इस बेहद ही खूबसूरत कहानी के लिए आप को कोटि कोटि आभार ।
इस कहानी की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है । इस फाइनल अपडेट को पढ़ते वक्त दिल को सुकून भी मिला , आंखे नम भी हुई , फिर से इस कहानी की पुरानी यादें ताजा भी हुई ।
वैदेही जी के लिए एक फरमाइश की थी मैने कि उनकी यादों का एक धरोहर बनाया जाए । कोई स्मारक - कोई स्टेचू बना दिया जाए , पर आपने शहर का नाम ही उनके नाम पर रख दिया । यह मेरे लिए अत्यंत ही सुखद बात थी ।
भैरव सिंह ने जो कहर मचाया था , जो जुल्म की इन्तहा कर दी थी , और उसके पास जो मैन पावर के साथ पोलिटिकल पावर था , उससे स्पष्ट जाहिर था कि इस दैत्य की सजा कम से कम संविधान और कानून से तो नही हो सकता । जब गवर्नमेंट ही पाप का हिस्सेदार अंग बन जाए तब कानून और न्याय की अपेक्षा करना वाजिब नही हो सकता ।
ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए तब विदूर की नीति पर अमल करना चाहिए । " शठे शाठयम् समाचरेत " - अर्थात दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यहवार करना चाहिए ।
विश्व ने यही किया । शठे शाठयम् समाचरेत की नीति अपनाई ।
आप के इस कहानी का विषय , संवाद , इमोशंस , परिवेश स्थिति , किरदार की सशक्त भुमिका , एक्सन सीन्स और इस कहानी का क्लाइमेक्स ; सभी ने मेरा दिल जीत लिया
।
वीर और अनु का पुनर्जन्म दिल पर मरहम लगाने वाला था लेकिन , दिल है कि मानता नही , मन मे यह ख्याल भी आया कि काश , वैदेही जी का भी पुनर्जन्म हो जाता और वह विश्व और रूप की पुत्री के रूप मे जन्म लेती ।
वैदेही जी का भैरव सिंह को दिया गया सात श्राप , एक एक कर सत्य सिद्ध हुआ । यह वास्तव मे हुआ तो था पर शायद ही कोई रीडर्स इस बात पर ढंग से गौर किया होगा । यह स्पष्ट दर्शाता है कि आप ने किस तरह इस कहानी के एक एक घटनाक्रम पर मेहनत की है !
क्या कहूं और क्या लिखूं ! आप की यह कहानी मेरे ऑल टाइम फेवरेट कहानी के रूप मे दिल मे जगह बना चुकी है ।
बहुत बहुत खुबसूरत कहानी बुज्जी भाई ।
जगमग जगमग अपडेट और आप की मेहनत को साधुवाद ।