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Incest मां को अपना बनाया

vision244

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अपडेट

शोभा से बात करने के बाद सुनीता सो जाती है।और शाम ५ बजे सो कर उठती है।और घांस काटने के लिए निकल जाती है।सुनीता जहां घांस काटने जाती थी वह गांव की और भी औरते भी आती थी।तो सब मिलकर आपस में अपना दुख सूख बात किया करती थी।सुनीता भी शाम के समय निकल जाती है घांस काटने और उसका भी मन थोड़ा हल्का हो जाता था बाहर निकलने से वरना घर में रहते रहते वो भी ऊब जाती थी।

शाम काफी हो गई थी और सुनीता घास काट कर घर के तरफ जा रही थीं तभी उसे रस्ते में शालिनी मिल जाती है।सुनीता और शालीन का रिश्ता बहुत गहरा था शालिनी सुनीता से उम्र में बड़ी थी और सुनीता उसको दीदी कहकर बुलाती थी पर दोनों एक दूसरे की दोस्त की तरह थी सुनीता उसकी हर बात मानती थीं और शालिनी की हर बात सुनीता के लिए पत्थर की लकीर की तरह होती थी।

सुनीता घर की तरफ जा रही थी तभी उसे शालिनी मिल जाती है

सुनीता:नमस्ते दीदी,कैसी है आप

शालिनी:अरे सुनीता इतनी शाम को इधर कैसे?

सुनीता:अरे दीदी घास काटने के लिए गए थे और सब गांव की औरते मिल गई तो थोड़ा उन लोगों से बातचीत करने लगी

शालिनी: और बताओ अजय और सुधा कैसी है?

सुनीता:सब ठीक है दीदी अब आपसे क्या छिपना आप तो जानती है सुधा बेचारी भरी जवानी में उस कुत्ते ने छोड़ दिया ऐसा नहीं था दीदी की हमने उसकी शादी में कोई कमी रखी पर दीदी वो लोग बहुत लालची है।

शालिनी: कोई बात नहीं सुनीता भगवान सब अच्छे के लिए करता है अच्छा हुआ तुम लोगों ने उसे यह बुला लिया वरना वो लोग उसे वहां प्रताड़ित करते सही किया बुला कर उसे।

सुनीता:हा दीदी आप सही बोल रही हो अच्छा किया वो आ गई यह और यहां कोई कमी नहीं है अजय हम लोगों का अच्छे से खयाल रखता है।और भगवान की दया से वो अच्छा पैसा कमा लेता है।बस दीदी

और ये आख़िर में सुनीता एकदम उदास हो जाती है।

शालिनी:क्या हुआ सुनीता इतना उदास क्यों।

सुनीता:अब क्या बताऊं दीदी भगवान ने इतना भरा जिस्म दिया है पर क्या करूं इस जिस्म का जब कोई है ही नहीं।दीदी दिन रात ये जिस्म बड़ा तकलीफ देता है क्या करूं दीदी बस खीरा और हाथ से काम चलाना पड़ता है और ये कहते ही उसकी आंखे नम हो गई।

शालिनी:मैं समझ सकती हु सुनीता मैं भी एक औरत हु और मुझे पता है ये जिस्म की आग कैसे जलती है पर क्या कर सकते है तू ही बता

शालिनी के पति ने उसे छोड़ दिया था और उसको कोई शारीरिक सुख नहीं मिलता था ये बात सुनीता भी जानती थी पर फिर भी शालिनी का चेहरा हमेश खिला खिला रहता ये बात सुनीता को हजम नहीं होती थी।

सुनीता:दीदी एक बात पूछूं अगर आप बुरा न माने तो

शालिनी:अरे बोल न क्या हुआ

सुनीता:दीदी आपके पति और आप को अलग हुए दस साल से भी ऊपर हो गया फिर भी आप इतना खिली खिली कैसी रहती है।दीदी बुरा मत मानना बस मन में सवाल आया इस लिए पूछ लिया

शालिनी:कोई नहीं पगली मुझे बुरा नहीं लगा और....

जैसे ही शालिनी ने जवाब देना चाहा तभी पीछे से गांव की कोई औरत आ गई और शालिनी ने बात बदल दी और सुनीता भी समझ गई और उसने सुनीता से आंखों से ही इशारा और वो समझ गई और सुनीता बोली फिर दीदी चलती हु बाद में मिलती हु।और कुछ देर तीनों औरतों ने बात किया और फिर अपने अपने रस्ते निकल गई

सुनीता अपने मन मे:लगता है दीदी कुछ कहना चाह रही थी।कही दीदी का किसी गैर मर्द के साथ सम्बन्ध तो नहीं।...नहीं दीदी ऐसी नहीं है पर क्या बात है जो उनका चेहरा हमेश खिला खिला रहता है। छोड़ो मुझे क्या क्यों दूसरे के जीवन में दखल दे रहीं हु।।और ऐसे सोचते सोचते सुनीता अपने घर पे आ गई और रात का खाना बनाने लगी।

सुनीता भी घर आकार सुधा के साथ खाना बनाने लगी।रात को अजय भी ८ बजे तक घर आ गया और फिर तीनों ने मिलकर खान खाया और थोड़ी इदार उदार की बातें की और फिर अपने अपने कमरे में सोने चले गए वैसे भी गांवों में सब जल्दी सो जाते है।गांव में मौसम शांत था और ठंड पड़ रही थी।रात के अभी ११ बज रहे थे की तभी अजय को प्यास लगती है और पहले तो अपने बिस्तर से उठना नहीं चाहता पर कुछ देर बात उसको पेशाब भी लगने लगी तो अब उसे उठाना पड़ा और वो सीधा बाथरूम की तरफ गया इस समय अजय एक ढीले बॉक्सर(ढीला कच्चा) और बनियान में था

अजय पहले बाथरूम गया और वह जा कर पेशाब किया और अंडरवीयर तो पहना नहीं था बस बॉक्सर था तो पेशाब की कुछ बूंदें उसके बॉक्सर पे गिर गई और फिर वो बाथरूम से निकल के अपने रूम की तरफ जा ही रहा था कि उसे अजीब से आवाज सुनाई दी और वो उस आवाज की तरफ बढ़ा और वो आवाज ऐसी थी कि जैसे कोई चुदाई कर रहा हो पर घर पे एक ही मर्द था अजय और अजय आवाज का पीछा करते हुए सुधा के कमरे के बाहर आ कर रुक गया और उसने हल्के हाथ से दरवाजे को छुआ तो पाया कि दरवाज़ा खुला हुआ था तो उसने हिम्मत करके एकदम धीरे से दरवाजा खोला और कमरे के अंदर दाखिल हुआ और जो वो देखता है है तो उसकी हालत खराब हो जाती है।

अंदर सुधा लेती हुई थी और लैपटॉप उसका चालू था और आवाज आ रही लैपटॉप से और उस आवाज को सुनकर अजय को देर नहीं लगी कि लैपटॉप पे क्या चल रहा है वो आवाज एक अश्लील पिक्चर से आ रही थी जो कि सुधा के लैपटॉप से आ रही थी और सुधा अपनी मैक्सी अपने कमर तक उठाके दोनों पैर उसके खुले हुए थे और एक हाथ में उसके खीरा था जो कि उसके बुर में अंदर बाहर हों रहा था और भूरा खीरा सुधा के चूत के पानी से साना हुआ था और चमक रहा था और सुधा भी अंजान थी उसे नहीं पता था कि उसका सगा भाई उसके कमरे में है और उसे देख रहा है।सुधा पूरा मगन और नशे में चूर थी और अजय की हालत खराब थी ये सब देकर उसक लन्ड एकदम खड़ा होकर सुधा को सलामी दे रहा था।

तभी अचानक सुधा की नजर अजय से मिलती है तो उसके होश उड़ जाते है और उसके हाथ से खीरा छूट जाता है और वो एकटक अजय को देखती रहती है और फिर उसकी नजर अजय के लन्ड पे जाती है जो कि एकदम खड़ा था और उसको सलामी दे रहा था।सुधा को कितने साल हो गए थे लन्ड को देखे बिना और वो तो मर्द का स्पर्श ही भूल चुकी थी और अजय के लन्ड को देकर वो और कामुक हों गई उसको होश नहीं था कि वो उसका सगा भाई है।वो हवस की आग में तप रही थीं।उसका दिमाग काम करना बंद कर दिया और वो बिस्तर से ही वो घुटनों के बल चल कर अजय के पास गई और अपना मुंह सीधा अजय के लन्ड के सामने कर दिया अजय के बॉक्सर से पेशाब के महक उसको नथुनों में जा रही थी और उसको और दीवाना बना रही थी और उसकी हवस और बढ़ जाती है।वो अपना हाथ आगे कर कर अपने मुठ्ठी से उसके लन्ड को पकड़ लेती है और उसको तो जैसे करेंट लग जाता हैं क्योंकि उसने कई सालों बाद लैंड को हाथ लगाया था।वो अपने हाथों से ही अजय के लन्ड का जायजा ले लाती है और उसके मुंह में पानी आ जाता है।और वो अपने होंठ खोल कर उसके लन्ड को बॉक्सर के ऊपर से चाटने लगती है अभी भी लन्ड बॉक्सर के अंदर था वो अपने थूक से पूरा बॉक्सर गीला कर देती है उसको पेशाब का स्वाद बहुत अच्छा लगता है और वो उसको किसी कुल्फी की तरह अपने जीभ से चाट रही होती है।

अजय जो अब तक खाड़ा था वो भी अपने होश में नहीं था और वो अपने हाथ से उसके बालों को पकड़ता है एक गुच्छा बनकर और वो खीरा अपने हाथ में लेता है और सीधा उसके बुर के अंदर डाल देता है और अंदर बाहर करने लगता है ये सब हरकत के दौरान दोनों में से कोई भी एक शाब्द नहीं बोल रहा था पर दोनों की आंख बास एक दूसरे वो देख रही थी अजय ३ से ४ मिनिट खीरे को सुधा की चूत में अंदर बाहर करता रहा और सुधा का शरीर अकड़ने लगा और उसको इतना अच्छा लगा कि वो मूतने लगी और उसके साथ उसका पानी भी निकल गया मूत और उसका पानी अजय के हाथ और उंगलियों पे भी गिरा और फिर अजय ने अपनी पांचों उंगलियों से पानी चाट लिए और ये सब करते वक्त वो सीधा सुधा की आंखों में देख रहा था और सुधा उसकी आंखों में। देख रही थी। और फिर वही उंगलियों को उसने सुधा के होंठों के ऊपर गोल गोल घुमाने लगा और फिर आखिर कर उसने अपनी उंगलियां उसके मुंह कर अंदर डाल दिया और सुधा अपना ही पेशाब पीने लगी वो भी अपने सगे भाई के हाथों से।

और फिर अजय ने अपनी उंगलियां निकल और चुप चाप कमरे से बाहर निकल गया ।दोनो के बीच एक शाब्द भी बात चीत भी हुई।और सुधा वही थक कर सो गई और अजय भी अपने कमरे में सो गया।दोनो को कुछ होश नहीं था बस उन्होंने ऐसा किया जैसे किसी ने दोनों पे जादू टोना कर दिया हो।अब अगली सुबह क्या बदलाव लाएगी दोनों के जीवन में। ये तो वक्त ही बताएगा।
 

vision244

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अपडेट पोस्ट कर दिया है.....पढ़िए और आनंद लिजिए...और प्लीज़ अपनी राय जरूर दीजिए...इस से प्रोत्साहन मिलता है
 

sunoanuj

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ये कहानी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव की है जिसका नाम रानीगंज है यह गांव शहर से बहुत दूर है शहर से ७५ किलोमीटर बसा हुआ ये गांव बहुत सुंदर है और यह के सारी आबादी खेती करती है गांव से शहर के लिए बस जाती है पर वो भी समय समय से जाती गांव के मैंने रोड पे सात से दस दुकान है उसमें से एक दुकान अजय की है


रानीगंज बहुत सुंदर गांव है यह चारों तरफ हरियाली है आम के बाकीचे है गांव वाले अपने में मस्त है उनको शहर से कुछ लेना देना नहीं है बस कुछ सामान चाहिए तो शहर जाते है वरना बस अपने गांव में ही रहते है सब एक दूसरे से मिलकर रहते है गांव में एक सरकारी स्कूल है जिसमें शालिनी पढ़ती है सारे अध्यापक आस पास के गांव से है बस एक या दो अध्यापक बाहर से आते है और पढ़ते है और ट्रांसफर होने पर गांव से चले जाते है शालिनी भी बाहर से आई है और एक महीने में वो गांव छोड़कर चली जाएगी जो भी अध्यापक बाहर से आते है सरकार ने उसके लिए रहने के व्यवस्था की है और इसी तरह शालिनी को भी एक मकान सरकार की तरफ से मिला हुआ है शालिनी अकेले ही रहती है उसका एक बेटा है राजेश नाम से वो शहर में तैयारी करता है और खाली छुट्टी के समय आता है शालिनी के पति ने उसको छोड़ दिया है और किसी दूसरे औरत के साथ दिल्ली में रहता है। उसका शालिनी से कोई नाता नहीं है दस साल हो गए इस बात को।


शालिनी वैसे तो गांव में हर औरत से बात करती थी और सभी औरते शालिनी की बहुत इज्ज़त करती थी पर शालिनी की सबसे जायदा बनती थी सुनीता से वो सुनीता को बहुत मानती थी और उस से बहुत बातें किया करती थी सुनीता भी शालिनी की बहुत इज्ज़त करती थी वो उसको दीदी कहकर बुलाती थी क्योंकि शालिनी उम्र में बड़ी थी सुनीता उसकी हर बात मानती थी

सुनीता अपने दोनों बच्चों के साथ खुशी खुशी रहती थी उसकी एक बहन और उसके बच्चे उसके घर से पांच किलोमीटर दूर रहते थे वो अपनी बहन से मिलने अक्सर जया करती थी और फोन पे तो वैसे ही बात हो जाती थी दोनो बहनों की। उसकी बहन और बच्चों के बारे में आप को अपडेट के आखिर में बता दूंगा।

सुनीता जायदा पढ़ी लिखी औरत नहीं थीं बस दस तक पढ़ाई की थी उसको हिंदी पढ़ना आता था वो नाचती भी बहुत अच्छा थी उसने और उसकी बेटी दोनो ने ब्यूटी पार्लर का कोर्स किया था। सुनीता बहुत ही सुशील और संस्कारी औरत थीं वो अगर चाहती तो किसी भी मर्द को बिस्तर पे लाकर अपनी शारीरिक जरूरत को पूरा कर सकती थी क्योंकि वो इतनी कामुक और सुंदर औरत थी परंतु उसने ऐसा कुछ नहीं किया बस अपने बच्चों के साथ रहती थीं हसी खुशी और अपनी शारीरिक जरूरत को दबा दिया।

सुनीता की सुंदरता की तो बात की अलग थी उसकी चूचियां उसकी ब्लाउज से बाहर आने को तरसती थी अभी भी उसकी चूचियां एकदम सुडौल और कड़क थी।क्योंकि शायद अभी तक किसी ने उसपर मेहनत नहीं की थी पर सुनीता के शरीर का सबसे सुंदर अंग उसकी गांड़ थी जो कि हर मर्द ऐसी ख्वाइश रखता था कि काश ऐसी गांड़ वाली औरत मिल जाए।सुनीता की गांड़ एकदम कड़क और उसका आकर एकदम गोल था साड़ी में तो सुनीता कहर बरसती थी। मैक्सी में उसकी गांड़ बस बाहर आने तरसती थी।कोई मर्द अगर होता तो मैक्सी उठाकर हाचक के उसको कुतिया की तरह पेलता।और हर औरत जो इतनी कामुक और सुंदर हो वो भी यही चाहती होगी और शायद सुनीता भी यही चाहती होगी पर वो समाज के नजर से डरती थी। सुनीता के बाल भी उसकी गांड़ तक आते थे जो उसकी सुन्दरता को चार चन्द लगा देते थे। जैसे सुंदर वो थीं वैसे ही सुंदर उसकी बेटी सुधा थी वो भी अपने मां पर गई थी वहीं चूचियां वही गांड़ वही नैन नक्शे सब वही थे पर सुनीता अपनी बेटी से थोड़ी से जायद सुंदर थी।

अजय भी बहुत अच्छा लड़का था।गांव वालों की नजर में वो बहुत अच्छा था जो अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाता था। अजय की एक दुकान थी गांव के मैंने रोड पे और उन लोगों के पास कुछ खेत थे जिस से वो लोग अपने घर का खर्चा चलते थे। अजय के दुकान के पास हीं सविता का घर था।जो कि गरीब थी और अजय के दुकान पे काम करती थीं।असल में सविता अजय को बहुत पसंद करती थी।सविता भी ४४ साल की थी जिसका पति मुंबई में रिक्शा चलता था।और साल में बस एक बार घर आता था।सविता की एक बेटी थी २० साल की नाम दिव्या था।वो भी अजय को बहुत चाहती थीं पर कभी अपनी दिल की बात नहीं बता पाई।सविता और अजय में शरीक संबंध थे।और सविता अजय का बहुत खयाल रखती थी।अजय भी उसके घर का खर्चा उठा लेता था कभी कभी।और सविता ईमानदार भी थी इसलिए बहुत बार अजय अपनी दुकान सविता और दिव्या के भरोसे छोड़कर किसी काम से बाहर भी चला जाता था।

अजय ने तो वैसे चुदाई की थी और सविता तो उसको शारीरिक सुख देती थीं।पर अजय अपनी मां सुनीता और बहन सुधा का दीवाना था।दिन रात बस अपनी मां के सपने देखा करता था।पर कभी हिम्मत नहीं हुई अपने मन की बात सुनीता से कहने की।वो अपनी मां की कच्ची चुराकर उसमें अपना माल गिरता था ।अपने मां की कच्ची को खूब सुगंता था।उसको अपने जीभ से कब चाटता था।और फिर अपने अलमीरा में छुपा देता था।

अजय के गांव में कुछ मकान कच्चे थे और कुछ पक्के। अजय का घर दो मंजिल का था।नीचे एक बड़ा हॉल था लैट्रिन और बाथरूम किचेन था।और नीचे दो रूम थे एक में सुनीता सोती थी और दूसरे में सुधा ।ऊपर के मंजिल में भी रूम थे।एक में अजय रहता था और दूसरा खाली पड़ा था।उसके ऊपर छत थी और छत पे भी एक मचान बना हुआ था जिसमें खाली ऊपर से ढाका हुआ था और चारों तरफ से खुला हुआ था। अजय का घर बहुत ऊंचा था छत पर कोई क्या कर रहा है कोई नहीं बता सकता था क्योंकि और सबके मकान छोटे थे और बड़े मकान अजय के घर से बहुत दूर थे। घर के आगे के बड़ा गलियार था और उसके आगे भैंस के लिए घर था।चारों तरफ से बॉउंड्री थी।

अजय सुबह उठ कर कसरत करके अपने दुकान चला जाता था।और दोपहर को खाना खाने घर आ जाया करता था।उसके पास स्कूटी भी थी जिसका वो घर आने जाने के लिए इस्तेमाल किया करता था।कभी कभी सुनीता ही दुकान चली जाया करतीं थी खाना लेकर । और फिर शाम को ७ बजे तक अजय दुकान बंद करके घर आ जाया करता था।वैसे भी गांव में सब आठ या नो बजे तक सो जाया करते हैं। सुनीता भी सुबह उठकर नाश्ता बनती फिर नहाती और दोपहर में सो जाया करती और चार बजे घांस काटने निकल जाती सुधा के साथ और गांव की और भी औरते रहती साथ में घांस काटने के लिए। सुधा भी घर के कम में सुनीता की मदद करती।और तीनों लोगों हसी खुशी रहते थे।
बहुत ही अच्छी शुरुआत की है आपने !
लिखते रहिए मित्र !! 👏🏻👏🏻👏🏻
 
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