लगभग एक घंटा बीत चुका था पर वैशाली लौटी नही.. मौसम को अपनी जगह पर ना देखकर वो फोन तो जरूर करती.. बैठे बैठे मौसम बोर हो रही थी.. कितनी देर लगा दी वैशाली ने?? अब तक उसकी आग नही बुझी?? क्या करूँ? फोन करूँ उसे? पर पापा को पता चल जाएगा.. फोन तो नही कर सकती..
बिल्कुल उसी वक्त पीयूष, कविता, शीला और मदन ने उसी बागीचे में प्रवेश किया जहां मौसम बैठी हुई थी.. मौसम उनको देखकर घबरा गई और झाड़ियों के पीछे छुपने जा ही रही थी की तब शीला ने उसे देख लिया..
"अरे मौसम.. तू यहाँ कैसे?? अकेली बैठी क्या कर रही थी?" शीला ने पूछा.. कविता और पीयूष भी चोंक गए थे मौसम को यहाँ देखकर
मौसम के दिमाग में तुरंत कोई जवाब नही आया.. क्या बहाना बनाउ??
"वैशाली बाथरूम गई है.. उसके वापिस आते ही हम घर जा रहे थे.. आप सब जगह घूम आए? कैसा लगा मेरा शहर?" मौसम ने अपने चेहरे पर जूठी मुस्कान लाकर कहा
मौसम कितनी भी होशियारी क्यों न कर ले.. आखिर वो नादान थी.. अनुभवहीन थी.. प्रपंचों की कला उसे आती नही थी.. उसके सुंदर चेहरे पर कुछ छुपाने का भाव स्पष्ट नजर आ रहा था.. शीला की शातिर नजर ने ये बखूबी पकड़ लिया
जवान लड़कियों के निजी मामलों में दखल नही देनी चाहिए ऐसा शीला मानती थी.. मौसम के झूठ को तो उसके दिमाग ने पकड़ लिया था पर वो उसे परेशान करना नही चाहती थी..
"चलो सब.. ये तो गार्डन ही है.. यहाँ कुछ खास देखने लायक नही है.. पीयूष, हमें किसी मॉल में ले चल.. यहाँ तक आए है तो थोड़ी शॉपिंग भी कर लेते है" कहते हुए शीला बाकी सब को लेकर गार्डन से निकल गई
मन ही मन शीला भाभी के प्रति आभार प्रकट करते हुए मौसम ने चैन की सांस ली.. अब उसके पास कोई चारा नही था.. डरते डरते उसने वैशाली को फोन लगाया
"हैलो, कहाँ है तू यार.. मैं तो कब से तुझे ढूंढ रही हूँ" वैशाली ने उल्टा सवाल किया
चिढ़ी हुई मौसम ने कहा "अरे बेवकूफ.. कितनी देर तक खड़ी रहती वहाँ? आते जाते सब लोग मुझे शक की निगाह से देख रहे थे.. और तू तो बाहर निकलने का नाम ही नही ले रही थी? क्या किया इतनी देर तक? तेरा मन भरा की नही? चल छोड़.. जहां मैंने स्कूटी पार्क किया था वहीं इंतज़ार कर.. मैं दो मिनट में पहुँचती हूँ"
फोन काटकर मौसम ने स्कूटी दौड़ा दी.. वैशाली को देखकर आज पहली बार मौसम शरमा गई.. जो लड़की उसके सामने खड़ी थी वो अभी अभी उसके पापा से चुदवाकर आई थी.. ये बात मौसम को शर्माने के लिए काफी थी
मौसम की स्कूटी वैशाली के करीब आते ही दोनों की आँखें चार हुई और वैशाली ने शरारती मुस्कान के साथ मौसम को देखा.. वैशाली के शरीर और चेहरे की चमक देखते ही पता लगता था की वो पूर्णतः संतुष्ट होकर आई थी.. जब वो अंदर गई तब निस्तेज थी.. चेहरे पर नूर नही था.. और अब एक घंटे के बाद उसका चेहरा गुलाब के पौधे की तरह खिला खिला लग रहा था.. मौसम समझ गई की पापा के संग सेक्स भोगकर वैशाली इतनी संतुष्ट हो गई थी की उसका चेहरा चमक रहा था..
पेट की भूख के लिए होटल या रेस्टोरेंट आसानी से मिल जाते है पर जिस्म की भूख के लिए?? उसके लिए तो मन को मनाकर तड़पना पड़ता है.. पुरुष तो फिर भी रेड-लाइट एरिया में जाकर अपनी भूख मिटा सकते है पर औरतों के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नही है.. विधवा, तलाक-शुदा औरतें.. या फिर ऐसी औरतें जिनका पति अब उन्हें संतुष्ट नही कर पाता.. ये सब बेचारी कैसे अपनी आग बुझाएं.. !! हर जगह सामाजिक बंधन अड़ंगा जमाएं उन्हें रोक लेते है.. ऐसी कोई व्यवस्था होनी ही चाहिए जहां कोई भी लड़की या औरत बेफिक्री से और गर्व के साथ अपनी भूख संतुष्ट कर सकें.. पर नही.. पुरुष प्रधान समाज इसकी कभी इजाजत नही देगा..
कई पुरुष सिर्फ यही समझते है की स्त्री, जब चाहे इस्तेमाल करने का और भोगने का साधन मात्र है.. पर स्त्री की जरूरतों के बारे में पूछने का खयाल उनके दिमाग में कभी नही आता.. सामाजिक शर्म के कारण शारीरिक रूप से असन्तुष्ट स्त्री बेचारी इज्जत को बचाने के चक्कर में सेक्स के परम आनंद को भोग नही पाती.. आखिर उस भूख से तड़प तड़पकर.. अयोग्य पुरुषों को अपना जिस्म सौंप बैठती है और फिर वही पुरुष उसके विश्वास का भंग करके.. पान की दुकान या चाय की टपरी पर.. अपने दोस्तों के बीच.. उस स्त्री के शरीर को कैसे भोगा.. उसका विवरण देकर वाह-वाही बटोरते है.. जैसे शिकारी शेर मारकर आया हो.. !!
स्त्री वाकई इन मामलों में अबला है.. क्यों की जिस मर्द पर वो पूरा विश्वास रखकर अपना सर्वस्व अर्पण करती है.. वही पुरुष दुःशासन बनकर पब्लिक में उनके जिस्म का वर्णन कर, सरेआम वस्त्राहरण कर देते है.. इन सारी बातों से अनजान वह स्त्री उस मर्द को प्यार कीये जाती है और उल्लू बनती रहती है.. जब उसे पता चलता है तब तक बहोत देर हो चुकी होती है और वो कुछ नही कर पाती.. ऐसे लोफ़रों से प्यार करना चक्करखिली की सवारी जैसा होता है.. सिर्फ गोल गोल घूमते है पर मंजिल पर कभी नही पहुंचते..
खैर, अब वक्त बदल रहा है.. स्त्री सशक्तिकरण पूरे ज़ोरों से चल रहा है.. और कई स्त्रीयां इसका गलत लाभ भी भरपूर उठा रही है.. जरूरत है.. सोच बदलने की.. पुरुषों को और स्त्रीयों को भी.. !!
वैशाली मौसम के पीछे उसके काँधें पर हाथ रखकर स्कूटी पर बैठ गई.. फिर से एक बार वैशाली के मदमस्त स्तन मौसम की पीठ से दबकर चपटे हो गए.. मौसम को बहोत कुछ पूछना था पर स्कूटी चलाते वक्त ये सब बातें करना उसे ठीक नही लगा.. वैशाली के तमाम जवाबों में उसके पापा शामिल थे और उसे आखिर ये सब सुनकर शर्म ही आनेवाली थी.. पर स्त्री का मन ही ऐसा होता है.. वो कोई बात छुपा ही नही सकती.. कोई भी गुप्त या गोपनीय बात किसी औरत से कहें तो उसके थोड़े ही वक्त में पूरे मोहल्ले को वो बात पता चल जाती है.. अगर वाकई में आप किसी बात को गुप्त रखना चाहते है तो वो बतानी ही नही चाहिए..
कुदरत ने स्त्री का मन बड़ा ही भोला बनाया है.. जिसके साथ बात करती है उस पर पूर्ण विश्वास रखकर अपनी सबसे गुप्त बातें भी शेर कर देती है.. अनजान स्त्रीयां आपस में इसीलिए तो बड़ी ही आसानी से घुलमिल जाती है.. लड़की अपने बॉयफ्रेंड से पहली किस करे तब उसे तब तक चैन नही पड़ता जब तक वो इस बारे में अपनी खास सहेली को बता नही देती.. उसकी किस तब तक पूर्ण ही नही होती.. इसी लिए तो जब वो लड़की अपने परिवार से छुपकर किसी लोफ़र के साथ भाग जाती है तब पुलिस सब से पहले उसकी सहेली से पूछताछ करती है.. पुलिस भी जानती है की लड़कियां अपने कारनामों के बारे में किसी न किसी सहेली की जरूर बताती है.. सहेली को सारी बात बताकर कहती है की किसीको बताना मत.. अरे, जब बात छुपानी ही है तो बताना क्यों?? फिर जब वो दोनों पुलिस के हाथों पकड़े जाते है.. तब उसके बॉयफ्रेंड को इतने डंडे पड़ते है.. की चुदाई का सारा मज़ा एक पल में गायब हो जाता है.. आखिर तक उस लड़के के दिमाग में यहीं विचार आता रहता है की आखिर उनके बारे में पुलिस को बताया किसने??
वैशाली भी सारी बातें बताने से खुद को रोक नही पाई.. एक के बाद एक रोमांचक अनुभव वो मौसम को बताती गई..
मौसम ने सिर्फ इतना ही पूछा.. "आखिर इतनी देर क्यों हुई तुझे? एकाध बार करवाने में इतना वक्त लगता है क्या?"
वैशाली: "अरे यार.. पहले अंकल ने फाल्गुनी को चोदा.. अब मर्द का एक बार निकल जाए फिर तुरंत तैयार नही होता.. "
मौसम के निर्दोष दिमाग को ये समझ में नही आया... उसने पूछा "मतलब.. ??"
वैशाली: "एक बार मर्द चोद ले और उसकी पिचकारी निकल जाए.. फिर उसके लंड को टाइट होने में थोड़ा वक्त लगता है.. ऐसे तुरंत ही खड़ा नही हो सकता.. !!"
"ओह.. !! अब समझी" स्कूटी को रोड पर मोड़ते हुए मौसम ने कहा
रास्ते के गड्ढों पर स्कूटी ऐसे उछल रही थी की अगर वैशाली को लंड होता तो अब तक उसने मौसम को दो-तीन बार स्खलित कर दिया होता.. वैशाली की कामुक बातों से और पीठ पर दब रहे स्तनों से मौसम तो उत्तेजित तो हो ही चुकी थी.. ऊपर से गड्ढों में ऊपर नीचे होकर पटखनी खाती स्कूटी की सीट पर चूत के घर्षण से बहोत मज़ा भी आ रहा था.. कुछ गड्ढों पर तो मौसम ने जानबूझकर स्कूटी डाल दी थी.. जो काम वो अपने जीजू से करवाना चाहती थी वही काम स्कूटी पर बैठे बैठे हो रहा था.. वो सोच रही थी.. जीजू को प्रोमिस तो कर दिया है पर अब उसे निभाऊँ कैसे?? अकेले मिलने का वादा तो कर लिया पर मिलेंगे कहाँ? और कब? बड़ा ही पेचीदा सवाल था.. तरुण के साथ सगाई से पहले जीजू के साथ मौका मिल जाए तो सब कुछ संभल जाएगा..
काफी अंधेरा हो चुका था.. साढ़े सात का समय हो रहा था..
वैशाली ने बात आगे बढ़ाई "थोड़ी देर बाद तेरे पापा का फिर से खड़ा हुआ.. फिर मैंने करवाया.. पर अंकल को मेरे साथ इतना मज़ा आया की जब मैं निकल रही थी तब मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा की उन्हें एक बार ओर मेरे साथ करना था.. अब तू बाहर मेरा इंतज़ार कर रही थी.. इसलिए मैं जाना चाहती थी पर क्या करती!! मैं अंकल को मना नही कर सकी.. असल में मुझे ही एक बार करवाने में संतोष नही हुआ था.. और दूसरी बार ऑर्गजम आने में हमेशा थोड़ी देर लगती है.. सॉरी बेबी.. तुझे इतना इंतज़ार करवाने के लिए.. पर यार आज तो मज़ा ही आ गया.. आई फ़ील सो हैप्पी.. ऐसा मज़ा ज़िंदगी में कभी नही आया.. मस्त और तंदूरस्त है तेरे पापा.. और शक्तिशाली भी.. ऐसे करारे शॉट मारे है.. आह्ह.. नीचे तो सब बाग बाग हो गया.. बहोत मज़ा आया.. !!"
ऊबड़खाबड़ रास्तों पर अपनी चूत रगड़ते हुए मौसम का जिस्म सख्त हो गया.. उसकी चूचियाँ टाइट हो गई..
"वैशाली.. यार.. मेरे बॉल दबा दे.. प्लीज.. !! तेरी बातों ने मुझे पागल बना दिया है.. ओह्ह.. अब मुझे आगे कुछ नही सुनना.. नहीं तो जिस तरह तू मेरे पापा के पास गई वैसे मुझे तेरे पापा के पास जाना पड़ेगा" मौसम ने सिसकियाँ लेते हुए कहा
"तो जा ना.. किसने रोका है.. !! हाँ, मेरी मम्मी को पता नही चलना चाहिए.. वरना वो तेरी गांड फाड़कर रख देगी.. " अंधेरे का लाभ उठाते हुए वैशाली मौसम के स्तनों को दबाने लगी..
"आह्ह.. आह्ह.. मज़ा आ रहा है यार.. जोर से दबा.. मसल दे जोर से.. ओह्ह"
"जैसे तेरे पापा मेरे दबा रहे थे वैसे ही दबाऊ? या ओर जोर से?" वैशाली ने मौसम की गर्दन को पीछे से चूमते हुए कहा..
मौसम: "वैशाली.. मेरा बहोत मन कर रहा है यार.. की तुझसे अपनी चुत चटवाऊँ.. !!"
वैशाली: "तू फिकर मत कर.. रात को हम दोनों एक ही कमरे के सो जाएंगे.. तब तेरी ये इच्छा पूरी कर दूँगी.. और लगभग ये हमारी आखिरी मुलाकात होगी.. मैं तो फिर कलकत्ता लौट जाऊँगी.. कौन जाने फिर कब मिलना होगा हमारा.. !!"
मौसम: "क्यों? मेरी सगाई और शादी में नही आएगी तू?"
वैशाली: "अरे पगली.. तब हम एक दूसरे की चूत थोड़ी न चाट पाएंगे..!! तब तो तू तरुण के सपनों में और उसके लंड की याद में खो गई होगी.. " तभी स्कूटी मौसम के घर के नजदीक पहुँच गई..
मौसम: "मेरी छाती से हाथ हटा ले.. घर आ गया.. अब बाकी सब रात को करेंगे"
मौसम और वैशाली ने घर में प्रवेश किया.. सुबोधकांत को आराम से टीवी देखते हुए देखकर दोनों चकित हो गए.. मजे की बात तो ये थी की सुबोधकांत ने वैशाली और मौसम की ओर देखा तक नही.. और वैसे अच्छा ही हुआ.. वो देखते तो भी मौसम उनसे नजरें मिला नही पाती.. थोड़ी ही देर पहले अपने पापा को नंगा.. चुदाई करते हुए देखा था.. वो द्रश्य उसकी आँखों के सामने से हट ही नही रहा था.. सदमा, उत्तेजना और ईर्ष्या.. ये सारे भाव.. एक साथ परेशान कर रहे थे मौसम को.. !!
मौसम को उसके पापा की ओर देखती हुई देख.. वैशाली ने उसके हाथों को दबाया.. और मस्ती भरी मुस्कान के साथ आँख मारी..
भोजन के बाद.. सुबोधकांत, मदन और पीयूष के साथ पान की दुकान पर गए.. राजनीति से लेकर ओलिंपिक्स तक ढेर सारी बातें हुई.. पर पीयूष को उन बातों में जरा भी दिलचस्पी नही थी.. उसका दिमाग तो बस मौसम के दो खुले स्तन और उसके नीचे के टाइट छेद के बारे में सोच रहा था.. उसे तो घर से बाहर निकलना ही नही था.. पर क्या करता.. सारी लड़किया और औरतें.. शॉपिंग, ज्वेलरी और साड़ियों की बातें कर रही थी.. वहाँ बैठकर करता भी क्या??
थोड़ी देर बाद वो तीनों घर वापिस लौटे.. तब मौसम की शादी की बातें पूरे जोर-शोर से हो रही थी.. थोड़ी थोड़ी देर पर पीयूष वैशाली और शीला के स्तनों को देखकर उनके बीच साम्यता ढूँढने की निरर्थक कोशिश कर रहा था..
रमिला बहन: "दामाद जी, आपको और कविता को शादी के दो हफ्तों पहले से यहाँ आ जाना होगा.. सारी तैयारियां आप लोगों को ही तो करनी है.. अब हमारी उम्र हो चली है.. भाग-दौड़ के सारे काम आप को ही करने होंगे.. " ये सुनकर वैशाली मन ही मन हँसकर सोच रही थी.. आंटी, उम्र तो आपकी होगई है.. आपके पति में तो अभी बहोत जान बाकी है.. !!
तभी मदन के फोन की घंटी बजी.. पोलिस स्टेशन से उसके दोस्त का फोन था.. वो उठकर छत पर चला गया.. शीला बेहद डर गई.. अब क्या हुआ होगा?? कहीं पूछताछ में संजय या हाफ़िज़ ने कुछ बता तो नही दिया होगा?? बाप रे.. अब मैं क्या करूँ?? मन ही मन वो प्रार्थना करने लगी
इंस्पेक्टर: "मदन, तेरे दामाद को मैंने बराबर खर्चा-पानी दे दिया है.. बता अब क्या करूँ उसके साथ?? तेरा दामाद है इसलिए मैंने अब तक केस नही बनाया है"
मदन: "अभी तो मैं एक काम से शहर से बाहर हूँ.. कल शाम तक वापिस आऊँगा.. फिर मैं आकर उसे ले जाऊंगा.. आज रात वहीं लोकअप में मेहमान-नवाजी कर उसकी.. वैसे भी वो काफी टाइम से मेरी बेटी को परेशान कर रहा है"
मदन गंभीर चेहरे के साथ लौटा
वैशाली: "पापा, सब ठीक तो है ना?? पुलिस स्टेशन से क्यों फोन आया था?" मदन के चेहरे की उदासी देखकर पता चल रहा था की सब ठीक तो नही था.. मदन ने शीला की आँखों में देखा और दोनों इस बात से सहमत हुए की सुबोधकांत को ये बात बताने में कुछ गलत नही था
शीला ने अपनी बेटी की अस्तव्यस्त ज़िंदगी के बारे में सब को बताया और साथ ये भी कहा की अपने दामाद को कहीं सेट करने के बारे में वो लोग कितने चिंतित थे.. हालांकि संजय जैल में बंद है ये बात नहीं बताई.. ये बात तो वैशाली को भी पता नहीं थी.. सिर्फ शीला और मदन ही इस बात को जानते थे.. वैशाली की आँखों से आँसू टपकने लगे.. सारा वातावरण गंभीर हो गया.. ये सारी बातें सुनकर सुबोधकांत के दिमाग में एक प्लान आकार लेने लगा था..
सुबोधकांत ने वैशाली की ओर देखकर कहा "बेटा.. अगर तुम लोगों को कोई प्रॉब्लेम न हो तो इस शहर में शिफ्ट हो जाइए.. मेरा बिजनेस बहोत बड़ा है.. और अच्छे काम करने वाले लोगों की मुझे हमेशा जरूरत पड़ती है.. मेरे लिए तो जैसे कविता मेरी बेटी है वैसी है है तू.. दोनों एक बराबर"
मौसम ये सुनकर सोचने लगी.. ये मेरा बाप तो वक्त आने पर कविता दीदी को भी चोद ले ऐसा हरामी है..पता नही क्या प्लान बनाया है साले ने.. लगता है मेरे बाप ने एक तीर से दो शिकार करने का तय किया है.. पहला शिकार वैशाली और दूसरा शीला भाभी का.. बड़ा लंबा सोचा था.. !!
वैशाली की गृहस्थी की बात आते ही वातावरण काफी शांत और गंभीर हो गया.. शीला और मदन की मानसिक स्थिति समझी जा सकती थी.. उनका दामाद जैल में बंद था.. ऐसी सूरत में उनकी मायुषी और उदासी देखते ही बनती थी..
वातावरण की गंभीरता कम करने के इरादे से मौसम की माँ, रमिला बहन ने कहा "आज मौसम ने लड़का पसंद कर लिया है.. सब का मुंह मीठा कराना होगा.. पीयूष कुमार.. जरा सुनिए तो.. !!"
"हाँ मम्मी जी.. कहिए क्या करना है?"
तभी सुबोधकांत ने कहा "आप और कविता बाजार जाइए.. और सब के लिए आइसक्रीम लेकर आइए"
पीयूष क्या बोलता.. !! सास और ससुर की इच्छा को तो पूरा करना ही था.. पर सुबोधकांत को कहाँ पता था की पीयूष और कविता एक दूसरे से सीधे मुंह बात भी नही करते थे.. !!
पीयूष ने कविता के सामने देखा.. कविता भी अपने माँ बाप की बात को टाल न सकी.. पीयूष के प्रति अपनी नफरत को छुपाकर उसने हँसते हुए चेहरे से हामी भरी और खड़ी हो गई..
पीयूष सोच रहा था की अगर कविता के साथ सारे झगड़े खतम करने हो तो ये अच्छा मौका था..
पीयूष घर से बाहर निकल ही रहा था की पीछे से मौसम ने आवाज दी.. "जीजू, ये स्कूटी की चाबी तो लेते जाइए.." चाबी देते वक्त मौसम ने पीयूष की हथेली को छु लिया पर पीयूष का दिमाग अभी कविता के विचारों से घिरा हुआ था.. मौसम भी सोचती रही.. जीजू ने मेरी तरफ देखा क्यों नही?? आबू की ट्रिप के बाद उसे जीजू और दीदी की अनबन की बात तो मालूम ही थी.. इसलिए उन दोनों के हावभाव देखने के लिए वो भी उनके पीछे घर के बाहर निकली..
बाहर जाकर पीयूष ने स्कूटी स्टार्ट की.. और कविता उसके पीछे बैठ गई.. दोनों में से किसी ने भी मौसम की तरफ देखा तक नही.. दोनों के दिमाग में विचारों का तुमुलयुद्ध चल रहा था.. वो स्कूटी लेकर निकले और मौसम वापिस घर के अंदर जा ही रही थी तभी उसने दूर से फाल्गुनी को आता हुआ देखा.. मौसम वही खड़ी रही.. फाल्गुनी ने उसके पास आकर कहा "मौसम, मेरे मामी का फोन था.. उनका बेटा हॉस्टल से आया है.. तो वो मुझे लेने आ रहा है.. मुझे उसके साथ जाना होगा"
मौसम समझ गई की फाल्गुनी अब घर नही आएगी.. उसने भी उसे रोका नही.. फाल्गुनी चलकर बाहर निकली.. एक पल्सर बाइक आकर खड़ी हो गई.. फाल्गुनी के मामा के बेटे की.. दोनों भाई-बहन, मौसम को "बाय" कहकर चले गए
मौसम बाहर झूले पर बैठ गई.. वैसे भी अंदर चल रही गंभीर बातों में उसे दिलचस्पी नही थी.. उससे अच्छा यहीं बैठकर आइसक्रीम आने का इंतज़ार किया जाए..
झूले पर झूलते हुए मौसम के विचार चलने लगे.. आज का दिन कितना महत्वपूर्ण था उसकी ज़िंदगी के लिए.. !! क्यों की आज उसने अपना जीवन साथ चुन लिया था.. अब तक जो सारी कल्पनाएं थी वो अब हकीकत बनने वाली थी.. उसे अपने सपनों का राजकुमार मिल गया था.. और वो था तरुण.. वो तरुण के साथ बिताएं पल याद करने लगी.. और उसकी और तरुण की जोड़ी कैसी लगेगी वो भी मन ही मन सोचने लगी.. और शर्माने लगी.. आज का दिन किसी और कारण से भी खास था.. आज पहली बार उसने अपने पिता और सहेली को नंगा.. चोदते हुए देखा.. बाप और बेटी के बीच जो मर्यादा की दीवार होती है वो आज हवस की बाढ़ में बह चुकी थी.. मौसम ने कभी भी नही सोचा था की सभ्य और संस्कारी दिखने वाले उसके पिता.. इतने बेशर्म होंगे.. !!
झूले पर बैठे बैठे उसने झुककर ड्रॉइंगरूम के अंदर देखा.. उसे वहाँ से अपने पिता सुबोधकांत सोफ़े पर बैठे हुए नजर आ रहे थे.. उनकी शक्ल में उसे अपने पापा नही.. पर फाल्गुनी और वैशाली को चोदनेवाला सुबोधकांत नजर आ रहा था.. उसकी आँखों के सामने वह द्रश्य फिर आ गया.. फाल्गुनी कैसे बेशर्मों की तरह अपने स्तन खोलकर पापा से चुसवा रही थी.. !! और वैशाली भी कम नही थी.. कैसे पकड़कर पापा का लंड चूस रही थी.. !!! मौसम ने अपना सर झटकाया.. ये सब मैं क्या सोच रही हूँ..!! जिसके लंड को देखकर उसकी चूत गीली हो गई थी वो और कोई नही पर उसका सगा बाप था.. !!
मौसम को अपनी सोच पर शर्म आने लगी.. तभी मौसम की नजर किचन की खिड़की से दिख रही उसकी माँ की तरफ गई.. रमिला बहन काम में इतनी व्यस्त थी की उनका पल्लू कब गिर गया उन्हें पता ही नही चला.. मौसम अपने मन पर काबू न रख पाई और अपनी मम्मी के जिस्म की गोलाइयों को देखने लगी.. सोचने लगी.. मम्मी भी देखने में कितनी सुंदर है.. !! क्या पापा मम्मी को भी ऐसे ही पीछे से चोदते होंगे? मम्मी जब झुककर चुदवाती होंगी तब उनके ये बड़े बड़े स्तन कैसे झूलते होंगे..!! मौसम सोच रही थी की अगर इस उम्र में उनके स्तन इतने बड़े है तो जब मेरा जन्म हुआ तब कितने बड़े होंगे.. दूध से भरे हुए.. !! क्या पापा और मम्मी इतनी ही उत्तेजना से चोदते होंगे?? सोचते सोचते मौसम की पेन्टी गीली हो गई
अपने इन हीन विचारों से शर्माकर वो सोचने लगे.. बाप रे.. ये सब मैं क्या सोच रही हूँ? क्यूँ इतने गंदे गंदे खयाल आ रहे है मन में?? मैं कितने संस्कारी खानदान की बेटी हूँ.. आज से एक महीने पहले मैंने किसी पराये मर्द के बारे में सोचा भी नही था.. और आज अपने सगे माँ बाप के बारे में.... !!!
मौसम का दिमाग दो हिस्सों में विभाजित हो गया था.. एक पक्ष अपने पापा की हरकतों का विरोध कर रहा था तो दूसरा उन्हें जायज ठहरा रहा था.. जैसे मौसम के दिमाग में ही सुबोधकांत का केस चलने लगा था..
एक तरफ.. बेहद प्यार करने वाले, जज्बाती और वात्सल्य से भरा हुआ बाप था तो दूसरी तरफ फाल्गुनी और वैशाली को चोदने वाला कामी पुरुष.. कौनसा स्वरूप असली था ये पता नही चल रहा था.. उनकी हकीकत आखिर क्या थी? आज मौसम का अपने विचारों पर काबू नही था.. अब इन विचारों का बोझ महसूस हो रहा था उसे.. काफी देर तक वो यूं ही विचारों में खोई बैठी रही.. उसकी विचार शृंखला तब टूटी जब बहोत सारे कुत्ते एक साथ भोंकने लगे..
मौसम ने देखा.. ५-६ कुत्ते.. एक कुत्तिया के पीछे पड़े थे.. भादों का महिना चल रहा था और कुत्तों को भी अपना टारगेट अचीव करना था.. सारे कुत्तों की एक ही मंजिल थी.. उस कुत्तिया की पूत्ती.. एक अनार और सो बीमार वाला हिसाब था..
अब तक तो दीदी और जीजू को आ जाना चाहिए था.. मौसम उनका इंतज़ार कर रही थी..
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दूसरी तरफ स्कूटी पर सवार होकर पीयूष और कविता बाजार की तरफ जा रहे थे.. प्री-मॉनसून प्लान की कार्यवाही में रिजेक्ट हुए रास्तों के गड्ढों की महरबानी से पीयूष और कविता के जीवन की वसंत खिलने की तैयारी पर थी.. जब शरीरों की निकटता बढ़ती है तब दिमाग और मन का अहंकार पिघलना शुरू हो जाता है.. शारीरिक स्पर्श मन के घावों पर मरहम का काम करता है.. पीयूष और कविता दोनों ही ये बात जानते थे की वो बाहर कितना भी मुंह क्यों न मार ले.. आखिर उन्हें एक दूसरे के पास ही लौटकर आना होगा.. मनोचिकित्सकों का भी ये कहना है की पति और पत्नी के बीच चाहें कितना भी बड़ा झगड़ा क्यों न हो जाए.. उन्हे संवाद को बरकरार रखना चाहिए.. जिससे की अहंकार की जमी हुई बर्फ पिघल सके.. उससे थोड़ा आगे सोचे तो.. बातें या संवाद चाहें बंद हो जाएँ.. पर शारीरिक निकटता कम नहीं होनी चाहिए ताकि दोनों के बीच अहंकार की दीवार बन न जाएँ..
बात की शुरुआत कविता ने की..
कविता: "तुझे याद है पीयूष? तुम जब सगाई के बाद पहली बार मिलने आए थे तब हमने इसी दुकान पर आइसक्रीम खाया था.. !! हम दोनों अकेले साथ न जाए इसलीये मम्मी ने मौसम को भी साथ भेजा था.. याद है या भूल गए!!"
पीयूष का मन भी अब पिघलने लगा और वो अतीत की यादों में खो गया
"हाँ हाँ.. बराबर याद है.. सारे फ्लेवर्स ट्राय करने के बाद मुझे तो पिस्ता वाला आइसक्रीम ही पसंद आया था.. ३ दिन तक रोज वो आइसक्रीम खाने के बाद भी मन नही भरा था.. और तेरा फेवरिट कौन सा था?? अरे हाँ.. याद आया.. तू हमेशा चॉकोबार खाती थी.. कैसे हाथ में लेकर चूसती थी"
कविता ने शरमाकर पीयूष की पीठ पर प्यार भरी थपकी लगाते हुए कहा "क्या तू भी.. कुछ भी बोलता है.. !! बेचारी छोटी सी मौसम को हम आइसक्रीम दिलाकर सामने कुर्सी पर बीठा देते थे.. और तुम चुपके से मेरे बॉल दबा देते थे.. हा हा हा.. !! पर सच कहूँ पीयूष.. आज भी उस स्पर्श की याद आती है तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते है.. थोड़ी सी घबराहट.. थोड़ा सा हक का भाव.. जज़्बातों के उस संमिश्रण को मैं कभी भूल नही पाऊँगी"
सगाई से लेकर शादी तक का समय.. हर जोड़ी के लिए बड़ा ही यादगार होता है.. सब से सुंदर समय.. दिमाग साथ बैठकर नए नए सपने बुनता है.. और शरीर नए नए अंगों की खोज करता है
पीयूष भी अब धीरे धीरे मूड में आने लगा..
पीयूष: "कविता.. चल फिर से वो यादें ताज़ा करते है.. घर के लिए आइसक्रीम लेने से पहले एक एक कप पिस्ता का आइसक्रीम हो जाए.. जब से तूने मेरे साथ बोलना छोड़ दिया है तब से ऐसा महसूस कर रहा हूँ जैसे किसी नेता की कुर्सी चली गई हो.. लंड तो बेचारा ऐसे दुबक के छुप गया है की ढूँढने पर भी नजर नही आता.. "
कविता: "चल झूठे.. कितना ड्रामा करता है रे तू.. !! ये देख.. तेरा मिनी-चॉकोबार धीरे धीरे बड़ा हो रहा है"
पीयूष और कविता अपनी पसंदीदा आइसक्रीम की दुकान पर पहुँच गए.. आइसक्रीम के कप लेकर दोनों अंधेरे पार्किंग में साथ बैठकर खाते हुए एक दूसरे को छेड़ने लगे.. जवान जोड़ियों की तरह हरकतें करने लगे.. थोड़ी ही देर में दोनों लय में आ गए.. दोनों को पता था की यहाँ कुछ भी खुल कर कर पाना मुमकिन नही था.. फिर भी पार्किंग के अंधेरे में जितनी छूट ली जा सकती थी उन्हों ने ले ली.. साथ ही साथ आस पास के लोगों का भी ध्यान रखना पड़ता था
पीयूष: "यार, स्कूटी के बदले गाड़ी लेकर आए होते तो अच्छा रहता.. ये तो ऐसा हाल हो गया की सूप पीने को मिला.. भूख तेज हो गई अब खाने के लिए कुछ नही है"
यहाँ वहाँ देखकर पीयूष के मन में एक तरकीब सूझी..
पीयूष: "कविता, वो देख सामने के कॉम्प्लेक्स के साइड में जो अंधेरी गली दिख रही है.. वहाँ पर एक पुरानी मारुति ८०० पार्क की है.. हाल देखकर लगता है की पिछले कई महीनों से किसी ने इस्तेमाल नही की है.. कॉम्प्लेक्स की सारी दुकानें भी बंद है.. मैं वहाँ जाकर कुछ सेटिंग करता हूँ.. जैसे ही मैं इशारा करूँ, तुम वहाँ आ जाना"
नीचे पड़ी चॉकोबार की स्टिक लेकर पीयूष गाड़ी की तरफ गया.. दरवाजे के कांच पर लगी धूल साफ करके उसने साइड ग्लास के रबर को ऊपर किया और स्टिक अंदर डाली.. थोड़ी मेहनत के बाद लोक खुल गया.. शतक बनाकर जिस तरह विराट कोहली अपना बेट ऊपर करता है बिल्कुल वैसे ही पीयूष ने स्टिक ऊपर करके कविता को वहाँ आने का इशारा किया.. गाड़ी में घुसते ही दोनों एक दूसरे पर ऐसे टूट पड़े जैसे जनम जनम से भूखे हो.. कोई देख न ले इसलिए जल्दी जल्दी में पीयूष ने चैन खोलकर लंड बाहर निकाला.. कविता ने अपना स्कर्ट ऊपर कर पेन्टी को घुटनों तक सरका लिया था.. उसका छेद पीयूष के लंड को ग्रहण करने के लिए आतुर था.. पार्किंग में फॉरप्ले पहले ही हो चुका था इसलिए पीयूष का लंड तैयार था और कविता की चुत गीली हो रखी थी.. सिर्फ ५ मिनट में उन्होंने अपना काम खतम कर लिया
और तभी पीयूष के मोबाइल पर वैशाली का फोन आया..
पीयूष के फोन उठाते ही वैशाली ने कहा "तुम दोनों आइसक्रीम लेने गए हो या बनाने? जल्दी आओ यार.. सब यहाँ वेइट कर रहे है" वैशाली ने जिस मज़ाकिया अंदाज में बात की उससे ये मालूम हो रहा था की घर का वातावरण भी नॉर्मल हो चुका था.. दोनों ने अपने कपड़े ठीक कीये.. गाड़ी से बाहर निकले और आइसक्रीम लेकर घर की ओर रवाना हुए..
जब गए तब दो अलग अलग इंसान थे.. वापिस लौट रहे थे दो जिस्म और एक जान बनकर.. कितने समय के बाद दोनों के बीच की कड़वाहट दूर हुई थी.. वाकई.. संवाद करने से.. बात करने से.. बड़े से बड़े प्रॉब्लेम का हल मिल ही जाता है.. जरूरत होती है सिर्फ पहल करने की.. दोनों का पेट आइसक्रीम खाने से ठंडा हो गया था और गाड़ी में बिताएं उस समय ने उनके मन को भी शांत कर दिया था
हल्की हल्की बारिश हो रही थी.. मिट्टी की मीठी खुश्बू सारे माहोल को सुगंधित कर रही थी.. आबोहवा की ठंडक अब कविता और पीयूष के कामागनी को भड़का रही थी..
घर पहुंचते ही सब ने आइसक्रीम खाया और सोने की तैयारी करने लगे.. दामाद होने के नाते.. पीयूष और कविता के लिए ऊपर का मास्टर बेडरूम आरक्षित रखा गया था..
कविता ने पीयूष से कहा "तुम नहाकर फ्रेश हो जाओ.. मैं अभी नीचे जाकर आती हूँ"
थोड़ी देर बाद जब कविता कमरे में आई तब उसके हाथ में दूध का ग्लास था.. पीयूष अभी भी बाथरूम में था.. उसने ग्लास टेबल पर रखकर लाइट को बुझा दिया और नाइट-लैम्प ऑन कर दिया.. बेडरूम का माहोल रोमेन्टीक बन गया..
पीयूष के बाहर आते ही कविता बाथरूम में घुस गई..
लगभग पंद्रह मिनट बाद बाथरूम का दरवाजा खुला.. और पीयूष का ध्यान उस तरफ गया.. देखकर उसके होश उड़ गए
उसने देखा.. कविता पिंक कलर की पारदर्शक लॉन्जरी पहन कर बड़ी ही मस्ती भरी अदा में खड़ी थी.. जालीदार लॉन्जरी से कविता के सारे अंग दिख रहे थे.. सिर्फ निप्पल और चूत की लकीर पर कपड़े की पट्टी उसकी इज्जत को ढँक रही थी.. कविता साक्षात अप्सरा जैसी लग रही थी.. लाइट कलर की लिपस्टिक और हल्का सा मेकअप लगाकर तैयार कविता ने बड़े ही मादक अंदाज में अपने जिस्म पर हाथ फेरा और कातिल शृंगारिक अदा से पीयूष के दिल को घायल कर दिया..
साथ ही साथ पीयूष को विचारों ने घेर लिया.. ये वही लॉन्जरी थी जो उसने शादी के एक महीने पहले खरीदी थी.. कविता को सुहागरात पर गिफ्ट देने के लिए.. शादी के एक महीने पहले वो दोनॉ ओयो-रूम में मिले थे तब उसने जिद की थी की घर जाकर कविता इस लॉन्जरी को पहने और विडिओ-कॉल पर उसे दिखाए.. इस बात पर दोनों के बीच काफी कहा-सुनी हो गई थी.. और उसके बाद इस लॉन्जरी को उसने कभी देखा नही था..
पर आज वही लॉन्जरी पहन कर कविता ने पीयूष को इशारे से कह दिया की माउंट आबू के झगड़े के बाद.. आज की रात उनके लिए सुहाग रात से कम नही थी.. शादी के बाद कविता का शरीर काफी गदराया था इसलिए ये नाइटी उसके जिस्म पर एकदम टाइट चिपक गई थी.. पर उससे तो वो और ज्यादा खूबसूरत लग रही थी
पीयूष खड़ा हुआ और कविता को घूर घूरकर देखने लगा.. उसकी तीक्ष्ण नजर और हवस युक्त मुस्कान से कविता शरमा गई.. पीयूष ने कविता को अपने बाहुपाश में जकड़ लिया और उसके सुलगते होंठों पर अपने होंठ रख दिए.. कविता अब पीयूष की जीभ चाटने लगी.. पीयूष ने कविता के रेशमी लहराते बालों को पकड़कर अपनी ओर झुकाया और उसके गाल, गर्दन और कान के पीछे चूमने लगा.. कविता का हाथ पीयूष की मर्दाना पीठ को सहला रहा था
उस दौरान दोनों एक दूसरे के होंठों का रस पान कर रहे थे और पीयूष की छाती से दबे हुए कविता के उन्नत स्तन अब वासना की आग में तप कर सख्त और कड़े बन गए थे.. कविता ने पीयूष को धक्का देकर बेड पर सुला दिया.. और उसकी टी-शर्ट निकाल फेंकी.. इस तरफ पीयूष ने लेटकर कविता के स्तनों पर हल्ला-बोल कर दिया.. पीयूष की शॉर्ट्स में खड़ा सख्त लंड बार बार कविता की चूत को छु रहा था.. और अंदर घुसने की अनुमति मांग रहा था.. कविता ने अपनी नाइटी की डोर को खींचकर खोल दिया और उसे हटा फेंका.. अब वो पीयूष की शॉर्ट्स को खींचकर निकालने की कोशिश कर रही थी.. इशारा समझकर पीयूष ने अपनी शॉर्ट्स और अन्डरवेयर उतार दी और नंगा हो गया.. अब उसने कविता को बेड पर लेटा दिया और उसकी पिंक पेन्टी में उंगली डालकर उतार दी..
होंठ और मुख की कशमकश से विमुख होकर भूखे भेड़िये की तरह पीयूष कविता की छातियों को मसल रहा था.. उसकी निप्पल को दांतों के बीच दबाकर उसने हल्के से काट लिया.. कविता के मुख से तीखी "आह्ह" निकल गई.. और उस आह्ह ने पीयूष की वासना की आग में घी का काम किया.. और वो दोगुने जोश के साथ कविता के स्तनों पर टूट पड़ा.. कविता ने भी अपने एक हाथ के नाखून पीयूष की पीठ पर गाड़ दिए और दूसरे हाथ से उसका लंड पकड़ लिया
दोनों हाथों से स्तनों को मसलते हुए पीयूष.. कविता के पेट, नाभी और जांघ पर अविरत चूमता जा रहा था.. कविता भी किसी नागिन की तरह बल खाती हुई अपने जिस्म को आधे फिट जितना ऊपर कर पीयूष को अपनी चूत चाटने के लिए आमंत्रित कर रही थी.. पीयूष ने अपने दांतों से कविता की चूत के होंठों को बड़ी ही नाजुकता से काट लिया.. उसके पैरों को चौड़ा करके चूत को खुली कर अपनी जीभ उसके गरम छेद में घोंप दी.. उसकी इस हरकत ने कविता को इतना उत्तेजित कर दिया की उसका बदन सिहरने लगा..
चूत के होंठों को उंगलियों से अलग करते ही.. अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखने लगा.. देखकर पीयूष ने आपा खो दिया और पागलों की तरह अंदर जीभ डालकर चाटने लगा.. कविता ने अपने दोनों पैर पीयूष के कंधों पर जमाकर उसे जकड़ लिया.. पीयूष के चाटने से उसकी चूत इतनी गीली हो गई थी की चूत का अमृत रस बहते हुए उसकी गांड के छेद तक पहुँच गया था.. छेद के अंदर तक जीभ घुसाकर.. पीयूष अपने अंगूठे से कविता की क्लिटोरिस पर गोल गोल घुमा रहा था.. कविता का शरीर कांपने लगा.. उसने अपनी चूत को पीयूष के चेहरे पर दबा दिया और पैरों से दबाकर बराबर सिकंजे में कस लिया..
पीयूष का लंड अब झटके खा रहा था.. पीयूष तुरंत ६९ की पोजीशन मे आ गया.. अपना लंड कविता के मुँह में देकर उसने फिर से कविता की चूत को चाटना शुरू कर दिया.. दोनों एक दूसरे के जननांगों को खुश करने में व्यस्त हो गए..
पीयूष का लोडा अब चरम पर था.. उसने कविता के मुंह से बाहर निकाला और कविता की दोनों जांघों के बीच बैठकर.. सुपाड़े को कविता की ज्वालामुखी जैसी चूत पर रख दिया.. एक धक्के में आधा लंड अंदर घुसा दिया.. रस से गीली चुत.. लंड प्रवेश के लिए इतनी आतुर थी.. के कविता ने कमर उठाकर बाकी का आधा लंड भी निगल लिया..
"पचाक.. !!" की आवाज के लोडा कविता की चूत में घुस गया.. कविता के गले से "आह्ह" निकल गई.. पीयूष की कमर पर अपने दोनों पैर लिपटा कर वो उसके लंड को अपनी चूत की तरफ धकेलती रही
पीयूष ने एक जबरदस्त धक्का लगाया और उसका लंड कविता की बच्चेदानी के मुख पर जा टकराया.. कविता की आनंद भरी किलकारी निकल गई
"पीयूष.. मज़ा आ गया यार.. चोद मुझे.. जी भर कर चोद.. आह्ह आह्ह.. !!"
पीयूष का पूरा जिस्म दोगुने जोश के साथ कविता की जांघों के बीच.. इंजन के पिस्टन की तरह अंदर बाहर करने लगा.. बीच बीच में वो कविता के स्तनों को दांतों से काट लेता.. कभी निप्पल चूसता.. कभी हाथ नीचे डालकर कविता की क्लिटोरिस को मसल देता.. कविता की कोल्हू जैसी चूत में पीयूष का गन्ने जैसा लंड पिसता गया.. पिसता गया और दोनों का रस निकलता गया.. कविता की लाल गरम चूत भांप छोड़ रही थी.. और लंड उसपर पानी की बूंदें बरसा रहा था
पीयूष ने धक्कों की गति बढ़ाई और उसके साथ कविता भी उछल उछल कर लंड लेती रही.. और उसी क्षण.. एक जबरदस्त धक्के के साथ.. दोनों आलिंगन में लिप्त होकर.. तृप्त हो गए.. और एक दूसरे के बाहों में स्खलित होकर गिर गए..
पसीने की चमकती बूंदें दोनों के शरीर पर ओस की तरह जम गई थी.. पिछले कई हफ्तों से कविता की सारी अतृप्त इच्छाएं आज संतुष्ट होकर शांत हो चुकी थी.. अपनी चूत और शरीर की दहकती भड़कती अदम्य इच्छाओं का शमन होते ही.. परमानन्द में डूबकर वो पीयूष की बाहों में सो गई..
तो दूसरी तरफ वैशाली और मौसम भी एक दुसरें की चूत चाटकर तृप्त हो चुकी थी और बाहों में बाहें डालकर सो रही थी..