गाँव का नाम भौसड़ाचोद जैसा नाम वैसा ही काम, यहाँ लड़कियाँ गौने तक एक दो बच्चे जन चुकी होती है, यहाँ पतियो से जादा जीजा देवर ससुर का जादा हक होता है यह अधिकांश एक अलग जाति के है जो एक अलग रिवाजो का जाने जाना वाला क्षेत्र है जहाँ सेक्स ही पुजा का एक अंग माना जाता है यहाँ विधवा कभी विधवा नही होती उसके मांग और बुर हमेशा भरी रहती है, और दुल्हन एक की नही होती, यहाँ एक कहावत बुर मारे जीजा देवर मारे गांड एक रिवाज की तरह होता है यहाँ अक्सर पहली बार बुर जीजा ही मारता है और गांड पर देवर का हक होता है चलते है इस रंगीले गाँव की ओर
दोपहर का समय था। बनवारी अपने खेत पर बने झोपड़े में लेटा था। तभी दरवाज़ा खुला और झोपड़े के अंदर उसकी लूगाई हांथ में खाना लीये अंदर आयी।
लल्ली—‟दीन भर खेतो पर ही पड़े रहते हो, खाने की चीतां भी करते हो की नाही?”
ये कहते हुए, लल्ली ने खाने की थाली एक तरफ रखते हुए, बनवारी के बगल में खाट पर बैठ जाती है।
बनवारी का लंड तो सुबह से ही तनतनाया था। उसने अपना पैज़ाम तो पहले से ही नीकाल कर रख दीया था और सीर्फ एक लूंगी पहने हुए था। उसने झट से लल्ली का हांथ पकड़ते हुए खींच कर अपने सीने से चीपका लेता है...
लल्ली—‟आह...कर रहे हो? छोड़ो! सोहन बाहर खेतो में काम कर रहा है देख लीया तो...?”
ये सुनकर बनवारी ने जोर का थप्पड़ लल्ली के गांड पर ज़ड़ देता है। थप्पड़ इतना जोरदार था की...लल्ली के मुह से चींख नीकल पड़ती है। थप्पड़ की आवाज और लल्ली के मुह से चींख दोनो एक साथ बाहर काम कर लल्ली के बेटे सोहन के कानो में पड़ी...
सोहन कुछ समझ नही पाया, उसने सोचा की जाके देखे, कहीं उसकी माँ को कुछ लगा तो नही...?
सोहन धीरे-धीरे अपने कदम झोपड़ी की तरफ़ बढ़ाते हुए, जैसे ही नज़दीक पहुचां, उसके कानो में एक और जोरदार थप्पड़ की आवाज़ और उसके मां की चींख गूजी।
सोहन को कुछ समझ में नही आ रहा था की, आख़िर झोपड़े के अंदर क्या हो रहा है? उसने छुप कर अंदर देखने का सोचा....और झोपड़े के दीवाल में बने मुक्के से अंदर झांक कर देखा तो उसकी हवाईयाँ उड़ गयी।
उसकी माँ लल्ली, उसके बापू के उपर लेटी थी। उसकी माँ की साड़ी को उसका बापू नीचे से कमर तक उठा दीया था, जीससे उसकी माँ की चौंड़ी ३८ इंच की मोटी गांड उसे प्रदर्शीत हो रही थी। उसके माँ की गांड के दोनो पलझे, उसके बापू के हाथ में था जीसे वो मसल रहा था और रह-रह कर थप्पड़ बरसा रहा था।
ऐसा नज़ारा देख कर तो, सोहन के पैरों तले ज़मीन ही खीसक गयी, वो तो बस अपनी मां की मोटी गांड ही देखता रह गया। तभी अचानक! लल्ली की नज़र भी दीवाल के मुक्के की तरफ़ पड़ जाती है। उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसे देख रहा है। वो तुरतं समझ जाती है की, कोई और नही ये सोहन ही है, उसका बेटा!!
लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल जाती है। वो उठते हुए अपनी साड़ी नीकाल कर पूरी नंगी हो जाती है।
सोहन के तो पसीने छूटने लगते है। उसने आज तक कभी कीसी औरत को मादरजात नंगी नही देखा था। अभी जल्द ही अपनी औरत का गौना लाया है सोहन, नाम है रोशनी, दूध सी बदन वाली कमसीन छोटी उम्र मे गौना हो गया, पतली इतनी की एक हाथ की हथेली मे उसकी कमर आ जाये, कम उम्र के चलते अभी गांड भी बहुत छोटी सी गोल मटोल लौंड़ा मार्क है, सोहन का लंड 5 इंच से बडा ना होगा तो मोटाई एक अंगूठे जितनी, अभी हफ्ता बीता होगा उसे रोशनी को लाये, अपनी नई-नई लूगाई को भी शरम के मारे अंधेरे में ही चोदता था। और आज अपनी माँ की हथिनी जैसी शरीर को नंगी अवस्था में देखकर, उसके लंड ने झटके पे झटके जड़ना शुरु कर दीया...
लल्ली की बुर ये सोचकर बहुत ज्यादा फुदकने लगी की, उसे उसका बेटा नंगी हालत में देख रहा है। लल्ली ने सोचा की क्यूँ ना सोहन को, वो अपनी पूरी गांड दीखाये खोल कर! इसलीये लल्ली ने अपनी गांड को सोहन की तरफ़ करते हुए, खाट की पाटी पकड़ कर झुक जाती है...
झुकते ही लल्ली के चुतड़ो के पलझे फैलने लगते है। और देखते ही देखते...सोहन के आँखों के सामने उसकी माँ का वीशाल गांड साफ तौर पर प्रदर्शीत होने लगा...! ऐसा नज़ारा देख कर, सोहन से रहा नही गया और झट से अपने छोटे से मुरझाये लंड को हाथ की उंगलीयों में फंसा कर आगे-पीछे करने लगा।
लल्ली अब झुकी थी, उसने एक बार अपना गांड हीलाया और फीर खड़ी हो गयी! और इस बार बनवारी की तरफ़ गांड करके झुक जाती है। बनवारी खाट पर लेटा था। और उसके सामने लल्ली की बड़ी गांड पड़ी थी।
लल्ली का मुह सोहन की तरफ़ था। और लल्ली अभी मुक्के की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली-
लल्ली—‟हाय रे...दईया! मेरी गांड मत मारना रंजू के बापू। बहुत दुखता है, कीसी जानवर की तरह मारते हो! तुमको याद है...ऐसे ही जब तूम हर रात मेरे घर पर आकर मेरी इज्जत लूटते थे, मेरी गांड मारते थे तो, सोहन का बापू घर के मुक्के में से चोरी छीपे देखता था।
जब तूम मेरी गांड मार-मार कर, अपने लंड का गाढ़ा रस मेरी गांड में छोड़ कर चले जाते थे तो, मैं तुम्हारा रस सोहन के बापू से चटवा कर साफ करवाती थी।
अपनी माँ की बात सुनते ही, सोहन के उपर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो। वो ये तो जानता था की, उसका बाप बनवारी नही है, क्यूकीं जब वो ६ साल का था, तब उसकी माँ ने उसके बाप बीरज़ू को छोड़ दीया था। मगर वो ये नही जानता था की, बनवारी उसकी माँ को उसके बाप के सामने उसके ही घर में चोदता था।
एक थप्पड़ की आवाज़ ने, उसे उसकी सोंच की दुनीया से बाहर नीकालता है...
बनवारी ने एक और जोर का थप्पड़ लल्ली की गांड पर ज़ड़ते हुए बोला-
बनवारी—‟वो साला तो नामर्द था। तेरी बुर जब मैने चोदी थी तो, बड़ी कसी थी...
लल्ली—‟हां...क्यूकीं वो नामर्द का लंड नही लूल्ली था। जब तूम मेरे उपर चढ़े! तब एहसास हुआ की...कोई मर्द चढ़ा है। इतना गहरा घुसा कर पेल रहे थे मुझे की। एक बख़त को लगा मेरी जान ही ले लोगे। कीतना रो रही थी मै, कीतना चील्ला रही थी। हांथ भी जोड़ रही थी की छोड़ दो मुझे॥ लेकीन तूम तो ज़ालीम की बन गये थे। कीसी सांड की तरह हुमच-हुमच कर चोद रहे थे। खाट भी टूट गयी थी...मगर फीर भी तूम मुझे रौंदे जा रहे थें। वो तो सुबह मेरे पड़ोस की औरते कहने लगी की, मेरी वज़स से वो लोग सो नही पायी थी। इतना जोर-जोर से चील्ला रही थी मैं। आज फीर से वैसी ही चुदाई करो मेरी...रंजू के बापू! और देखने वाले नामर्दो को दीखा दो की, एक मर्द कैसे चोदता है?”
और ये कहते हुए...लल्ली एक बार फीर मुक्के की तरफ़ देखते हुए मुस्कुरा देती है..
दोपहर का समय था। बनवारी अपने खेत पर बने झोपड़े में लेटा था। तभी दरवाज़ा खुला और झोपड़े के अंदर उसकी लूगाई हांथ में खाना लीये अंदर आयी।
लल्ली—‟दीन भर खेतो पर ही पड़े रहते हो, खाने की चीतां भी करते हो की नाही?”
ये कहते हुए, लल्ली ने खाने की थाली एक तरफ रखते हुए, बनवारी के बगल में खाट पर बैठ जाती है।
बनवारी का लंड तो सुबह से ही तनतनाया था। उसने अपना पैज़ाम तो पहले से ही नीकाल कर रख दीया था और सीर्फ एक लूंगी पहने हुए था। उसने झट से लल्ली का हांथ पकड़ते हुए खींच कर अपने सीने से चीपका लेता है...
लल्ली—‟आह...कर रहे हो? छोड़ो! सोहन बाहर खेतो में काम कर रहा है देख लीया तो...?”
ये सुनकर बनवारी ने जोर का थप्पड़ लल्ली के गांड पर ज़ड़ देता है। थप्पड़ इतना जोरदार था की...लल्ली के मुह से चींख नीकल पड़ती है। थप्पड़ की आवाज और लल्ली के मुह से चींख दोनो एक साथ बाहर काम कर लल्ली के बेटे सोहन के कानो में पड़ी...
सोहन कुछ समझ नही पाया, उसने सोचा की जाके देखे, कहीं उसकी माँ को कुछ लगा तो नही...?
सोहन धीरे-धीरे अपने कदम झोपड़ी की तरफ़ बढ़ाते हुए, जैसे ही नज़दीक पहुचां, उसके कानो में एक और जोरदार थप्पड़ की आवाज़ और उसके मां की चींख गूजी।
सोहन को कुछ समझ में नही आ रहा था की, आख़िर झोपड़े के अंदर क्या हो रहा है? उसने छुप कर अंदर देखने का सोचा....और झोपड़े के दीवाल में बने मुक्के से अंदर झांक कर देखा तो उसकी हवाईयाँ उड़ गयी।
उसकी माँ लल्ली, उसके बापू के उपर लेटी थी। उसकी माँ की साड़ी को उसका बापू नीचे से कमर तक उठा दीया था, जीससे उसकी माँ की चौंड़ी ३८ इंच की मोटी गांड उसे प्रदर्शीत हो रही थी। उसके माँ की गांड के दोनो पलझे, उसके बापू के हाथ में था जीसे वो मसल रहा था और रह-रह कर थप्पड़ बरसा रहा था।
ऐसा नज़ारा देख कर तो, सोहन के पैरों तले ज़मीन ही खीसक गयी, वो तो बस अपनी मां की मोटी गांड ही देखता रह गया। तभी अचानक! लल्ली की नज़र भी दीवाल के मुक्के की तरफ़ पड़ जाती है। उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसे देख रहा है। वो तुरतं समझ जाती है की, कोई और नही ये सोहन ही है, उसका बेटा!!
लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल जाती है। वो उठते हुए अपनी साड़ी नीकाल कर पूरी नंगी हो जाती है।
सोहन के तो पसीने छूटने लगते है। उसने आज तक कभी कीसी औरत को मादरजात नंगी नही देखा था। अभी जल्द ही अपनी औरत का गौना लाया है सोहन, नाम है रोशनी, दूध सी बदन वाली कमसीन छोटी उम्र मे गौना हो गया, पतली इतनी की एक हाथ की हथेली मे उसकी कमर आ जाये, कम उम्र के चलते अभी गांड भी बहुत छोटी सी गोल मटोल लौंड़ा मार्क है, सोहन का लंड 5 इंच से बडा ना होगा तो मोटाई एक अंगूठे जितनी, अभी हफ्ता बीता होगा उसे रोशनी को लाये, अपनी नई-नई लूगाई को भी शरम के मारे अंधेरे में ही चोदता था। और आज अपनी माँ की हथिनी जैसी शरीर को नंगी अवस्था में देखकर, उसके लंड ने झटके पे झटके जड़ना शुरु कर दीया...
लल्ली की बुर ये सोचकर बहुत ज्यादा फुदकने लगी की, उसे उसका बेटा नंगी हालत में देख रहा है। लल्ली ने सोचा की क्यूँ ना सोहन को, वो अपनी पूरी गांड दीखाये खोल कर! इसलीये लल्ली ने अपनी गांड को सोहन की तरफ़ करते हुए, खाट की पाटी पकड़ कर झुक जाती है...
झुकते ही लल्ली के चुतड़ो के पलझे फैलने लगते है। और देखते ही देखते...सोहन के आँखों के सामने उसकी माँ का वीशाल गांड साफ तौर पर प्रदर्शीत होने लगा...! ऐसा नज़ारा देख कर, सोहन से रहा नही गया और झट से अपने छोटे से मुरझाये लंड को हाथ की उंगलीयों में फंसा कर आगे-पीछे करने लगा।
लल्ली अब झुकी थी, उसने एक बार अपना गांड हीलाया और फीर खड़ी हो गयी! और इस बार बनवारी की तरफ़ गांड करके झुक जाती है। बनवारी खाट पर लेटा था। और उसके सामने लल्ली की बड़ी गांड पड़ी थी।
लल्ली का मुह सोहन की तरफ़ था। और लल्ली अभी मुक्के की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली-
लल्ली—‟हाय रे...दईया! मेरी गांड मत मारना रंजू के बापू। बहुत दुखता है, कीसी जानवर की तरह मारते हो! तुमको याद है...ऐसे ही जब तूम हर रात मेरे घर पर आकर मेरी इज्जत लूटते थे, मेरी गांड मारते थे तो, सोहन का बापू घर के मुक्के में से चोरी छीपे देखता था।
जब तूम मेरी गांड मार-मार कर, अपने लंड का गाढ़ा रस मेरी गांड में छोड़ कर चले जाते थे तो, मैं तुम्हारा रस सोहन के बापू से चटवा कर साफ करवाती थी।
अपनी माँ की बात सुनते ही, सोहन के उपर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो। वो ये तो जानता था की, उसका बाप बनवारी नही है, क्यूकीं जब वो ६ साल का था, तब उसकी माँ ने उसके बाप बीरज़ू को छोड़ दीया था। मगर वो ये नही जानता था की, बनवारी उसकी माँ को उसके बाप के सामने उसके ही घर में चोदता था।
एक थप्पड़ की आवाज़ ने, उसे उसकी सोंच की दुनीया से बाहर नीकालता है...
बनवारी ने एक और जोर का थप्पड़ लल्ली की गांड पर ज़ड़ते हुए बोला-
बनवारी—‟वो साला तो नामर्द था। तेरी बुर जब मैने चोदी थी तो, बड़ी कसी थी...
लल्ली—‟हां...क्यूकीं वो नामर्द का लंड नही लूल्ली था। जब तूम मेरे उपर चढ़े! तब एहसास हुआ की...कोई मर्द चढ़ा है। इतना गहरा घुसा कर पेल रहे थे मुझे की। एक बख़त को लगा मेरी जान ही ले लोगे। कीतना रो रही थी मै, कीतना चील्ला रही थी। हांथ भी जोड़ रही थी की छोड़ दो मुझे॥ लेकीन तूम तो ज़ालीम की बन गये थे। कीसी सांड की तरह हुमच-हुमच कर चोद रहे थे। खाट भी टूट गयी थी...मगर फीर भी तूम मुझे रौंदे जा रहे थें। वो तो सुबह मेरे पड़ोस की औरते कहने लगी की, मेरी वज़स से वो लोग सो नही पायी थी। इतना जोर-जोर से चील्ला रही थी मैं। आज फीर से वैसी ही चुदाई करो मेरी...रंजू के बापू! और देखने वाले नामर्दो को दीखा दो की, एक मर्द कैसे चोदता है?”
और ये कहते हुए...लल्ली एक बार फीर मुक्के की तरफ़ देखते हुए मुस्कुरा देती है..