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Incest रिश्तों का कामुक संगम

vyabhichari

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परिचय

आज साल का आखरी दिन था यानी 31 दिसंबर। हालांकि राघोपुर गांव था, पर पटना से बस 35 कि. मी. दूर था। गांव के बूढ़े तो सो चुके थे, पर कुछ नौ जवान गांव की चौपाल पर पटाखे चलाने के लिए इकट्ठे हुए थे। अभी रात के 12 बजने में समय था, तो सब आपस मे बाते कर रहे थे। सबलोग हंसी मजाक कर रहे थे। उनमें से एक लड़का था राजीव पर सब उसको राजू कहते थे। वो बेसब्री से 12 बजने का इंतज़ार कर रहा था। वैसे तो हर साल उसको बड़ा मजा आता था, पर आज वो अंदर ही अंदर सोच रहा था की जल्दी से वो वहां से निकल ले। तभी उसका मोबाइल बज उठा। राजू ने झट से फोन उठाया उसपे लिखा था गुड्डी दीदी। असल मे वो उसकी बड़ी बहन गुड़िया का फोन था, जिसे वो प्यार से गुड्डी दीदी कहता था। राजू बोला," हेलो, का भईल आईं का? तभी उधर से आवाज़ आयी," राजू तू जल्दी घर पहुंचआ, तहार दीदी के थैली फाट गईल। वो आवाज़ उसके विधवा माँ बीना की थी। राजू ने अपने दोस्त अरुण को बोला," भाई, हम जात हईं, इमरजेंसी हो गइल। अरुण सब जानता था, इसलिए उसने उसकी पीठ पर थपकी दे जाने का इशारा किया। राजू ने अपनी स्प्लेंडर बाइक पर बैठते ही किक मारी और थोड़े ही समय में रात के अंधेरे में अरुण की नज़रों से गुम हो गया। राजू की उमर सिर्फ 21 साल की थी। उसके पिता का देहांत अभी सालभर भी नहीं हुआ था। उसके पिता खेती बाड़ी करते थे। राजू उनका हाथ भी बटाता था और पढ़ाई भी करता था। उसने अभी पिछले साल ही स्नातक किया था। उसकी बहन की शादी 3 साल पहले हुई थी, दहेज़ पूरा ना दे पाए तो, ससुरालवालों ने गुड्डी को मायके छोड़ दिया। जिस वजह से उसके पिताजी परेशान रहते थे और आठ महीने पहले उनका देहांत हो गया। घर की सारी जिम्मेदारी राजू के कंधों पर आ गयी। उसे दिन रात यही चिंता होती थी, की कैसे अपनी दीदी का उजड़ा घर बसाये। आखिर किसका था ये बच्चा? जब दो साल से वो पति से दूर थी, तो ऐसा कैसे हुआ ? ऐसे हालात क्यों हुए? क्या बीना देवी भी इसमें शामिल थी? क्या था राजू के बाप के मरने का कारण?? यही देखना है इस कहानी में " रिश्तों का कामुक संगम "

पात्र परिचय

राजीव उर्फ राजू उम्र 21 साल
गुड़िया उर्फ गुड्डी उम्र 26 साल राजू की बड़ी बहन
बिजुरी - गुड्डी की हमउम्र और सहेली
बीना देवी उम्र 45 साल राजू की माँ
स्व. धरमदेव - राजू के स्व.पिता
अरुण - राजू का दोस्त उम्र 24 साल
रंजू देवी- अरुण की माँ उम्र 43 साल
 
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vyabhichari

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राजू घर की ओर तेजी से बढ़ रहा था, उसे पिछले कुछ समय की बातें हवा के झोंके की तरह महसूस होने लगी। वैसे तो तीन साल हो गए थे, पर उसे कुछ दिन पहले की ही बात लग रही थी, जब वो अपनी बड़ी बहन गुड़िया के शादी के लिए बाजार गया हुआ था। उसके साथ उसका दोस्त अरुण था, जो कि उससे उम्र में बड़ा था, पर था उसका पक्का दोस्त। वो दोनों बाजार से शादी का सामान ले चुके थे। और नास्ता में समोसा और चाय ले रहे थे।तभी अरुण बोला," का भाई, तहार दीदी के बियाह त आब हो जाई, फेन त तहरे बारी बा। कौनो लइकी पसंद बा कि ना?
राजू बोला," तहूँ बड़का वाला बाड़े! भाई अभी त बारहवीं में बानी, पहिले ग्रेजुएशन करब फेन नौकरी ओकर बादे ना शादी बियाह करब हो?
अरुण," अरे उहू हो जाई, पर तहरा बियाह जब होई ना त हम खुलके पियब आउर नाचब हो।
राजू," जहिया होई नु त खूब पियाईब तहरा के और तहरा के खूब मजा कराएब। लेकिन पहिने त तहरे बियहवा होई। काहे की तू हमरा से उमर में बड़ बारे।
अरुण," ना, तू देखियाह तहार पहिने होई, ओकर बादे हमार होई।"
राजू," हमार तहार जब होई तब होई, पहिने आज गुड्डी दीदी के बियाह त हो जाय द मरदे, चला लेट होता।"
अरुण," हाँ चला चला ।
राजू और अरुण निकल पड़े वापिस सारा सामान लेके। असल में अरुण गुड्डी को बहुत प्यार करता था और इसलिए वो राजू के साथ दिन रात लगा रहता था। पर गांव समाज में प्यार मोहब्बत को कोई पहचान नहीं देता। ये सब बातें फिल्मों तक ही अच्छी लगती है। अरुण ने बहुत कोशिश की थी, गुड्डी को अपने दिल की बात बताने की, पर हिम्मत नहीं जुटा पाया। गुड्डी सिर्फ दसवीं तक पढ़ी थी। उसका मन पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता था। वो बेचारी तो तीन बार मैट्रिक में फेल हुई और चौथी बार में बड़ी मुश्किल से थर्ड डिवीज़न से पास हुई थी। उसके पिता धर्मदेव ने आखिर कर 23 की उम्र में उसका विवाह पड़ोस के गांव में अपनी ही जात के लड़के राजेश कुमार से कर दी, जो कि पेशे से एक सरकारी अस्पताल में, एक वार्ड बॉय था। धर्मदेव के समधी बेहद लालची थे, और दहेज में चार लाख की मोटी रकम एक मोटरसाइकिल और 10 भर सोना मांगा था। साथ में पलंग फ़्रिज इत्यादि मांगी थी। ये सब धर्मदेव के औकात के बाहर थी, पर फिर भी वो अपनी बिटिया के खुशहाल जीवन के लिए शर्तें मान गए और अपनी ज़मीन पर लोन लेकर, उसकी शादी की। उसके समधी की मांगी रकम फिर भी ना जुटा पाए, पर उन्होंने उसे विश्वास दिलाया कि एक साल के अंदर धीरे धीरे वो बाकी रकम चुका देंगे, इस पर गुड्डी के ससुर मान गए।
राजू को आज भी याद है जब उसके जीजा ने गुड्डी के मांग में सिंदूर देकर, उसे अपना लिया था। वहीं किसी कोने में, अरुण गुड्डी को देखकर रो रहा था। सुबह गुड्डी की विदाई हो गयी और वो अपने ससुराल की ओर रवाना हो गयी।
तभी राजू के सामने कोई कुत्ता आ गया तो उसने ज़ोर से ब्रेक मारी और वो अपने ख़यालों से बाहर आ गया। उसका घर भी आ चुका था। उसने तुरंत गाड़ी खड़ी की और, लगभग दौड़ते हुए अंदर गया। घर के कमरे में गुड्डी बिस्तर पर लेटी हुई थी, बगल में उसकी माँ बीना साथ बैठी थी। गुड्डी प्रसव दर्द से छटपटा रही थी, उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। वो चीख रही थी, चिल्ला रही थी और उसकी माँ उसके हाथ पैर सहला रही थी, और उसे हौसला दे रही थी। बच्चा बाहर आने लगा था। राजू," माई दीदी के अस्पताल ले चलीं का, देखआ ना कितना दर्द में बिया। "
बीना," धत, बुरबक ओकर कौनो जरूरत नइखे, एहवे बच्चा हो जाई। आउर ई बताबा की अस्पताल में का बताईब की ई बच्चा के बाप के ह ? जवाब दे सकबा। जा बाहर बइठआ, हम बुलाईब जरूरत पड़ी त।
राजू चुपचाप बाहर चला गया। और दीवार के सहारे खड़ा हो गया। अंदर गुड्डी की प्रसव पीड़ा चरम पर थी। वो बिलख रही थी। वहीं बाहर राजू गुड्डी और होनेवाले बच्चे के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहा था। थोड़ी ही देर में अंदर से बच्चे की किलकरी गूंजी। राजू बाहर बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। उसकी माँ बीना बाहर आई तो, उसकी गोद में एक छोटी बच्ची थी। जैसे ही राजू ने उसे देखा, वैसे ही बाहर पटाखे चलने लगे। रात के बारह बजे ही उस बच्ची का जन्म हुआ था। उसका जन्म साल के ठीक शुरुवात में हुआ था। राजू ने बीना की ओर देखा तो उसकी आँखों में खुशी के आंसू थे। बीना बोली," ले संभाल आपन अमानत के। गुड्डी भी सुरक्षित बिया, कौनो खतरा नइखे। दुनु माई बेटी एक दम स्वस्थ बा। देखा नया साल में भईल बिया ई लइकी, जरूर ई घर के उद्धार होई। बड़ा दिन बाद घर में किलकरी गूँजल बिया। जो जाके मिल ले बहिनिया से, ताकत बारी तहराके। "
राजू," माई, हम का बताई हम केतना खुश हईं।" उसने बीना के पैर छुवे तो बीना ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर कहा," जुग जुग जिया, घर में और बच्चा आई त और बढ़िया होई।" उसकी मुस्कान में शरारत ज़्यादा थी। राजू ने बच्ची को उसकी गोद में दे दिया। और खुद अंदर अपनी बड़ी बहन गुड्डी के पास चला आया। गुड्डी के चेहरे पर थकान साफ झलक रही थी, पर राजू को देख हल्के से मुस्काई, और बोली," आवा, देख लेला बबुनी के, कइसन बिया? राजू उसके पास आया और बोला," बिल्कुल तहार जइसन बा, तहार जइसन अंखिया, नाक, ठोर सब अइसने बा। एकर नाम पवित्रा होई। काहे की ई शुद्ध हमार वंश के खून से बनल बा।"
गुड्डी," तू ठीक कहता, लेकिन एगो बात नइखे समझ आवत, की हम एकर माई कहाईब की बुआ। तहरा का ई का बुलाई, पापा की मामा। और हँसने लगी।
राजू," हमके त पापा ही बुलाई, तू देख ल आपन।
तभी बीना अंदर आ गयी और बोली," गुड़िया ले दूध पिया द बबुनी के। राजू तू चल हमरा संगे, अभी दु तीन महिना गुड़िया के संगे कुछ ना करिहा।"
राजू और बीना कमरे से बाहर चले गए। गुड्डी अपनी नई नवेली बेटी को दूध पिलाने लगी।

और वो ख़यालों में खो गयी......
 
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लेंग्वेज पटना या उसके आसपास के पैंतीस किलोमीटर के दूर की नही बल्कि आरा , भोजपुर , छपरा और बलिया ( उत्तर प्रदेश ) का लग रहा है।
वैसे बहुत बढ़िया लिखा आपने । भोजपुरी बोलना अलग चीज है लेकिन भोजपुरी लिखना बहुत ही कठीन है। बहुत बढ़िया प्रयास किया आपने।
 
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अच्छी शुरुआत है भाई।.....

बिहार के आसपास की भाषा है जितना मैं समझ सका परन्तु पढ़ कर मजा बहुत आया इसी बहाने क्या पता हम भी इस भाषा के ढंग और कुछ शब्दों को सीख सकें।

अगले अध्याय की प्रतीक्षा में....
 
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Sanjuhsr

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भाई वार्तालाप तो हमारे सिर के अप्पर से गया, लेकिन इतना समझ आ गया की बहन भाई में संबंध है और ये लड़की दोनो के प्यार की निशानी है
कहानी भूतकाल और भविष्य दोनो नजरिए से जबरदस्त बन सकती है, बस थोड़ा भाषा को बदलने के कष्ट करे ताकि हम हिंदी भाषी पाठक भी इस कहानी का मजा अच्छे से ले सके
 
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