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Incest ये तो सोचा न था…

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ये तो सोचा न था


(दोस्तों,
यह मेरी पहली इरोटिक कहानी है.
अपनी प्रतिक्रिया दीजिये. ताकि मुझे मार्गदर्शन मिले और मैं बेहतर कहानी लिख सकूं.

-राकेश बक्षी)


ये तो सोचा न था…अनुक्रमणिका



प्रकरण - ४१प्रकरण - ४२प्रकरण - ४३प्रकरण - ४४
प्रकरण - ४५
















१ – ये तो सोचा था

शालिनी और जगदीश दोनों के लिए यह एक ऑक्वर्ड परिस्थिति थी. शायद शालिनी के लिए अधिक. क्योंकि जगदीश शालिनी का जेठ था. और मुंबई से पूना तक उन दोनों को एक ही कार में जाना पड़े ऐसा संजोग खड़ा हुआ था.
वैसे तो दो कार मुंबई से पूना जाने वाली थी. दोनों भाई अपनी अपनी कार में अपनी पत्नियों के साथ पूना उनके फैमिली फ्रेंड के घर शादी में पहुँच रहे थे. शनि वार शाम को दोनों भाई पूना के लिए निकलने वाले थे और रात नौ-दस बजे तक पहुँच जाने वाले थे. जगदीश शाम को चार बजे तक घर पहुंचेगा और पांच बजे दोनों कार पूना के लिए रवाना होगी यह प्लान था.
शनिवार को जगदीश के छोटे भाई जुगल को छुट्टी होती थी. सो वो घर पर ही था. और जगदीश की पत्नी चांदनी अपनी देवरानी शालिनी को मेहंदी लगाने की तैयारी कर रही थी क्योंकि चांदनी मेहंदी लगाने में एक्सपर्ट थी.
पर शालिनी को लगा की सुबह से उसकी जेठानी चांदनी कुछ उदास है. पर क्या वजह हो सकती है उदासी की? शालिनी ने बहुत सोचा पर वो ताड़ नहीं पाई. पूना में जिस फेमिली फ्रेंड के यहाँ शादी थी वो लोग करीबी थे. उनके यहां शादी में जाने का उन चारों लोगों को उत्साह था. और कैसे कब जाना यह भी कई दिनों से तय था फिर अब जाने के दिन अचानक चांदनी को क्या हुआ?

सरल और निश्छल स्वभाव की शालिनी ने हार कर चांदनी से पूछ लेना ही तय किया. जब चांदनी शालिनी के हाथों में मेहंदी लगाने आई तब शालिनी ने कहा ‘दीदी, मैं मेहंदी तभी लगवाउंगी जब तुम अपनी उदासी की वजह बताओ. सुबह से तुम्हारा चेहरा कितना फीका लग रहा है!’
चांदनी ने तुरंत जवाब दिया ‘कोई बड़ी बात नहीं पर मुझे मेरे पिताजी की फ़िक्र हो रही है. रात को माँ का फोन आया था की उन की तबीयत कुछ ठीक नहीं.’
शालिनी यह सुन चिंता करने लगी. चांदनी के माँ- पिताजी न्यू बॉम्बे रहते थे. जो की मुंबई से पूना जाते वक्त रास्ते में पड़ता था. शालिनी ने कहा ‘अरे दी, इतना क्या मन भारी कर रही हो ? पूना जाते जाते हम सब आप के पिताजी को मिलते हुए जाएंगे, रास्ते में ही तो घर है!’
चांदनी ने फीकी मुस्कान के साथ कहा की ‘तुम्हारे जेठ ने भी यही कहा है और शाम को उनसे मिलते हुए ही जाना है यह पता है पर दिल तो आखिर दिल है- पिताजी के बारे में सोच कर आँखे भर आती है - पर कोई बात नहीं, शाम तक की ही तो बात है!’
शालिनी ने कुछ सोचा और खड़ी हो कर बोली ‘मैं आई एक मिनिट.’
‘अरे पर मेहंदी लगानी है न ?’
‘बस एक मिनिट… ‘ कह कर शालिनी तेजी से गई. चांदनी महेंदी लिए राह देखती रही और बजाय एक मिनिट के पांच मिनिट के बाद शालिनी आई अपने पति जुगल के साथ. शालिनी को देख कर चांदनी ने कहा ‘चल अब कोई टाइम पास नहीं, बैठ भी जा… मैं मेहंदी लगाऊंगी कब और वो सूखेगी कब! ‘

‘आप मेहंदी नहीं लगाओगी दी, आप जुगल के साथ नवी मुंबई के लिए निकल जाओ… ‘
‘क्या !’ चांदनी ने आश्चर्य से पूछा.
जुगल ने कहा ‘हाँ भाभी मेरी कार में नवी मुंबई चलते है. अभी दोपहर के दो बजे है. भैया को आते आते चार बज जाएंगे, फिर हम सब पांच बजे निकलेंगे और नवी मुंबई तक पहुंचने में साढ़े छे - सात बज जाएंगे, फिर हमें पूना पहुँचने की जल्दी होगी तो आप के पिताजी के पास आप सुकून से दो पल बैठ भी नहीं पाओगो…’
यह सुन कर चांदनी सोच में पड़ गई. शालिनी ने आगे कहा ‘बजाय इस के आप अभी जुगल के साथ नवी मुंबई पहुंचो और जेठ जी आएंगे तब मैं उन के साथ आ जाउंगी… आप को मा - पिताजी के साथ रुकने को कम से कम तीन घंटे मिल जाएंगे.’

‘अरे पर निकलने से पहले यहां कितने काम बाकी है, ऐसे कैसे निकल जाऊं !’ चांदनी ने कहना चाहा पर उस की बात को आधे से काट कर शालिनी ने कहा ‘पता है क्या क्या काम है- हम दोनों की साडी का बॉर्डर लगवाना है, साढ़े तीन बजे पूना के लिए शादी में जो गिफ्ट ले जानी है उसकी डिलीवरी घर पर होगी और चार बजे इलेक्ट्रीशियन आएगा उस से हॉल का फेन चेंज करवाना है पर ये सभी काम तो मैं भी निपटा सकती हूँ न ? इसी लिए तो मैं रुक जाती हूँ और जेठ जी के साथ आ जाउंगी, आप तो अपने माँ - पिताजी से मिलने निकल जाइए!’
‘और तेरी मेहंदी? शादी में तू की बिना मेहंदी के आएगी?’
‘बीसियों ब्यूटी पार्लर है दी अपने शहर में, मेहंदी कोई इस्यु नहीं पर पिताजी से मिलना ज्यादा जरूरी है.’
बात सही थी. चांदनी ने फोन पर अपने पति जगदीश की राय ली. उसे भी यह बात ठीक लगी. उसने कहा ‘एकदम प्रेक्टिकल बात है. तुम लोग चलो, मैं बहु को ले कर पहुंचता हूँ, नवी मुंबई से फिर चारों साथ में निकल कर पूना जाएंगे.’
और चांदनी जुगल के साथ अपने माँ - पिताजी को मिलने निकल गई.

शाम को शालिनी ने अपने सारे काम निपटा दिए. साडी - हॉल में फेन - गिफ्ट की डिलीवरी - हाथों में महेंदी…. सब काम ठीक से किये. और सफर के लिए एक अच्छा सा पंजाबी सूट पहन कर तैयार हो गई.
जगदीश भी चार बजे पहुंच गया. और साढ़े चार बजे तो शालिनी और जगदीश घर से निकल कर कार की और बढ़ने लगे.

पर-

शालिनी ने बोल तो दिया था की वो जेठजी के साथ नवी मुंबई आ जायेगी और जगदीश ने भी चांदनी से कह दिया था की वो बहु को ले के नवी मुंबई पहुँच जाएगा पर पर जब कार में बैठने की बारी आई तब शालिनी और जगदीश दोनों की हालत अजीब हो गई.

हालत अजीब होने की वजह थी जगदीश - जुगल के घर का माहौल.

शालिनी इस घर में ब्याह कर चार साल पहले आई थी. पर इन चार सालों में उसका और जगदीश का कभी भी कोई बातचीत का व्यवहार भी अकेले में नहीं हुआ था. बड़ो को आदर सम्मान देते है इस परंपरा के चलते शालिनी अपने जेठ को बड़ा भाई मानती थी और उन की इज्जत करती थी पर जगदीश को और शालिनी को एक दूजे से कोई काम कभी पड़ा ही नहीं था. कोई सूरत ही नहीं थी की उनको एक दूसरे से कोई बात अलग से करनी पड़े. बड़ी बहु होने के नाते चांदनी के सर घर का सारा जिम्मा था और छोटा होने के नाते जुगल घर के बाकी काम की खाना पूर्ति कर लेता था. और शालिनी बहु होने के नाते हमेंशा अपने जेठ से एक सोशियल डिस्टंस में ही रही थी.

जगदीश भी एक संस्कारी और संयम शील इंसान था. उसे शालिनी का कोई काम कभी पड़ा ही नहीं था.

ऐसा नहीं की जगदीश ने शालिनी को कभी नोटिस ही नहीं किया हो. कई बार अनजाने में जगदीश नई नजर शालिनी के स्तन पर चली जाती. हालांकि वो तुरंत अपनी नजरे फेर लेता इस ख़याल के साथ के शालिनी के स्तन बड़े है. कम से कम अपनी पत्नी चांदनी से तो बड़े. पर इस दिशा में वो आगे नहीं सोचता. बहु के बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए यह वो समझता था.

ऐसा भी नहीं की दोनों में आपस में कभी बात नहीं होती थी पर हमेशा या चांदनी मौजूद होती थी या जुगल. अकेले में कभी नहीं.

घर से निकल कर कार तक जाते हुए जगदीश को लगा की सोसायटी का वॉचमेन शालिनी को अजीब तरह से घूर रहा है. उसने वॉचमेन की नजरो का पीछा किया तो वो शालिनी की छाती को घूर रहा था. शालिनी ने सफर के लिए एक घरेलु किसम का पीला सलवार सूट पहना था और दुपट्टा था पर वो उसने गले के इतने करीब से पीठ की और मोड़ा हुआ था की उसके स्तन ढंक नहीं रहे थे. जगदीश को लगा की शालिनी ने इस बात का ख़याल रखना चाहिए. पर इस पर क्या हो सकता है? शालिनी को यह कहना की दुपट्टा ठीक से ओढो तो बड़ा अजीब लगेगा. और देखनेवालों को भी कुछ कहा नहीं जा सकता. जगदीश ने सर को एक झटका दे कर ऐसे ख्यालो को हटाने की जैसे कोशिश की. जब दोनों कार तक पहुंचे तब तक दोनों के मन में एक ही सवाल था : शालिनी ने पीछे की सीट पर बैठना चाहिए या आगे जगदीश के बगल में?

अगर शालिनी पीछे बैठेगी तो न चाहते हुए भी जगदीश ड्राइवर हो और शालिनी कार मालकिन ऐसा चित्र बनेगा.
अगर शालिनी आगे जगदीश के बगल में बैठेगी तो क्या जेठ और बहु साथ साथ बैठ कर कार में जाएंगे?

अब ?

न तो जगदीश को सूझ रहा था की शालिनी ने कहाँ बैठना चाहिए न तो उसे शालिनी से इस बारे में बात करने का साहस हो रहा था.
यही हाल शालिनी का था !


(१ – ये
तो सोचा थासमाप्त, क्रमश:)
 
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(२ - ये तो सोचा था)

[(१ – ये तो सोचा थामें आपने पढ़ा :जब दोनों कार तक पहुंचे तब तक दोनों के मन में एक ही सवाल था : शालिनी ने पीछे की सीट पर बैठना चाहिए या आगे जगदीश के बगल में?
अगर शालिनी पीछे बैठेगी तो न चाहते हुए भी जगदीश ड्राइवर हो और शालिनी कार मालकिन ऐसा चित्र बनेगा.
अगर शालिनी आगे जगदीश के बगल में बैठेगी तो क्या जेठ और बहु साथ साथ बैठ कर कार में जाएंगे?
अब ?
न तो जगदीश को सूझ रहा था की शालिनी ने कहाँ बैठना चाहिए न तो उसे शालिनी से इस बारे में बात करने का साहस हो रहा था.
यही हाल शालिनी का था !
]


पर उन दोनों की उलझन का तोड़ अपने आप आ गया जब पूना, शादी में ले जाने का गिफ्ट का पैकेट इतना बड़ा साबित हुआ की वो डिकी में जा नहीं पाया और मजबूरन उसे कार की पीछे की सीट पर रखना पड़ा! अब शालिनी चाहे तब भी पीछे नहीं बैठ सकती थी!

इस गिफ्ट पैकेट की वजह से जब कोई चॉइस ही नहीं रही और शालिनी को आगे, जगदीश के बगल में बैठना पड़ा तब दोनों ने ही अपने मन में सुकून की सांस ली. इस लिए नहीं की दोनों बगल में बैठना चाहते थे पर इस लिए क्योंकि दोनों यह कभी तय नहीं कर पाते की शालिनी को कहाँ बैठना चाहिए. यह फैसला लेना इस लिए कठिन था क्योंकि की दोनों ही विकल्प दोनों ही व्यक्ति के लिए असहज थे.

वैसे तो यह बहुत छोटी बात है पर गौरतलब बात यही है की जगदीश और शालिनी एक दूसरे की बहुत इज्जत करते है और एक दूसरे को अनकम्फर्टेबल सिच्युएशन में देख नहीं सकते थे.

खेर, कार चालु करते वक्त जगदीश ने सोचा : बस नवी मुंबई तक की बात है. यह सफर किसी तरह कट जाए, फिर शालिनी जुगल की कार में चली जायेगी और चांदनी इस कार में आ जाएगी…

शालिनी भी ऐसा ही कुछ सोच रही थी की नवी मुंबई तक लाज और परंपरा के लिहाज में चुपचाप बूत की तरह रहना होगा. फिर जुगल के साथ होने पर नॉर्मली सफर हो पाएगी.

यहाँ तक सब बिल्कुल ठीक था.

लेकिन…

***

कार मुंबई के ट्राफिक को चीरते हुए हाइवे की और जाने लगी. पर हाइवे पर पहुँचते ही दोनों हाइवे की स्थिति देख दांग रह गए. मेट्रो ट्रेन का काम चल रहा था सो कई जगह पर हाइवे पर खुदाई हो रही थी सो ट्राफिक बहुत जाम था.

‘ऐसे ट्राफिक में तो हमें नवी मुंबई पहुंचने में ही तीन घंटे लग जाएंगे!’ जगदीश ने मायूसी से कहा.

‘जी, मैं जुगल को बता देती हूँ की ट्रैफिक बहुत है… वो लोग राह देख रहे होंगे.’

कहते हुए शालिनी ने अपना मोबाइल डायल किया. पर जुगल का फोन बिज़ी आ रहा था.

काफी ट्राई करने के बाद भी जब जुगल का फोन नहीं लगा तब शालिनी ने चांदनी को फोन लगाने की सोची पर तभी जगदीश का फोन बजा. जगदीश ने देखा तो चांदनी का फोन था. जगदीश ड्राइव कर रहा था इस लिए उसने शालिनी को फोन उठाने कहा.

शालिनी ने फोन उठाया तब चांदनी ने कहा ‘आप लोग कब तक पहुंचोगे यहां मेरे मायके?’

शालिनी ने कहा ‘दी, यहां पर बहुत ट्रैफिक है, कुछ कह नहीं सकते.’

चांदनी ने कहा ‘एक प्रॉब्लम हुई है.’

‘आपके बाबूजी ठीक तो है?’ शालिनी ने चिंतित हो फोन स्पीकर पर रखते हुए पूछा.

‘बाबूजी एकदम ठीक है, प्रॉब्लम पूना में हुई है. दुल्हन को मेहंदी लगाने वाली का पता नहीं और आखिरी मौके पर उनको कोई दुल्हन की मेहंदी लगाने वाली एक्सपर्ट मिल नहीं रही.’

‘तो अब?’ शालिनी ने पूछा.

‘तो हम लोग तुम्हारी राह देख रहे है, मुझे अब दुल्हन की मेहंदी लगानी है…पूना जल्द पहुंचना होगा.’

‘पर यहाँ तो ट्रैफिक का सैलाब है चांदनी, हम को काफी समय लगेगा.’ जगदीश ने ड्राइव करते हुए कहा.

‘तो मैं और जुगल निकल जाये पूना ? आप लोग आइए पीछे ?’ चांदनी ने पूछा.

जगदीश और शालिनी ने एक दूसरे को देखा. कोई कुछ बोल नहीं पाया.

‘हैल्लो? जगदीश ? हैल्लो...'

‘हाँ चांदनी…’

‘मैं कह रही हूँ पूना पहुंचना होगा जितना हो सके उतना जल्दी…’

‘तो क्या करें अब?’ उलझन के साथ शालिनी की और देखते हुए जगदीश ने कहा. शालिनी भी इस स्थिति से हैरान हो गई थी.

‘ठीक है चांदनी तुम और जुगल पूना के लिए निकल जाओ.’

शालिनी ने चौंक कर जगदीश की और देखा. चांदनी ने कहा ‘ हैलो शालिनी?’

‘हाँ दी?’

‘तुम जगदीश के साथ आ जाओ पूना, मुझे निकलना होगा - ठीक है?’

‘जी दी, मैंने सुना सब.प्लीज़ जुगल को दीजिये बात करनी है.’

‘हाँ शालिनी?’ जुगल लाइन पर आया.

‘क्या बोलूं मैं अब !’ शालिनी को कुछ सुझा नहीं.

‘परेशानी की कोई बात नहीं, भैया अच्छे ड्राइवर है. आप लोग आइए मैं भाभी को ले कर निकल जाता हूँ. ओके?’

‘जी.…’ शालिनी ने कहा.

फोन कट गया. शालिनी ने आँखे मूंद ली. इस तरह की सफर के लिए मानसिक रूप से बिल्कुल तैयार नहीं थी.

पेशोपेश में तो जगदीश भी था.

पर किसी के पास कहाँ कोई चॉइस थी?

वो चुपचाप गाडी ड्राइव करता रहा. शालिनी गुमसुम हो कर बेमतलब बाहर देखती रही.

करीब दस मिनिट के बाद जगदीश को ख़याल आया की शालिनी कितना अजीब महसूस करती होगी. उसने कहा ‘ बहु…’

शालिनी ने जगदीश की और देखा. जगदीश ने कहा.

‘हम हालत के हाथो फंस गए है. पर तुम जी छोटा न करो. यह ट्रैफिक हल्का होते मैं फटाफट ड्राइव कर के गाड़ी पूना पहुंचा दूंगा.’

अपने जेठ को यूँ तसल्ली देते देख शालिनी को परेशानी में भी हंसी आ गई. वो बोली ‘जी भैया, कोई बात नहीं यह सब अचानक हो गया इस लिए मैं परेशान हो गई.’

‘परेशान तो मैं भी हूँ. हम लोग इतना समय कभी अकेले नहीं रहे और अब अचानक इतना लम्बा सफर! पर तुम फ़िक्र मत करो. आँखे मूंद कर सो जाओ. तुम मेरी.. मतलब एक तरह से मेरी बेटी हो…’ जगदीश को सूझ नहीं रहा था की शालिनी को सहज महसूस कराने वो क्या कहे.

जगदीश की बात से शालिनी भावुक हो गई. ‘थेंक्स भैय्या.’ इतना ही कह पाई.

जगदीश मन ही मन ट्रैफिक को कोसते हुए गाड़ी चलाता रहा.

कुछ देर में शालिनी ने आँखे मूंद ली. जगदीश ने सोचा अब शालिनी की आँख खुले इससे पहले पूना आ जाए तो कितना अच्छा !’

हाई वे पर कार चलाते हुए बगल की कार वाले ने जगदीश को उसकी कार का साइड मिरर टेढ़ा हो गया है यह इशारा किया. जगदीश साइड मिरर सीधा करने लगा. तब उसे मिरर में सोइ हुई शालिनी दिखी. सहसा उसकी बड़ी छाती दिखाई दी. शालिनी का दुपट्टा अभी भी स्तनों को ढांक नहीं रहा था. ऊपर की और मुड़ा हुआ था.

जगदीश को अजीब लगा. उसने ड्राइविंग पर तवज्जो दिया. पर खयालो को कैसे रोके? शालिनी की छाती को एक बार फिर उसने साइड मिरर से निहारा. फिर तुरंत खुद को कोसा : अभी अभी उसे बेटी कहा और अब यूँ छाती देखना क्या अच्छी बात है?

उसने शालिनी के सारे ख़याल हटा कर ड्राइविंग में खुद को जोत दिया.

***

(२ - ये तो सोचा न था… समाप्त, क्रमश:)

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- ये तो सोचा था

[(- ये तो सोचा न था… में आपने पढ़ा :जगदीश साइड मिरर सीधा करने लगा. तब उसे मिरर में सोइ हुई शालिनी दिखी. सहसा उसकी बड़ी छाती दिखाई दी. शालिनी का दुपट्टा अभी भी स्तनों को ढाक नहीं रहा था. ऊपर की और मुड़ा हुआ था.

जगदीश को अजीब लगा. उसने ड्राइविंग पर तवज्जो दिया. पर खयालो को कैसे रोके? शालिनी की छाती को एक बार फिर उसने साइड मिरर से निहारा. फिर तुरंत खुद को कोसा : अभी अभी उसे बेटी कहा और अब यूँ छाती देखना क्या अच्छी बात है?

उसने शालिनी के सारे ख़याल हटा कर ड्राइविंग में खुद को जोत दिया.]



कार दौड़े जा रही थी. मुंबई पीछे छूट गया था. ट्राफिक भी अब नॉर्मल हो गया था. सूरज अभी पूरा डूबा नहीं था. शालिनी की आँख लग गई थी.

-अचानक.

अचानक एक धमाका हुआ. जगदीश ने कार रोक दी. शालिनी चौंक कर उठ गई.

‘क्या हुआ भैय्या?’ उसने गभराते हुए पूछा.

‘देखता हूँ.’ कहते हुए जगदीश कार के बाहर निकला.

देखा तो टायर ब्रस्ट हो गया था. जगदीश ने किसी तरह कार साइड में ली. शालिनी भी कार के बाहर आ गई.

‘किस्मत!’ जगदीश ने फीकी मुस्कान के साथ कहा. और स्टेपनी टायर बदलने की शुरुआत कर दी. शालिनी बगल में खड़े है वे के ट्राफिक को निहारने लगी.

जगदीश ने नोटिस किया की शालिनी ने एकदम मामूली किस्म के कपडे पहने थे. शायद सफर के कपडे थे. पर जगदीश ठीक से तैयार हुआ था. सो उसे शालिनी को मामूली कपड़ो में देख बड़ा अजीब लग रहा था. पर वो कुछ बोला नहीं.

इतने में उन के करीब एक बाइक रुकी. बाइक पर दो नौजवान बैठे थे. वो शालिनी को देख कर मुस्कुराये. शालिनी ने नजरें फेर दी. जगदीश देखने लगा की बात क्या है?

बाइक पर से एक जन ने शालिनी से पूछा ‘चलती है क्या?’

शालिनी दंग रह गई और जगदीश का माथा फिर गया. वो खड़ा हुआ. और उसने गुस्से में बाइक वाले से पूछा ‘क्या बोला ?’

दोनों बाइकवालो ने अब जगदीश को देखा. दूसरे ने जगदीश को पूछा ‘ये तेरे साथ है क्या?’

‘किस किस्म की भाषा है यह?’ जगदीश के सर पर खून सवार हो गया.

‘अबे तेरे को पूछा ये रांड तेरे साथ है क्या?’ बाइकवाले ने कहा.

फिर कब कैसे क्या हुआ यह किसी को समझ में नहीं आया. पर दो पल के बाद दोनों बाइकवाले जमीं पर गिर पड़े थे. बाइक भी जमीन पर गिर गई थी. और जगदीश गुस्से से काँप रहा था. शालिनी ने डरते हुए जगदीश को देखा. वो गुस्से से शालिनी से बोला. ‘बैठ जाओ कार में’

शालिनी तुरंत कार में बैठ गई.

दोनों बाइकवाले बाइक के साथ गिर पड़े थे. कराहते हुए खड़े हुए. जगदीश को घूरते हुए अपनी बाइक सम्हाली और चले गए.

जगदीश का सर भन्ना रहा था वो फिर टायर लगाने लगा और शालिनी सहम कर कार में बैठी रही. उसे यह समझ में नहीं आ रहा था की कोई उसे रांड कैसे समझ सकता है! और अपने जेठ के सामने उसे रांड कैसे बुला सकता है!

जगदीश को टायर बदलते हुए ख़याल आ रहा था की शालिनी ने कपडे मामूली पहने है और फिर उस की छाती…

उसने अपने आप को आगे सोचने से रोक दिया.

पंद्रह मिनिट के बाद टायर लग चूका. जगदीश कार में दाखिल हो उससे पहले चार बाइक पर गुंडे जैसे लोग कार को घेर खड़े हुए. उन में से दो जन अभी जगदीश के हाथो मार खा कार गए थे वो भी थे.

एक आदमी ने बड़ा छुरा दिखाते हुए कहा ‘ओ हीरो, चल.’

‘कहाँ ?’ जगदीश ने हैरान होकर पूछा.

‘तेरी माँ की शादी में. चल रे छमक छल्लो बाहर निकल.’ दूसरे ने कार का दरवाजा खोल कर शालिनी को बाहर खींचते हुए कहा.’

‘अरे अरे उसे कुछ मत…’ ऐसा जगदीश बोलने गया पर पहले आदमी ने जगदीश के पेट पर छुरा लगाते हुए कहा. ‘चल बोला ना?’

जगदीश और शालिनी को कार छोड़ कर उनके साथ जबरन जाना पड़ा.

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(३ - ये तो सोचा थासमाप्त, क्रमश:)

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