मेरा मौसेरा भाई दीपू , जो मेरी आयु का ही है, हमारे घर गर्मियों की छुट्टियों में रहने आया था. हम साथ ही खेलते, खाते घूमते और मस्ती मारते थे.
साथ ही इतना घुल गए की हमें एक दूसरे की हर बात
और मंशा पता चला करती थी. दोनों जवान हो रहे थे और सेक्स की बातें करते रहते थे.
रात में सेक्स की कहानियों से मूठ मारते थे.
हम दोनों को जैसे इसका चस्का लग गया था. मानो हम सिर्फ गंदी बातों में ही हर समय सोचते रहते थे. बातों बातों में वो अपनी माँ ,मेरी मम्मी को भी लेकर कहानी बना दिया करते हुए ,उनके साथ सेक्स करे सोच कर
मूठ मारते थे.
ऐसे में हमारे घर कुछ और मेहमान आ गए, जिस कारण मम्मी को अब हमारे साथ रात को सोना पड गया. अब हमारा रात का प्रोग्राम बंद हो तो गया किन्तु मम्मी को देखना चालू. और मोका पाना बस यही चल रहा था.
अब हम दोनों प्लान बनाते रहते थे ,और रात भर कोशिश करते रहते.
रोज रात में यही चलता रहा.
इतनी मेहनत करने के बाद ही अब तक हम बस टांगे या कमर, ही देख सकते थे. जरा सा छूने पर मम्मी उठ जाती थी.
मम्मी का बहुत बातूनी होने के कारण, हमने बाते सुनने में,उनका ध्यान लगा दिया, और इसी वज़ह से उनके समीप आने का मोका मिल रहा था.
ऐसे ही मम्मी के अगल-बगल मै आ जाया करते.
बातें सुनने के बहाने उनके करीब और छू भी लेते.
जब मम्मी थक कर सो जाती, हम उनको छू लेने लगते.
एक रात ऐसे ही कुछ बातें हो रही थी, मैंने देखा दीपू तो बहोत आगे बढ़ने
लगा,मम्मी की भी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. दीपू ने मम्मी के बुउबू सहलाय व चूत भी छू ली.
फिर क्या मैंने भी शुरू कर दिया.
जब मम्मी को कोई आपत्ति नहीं तो हम भी क्यूँ न करें.
इस तरह अब हमारा मनोबल बढ़ने लगा ,हर बार मैं कुछ नया अध्याय जोड़ा जाता रहा. कभी कभी कमर पर हाथ सरका के बुउबू को ब्लाउज के अंदर सहलाते हुए दबाना भी हो जाता था .
यक़ीन मानो के 4 - 5 रातों में हमें बहुत सफलता
प्राप्त हो गयी.
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अब हम बाते करते हुए मम्मी के साथ चिपक जाते.
बस अब हमारे बीच में कोई बाधा न थी.
दीपू और मैं अब ठान बैठे थे कि इस बार तो कुछ हो जाय हमें अब पूर्ण रूप सेक्स करना ही है.
जैसे ही रात को सोने का समय आ गया
हम उत्तेजित हो गए.
मम्मी का बाते करना शुरू ,हम भी शुरू हो गए.
मम्मी को नींद आने लगी.
मै भी बगल मे सोने लगा. दीपू ने मम्मी की गांद पर हाथ रख दिया ओर सहलाने लगा फिर हाथ आगे बढ़ाते हुए पेट पर रख दिया ओर धीरे धीरे बूब तक आया मम्मी सो रही थी में धीरे धीरे बूब दबाने लगा .
में डर भी रहा था लेकिन इस बार नहीं किया तो रह जाएगा.
मैंने अपने को मम्मी की टांगों की तरफ कर लिया और उन्हें चूमने लगा
मम्मी के निपल दीपू खींच रहा था.
अब मुझे विश्वास हो चुका था कि मम्मी
हसोने का नाटक कर रही थी, दीपू मम्मी को दबाते दबाते लॅंड हिला रहा था ओर मुझे मम्मी ने ज़ोर से धक्का दिया अपनी लात से दूर किया
और दीपू कि ओर अग्रसर हो गई.
और उसके होंटों पर चुंबन लेने लगीं.
फिर मे नही रुका ओर मा की साडी ऊपर करके मां की चूत मे उंगली डाल दी.थोड़ी देर बाद मम्मी भी हमारा साथ देने लगी . अपने आप सब सही होने लगा बारी बारी.
अब मम्मी हमारे खड़े लंड पकड़ कर दब्बाने लगी और मुट्ठी करने लगी, मैं भी सटा सट मम्मी चूत में ऊँगली डाल रहा था और वो एक लम्बी सास ली अंगड़ाई ली और झड़ गयी भी मे उंगली चूत से नही निकाली, इतने में दीपू ने मम्मी की साडी उतारी ओर नंगा कर दिया .
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मैं अपनी मम्मी के बूब चूस्ते चूस्ते मूठ मार रहा था और मेरा वीर्य निकल गया मम्मी के पेट पर.
लेकिन दीपू ने अपना लंड मम्मी की चूत में डाल दिया, मा को बहुत मज़ा आ आ रहा था वो सिसकिया ले रही थी आ आ आ आ आ आहा आ मादरचोद जोर लगा,
फाड़ दे मेरी चूत आआह आआअह आआह ओह्ह्.
दीपू ने मम्मी के दोनों टांगो को फैला कर उनकी चूत में लंड बूर मे रख जोर का धक्का मारा फिर धक्का पूरा का पूरा लंड चूत मे घस गया .
यह प्रक्रिया 10 मिनट तक की .
अब मै मम्मी की गांड मे लंड को रख कर जोर का धक्का मारा मम्मी की चीख निकल गई पूरा लंड गप से झेल गई। दोनों के लंड मम्मी के दोनों छेदों में थे.
हम दोनों भाइयों को मेरी मम्मी ने स्वर्ग की
अनुभूति करा दी.
हम मदमस्त होकर कामुकता की चरम सीमा में प्रवेश करने लगे थे.
दोनों का वीर्य मम्मी की योनी में निकल गया
इस प्रकरण से हमारे मन को शान्ति प्रदान हो गई.
मम्मी ने भी अपना आजतक का सबसे अच्छा सेक्स किया.
कुछ पल बाद बेसुध अवस्था में हमें नींद आ गई.
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सुबह होते ही मम्मी वहां से चली गई, अपने को घर के काम में व्यस्त कर लिया.
हम भी शांत हो चुके थे और अब हम न ही पहले की तरह उत्तेजित थे और ना ही सेक्स संबंधित बाते करते थे.
तीनों सामान्य रूप से व्यावहारिक जीवन में आ गए मानो जैसे कुछ घटित ही नहीं हुआ और कभी भी ऐसा कुछ हुआ ही नहीं.
छुट्टी खत्म होने के बाद दीपू भी अपने घर लौट गया.
मैंने भी ये भुला दिया और अपनी मम्मी के साथ पहले की तरह ही रहने लगा.
मैं जानता हूँ कि आप सब को ये बात काल्पनिक और बनाई गई लगे.
पर यह भी एक तरह से किशोर अवस्था का व्यवहारिक सहयोग हैं.
जो कभी किसी अनुसूचित समय में अचानक से घटित हो जाती है.
जिसका जिक्र करते हुए लज्जा आती है.
आप सभी का धन्यवाद और आपका सहयोग मिले तो और भी बहुत से किसे याद आ जाते है जो में आपके लिए लिखने की कोशिश करूंगा.
आपसे अनुरोध है कि आप मुझे प्रोत्साहन दे और अपनी प्रतिक्रिया आशय नीचे दें.
साहिल छोर...
(CCHOR)