Disclaimer :-"This is a work of fiction. Any names or characters, businesses or places, events or incidents, are fictitious. Any resemblance to actual persons, living or dead, or actual events is purely coincidental."
रमा, 46 साल की एक औरत, जिसके शरीर का हर हिस्सा मानो कामदेव की कारीगरी से तराशा गया था। उसके तरबूज जैसे भारी कूल्हे और मोटे चूचे टाइट ब्लाउज में ऐसे कैद थे कि हर साँस के साथ बाहर निकलने को बेताब लगते थे। उसका ब्लाउज इतना टाइट था कि उसकी गहरी दरार और उभरे हुए निप्पल साफ नजर आते थे, और पसीने से भीगा हुआ कपड़ा उसके चूचों को और उभार देता था। उसके होंठ, लाल और रसीले, किसी लंड को चूसने के बाद और बड़े और कामुक हो गए थे—मानो हर मर्द को अपनी ओर बुला रहे हों। जब वो चलती थी, तो उसकी टाइट साड़ी में उसकी गांड का मटकना किसी नृत्य से कम नहीं था—एक कूल्हा ऊपर, एक नीचे, और उसकी चिकनी कमर का हर मोड़ देखने वाले को मदहोश कर देता था। गांव में उसकी चर्चा हर गली-चौराहे पर थी। मेरा दोस्त राहुल, जो रमा की इन कहानियों से वाकिफ था, हमेशा उसकी तारीफ में दो शब्द जरूर कहता था।
एक दिन रमा को मेरे पास मुंबई आना था, जहाँ मैं रहता हूँ। राहुल ने मौका देखकर कहा, "छोटू, तू फिक्र मत कर, मैं तेरी माँ को ट्रेन से ले आता हूँ।" मैंने हाँ कह दी, बेखबर इस बात से कि वो ट्रेन का सफर रमा और राहुल के लिए एक जंगली रात में बदलने वाला था।
ट्रेन शाम ढलते ही गांव से निकली। रमा ने अपनी लाल साड़ी संभाली और राहुल के सामने वाली बर्थ पर लेट गई। उसकी साड़ी का पल्लू हल्का सा सरक गया था, और उसकी मोटी गांड राहुल की ओर उभरी हुई थी। ट्रेन की हल्की रोशनी में उसकी चिकनी कमर, गहरी नाभि, और पसीने से चमकती जांघें साफ दिख रही थीं। राहुल की नजरें उस पर टिक गईं। उसने चुपचाप रमा को देखा, और उसका मन बेकाबू होने लगा। उसने बात शुरू की, "आंटी, आप तो गांव की शान हो। ये साड़ी में आपका जलवा देखकर तो कोई भी पागल हो जाए।" रमा ने नींद में हल्की सी मुस्कान दी, अपनी गांड को और बाहर की ओर ठेला, और आँखें बंद रखते हुए बोली, "राहुल, बस अब सोने दे।" लेकिन उसकी आवाज में एक नशीली कशिश थी, जो राहुल को और उकसा रही थी।
रात गहराने लगी। ट्रेन की खड़खड़ाहट और बाहर की ठंडी हवा के बीच राहुल का सब्र टूट गया। उसने धीरे से अपनी बर्थ से उठकर रमा के पास आया। उसने पहले रमा की साड़ी को ऊपर सरकाया। उसकी मोटी, गर्म जांघें नजर आईं, और उसकी काली चड्डी के ऊपर से उसकी चूत की उभरी हुई शक्ल साफ दिख रही थी। राहुल ने अपना हाथ उसकी गांड पर रखा और धीरे-धीरे सहलाने लगा। रमा की नींद में हल्की सी सिसकी निकली, लेकिन उसने विरोध नहीं किया। उसकी साँसें तेज होने लगीं, और उसने अपनी टांगें हल्की सी चौड़ी कर दीं, मानो राहुल को मौन इजाजत दे रही हो।
राहुल ने मौका नहीं छोड़ा। उसने रमा की चड्डी को नीचे खींचा और उसकी गीली चूत को उंगलियों से छुआ। रमा की चूत पहले से गर्म और चिकनी थी, और राहुल की उंगलियाँ अंदर-बाहर होने लगीं। "उम्म्म..." रमा ने नींद में एक कामुक सिसकी ली, और उसकी गांड हल्के से हिलने लगी। राहुल ने अपनी पैंट खोली, और उसका तना हुआ लंड बाहर आ गया—लंबा, मोटा, और तैयार। उसने पहले अपने लंड को रमा की गांड की दरार में रगड़ा, और फिर धीरे से उसकी चूत के मुँह पर रखा। रमा की चूत गीली थी, और एक हल्के धक्के में लंड अंदर चला गया। "आह्ह..." रमा की मुँह से एक जोरदार सिसकी निकली, लेकिन उसने आँखें बंद रखीं, नींद का नाटक जारी रखते हुए।
राहुल ने धीरे-धीरे धक्के शुरू किए। हर धक्के के साथ रमा की मोटी गांड लहराती थी, और उसकी चूत लंड को और गहराई तक खींच रही थी। "उम्म्म... आह्ह..." रमा की सिसकियाँ तेज होने लगीं। राहुल ने उसकी साड़ी को और ऊपर उठाया, और उसकी कमर को पकड़कर जोर-जोर से चोदना शुरू कर दिया। ट्रेन की हल्की हलचल और रमा की सिसकियों का मेल एक अजीब सा संगीत बना रहा था। कुछ देर बाद राहुल ने रमा को पलटा। उसकी टांगें चौड़ी कीं, और अब सामने से उसकी चूत में लंड पेलना शुरू किया। रमा का ब्लाउज फटने की कगार पर था, और उसके चूचे बाहर निकल आए। राहुल ने उन्हें जोर-जोर से दबाया, निप्पलों को मसला, और साथ ही धक्के मारता रहा। "आह्ह... राहुल... धीरे..." रमा ने पहली बार कुछ बोला, लेकिन उसकी आवाज में शिकायत कम और मस्ती ज्यादा थी।
राहुल ने रफ्तार और बढ़ा दी। उसका लंड रमा की चूत को चीरता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था, और हर धक्के के साथ रमा की चूत से गीलेपन की आवाजें आने लगीं। "छप... छप..." ट्रेन की बर्थ हिल रही थी, और रमा की सिसकियाँ अब बेकाबू हो गई थीं— "आह्ह... ओह्ह... राहुल..."। फिर राहुल ने रमा को घुमाया और उसकी गांड की ओर ध्यान दिया। उसने अपने लंड को रमा की टाइट गांड के छेद पर रखा। पहले तो गांड ने विरोध किया, लेकिन राहुल ने धीरे से दबाव डाला, और लंड अंदर चला गया। रमा ने दर्द और मजे से भरी एक लंबी "आह्ह्ह" निकाली। राहुल ने उसकी गांड को जोर-जोर से चोदा, और हर धक्के के साथ रमा की मोटी गांड लहराती रही।
आखिरकार, राहुल का जोश चरम पर पहुँच गया। उसने पहले रमा की चूत में अपने लंड को गहरे तक ठूँसा और अपना गाढ़ा, गर्म वीर्य अंदर छोड़ दिया। वीर्य इतना था कि रमा की चूत भर गई, और बाहर टपकने लगा। फिर उसने लंड निकाला और बाकी का वीर्य रमा की गांड में डाल दिया। रमा की चूत और गांड दोनों वीर्य से लबालब हो गए। उसने चुपचाप अपनी चड्डी ऊपर की, लेकिन वीर्य इतना ज्यादा था कि उसकी चड्डी पूरी तरह गीली हो गई, और उसकी जांघों तक बहने लगा। ट्रेन की ठंडी हवा में दोनों थककर लेट गए, और रमा ने अपनी साड़ी ठीक की।
सुबह ट्रेन मुंबई पहुँची। मैं स्टेशन पर माँ और राहुल को लेने गया। रमा की चाल में हल्की सी लड़खड़ाहट थी, और उसकी साड़ी के नीचे से गीले निशान साफ दिख रहे थे। घर पहुँचते ही रमा की चड्डी से वीर्य टपकने लगा और फर्श पर गिर गया। उसकी चूत से सफेद धार बह रही थी, और उसकी साड़ी का किनारा भीग गया था। मैं, छोटू, ये सब देखकर समझ गया कि सफर में माँ की चुदाई हुई है—वो भी जबरदस्त तरीके से। राहुल के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, और माँ की नजरें झुकी हुई थीं। मैं चुप रहा। मन में गुस्सा था, शर्मिंदगी थी, लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा। मैंने सोच लिया—सही वक्त का इंतजार करूँगा.......
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