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आज जिस घटना को कहानी का रूप दे रहा हूँ वो घटना आज से करीब 45 वर्ष पहले घटी थी। मेरी 12वी के बोर्ड की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और मई की गर्मी में, मुझे अपनी बुआ की ससुराल यानी कि अपने फूफा जी के पैतृक घर, उनके गांव बेता, जिला फतेहपुर जाना पड़ा था। वहां मेरे बुआ फूफा जी की बेटी का विवाह था, इसलिए मैं अपनी मां के साथ पहले से ही पहुंच गया था। मेरे पिता जी, जो उप्र पुलिस विभाग में ड्सपी थे वे बाद में शादी के एक दिन पहले ही पहुंचे थे।
मैं बुआ की ससुराल पहली बार गया था और क्योंकि लड़की की शादी वाला घर था तो गांव में मौज मस्ती तो नही हुई उल्टे मुझे फूफा जी ने जनवासे में लगा दिया। आखिर शादी का दिन आया और सभी शुभ कार्य मंगलमय रूप से सम्पन्न हो गए और अगले दिन घर की लक्ष्मी यानी मेरी फुफेरी बहन विदा होकर अपने पति के साथ अपने ससुराल चली गई। उसकी विदा के बाद तो पूरे घर मे जैसे सन्नाटा सा छा गया। जो कुछ घर मे चहल कदमी थी वो उन मेहमानों के जाने से थी जो विदा के बाद वापसी कर रहे थे, उसमे मेरे पिता जी भी एक थे। में, मां के साथ, बुआ का घर समेटने के लिए कुछ दिनों के लिए रुक गया था। उस दिन शाम होते होते मुझे थकान लगने लगी थी, मैं पिछले तीन चार दिनों से भाग दौड़ से काफी थक सा गया था। रात को खाना खाते खाते मेरी आँखों मे नींद उत्तर आई थी और मै उसके बाद तुरंत ही सोने चला गया।
घर में अभी भी मेहमान थे इसलिए जिसे जहां जगह मिली वो वही ही पसर गया। कुछ लोग तो गरमी के मौसम के ख़राब खेत खलियान में सो गये थे। मैं भी अपनी लूंगी लपेटे, उधड़े बदन, बगल में चद्दर और तकिया दबाए, सन्नाटे में सोने के लिये जगह लोकने लगा। मैंने देखा की सभी जगह, कोई न कोई सोये हुआ पड़ा है अतः जब मुझे कहीं जगह नहीं मिल पाई तो मैं छत के सबसे उपरी मंजिल पर चला गया। मेरी आँखों में नींद भरी हुई थी इसलिए मैंने छत पर जाकर जल्दी से चादर बिछायी ओर तकिया पर सर रख कर सो गया। भगवान की कृपा से मौसम बहुत बढ़िया था, दिन की तपिश के बाद रात में अच्छी हवा चल रही थी। मैं लेटने के बाद कब सो गया मुझे पता ही नही चला।
मैं गहरी नींद में था की मुझे अचानक कुछ अलग सी अनुभूति होने लगी और मैं असहज हो गया। हालांकि मेरी आंखे नींद में बंद थी और पूरी तरह चैतन्य अवस्था में भी नही था की मुझे में इस अनजान जगह में, अंधेरे में अकेले होने का एहसास सताने लगा। मैं एक अंजान डर से ग्रसित हो गया। मैने इस मनोस्थिति में जब डरते हुये आंख खोलनी चाही तो मैं पूरी तरह से आँखें भी नहीं खोल पाया। मैंने डरते डरते जब अपनी थोड़ी सी पलके खोली तो देखा कोई साया सा मेरे नजदीक बैठा हुआ है। मुझे जो दिखा था उससे मैं इतना भयाक्रांत हो गया की मैने तुरंत ही अपनी आंखे कस के बंद कर ली और डर के मारे हनुमान चालीसा, मन ही मन पढ़ने की कोशिश करने लगा। मैं आंखे बन्द किए, जो आभास वा जो दिखा था उसके बारे में सोचने लगा। अब मेरी नींद उड़ चुकी थी और चैतन्य भी हो गया था। यह आश्वस्त होने के लिए कि मुझे जो दिखा था, वो वास्तविक है या मेरा भ्रम, मैने हल्के से आंख खोल के पुनः देखा। मैं इस बार पूरा चैतन्य हो कर देख रहा था, मैंने धयान से साये को देखा तो वह साया एक महिला का दिखा। मैने झट से अपनी आंखे मूंद ली और मैं बुरी तरह डर गया। मुझे वह कोई भूत या चुड़ैल लग रही थी। मेरी डर के मारे घिग्घी बंधी हुई थी लेकिन तभी मुझे अपने लंड के ऊपर कुछ सिहरन की अनुभूति हुई। ऐसा लगा जैसे मेरे लंड को सहलाया जारहा है। लंड पर हुए उस स्पर्श से मेरे शरीर में एक विचित्र सा सपंदन होने लगा था। मैं इस अतिक्रमण की अनुभूति से बेहद दुविधा वा असमंजस में पड़ गया था।
ये है क्या? मेरे लंड को कोई स्पर्श कर रहा है या ये एक स्वप्न है? मैं जगा हूं या सपने में ही जगे होने का आभास हो रहा है? यह साया चुड़ैल है तो मेरे लंड को क्यों ऐसा कर रही है? ये यदि कोई महिला है तो क्यों है? ये महिला है कौन ? और इस समय यह मेंरे पास आ, मेरे लंड को अपने हाथ से क्यों सहला रही है?
मैं एक 18 साल का जवान, जो भले ही मन ही मन उलझन में डरा हुआ था लेकिन लूंगी के ऊपर से लंड को बराबर सहलाए जाने से, प्रकृति अनुसार उत्तेजित होने से नही रुक पारहा था। मेरे अंदर कामोत्तेजना का प्रवाह होने लगा था और मेरा लंड वशीभूत हों, धीरे धीरे कड़ा होने लगा था। मैं अपने खड़े होते हुए लंड से हड़बड़ा गया था। मुझे अपने शरीर में तेजी से दौड़ रहे रक्त की गर्मी स्पष्ट अनुभव हो रही थी लेकिन मैं वैसे ही जड़वत लेटा रहा।
मेरे लंड ने उस पर हो रहे स्पर्श ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दी थी उससे मेरे अंदर डर की भावना का तो विलोप हो गया था लेकिन घबड़ाहट अभी भी बनी हुई थी। मैं अपनी आंखे बंद किए हुए उस महिला को चेहरा देने की कोशिश करने लगा था। आखिर ये महिला है कौन और ये इस सुनसान छत के अंधियारे में, मेरे साथ ऐसा क्यो कर रही है? वैसे तो मैं समझ ही चुका था कि ये महिला मेंरे साथ क्या कर रही है लेकिन मुझे में उस महिला से कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी। ऐसा नहीं था की मेरे लंड पर पहले किसी लड़की या स्त्री का स्पर्श नही हुआ था या मैने किसी को चोदा नही था लेकिन जो हो रहा था, वह मेरे जीवन में पहली बार हो रहा था। मुझे पहली बार बलात उत्पीड़न का अनुभव हो रहा था। हां यह एक अलग बात थी की मेरे साथ जो महिला कर रही थी उससे वितृष्णा के स्थान पर कामोत्तेजना हो रही थी। मैं अब उस महिला द्वारा लंड सहलाए जाने के भाव में भी अंतर अनुभव करने लगा था। जहां पहले वो बड़ी आहिस्ते से लंड को स्पर्श कर रही थी वहीं अब कड़े हो गए लंड पर उसकी उंगलियों ने स्पर्श की गति बढ़ा दी थी।
उस रात चांद पूरा तो नही निकला हुआ था लेकिन चांद की रोशनी जरूर फैली हुई थी। उस रोशनी में मैं उस औरत को ध्यान से देख और पहचानने की कोशिश कर रहा था। वह महिला मेरे पास बैठकर मेरे बदन पर झुकती चली जा रही थी। मैंने उस महिला को देखा कि वह अपने बदन पर एक चादर सी ओढ रखी है ताकि उसे कोई पहचाने नहीं। वह महिला अभी तक मेरे लूंगी के उपर से ही मेंरे लंड पर अपना हाथ रख कर बस धीरे धीरे सहला रही थी। मेरा लंड उनके सहलाने से बिल्कुल तन्ना कर मेरी लूंगी के भीतर खड़ा हो रहा था। मैं अपने खड़े हो रहे लंड के आगे बिल्कुल बेबस महसूस करने लगा था और कब मेरे पैर ठीले पड़ गए मुझे पता ही नही चला। मेरे पूरे शरीर में झुरझरी दौड़ रही थी।
मैं उस चांदनी रात के उजाले में उसे पहचान तो नही पाया लेकिन इतना अनुमान जरूर हुआ कि वह महिला एक अधेड़ महिला है। जिसकी उम्र कम से कम मेरी मां की उम्र के बराबर लग रही थी। उस महिला की उम्र का अनुमान लग जाने पर मैं बड़ा विस्मित हुआ और साथ में मुझे बड़ी शर्म भी आ रहा थी की एक मां की उम्र की महिला, अपने बेटे के उम्र के लड़के के साथ इस तरह की हरकत कर रही थी। लेकिन यह शर्म मेरे अंदर कुछ देर ही तक रही क्योंकि वो महिला जो मेरे साथ कर रही थी वह मुझे आनंदलोक की सैर करा रही थी।
जिस तरह मैं अपने लंड से हो रही छेड़ छाड़ का पूरा मज़ा ले रहा था उसी तरह वो महिला भी मेरे लंड की गर्मी का मजा ले रही थी। मेरा लंड इधर अब लूंगी के अंदर पूरी तरह खड़ा हो चुका था और उधर मैं अभी भी अपना दम रोके, सोने का बहाना बनाये पड़ा हुआ, उस महिला की अगली हरकतों की राह देख रहा था। अब उसने मेरे तंबू बनाते हुए लंड को लूंगी के ऊपर से ही पहली बार अपनी मुट्ठी में आहिस्ते से दबा लिया। उसने जैसे ही मेरे लंड को मुट्ठी में लिया, मेरी इच्छा हुई कि अभी उठ खड़ा हूँ और उसको यही लिटा कर चोद डालूं लेकिन मेरी ऐसी कोई हिम्मत नही हुई।
मेरे लंड को मुट्ठी में लेने के बाद मुझे लगा की वो महिला मेरे लंड को अब सहलाने की जगह हिलाने लगी थी। उसके द्वारा मेरा लंड हिलाए जाने पर मैं बिल्कुल छटपटा गया और एक बार फिर हल्के से अपनी आंखें खोल कर उसकी तरफ देखने लगा। मैंने देखा कि वो अपने एक हाथ से मेरे लंड को हिला रही थी वहीं वो अपने दूसरे हाथ से चादर के ऊपर से अपनी छातियाँ मसल रही थी। यह देख कर मैं चुदास से भरभरा उठा और मेरा लंड तकलीफ देह रूप से भनभना कर फूल कर चौड़ा हो गया था। मैं अपने लंड की इस हालत को देख कर खुद भौचक्का हो गया था। मैंने आज तक अपने लंड को इस तरह जोश से भरपूर कभी होते नही देखा था। मेरे लंड की यह हालत उस अंजान महिला की बलात हरकत के कारण हो रही थी। उसकी गुदाज़ हथेली में मेरा लंड कुतुबमीनार बना हुआ था। मैं उस सन्नाटे में अधबुझी आंखों से उसे देख रहा था और वह भी बीच बीच में मेेरे चेहरे की तरफ़, मैं सो रहा हूँ या जाग रहा हूँ देखने के लिए नज़ारे दौड़ाती थी। उसे अपनी तरफ देखता हुआ देख कर मैं झट से अपनी आंखें बंद कर लेता था ताकि वह अभी भी यही समझती रहे कि मैं गहरी नींद में सो रहा हूँ।
अभी तक वह महिला अपना चेहरा, चादर से ढकी हुई थी और मेरे लंड को अपनी हथेली में जकड़े, मसल रही थी। वह मेरे लंड को मसलने में इतना तल्लीन हो गई कि अप्रत्याशित रूप से उसकी चादर, उसके सर से खिसक कर गर्दन पर फिसल गई और उसका अचानक उस औरत का चेहरा झलक सा गया, उसकी चादर मुंह पर से गिर के गर्दन पर आ गई थी। मैने उस चांदनी रोशनी में उसका हल्का सा चेहरा तो देखा लेकिन फिर भी मैं उस महिला को पहचान नहीं सका। वो अब जिस तरह मेरे लण्ड को पकड़ के तेजी से हिला रही थी उससे साफ पता चल रहा था की वह पूरी तरह मस्त थी। मुझे अब साफ दिख रहा था की वो एक हाथ से मेरा लंड हिला रही थी तो दूसरे हाथ से कभी चादर के नीचे अपनी छातियां दबा रही थी और कभी उस हाथ को नीचे भी ले जाकर हिला रही थी। मुझे नीचे वो क्या कर रही थी दिखा तो नही था लेकिन इतना तो समझ ही रहा था कि वह अपनी बुर को भी सहला रही थी। वो जब यह सब कर रही थी तब मुझे पहली बार उसके मुंह से सिसयाने की आवाज सुनाई पड़ी।
अब उसने आह आह उफ़ उफ़ करते हुये मेरी लूंगी की गांठ को धीरे से खोल दिया। उसने जैसे ही मेरी लूंगी को जरा से हटाया, मेरा लंड फनफनता हुआ स्प्रिंग की तरह बाहर निकल आया और वो महिला उसके रौद्र रूप को देख कर स्तंभित रह गई। वो मुंह खोले जड़ हो गई थी और चांदनी रात की रोशनी में मेरे तन्नाय और फूले हुए लंड को एकटक देखने लगी।
मैं अभी भी जड़वत वैसा ही पड़ा हुआ था और उस सन्नाटे में मुझे वह महिला, गहरी सांसे लेते हुए साफ सुनाई दे रही थी। मैने आंख के कोने से उसे देखा तो वो कभी मेरे खड़े लंड देखती थी और कभी वो मेरे चेहरे घूरती थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे वो किसी दुविधा में थी। वो सशंकित थी कि क्या मैं जग गया हूँ? क्या उसे अपने को नियंत्रित कर, रुक जाना चाहिए? कहीं मैं जग गया तो क्या उसका इस हालत में रुके रहना ठीक होगा? क्या इतना आगे बढ़ जाने पर, आगे और बढ़ना चाहिए? यदि मैं जग गया तो कही घबड़ाहाट में, मैं चिल्ला तो नही पडूंगा?
वह महिला काफी देर तक वहीं पर, वैसे ही जड़वत बैठे हुए मेरे लंड को घूरती रही और फिर अचानक ही उसने झपट्ट से मेरे खड़े नंगे लंड को पकड़ लिया। वो अपनी नरम उंगलियों से मेरे लंड को सहलाने लगी और अपने अंगूठे को मेरे लंड के सुपाड़े पर घुमाने लगी। उसने दो चार बार ही ऐसा किया होगा की उसने मेरे लंड को कस के अपनी मुट्ठी में ले लिया और लंड को हिलाने लगी। वो मेरे लंड को वैसे ही हिला रही थी वैसे मैं मुट्ठ मारते हुए अपने लंड को हिलाता था। वो दरअसल एक संगत के साथ मेरे लंड को हिला कर मेरे लंड को मुट्ठ मार रही थी। मेरा पूरा शरीर कंपित था, मैं भले ही आंखे बंद कर सोने का बहाना किए पड़ा था लेकिन मुट्ठ दिए जाने पर मेरी सांसे भारी चलनी शुरू हो गई थी।
वो मेरे लंड को इस तरह मुट्ठ मार रही थी उसका हाथ जब मेरे लंड की जड़ तक नीचे आता तो मेरा फूला हुआ सुपाड़ा बिल्कुल अलग से दिखने लगता था। मेरे जवान कड़े खड़े लंड की यह बानगी देख कर, वह महिला अब बिल्कुल बिंदास मस्ती में आचुकी थी। उसकी मेरे लंड पर जकड़ी हुई उंगलियां और गहरी खींचती हुई सांसे बता रही थी वो कामातुर हो चुकी है।
तभी मैने देखा कि उसने एकदम से अपने बदन पर पड़ी हुई चादर को हटा दिया और मैं यह देख कर चौंक गया की वो महिला अपने कमर से उपर नंगी हुई बैठे थी। उस महिला ने जब मेरी आंखे बन्द रही होंगी तब उसने कामातुर हो कर, मेरे लंड को हिलाते हिलाते, चादर के अंदर ही अपना ब्लाउज उतार दिया था और मुझे इसका एहसास भी नही हो पाया था। मैने जीवन मे पहली बार इस तरह के अलौकिक वातावरण में, काम पीड़ा से ग्रसित एक अधेड़ महिला को भावविह्वल हो कर, स्वयं ही नग्न होते हुए देखा था।
चांद की रोशनी में यह साफ पता चल रहा था कि जो सामने महिला है वो एक खुले रंग की है और उसकी छाती पर भारी भरकम चूचियां थी। उस महिला की मुट्ठी, उस महिला को मेरे जवान लंड का एहसास करा रही थी उसकी मोटी, बड़ी से चूंचियां मुझे इस महिला का एहसास करा रही थी। हवा में खुली हुई वो चूंचियां हल्की से ढलकी हुई थी और उसका आकार बता रहा था की वो एक ढलती उम्र की महिला की अमानत है। मैं चाँद की रोशनी में उसके दमकते बदन और बड़ी सी चुंचियाँ देख कर उसको चोदने के लिए बावला हो गया था। उसके बदन और चौड़ को देख एकदम से चोदने के लिए पागला गया था।
मैं एक तरफ उसे चोदने के लिए कामातुर हो रहा था वहीं पर अपने सोने के नाटक को खत्म करने की हिम्मत भी नही जुटा पा रहा था। मुझे डर था कहीं, मुझे जगा पाकर वो भाग नही जाए और मुझे जो अभी काम सुख मिल रहा है, उससे मैं वंचित हो जाऊंगा।
मैं इतना सब सोच कर बहुत सचेत था कि वो मुझे जगा हुआ नही समझे वही वो महिला बिंदास हो चुकी थी। मुझे अब उसका चेहरा ठीक से दिख रहा था और वो मुझे पहचानी हुई लग रही थी। ये महिला मेरी बुआ की बेटी की शादी में आई हुई एक मेहमान थी, जिसे आते जाते पिछले दिनों यहीं पर देखा हुआ था। वो शादी में बुआ या फूफा के किस रिश्ते से आई थी मुझे नही पता था क्योंकि मेरा न किसी ने परिचय कराया था और न ही कोई बात हुई थी। हां यह जरूर था की वो अकेले नही आई थी, उसके साथ उसका पूरा परिवार था। उसके पति तो करीब 50 के ऊपर के ही थे लेकिन देखने में बीमार से लगते थे। साथ में उसकी बेटी, बेटा और बहु भी थी। मैने इस महिला को एक छोटे बच्चे ,जो उसका पोता था, को गोदी में सुलाते हुये भी देखा था। इसी सब के आधार मेरा अब यह अनुमान हो चुका था की जो महिला अपनी छाती खोले मेरे नंगे लंड का मट्ठा कर रही है वो किसी भी हालत में 45 से कम उम्र की नही थी।
उस महिला की भले ही उससे ज्यादा ही उम्र हो लेकिन मुझे उस समय वह महिला एक जवान छोकरी से कम नहीं लग रही थी, जो मेरे नंगे लंड के इस तरह सहला कर, उपर नीचे कर के मेरी इस रात को कामुक बना रही थी।
वो जिस तरह मेरे लंड को सहलाते हुए धीरे से पुचकारने वा बड़बड़ाने लगी थी उससे मुझे लगने लगा था की वो अब अपनी चुदास से बेहाल हो चुकी है। अब मुझे दूसरा डर यह सताने लगा की ये यदि इसी तरह कुछ देर इसने मेरे लंड को और हिलाया तो मैं अब बर्दाश्त नही कर पाऊंगा और उसके हाथो में ही झड़ जाऊंगा! तभी मेरी भगवान से सुन ली और न जाने क्यूं उस महिला ने मेरे लंड से अपना हाथ हटा लिया। मेरे लंड का उससे हो रहा स्पर्श तो खत्म हो गया था लेकिन मेरा लंड अभी भी खंबे ऐसा खड़ा, झटके मार रहा था। यह जानने के लिए की क्या हुआ मैने उसके हाथ हटा जाने के आधा मिनिट बाद अपनी थोड़ी से आंख खोल कर उसकी तरफ देखा तो पाया की वह अभी वैसे ही बैठे हुए, इधर उधर देख रही थी। वो बार बार छत पर आई सीढी की तरह देख रही थी।
मैने यह सोच कर की उसे शायद कोई खटका हुआ इसलिए फिर से अपनी आंख बंद कर ली। मैंने अभी कस के अपनी आंख बंद ही की थी की मुझे अपने लंड के सुपाड़े पर कुछ गीला से लगा। मैं पूरी तरह चौंक पाता कि इससे पहले ही मैंने अपने सुपाड़े को होंठो की गिरफ्त में पाया। उसके इस अप्रत्याशित आक्रमण से मेरी आंख अनायास ही खुल गई तो देखा वो मेरे लंड पर झुकी हुई थी और उसकी भरी भरी चूचियां लटकी हुई थी। उसके गीले होंठ मेरे लंड के सुपाड़े पर ही थे और अपनी जीभ से मेरे सुपाड़े को सहला रही थी। उसकी इस हरकत से मेरे तन बदन में आग लग गई और एक बदहवासी सी मेरे अंदर फैल गई थी।
फिर वो अपने होठो को मेरे लंड पर रगड़ने लगी थी। वो मेरे लंड की फूली हुई नसों को अपने गीले होंठो से बिना आवाज किए चूमती और अपनी जीभ उस पर चलाती। मैं जिस उम्र और 70 के दशक के जिस काल में था उस समय तक मेरा स्त्री और कामकला को लेकर अनुभव बहुत कम था। मेरे साथ जो कुछ हो रहा था वह मेरे लिए अकल्पनीय था। मेरा उस वक्त तक अपना चूदाई को लेकर जो भी अनुभव था वह मेरे द्वारा की गई पहल पर आधारित था। उस वक्त तक किसी महिला, वह भी एक अधेड़ द्वारा, अपने पुत्र की आयु के बराबर लड़के पर इस तरह कामुक होकर अग्रघर्षण करना, मेरी सोच के ही परे था।
वह अब जिस तरह से बदहवास सी अपनी लटकती हिलती हुई चूंचियों से बेपरवाह मेरे लंड को होंठो से चूम और जीभ से चाट रही थी उसने मुझे सशंकित कर दिया था। कहीं ये महिला बौराई हुई तो नहीं है? जिस तरह से एक अंजान जगह पर, एक अंजान, पुत्र समान लड़के के लंड को चूषित कर रही थी वो तो कोई पागल ही कर सकता है! मेरा यह सब डर, कुछ क्षण के लिए ही मेरे अंदर रहा, फिर जहां उसने मेरे पूरे लंड को पहली बार आहिस्ते से, पूरे के पूरे अपने मुंह में ले लिया, तो मेरे लंड पर छाई उसके मुंह की गर्मी और होंठो की फिसलन ने मुझे कामातुर कर दिया था।
मैं उस महिला की कामकला में उन्मुक्तता से बड़ा चकित था। मुझे यह तो समझ में आ गया था कि यह महिला किसी गांव के परिवेश की नही है, यह जरूर एक पीढी लिखी महिला है जो शहर में रहती है। मेरा अपना मानना था की यदि यह महिला किसी गांव देहात की रहने वाली होती तो ऐसा मेरे साथ नहीं करती। मुझे 1976 में जितनी समझ चूदाई और उसके मनोविज्ञान को लेकर थी उससे एक गलत धारणा मेरे अंदर बन चुकी थी की जिस निर्लज्जता और उन्मुक्तता से उस महिला ने मेरे साथ छेड़छाड़ की थी वह गांव देहात की महिला नही कर सकती है और न ही उसे इसमें आनंद लेना जानती होगी।
मेरे लंड को वह जब इस तरह धीरे धीरे मेरे अपने मुंह में ले कर अपनी जीभ से उसे सहलाने लगी तो मैं अपने को नही रोक पाया और अनायास ही मेरे मुंह से आह का कातर स्वर निकलने लगा था। जब वो मेरे आधे से ज्यादा लंड को अपने मुंह में भर के अपनी जीभ से रगड़ने एवं चूसने लगी तो मेरे तन बदन में आग लग गई और मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई थी। मेरी सांसे तेज चलने लगी थी और मेरे मुंह से, न चाहते हुए भी आह आह की आवाज निकलने लगी थी। वो महिला मेरे लंड को मुंह में लेकर उसमे इतना रमी हुई थी की उस पर मेरी आवाज का कोई असर नहीं पड़ रहा था। जैसे मैं हूं ही नहीं!
मेरी कामुकता से भरी हुई निकलती हुई आहों का जब उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो मेंरे सब्र का बांध टूट गया और मैने हाथ आगे बढ़ा कर, सामने उसकी लटकी हुई भारी चूंची को पकड़ लिया और जोर से दबा दिया। मैने जैसे ही उसकी चूंची को दबाया वो बैठे ही उछल गई और मेरी तरफ देख कर उसके मुंह से, आईईईई की चीख निकल गई। वो भौचक्की सी, आंखे फाड़े मेरी तरफ देखने लगी और जड़ हो गई। उस क्षण ऐसा लगा जैसे सब कुछ रुक गया है। हमें सिर्फ एक दूसरे की गहरी चलती सांसे सुनाई दे रही थी और एक दूसरे को घूर रहे थे। उसके मन में क्या चल रहा था यह तो नहीं मालूम लेकिन मैं जल्दी से जल्दी आए इस विघ्न को छोड़, उसको बिस्तर पर गिरा कर चोदना चाहता था। मुझे उस वक्त इतनी चुदास लग रही थी कि मैंने उसकी चिंता किए बैगर उसकी चूंचियों को थाम लिया और उन्हें दबाने लगा। मैने जीवन मे इससे पहले कभी इतनी भारी भरकम चूंचियों पर हाथ नही लगाये थे, मेरी हथेलियों को भर रही इन चूंचियों ने मुझे विछिप्त सा कर दिया था।
मैं उसकी चुंचियों को पागलों की तरह दबाने और सहलाने लगा था और वो वैसे ही बैठे मुझसे दबवाती रही। मैने जब उसकी घुंडीयों को अपनी हथेली से रगड़ा और उंगलियों के बीच ले कर मसला तो उससे रहा न गया और वो 'आई आई' 'आह आह' की आवाज निकालने लगी थी। तभी उसने मेरे लंड को दोबारा से कस के अपनी हथेली में पकड़ लिया और उस पर झुक कर, मेरे पूरे लंड को अपने मुंह में घुसेड़ लिया। रहा था। अपने लंड को उसके मुंह में फिर से पाकर मैं बुरी तरह उत्तेजित हो गया था और मेरे मुंह से उफ उफ उफ की आवाज निकलने लगी थी। उसने अपने मुंह में कस के दबाते हुए मेरे लंड को चूसा तो मैं उसकी चूंचियों को दबाते हुए, अपनी कमर उठा कर उसके मुंह में ही धक्के देने लगा था। रहा था और तेज़ी से हांफने लगा था। मेरे लंड पर उस महिला की जीभ और मुंह से हो रही सनसनी को मैं सहन नही कर पाराहा था। मैं हाफने लगा था। वो मेरी और मेरे लंड की हालत देख कर समझ गई थी की मैं अब रुकने की स्थिति में नहीं हूं और झड़ने वाला हूं तो वो तेजी मेरे लंड को चूसने लगी। उसने मेरे लंड को जड़ की तरफ खींचा और मेरे फूले हुए सुपाड़े को अपनी जीभ से कसके रगड़ने लगी। मेरा सुपाड़ा उसकी जीभ की रगड़ा को चार, पांच बार ही झेल पाया की मेरे लंड से गरम वीर्य की पिचकारी छूट गई। मैने जब उफ्फ उफ्फ करते हुए उसके मुंह से लंड निकालने की कोशिश की तो मैं आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि उसने मेरे लंड को जड़ तक मुंह में ले लिया था। मेरा पूरा शरीर कांप रहा था और उसके मुंह में मेरा लंड झटके खा कर झड़ रहा था। मैं आनंदातिरेकिता की उस गहराई में गोते खाने लगा था जहां मेरे मुंह से क्या बोल निकल रहे है, हाथ कहां जारहे है और लंड कहां है, उसका कोई हवास नही रह गया था। मुझे कुछ क्षण बाद तभी होश आया जब मुझे अपने लंड में कुछ खिंचाव लगन लगा। मैने नीचे लंड की तरफ देखा तो वो महिला मेरे लंड को अभी भी मुंह में लिए हुए लंड को चूस रही थी। मेरे झड़े वीर्य की एक भी बूंद उसने छोड़ी नही थी, उसने मेरे सारे वीर्य को लंड को चूसते चूसते पी लिया था। यह मेरे जीवन में पहली बार हुआ था जब किसी ने मेरे लंड से निकले वीर्य को पी लिया था। मेरा इससे पहले जो अनुभव था उसमे तो किसी को लंड चूसने के लिए तैयार करना ही मुश्किल काम होता था और तमाम न नुकूर के बाद यदि लंड मुंह में लिया तो चूसना सिखाना पड़ता था और साथ में यह कसम भी खानी पड़ती थी की झड़ने से पहले लंड निकाल लूंगा और कहीं लंड बिना चेतावनी के मुंह में बहक गया तो थू थू करते हुए ओंकने लगती थी। लेकिन जो उस महिला ने मेरे लंड और उससे निकले वीर्य के साथ किया था वो मेरे लिए अदभुत था। उसने मेरी चूदाई के जीवन में एक नए अनुभव के साथ एक नया अध्याय जोड़ दिया था।
उसने मेरे लंड से निकली एक एक बूंद को पिया था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी प्राणशक्ति मेरे लंड से बाहर निकल गई है और मैं खोखला हो गया हूं। मैं थकान से चूर निढाल सा पड़ गया। उस महिला को जब इत्मीनान हो गया की सारा वीर्य निकल गया है और लंड भी निढाल हो गया है तो उसने मेरे लंड को अपने मुंह से निकाला और अपनी साड़ी के पल्लू से मेरे लंड को रगड़ के साफ कर दिया। यह भी मेरी चूदाई के जीवन का प्रथम था की जब किसी ने मेरे लंड को साफ़ किया था। उसने मेरे लंड को साफ़ करने के बाद मेरी और देखा पहली बार मुस्कराते हुए बोली -
प्रशांत बेटू, कैसा लगा?
उसके मुंह से अपना नाम और साथ में बेटू सुनकर मैं तो शर्म से गड़ गया। मैं उससे आंखे नही मिला पाया और तो और, मैं उस महिला को कोई जवाब भी नही दे पाया। उसने मुझे आंखे झुकाए, चुप देखा तो मेरे कान के पास आकर धीरे से बोली-
देखा, कितना मजा आता है? प्रशांत ऐसा मजा तो तुम कभी सोचे भी नहीं होगे?
और फिर वो मेरी हालत देख कर हंसती ही रही।
इसके बाद काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा। मैं वही पर लेटा रहा और वो भी कही नही हिली। मेरे साथ जो कुछ हुआ था वह स्वप्न से कम नही था। मेरे लिए यह बड़ा कौतूहल का विषय था की जिस महिला को भले पहचान गया था लेकिन जानता नही था, वह मुझे जानती है और इतना सब होने के बाद भी वही पर अभी भी बैठी हुई थी। मैं, समझता हूँ कि ऐसे ही करीब 15 मिनट बीता होगा की उस महिला ने मेरे लंड को फिर से अपने हाथ में ले लिया और उसे सहलाने लगी थी। उसके हाथों के स्पर्श और उससे निकल रही ऊष्मा ने जैसे मेरे मरे हुए लंड में फिर से जान डाल दी और वो फिर से खड़ा होने लगा था। उसके सहलाने और हिलाने से जब मेरा लंड फिर से तन्ना गया तो उसने धीमे से कहा -
देख बेटू कैसे तुम्हरा लौड़ा फिर फनफना उठा है!
मुझे खुद यह अनुभव हो रहा था की इस बार मेरा लंड पहले से ज्यादा तेजी से टनटनाया खड़ा हो गया है। मैने उसकी ओर देखा और पहली बार हिम्मत करते हुए बोला -
हाँ आन्टी, बहुत ही अच्छा लग रहा है। मुझे आज तक ऐसा मजा कभी नहीं आया और ना मैं यह सब जानता था। आज पहली बार हुआ।
मैने न जाने क्यों उससे, आंटी से झूठ बोल दिया की मैं कुछ नही जानता, आज पहली बार है हालंकि चूदाई के सुख का अनुभव पहले ही ले चुका था। मैने यह झूठ शायद इसलिए बोल दिया ताकि आंटी को यह जानकर आंतरिक सुख वा तृप्ति मिले की उन्होंने एक लड़के को पहली बार मर्द बनाया है और अपनी चुदास की प्यास एक कुंवारे लड़के से बुझाई है।
मेरी बात सुन कर आंटी मुस्करा कर मेरे लंड पर तेजी से हाथ फेरने लगी थी। तभी उन्होंने इस शिद्दत से मेरे लंड के सुपाड़े पर अपनी उंगलियां घुमाई की मैं 'उम्म्म' कहते हुए कराह पड़ा। मैंने कराहते हुए आन्टी से कहा -
उफ्फ आन्टी! आप बहुत अच्छी हो! आपके सामने तो सारी लड़कियां फेल है!
मेरी बात सुन कर आंटी हंसते हुये बोली -
चुप, बदमाश कही का! अच्छा लगा ना? अब आगे इससे कही ज्यादा मजा आयेगा।
यह कहते हुए आंटी ने मेरे लंड को कस के दबा दिया और मेरे सुपाडे पर उंगली चलाते हुए फुसफुसाई -
जब बूर में अपना लंड डाल कर चोदोगे तब असली मज़ा आयेगा।
मेरा लंड आंटी के मुंह से बुर, लंड और चुदाई की बात सुन कर झटके खाने लगा था।
आंटी समझदार थी उन्होंने दुनिया देखी हुई थी, वो जानती थी की वो एक जवान होते लड़के के साथ छेड़ खानी कर रही थी, जिसे चूदाई का अनुभव नहीं हुआ होगा। इसलिए उन्होंने मेरे लंड को अपना हथियार बनाया और सीधे चूदाई के रास्ते न ले जाकर, मेरे लंड को मुट्ठ मारकर और चूस कर झड़वा दिया था। वो जानती थी की मेरी उम्र के अछूते लड़के को यदि सीधे उन्होंने चूदाई में धकेल दिया तो मैं उनकी बुर की गर्मी ज्यादा नहीं झेल पाऊंगा। मैं दस बारह धक्के में ही पानी छोड़ दूंगा और वो प्यासी ही रह जायेंगी। उनके पास चूदाई का पहाड़ ऐसा अनुभव था, उन्हे मालूम था की जवान छोरे को एक बार झड़वाने के बाद दुबारा तैयार करके चुदेंगी तो वो ज्यादा देर तक चोदेगा और देर से झड़ेगा।
थोड़ी देर के बाद आंटी ने मेरे लंड को छोड़ दिया और मेरे टट्टे सहलाते हुए, लहराते आवाज में बोली -
प्रशांत कभी बुर देखी है?
मैने तुरंत सर हिलाकर न कह दिया, तो वो बोली -
मेंरी बूर देखना है?
मैंने तुरंत जोर से गर्दन हिला कर हां कहा तो वो मुझे यह करता देख कर, आन्टी हंसी और फुसफुसा कर मुझसे कहा-
मेरी बूर चोदना है? बेटू थोड़ा रुक।
यह कहकर आंटी उठ गई और इधर उधर देखने लगी। वो शायद एक बार फिर इत्मीनान कर लेंना चाहती कि कोई और उधर आ तो नही रहा है? मैं सबसे ऊपर वाली छत में लेटा था, हर तरफ सन्नाटा था और बाकी दुनिया भी अपनी अपनी जगह को पकड़े थके हुए गहरी नींद में सो रही थी।
मैं और आंटी उस चांदनी रात की रोशनी में एक दूसरे को साफ साफ देख रहे थे। मैने देखा की आन्टी अब पेटीकोट पहने हुई थी। उन्होंने कब साड़ी उतार फेकी थी मुझे दिखा ही नही था। मैं आंटी की बुर देखने के लिए उत्सुक हो रहा था और आंटी की तरफ से देरी मुझे अधीर कर रही थी। मैंने बेचैन हो कर कहा -
आंटी, दिखाओं न!
आंटी मेरी बेचैनी समझ कर मुस्करा दी और मेरे लंड को फिर से पकड़ कर हिलाते हुए बोली -
प्रशांत तेरा लंड, उम्र के हिसाब से तो बड़ा अच्छा है। इतना मस्त होगा, नही सोचा था।
आंटी ने फिर खनखनाती आवाज में बोली -
पहले मेरी छातियों को तो मसल!
आंटी की बात सुन कर मैंने झट से उनकी दोनो चुंचियो को को पकड़ लिया और मसलते हुए कहां -
आंटी ये छातियां नही, भारभराई हुई चूचियां है!
मेरी बात सुन कर आंटी के मुंह से आह निकल गई और उनकी घुंडीया फूल कर बड़ी होने लगी थी। उनकी घुंडियों को कड़ा होते देख कर मैंने उनकी घुंडियों को अपनी उंगलियों के बीच ले कर मसलने लगा। मैने जब यह किया तो आन्टी सी सी करने लगी। इसके बाद आंटी ने मेरा सर पकड़ अपनी चुंचियो पर दबा दिया और मेरे होंठ उनकी घुंडीयों पर अटक गये और मैं बच्चे की तरह उनको चूसने लगा था। मैं उनकी चुंचियो को चूस रहा था और आंटी का एक हाथ मेरे लंड को तेजी से हिलाने लगी और दूसरे हाथ से मेरी पीठ को सहलाने लगी।
इसके बाद, आंटी ने अपने हाथ पर ढेर सारा थूक निकाला कर मेरे लंड पर लगा दिया और उसको पकड़ कर, अपने हाथ को उपर नीचे करने लगी। आंटी की मुट्ठी में अब अपने फिसलते लंड ने मुझे तड़पा दिया था और मैने कराहते हुये कहा -
हाय आन्टी अब तो अपनी बुर दिखाओं ना! मुझसे रहा नहीं जा रहा।
अब आन्टी समझ गई थी मेरे ऐसे नए लड़के ने अब ज्यादा नही रुकना और धैर्य खोने वाला है। मेरी हालत देख कर उन्होंने चिढ़ाते हुये कहा -
अगर देखनी है तो खुद ही बढ़ के पेटीकोट खोलो और ढूंढ लो!
मैं इतना तपा हुआ था की मै झट से उठा और आन्टी के पेटीकोट के नाड़े को पकड़ कर खींच दिया। नाड़ा एक ही बार में खूल गया और आंटी का पेटीकोट कमर से एकदम ढीला हो गया। आंटी तो ऊपर से पहले से ही नंगी थी और अब मैंने अपने हाथों से उनके पेटीकोट को उनकी कमर से नीचे सरका कर पूरा नंगा कर दिया। मैं जीवन मे पहली बार किसी भरपूर अधेड़ महिला को नँगा देख रहा था, चांद की रोशनी में बड़ी बड़ी चूंचियों और बाल खोले नंगी बैठी आंटी को देख कर मेरी हालत, गरमाई कुतिया को देख कर एक बदहवास कुत्ते जैसे हो गई थी। मैंने आंटी को फटाक से अपनी बाहों में ले लिया और उनको कंधे से पकड़ कर, वही चादर पर ही गिरा दिया। आंटी ने कोई विरोध नही किया और कटे पेड़ की तरह धाराशाही हो गई। उनके गिरते ही मेरी आंखे उनकी जांघों के बीच अटक गई और उनकी बुर देखने लगा। मैने इतनी बड़ी बुर पहले कभी नहीं देखी थी और उसे देख कर मैं गनगना उठा था। उन्होंने कुछ दिन पहले ही अपनी बुर के बाल साफ किए हुए थे क्योंकि उनकी बुर पर बहुत हल्के से बाल उगे हुए थे। मैने कामातुर हो कर अपनी हथेली से उनकी बुर को ढक दिया।
उस चांदनी रात में नँगी लेटी हुई लगभग 50 साल की वो आंटी मुझे किसी अजंता एलोरा की मूर्ति से कम नही लग रही थी। मेरे हाथ अपने आप उनकी बुर पर चलने लगे और मेरा ऐसा करते ही आंटी ने भी अपनी जांघो को फैला दिया। अब उनकी बुर खुल के सामने आगायी थी मेरी उंगलियां उनकी बड़ी से फांकों वाली बुर को पूरी तरह से महसूस करने लगी थी। मैं उनकी एक तरफ गीली हो चुकी बुर रगड़ रहा था तो दूसरी तरफ, दूसरे हाथ से उनकी भारी चूंचियों को दबाते हुए, उनके ओंठो को चूस रहा था। मैं ऐसा करने से आंटी के मुंह से धीमे धीमे, आआह आआह की आवाज निकलने लगी थी।इधर मेरा लंड जो अब बुरी तरह फ़नफना रहा था उसको आंटी ने फिर से अपनी मुट्ठी में ले लिया और उसे तेजी से हिलाने लगी थी। मैं तब तक इतना आतुर हो चुका था की मैंने सब कुछ छोड़ दिया और आंटी के ऊपर आकर, उन्हे बेतहाशा चूमने लगा। मेरा लंड उनकी नंगी जांघों से रगड़ रहा था और अब मैं बिना समय गंवाए अपना लंड उनकी बुर में डाल कर उनको चोदना चाहता था। मुझे मालूम था की आंटी भी अब खुद चुदवाने के लिए बेकरार है इसलिए मैं अपने हाथ से लंड को पकड़ कर उनके बुर के छेद को टटोलने लगा। मेरा लंड उनकी बुर के छेद तक पहुंचा, उससे पहले ही आंटी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा -
रुक न! जब पहली बार चोद रहा तो बावरा क्यों हो रहा? रुक, पहले ठीक से फैल जाने दे!
यह कह कर आंटी ने वहां पड़ी मेरी तकिया को अपने कमर के नीचे घुसेड़ दिया। अब आन्टी की कमर का हिस्सा ऊपर हो गया था और उनकी बुर काफी सामने आगयी थी। आन्टी की उभरी हुई बुर को देख कर मेरा रहा सहा धैर्य भी जवाब दे गया और मैं अपना लंड उसमे घुसेड़ने के लिए, उनकी जांघों के बीच घुसने लगा। इस पर आन्टी ने मुझे पकड़ कर मेरे गालों को काट लिया और बोली -
अरे बेटू, अगर पूरा मजा लेना है तो पहले मेरी बुर को अपने हाथों से सहलाओं और पुचकारों, तब तेरे को और मजा मिलेगा।
मैं अब उनकी बातों को सोचता हूँ तो समझ आता है कि उस वक्त 50 साल की अधेड़ (उस ज़माने के हिसाब से बूढ़ी) आन्टी, मेरे ऐसे 18 साल के कुंवारे और अनाड़ी लड़के से चुदवाने के जोश में इतना मतवाली थी कि वो अपनी प्यासी बुजुर्ग बुर को मेरे लिए एकदम सुहागरात की निर्मल सुंदर कुंवारी चूत बना देना चाहती थी।
मैंने जैसे ही उनकी फूली हुई बुर पर अपनी हथेली रक्खी, आन्टी ने कसमसा कर कहां -
हाय प्रशांत तू कितना अच्छा है!
मैने आठ दस बार ही बुर को सहलाया था कि आन्टी बोली -
उम्म्म! बेटू जी मजा आया?
मैंने भी, उनकी बुर में उंगली करते हुए उखड़ी आवाज में बोला -
आन्टी आप की बुर बहुत मस्त है, बहुत खूबसूरत, हसीन है।
यह सुन कर आन्टी ने मुझे चूम लिया और मेरे होंठो को चूसते हुए कहा -
प्रशांत इससे भी ज्यादा मजा तब आयेगा जब तुम लंड से पहले मेरी बुर के अन्दर तक अपनी जीभ डाल कर चाटोगे, तब बुर का असली मज़ा मिलेगा।
यह सुन कर मेरा मजा दुगना हो गया क्योंकि यह उम्मीद नही थी की आंटी बुर चटाई वाली है। इससे पहले मैने जिनकी चाटी थी वे नए जमाने ( 70 के दशक) की थी और उस पर भी उनकी चूत चाटने के लिए उन्हें समझाना पड़ता था। आंटी की बात सुनकर मैंने फौरन नीचे आकर अपना मुंह उनकी बुर पर रख दिया। मेरा मुंह जैसे ही उनकी बुर पर पड़ा तो एक भभका सा उठा जो मेरी नाक में घुस गया। आंटी की बुर तो साफ थी लेकिन गर्मी के मौसम के कारण जांघो के पसीने ने बुर को दहका दिया था। मैने कुछ ही क्षण में उस महक को अपने दिमाग से निकाला और अपनी जीभ से उनकी पनियाई बुर को चाट लिया। उसके बाद मैने अपनी जीभ उनकी बुर में डाल दी और अंदर चाटने लगा। आंटी की बुर का एक अजीब सा नमकीन सा स्वाद था जिसने मुझे पगला दिया। मैंने अपने हाथो से आंटी की भारी मोती जांघों को थोड़ा और चौड़ा किया और अपनी जीभ पूरी तरह से उनकी बुर में घुसेड दिया। उसी के साथ मैं उनकी बुर को अपनी जीभ से चोदने लगा था। मेरे ऐसा करने से आंटी के मुंह से ओऊई ओऊई निकलने लगा और मेरे कंधे को अपनी बुर की तरफ धकेलते हुए पैर चलाने लगी। आंटी को मुझसे उनकी बुर की जीभ से इस तरह की चूदाई की आशा नही थी, वो तो मुझे अनाड़ी लड़का की समझ रही थी। आंटी की चूदास में छटपटाहट भांप कर मैं यह भूल गया की आंटी मुझे कुंवारा समझती है और मैने उनके भगांकुर (क्लिट) को होंठो से चूस लिया। मेरे यह करते ही आंटी उचक गई और
अपनी कमर ऊपर उठा कर धक्का मारते हुए, सिसयाती हुई बोली -
आआह प्रशांत! उफ्फ बेटू! तुम बहुत अच्छे, बहुत प्यार हो!
उनकी यह बात सुन मेरी जीभ उनकी बुर में पहले से ज्यादा वासनामय हो, अंदर घुसती चली गई। मेरी जीभ जिस तेजी से आन्टी के बुर में अंदर बाहर हो रही थी, उतनी ही तेजी से आंटी मुंह से तरह तरह की आवाजे निकल रही थी। उनके हाथ कभी मेरे लंड पर, कभी मेरी पीठ पर और कभी मेरे सर के बालों में घूमते और कभी मेरा सर अपनी बुर में और कस के दबा देती। आंटी अपनी बुर को चुसवा कर तंद्रा में चली गई थी। तभी अचानक उन्होंने दोनो हाथों से मेरा सर जकड़ लिया और आह ........आह.........ओह...... ओह........सी.......सी........ करने लगी। यह करते ही उनका बदन ऐठ गया, पैर कड़े हो गए और सीईईईई करते हुए उनकी बुर बह निकली। आंटी के बुर से निकले पानी से मेरे ओंठ नाक सब गीले हो गए थे और मैं समझ गया था कि आंटी खुल कर झड़ी है।
आंटी के झड़ते ही मैने अपनी जीभ को बुर से निकाल लिया और पास पड़ी लूंगी से मुंह पौछते हुए आन्टी के कमर के नीचे पड़ी तकिया को ठीक किया। फिर उनकी जांघों को को फैला कर, आन्टी के बुर पर अपने भन्नाए लंड को रख दिया। जब आन्टी ने मुझे यह करते हुए देखा तो उन्होंने अपने दोनो पैर और फैला कर उठा लिए। मैं उनकी जांघों के बीच घुस, उन्हे कंधों को पकड़ लिया। मैने आंटी को इतनी कस के जकड़ा हुआ था कि उनकी बड़ी सी चूंचियां मेरे सीने से दब गयी थी। मैने उसी के साथ इतनी जोर से धक्का मारा कि मेरा लंड एक ही बार में, तेजी के साथ सरसराता हुआ, गपाक से पुरा का पूरा लंड, आंटी की पनियाई बुर के भीतर घुस गया। आन्टी ने मुझे जोरों से अपने सीने में चिपक लिया और अपनी दोनो जांघों से मेरी कमर को घेरते हुये बोली -
उफ्फ प्रशांत तूने तो मेरी जान ही निकाल डाली!
आज पहली बार मुझे स्वच्छंद चुदाई का सुख मिल रहा था और मेरा लंड उस मनोहारी बुर के अंदर जाकर पूरा मुस्टंडा हो गया था। मुझे तब तक चोदने में कोई महारथ नही हासिल थी और न ही धैर्य का महत्व मालूम था इसलिए उस चांदनी रात में एक अधेड़ बुर में पड़े लंड का एक ही उद्देश्य था की जल्दी से जल्दी आंटी को चोद कर, उनकी बुर में झड़ना था। मैं, जो इतनी देर से वासना में तड़पा हुआ था उसे इस नई बुर में झड़ने का सुख लेना था। मैं 18 साल का नया तैयार हो रहा पट्ठा था जो चूदाई के जनून में सब कुछ भूल कर दम लगाकर आंटी को चोद रहा था। मेरे धक्के इतनी तेजी और जोर से लग रहे थे की आन्टी का पूरा भारी बदन सिहर उठ रहा था। वे मेरे हर धक्के पर कुछ न कुछ बड़बड़ाती और मुझको कस के जकड़ कर, खुद भी अपनी कमर उठा कर, मेरा पूरा लंड अपनी बुर में घुसेड़ लेती थी।
आंटी नीचे से जोर से उपर की ओर कमर को उछाल कर धक्के मार रही थी और मैं भी कामोत्तेजना में हुमक हुमक के धक्के मारे जारहा था। आंटी मेरे ताबड़ तोड़ धक्कों से बावरी हो रक्खी थी, वो मुझको अपनी छातियों से चिपकाए बार बार फूसफुसाती -
आह! आह! और जोर से चोद और जोर से! उफ्फ!! बेटू उफ्फ!
मेरी चूदाई से आंटी की बुर बहुत ज्यादा पनिया गई थी। मेरा लंड तेजी के साथ गपा गप उनकी बुर के अंदर जारहा था और उनकी बुर से फचाफच की आवाज़ आने लगी थी। मैं तो इस फचाफच की आवाज सुन कर ही दूसरी दुनिया में चला गया था और आंटी भी तंद्रा में चली गई थी। उनके मुंह से तरह तरह की आवाजे निकल रही थी और इसी वहशत में वो मेरी पीठ को रगड़ते हुए, अपनी उंगलियों के नाखूनों को गड़ा रही थी। इस चुदाई से सराबोर आंटी, मेरे लंड की हर चोट पर निछावर थी। वो जिस तरह से मुझे अपनी बाहों में जकड़े और कमर को जांघो के बीच दबाए, चोद रही थी या चुदवा रही थी उससे लग रहा था की आंटी अंतरात्मा से संतुष्ट है। उन्होंने शायद सपने में भी कभी नहीं सोचा होगा की वो अपनी दादी नानी वाली उम्र में, मेरे ऐसे कम उम्र के लड़के से चुदवा कर यह मज़ा उन्हें मिलेगा।
उनकी 50 वर्ष की बेआबाद बुर आज 18 साल के लंड को अंदर घुसड़वा कर, आबाद हो गई थी।
मेरा लंड लगभग 20/25 मिनिट लगातार चोदने के बाद भी नही झड़ पाया था आधा घण्टा बीत जाने के बाद अभी तक मेरे लण्ड नही झड़ पाया था लेकिन इस बीच आन्टी दो बार झड़ चुकी थी और उनकी बुर से निकला पानी मेरे टट्टों तक को भिगो चुका था। मैं अब झड़ने के लिए बेचैन हो रहा था लेकिन आंटी की जकड़ मुझ पर कमजोर नही पड़ रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे आन्टी को बस यही चाहिए, उन्हे कोई ऐसे ही खूब चोदता रहे। मैं चोदते हुये पसीने पसीने हो चुका था और यहां तक कि मेरी कमर भी दर्द देने लगी थी। तभी आंटी ने मेरे पीठ से अपना एक हाथ हटाया और अपनी बुर में अंदर बाहर हो रहे मेरे लंड और मेरे टट्टो को सहलाने लगी। उनके छूने में पता नही क्या विशेष था की टट्टों पर उनके स्पर्श से मेरा लंड झनझना गया और मैं वासना में पगला कर आन्टी को नोचने खसोटने लगा, दांतों से उनके गाल और चूंचियां काटने लगा था।
मेरी इस वहशी हरकत पर आंटी मुझे रोकने की बजाए, उन्होंने ने मुझे कस के बाहों में जकड़ लिया और आह आह! उफ्फ!! आआह! आई! कहते हुए अपनी कमर को ऊपर उछाल कर धक्के मारने लगी। आंटी ने 6/7 धक्के ही मारे होंगे की उन्होंने दईया रे! कहते हुए मुझ को चिपका लिया और मेरे कंधे को दांतों से काट खाया। इस बार आंटी बहुत तेज़ी से झड़ी थी। मैं उनके इस तरह से झड़ने से उत्तेजित हो गया की मैने 3/4 पूरे जोर से धक्के मारे और मेरे लंड से बलबला कर निकला गरमा गरम वीर्य, आंटी की बुर में समा गया।
मेरा चेहरा उस समय लाल था, सांसे उखड़ी हुई थी। मैं एक तरफ आंटी की बुर में झड़ रहा था तो दूसरी ओर अभी भी आन्टी को पकड़े धक्के पर धक्के लगा रहा था। आन्टी तो उस समय अपनी बुर में गिरे मेरे गरम वीर्य की अनुभूति से परमानंदित हो कर, अलग ही दुनिया मे थी। वह अभी भी उफ्फ! उफ्फ! ओह! ओह! दईया रे दईया! कहे जारही थी।
मैं उनको तब तक चोदता रहा जब तक मेरे लंड की सारी गर्मी नही निकल गई और वो मुरझा कर उनकी बुर के बाहर नही फिसल आया। आंटी ने भी पूरा सहयोग दिया और वो मुझे चूमते सहलाते बीच बीच में अपनी कमर को ऊपर धक्कियाती रही। जब मेरा लंड, आंटी के निकले पानी और मेरे अपने वीर्य से सराबोर, उनकी बुर से बाहर आया तब तक मैं धक कर पूरी तरह निढाल हो चुका था। मैं गहरी सांसे लेते हुए वैसे ही आंटी के ऊपर पड़ा रहा और आंटी मुझे थपथपाने लगी। उनके थपथपाने से मुझे नींद आने लगी थी लेकिन तभी आंटी ने मुझे अपने से अलग किया और उठ कर बैठ गई। उन्होंने जल्दी से अपने पेटीकोट से अपनी बुर को पोछा और फिर मुस्कराते हुए मेरे लंड की सफाई करने लगी। मैं इससे पहले की उनसे कुछ कह पाता, उन्होंने हंसते हुए मेरे गाल को सहलाया और उस रात के अंधेरे और सन्नाटे में जैसे वो आयी थी, वैसे ही चली गयी।
आंटी के जाते ही मैने जल्दी से लूंगी लपेटी और घोड़े बेच कर सो गया। मैं इतनी गहरी नींद सोया की मेरी नींद तभी टूटी जब किसी ने मेरे चेहरे पर पानी की छीटें मार कर जगाया। मैने जैसे ही आंखे खोली तो सामने मुझे वही रात वाली आंटी दिखी। दिन खुल चुका था और भोर का सूरज छत में उजाला किए हुए था। मैने पहली बार उनको गौर से रोशनी में देख रहा था। उनके आधे सफेद आधे काले बाल थे, रंग खुला हुआ था, हल्की मोटी थी और नाक नक्श कोई विशेष नही थे। उनको अब देख कर विश्वास ही नही हो रहा था कि साधारण सी दिखने वाली इस 50 साल की महिला ने मुझे रात में चोदा था। वह मुझे अपने सर पर पल्ला रक्खे, उसका एक कोना अपने दांतो में दबाए, हल्के से हंसते हुये देख रही थी। मैं शर्म के मारे उनकी तरफ देर तक नहीं देख सका और अपनी आंखे नीचे कर दी।
इतने में वह आन्टी हंसती हुये बोली -
का हो प्रशांत, रात में कोई भूतनी वुतनी तो नही आई?
मैं बस मुस्करा कर रह गया। वह मेरे लिए एक लोटा पानी और एक कप चाय ले कर आई थी। जब मैं कुछ नही बोला तो वह मुस्कुराती हुये मेरे पास पानी का लोटा और चाय रखते हुए धीरे से बोली -
अब उठो, रात भर का जगिए हो, देह कमर दर्द कर रहिए होगी, चाय पी लो। सब थकावट दूर हो जायेगी।
और इतना कह वह वापस मुड़ गई। छत के किनारे जाकर उन्होंने एक बार मेरी तरफ मुड़ कर देखा और फिर जीने से उतर गई। मैं अब पूरी तरह उठ कर बैठ गया था। रात को पूरी नींद नहीं सो पाया था लेकिन सुबह सुबह आकर आंटी के जगाने से सारी नींद उड़ चुकी थी। मैं अंजाने में खुद ही मुस्कराने लगा था। रात को जो हुआ था वो कोई सपना नही एक जीता जागता सत्य था।
सुबह आंटी जब सामने थी तब मैं झेंप जरूर रहा था लेकिन उन्हें देख के मेरे लंड हिलोरे खाने लगा था। उनके जाने के बाद रात की बात ही सोचने लगा और लंड फिर से खड़ा हो गया था। मेरा मन तो किया कि हिम्मत दिखाऊं और अभी आन्टी को नीचे से ऊपर ले आकार, उन्हें पटक कर चोद डालूं। पर यह सिर्फ मेरी वासनामय अभिलाषा थी जिसको पूर्ण करना मेरे लिए असंभव था। मैंने पानी से अपना हाथ मुंह और लण्ड धोया और चाय पीते पीते फिर से कल रात अपने लंड से आंटी की बुर की रंगीन चोदाई के बारे में सोचने लगा। यही सब सोचते सोचते मैं उग्र हो उठा और सोचा कि नीचे चल कर मुझे आंटी की आहट लेनी चाहिए और यदि मौका मिल गया तो उनसे एक बार फिर से चुदाई के लिए कहूंगा।
मैं जब नीचे आया तो देखा की बुआ फूफा के यहां से कुछ मेहमान वापस जाने की तैयारी कर रहे है, कुछ निकल भी रहे थे लेकिन मुझे वहां आंटी नही दिखाई दी। मैने करीब 10 बजे देखा कि आंटी अपने परिवार और साजो सामान के साथ बुआ फूफा से विदा ले रही है। उनकी बातो से पता चला की वो महिला जिन्हे मैं आंटी कह रहा था वो मेरी बुआ की सहेली थी। उनको जाता देख कर मेरा दिल बैठ गया, मेरा चेहरा उतर गया। आंटी जाते हुए सबसे मिल रही थी लेकिन मेरी ओर देख भी नही रही थी। ऐसा लग रहा था कि रात, छत में आई वो कोई और थी और यह कोई और है। उनको बस से कानपुर और फिर वहां से अपने घर ग्वालियर जाना था। फूफा जी ने कानपुर तक जाने के लिए उनका इंतज़ाम जीप से कर दिया था। वो लोग जब बैठे तो मैं भी बुझे मन से उन्हें छोड़ने द्वार तक गया। गाड़ी में सब लोग बैठ गए तो आंटी वहां खड़े बच्चो व नौकर चाकरो को रुपये देने के लिए रुक गई। आंटी जब उन सब को रुपए देने लगी तो उन्होंने मुझको भी वहां देख कर, मुझे भी 10 रुपए का नोट दे दिया। वो जब मुझे नोट दे रही थी तब उनकी आंखों में एक शरारत थी और नोट की तरफ इशारा करते हुए बोली -
कांता(मेरी बुआ) तेरा भतीजा बहुत कमेसुर है, शादी में बड़ा काम किये है। भगवान प्रशांत को खूब पढा लिखा कर सुंदर सी बहुरिया दे।
और गाड़ी में बैठ गई। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि मुझे समझ ही न आया कि मुझे क्या कहना या करना चाहिए। मेरा दिल तो चुदाई से पनपी आंटी के प्रति आसक्ति की अकाल मृत्यु से विहल था और मैं अंदर से रो रहा था।
उनके जाने के बाद बुआ फूफा अंदर आगये तो मैं भी यह तय करके की आज ही मां को लेकर वापस घर निकल जाऊंगा, अंदर आगया। मैं जब बुझे दिल से, बुआ के साथ लगे कमरे में, अपनी अटैची में समान रखने गया तो मुझे अपनी हथेली में बन्द मुड़े हुये 10 के नोट की याद आयी, जिसे आंटी ने दिया था। मैं जब उसको अपने पर्स में रखने लगा तो लगा कि उस 10 के नए नोट पर कुछ लिखा हुआ है। मैने उसे पढ़ा तो उसमे लिखा था,
"रात भूतनी से जो कमी रह गई वो ग्वालियर में पूरा करेगी, मेरा पता कांता से ले लेना, ग्वालियर जल्दी आना।"
कुछ दिनों बाद जब इंटर बोर्ड में, मैं प्रथम श्रेणी पास हो गया तो पिता जी से झांसी, ओरछा दतिया ग्वालियर घूमने जाने की बात की तो वो मान गए। मैं उस यात्रा के दौरान 3 दिन ग्वालियर में आंटी के यहां ही रहा। उसके संस्मरण कभी किसी दिन और लिखूंगा क्योंकि आंटी ने मेरी चूदाई जीवन की यात्रा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उन्होंने ने ही मुझे इसमें परिपक्वता प्रदान की है।
मैं बुआ की ससुराल पहली बार गया था और क्योंकि लड़की की शादी वाला घर था तो गांव में मौज मस्ती तो नही हुई उल्टे मुझे फूफा जी ने जनवासे में लगा दिया। आखिर शादी का दिन आया और सभी शुभ कार्य मंगलमय रूप से सम्पन्न हो गए और अगले दिन घर की लक्ष्मी यानी मेरी फुफेरी बहन विदा होकर अपने पति के साथ अपने ससुराल चली गई। उसकी विदा के बाद तो पूरे घर मे जैसे सन्नाटा सा छा गया। जो कुछ घर मे चहल कदमी थी वो उन मेहमानों के जाने से थी जो विदा के बाद वापसी कर रहे थे, उसमे मेरे पिता जी भी एक थे। में, मां के साथ, बुआ का घर समेटने के लिए कुछ दिनों के लिए रुक गया था। उस दिन शाम होते होते मुझे थकान लगने लगी थी, मैं पिछले तीन चार दिनों से भाग दौड़ से काफी थक सा गया था। रात को खाना खाते खाते मेरी आँखों मे नींद उत्तर आई थी और मै उसके बाद तुरंत ही सोने चला गया।
घर में अभी भी मेहमान थे इसलिए जिसे जहां जगह मिली वो वही ही पसर गया। कुछ लोग तो गरमी के मौसम के ख़राब खेत खलियान में सो गये थे। मैं भी अपनी लूंगी लपेटे, उधड़े बदन, बगल में चद्दर और तकिया दबाए, सन्नाटे में सोने के लिये जगह लोकने लगा। मैंने देखा की सभी जगह, कोई न कोई सोये हुआ पड़ा है अतः जब मुझे कहीं जगह नहीं मिल पाई तो मैं छत के सबसे उपरी मंजिल पर चला गया। मेरी आँखों में नींद भरी हुई थी इसलिए मैंने छत पर जाकर जल्दी से चादर बिछायी ओर तकिया पर सर रख कर सो गया। भगवान की कृपा से मौसम बहुत बढ़िया था, दिन की तपिश के बाद रात में अच्छी हवा चल रही थी। मैं लेटने के बाद कब सो गया मुझे पता ही नही चला।
मैं गहरी नींद में था की मुझे अचानक कुछ अलग सी अनुभूति होने लगी और मैं असहज हो गया। हालांकि मेरी आंखे नींद में बंद थी और पूरी तरह चैतन्य अवस्था में भी नही था की मुझे में इस अनजान जगह में, अंधेरे में अकेले होने का एहसास सताने लगा। मैं एक अंजान डर से ग्रसित हो गया। मैने इस मनोस्थिति में जब डरते हुये आंख खोलनी चाही तो मैं पूरी तरह से आँखें भी नहीं खोल पाया। मैंने डरते डरते जब अपनी थोड़ी सी पलके खोली तो देखा कोई साया सा मेरे नजदीक बैठा हुआ है। मुझे जो दिखा था उससे मैं इतना भयाक्रांत हो गया की मैने तुरंत ही अपनी आंखे कस के बंद कर ली और डर के मारे हनुमान चालीसा, मन ही मन पढ़ने की कोशिश करने लगा। मैं आंखे बन्द किए, जो आभास वा जो दिखा था उसके बारे में सोचने लगा। अब मेरी नींद उड़ चुकी थी और चैतन्य भी हो गया था। यह आश्वस्त होने के लिए कि मुझे जो दिखा था, वो वास्तविक है या मेरा भ्रम, मैने हल्के से आंख खोल के पुनः देखा। मैं इस बार पूरा चैतन्य हो कर देख रहा था, मैंने धयान से साये को देखा तो वह साया एक महिला का दिखा। मैने झट से अपनी आंखे मूंद ली और मैं बुरी तरह डर गया। मुझे वह कोई भूत या चुड़ैल लग रही थी। मेरी डर के मारे घिग्घी बंधी हुई थी लेकिन तभी मुझे अपने लंड के ऊपर कुछ सिहरन की अनुभूति हुई। ऐसा लगा जैसे मेरे लंड को सहलाया जारहा है। लंड पर हुए उस स्पर्श से मेरे शरीर में एक विचित्र सा सपंदन होने लगा था। मैं इस अतिक्रमण की अनुभूति से बेहद दुविधा वा असमंजस में पड़ गया था।
ये है क्या? मेरे लंड को कोई स्पर्श कर रहा है या ये एक स्वप्न है? मैं जगा हूं या सपने में ही जगे होने का आभास हो रहा है? यह साया चुड़ैल है तो मेरे लंड को क्यों ऐसा कर रही है? ये यदि कोई महिला है तो क्यों है? ये महिला है कौन ? और इस समय यह मेंरे पास आ, मेरे लंड को अपने हाथ से क्यों सहला रही है?
मैं एक 18 साल का जवान, जो भले ही मन ही मन उलझन में डरा हुआ था लेकिन लूंगी के ऊपर से लंड को बराबर सहलाए जाने से, प्रकृति अनुसार उत्तेजित होने से नही रुक पारहा था। मेरे अंदर कामोत्तेजना का प्रवाह होने लगा था और मेरा लंड वशीभूत हों, धीरे धीरे कड़ा होने लगा था। मैं अपने खड़े होते हुए लंड से हड़बड़ा गया था। मुझे अपने शरीर में तेजी से दौड़ रहे रक्त की गर्मी स्पष्ट अनुभव हो रही थी लेकिन मैं वैसे ही जड़वत लेटा रहा।
मेरे लंड ने उस पर हो रहे स्पर्श ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दी थी उससे मेरे अंदर डर की भावना का तो विलोप हो गया था लेकिन घबड़ाहट अभी भी बनी हुई थी। मैं अपनी आंखे बंद किए हुए उस महिला को चेहरा देने की कोशिश करने लगा था। आखिर ये महिला है कौन और ये इस सुनसान छत के अंधियारे में, मेरे साथ ऐसा क्यो कर रही है? वैसे तो मैं समझ ही चुका था कि ये महिला मेंरे साथ क्या कर रही है लेकिन मुझे में उस महिला से कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी। ऐसा नहीं था की मेरे लंड पर पहले किसी लड़की या स्त्री का स्पर्श नही हुआ था या मैने किसी को चोदा नही था लेकिन जो हो रहा था, वह मेरे जीवन में पहली बार हो रहा था। मुझे पहली बार बलात उत्पीड़न का अनुभव हो रहा था। हां यह एक अलग बात थी की मेरे साथ जो महिला कर रही थी उससे वितृष्णा के स्थान पर कामोत्तेजना हो रही थी। मैं अब उस महिला द्वारा लंड सहलाए जाने के भाव में भी अंतर अनुभव करने लगा था। जहां पहले वो बड़ी आहिस्ते से लंड को स्पर्श कर रही थी वहीं अब कड़े हो गए लंड पर उसकी उंगलियों ने स्पर्श की गति बढ़ा दी थी।
उस रात चांद पूरा तो नही निकला हुआ था लेकिन चांद की रोशनी जरूर फैली हुई थी। उस रोशनी में मैं उस औरत को ध्यान से देख और पहचानने की कोशिश कर रहा था। वह महिला मेरे पास बैठकर मेरे बदन पर झुकती चली जा रही थी। मैंने उस महिला को देखा कि वह अपने बदन पर एक चादर सी ओढ रखी है ताकि उसे कोई पहचाने नहीं। वह महिला अभी तक मेरे लूंगी के उपर से ही मेंरे लंड पर अपना हाथ रख कर बस धीरे धीरे सहला रही थी। मेरा लंड उनके सहलाने से बिल्कुल तन्ना कर मेरी लूंगी के भीतर खड़ा हो रहा था। मैं अपने खड़े हो रहे लंड के आगे बिल्कुल बेबस महसूस करने लगा था और कब मेरे पैर ठीले पड़ गए मुझे पता ही नही चला। मेरे पूरे शरीर में झुरझरी दौड़ रही थी।
मैं उस चांदनी रात के उजाले में उसे पहचान तो नही पाया लेकिन इतना अनुमान जरूर हुआ कि वह महिला एक अधेड़ महिला है। जिसकी उम्र कम से कम मेरी मां की उम्र के बराबर लग रही थी। उस महिला की उम्र का अनुमान लग जाने पर मैं बड़ा विस्मित हुआ और साथ में मुझे बड़ी शर्म भी आ रहा थी की एक मां की उम्र की महिला, अपने बेटे के उम्र के लड़के के साथ इस तरह की हरकत कर रही थी। लेकिन यह शर्म मेरे अंदर कुछ देर ही तक रही क्योंकि वो महिला जो मेरे साथ कर रही थी वह मुझे आनंदलोक की सैर करा रही थी।
जिस तरह मैं अपने लंड से हो रही छेड़ छाड़ का पूरा मज़ा ले रहा था उसी तरह वो महिला भी मेरे लंड की गर्मी का मजा ले रही थी। मेरा लंड इधर अब लूंगी के अंदर पूरी तरह खड़ा हो चुका था और उधर मैं अभी भी अपना दम रोके, सोने का बहाना बनाये पड़ा हुआ, उस महिला की अगली हरकतों की राह देख रहा था। अब उसने मेरे तंबू बनाते हुए लंड को लूंगी के ऊपर से ही पहली बार अपनी मुट्ठी में आहिस्ते से दबा लिया। उसने जैसे ही मेरे लंड को मुट्ठी में लिया, मेरी इच्छा हुई कि अभी उठ खड़ा हूँ और उसको यही लिटा कर चोद डालूं लेकिन मेरी ऐसी कोई हिम्मत नही हुई।
मेरे लंड को मुट्ठी में लेने के बाद मुझे लगा की वो महिला मेरे लंड को अब सहलाने की जगह हिलाने लगी थी। उसके द्वारा मेरा लंड हिलाए जाने पर मैं बिल्कुल छटपटा गया और एक बार फिर हल्के से अपनी आंखें खोल कर उसकी तरफ देखने लगा। मैंने देखा कि वो अपने एक हाथ से मेरे लंड को हिला रही थी वहीं वो अपने दूसरे हाथ से चादर के ऊपर से अपनी छातियाँ मसल रही थी। यह देख कर मैं चुदास से भरभरा उठा और मेरा लंड तकलीफ देह रूप से भनभना कर फूल कर चौड़ा हो गया था। मैं अपने लंड की इस हालत को देख कर खुद भौचक्का हो गया था। मैंने आज तक अपने लंड को इस तरह जोश से भरपूर कभी होते नही देखा था। मेरे लंड की यह हालत उस अंजान महिला की बलात हरकत के कारण हो रही थी। उसकी गुदाज़ हथेली में मेरा लंड कुतुबमीनार बना हुआ था। मैं उस सन्नाटे में अधबुझी आंखों से उसे देख रहा था और वह भी बीच बीच में मेेरे चेहरे की तरफ़, मैं सो रहा हूँ या जाग रहा हूँ देखने के लिए नज़ारे दौड़ाती थी। उसे अपनी तरफ देखता हुआ देख कर मैं झट से अपनी आंखें बंद कर लेता था ताकि वह अभी भी यही समझती रहे कि मैं गहरी नींद में सो रहा हूँ।
अभी तक वह महिला अपना चेहरा, चादर से ढकी हुई थी और मेरे लंड को अपनी हथेली में जकड़े, मसल रही थी। वह मेरे लंड को मसलने में इतना तल्लीन हो गई कि अप्रत्याशित रूप से उसकी चादर, उसके सर से खिसक कर गर्दन पर फिसल गई और उसका अचानक उस औरत का चेहरा झलक सा गया, उसकी चादर मुंह पर से गिर के गर्दन पर आ गई थी। मैने उस चांदनी रोशनी में उसका हल्का सा चेहरा तो देखा लेकिन फिर भी मैं उस महिला को पहचान नहीं सका। वो अब जिस तरह मेरे लण्ड को पकड़ के तेजी से हिला रही थी उससे साफ पता चल रहा था की वह पूरी तरह मस्त थी। मुझे अब साफ दिख रहा था की वो एक हाथ से मेरा लंड हिला रही थी तो दूसरे हाथ से कभी चादर के नीचे अपनी छातियां दबा रही थी और कभी उस हाथ को नीचे भी ले जाकर हिला रही थी। मुझे नीचे वो क्या कर रही थी दिखा तो नही था लेकिन इतना तो समझ ही रहा था कि वह अपनी बुर को भी सहला रही थी। वो जब यह सब कर रही थी तब मुझे पहली बार उसके मुंह से सिसयाने की आवाज सुनाई पड़ी।
अब उसने आह आह उफ़ उफ़ करते हुये मेरी लूंगी की गांठ को धीरे से खोल दिया। उसने जैसे ही मेरी लूंगी को जरा से हटाया, मेरा लंड फनफनता हुआ स्प्रिंग की तरह बाहर निकल आया और वो महिला उसके रौद्र रूप को देख कर स्तंभित रह गई। वो मुंह खोले जड़ हो गई थी और चांदनी रात की रोशनी में मेरे तन्नाय और फूले हुए लंड को एकटक देखने लगी।
मैं अभी भी जड़वत वैसा ही पड़ा हुआ था और उस सन्नाटे में मुझे वह महिला, गहरी सांसे लेते हुए साफ सुनाई दे रही थी। मैने आंख के कोने से उसे देखा तो वो कभी मेरे खड़े लंड देखती थी और कभी वो मेरे चेहरे घूरती थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे वो किसी दुविधा में थी। वो सशंकित थी कि क्या मैं जग गया हूँ? क्या उसे अपने को नियंत्रित कर, रुक जाना चाहिए? कहीं मैं जग गया तो क्या उसका इस हालत में रुके रहना ठीक होगा? क्या इतना आगे बढ़ जाने पर, आगे और बढ़ना चाहिए? यदि मैं जग गया तो कही घबड़ाहाट में, मैं चिल्ला तो नही पडूंगा?
वह महिला काफी देर तक वहीं पर, वैसे ही जड़वत बैठे हुए मेरे लंड को घूरती रही और फिर अचानक ही उसने झपट्ट से मेरे खड़े नंगे लंड को पकड़ लिया। वो अपनी नरम उंगलियों से मेरे लंड को सहलाने लगी और अपने अंगूठे को मेरे लंड के सुपाड़े पर घुमाने लगी। उसने दो चार बार ही ऐसा किया होगा की उसने मेरे लंड को कस के अपनी मुट्ठी में ले लिया और लंड को हिलाने लगी। वो मेरे लंड को वैसे ही हिला रही थी वैसे मैं मुट्ठ मारते हुए अपने लंड को हिलाता था। वो दरअसल एक संगत के साथ मेरे लंड को हिला कर मेरे लंड को मुट्ठ मार रही थी। मेरा पूरा शरीर कंपित था, मैं भले ही आंखे बंद कर सोने का बहाना किए पड़ा था लेकिन मुट्ठ दिए जाने पर मेरी सांसे भारी चलनी शुरू हो गई थी।
वो मेरे लंड को इस तरह मुट्ठ मार रही थी उसका हाथ जब मेरे लंड की जड़ तक नीचे आता तो मेरा फूला हुआ सुपाड़ा बिल्कुल अलग से दिखने लगता था। मेरे जवान कड़े खड़े लंड की यह बानगी देख कर, वह महिला अब बिल्कुल बिंदास मस्ती में आचुकी थी। उसकी मेरे लंड पर जकड़ी हुई उंगलियां और गहरी खींचती हुई सांसे बता रही थी वो कामातुर हो चुकी है।
तभी मैने देखा कि उसने एकदम से अपने बदन पर पड़ी हुई चादर को हटा दिया और मैं यह देख कर चौंक गया की वो महिला अपने कमर से उपर नंगी हुई बैठे थी। उस महिला ने जब मेरी आंखे बन्द रही होंगी तब उसने कामातुर हो कर, मेरे लंड को हिलाते हिलाते, चादर के अंदर ही अपना ब्लाउज उतार दिया था और मुझे इसका एहसास भी नही हो पाया था। मैने जीवन मे पहली बार इस तरह के अलौकिक वातावरण में, काम पीड़ा से ग्रसित एक अधेड़ महिला को भावविह्वल हो कर, स्वयं ही नग्न होते हुए देखा था।
चांद की रोशनी में यह साफ पता चल रहा था कि जो सामने महिला है वो एक खुले रंग की है और उसकी छाती पर भारी भरकम चूचियां थी। उस महिला की मुट्ठी, उस महिला को मेरे जवान लंड का एहसास करा रही थी उसकी मोटी, बड़ी से चूंचियां मुझे इस महिला का एहसास करा रही थी। हवा में खुली हुई वो चूंचियां हल्की से ढलकी हुई थी और उसका आकार बता रहा था की वो एक ढलती उम्र की महिला की अमानत है। मैं चाँद की रोशनी में उसके दमकते बदन और बड़ी सी चुंचियाँ देख कर उसको चोदने के लिए बावला हो गया था। उसके बदन और चौड़ को देख एकदम से चोदने के लिए पागला गया था।
मैं एक तरफ उसे चोदने के लिए कामातुर हो रहा था वहीं पर अपने सोने के नाटक को खत्म करने की हिम्मत भी नही जुटा पा रहा था। मुझे डर था कहीं, मुझे जगा पाकर वो भाग नही जाए और मुझे जो अभी काम सुख मिल रहा है, उससे मैं वंचित हो जाऊंगा।
मैं इतना सब सोच कर बहुत सचेत था कि वो मुझे जगा हुआ नही समझे वही वो महिला बिंदास हो चुकी थी। मुझे अब उसका चेहरा ठीक से दिख रहा था और वो मुझे पहचानी हुई लग रही थी। ये महिला मेरी बुआ की बेटी की शादी में आई हुई एक मेहमान थी, जिसे आते जाते पिछले दिनों यहीं पर देखा हुआ था। वो शादी में बुआ या फूफा के किस रिश्ते से आई थी मुझे नही पता था क्योंकि मेरा न किसी ने परिचय कराया था और न ही कोई बात हुई थी। हां यह जरूर था की वो अकेले नही आई थी, उसके साथ उसका पूरा परिवार था। उसके पति तो करीब 50 के ऊपर के ही थे लेकिन देखने में बीमार से लगते थे। साथ में उसकी बेटी, बेटा और बहु भी थी। मैने इस महिला को एक छोटे बच्चे ,जो उसका पोता था, को गोदी में सुलाते हुये भी देखा था। इसी सब के आधार मेरा अब यह अनुमान हो चुका था की जो महिला अपनी छाती खोले मेरे नंगे लंड का मट्ठा कर रही है वो किसी भी हालत में 45 से कम उम्र की नही थी।
उस महिला की भले ही उससे ज्यादा ही उम्र हो लेकिन मुझे उस समय वह महिला एक जवान छोकरी से कम नहीं लग रही थी, जो मेरे नंगे लंड के इस तरह सहला कर, उपर नीचे कर के मेरी इस रात को कामुक बना रही थी।
वो जिस तरह मेरे लंड को सहलाते हुए धीरे से पुचकारने वा बड़बड़ाने लगी थी उससे मुझे लगने लगा था की वो अब अपनी चुदास से बेहाल हो चुकी है। अब मुझे दूसरा डर यह सताने लगा की ये यदि इसी तरह कुछ देर इसने मेरे लंड को और हिलाया तो मैं अब बर्दाश्त नही कर पाऊंगा और उसके हाथो में ही झड़ जाऊंगा! तभी मेरी भगवान से सुन ली और न जाने क्यूं उस महिला ने मेरे लंड से अपना हाथ हटा लिया। मेरे लंड का उससे हो रहा स्पर्श तो खत्म हो गया था लेकिन मेरा लंड अभी भी खंबे ऐसा खड़ा, झटके मार रहा था। यह जानने के लिए की क्या हुआ मैने उसके हाथ हटा जाने के आधा मिनिट बाद अपनी थोड़ी से आंख खोल कर उसकी तरफ देखा तो पाया की वह अभी वैसे ही बैठे हुए, इधर उधर देख रही थी। वो बार बार छत पर आई सीढी की तरह देख रही थी।
मैने यह सोच कर की उसे शायद कोई खटका हुआ इसलिए फिर से अपनी आंख बंद कर ली। मैंने अभी कस के अपनी आंख बंद ही की थी की मुझे अपने लंड के सुपाड़े पर कुछ गीला से लगा। मैं पूरी तरह चौंक पाता कि इससे पहले ही मैंने अपने सुपाड़े को होंठो की गिरफ्त में पाया। उसके इस अप्रत्याशित आक्रमण से मेरी आंख अनायास ही खुल गई तो देखा वो मेरे लंड पर झुकी हुई थी और उसकी भरी भरी चूचियां लटकी हुई थी। उसके गीले होंठ मेरे लंड के सुपाड़े पर ही थे और अपनी जीभ से मेरे सुपाड़े को सहला रही थी। उसकी इस हरकत से मेरे तन बदन में आग लग गई और एक बदहवासी सी मेरे अंदर फैल गई थी।
फिर वो अपने होठो को मेरे लंड पर रगड़ने लगी थी। वो मेरे लंड की फूली हुई नसों को अपने गीले होंठो से बिना आवाज किए चूमती और अपनी जीभ उस पर चलाती। मैं जिस उम्र और 70 के दशक के जिस काल में था उस समय तक मेरा स्त्री और कामकला को लेकर अनुभव बहुत कम था। मेरे साथ जो कुछ हो रहा था वह मेरे लिए अकल्पनीय था। मेरा उस वक्त तक अपना चूदाई को लेकर जो भी अनुभव था वह मेरे द्वारा की गई पहल पर आधारित था। उस वक्त तक किसी महिला, वह भी एक अधेड़ द्वारा, अपने पुत्र की आयु के बराबर लड़के पर इस तरह कामुक होकर अग्रघर्षण करना, मेरी सोच के ही परे था।
वह अब जिस तरह से बदहवास सी अपनी लटकती हिलती हुई चूंचियों से बेपरवाह मेरे लंड को होंठो से चूम और जीभ से चाट रही थी उसने मुझे सशंकित कर दिया था। कहीं ये महिला बौराई हुई तो नहीं है? जिस तरह से एक अंजान जगह पर, एक अंजान, पुत्र समान लड़के के लंड को चूषित कर रही थी वो तो कोई पागल ही कर सकता है! मेरा यह सब डर, कुछ क्षण के लिए ही मेरे अंदर रहा, फिर जहां उसने मेरे पूरे लंड को पहली बार आहिस्ते से, पूरे के पूरे अपने मुंह में ले लिया, तो मेरे लंड पर छाई उसके मुंह की गर्मी और होंठो की फिसलन ने मुझे कामातुर कर दिया था।
मैं उस महिला की कामकला में उन्मुक्तता से बड़ा चकित था। मुझे यह तो समझ में आ गया था कि यह महिला किसी गांव के परिवेश की नही है, यह जरूर एक पीढी लिखी महिला है जो शहर में रहती है। मेरा अपना मानना था की यदि यह महिला किसी गांव देहात की रहने वाली होती तो ऐसा मेरे साथ नहीं करती। मुझे 1976 में जितनी समझ चूदाई और उसके मनोविज्ञान को लेकर थी उससे एक गलत धारणा मेरे अंदर बन चुकी थी की जिस निर्लज्जता और उन्मुक्तता से उस महिला ने मेरे साथ छेड़छाड़ की थी वह गांव देहात की महिला नही कर सकती है और न ही उसे इसमें आनंद लेना जानती होगी।
मेरे लंड को वह जब इस तरह धीरे धीरे मेरे अपने मुंह में ले कर अपनी जीभ से उसे सहलाने लगी तो मैं अपने को नही रोक पाया और अनायास ही मेरे मुंह से आह का कातर स्वर निकलने लगा था। जब वो मेरे आधे से ज्यादा लंड को अपने मुंह में भर के अपनी जीभ से रगड़ने एवं चूसने लगी तो मेरे तन बदन में आग लग गई और मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई थी। मेरी सांसे तेज चलने लगी थी और मेरे मुंह से, न चाहते हुए भी आह आह की आवाज निकलने लगी थी। वो महिला मेरे लंड को मुंह में लेकर उसमे इतना रमी हुई थी की उस पर मेरी आवाज का कोई असर नहीं पड़ रहा था। जैसे मैं हूं ही नहीं!
मेरी कामुकता से भरी हुई निकलती हुई आहों का जब उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो मेंरे सब्र का बांध टूट गया और मैने हाथ आगे बढ़ा कर, सामने उसकी लटकी हुई भारी चूंची को पकड़ लिया और जोर से दबा दिया। मैने जैसे ही उसकी चूंची को दबाया वो बैठे ही उछल गई और मेरी तरफ देख कर उसके मुंह से, आईईईई की चीख निकल गई। वो भौचक्की सी, आंखे फाड़े मेरी तरफ देखने लगी और जड़ हो गई। उस क्षण ऐसा लगा जैसे सब कुछ रुक गया है। हमें सिर्फ एक दूसरे की गहरी चलती सांसे सुनाई दे रही थी और एक दूसरे को घूर रहे थे। उसके मन में क्या चल रहा था यह तो नहीं मालूम लेकिन मैं जल्दी से जल्दी आए इस विघ्न को छोड़, उसको बिस्तर पर गिरा कर चोदना चाहता था। मुझे उस वक्त इतनी चुदास लग रही थी कि मैंने उसकी चिंता किए बैगर उसकी चूंचियों को थाम लिया और उन्हें दबाने लगा। मैने जीवन मे इससे पहले कभी इतनी भारी भरकम चूंचियों पर हाथ नही लगाये थे, मेरी हथेलियों को भर रही इन चूंचियों ने मुझे विछिप्त सा कर दिया था।
मैं उसकी चुंचियों को पागलों की तरह दबाने और सहलाने लगा था और वो वैसे ही बैठे मुझसे दबवाती रही। मैने जब उसकी घुंडीयों को अपनी हथेली से रगड़ा और उंगलियों के बीच ले कर मसला तो उससे रहा न गया और वो 'आई आई' 'आह आह' की आवाज निकालने लगी थी। तभी उसने मेरे लंड को दोबारा से कस के अपनी हथेली में पकड़ लिया और उस पर झुक कर, मेरे पूरे लंड को अपने मुंह में घुसेड़ लिया। रहा था। अपने लंड को उसके मुंह में फिर से पाकर मैं बुरी तरह उत्तेजित हो गया था और मेरे मुंह से उफ उफ उफ की आवाज निकलने लगी थी। उसने अपने मुंह में कस के दबाते हुए मेरे लंड को चूसा तो मैं उसकी चूंचियों को दबाते हुए, अपनी कमर उठा कर उसके मुंह में ही धक्के देने लगा था। रहा था और तेज़ी से हांफने लगा था। मेरे लंड पर उस महिला की जीभ और मुंह से हो रही सनसनी को मैं सहन नही कर पाराहा था। मैं हाफने लगा था। वो मेरी और मेरे लंड की हालत देख कर समझ गई थी की मैं अब रुकने की स्थिति में नहीं हूं और झड़ने वाला हूं तो वो तेजी मेरे लंड को चूसने लगी। उसने मेरे लंड को जड़ की तरफ खींचा और मेरे फूले हुए सुपाड़े को अपनी जीभ से कसके रगड़ने लगी। मेरा सुपाड़ा उसकी जीभ की रगड़ा को चार, पांच बार ही झेल पाया की मेरे लंड से गरम वीर्य की पिचकारी छूट गई। मैने जब उफ्फ उफ्फ करते हुए उसके मुंह से लंड निकालने की कोशिश की तो मैं आश्चर्य में पड़ गया क्योंकि उसने मेरे लंड को जड़ तक मुंह में ले लिया था। मेरा पूरा शरीर कांप रहा था और उसके मुंह में मेरा लंड झटके खा कर झड़ रहा था। मैं आनंदातिरेकिता की उस गहराई में गोते खाने लगा था जहां मेरे मुंह से क्या बोल निकल रहे है, हाथ कहां जारहे है और लंड कहां है, उसका कोई हवास नही रह गया था। मुझे कुछ क्षण बाद तभी होश आया जब मुझे अपने लंड में कुछ खिंचाव लगन लगा। मैने नीचे लंड की तरफ देखा तो वो महिला मेरे लंड को अभी भी मुंह में लिए हुए लंड को चूस रही थी। मेरे झड़े वीर्य की एक भी बूंद उसने छोड़ी नही थी, उसने मेरे सारे वीर्य को लंड को चूसते चूसते पी लिया था। यह मेरे जीवन में पहली बार हुआ था जब किसी ने मेरे लंड से निकले वीर्य को पी लिया था। मेरा इससे पहले जो अनुभव था उसमे तो किसी को लंड चूसने के लिए तैयार करना ही मुश्किल काम होता था और तमाम न नुकूर के बाद यदि लंड मुंह में लिया तो चूसना सिखाना पड़ता था और साथ में यह कसम भी खानी पड़ती थी की झड़ने से पहले लंड निकाल लूंगा और कहीं लंड बिना चेतावनी के मुंह में बहक गया तो थू थू करते हुए ओंकने लगती थी। लेकिन जो उस महिला ने मेरे लंड और उससे निकले वीर्य के साथ किया था वो मेरे लिए अदभुत था। उसने मेरी चूदाई के जीवन में एक नए अनुभव के साथ एक नया अध्याय जोड़ दिया था।
उसने मेरे लंड से निकली एक एक बूंद को पिया था। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी प्राणशक्ति मेरे लंड से बाहर निकल गई है और मैं खोखला हो गया हूं। मैं थकान से चूर निढाल सा पड़ गया। उस महिला को जब इत्मीनान हो गया की सारा वीर्य निकल गया है और लंड भी निढाल हो गया है तो उसने मेरे लंड को अपने मुंह से निकाला और अपनी साड़ी के पल्लू से मेरे लंड को रगड़ के साफ कर दिया। यह भी मेरी चूदाई के जीवन का प्रथम था की जब किसी ने मेरे लंड को साफ़ किया था। उसने मेरे लंड को साफ़ करने के बाद मेरी और देखा पहली बार मुस्कराते हुए बोली -
प्रशांत बेटू, कैसा लगा?
उसके मुंह से अपना नाम और साथ में बेटू सुनकर मैं तो शर्म से गड़ गया। मैं उससे आंखे नही मिला पाया और तो और, मैं उस महिला को कोई जवाब भी नही दे पाया। उसने मुझे आंखे झुकाए, चुप देखा तो मेरे कान के पास आकर धीरे से बोली-
देखा, कितना मजा आता है? प्रशांत ऐसा मजा तो तुम कभी सोचे भी नहीं होगे?
और फिर वो मेरी हालत देख कर हंसती ही रही।
इसके बाद काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा। मैं वही पर लेटा रहा और वो भी कही नही हिली। मेरे साथ जो कुछ हुआ था वह स्वप्न से कम नही था। मेरे लिए यह बड़ा कौतूहल का विषय था की जिस महिला को भले पहचान गया था लेकिन जानता नही था, वह मुझे जानती है और इतना सब होने के बाद भी वही पर अभी भी बैठी हुई थी। मैं, समझता हूँ कि ऐसे ही करीब 15 मिनट बीता होगा की उस महिला ने मेरे लंड को फिर से अपने हाथ में ले लिया और उसे सहलाने लगी थी। उसके हाथों के स्पर्श और उससे निकल रही ऊष्मा ने जैसे मेरे मरे हुए लंड में फिर से जान डाल दी और वो फिर से खड़ा होने लगा था। उसके सहलाने और हिलाने से जब मेरा लंड फिर से तन्ना गया तो उसने धीमे से कहा -
देख बेटू कैसे तुम्हरा लौड़ा फिर फनफना उठा है!
मुझे खुद यह अनुभव हो रहा था की इस बार मेरा लंड पहले से ज्यादा तेजी से टनटनाया खड़ा हो गया है। मैने उसकी ओर देखा और पहली बार हिम्मत करते हुए बोला -
हाँ आन्टी, बहुत ही अच्छा लग रहा है। मुझे आज तक ऐसा मजा कभी नहीं आया और ना मैं यह सब जानता था। आज पहली बार हुआ।
मैने न जाने क्यों उससे, आंटी से झूठ बोल दिया की मैं कुछ नही जानता, आज पहली बार है हालंकि चूदाई के सुख का अनुभव पहले ही ले चुका था। मैने यह झूठ शायद इसलिए बोल दिया ताकि आंटी को यह जानकर आंतरिक सुख वा तृप्ति मिले की उन्होंने एक लड़के को पहली बार मर्द बनाया है और अपनी चुदास की प्यास एक कुंवारे लड़के से बुझाई है।
मेरी बात सुन कर आंटी मुस्करा कर मेरे लंड पर तेजी से हाथ फेरने लगी थी। तभी उन्होंने इस शिद्दत से मेरे लंड के सुपाड़े पर अपनी उंगलियां घुमाई की मैं 'उम्म्म' कहते हुए कराह पड़ा। मैंने कराहते हुए आन्टी से कहा -
उफ्फ आन्टी! आप बहुत अच्छी हो! आपके सामने तो सारी लड़कियां फेल है!
मेरी बात सुन कर आंटी हंसते हुये बोली -
चुप, बदमाश कही का! अच्छा लगा ना? अब आगे इससे कही ज्यादा मजा आयेगा।
यह कहते हुए आंटी ने मेरे लंड को कस के दबा दिया और मेरे सुपाडे पर उंगली चलाते हुए फुसफुसाई -
जब बूर में अपना लंड डाल कर चोदोगे तब असली मज़ा आयेगा।
मेरा लंड आंटी के मुंह से बुर, लंड और चुदाई की बात सुन कर झटके खाने लगा था।
आंटी समझदार थी उन्होंने दुनिया देखी हुई थी, वो जानती थी की वो एक जवान होते लड़के के साथ छेड़ खानी कर रही थी, जिसे चूदाई का अनुभव नहीं हुआ होगा। इसलिए उन्होंने मेरे लंड को अपना हथियार बनाया और सीधे चूदाई के रास्ते न ले जाकर, मेरे लंड को मुट्ठ मारकर और चूस कर झड़वा दिया था। वो जानती थी की मेरी उम्र के अछूते लड़के को यदि सीधे उन्होंने चूदाई में धकेल दिया तो मैं उनकी बुर की गर्मी ज्यादा नहीं झेल पाऊंगा। मैं दस बारह धक्के में ही पानी छोड़ दूंगा और वो प्यासी ही रह जायेंगी। उनके पास चूदाई का पहाड़ ऐसा अनुभव था, उन्हे मालूम था की जवान छोरे को एक बार झड़वाने के बाद दुबारा तैयार करके चुदेंगी तो वो ज्यादा देर तक चोदेगा और देर से झड़ेगा।
थोड़ी देर के बाद आंटी ने मेरे लंड को छोड़ दिया और मेरे टट्टे सहलाते हुए, लहराते आवाज में बोली -
प्रशांत कभी बुर देखी है?
मैने तुरंत सर हिलाकर न कह दिया, तो वो बोली -
मेंरी बूर देखना है?
मैंने तुरंत जोर से गर्दन हिला कर हां कहा तो वो मुझे यह करता देख कर, आन्टी हंसी और फुसफुसा कर मुझसे कहा-
मेरी बूर चोदना है? बेटू थोड़ा रुक।
यह कहकर आंटी उठ गई और इधर उधर देखने लगी। वो शायद एक बार फिर इत्मीनान कर लेंना चाहती कि कोई और उधर आ तो नही रहा है? मैं सबसे ऊपर वाली छत में लेटा था, हर तरफ सन्नाटा था और बाकी दुनिया भी अपनी अपनी जगह को पकड़े थके हुए गहरी नींद में सो रही थी।
मैं और आंटी उस चांदनी रात की रोशनी में एक दूसरे को साफ साफ देख रहे थे। मैने देखा की आन्टी अब पेटीकोट पहने हुई थी। उन्होंने कब साड़ी उतार फेकी थी मुझे दिखा ही नही था। मैं आंटी की बुर देखने के लिए उत्सुक हो रहा था और आंटी की तरफ से देरी मुझे अधीर कर रही थी। मैंने बेचैन हो कर कहा -
आंटी, दिखाओं न!
आंटी मेरी बेचैनी समझ कर मुस्करा दी और मेरे लंड को फिर से पकड़ कर हिलाते हुए बोली -
प्रशांत तेरा लंड, उम्र के हिसाब से तो बड़ा अच्छा है। इतना मस्त होगा, नही सोचा था।
आंटी ने फिर खनखनाती आवाज में बोली -
पहले मेरी छातियों को तो मसल!
आंटी की बात सुन कर मैंने झट से उनकी दोनो चुंचियो को को पकड़ लिया और मसलते हुए कहां -
आंटी ये छातियां नही, भारभराई हुई चूचियां है!
मेरी बात सुन कर आंटी के मुंह से आह निकल गई और उनकी घुंडीया फूल कर बड़ी होने लगी थी। उनकी घुंडियों को कड़ा होते देख कर मैंने उनकी घुंडियों को अपनी उंगलियों के बीच ले कर मसलने लगा। मैने जब यह किया तो आन्टी सी सी करने लगी। इसके बाद आंटी ने मेरा सर पकड़ अपनी चुंचियो पर दबा दिया और मेरे होंठ उनकी घुंडीयों पर अटक गये और मैं बच्चे की तरह उनको चूसने लगा था। मैं उनकी चुंचियो को चूस रहा था और आंटी का एक हाथ मेरे लंड को तेजी से हिलाने लगी और दूसरे हाथ से मेरी पीठ को सहलाने लगी।
इसके बाद, आंटी ने अपने हाथ पर ढेर सारा थूक निकाला कर मेरे लंड पर लगा दिया और उसको पकड़ कर, अपने हाथ को उपर नीचे करने लगी। आंटी की मुट्ठी में अब अपने फिसलते लंड ने मुझे तड़पा दिया था और मैने कराहते हुये कहा -
हाय आन्टी अब तो अपनी बुर दिखाओं ना! मुझसे रहा नहीं जा रहा।
अब आन्टी समझ गई थी मेरे ऐसे नए लड़के ने अब ज्यादा नही रुकना और धैर्य खोने वाला है। मेरी हालत देख कर उन्होंने चिढ़ाते हुये कहा -
अगर देखनी है तो खुद ही बढ़ के पेटीकोट खोलो और ढूंढ लो!
मैं इतना तपा हुआ था की मै झट से उठा और आन्टी के पेटीकोट के नाड़े को पकड़ कर खींच दिया। नाड़ा एक ही बार में खूल गया और आंटी का पेटीकोट कमर से एकदम ढीला हो गया। आंटी तो ऊपर से पहले से ही नंगी थी और अब मैंने अपने हाथों से उनके पेटीकोट को उनकी कमर से नीचे सरका कर पूरा नंगा कर दिया। मैं जीवन मे पहली बार किसी भरपूर अधेड़ महिला को नँगा देख रहा था, चांद की रोशनी में बड़ी बड़ी चूंचियों और बाल खोले नंगी बैठी आंटी को देख कर मेरी हालत, गरमाई कुतिया को देख कर एक बदहवास कुत्ते जैसे हो गई थी। मैंने आंटी को फटाक से अपनी बाहों में ले लिया और उनको कंधे से पकड़ कर, वही चादर पर ही गिरा दिया। आंटी ने कोई विरोध नही किया और कटे पेड़ की तरह धाराशाही हो गई। उनके गिरते ही मेरी आंखे उनकी जांघों के बीच अटक गई और उनकी बुर देखने लगा। मैने इतनी बड़ी बुर पहले कभी नहीं देखी थी और उसे देख कर मैं गनगना उठा था। उन्होंने कुछ दिन पहले ही अपनी बुर के बाल साफ किए हुए थे क्योंकि उनकी बुर पर बहुत हल्के से बाल उगे हुए थे। मैने कामातुर हो कर अपनी हथेली से उनकी बुर को ढक दिया।
उस चांदनी रात में नँगी लेटी हुई लगभग 50 साल की वो आंटी मुझे किसी अजंता एलोरा की मूर्ति से कम नही लग रही थी। मेरे हाथ अपने आप उनकी बुर पर चलने लगे और मेरा ऐसा करते ही आंटी ने भी अपनी जांघो को फैला दिया। अब उनकी बुर खुल के सामने आगायी थी मेरी उंगलियां उनकी बड़ी से फांकों वाली बुर को पूरी तरह से महसूस करने लगी थी। मैं उनकी एक तरफ गीली हो चुकी बुर रगड़ रहा था तो दूसरी तरफ, दूसरे हाथ से उनकी भारी चूंचियों को दबाते हुए, उनके ओंठो को चूस रहा था। मैं ऐसा करने से आंटी के मुंह से धीमे धीमे, आआह आआह की आवाज निकलने लगी थी।इधर मेरा लंड जो अब बुरी तरह फ़नफना रहा था उसको आंटी ने फिर से अपनी मुट्ठी में ले लिया और उसे तेजी से हिलाने लगी थी। मैं तब तक इतना आतुर हो चुका था की मैंने सब कुछ छोड़ दिया और आंटी के ऊपर आकर, उन्हे बेतहाशा चूमने लगा। मेरा लंड उनकी नंगी जांघों से रगड़ रहा था और अब मैं बिना समय गंवाए अपना लंड उनकी बुर में डाल कर उनको चोदना चाहता था। मुझे मालूम था की आंटी भी अब खुद चुदवाने के लिए बेकरार है इसलिए मैं अपने हाथ से लंड को पकड़ कर उनके बुर के छेद को टटोलने लगा। मेरा लंड उनकी बुर के छेद तक पहुंचा, उससे पहले ही आंटी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा -
रुक न! जब पहली बार चोद रहा तो बावरा क्यों हो रहा? रुक, पहले ठीक से फैल जाने दे!
यह कह कर आंटी ने वहां पड़ी मेरी तकिया को अपने कमर के नीचे घुसेड़ दिया। अब आन्टी की कमर का हिस्सा ऊपर हो गया था और उनकी बुर काफी सामने आगयी थी। आन्टी की उभरी हुई बुर को देख कर मेरा रहा सहा धैर्य भी जवाब दे गया और मैं अपना लंड उसमे घुसेड़ने के लिए, उनकी जांघों के बीच घुसने लगा। इस पर आन्टी ने मुझे पकड़ कर मेरे गालों को काट लिया और बोली -
अरे बेटू, अगर पूरा मजा लेना है तो पहले मेरी बुर को अपने हाथों से सहलाओं और पुचकारों, तब तेरे को और मजा मिलेगा।
मैं अब उनकी बातों को सोचता हूँ तो समझ आता है कि उस वक्त 50 साल की अधेड़ (उस ज़माने के हिसाब से बूढ़ी) आन्टी, मेरे ऐसे 18 साल के कुंवारे और अनाड़ी लड़के से चुदवाने के जोश में इतना मतवाली थी कि वो अपनी प्यासी बुजुर्ग बुर को मेरे लिए एकदम सुहागरात की निर्मल सुंदर कुंवारी चूत बना देना चाहती थी।
मैंने जैसे ही उनकी फूली हुई बुर पर अपनी हथेली रक्खी, आन्टी ने कसमसा कर कहां -
हाय प्रशांत तू कितना अच्छा है!
मैने आठ दस बार ही बुर को सहलाया था कि आन्टी बोली -
उम्म्म! बेटू जी मजा आया?
मैंने भी, उनकी बुर में उंगली करते हुए उखड़ी आवाज में बोला -
आन्टी आप की बुर बहुत मस्त है, बहुत खूबसूरत, हसीन है।
यह सुन कर आन्टी ने मुझे चूम लिया और मेरे होंठो को चूसते हुए कहा -
प्रशांत इससे भी ज्यादा मजा तब आयेगा जब तुम लंड से पहले मेरी बुर के अन्दर तक अपनी जीभ डाल कर चाटोगे, तब बुर का असली मज़ा मिलेगा।
यह सुन कर मेरा मजा दुगना हो गया क्योंकि यह उम्मीद नही थी की आंटी बुर चटाई वाली है। इससे पहले मैने जिनकी चाटी थी वे नए जमाने ( 70 के दशक) की थी और उस पर भी उनकी चूत चाटने के लिए उन्हें समझाना पड़ता था। आंटी की बात सुनकर मैंने फौरन नीचे आकर अपना मुंह उनकी बुर पर रख दिया। मेरा मुंह जैसे ही उनकी बुर पर पड़ा तो एक भभका सा उठा जो मेरी नाक में घुस गया। आंटी की बुर तो साफ थी लेकिन गर्मी के मौसम के कारण जांघो के पसीने ने बुर को दहका दिया था। मैने कुछ ही क्षण में उस महक को अपने दिमाग से निकाला और अपनी जीभ से उनकी पनियाई बुर को चाट लिया। उसके बाद मैने अपनी जीभ उनकी बुर में डाल दी और अंदर चाटने लगा। आंटी की बुर का एक अजीब सा नमकीन सा स्वाद था जिसने मुझे पगला दिया। मैंने अपने हाथो से आंटी की भारी मोती जांघों को थोड़ा और चौड़ा किया और अपनी जीभ पूरी तरह से उनकी बुर में घुसेड दिया। उसी के साथ मैं उनकी बुर को अपनी जीभ से चोदने लगा था। मेरे ऐसा करने से आंटी के मुंह से ओऊई ओऊई निकलने लगा और मेरे कंधे को अपनी बुर की तरफ धकेलते हुए पैर चलाने लगी। आंटी को मुझसे उनकी बुर की जीभ से इस तरह की चूदाई की आशा नही थी, वो तो मुझे अनाड़ी लड़का की समझ रही थी। आंटी की चूदास में छटपटाहट भांप कर मैं यह भूल गया की आंटी मुझे कुंवारा समझती है और मैने उनके भगांकुर (क्लिट) को होंठो से चूस लिया। मेरे यह करते ही आंटी उचक गई और
अपनी कमर ऊपर उठा कर धक्का मारते हुए, सिसयाती हुई बोली -
आआह प्रशांत! उफ्फ बेटू! तुम बहुत अच्छे, बहुत प्यार हो!
उनकी यह बात सुन मेरी जीभ उनकी बुर में पहले से ज्यादा वासनामय हो, अंदर घुसती चली गई। मेरी जीभ जिस तेजी से आन्टी के बुर में अंदर बाहर हो रही थी, उतनी ही तेजी से आंटी मुंह से तरह तरह की आवाजे निकल रही थी। उनके हाथ कभी मेरे लंड पर, कभी मेरी पीठ पर और कभी मेरे सर के बालों में घूमते और कभी मेरा सर अपनी बुर में और कस के दबा देती। आंटी अपनी बुर को चुसवा कर तंद्रा में चली गई थी। तभी अचानक उन्होंने दोनो हाथों से मेरा सर जकड़ लिया और आह ........आह.........ओह...... ओह........सी.......सी........ करने लगी। यह करते ही उनका बदन ऐठ गया, पैर कड़े हो गए और सीईईईई करते हुए उनकी बुर बह निकली। आंटी के बुर से निकले पानी से मेरे ओंठ नाक सब गीले हो गए थे और मैं समझ गया था कि आंटी खुल कर झड़ी है।
आंटी के झड़ते ही मैने अपनी जीभ को बुर से निकाल लिया और पास पड़ी लूंगी से मुंह पौछते हुए आन्टी के कमर के नीचे पड़ी तकिया को ठीक किया। फिर उनकी जांघों को को फैला कर, आन्टी के बुर पर अपने भन्नाए लंड को रख दिया। जब आन्टी ने मुझे यह करते हुए देखा तो उन्होंने अपने दोनो पैर और फैला कर उठा लिए। मैं उनकी जांघों के बीच घुस, उन्हे कंधों को पकड़ लिया। मैने आंटी को इतनी कस के जकड़ा हुआ था कि उनकी बड़ी सी चूंचियां मेरे सीने से दब गयी थी। मैने उसी के साथ इतनी जोर से धक्का मारा कि मेरा लंड एक ही बार में, तेजी के साथ सरसराता हुआ, गपाक से पुरा का पूरा लंड, आंटी की पनियाई बुर के भीतर घुस गया। आन्टी ने मुझे जोरों से अपने सीने में चिपक लिया और अपनी दोनो जांघों से मेरी कमर को घेरते हुये बोली -
उफ्फ प्रशांत तूने तो मेरी जान ही निकाल डाली!
आज पहली बार मुझे स्वच्छंद चुदाई का सुख मिल रहा था और मेरा लंड उस मनोहारी बुर के अंदर जाकर पूरा मुस्टंडा हो गया था। मुझे तब तक चोदने में कोई महारथ नही हासिल थी और न ही धैर्य का महत्व मालूम था इसलिए उस चांदनी रात में एक अधेड़ बुर में पड़े लंड का एक ही उद्देश्य था की जल्दी से जल्दी आंटी को चोद कर, उनकी बुर में झड़ना था। मैं, जो इतनी देर से वासना में तड़पा हुआ था उसे इस नई बुर में झड़ने का सुख लेना था। मैं 18 साल का नया तैयार हो रहा पट्ठा था जो चूदाई के जनून में सब कुछ भूल कर दम लगाकर आंटी को चोद रहा था। मेरे धक्के इतनी तेजी और जोर से लग रहे थे की आन्टी का पूरा भारी बदन सिहर उठ रहा था। वे मेरे हर धक्के पर कुछ न कुछ बड़बड़ाती और मुझको कस के जकड़ कर, खुद भी अपनी कमर उठा कर, मेरा पूरा लंड अपनी बुर में घुसेड़ लेती थी।
आंटी नीचे से जोर से उपर की ओर कमर को उछाल कर धक्के मार रही थी और मैं भी कामोत्तेजना में हुमक हुमक के धक्के मारे जारहा था। आंटी मेरे ताबड़ तोड़ धक्कों से बावरी हो रक्खी थी, वो मुझको अपनी छातियों से चिपकाए बार बार फूसफुसाती -
आह! आह! और जोर से चोद और जोर से! उफ्फ!! बेटू उफ्फ!
मेरी चूदाई से आंटी की बुर बहुत ज्यादा पनिया गई थी। मेरा लंड तेजी के साथ गपा गप उनकी बुर के अंदर जारहा था और उनकी बुर से फचाफच की आवाज़ आने लगी थी। मैं तो इस फचाफच की आवाज सुन कर ही दूसरी दुनिया में चला गया था और आंटी भी तंद्रा में चली गई थी। उनके मुंह से तरह तरह की आवाजे निकल रही थी और इसी वहशत में वो मेरी पीठ को रगड़ते हुए, अपनी उंगलियों के नाखूनों को गड़ा रही थी। इस चुदाई से सराबोर आंटी, मेरे लंड की हर चोट पर निछावर थी। वो जिस तरह से मुझे अपनी बाहों में जकड़े और कमर को जांघो के बीच दबाए, चोद रही थी या चुदवा रही थी उससे लग रहा था की आंटी अंतरात्मा से संतुष्ट है। उन्होंने शायद सपने में भी कभी नहीं सोचा होगा की वो अपनी दादी नानी वाली उम्र में, मेरे ऐसे कम उम्र के लड़के से चुदवा कर यह मज़ा उन्हें मिलेगा।
उनकी 50 वर्ष की बेआबाद बुर आज 18 साल के लंड को अंदर घुसड़वा कर, आबाद हो गई थी।
मेरा लंड लगभग 20/25 मिनिट लगातार चोदने के बाद भी नही झड़ पाया था आधा घण्टा बीत जाने के बाद अभी तक मेरे लण्ड नही झड़ पाया था लेकिन इस बीच आन्टी दो बार झड़ चुकी थी और उनकी बुर से निकला पानी मेरे टट्टों तक को भिगो चुका था। मैं अब झड़ने के लिए बेचैन हो रहा था लेकिन आंटी की जकड़ मुझ पर कमजोर नही पड़ रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे आन्टी को बस यही चाहिए, उन्हे कोई ऐसे ही खूब चोदता रहे। मैं चोदते हुये पसीने पसीने हो चुका था और यहां तक कि मेरी कमर भी दर्द देने लगी थी। तभी आंटी ने मेरे पीठ से अपना एक हाथ हटाया और अपनी बुर में अंदर बाहर हो रहे मेरे लंड और मेरे टट्टो को सहलाने लगी। उनके छूने में पता नही क्या विशेष था की टट्टों पर उनके स्पर्श से मेरा लंड झनझना गया और मैं वासना में पगला कर आन्टी को नोचने खसोटने लगा, दांतों से उनके गाल और चूंचियां काटने लगा था।
मेरी इस वहशी हरकत पर आंटी मुझे रोकने की बजाए, उन्होंने ने मुझे कस के बाहों में जकड़ लिया और आह आह! उफ्फ!! आआह! आई! कहते हुए अपनी कमर को ऊपर उछाल कर धक्के मारने लगी। आंटी ने 6/7 धक्के ही मारे होंगे की उन्होंने दईया रे! कहते हुए मुझ को चिपका लिया और मेरे कंधे को दांतों से काट खाया। इस बार आंटी बहुत तेज़ी से झड़ी थी। मैं उनके इस तरह से झड़ने से उत्तेजित हो गया की मैने 3/4 पूरे जोर से धक्के मारे और मेरे लंड से बलबला कर निकला गरमा गरम वीर्य, आंटी की बुर में समा गया।
मेरा चेहरा उस समय लाल था, सांसे उखड़ी हुई थी। मैं एक तरफ आंटी की बुर में झड़ रहा था तो दूसरी ओर अभी भी आन्टी को पकड़े धक्के पर धक्के लगा रहा था। आन्टी तो उस समय अपनी बुर में गिरे मेरे गरम वीर्य की अनुभूति से परमानंदित हो कर, अलग ही दुनिया मे थी। वह अभी भी उफ्फ! उफ्फ! ओह! ओह! दईया रे दईया! कहे जारही थी।
मैं उनको तब तक चोदता रहा जब तक मेरे लंड की सारी गर्मी नही निकल गई और वो मुरझा कर उनकी बुर के बाहर नही फिसल आया। आंटी ने भी पूरा सहयोग दिया और वो मुझे चूमते सहलाते बीच बीच में अपनी कमर को ऊपर धक्कियाती रही। जब मेरा लंड, आंटी के निकले पानी और मेरे अपने वीर्य से सराबोर, उनकी बुर से बाहर आया तब तक मैं धक कर पूरी तरह निढाल हो चुका था। मैं गहरी सांसे लेते हुए वैसे ही आंटी के ऊपर पड़ा रहा और आंटी मुझे थपथपाने लगी। उनके थपथपाने से मुझे नींद आने लगी थी लेकिन तभी आंटी ने मुझे अपने से अलग किया और उठ कर बैठ गई। उन्होंने जल्दी से अपने पेटीकोट से अपनी बुर को पोछा और फिर मुस्कराते हुए मेरे लंड की सफाई करने लगी। मैं इससे पहले की उनसे कुछ कह पाता, उन्होंने हंसते हुए मेरे गाल को सहलाया और उस रात के अंधेरे और सन्नाटे में जैसे वो आयी थी, वैसे ही चली गयी।
आंटी के जाते ही मैने जल्दी से लूंगी लपेटी और घोड़े बेच कर सो गया। मैं इतनी गहरी नींद सोया की मेरी नींद तभी टूटी जब किसी ने मेरे चेहरे पर पानी की छीटें मार कर जगाया। मैने जैसे ही आंखे खोली तो सामने मुझे वही रात वाली आंटी दिखी। दिन खुल चुका था और भोर का सूरज छत में उजाला किए हुए था। मैने पहली बार उनको गौर से रोशनी में देख रहा था। उनके आधे सफेद आधे काले बाल थे, रंग खुला हुआ था, हल्की मोटी थी और नाक नक्श कोई विशेष नही थे। उनको अब देख कर विश्वास ही नही हो रहा था कि साधारण सी दिखने वाली इस 50 साल की महिला ने मुझे रात में चोदा था। वह मुझे अपने सर पर पल्ला रक्खे, उसका एक कोना अपने दांतो में दबाए, हल्के से हंसते हुये देख रही थी। मैं शर्म के मारे उनकी तरफ देर तक नहीं देख सका और अपनी आंखे नीचे कर दी।
इतने में वह आन्टी हंसती हुये बोली -
का हो प्रशांत, रात में कोई भूतनी वुतनी तो नही आई?
मैं बस मुस्करा कर रह गया। वह मेरे लिए एक लोटा पानी और एक कप चाय ले कर आई थी। जब मैं कुछ नही बोला तो वह मुस्कुराती हुये मेरे पास पानी का लोटा और चाय रखते हुए धीरे से बोली -
अब उठो, रात भर का जगिए हो, देह कमर दर्द कर रहिए होगी, चाय पी लो। सब थकावट दूर हो जायेगी।
और इतना कह वह वापस मुड़ गई। छत के किनारे जाकर उन्होंने एक बार मेरी तरफ मुड़ कर देखा और फिर जीने से उतर गई। मैं अब पूरी तरह उठ कर बैठ गया था। रात को पूरी नींद नहीं सो पाया था लेकिन सुबह सुबह आकर आंटी के जगाने से सारी नींद उड़ चुकी थी। मैं अंजाने में खुद ही मुस्कराने लगा था। रात को जो हुआ था वो कोई सपना नही एक जीता जागता सत्य था।
सुबह आंटी जब सामने थी तब मैं झेंप जरूर रहा था लेकिन उन्हें देख के मेरे लंड हिलोरे खाने लगा था। उनके जाने के बाद रात की बात ही सोचने लगा और लंड फिर से खड़ा हो गया था। मेरा मन तो किया कि हिम्मत दिखाऊं और अभी आन्टी को नीचे से ऊपर ले आकार, उन्हें पटक कर चोद डालूं। पर यह सिर्फ मेरी वासनामय अभिलाषा थी जिसको पूर्ण करना मेरे लिए असंभव था। मैंने पानी से अपना हाथ मुंह और लण्ड धोया और चाय पीते पीते फिर से कल रात अपने लंड से आंटी की बुर की रंगीन चोदाई के बारे में सोचने लगा। यही सब सोचते सोचते मैं उग्र हो उठा और सोचा कि नीचे चल कर मुझे आंटी की आहट लेनी चाहिए और यदि मौका मिल गया तो उनसे एक बार फिर से चुदाई के लिए कहूंगा।
मैं जब नीचे आया तो देखा की बुआ फूफा के यहां से कुछ मेहमान वापस जाने की तैयारी कर रहे है, कुछ निकल भी रहे थे लेकिन मुझे वहां आंटी नही दिखाई दी। मैने करीब 10 बजे देखा कि आंटी अपने परिवार और साजो सामान के साथ बुआ फूफा से विदा ले रही है। उनकी बातो से पता चला की वो महिला जिन्हे मैं आंटी कह रहा था वो मेरी बुआ की सहेली थी। उनको जाता देख कर मेरा दिल बैठ गया, मेरा चेहरा उतर गया। आंटी जाते हुए सबसे मिल रही थी लेकिन मेरी ओर देख भी नही रही थी। ऐसा लग रहा था कि रात, छत में आई वो कोई और थी और यह कोई और है। उनको बस से कानपुर और फिर वहां से अपने घर ग्वालियर जाना था। फूफा जी ने कानपुर तक जाने के लिए उनका इंतज़ाम जीप से कर दिया था। वो लोग जब बैठे तो मैं भी बुझे मन से उन्हें छोड़ने द्वार तक गया। गाड़ी में सब लोग बैठ गए तो आंटी वहां खड़े बच्चो व नौकर चाकरो को रुपये देने के लिए रुक गई। आंटी जब उन सब को रुपए देने लगी तो उन्होंने मुझको भी वहां देख कर, मुझे भी 10 रुपए का नोट दे दिया। वो जब मुझे नोट दे रही थी तब उनकी आंखों में एक शरारत थी और नोट की तरफ इशारा करते हुए बोली -
कांता(मेरी बुआ) तेरा भतीजा बहुत कमेसुर है, शादी में बड़ा काम किये है। भगवान प्रशांत को खूब पढा लिखा कर सुंदर सी बहुरिया दे।
और गाड़ी में बैठ गई। यह सब इतनी तेजी से हुआ कि मुझे समझ ही न आया कि मुझे क्या कहना या करना चाहिए। मेरा दिल तो चुदाई से पनपी आंटी के प्रति आसक्ति की अकाल मृत्यु से विहल था और मैं अंदर से रो रहा था।
उनके जाने के बाद बुआ फूफा अंदर आगये तो मैं भी यह तय करके की आज ही मां को लेकर वापस घर निकल जाऊंगा, अंदर आगया। मैं जब बुझे दिल से, बुआ के साथ लगे कमरे में, अपनी अटैची में समान रखने गया तो मुझे अपनी हथेली में बन्द मुड़े हुये 10 के नोट की याद आयी, जिसे आंटी ने दिया था। मैं जब उसको अपने पर्स में रखने लगा तो लगा कि उस 10 के नए नोट पर कुछ लिखा हुआ है। मैने उसे पढ़ा तो उसमे लिखा था,
"रात भूतनी से जो कमी रह गई वो ग्वालियर में पूरा करेगी, मेरा पता कांता से ले लेना, ग्वालियर जल्दी आना।"
कुछ दिनों बाद जब इंटर बोर्ड में, मैं प्रथम श्रेणी पास हो गया तो पिता जी से झांसी, ओरछा दतिया ग्वालियर घूमने जाने की बात की तो वो मान गए। मैं उस यात्रा के दौरान 3 दिन ग्वालियर में आंटी के यहां ही रहा। उसके संस्मरण कभी किसी दिन और लिखूंगा क्योंकि आंटी ने मेरी चूदाई जीवन की यात्रा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उन्होंने ने ही मुझे इसमें परिपक्वता प्रदान की है।
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