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ये तो सोचा न था…
(दोस्तों,
यह मेरी पहली इरोटिक कहानी है.
अपनी प्रतिक्रिया दीजिये. ताकि मुझे मार्गदर्शन मिले और मैं बेहतर कहानी लिख सकूं.
-राकेश बक्षी)
ये तो सोचा न था…अनुक्रमणिका
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१ – ये तो सोचा न था…
शालिनी और जगदीश दोनों के लिए यह एक ऑक्वर्ड परिस्थिति थी. शायद शालिनी के लिए अधिक. क्योंकि जगदीश शालिनी का जेठ था. और मुंबई से पूना तक उन दोनों को एक ही कार में जाना पड़े ऐसा संजोग खड़ा हुआ था.
वैसे तो दो कार मुंबई से पूना जाने वाली थी. दोनों भाई अपनी अपनी कार में अपनी पत्नियों के साथ पूना उनके फैमिली फ्रेंड के घर शादी में पहुँच रहे थे. शनि वार शाम को दोनों भाई पूना के लिए निकलने वाले थे और रात नौ-दस बजे तक पहुँच जाने वाले थे. जगदीश शाम को चार बजे तक घर पहुंचेगा और पांच बजे दोनों कार पूना के लिए रवाना होगी यह प्लान था.
शनिवार को जगदीश के छोटे भाई जुगल को छुट्टी होती थी. सो वो घर पर ही था. और जगदीश की पत्नी चांदनी अपनी देवरानी शालिनी को मेहंदी लगाने की तैयारी कर रही थी क्योंकि चांदनी मेहंदी लगाने में एक्सपर्ट थी.
पर शालिनी को लगा की सुबह से उसकी जेठानी चांदनी कुछ उदास है. पर क्या वजह हो सकती है उदासी की? शालिनी ने बहुत सोचा पर वो ताड़ नहीं पाई. पूना में जिस फेमिली फ्रेंड के यहाँ शादी थी वो लोग करीबी थे. उनके यहां शादी में जाने का उन चारों लोगों को उत्साह था. और कैसे कब जाना यह भी कई दिनों से तय था फिर अब जाने के दिन अचानक चांदनी को क्या हुआ?
सरल और निश्छल स्वभाव की शालिनी ने हार कर चांदनी से पूछ लेना ही तय किया. जब चांदनी शालिनी के हाथों में मेहंदी लगाने आई तब शालिनी ने कहा ‘दीदी, मैं मेहंदी तभी लगवाउंगी जब तुम अपनी उदासी की वजह बताओ. सुबह से तुम्हारा चेहरा कितना फीका लग रहा है!’
चांदनी ने तुरंत जवाब दिया ‘कोई बड़ी बात नहीं पर मुझे मेरे पिताजी की फ़िक्र हो रही है. रात को माँ का फोन आया था की उन की तबीयत कुछ ठीक नहीं.’
शालिनी यह सुन चिंता करने लगी. चांदनी के माँ- पिताजी न्यू बॉम्बे रहते थे. जो की मुंबई से पूना जाते वक्त रास्ते में पड़ता था. शालिनी ने कहा ‘अरे दी, इतना क्या मन भारी कर रही हो ? पूना जाते जाते हम सब आप के पिताजी को मिलते हुए जाएंगे, रास्ते में ही तो घर है!’
चांदनी ने फीकी मुस्कान के साथ कहा की ‘तुम्हारे जेठ ने भी यही कहा है और शाम को उनसे मिलते हुए ही जाना है यह पता है पर दिल तो आखिर दिल है- पिताजी के बारे में सोच कर आँखे भर आती है - पर कोई बात नहीं, शाम तक की ही तो बात है!’
शालिनी ने कुछ सोचा और खड़ी हो कर बोली ‘मैं आई एक मिनिट.’
‘अरे पर मेहंदी लगानी है न ?’
‘बस एक मिनिट… ‘ कह कर शालिनी तेजी से गई. चांदनी महेंदी लिए राह देखती रही और बजाय एक मिनिट के पांच मिनिट के बाद शालिनी आई अपने पति जुगल के साथ. शालिनी को देख कर चांदनी ने कहा ‘चल अब कोई टाइम पास नहीं, बैठ भी जा… मैं मेहंदी लगाऊंगी कब और वो सूखेगी कब! ‘
‘आप मेहंदी नहीं लगाओगी दी, आप जुगल के साथ नवी मुंबई के लिए निकल जाओ… ‘
‘क्या !’ चांदनी ने आश्चर्य से पूछा.
जुगल ने कहा ‘हाँ भाभी मेरी कार में नवी मुंबई चलते है. अभी दोपहर के दो बजे है. भैया को आते आते चार बज जाएंगे, फिर हम सब पांच बजे निकलेंगे और नवी मुंबई तक पहुंचने में साढ़े छे - सात बज जाएंगे, फिर हमें पूना पहुँचने की जल्दी होगी तो आप के पिताजी के पास आप सुकून से दो पल बैठ भी नहीं पाओगो…’
यह सुन कर चांदनी सोच में पड़ गई. शालिनी ने आगे कहा ‘बजाय इस के आप अभी जुगल के साथ नवी मुंबई पहुंचो और जेठ जी आएंगे तब मैं उन के साथ आ जाउंगी… आप को मा - पिताजी के साथ रुकने को कम से कम तीन घंटे मिल जाएंगे.’
‘अरे पर निकलने से पहले यहां कितने काम बाकी है, ऐसे कैसे निकल जाऊं !’ चांदनी ने कहना चाहा पर उस की बात को आधे से काट कर शालिनी ने कहा ‘पता है क्या क्या काम है- हम दोनों की साडी का बॉर्डर लगवाना है, साढ़े तीन बजे पूना के लिए शादी में जो गिफ्ट ले जानी है उसकी डिलीवरी घर पर होगी और चार बजे इलेक्ट्रीशियन आएगा उस से हॉल का फेन चेंज करवाना है पर ये सभी काम तो मैं भी निपटा सकती हूँ न ? इसी लिए तो मैं रुक जाती हूँ और जेठ जी के साथ आ जाउंगी, आप तो अपने माँ - पिताजी से मिलने निकल जाइए!’
‘और तेरी मेहंदी? शादी में तू की बिना मेहंदी के आएगी?’
‘बीसियों ब्यूटी पार्लर है दी अपने शहर में, मेहंदी कोई इस्यु नहीं पर पिताजी से मिलना ज्यादा जरूरी है.’
बात सही थी. चांदनी ने फोन पर अपने पति जगदीश की राय ली. उसे भी यह बात ठीक लगी. उसने कहा ‘एकदम प्रेक्टिकल बात है. तुम लोग चलो, मैं बहु को ले कर पहुंचता हूँ, नवी मुंबई से फिर चारों साथ में निकल कर पूना जाएंगे.’
और चांदनी जुगल के साथ अपने माँ - पिताजी को मिलने निकल गई.
शाम को शालिनी ने अपने सारे काम निपटा दिए. साडी - हॉल में फेन - गिफ्ट की डिलीवरी - हाथों में महेंदी…. सब काम ठीक से किये. और सफर के लिए एक अच्छा सा पंजाबी सूट पहन कर तैयार हो गई.
जगदीश भी चार बजे पहुंच गया. और साढ़े चार बजे तो शालिनी और जगदीश घर से निकल कर कार की और बढ़ने लगे.
पर-
शालिनी ने बोल तो दिया था की वो जेठजी के साथ नवी मुंबई आ जायेगी और जगदीश ने भी चांदनी से कह दिया था की वो बहु को ले के नवी मुंबई पहुँच जाएगा पर पर जब कार में बैठने की बारी आई तब शालिनी और जगदीश दोनों की हालत अजीब हो गई.
हालत अजीब होने की वजह थी जगदीश - जुगल के घर का माहौल.
शालिनी इस घर में ब्याह कर चार साल पहले आई थी. पर इन चार सालों में उसका और जगदीश का कभी भी कोई बातचीत का व्यवहार भी अकेले में नहीं हुआ था. बड़ो को आदर सम्मान देते है इस परंपरा के चलते शालिनी अपने जेठ को बड़ा भाई मानती थी और उन की इज्जत करती थी पर जगदीश को और शालिनी को एक दूजे से कोई काम कभी पड़ा ही नहीं था. कोई सूरत ही नहीं थी की उनको एक दूसरे से कोई बात अलग से करनी पड़े. बड़ी बहु होने के नाते चांदनी के सर घर का सारा जिम्मा था और छोटा होने के नाते जुगल घर के बाकी काम की खाना पूर्ति कर लेता था. और शालिनी बहु होने के नाते हमेंशा अपने जेठ से एक सोशियल डिस्टंस में ही रही थी.
जगदीश भी एक संस्कारी और संयम शील इंसान था. उसे शालिनी का कोई काम कभी पड़ा ही नहीं था.
ऐसा नहीं की जगदीश ने शालिनी को कभी नोटिस ही नहीं किया हो. कई बार अनजाने में जगदीश नई नजर शालिनी के स्तन पर चली जाती. हालांकि वो तुरंत अपनी नजरे फेर लेता इस ख़याल के साथ के शालिनी के स्तन बड़े है. कम से कम अपनी पत्नी चांदनी से तो बड़े. पर इस दिशा में वो आगे नहीं सोचता. बहु के बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए यह वो समझता था.
ऐसा भी नहीं की दोनों में आपस में कभी बात नहीं होती थी पर हमेशा या चांदनी मौजूद होती थी या जुगल. अकेले में कभी नहीं.
घर से निकल कर कार तक जाते हुए जगदीश को लगा की सोसायटी का वॉचमेन शालिनी को अजीब तरह से घूर रहा है. उसने वॉचमेन की नजरो का पीछा किया तो वो शालिनी की छाती को घूर रहा था. शालिनी ने सफर के लिए एक घरेलु किसम का पीला सलवार सूट पहना था और दुपट्टा था पर वो उसने गले के इतने करीब से पीठ की और मोड़ा हुआ था की उसके स्तन ढंक नहीं रहे थे. जगदीश को लगा की शालिनी ने इस बात का ख़याल रखना चाहिए. पर इस पर क्या हो सकता है? शालिनी को यह कहना की दुपट्टा ठीक से ओढो तो बड़ा अजीब लगेगा. और देखनेवालों को भी कुछ कहा नहीं जा सकता. जगदीश ने सर को एक झटका दे कर ऐसे ख्यालो को हटाने की जैसे कोशिश की. जब दोनों कार तक पहुंचे तब तक दोनों के मन में एक ही सवाल था : शालिनी ने पीछे की सीट पर बैठना चाहिए या आगे जगदीश के बगल में?
अगर शालिनी पीछे बैठेगी तो न चाहते हुए भी जगदीश ड्राइवर हो और शालिनी कार मालकिन ऐसा चित्र बनेगा.
अगर शालिनी आगे जगदीश के बगल में बैठेगी तो क्या जेठ और बहु साथ साथ बैठ कर कार में जाएंगे?
अब ?
न तो जगदीश को सूझ रहा था की शालिनी ने कहाँ बैठना चाहिए न तो उसे शालिनी से इस बारे में बात करने का साहस हो रहा था.
यही हाल शालिनी का था !
(१ – ये तो सोचा न था…समाप्त, क्रमश
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