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Fantasy राज-रानी (एक प्रेम कथा)

Jitu kumar

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Awesome story shubham bhai,
behad hi shandaar, lajawab aur amazing story hai bhai,
abhi maine 5 update hi padhe hai,
abhi tak itna to pata chal gaya hai ki raj vahi ladka hai jo menka ko mila hai,
aur uske khone ka jimmedaar uski maa rani ko thahra rahi hai,
aur use manhoos bol rahi hai,.
ab aage padh kar review deta hoon
 

Fighter

THE CREATER OF DEVIL FIGHTERS
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Waah bhai shandaar update____
 

Rocky10.10

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राज-रानी (बदलते रिश्ते)
""अपडेट"" ( 18 )

अब तक,,,,,,,,,,,,

"देखिये मिस।" मैने कहा___"अगर आप फिल्में देखती हैं और कल्पनाएॅ करती हैं तो ये अच्छी बात हो सकती है लेकिन आपको ये भी ख़याल होना चाहिए कि फिल्मी दुनियाॅ और कल्पना एक ही बात है जिसका हकीकत से कोई वास्ता नहीं होता।"

"आपकी इस बात का क्या मतलब हुआ?" रानी ने पूछा।
"मैं नहीं जानता कि आप ये सब किस उद्देश्य से कह रही हैं?" मैने कहा___"मैं बस इतना जानता हूॅ कि मैं आपको नहीं जानता।"

"अगर मैं ये कहूॅ कि आप झूॅठ बोल रहे हैं तो?" रानी ने कहा।
"आप भी कमाल करती हैं मिस।" मैने झंझलाने की ऐक्टिंग की___"भला मुझे आपसे झूॅठ बोलने की ज़रूरत ही क्या है? मैने भला कौन सा आपसे कर्ज़ा लिया हुआ है जिसके लिए मुझे बेइमान बन कर आपसे झूॅठ बोलना पड़े?"

रानी देखती रह गई मुझे। मेरे दो टूक जवाबों का असर ये हुआ कि पल भर में उसकी आॅखों में आॅसू तैरने लगे। मैं उसकी ऑखों में ऑसू देख अंदर ही अंदर टूटने लगा। वो मेरी जान थी, उसकी ऑखों में ऑसू नहीं देख सकता था मैं। इतना भी पत्थर नहीं था मैं।

वह मुझे एकटक देखती रही फिर वह पलटी और कन्टीन से बाहर चली गई। मुझे लगा कहीं वह कोई उल्टा पुल्टा काम न कर बैठे इस लिए मैने मन ही मन काल को याद किया और उससे कहा कि वह रानी के आस पास ही रहे।
_______________________

अब आगे,,,,,,,,,,,,

रानी के इस तरह चले जाने से मैं बेहद परेशान व चिन्तित हो गया था। उसे दुखी देख कर मैं खुद भी अंदर से कोई खुश नहीं था किन्तु ये तो कदाचित अभी शुरूआत थी। अभी तो और आग में जलना था, उसमें तपना था।

रोनी और उसके दोस्तों की धुलाई के बाद अभी तक उसका बाप काॅलेज नहीं आया था। मतलब साफ था कि काल ने सब सम्हाल लिया था। उसने ये सब कैसे किया होगा ये भी सोचने वाली बात थी। रानी तो चली ही गई थी इस लिए अब मैंने घर जाना मुल्तवी कर दिया था और बाॅकी के पीरियड्स अटेन्ड किया। जैसा कि क्लास में लड़के बात कर रहे थे वही हुआ। सारे टीचर इंट्रो ही ले रहे थे। सभी पीरियड्स ऐसे ही निकल गए। मैं तो बस इस लिए रुक गया था कि यहाॅ के बारे में कुछ जानने को मिल जाएगा।

काॅलेज की छुट्टी के बाद मैं वापस घर आ गया। घर में मेरी दोनो माॅओं ने मुझसे काॅलेज के बारे में हाल चाल पूछा। मैने उन्हें लड़ाई वाला छोंड़ कर सब बता दिया। रानी वाला मैटर भी बता दिया।

"ये तो तुमने ग़लत किया राज।" काया माॅ ने कहा___"उस मासूम का दिल दुखाना क्या अच्छी बात है? बल्कि होना तो ये चाहिए कि तुझे ऐसा कोई काम करना ही नहीं चाहिए जिससे रानी का दिल दुखे। मुझे तो सोच कर ही उसके लिए दुख होता कि वो बिना वजह ही तुम्हारी बेरुखी से दुखी हो रही है।"

"आपको क्या लगता है माॅ मुझे इस सबसे कोई खुशी मिलती है?" मैने कहा___"हर्गिज़ नहीं माॅ। उससे ऐसा ब्यौहार करके उससे ज्यादा मुझे तक़लीफ़ होती है। अपने आप पर इतना भयंकर क्रोध आता कि लगता है कि उस क्रोध में मैं सारी दुनियाॅ को जला कर राख कर दूॅ। मगर अपने दुख व क्रोध को उसी तरह पी जाता हूॅ जैसे कभी भगवान शंकर हलाहल को पिया था।"

"तो फिर ये सब क्यों कर रहा है राज?" मेनका माॅ ने प्यार से कहा___"कब तक उसे दुख देता रहेगा? ये तो तुम भी जानते हो कि उसे पूरा यकीन है कि तुम ही उसके भाई हो और तुम ही वो इंसान हो जिसे वह दिलो जान से प्यार करती है। किन्तु वह इस सच्चाई को जानते हुए भी तुम्हारे मुख से सुनना चाहती है। और फिर तुम भी कब तक उससे भाग सकोगे? इस लिए बेहतर यही है कि उसे उसके सवालों के सही सही जवाब दे दो और उसे अपने सीने से लगा कर उसकी उस तड़प को शान्त कर दो जो वर्षों से उसके अंदर है।"

"करूॅगा माॅ।" मैने गहरी साॅस ली___"बस थोड़े दिन और। उसे गले भी लगाऊॅगा और उसे बताऊॅगा भी मैं ही हूॅ उसका सब कुछ लेकिन ज़रा अलग तरीके से।"
"तुम और तुम्हारा तरीका।" मेनका माॅ ने कहा___"पता नहीं क्या अनाप शनाप मन में सोचते रहते हो? मेरी बच्ची को अब और रुलाया तो देख लेना मुझसे बुरा कोई न होगा।"

"क्याऽऽऽ????" मैं बुरी तरह हैरान रह गया, फिर बोला___"ये क्या कह रही हैं माॅ? मतलब वो अब आपकी बच्ची हो गई और मैं कुछ भी नहीं?"
"तू तो मेरी जान है रे।" मेनका माॅ ने मुस्कुरा कर कहा___"किन्तु वो तो मेरी जान की भी जान है ना। फिर कैसे उसे दुखी देख सकती हूॅ बता?"

"वैसे सोचने वाली बात है दीदी।" सहसा काया माॅ ने कहा___"ईश्वर ने भी क्या ग़जब का खेल रचाया है। एक ही माॅ से पैदा हुए इन दोनो जुड़वा भाई बहन के बीच प्रेम का ऐसा संबंध हो गया? इस धरती पर भला कौन भाई बहन के बीच ऐसे संबंध को मान्यता देता है?"

"अब ये तो ईश्वर ही जाने काया कि उसने ऐसा क्यों किया?" मेनका माॅ ने कहा___"ये प्रेम तो ऐसा है कि इन दोनो ने कभी एक दूसरे को देखा तक नहीं, मिलने की तो बात दूर। दूर रह कर भी एक दूसरे से इस तरह प्रेम हो गया। इसे ईश्वर का चमत्कार ही कहा जाएगा। अगर यही प्रेम संबंध ये दोनो पास रह बनाते तो कदाचित इसे अनुचित और पाप क़रार दिया जाता। यही समझा जाता कि दोनो अपनी हवस में इतने अंधे हो गए कि इन्हें अपने बीच के रिश्ते का ख़याल ही नहीं रहा कभी। लेकिन ये सब तो इन दोनो ने बिना एक दूसरे को देखे तथा बिना मिले ही किया, बल्कि किया भी कहाॅ ये तो बस हो गया। अब इस संबंध को दुनियाॅ समाज मान्यता दे या ना दे क्या फर्क पड़ता है?"

"फर्क तो पड़ता है दीदी।" काया माॅ ने कहा___"क्योंकि इन दोनो को इसी दुनिया और समाज के बीच रहना है। ये दोनो इस दुनियाॅ तथा इस समाज से अलग भला कहाॅ जाएॅगे? और जब यहीं रहना है तो इन्हें इस समाज के नियम कानून को तो मानना ही पड़ेगा।"

"ईश्वर ने अगर इनके बीच ऐसा संबंध स्थापित कर ही दिया है तो उसने इसका कोई न कोई उपाय भी अवश्य किया होगा।" मेनका माॅ ने कहा___"भला ईश्वर से बेहतर कौन जान सकता है कि इनके लिए क्या सही है और क्या ग़लत?"

"हाॅ ये बात तो है दीदी।" काया माॅ ने कहा___"ख़ैर ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि इनके साथ क्या होता है?"
"कुछ भी हो।" मेनका माॅ ने कहा___"मैं तो हमेशा अपने बेटे के साथ ही हर क़दम पर रहूॅगी। मेरी सारी ज़िदगी तथा मेरा सारा सुख दुख अब मेरे बेटे से ही है।"

"ये तो आपने बिलकुल सही कहा।" काया माॅ ने कहा___"हम सब राज के लिए ही समर्पित हैं। मैंने तो सोच लिया है कि मेरी हर साॅस सिर्फ मेरे बेटे के लिए है।"
"अब छोंड़िये इन सब बातों को।" सहसा इस बीच मैने हस्ताक्षेप किया___"मुझे भूख लगी है, आप दोनो तो बातों के चक्कर में ये भूल ही गईं कि बेटा भूखा भी होगा।"

"अरे हाॅ।" मेनका माॅ चौंक पड़ी___"हाय रे कैसे भूल गई मैं? रुक अभी मैं तेरे लिए गरमा गरम खाना लाती हूॅ।"
"ठीक है माॅ।" मैने कहा___"मैं तब तक कपड़े चेन्ज़ करके आता हूॅ।"

ये कह कर मैं ऊपर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। जबकि मेरी दोनो माॅ किचेन की तरफ बढ़ गईं। जहाॅ पर एक औरत जिसका नाम देविका था, वह रात के लिए खाना बना रही थी।

"अभी कितना समय लगेगा देविका।" मेनका माॅ ने उससे पूछा___"अगर बन गया हो तो राज के लिए एक थाली लगा दो फटाफट।"
"जी अच्छा।" देविका ने कहा__"आप चलिए मैं थाली लगा कर खुद ही ले आती हूॅ।"
"ठीक है।" मेनका माॅ ने कहा___"लेकिन थोड़ा जल्दी करना।"

इतना कह कर वो दोनो किचेन से बाहर आ गईं और डायनिंग हाल में रखी कुर्सियों पर बैठ गईं। कुछ देर में मैं भी चेन्ज करके आ गया और उन दोनो के बीच वाली कुर्सी पर बैठ गया। कुछ ही पलों में देविका थाली सजा कर ले आई और डायनिंग टेबल पर मेरे सामने रख दिया। उसके बाद मेरी दोनो माॅ ने मुझे अपने हाॅथों से खिलाना शुरू कर दिया।

खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में चला गया और बेड पर लेट गया।
________________________

उधर काॅलेज से जाने के बाद रानी अपने घर पहुॅची। उसने अपने अंदर भड़क रहें जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से सम्हाला हुआ था। अपने कमरे में जाते ही वह धम्म से बेड पर औंधे मुह गिर पड़ी और फिर वहीं आॅसुओं की धारा बहाने लगी।

"ऐसा क्यों कर रहे हैं आप मेरे साथ?" रानी तकिये में मुह छुपाए करुणायुक्त स्वर में धीमी आवाज़ में कह रही थी___"क्यों जान बूझ कर अजनबी बन रहे हैं मुझसे? आख़िर ऐसी क्या ख़ता हो गई है मुझसे जिसकी सज़ा इस तरह से दे रहे हैं मुझे? इतनी बेरुखी इतना अजनबीपन क्यों दिखा रहे हैं राज? मुझे इस तरह दुख देने से आपको भी तो तक़लीफ़ होती होगी न? फिर क्यों कर रहे हैं ऐसा?"


गए थे जिनके पास कई निशानियाॅ लिए हुए।
लौट आए उनके पास से उदासियाॅ लिए हुए।।

खूब सिला दिया है हमारी चाहत का सनम,
कहाॅ जाएॅगे आपकी मेहरबानियाॅ लिए हुए।।

पहले भी बसर हुई थी यूॅ ही शब ए फिराक़,
अब भी गुज़रेगी शब तन्हाईयाॅ लिए हुए।।

मेरे अश्कों से हर रोज़ समंदर डूब जाता है,
यादें रुलाती हैं हर पल शहनाईयाॅ लिए हुए।।

ख़ौफ ए रुसवाई से लबों को सी लिया हमने,
किसी दिन मर जाएॅगे ख़ामोशियाॅ लिए हुए।।

"अगर आप यही चाहते हैं कि मैं आपसे दूर ही रहूॅ तो ठीक है राज।" रानी ने जैसे अंदर ही अंदर फैसला ले लिया, बोली___"कल से आपको शिकायत का मौका नहीं दूॅगी। आपकी करीब आने की कोशिश नहीं करूॅगी मैं। मेरे लिए ये मुश्किल तो बहुत है लेकिन रो रोकर ही सही कर लूॅगी। पहले भी तो आपके बग़ैर तन्हां ही अपने जीवन का हर पल गुज़ारा था अब आपके इतना पास होते हुए भी गुज़ार लूॅगी।"

अभी रानी ये सब बड़बड़ा ही रही थी कि कमरे में सुमन दाखिल हुई। अपनी बेटी को इस तरह औंधी पड़ी देख वह चौंकी। तुरंत ही उसके पास उसके बेड के किनारे बैठी और अपने एक हाॅ से रानी के सिर को सहलाया।

रानी अपने सिर पर किसी का कोमल व प्यार भरा स्पर्श पाकर चौंकी। उसे समझते देर न लगी कि ये स्पर्श किसका है। उसने झट से उसी अवस्था में लेटे हुए अपनी ऑखों से ऑसुओं को पोंछा और फिर पलटी तथा उठ कर बेड पर बैठ गई। प्रतिमा की नज़र जैसे ही रानी के लाल सुर्ख चेहरे पर पड़ी तो वह चौंक पड़ी। रानी का चेहरा तथा उसकी ऑखों ने उसे जता दिया कि उसकी बेटी अभी रो रही थी। ये जान कर सुमन का हृदय फिर से जैसे हाहाकार कर उठा।

"तो आख़िर मेरी बाटी ने अपना वादा तोड़ ही दिया।" सुमन ने नम ऑखों से कहा___"शायद इस लिए कि मेरा प्यार उसकी नज़र में कुछ भी नहीं। आख़िर मुझे ये समझा दिया कि मैं तुम्हारी सौतेली माॅ हूॅ।"

"नहींऽऽऽ।" रानी फफक कर रो पड़ी तथा साथ ही वह सुमन से लिपट भी गई, बोली__"ऐसा मत कहिए माॅ। मैंने भूल से भी कभी अपने मन में ये ख़याल नहीं लाया कि आप मेरी कैसी माॅ हैं? मैंने तो बचपन से सिर्फ आपको ही अपनी माॅ माना और समझा है माॅ। मेरे मन में आपकी ऐसी छवि है माॅ जिसकी इबादत की जाए। आप संसार की सबसे श्रेष्ठ माॅ हैं माॅ। फिर आप ये क्यों कह रही हैं कि मैने आपको सौतेली समझ लिया?"

"सच्चाई को किसी प्रमाण की ज़रूरत नहीं होती।" सुमन ने कहा___"वो तो हर हाल में सच्चाई ही कहलाती है। और ये तो सच ही है ना कि मैं तुम्हारी सौतेली माॅ हूॅ। मैने तुम्हें अपनी कोख से जन्म नहीं दिया और ना ही तुम्हें अपनी छाती का दूध पिलाया है।"

"तो क्या हुआ माॅ?" रानी ने सुमन से अलग होकर उसकी ऑखों में देखते हुए कहा__"इस से ये तो नहीं कह सकते न कि आप माॅ नहीं हैं। यशोदा माॅ ने क्या कृष्ण को अपनी कोख से जन्म दिया था? नहीं न? उन्होने तो कृष्ण को पाला पोषा ही तो था। फिर सारा संसार उन्हें यशोदा का लाल ही कहता है। आप मेरी यशोदा माॅ ही तो हैं माॅ। मैं मानती हूॅ कि मैने अपना वादा तोड़ा और खुद को रुलाया किन्तु इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है माॅ। कुछ दिनों से हालात ही ऐसे हो गए हैं कि मैं चाह कर भी खुद को सम्हाल नहीं पाती माॅ।"

"कैसे हालात हो गए हैं बेटी?" सुमन सहसा चौंकी___"तुमने मुझसे बताया क्यों नहीं? क्या बात है बेटी मुझे जल्दी बताओ कि क्या हुआ है ऐसा जिसकी वजह से तुमने अपना वादा तोड़ दिया?"

"मैं पापा के साथ जिस दिन काॅलेज में एडमीशन करवाने गई थी।" रानी ने कहना शुरू किया___"उस दिन मैने काॅलेज की पार्किंग में राज को देखा माॅ।"
"क्या?????" सुमन उछल पड़ी____"ये क्या कह रही हो तुम??"

"हाॅ माॅ।" रानी ने कहा और फिर उसने उस दिन की सारी बातें सुमन को बता दी। सारी बातें सुन कर सुमन चकित भाव से देखती रह गई रानी को।

"लेकिन ये कैसे हो सकता है बेटी?" फिर सुमन ने कहा___"वो वहाॅ किस लिए आया होगा? नहीं बेटी, मुझे तो लगता है कि तुम्हें कोई वहम हुआ होगा।"
"यही बात पापा भी बोल रहे थे माॅ।" रानी ने कहा___"जबकि मुझे पक्का यकीन था कि वो राज ही थे। और आज तो सारी बात ही क्लियर हो गई।"

"क्या मतलब??" सुमन हैरान।
"उस दिन मैं भी सोच रही थी कि राज वहाॅ पर किस लिए आए रहे होंगे?" रानी ने कहा__"किन्तु आज जब मैं कालेज गई तो सब समझ में आ गया। दरअसल राज भी उसी काॅलेज में उस दिन अपना एडमीशन कराने ही आए थे और आज तो वो सभी स्टूडेन्ट्स की तरह काॅलेज की यूनिफार्म में ही काॅलेज आए थे। सबसे बड़ी बात वो भी उसी सब्जेक्ट के साथ उसी क्लास में हैं जिसमें मैं हूॅ। अब आप ही बताईये माॅ क्या ये सब भी मेरा वहम है?"

"ये तो सचमुच बड़े आश्चर्य की बात है।" सुमन ने हैरत से कहा___"ख़ैर, उसके बाद क्या हुआ? मेरा मतलब कि क्या तुम राज से मिली या क्या वो तुमसे मिला?"
"नहीं माॅ।" रानी ने अधीरता से कहा__"वो तो मुझसे मिलने नहीं आए बल्कि मैं खुद ही उनसे मिलने गई थी।"

"अच्छा।" सुमन ने कहा___"तो क्या हुआ फिर?"
"मुझे क्लास में ही उनका बिहैवियर अजीब लग रहा था माॅ।" रानी ने सुमन को आज काॅलेज की सारी बातें बताई। ये कि कैसे वह काॅलेज की कन्टीन में उससे मिली और उनसे क्या बाते हुईं। सारी बातें सुन कर सुमन एक बार फिर से हैरान रह गई।

"तो तुम्हें ये लगता है कि।" सुमन ने कहा__"वही राज है और वो इस बात को मानने से इंकार कर रहा है कि वो तुम्हें जानता है? हो सकता है बेटी कि वो सही कह रहा हो। मेरा मतलब कि वो राज वो न हो जिसे तुम अपना भाई समझती हो बल्कि वो कोई और ही हो। इस दुनिया में एक ही शक्ल सूरत के चेहरे कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं बेटी लेकिन इसका मतलब ये नहीं होता कि वो हमारे अपने ही होते हैं।"

"मेरा दिल मेरी आत्मा इस बात को पूरे यकीन से मानती है माॅ कि वो ही मेरे राज हैं।" रानी ने कहा___"जैसे एक माॅ दूर से ही महसूस कर लेती है कि आस पास ही कहीं उसकी औलाद मौजूद है वैसे ही मैं महसूस कर चुकी हूॅ माॅ। उनसे बात करके भी मुझे एहसास हो रहा था कि यही राज हैं।"

"चल मान लिया कि वही राज है।" सुमन ने कहा___"लेकिन सवाल ये उठता है कि वो इस बात से इंकार क्यों कर रहा है कि वो तुम्हें नहीं जानता? अगर तुमने उसे पहचान लिया है तो उसे भी तो पहचान लेना चाहिए था तुम्हें? ख़ैर, ये बताओ कि क्या तुमने उससे उसका नाम पता पूछा?"

"नहीं माॅ।" रानी खेद भरे भाव से कहा__"ये पूछने का ख़याल ही नहीं आया। आता भी कैसे? क्योंकि मैं तो यही समझती थी कि वो राज ही हैं इस लिए उनसे नाम पूछने का कोई तुक भी नहीं था।"
"तो फिर सबसे पहले ये पता करने की कोशिश करो कि उसका नाम क्या है तथा उसके माता पिता का क्या नाम है?" सुमन ने कहा___"ये पता करना कोई मुश्किल बात तो है नहीं। अगर ये पता चल गया तो सब समझ में आ जाएगा कि सच्चाई क्या है? अगर वो तुम्हारा भाई ही है तो उसके माता पिता का नाम भी वही होगा जो तुम्हारे काग़जातों में तुम्हारे माता पिता का दर्ज़ है।"

"ठीक है माॅ।" रानी ने कहा___"आपने सही कहा, मुझे सबसे पहले यही पता करना चाहिए था उसके बाद ही उनसे मिलना चाहिए था। अगर वो राज ही होते तो उनका सच और झूॅठ तुरंत पकड़ में आ जाता।"

"चलो ठीक है।" सुमन ने कहा___"ये सब छोड़ो और फ्रेश हो जाओ। मैं डिनर का इंतजाम करती हूॅ।"
"ओके माॅ।" रानी ने कहा___"आप चलिए मैं भी फ्रेश होकर आती हूॅ और फिर किचेन में खाना बनाने में आपकी मदद करती हूॅ।"

"क्या????" सुमन बुरी तरह चौंकी___"तुम किचेन में मेरी मदद करोगी??"
"क्यों नहीं माॅ?" रानी जाने क्या सोच कर एकाएक ही शरमा गई___"खाना पीना बनाना मुझे भी तो आना चाहिए न। इस लिए आप मुझे भी हर तरह का खाना बनाना सिखा दीजिए।"
"ओए होए।" सुमन ने नाटकीय अंदाज़ से कहा___"क्या बात है मेरी बिटिया रानी, आज खाना बनाना सीखने की बात क्यों करने लगी अचानक?"

"ओफ्फो।" रानी पहले तो सकपका गई फिर सहसा तुनक कर बोली___"अब क्या मैं खाना बनाना भी नहीं सीख सकती?"
"अरे हाॅ बिलकुल सीख सकती है।" सुमन ने झट से कहा___"क्यों नहीं सीख सकती। ये तो हर लड़की का पहला काम है। चलो ठीक है फ्रेश होकर जल्दी आओ फिर।"

सुमन ने कहा और मुस्कुराती हुई कमरे से बाहर चली गई जबकि रानी भी अपने चेहरे पर शरम की लाली लिए बाथरूम में घुस गई।


दोस्तो एक छोटा सा अपडेट हाज़िर है,,,,,,,

आज मैं घर जा रहा हूॅ, इस लिए अब होली के बाद ही मेरी दोनो कहानियों के अपडेट आ सकेंगे।

आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाएॅ।

Badhia update ha
 
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