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एक सौ तैंतालीसवां अपडेट
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बारंग रिसॉर्ट
म्युनिसिपल ऑफिस के कुछ कर्मचारी व अधिकारीयों से शहर के बारे में बात करने के बाद कुछ फाइलों पर दस्तखत कर पिनाक सबको विदा करता है l उन सबके जाने के बाद पिनाक अपने कमरे में आता है l कमरे में मद्धिम रौशनी थी, अपने कोट के कुछ बटन्स खोल कर सोफ़े पर बैठ जाता है और फिर आवाज देता है
पिनाक - ओये... कोई है... (कोई आकर उसके पास खड़ा होता है, उसके ओर बिना देखे) जाओ... एक बोतल लेकर आओ...
वह शख्स जाकर फ्रिज खोलता है एक शराब की बोतल और बर्फ के कुछ सिल्ली निकाल कर लाता है और सोफ़े के सामने रखे ग्लास में शराब उड़ेल कर पेग बना कर उसमें बर्फ डाल कर पिनाक को देता है l पिनाक एक घुट पीने के बाद उस शख्स से
पिनाक - एक काम कर.. टीवी लगा दे... देखें तो सही... ख़बरें क्या चल रही है...
वह शख्स टीवी ऑन करता है तो नभ वाणी न्यूज में सुप्रिया के साथ प्रतिभा का साक्षात्कार चल रहा था l
सुप्रिया - प्रतिभा मैंम... इतना बड़ा कांड हो गया... इस बात से आप की क्या प्रतिक्रिया है...
प्रतिभा - मैं तो स्थब्द हूँ... यकीनन.. डकैती... वह भी मेरे घर में... हमने कोई अथाह दौलत इकट्ठा नहीं की है... जितनी भी कमाई थी... सब लगा कर... हमने यही घर बनाया था... आई पिटी... उन चोरों को कुछ नहीं मिला होगा...
सुप्रिया - फिर भी... यह तो हैरानी की बात है... यहाँ तक आपके पड़ोसियों को भी खबर नहीं थी के आप... दोनों... आई मीन... आप और आपके पति दोनों... घर पर मौजूद नहीं थे...
प्रतिभा - हाँ... बात दरअसल यह है कि... मेरे पति सेनापति जी ने.. अचानक प्रोग्राम बनाया की... कहीं चलते हैं... एक दो दिन के लिए... इस तरह हम अपनी गाड़ी में... सातपड़ा की ओर चले गए थे... पर बीच में गाड़ी खराब हो गई थी... और उस रास्ते में... मोबाइल का टावर भी नहीं था... इसलिए क्या हुआ कब हुआ... इन बातों से हम सब अनभिज्ञ रहे...
सुप्रिया - ओ... तो फिर इसका मतलब क्या समझा जाए.. आई मिन.. मेरा आशय यह था कि.. यह डकैती थी या... फिर... (सुप्रिया चुप रहती है)
प्रतिभा - आप बीच में क्यूँ रुक गईं... कोई नहीं... फिर भी मैं आपके प्रश्न का उत्तर दिए देती हूँ... आपने कहा कि हमारे पड़ोसियों को भी मालुम नहीं था... के हम अपने घर में हैं या नहीं... फिर चोरों को कैसे मालुम हुआ... अगर चोरों को मालुम हुआ... तो इस मामले में... वे लोग वाकई बहुत स्मार्ट निकले... पर बदनसीब भी बहुत... क्यूँकी उन्हें खाली हाथ से ही संतुष्ट करना पड़ा होगा...
पिनाक - (भड़क कर) बंद कर यह टीवी... (शख्स टीवी बंद कर देता है) साली.. कमिनी चालाकी दिखा रही है... सीधे सीधे कह भी नहीं रही है... की कोई उसकी किडनैप करने की कोशिश की... (पेग ख़तम कर, उस शख्स से) ऐ... और एक बना... (वह शख्स ग्लास में शराब उड़ेलता है, रुकता नहीं l ग्लास भर कर बहने लगती है) ऐ... अबे अंधा हो गया क्या... कमरे में इतना अंधेरा नहीं है कि... ग्लास ठीक से दिखे ना...
यह कहते हुए पिनाक उस शख्स की ओर देखने लगता है, उसे वह जाना पहचाना सा लगने लगता है, वह शख्स धीरे धीरे स्विच बोर्ड तक चलकर जाता है और स्विच ऑन करता है l कमरे में लाइट जलते ही पिनाक देखता है वीर उसके सामने खड़ा था l
पिनाक - राजकुमार तुम...
वीर - हाँ...
पिनाक - (अंदर ही अंदर खुश होकर) आप... वापस आ गए...
वीर - नहीं...
पिनाक - (चेहरे के भाव बदल जाता है) तो... यहाँ क्या करने आए हैं...
वीर - अपना शक़ को पुख्ता करने आया था...
पिनाक - कैसा शक़...
वीर - आपने... सेनापति दंपति को किडनैप करने की कोशिश क्यों कि...
पिनाक - हमने कोई किडनैपिंग करने की कोशिश नहीं करी...
वीर - तो न्यूज इंटरव्यू पर इतना भड़क क्यूँ रहे थे...
पिनाक - हू द हैल यु आर... तुम होते कौन हो... हमसे जिरह करने की... राजकुमार... ओह... हम तो भूल ही गए थे... तुम अब क्षेत्रपाल नहीं रहे... सही कहा ना वीर सिंह...
वीर - जी बिल्कुल... आपके सामने कोई क्षेत्रपाल राजकुमार नहीं है... आपके सामने विश्व प्रताप का दोस्त खड़ा है...
पिनाक - दोस्त... (पेग वाला ग्लास उठा कर खड़ा हो जाता है और नीचे पटक देता है, ग्लास टुट कर बिखर जाता है) माय फुट... (तिलमिलाए हुए) हम... हम उसकी... उसके खानदान की... धज्जियाँ उड़ा देंगे...
विश्व - ना... ऐसा कुछ भी करना तो दुर... सोचिएगा भी नहीं...
पिनाक - (अब गुस्से से थर्राने लगता है) क्या कहा... कंधे के बराबर आ जाने से... बेटा बाप को नसीहत नहीं देता... बाप.. बाप होता है... कमजर्फ...
वीर - नसीहत नहीं... हिदायत दे रहा हूँ... अभी तक जो हो गया... सो हो गया... बस... (पिनाक के पास आकर उसके आँखों में आँखे डाल कर) अगर आपने या आपके किसी और बंदे ने यह गुस्ताखी की... तो कसम है मुझे मेरी माँ की... मैं उसकी धज्जियाँ उड़ा दूँगा...
पिनाक की आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती है l वह वीर को ऐसे देखने लगता है जैसे उसे कोई करेंट का जबरदस्त झटका लगा हो l
पिनाक - क्या... क्या कहा तुमने... तुम... हमें... धमका रहे हो...
वीर - नहीं... समझा रहा हूँ...
पिनाक - हमारे रगो में... क्षेत्रपाल का खुन बह रहा है... इसकी गर्मी के आगे... लावा भी भस्म हो जाता है... हम जो एक बार ठान लें... वह करके ही मानते हैं...
वीर - वहम है आपका... बुढ़े हो गए हैं आप... मेरे खुन की गर्मी के आगे... आपका खुन बर्फ़ लगेगा...
पिनाक - हे... हेइ... तुम हमारे खुन की गर्मी को आज़माना चाहता है...
वीर - नहीं मुझे अंदाजा है... मैं बस इतना कहना चाहता हूँ... आप मेरे खुन की गर्मी को मत आजमाइए...
पिनाक - हा हा... हा हा हा हा हा... बच्चे... जा... अपनी लौंडी की गोद में छुप जा... (अपना हाथ वीर के चेहरे के सामने लाकर) इसी हाथ की उंगली पकड़ कर... चलना सीखा था... चल आजा... इसी हाथ में हाथ मिलाकर... अपनी गर्मी दिखा दे...
वीर - जैसी आपकी मर्जी...
वीर उन टुटे बिखरे काँच में से एक काँच का टुकड़ा उठाता है l फिर उस काँच के एक धार वाली सिरे को अपने हाथ में लेकर पिनाक की हाथ में दुसरा सिरा लगा कर हैंडशेक की तरह कस के पकड़ लेता है l अचानक वीर के इस हरकत से पहले पिनाक भौचक्का हो जाता है पर कुछ देर में उसके हाथों में दर्द होने लगता है l पिनाक अब अपने दुसरे हाथ से बंधे हाथ को छुड़ाने की कोशिश करने लगता है पर उसका दर्द और भी तेजी से बढ़ने लगता है l कुछ भी सेकेंड के बाद पिनाक दर्द के मारे चिल्लाने लगता है l वीर पिनाक की हाथ को आज़ाद कर देता है l पिनाक अपने हाथ में देखता है, बीचों-बीच काँच की धार को वज़ह से कट कर खुन बह रहा था, वहीँ वीर के चेहरे पर कोई शिकन नहीं था l वीर के हाथ में वह काँच का टुकड़ा गड़ा हुआ था और खुन भी बह रहा था l
वीर - अब बात... आपके समझ में आ गई होगी... (पिनाक अपनी ज़ख्मी हाथ को पकड़े हुए कराहते हुए वीर को देख रहा था) आपके खुन की गर्मी से लावा भले ही भस्म हो जाए... पर मेरे खुन की गर्मी को कभी मत ललकारीएगा...
पिनाक - नालायक... बतमीज... तु मेरा बेटा नहीं हो सकता... हराम जादे... तु मेरा बेटा कभी नहीं हो सकता...
वीर - क्यूँ... आप पर भारी पड़ गया... इसलिए...
पिनाक - खामोश... निकल जाओ यहाँ से... गेट ऑउट...
वीर - मैं यहाँ रुकने के लिए नहीं आया हूँ... बस आपको हिदायत देने आया हूँ... आपका गुस्सा... मेरे लिए हो.. तो मुझे स्वीकार है... पर अगर मेरे दोस्त के लिए हो... तो मुझे अपने सामने इसी तरह पायेंगे...
पिनाक के जबड़े सख्त हो जाते हैं l आँखे और आँखों के नीचे की मांस पेशियाँ थर्राने लगते हैं l वीर अपनी हाथ में घुसे उस काँच के टुकड़े को निकाल कर फर्श पर फेंक देता है फिर पिनाक की ओर देखने लगता है l
पिनाक - तु मेरा बेटा... नहीं हो सकता...
वीर - दिल कर रहा है... आपका मुहँ तोड़ दूँ... क्यूँकी बार बार यह कह कर... आप मेरी माँ को गाली दे रहे हैं... फिर सोच रहा हूँ... बहुत दर्द में हैं आप... आखिर जवान बेटा... छोड़ कर गया है आपको... उस दर्द की सोच कर माफ कर रहा हूँ...
पिनाक - तु... मेरा बेटा नहीं हो सकता...
वीर - पिताजी...
पिनाक - व्हाट... हाऊ डैर यु... डोंट कॉल मी... पिताजी... आई एम... छोटे राजा जी...
वीर - सही कहा आपने... हम कभी इस रिश्ते में थे ही नहीं... खैर... एक बात आपको बताना चाहता हूँ... भगवान पर विश्वास कभी था ही नहीं... पर अनु की सौबत ने मुझे उस पर यकीन करना सीखा दिया... इसलिए कभी भगवान ने ऐसा मौका बनाया के मैं अपने पिता के लिए... कुछ कर पाऊँ... तो करने से भी पीछे नहीं हटुंगा... पर... यह भी सच है... मेरे जज्बातों से टकराने की कोशिश की... तो वह सजा दूँगा... जिसकी आपने कभी सोचा भी नहीं होगा...
इतना कह कर वीर वहाँ से चला जाता है l अपनी आँखे फाड़े हाथ को पकड़े कसमसाते हुए वीर को जाते और दरवाजा बंद होते देखता है l
पिनाक - तु मेरा बेटा... हो नहीं सकता... तु मेरा बेटा... हो नहीं सकता... आह... (फिर जोर से चिल्लाता है) आह...
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बक्शी जगबंधु सोसाईटी
सेनापति का घर
ड्रॉइंग रुम में तापस, विश्व, खान, सुभाष और जोडार बैठे हुए हैं, किचन में इन सबके लिए प्रतिभा चाय बना रही थी l विश्व कुछ चिंतित था l
तापस - तुम... नर्वस लग रहे हो..
विश्व - हाँ... पहली बार... डरा हूँ... (एक पॉज लेकर) डरा क्या... हिल गया हूँ... अंदर से...
तापस - कुछ हुआ तो नहीं ना...
विश्व - पर मेरे उम्मीद से भी थोड़ा भयानक हो गया...
जोडार - आई एम... सॉरी विश्व... यह मेरी गलती है...
विश्व - जोडार सर... मुश्किलों से भरा सफर है... हादसों से भरा डगर है... जितना अब तक खो चुका हूँ... बहुत खो चुका हूँ... अब और नहीं... (कुछ देर के लिए सबके बीच एक ख़ामोशी छा जाता है)
सुभाष - (खामोशी को तोड़ते हुए) वेल... जो भी हुआ... बेशक बुरा हुआ... पर भयानक नहीं था... यूँ कहो कि... हमारे लिए... एक अलर्ट था... जिस पर अब हमें ध्यान देना चाहिए... खैर... वह बाद की बात है... तुमने मैंम से ऐसा स्टेटमेंट क्यूँ दिलवाया... के जो हुआ तब... घर में कोई नहीं था.. जबकि तुम अच्छे तरह से जानते हो... इसके पीछे किसका हाथ था...
विश्व - नहीं... मैं अब भी... श्योर नहीं हूँ... और इस मामले को... मैं पोलिटिक्स से दुर रखना चाहता हूँ...
सुभाष - कैसी पालिटिक्स...
विश्व - आप समझा करें... सतपती जी... क्षेत्रपाल पर उंगली उठाने से पहले... हमारे आस्तीन में... पक्के सबुत होने चाहिए...
तापस - हाँ... और हमारे पास... कोई सबूत नहीं है...
सुभाष - पता नहीं क्यूँ... मुझे इसमें विक्रम का ही हाथ लग रहा है...
विश्व - नहीं... विक्रम का कोई हाथ नहीं है...
सुभाष - तुम ऐसे कैसे कह सकते हो... हो सकता है... तुम्हारे नजर में हीरो बनने के लिए... उसने ही सारा प्लॉट सेट किया हो...
विश्व - नहीं...
सुभाष - कोई खास वज़ह...
विश्व - रंगा... उर्फ रंग चरण सेठी... उस वक़्त विक्रम उसे देख लिया होता... तो रंगा को जान से मार देता...
सुभाष - ठीक है... चलो मान लेते हैं... पर अगुवा तो... मेयर ने करवाया था ना...
विश्व - यही तो समझ में नहीं आ रहा... रंगा... जिसने क्षेत्रपाल की बहू पर हमला बोला था... वह छोटे राजा के खेमे में कैसे... या फिर... (रुक जाता है)
खान - या फिर... जरूर कोई तीसरा बंदर है... जो दो बिल्लियों को लड़ा कर... अपना उल्लू सीधा करवाना चाहता है...
जोडार - तो वह तीसरा है कौन... क्यूंकि जहां तक मुझे इल्म है... रंगा... विश्व से उलझने से पहले.. सौ बार सोचेगा...
तापस - हाँ... फिर भी... रंगा ने विश्व की पूंछ पर हाथ तो मारा है... और उसके इस हिमाकत के पीछे कौन हो सकता है...
सुभाष - ह्म्म्म्म... वाकई... बात में गहराई तो है... तो सवाल है... वह तीसरा... किसका दुश्मन है... विश्व का... या... क्षेत्रपाल का...
कुछ देर के लिए फिर से सबके बीच खामोशी हो छा जाती है और सभी अपने अपने ख़यालों में खो जाते हैं l तभी ट्रे में हॉल में मौजूद सब के लिए चाय लेकर प्रतिभा अंदर में आती है l
प्रतिभा - ओके ओके... पहले सब चाय ले लो... इससे दिमाग खुल जाएगी...
सभी चाय की कप उठा कर चुस्की लेने लगते हैं l पर विश्व अपना कप नहीं उठाता l यह देख कर तापस प्रतिभा को इशारा करता है तो
प्रतिभा - क्या बात है प्रताप...
विश्व - हूँ... कुछ नहीं माँ...
प्रतिभा - माँ से झूठ बोलोगे...
विश्व - माँ... बात यहाँ तक... इस तरह पहुँचेगी... मैंने सोचा भी नहीं था... (तापस की ओर देख कर) डैड... आपका वह माउजर... वह भी काम ना आया... और आपने कोई रीटालीयट भी नहीं किया...
सुभाष - उनके जगह तुम होते... तो तुम भी कुछ नहीं कर सकते थे... (विश्व हैरान हो कर सुभाष की ओर देखता है) हाँ... जिस तरह... तुमने मैंम को सब बातेँ छुपाने के लिए कहा... उसी तरह.. मैंने भी एक बात छुपाई...
विश्व - क्या...
खान - वह मैं बताता हूँ... विश्व... इनके विंडो ऐसी में... बाहर से... स्लीपिंग गैस छोड़ा गया था... जिसके वज़ह से... यह लोग... अनकंशीयस पैरालाइज हो गए थे... उसके बाद जाकर... वे लोग किचन के रास्ते घर में घुसे थे...
विश्व - क्या...
तापस - हाँ.. हमें सब मालूम तो हो रहा था... पर हम बेबस और लाचार थे... वह लोग आए... हमें उठाए और गाड़ी में डाल कर चल दिए... उसी तरह रास्ते में गाड़ी रुकी... कोई और आए हमें उठाए और चल दिये... जब हम सचेत हुए... तब खुद को... किसी प्राइवेट क्लिनिक में पाया... और हमारे पास विक्रम खड़ा था...
प्रतिभा - हमारे होश में आने के बाद... विक्रम ने हमें अपना घर ले गया... और अपने गेस्ट रुम में सुला दिया... बस.... यही हुआ था...
जोडार - तुम अब घबराना मत... अब आगे से कोई सेक्यूरिटी ब्रिच नहीं होगी... अब तुम्हारे पेरेंट्स का जिम्मा मेरा... तो... अब थोड़ा टॉपिक चेंज करें...
विश्व - (मुस्कराते हुए अपना सिर हिलाता है) अच्छा माँ... आपने... विक्रम से मेरे लिए क्यूँ गिड़गिड़ाई...
प्रतिभा - अरे... अपने बच्चे के लिए... कौन माँ ऐसा नहीं करेगी...
विश्व - क्यूँ आपको मुझ पर भरोसा नहीं था... जब मैं उस शख्स के बाप और उसकी सल्तनत से टकरा रहा हूँ... तब आपको लगता है... मैं उसके बेटे से हार जाता...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) ह्म्म्म्म... ऊँ हूँ... अपनी वक़ालती दिमाग मुझ पर चला रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान क्यूँ बेचारे को और टेंशन दे रही हो... चलो मैं ही बता देता हूँ... तो हुआ यूँ बर्खुर्दार... हम गेस्ट रुम में सोये हुए थे कि... अचानक दरवाजा खोल कर... नहीं नहीं... दरवाजा तोड़ कर... हाँ यह ठीक रहेगा... हमारी बहु... कमरे में घुस आई... उसने हमें उठाया... हम आँख मलते मलते उठे... उसके बाद... वह तुम्हारे माँ के सामने घुटनों पर आकर गिड़गिड़ाई... विक्रम की जिद के बारे में सब कहा... और यह भी कहा... अगर इसबार विक्रम हार जाता है... तो वह अंदर से टुट जाएगा... इसलिए तुम्हारी माँ से यह लड़ाई रोकने के लिए कहा... समझे बर्खुर्दार...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - जी... सरकार...
प्रतिभा - फिर भी... एक पल के लिए तो मैं सकपका गई थी... जब विक्रम ने पुछा.. किसके खबर करने पर मैं वहाँ पहुँची...
तापस - हाँ भाग्यवान... क्या ग़ज़ब की ऐक्टिंग की तुमने...
प्रतिभा - (शर्माते हुए) ओ हो बस भी करो... मैं अपनी बहु के लिए... और बेटे के लिए... इतना भी नहीं कर सकती... क्यूँ प्रताप...
कमरे में सभी मुस्करा कर विश्व की ओर देखने लगते हैं तो विश्व शर्म के मारे अपना चेहरा इधर उधर करने लगता है l उसकी परिस्थिति देख कर जोडार कहता है
जोडार - ओके ओके... लेट चेंज द टॉपिक... अच्छा विश्व... तुमने अब तक कुछ जुटाया या नहीं... आई मीन टू से... कुछ काम के इन्फॉर्मेशन निकाले की नहीं...
विश्व - जी निकाला तो है... पर
फिर विश्व अपने अज्ञात इन्फॉर्मर के जरिए राजगड़ मल्टीपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाइटी की धांधली के बारे में सबको बताता है l
खान - अरे बाप रे... क्या खतरनाक दिमाग लगाया है... यह तो भयंकर लूट है...
विश्व - हाँ...
सुभाष - तो फिर क्यूँ ना... हम मीडिया स्टिंग ऑपरेशन करें... बात मीडिया में आएगी... तो पोल खुल जाएगी...
प्रतिभा - नहीं... इससे ज्यादा कुछ फायदा होगा नहीं...
सुभाष - क्यूँ नहीं...
प्रतिभा - पहली बात... मीडिया में बात ले जाने के लिए... हमारे पास कुछ आधार होने चाहिए... और मुझे लगता है... राजा क्षेत्रपाल... इस एंगल से भी सोचा होगा... अगर मीडिया में बात आई भी... तो जाँच बिठा दी जाएगी... जाँच में उनके द्वारा संचालित सिस्टम के अधिकारी बैठेंगे.... फिर कच्छुए की रफ्तार में जाँच आगे बढ़ेगी... और जब तक... जाँच रिपोर्ट आएगी... तब तक ना तो राजा क्षेत्रपाल होगा... ना हम...
खान - हाँ इंडियन जुड़ीसियरी सिस्टम की यही तो खामी है...
विश्व - हाँ... हमारे सिस्टम में जो छेद है... उसमें हाती निकल जाएगा... पर चूहा फंस जाएगा...
जोडार - मानना पड़ेगा... क्या परफेक्ट मैनेजमेंट है... लोगों की घर और जमीन... बैंक के पास मॉडगैज है... पर लोगों को खबर नहीं... उनका इंस्टालमेंट मनरेगा के जरिए... जन-धन खाते से कट रही है... उन्हें मालुम भी नहीं हो रहा है...
खान - पर यह कैसे मुमकिन है... खाते में किसका फोन नंबर अटैच है... और एड्रेस...
विश्व - मैंने सब कुछ इंक्वायरी कर लिया है... सभी के सभी खातों में... राजा साहब के गुर्गों के नंबर अटैच हैं... एड्रेस सभी केयर ऑफ क्षेत्रपाल महल है... इसलिए चाहे एसएमएस हो या... हार्ड कॉपी मेसेज... सभी राजा साहब को हासिल होता है... ना कि उन लोगों को... जिनकी ऐसेट बैंक में मॉडगैज है...
खान - ओह माय गॉड...
विश्व - जाहिर है... इस घपले बाजी में... सिस्टम के... या तो करप्ट लोग... या फिर मजबूर लोग ईनवॉल्व हैं... इसलिए लोगों को बताऊँगा तो भी... उन्हें यकीन नहीं होगा... क्यूँकी उन्हें यकीन दिलाने के लिए... मेरे पास... सिवाय इंफॉर्मेशन के... कोई ठोस सबूत भी नहीं है...
खान - वाक़ई... यह क्षेत्रपाल बहुत कमिनी चीज़ निकला.....
प्रतिभा - (चिल्लाती है) बिंगो.....
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रंग महल की दिवान ए खास की प्रकोष्ठ
भैरव सिंह अपनी राजसी कुर्सी पर पैरों पर पैर मोड़ कर बैठा हुआ है l सामने उसके एक टेबल पर कुछ ब्रीफकेस रखे हुए हैं l एक और कुछ लोग खड़े हुए हैं और उनके सामने कुछ कुर्सियाँ लगी हुई हैं l भैरव सिंह के कुर्सी के बगल में एक तरफ बल्लभ और दुसरी तरफ भीमा खड़ा था l
बल्लभ - (आए हुए लोगों से) आप सबका स्वागत है... इन कुछ महीनों में... हम लोगों ने इतना कमाया है... जितना कभी सोच भी नहीं सकते थे... यह सब आपके सामुहिक समर्पण के वज़ह से संभव हुआ है...
कह कर बल्लभ ताली बजाता है l सारे लोग जो एक तरफ खड़े थे वे पहले एक दूसरे को देखते हैं फिर सब मिलकर ताली बजाने लगते हैं l भैरव सिंह अपने हाथ से हल्का सा इशारा करता है तो सब ताली बजाना रोक देते हैं l
बल्लभ - अब आप लोग तैयार हो जाएं... अपने अपने हिस्सा लेने के लिए... (बल्लभ चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - और मैनेजर.... (बैंक मैनेजर से) कोई तकलीफ...
बैंक मैनेजर - नहीं राजा साहब... आपका राज है... आपका आशीर्वाद है... तकलीफ कैसी...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (सबसे) किसी को कोई तकलीफ है... (सब चुप चाप खड़े हो कर एक-दूसरे को ताकने लगते हैं) अगर कोई तकलीफ है... तो बात कर सकते हो... आओ बैठो और हमसे अपना तकलीफ साझा करो...
सभी - नहीं राजा साहब... आपके सामने हम खड़े हैं... यही बहुत है... इससे हमारी इज़्ज़त को चार चांद लग जाता है... आपके बगल में बैठें... ऐसी हमारी औकात नहीं... हमें... हमें कोई तकलीफ नहीं है...
एक शख्स - पर लगता है... इंस्पेक्टर रोणा को कोई तकलीफ है... दिखाई नहीं दे रहे हैं...
भैरव सिंह की जबड़े सख्त हो जाते हैं, वह बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ समझ जाता है और सबसे कहता है
बल्लभ - यह क्या बात हुई... क्या सच में आपको मालुम नहीं है... इंस्पेक्टर रोणा छुट्टी पर हैं... (सभी अपना सिर हिला कर ना कहते हैं) वह... अपने पारिवारिक काम के सिलसिले में... कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं...
एक शख्स - ओह... हम तो यशपुर में रहते हैं... इसलिए शायद हम बेख़बर रहे...
बल्लभ - ठीक है... अभी एक एक करके... अपना अपना ब्रीफकेस उठाओ और चलते बनो...
सब वही करते हैं l एक एक कर आगे आते हैं, टेबल पर रखे एक एक ब्रीफकेस उठाते हैं और भैरव सिंह के पैरों पर झुक कर बाहर निकल जाते हैं l उनके जाने के बाद भैरव सिंह भीमा से कहता है
भैरव सिंह - जाओ भीमा... सबको विदा कर यहाँ आओ... (भीमा वैसा ही करता है, उन सभी लोगों के पीछे चला जाता है) प्रधान.... वाकई... यह रोणा कहाँ छुप गया है...
बल्लभ - राजा साहब... मुझे भी खबर नहीं है... पर आपको उसकी क्या जरुरत पड़ गई...
भैरव सिंह - आज ही सोनपुर डिविजन के एसपी का फोन आया था...
बल्लभ - क्या...
भैरव सिंह - तुम जानते हो... सीआई और आईआईसी में क्या फर्क़ है...
बल्लभ - हाँ... दोनों के रैंक और पावर एक हैं... सीआई का मतलब होता है... सर्कल इंस्पेक्टर... जिसके अधीन में... कुछ छोटे थाने और आउट पोस्ट होते हैं... पर आईआईसी मतलब इंस्पेक्टर इनचार्ज होता है... जिसके आधीन में एक ही थाना क्षेत्र होता है... जो एक सेंसिटिव इलाके में होती है...
भैरव सिंह - और राजगड़ एक सेंसिटिव एरिया है...
बल्लभ - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - (अपनी जगह से उठ कर बल्लभ के पास आता है) एसपी ने इसीलिए फोन किया था... के कोई इतना बड़ा पदाधिकारी... इंडेफिनाईट छुट्टी पर रह नहीं सकता... डीसीप्लिनेरी एक्शन लिया जा सकता है... और सबसे खास बात... (बल्लभ भैरव सिंह के चेहरे की ओर देखता है) एसपी ने भले ही बताया नहीं पर... रोणा को गुमशुदगी को... श्रीधर परीड़ा से जोड़ कर देख रहे हैं...
बल्लभ - क्या... एसपी कहना क्या चाह रहे थे...
भैरव सिंह - हमसे गुजारिश कर रहे थे... के राजगड़ थाने में... किसीको डेपुटेशन पर भेजेंगे... जब तक... रोणा आकर फिरसे ड्यूटी टेक ओवर नहीं करता...
बल्लभ - ओ...
भैरव सिंह - तुम हमारे लीगल एडवाइजर हो... क्या करना चाहिए हमें...
बल्लभ - राजा साहब... मेरा काम है... आपके हर कामों को... लीगलाईज करना... एडवाइज करना नहीं...
भैरव सिंह - ठीक है... अपना राय दो...
बल्लभ - राजा साहब... यह लॉ एंड ऑर्डर का सिचुएशन और डीसीप्लीन की बात है... आप को जो ठीक लगे...
भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ अपना नजर झुका लेता है l तभी बाहर से भीमा अंदर आता है l भीमा से भैरव सिंह फोन लाने के लिए कहता है l
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कमरे में मौजूद सभी प्रतिभा को ओर सवालिया नजर से देखने लगे l सबकी नजरों की आशय को प्रतिभा समझ कर पूछती है
प्रतिभा - क्या हुआ... आप सभी लोग... मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान ह... आपके श्री मुख से... समाधान वाली वाणी सुनने के लिए... सब आपको देख रहे हैं...
प्रतिभा - हो गया...
विश्व - प्लीज डैड...
तापस - ओके ओके...
विश्व - प्लीज माँ... कंटीन्यु...
प्रतिभा - तो सुनो... गाँव में... तुम्हारा अपना टीम है राइट...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - तो हालात से और संयोग से... तुम्हारे लिए यहाँ पर भी एक टीम उपलब्ध है... (सभी से) क्यूँ ठीक कहा ना मैंने... (सभी अपनी सहमती देते हैं)
विश्व - माँ... तुम कहना क्या चाहती हो...
प्रतिभा - अरे... हेव पेशेंस... देखो... अब यह तो तय है कि... तुम चाहते हो के राजगड़ और आसपास के गाँव के लोगों को मालुम हो... की उनकी घर जमीन सब बैंक के पास गिरवी है... उसका पैसा कोई और खा रहा है...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - तो हमें ऐसा कुछ करना होगा कि बैंक खुद... उन लोगों को... उनकी जमीन जायदाद की ना सिर्फ इन्फॉर्मेशन दे... बल्कि... गिरवी के बारे में... लोन के बारे में... इंस्टॉलमेंट के बारे में भी जानकारी दे...
विश्व - कैसे माँ कैसे... इन सबके बारे में... बैंक जो भी मेसेज करता है... उसकी एसएमएस राजा साहब के पाले हुए कुत्तों के मोबाइल पर आता है... और हार्ड कॉपी सब... क्षेत्रपाल महल को जाति है...
तापस - तभी मैं सोचूँ... तुमसे इतना मार खाने के बावजुद... भैरव सिंह उन्हें माफ कैसे किए हुए है...
विश्व - हाँ... यह एक वज़ह हो तो सकती है...
खान - ओ हो... डोंट चेंज द टॉपिक... प्लीज भाभी... आप बताइए...
प्रतिभा अपनी जबड़े भिंचते हुए तापस और विश्व को घूरने लगती है l विश्व और तापस दोनों भीगी बिल्लियों की तरह सिर झुका कर बैठ जाते हैं l
प्रतिभा - (दोनों को घूरते हुए) नहीं... मैं नहीं कहूँगी...
कह कर मुहँ मोड़ लेती है l विश्व इशारे से तापस से कहता है प्रतिभा को मनाने के लिए l तापस अपना कान पकड़ कर सिर हिला कर ना करता है तो विश्व घुटनों पर आकर प्रतिभा के सामने बैठ जाता है l
विश्व - माँ प्लीज ना... सॉरी कहा ना मैंने... प्लीज प्लीज बताओ ना...
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... ज्यादा ओवर ऐक्टिंग मत कर... अब चुपचाप मेरी बात सुन...
तापस - हाँ बोलो बोलो... भाग्यवान...
प्रतिभा - आप चुप रहेंगे... (अपनी होंठ पर उंगली रख कर कहती है, तापस अपने होंठ पर उँगली रख लेता है) तो अब ध्यान से मेरी बात सुनो... तुम राजगड़ और आसपास के गाँव में से... कुछ लोग चुनो... जिनकी तुम्हारे पास... और तुम्हारे पास एप्रोच हो... कम से कम... दस लोग... बैंक में एक प्रोसिजर होता है... केवाईसी का... इसमें फोन नंबर और एड्रेस अपडेट किया जाता है... तुम उन्हीं दस लोगों का केवाईसी करवा दो... ताकि अगली इंस्टॉलमेंट की खबर उन्हें एसएमएस के जरिए मालुम हो जाए... और लोन डिटेल्स उन्हें लेटर के जरिए... उनके ही एड्रेस में मिल जाए... (विश्व थोड़ी सोच में पड़ जाता है) क्या सोचने लगा...
विश्व - माँ आइडिया तो तुम्हारा बढ़िया है पर...
प्रतिभा - पर क्या...
विश्व - पर गाँव में यह सब करने के लिए... बैंक मैनेजर का भी साथ चाहिए... और राजगड़ हो या यशपुर... दोनों जगहों पर यह संभव नहीं...
प्रतिभा - जानती हूँ... पर यह केवाईसी तुम ब्रांच ऑफिस या जोनल ऑफिस के बजाय... हेड ऑफिस से मदत लो...
विश्व - हेड ऑफिस... हेड ऑफिस में भी कौन मदत करेगा... जैसे ही राजगड़ का नाम आयेगा... सब अपना पल्ला झाड़ लेंगे...
जोडार - नहीं... सब नहीं...
विश्व - मतलब...
जोडार - वाकई... सेनापति मैंम ने बहुत ही बढ़िया आइडिया दिया है... उन्होंने सच ही कहा है... की गाँव में तुम्हारी एक टीम है... और यहाँ.. हालात से और संयोग से तुम्हारे पास एक टीम है... तुम्हारा यह प्रॉब्लम मैं सॉल्व करूँगा...
तापस और विश्व - व्हाट... हाऊ... कैसे...
जोडार - देखो... मेरा एक बहुत बड़ा लोन सैंक्शन होने वाला है... इत्तेफाक से... बैंक का डायरेक्टर से मेरी अच्छी जान पहचान है... तुम केवाईसी की फॉर्म साइन करवा कर लाओ.... उसे हेड ऑफिस में अपडेट... मैं करवाऊंगा...
सभी अचानक से ताली बजाने लगते हैं l विश्व उठ कर प्रतिभा को गले लगा लेता है और प्रतिभा के गाल पर एक लंबी धन्यबाद वाली चुंबन जड़ देता है l
प्रतिभा - बस बस..
विश्व - अरे माँ.. थैंक्यू कर रहा हूँ...
प्रतिभा - मालुम है... पर मत भूल... मेरी बहु को भी तुझे थैंक्यू करना है...
विश्व - (चेहरा शर्म से लाल हो जाता है, हकलाते हुए) क्क्क्.. क्क्क्या...
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अगले दिन
xxxx कॉलेज लाइब्रेरी में रुप कुछ किताबें लौटा कर लाइब्रेरियन से क्लियरेंस ले कर जैसे ही घूमी सामने उसके छटी गैंग खड़ी थी l रुप रास्ता बना कर किनारे से निकल जाती है तो फिर बनानी और भाश्वती दोनों जाकर उसे लाइब्रेरी के बाहर रोकते हैं l रुप रुक जाती है तो बाकी दोस्त भी उसके पास आकर खड़े हो जाते हैं l
भाश्वती - क्या यार... इतना भी क्या रूठना...
बनानी - हाँ नंदिनी... उस दिन से तुम मुहँ मोड़ कर गई हो कि आज तक... हमसे बात भी नहीं कर रही हो... हमसे अलग... दूर बैठती हो...
इतिश्री - ओके... तुम रूठी हुई हो... जायज है... पर कितने दिन...
रुप - तुम कुछ नहीं कहोगी... तब्बसुम... और तुम... दीप्ति... ह्म्म्म्म...
दोनों - वह... सॉरी यार... फॉर गिव अस...
रुप उन सबके चेहरे को गौर से देखती है l सबके चेहरे पर मायूसी साफ दिख रही थी l
रुप - ओके ओके... तुम सब लगता है गले तक भरे हुए हो... चलो.. बोटनिकल गार्डन चलते हुए...
सभी रुप के पीछे बोटनिकल गार्डन में पहुँचते हैं l वहाँ पहुँचने के बाद रुप एक बेंच पर बैठ जाती है पर सारी लड़कियाँ खड़ी रहती हैं l
रुप - हम्म... बोलो.. क्या प्रॉब्लम है...
दीप्ति - यह क्या नंदिनी... हमने तो बताया... और माफी भी मांग रहे हैं...
रुप - यह बहुत अच्छा है... पहले ठेस पहुँचाओ फिर माफी माँगो...
बनानी - अरे यार... तुम क्यूँ किसी रेकार्ड की तरह वहीँ पर अटकी हुई हो...
रुप - ह्म्म्म्म... ठीक है... एक काम करो... सबसे पहले बैठ जाओ.... तुम सब... (सभी बैठ जाते हैं पर रुप के सामने) देखो... आज मेरे बोलने का दिन है... इसलिए तुम सब चुप चाप सुनोगे... बीच में कोई नहीं बोलेगा... ठीक... (सभी अपना सिर हिला कर हामी भरते हैं) तो.. मेरी जिंदगी... तुम लोगों के जैसी नहीं रही... तुम लोग बचपन से ही... अपने आसपास लोगों को... दोस्तों को... रिश्तेदारों को देखी होंगी... उनके साथ वक़्त बिताते बिताते यहाँ तक पहुँची होंगी... पर मेरी जिंदगी ऐसी नहीं थी... ना कोई दोस्त था... ना कोई रिश्तेदार... बस बड़ी होती गई... पहली बार ऊँची पढ़ाई के लिए... यहाँ आई... जब नाम छुपाया... तो तुम सबसे दोस्ती हुई... पर जब असलियत सामने आई... तुम लोग मेरी दोस्ती से भी... कतराने लगे थे... डराया धमकाया... तब जाकर तुम लोग दोस्त बने.. है ना...
बनानी - नहीं... यह पूरी तरह ठीक नहीं है...
रुप - ओके... लेट मी फिनिश फर्स्ट... मेरे खानदान का इमेज कितना खराब था... यह मैं अच्छी तरह से जानती हूँ... पर चूँकि जीवन में पहली बार... मैंने खुद से दोस्त बनाए थे... इसलिए मैं तुम लोगों को खोना नहीं चाहती थी... क्यूंकि मेरी जिंदगी की सबसे क़ीमती तोहफा थे तुम लोग... बनानी... तुम्हें याद है... तुम्हारी बर्थ डे पर... क्या हुआ था... मैं सेलीब्रेट करना चाहती थी... पर... खैर जो भी हुआ... उसके पीछे दीप्ति... तुम्हारी कंस्पीरैसी थी... रवि के साथ मिलकर... रॉकी की मदत कर रही थी... सब जानने के बाद भी... तुम्हें माफ किया था... क्यूँकी तुम दोस्त थी मेरी... जबकि पूरा शहर जानता है.. मेरे भाई कैसे हैं... इंक्लुडिंंग यु ऑल... पर क्राइम तो किया था ना तुमने... यु सो कॉल्ड सोशल पीपल... (दीप्ति का चेहरा उतर जाता है) और भाश्वती... तेरी मदत को मैं हरदम तैयार रहती थी... यहाँ तक मेरी बचपन की सारी बातें तुझसे शेयर किया था... पर फिर भी... तुझे... अनाम के अतीत से... प्रॉब्लम हो गई... कैसे भूल गई... तुझे कैसे बचाया था... (भाश्वती का चेहरा झुक जाता है) और तब्बसुम तुम... छुप कर बैठी थी... खुर्दा में... आज अगर भुवनेश्वर में बेखौफ रह रही हो... किसकी बदौलत...
सबके चेहरे उतरे हुए थे और झुके हुए थे l रुप खुद को दुरुस्त करती है फिर कहना शुरु करती है l
रुप - मैंने समाज को किताबों में पढ़ा था... पर तुम लोगों से मिलने के बाद... तुम लोगों से जुड़ने के बाद... मेरा अपना एक समाज बना... पर समाज कितना बेरहम हो सकता है... यह तुम लोगों ने एहसास कराया...
दीप्ति - (भर्राई आवाज़ में) सॉरी यार...
रुप - प्लीज... लेट मी फिनिश... दोस्तों में झगड़े हो सकते हैं... मनमुटाव भी हो सकते हैं... पर पीठ पर बात करते हुए छुपाना... (आवाज़ थर्रा जाती है) मुझे बहुत ठेस पहुँचाया... मुझे वाकई में पता चला... आख़िर समाज का ऐसा भी हो सकता है... (मुर्झाई हँसी के साथ) कहीं सुना था... या शायद कहीं पढ़ा था... प्यार और दोस्ती में फर्क़ क्या है... प्यार जहां आँखों में आँसू दे जाता है... वहीँ दोस्ती होंठों पर मुस्कान लाती है... पर... मेरे साथ थोड़ा उल्टा हो गया... मेरे दोस्त मेरे आँखों में आँसू ला दिए... जबकि मेरा प्यार... मेरे होंठो पर हँसी देखने के लिए... किसी भी हद तक गुजर सकता है...
रुप चुप हो जाती है, सभी आँखों में आँसू लिए रुप की ओर देखते हैं l रुप का चेहरा लाल हो गया था और अपनी आँखों को पोछ रही थी l
दीप्ति - सॉरी यार सॉरी... इन कुछ दिनों में... हमारी भी यही हालत है... प्लीज यार... अब तो शिकवा दुर कर ले...
रुप - फ्रेंड्स... ऐक्चुयली... आई नीड सम स्पेस... मैं कुछ ही दिनों में... गाँव जा रही हूँ... होली के छुट्टी पर... जब वापस आऊंगी... तुम्हारी दोस्त बन कर आऊंगी... हाँ... पर मैं कब आऊंगी... मैं नहीं जानती...
बनानी - क्यूँ... तु ऐसा क्यूँ कह रही है...
रुप - पता नहीं... अंदर से एक वाईव सा आ रहा है... इस बार का जाना...नजाने कब लौटना होगा... (हँस कर दिलासा देते हुए) पर... दोस्तों... मैं आऊंगी जरूर... यह वादा रहा....
इतना कह कर रुप वहाँ से बिना पीछे मुड़े अपनी दोस्तों की ओर देखे गाड़ी की पार्कींग की ओर चल देती है l
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हाथ में टिफिन बॉक्स लेकर विक्रम की केबिन में आती है शुभ्रा l विक्रम अपनी कुर्सी में लेट कर किन्ही ख़यालों में गुम था l जैसे ही शुभ्रा को देखता है वह सीधा हो कर बैठता है l शुभ्रा कमरे के एक कोने में स्थित डायनिंग टेबल पर खाना लगा कर विक्रम की ओर देखती है l विक्रम अपनी जगह से उठ कर अपनी प्लेट के पास बैठता है l विक्रम देखता है शुभ्रा उसे एक अलग सी नजर से एक टक घूरे जा रही है l
विक्रम - क्या हुआ...
शुभ्रा - आपसे बहुत कुछ जानना चाहती हूँ... पता नहीं कहाँ से शुरु करूँ...
विक्रम - कहीं से भी कीजिए... मैं ज़वाब दूँगा जरुर...
शुभ्रा - (विक्रम के सामने बैठ जाती है, वैसे ही घूरते हुए) क्या आपको पता था... सेनापति दंपति की अपहरण होने वाला है...
विक्रम - नहीं पर अंदेशा था.... (शुभ्रा के चेहरे को देखते हुए) पर... यह सब आप मुझसे कल भी तो पूछ सकती थी... और ऐसा क्यूँ लग रहा है कि... आपको मुझ पर शक़ हो रहा है...
शुभ्रा - शक़ नहीं... पर...
विक्रम - हम्म... पर क्या...
शुभ्रा - विकी... मैं जानती हूँ... आई मीन... मुझे एहसास है... आपका... विश्व के प्रति... (कह नहीं पाती चुप हो जाती है)
विक्रम - देखीए शुब्बु... आपके मन में जो भी है... साफ साफ कहीये...
शुभ्रा - (थोड़ी हिचकिचाते हुए) देखीए विकी... मैं जानती हूँ... आपने कहा भी था... के एक दिन.. विश्व का एहसान आप उतारोगे... और एक दिन वक़्त ऐसा भी आएगा... के कोई उसका अपना... आपके आगे गिड़गिड़ाएगा... तो... (फिर से चुप हो जाती है)
विक्रम - तो
शुभ्रा - आप इतने दिनों बाद आज क्लीन सेव्ड हैं... आपकी मूंछें भी पहले जैसे... शार्प और... ताव भरे हैं...
विक्रम - हूँ... तो आपको यह लग रहा है कि... मैं अपनी मूँछों के लिए... अपनी इगो को साटिसफाई करने के लिए... यह प्लॉट रचा है... (शुभ्रा की नजरें झुक जाती है) शुब्बु... मेरे तरफ देखिए... (शुभ्रा नजर उठा कर देखती है) विश्व प्रताप... जिस तेजी से... आग की ओर बढ़ रहा है... मुझे मालूम था... उसकी आँच एक दिन उसके परिवार तक पहुँचेगी... इसलिए मैं अपने आदमियों के जरिए... सेनापति दंपति पर नजर रख रहा था... वैसे भी मुझे... आप पर किए एहसान को उतारना भी तो था... सो उतार दिया... बाकी आगे जो हुआ... हाँ मैं उसकी तलबगार था... और हुआ भी वैसे ही... पर...
शुभ्रा - पर क्या...
विक्रम - आपकी सखी... सहेली... दोस्त... आपकी ननद... दिखी नहीं मुझे सुबह से...
शुभ्रा - (सकपका जाती है) वह... ऐक्चुयली... कॉलेज की लाइब्रेरी में... बुक्स लौटाने गई है...
विक्रम - या फिर... मेरा सामना ना हो जाए... इसलिए जल्दी ही कॉलेज निकल गई...
शुभ्रा - यह... यह आप.. क्या कह रहे हैं... (अब विक्रम घूर कर देखने लगा शुभ्रा को, शुभ्रा को लगता है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई) आप ऐसे क्यूँ... देख रहे हैं...
विक्रम - शुब्बु... जब सेनापति दंपति को मैंने रेस्क्यू किया... तब वे दोनों अंकंसियस थे... ट्रीटमेंट करा कर... उन्हें गेस्ट रुम में रखा था... फिर उन्हें कैसे मालुम हुआ... जीम में क्या हो रहा है... ना सिर्फ वे लोग पहुँचे... पीछे पीछे आप और नंदिनी भी...
शुभ्रा - वह.. बात दरअसल यह है कि... (अटक अटक कर) हमें... गेस्ट रुम से कुछ आवाजें सुनाई दी... और हम वहाँ पहुँचकर देखा... एडवोकेट सेनापति... बदहवास... पूछ रही थी... के वे कहाँ हैं... उनका बेटा कहाँ है... तो... (आगे कुछ कह नहीं पाती)
विक्रम - ह्म्म्म्म... वैसे क्या वह... नंदिनी को जानते हैं...
शुभ्रा - नहीं नहीं... हाँ हाँ...
विक्रम - क्या मतलब...
शुभ्रा - नहीं का मतलब... नंदिनी क्षेत्रपाल है यह नहीं जानती... और हाँ इसलिए... की नंदिनी उनकी सुपर्णा मैग्जीन की एडिटोरीयल राइटिंग की बड़ी फैन है... और एक बार इसी सिलसिले में... उसकी एक दो बार... मुलाकात भी हुई थी...
विक्रम - (कोई रिएक्शन दिए वगैर) ओ...
शुभ्रा को विक्रम का ऐसा रिएक्शन अटपटा लगता है l विक्रम चुप चाप अपना खाना खाने लगता है l शुभ्रा को लगता है जरूर कोई और बात है, विक्रम उसे या तो पूछ नहीं रहा है या फिर बता नहीं रहा है l
शुभ्रा - विकी...
विक्रम - हूँ...
शुभ्रा - मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है... आप मुझसे कुछ पूछना चाह रहे हैं...
विक्रम - (एक कुटिल मुस्कान मुस्कराते हुए) आप दोनों... ननद भाभी के बीच बहुत से राज हैं... जो मैं नहीं जानता...
शुभ्रा - यह... आ.. आप.. क्क्क्या...
विक्रम - शुब्बु... कल जब मैं विश्व को रस्सियों के सहारे दबोच रखा था... तब... उसके गर्दन के पीछे... मुझे रुप नाम गुदा हुआ दिखा... तब से मैं कुछ डॉट जोड़ने लगा हूँ... अब आप इसके बारे में क्या कहेंगी...
शुभ्रा - (चेहरा सफेद हो जाता है)
विक्रम - मुझसे आप कुछ ना कहें... तो कोई बात नहीं... पर क्या मुझे इतना तो मालुम होना ही चाहिए... विश्व की वह रुप कौन है...
शुभ्रा अपनी आँखे मूँद कर एक गहरी साँस लेती है और अपना सिर हाँ में हिलाती है l फिर विक्रम की ओर देख कर विश्व और रुप की कहानी बताने लगती है, जो जो उसे रुप ने जैसा बताया था, वैसे ही सारी बातेँ बता देती है l सारी बातेँ सुनने के बाद विक्रम कहता है
विक्रम - हूँ... तो मेरा शक़ सही था... प्रतिभा जी को... नंदिनी ने जीम में हो रही फाइट के बारे में बताया था...
शुभ्रा कुछ नहीं कहती l विक्रम उठ कर अपना हाथ धोने चला जाता है फिर वापस जब आता है तो देखता है शुभ्रा की चेहरे पर परेशानी थी l
विक्रम - शुब्बु... आप परेशान मत हों... मैं चाहे जैसा भी हूँ... पर बातों को जज्बातों को समझ सकता हूँ... मेरी बहन की बचपन आम ल़डकियों की बचपन की तरह नहीं गुजरी है... इसलिए विश्व का नंदिनी के जीवन में होना... कोई अचरज की बात नहीं है... पर हाँ चिंता की बात जरूर है... जब राजा साहब को उन दोनों के बारे में पता चलेगा... तब क्या होगा...
शुभ्रा - मतलब... आपको... कोई शिकायत नहीं है...
विक्रम - किस बात की शिकायत... शुब्बु... एक अहंकार तो मन में था... शायद है भी... के मुझसे बेहतर कोई नहीं है... या तो मुझ से कम हो सकते हैं... या फिर मेरे बराबर... पर विश्व अलग है... वह खुदको इतना उपर रखा है कि... मुझे उसके बराबर होने के लिए जद्दोजहद करना पड़ा... आपके सामने मुझे यह स्वीकारने में कोई दिक्कत नहीं है... के विश्व मुझसे हर मामले में बेहतर है...
शुभ्रा - तो क्या... अब आप वीर की जैसे मदत कर रहे हैं... आगे नंदिनी की वैसे मदत करेंगे...
विक्रम इस सवाल पर खामोश रहता है, शुभ्रा भी ना तो कोई और सवाल करती है ना ही सवाल को दोहराती है l अचानक विक्रम अपनी कुर्सी के पास जाता है और अपना ब्लेजर उठा कर बाहर चला जाता है l अपनी सवाल के साथ कमरे में शुभ्रा रह जाती है l
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वॉशरुम में अपनी मूँछों पर सफेद बालों को छाँट छाँट कर रोणा काट रहा था l अभी अभी बालों पर डाई लगाया था l तभी उसके कानों में मोबाइल की वाईव्रेशन की आवाज़ आती है l वह मोबाइल के पास जाता है स्क्रीन पर वीडियो कॉल में लेनिन दिखाई दे रहा था l रोणा झट से कॉल उठाता है l उसे स्क्रीन पर एक पार्क में बेंच पर एक जोड़ा बैठे दिखते हैं l
लेनिन - देख रहे हैं...
रोणा - अबे यह जोड़ा है किसकी...
लेनिन - कमाल कर रहे हैं... आपको... विश्वा और उसकी माशुका दिख नहीं रहे हैं...
रोणा - अबे हराम के... किसको दिखा कर मेरे मजे ले रहा है...
लेनिन - एक मिनट...
मोबाइल के कैमरे के सामने कोई लेंस फिट करता है l तब रोणा को अपनी स्क्रीन पर वह जोड़ा साफ नजर आते हैं और वह जोड़ा कोई और नहीं विश्व और रुप ही थे l उन्हें देखते ही रोणा की आँखों में अंगारे उतर आते हैं l
लेनिन - अब तो आपको साफ दिख रहे होंगे...
रोणा - हाँ... पर यह सब दिखा कर क्या साबित करना चाहता है...
लेनिन - यही की... मैं बहुत ही सीरियस हूँ... आपने मेरा काम कर रखा है... और मैं आपका काम बहुत जल्द करने वाला हूँ...
रोणा - उस लड़की के बारे में कुछ पता चला...
लेनिन - नहीं... पता करने की कोई जरूरत नहीं... मतलब आप ही ने बताया था... की कोई भी हो... आपको फर्क़ नहीं पड़ता... इसलिए मैंने भी कोई कोशिश नहीं की...
रोणा - मुझे उन तोता मैना की बातेँ सुननी है...
लेनिन - यह कैसे हो सकता है... वे लोग बहुत दुर हैं... मैं उनके सामने या पास भी नहीं जा सकता...
रोणा - पर तु तो कह रहा था... उसकी मोबाइल में तुने बग लगाया है...
लेनिन - हाँ पर वह उसके फोन पर बातेँ सुनने के लिए... वह बग तभी काम करेगा... जब उसकी फोन पर कोई कॉल आएगी या... कॉल जाएगी...
रोणा - तो फिर फ़ालतू में कॉल लगा कर मेरा टाइम खोटा क्यूँ किया...
लेनिन - तो क्या कॉल काट दूँ...
रोणा - नहीं चलने दे... कम से कम दिख तो रही है... साली कमिनी.. कुतिया...
पार्क में विश्व और रुप दोनों बातेँ कर रहे थे l
विश्व - क्या बात है... आज इतना गुमसुम क्यूँ हैं आप...
रुप - आज मैं अपने दोस्तों से... कुछ वक़्त का गैप माँगा है...
विश्व - क्यूँ....
रुप - ओ हो... अनाम... देखो... मैं आज मज़ाक के मुड़ में बिल्कुल नहीं हूँ...
विश्व - ओके ओके... आज गुस्सा पहले से ही नाक पर बैठी है...
रुप - (थोड़ा शांत हो कर) मैंने ठीक किया ना...
विश्व - हाँ बिल्कुल... किसी भी रिश्ते में अगर थोड़ी सी भी खिटपिट हो... तो उस रिश्ते में... थोड़ा गैप देना चाहिए...
रुप - थैंक्स... वैसे एक बात कहूँ...
विश्व - हाँ जरूर...
रुप - कल मैं थोड़ी डर गई थी...
विश्व - क्यों...
रुप - अरे... देखा नहीं... माँ से भैया ने जब पूछा... जीम में तुम दोनों के बारे में किसने खबर दी...
विश्व - तो इतनी सी बात पर आप डरी क्यूँ...
रुप - डर लगता है... वह मेरे बड़े भैया हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म.... अगर मैं यह कहूँ.. के विक्रम को... कल ही मालुम हो गया... आपके और मेरे बारे में...
रुप - (उछल पड़ती है) व्हाट... क.. क.. क्कैसे..
विश्व - (अपने गर्दन के पीछे हाथ फेरते हुए) आपकी गुदाए हुए.... आपका नाम देख लिया था विक्रम ने....
रुप कुछ कहने के बजाय, अपने अंगुठे का नाखुन चबाने लगती है l विश्व उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l
विश्व - अब क्या हुआ....
रुप - ओह माय गॉड... अब मैं भईया का सामना कैसे करूंगी...
विश्व - अगर लगे के आपसे गुनाह या पाप हुआ है... तो मुहँ छुपा लीजियेगा...
रुप - (बिदक जाती है) खबरदार जो मेरे प्यार को पाप कहा तो...
विश्व - तो वैसे ही सामना कीजिए... जैसे आप रोज करती हैं...
उधर रोणा देखता है विश्व कुछ कागजात रुप के हाथों में दे रहा है l रुप उन कागजातों को लेकर बेंच से उठती है और पार्क के बाहर की ओर जाने लगती है तो अचानक विश्व उसे आवाज़ देकर रोक देता है और भागते हुए रुप के गले लग जाता है l रोणा देखता है कि रुप मुस्कराते हुए विश्व से कुछ पुछ रही है l
रुप - आह... क्या बात है... आज पहली बार जनाब ने... आगे आकर मुझे गले लगाया है...
विश्व - मैं बस यह कहना चाहता हूँ... आप कभी भी... डरीयेगा मत... मैं आपके साथ आपकी धड़कन की तरह रहूँगा...
रुप - मैं जानती हूँ... जब तुम मेरे साथ हो... कोई खतरा मुझे छु भी नहीं सकता...
इतना कह कर रुप विश्व से अलग होती है और पार्क से बाहर चली जाती है l यह देख कर रोणा अपनी जबड़े भिंच लेता है और कॉल काट देता है l
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शाम का समय
ट्वेंटी फोर सेवन हाई वे रेस्टोरेंट के एक केबिन में विक्रम बैठा हुआ था l बार बार घड़ी देख रहा था l तभी केबिन का पर्दा उठा कर विश्व अंदर आता है l
विक्रम - बोलो क्यूँ बुलाया...
विश्व - (उसके सामने बैठते हुए) एक बार तुमने मुझे बुलाया था... इसलिए सोचा... मैं तुम्हें बुला दूँ...
विक्रम - तुमने भी वही फ़ार्मूला अपनाया...
विश्व - हाँ... तुम्हें बुलाने के लिए... तुम्हारा ही आजमाया हुआ फार्मूले से बुलाना पड़ा...
विक्रम - बोलो फिर...
विश्व - थैंक्यू... मेरी माँ को बचाने के लिए...
विक्रम - बचाया इसलिये था... के तुम्हारा एहसान जो उतारना था मुझे...
विश्व - हाँ एहसान और बोझ... दोनों उतार दिए तुमने...
विक्रम - हाँ.... बात समझ में आ गई... इसलिए अब जब फिरसे सामना होगा... ना मुझ पर कोई बोझ या एहसान होगा... ना तुम पर...
विश्व - हाँ... तब बेफिक्र हो कर... तब तक लड़ सकते हैं... अपना खुन्नस उतार सकते हैं... जब तक कोई एक घुटना ना टेक दे...
विक्रम - हाँ और वह वक़्त... बहुत जल्द शायद आएगा भी... वैसे यह मेरी दिल की दुआ है... क्यूँकी तुम फ़िलहाल... अपर हैंड में हो...
विश्व - मतलब...
विक्रम - देखो विश्व... बड़ी मुद्दतों बाद... मुझे रिश्ते हासिल हुए हैं... फ़िलहाल मैं ऐसा कुछ कर नहीं सकता... जिससे मैं वह सारे रिश्ते खो दूँ...
विश्व - ओह... और वज़ह
विक्रम - वीर और नंदिनी... हाँ विश्व... वीर और नंदिनी... मैं उन्हें आज किसी भी कीमत पर खो नहीं सकता... भले ही अब तुम्हारे और मेरे बीच में... फ़िलहाल के लिए.. दुश्मनी की गुंजाईश ना हो... पर तुम यह समझने की भी भूल मत कर बैठना... के तुममे और मुझमें कोई दोस्ती हो सकती है...
विश्व - ठीक कहा तुमने... तुम्हारा मेरा रिश्ता ही कुछ ऐसे बन रहे हैं... ना दोस्ती होगी... ना दुश्मनी... पर फिर भी... हम एक दुसरे के काम आते रहेंगे... और काम लेते रहेंगे...
विक्रम - ओ... इसका मतलब... कोई काम है...
विश्व - हाँ पर वास्ता मेरा जितना है... तुम्हारा भी उतना ही है... या फिर यूँ कहो के शायद तुम्हारा ज्यादा है...
विक्रम - अच्छा... ठीक है फिर... बोलो क्या काम है... और उस काम से मेरा क्या वास्ता है....
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पैराडाईज
वीर के हाथों से अनु पट्टी बदल रही थी l अनु के आँखे नम थी l तभी दोनों के कानों में कलिंग बेल की आवाज सुनाई देती है l अनु और वीर एक दुसरे को हैरान हो कर देखते हैं फिर वीर अनु को बैठने का इशारा कर दरवाजे की ओर जाता है और मैजिक आई से बाहर देखता है पर उसे कोई नहीं दिखता, इसलिए वह दरवाजा धीरे से खोलता है l उसे बाहर कोई नहीं दिखता के तभी रुप "हू" कर आवाज निकाल कर सामने आती है l वीर थोड़ा चौंकता है l
रुप - भैया डर गए...
वीर - (मुस्कराते हुए रुप के सिर पर एक टफली मारते हुए) रोज के रोज बड़ी हो रही है... या छोटी...
रुप - आपने मुझे मारा... चलो मैं आपसे बात नहीं करती...
इतना कह कर रूठने की नाटक करते हुए घर में दाखिल होती है और अंदर जाकर अनु के गले लग जाती है l फिर अचानक उसकी आँखे पास रखे टेबल पर डेटॉल,गौज और बैंडेज वगैरह देखती है l
रुप - यह क्या है भाभी...
अनु - कुछ नहीं... (वीर की तरफ देखती है तो वीर इशारे से कुछ ना कहने के लिए कहता है) वह मुझसे काँच की ग्लास टुट गई थी... मुझे चुभ ना जाएं... इसलिए तुम्हारे भैया ने काँच के टुकड़ों को उठाया... इसलिए उनके हाथ ज़ख़्मी हो गया...
रुप - ओह... हाऊ स्वीट... भैया... आपको कितना प्यार करते हैं...
अनु - हाँ वह तो है... पर मैं उनके लिए... बदकिस्मत बन गई हूँ...
रुप - क्यूँ... क्या हुआ...
वीर - कुछ नहीं... यह तुम्हारी भाभी कुछ भी... अनाप सनाप बोलती रहती है...
रुप - ओके ओके... बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं... पहले तु बता... यहाँ इस वक़्त कैसे आना हुआ...
रुप - ओ... पहले भाभी की हाथ से कुछ हो जाए... फिर ना जाने आना होगा या नहीं...
अनु - मैं अभी कुछ लाती हूँ...
अनु किचन के अंदर चली जाती है l वीर रुप की ओर मुड़ता है और पूछता है l
वीर - ना जाने फिर कब आना होगा... इसका मतलब क्या हुआ...
रुप - वह बात दरअसल यह है कि... मैं इस बार होली मनाने राजगड़ जा रही हूँ... तो मुझे लग रहा है कि शायद... राजा साहब इसबार जल्दी आने ना दें...
वीर - (हैरानी के साथ) तु... होली में... गाँव जा रही है...
रुप - हाँ...
वीर - पागल तो नहीं हो गई... गाँव में आज तक कभी कोई त्योहार मनाया भी गया है...
रुप - भैया... मैं त्योहार मनाने नहीं... छुट्टियाँ मनाने जा रही हूँ...
तभी अनु प्लेट में कुछ नास्ता और चाय लेकर आती है l टेबल से फर्स्ट ऐड सामान हटा कर रुप को बिठाती है और खाने के लिए प्लेट आगे करती है l
अनु - कहीए राजकुमारी जी... कैसे आना हुआ..
रुप - ओहो भाभी... आप भले ही भैया को राजकुमार बुलाईए... पर मुझे आप नंदिनी ही कहें...
अनु - मुस्किल होगा...
रुप - फिर भी... कहिये...
अनु - अगली बार कोशिश करुँगी... फिलहाल के लिए बताओ... आप आईं किसलिए...
रुप - ओके पहले खाने तो दीजिए...
रुप नास्ता ख़तम कर देती है l करचीफ से हाथ मुहँ साफ कर लेने के बाद अपनी वैनिटी बैग से कुछ कागजात निकाल कर अनु के हाथों में रख देती है l
अनु - यह... यह क्या है...
वीर - यह कैसे कागजात हैं...
रुप - भैया... जोडार ग्रुप ने... पाढ़ी होटल्स में टूर एंड ट्रैवल्स में कुछ गाड़ी लगाए हैं... तो उनके कॉन्ट्रैक्ट को जब उन्होंने सबलेट किया था... तब मैंने भाभी जी के नाम पर... वही सब लेटींग कॉन्ट्रैक्ट उठा लिया...
वीर - (चौंक कर) व्हाट... यह तुमने क्या किया...
रुप - हाँ भैया... रॉकी न मुझे बताया कि कैसे तुम काम मांगने उसके होटल में गए थे... भैया... उसने तुम्हारी बात मान कर... उस दिन... होटल में तुम्हारी और भाभी की मदत की... पर छोटे राजा जी ने... उन्हें धमकाया भी बहुत था... इसलिए उसीने ही... मुझे सबलेटींग कॉन्ट्रैक्ट के बारे में बताया था... तुम्हारे नाम से मिलती नहीं.. इसलिये भाभी जी के नाम पर मैंने यह टेंडर डाला था... और लकीली कॉन्ट्रैक्ट मिल भी गई... इसलिए भैया... आप अभी किसी से भी काम मत माँगों... और देखो ना... भाभी की नाम लक्ष्मी देवी के समान हो गई... पहली ही कॉन्ट्रैक्ट में कामयाबी मिली... यह लो अब कागजात...
वीर और अनु रुप को मुहँ फाड़े बेवक़ूफ़ों की तरह देखे जा रहे थे l बहुत आनाकानी किए भी पर रुप की जिद के आगे उन दोनों को झुकना पड़ा और रुप से वह कागजात ले लिए l रुप उनसे विदा लेकर अपार्टमेंट के नीचे आती है और अपनी गाड़ी में बैठ कर वहाँ से निकल जाती है l थोड़ी दूर बाद गाड़ी रोकती है अपना फोन निकाल कर विश्व के नंबर पर मेसेज करती है
"थैंक्यू"
एक सौ तैंतालीसवां अपडेट
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बारंग रिसॉर्ट
म्युनिसिपल ऑफिस के कुछ कर्मचारी व अधिकारीयों से शहर के बारे में बात करने के बाद कुछ फाइलों पर दस्तखत कर पिनाक सबको विदा करता है l उन सबके जाने के बाद पिनाक अपने कमरे में आता है l कमरे में मद्धिम रौशनी थी, अपने कोट के कुछ बटन्स खोल कर सोफ़े पर बैठ जाता है और फिर आवाज देता है
पिनाक - ओये... कोई है... (कोई आकर उसके पास खड़ा होता है, उसके ओर बिना देखे) जाओ... एक बोतल लेकर आओ...
वह शख्स जाकर फ्रिज खोलता है एक शराब की बोतल और बर्फ के कुछ सिल्ली निकाल कर लाता है और सोफ़े के सामने रखे ग्लास में शराब उड़ेल कर पेग बना कर उसमें बर्फ डाल कर पिनाक को देता है l पिनाक एक घुट पीने के बाद उस शख्स से
पिनाक - एक काम कर.. टीवी लगा दे... देखें तो सही... ख़बरें क्या चल रही है...
वह शख्स टीवी ऑन करता है तो नभ वाणी न्यूज में सुप्रिया के साथ प्रतिभा का साक्षात्कार चल रहा था l
सुप्रिया - प्रतिभा मैंम... इतना बड़ा कांड हो गया... इस बात से आप की क्या प्रतिक्रिया है...
प्रतिभा - मैं तो स्थब्द हूँ... यकीनन.. डकैती... वह भी मेरे घर में... हमने कोई अथाह दौलत इकट्ठा नहीं की है... जितनी भी कमाई थी... सब लगा कर... हमने यही घर बनाया था... आई पिटी... उन चोरों को कुछ नहीं मिला होगा...
सुप्रिया - फिर भी... यह तो हैरानी की बात है... यहाँ तक आपके पड़ोसियों को भी खबर नहीं थी के आप... दोनों... आई मीन... आप और आपके पति दोनों... घर पर मौजूद नहीं थे...
प्रतिभा - हाँ... बात दरअसल यह है कि... मेरे पति सेनापति जी ने.. अचानक प्रोग्राम बनाया की... कहीं चलते हैं... एक दो दिन के लिए... इस तरह हम अपनी गाड़ी में... सातपड़ा की ओर चले गए थे... पर बीच में गाड़ी खराब हो गई थी... और उस रास्ते में... मोबाइल का टावर भी नहीं था... इसलिए क्या हुआ कब हुआ... इन बातों से हम सब अनभिज्ञ रहे...
सुप्रिया - ओ... तो फिर इसका मतलब क्या समझा जाए.. आई मिन.. मेरा आशय यह था कि.. यह डकैती थी या... फिर... (सुप्रिया चुप रहती है)
प्रतिभा - आप बीच में क्यूँ रुक गईं... कोई नहीं... फिर भी मैं आपके प्रश्न का उत्तर दिए देती हूँ... आपने कहा कि हमारे पड़ोसियों को भी मालुम नहीं था... के हम अपने घर में हैं या नहीं... फिर चोरों को कैसे मालुम हुआ... अगर चोरों को मालुम हुआ... तो इस मामले में... वे लोग वाकई बहुत स्मार्ट निकले... पर बदनसीब भी बहुत... क्यूँकी उन्हें खाली हाथ से ही संतुष्ट करना पड़ा होगा...
पिनाक - (भड़क कर) बंद कर यह टीवी... (शख्स टीवी बंद कर देता है) साली.. कमिनी चालाकी दिखा रही है... सीधे सीधे कह भी नहीं रही है... की कोई उसकी किडनैप करने की कोशिश की... (पेग ख़तम कर, उस शख्स से) ऐ... और एक बना... (वह शख्स ग्लास में शराब उड़ेलता है, रुकता नहीं l ग्लास भर कर बहने लगती है) ऐ... अबे अंधा हो गया क्या... कमरे में इतना अंधेरा नहीं है कि... ग्लास ठीक से दिखे ना...
यह कहते हुए पिनाक उस शख्स की ओर देखने लगता है, उसे वह जाना पहचाना सा लगने लगता है, वह शख्स धीरे धीरे स्विच बोर्ड तक चलकर जाता है और स्विच ऑन करता है l कमरे में लाइट जलते ही पिनाक देखता है वीर उसके सामने खड़ा था l
पिनाक - राजकुमार तुम...
वीर - हाँ...
पिनाक - (अंदर ही अंदर खुश होकर) आप... वापस आ गए...
वीर - नहीं...
पिनाक - (चेहरे के भाव बदल जाता है) तो... यहाँ क्या करने आए हैं...
वीर - अपना शक़ को पुख्ता करने आया था...
पिनाक - कैसा शक़...
वीर - आपने... सेनापति दंपति को किडनैप करने की कोशिश क्यों कि...
पिनाक - हमने कोई किडनैपिंग करने की कोशिश नहीं करी...
वीर - तो न्यूज इंटरव्यू पर इतना भड़क क्यूँ रहे थे...
पिनाक - हू द हैल यु आर... तुम होते कौन हो... हमसे जिरह करने की... राजकुमार... ओह... हम तो भूल ही गए थे... तुम अब क्षेत्रपाल नहीं रहे... सही कहा ना वीर सिंह...
वीर - जी बिल्कुल... आपके सामने कोई क्षेत्रपाल राजकुमार नहीं है... आपके सामने विश्व प्रताप का दोस्त खड़ा है...
पिनाक - दोस्त... (पेग वाला ग्लास उठा कर खड़ा हो जाता है और नीचे पटक देता है, ग्लास टुट कर बिखर जाता है) माय फुट... (तिलमिलाए हुए) हम... हम उसकी... उसके खानदान की... धज्जियाँ उड़ा देंगे...
विश्व - ना... ऐसा कुछ भी करना तो दुर... सोचिएगा भी नहीं...
पिनाक - (अब गुस्से से थर्राने लगता है) क्या कहा... कंधे के बराबर आ जाने से... बेटा बाप को नसीहत नहीं देता... बाप.. बाप होता है... कमजर्फ...
वीर - नसीहत नहीं... हिदायत दे रहा हूँ... अभी तक जो हो गया... सो हो गया... बस... (पिनाक के पास आकर उसके आँखों में आँखे डाल कर) अगर आपने या आपके किसी और बंदे ने यह गुस्ताखी की... तो कसम है मुझे मेरी माँ की... मैं उसकी धज्जियाँ उड़ा दूँगा...
पिनाक की आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती है l वह वीर को ऐसे देखने लगता है जैसे उसे कोई करेंट का जबरदस्त झटका लगा हो l
पिनाक - क्या... क्या कहा तुमने... तुम... हमें... धमका रहे हो...
वीर - नहीं... समझा रहा हूँ...
पिनाक - हमारे रगो में... क्षेत्रपाल का खुन बह रहा है... इसकी गर्मी के आगे... लावा भी भस्म हो जाता है... हम जो एक बार ठान लें... वह करके ही मानते हैं...
वीर - वहम है आपका... बुढ़े हो गए हैं आप... मेरे खुन की गर्मी के आगे... आपका खुन बर्फ़ लगेगा...
पिनाक - हे... हेइ... तुम हमारे खुन की गर्मी को आज़माना चाहता है...
वीर - नहीं मुझे अंदाजा है... मैं बस इतना कहना चाहता हूँ... आप मेरे खुन की गर्मी को मत आजमाइए...
पिनाक - हा हा... हा हा हा हा हा... बच्चे... जा... अपनी लौंडी की गोद में छुप जा... (अपना हाथ वीर के चेहरे के सामने लाकर) इसी हाथ की उंगली पकड़ कर... चलना सीखा था... चल आजा... इसी हाथ में हाथ मिलाकर... अपनी गर्मी दिखा दे...
वीर - जैसी आपकी मर्जी...
वीर उन टुटे बिखरे काँच में से एक काँच का टुकड़ा उठाता है l फिर उस काँच के एक धार वाली सिरे को अपने हाथ में लेकर पिनाक की हाथ में दुसरा सिरा लगा कर हैंडशेक की तरह कस के पकड़ लेता है l अचानक वीर के इस हरकत से पहले पिनाक भौचक्का हो जाता है पर कुछ देर में उसके हाथों में दर्द होने लगता है l पिनाक अब अपने दुसरे हाथ से बंधे हाथ को छुड़ाने की कोशिश करने लगता है पर उसका दर्द और भी तेजी से बढ़ने लगता है l कुछ भी सेकेंड के बाद पिनाक दर्द के मारे चिल्लाने लगता है l वीर पिनाक की हाथ को आज़ाद कर देता है l पिनाक अपने हाथ में देखता है, बीचों-बीच काँच की धार को वज़ह से कट कर खुन बह रहा था, वहीँ वीर के चेहरे पर कोई शिकन नहीं था l वीर के हाथ में वह काँच का टुकड़ा गड़ा हुआ था और खुन भी बह रहा था l
वीर - अब बात... आपके समझ में आ गई होगी... (पिनाक अपनी ज़ख्मी हाथ को पकड़े हुए कराहते हुए वीर को देख रहा था) आपके खुन की गर्मी से लावा भले ही भस्म हो जाए... पर मेरे खुन की गर्मी को कभी मत ललकारीएगा...
पिनाक - नालायक... बतमीज... तु मेरा बेटा नहीं हो सकता... हराम जादे... तु मेरा बेटा कभी नहीं हो सकता...
वीर - क्यूँ... आप पर भारी पड़ गया... इसलिए...
पिनाक - खामोश... निकल जाओ यहाँ से... गेट ऑउट...
वीर - मैं यहाँ रुकने के लिए नहीं आया हूँ... बस आपको हिदायत देने आया हूँ... आपका गुस्सा... मेरे लिए हो.. तो मुझे स्वीकार है... पर अगर मेरे दोस्त के लिए हो... तो मुझे अपने सामने इसी तरह पायेंगे...
पिनाक के जबड़े सख्त हो जाते हैं l आँखे और आँखों के नीचे की मांस पेशियाँ थर्राने लगते हैं l वीर अपनी हाथ में घुसे उस काँच के टुकड़े को निकाल कर फर्श पर फेंक देता है फिर पिनाक की ओर देखने लगता है l
पिनाक - तु मेरा बेटा... नहीं हो सकता...
वीर - दिल कर रहा है... आपका मुहँ तोड़ दूँ... क्यूँकी बार बार यह कह कर... आप मेरी माँ को गाली दे रहे हैं... फिर सोच रहा हूँ... बहुत दर्द में हैं आप... आखिर जवान बेटा... छोड़ कर गया है आपको... उस दर्द की सोच कर माफ कर रहा हूँ...
पिनाक - तु... मेरा बेटा नहीं हो सकता...
वीर - पिताजी...
पिनाक - व्हाट... हाऊ डैर यु... डोंट कॉल मी... पिताजी... आई एम... छोटे राजा जी...
वीर - सही कहा आपने... हम कभी इस रिश्ते में थे ही नहीं... खैर... एक बात आपको बताना चाहता हूँ... भगवान पर विश्वास कभी था ही नहीं... पर अनु की सौबत ने मुझे उस पर यकीन करना सीखा दिया... इसलिए कभी भगवान ने ऐसा मौका बनाया के मैं अपने पिता के लिए... कुछ कर पाऊँ... तो करने से भी पीछे नहीं हटुंगा... पर... यह भी सच है... मेरे जज्बातों से टकराने की कोशिश की... तो वह सजा दूँगा... जिसकी आपने कभी सोचा भी नहीं होगा...
इतना कह कर वीर वहाँ से चला जाता है l अपनी आँखे फाड़े हाथ को पकड़े कसमसाते हुए वीर को जाते और दरवाजा बंद होते देखता है l
पिनाक - तु मेरा बेटा... हो नहीं सकता... तु मेरा बेटा... हो नहीं सकता... आह... (फिर जोर से चिल्लाता है) आह...
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बक्शी जगबंधु सोसाईटी
सेनापति का घर
ड्रॉइंग रुम में तापस, विश्व, खान, सुभाष और जोडार बैठे हुए हैं, किचन में इन सबके लिए प्रतिभा चाय बना रही थी l विश्व कुछ चिंतित था l
तापस - तुम... नर्वस लग रहे हो..
विश्व - हाँ... पहली बार... डरा हूँ... (एक पॉज लेकर) डरा क्या... हिल गया हूँ... अंदर से...
तापस - कुछ हुआ तो नहीं ना...
विश्व - पर मेरे उम्मीद से भी थोड़ा भयानक हो गया...
जोडार - आई एम... सॉरी विश्व... यह मेरी गलती है...
विश्व - जोडार सर... मुश्किलों से भरा सफर है... हादसों से भरा डगर है... जितना अब तक खो चुका हूँ... बहुत खो चुका हूँ... अब और नहीं... (कुछ देर के लिए सबके बीच एक ख़ामोशी छा जाता है)
सुभाष - (खामोशी को तोड़ते हुए) वेल... जो भी हुआ... बेशक बुरा हुआ... पर भयानक नहीं था... यूँ कहो कि... हमारे लिए... एक अलर्ट था... जिस पर अब हमें ध्यान देना चाहिए... खैर... वह बाद की बात है... तुमने मैंम से ऐसा स्टेटमेंट क्यूँ दिलवाया... के जो हुआ तब... घर में कोई नहीं था.. जबकि तुम अच्छे तरह से जानते हो... इसके पीछे किसका हाथ था...
विश्व - नहीं... मैं अब भी... श्योर नहीं हूँ... और इस मामले को... मैं पोलिटिक्स से दुर रखना चाहता हूँ...
सुभाष - कैसी पालिटिक्स...
विश्व - आप समझा करें... सतपती जी... क्षेत्रपाल पर उंगली उठाने से पहले... हमारे आस्तीन में... पक्के सबुत होने चाहिए...
तापस - हाँ... और हमारे पास... कोई सबूत नहीं है...
सुभाष - पता नहीं क्यूँ... मुझे इसमें विक्रम का ही हाथ लग रहा है...
विश्व - नहीं... विक्रम का कोई हाथ नहीं है...
सुभाष - तुम ऐसे कैसे कह सकते हो... हो सकता है... तुम्हारे नजर में हीरो बनने के लिए... उसने ही सारा प्लॉट सेट किया हो...
विश्व - नहीं...
सुभाष - कोई खास वज़ह...
विश्व - रंगा... उर्फ रंग चरण सेठी... उस वक़्त विक्रम उसे देख लिया होता... तो रंगा को जान से मार देता...
सुभाष - ठीक है... चलो मान लेते हैं... पर अगुवा तो... मेयर ने करवाया था ना...
विश्व - यही तो समझ में नहीं आ रहा... रंगा... जिसने क्षेत्रपाल की बहू पर हमला बोला था... वह छोटे राजा के खेमे में कैसे... या फिर... (रुक जाता है)
खान - या फिर... जरूर कोई तीसरा बंदर है... जो दो बिल्लियों को लड़ा कर... अपना उल्लू सीधा करवाना चाहता है...
जोडार - तो वह तीसरा है कौन... क्यूंकि जहां तक मुझे इल्म है... रंगा... विश्व से उलझने से पहले.. सौ बार सोचेगा...
तापस - हाँ... फिर भी... रंगा ने विश्व की पूंछ पर हाथ तो मारा है... और उसके इस हिमाकत के पीछे कौन हो सकता है...
सुभाष - ह्म्म्म्म... वाकई... बात में गहराई तो है... तो सवाल है... वह तीसरा... किसका दुश्मन है... विश्व का... या... क्षेत्रपाल का...
कुछ देर के लिए फिर से सबके बीच खामोशी हो छा जाती है और सभी अपने अपने ख़यालों में खो जाते हैं l तभी ट्रे में हॉल में मौजूद सब के लिए चाय लेकर प्रतिभा अंदर में आती है l
प्रतिभा - ओके ओके... पहले सब चाय ले लो... इससे दिमाग खुल जाएगी...
सभी चाय की कप उठा कर चुस्की लेने लगते हैं l पर विश्व अपना कप नहीं उठाता l यह देख कर तापस प्रतिभा को इशारा करता है तो
प्रतिभा - क्या बात है प्रताप...
विश्व - हूँ... कुछ नहीं माँ...
प्रतिभा - माँ से झूठ बोलोगे...
विश्व - माँ... बात यहाँ तक... इस तरह पहुँचेगी... मैंने सोचा भी नहीं था... (तापस की ओर देख कर) डैड... आपका वह माउजर... वह भी काम ना आया... और आपने कोई रीटालीयट भी नहीं किया...
सुभाष - उनके जगह तुम होते... तो तुम भी कुछ नहीं कर सकते थे... (विश्व हैरान हो कर सुभाष की ओर देखता है) हाँ... जिस तरह... तुमने मैंम को सब बातेँ छुपाने के लिए कहा... उसी तरह.. मैंने भी एक बात छुपाई...
विश्व - क्या...
खान - वह मैं बताता हूँ... विश्व... इनके विंडो ऐसी में... बाहर से... स्लीपिंग गैस छोड़ा गया था... जिसके वज़ह से... यह लोग... अनकंशीयस पैरालाइज हो गए थे... उसके बाद जाकर... वे लोग किचन के रास्ते घर में घुसे थे...
विश्व - क्या...
तापस - हाँ.. हमें सब मालूम तो हो रहा था... पर हम बेबस और लाचार थे... वह लोग आए... हमें उठाए और गाड़ी में डाल कर चल दिए... उसी तरह रास्ते में गाड़ी रुकी... कोई और आए हमें उठाए और चल दिये... जब हम सचेत हुए... तब खुद को... किसी प्राइवेट क्लिनिक में पाया... और हमारे पास विक्रम खड़ा था...
प्रतिभा - हमारे होश में आने के बाद... विक्रम ने हमें अपना घर ले गया... और अपने गेस्ट रुम में सुला दिया... बस.... यही हुआ था...
जोडार - तुम अब घबराना मत... अब आगे से कोई सेक्यूरिटी ब्रिच नहीं होगी... अब तुम्हारे पेरेंट्स का जिम्मा मेरा... तो... अब थोड़ा टॉपिक चेंज करें...
विश्व - (मुस्कराते हुए अपना सिर हिलाता है) अच्छा माँ... आपने... विक्रम से मेरे लिए क्यूँ गिड़गिड़ाई...
प्रतिभा - अरे... अपने बच्चे के लिए... कौन माँ ऐसा नहीं करेगी...
विश्व - क्यूँ आपको मुझ पर भरोसा नहीं था... जब मैं उस शख्स के बाप और उसकी सल्तनत से टकरा रहा हूँ... तब आपको लगता है... मैं उसके बेटे से हार जाता...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) ह्म्म्म्म... ऊँ हूँ... अपनी वक़ालती दिमाग मुझ पर चला रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान क्यूँ बेचारे को और टेंशन दे रही हो... चलो मैं ही बता देता हूँ... तो हुआ यूँ बर्खुर्दार... हम गेस्ट रुम में सोये हुए थे कि... अचानक दरवाजा खोल कर... नहीं नहीं... दरवाजा तोड़ कर... हाँ यह ठीक रहेगा... हमारी बहु... कमरे में घुस आई... उसने हमें उठाया... हम आँख मलते मलते उठे... उसके बाद... वह तुम्हारे माँ के सामने घुटनों पर आकर गिड़गिड़ाई... विक्रम की जिद के बारे में सब कहा... और यह भी कहा... अगर इसबार विक्रम हार जाता है... तो वह अंदर से टुट जाएगा... इसलिए तुम्हारी माँ से यह लड़ाई रोकने के लिए कहा... समझे बर्खुर्दार...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - जी... सरकार...
प्रतिभा - फिर भी... एक पल के लिए तो मैं सकपका गई थी... जब विक्रम ने पुछा.. किसके खबर करने पर मैं वहाँ पहुँची...
तापस - हाँ भाग्यवान... क्या ग़ज़ब की ऐक्टिंग की तुमने...
प्रतिभा - (शर्माते हुए) ओ हो बस भी करो... मैं अपनी बहु के लिए... और बेटे के लिए... इतना भी नहीं कर सकती... क्यूँ प्रताप...
कमरे में सभी मुस्करा कर विश्व की ओर देखने लगते हैं तो विश्व शर्म के मारे अपना चेहरा इधर उधर करने लगता है l उसकी परिस्थिति देख कर जोडार कहता है
जोडार - ओके ओके... लेट चेंज द टॉपिक... अच्छा विश्व... तुमने अब तक कुछ जुटाया या नहीं... आई मीन टू से... कुछ काम के इन्फॉर्मेशन निकाले की नहीं...
विश्व - जी निकाला तो है... पर
फिर विश्व अपने अज्ञात इन्फॉर्मर के जरिए राजगड़ मल्टीपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाइटी की धांधली के बारे में सबको बताता है l
खान - अरे बाप रे... क्या खतरनाक दिमाग लगाया है... यह तो भयंकर लूट है...
विश्व - हाँ...
सुभाष - तो फिर क्यूँ ना... हम मीडिया स्टिंग ऑपरेशन करें... बात मीडिया में आएगी... तो पोल खुल जाएगी...
प्रतिभा - नहीं... इससे ज्यादा कुछ फायदा होगा नहीं...
सुभाष - क्यूँ नहीं...
प्रतिभा - पहली बात... मीडिया में बात ले जाने के लिए... हमारे पास कुछ आधार होने चाहिए... और मुझे लगता है... राजा क्षेत्रपाल... इस एंगल से भी सोचा होगा... अगर मीडिया में बात आई भी... तो जाँच बिठा दी जाएगी... जाँच में उनके द्वारा संचालित सिस्टम के अधिकारी बैठेंगे.... फिर कच्छुए की रफ्तार में जाँच आगे बढ़ेगी... और जब तक... जाँच रिपोर्ट आएगी... तब तक ना तो राजा क्षेत्रपाल होगा... ना हम...
खान - हाँ इंडियन जुड़ीसियरी सिस्टम की यही तो खामी है...
विश्व - हाँ... हमारे सिस्टम में जो छेद है... उसमें हाती निकल जाएगा... पर चूहा फंस जाएगा...
जोडार - मानना पड़ेगा... क्या परफेक्ट मैनेजमेंट है... लोगों की घर और जमीन... बैंक के पास मॉडगैज है... पर लोगों को खबर नहीं... उनका इंस्टालमेंट मनरेगा के जरिए... जन-धन खाते से कट रही है... उन्हें मालुम भी नहीं हो रहा है...
खान - पर यह कैसे मुमकिन है... खाते में किसका फोन नंबर अटैच है... और एड्रेस...
विश्व - मैंने सब कुछ इंक्वायरी कर लिया है... सभी के सभी खातों में... राजा साहब के गुर्गों के नंबर अटैच हैं... एड्रेस सभी केयर ऑफ क्षेत्रपाल महल है... इसलिए चाहे एसएमएस हो या... हार्ड कॉपी मेसेज... सभी राजा साहब को हासिल होता है... ना कि उन लोगों को... जिनकी ऐसेट बैंक में मॉडगैज है...
खान - ओह माय गॉड...
विश्व - जाहिर है... इस घपले बाजी में... सिस्टम के... या तो करप्ट लोग... या फिर मजबूर लोग ईनवॉल्व हैं... इसलिए लोगों को बताऊँगा तो भी... उन्हें यकीन नहीं होगा... क्यूँकी उन्हें यकीन दिलाने के लिए... मेरे पास... सिवाय इंफॉर्मेशन के... कोई ठोस सबूत भी नहीं है...
खान - वाक़ई... यह क्षेत्रपाल बहुत कमिनी चीज़ निकला.....
प्रतिभा - (चिल्लाती है) बिंगो.....
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रंग महल की दिवान ए खास की प्रकोष्ठ
भैरव सिंह अपनी राजसी कुर्सी पर पैरों पर पैर मोड़ कर बैठा हुआ है l सामने उसके एक टेबल पर कुछ ब्रीफकेस रखे हुए हैं l एक और कुछ लोग खड़े हुए हैं और उनके सामने कुछ कुर्सियाँ लगी हुई हैं l भैरव सिंह के कुर्सी के बगल में एक तरफ बल्लभ और दुसरी तरफ भीमा खड़ा था l
बल्लभ - (आए हुए लोगों से) आप सबका स्वागत है... इन कुछ महीनों में... हम लोगों ने इतना कमाया है... जितना कभी सोच भी नहीं सकते थे... यह सब आपके सामुहिक समर्पण के वज़ह से संभव हुआ है...
कह कर बल्लभ ताली बजाता है l सारे लोग जो एक तरफ खड़े थे वे पहले एक दूसरे को देखते हैं फिर सब मिलकर ताली बजाने लगते हैं l भैरव सिंह अपने हाथ से हल्का सा इशारा करता है तो सब ताली बजाना रोक देते हैं l
बल्लभ - अब आप लोग तैयार हो जाएं... अपने अपने हिस्सा लेने के लिए... (बल्लभ चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - और मैनेजर.... (बैंक मैनेजर से) कोई तकलीफ...
बैंक मैनेजर - नहीं राजा साहब... आपका राज है... आपका आशीर्वाद है... तकलीफ कैसी...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (सबसे) किसी को कोई तकलीफ है... (सब चुप चाप खड़े हो कर एक-दूसरे को ताकने लगते हैं) अगर कोई तकलीफ है... तो बात कर सकते हो... आओ बैठो और हमसे अपना तकलीफ साझा करो...
सभी - नहीं राजा साहब... आपके सामने हम खड़े हैं... यही बहुत है... इससे हमारी इज़्ज़त को चार चांद लग जाता है... आपके बगल में बैठें... ऐसी हमारी औकात नहीं... हमें... हमें कोई तकलीफ नहीं है...
एक शख्स - पर लगता है... इंस्पेक्टर रोणा को कोई तकलीफ है... दिखाई नहीं दे रहे हैं...
भैरव सिंह की जबड़े सख्त हो जाते हैं, वह बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ समझ जाता है और सबसे कहता है
बल्लभ - यह क्या बात हुई... क्या सच में आपको मालुम नहीं है... इंस्पेक्टर रोणा छुट्टी पर हैं... (सभी अपना सिर हिला कर ना कहते हैं) वह... अपने पारिवारिक काम के सिलसिले में... कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं...
एक शख्स - ओह... हम तो यशपुर में रहते हैं... इसलिए शायद हम बेख़बर रहे...
बल्लभ - ठीक है... अभी एक एक करके... अपना अपना ब्रीफकेस उठाओ और चलते बनो...
सब वही करते हैं l एक एक कर आगे आते हैं, टेबल पर रखे एक एक ब्रीफकेस उठाते हैं और भैरव सिंह के पैरों पर झुक कर बाहर निकल जाते हैं l उनके जाने के बाद भैरव सिंह भीमा से कहता है
भैरव सिंह - जाओ भीमा... सबको विदा कर यहाँ आओ... (भीमा वैसा ही करता है, उन सभी लोगों के पीछे चला जाता है) प्रधान.... वाकई... यह रोणा कहाँ छुप गया है...
बल्लभ - राजा साहब... मुझे भी खबर नहीं है... पर आपको उसकी क्या जरुरत पड़ गई...
भैरव सिंह - आज ही सोनपुर डिविजन के एसपी का फोन आया था...
बल्लभ - क्या...
भैरव सिंह - तुम जानते हो... सीआई और आईआईसी में क्या फर्क़ है...
बल्लभ - हाँ... दोनों के रैंक और पावर एक हैं... सीआई का मतलब होता है... सर्कल इंस्पेक्टर... जिसके अधीन में... कुछ छोटे थाने और आउट पोस्ट होते हैं... पर आईआईसी मतलब इंस्पेक्टर इनचार्ज होता है... जिसके आधीन में एक ही थाना क्षेत्र होता है... जो एक सेंसिटिव इलाके में होती है...
भैरव सिंह - और राजगड़ एक सेंसिटिव एरिया है...
बल्लभ - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - (अपनी जगह से उठ कर बल्लभ के पास आता है) एसपी ने इसीलिए फोन किया था... के कोई इतना बड़ा पदाधिकारी... इंडेफिनाईट छुट्टी पर रह नहीं सकता... डीसीप्लिनेरी एक्शन लिया जा सकता है... और सबसे खास बात... (बल्लभ भैरव सिंह के चेहरे की ओर देखता है) एसपी ने भले ही बताया नहीं पर... रोणा को गुमशुदगी को... श्रीधर परीड़ा से जोड़ कर देख रहे हैं...
बल्लभ - क्या... एसपी कहना क्या चाह रहे थे...
भैरव सिंह - हमसे गुजारिश कर रहे थे... के राजगड़ थाने में... किसीको डेपुटेशन पर भेजेंगे... जब तक... रोणा आकर फिरसे ड्यूटी टेक ओवर नहीं करता...
बल्लभ - ओ...
भैरव सिंह - तुम हमारे लीगल एडवाइजर हो... क्या करना चाहिए हमें...
बल्लभ - राजा साहब... मेरा काम है... आपके हर कामों को... लीगलाईज करना... एडवाइज करना नहीं...
भैरव सिंह - ठीक है... अपना राय दो...
बल्लभ - राजा साहब... यह लॉ एंड ऑर्डर का सिचुएशन और डीसीप्लीन की बात है... आप को जो ठीक लगे...
भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ अपना नजर झुका लेता है l तभी बाहर से भीमा अंदर आता है l भीमा से भैरव सिंह फोन लाने के लिए कहता है l
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कमरे में मौजूद सभी प्रतिभा को ओर सवालिया नजर से देखने लगे l सबकी नजरों की आशय को प्रतिभा समझ कर पूछती है
प्रतिभा - क्या हुआ... आप सभी लोग... मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान ह... आपके श्री मुख से... समाधान वाली वाणी सुनने के लिए... सब आपको देख रहे हैं...
प्रतिभा - हो गया...
विश्व - प्लीज डैड...
तापस - ओके ओके...
विश्व - प्लीज माँ... कंटीन्यु...
प्रतिभा - तो सुनो... गाँव में... तुम्हारा अपना टीम है राइट...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - तो हालात से और संयोग से... तुम्हारे लिए यहाँ पर भी एक टीम उपलब्ध है... (सभी से) क्यूँ ठीक कहा ना मैंने... (सभी अपनी सहमती देते हैं)
विश्व - माँ... तुम कहना क्या चाहती हो...
प्रतिभा - अरे... हेव पेशेंस... देखो... अब यह तो तय है कि... तुम चाहते हो के राजगड़ और आसपास के गाँव के लोगों को मालुम हो... की उनकी घर जमीन सब बैंक के पास गिरवी है... उसका पैसा कोई और खा रहा है...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - तो हमें ऐसा कुछ करना होगा कि बैंक खुद... उन लोगों को... उनकी जमीन जायदाद की ना सिर्फ इन्फॉर्मेशन दे... बल्कि... गिरवी के बारे में... लोन के बारे में... इंस्टॉलमेंट के बारे में भी जानकारी दे...
विश्व - कैसे माँ कैसे... इन सबके बारे में... बैंक जो भी मेसेज करता है... उसकी एसएमएस राजा साहब के पाले हुए कुत्तों के मोबाइल पर आता है... और हार्ड कॉपी सब... क्षेत्रपाल महल को जाति है...
तापस - तभी मैं सोचूँ... तुमसे इतना मार खाने के बावजुद... भैरव सिंह उन्हें माफ कैसे किए हुए है...
विश्व - हाँ... यह एक वज़ह हो तो सकती है...
खान - ओ हो... डोंट चेंज द टॉपिक... प्लीज भाभी... आप बताइए...
प्रतिभा अपनी जबड़े भिंचते हुए तापस और विश्व को घूरने लगती है l विश्व और तापस दोनों भीगी बिल्लियों की तरह सिर झुका कर बैठ जाते हैं l
प्रतिभा - (दोनों को घूरते हुए) नहीं... मैं नहीं कहूँगी...
कह कर मुहँ मोड़ लेती है l विश्व इशारे से तापस से कहता है प्रतिभा को मनाने के लिए l तापस अपना कान पकड़ कर सिर हिला कर ना करता है तो विश्व घुटनों पर आकर प्रतिभा के सामने बैठ जाता है l
विश्व - माँ प्लीज ना... सॉरी कहा ना मैंने... प्लीज प्लीज बताओ ना...
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... ज्यादा ओवर ऐक्टिंग मत कर... अब चुपचाप मेरी बात सुन...
तापस - हाँ बोलो बोलो... भाग्यवान...
प्रतिभा - आप चुप रहेंगे... (अपनी होंठ पर उंगली रख कर कहती है, तापस अपने होंठ पर उँगली रख लेता है) तो अब ध्यान से मेरी बात सुनो... तुम राजगड़ और आसपास के गाँव में से... कुछ लोग चुनो... जिनकी तुम्हारे पास... और तुम्हारे पास एप्रोच हो... कम से कम... दस लोग... बैंक में एक प्रोसिजर होता है... केवाईसी का... इसमें फोन नंबर और एड्रेस अपडेट किया जाता है... तुम उन्हीं दस लोगों का केवाईसी करवा दो... ताकि अगली इंस्टॉलमेंट की खबर उन्हें एसएमएस के जरिए मालुम हो जाए... और लोन डिटेल्स उन्हें लेटर के जरिए... उनके ही एड्रेस में मिल जाए... (विश्व थोड़ी सोच में पड़ जाता है) क्या सोचने लगा...
विश्व - माँ आइडिया तो तुम्हारा बढ़िया है पर...
प्रतिभा - पर क्या...
विश्व - पर गाँव में यह सब करने के लिए... बैंक मैनेजर का भी साथ चाहिए... और राजगड़ हो या यशपुर... दोनों जगहों पर यह संभव नहीं...
प्रतिभा - जानती हूँ... पर यह केवाईसी तुम ब्रांच ऑफिस या जोनल ऑफिस के बजाय... हेड ऑफिस से मदत लो...
विश्व - हेड ऑफिस... हेड ऑफिस में भी कौन मदत करेगा... जैसे ही राजगड़ का नाम आयेगा... सब अपना पल्ला झाड़ लेंगे...
जोडार - नहीं... सब नहीं...
विश्व - मतलब...
जोडार - वाकई... सेनापति मैंम ने बहुत ही बढ़िया आइडिया दिया है... उन्होंने सच ही कहा है... की गाँव में तुम्हारी एक टीम है... और यहाँ.. हालात से और संयोग से तुम्हारे पास एक टीम है... तुम्हारा यह प्रॉब्लम मैं सॉल्व करूँगा...
तापस और विश्व - व्हाट... हाऊ... कैसे...
जोडार - देखो... मेरा एक बहुत बड़ा लोन सैंक्शन होने वाला है... इत्तेफाक से... बैंक का डायरेक्टर से मेरी अच्छी जान पहचान है... तुम केवाईसी की फॉर्म साइन करवा कर लाओ.... उसे हेड ऑफिस में अपडेट... मैं करवाऊंगा...
सभी अचानक से ताली बजाने लगते हैं l विश्व उठ कर प्रतिभा को गले लगा लेता है और प्रतिभा के गाल पर एक लंबी धन्यबाद वाली चुंबन जड़ देता है l
प्रतिभा - बस बस..
विश्व - अरे माँ.. थैंक्यू कर रहा हूँ...
प्रतिभा - मालुम है... पर मत भूल... मेरी बहु को भी तुझे थैंक्यू करना है...
विश्व - (चेहरा शर्म से लाल हो जाता है, हकलाते हुए) क्क्क्.. क्क्क्या...
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अगले दिन
xxxx कॉलेज लाइब्रेरी में रुप कुछ किताबें लौटा कर लाइब्रेरियन से क्लियरेंस ले कर जैसे ही घूमी सामने उसके छटी गैंग खड़ी थी l रुप रास्ता बना कर किनारे से निकल जाती है तो फिर बनानी और भाश्वती दोनों जाकर उसे लाइब्रेरी के बाहर रोकते हैं l रुप रुक जाती है तो बाकी दोस्त भी उसके पास आकर खड़े हो जाते हैं l
भाश्वती - क्या यार... इतना भी क्या रूठना...
बनानी - हाँ नंदिनी... उस दिन से तुम मुहँ मोड़ कर गई हो कि आज तक... हमसे बात भी नहीं कर रही हो... हमसे अलग... दूर बैठती हो...
इतिश्री - ओके... तुम रूठी हुई हो... जायज है... पर कितने दिन...
रुप - तुम कुछ नहीं कहोगी... तब्बसुम... और तुम... दीप्ति... ह्म्म्म्म...
दोनों - वह... सॉरी यार... फॉर गिव अस...
रुप उन सबके चेहरे को गौर से देखती है l सबके चेहरे पर मायूसी साफ दिख रही थी l
रुप - ओके ओके... तुम सब लगता है गले तक भरे हुए हो... चलो.. बोटनिकल गार्डन चलते हुए...
सभी रुप के पीछे बोटनिकल गार्डन में पहुँचते हैं l वहाँ पहुँचने के बाद रुप एक बेंच पर बैठ जाती है पर सारी लड़कियाँ खड़ी रहती हैं l
रुप - हम्म... बोलो.. क्या प्रॉब्लम है...
दीप्ति - यह क्या नंदिनी... हमने तो बताया... और माफी भी मांग रहे हैं...
रुप - यह बहुत अच्छा है... पहले ठेस पहुँचाओ फिर माफी माँगो...
बनानी - अरे यार... तुम क्यूँ किसी रेकार्ड की तरह वहीँ पर अटकी हुई हो...
रुप - ह्म्म्म्म... ठीक है... एक काम करो... सबसे पहले बैठ जाओ.... तुम सब... (सभी बैठ जाते हैं पर रुप के सामने) देखो... आज मेरे बोलने का दिन है... इसलिए तुम सब चुप चाप सुनोगे... बीच में कोई नहीं बोलेगा... ठीक... (सभी अपना सिर हिला कर हामी भरते हैं) तो.. मेरी जिंदगी... तुम लोगों के जैसी नहीं रही... तुम लोग बचपन से ही... अपने आसपास लोगों को... दोस्तों को... रिश्तेदारों को देखी होंगी... उनके साथ वक़्त बिताते बिताते यहाँ तक पहुँची होंगी... पर मेरी जिंदगी ऐसी नहीं थी... ना कोई दोस्त था... ना कोई रिश्तेदार... बस बड़ी होती गई... पहली बार ऊँची पढ़ाई के लिए... यहाँ आई... जब नाम छुपाया... तो तुम सबसे दोस्ती हुई... पर जब असलियत सामने आई... तुम लोग मेरी दोस्ती से भी... कतराने लगे थे... डराया धमकाया... तब जाकर तुम लोग दोस्त बने.. है ना...
बनानी - नहीं... यह पूरी तरह ठीक नहीं है...
रुप - ओके... लेट मी फिनिश फर्स्ट... मेरे खानदान का इमेज कितना खराब था... यह मैं अच्छी तरह से जानती हूँ... पर चूँकि जीवन में पहली बार... मैंने खुद से दोस्त बनाए थे... इसलिए मैं तुम लोगों को खोना नहीं चाहती थी... क्यूंकि मेरी जिंदगी की सबसे क़ीमती तोहफा थे तुम लोग... बनानी... तुम्हें याद है... तुम्हारी बर्थ डे पर... क्या हुआ था... मैं सेलीब्रेट करना चाहती थी... पर... खैर जो भी हुआ... उसके पीछे दीप्ति... तुम्हारी कंस्पीरैसी थी... रवि के साथ मिलकर... रॉकी की मदत कर रही थी... सब जानने के बाद भी... तुम्हें माफ किया था... क्यूँकी तुम दोस्त थी मेरी... जबकि पूरा शहर जानता है.. मेरे भाई कैसे हैं... इंक्लुडिंंग यु ऑल... पर क्राइम तो किया था ना तुमने... यु सो कॉल्ड सोशल पीपल... (दीप्ति का चेहरा उतर जाता है) और भाश्वती... तेरी मदत को मैं हरदम तैयार रहती थी... यहाँ तक मेरी बचपन की सारी बातें तुझसे शेयर किया था... पर फिर भी... तुझे... अनाम के अतीत से... प्रॉब्लम हो गई... कैसे भूल गई... तुझे कैसे बचाया था... (भाश्वती का चेहरा झुक जाता है) और तब्बसुम तुम... छुप कर बैठी थी... खुर्दा में... आज अगर भुवनेश्वर में बेखौफ रह रही हो... किसकी बदौलत...
सबके चेहरे उतरे हुए थे और झुके हुए थे l रुप खुद को दुरुस्त करती है फिर कहना शुरु करती है l
रुप - मैंने समाज को किताबों में पढ़ा था... पर तुम लोगों से मिलने के बाद... तुम लोगों से जुड़ने के बाद... मेरा अपना एक समाज बना... पर समाज कितना बेरहम हो सकता है... यह तुम लोगों ने एहसास कराया...
दीप्ति - (भर्राई आवाज़ में) सॉरी यार...
रुप - प्लीज... लेट मी फिनिश... दोस्तों में झगड़े हो सकते हैं... मनमुटाव भी हो सकते हैं... पर पीठ पर बात करते हुए छुपाना... (आवाज़ थर्रा जाती है) मुझे बहुत ठेस पहुँचाया... मुझे वाकई में पता चला... आख़िर समाज का ऐसा भी हो सकता है... (मुर्झाई हँसी के साथ) कहीं सुना था... या शायद कहीं पढ़ा था... प्यार और दोस्ती में फर्क़ क्या है... प्यार जहां आँखों में आँसू दे जाता है... वहीँ दोस्ती होंठों पर मुस्कान लाती है... पर... मेरे साथ थोड़ा उल्टा हो गया... मेरे दोस्त मेरे आँखों में आँसू ला दिए... जबकि मेरा प्यार... मेरे होंठो पर हँसी देखने के लिए... किसी भी हद तक गुजर सकता है...
रुप चुप हो जाती है, सभी आँखों में आँसू लिए रुप की ओर देखते हैं l रुप का चेहरा लाल हो गया था और अपनी आँखों को पोछ रही थी l
दीप्ति - सॉरी यार सॉरी... इन कुछ दिनों में... हमारी भी यही हालत है... प्लीज यार... अब तो शिकवा दुर कर ले...
रुप - फ्रेंड्स... ऐक्चुयली... आई नीड सम स्पेस... मैं कुछ ही दिनों में... गाँव जा रही हूँ... होली के छुट्टी पर... जब वापस आऊंगी... तुम्हारी दोस्त बन कर आऊंगी... हाँ... पर मैं कब आऊंगी... मैं नहीं जानती...
बनानी - क्यूँ... तु ऐसा क्यूँ कह रही है...
रुप - पता नहीं... अंदर से एक वाईव सा आ रहा है... इस बार का जाना...नजाने कब लौटना होगा... (हँस कर दिलासा देते हुए) पर... दोस्तों... मैं आऊंगी जरूर... यह वादा रहा....
इतना कह कर रुप वहाँ से बिना पीछे मुड़े अपनी दोस्तों की ओर देखे गाड़ी की पार्कींग की ओर चल देती है l
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हाथ में टिफिन बॉक्स लेकर विक्रम की केबिन में आती है शुभ्रा l विक्रम अपनी कुर्सी में लेट कर किन्ही ख़यालों में गुम था l जैसे ही शुभ्रा को देखता है वह सीधा हो कर बैठता है l शुभ्रा कमरे के एक कोने में स्थित डायनिंग टेबल पर खाना लगा कर विक्रम की ओर देखती है l विक्रम अपनी जगह से उठ कर अपनी प्लेट के पास बैठता है l विक्रम देखता है शुभ्रा उसे एक अलग सी नजर से एक टक घूरे जा रही है l
विक्रम - क्या हुआ...
शुभ्रा - आपसे बहुत कुछ जानना चाहती हूँ... पता नहीं कहाँ से शुरु करूँ...
विक्रम - कहीं से भी कीजिए... मैं ज़वाब दूँगा जरुर...
शुभ्रा - (विक्रम के सामने बैठ जाती है, वैसे ही घूरते हुए) क्या आपको पता था... सेनापति दंपति की अपहरण होने वाला है...
विक्रम - नहीं पर अंदेशा था.... (शुभ्रा के चेहरे को देखते हुए) पर... यह सब आप मुझसे कल भी तो पूछ सकती थी... और ऐसा क्यूँ लग रहा है कि... आपको मुझ पर शक़ हो रहा है...
शुभ्रा - शक़ नहीं... पर...
विक्रम - हम्म... पर क्या...
शुभ्रा - विकी... मैं जानती हूँ... आई मीन... मुझे एहसास है... आपका... विश्व के प्रति... (कह नहीं पाती चुप हो जाती है)
विक्रम - देखीए शुब्बु... आपके मन में जो भी है... साफ साफ कहीये...
शुभ्रा - (थोड़ी हिचकिचाते हुए) देखीए विकी... मैं जानती हूँ... आपने कहा भी था... के एक दिन.. विश्व का एहसान आप उतारोगे... और एक दिन वक़्त ऐसा भी आएगा... के कोई उसका अपना... आपके आगे गिड़गिड़ाएगा... तो... (फिर से चुप हो जाती है)
विक्रम - तो
शुभ्रा - आप इतने दिनों बाद आज क्लीन सेव्ड हैं... आपकी मूंछें भी पहले जैसे... शार्प और... ताव भरे हैं...
विक्रम - हूँ... तो आपको यह लग रहा है कि... मैं अपनी मूँछों के लिए... अपनी इगो को साटिसफाई करने के लिए... यह प्लॉट रचा है... (शुभ्रा की नजरें झुक जाती है) शुब्बु... मेरे तरफ देखिए... (शुभ्रा नजर उठा कर देखती है) विश्व प्रताप... जिस तेजी से... आग की ओर बढ़ रहा है... मुझे मालूम था... उसकी आँच एक दिन उसके परिवार तक पहुँचेगी... इसलिए मैं अपने आदमियों के जरिए... सेनापति दंपति पर नजर रख रहा था... वैसे भी मुझे... आप पर किए एहसान को उतारना भी तो था... सो उतार दिया... बाकी आगे जो हुआ... हाँ मैं उसकी तलबगार था... और हुआ भी वैसे ही... पर...
शुभ्रा - पर क्या...
विक्रम - आपकी सखी... सहेली... दोस्त... आपकी ननद... दिखी नहीं मुझे सुबह से...
शुभ्रा - (सकपका जाती है) वह... ऐक्चुयली... कॉलेज की लाइब्रेरी में... बुक्स लौटाने गई है...
विक्रम - या फिर... मेरा सामना ना हो जाए... इसलिए जल्दी ही कॉलेज निकल गई...
शुभ्रा - यह... यह आप.. क्या कह रहे हैं... (अब विक्रम घूर कर देखने लगा शुभ्रा को, शुभ्रा को लगता है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई) आप ऐसे क्यूँ... देख रहे हैं...
विक्रम - शुब्बु... जब सेनापति दंपति को मैंने रेस्क्यू किया... तब वे दोनों अंकंसियस थे... ट्रीटमेंट करा कर... उन्हें गेस्ट रुम में रखा था... फिर उन्हें कैसे मालुम हुआ... जीम में क्या हो रहा है... ना सिर्फ वे लोग पहुँचे... पीछे पीछे आप और नंदिनी भी...
शुभ्रा - वह.. बात दरअसल यह है कि... (अटक अटक कर) हमें... गेस्ट रुम से कुछ आवाजें सुनाई दी... और हम वहाँ पहुँचकर देखा... एडवोकेट सेनापति... बदहवास... पूछ रही थी... के वे कहाँ हैं... उनका बेटा कहाँ है... तो... (आगे कुछ कह नहीं पाती)
विक्रम - ह्म्म्म्म... वैसे क्या वह... नंदिनी को जानते हैं...
शुभ्रा - नहीं नहीं... हाँ हाँ...
विक्रम - क्या मतलब...
शुभ्रा - नहीं का मतलब... नंदिनी क्षेत्रपाल है यह नहीं जानती... और हाँ इसलिए... की नंदिनी उनकी सुपर्णा मैग्जीन की एडिटोरीयल राइटिंग की बड़ी फैन है... और एक बार इसी सिलसिले में... उसकी एक दो बार... मुलाकात भी हुई थी...
विक्रम - (कोई रिएक्शन दिए वगैर) ओ...
शुभ्रा को विक्रम का ऐसा रिएक्शन अटपटा लगता है l विक्रम चुप चाप अपना खाना खाने लगता है l शुभ्रा को लगता है जरूर कोई और बात है, विक्रम उसे या तो पूछ नहीं रहा है या फिर बता नहीं रहा है l
शुभ्रा - विकी...
विक्रम - हूँ...
शुभ्रा - मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है... आप मुझसे कुछ पूछना चाह रहे हैं...
विक्रम - (एक कुटिल मुस्कान मुस्कराते हुए) आप दोनों... ननद भाभी के बीच बहुत से राज हैं... जो मैं नहीं जानता...
शुभ्रा - यह... आ.. आप.. क्क्क्या...
विक्रम - शुब्बु... कल जब मैं विश्व को रस्सियों के सहारे दबोच रखा था... तब... उसके गर्दन के पीछे... मुझे रुप नाम गुदा हुआ दिखा... तब से मैं कुछ डॉट जोड़ने लगा हूँ... अब आप इसके बारे में क्या कहेंगी...
शुभ्रा - (चेहरा सफेद हो जाता है)
विक्रम - मुझसे आप कुछ ना कहें... तो कोई बात नहीं... पर क्या मुझे इतना तो मालुम होना ही चाहिए... विश्व की वह रुप कौन है...
शुभ्रा अपनी आँखे मूँद कर एक गहरी साँस लेती है और अपना सिर हाँ में हिलाती है l फिर विक्रम की ओर देख कर विश्व और रुप की कहानी बताने लगती है, जो जो उसे रुप ने जैसा बताया था, वैसे ही सारी बातेँ बता देती है l सारी बातेँ सुनने के बाद विक्रम कहता है
विक्रम - हूँ... तो मेरा शक़ सही था... प्रतिभा जी को... नंदिनी ने जीम में हो रही फाइट के बारे में बताया था...
शुभ्रा कुछ नहीं कहती l विक्रम उठ कर अपना हाथ धोने चला जाता है फिर वापस जब आता है तो देखता है शुभ्रा की चेहरे पर परेशानी थी l
विक्रम - शुब्बु... आप परेशान मत हों... मैं चाहे जैसा भी हूँ... पर बातों को जज्बातों को समझ सकता हूँ... मेरी बहन की बचपन आम ल़डकियों की बचपन की तरह नहीं गुजरी है... इसलिए विश्व का नंदिनी के जीवन में होना... कोई अचरज की बात नहीं है... पर हाँ चिंता की बात जरूर है... जब राजा साहब को उन दोनों के बारे में पता चलेगा... तब क्या होगा...
शुभ्रा - मतलब... आपको... कोई शिकायत नहीं है...
विक्रम - किस बात की शिकायत... शुब्बु... एक अहंकार तो मन में था... शायद है भी... के मुझसे बेहतर कोई नहीं है... या तो मुझ से कम हो सकते हैं... या फिर मेरे बराबर... पर विश्व अलग है... वह खुदको इतना उपर रखा है कि... मुझे उसके बराबर होने के लिए जद्दोजहद करना पड़ा... आपके सामने मुझे यह स्वीकारने में कोई दिक्कत नहीं है... के विश्व मुझसे हर मामले में बेहतर है...
शुभ्रा - तो क्या... अब आप वीर की जैसे मदत कर रहे हैं... आगे नंदिनी की वैसे मदत करेंगे...
विक्रम इस सवाल पर खामोश रहता है, शुभ्रा भी ना तो कोई और सवाल करती है ना ही सवाल को दोहराती है l अचानक विक्रम अपनी कुर्सी के पास जाता है और अपना ब्लेजर उठा कर बाहर चला जाता है l अपनी सवाल के साथ कमरे में शुभ्रा रह जाती है l
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वॉशरुम में अपनी मूँछों पर सफेद बालों को छाँट छाँट कर रोणा काट रहा था l अभी अभी बालों पर डाई लगाया था l तभी उसके कानों में मोबाइल की वाईव्रेशन की आवाज़ आती है l वह मोबाइल के पास जाता है स्क्रीन पर वीडियो कॉल में लेनिन दिखाई दे रहा था l रोणा झट से कॉल उठाता है l उसे स्क्रीन पर एक पार्क में बेंच पर एक जोड़ा बैठे दिखते हैं l
लेनिन - देख रहे हैं...
रोणा - अबे यह जोड़ा है किसकी...
लेनिन - कमाल कर रहे हैं... आपको... विश्वा और उसकी माशुका दिख नहीं रहे हैं...
रोणा - अबे हराम के... किसको दिखा कर मेरे मजे ले रहा है...
लेनिन - एक मिनट...
मोबाइल के कैमरे के सामने कोई लेंस फिट करता है l तब रोणा को अपनी स्क्रीन पर वह जोड़ा साफ नजर आते हैं और वह जोड़ा कोई और नहीं विश्व और रुप ही थे l उन्हें देखते ही रोणा की आँखों में अंगारे उतर आते हैं l
लेनिन - अब तो आपको साफ दिख रहे होंगे...
रोणा - हाँ... पर यह सब दिखा कर क्या साबित करना चाहता है...
लेनिन - यही की... मैं बहुत ही सीरियस हूँ... आपने मेरा काम कर रखा है... और मैं आपका काम बहुत जल्द करने वाला हूँ...
रोणा - उस लड़की के बारे में कुछ पता चला...
लेनिन - नहीं... पता करने की कोई जरूरत नहीं... मतलब आप ही ने बताया था... की कोई भी हो... आपको फर्क़ नहीं पड़ता... इसलिए मैंने भी कोई कोशिश नहीं की...
रोणा - मुझे उन तोता मैना की बातेँ सुननी है...
लेनिन - यह कैसे हो सकता है... वे लोग बहुत दुर हैं... मैं उनके सामने या पास भी नहीं जा सकता...
रोणा - पर तु तो कह रहा था... उसकी मोबाइल में तुने बग लगाया है...
लेनिन - हाँ पर वह उसके फोन पर बातेँ सुनने के लिए... वह बग तभी काम करेगा... जब उसकी फोन पर कोई कॉल आएगी या... कॉल जाएगी...
रोणा - तो फिर फ़ालतू में कॉल लगा कर मेरा टाइम खोटा क्यूँ किया...
लेनिन - तो क्या कॉल काट दूँ...
रोणा - नहीं चलने दे... कम से कम दिख तो रही है... साली कमिनी.. कुतिया...
पार्क में विश्व और रुप दोनों बातेँ कर रहे थे l
विश्व - क्या बात है... आज इतना गुमसुम क्यूँ हैं आप...
रुप - आज मैं अपने दोस्तों से... कुछ वक़्त का गैप माँगा है...
विश्व - क्यूँ....
रुप - ओ हो... अनाम... देखो... मैं आज मज़ाक के मुड़ में बिल्कुल नहीं हूँ...
विश्व - ओके ओके... आज गुस्सा पहले से ही नाक पर बैठी है...
रुप - (थोड़ा शांत हो कर) मैंने ठीक किया ना...
विश्व - हाँ बिल्कुल... किसी भी रिश्ते में अगर थोड़ी सी भी खिटपिट हो... तो उस रिश्ते में... थोड़ा गैप देना चाहिए...
रुप - थैंक्स... वैसे एक बात कहूँ...
विश्व - हाँ जरूर...
रुप - कल मैं थोड़ी डर गई थी...
विश्व - क्यों...
रुप - अरे... देखा नहीं... माँ से भैया ने जब पूछा... जीम में तुम दोनों के बारे में किसने खबर दी...
विश्व - तो इतनी सी बात पर आप डरी क्यूँ...
रुप - डर लगता है... वह मेरे बड़े भैया हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म.... अगर मैं यह कहूँ.. के विक्रम को... कल ही मालुम हो गया... आपके और मेरे बारे में...
रुप - (उछल पड़ती है) व्हाट... क.. क.. क्कैसे..
विश्व - (अपने गर्दन के पीछे हाथ फेरते हुए) आपकी गुदाए हुए.... आपका नाम देख लिया था विक्रम ने....
रुप कुछ कहने के बजाय, अपने अंगुठे का नाखुन चबाने लगती है l विश्व उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l
विश्व - अब क्या हुआ....
रुप - ओह माय गॉड... अब मैं भईया का सामना कैसे करूंगी...
विश्व - अगर लगे के आपसे गुनाह या पाप हुआ है... तो मुहँ छुपा लीजियेगा...
रुप - (बिदक जाती है) खबरदार जो मेरे प्यार को पाप कहा तो...
विश्व - तो वैसे ही सामना कीजिए... जैसे आप रोज करती हैं...
उधर रोणा देखता है विश्व कुछ कागजात रुप के हाथों में दे रहा है l रुप उन कागजातों को लेकर बेंच से उठती है और पार्क के बाहर की ओर जाने लगती है तो अचानक विश्व उसे आवाज़ देकर रोक देता है और भागते हुए रुप के गले लग जाता है l रोणा देखता है कि रुप मुस्कराते हुए विश्व से कुछ पुछ रही है l
रुप - आह... क्या बात है... आज पहली बार जनाब ने... आगे आकर मुझे गले लगाया है...
विश्व - मैं बस यह कहना चाहता हूँ... आप कभी भी... डरीयेगा मत... मैं आपके साथ आपकी धड़कन की तरह रहूँगा...
रुप - मैं जानती हूँ... जब तुम मेरे साथ हो... कोई खतरा मुझे छु भी नहीं सकता...
इतना कह कर रुप विश्व से अलग होती है और पार्क से बाहर चली जाती है l यह देख कर रोणा अपनी जबड़े भिंच लेता है और कॉल काट देता है l
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शाम का समय
ट्वेंटी फोर सेवन हाई वे रेस्टोरेंट के एक केबिन में विक्रम बैठा हुआ था l बार बार घड़ी देख रहा था l तभी केबिन का पर्दा उठा कर विश्व अंदर आता है l
विक्रम - बोलो क्यूँ बुलाया...
विश्व - (उसके सामने बैठते हुए) एक बार तुमने मुझे बुलाया था... इसलिए सोचा... मैं तुम्हें बुला दूँ...
विक्रम - तुमने भी वही फ़ार्मूला अपनाया...
विश्व - हाँ... तुम्हें बुलाने के लिए... तुम्हारा ही आजमाया हुआ फार्मूले से बुलाना पड़ा...
विक्रम - बोलो फिर...
विश्व - थैंक्यू... मेरी माँ को बचाने के लिए...
विक्रम - बचाया इसलिये था... के तुम्हारा एहसान जो उतारना था मुझे...
विश्व - हाँ एहसान और बोझ... दोनों उतार दिए तुमने...
विक्रम - हाँ.... बात समझ में आ गई... इसलिए अब जब फिरसे सामना होगा... ना मुझ पर कोई बोझ या एहसान होगा... ना तुम पर...
विश्व - हाँ... तब बेफिक्र हो कर... तब तक लड़ सकते हैं... अपना खुन्नस उतार सकते हैं... जब तक कोई एक घुटना ना टेक दे...
विक्रम - हाँ और वह वक़्त... बहुत जल्द शायद आएगा भी... वैसे यह मेरी दिल की दुआ है... क्यूँकी तुम फ़िलहाल... अपर हैंड में हो...
विश्व - मतलब...
विक्रम - देखो विश्व... बड़ी मुद्दतों बाद... मुझे रिश्ते हासिल हुए हैं... फ़िलहाल मैं ऐसा कुछ कर नहीं सकता... जिससे मैं वह सारे रिश्ते खो दूँ...
विश्व - ओह... और वज़ह
विक्रम - वीर और नंदिनी... हाँ विश्व... वीर और नंदिनी... मैं उन्हें आज किसी भी कीमत पर खो नहीं सकता... भले ही अब तुम्हारे और मेरे बीच में... फ़िलहाल के लिए.. दुश्मनी की गुंजाईश ना हो... पर तुम यह समझने की भी भूल मत कर बैठना... के तुममे और मुझमें कोई दोस्ती हो सकती है...
विश्व - ठीक कहा तुमने... तुम्हारा मेरा रिश्ता ही कुछ ऐसे बन रहे हैं... ना दोस्ती होगी... ना दुश्मनी... पर फिर भी... हम एक दुसरे के काम आते रहेंगे... और काम लेते रहेंगे...
विक्रम - ओ... इसका मतलब... कोई काम है...
विश्व - हाँ पर वास्ता मेरा जितना है... तुम्हारा भी उतना ही है... या फिर यूँ कहो के शायद तुम्हारा ज्यादा है...
विक्रम - अच्छा... ठीक है फिर... बोलो क्या काम है... और उस काम से मेरा क्या वास्ता है....
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पैराडाईज
वीर के हाथों से अनु पट्टी बदल रही थी l अनु के आँखे नम थी l तभी दोनों के कानों में कलिंग बेल की आवाज सुनाई देती है l अनु और वीर एक दुसरे को हैरान हो कर देखते हैं फिर वीर अनु को बैठने का इशारा कर दरवाजे की ओर जाता है और मैजिक आई से बाहर देखता है पर उसे कोई नहीं दिखता, इसलिए वह दरवाजा धीरे से खोलता है l उसे बाहर कोई नहीं दिखता के तभी रुप "हू" कर आवाज निकाल कर सामने आती है l वीर थोड़ा चौंकता है l
रुप - भैया डर गए...
वीर - (मुस्कराते हुए रुप के सिर पर एक टफली मारते हुए) रोज के रोज बड़ी हो रही है... या छोटी...
रुप - आपने मुझे मारा... चलो मैं आपसे बात नहीं करती...
इतना कह कर रूठने की नाटक करते हुए घर में दाखिल होती है और अंदर जाकर अनु के गले लग जाती है l फिर अचानक उसकी आँखे पास रखे टेबल पर डेटॉल,गौज और बैंडेज वगैरह देखती है l
रुप - यह क्या है भाभी...
अनु - कुछ नहीं... (वीर की तरफ देखती है तो वीर इशारे से कुछ ना कहने के लिए कहता है) वह मुझसे काँच की ग्लास टुट गई थी... मुझे चुभ ना जाएं... इसलिए तुम्हारे भैया ने काँच के टुकड़ों को उठाया... इसलिए उनके हाथ ज़ख़्मी हो गया...
रुप - ओह... हाऊ स्वीट... भैया... आपको कितना प्यार करते हैं...
अनु - हाँ वह तो है... पर मैं उनके लिए... बदकिस्मत बन गई हूँ...
रुप - क्यूँ... क्या हुआ...
वीर - कुछ नहीं... यह तुम्हारी भाभी कुछ भी... अनाप सनाप बोलती रहती है...
रुप - ओके ओके... बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं... पहले तु बता... यहाँ इस वक़्त कैसे आना हुआ...
रुप - ओ... पहले भाभी की हाथ से कुछ हो जाए... फिर ना जाने आना होगा या नहीं...
अनु - मैं अभी कुछ लाती हूँ...
अनु किचन के अंदर चली जाती है l वीर रुप की ओर मुड़ता है और पूछता है l
वीर - ना जाने फिर कब आना होगा... इसका मतलब क्या हुआ...
रुप - वह बात दरअसल यह है कि... मैं इस बार होली मनाने राजगड़ जा रही हूँ... तो मुझे लग रहा है कि शायद... राजा साहब इसबार जल्दी आने ना दें...
वीर - (हैरानी के साथ) तु... होली में... गाँव जा रही है...
रुप - हाँ...
वीर - पागल तो नहीं हो गई... गाँव में आज तक कभी कोई त्योहार मनाया भी गया है...
रुप - भैया... मैं त्योहार मनाने नहीं... छुट्टियाँ मनाने जा रही हूँ...
तभी अनु प्लेट में कुछ नास्ता और चाय लेकर आती है l टेबल से फर्स्ट ऐड सामान हटा कर रुप को बिठाती है और खाने के लिए प्लेट आगे करती है l
अनु - कहीए राजकुमारी जी... कैसे आना हुआ..
रुप - ओहो भाभी... आप भले ही भैया को राजकुमार बुलाईए... पर मुझे आप नंदिनी ही कहें...
अनु - मुस्किल होगा...
रुप - फिर भी... कहिये...
अनु - अगली बार कोशिश करुँगी... फिलहाल के लिए बताओ... आप आईं किसलिए...
रुप - ओके पहले खाने तो दीजिए...
रुप नास्ता ख़तम कर देती है l करचीफ से हाथ मुहँ साफ कर लेने के बाद अपनी वैनिटी बैग से कुछ कागजात निकाल कर अनु के हाथों में रख देती है l
अनु - यह... यह क्या है...
वीर - यह कैसे कागजात हैं...
रुप - भैया... जोडार ग्रुप ने... पाढ़ी होटल्स में टूर एंड ट्रैवल्स में कुछ गाड़ी लगाए हैं... तो उनके कॉन्ट्रैक्ट को जब उन्होंने सबलेट किया था... तब मैंने भाभी जी के नाम पर... वही सब लेटींग कॉन्ट्रैक्ट उठा लिया...
वीर - (चौंक कर) व्हाट... यह तुमने क्या किया...
रुप - हाँ भैया... रॉकी न मुझे बताया कि कैसे तुम काम मांगने उसके होटल में गए थे... भैया... उसने तुम्हारी बात मान कर... उस दिन... होटल में तुम्हारी और भाभी की मदत की... पर छोटे राजा जी ने... उन्हें धमकाया भी बहुत था... इसलिए उसीने ही... मुझे सबलेटींग कॉन्ट्रैक्ट के बारे में बताया था... तुम्हारे नाम से मिलती नहीं.. इसलिये भाभी जी के नाम पर मैंने यह टेंडर डाला था... और लकीली कॉन्ट्रैक्ट मिल भी गई... इसलिए भैया... आप अभी किसी से भी काम मत माँगों... और देखो ना... भाभी की नाम लक्ष्मी देवी के समान हो गई... पहली ही कॉन्ट्रैक्ट में कामयाबी मिली... यह लो अब कागजात...
वीर और अनु रुप को मुहँ फाड़े बेवक़ूफ़ों की तरह देखे जा रहे थे l बहुत आनाकानी किए भी पर रुप की जिद के आगे उन दोनों को झुकना पड़ा और रुप से वह कागजात ले लिए l रुप उनसे विदा लेकर अपार्टमेंट के नीचे आती है और अपनी गाड़ी में बैठ कर वहाँ से निकल जाती है l थोड़ी दूर बाद गाड़ी रोकती है अपना फोन निकाल कर विश्व के नंबर पर मेसेज करती है
"थैंक्यू"
एक सौ तैंतालीसवां अपडेट
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बारंग रिसॉर्ट
म्युनिसिपल ऑफिस के कुछ कर्मचारी व अधिकारीयों से शहर के बारे में बात करने के बाद कुछ फाइलों पर दस्तखत कर पिनाक सबको विदा करता है l उन सबके जाने के बाद पिनाक अपने कमरे में आता है l कमरे में मद्धिम रौशनी थी, अपने कोट के कुछ बटन्स खोल कर सोफ़े पर बैठ जाता है और फिर आवाज देता है
पिनाक - ओये... कोई है... (कोई आकर उसके पास खड़ा होता है, उसके ओर बिना देखे) जाओ... एक बोतल लेकर आओ...
वह शख्स जाकर फ्रिज खोलता है एक शराब की बोतल और बर्फ के कुछ सिल्ली निकाल कर लाता है और सोफ़े के सामने रखे ग्लास में शराब उड़ेल कर पेग बना कर उसमें बर्फ डाल कर पिनाक को देता है l पिनाक एक घुट पीने के बाद उस शख्स से
पिनाक - एक काम कर.. टीवी लगा दे... देखें तो सही... ख़बरें क्या चल रही है...
वह शख्स टीवी ऑन करता है तो नभ वाणी न्यूज में सुप्रिया के साथ प्रतिभा का साक्षात्कार चल रहा था l
सुप्रिया - प्रतिभा मैंम... इतना बड़ा कांड हो गया... इस बात से आप की क्या प्रतिक्रिया है...
प्रतिभा - मैं तो स्थब्द हूँ... यकीनन.. डकैती... वह भी मेरे घर में... हमने कोई अथाह दौलत इकट्ठा नहीं की है... जितनी भी कमाई थी... सब लगा कर... हमने यही घर बनाया था... आई पिटी... उन चोरों को कुछ नहीं मिला होगा...
सुप्रिया - फिर भी... यह तो हैरानी की बात है... यहाँ तक आपके पड़ोसियों को भी खबर नहीं थी के आप... दोनों... आई मीन... आप और आपके पति दोनों... घर पर मौजूद नहीं थे...
प्रतिभा - हाँ... बात दरअसल यह है कि... मेरे पति सेनापति जी ने.. अचानक प्रोग्राम बनाया की... कहीं चलते हैं... एक दो दिन के लिए... इस तरह हम अपनी गाड़ी में... सातपड़ा की ओर चले गए थे... पर बीच में गाड़ी खराब हो गई थी... और उस रास्ते में... मोबाइल का टावर भी नहीं था... इसलिए क्या हुआ कब हुआ... इन बातों से हम सब अनभिज्ञ रहे...
सुप्रिया - ओ... तो फिर इसका मतलब क्या समझा जाए.. आई मिन.. मेरा आशय यह था कि.. यह डकैती थी या... फिर... (सुप्रिया चुप रहती है)
प्रतिभा - आप बीच में क्यूँ रुक गईं... कोई नहीं... फिर भी मैं आपके प्रश्न का उत्तर दिए देती हूँ... आपने कहा कि हमारे पड़ोसियों को भी मालुम नहीं था... के हम अपने घर में हैं या नहीं... फिर चोरों को कैसे मालुम हुआ... अगर चोरों को मालुम हुआ... तो इस मामले में... वे लोग वाकई बहुत स्मार्ट निकले... पर बदनसीब भी बहुत... क्यूँकी उन्हें खाली हाथ से ही संतुष्ट करना पड़ा होगा...
पिनाक - (भड़क कर) बंद कर यह टीवी... (शख्स टीवी बंद कर देता है) साली.. कमिनी चालाकी दिखा रही है... सीधे सीधे कह भी नहीं रही है... की कोई उसकी किडनैप करने की कोशिश की... (पेग ख़तम कर, उस शख्स से) ऐ... और एक बना... (वह शख्स ग्लास में शराब उड़ेलता है, रुकता नहीं l ग्लास भर कर बहने लगती है) ऐ... अबे अंधा हो गया क्या... कमरे में इतना अंधेरा नहीं है कि... ग्लास ठीक से दिखे ना...
यह कहते हुए पिनाक उस शख्स की ओर देखने लगता है, उसे वह जाना पहचाना सा लगने लगता है, वह शख्स धीरे धीरे स्विच बोर्ड तक चलकर जाता है और स्विच ऑन करता है l कमरे में लाइट जलते ही पिनाक देखता है वीर उसके सामने खड़ा था l
पिनाक - राजकुमार तुम...
वीर - हाँ...
पिनाक - (अंदर ही अंदर खुश होकर) आप... वापस आ गए...
वीर - नहीं...
पिनाक - (चेहरे के भाव बदल जाता है) तो... यहाँ क्या करने आए हैं...
वीर - अपना शक़ को पुख्ता करने आया था...
पिनाक - कैसा शक़...
वीर - आपने... सेनापति दंपति को किडनैप करने की कोशिश क्यों कि...
पिनाक - हमने कोई किडनैपिंग करने की कोशिश नहीं करी...
वीर - तो न्यूज इंटरव्यू पर इतना भड़क क्यूँ रहे थे...
पिनाक - हू द हैल यु आर... तुम होते कौन हो... हमसे जिरह करने की... राजकुमार... ओह... हम तो भूल ही गए थे... तुम अब क्षेत्रपाल नहीं रहे... सही कहा ना वीर सिंह...
वीर - जी बिल्कुल... आपके सामने कोई क्षेत्रपाल राजकुमार नहीं है... आपके सामने विश्व प्रताप का दोस्त खड़ा है...
पिनाक - दोस्त... (पेग वाला ग्लास उठा कर खड़ा हो जाता है और नीचे पटक देता है, ग्लास टुट कर बिखर जाता है) माय फुट... (तिलमिलाए हुए) हम... हम उसकी... उसके खानदान की... धज्जियाँ उड़ा देंगे...
विश्व - ना... ऐसा कुछ भी करना तो दुर... सोचिएगा भी नहीं...
पिनाक - (अब गुस्से से थर्राने लगता है) क्या कहा... कंधे के बराबर आ जाने से... बेटा बाप को नसीहत नहीं देता... बाप.. बाप होता है... कमजर्फ...
वीर - नसीहत नहीं... हिदायत दे रहा हूँ... अभी तक जो हो गया... सो हो गया... बस... (पिनाक के पास आकर उसके आँखों में आँखे डाल कर) अगर आपने या आपके किसी और बंदे ने यह गुस्ताखी की... तो कसम है मुझे मेरी माँ की... मैं उसकी धज्जियाँ उड़ा दूँगा...
पिनाक की आँखे हैरानी से बड़ी हो जाती है l वह वीर को ऐसे देखने लगता है जैसे उसे कोई करेंट का जबरदस्त झटका लगा हो l
पिनाक - क्या... क्या कहा तुमने... तुम... हमें... धमका रहे हो...
वीर - नहीं... समझा रहा हूँ...
पिनाक - हमारे रगो में... क्षेत्रपाल का खुन बह रहा है... इसकी गर्मी के आगे... लावा भी भस्म हो जाता है... हम जो एक बार ठान लें... वह करके ही मानते हैं...
वीर - वहम है आपका... बुढ़े हो गए हैं आप... मेरे खुन की गर्मी के आगे... आपका खुन बर्फ़ लगेगा...
पिनाक - हे... हेइ... तुम हमारे खुन की गर्मी को आज़माना चाहता है...
वीर - नहीं मुझे अंदाजा है... मैं बस इतना कहना चाहता हूँ... आप मेरे खुन की गर्मी को मत आजमाइए...
पिनाक - हा हा... हा हा हा हा हा... बच्चे... जा... अपनी लौंडी की गोद में छुप जा... (अपना हाथ वीर के चेहरे के सामने लाकर) इसी हाथ की उंगली पकड़ कर... चलना सीखा था... चल आजा... इसी हाथ में हाथ मिलाकर... अपनी गर्मी दिखा दे...
वीर - जैसी आपकी मर्जी...
वीर उन टुटे बिखरे काँच में से एक काँच का टुकड़ा उठाता है l फिर उस काँच के एक धार वाली सिरे को अपने हाथ में लेकर पिनाक की हाथ में दुसरा सिरा लगा कर हैंडशेक की तरह कस के पकड़ लेता है l अचानक वीर के इस हरकत से पहले पिनाक भौचक्का हो जाता है पर कुछ देर में उसके हाथों में दर्द होने लगता है l पिनाक अब अपने दुसरे हाथ से बंधे हाथ को छुड़ाने की कोशिश करने लगता है पर उसका दर्द और भी तेजी से बढ़ने लगता है l कुछ भी सेकेंड के बाद पिनाक दर्द के मारे चिल्लाने लगता है l वीर पिनाक की हाथ को आज़ाद कर देता है l पिनाक अपने हाथ में देखता है, बीचों-बीच काँच की धार को वज़ह से कट कर खुन बह रहा था, वहीँ वीर के चेहरे पर कोई शिकन नहीं था l वीर के हाथ में वह काँच का टुकड़ा गड़ा हुआ था और खुन भी बह रहा था l
वीर - अब बात... आपके समझ में आ गई होगी... (पिनाक अपनी ज़ख्मी हाथ को पकड़े हुए कराहते हुए वीर को देख रहा था) आपके खुन की गर्मी से लावा भले ही भस्म हो जाए... पर मेरे खुन की गर्मी को कभी मत ललकारीएगा...
पिनाक - नालायक... बतमीज... तु मेरा बेटा नहीं हो सकता... हराम जादे... तु मेरा बेटा कभी नहीं हो सकता...
वीर - क्यूँ... आप पर भारी पड़ गया... इसलिए...
पिनाक - खामोश... निकल जाओ यहाँ से... गेट ऑउट...
वीर - मैं यहाँ रुकने के लिए नहीं आया हूँ... बस आपको हिदायत देने आया हूँ... आपका गुस्सा... मेरे लिए हो.. तो मुझे स्वीकार है... पर अगर मेरे दोस्त के लिए हो... तो मुझे अपने सामने इसी तरह पायेंगे...
पिनाक के जबड़े सख्त हो जाते हैं l आँखे और आँखों के नीचे की मांस पेशियाँ थर्राने लगते हैं l वीर अपनी हाथ में घुसे उस काँच के टुकड़े को निकाल कर फर्श पर फेंक देता है फिर पिनाक की ओर देखने लगता है l
पिनाक - तु मेरा बेटा... नहीं हो सकता...
वीर - दिल कर रहा है... आपका मुहँ तोड़ दूँ... क्यूँकी बार बार यह कह कर... आप मेरी माँ को गाली दे रहे हैं... फिर सोच रहा हूँ... बहुत दर्द में हैं आप... आखिर जवान बेटा... छोड़ कर गया है आपको... उस दर्द की सोच कर माफ कर रहा हूँ...
पिनाक - तु... मेरा बेटा नहीं हो सकता...
वीर - पिताजी...
पिनाक - व्हाट... हाऊ डैर यु... डोंट कॉल मी... पिताजी... आई एम... छोटे राजा जी...
वीर - सही कहा आपने... हम कभी इस रिश्ते में थे ही नहीं... खैर... एक बात आपको बताना चाहता हूँ... भगवान पर विश्वास कभी था ही नहीं... पर अनु की सौबत ने मुझे उस पर यकीन करना सीखा दिया... इसलिए कभी भगवान ने ऐसा मौका बनाया के मैं अपने पिता के लिए... कुछ कर पाऊँ... तो करने से भी पीछे नहीं हटुंगा... पर... यह भी सच है... मेरे जज्बातों से टकराने की कोशिश की... तो वह सजा दूँगा... जिसकी आपने कभी सोचा भी नहीं होगा...
इतना कह कर वीर वहाँ से चला जाता है l अपनी आँखे फाड़े हाथ को पकड़े कसमसाते हुए वीर को जाते और दरवाजा बंद होते देखता है l
पिनाक - तु मेरा बेटा... हो नहीं सकता... तु मेरा बेटा... हो नहीं सकता... आह... (फिर जोर से चिल्लाता है) आह...
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बक्शी जगबंधु सोसाईटी
सेनापति का घर
ड्रॉइंग रुम में तापस, विश्व, खान, सुभाष और जोडार बैठे हुए हैं, किचन में इन सबके लिए प्रतिभा चाय बना रही थी l विश्व कुछ चिंतित था l
तापस - तुम... नर्वस लग रहे हो..
विश्व - हाँ... पहली बार... डरा हूँ... (एक पॉज लेकर) डरा क्या... हिल गया हूँ... अंदर से...
तापस - कुछ हुआ तो नहीं ना...
विश्व - पर मेरे उम्मीद से भी थोड़ा भयानक हो गया...
जोडार - आई एम... सॉरी विश्व... यह मेरी गलती है...
विश्व - जोडार सर... मुश्किलों से भरा सफर है... हादसों से भरा डगर है... जितना अब तक खो चुका हूँ... बहुत खो चुका हूँ... अब और नहीं... (कुछ देर के लिए सबके बीच एक ख़ामोशी छा जाता है)
सुभाष - (खामोशी को तोड़ते हुए) वेल... जो भी हुआ... बेशक बुरा हुआ... पर भयानक नहीं था... यूँ कहो कि... हमारे लिए... एक अलर्ट था... जिस पर अब हमें ध्यान देना चाहिए... खैर... वह बाद की बात है... तुमने मैंम से ऐसा स्टेटमेंट क्यूँ दिलवाया... के जो हुआ तब... घर में कोई नहीं था.. जबकि तुम अच्छे तरह से जानते हो... इसके पीछे किसका हाथ था...
विश्व - नहीं... मैं अब भी... श्योर नहीं हूँ... और इस मामले को... मैं पोलिटिक्स से दुर रखना चाहता हूँ...
सुभाष - कैसी पालिटिक्स...
विश्व - आप समझा करें... सतपती जी... क्षेत्रपाल पर उंगली उठाने से पहले... हमारे आस्तीन में... पक्के सबुत होने चाहिए...
तापस - हाँ... और हमारे पास... कोई सबूत नहीं है...
सुभाष - पता नहीं क्यूँ... मुझे इसमें विक्रम का ही हाथ लग रहा है...
विश्व - नहीं... विक्रम का कोई हाथ नहीं है...
सुभाष - तुम ऐसे कैसे कह सकते हो... हो सकता है... तुम्हारे नजर में हीरो बनने के लिए... उसने ही सारा प्लॉट सेट किया हो...
विश्व - नहीं...
सुभाष - कोई खास वज़ह...
विश्व - रंगा... उर्फ रंग चरण सेठी... उस वक़्त विक्रम उसे देख लिया होता... तो रंगा को जान से मार देता...
सुभाष - ठीक है... चलो मान लेते हैं... पर अगुवा तो... मेयर ने करवाया था ना...
विश्व - यही तो समझ में नहीं आ रहा... रंगा... जिसने क्षेत्रपाल की बहू पर हमला बोला था... वह छोटे राजा के खेमे में कैसे... या फिर... (रुक जाता है)
खान - या फिर... जरूर कोई तीसरा बंदर है... जो दो बिल्लियों को लड़ा कर... अपना उल्लू सीधा करवाना चाहता है...
जोडार - तो वह तीसरा है कौन... क्यूंकि जहां तक मुझे इल्म है... रंगा... विश्व से उलझने से पहले.. सौ बार सोचेगा...
तापस - हाँ... फिर भी... रंगा ने विश्व की पूंछ पर हाथ तो मारा है... और उसके इस हिमाकत के पीछे कौन हो सकता है...
सुभाष - ह्म्म्म्म... वाकई... बात में गहराई तो है... तो सवाल है... वह तीसरा... किसका दुश्मन है... विश्व का... या... क्षेत्रपाल का...
कुछ देर के लिए फिर से सबके बीच खामोशी हो छा जाती है और सभी अपने अपने ख़यालों में खो जाते हैं l तभी ट्रे में हॉल में मौजूद सब के लिए चाय लेकर प्रतिभा अंदर में आती है l
प्रतिभा - ओके ओके... पहले सब चाय ले लो... इससे दिमाग खुल जाएगी...
सभी चाय की कप उठा कर चुस्की लेने लगते हैं l पर विश्व अपना कप नहीं उठाता l यह देख कर तापस प्रतिभा को इशारा करता है तो
प्रतिभा - क्या बात है प्रताप...
विश्व - हूँ... कुछ नहीं माँ...
प्रतिभा - माँ से झूठ बोलोगे...
विश्व - माँ... बात यहाँ तक... इस तरह पहुँचेगी... मैंने सोचा भी नहीं था... (तापस की ओर देख कर) डैड... आपका वह माउजर... वह भी काम ना आया... और आपने कोई रीटालीयट भी नहीं किया...
सुभाष - उनके जगह तुम होते... तो तुम भी कुछ नहीं कर सकते थे... (विश्व हैरान हो कर सुभाष की ओर देखता है) हाँ... जिस तरह... तुमने मैंम को सब बातेँ छुपाने के लिए कहा... उसी तरह.. मैंने भी एक बात छुपाई...
विश्व - क्या...
खान - वह मैं बताता हूँ... विश्व... इनके विंडो ऐसी में... बाहर से... स्लीपिंग गैस छोड़ा गया था... जिसके वज़ह से... यह लोग... अनकंशीयस पैरालाइज हो गए थे... उसके बाद जाकर... वे लोग किचन के रास्ते घर में घुसे थे...
विश्व - क्या...
तापस - हाँ.. हमें सब मालूम तो हो रहा था... पर हम बेबस और लाचार थे... वह लोग आए... हमें उठाए और गाड़ी में डाल कर चल दिए... उसी तरह रास्ते में गाड़ी रुकी... कोई और आए हमें उठाए और चल दिये... जब हम सचेत हुए... तब खुद को... किसी प्राइवेट क्लिनिक में पाया... और हमारे पास विक्रम खड़ा था...
प्रतिभा - हमारे होश में आने के बाद... विक्रम ने हमें अपना घर ले गया... और अपने गेस्ट रुम में सुला दिया... बस.... यही हुआ था...
जोडार - तुम अब घबराना मत... अब आगे से कोई सेक्यूरिटी ब्रिच नहीं होगी... अब तुम्हारे पेरेंट्स का जिम्मा मेरा... तो... अब थोड़ा टॉपिक चेंज करें...
विश्व - (मुस्कराते हुए अपना सिर हिलाता है) अच्छा माँ... आपने... विक्रम से मेरे लिए क्यूँ गिड़गिड़ाई...
प्रतिभा - अरे... अपने बच्चे के लिए... कौन माँ ऐसा नहीं करेगी...
विश्व - क्यूँ आपको मुझ पर भरोसा नहीं था... जब मैं उस शख्स के बाप और उसकी सल्तनत से टकरा रहा हूँ... तब आपको लगता है... मैं उसके बेटे से हार जाता...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) ह्म्म्म्म... ऊँ हूँ... अपनी वक़ालती दिमाग मुझ पर चला रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान क्यूँ बेचारे को और टेंशन दे रही हो... चलो मैं ही बता देता हूँ... तो हुआ यूँ बर्खुर्दार... हम गेस्ट रुम में सोये हुए थे कि... अचानक दरवाजा खोल कर... नहीं नहीं... दरवाजा तोड़ कर... हाँ यह ठीक रहेगा... हमारी बहु... कमरे में घुस आई... उसने हमें उठाया... हम आँख मलते मलते उठे... उसके बाद... वह तुम्हारे माँ के सामने घुटनों पर आकर गिड़गिड़ाई... विक्रम की जिद के बारे में सब कहा... और यह भी कहा... अगर इसबार विक्रम हार जाता है... तो वह अंदर से टुट जाएगा... इसलिए तुम्हारी माँ से यह लड़ाई रोकने के लिए कहा... समझे बर्खुर्दार...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - जी... सरकार...
प्रतिभा - फिर भी... एक पल के लिए तो मैं सकपका गई थी... जब विक्रम ने पुछा.. किसके खबर करने पर मैं वहाँ पहुँची...
तापस - हाँ भाग्यवान... क्या ग़ज़ब की ऐक्टिंग की तुमने...
प्रतिभा - (शर्माते हुए) ओ हो बस भी करो... मैं अपनी बहु के लिए... और बेटे के लिए... इतना भी नहीं कर सकती... क्यूँ प्रताप...
कमरे में सभी मुस्करा कर विश्व की ओर देखने लगते हैं तो विश्व शर्म के मारे अपना चेहरा इधर उधर करने लगता है l उसकी परिस्थिति देख कर जोडार कहता है
जोडार - ओके ओके... लेट चेंज द टॉपिक... अच्छा विश्व... तुमने अब तक कुछ जुटाया या नहीं... आई मीन टू से... कुछ काम के इन्फॉर्मेशन निकाले की नहीं...
विश्व - जी निकाला तो है... पर
फिर विश्व अपने अज्ञात इन्फॉर्मर के जरिए राजगड़ मल्टीपर्पोज कोऑपरेटिव सोसाइटी की धांधली के बारे में सबको बताता है l
खान - अरे बाप रे... क्या खतरनाक दिमाग लगाया है... यह तो भयंकर लूट है...
विश्व - हाँ...
सुभाष - तो फिर क्यूँ ना... हम मीडिया स्टिंग ऑपरेशन करें... बात मीडिया में आएगी... तो पोल खुल जाएगी...
प्रतिभा - नहीं... इससे ज्यादा कुछ फायदा होगा नहीं...
सुभाष - क्यूँ नहीं...
प्रतिभा - पहली बात... मीडिया में बात ले जाने के लिए... हमारे पास कुछ आधार होने चाहिए... और मुझे लगता है... राजा क्षेत्रपाल... इस एंगल से भी सोचा होगा... अगर मीडिया में बात आई भी... तो जाँच बिठा दी जाएगी... जाँच में उनके द्वारा संचालित सिस्टम के अधिकारी बैठेंगे.... फिर कच्छुए की रफ्तार में जाँच आगे बढ़ेगी... और जब तक... जाँच रिपोर्ट आएगी... तब तक ना तो राजा क्षेत्रपाल होगा... ना हम...
खान - हाँ इंडियन जुड़ीसियरी सिस्टम की यही तो खामी है...
विश्व - हाँ... हमारे सिस्टम में जो छेद है... उसमें हाती निकल जाएगा... पर चूहा फंस जाएगा...
जोडार - मानना पड़ेगा... क्या परफेक्ट मैनेजमेंट है... लोगों की घर और जमीन... बैंक के पास मॉडगैज है... पर लोगों को खबर नहीं... उनका इंस्टालमेंट मनरेगा के जरिए... जन-धन खाते से कट रही है... उन्हें मालुम भी नहीं हो रहा है...
खान - पर यह कैसे मुमकिन है... खाते में किसका फोन नंबर अटैच है... और एड्रेस...
विश्व - मैंने सब कुछ इंक्वायरी कर लिया है... सभी के सभी खातों में... राजा साहब के गुर्गों के नंबर अटैच हैं... एड्रेस सभी केयर ऑफ क्षेत्रपाल महल है... इसलिए चाहे एसएमएस हो या... हार्ड कॉपी मेसेज... सभी राजा साहब को हासिल होता है... ना कि उन लोगों को... जिनकी ऐसेट बैंक में मॉडगैज है...
खान - ओह माय गॉड...
विश्व - जाहिर है... इस घपले बाजी में... सिस्टम के... या तो करप्ट लोग... या फिर मजबूर लोग ईनवॉल्व हैं... इसलिए लोगों को बताऊँगा तो भी... उन्हें यकीन नहीं होगा... क्यूँकी उन्हें यकीन दिलाने के लिए... मेरे पास... सिवाय इंफॉर्मेशन के... कोई ठोस सबूत भी नहीं है...
खान - वाक़ई... यह क्षेत्रपाल बहुत कमिनी चीज़ निकला.....
प्रतिभा - (चिल्लाती है) बिंगो.....
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रंग महल की दिवान ए खास की प्रकोष्ठ
भैरव सिंह अपनी राजसी कुर्सी पर पैरों पर पैर मोड़ कर बैठा हुआ है l सामने उसके एक टेबल पर कुछ ब्रीफकेस रखे हुए हैं l एक और कुछ लोग खड़े हुए हैं और उनके सामने कुछ कुर्सियाँ लगी हुई हैं l भैरव सिंह के कुर्सी के बगल में एक तरफ बल्लभ और दुसरी तरफ भीमा खड़ा था l
बल्लभ - (आए हुए लोगों से) आप सबका स्वागत है... इन कुछ महीनों में... हम लोगों ने इतना कमाया है... जितना कभी सोच भी नहीं सकते थे... यह सब आपके सामुहिक समर्पण के वज़ह से संभव हुआ है...
कह कर बल्लभ ताली बजाता है l सारे लोग जो एक तरफ खड़े थे वे पहले एक दूसरे को देखते हैं फिर सब मिलकर ताली बजाने लगते हैं l भैरव सिंह अपने हाथ से हल्का सा इशारा करता है तो सब ताली बजाना रोक देते हैं l
बल्लभ - अब आप लोग तैयार हो जाएं... अपने अपने हिस्सा लेने के लिए... (बल्लभ चुप हो जाता है)
भैरव सिंह - और मैनेजर.... (बैंक मैनेजर से) कोई तकलीफ...
बैंक मैनेजर - नहीं राजा साहब... आपका राज है... आपका आशीर्वाद है... तकलीफ कैसी...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... (सबसे) किसी को कोई तकलीफ है... (सब चुप चाप खड़े हो कर एक-दूसरे को ताकने लगते हैं) अगर कोई तकलीफ है... तो बात कर सकते हो... आओ बैठो और हमसे अपना तकलीफ साझा करो...
सभी - नहीं राजा साहब... आपके सामने हम खड़े हैं... यही बहुत है... इससे हमारी इज़्ज़त को चार चांद लग जाता है... आपके बगल में बैठें... ऐसी हमारी औकात नहीं... हमें... हमें कोई तकलीफ नहीं है...
एक शख्स - पर लगता है... इंस्पेक्टर रोणा को कोई तकलीफ है... दिखाई नहीं दे रहे हैं...
भैरव सिंह की जबड़े सख्त हो जाते हैं, वह बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ समझ जाता है और सबसे कहता है
बल्लभ - यह क्या बात हुई... क्या सच में आपको मालुम नहीं है... इंस्पेक्टर रोणा छुट्टी पर हैं... (सभी अपना सिर हिला कर ना कहते हैं) वह... अपने पारिवारिक काम के सिलसिले में... कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं...
एक शख्स - ओह... हम तो यशपुर में रहते हैं... इसलिए शायद हम बेख़बर रहे...
बल्लभ - ठीक है... अभी एक एक करके... अपना अपना ब्रीफकेस उठाओ और चलते बनो...
सब वही करते हैं l एक एक कर आगे आते हैं, टेबल पर रखे एक एक ब्रीफकेस उठाते हैं और भैरव सिंह के पैरों पर झुक कर बाहर निकल जाते हैं l उनके जाने के बाद भैरव सिंह भीमा से कहता है
भैरव सिंह - जाओ भीमा... सबको विदा कर यहाँ आओ... (भीमा वैसा ही करता है, उन सभी लोगों के पीछे चला जाता है) प्रधान.... वाकई... यह रोणा कहाँ छुप गया है...
बल्लभ - राजा साहब... मुझे भी खबर नहीं है... पर आपको उसकी क्या जरुरत पड़ गई...
भैरव सिंह - आज ही सोनपुर डिविजन के एसपी का फोन आया था...
बल्लभ - क्या...
भैरव सिंह - तुम जानते हो... सीआई और आईआईसी में क्या फर्क़ है...
बल्लभ - हाँ... दोनों के रैंक और पावर एक हैं... सीआई का मतलब होता है... सर्कल इंस्पेक्टर... जिसके अधीन में... कुछ छोटे थाने और आउट पोस्ट होते हैं... पर आईआईसी मतलब इंस्पेक्टर इनचार्ज होता है... जिसके आधीन में एक ही थाना क्षेत्र होता है... जो एक सेंसिटिव इलाके में होती है...
भैरव सिंह - और राजगड़ एक सेंसिटिव एरिया है...
बल्लभ - (चुप रहता है)
भैरव सिंह - (अपनी जगह से उठ कर बल्लभ के पास आता है) एसपी ने इसीलिए फोन किया था... के कोई इतना बड़ा पदाधिकारी... इंडेफिनाईट छुट्टी पर रह नहीं सकता... डीसीप्लिनेरी एक्शन लिया जा सकता है... और सबसे खास बात... (बल्लभ भैरव सिंह के चेहरे की ओर देखता है) एसपी ने भले ही बताया नहीं पर... रोणा को गुमशुदगी को... श्रीधर परीड़ा से जोड़ कर देख रहे हैं...
बल्लभ - क्या... एसपी कहना क्या चाह रहे थे...
भैरव सिंह - हमसे गुजारिश कर रहे थे... के राजगड़ थाने में... किसीको डेपुटेशन पर भेजेंगे... जब तक... रोणा आकर फिरसे ड्यूटी टेक ओवर नहीं करता...
बल्लभ - ओ...
भैरव सिंह - तुम हमारे लीगल एडवाइजर हो... क्या करना चाहिए हमें...
बल्लभ - राजा साहब... मेरा काम है... आपके हर कामों को... लीगलाईज करना... एडवाइज करना नहीं...
भैरव सिंह - ठीक है... अपना राय दो...
बल्लभ - राजा साहब... यह लॉ एंड ऑर्डर का सिचुएशन और डीसीप्लीन की बात है... आप को जो ठीक लगे...
भैरव सिंह बल्लभ की ओर देखता है l बल्लभ अपना नजर झुका लेता है l तभी बाहर से भीमा अंदर आता है l भीमा से भैरव सिंह फोन लाने के लिए कहता है l
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कमरे में मौजूद सभी प्रतिभा को ओर सवालिया नजर से देखने लगे l सबकी नजरों की आशय को प्रतिभा समझ कर पूछती है
प्रतिभा - क्या हुआ... आप सभी लोग... मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
तापस - अरे भाग्यवान ह... आपके श्री मुख से... समाधान वाली वाणी सुनने के लिए... सब आपको देख रहे हैं...
प्रतिभा - हो गया...
विश्व - प्लीज डैड...
तापस - ओके ओके...
विश्व - प्लीज माँ... कंटीन्यु...
प्रतिभा - तो सुनो... गाँव में... तुम्हारा अपना टीम है राइट...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - तो हालात से और संयोग से... तुम्हारे लिए यहाँ पर भी एक टीम उपलब्ध है... (सभी से) क्यूँ ठीक कहा ना मैंने... (सभी अपनी सहमती देते हैं)
विश्व - माँ... तुम कहना क्या चाहती हो...
प्रतिभा - अरे... हेव पेशेंस... देखो... अब यह तो तय है कि... तुम चाहते हो के राजगड़ और आसपास के गाँव के लोगों को मालुम हो... की उनकी घर जमीन सब बैंक के पास गिरवी है... उसका पैसा कोई और खा रहा है...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - तो हमें ऐसा कुछ करना होगा कि बैंक खुद... उन लोगों को... उनकी जमीन जायदाद की ना सिर्फ इन्फॉर्मेशन दे... बल्कि... गिरवी के बारे में... लोन के बारे में... इंस्टॉलमेंट के बारे में भी जानकारी दे...
विश्व - कैसे माँ कैसे... इन सबके बारे में... बैंक जो भी मेसेज करता है... उसकी एसएमएस राजा साहब के पाले हुए कुत्तों के मोबाइल पर आता है... और हार्ड कॉपी सब... क्षेत्रपाल महल को जाति है...
तापस - तभी मैं सोचूँ... तुमसे इतना मार खाने के बावजुद... भैरव सिंह उन्हें माफ कैसे किए हुए है...
विश्व - हाँ... यह एक वज़ह हो तो सकती है...
खान - ओ हो... डोंट चेंज द टॉपिक... प्लीज भाभी... आप बताइए...
प्रतिभा अपनी जबड़े भिंचते हुए तापस और विश्व को घूरने लगती है l विश्व और तापस दोनों भीगी बिल्लियों की तरह सिर झुका कर बैठ जाते हैं l
प्रतिभा - (दोनों को घूरते हुए) नहीं... मैं नहीं कहूँगी...
कह कर मुहँ मोड़ लेती है l विश्व इशारे से तापस से कहता है प्रतिभा को मनाने के लिए l तापस अपना कान पकड़ कर सिर हिला कर ना करता है तो विश्व घुटनों पर आकर प्रतिभा के सामने बैठ जाता है l
विश्व - माँ प्लीज ना... सॉरी कहा ना मैंने... प्लीज प्लीज बताओ ना...
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... ज्यादा ओवर ऐक्टिंग मत कर... अब चुपचाप मेरी बात सुन...
तापस - हाँ बोलो बोलो... भाग्यवान...
प्रतिभा - आप चुप रहेंगे... (अपनी होंठ पर उंगली रख कर कहती है, तापस अपने होंठ पर उँगली रख लेता है) तो अब ध्यान से मेरी बात सुनो... तुम राजगड़ और आसपास के गाँव में से... कुछ लोग चुनो... जिनकी तुम्हारे पास... और तुम्हारे पास एप्रोच हो... कम से कम... दस लोग... बैंक में एक प्रोसिजर होता है... केवाईसी का... इसमें फोन नंबर और एड्रेस अपडेट किया जाता है... तुम उन्हीं दस लोगों का केवाईसी करवा दो... ताकि अगली इंस्टॉलमेंट की खबर उन्हें एसएमएस के जरिए मालुम हो जाए... और लोन डिटेल्स उन्हें लेटर के जरिए... उनके ही एड्रेस में मिल जाए... (विश्व थोड़ी सोच में पड़ जाता है) क्या सोचने लगा...
विश्व - माँ आइडिया तो तुम्हारा बढ़िया है पर...
प्रतिभा - पर क्या...
विश्व - पर गाँव में यह सब करने के लिए... बैंक मैनेजर का भी साथ चाहिए... और राजगड़ हो या यशपुर... दोनों जगहों पर यह संभव नहीं...
प्रतिभा - जानती हूँ... पर यह केवाईसी तुम ब्रांच ऑफिस या जोनल ऑफिस के बजाय... हेड ऑफिस से मदत लो...
विश्व - हेड ऑफिस... हेड ऑफिस में भी कौन मदत करेगा... जैसे ही राजगड़ का नाम आयेगा... सब अपना पल्ला झाड़ लेंगे...
जोडार - नहीं... सब नहीं...
विश्व - मतलब...
जोडार - वाकई... सेनापति मैंम ने बहुत ही बढ़िया आइडिया दिया है... उन्होंने सच ही कहा है... की गाँव में तुम्हारी एक टीम है... और यहाँ.. हालात से और संयोग से तुम्हारे पास एक टीम है... तुम्हारा यह प्रॉब्लम मैं सॉल्व करूँगा...
तापस और विश्व - व्हाट... हाऊ... कैसे...
जोडार - देखो... मेरा एक बहुत बड़ा लोन सैंक्शन होने वाला है... इत्तेफाक से... बैंक का डायरेक्टर से मेरी अच्छी जान पहचान है... तुम केवाईसी की फॉर्म साइन करवा कर लाओ.... उसे हेड ऑफिस में अपडेट... मैं करवाऊंगा...
सभी अचानक से ताली बजाने लगते हैं l विश्व उठ कर प्रतिभा को गले लगा लेता है और प्रतिभा के गाल पर एक लंबी धन्यबाद वाली चुंबन जड़ देता है l
प्रतिभा - बस बस..
विश्व - अरे माँ.. थैंक्यू कर रहा हूँ...
प्रतिभा - मालुम है... पर मत भूल... मेरी बहु को भी तुझे थैंक्यू करना है...
विश्व - (चेहरा शर्म से लाल हो जाता है, हकलाते हुए) क्क्क्.. क्क्क्या...
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अगले दिन
xxxx कॉलेज लाइब्रेरी में रुप कुछ किताबें लौटा कर लाइब्रेरियन से क्लियरेंस ले कर जैसे ही घूमी सामने उसके छटी गैंग खड़ी थी l रुप रास्ता बना कर किनारे से निकल जाती है तो फिर बनानी और भाश्वती दोनों जाकर उसे लाइब्रेरी के बाहर रोकते हैं l रुप रुक जाती है तो बाकी दोस्त भी उसके पास आकर खड़े हो जाते हैं l
भाश्वती - क्या यार... इतना भी क्या रूठना...
बनानी - हाँ नंदिनी... उस दिन से तुम मुहँ मोड़ कर गई हो कि आज तक... हमसे बात भी नहीं कर रही हो... हमसे अलग... दूर बैठती हो...
इतिश्री - ओके... तुम रूठी हुई हो... जायज है... पर कितने दिन...
रुप - तुम कुछ नहीं कहोगी... तब्बसुम... और तुम... दीप्ति... ह्म्म्म्म...
दोनों - वह... सॉरी यार... फॉर गिव अस...
रुप उन सबके चेहरे को गौर से देखती है l सबके चेहरे पर मायूसी साफ दिख रही थी l
रुप - ओके ओके... तुम सब लगता है गले तक भरे हुए हो... चलो.. बोटनिकल गार्डन चलते हुए...
सभी रुप के पीछे बोटनिकल गार्डन में पहुँचते हैं l वहाँ पहुँचने के बाद रुप एक बेंच पर बैठ जाती है पर सारी लड़कियाँ खड़ी रहती हैं l
रुप - हम्म... बोलो.. क्या प्रॉब्लम है...
दीप्ति - यह क्या नंदिनी... हमने तो बताया... और माफी भी मांग रहे हैं...
रुप - यह बहुत अच्छा है... पहले ठेस पहुँचाओ फिर माफी माँगो...
बनानी - अरे यार... तुम क्यूँ किसी रेकार्ड की तरह वहीँ पर अटकी हुई हो...
रुप - ह्म्म्म्म... ठीक है... एक काम करो... सबसे पहले बैठ जाओ.... तुम सब... (सभी बैठ जाते हैं पर रुप के सामने) देखो... आज मेरे बोलने का दिन है... इसलिए तुम सब चुप चाप सुनोगे... बीच में कोई नहीं बोलेगा... ठीक... (सभी अपना सिर हिला कर हामी भरते हैं) तो.. मेरी जिंदगी... तुम लोगों के जैसी नहीं रही... तुम लोग बचपन से ही... अपने आसपास लोगों को... दोस्तों को... रिश्तेदारों को देखी होंगी... उनके साथ वक़्त बिताते बिताते यहाँ तक पहुँची होंगी... पर मेरी जिंदगी ऐसी नहीं थी... ना कोई दोस्त था... ना कोई रिश्तेदार... बस बड़ी होती गई... पहली बार ऊँची पढ़ाई के लिए... यहाँ आई... जब नाम छुपाया... तो तुम सबसे दोस्ती हुई... पर जब असलियत सामने आई... तुम लोग मेरी दोस्ती से भी... कतराने लगे थे... डराया धमकाया... तब जाकर तुम लोग दोस्त बने.. है ना...
बनानी - नहीं... यह पूरी तरह ठीक नहीं है...
रुप - ओके... लेट मी फिनिश फर्स्ट... मेरे खानदान का इमेज कितना खराब था... यह मैं अच्छी तरह से जानती हूँ... पर चूँकि जीवन में पहली बार... मैंने खुद से दोस्त बनाए थे... इसलिए मैं तुम लोगों को खोना नहीं चाहती थी... क्यूंकि मेरी जिंदगी की सबसे क़ीमती तोहफा थे तुम लोग... बनानी... तुम्हें याद है... तुम्हारी बर्थ डे पर... क्या हुआ था... मैं सेलीब्रेट करना चाहती थी... पर... खैर जो भी हुआ... उसके पीछे दीप्ति... तुम्हारी कंस्पीरैसी थी... रवि के साथ मिलकर... रॉकी की मदत कर रही थी... सब जानने के बाद भी... तुम्हें माफ किया था... क्यूँकी तुम दोस्त थी मेरी... जबकि पूरा शहर जानता है.. मेरे भाई कैसे हैं... इंक्लुडिंंग यु ऑल... पर क्राइम तो किया था ना तुमने... यु सो कॉल्ड सोशल पीपल... (दीप्ति का चेहरा उतर जाता है) और भाश्वती... तेरी मदत को मैं हरदम तैयार रहती थी... यहाँ तक मेरी बचपन की सारी बातें तुझसे शेयर किया था... पर फिर भी... तुझे... अनाम के अतीत से... प्रॉब्लम हो गई... कैसे भूल गई... तुझे कैसे बचाया था... (भाश्वती का चेहरा झुक जाता है) और तब्बसुम तुम... छुप कर बैठी थी... खुर्दा में... आज अगर भुवनेश्वर में बेखौफ रह रही हो... किसकी बदौलत...
सबके चेहरे उतरे हुए थे और झुके हुए थे l रुप खुद को दुरुस्त करती है फिर कहना शुरु करती है l
रुप - मैंने समाज को किताबों में पढ़ा था... पर तुम लोगों से मिलने के बाद... तुम लोगों से जुड़ने के बाद... मेरा अपना एक समाज बना... पर समाज कितना बेरहम हो सकता है... यह तुम लोगों ने एहसास कराया...
दीप्ति - (भर्राई आवाज़ में) सॉरी यार...
रुप - प्लीज... लेट मी फिनिश... दोस्तों में झगड़े हो सकते हैं... मनमुटाव भी हो सकते हैं... पर पीठ पर बात करते हुए छुपाना... (आवाज़ थर्रा जाती है) मुझे बहुत ठेस पहुँचाया... मुझे वाकई में पता चला... आख़िर समाज का ऐसा भी हो सकता है... (मुर्झाई हँसी के साथ) कहीं सुना था... या शायद कहीं पढ़ा था... प्यार और दोस्ती में फर्क़ क्या है... प्यार जहां आँखों में आँसू दे जाता है... वहीँ दोस्ती होंठों पर मुस्कान लाती है... पर... मेरे साथ थोड़ा उल्टा हो गया... मेरे दोस्त मेरे आँखों में आँसू ला दिए... जबकि मेरा प्यार... मेरे होंठो पर हँसी देखने के लिए... किसी भी हद तक गुजर सकता है...
रुप चुप हो जाती है, सभी आँखों में आँसू लिए रुप की ओर देखते हैं l रुप का चेहरा लाल हो गया था और अपनी आँखों को पोछ रही थी l
दीप्ति - सॉरी यार सॉरी... इन कुछ दिनों में... हमारी भी यही हालत है... प्लीज यार... अब तो शिकवा दुर कर ले...
रुप - फ्रेंड्स... ऐक्चुयली... आई नीड सम स्पेस... मैं कुछ ही दिनों में... गाँव जा रही हूँ... होली के छुट्टी पर... जब वापस आऊंगी... तुम्हारी दोस्त बन कर आऊंगी... हाँ... पर मैं कब आऊंगी... मैं नहीं जानती...
बनानी - क्यूँ... तु ऐसा क्यूँ कह रही है...
रुप - पता नहीं... अंदर से एक वाईव सा आ रहा है... इस बार का जाना...नजाने कब लौटना होगा... (हँस कर दिलासा देते हुए) पर... दोस्तों... मैं आऊंगी जरूर... यह वादा रहा....
इतना कह कर रुप वहाँ से बिना पीछे मुड़े अपनी दोस्तों की ओर देखे गाड़ी की पार्कींग की ओर चल देती है l
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हाथ में टिफिन बॉक्स लेकर विक्रम की केबिन में आती है शुभ्रा l विक्रम अपनी कुर्सी में लेट कर किन्ही ख़यालों में गुम था l जैसे ही शुभ्रा को देखता है वह सीधा हो कर बैठता है l शुभ्रा कमरे के एक कोने में स्थित डायनिंग टेबल पर खाना लगा कर विक्रम की ओर देखती है l विक्रम अपनी जगह से उठ कर अपनी प्लेट के पास बैठता है l विक्रम देखता है शुभ्रा उसे एक अलग सी नजर से एक टक घूरे जा रही है l
विक्रम - क्या हुआ...
शुभ्रा - आपसे बहुत कुछ जानना चाहती हूँ... पता नहीं कहाँ से शुरु करूँ...
विक्रम - कहीं से भी कीजिए... मैं ज़वाब दूँगा जरुर...
शुभ्रा - (विक्रम के सामने बैठ जाती है, वैसे ही घूरते हुए) क्या आपको पता था... सेनापति दंपति की अपहरण होने वाला है...
विक्रम - नहीं पर अंदेशा था.... (शुभ्रा के चेहरे को देखते हुए) पर... यह सब आप मुझसे कल भी तो पूछ सकती थी... और ऐसा क्यूँ लग रहा है कि... आपको मुझ पर शक़ हो रहा है...
शुभ्रा - शक़ नहीं... पर...
विक्रम - हम्म... पर क्या...
शुभ्रा - विकी... मैं जानती हूँ... आई मीन... मुझे एहसास है... आपका... विश्व के प्रति... (कह नहीं पाती चुप हो जाती है)
विक्रम - देखीए शुब्बु... आपके मन में जो भी है... साफ साफ कहीये...
शुभ्रा - (थोड़ी हिचकिचाते हुए) देखीए विकी... मैं जानती हूँ... आपने कहा भी था... के एक दिन.. विश्व का एहसान आप उतारोगे... और एक दिन वक़्त ऐसा भी आएगा... के कोई उसका अपना... आपके आगे गिड़गिड़ाएगा... तो... (फिर से चुप हो जाती है)
विक्रम - तो
शुभ्रा - आप इतने दिनों बाद आज क्लीन सेव्ड हैं... आपकी मूंछें भी पहले जैसे... शार्प और... ताव भरे हैं...
विक्रम - हूँ... तो आपको यह लग रहा है कि... मैं अपनी मूँछों के लिए... अपनी इगो को साटिसफाई करने के लिए... यह प्लॉट रचा है... (शुभ्रा की नजरें झुक जाती है) शुब्बु... मेरे तरफ देखिए... (शुभ्रा नजर उठा कर देखती है) विश्व प्रताप... जिस तेजी से... आग की ओर बढ़ रहा है... मुझे मालूम था... उसकी आँच एक दिन उसके परिवार तक पहुँचेगी... इसलिए मैं अपने आदमियों के जरिए... सेनापति दंपति पर नजर रख रहा था... वैसे भी मुझे... आप पर किए एहसान को उतारना भी तो था... सो उतार दिया... बाकी आगे जो हुआ... हाँ मैं उसकी तलबगार था... और हुआ भी वैसे ही... पर...
शुभ्रा - पर क्या...
विक्रम - आपकी सखी... सहेली... दोस्त... आपकी ननद... दिखी नहीं मुझे सुबह से...
शुभ्रा - (सकपका जाती है) वह... ऐक्चुयली... कॉलेज की लाइब्रेरी में... बुक्स लौटाने गई है...
विक्रम - या फिर... मेरा सामना ना हो जाए... इसलिए जल्दी ही कॉलेज निकल गई...
शुभ्रा - यह... यह आप.. क्या कह रहे हैं... (अब विक्रम घूर कर देखने लगा शुभ्रा को, शुभ्रा को लगता है जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई) आप ऐसे क्यूँ... देख रहे हैं...
विक्रम - शुब्बु... जब सेनापति दंपति को मैंने रेस्क्यू किया... तब वे दोनों अंकंसियस थे... ट्रीटमेंट करा कर... उन्हें गेस्ट रुम में रखा था... फिर उन्हें कैसे मालुम हुआ... जीम में क्या हो रहा है... ना सिर्फ वे लोग पहुँचे... पीछे पीछे आप और नंदिनी भी...
शुभ्रा - वह.. बात दरअसल यह है कि... (अटक अटक कर) हमें... गेस्ट रुम से कुछ आवाजें सुनाई दी... और हम वहाँ पहुँचकर देखा... एडवोकेट सेनापति... बदहवास... पूछ रही थी... के वे कहाँ हैं... उनका बेटा कहाँ है... तो... (आगे कुछ कह नहीं पाती)
विक्रम - ह्म्म्म्म... वैसे क्या वह... नंदिनी को जानते हैं...
शुभ्रा - नहीं नहीं... हाँ हाँ...
विक्रम - क्या मतलब...
शुभ्रा - नहीं का मतलब... नंदिनी क्षेत्रपाल है यह नहीं जानती... और हाँ इसलिए... की नंदिनी उनकी सुपर्णा मैग्जीन की एडिटोरीयल राइटिंग की बड़ी फैन है... और एक बार इसी सिलसिले में... उसकी एक दो बार... मुलाकात भी हुई थी...
विक्रम - (कोई रिएक्शन दिए वगैर) ओ...
शुभ्रा को विक्रम का ऐसा रिएक्शन अटपटा लगता है l विक्रम चुप चाप अपना खाना खाने लगता है l शुभ्रा को लगता है जरूर कोई और बात है, विक्रम उसे या तो पूछ नहीं रहा है या फिर बता नहीं रहा है l
शुभ्रा - विकी...
विक्रम - हूँ...
शुभ्रा - मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है... आप मुझसे कुछ पूछना चाह रहे हैं...
विक्रम - (एक कुटिल मुस्कान मुस्कराते हुए) आप दोनों... ननद भाभी के बीच बहुत से राज हैं... जो मैं नहीं जानता...
शुभ्रा - यह... आ.. आप.. क्क्क्या...
विक्रम - शुब्बु... कल जब मैं विश्व को रस्सियों के सहारे दबोच रखा था... तब... उसके गर्दन के पीछे... मुझे रुप नाम गुदा हुआ दिखा... तब से मैं कुछ डॉट जोड़ने लगा हूँ... अब आप इसके बारे में क्या कहेंगी...
शुभ्रा - (चेहरा सफेद हो जाता है)
विक्रम - मुझसे आप कुछ ना कहें... तो कोई बात नहीं... पर क्या मुझे इतना तो मालुम होना ही चाहिए... विश्व की वह रुप कौन है...
शुभ्रा अपनी आँखे मूँद कर एक गहरी साँस लेती है और अपना सिर हाँ में हिलाती है l फिर विक्रम की ओर देख कर विश्व और रुप की कहानी बताने लगती है, जो जो उसे रुप ने जैसा बताया था, वैसे ही सारी बातेँ बता देती है l सारी बातेँ सुनने के बाद विक्रम कहता है
विक्रम - हूँ... तो मेरा शक़ सही था... प्रतिभा जी को... नंदिनी ने जीम में हो रही फाइट के बारे में बताया था...
शुभ्रा कुछ नहीं कहती l विक्रम उठ कर अपना हाथ धोने चला जाता है फिर वापस जब आता है तो देखता है शुभ्रा की चेहरे पर परेशानी थी l
विक्रम - शुब्बु... आप परेशान मत हों... मैं चाहे जैसा भी हूँ... पर बातों को जज्बातों को समझ सकता हूँ... मेरी बहन की बचपन आम ल़डकियों की बचपन की तरह नहीं गुजरी है... इसलिए विश्व का नंदिनी के जीवन में होना... कोई अचरज की बात नहीं है... पर हाँ चिंता की बात जरूर है... जब राजा साहब को उन दोनों के बारे में पता चलेगा... तब क्या होगा...
शुभ्रा - मतलब... आपको... कोई शिकायत नहीं है...
विक्रम - किस बात की शिकायत... शुब्बु... एक अहंकार तो मन में था... शायद है भी... के मुझसे बेहतर कोई नहीं है... या तो मुझ से कम हो सकते हैं... या फिर मेरे बराबर... पर विश्व अलग है... वह खुदको इतना उपर रखा है कि... मुझे उसके बराबर होने के लिए जद्दोजहद करना पड़ा... आपके सामने मुझे यह स्वीकारने में कोई दिक्कत नहीं है... के विश्व मुझसे हर मामले में बेहतर है...
शुभ्रा - तो क्या... अब आप वीर की जैसे मदत कर रहे हैं... आगे नंदिनी की वैसे मदत करेंगे...
विक्रम इस सवाल पर खामोश रहता है, शुभ्रा भी ना तो कोई और सवाल करती है ना ही सवाल को दोहराती है l अचानक विक्रम अपनी कुर्सी के पास जाता है और अपना ब्लेजर उठा कर बाहर चला जाता है l अपनी सवाल के साथ कमरे में शुभ्रा रह जाती है l
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वॉशरुम में अपनी मूँछों पर सफेद बालों को छाँट छाँट कर रोणा काट रहा था l अभी अभी बालों पर डाई लगाया था l तभी उसके कानों में मोबाइल की वाईव्रेशन की आवाज़ आती है l वह मोबाइल के पास जाता है स्क्रीन पर वीडियो कॉल में लेनिन दिखाई दे रहा था l रोणा झट से कॉल उठाता है l उसे स्क्रीन पर एक पार्क में बेंच पर एक जोड़ा बैठे दिखते हैं l
लेनिन - देख रहे हैं...
रोणा - अबे यह जोड़ा है किसकी...
लेनिन - कमाल कर रहे हैं... आपको... विश्वा और उसकी माशुका दिख नहीं रहे हैं...
रोणा - अबे हराम के... किसको दिखा कर मेरे मजे ले रहा है...
लेनिन - एक मिनट...
मोबाइल के कैमरे के सामने कोई लेंस फिट करता है l तब रोणा को अपनी स्क्रीन पर वह जोड़ा साफ नजर आते हैं और वह जोड़ा कोई और नहीं विश्व और रुप ही थे l उन्हें देखते ही रोणा की आँखों में अंगारे उतर आते हैं l
लेनिन - अब तो आपको साफ दिख रहे होंगे...
रोणा - हाँ... पर यह सब दिखा कर क्या साबित करना चाहता है...
लेनिन - यही की... मैं बहुत ही सीरियस हूँ... आपने मेरा काम कर रखा है... और मैं आपका काम बहुत जल्द करने वाला हूँ...
रोणा - उस लड़की के बारे में कुछ पता चला...
लेनिन - नहीं... पता करने की कोई जरूरत नहीं... मतलब आप ही ने बताया था... की कोई भी हो... आपको फर्क़ नहीं पड़ता... इसलिए मैंने भी कोई कोशिश नहीं की...
रोणा - मुझे उन तोता मैना की बातेँ सुननी है...
लेनिन - यह कैसे हो सकता है... वे लोग बहुत दुर हैं... मैं उनके सामने या पास भी नहीं जा सकता...
रोणा - पर तु तो कह रहा था... उसकी मोबाइल में तुने बग लगाया है...
लेनिन - हाँ पर वह उसके फोन पर बातेँ सुनने के लिए... वह बग तभी काम करेगा... जब उसकी फोन पर कोई कॉल आएगी या... कॉल जाएगी...
रोणा - तो फिर फ़ालतू में कॉल लगा कर मेरा टाइम खोटा क्यूँ किया...
लेनिन - तो क्या कॉल काट दूँ...
रोणा - नहीं चलने दे... कम से कम दिख तो रही है... साली कमिनी.. कुतिया...
पार्क में विश्व और रुप दोनों बातेँ कर रहे थे l
विश्व - क्या बात है... आज इतना गुमसुम क्यूँ हैं आप...
रुप - आज मैं अपने दोस्तों से... कुछ वक़्त का गैप माँगा है...
विश्व - क्यूँ....
रुप - ओ हो... अनाम... देखो... मैं आज मज़ाक के मुड़ में बिल्कुल नहीं हूँ...
विश्व - ओके ओके... आज गुस्सा पहले से ही नाक पर बैठी है...
रुप - (थोड़ा शांत हो कर) मैंने ठीक किया ना...
विश्व - हाँ बिल्कुल... किसी भी रिश्ते में अगर थोड़ी सी भी खिटपिट हो... तो उस रिश्ते में... थोड़ा गैप देना चाहिए...
रुप - थैंक्स... वैसे एक बात कहूँ...
विश्व - हाँ जरूर...
रुप - कल मैं थोड़ी डर गई थी...
विश्व - क्यों...
रुप - अरे... देखा नहीं... माँ से भैया ने जब पूछा... जीम में तुम दोनों के बारे में किसने खबर दी...
विश्व - तो इतनी सी बात पर आप डरी क्यूँ...
रुप - डर लगता है... वह मेरे बड़े भैया हैं...
विश्व - ह्म्म्म्म.... अगर मैं यह कहूँ.. के विक्रम को... कल ही मालुम हो गया... आपके और मेरे बारे में...
रुप - (उछल पड़ती है) व्हाट... क.. क.. क्कैसे..
विश्व - (अपने गर्दन के पीछे हाथ फेरते हुए) आपकी गुदाए हुए.... आपका नाम देख लिया था विक्रम ने....
रुप कुछ कहने के बजाय, अपने अंगुठे का नाखुन चबाने लगती है l विश्व उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l
विश्व - अब क्या हुआ....
रुप - ओह माय गॉड... अब मैं भईया का सामना कैसे करूंगी...
विश्व - अगर लगे के आपसे गुनाह या पाप हुआ है... तो मुहँ छुपा लीजियेगा...
रुप - (बिदक जाती है) खबरदार जो मेरे प्यार को पाप कहा तो...
विश्व - तो वैसे ही सामना कीजिए... जैसे आप रोज करती हैं...
उधर रोणा देखता है विश्व कुछ कागजात रुप के हाथों में दे रहा है l रुप उन कागजातों को लेकर बेंच से उठती है और पार्क के बाहर की ओर जाने लगती है तो अचानक विश्व उसे आवाज़ देकर रोक देता है और भागते हुए रुप के गले लग जाता है l रोणा देखता है कि रुप मुस्कराते हुए विश्व से कुछ पुछ रही है l
रुप - आह... क्या बात है... आज पहली बार जनाब ने... आगे आकर मुझे गले लगाया है...
विश्व - मैं बस यह कहना चाहता हूँ... आप कभी भी... डरीयेगा मत... मैं आपके साथ आपकी धड़कन की तरह रहूँगा...
रुप - मैं जानती हूँ... जब तुम मेरे साथ हो... कोई खतरा मुझे छु भी नहीं सकता...
इतना कह कर रुप विश्व से अलग होती है और पार्क से बाहर चली जाती है l यह देख कर रोणा अपनी जबड़े भिंच लेता है और कॉल काट देता है l
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शाम का समय
ट्वेंटी फोर सेवन हाई वे रेस्टोरेंट के एक केबिन में विक्रम बैठा हुआ था l बार बार घड़ी देख रहा था l तभी केबिन का पर्दा उठा कर विश्व अंदर आता है l
विक्रम - बोलो क्यूँ बुलाया...
विश्व - (उसके सामने बैठते हुए) एक बार तुमने मुझे बुलाया था... इसलिए सोचा... मैं तुम्हें बुला दूँ...
विक्रम - तुमने भी वही फ़ार्मूला अपनाया...
विश्व - हाँ... तुम्हें बुलाने के लिए... तुम्हारा ही आजमाया हुआ फार्मूले से बुलाना पड़ा...
विक्रम - बोलो फिर...
विश्व - थैंक्यू... मेरी माँ को बचाने के लिए...
विक्रम - बचाया इसलिये था... के तुम्हारा एहसान जो उतारना था मुझे...
विश्व - हाँ एहसान और बोझ... दोनों उतार दिए तुमने...
विक्रम - हाँ.... बात समझ में आ गई... इसलिए अब जब फिरसे सामना होगा... ना मुझ पर कोई बोझ या एहसान होगा... ना तुम पर...
विश्व - हाँ... तब बेफिक्र हो कर... तब तक लड़ सकते हैं... अपना खुन्नस उतार सकते हैं... जब तक कोई एक घुटना ना टेक दे...
विक्रम - हाँ और वह वक़्त... बहुत जल्द शायद आएगा भी... वैसे यह मेरी दिल की दुआ है... क्यूँकी तुम फ़िलहाल... अपर हैंड में हो...
विश्व - मतलब...
विक्रम - देखो विश्व... बड़ी मुद्दतों बाद... मुझे रिश्ते हासिल हुए हैं... फ़िलहाल मैं ऐसा कुछ कर नहीं सकता... जिससे मैं वह सारे रिश्ते खो दूँ...
विश्व - ओह... और वज़ह
विक्रम - वीर और नंदिनी... हाँ विश्व... वीर और नंदिनी... मैं उन्हें आज किसी भी कीमत पर खो नहीं सकता... भले ही अब तुम्हारे और मेरे बीच में... फ़िलहाल के लिए.. दुश्मनी की गुंजाईश ना हो... पर तुम यह समझने की भी भूल मत कर बैठना... के तुममे और मुझमें कोई दोस्ती हो सकती है...
विश्व - ठीक कहा तुमने... तुम्हारा मेरा रिश्ता ही कुछ ऐसे बन रहे हैं... ना दोस्ती होगी... ना दुश्मनी... पर फिर भी... हम एक दुसरे के काम आते रहेंगे... और काम लेते रहेंगे...
विक्रम - ओ... इसका मतलब... कोई काम है...
विश्व - हाँ पर वास्ता मेरा जितना है... तुम्हारा भी उतना ही है... या फिर यूँ कहो के शायद तुम्हारा ज्यादा है...
विक्रम - अच्छा... ठीक है फिर... बोलो क्या काम है... और उस काम से मेरा क्या वास्ता है....
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पैराडाईज
वीर के हाथों से अनु पट्टी बदल रही थी l अनु के आँखे नम थी l तभी दोनों के कानों में कलिंग बेल की आवाज सुनाई देती है l अनु और वीर एक दुसरे को हैरान हो कर देखते हैं फिर वीर अनु को बैठने का इशारा कर दरवाजे की ओर जाता है और मैजिक आई से बाहर देखता है पर उसे कोई नहीं दिखता, इसलिए वह दरवाजा धीरे से खोलता है l उसे बाहर कोई नहीं दिखता के तभी रुप "हू" कर आवाज निकाल कर सामने आती है l वीर थोड़ा चौंकता है l
रुप - भैया डर गए...
वीर - (मुस्कराते हुए रुप के सिर पर एक टफली मारते हुए) रोज के रोज बड़ी हो रही है... या छोटी...
रुप - आपने मुझे मारा... चलो मैं आपसे बात नहीं करती...
इतना कह कर रूठने की नाटक करते हुए घर में दाखिल होती है और अंदर जाकर अनु के गले लग जाती है l फिर अचानक उसकी आँखे पास रखे टेबल पर डेटॉल,गौज और बैंडेज वगैरह देखती है l
रुप - यह क्या है भाभी...
अनु - कुछ नहीं... (वीर की तरफ देखती है तो वीर इशारे से कुछ ना कहने के लिए कहता है) वह मुझसे काँच की ग्लास टुट गई थी... मुझे चुभ ना जाएं... इसलिए तुम्हारे भैया ने काँच के टुकड़ों को उठाया... इसलिए उनके हाथ ज़ख़्मी हो गया...
रुप - ओह... हाऊ स्वीट... भैया... आपको कितना प्यार करते हैं...
अनु - हाँ वह तो है... पर मैं उनके लिए... बदकिस्मत बन गई हूँ...
रुप - क्यूँ... क्या हुआ...
वीर - कुछ नहीं... यह तुम्हारी भाभी कुछ भी... अनाप सनाप बोलती रहती है...
रुप - ओके ओके... बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं... पहले तु बता... यहाँ इस वक़्त कैसे आना हुआ...
रुप - ओ... पहले भाभी की हाथ से कुछ हो जाए... फिर ना जाने आना होगा या नहीं...
अनु - मैं अभी कुछ लाती हूँ...
अनु किचन के अंदर चली जाती है l वीर रुप की ओर मुड़ता है और पूछता है l
वीर - ना जाने फिर कब आना होगा... इसका मतलब क्या हुआ...
रुप - वह बात दरअसल यह है कि... मैं इस बार होली मनाने राजगड़ जा रही हूँ... तो मुझे लग रहा है कि शायद... राजा साहब इसबार जल्दी आने ना दें...
वीर - (हैरानी के साथ) तु... होली में... गाँव जा रही है...
रुप - हाँ...
वीर - पागल तो नहीं हो गई... गाँव में आज तक कभी कोई त्योहार मनाया भी गया है...
रुप - भैया... मैं त्योहार मनाने नहीं... छुट्टियाँ मनाने जा रही हूँ...
तभी अनु प्लेट में कुछ नास्ता और चाय लेकर आती है l टेबल से फर्स्ट ऐड सामान हटा कर रुप को बिठाती है और खाने के लिए प्लेट आगे करती है l
अनु - कहीए राजकुमारी जी... कैसे आना हुआ..
रुप - ओहो भाभी... आप भले ही भैया को राजकुमार बुलाईए... पर मुझे आप नंदिनी ही कहें...
अनु - मुस्किल होगा...
रुप - फिर भी... कहिये...
अनु - अगली बार कोशिश करुँगी... फिलहाल के लिए बताओ... आप आईं किसलिए...
रुप - ओके पहले खाने तो दीजिए...
रुप नास्ता ख़तम कर देती है l करचीफ से हाथ मुहँ साफ कर लेने के बाद अपनी वैनिटी बैग से कुछ कागजात निकाल कर अनु के हाथों में रख देती है l
अनु - यह... यह क्या है...
वीर - यह कैसे कागजात हैं...
रुप - भैया... जोडार ग्रुप ने... पाढ़ी होटल्स में टूर एंड ट्रैवल्स में कुछ गाड़ी लगाए हैं... तो उनके कॉन्ट्रैक्ट को जब उन्होंने सबलेट किया था... तब मैंने भाभी जी के नाम पर... वही सब लेटींग कॉन्ट्रैक्ट उठा लिया...
वीर - (चौंक कर) व्हाट... यह तुमने क्या किया...
रुप - हाँ भैया... रॉकी न मुझे बताया कि कैसे तुम काम मांगने उसके होटल में गए थे... भैया... उसने तुम्हारी बात मान कर... उस दिन... होटल में तुम्हारी और भाभी की मदत की... पर छोटे राजा जी ने... उन्हें धमकाया भी बहुत था... इसलिए उसीने ही... मुझे सबलेटींग कॉन्ट्रैक्ट के बारे में बताया था... तुम्हारे नाम से मिलती नहीं.. इसलिये भाभी जी के नाम पर मैंने यह टेंडर डाला था... और लकीली कॉन्ट्रैक्ट मिल भी गई... इसलिए भैया... आप अभी किसी से भी काम मत माँगों... और देखो ना... भाभी की नाम लक्ष्मी देवी के समान हो गई... पहली ही कॉन्ट्रैक्ट में कामयाबी मिली... यह लो अब कागजात...
वीर और अनु रुप को मुहँ फाड़े बेवक़ूफ़ों की तरह देखे जा रहे थे l बहुत आनाकानी किए भी पर रुप की जिद के आगे उन दोनों को झुकना पड़ा और रुप से वह कागजात ले लिए l रुप उनसे विदा लेकर अपार्टमेंट के नीचे आती है और अपनी गाड़ी में बैठ कर वहाँ से निकल जाती है l थोड़ी दूर बाद गाड़ी रोकती है अपना फोन निकाल कर विश्व के नंबर पर मेसेज करती है
"थैंक्यू"