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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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kamdev99008

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मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक

प्रिय मित्रो मेंने आप सब की बहुत सी कहानियाँ पढ़ीं और बहुत सारी कहानियाँ आपके साथ पढ़ीं... हर किसी के मन मे एक कहानी होती है..... ज़िंदगी की कहानी

लेकिन अपने मन की बात को शब्दों मे उतारना सभी के बस की बात नहीं... मेरे भी नहीं... अब आप सब के प्रोत्साहन और प्रेरणा से में अपनी कहानी शुरू करने जा रहा हूँ.... ये कहानी आपको जीवन के रास्ते पर पड़ने वाले सभी मोड़ों से होते हुये मंजिल तक लेकर जाने वाली यात्रा की तरह लगेगी.... कहीं आपको अपनी सी लगेगी तो कहीं पराई सी ..... लेकिन आपके दिल तक पहुंचे.... यही मेरा प्रयास रहेगा.....

साथ बने रहें

 
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मोक्ष
मोक्ष वास्तव में हमारी आत्मसंतुष्टि है... जब हमारी कामनाएं आनंद की अनुभूति करने लगती हैं इसको हम अपनी सुविधानुसार आनंद, सुख, संतुष्टि या समाधि भी कहते हैं. मोक्ष सम्पूर्ण तृष्णाओं के भोग अर्थात सम्पूर्ण भोग या सम्भोग से ही प्राप्य है.
 
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त्याग

मोक्ष की एक नकारात्मक अवधारणा त्याग है अर्थात समस्त तृष्णाओं का त्याग कर देना इसे भी कुछ व्यक्ति मोक्ष ही मानते हैं किन्तु ऐसा सत्य नहीं है.... त्याग एक भ्रम है जो आपकी नियति को नकारात्मक निर्धारित करता है. आपने जिस वस्तु को पूर्णतः प्राप्त ही नहीं किया उसका त्याग कैसे कर पायेंगे. त्याग केवल उसी का हो सकता है जिसको अपने प्राप्त कर लिया हो...जिस पर आपका अधिकार हो...जिस पर आपका स्वामित्व हो...
 
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तृष्णा

अनादि काल से संसार के जीव विभिन्न प्रकार की तृष्णाओं में जीवन जीते हुए तुष्टि की कामना करते रहे हैं और करते रहेंगे. संसार में 5 रूप में तृष्णा को परिभाषित किया गया है :-

१- काम

२- क्रोध

३- मद

४- लोभ

५- मोह

यही पांचों तृष्णायें जीवन को जीने के लिए प्रोत्साहित करती हैं और सभी जीवों को परस्पर सामंजस्य से रहने को प्रोत्साहित करती हैं क्योंकि सभी को अपनी तृष्णा की पूर्ति के लिए अन्य के सहयोग की लालसा ही समाज का निर्माण करती है.
 
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भय

इसके साथ ही एक अन्य शक्ति भी जो इन सब को नियंत्रित करती है :- भय

भय तृष्णा की पूर्ति की मानसिकता और प्रयासों को विकृत और निकृष्ट होने से रोकता है जिससे किसी एक या अधिक के हित साधने में सार्वजनिक अहित न हो.
 
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धर्म

तृष्णा के भोग पर नियंत्रण करने वाला भय इसे कभी सम्पूर्ण रूप से भोगने नहीं देता इस बाधा को दूर करने के लिए चिंतन-मनन-अध्ययन के द्वारा ज्ञानी-विज्ञानियों जिन्हें ऋषि कहा गया, ने एक प्रकृति आधारित व्यवस्था का निर्माण किया जिसे हम धर्म कहते हैं. साधारणतः हम धर्म को पूजन पद्धति, पंथ, संप्रदाय, मजहब या रिलिजन समझते हैं लेकिन "धर्म" का अभिप्राय व्यवस्था या जीवन पद्धति धारण करने से है. अर्थात भय मुक्त व्यवस्था ही धर्म है.
 
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भगवन या भगवान्

भगवान् ही हैं जो समस्त सृष्टि को संचालित करते हैं, लेकिन भगवान क्या हैं... ???

भगवान् = भ + ग + व् + अ + न अर्थात पंचवर्ण या पंचतत्वो का संयोजन

भ = भूमि

ग = गगन

व = वायु

अ = अग्नि

न = नीर

इन्ही पंचतत्वों से सम्पूर्ण सृष्टि का सञ्चालन होता है
 
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तो मित्रो इन्हीं सब जीवन के पहलुओं को इस कथा के माध्यम से आप सबके सामने रखने का प्रयास करूंगा...... इस कहानी के पात्रों का परिचय उनके कहानी मे प्रवेश और उनके व्यवहार व कर्मों द्वारा होगा.... कोई अन्य परिचय नहीं दिया जा सकेगा

अपडेट का इंडेक्स भी नहीं हो सकेगा.... क्योंकि केवल अपडेट पढ़ने से आप केवल कहानी को ही पढ़ पाएंगे लेकिन अनवरत रूप से सभी पाठकों के कमेंट्स के साथ पढ़ने से कहानी के विभिन्न पहलुओं को समझने में आपको आसानी रहेगी
 
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अनुक्रमणिका
कहानी के पात्रों का परिचय ....
प्रथम खंड : जीने की राह
द्वितीय खंड : रास्ते और मंज़िलें (पूर्वार्ध)
अध्याय 1अध्याय 2अध्याय 3अध्याय 4अध्याय 5अध्याय 6अध्याय 7अध्याय 8अध्याय 9अध्याय 10
अध्याय 11अध्याय 12अध्याय 13अध्याय 14अध्याय 15अध्याय 16अध्याय 17अध्याय 18अध्याय 19अध्याय 20
अध्याय 21अध्याय 22अध्याय 23अध्याय 24अध्याय 25अध्याय 26अध्याय 27अध्याय 28अध्याय 29अध्याय 30
अध्याय 31अध्याय 32अध्याय 33अध्याय 34अध्याय 35अध्याय 36अध्याय 37अध्याय 38अध्याय 39अध्याय 40
अध्याय 41अध्याय 42अध्याय 43अध्याय 44अध्याय 45अध्याय 46अध्याय 47अध्याय 48अध्याय 49अध्याय 50
द्वितीय खंड : रास्ते और मंज़िलें (उत्तरार्ध)
अध्याय 1अध्याय 2अध्याय 3अध्याय 4अध्याय 5अध्याय 6अध्याय 7अध्याय 8अध्याय 9अध्याय 10
अध्याय 11अध्याय 12अध्याय 13अध्याय 14अध्याय 15अध्याय 16अध्याय 17अध्याय 18अध्याय 19अध्याय 20
अध्याय 21अध्याय 22अध्याय 23अध्याय 24अध्याय 25अध्याय 26अध्याय 27अध्याय 28अध्याय 29अध्याय 30
अध्याय 31अध्याय 32अध्याय 33अध्याय 34अध्याय 35अध्याय 36अध्याय 37अध्याय 38अध्याय 39अध्याय 40
अध्याय 41अध्याय 42अध्याय 43अध्याय 44अध्याय 45अध्याय 46अध्याय 47अध्याय 48अध्याय 49अध्याय 50
 
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