फिर सोचा क्या मां अब मुझसे अपना पजामी उतारने को तो नहीं कह देंगी? 2 मिनट तक मैं इन्ही खयालों में डूबा रहा।
Part : 1
शनिवार का दिन था यानी की मेरी जोब की छुट्टी, सुबह जब नींद खुली खिड़की से बाहर देखा तो थोड़ी थोड़ी बारिश आ रही थी। मैं अंगड़ाई लेता उठा कमरे से बाहर निकला तो मां किचन में आटा गूंध रही थी और जब उनसे पूछा के पापा कहां है? तो वो बोली के वो तो ड्यूटी पर गए और बोलके गए हैं के 4-5 दिन बाद आएंगे और सोनू से कहना के कार का बिगड़ा हुआ एसी ठीक करवा ले याद से। मैं बोला : ठीक है मां करवा दूंगा। और फिर मोसम देखकर मैनें मां से कहा, मां आज बारिश का मौसम है और मेरा पकोड़े खाने का मन है, तो मां बोली जा दुकान से बेसन ले आ, मैं बना देती हूं पकोड़े इसमें कोनसी बड़ी बात है।
मैं थोड़ी देर बाद बेसन लेकर आया और मां को देकर नहाने चला गया, बाथरूम से जैसे ही नहा कर बाहर आया तो मां के चीखने की आवाज आई, मैं दौड़कर किचन में गया और देखा तो तेल की कढ़ाई नीचे गिरी पड़ी थी और मां अपने हाथों को देख देख कर रो रही थी, क्योंकि गर्म गर्म तेल मां के हाथों पर गिर गया था और उंगलियों और हथेली पर लाल हो गया था। मैंने तुरंत फ्रीज से बर्फ निकाली और उन्हें बाहर रखे सोफे पर बैठाकर उनके हाथों पर लगाई, कुछ देर बाद मां को थोड़ा आराम आया और उनका दर्द कम हुआ। कढ़ाई नीचे गिरने से कुछ छीटे मां की पजामी और कमीज पर भी पड़े और वहां वहां से उसमे छेद हो गए और शरीर पर जहां जहां तेल गिरा था वहां वहां पर थोड़ी देर बाद छाले पड़ने लगे। मैं मां को हमारी फैमिली डॉक्टर के पास गाड़ी में ले गया और छाले सूखने की दवाई लेकर उन्हें घर लाया। थोड़ी देर बाद मैंने मां को खाने की टैबलेट दी और उन्हें उनके छालों पर ट्यूप लगाने लगा, जब मैनें उनके हाथों पर ट्यूप लगा कर बंद की तो मां बोली, रुक बेटा।
मैं बोला : हां मां क्या हुआ।
मां : वो वो वो....
बोलकर चुप हो गई
मैंने फिर उनसे पूछा क्या हुआ मां बोलो ना
मां : वो बेटा मेरे पैरों पर और शरीर पर भी छाले हैं, मैं खुद लगा लेती वहां पर, पर मेरे हाथों पर दुखेगा अगर मैं ऐसा करूंगी, क्या तू वहां भी लगा देगा?
मैं: अरे इसमें हिचकिचाने वाली क्या बात है मां, दिखाओ मैं लगा देता हूं।
मैं और मां उसवक्त बड़े वाले सोफे पर बैठे थे। मां ने सोफे पर मुझसे तीसरी वाली सीट पर सरक के अपने दोनों पैर ऊपर बीच वाली सीट पर रख लिए और अपने घुटनो को मोड़कर मुझे पैर दिखाने के लिए बैठी के मेरी इक नज़र एक पल के लिए मां की पजामी में से बनी चूत और थोड़ी सी गांड़ पर पड़ी और दूसरे ही पल मैं खुदको संभाल कर उनके गोरे गोरे पैरों पर वो छोटे छोटे छाले देखने लगा जो चमक से रहे थे। मैं जैसे ही उनके छालों पर ट्यूब लगाने लगा वो सिसक उठी
मां : आह, बेटा।
मैं: सॉरी मां, मैं धीरे धीरे से लगाता हूं।
मां थोड़ा दर्द से सिसकते हुए बोली : हां , बेटा।
जब उनके पैरों पर ट्यूब लग गई तो मैं बोला : मां यहां भी लगा दी है, और कहीं तो नहीं हैं न छाले?
वो बोली : बेटा वो मेरे पेट के पास भी 4-5 तेल की बूंदे गिरी थी, मैंने वहां देखा तो नहीं पर मुझे जलन सी हो रही है, तु देख तो सही जरा।
मैं : ठीक है मां, दिखाओ
मेरे कहते ही मां सोफे पर लेट गई पेट की ओर इशारा करती बोली : थोड़ा सा कमीज ऊपर करके देख तो सही कितने हैं?
मैंने कांपते हाथों से उनकी कमीज को थोड़ा सा ऊपर उठाया तो उनका गोरा पेट और उसमे बनी गोल गहरी नाभी नजर आई और उसके थोड़ा सा ऊपर उनकी वो गाड़ेदार रैड कलर की ब्रा जिसे देखकर मुझे अच्छा सा लगा। वहां पेट के पास भी 2-3 छाले थे, मैनें उनपर भी ट्यूब लगाई और बोला : मां 2-3 ही थे बस, लगा दी है यहां भी, बस और तो कहीं नहीं है ना?
मां : बेटा ये थोड़ा सा लेफ्ट में नीचे तो देख
मैं: कहां पर मां?
मां थोड़ा सा मुड़ी और अपने पेट के थोड़ा सा लैफ्ट साइड पर नीचे की ओर इशारा करने लगी और बोली : बेटा ये चुभ सा रहा है , थोड़ा इसको एडजस्ट करदे बस।
मैनें देखा के उनकी पेंटी ऊपर से थोड़ी मुड़ कर इक्ट्ठी हो रखी थी जिसकी वजह से शायद उन्हें कम्फर्ट महसूस नहीं हो रहा था, उनकी पैंटी ब्राउन कलर की थी, अक्सर शादी शुदा हाउसवाइफ ब्रा पेंटी की मैचिंग पर ध्यान नहीं देती और मां भी उनमें से एक थी
मैं बोला : क्या मां?
मां : बेटा वो थोड़ा सा मेरी पैंटी मुड़ी हुई है , मुझे चुभ सी रही थी , थोड़ा सही करदे बस।
मैं: ओके मां
ये बोलकर मैनें मां के लैफ्ट चूतड पर से एक हल्के हाथ से उनकी पजामी को ऊपर की तरफ खींचा और दूसरे हाथ से उस पैंटी को ठीक करने लगा, ऐसे करते हुए मेरी नजर उस मुड़ी हुई गांड़ पर पड़ी और मैं सोचने लगा के पापा कितने लक्की हैं यार, जो उन्हे मां जैसी बीवी मिली, फिर मैंने दोबारा मां से पूछा : और तो कुछ नहीं है मां?
वो बोली : नहीं बेटा, थैंक्यू बस।
फिर मैं बोला : अरे इसमें थैंक्यू की क्या बात है मां, भला बेटे से भी कोई मां थैंक्यू बोलती है, आप अब सोफे पर ही थोड़ा आराम करो और मैं नाश्ता बाहर से ले आता हूं।
मां : ठीक है बेटा।
तो अब मैं आप सबको अपनी परिवार के बारे में थोड़ा बता दूं, मेरी मां निशा, जो थोड़ी मजाकिया और फिल्मी टाइप की थी, उन्हें हमेशा पुरानी फिल्मों के डायलॉग ही सूझते रहते थे । वह एक हाउसवाइफ थी और पापा रेलवे कर्मचारी और वो 3-4 और कभी कभी हफ्ते बाद ही घर आया करते थे। मैं सोनू, उम्र 22, अभी फिलहाल ही में मैनें एक नोकरी ज्वाइन की थी जिसमे मुझे वर्क फ्रोम होम ही मिल गया था जिसमे वीकेंड पर छुट्टी रहती थी। हमारा छोटा सा परिवार खुश था अपनी जिंदगी से।
तो अब चलते हैं कहानी की ओर
मैं बाहर से कुछ देर बाद ब्रैड पकोड़े लेकर आया और साथ में चाय बनाकर मां के पास गया तो मां देखकर खुश हो गई और मैनें उन्हें एक कप पास किया तो वो बोली : ठाकुर ये हाथ मुझे दे दे।
ये सुनकर मैं हंस पड़ा और बोला : लो जी, मां आपका फिल्मी रूप शुरू।
फिर हम दोनों हंस पड़े और मां बोली : अरे सच में ही अब तुझे अपने हाथ कुछ दिनों के लिए मुझे देने पड़ेंगे जब तक ये छाले ठीक नहीं हो जाते।
फिर मैं बोला : आप फिक्र ना करो मां, मैं आपका हूं तो ये हाथ भी तो आपके हुए ना।
और फिर मां मेरी तरफ मुड़ी और मुस्कुरा कर बोली : लव यू बेटा।
मैं: लव यू मां।
फिर मैंने अपने हाथों से उन्हें एक एक घूंट कर चाय पिलाने लगा और साथ में अपने कप से पीने लगा और फिर एक ब्रैड का टुकड़ा तोड़कर उन्हें खिलाता और फिर एक टुकड़ा अपने ब्रैड से तोड़कर खुद खाता। दो तीन चुस्की भरने के बाद मां बोली : अरे सोनू, ये बार बार तु मेरा कप उठाएगा और फिर अपना कप उठाएगा , इस से अच्छा हम एक ही कप में ना चाय पी लें।
फिर मैने दोनों कप की चाय एक ही में कर कर उन्हें पिलाने लगा और खुद भी पीने लगा। फिर मैनें उनसे पूछा : मां, चाय कैसी बनी है?
मां : पहले तो फीकी थी पर अब...
में : पर अब क्या?
मां फिर फिल्मी अंदाज में आकर बोली : पर अब मेरे बेटे के लबों से लगकर मीठी लगने लगी है
इस पर हम दोनों मुस्कुराने लगे, फिर वो बोली : ब्रैड तो खिला बेटा, भूख लगी है मुझे।
मैं: अरे हां, सॉरी सॉरी।
ये बोलकर मैंने ब्रैड चटनी में डूबा कर उन्हें खिलाने लगा के चटनी की कुछ बूंदे उनके क्लीवेज पर गिरी। जिसे देखकर मां बोली : अरे बेटा, ये चटनी से दाग पड़ जाएगा मेरी कमीज पर, जा जाकर एक कपड़ा गिला कर कर लेकर आ। मैं उठा और एक कपड़ा गिला कर के लाया और उन्हें पकड़ाने लगा के वो बोली : थोड़ा सा ऊपर से ये कपड़ा पकड़ और इसे ये गीले कपड़े से घिस।
मैं जैसे ही सूट पकड़ने लगा के मेरी उंगलियां मां के सूट के अंदर घुसकर उनके क्लीवेज पर लगी और वो बोली : आ, पागल इतने ठंडे ठंडे गीले हाथ लगा रहा है, मुझे गुद गुदी हो रही है।
मैंने फिर कपड़ा घिसना शुरू किया और मेरी नजर उनके क्लीवेज के अंदर गई और मां को लेकर मेरा मन डोलने लगा। सूट साफ करके हमने ब्रैड खत्म किए और मैं बर्तन रखकर जैसे ही किचन से बाहर आया के वो बोली : बेटा मुझे सुसु लगी है।
में : तो कर लो मां, इसमें बताने वाली क्या बात है
मां : अरे पागल, वो मेरे कपड़े अड़ेंगे ना बीच तो
मैं समझ गया के अब तो जब तक छाले ठीक नहीं होते तब तक मुझे बहुत कुछ दिखेगा जिंदगी में जो पहले कभी देखने को नहीं मिला। मैनें फिर सोचा क्या मां अब मुझसे अपना पजामी उतारने को तो नहीं कह देंगी? 2 मिनट तक मैं इन्ही खयालों में डूबा रहा।